Book Title: Kya Shastro Ko Chunoti Di Ja Sakti Hai Shanka Samadhan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 8
________________ सूत्रों की अपनी टीकाओं में इस तथ्य को स्वीकार किया है। खरतर गच्छीय श्री जिनलाभ सूरि जैसे बहुश्रुतों ने भी आगमों में प्रक्षेप एवं परिवर्तन का उल्लेख किया है। यथाप्रसंग विद्वत्परिषद में कभी चर्चा हुई तो वे सब प्रमाण उपस्थित किए जा सकेंगे। मूल आगमों से भी परिवर्तन के तथ्य को प्रमाणित किया जायेगा। प्रश्न- आपके चन्द्रयात्रा से सम्बन्धित चुनौती के लेख के उत्तर में कुछ सन्त और श्रावक यह कहते हैं कि अमेरिकन वैज्ञानिक चन्द्रमा पर नहीं, किसी पहाड़ पर उतर गए हैं और भ्रान्ति से उसे ही चन्द्रमा समझ रहे है ? कुछ लोग कहते है कि यह दिखने वाला चन्द्रमा जिस पर अमेरिकन उतरे हैं, वह शास्त्र का चन्द्रमा नहीं है। शास्त्र का चन्द्रमा इससे भिन्न कोई और है ? उत्तर- यह सब कुछ सुनता तो मैं भी हूँ। सुना है, श्रद्धेय बहुश्रुत पं. समर्थमलजी महाराज भी ऐसा कहते हैं। वे उस पहाड़ का नाम भी बताते हैं - वैताढ्य पर्वत । और दूसरे सन्त तथा श्रावक भी ऐसी ही कुछ बातें करते हैं। मैं हैरान हूँ, यह सब किस विशिष्ट ज्ञान के आधार पर कहा जा रहा है। वैताढ्य पर्वत तो हमारी पौराणिक गाथा के अनुसार चाँदी का है, वहाँ पत्थर और काली भूरी मिट्टी कहाँ से आ गई, जो चन्द्रयात्री लाए हैं। हमारी पौराणिक मान्यता के अनुसार वैताढ्य पर्वत पर विद्याधर रहते है, पर वहाँ तो कोई विद्याधर नहीं मिला । वनस्पति का एक अंकुर तक तो मिला नहीं, आदमी कहाँ से मिलते। वहाँ तो हवा भी नहीं है। TO चन्द्रयात्रियों ने अपने यान के द्वारा चन्द्रमा के ऊपर नीचे और नीचे से फिर ऊपर - इस प्रकार कई चक्कर लगाए हैं और जब पृष्ठ तल की ओर जाते थे तो यहाँ धरती पर के नियन्त्रण केन्द्र से टेलीविजन का सम्बन्ध कट जाता था। प्रश्न है - यदि वह चन्द्र नहीं, कोई पहाड़ ही है, जैसा कि सन्त कह रहे हैं, तो फिर पहाड़ के ऊपर नीचे चक्कर कैसे लगाये जा सकते हैं? पर्वत का मूल तो पृथ्वी के बहुत गहरे गर्भ में होता है, उसके नीचे से होकर कैसे निकला जा सकता है? और यह बात तो बड़ी ही विचित्र है कि वैज्ञानिक उतरे तो है पहाड़ पर और भ्रान्ति से उसे चन्द्रमा समझ रहे हैं। जो वैज्ञानिक रेडियो एवं टेलीविजन जैसे अद्भुत चमत्कारों के आविष्कर्त्ता हैं, जिन्होंने वैज्ञानिक क्रान्ति के द्वारा विश्व को गत कुछ वर्षों में ही वह प्रगति दी है, जो इतिहास के हजारों वर्षों में कहीं देखी सुनी नहीं गई, उन्हें एवं उनके वंशधरों को इतना भी पता नहीं चला कि यह . 40 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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