Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 19
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.१९) KAILĀSA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol 1.1.19) बुदाणावादयामास बदरिसीणासिवमा वादमागराalan २ पानामाझिणझिा धीराव-महावीर Bासासागरसूरि ज्ञानामीदिर प्रार KRRAOमाधानात MOREमाका तापारमनाaand समश्राग्राष्टी For Private and Personal Use Only समान Forpima anguRIST Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.१९) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची के आशीर्वाद व प्रेरणा | आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी हावीर भी । ॐ . एतत विद्या ले प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५४२० वि.सं. २०७२ ० ई. २०१६ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १९ Āacārya Śhrī Kailāsasāgarasūri Smrti Granthasūcī - Ratna 19 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.१९ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.19 *संपादक मंडल * पं. संजयकुमार आर. झा पं. रामप्रकाश झा पं. गजेन्द्र पढियार पं. नवीनभाई वी. जैन पं. अरुण कुमार झा * संयोजक * डॉ. हेमन्त कुमार * संपादन सहयोग * परबत ठाकोर ब्रिजेश पटेल संजय गुर्जर * कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग * केतन डी. शाह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १९ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथाना विस्तृत सूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची • वर्ग - १: जैन साहित्य खंड - १९ से आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Śrī Dēvarddhigaņi Kșamāśramaņa Hastaprat Bhāņdāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I: Manuscripts Catalogue * Class - I: Jain Literature Volume - 19 * Blessings & Inspiration of Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Publishers Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2016 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 19 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.19 Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.19 Preserved in Sri Dēvarddhigani Kşamāśramana Hastaprat Bhāndāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir 00:Publisher O Vir Samvat 2542, Vikram Samvat 2072,A.D. 2016 OEdition : First 0 प्रकाशन सौजन्य : श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार, सिरोही-जोधपुर Shrimati Chhagankunvar Amritlalji Gandhi Parivar, Sirohi-Jodhpur OAvailable at: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth OPublisher: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel : (079) 23276204,23276205,23276252 Whatsapp : 07575001081 Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir@kobatirth.org OPrice: Rs. 1500/OISBN: 81-89177-00-1(Set) 978-81-89177-92-8 (Vol.19) OPrinter : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad * उपलक्ष * श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ८२वें जन्मोत्सव के पुनीत प्रसंग पर .वि. सं. 2072, भाद्रपद शुक्लपक्ष, (द्वि.) नवमी, रविवार दि. 11-09-2016 For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अर्हम् नमः ॥ मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋणस्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. ___अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. डॉ. हेमन्त कुमार, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, श्री गजेन्द्र पढियार, श्री नवीनभाई जैन, श्री अरुण कमार झा आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के अध्यक्ष श्री सुधीरभाई मेहता, ज्ञानमंदिर में चल रही विविध गतिविधियों की देख-रेख करनेवाले अन्य ट्रस्टीगण व कारोबारी सदस्य सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत १९वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार, सिरोही-जोधपुर के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. ___बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों के अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का १९वाँ खंड प्रकाशित हो रहा है, जो ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वज्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. यमसागर गरि For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org * प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के १९ वें खंड को चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंडितों के साथ-साथ करीब तीस कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में चल रहे श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण एवं कारोबारी सदस्य तो अत्यन्त उत्साही व सक्रिय रहे ही हैं, साथ-साथ ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में भूतपूर्व ट्रस्टीयों एवं कारोबारी सदस्यों का भी जो महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची - जैन हस्तलिखित साहित्य के इस १९वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार, सिरोही - जोधपुर के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस १९वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर II For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रद्धेय स्व. प्रो. डॉ. अमृतलालजी गांधी प्रो. अमृतलालजी गांधी निःस्वार्थ सेवा की साकार मूर्ति और करुणा के सागर थे, सेवा पारायण व धर्ममूर्ति अर्धांगिनी श्रीमती छगनकंवरदेवी के समर्पण भरे साथ सहकार से डॉ. अमृतलालजी गांधी ने अपनी महत्तम जीवन की ऊर्जा और आय को जरूरतमंद लोगों की सेवा में अर्पित कर दी। सारी सुख-सुविधाओं के होते हुए भी उन्होंने सरल व सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत किया। यही सरल जीवन उनका सेवा मार्ग बन गया। सारी धनजन्म : 31.3.1928| | सम्पदा उनके लिए भोग की वस्तु नहीं होकर सेवा का साधन बन गई। अवसान : 23.4.2007 बचपन में ही पिता की छत्रछाया गंवा चुके अमृतलालजी ने कठिन परिश्रम एवं सूझबूझ के बलबूते पर अपने जीवन की ऊँचाईयों को हासिल किया। अपने विद्यार्थी जीवन में डॉ. गांधी ने स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया। आप १९५५ में श्री महाराज कुमार कॉलेज सिरोही में स्थायी रूप से राजनीति विभाग में प्रवक्ता बन गये। इसी सेवा के क्रम में जोधपुर विश्व विद्यालय में प्रोफेसर एवं विविध दायित्व निर्वाहक के रूप में ख्याति प्राप्त कर आपने ३० जून १९८८ को अवकाश ग्रहण किया। सिरोही में आप आबू, देलवाड़ा आदि विश्व विख्यात मन्दिरों के ट्रस्ट मण्डल व श्री जैन संघ की कार्यकारिणी के १० वर्ष तक निरन्तर सदस्य रहे । आप नाकोड़ा जैन मन्दिर ट्रस्ट मण्डल के भी सदस्य रहे । आप १९६१ से १९६५ तक जोधपुर जिला भारत सेवक समाज के संगठन मंत्री व क्षेत्रीय समिति के कोषाध्यक्ष रहे। १९६८ से १९७३ तक आपने सरदार उच्च माध्यमिक विद्यालय के मानद् मंत्री पद पर उदात्त सेवा भावना से सराहनीय कार्य किया। डॉ. गांधी ने १९७४ से १९७६ तक जोधपुर जिला भगवान महावीर २५०० वें निर्वाण महोत्सव समिति के मंत्री पद पर भी उल्लेखनीय कार्य किया । आपने १९७६ से १९८१ तक श्री भैरूबाग जैन तीर्थ के अध्यक्ष पद पर अपनी महत्त्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान की। आपने १९६९ में श्री कापरडा जैन तीर्थ स्वर्ण जयंति समिति में भी अपनी सेवाएँ प्रदान की। आप महावीर इन्टरनेशनल चैरीटेबल ट्रस्ट के करीब ५ वर्ष तक मानमंत्री रहे व महावीर धर्मशाला का निर्माण कार्य आपके कुशल देख-रेख में सम्पन्न हुआ, जिसका उद्घाटन २८-१०-१९८४ को राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शिवचरण माथुरजी द्वारा किया गया था। आप सिरोही समाज, जोधपुर के संरक्षक एवं संस्थापक अध्यक्ष के रूप में सिरोही जिले के विकास हेतु सदैव प्रयत्नशील रहे। आप १९७५ से श्री वर्धमान जैन विद्यालय, ओसियां के भी शैक्षणिक परामर्शदाता थे। ३१-३-१९२८ के दिन जन्म लेकर आजीवन सेवा की प्रतिमूर्ति बने रह कर डॉ. अमृतलालजी गांधी ने सेवाकार्य करते-करते ही २३-४-२००७ के दिन दहोत्सर्ग कर दिया । आज डॉ. अमृतलालजी गांधी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके विचार, कार्य, सैद्धान्तिक प्रतिबद्धता, मानव मात्र की सेवा एवं सरल प्रकृति चिरस्मरणीय रहेगी। उनके सुपुत्ररत्न श्री बसंत व श्री सुरेश गांधी ने भी अपने पिता के सेवाधर्म के आदर्शों को और ऊँचाई प्रदान की है। इन्होंने अपने पिताश्री की पुण्य स्मृति में अपनी माताजी श्रीमति छगनकंवर देवी की ईच्छा को साकार करने हेतु जोधपुर उम्मेद हेरीटेज में श्री अमीझरा पार्श्वनाथ जिनालय एवं उपाश्रय का निर्माण भी कराया है। For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *प्राक्कथन* कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में प्रकाशित हो रहे इस १९वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं की आगमिक साहित्य, कर्मसिद्धान्त की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों के अतिरिक्त देशी भाषाओं की रास, कथा, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. जिसमें अज्ञातकर्तृक नास्तिक आस्तिक धर्मप्रमेयसिद्धि खंडनमंडन विचार, रत्नशेखरसूरि रचित प्राकृत छंदकोश, अज्ञातकर्तृक शत्रुजयतीर्थोद्धार प्रशस्ति संग्रह, जयसोम रचित १२ भावना सज्झाय आदि अनेक कृतियाँ संशोधन-संपादन हेतु विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है.. __ जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ विविधस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व परासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पस्तक, कति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत परासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी को आधार रखकर हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. तथा श्रुताराधक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; फलतः हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. ___ प्रतों की प्राथमिक सूचनाओं की कम्प्यूटर में प्रविष्टि तथा सन्दर्भ हेतु पुस्तकें आदि शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमन्दिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है. फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह गई होंगी. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें, जिससे भविष्य में प्रकाशित होनेवाले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल III For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........ji ................... iii अनुक्रमणिका मंगलकामना. प्रकाशकीय........................................... प्राक्कथन.............................. अनुक्रमणिका ......................................................................................................................iv प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत ..... ................................................ V-vi हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण...................... .....vii-viii हस्तप्रत सूची......................... ................................................................१-४७४ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या.... .....४७५-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १. ....४७५-५०५ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २. ......५०६-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ VI एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ 454 पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें. प्रस्तुत खंड १९ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. * प्रत क्रमांक - ७७५५१ से ८१२६५ * इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से इस खंड में __ ३४१२ प्रतों की सूचनाओं का समावेश हुआ है. * समाविष्ट प्रतों में कुल ३९८४ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. * इन परिवारों की कुल ४३८३ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. * सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६१७५ बार आई हैं. IV For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ....... * प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेपवसंकेत* ... कृति नाम के अंत में, विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. (-)........... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में - दर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. (+)..... .. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. ......... कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. (#). प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. (s).......... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में ऊर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--)......... आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप........... अपभ्रंश (कृति भाषा) अंति:......... अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ............ आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप............ प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. प. विद्वान) उपा.......... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ............. ऋषि (विद्वान स्वरूप) क............. कवि (विद्वान स्वरूप) कुं.............कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं....... मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकति विशेष में. कुल पे....... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत.......... प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को............ कोष्टक (कृति स्वरूप) ग.............गणि (विद्वान स्वरूप) गडी.......... गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य........... गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गाथा (कृति परिमाण) गु........... गुजराती (कृति भाषा) गुटका........बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) क्वचित् गोटका शब्द भी प्रयुक्त होता है. For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir य............. देना....... गही...........गृहात. आदान-प्रदान गहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला | प्रे........... प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) (प्र.ले. पु. विद्वान) बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) गोल.......... गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) म............. मराठी (कृति भाषा) ग्रं............. ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) महा.......... महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा) ..जैन कृति (कृति परिशिष्ट) मा............ मागधी प्राकृत (कृति भाषा) जै.क.........जैन कवि (विद्वान स्वरूप) मा.गु......... मारुगुर्जर (कृति भाषा) जैदे...........जैन देवनागरी (प्रत लिपि) मु......... मुनि (विद्वान स्वरूप) ते............. जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) ........... मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) ........... ... आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. पु. | मूपू........... जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) विद्वान) यंत्र (कृति स्वरूप) दि........... जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) रा............. राजा (विद्वान स्वरूप) देवनागरी (प्रत लिपि) रा............. राजस्थानी (कृति भाषा) पं............. पंजाबी (कृति भाषा) राज्यकाल... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. पं............ पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) राज्ये......... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का पठ........... पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई | लेखन हुआ हो. गई हो. (प्र.ले. पु. विद्वान) लिख......... प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) प+ग......... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) पद्य........... पद्यबद्ध (कृति प्रकार) वा............ वाचक (विद्वान स्वरूप) पा. ........... पाठक (विद्वान स्वरूप) वि.............विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्र. ले. पु., कृति पु. हिं......... पुरानी हिंदी (कृति भाषा) रचना वर्ष) प. वि......... पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व | विक्र..........विक्रेता - प्रत का. (प्र.ले. पु. विद्वान) कृतिमाहिती स्तर) | वी............. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि. 'श. आदि २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर वी सदी. के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति पृ............. पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकति स्तर रचना वर्ष) पर) वै............ वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) पे. नाम...... प्रतगत पेटाकृति नाम व्या.प........ व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र.ले. पु. विद्वान) पे. वि........ प्रतगत पेटाकृति विशेष श............. शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र.ले. पु. कृति रचना वर्ष) पै.............. पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) श्राव.......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) प्र. वि......... प्रत विशेष. श्रावि......... श्राविका (विद्वान स्वरूप) प्रले........... प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान) पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) श्वे.............जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की-(प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) | संस्कृत (कृति भाषा) ('सामान्य, मध्यम आदि उपलब्धता सूचक.) सम...........समर्पक, ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. प्र.ले.श्लो.... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित (प्र. ले. पु. विद्वान) प्रतिलेखन श्लोक (जलात् क्षेत्... इत्यादि) साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) प्र. सं......... प्रति संशोधक स्था.......... जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) प्रा............. प्राकृत (कृति भाषा) | हिं........... हिंदी (कृति भाषा) For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (* सुकृत केसहभागी *) * हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली * 0000000000000000000OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), |१७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद पालडी अहमदाबाद | १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, सुरत २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार, अहमदाबाद १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ । अहमदाबाद ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई | २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, आरे रोड, गोरेगाँव मुंबई वालकेश्वर मुंबई |२१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ ||२२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, बेंग्लोर ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ | २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया || २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई ९.जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका |२६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद | बावन जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल मुंबई | २७. श्री जैन पंच महाजन मांडाणी (राज.) १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट मुंबई |२८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ |१३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ मेवानगर (राज.) __ अमेरिका, 'जैना' हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका | २९. श्री संभवनाथ जैन ट्रस्ट बिसलपुर (राज.) १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन मुंबई ३१. श्री पुष्पदंत श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई ३२. श्री सेटेलाईट श्वे पृ. जैन संघ अहमदाबाद १६. श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ |३३. श्री वेपेरी श्वे. मू. पू. जैन संघ । चेन्नई जैन देरासर मार्ग, सांताक्रुज (वे.) मुंबई | ३४. श्री ऋषभदेव श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद मुंबई मुंबई मुंबई * हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली * १. श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर २. श्री रांदेर रोड जैन संघ ३.बी. एम. एफ. के. सदन - हस्ते श्री भरतकुमार एम. शाह ४. श्री सीमंधरस्वामी जिनमंदिर पेढी गांधीरोड, पझल, चेन्नई सुरत अहमदाबाद महेसाणा VII For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (* सुकृत के सहभागी * ) हस्तप्रत सूचीकरण में 9 से १९ भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार : सन्स नोवी, हाल शिवगंज (राज.) २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई । एस. देवराजजी जैन चेन्नई ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा मोहनलालजी रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ९. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद १०. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार कोलकाता १२. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई १३. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. १४. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन), यु.एस.ए. १५. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १६. श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज, पायधुनी १७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर १८. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १९. श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार सिरोही-जोधपुर मुंबई * सादर समर्पण* कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में... जिनके द्वारा यह श्रुतपरंपरा अक्षुण्ण रही. ००० VIII For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ श्री महावीराय नमः ॥ ।। श्री बुद्धि-कीर्ति कैलास-मुबोध-मनोहर-कल्याण- पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७७५५१ (+) सिद्धांतरलिका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी: अनिट्कारिका, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२.५, १२४३५). सिद्धांतनिका व्याकरण अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, आदि (१) अनिट्स्वरांतो भवतीति, (२) स्वरांतो धातुरनिट्; अंतिः एकः जांता: पंचदश, (वि. मूल पाठ प्रतीकात्मक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७७५५३. (#) कातंत्रविभ्रम सूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. त्रिपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X१०.५, १७x४१-६६). हैमविभ्रम, सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १० तक लिखा है.) हैमविभ्रम-अवचूरि, ग. चारित्रसिंह, सं., गद्य, वि. १६२५, आदि: नत्वा जिनेंद्र, अंति: (-), पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७७५५६. दशवैकालिकसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२६.५४१३, १९४४८). दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भूमिका मात्र है.) ७७५५७ (+) सूयगडांगसूत्र- अध्ययन ६ व तंत्रमंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : सू० सूत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११.५, ९x४०). १. पे नाम, सूयगडांगसूत्र अध्ययन ६, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्ययन-६ की गाथा ४७ अपूर्ण से है.) २. पे नाम तंत्रमंत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ७७५५८. चंद्रप्रज्ञप्ति गाथा- नमिऊण मंत्र व पेटपीडा निवारण मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५५११, ३X५० ). १. पे नाम चंद्रप्रज्ञप्ति गाथा नमिऊण मंत्र सह टवार्थ व बालावबोध, पृ. १अ. संपूर्ण. चंद्रप्रज्ञप्ति गाथा- नमिकण मंत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि नमिउण असुर सुर गरुल, अंति: उवज्झाय सव्वसाहू व गाधा-१, (वि. यह कृति विशेष टबा व बालावबोध के साथ दो बार लिखि गई है.) चंद्रप्रज्ञप्ति गाथा-नमिऊण मंत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ न० नमसकार करीने ५१; अंति: मानसी दुख जाय सही. चंद्रप्रज्ञप्ति गाथा- नमिऊण मंत्र- बालावबोध, मा.गु. गद्य, आदि (-): अंति: (-), (वि. आवश्यतानुसार बालावबोध दिया गया है.) २. पे नाम, पेटपीडा निवारण मंत्र. पू. १आ, संपूर्ण मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह", उ., पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पग, आदिः ॐ नमो आकाश की पुला; अंति: पावे पेटपीडा जाय. ३. पे. नाम पद्मावती मंत्र. पू. १आ, संपूर्ण, पद्मावतीदेवी मंत्र. सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवती पद्मावती, अंतिः श्री पद्मावती नमः. ७७५५९ (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-२२ (१ से २२ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे., ( २६११, ११४४२). For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६६ अपूर्ण से ७६ तक है., वि. सचित्र व सारिणीयुक्त) ७७५६०. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-३६, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी खंडित है., जैदे., (२५.५४११.५, १६४५५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., __ अध्ययन-३६, गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) । ७७५६२. (+) मौनएकादशीपर्व व्याख्यानद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४१२, २३४५७). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति-व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: (१)अरस्यप्रवृज्यानमिजिन, (२)क्षितौ पृथिव्यां अवः; अंति: तान्प्रव्राजितवानिति. २.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, प. २अ-२आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: राजगृहिपुर्यां समव; अंति: (-), (पू.वि. सुव्रत श्रेष्ठि की आराधना से चौर के स्तंभित व राजा के प्रभावित होने का प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७७५६३. