Book Title: Karma Ka Vigyan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 14
________________ कर्म का सिद्धांत कर्म का सिद्धांत साधु महाराज के मन में ऐसा होता है कि मेरा क्या होगा। मनुष्य लोग ही कर्ता है और वो ही कर्म बांधता है। दूसरा कोई जीव कर्ता नहीं है। वो सब तो कर्म में से छूटता है। और मनुष्य लोग तो कर्म बांधता भी है और कर्म से छूटता भी है। Charge और discharge दोनों होता है। Discharge में कोई worries करने की जरूर नहीं है। Charge में worries करने की जरूरत है। खाने-पीने का मिले, सब कुछ मिले और भगवान की भक्ति करने में कोई तकलीफ न हो। ये निष्काम कर्म में फायदा है मगर यह सब कर्म ही है और कर्म है, वहाँ तक बंधन है। कृष्ण भगवानने बोला है कि स्थितप्रज्ञ हो गया फिर छूटता है और दूसरा भी बोला है, वीतराग और निर्भय हो गया, फिर काम हो गया। निष्काम कर्म करो मगर कर्म का कर्ता तो आप ही है न? कर्ता है, वहाँ तक मुक्ति नहीं होती। मुक्ति तो 'मैं कर्ता हूँ' वो बात ही छूट जानी चाहिए और कौन कर्ता है, वो मालूम होना चाहिए। हम सब बता देता है कि 'करनेवाला कौन है, तुम कौन है, ये सब कौन है।' सब लोग मानते है कि 'हम निष्काम कर्म करता है और हमको भगवान मिल जाएगा।' अरे, तुम कर्ता हो, वहाँ तक कैसे भगवान मिलेगा? अकर्ता हो जाओगे तब भगवान मिल जायेगें। ये Foreign वाला सब सहज है, वो निराश्रित नहीं है। वो आश्रित है। वो लोग 'हम कर्ता है' ऐसा नहीं बोलता और हिन्दुस्तान के लोग तो 'कर्ता' हो गये है। निष्काम कर्म से कर्मबंध? गीता में श्रीकृष्ण भगवान ने सब रस्ता बताया है। धर्म का ही सब लिखा है। मगर मोक्ष में जाने का एक वाक्य ही लिखा है, ज्यादा लिखा नहीं। धर्म क्या करने का? निष्काम कर्म करने का, इसको धर्म बोला जाता है। मगर कर्ता है न? निष्काम है, मगर कर्ता तो है न? प्रश्नकर्ता : कृष्ण भगवान ने भी युद्ध किया था, कृष्ण भी तो अर्जुन के सारथी बने थे। प्रश्नकर्ता : तो कर्म ही प्रधान है न? दादाश्री : मगर पहले सकाम कर्म करता है, अभी निष्काम कर्म करता है और इसके फायदे में धर्म मिलेगा, मुक्ति नहीं मिलेगी। सकाम कर्म करो या निष्काम कर्म करो, मगर मुक्ति नहीं होगी। कर्म करने से मुक्ति नहीं होती है। मुक्ति तो जहाँ भगवान प्रकट हो गये है, वहाँ कृपा हो जाये तो मुक्ति होती है। प्रश्नकर्ता : मगर बगैर काम किए भगवान की कृपा हो जाती है? दादाश्री : काम करे तो भी भगवान की कृपा नहीं होती और काम नहीं करे तो भी भगवान की कृपा नहीं होती। कृपा तो जो भगवान को मिला, उसके पर भगवान की कृपा ऊतर ही जाती है। काम करते है, वो अपने फायदे के लिए करने का। निष्काम कर्म किस लिए करने का कि इससे अपने को कोई तकलीफ न हो, आगे आगे धर्म करने को मिले. दादाश्री : हाँ, अर्जन के सारथी बने थे. मगर क्यों सारथी बने थे? भगवान, अर्जुन को बताते थे कि, 'देख भई, तम तो पाँच घोडे की लगाम पकडते हो, मगर रथ चलाना तुम नहीं जानते और लगाम को खींच खींच करते हो। कब खींचता है? जब चढ़ान होती है, तब खींचता है और उतार पे ढीला छोड़ देता है। लगाम खींच खींच करने से घोडे के मुँह से खून निकलता है। इसलिए तुम रथ में बैठ जाओ, में तुम्हारा रथ चलाऊँगा।' और तुम्हारा कौन चलाता है? आप खुद चलाते है? प्रश्नकर्ता : हम क्या चलाएगें? चलानेवाला एक ही है। दादाश्री : कौन? प्रश्नकर्ता : जिसको परमपिता परमेश्वर हम मानते है। दादाश्री : श्रीखंड-पूरी तुम खाते है और चलाता है वो ?!!!

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