Book Title: Karma Ka Vigyan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 9
________________ कर्म का सिद्धांत कर्म का सिद्धांत में खाना खाता था, इसलिए ऐसा हुआ।' वो कर्मफल का परिणाम है। ये जन्म में जो काम किया, उसका परिणाम इधर ही भुगतना पडता है। प्रश्नकर्ता : इस जन्म में हम नया कर्म कैसे बांधेगे? जबकी हम पिछले जन्म का कर्म भुगत रहे है, जो पिछे का हिसाब भुगत रहे है, वह कैसे नया आगे बनायेगा? दादाश्री : ये 'सरदारजी' है, वो पिछे का कर्म भुगत रहा है, उस वक्त अन्दर नया कर्म बांध रहा है। आप खाना खाते हो, तो क्या बोलते है कि 'बहुत अच्छा हुआ है' और फिर अंदर पथ्थर आया तो फिर आपको क्या होगा? प्रश्नकर्ता : ये दिमाग फिर जाता है। दादाश्री : जो मिठाई खाता है, वो पिछले जन्म का है और अभी वो अच्छी लगती है, खुश होकर खाता है, घरवालों पर खश हो जाता है, इससे उसको राग होता है। और फिर खाते समय पथ्थर निकला तो नाखुश हो जाता है। खुश और नाखुश होता है, उससे नये जन्म का कर्म बंध गया। नहीं तो खाना खाने में कोई हरकत नहीं। हलवा खाओ, कुछ भी खाओ मगर खुश, नाखुश नहीं होना चाहिए। जो हो वो खा लिया। बांधते है? दादाश्री : हमको कभी कर्म बंधता ही नहीं है और हमने जिसको ज्ञान दिया है, वो भी कर्म बांधता नहीं है। मगर जहाँ तक ज्ञान नहीं मिला, वहाँ तक हमने बताया वैसा करना चाहिए, इससे अच्छा फल मिलता है। जिधर पाप बंधता था, उधर ही पुण्य बांधता है और वो धर्म बोला जाता है। प्रश्नकर्ता : हम दान-पुण्य करते है, तो उसका फल अगले जन्म में मिले, इसलिए करते है? ये सत्य है क्या? दादाश्री : हाँ, सत्य है, अच्छा करो तो अच्छा फल मिलेगा, बुरा करो तो बुरा फल मिलेगा। इसमें दूसरा किसी का obstruction नहीं है। दूसरा कोई भगवान या दूसरा कोई जीव तुम्हारे में obstruct नहीं कर सकता है। आपका ही obstruction है। आपका ही कर्म का परिणाम है। आपने जो किया है, ऐसा ही आपको मिल गया है। अच्छाबुरा इसका पूरा अर्थ ऐसा होता है, देखोने, आपने पाँच हजार रुपये भगवान के मंदिर के लिए दिये और ये भाई ने भी पाँच हजार रुपये मंदिर के लिए दिये। तो इसका फल अलग अलग ही मिलता है। आपके मन में बहुत इच्छा थी कि, 'मैं भगवान के मंदिर में कुछ दूँ, अपने पास पैसा है, तो सच्चे रस्ते में चले जावे,' ऐसा करने का विचार था। और ये तुम्हारे मित्र ने पैसा दिया, बाद में वो क्या बोलने लगा कि, 'ये तो मेयर ने जबरजस्ती किया, इसके लिए देना पड़ा, नहीं तो मैं देनेवाला ऐसा आदमी ही नहीं।' तो इसका फल अच्छा नहीं मिलता है। जैसा भाव बताता है, ऐसा ही फल मिलता है। और आपको पूरेपूरा फल मिलेगा। प्रश्नकर्ता : नाम की लालच नहीं करनी चाहिए। दादाश्री : नाम वो तो फल है। आपने पाँच हजार रुपये अपनी कीर्ति के लिए दिये तो जितनी कीर्ति मिल गई, इतना फल कम हो गया। कीर्ति नहीं मिले तो पूरा फल मिल जायेगा। वहाँ तो cheque with interest, bonus पूरा मिल जायेगा। नहीं तो, आधा फल तो कीर्ति में प्रश्नकर्ता : वो तो ठीक है, मगर वो जो पिछला बुरा कर्म हम भुगत रहा है, फिर नया जन्म अच्छा कैसे होगा? दादाश्री : देखो, अभी कोई आदमी ने तुम्हारा अपमान किया, तो वो पिछले जन्म का फल आया। उस अपमान को सहन कर ले, बिलकुल शांत रहे और उस वक्त ज्ञान हाजिर हो जावे कि 'गाली देता है वो तो निमित्त है और हमारा जो कर्म है, उसका ही फल देता है, उसमें उसका क्या गुनाह है।' तो फिर आगे का अच्छा कर्म बांधता है और दूसरा आदमी है, उसका अपमान हो गया तो वो दूसरे को कुछ न कुछ अपमान कर देता है, इससे बुरा कर्म बांधता है। प्रश्नकर्ता : आप तो लोगों को ज्ञान देते है, तो आप अच्छा कर्म

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