Book Title: Kalyan 1958 12 Ank 10
Author(s): Somchand D Shah
Publisher: Kalyan Prakashan Mandir

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Page 38
________________ १८२ : ५२मात्मा प्रतिनि:. चूसकर, पुनः अन्दर चली जाती है यह मैथुन (१७) जन्मः- बोने से वनस्पति पैदा होनी का स्पष्ट उदाहरण है। कहते है की युवा स्त्री है, वर्षा ऋतु में अनेक प्रकार की वनस्पति उग के द्वारा आलिंगन करने से, हाव-भाव दिखलाने जाती है । से या कटाक्ष से कइ वृक्ष फलते-फूलते है। (१८) वृद्धिः- जन्म के बाद हर एक वनस्पति (१३) मानः- रोद्रवन्ती नामक वनस्पति से बडी होती है। प्रत्येक समय पानी की बुदे झरती रहती है _ (१९) मृत्युः- आयुष्य के पूर्ण होने पर वे क्युकि इस वनस्पति से स्वर्ण सिद्ध होना बताया भी समाप्त (मृत्यु) हो जाती है। जाता है, अतः जो बुबे झरती है इनसे ऐसा (२०) रोगः- जिस प्रकार मनुष्य आदि लगता है कि बुदे यह कह रहे है कि मेरे प्राणियों को अनेक रोग हो जाते है और होते हुए भी जगत में निर्धन लोगो की दवाइ के उपचार से प्रायः ठीक भी हो जाते संभावना कैसे हो सकती है। उसी प्रकार वनस्पतियों में भी अनेक रोग उत्पन्न (१४) मायाः- कई लताएँ अपने फलो को हो जाते है जो रसायनिक पदार्थो के द्वारा अपने पत्तो से ढककर रखती है । इस से उसमें समाप्त हो जाते है।। माया, परिग्रह होने का पता चलता है। (२१) ओघ:- बेले चाहे किसी भी स्थान (१५ क्रोधः- कोकनद का वृक्ष हुकार की पर क्यों उगी हो परन्तु चढने के लिये वृक्ष, जो ध्वनि (Sound) करता है उससे जैसा बाढ (Afence) आदि की ओर स्वतः मुड लगता है कि वह किसी पर अपना क्रौध उगल जाती है तथा उन पर चडकर लिपट जाती है । रहा हो। प्रत्येक पैडे-पौधे की शाखाये', पत्ते इत्यादि (१६) अहारः- प्रत्येक वनस्पति को हमारी सूर्य की ओर ही बढते जाते है यह पैडे पौधो और जानवरों की भांति भोजन, पानी प्रकाश, में ओघ संज्ञा होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। वायु आदि की आवश्यकता होती है। मित्रो ! हमारे पास और कितने ही जैसे कुछ जैसे पैड पौधों का भी पता चला है उदाहरण है जिनके आधार पर यह प्रमाणित जो मनुष्य, जलचर आदि के मांस रक्त या होता है कि वनस्पति में ये सर्व क्रियाये कीट पतंगों का आहार करती है । जिस प्रकार आत्मा (चेतनत्व) के कारण ही होती है । इसे मांसाहारी (Corniborus) जानवरों को और स्पष्ट करने के लिये एक प्रयोग कर देखोःमांस न प्राप्त होने पर वेदना होती है, यहां कुछ बीज लो इनमें से कुछ बीजो को लेकर तक कि कभी न मिलने के क्षुधा से तडफते बो दो, शेष को तोड दो और उन्हें बो दो, हुए प्राण त्याग देते है उसी प्रकार वे (मांसा. इन्हें अंकुरित होने के लिये जिन २ तत्त्वों, हारी) पैड पौधे मी मांस आदि के अहार के न पदार्थो की आवश्यकता होती है, दोनों को बराबर मिलने से सख कर समाप्त हो आती है। . उचित मात्रा में देते रहो । कुछ दिनों के बाद

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