Book Title: Kya Shastro Ko Chunoti Di Ja Sakti Hai Shanka Samadhan Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf View full book textPage 3
________________ उत्तर-गत फरवरी की अमर भारती में सर्व प्रथम इस दिशा में मैंने ही चर्चा उठाई थी। मेरा आशय था-चन्द्रयात्रा के लिए वैज्ञानिक प्रयत्न प्रगतिशील है। हमारे चन्द्र-प्रज्ञप्ति आदि कुछ सूत्र, जो भगवान् महावीर के बहुत समय पश्चात् इधर-उधर से संकलित किये गये हैं, उनकी मान्यताएँ गलत प्रमाणित हो रही हैं और होंगी। अतः उन्हें आचार्यकृत माना जाए, वे भगवद्वाणी नहीं हैं। वस्तुतः वे भगवदवाणी हैं भी नहीं। मैंने अनेक पुष्ट प्रमाणों के साथ अपना विचार पक्ष उपस्थित किया था। डोशी जी उसे मेरी धृष्टता कहते हैं और लगभग छह महीने की बड़ी लम्बी अवधि के बाद 5 अगस्त 1969 में आकर उत्तर देने के लिए अपने पवित्र लेखन का श्रीगणेश करते हैं। इस बीच उन्हें श्री प्रभुदास भाई और शंकराचार्य जी की ओर से कुछ लिखा जो मिल गया है, डूबते को तिनके का सहारा। यह कुछ भी हो, मुझे इससे क्या लेना-देना है? प्रस्तुत की चर्चा है। सम्यग् दर्शन (5 सितम्बर 1969) में पहले तो डोशी जी यह शंका ही करते हैं, कि “जिसे वैज्ञानिक चन्द्रमा कह कर उस पर पहुँचना बतलाते है, वह वास्तव में चन्द्रमा ही है या और कुछ?" और फिर साथ ही उसी पंक्ति में कहते हैं कि "यदि मान लिया जाए कि वह चन्द्रमा ही है तो वैज्ञानिकों ने उसके ऊपर के एक हिस्से का कुछ दृश्य देखा और स्पर्श किया। समग्र रूप नहीं देखा।" आप देख सकते है यह भी कोई ढंग है कुछ लिखने का? डोशी जी को तो यह सिद्ध करना चाहिए था कि वैज्ञानिक चन्द्रमा पर नहीं गए हैं। क्योंकि इसके विरुद्ध हमारे शास्त्र के ये प्रमाण हैं, ये तर्क हैं। वैज्ञानिक झूठे हैं, परंतु डोशी जी तो 'यदि' की आड़ में बस झटपट चन्द्र पर जाना स्वीकार कर लेते हैं और आखिर तक स्वीकार के ही स्वर में बहकते रहते हैं। डोशीजी चन्द्रमा को पहाड़ की उपमा देते हैं और देवताओं को उसके अंदर गुफा में बैठा हुआ-सा बतलाते हैं। बलिहारी है सूझबुझ की ! इसके लिए उन्होंने शास्त्र भी देखे हैं या नहीं? श्रद्धेय बहुश्रुत पं. समर्थमल जी महाराज से भी कभी पूछा है या नहीं? शास्त्र तो ऐसा नहीं कहते हैं। वे तो चन्द्रमा को स्फटिक रत्नों का विमान बताते हैं, और पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण में चार-चार हजार बैल, हाथी, घोड़े और सिंह जुते हुए कहते हैं। ये सब तो वैज्ञानिकों को नहीं मिले। मिले हैं पत्थर, मिली है काली भुरभुरी मिट्टी, जिसका उल्लेख डोशी क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है? शंका-समाधान 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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