Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२३
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२. पे. नाम. लघुगुरुक्रियामात्रा छंदोविषयक विचार, पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण.
गुरुलघुक्रियामात्रा छंदोविषयक विचार, सं., प+ग, आदि: संख्यांकसजेत्पृष्टान् अति: (१) एवमज्ञेपिज्ञेयं, (२) बीजा अगरता हेठलि लघु दीजड़.
९४६८७. (*) चार प्रत्येकबुद्ध रास, संपूर्ण वि. १८०३, पौष कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३४, ले. स्थल सिमरोल प्रले, मु. करणजी (गुरु मु. मंगलजी); गुपि. मु. मंगलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : चार प्रत्येकबु., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. ग्रं. १२४९, जैदे., (२५.५X१०.५, १५X३४).
कुल
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलड; अंतिः आणंद लील विलास, खंड-४, गाथा ८६२. ग्रं. ११२० (वि. सर्वढाल - ४४.)
९४६८८. (*) गुणस्थानक्रमारोह सह स्वोपज्ञ अवचूर्णि संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २०, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. १४५०, जैवे.,
(२६X११, १७x४३-५३).
गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्म, वि. १४४७, आदि गुणस्थानक्रमारोह हत; अंतिः रत्नशेखरसूरिभिः, लोक-१३५.
गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि. सं., गद्य वि. १४४७, आदि अहं पदं हृदि; अंतिः प्रकटित
इत्यर्थः.
,
९४६८९. (+) उपदेशमाला सह टीका व अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रले. सा. सत्यश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र - ११अ पर सं. १७९९ आषाढ कृ. २ बुधवार को प्रतलेखन प्रारंभ का उल्लेख है. पत्र १४अ पर प्रतिलेखिका का उल्लेख है. लिखावट से प्रत १९वी की लगती है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१०.५, १६-१८४४४-५२).
"
उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ तक है.) उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदिः श्रेयस्करं कामितदान; अंति: (-), (वि. टीकान्तर्गत
संलग्न है.)
उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (१) नत्वा विभू सकलकामितदान, ( २ )नमिऊण शब्देन नमस्कारं; अंति: (-), (वि. अवचूरि टबार्थ शैली मे है.)
९४६९१. (*) सिंदूरप्रकर सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें त्रिपाठ-संशोधित, जैदे., (२५X११.५, १६-१८४५१-५३).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूर प्रकरस्तपः करिशिरः अति सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्,
1
द्वार - २२, श्लोक-१००.
सिंदूरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १६५५, आदि श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा अति: प्रकरनाम्नी व्यरचिता
कृता.
९४६९२. (*) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, संपूर्ण वि. १८२६ कार्तिक शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पू. १५, प्रले. पं. कपूरचंद (गुरु मु. प्रतापसी); गुपि. मु. प्रतापसी (गुरु उपा. करमचंद); उपा. करमचंद (गुरु उपा. गांगजी गणि); उपा. गांगजी गणि (गुरु उपा. आसा गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४११.५, १५४४६).
"
जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१,
(वि. अंत में ग्रंथ में वर्णित २० कथाओं के नाम दिये गए हैं.)
जै..,
९४६९३. (+) गमा विस्तार, संपूर्ण वि. १८९१, पौष शुक्ल ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, अन्य. मु. प्रेमचंद ऋषि (गुरु मु. रामजी ऋषि); गुपि. मु. रामजी ऋषि; अन्य. मु. कर्मचंद ऋषि (विजयगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२४.५X११.५, ६-२०X१४-६६ ).
भगवतीसूत्र-गम्माशतक यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: असन्नीतिर्जवपंचेंद्री; अंति: शतक २४मों गमा समाप्त.
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