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १२४३४). १. पे. नाम. बाट बहता जीव के २५ बोल, पृ. ५अ, संपूर्ण. २५ बोल-त्रस जीव, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै सरीर; अंति: वहती जीव मैं पावै. २. पे. नाम. २१ औपदेशिक बोल, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोल धनवंतसुं; अंति: बाद न कीजै २१. ७७५६५. १०८ स्नात्र विधि व आगतिकाष्टोत्तर विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १७४३७). १. पे. नाम. १०८ स्नात्र विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सोपारी ४३२ खारिक ४३२; अंति: च कर्त्तव्यमिति. २. पे. नाम. आगतिकाष्टोत्तर विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टोत्तरी स्नात्र विधि-आगतिक, सं., गद्य, आदि: इहापि सर्वोपि स्नात; अंति: कीजइ यथाशक्ति कीजइ. ७७५६६. पट्टावली सज्झाय व महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११.५, १६४५०). १.पे. नाम. पट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण. पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतो सुहहेउ; अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-२१. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरोदितवाचश्च; अंति: ददतां शिवसंपदः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षसागर, सं., पद्य, आदि: जयविभोवृषभोवृषभांकित; अंति: लाभसुसागरहर्ष कृत्, श्लोक-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रविसागर, सं., पद्य, आदि: प्रणमामिमुदात्रिशला; अंति: यद्गुरुशिष्यसुखम, श्लोक-४. ७७५६७. (4) पगामसज्झायसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४४३). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ७७५६८. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५४, भाद्रपद कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १२३-१२२(१ से १२२)=१, ले.स्थल. पोटला, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., उपसंहार अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तेहनउ आठमु अध्यैनइ, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३ ७७५६९ (+४) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १३x४९). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तवन गाथा ३२ अपूर्ण तक है.) ७७५७०. पार्श्वजिन स्तोत्र व औपदेशिक दूहा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-७ (१ से ७)= १. कुल पे. २, प्रले. ग. गौतमकुशल; पठ. मु. उमेदचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (१२५५) कागद थोडो हित घणो, जीवे. (२४.५४११.५ १२४३६) १. पे नाम पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि (-); अंति कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम औपदेशिक दूहा संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह", प्रा.मा.गु.से., पद्य, आदि सगुण एक गुण आदरे; अति: पहेला नेन करत, गाथा-२. ७७५७१. पापबुद्धिनृप धर्मबुद्धिमंत्री कक्षा अपूर्ण, वि. १९६८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १ ले. स्थल, उदयपुर, प्र.वि. अंत में उल्लेख है कि- "ए परत रास साटे लिधी छै सं. १७६८ वर्ष पं. राम पासै पन्यानई वाचनार्थमितिश्रेयः राजद्रंग मध्ये " नागोरीसराय मध्येत्ति", दे., (२५.५X११, १६x४८). " पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथा, सं. गद्य, आदि (-); अति मोक्षं जग्मषु, (पू.वि. अंत के पत्र हैं. "गतं श्रुत्वा पापबुद्धिनृपो गढरोधं कृत्वा स्थितः " पाठांश से है.) ७७५७२. (+) धम्मोमंगल सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : धम्मोमं., पदच्छेद लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, १७x४१). दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि धम्मो मंगलमुक्किट्ठे अंति साहुणोत्तम गाथा-५, संपूर्ण दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थाओ रागद्वेष; अंति: इसो ० क ० मह, संपूर्ण ७७५७४. (+) अणुत्तरोववाईसूत्र व भगवती अधिकार, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२ (१,४)=४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: , पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१०.५, १६x४०). १. पे नाम. अणुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. अणु० सूत्र., अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि (-); अति जहा धम्मका णेयव्वा, अध्याय-३३, ग्रं. १९२, (पू.वि. वर्ग-१, अध्ययन १ सूत्र- १ अपूर्ण से वर्ग-३ अध्ययन १ सूत्र- १० अपूर्ण तक व सूत्र- ११ अपूर्ण से है.) " २. पे. नाम. भगवतीसूत्र-अयमंतामुनि अधिकार, पृ. ६आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, ७७५७५. (#) ६२ बोल गाथा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, ३३X१९). ६२ बोल गाथा, प्रा., पद्य, आदि गइ इंदिए काए जोए वेए, अंति भवसम्मे सन्नि आहारे, गाधा-१, संपूर्ण. ६२ बोल गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: देवगतिमांहि जीवना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. बोल- ५३ अपूर्ण त है.) ७७५७७. (+४) चउसरण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ ( २ ) -२, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ११४३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्म, वि. ११वी, आदि (-); अति कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा ६३, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा- २३ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७५७८. (+#) नवतत्त्व प्रकरण व नवकारमहामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, ११४२३). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. हीरादे, प्र.ले.पु. सामान्य. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परिअटठो चेव संसारो, गाथा-३७. २. पे. नाम. नवकारमहामंत्र सह बालावबोध, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पद है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रतिइ माहरु; अंति: (-). ७७५७९ पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१२, १५४४५). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-प्रश्नफल २१३ अपूर्ण तक है.) ७७५८० (+) भक्तामर स्तोत्र की गणाकरीय टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक-५ अनुमानित हैं., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, २३४६०). भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: सम्यग् जिनपादयुगं; अंति: (-), (पू.वि. काव्य-२० की टीका अपूर्ण से २६ की टीका अपूर्ण तक व ३४ की टीका अपूर्ण के बाद का पाठ नहीं है., वि. मूल पाठ प्रतीकात्मक लिखा है. टीका अंतर्गत कथाओं को छोडकर मात्र टीका लिखी गई है.) ७७५८१. वंदित्तुसूत्र सह टबार्थ व चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. सोनपालसर, प्रले. मु. दयाराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडीः श्रावकवंदितू., जैदे., (२६.५४११, १५४४८). १. पे. नाम, वंदित्तुसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. वंदित्तुसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदितुं कहितां वादी; अंति: नमस्कार करीनै. २. पे. नाम. चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदं; अंति: (-), (पू.वि. "अन्नसामायिकस्य अष्टौनामानि अष्टौउदाहरणानि च प्राह सामा" पाठांश तक है.) ७७५८२ (+#) सिंदरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १४४३९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४५ अपूर्ण तक ७७५८३. मोक्ष पेडी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मंडपदुर्ग, प्रले. मु. लाभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १५४३८). मोक्षमार्ग पयडी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: इक्क समैं रुचिवंतनों; अंति: यों मूढ न समझै लेस, गाथा-४३. ७७५८४. जिनसहस्रनाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३७). अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-२, श्लोक-१० अपूर्ण तक है.) ७७५८५ (+) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६५८, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७-३(१ से २,५)=४, ले.स्थल. अहमादाबाद, प्रले. मु. झांझण ऋषि; पठ. मु. लालजी ऋषि (गुरु मु. झांझण ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, ८x१८-२०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-११ अपूर्ण से २७ अपूर्ण तक व ३४ अपूर्ण से है.) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: समुपैति आवइ. ७७५८६. चित्रसेनपद्मावती चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १३४३२). For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ७७५८७. जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, १३४४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहतां तीने भुवन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ का ___ बालावबोध अपूर्ण तक है.) ७७५८८. (+) सिद्धाचल स्तवन, औपदेशिक पद व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, कुल पे. ३,प्र.वि. हुंडी:चैत्यवंदन, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ९-१२४२९-४५). १.पे. नाम, तीर्थंकर चैत्यवंदन, पृ. १६अ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. जसकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: एक थोडी थोडी थोडी; अंति: जसकीरति०कोडा कोडी रे, गाथा-३. ३.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण, वि. १८८१, आषाढ़ कृष्ण, ३, ले.स्थल. सीरीया, प्रले.पं. नायकविजय (गुरु मु. गुलाबविजय); गुपि. मु. गुलाबविजय; पठ. श्राव. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. पं. ऋद्धिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: मरुदेव्यानंद लखमुखचं; अंति: जस गुणरीध जपेरी, गाथा-१०. ७७५८९. बारसासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडीः बारेसे०., जैदे., (२७४११.५, १०४२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्वप्न विषयक देवानंदा एवं ऋषभदत्त ब्राह्मण संवाद प्रसंग अपूर्ण से इन्द्र वर्णन प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७७५९०. विचार संग्रह, प्रत्याख्यान ४९ भांगा व सम्यक्त्व अष्टभंगी विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १४४४८). १. पे. नाम. शरीरोगाहणादि विचार संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सरीरोगाहाण संघयण; अंतिः परं सद्दहइ नहीं. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान ४९ भांगा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: एवं अईए काले ४९; अंति: कालत्तएणं मुणेयव्वं. ३.पे. नाम, ज्ञान आदर पालन अष्टभंगी, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: न जाणइ न आदरइ न पालइ; अंति: एसिं कम्मेण उदाहरणा. ७७५९१ (+) खामणा विचार, अक्षौहिणीसेना व गाथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १२-१४४३९-५३). १. पे. नाम. खामणा विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: ततो वंदनकदानपुरस्सरं; अंति: पणय रिसो खामेइत्ति. २. पे. नाम. अक्षौहिणीसेना प्रमाण, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: पत्तिः द्विपः १ रथः; अंति: संखा जोहाण निदिट्ठा. ३. पे. नाम, संख्यावाचीशब्द श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: चंद्र१ भूत५ ग्रहा९; अंति: कालचंद्रकाः, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मेष१ कर्कर तुला३; अंति: मीने च १२ घातकः, श्लोक-१. ५. पे. नाम. ११ अंग श्लोकप्रमाणादि गाथा संग्रह, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: दो कोडाकोडीओ पंचासी; अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वजिन, सुपार्श्वजिन फणा संख्या विचार गाथा तक है.) ७७५९२. (+#) स्तुतिचतुर्विंशतिका सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, १४४४८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शीतलजिन स्तुति से अनंतजिन स्तुति तक स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७५९३. (#) कल्पसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १०८-१०७(१ से १०७)=१, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ७X२५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. "जावसव्वदुक्खाणमंतं करंति" पाठ से है.) कल्पसूत्र-अवचूरि *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: पारतंत्र्यमभिहितम्. ७७५९४. (+#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५९-१५६(१ से १४८,१५० से १५१,१५३ से १५८)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडीः भगवतीसूत्रं. पत्रांक अनुमानित दिया गया हैं., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७X११.५, १६४४१). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-९ उद्देशक-३२ के अंतिम सूत्र के कुछेक भाग से जामाली द्वारा शिष्यों को संथारा आदेश प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ७७५९५. सूयगडांगसुत्त-श्रुतस्कंध-२, अध्ययन-१, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:सूग०सूत्र, जैदे., (२७.५४११, १३४४४). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "अपुरिसेदक्खिणातो दिसातो आगंमतंपुक्खरिणी" तक पाठ है.) ७७५९७. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नाममाला, पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४११, १३४३७). