Book Title: Kumtahivish Janguli Mantra
Author(s):
Publisher: Pravinchandra Amrutlal Shah
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तत्र पञ्च जल्पा यथा संवत् १६४९ वर्षे पौषपौर्णिमायां पुण्यार्के च अहम्मदाबादनगरे उपाध्यायश्रीधर्मसागरगणिभिलिख्यते
मिच्छा मि दुक्कड देवानी विगति लिखीह। मरी मरीचि संबंधितं दुभासिएण इक्केण ए वचन दुर्भाषित कहीर पणि उत्सूत्र न कहीद पहउँ अम्हो कहता पणि श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र चूणि प्रमुख घणा ग्रंथनई अनुसारि मरीचिनुं कविला
इत्थंपि इहयपि ए वचन उत्सूत्र जणाइ छइ । तथा अम्ह्ये प्रवचन परीक्षामांहि ए मरीचिनुं वचन उत्सूत्र होइ पहा आण्णु & छह पणि ते सांभर्यु नहीं ते मार्टि प विपरीत कहवाणु होइ तेहर्नु मिच्छा मि दुक्कडं ।१।
तथा भगवती सूत्रनई मेलि श्रीअभयदेवसूरिसंतानीय श्रीगुणचन्द्रसूरिकृत श्रीवीरचरित्रादिक ग्रन्थई अनुसारि जमालिनई १५ भव जणाइ छइ ते माटि ए थकी विपरीत कहिउँ होइ तेहर्नु मिच्छा मि दुक्कडं ।२।
__ तथा उत्सूत्र भाषीनई नियमा अनंतां भव होइ पहर्बु अम्हो कहता पणि श्रीभगवतीसूत्रमाहि जमालिनई १५ भव कहिया पणि अनुसारि बीजाइ शास्त्रनइं अनुसार उत्सूत्र भाषीनई संख्याता असंख्याता अनंता भव होइ इम जणाइ छ। ते माटि पथकी विपरीत प्ररूपणाई कहवाणु होइ तेह मिच्छा मि दुक्कडं। ३।
__तथा केवलिना शरीर थकी त्रस थावर जीवनी विराधना न होइ अम्झे एहवं कहता पणि श्रीआचारांगवृत्तिश्रीभगवतीसूत्रनई अनुसारि जणाई छइ जे केवलीना शरीर थकी अस थावर जीवनी विराधना होइ तो ना नहीं ते मारिए विपरीत सद्दहिउं होइ-कहवाणु होइ तेहन मिच्छा मि दुक्कडं । ४।
तथा १२ बोल आशरी जिम श्रीपूज्यइ आश दीधुं छह ते थकी विपरीत कहवाणु होइ तेहर्नु मिच्छा मि दुक्कडं हवइ ५।
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