Book Title: Kalpsutram
Author(s): Danvijay Gani
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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नपञ्चानन-समस्तसूरिगुणगणसमलङ्कृत-सौम्यत्वतारापति-श्रीमद्विजयानन्दसूरीश्वरशिष्यावतंस-सुधानिःस्यन्दसदुपदेशसंशोधितभव्यसत्त्वमाखान्त-अप्रतिमानवद्यस्वपरसिद्धान्तरहस्याविर्भावनदक्षधीषणवाचकपुङ्गवश्रीमद्वीरविजयविनेयरन-आईतधर्मोन्नतिकरणैकजीवनसार-अनुयो
गाचार्य-अस्मद्गुरुगुरुवर्यश्रीमदानविजयगणिभिर्महता अमेण, विधाय चे परिश्रमं करुणापाराकूपारैरेभिः पूज्यप्रवरैरनुगृहीतः खल्वयं सकलोऽप्यास्तसमाज इति नातिरिक्तं वचः ।
संशोधितेऽपि सम्यक्तया 'मनुष्यसहभुवो भ्रान्तयो दुनिरा” इति नियमेन वर्णनियोजकप्रमाददोषेण वा याः काश्चनाऽशुद्धयः स्थिता भवेयुः, ताः संशोधयन्तु कृपां विधाय स्वभावसुन्दराः सज्जनाः, तानेव 'क्षन्तव्यं यदि मतिमोहादिनाऽत्रोक्तं चेदलीकं कृपाभिलाषुके मयि विधाय कृपा' इति सम्प्रार्थ्य प्रस्तावनामिमा परिसमाप्तिं नयति
पूज्यपाद-परमगुरु-श्रीमद्विजयकमलसूरीश्वरसाम्राज्यवर्तिप्रशमपीयूषपाथोनिधिमुनिराजश्रीमत्प्रेमविजयगणिपादपद्ममधुव्रतो
मुनि-रामविजयः।
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