Book Title: Kya Shastro Ko Chunoti Di Ja Sakti Hai
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 5
________________ कहते हैं कि सऊदी अरब में सबसे पहले टेलीफोन के तार की लाइन डाली जा रही थी तो वहाँ धर्मगुरु मौलवी लोगों ने बड़ा भारी विरोध किया। धार्मिक जनता को भड़काया कि यह शैतान का काम है, कुरान शरीफ के हुक्म के खिलाफ है। वाद-विवाद उग्र हो चला, इधर-उधर उत्तेजना फैलने लगी तो वहाँ के तत्कालीन बुद्धिमान बादशाह इब्न सऊदी ने फैसला दिया कि-"इसकी परीक्षा होनी चाहिए कि दरअसल ही यह शैतान का काम है या नहीं। इसके लिए दो मौलानाओं को नियत किया गया कि वे क्रमशः टेलीफोन पर कुरान की आयतें पढ़ें। यदि शैतान का काम होगा तो वे पवित्र आयतें तार से उस पार सुनाई नहीं देंगी, यदि सुनाई दी तो वह शैतान का काम नहीं होगा।" आप जान सकते हैं, क्या प्रमाणित हुआ? वही प्रमाणित हुआ, जो प्रमाणित हो सकता था। सत्य के समक्ष भ्रांत धारणाओं के दावे कब तक टिक सकते हैं? धर्मग्रन्थों के प्रति इस प्रकार का जो विवेकहीन बँधा बँधाया दृष्टिकोण है, यह केवल भारत को ही नहीं, बल्कि संपूर्ण धार्मिक विश्व को जकड़े हुए है। यह सब कब से चला आ रहा है, कहा नहीं जा सकता। ग्रंथों से चिपटे रहने की इस जड़ता ने कितने वैज्ञानिकों को मौत के घाट उतरवाया, कितने को देश त्याग करवाया? यह इतिहास के पृष्ठों पर आज भी पढ़ा जा सकता है। ग्रंथ : संकलन मात्र हाँ, तो मैंने कहा-मानव मस्तिष्क में विचारों की यह प्रतिबद्धता ग्रन्थ ने पैदा की है। ग्रन्थ का अर्थ-ग्रन्थि ! गाँठ ! जैन भिक्षु को, श्रमण को निर्ग्रन्थ कहा गया है। अर्थात् उसके भीतर में मोह, आसक्ति आदि की कोई गाँठ नहीं होती, ग्रन्थि नहीं होती। गाँठ तब डाली जाती है जब कुछ जोड़ना होता है, संग्रह करना होता है। कुछ इधर से लिया, कुछ उधर से लिया, गाँठ डाली, जुड़ गया, या जोड़ लिया और गाँठ लगाई-इस प्रकार लेते गए, जोड़ते गए और ग्रन्थ तैयार होते गए। ग्रन्थ शब्द के इसी भाव को हिन्दी की 'गूंथना' क्रिया व्यक्त करती है। माली फूलों को धागे में पिरोता है तब एक फूल लिया, गाँठ डाली, फिर फूल लिया, और फिर गाँठ डाली, इस प्रकार पिरोता जाता है, गांठें डालता जाता है और माला तैयार हो जाती है। बिना गाँठे डाले माला तैयार नहीं होती। इसी प्रकार विचारों की गाँठे जोड़े बिना ग्रन्थ भी कैसे तैयार होगा? इसका अभिप्राय यह है कि ग्रन्थ के लिए मौलिक चिंतन की अपेक्षा नहीं रहती, वह तो एक संकलन क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है? 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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