Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman,
Publisher: Shubhabhilasha Trust
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किसी निग्रंथ को ज्ञानादि के कारण अन्य गण में उपसंपदा लेनी हो— दूसरे समुदाय के साथ विचरना हो तो आचार्य, आदि कि अनुमति लेना अनिवार्य है। इसी प्रकार आचार्य, उपाध्याय, गणावच्छेदक आदि को भी अपने समुदाय की आवश्यक व्यवस्था करके ही अन्य गण में सम्मिलित होना चाहिए।
संध्या के समय अथवा रात में कोई साधु अथवा साध्वी मर जाए तो दूसरे साधुओं अथवा साध्वियों को उस मृत शरीर को रात भर ठीक तरह रखना चाहिए। प्रातः काल गृहस्थ के यहाँ से बाँस आदि लाकर मृतक को बाँध कर जंगल में निर्दोष भूमि देख कर प्रतिष्ठापित कर देना चाहिए त्याग देना चाहिए एवं बाँस आदि वापिस गृहस्थको सौंप देना चाहिए।' ___ भिक्षु ने गृहस्थ के साथ अधिकरण झगडा किया हो तो उसे शांत किये बिना भिक्षु को भिक्षाचर्या आदि करना अकल्प है।"
परिहारकल्प में स्थित भिक्षु को आचार्य, उपाध्याय इन्द्रमह आदि उत्सव के दिन विपुल भक्त पानादि दिला सकते हैं। तदुपरांत वैसा नहीं कर सकते। जहाँ तक उसकी वैयावृत्य सेवा का प्रश्न है, किसी भी प्रकार की सेवा की/कराई जा सकती है।'
निग्रंथ-निग्रंथियों को निम्नोक्त पांच महानदियाँ महिने में एक से अधिक बार पार नहीं करनी चाहिए— गंगा, यमुना, सरयू, कोशिका और मही। एरावती आदि छिछली नदियाँ महिने में दो,तीन बार पार की जा सकती हैं।
___ साधु-साध्वियों को घास के ऐसे निर्दोष घर में जिसमें मनुष्य अच्छी तरह खड़ा नहीं रह सकता, हेमंत-ग्रीष्मऋतु में रहना वर्जित है। यदि इस प्रकार के घर में अच्छी तरह खड़ा रहा जा सकता है तो उसमें साधु-साध्वी हेमंत-ग्रीष्मऋतु में रह सकते हैं। यदि तृणादि का बनाया हुआ निर्दोष घर मनुष्य के दो हाथ से कम उँचा है तो वह साधु-साध्वियों के लिए वर्षाऋतु में रहने योग्य नहीं है। यदि इस प्रकार का घर मनुष्य के दो हाथ से अधिक ऊँचा है तो उसमें साधु-साध्वी वर्षाऋतु में रह सकते हैं। पंचम उद्देश
पंचम उद्देश में ब्रह्मापाय आदि दस प्रकार के विषयों से संबधित बयालीस सूत्र हैं। ब्रह्मापाय संबंधी प्रथम चार सूत्रों में आचार्य ने बताया है कि यदि कोई देव स्त्री का रूप बनाकर साधु का हाथ पकडे और वह साधु उस हस्तस्पर्श को सुखजनक माने तो उसे अब्रह्म कि प्राप्ति होती है अर्थात् वह
४. उ.४, सू.३१॥
१.उ.४, सू.२०-८ २. उ.४, सू.२९। ३. उ.४, सू.३०। ५. उ.४, सू.३२-३(ऐरावती नदी कुणाल नगरी के पास है)। ६. उ.४, सू.३४-७/