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कांड-१, गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७७६०१. (#) विविधविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४६६). विविध विचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदि: बत्तीसं कवलाहारो; अंति: (-), (पू.वि. पंचविध कीटज सूत्राधिकार अपूर्ण तक है.) ७७६०२. बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र-८ कर्मविषये, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, २०४९१). बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र-८ कर्मविषये, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. १६ कायस्थिति से २६ मोहनीय बंधोदय जघन्य उत्कृष्ट तक है.) ७७६०३. ऋषभदेव, साधारणजिन नमस्कार व सीमंधरजिन दुहा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, १५४५०). १. पे. नाम. अध्यात्म समय ऋषभदेव नमस्कार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ आदिजिन स्तवन-अध्यात्म समय, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मानवि० नाठा सघला दुख, ___ गाथा-५, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. साधारणजिन नमस्कार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रमुख सवे; अंति: करि ऋषभ कहि ते धन्य, गाथा-७. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन दहा, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन खमासमण दहा, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीशी जिन नमु; अंति: साध सवे निशिदीस, गाथा-२. ७७६०४. (+) विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १८०६, आषाढ़ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४१२, ११४४९). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८०४, आदि: (-); अंति: वीसुध०गुण गाआ उलासजी, स्तवन-२०, (पू.वि. स्तवन-२० की गाथा-१ अपूर्ण से है.) ७७६०५ (+#) लघुशांति व वृद्धशांति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-२५(१ से २५)=२, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४४४). १. पे. नाम, लघुशांति स्तोत्र, पृ. २६अ-२७आ, संपूर्ण. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ शांति; अंति: शांति० स्तोत्र कह्यो. २. पे. नाम. वृद्धशांति स्तोत्र, पृ. २७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं... बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भो भो अरे अरे भव्या; अंति: (-). ७७६०६. जयपताकायंत्र कल्प, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४११, १३४५३). जयपताकायंत्र कल्प, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वमंत्रप्रतिष्ठाना; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक है., वि. साथ में यंत्र भी दिया गया है.) ७७६०७. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,१९४५४). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ से १८ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७६०८. (+#) लघक्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११,११४३८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८७ अपूर्ण से २०० अपूर्ण तक है.) ७७६०९ (#) चतःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४४०). चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वइ सहाणं, गाथा-६३. ७७६१० (+) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, कार्तिक शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, ले.स्थल. भृगकच्छ, प्रले. ग. वीरसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११,७४४०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-९२, (पू.वि. गाथा-८७ अपूर्ण से है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: पामे संदेह रहित. ७७६११ (+) पच्चक्खाणपारवा सूत्र व पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ३०x२४). For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पच्चक्खाण पारने का सूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमुकारसि पोरसि साढपो; अंति: मिच्छामि दक्कडं. २.पे. नाम. पौषध विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम आगलथी इरियावहि; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ७७६१२. (#) नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १४४५). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. पद-५ अपूर्ण तक है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: नमो नमस्कार म्हारो; अंति: (-). ७७६१३. (+) प्रास्ताविक गाथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३-१६४५०-५४). १. पे. नाम. प्रास्ताविक दूहा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पूज्य पूज्या दयादानं; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः, गाथा-२२, (वि. बीच-बीच में गाथार्थ व टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. सामान्य जैन कृति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ७७६१४. (4) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७२, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: कल्याणमंदिर स्तोत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,११४३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ७७६१५. दशार्णभद्र चौढालीयौ, अपूर्ण, वि. १८४६, श्रावण कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. विदास, जैदे., (२५४१०.५, १६४३१). दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: (-); अंति: कुसल सीस गुण गाइयै, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-१ अपूर्ण से है.) ७७६१६ (+) दिगंबरजिनेश्वर पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४९). साधारणजिन पूजा, सं., पद्य, आदि: ॐनमो सिद्धेभ्यो; अंति: (-), (पू.वि. फल पूजा अपूर्ण तक है व बीच के पाठ नहीं ७७६१७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ३४३६-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४, सूत्र-१ अपूर्ण तक है व बीच के पाठ नहीं हैं.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मो क०दुर्गति पडता; अंति: (-). ७७६१८. पुष्पांजली स्तोत्र व दहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१०.५, १३४४६). १. पे. नाम. पुष्पांजली स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: केवललोकितलोकालोक; अंति: मुक्तिलयकुते जयजय, श्लोक-१०. २. पे. नाम. साधारणजिन दूहा, पृ. १आ, संपूर्ण. दहा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दुख हरनि जिनेंद्रा; अंति: कथव को भयो सावधान, गाथा-१. ७७६१९. बाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४४, माघ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४४४१). For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल शुक्ल ध्याने; अंति: मोहन० समकित सिंधुरा, गाथा-६. ७७६२० मिगसिरसदि एकादसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११)=१, जैदे., (२५.५४१२.५, ७-११४३५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, श्राव. नंदकुमार, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: नंदकुमार० धरम अवतार, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ७७६२१. (4) पार्श्वजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ९४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: मुजरो थे मानो हो; अंति: मोहन सेवक जाणो हो, गाथा-५. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वृथा फलं हायनमत्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सकलकुशलवल्ली अपूर्ण तक है., वि. वर्षफल श्लोक व सकलकुशलवल्ली आदि अव्यवस्थित रूप से लिखा गया ७७६२२. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १८४३२). महावीरजिन स्तवन-कुंडलपुर, मु. जतीदास, पुहि., पद्य, आदि: कुंडलपुर सुवावणो; अंति: सुखपाव जतीदास कवाव, गाथा-१०. ७७६२३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ४४४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ सूत्र-१ अपूर्ण मात्र दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७६२४. (+) पगामसज्झायसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४२९). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. "बोहिंउवसंपज्जा" पाठ तक है, बीच के पाठांश नहीं हैं.) ७७६२५. महावीरजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०, २०४६०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिण नाह बहु भावि; अंति: पासचंद हरखै कहीयै, गाथा-२५. २.पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. चतुर्भुज, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: श्रीरिषभजिणंद जुहारी; अंति: चतुर आवागमण निवारोजी, गाथा-११. ७७६२६. (+) सिद्धचक्र स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४३३). सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४, गाथा-२५, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ढाल-२, गाथा-६ अपूर्ण से है.) ७७६२७. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, जैदे., (२५४११.५, १२४३०). रात्रिभोजन त्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरमनो सार ते कही; अंति: पाले तस धन अवतारो रे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७६२८. धन्नाशालीभद्र सझाय व लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. सरूपचंद ऋषि; अन्य. मु. विवेकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४४०). १.पे. नाम. शालिभद्र धन्ना सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अजिया मुनि० वेभारगिर; अंति: उदय० भवजल तीर रे, गाथा-७. २. पे. नाम. कुगुरु लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. __मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तजु तजु मे अन कगुरु; अंति: कुगुरुसंग नीवारी हे, गाथा-५. ७७६२९ (+) पंचमअंग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४२९). भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदिः धन्य कुंवर त्रिसला; अंति: सुणीइं भगवतीसूत्र हो, गाथा-१४. ७७६३०. सिंदूरप्रकर सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७४१२.५, १५४३६). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम श्लोक है.) सिंदरप्रकर-बालावबोध कथा, पा. राजशील, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: श्रीसारदाचरणयुग्ममती; अंति: (-). ७७६३१. कर्मग्रंथ २ से ४, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडीः कर्मग्रंथपत्र., जैदे., (२५४११, १६४५६). १. पे. नाम. कर्मस्तव द्वितीयकर्मग्रंथ, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: वंदियं नमहं तं वीरं, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-३१ से है.) २. पे. नाम. बंधस्वामित्व तृतीयकर्मग्रंथ, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंद०कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२५. ३. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: (-), (प.वि. गाथा-१ तक है.) ७७६३२. वंदेतुसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२.५, ११४२९). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ तक है.) ७७६३३. नेमराजिमती संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १७X४३). नेमराजिमती संवाद, म. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठ करी हरीय मनावीयै; अंति: पद्मणी प्रीतम हाथ रे, गाथा-३२, (वि. प्रतिलेखक ने कर्ता नाम वाली गाथा नहीं लिखी है.) ७७६३४. उत्तराध्ययनसूत्र की सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, १५४५३). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्त धरी; अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय-५ तक है.) ७७६३५ (+) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३१). १.पे. नाम. पाक्षिक चातुर्मासिक संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि संक्षिप्त, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम विधि दैवसिकनी; अंति: वंदामिजिणेचउवीसं कही. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: ऊठौने म्हारां आतम; अंति: वरतो सिध वधाई रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन चोमासुं स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारा सम झावो मारे; अंति: मिलवानो दिल काचु, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org ४. पे. नाम जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दादो परतिख देवता; अंति: सारेज्यो सगला काज, गाथा-५. ७७६३६. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७- २५ (१ से २४, २६) = २, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५X११, ६X३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-). (पू.वि. भगवान महावीर का गर्भपरिवर्तन प्रसंग अपूर्ण "समएयमाणत्तिव" से "कुक्षिसिगब्भताए" तक व बीच-बीच के पाठ हैं.) कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७६३७. निश्चयव्यवहार सज्झाय, वैराग्य गीत व आध्यात्मिक झकडी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५x१०.५, ९८४४१). १. पे. नाम. निश्चयव्यवहार सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु, पद्य, आदि श्रीजिनवर रे देखना अति वीतराग एणि परे कहे, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) २. पे नाम, वैराग्य गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहि., पद्य, आदि एक काया अरु कामनी, अंतिः स्वारथ को संसार, गाथा ५. