Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha
Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
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समचउरंस निग्गोह साइखुजाइ वामण हुंडं । संठाणा वण्णा किण्ह नीललोहियहलिइसिया ॥३९ सुरहीदुरही रसा पण तित्तकडुकसायअंबिला महुरा । फासा गुरुलहुमिउखरसीउण्हसिणिद्धरुक्खट्ठा ॥४०॥ नीलकसिणं दुगंधं तित्त कडुरं गुरुं खरं रुक्खं । सीशं च असुहनवगं, इकारसगं सुभं सेसं ॥४१॥ चउहगइव्वणुपुठवी गइपुग्विदुगं तिगं नियाउजु । पुव्वीउदओ वक्के सुहअसुहवसुट्टविहगगई ॥४२॥ परघाउ दया पाणी परेसि बलिणं पि होइ दुद्धरिसो। उससणलद्धि जुत्तो हवेइ जसासनामवसा ॥ ४३ ॥ रविबिंबे उ जियंग तावजुअ यायवाउ न उ जलणे । जमुसिणफासस्स तहिं लोहियवण्णस्स उदउत्ति ४४ अणुसिणपयासरूवं जियंगमुज्जोयए इहुज्जोया । जइ देवुत्तरविक्किअजोइसखज्जोअमाइव्व ॥४५॥ अंग न गुरु न लहुरं जायइ जोवस्त अगुरुलहुउदया तित्थेण तिहुअणस्स वि पुज्जो से उदओ केवलिणो४६ उंगोवंगनिअमणं, निम्माएं कुणइ सुत्तहारसमं ।
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