Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि अगर चंदन घन कस्तूरी कपूरः अति मनि धरित संयम भार, गाथा-४. १७. पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, श्राव. सामल, मा.गु., पद्य, आदि: राजलि भणइ रे हरिणाला; अंति: वधू प्रभु पहिली सीद्धइ, गाथा-४. १८. पे नाम, नेमिजिन गीत, पु. ६आ, संपूर्ण, नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: सुणउ यादवजी वात अम्हारी; अंति: वलि प्रणमऊ मुगित दानेसर, गाथा-४. १९. पे नाम, वैराग्य गीत, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कर्मसागर- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गववरहाथिणी परिवरिउ फिरतड अंति: तणउ सीस इसी परि बोलइए, गाथा- ७. २०. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: भोग भला भरता भरता भला रे; अंति: राजलि वर ब्रह्मचारी रे, गाथा-४. २१. पे नाम, नेमिनाथ गीत, पृ. ७आ, संपूर्ण. राजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि कहि कहि रे बाई कुणि रधि; अंतिः सेवइ मनवांछित फल इम लेबइ, गाथा- ३. २२. पे नाम. धन्नाशालिभद्र चरित्र, पृ. ७आ ९अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: मोटुं छइ चरित श्रीधनातणउअ; अंति: पालेसिइ ते न रसिइ संसार, गाथा- १८, ( पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से गाथा-१४ अपूर्ण तक नहीं है.) २३. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. ९अ-१०अ संपूर्ण. मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, आदि सुणि सिखामण जीवडा म करिसि अति साधुहंस०जिम निश्चल होई रे, गाथा- १४. ९४६६५. (+#) ऋषभदेव विवाहलो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पठ. मु. कर्णचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२५x१०.५, ९४३१-३७). " आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि आदि धर्म जिणि उथर्यो अति कहत कविता ऋषभदासो, गाथा ६७. ९४६६६. श्रावक आराधना विधि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-१ (१) = ५, प्र. वि. हुंडी : चैत्यवंदन, आराधना., (२५.५X१०.५, १३x४७-५२). For Private and Personal Use Only जैदे... आवक आराधना विधि, आ. जयशेखरसूरि प्रा. मा. गु. प+ग, आदि (-) अति पुणरवि बोहिं जिणाभिहिवं, (पू.वि. "ए वीसतीर्थंकर महाविदेहि" पाठ से है.) " ९४६६७. (+) ज्ञाताधर्मकर्धाांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२५x१०, ११४३०-३४) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन १ सूत्र- २३ पूर्ण पाठ तक है.) 1 ९४६६८ (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी चउसरण, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, ५X३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि सावज्जजोग विरई अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, , , गाथा-६४. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्य व्यापार त्यागरुप; अंति: ए चउसरण अध्ययन गणीवर. ९४६६९. (+) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण वि. १८४४, आषाढ़ कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल, रोहितनगर, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकर्ण., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १३X३८-४४). सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार - २२, श्लोक-१००. ९४६७०. व्याख्यान संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२५x१०.५, १०x४०) व्याख्यान संग्रह, प्रा. मा. गु., रा. सं., प+ग, आदि धर्मतः सकल मंगलावली; अतिः संप्राप्त जन्मनः फलं,

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