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक झकडी, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक जकडी, मु. जिनराज, पुहिं, पद्य, आदि: कबहुं न कीजै रे माई अति बहस्यो खबर गहेसी, गाथा- ३. ७७६३८. (-) गणधरवंदन व भगवतीसूत्र गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., .दे.. (२६४१२. १४x२८-३४). १. पे. नाम गणधरबंदन गहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे कामनी कहे सुणो; अंति: वीर सासन सिणगार रे, गाथा- ८. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र गहुली, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहियर सुणीये रे भगवत; अंति: मंगल कोटि वधाई, गाथा-७. ७७६३९ धन्ना अणगार व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२५x११, १२x४०). " " १. पे. नाम. धन्ना अणगार सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. . श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचनै वैरागीयो हो; अंति: अमां होवै जयजयकार, गाथा-१२. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " औपदेशिक सज्झाय-अमलवर्जनविषये, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी मन धरी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ७७६४० (+) धर्मनाथनु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०४ श्रावण शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, पालणपुर, प्रले. श्राव. जीतमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६१२.५ १५X३४). " धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि हां रे मारे धरमजिणंद, अंति मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-७. ७७६४१. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८६३, आषाढ कृष्ण, १ रविवार श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. शुद्धवंतीनगर, प्रले. पं. माणिक्यविजय (गुरु पं. धनविजय) गुपि. पं. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५४१२, १३४४४-४७). , ११ पट्टावली- तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमानस्वामी पट; अंति: तच्छिष्य माणिक्यविजय. ७७६४२. (*) परस्त्री नियमविषये कुलध्वज कथा संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, नौतनपुर, पठ, मु. कुंअरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १८x३९). For Private and Personal Use Only कुलध्वजकुमार कथा-परस्त्री त्यागविषये, सं., पद्य, आदि: जंबूद्वीपाभिधे; अंतिः क्रमान्निर्वाणमायसः, श्लोक-१६८. ७७६४३. पार्श्वजिन स्तवनइच, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, वे. (२७४१२.५, ११४३६). Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. थंभणपार्श्वनाथजी का वृद्धि स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुंरे पास; अंति: आणी कुशललाभ पयंपए, ढाल-५, गाथा-१८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. ___ मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण पीयारा जी हो; अंति: चंद० प्रभु सुखवास, गाथा-५. ७७६४४. (+) नवपदगुण जाप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १५४१९). नवपद गुण, सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष प्राति; अंति: भावोत्सर्गतपसे नमः. ७७६४५ (+) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १५४३६). १. पे. नाम. जिनोपदिष्ट विशिष्टविचार स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: जिण चोवीस नमी मन; अंति: सिद्धिरमणी जिमवरो, गाथा-१९. २. पे. नाम. महावीरदेव चोत्रीसअतिसय गीत, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिण नाह बहु भावि; अंति: पासचंद हरखै कहीये, गाथा-२५. ३. पे. नाम. सुपार्श्वजिन ३५ वाणीगुण गर्भित स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन-मांडवगढ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिण सुपास नमु गढमंडव; अंति: पासचंदसूरि इम ऊचरै, गाथा-१५. ४. पे. नाम. श्रावक बारव्रतकुलक, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रावकना व्रत सुणिज; अंति: समयसुंदर० नित सांभलो, गाथा-१५. ५. पे. नाम. थुलीभद्र सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि: थुलभद्र चतुर चोमासो; अंति: नमे लेबो पाए, गाथा-५. ६. पे. नाम. कुगुरुत्याग पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. कुगुरूत्याग पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तजु तजु में उन; अंति: कुगुरुसंग खुवारि है, गाथा-५. ७७६४६. (+) पंचकारण स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४२८). ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. ढाल-६, गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७७६४७. गौतमस्वामीनो रास, संपूर्ण, वि. १९१७, चैत्र शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. चतुर्भुज ब्राह्मण; पठ. श्रावि. राणबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, १३४४६). गौतमस्वामी रास-बृहत्, मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर चरणकमल कमल; अंति: उदयवंत मुनि इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-५२. ७७६४८. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८८०, ८, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. प्रतापगढ, प्रले. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४३६). महावीरजिनशासने प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, सं., गद्य, आदि: समण भगवंत श्रीमहावीर; अंति: ए समाचार रूडी जाणवी. ७७६४९. होलिका कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: होलीव्याख्यान., दे., (२५४११.५, ९४३३). । होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक-६५. ७७६५० (+) कंसकृष्ण लावणी व औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११,११४३५). For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १.पे. नाम. कंसकृष्ण विवरण लावणी, प. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९२५, कार्तिक शुक्ल, १०,ले.स्थल. मोरबी. म. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: हा रे गाफल मति रहे; अंति: वनेचंद० अतहि आणंद, गाथा-४४. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अरे भववासी जीव जड; अंति: राख साचे भगवान कू, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मीत्र रहे मुख मुडी; अंति: (-). ७७६५३. अक्षरबत्रीसी व प्रस्ताविक दोहासंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: प्रस्ताविक दोहा., दे., (२४.५४११, ९४३३). १. पे. नाम, अक्षरबत्रीशी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. म. हिम्मतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: कक्का ते किरिया करो; अंति: ते मुनि हिम्मत जाण, गाथा-३५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पहेलुं सुख ते जाते; अंति: गुबई चढवू ऊंट, गाथा-१३. ७७६५४.(+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुडी: उत्रादिनजि०, संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ७४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-२३ अपूर्ण से अध्ययन-२ ___ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७६५५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह लेशार्थदीपिका टीका व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४-८३(१ से ८३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६x४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४० से ५० तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७६५६. उपदेश बत्तीसी व समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४११.५, १६x४८). १. पे. नाम, उपदेशबत्तीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: आतमराम सयाने तूं; अंति: सदगुरु शीख सुणीजै, गाथा-३२. २. पे. नाम. समकितना ६७ बोलनी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) । ७७६५७. (+#) औपदेशिक गाथा संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(२,४)=४, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, ११४३६). औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: पूआ जिणंदेसु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६५ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) औपदेशिक गाथा संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवने मोक्ष जातां; अंति: (-). ७७६५८.(#) साधुप्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण, वि. १८६३, आषाढ़ कृष्ण, ३०, सोमवार, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, ले.स्थल. खारीया भांणजीरा, प्रले. मु. माणिकविजय; पठ. मु. नेमीचंद (गुरु मु. माणिकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: साधुरिवंदीतु., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४२९). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. "इड्ढीगारवेणं रस्सगारवेणं सायागारवेणं" पाठ से है तथा "बत्तीसाए जोगस्संग" पाठ से "जं च न पडिक्कमामि" पाठ तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७६५९ (4) महासत्वमहासती कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ११४३५). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ७७६६०. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१,३,५)=३, प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११४३७). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "इच्छामिखमासमणो वंदिउं" पाठ से "संसारदावानल" स्तुति अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ७७६६१ (+) लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९०३, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. ग. रविविजय (तपागच्छ); पठ. श्रावि. रतनकुंवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४११.५, ११४२३). लघशांति, आ. मानदेवसरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१५ अपूर्ण से है.) ७७६६२ (+) वैराग्यसूक्तगाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ४४२७). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारंमि क० संसार छे; अंति: (-). ७७६६३. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, ३४३३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से २३ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७७६६४. लघुसंग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, जैदे., (२५४१२, ३४३१). लघसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: रइया हरिभद्दसरीहिं, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सूरिहिं क० आचार्ये. ७७६६५ (+) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९०, आषाढ़ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पटियाला, प्रले. ऋ. लाभचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ८x२९). पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: सघनघनांजन मेचक; अंति: पद्माधरणेंद्र कृतसेव, श्लोक-६. ७७६६६. प्रभावतीगुटिका कल्प, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १६४५१). प्रभावतीगुटीका कल्प, मा.गु., गद्य, आदि: हलद्र १ नींबपत्र २; अंति: (-), (पू.वि. ज्वरनिदान विधि तक है.) ७७६६९ मोक्षमार्ग अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: मोषमारग., जैदे., (२४४१२, १७४३७). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा मोक्षमार्ग अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: कएरेमग्गे अक्खाते; अंति: केवलिणोमयं त्ति बेमि, गाथा-३८. ७७६७०. (+) नमीपवज्जाज्झयण, अपूर्ण, वि. १९७२, पौष कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, प्र.वि. हुंडी: वीरत्थु न०, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४११.५, १३४३९).. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन- ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: नमीरायरिसि त्ति बेमि, ___ गाथा-६२, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-२ अपूर्ण से है.) ७७६७१. (+) दशवकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी: दसवैका०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ५४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२, गाथा-९ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरुप मंगलिक; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७७६७२. (+) खरतरगच्छ पट्टावली व कल्पसूत्र व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २- १ (१) = १ कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२४४११, ९३१). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 १. पे. नाम. पट्टावली खरतरगच्छीय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अंति: श्रीगीतमस्तान्मुदि:, (पू.वि. "वर्षवेदहुतासनद्विपमिते" पाठ से है.) २. पे. नाम. कल्पसूत्र व्याख्यान व कथा, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहुं; अंति: (-), (पू.वि. पीठिका मात्र है.) ७७६७३. वंकचूल दृष्टांत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., ( २४.५x१२.५, ६x२२). वंकचूल दृष्टांत, प्रा., सं., गद्य, आदि: मंसाईणं नियमं धीमं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र किंचित् प्रारम्भिक अंश है.) ७७६७४ अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२४.