Book Title: Kya Shastro Ko Chunoti Di Ja Sakti Hai Shanka Samadhan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf
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की वैज्ञानिक उपलब्धियों के साथ कैसे संगति बिठाई जा सकती है? मैं तो नहीं बिठा सकता। यदि कोई बिठाये तो आभारी रहूँगा हृदय से।
रामायण तथा महाभारत आदि की प्रचलित लोक कथाओं की, जैनाचार्यों ने अर्थ बदलकर जो कतिपय संगतियाँ बिठाई हैं, उनमें कुछ तो बिलकुल अर्थहीन हैं, काल्पनिक है। ऐसी संगतियाँ किस काम की, जो अधूरी हों, अविश्वसनीय हों, फलतः शिक्षित जगत् में उपहासास्पद हों। संगति वस्तुतः संगति होनी चाहिए। यह न हो कि संगतियों के व्यामोह में हम कहीं और अधिक असंगतियों के चक्रव्यूह में जा फँसे। 'विनायकं प्रकुर्वाणो रचयामास वानरम्'-लगे थे गणेश जी बनाने और बना बैठे बन्दर ! ।
प्रश्न-आपके क्रान्तिकारी लेखों से जनता में शास्त्रों के प्रति अनास्था एवं अश्रद्धा फैलने की आशंका है, ऐसी धारणा है मुनिराजों की।
उत्तर-शास्त्र श्रद्धा के सम्बन्ध में किसकी क्या धारणा है, इसका उत्तर तो मेरे पास नहीं है। पर, मैं अपनी बात कह सकता हूँ, मेरी श्रद्धा अटल है, अचल है। किन्तु वह है शास्त्रों के प्रति, ग्रन्थों के प्रति नहीं। वीतराग वाणी ही शास्त्र है। और वीतराग वाणी वह है, जो सुप्त आत्माओं को जागृत करती है, विषयासक्ति को तोड़ती है, आत्मा को अन्तर्मुख बनाती है। इसके अतिरिक्त जिनमें धर्म चर्चा एवं आत्म चर्चा का लेशमात्र भी अंश नहीं है, वे भूगोल-खगोल से सम्बन्धित ग्रन्थ हैं और वे छद्मस्थ आचार्यों द्वारा रचित हैं। आज विज्ञान उन्हें असत्य सिद्ध कर चुका है, कर रहा है। अतः मेरा प्रयत्न भगवान् महावीर तथा उनकी आध्यात्म वाणी के प्रति जन श्रद्धा को सुरक्षित करना है। इन ग्रन्थों के प्रति अश्रद्धा तो उसी दिन से फैल रही है, जिस दिन से विज्ञान ने अपना चमत्कार दिखाना शुरू किया है। आज भगवान् की वाणी के प्रति जनमानस में जो भ्रान्त धारणाएँ फैल रही हैं, मैं उन्हें साफ कर रहा हूँ। शास्त्र और ग्रन्थ की भेदरेखा खींचकर भगवान् और उनके द्वारा प्ररूपित धर्मशास्त्र के प्रति श्रद्धा को सुरक्षित कर रहा हूँ।
प्रश्न-आपको क्रान्ति लानी है तो समाज और धर्म संप्रदाय में अनेक कुरीतियाँ प्रचलित हैं, उन पर आक्रमण कीजिए, जिससे समाज का हित हो। पूज्य श्री का आपके लिए यह संकेत है।
48 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
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