Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३ कल्पसूत्र - टबार्थ, मु. हेमविमलसूरि- शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि नमस्कार होज्यो बार गुण अंति: (-). कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी अति: (-). ९४७०३. (+*) आवश्यकसूत्र की अवचूर्णि संपूर्ण वि. १४५० श्रावण शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३५ प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११.५, ३६४८४). 3 आवश्यक सूत्र- अवचूर्णि ॥, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य वि. १४४०, आदि प्रारभ्यते श्री अंति: नयमतमाह नावं सव्वे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९४७०४ (२) पर्युषणाद्यष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९११, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले. मु. वृद्धिचंद्र (गुरु मु. सरीचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमद्वामेवजिन प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०x३३-३८) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीश शांतिकर्त्ता अति: पद्मबंध विलोक्य तत्. ९४७०५. (+) भक्तामर स्तोत्र सह गुणाकरीय टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९-१२(१ से १२)=१७, प्र.वि. हुंडी:भक्तामरटीक., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६११, १५४६२). " भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-) अति मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४ (पू.वि. श्लोक-२२ से है.) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: (-); अंति: पमतिः ० प्रायशः संति, (पू.वि. श्लोक-२१ की टीका अपूर्ण से है.) ९४७०६ () सूक्तमाला, संपूर्ण वि. १९३१ आश्विन १४ शनिवार, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल कांबा, प्रले. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सूक्तावली पत्र ., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१०.५, १२-१३X३९-४१). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लि वृंदजी अंतिः मोक्ष साधे जि कोई, वर्ग - ४, श्लोक - १७६. ९४७०७, (+) परमात्मछत्रीसी, प्रश्नोत्तरमाला आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९१४ आश्विन शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ४, ले.स्थल. कांबा, प्रले. पं. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (८५३) पोथी प्यारी प्रांणथी, दे., ( २६x११.५, १३x४४-४७). ९ १. पे. नाम. परमात्मछत्रीसी, पू. १अ २अ संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: परमातमछतीसी. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदिः परमदेव परमातमा परम; अंति: चिदानंद० आतम को उद्धार, गाथा-३६. २. पे. नाम. प्रश्नोत्तरमाला, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: प्रश्नोत्तरमाला. प्रश्नोत्तररत्नमाला, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य वि. १९०६ आदि परम जोत परमातमा परमा अति वाणी कही भवसायर तरी गाथा ६२. 1 1 ३. पे नाम पुगलगीता, पृ. ४आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पुगलगीता. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि संतो देखीये जे परगट, अंतिः चिदानंद सुखकारी, गाथा- १०८. ४. पे. नाम. आत्मशिक्षा, पृ. ८अ - ११आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : आत्मशिख्या. क. हंसरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि सकल साखे वर्णव्य; अंतिः घरि जय कमला धीर थाय, गाथा ११०. ९४७०८. (*) आवश्यकसूत्रनिर्युक्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २६-४ (१ से ४)=२२, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ७२४, जैये., (२५.५X१०.५, १३x४२-४६). आवश्यक सूत्र-निर्मुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पीठिका गाथा ५९ अपूर्ण से है व उपोद्घातनिर्युक्ति गाथा - ६९ तक लिखा है., " वि. उपोद्घातनिर्युक्ति पूर्ण किये विना ही पूर्णतासंकेत व ग्रंथाग्र दे दिया गया है.) ९४७०९. (२) देवराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९- २ (१,३ ) =७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५X११, ८-११X३२-३५). For Private and Personal Use Only

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