५x१२.५, ६४१४). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्त्ता; अंति: (-), (पू. वि. मात्र प्रारंभिक किंचित् अंश है.) ७७६७५. चक्रेश्वरी स्तोत्र व ऋद्धिसिद्धि मंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २- १ (१) -१, कुल पे. २, जैदे. (२६४१२.५, ९३२). 1 ', "" १. पे. नाम. चक्रेश्वरी स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि (-); अति चक्रदेव्या स्तवंति, श्लोक ९ (पू.वि. मात्र अन्तिम श्लोक है.) २. पे. नाम ऋद्धिसिद्धि मंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि अड्डे मट्टे ॐ ह्रीं अंति: स्तंभय ठः ठः स्वाहा. ७७६७६. पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है. दे. (२४.५X१२.५, ८४३३). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उगाए सरे छद्दभत्तं अंति: बत्तियागारेणं बोसिरह १५ ७७६७७. (+) पार्श्वजिन स्तवन गोडीजी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. मइया, प्रले. पं. कांतिविजय गणि (गुरु - पं. भक्तिविजय); गुपि. पं. भक्तिविजय; अन्य. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६१२, १०X३४). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उ., मा.गु., पंच, आदि गोरीपास गरीबनिवाज अति अरजी आही छे आही छे, गाथा ५. ७७६७९. (+) विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-१० (१ से १०) = २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५x११.५, १२x२९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति सेवं भंते सेवं भंते, श्रुतस्कंध २, (पू.वि. द्वितीय श्रुतस्कंध, अध्ययन २०. "जिणदासोपुत्तो तित्खयरागमनं पाठ से है.) ७७६८०. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, ९×३४). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके; अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक - १०. ७७६८१. (+४) सम्यक्त्वपच्चीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X११.५, ४४४४). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि जह सम्मत्तसरूवं अंति (-), (पू.वि. गाथा १८ तक है.) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मनोवांछितदातारं अति: (-). ७७६८२. (+*) पगामसज्झाय सूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५. ५X११, १०x४६). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि करेमि भंते० चत्तारि०; अंति (-) (पू.वि. "कम्मभूमि सुजावंति केविसाहूरयहरण" पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only ७७६८३. (+) भविष्यदत्त चरित, अपूर्ण, वि. १४८२, वैशाख शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५७-५६ (१ से ५६ ) =१. ले. स्थल, योगिनीपुर, प्रले. उपा. याजन, उप मु. यशः कीर्त्तिदेव (गुरु आ. गुणकीर्तिदेव, काष्टासंघ गच्छ); गुपि. आ. गुणकीर्तिदेव (गुरु आ . सहस्रकीर्तिदेव, काष्टासंघ गच्छ); आ. सहस्रकीर्तिदेव (गुरु आ. भावसेन, काष्टासंघ गच्छ); आ. भावसेन (काष्टासंघ गच्छ); राज्यकाल मुबारकखान शहजादा, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १५००, जैवे. (२६.५x११, १०x४८). " Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भविष्यदत्त चरित्र, मु. श्रीधर, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: कीर्तिधवलीकृतलोकाः, सर्ग-१५, (पू.वि. सर्ग-१५ के ___ श्लोक-३१ अपूर्ण से है.) ७७६८४. दानोपरि वत्सराज कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२६४११, १७४६६). वत्सराजकथा-दानोपरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: परिपाल्य दिवं गतः, (पू.वि. "आदेशो दीयतां मम उक्त्वा" पाठ से ७७६८५ (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-६(१ से ६)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४६२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९२ अपूर्ण से ४९६ अपूर्ण तक है.) ७७६८६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी: उत्तरा०, संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १२४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३६, की गाथा-३६ अपूर्ण से ६१ अपूर्ण तक है.) ७७६८७. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ५,७)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी-दशमी काल., जैदे., (२५४११.५, १८४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पिंडैषणाध्ययन, उद्देश-१, गाथा-१० अपूर्ण से ४४ अपूर्ण तक व ७८ से उद्देश-२, गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७७६८८. (#) कल्पसूत्र की कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १४४३२). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-), (पू.वि. पीठिका अपूर्ण मात्र है.) ७७६९० (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३५). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. इरियावहीसूत्र अपूर्ण से ___ करेमि भंते सूत्र अपूर्ण तक है.) ७७६९१ (+) कल्पसूत्र सह टीका व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२१(१ से २१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १४४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. इंद्र द्वारा गर्भापहार विचाराधिकार अपूर्ण मात्र कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आश्चर्य-५ अपूर्ण से आश्चर्य-१० तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७६९३. संबोधसत्तरी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३१). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७७७०१. उत्तराध्ययनसूत्र-नमिप्रव्रज्याध्ययन ९, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नमीराय., दे., (२४४११.५, ११४४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ७७७०२. (+) अजितशांतिजिन स्तवन, अध्यात्म गीत व प्रहेलिका दोहा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से २,४)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४२३-२९). १.पे. नाम. अजितशांतिजिन स्तवन, प. ३अ-५आ, अपर्ण, प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आयरिअंकुणह, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से १७ तक व गाथा-३० से है.) २. पे. नाम. अध्यातम गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतिम अनुभो रीत की; अंति: आनंदघनवा केम कहावै, गाथा-३. ३. पे. नाम. प्रहेलिका दोहा, पृ. ५आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: वायस नामे नाम ते आगल; अंति: मुझ पहिलो पाछो ठवै, दोहा-१, (वि. उत्तर-कागल.) ७७७०३. सोलसती सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५४३९). १. पे. नाम. सोले सती सज्झाय, पृ.१अ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मु. त्रिकम, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीरुषभतणी धुया; अंति: तिकम० तो मननी कोड, गाथा-१५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२४, आदि: महाविदेह मे विराजीया; अंति: रायचंद० काढो आघो जी, गाथा-११. ७७७०४. शनीश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सूरजगढ, प्रले.पं. सदासुख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३७). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: तुं सुप्रसन्न शनीसर, गाथा-१७. ७७७०५. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १३४३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२४ अपूर्ण तक है.) ७७७०६. (+) भरहेसर सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. दे.. (२५.५४१२, १०४२९). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७७७०७. (+) ६ संघयण, ६ संस्थानादि नाम व दंडक प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-४(३ से ६)=३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ४४३२). १. पे. नाम. ६ संघयण नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वज्रऋषभनाराच१ ऋषभ; अंति: संघयण५ छेवठो संघयण६. २.पे. नाम. ६ संस्थान नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: समचउरंस संस्थान१; अंति: कुहुडक संस्थान६. ३. पे. नाम. १५ योग नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १५ योग नाम-मनवचनकाया, मा.गु., गद्य, आदि: सत्यमनोयोग १ असत्य; अंति: कार्मण काययोग १५. ४. पे. नाम, दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से गाथा-३३ तक है व गाथा-४० अपूर्ण से नहीं है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीचउवीस तीर्थंकर; अंति: (-). ७७७०८. प्रत्याख्यानसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४१२, १२४३७). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (पू.वि. प्रत्याख्यान-५ अपूर्ण तक है.) ७७७०९ (+) द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका-महावीरद्वात्रिंशिका २१वी, संपूर्ण, वि. १८५९, आश्विन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १४४३३). द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ताश्चक्रिशक्रश्रियः, प्रतिपूर्ण. ७७७१०. (+) सिद्धदंडिकासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४३३-३६). For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: आदितु सिद्धि सुहं, गाथा-१३, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-४ अपूर्ण से है., वि. यंत्र सहित.) ७७७११. पडिकमणासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, ले.स्थल. राधनपुर, लिख. श्रावि. जतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: पडिकमणसुत्र., जैदे., (२४४१२, ११४२६). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: त० मिच्छामि दुक्कडं, (पृ.वि. क्षेत्रदेवता स्तुति प्रारंभिक दो शब्द अपूर्ण से है.) ७७७१३. (+) ज्ञानपच्चीसी, सूर्योदयविचार श्लोक व औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४६१). १.पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरजगज्योतिमे; अंति: आपको उदे करण के हेतु, गाथा-२५. २. पे. नाम. सूर्योदयविचार श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: भानूदये विषती जगतां; अंति: निशि चार्द्धरात्रौ, श्लोक-१. ३. पे. नाम, औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह , म. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिनके सुमति जागी; अंति: सब जुठी गल्ला , सवैया-३. ७७७१४. (+) कर्मविपाकफल व उपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४३). १. पे. नाम, कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: ऋद्धिहर्ष जिणराजा रे, गाथा-१६. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुधो धरम मुकिस विनय; अंति: सो चिरकाले नंदो रे, गाथा-८. ७७७१५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१-१२०(१ से १२०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७४१२, ४४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. महावीरजिनचरित्र आंशिक अपूर्ण से पार्श्वजिन चरित्र सूत्र-१ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण द्वारा वल्लभीपुर में पुस्तकारूढ करने प्रसंग से व्याख्यान-६ तक है.) ७७७१६. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२५.५४११, ११४३०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७७७१७. (#) अष्टप्रकारीपूजा दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३८). ८ प्रकारीपूजा दोहा, पुहि., पद्य, आदि: जलधारा चंदन पुहुप; अंति: दीजै अर्घ अभंग, दोहा-१०. ७७७१८. नेमिजिन स्तवन व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १५४४७). १. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. देव, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल रंगे विनवें; अंति: देवने० हेजे हलजोरे, गाथा-७. २. पे. नाम, सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org १९ सुभाषित संग्रह, सं., पद्य, आदि अक्रोधवैराम्य अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १० तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ७७७१९. ज्वर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. विवेकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६१२, १२X३८). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ नमो आणंदपुर अजयपाल अतिः कांति० रोग न आवे कदा, गाथा-१४. ७७७२० (+) वृद्धशांति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १४X३३). , बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अति (-). (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. "श्रीभूतिकीर्तिकांति बुद्धि" पाठ तक है.) ७७७२१. अजितशांति स्तवन अपूर्ण, वि. १८४१ आश्विन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पू. १४-१३(१ से १३)=१, जैदे. (२५.५X१२, १३X३४). अजितशांति स्तवन, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अति जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा- ४०, (पू.बि. गाथा ३२ अपूर्ण से है. ) ७७७२२. ४२ भाषाभेद, २५ क्रिया व १० विध पचखाण गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ७X४० ). १. पे. नाम. ४२ भाषाभेद सह टबार्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र- ४२ भाषाभेद गाथा, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: कइ विहाणं भंते भासा; अंति: बोगडा अबोगडा चेव, गाथा-५. प्रज्ञापनासूत्र- ४२ भाषाभेद गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जनपद देसनी भाषा कीहा; अंति: भाषापद ते मध्ये. २. पे नाम. २५ क्रियागाथा सह टवार्थ पू. १आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-२५ क्रिया गाथा, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: काइअ १ अहिगरणीया २; अंति: इरियाबहीयाकिरिया २५, (२६.