Book Title: Kalyan 1958 12 Ank 10
Author(s): Somchand D Shah
Publisher: Kalyan Prakashan Mandir

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Page 39
________________ : या : सेर : १८५८ : 18: देखोगे कि कुछ बीज अंकुरित हो कर बराबर कलह भादि का वातावरण बना रहता है, जहां बढ रहे है । जब इन सबको बहार निकाल अशोक वृक्ष होता है वहां मन को प्रसन्न करने कर इनका निरीक्षण करो, क्या देखते हो ? जो वाला वातावरण फैला हुभा रहता है। कह नहीं बीज बिना तोडे फोडे बोये गये थे वे अंकु- सकता कि लोगों की यह धारणा कहां तक ठीक रित हो गये है, जब कि जिन बीजो को तोड है पर अधिकांश उदाहरणों से काफी सत्यता कर भूमी में डाल गये थे उनसे अंकुर भी प्रकट होती है। इस पर आप स्वयं सोच नही फूटा; इतना ही नहीं, वे बीज जिन्हे तोड सकते है। कर भूमी में डाल गये थे वे सड कर पूर्णतया मित्रो ! यह शत प्रति शत सत्य है कि पैड नष्ट हो गये है। क्यों ? इसका क्या कारन पौधों आदि वनस्पति में भी वह शक्ति एक है ? इसका कारण यही है कि वह तत्त्व जो निश्चित समय तक विद्यमान रहती है, जिस के उस बीजको पैडे या पौधे के रुप में बदलने कारण हम भी चलते फिरते है और वह है की शक्ति रखता है वह तोडने पर बीज से आत्मा । जब पैड पौधों में आत्मा का होना अलग हो गया; यही कारण है की बीज पूर्ववत् स्वतः सिद्ध है उनमें अच्छी बुरी आत्माएँ होने दशा में रहने के बदले सड कर समाप्त हो के प्रमाण मिलते है तब यह कहना कि मनुष्य गया । जिस प्रकार मानव (प्राणी) के देह से की भाँति वनस्पति में परमात्मा का गुण नहीं आत्मा के अलग होने पर २-३ दिन में ही है सर्वथा गलत है। उन्हें भी सब बातो का देह अनन्त जीव के उत्पन्न हो जाने से सडने अनुभव होता है इसमें कोई सन्देह नहीं; लगती है । यह वही तत्त्व है जो प्राणि की उनकी गति भी कर्मानुसार होती है जो वनजीवित देह में होता है, और वह आत्मा है। स्पतियां अच्छे कार्य करती है वे अच्छी गति जिस प्रकार प्राणियों (Animal) में अच्छी की ओर अग्रसर होती जाती है, दुष्कों के बुरी आत्माएँ होती है. अच्छी आत्माएँ दूसरा कारन वे भी. दुर्गति की ओर चलती है को सुख देती है और बुरी आत्माएँ दुःख. उसी इस में कोई भ्रम नहीं। प्रकार वनस्पतियों में भी अच्छी बुरी आत्माएँ होती है। गुलाब अपनी सुगन्ध ग्रहण कर सकती है ? दूसरे अंकमें, सेहवाको सुगन्धित कर उस प्राणी को प्रसन्न करता है तुना टदा नोटा जो उसमें साँस लेता है. अनेक पैड पौधे अपने समान Muqdi मान थाय छे , अभी फलो द्वारा प्राणि को शक्ति प्रदान करते है तो रास२, Gपाश्रय श्वेता भूति पू न बबुल जैसे वृक्ष दूसरो के वस्त्रों को फाडकर . संस्था-मानी जुनी शमी नोट तथा तन को भेदकर प्रसन्न होते है दूसरो को घसा गया सिभीशन व मी मापशु: दुःखी देखकर स्वयम् हँसते है । कहते है કેશરીચંદ એમ. ઓશવાલ जिस स्थान मालश्री का वृक्ष होता है वहां दुःख ५२, qिgeqाडी भुभ४-२

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