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कर्म का सिद्धांत
करेगा तो बुरा फल मिलेगा। तुम ये भाई को गाली दोगें तो वो भी तुमको गाली देगा और तुम गाली नहीं दोगें तो तुमको कोई गाली नहीं देगा । प्रश्नकर्ता: हम किसी को गाली देता नहीं, फिर भी मुझे गाली देता है, ऐसा क्यों?
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दादाश्री : ये जन्म के चोपडे का हिसाब नहीं दिखता है, तो पिछले जन्म के चोपडे का हिसाब रहता है। मगर आपको ही गाली क्युं दिया ?
प्रश्नकर्ता: वह ऐसी परिस्थिति है ऐसे समझना है?
दादाश्री : हाँ, परिस्थिति! हम उसको scientific circumstantial evidence बोलते है। परिस्थिति ही ऐसी आ गई तो उसमें कोई खराबी मानने की जरूर नहीं है। सच्ची बात क्या है? कोई आदमी किसी को गाली देता ही नहीं। परिस्थिति ही गाली देती है। Only scientific circumstantial evidence ही गाली देता है। जेब कोई काटता ही नहीं, परिस्थिति ही गजवा काटती है। मगर आदमी को परिस्थिति का खयाल नहीं रहेगा। मैं दूसरी बात बता दूँ?
कोई आदमी ने तुम्हारी जेब काट ली और दो सौ रुपिया ले गया। तो तुमको, दुनियावाले को ऐसा लगेगा है कि ये बूरे आदमी ने मेरी जेब काट ली, वह गुनहगार ही है। मगर वो सच्ची बात नहीं है। सच्ची बात ये है कि तुम्हारा दो सौ रुपिया जाने के लिए तैयार हुआ, क्योंकि वह पैसा खोटा था। तो इसके लिए वो आदमी निमित्त मात्र हो गया। वो निमित्त है, तो आपको उसे आशीर्वाद देने का कि तुमने हमें ये कर्म से छुडाया। कोई गाली दे तो भी वो निमित्त है। तुमको कर्म से छुडाता है। आपको उसे आशीर्वाद देना चाहिए। कोई पचास गाली दे मगर वो इक्यावन नहीं हो जायेगी। पचास हो गई फिर आप बोलेगें कि भाई, हमें ओर गाली दो, तो वो नहीं देगा। ये मेरी बात समझ में आयी? ये one sentence में सब puzzle solve हो जाता है। कोई गाली दे, पथ्थर मारे तो भी वो निमित्त है और जिम्मेदारी तुम्हारी है। क्युं कि तुमने पहले किया है, इसका आज फल मिला।
कर्म का सिद्धांत
जो पिछे भावना की थी, आज ये उसका फल है। तो फल में आप क्या कर सकते हो? Result में आप कुछ कर सकते हो? आपने शादी की तो वो समय tender निकाला था कि औरत चाहिए ? नहीं, वो तो पहले भावना कर दी थी। सब तैयार हो रहा है, फिर result आयेगा । तो औरत मिले, वो result है। बाद में तुम बोलोगें कि हमको ये औरत पसंद नहीं। अरे भई, ये तो तुम्हारा ही result है। फिर तुमको पसंद नहीं, ऐसा कैसा बोलते हो? परीक्षा के result में नापास हो गये, फिर इसमें पसंद-नापसंद करने की क्या जरूरत है?
प्रश्नकर्ता : तो फिर पुरुषार्थ जो है, वो क्या है?
दादाश्री : सच्चा पुरुषार्थ तो पुरुष हुआ उसके बाद होता है। प्रकृति relative है, पुरुष real है। पुरुष और प्रकृति का demarkation हो गया कि ये प्रकृति है और ये पुरुष है, फिर सच्चा पुरुषार्थ होता है। वहाँ तक पुरुषार्थ नहीं है । वहाँ तक भ्रांत पुरुषार्थ है। वो कैसे होता है कि आपने हजार रुपये दिये और आप egoism करेगें कि 'हमने हजार रुपये दान में दे दिया', फिर ये ही पुरुषार्थ है। 'मैं ने दिया' बोलता है, उसको भ्रांत पुरुषार्थ बोला जाता है। आपने किसी को गाली दी और आप पश्चात्ताप करो कि 'ऐसा नहीं होना चाहिए', तो वो भी भ्रांत पुरुषार्थ हो गया। आपको ठीक लगता है, ऐसा शुभ है तो उसमें बोलो कि, 'मैं ने किया तो भ्रांत पुरुषार्थ होता है और जब अशुभ होता है, उसमें मौन रहो तो, पश्चात्ताप करो तो भी पुरुषार्थ होता है। 'में ने किया' ऐसा सहज रूप से बोले तो egoism नहीं करता है, वो तो आगे के लिए पुरुषार्थ करता है। मगर egoism normality में रखना चाहिए। Above normal egoism is poison and below normal egoism is poison, वो पुरुषार्थ नहीं हो सकता है।
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हमको बडे बडे साहित्यकार लोग पूछते है कि, 'दादा भगवान के असीम जय जयकार हो' बोलते है, तो आपको कुछ नहीं होता है? तो मैं ने क्या बोला कि मेरे को क्या जरूरत है? हमारे अंदर इतना सुख है तो इसकी क्या जरूरत है? ये तो तुम्हारे फायदे के लिए बोलने का है।