Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 27
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७
२४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षास्थानादिगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनितानयरीइं लीइं; अंति:
ज्ञानविमल गुण गेह, गाथा-३. १२०१८३. २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०, १०x४०).
२४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती देव नमुनीसदिस; अंति: रतनविजय० बृद्ध
गुण गाय, गाथा-९. १२०१८४.(+) दशारणभद्र व इलाचीकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७८९, आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,
ले.स्थल. उटालाग्राम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १४४३२). १.पे. नाम. दशारणभद्र सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम बोलइ लालविजय निसदीस, गाथा-१८,
(पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुत्र जाणिये; अंति: सुर करि लबधविजय गुण गाय, गाथा-९. १२०१८५. सित्तरसोजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १४४२७).
१७० उत्कृष्टजिन स्तवन, मु. आणंदरुचि कवि, मा.गु., पद्य, आदि: विवरोए गाथा तणो कवि; अंति: पुण्यरुचिशिष्य कहे
करजोडि, गाथा-१९. १२०१८६. चक्रवर्ती आयु देहमानादि विवरण कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०, ११४४७).
चक्रवर्ती आयु देहमानादि विवरण कोष्ठक, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२०१८७. (+) श्रेयांसजिन व विमलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०,
१३४३९). १. पे. नाम, श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: श्रीहंसनाथ प्रभूजी बंस; अंति: प्रभूजी जोड्यो छ तवनराज, गाथा-११. २. पे. नाम, विमलजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घर आंगण सुरतल फल्योजी कुण; अंतिः जिनराज० देव प्रमाण हो, गाथा-४. १२०१८८.(+) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. कहांबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, ११४४८).
नेमिजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: आलालुं छोरे महारा मन तणो; अंति: लबधि कहइ करजोडि, गाथा-१५. १२०१८९ (+) ठाकुरसी धर्मबोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १२४४०).
ठाकरसी धर्मबोध सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: क्षित्रीवंश वखाण राय; अंति: मानीयो ते ऊपर कोई नही, गाथा-१०. १२०१९०. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४६२).
महावीरजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, वि. १७००, आदि: सकल जिण रे वांदं मुनि; अंति:
सेवक० प्रभू पूरवउ मन आसए, गाथा-२०. १२०१९१ (#) सम्मेतशिखरतीर्थ पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. खडा लेखन. मूल पाठ का अंश
खंडित है, जैदे., (२३४१०, ३७४२५). १. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: दरसण कीयो आज शिखरगिर; अंति: आयौ रस मे पायौ मुगत पदकौ, गाथा-४. २. पे. नाम. धर्मजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन मै जाय मची; अंति: साधु क्षिमा कहे करजोडी, पद-८. ३. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहि., पद्य, आदि: ऐसे स्यांम सलूंणो प्रभू; अंति: मिट गए दरित जंजाल, गाथा-८. ४. पे. नाम, नेमिजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण.
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