Book Title: Kya Shastro Ko Chunoti Di Ja Sakti Hai
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 15
________________ यथार्थ सत्य के आधार पर उसका प्रतिरोध करें, उस चुनौती का स्पष्ट उत्तर दें कि सचाई क्या है? . विज्ञान ने हमारे शास्त्रों की प्रामाणिकता को चुनौती दी है। हमारे कुछ बुजुर्ग कहे जाने वाले विद्वान मुनिराज या श्रावक जिस ढंग से उस चुनौती का उत्तर दे रहे हैं कि असली चन्द्रमा बहुत दूर है। कुछ यह भी कहते हैं कि यह सब झूठ है, वैज्ञानिकों का, नास्तिकों का षड्यन्त्र है, केवल धर्म की निन्दा करने के लिए। -मैं समझता हूँ, इस प्रकार के उत्तर निरे मजाक के अतिरिक्त और कुछ नहीं। जिस हकीकत को प्रतिस्पर्धी राष्ट्रों के वैज्ञानिक भी स्वीकार कर रहे हैं, बाल की खाल उतारने वाले तार्किक भी आदर पूर्वक उसे मान्य कर रहे हैं, धरती पर रहे लाखों लोगों ने भी टेलिविजन के माध्यम से चन्द्र तक आने-जाने का दृश्य देखा है, उस प्रत्यक्ष सत्य को हम यों झूठला नहीं सकते। और न नकली-असली चन्द्रमा बताने से ही कोई बात का उत्तर हो सकता है। प्रतिरोध करने का यह तरीका गलत है, उपहासास्पद है। शास्त्रों की गरिमा को अब इस हिलती हुई दीवार के सहारे अधिक दिन टिकाया नहीं जा सकता। मैं पूछता हूँ कि आपको शास्त्रों की परख करने का अधिकार क्यों नहीं है? कभी एक परम्परा थी, जो चौरासी आगम मानती थी, ग्रन्थों में उसके प्रमाण विद्यमान हैं। फिर एक परम्परा खड़ी हई, जो चौरासी में से छंटनी करती-करती पैंतालीस तक आ गई। भगवान महावीर के लगभग दो हजार वर्ष बाद फिर एक परम्परा ने जन्म लिया, जिसने पैंतालीस को भी अमान्य ठहराया और बत्तीस आगम माने। मैं पूछता हूँ-धर्मवीर लोंकाशाह ने, पैंतालीस आगमों में से बत्तीस छाँट लिए, क्या वे कोई बहुत बड़े श्रुतधर आचार्य थे? क्या कोई विशिष्ट प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त हुआ था उन्हें? क्या उन्हें कोई ऐसी देववाणी हुई थी कि अमुक शास्त्र शास्त्र है, और अमुक नहीं फिर उन्होंने जो यह निर्णय किया और जिसे आज आप मान रहे हैं, वह किस आधार पर था? सिर्फ अपनी प्रज्ञा एवं दृष्टि से ही तो यह छंटनी उन्होंने की थी ! तो आज क्या वह प्रज्ञा और वह दृष्टि लुप्त हो गई है? आज किसी विद्वान में वह निर्णायक शक्ति नहीं रही? या साहस नहीं है? अथवा वे अपनी श्रद्धा-प्रतिष्ठा के भय से भगवद्वाणी का यह उपहास देखते हुए भी मौन हैं? मैं साहस के साथ कह देना चाहता हूँ कि आज वह निर्णायक घड़ी आ पहुँची है कि 'हाँ' या 'ना' में स्पष्ट निर्णय करना होगा। क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है? 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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