Book Title: Labhodaya Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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September-2003
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॥३१॥ ॥३२||
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सेतुंजादिक तीर्थ जेह, वकसइ सहगुरुकुं तेह । जीजीउ दंड दोर जगाति, अकबरसाही कइ नहीं वात जोर जूलम न कीजइ जाकइ, हुउ ए अधिक इसा कइ भोगीजन करु बहु भोग, आतम साधउ जोग । देस नगर पुर गाम, सुखी जिहां जिहां अकबर नाम तेह सहगुरुनउ उपदेस, समुअरइसुं सदा वंछेसि । चउथउ आरु परतख्य दीसइ, पूजीजइ जिन चउवीसइ उछव होवइ नित झाझा, जिनसासनि बहुत दिवाजा श्रीविजयसेनसूरिंद, चीर प्रतिपउ महामुणिंद । जस गुणकु न लहुं पार, सोहम जंबू अवतार सकलपंडित सिरताज, कल्याणकुशल गुरुराज । न्यानी गुणवंत मुनीश, श्रीमेहमुनींदकु सीस
दूहा ॥ साह लटकण सुत गुणनिलु, लीलादे जसमाय । कल्याणकुशल गुरु भेटतां, दारीद दुरि जाय
चालि ॥ अहनिसि जपतां गुरु नाम, सीझइ मनवंछित काम । कहइ दयाकुशल तस सीस, सुप्रसन सहगुरु निसदीस
इति श्री लाभोदयरास समाप्तं ॥
ग्रंथाग्रं २५१ ॥
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