५X१२, गाथा-३. नवतत्त्व प्रकरण- २५ क्रिया गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि सरीरथी अजवणाधी, अंतिः पिण लागे त्रसमां रहे. ३. पे. नाम, भगवतीसूत्रगत पच्चक्खाणगाथा सह टवार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक-७ उद्देश-२ पच्चक्खाण गाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि अणागयमइक्कते; अति संकेवं चैव अद्धाए, गाथा १. भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक-७ उद्देश-२ पच्चक्खाण गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि साधुना १० भेदे उत्तर अंति नोकारसी आदि देने २. ७७७२३. सीमंधरजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७०, पौष कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ले. स्थल. उचडी, जैदे., (२६X१२, १४x२९). १. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पू. १अ संपूर्ण, मु. नथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि पुरव देसा हो प्रभुजी अंति नथमल० वरते जेजेकारे, गाथा- १५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ७७७२४. ग. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७५०, आदि: ते पंडीया रे भाई ते; अंति: तेजसिंघ० गुण भासे रे, गाथा- ७. (+) उपदेशरत्नाकर सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५. ५x१२, १३x१९-४१). उपदेशरत्नाकर, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि जयसिरिवछि असुहए अणिट अंति: (-) (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र मंगलाचरण की प्रथम गाथा है.) For Private and Personal Use Only उपदेशरत्नाकर-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतराग परमपुरुषो; अंति: (-), पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ७७७२५. शेत्रुंजयतीर्थ व सीमंधरस्वामी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (३६११, १३३६-३८). १. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पू. १अ १आ, संपूर्ण. श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसेजो तीरथ, अंति पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा ४. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहेब मेर; अंति: पद्मविजय जयकारो जी, गाथा-४. ७७७२६. अमरकुमारनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८४, चैत्र, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. मु. गांगजी ऋषि; अन्य. सा. प्रेमबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अमरकुमार., जैदे., (२६४११, ११४३०). अमरकुमार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी भली; अंति: सीझे वंछित कामोरे, गाथा-५२. ७७७२७. बासठ मार्गणा विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४११.५, १३४२८). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गई ईदिय काए; अंति: (-), (पू.वि. ४३ मार्गणा विचार तक है.) ७७७२८. (+) आचार्य छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. चोखाजी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९-१२४३०-३२). जीवऋषि छंद, मु. संकर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति सदा धु; अंति: संकर० प्रतइ चडती कला, ढाल-२, गाथा-३३. ७७७२९ (#) पार्श्वजिन छंद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी: घूघरनिसाणी., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १३४२८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: जिनहरष कहंदा है, गाथा-२६. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७७३०. अल्पबहुत्व ९८ बोल, संपूर्ण, वि. १९३६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. नानजी भट; पठ. सा. वखताजी महासती; लिख. मानारणजी भाणजी; अन्य. भवानी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. साके१८०१ का भी उल्लेख है., दे., (२५.५४११, १५४४२). ९८ बोल-अल्पबहत्व, मा.गु., गद्य, आदि: १सर्वथि थोडा गर्भज; अंति: बोल अठाणु थिया छे. ७७७३१. वरदत्तगणमंजरी व मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १९४५०). १. पे. नाम, ज्ञानपंचमी कथा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सौभाग्यपंचमीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्रमा पद्मपुर; अंति: पंचमीनु आराधन करवू. २. पे. नाम. मौनएकादशी कथा, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा-भावार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एकदा द्वारकानगरीमा; अंति: ते मोक्षपदने पामे छे. ७७७३२. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. १८,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१७४४३). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: नित रहजो जगीस, गाथा-५, (पृ.वि. मात्र अंतिम गाथा का चतुर्थ पाद है.) २.पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: जब जिनराज कृपा होवे; अंति: ज्ञानविमल० ओपम आवइ, गाथा-५. ३. पे. नाम. पासजिन स्तव, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शामला, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे साहिब पासजी; अंति: प्रभु पद अरबिंदा, गाथा-६. ४. पे. नाम. धर्मजिन स्तव, पृ. २अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देखो माई अजब रुप है; अंति: ज्ञान०सेवा होत सवेरो, गाथा-५. ५. पे. नाम. अनंतजिन स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ अनंतजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, आदि: आवो रे अनंतजिन भेटवा; अंति: नर वधारो वीनती एती, गाथा-११. ६. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: अंखीयां हरखण लागी; अंति: नयविमल०भय भावठि भागी, गाथा-६. ७. पे. नाम. पासजिन स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पासजिनंदा सेवो; अंति: ज्ञानविमल सुरतरूकंदा, गाथा-४. ८. पे. नाम. जीवकाया गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-जीवकाया, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः रे जीव जुगति लिउं; अंति: नयविमल कहीजे, गाथा-७. ९.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २-३अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: भोर भयो भोर भयो भोर; अंति: सुखमंगल माल रे, गाथा-७. १०. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. ३अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सकल समता सुरलतानो; अंति: ज्ञान सुजस जमाव रे, गाथा-८. ११. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तव, पृ. ३अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु.ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमल गिरिवर शिखर; अंति: मुज आवागमन निवारि रे, गाथा-९. १२. पे. नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म जिनेसर दरिशन; अंति: ज्ञान० सुख नितमेव रे, गाथा-६. १३. पे. नाम. अध्यात्म गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. ____ आध्यात्मिक गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: मे साहिब सुगुण सोभाग; अंति: ज्ञान० सुगुण सब आया, गाथा-९. १४. पे. नाम. शांतिजिन स्तव, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर साहिब; अंति: ज्ञान० तुह्म पय लागू, गाथा-६. १५. पे. नाम, अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिरि यात्र; अंति: ज्ञान०सुरनरनायक गावइ, गाथा-८. १६. पे. नाम, पासजिन स्तव, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी प्यारा मनमोहना; अंति: ज्ञान०प्राण का आधारा, गाथा-५. १७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंद गुण गाइए जिणंद; अंति: ज्ञानविमल वेर वेर, गाथा-५. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदाई आई वरदाई सरसत; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम प्रशस्तिगाथा अपूर्ण तक है.) ७७७३३ (-) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. केकीद, प्रले. मु. वनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, १८४३७). साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोविसी; अंति: जैमलजी० ए तीरणरो दाव, गाथा-५३. For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७७३५ (#) आठकर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ३७४१७). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १न्यानावरणी कर्मनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अभव्य जीवप्रकृति विचार अपूर्ण तक है.) ७७७३६. (+) ज्ञानपंचमीतपग्रहणादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, ११४३९). १. पे. नाम. नाणपंचमीग्रहण विधि, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व तपग्रहण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ४लोगस्स काउसगा न करै, (पू.वि. "मोन परिवडइ भाव अभिगाहरायाभियोगेणं" पाठ से है.) २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीतप उद्यापन विधि, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्वतप उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: तप करी उजमणुं कीजै; अंति: अनुमान सनमान कीजै. ३.पे. नाम, एकादशीग्रहण विधि, प. ३अ-४अ, संपूर्ण. मौनएकादशीतप विधि, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही तस्सु; अंति: कीजै परीलोगस्स कहीयै. ४. पे. नाम, चउदश मेलवा विधि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. चतुर्दशीतप पारने की विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही तस्स०; अंति: वैसी नमुत्थुण कहीजै. ५. पे. नाम. चैत्री पूनम देव वांदवा विधि, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम गोबरी गुंहली; अंति: (-), (पृ.वि. "पुंडरीक आराधवा निमित्तं करेमि काउसग्गं" पाठ तक है.) ७७७३७. (+) पर्यंताराधना व पंचपरमेष्ठिगण वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ३, कल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १६x४५). १.पे. नाम, आराधनासूत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पर्यंताराधना-गाथा ४०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: तं चयसु चउव्विहारं, गाथा-३८. पर्यंताराधना-गाथा ४० -बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: देवगुरुने नमस्कार कर; अंति: थोवंपि बहत्तरं होइ. २. पे. नाम, पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: बारस गुण अरिहंता; अंति: (१)मरणं उवसग्गसहणं च, (२)सुश्रावक सुश्राविका. ७७७३८. खंडाजोयन, संपूर्ण, वि. १८५५, वैशाख कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, २३४४८). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-खंडा जोयण बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा १ जोयण २ वासा ३; अंति: जाणवा २८ एवं ५६. ७७७३९ (+) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १२४३१). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अ चरण; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ७७७४०. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४११, १०४३४). आदिजिन स्तवन-बृहत्श@जयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सयल जिणंद पाय; अंति: प्रेमविजे०भवनो पार ए, गाथा-२२. ७७७४१ (4) महावीरस्वामिनुं हालरईं, संपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. निपाणी, प्रले. मु. तीर्थसोमगणि (गुरु पंन्या. रंगसोम, वडतपागच्छ); गुपि. पंन्या. रंगसोम (गुरु आ. आणंदविमलसोमसूरिश्वर, वडतपागच्छ); अन्य. आ. देवेंद्रसोमसूरि (वडतपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विहार अन्तर्गत वडतपागच्छ लघुपोसाल में प्रत लिखी गयी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ११४२६). महावीरजिन हालरडू, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला झलावे; अंति: दीपविजय कविराज, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २३ ७७७४२. वीरजिन स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३३, कार्तिक शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४११.५, ३४३३). महावीरजिन स्तुति, श्राव. मकन, मा.गु., पद्य, आदि: वाणि श्रीवीरजिणेसर; अंति: मकन० अरथ वीचारी जी, गाथा-४, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवे ईहां श्रीवीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा का टबार्थ लिखा है.) ७७७४३. (+) समकित सडसठि बोल स्तुति, संपूर्ण, वि. १८१४, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४६). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोलइरे, ढाल-१२, गाथा-६८. ७७७४४. (#) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११, १२४४७). वडीदीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नाण मंडावीने; अंति: १ बाधी गणावीए. ७७७४५ (+) बंभणवाडाजिन नीसाणी व वीरजिन सवैया, संपूर्ण, वि. १८५८, माघ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. रोहीतासपूर, प्रले. मु. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३०-३३). १.पे. नाम. बंभणवाडजिन निसाणी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.. महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, म. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसती सेवक; अंति: हुइ हर्षमाणिक्य मुनि, गाथा-३७. २.पे. नाम. बंभणवाडातीर्थ सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन सवैया-बामणवाडजीतीर्थ, म. माणिक, मा.