Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 27
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०२१७. (१) चिंतामणिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२०.५X१०, १०X२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि सुध मन आणी आसता देव, अंति समयसुंदर० चिंता चूर, गाथा- ७. " १२०२१८. नेमराजिमती गीत व होरीपद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२३१०.५, १७३७). १. पे नाम. नेमगीत सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण, नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी; अंति: अजित०प्रीत करें जि के जी, गाथा - १८. २. पे नाम. नेमराजिमती होरीपद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. मु. मलूक, पुडिं, पद्य, आदि सिचपुर सेती खेलण न कव; अति मलुक०सेवग चरण चत लाइवा बे, गाथा ६. १२०२१९. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२२.५x१०, ७X२८). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित फलदायक स्वामी; अंति: जयो उत्तम जिनगुण गावे, गाथा - ९. १२०२२०. औपदेशिक सज्झाय व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०X१०.५, १७X३८). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. रेखराज, रा., पद्य, वि. १९४२, आदि: ख्याल तमासा कि सुणो नर; अंतिः धर्मध्यान चीत ल्याव रे, गाथा -१६. २. पे नाम. प्रास्ताविक दोहा, पू. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह दोहा लिखावट के आधार से अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखा हुआ प्रतीत होता है. पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि जल उखल घरटी अगन सेज, अति: नवे चंद्रवा धाम, दोहा-१. १२०२२१. १३ काठियानि सज्झाय व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२२.५४१०.५, ११x२५). १. पे. नाम. तेरकाठियानि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आलस पहेलो काठीयो धरम; अंतिः भाव साधु धन तेह, गाथा- ७. २. पे. नाम. जिवाजिवगर्भित ऋषभदेव स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भुजनगरमंडन नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिवा रे जिवा पुंन्यनें; अंतिः समकितगुण चित धरजो जी गाथा ४. १२०२२२. (+) क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. २. प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जै... " ( २३X१०, १२X३४). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि : आदिरि जीव क्षमागुण; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा - ३६. १२०२२३. (+) चतुर्दसगुणस्थानक विषै सत्ता की प्रकृति को विवरो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. क्षमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५X१०, १७५५). १४ गुणस्थानके सत्ता विचार, मा.गु., गद्य, आदि १मिध्यातगुणस्थानक विषैः अति गुणस्थान० अंत्यसमये खपावइ. १२०२२४. (+) १० श्रावक सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी आंनद, संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५x१०, १३x२२). "" १० श्रावक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८२९, आदि आणंदजी रे सिवानंदा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १४ अपूर्ण तक लिखा है.) १२०२२५. (+#) नंदीश्वरद्विप शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०, ११४४९). " For Private and Personal Use Only

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