Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 27
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री महावीराय नमः॥ ॥श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०१६१. (#) सत्यासीयाछतीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. बालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७७५७). सत्यासीयाछतीसी, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १६८७, आदि: गरूई श्रीगुजराति देस; अंति: समयसुंदर० कल्लोल आणंद करउ, गाथा-३६. १२०१६२. नेम स्तति व चंद्रप्रभ थई, संपर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. २, जैदे., (२४.५-२५.०x१०-१०.५, १०x १.पे. नाम. नेम स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, आ. महिमासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिण परम मुनिवर संघ सुखकर; अंति: महिमा० दहदिसि ____ अति घणी, गाथा-४. २. पे. नाम, चंद्रप्रभु थुई, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तुति, आ. महिमासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभु जिण राजइ ए; अंति: जस करइ ___ महिमासागरसूरिजी ए, गाथा-४. १२०१६३. (#) सारदाजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०, १७४६१). सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन हुं मागुं; अंति: सफल फले स्वामिण ताहरी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) १२०१६४. साधारणजिन विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १३४३७). साधारणजिन विनती स्तवन, मु. भुधर, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनगुरु स्वामीजी; अंति: भूधर० कीजीयै जी, गाथा-१८. १२०१६५. ग्यानपचीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पुर, प्रले. मु. मनोहरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में वर्षहेतु मात्र "संवत्-१७" ऐसा लिखा है., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४०). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: बनारसी० कर्म के हैत, गाथा-२५. १२०१६६. चिंतामणिपार्श्वनाथवृद्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४०). पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि बरहानपुर, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलउ साहिब माहराजी एक; अंतिः जिनरंग० जीवत जनम प्रमाण, गाथा-१५. १२०१६७. औपदेशिक व अइमत्तारिषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०, १६x४८). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि जीव पहिलु उपशम आणी; अंति: भणइ साधुहंस तरीए संसारि, गाथा-१५. २. पे. नाम. अइमत्तारिषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अइमत्तामुनि सज्झाय, म. कहानजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन रिति वरसातनी आवी; अंति: एम बोलि सेवक कन्ह रे, गाथा-१७. १२०१६८. शांतिनाथवृद्ध स्तवन व गुरुगीतादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. खडा लेखन., जैदे., (२५४९.५, ३९x१७). १.पे. नाम. शांतिनाथवृद्ध स्तवन, प. २अ, अपर्ण, प.वि. मात्र अंतिम पत्र है. For Private and Personal Use Only

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