Book Title: Kya Shastro Ko Chunoti Di Ja Sakti Hai
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 8
________________ ने अहिंसा को 'भगवती' कहा है । " महान् श्रुतधर आचार्य समन्तभद्र ने अहिंसा को परब्रह्म कहा है। 2 इसका मतलब है- अहिंसा एक विराट् आध्यात्मिक चेतना है, समग्र प्राणिजगत् के शिवं एवं कल्याण का प्रतीक है। आपको याद है - इसीलिए मैं 'सत्यं' के साथ 'शिवं' की मर्यादा भी बतला चुका हूँ । अहिंसा हमारे 'शिवं' की साधना है। करुणा, कोमलता, सेवा, सहयोग, मैत्री और अभय- ये सब अहिंसा की ही फलश्रुतियाँ हैं। हाँ तो, इस प्रकार शास्त्र की परिभाषा हुई कि तप, क्षमा एवं अहिंसा के द्वारा जीवन को साधने वाला, अंतरात्मा को परिष्कृत करने वाला जो तत्त्वज्ञान है, वह शास्त्र है। शास्त्र का प्रयोजन शास्त्र की परिभाषा समझ लेने पर इसका प्रयोजन क्या है? यह भी स्पष्ट हो जाता है। भगवान् शास्त्र का प्रवचन किसलिए करते है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए महावीर के प्रथम उत्तराधिकारी आर्य सुधर्मा ने कहा है - " सव्व- जग-जीवरक्खण- दट्ट्याए भगवया पावयणं सुकहियं "13 समस्त प्राणिजगत् की सुरक्षा एवं दया भावना से प्रेरित होकर उसके कल्याण के लिए भगवान ने उपदेश किया। 44 1113 परिभाषा और प्रयोजन कहीं भिन्न-भिन्न होते हैं और कहीं एक भी। यहाँ परिभाषा में प्रयोजन स्वतः निहित है । यों शास्त्र की परिभाषा में ही शास्त्र का प्रयोजन स्पष्ट हो गया है और अलग प्रयोजन बतला कर भी यह स्पष्ट कर दिया गया है कि शास्त्र का शुद्ध प्रयोजन विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना है। शास्त्र के इस प्रयोजन को जैन भी मानते हैं, बौद्ध और वैदिक भी मानते हैं, ईसाई और मुसलमान भी यही बात कहते है कि ईसा और मुहम्मद साहब दुनिया की भलाई के लिए प्रेम और मुहब्बत का पैगाम लेकर आये । मैं समझता हूँ शास्त्र का यह एक ऐसा व्यापक और विराट् उद्देश्य है, जिसे कोई भी तत्त्वचिंतक चुनौती नहीं दे सकता। जैन श्रुत परम्परा के महान् ज्योतिर्धर आचार्य हरिभद्र के समक्ष जब शास्त्र के प्रयोजन का प्रश्न आया तो उन्होंने भी यही बात दुहरा कर उत्तर दिया मलिनस्य यथात्यन्तं जलं वस्त्रस्य शोधनम् । अन्तःकरणरत्नस्य तथा शास्त्रं विदुर्बुधाः | 14 16 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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