Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha
Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
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तेवहीपमत्ते सोग अरइ अथिरदुग अजसअस्सायं । वुच्छिज्ज छच्च सत्त व, नेइसुराउं जया निकं ॥७॥ गुणसहि अप्पमत्ते, सुराज बंध तु जइ इहागच्छे । अन्नह अहावन्ना, जं आहारगदुगं बंधे ॥ ८ ॥ अडवन्न अपुव्वाइमि, निददुगंतो छपन्न पणभागे। सुरदुगपणिदिसुखगइतसनवउरलविणुतणुवंगा ॥९॥ समचकरनिमिणजिणवन्नअगुरूलहुचउ छलंसि तीसंतो चरमे छवीसबंधो, हासरइकुच्छभयभेओ ॥ १० ॥ अनिअट्टिभागपणगे, इगेगहीणो दुवीसविहबंधो। पुमसंजलणचउण्हं, कमेण डेओ सतर सुहुमे ॥११॥ चउदंसणुच्चजसनाणविग्घदसगं ति सोलसुच्छेयो । तिसु सायबंध छेयो, सजोगिबंधंतुणंतो अ ॥ १२ ॥ उदओ विवागवेअणमुदीरणमपत्ति इह दुवीससयं । सतरसय मिच्ने मीससम्मआहारजिणणुदया ॥ १३ ॥ सुहुमतिगायवमिच्छं, मिच्छतं सासणे इगारसयं । निरयाणुपुब्विणुदयो, अणथावरइगविगलअंतो ॥१४॥ मीसे सयमणुपुठवीणुदया मीसोदएण मीसंतो।
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