Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 19
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कबीर, पुहिं., पद्म, आदि: मींदरीया में दीपक अंतिः प्रभु बिना अंभज मारो, पद-४. ११. पे. नाम गुरु स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.
शंभुनाथ, रा., पद्य, आदि: मीठी मानु लागे हो; अंति: रमजा सतगुर सागै हो, पद-४. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
कबीर, पुहिं, पद्य, आदि: गुन का भेद न्यारा अति: कबीर० देखो सोच विचारी, पद-६.
१३. पे. नाम, सीताहरण पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं, पद्य, आदि रथसु निरखत जात जटाई; अंति कहीयी कथा समुझाई, पद-४.
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१४. पे नाम औपदेशिक पद. पू. २आ, संपूर्ण,
औपदेशिक पद-मोहमाया, पुहिं., पद्य, आदि: दुख के फंद पडोगे कोइ; अंति: मोहकर्म ल्यो जीत, गाथा-४. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: मुसाफर चोकस रहो रे; अंति: किस विध उतरेला पार, पद-३.
८०४९२. सरस्वती छंद व जिनकुशलसूरि गीत, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२५.५x११, १४४४०-४५). १. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. सोमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य.
सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ससीकर समुज्वल मराल; अंति: सहज० सोय पूजो सरसती, ढाल-३, गाथा - १४.
२. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
मु. धर्मसीह, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेम मन धारि नित; अंति: (-), (पू. वि. गाथा-४ तक है.)
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८०४९३. (#) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २५-२४ (१ से २४) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११.५, १४४३३-३६).
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चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल -२१ गाथा- १६ अपूर्ण से
ढाल- २२ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.)
८०४९४ (+) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२,
१४X३२-३५).
सरस्वतीदेवी छंद, मु. खुशालकपूर, मा.गु., पद्य, आदि सरस वचन आपें सदा तु अंति: वेणा पुस्तकधारिणी,
गाथा - १५.
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८०४९५. जंबुकुंवर सज्झाय ढाल १, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२५X१२, १६३०-३५ ). जंबूकुंवर सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देघरदार मानुड रहे, (प्रतिपूर्ण, वि. अंतिम पत्र सं. १ अ पर लिखा है. )
८०४९७. नलदमयंति चरित्र, अपूर्ण, वि. १७६४, श्रावण कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५ ) = १२, ले. स्थल. देवसूरी, प्रले. मु. धर्मराज (अंचलगच्छ); पठ. मु. लखमण (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x११, ९x४२).
नलदमयंती चरित्र, वा. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य वि. १७५८ आदि (-); अंति दिन प्रति होइ उछाह (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण से है.)
८०४९८. सूर्यजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १७३२, मार्गशीर्ष, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. गीररी, प्रले. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२६११, १७४७-५०).
सूर्य छंद, आ. भाणसूर, मा.गु., पद्य, आदि मन दल कमल खोज नमत; अंतिः समंधर सामल धीरसध, गाधा-३२. ८०५००. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२२, फाल्गुन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १३X३७).
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सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्म, आदि परम मुणि झाणवण गहण; अतिः सेवक सकलचंद कृपा करो, ढाल-४, गाथा - ३२.

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