Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३
व्याख्यान संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत असरण सरण; अंति: करता मंगलीक माला संपजै. ९४६७१. (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, ले.स्थल. दासरथपुर,
प्रले. भुवानी; पठ. मु. गुमानचंद; मु. धना (गुरु मु. चंद्रहर्ष); गुपि. मु. चंद्रहर्ष (गुरु पं. मनरूपहर्ष); पं. मनरूपहर्ष (गुरु पं. नेमहर्ष), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,११४३४-३६). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: परम वसुतरांगंतजा, स्तुति-२४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र
नहीं हैं., अजितजिन स्तुति श्लोक-७ अपूर्ण से है.) ९४६७२ (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. पंचपाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, २-३४२९-३१).
नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-४१.
नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: बाला० श्रीसाधुरत्नसूरिभिः. ९४६७३. सीताराम चरित्र, गाथा संग्रह व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५,
१३-१४४३७-४५). १. पे. नाम. रामसीता चरित्र, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण.
सीताराम चरित्र, प्रा.,सं., प+ग., आदि: शुद्धं शीलं श्रियां मूलं; अंति: लिहियं पुन्नस्स युत्तेण, श्लोक-१५१. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ.८आ, संपूर्ण, वि. १६९०, फाल्गुन कृष्ण, ४, रविवार, प्रले. ग. सिद्धिरत्न, प्र.ले.प. सामान्य.
गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रणहरो सदा लिद्ध दुच्छछ; अंति: तरंति ते तु बिणीजायाः, (वि. गाथा-३.) ३. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण.
सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रथे चैकं चक्रे भुजंगयमिता; अंति: द्राक्षस्य कुलं क्रिया, गाथा-४. ९४६७४ (+#) प्रद्युम्नकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:प्रद्युम्नकुमरचौपाई., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १७-१९x४२). प्रद्युम्नकुमार चौपाई, मु. रंगसार पं, मा.गु., पद्य, आदि: शेजगिरसिणगार आदिदेव; अंति: निरंतर सुणइ नवनिध तेह
तणइ, ढाल-७, गाथा-३४१. ९४६७५ (+#) उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-९(१ से २,५ से ११)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित हैं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०, १५४५६-६२). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१,७,८ अपूर्ण से
अध्ययन-९ तक है.) ९४६७६. (+) कल्पसूत्र-महावीरजिन जन्म वाचना ५ सह व्याख्यानकथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १७X४८-५५).
कल्पसूत्र-व्याख्यान कथा *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहुं इत्यादि; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. भगवान महावीर के
२१वे उपसर्ग वर्णन अपूर्ण तक है.) ९४६७७. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, फाल्गुन कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. राणपुर,
प्रले. ग. वृद्धिविजय (गुरु ग. लब्धिविजय); गुपि.ग. लब्धिविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०, ४-५४३२-३६).
भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३.
भाष्यत्रय-टबार्थ, मु. मेरुधीर, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु क० वांदीने वांदव; अंति: ते स्युं भीरु भाव विरहित. ९४६७८. (#) वसतिदानादि विषयक कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १५४५१-५३).
कथासंग्रह-वसतिदानादि विषयक, प्रा.,सं., गद्य, आदि: वसही सयणासण भत्तपाणे; अंति: तृतीयभवे मोक्षः, कथा-८.
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