Book Title: Kya Shastro Ko Chunoti Di Ja Sakti Hai Shanka Samadhan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 4
________________ जी स्वयं करते हैं। वैज्ञानिकों ने इस दृश्य चन्द्रमा के ऊपर और नीचे से होकर कई चक्कर लगाये हैं। उन्हें कहीं भी हाथी, घोड़े नहीं मिले। डोशीजी कहते हैं अभी तो कुछ हिस्सा देखा है, सब नहीं। डोशीजी को और उनके साथियों को आशा है-आगे चलकर कहीं मिल जाएँ तो लाज रह जाए। इन लोगों की स्थिति महाभारत के दुर्योधन की-सी है, जो भीष्म, द्रोण, कर्ण जैसे महारथियों का युद्ध में मरण हो जाने पर भी बेचारे शल्य पर ही भरोसा किये बैठा रहा कि यह ही पाण्डवों को जीत लेगा। बेचारा दुर्योधन? 'मनोरथानामगतिर्न विद्यते।' थोड़ी दूर चल कर डोशीजी ने नवभारत, टाइम्स के आधार पर लौटते समय चंद्रयान की ओर से रेड इंडियनों की-सी रण-हुँकारों एवं प्रेतों जैसी हँसी की आवाजों के आने का उल्लेख किया है और उस पर से संभावित किया है-चन्द्रमा पर देवताओं का अस्तित्व। बिना किसी प्रमाण एवं तर्क के डोशीजी इसी अंक में बड़ी शान के साथ लिखते हैं-"क्या ये ध्वनियाँ देवों की या किसी एक देव की नहीं हो सकती? कविजी ने अमर भारती पृ.33 में चन्द्रदेव और देव-देवियों के अस्तित्व में भी अविश्वास फैलाया है, किन्तु उपर्युक्त अवतरण से देवों के अस्तित्व की संभावना प्रकट हो रही है।" हो रही होगी, डोशीजी के दिव्य उपजाऊ मस्तिष्क में। मालूम होता है-कहीं नवभारत को भी डोशीजी ने सर्वज्ञभाषित शास्त्र तो नहीं मान लिया है ! बुद्धिमान पाठक विचार कर सकते हैं- कितना छिछला प्रतिकार है? नेहरूजी की भाषा में कहा जाए तो यह निरा बचकानापन है और कुछ नहीं। बस ये दो चार बातें इधर-उधर की करने के बाद डोशीजी मूल प्रश्न से भटक गए हैं और अब तक भटके ही जा रहे हैं। कब तक भटकेंगे? मैं क्या कह सकता हूँ। प्रश्न-लौटते समय चन्द्रयान की ओर से आनेवाली इन ध्वनियों के संबंध में कुछ मुनिराज भी इस विचार के हैं कि ये चन्द्रमा के पीछे दौड़ने वाले देवताओं की आवाजें हैं। आप क्या समाधान करते हैं इसका? उत्तर-समाधान क्या करूँ? मुझे तो सुनते ही हँसी आती है इस बौद्धिक चिन्तन पर, प्रतिभा की प्रखरता पर। चन्द्रयान चन्द्रमा पर हो आया, यात्री चन्द्र तल पर इधर-उधर घूम आये, पत्थर खोद लाये और तब देवता कुछ नहीं बोले, कुछ नहीं प्रतिकार किया। और जब लौट रहे थे, तब पीछे दौड़े हा हा हू हू करते। क्या जरूरत थी, पीछे से शोर मचाने की? यदि देवता थे तो अपने संकल्प मात्र -36 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International al For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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