Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad View full book textPage 7
________________ अत्युग्गहइहावा यधारणाकरणमाणसेहिं छहा । इअ अहवीसभेचं-चउदसहा वीसहा व सुअं ॥ ५॥ अक्खर सन्नी सम्म साई खलु सपजवसियं च । गमिषं अंगपविहं सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥६॥ पजयअक्खरपयसंघाया पडिवत्ति तह य अणुओगो। पाहुडपाहुडपाहुड वत्थपुवो य ससमासा ॥ ७ ॥ अणुगामिवढमोणयपडिवाईयरविहा छहा ओही । रिउमइविउलमई मणनाणं केवलमिगविहाणं ॥८॥ एसिं जं आवरणं पडुव्व चक्खुस्स तं तयावरणं । दंसण चउ पण निदा वित्तिसमं दसणावरणं ॥ ९ ॥ चक्खुद्दिहिअचक्खू सेसिंदियओहिकेवलेहिं च । दसणमिह सामन्नं तस्सावरण तयं चउहा ।। १० ॥ सुहपडिबोहा निदा निहानिदा य दुक्खपडिबोहा। पयला ठिओवविट्ठस्त पयलपयला उ चकमयो ॥११॥ दिणचिंतियत्थकरणी थीणद्धी अद्धचक्किअद्धबला। महुलित्तखग्गधारा लिहणं व दुहा उ वेअणियं ॥ १२ ॥ ओसन्नं सुरमणुए सायमसायं तु तिरिअनिरएसु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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