Book Title: Kya Shastro Ko Chunoti Di Ja Sakti Hai Shanka Samadhan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 11
________________ पर लम्बे-चौड़े शास्त्रों की रचना करें, यह दुमुहापन वीतराग स्थिति में कैसे घटित हो सकता है ? आगमों में यत्र-तत्र ज्योतिष का, निमित्त शास्त्र आदि का प्रयोग करना, भिक्षु के लिए निषिद्ध है।' क्यों निषिद्ध है ? इसीलिए तो निषिद्ध है न कि वह पाश्रु है' उसका आध्यात्मिक साधना से कोई सम्बन्ध नहीं है । यदि वह धर्मश्रुत होता तो उसका उपदेश एवं प्रयोग क्यों निषिद्ध होता ? मेरे कुछ मित्र भद्रबाहु स्वामी को निमित्त ज्ञानी बताकर ज्योतिषनिमित्त को धर्मश्रुत की कोटि में ले आना चाहते हैं। भद्रबाहु का निमित्त ज्ञान उनके दीक्षा पूर्व गृहस्थ जीवन का था। यह नहीं कि दीक्षित होने के बाद उन्होंने निमित्त शास्त्रों का अध्ययन एवं अभ्यास किया। उसका प्रयोग किया। भला, भद्रबाहु जैसे महान् तत्त्वद्रष्टा आचार्य साधु धर्म के विपरीत आचरण कैसे कर सकते थे? अपने युग के महान् दार्शनिक एवं साधक को निमित्तिया बताना, यह उनका अपमान नहीं तो क्या है ? पूज्य श्री हस्तीमलजी महाराज ने ज्योतिष ग्रन्थों को पापश्रुत मानने से साफ इन्कार नहीं किया है। वे कर भी नहीं सकते हैं। मूल आगम में जब उन्हें पापश्रुत कहा है, तो उसे कैसे झुठला सकते हैं। हाँ, उन्होंने उडाऊ उत्तर अवश्य दिया है, जिसकी उनसे मुझे कभी अपेक्षा नहीं थी। पूज्य श्री कहते हैं कि सम्यग् दृष्टि के लिए पापश्रुत भी सम्यक् श्रुत हो जाता है । और इसके लिए उन्होंने नन्दीसूत्र का एक पाठांश उद्धृत किया है। नन्दीसूत्र में सम्यक् श्रुत और मिथ्या श्रुत की चर्चा है पापश्रुत और धर्मश्रुत की नहीं। वहाँ पर यह नहीं कहा है कि पापश्रुत धर्मश्रुत हो जाता है। यदि पापश्रुत धर्मश्रुत हो जाता है तो फिर आगमों में साधु के लिए उसका निषेध क्यों किया जाता ? मूल प्रश्न दृष्टि का नहीं, वस्तु का है। ज्योतिष आदि के ग्रन्थ मूल में क्या है, यह देखना है । यदि वे मूल में पापश्रुत नहीं है, तो फिर आगमकार उनकी गणना पापश्रुतों में क्यों करते है ? आचारांग आदि सम्यक् श्रुत भी मिथ्या दृष्टि के लिए मिथ्याश्रुत हो जाते है। क्या इस पर से यह अर्थ लगाया जाए कि आचारांग आदि सम्यक् श्रुत नहीं हैं? उन्हें सम्यक् श्रुत कहना गलत है। यदि ऐसा है तो फिर उनकी गणना सम्यक् श्रुत में क्यों की गई है ? Jain Education International क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है? शंका-समाधान 43 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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