Book Title: Karma Ka Vigyan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 12
________________ कर्म का सिद्धांत कर्म का सिद्धांत 'मैं ने अच्छा किया।' पिछले जन्म में अच्छा करने का विचार किया था, उसके फल स्वरूप अभी अच्छा करता है। जन्म से पूरी जिंदगी तक वो फल ही मिलता है। आपको 53years हो गया, अभी तक जो service मिला वो भी फल था। body को कितना भी सुख है, कितना भी दुःख है, वो भी फल है। लडकी मिली, औरत मिली, सब कुछ मिला, Father-Mother मिले, मकान मिला, वो सब फल ही मिलता है। प्रश्नकर्ता : कर्म का ही फल अगर मिलता है, तो उनमें कुछ भी सुसंगत तो होना चाहिए न? दादाश्री: हाँ, सुसंगत ही। This world is ever regular! प्रश्नकर्ता : कर्म यहाँ पर ही भुगतने पडते है न? दादाश्री : हाँ, जो स्थूल कर्म है, आँखो से देख सके ऐसे कर्म है, वो सब यहाँ ही भुगतने पडते है और आँखो से नहीं दिखे वैसे सूक्ष्म कर्म वो अगले जन्म के लिए है। प्रश्नकर्ता : कर्म का उदय आता है तो उसमें तन्मयाकार होने से भुगतना पडता है कि नहीं तन्मयाकार होने से? दादाश्री : उदय में जो तन्मयाकार नहीं होता, वो ज्ञानी है। अज्ञानी उदय में तन्मयाकार हुए बगैर नहीं रह सकता, क्योंकि अज्ञानी का इतना बल नहीं है कि उदय में तन्मयाकार न हो। हाँ, अज्ञानी कौन सी जगह पे तन्मयाकार नहीं होता है? जो चीज खुद को पसंद नहीं, वहाँ तन्मयाकार नहीं होता और ज्यादा पसंद है, वहाँ तन्मयाकार हो जाता है। जो पसंद है, उसमें तन्मयाकार नहीं हुआ तो वो पुरुषार्थ है। मगर ये अज्ञानी को नहीं हो सकता। ये सब लोग जो बोलते है कि, कर्म बंधते है। तो कर्म बंधते है, वो क्या है कि कर्म charge होते है। charge में कर्ता होता है और discharge में भोक्ता होता है। हम ज्ञान देगें फिर कर्ता नहीं रहेगा, खाली भोक्ता ही रहेगा। कर्ता नहीं रहा तो सब charge बंध हो जायेगा। खाली discharge ही रहेगा। ये science है। हमारे पास ये पूरे world का science है। आप कौन है? मैं कौन हूँ? ये किस तरह चलता है? कौन चलाता है? वो सब science है। प्रश्नकर्ता : आदमी मर जाता है, तब आत्मा और देह अलग हो जाता है, तो फिर आत्मा दूसरे शरीर में जाती है या परमेश्वर में विलीन हो जाती है? अगर दूसरे शरीर में जाती है तो क्या वह कर्म की वजह से जाती है? दादाश्री : हाँ, दूसरा कोई नहीं, कर्म ही ले जानेवाला है। वो कर्म से पुद्गल भाव होता है। पुद्गल भाव याने प्राकृत भाव, वो हलका होवे तो देवगति में, ऊर्ध्वगति में ले जाता है, वो भारी होवे तो अधोगति में ले जाता है, Normal होवे तो इधर ही रहेता है, सज्जन में, मनुष्य में रहेता है। प्राकृत भाव पूरा हो गया तो मोक्ष में चला जाता है। प्रश्नकर्ता : कोई आदमी मर गया तो उसकी कोई ख्वाहिश बाकी रह गई हो, तो वह ख्वाहिश पूरी करने के लिए वह क्या कोशिश करता है? दादाश्री : अपना ये 'ज्ञान' मिल गया और उसको इच्छा बाकी रहेती है तो उसके लिए आगे का जन्म as for as possible तो देवगति का ही रहता है। नहीं तो कभी कोई आदमी बहुत सज्जन आदमी का, योगभ्रष्ट आदमी का अवतार आता है, मगर उसकी इच्छा पूरी होती है। इच्छा का सब circumstantial Evidence पूरा हो जाता है। मोक्ष में जाने के पहले जैसी इच्छा है, वैसे एक-दो अवतार में सब चीज मिल जाती है और सब इच्छा पूरी होने के बाद मोक्ष में चले जाता है। जब सब इच्छा पूरी हो गई के फिर मनुष्य में आकर मोक्ष में चला जाता है। मगर मनुष्य जन्म इधर ये क्षेत्र में नहीं आयेगा, दूसरे क्षेत्र में आयेगा। इस क्षेत्र में कोई तीर्थंकर भगवान नहीं है। तीर्थंकर भगवान, पूर्ण केवलज्ञानी होने चाहिए, तो वहाँ जन्म हो जायेगा(होगा) और उनके दर्शन से ही मोक्ष मिल जाता है, मात्र दर्शन से ही! सुनने का बाकी नहीं रहा कुछ, खुद

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