Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha
Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad

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Page 9
________________ पुरिसिस्थितदुभयं पइ अहिलासो जव्वसा हवइ सो उ। थीनरनपुंवेउदओ फुफुमतणनगरदाहसमो॥ २२ ॥ सुरनरतिरिनिरयाऊ हडिसरिसं नामकम्म चित्तिसमं । बायालतिनवइविहं तिउत्तरसयं च सत्तही ॥ २३ ॥ गइजाइतणुउवंगा बंघणसंघायणाणि संघयणा । संठाणवण्णगंधरसफासअणुपुब्विविहगगई ॥ २४ ॥ पिंडपयडित्ति चउदस परघानस्सासआयवुजोयं । अगुरुलहुतित्थनिमिणोवधायमिअ अह पत्तेआ ॥२५॥ तसबायरपजत्तं पत्तेयथिरं सुभं च सुभगं च । सुसराइज जसं तसदसगं थावरदसं तु इमं ॥ २६ ॥ थावरसुहुमअपज साहारणअथिरअसुभदुभगाणि । दुस्सरणाइजाजसमिअनामे सेअरा वीसं ।। २७॥ तसचउथिरछक अथिरछक्कसहुमतिगथावरचनकं । सुभगतिगाइविभासा तयाइसंखाहि पयडीहिं ॥२८॥ गइयाईण उ कमसो चपणपणतिषणपंचछछकं । पणदुगपणट्टचउदुग इय उत्तरभेअपणसही ॥ २९ ॥ अडवीसजुश्रा तिनवइ संते वा पनरबंधणे तिसयं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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