Book Title: Kya Shastro Ko Chunoti Di Ja Sakti Hai
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 21
________________ भारत की कोई भी परम्परा इस बौद्धिक विकृति से मुक्त नहीं रह सकी। श्रद्धाधिं क्य के कारण हो सकता है प्रारम्भ में यह भूल कोई भूल प्रतीत न हुई हो, पर आज इस भूल के भयंकर परिणाम हमारे समक्ष आ रहे हैं। भारत की धार्मिक प्रजा आज उन तथाकथित धर्मशास्त्रों की जकड़ में इस प्रकार प्रतिबद्ध हो गई है कि न कुछ पकड़ते बनता है और न कुछ छोड़ते बनता है। मेरा यह कथन शास्त्र की अवहेलना या अप्रभाजना नहीं, किन्तु एक सत्य हकीकत है, जिसे जानकर, समझकर हम शास्त्र के नाम पर अन्ध-शास्त्र प्रतिबद्धता से मुक्त हो जाएँ। जैसा मैंने कहा-शास्त्र तो सत्य का उद्घाटक होता है, असत्य धारणाओं का संकलन शास्त्र नहीं होता। मैं तत्त्वद्रष्टा ऋषियों की वाणी को पवित्र मानता हूँ, महाश्रमण महावीर की वाणी को आत्म-स्पर्शी मानता हूँ इसलिए कि वह सत्य है, ध्रुव है। किन्तु उनके नाम पर रचे गये ग्रन्थों को, जिनमें कि अध्यात्म चेतना का कुछ भी स्पर्श नहीं है, सत्यं, शिवं की साक्षात् अनुभूति नहीं है, मैं शास्त्र नहीं मानता। ___कुछ मित्र मुझे अर्धनास्तिक कहते हैं, मिथ्यात्वी भी कहते हैं, मैं कहता हूँ अर्धनास्तिक का क्या मतलब? पूरा ही नास्तिक क्यों न कह देते? अगर सत्य का उद्घाटन करना और उसे मुक्त मन से स्वीकार कर लेना, नास्तिकता है, तो वह नास्तिकता अभिशाप नहीं, वरदान है। मेरा मन महावीर के प्रति अटूट श्रद्धा लिए हुए है, सत्य द्रष्टा ऋषियों के प्रति एक पवित्र भावना लिए हुए है, और यह श्रद्धा ज्यों-ज्यों चिंतन की गहराई का स्पर्श करती है, त्यों-त्यों अधिक प्रबल, अधिक दृढ़ होती जाती है। मैं आज भी उस.परम ज्योति को अपने अन्तरंग में देख रहा हूँ और उस पर मेरा मन सर्वतोभावेन समर्पित हो रहा है। भगवान् मेरे लिए ज्योति स्तम्भ हैं, उनकी वाणी का प्रकाश मेरे जीवन के कण-कण में समाता जा रहा है। किन्तु भगवान् की वाणी क्या है, और क्या नहीं, यह मैं अपने अन्तर्विवेक के प्रकाश में स्पष्ट देखकर चल रहा हूँ। भगवान् की वाणी वह है, जो अन्तर में सत्य श्रद्धा की ज्योति जगाती है, अन्तर में सुप्त ईश्वरत्व को प्रबुद्ध करती है, हमारी अन्तश्चेतना को व्यापक एवं विराट् बनाती है। भगवद् वाणी की स्फुरणा आत्मा की गति-प्रगति से सम्बन्धित है, सूर्य, चन्द्र आदि की गति से नहीं। सोने-चाँदी के पहाड़ों की ऊँचाई-नीचाई से नहीं, नदी नालों एवं समुद्रों की गहराई-लम्बाई से नहीं। ऋषियों क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है? 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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