ग., पद्य, आदि: बंभणवाड तीरथ वडो; अंति: माणिक० को दील छाजै, गाथा-२. ७७७४६. (4) दादाजिनकुशलसूरिजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८८२, आषाढ़ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले.पं. लक्ष्मीविलाश; पठ.पं. रामचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, १३४३५). जिनकुशलसूरि छंद, मा.गु., पद्य, आदि: वदन कमल वाणी विमल; अंति: करण धनधन खरतरधणी, गाथा-५०. ७७७४७. (+) अढार नातरानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:अठारना., संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३०). १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: उपना डावडा डावडी बंध; अंति: पामो भवजल पारो, ढाल-६, गाथा-७३. ७७७४८. लावणी, सज्झाय व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-९(१ से ५,८ से ११)=३, कुल पे. १३, जैदे., (२५४११.५, १७४४६). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ६अ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: उपजै विनती अखमल की, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सम्यक्त्व सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: देव नीरंजन गुर; अंति: रतनचंद० मुगतरमणनै, गाथा-१३. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ___कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी काया में गुलजार; अंति: कबीर० आवागमण निवार, गाथा-५. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: पीयाजी मोने एकलडी मत; अंति: कबीर० जासी जीव अकेलो, गाथा-४. ५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: उठ चलणा एकलि गार मैं; अंति: कबीर० खाणा अहंकार मै, गाथा-५. ६.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४ www.kobatirth.org कबीर, पुर्हि, पद्य, आदि मन मगन भया जब क्या; अंति: कबीर० पाया त्रिण ओले, पद-४. " ७. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ६ आ-७अ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: रे पंडित पूछ पिया; अंति: कबीर० कै भांडै रे, गाथा-५. ८. पे. नाम रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सांझ पड़वा भोजन करें; अति छोडो च्यारू ही आहार, गाथा-७. ९. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. कबीर, पुहि., पद्य, आदि जतन करे तेरा भाई काल, अंति: कबीर०हंस एकलो जाइ रे, गाथा- ७. १०. पे. नाम. गुमानचंद्रजी गुणवर्णन ढाल, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गुमानचंद्रजी गुरुगुणवर्णन ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: गुणवंत गुर नाण कीया; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-६ अपूर्ण तक है.) गुरुगुण रास, मु. रत्नचंद, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: रत्नचंद० बलिहारी, प्रतिपूर्ण १३. पे. नाम. धन्ना अणगार पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११. पे नाम, पौषधव्रतमहिमा सज्झाय, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. रत्नचंद, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति रत्न०पौषध कीजै एम हो, गाथा-१३ (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) १२. पे नाम, गुरुगुणवर्णन रास- डाल २७ से ३०, पृ. १२-१२आ, संपूर्ण. धन्ना अणगार पद, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: धना हुं वारी हो थारी; अंति: रतन० कोड बलिहारी हौ, गाथा-४. ७७७४९. (+) आलोयणा वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X१२, ११४३५). महावीरजिन स्तवन- अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: एह धन सासन वीरजिनवर; अंति: धर्मसि० फलवर्द्धिपुरे, गाथा- ३०. ७७७५० (+) मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण वि. १८४८, पौष शुक्ल ५, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल, पाटणनगर, प्रले. श्राव. खुशालचंद मलुकचंद वसा; पठ. श्रावि. चकुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६x१२, १२X३१). 1 मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: शांतिकरण श्रीशांतिजी; अंति: गुण गाया जी, ढाल - ५, गाथा ४२. ७७७५१. (*) नवतत्त्व प्रकरण व जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) = ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X१२, ११x३२). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि (-) अंति: १३ क्क१४ णिक्काय१५, गाथा ६० (पू. वि. गाधा १० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवण पईवं वीरं नमिऊण अति (-), (पू.वि. गाथा-१४ तक है.) ७७७५२. (#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., , (२५४१२, १०x३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यं भवसूरि, प्रा. पद्य, वी. २वी आदि धम्मो मंगलमुक्किहुं, अंति (-), (पू.वि. अध्ययन-३, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७७७५३. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२६.५x१२, ७X२६). For Private and Personal Use Only יי पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: (-), (पू.वि. "कम्मणं मर्मभेद कृतः तथा अस्मिन् पर्वाणि श्रावकाणां" पाठांश तक है.) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम नमस्कार पारस, अंति: (-). Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७७७५४. (+) पार्श्वनाथ स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. ३, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. म्. रामचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४४८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: धन धन पारकर देश धन; अंति: प्रेम अधिक जिणचंद, गाथा-७. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तनव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.ग., पद्य, वि. १७८८, आदि: मूरति मोहनगारी मोनै; अंति: नवमी सुजगीसै हो, गाथा-१३. ३. पे. नाम. महावीरजिन पद, प. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वीरे तेरे पद पंकज; अंति: कजमिस पाउं पारे, दोहा-२. ७७७५५. (+) श्रावक मनोरथ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७४४८). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: समणोउवासक श्राविक इम; अंति: निर्झरा उपार्जे, (वि. ठाणांगसूत्र से उद्धृत है.) ७७७५६. मेघकुमार सज्झाय व नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्राव. लछीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ९-१३४३५-४२). १. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. देव, पुहि., पद्य, आदि: तेरे कारण मेहा जिनवर; अंति: सिरदेव सेवक गुण गाया, गाथा-१०. २.पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: नवभव केरी ताहरी नारी; अंति: तेहने सघली वात समारा, गाथा-६. ७७७५७. (+) खंधकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८४५, आषाढ़ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. खुशालचंद मलुकचंद वसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:खंधकमुनीसझ, संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४३६). खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राय सेवक कहे साधुने; अंति: सेवक सुखीया कीजे रे, ढाल-२, गाथा-१२, संपूर्ण. ७७७५८. सूयगडांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१६(१ से १६)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१२.५, १३४४५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१० गाथा-४ अपूर्ण से अध्ययन-११ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७७७५९ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, चंदनबाला सज्झाय व महावीरजिन लावणी आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९६२, भाद्रपद शुक्ल, १२, रविवार, जीर्ण, पृ. १३-१०(१ से १०)=३, कुल पे. ४, प्रले. मु. मिश्रीलाल महात्मा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी: नेमिराय, संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, २१४३५). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-९, पृ. १३अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. चंदनबाला को तवन, पृ. १३अ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: धना के घर बसीया सती; अंति: (अपठनीय), गाथा-१२, (वि. अंतिम वाक्य आंशिकरूप से फटे हुए हैं.) ३. पे. नाम. महावीरजीरी लावणी, पृ. १३आ, संपूर्ण. महावीरजिन लावणी, जडाव, पुहिं., पद्य, वि. १९५३, आदि: बीर सासण के स्वामी; अंति: बीरनी जडाव सुणाई रे. ४. पे. नाम. नवकार पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चवदे पुरबरो सार; अंति: रंगबीजे० तणी नीसाणी. For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७७६१. साधारणजिन पद, शीतलजिन स्तवन व उर्दभाषा स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडीः उर्दूभाषा स्तवन., दे., (२५४११.५, १६x४२). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: क्यूँ दीननाथ मुझ पे; अंति: हूँ कीसी ओर का नही, गाथा-४. २.पे. नाम. उर्दूभाषा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मुहम्मदमुस्तफा पद, पुहिं., पद्य, आदि: आस रब का छेला सामरा; अंति: दोनु हुये एक रंग, गाथा-५. ३. पे. नाम, शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: तारो जगताधार शीतलजिन; अंति: सेवक० क्रपा इण वार, गाथा-६. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: तुम सुणो मेरे बाबु; अंति: कबीर० नरक निसानी, गाथा-४. ७७७६२. सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ११४४०). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसति भगवति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७७७६३. भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८४, पौष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. हैदराबाद, प्रले. मु. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पढउ तीहणे सयले, गाथा-१३. ७७७६४. (+) पट्टावली व पौषध लेवा विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४४३). १. पे. नाम. पट्टावली खरतरगच्छीय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: दसाणकप्पाणुववहारे, श्लोक-१४, (वि. गाथांक १० के बाद स्वतंत्र गाथांक दिये गये हैं.) २. पे. नाम. पीढी, पृ. १आ, संपूर्ण. पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीजिनराजसूरजी; अंति: श्रीयं कल्याणमस्तु. ३. पे. नाम. पौषध लेवा विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. पौषध लेवा विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: दिन उगां पछी प्रथम; अंति: (-), (पू.वि. 'जे सीतादिक' पाठांश तक है.) ७७७६५. (+) दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन-५, उद्देश-१, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४४१२, २८४५०). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-८३ तक लिखा है.) ७७७६६. (+) महावीरजिन स्तवन व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १६७३, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. बूडाय. बुडीयानगर, प्रले. सा. मखतूलो आर्या; पठ. सा. गोविंदी आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ५४३०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: पढमं कइ अभयदेवसूरीहि, गाथा-२३. महावीरजिन स्तव-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंतउ वर्ति श्रमण; अंति: अनंतासुख पाम्या. २.पे. नाम. वर्णमाला, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल; अंति: (-). ७७७६७. सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, ११४३८). For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (पृ.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ७७७६८. (+) नमस्कारमहामंत्र स्तव सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ४४१६-३२). नमस्कार महामंत्र स्तव, संबद्ध, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्ठि नमुक्कार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) नमस्कार महामंत्र स्तव-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १४९७, आदि: जिनं विश्वत्रयी; अंति: (-). ७७७६९. सिद्धचक्र नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १४४४१). नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: ज्ञानविमल-जयकार पावे, गाथा-२२. ७७७७०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २८४८१). उत्तराध्ययनसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. चाउरंगिज्ज अध्ययन-४ की टीका अपूर्ण मात्र है.) ७७७७१. नवतत्त्व प्रकरण व जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १४४३१). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३ तक है.) ७७७७२. प्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२.५, १४४४२). जिनप्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मूल गुंभारै कु अच्छी; अंति: (-), (पू.वि. "पंचमा थाल मध्ये अंगलूहणा दोय धरी तेहु पर केस" पाठ तक है.) ७७७७३. (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १६x४५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., - २३वें तीर्थंकर की स्तुति गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७७७७४. (+) संतिकरं, तिजयपहत्त व नमिऊण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १६x४२). १.पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. मनिसंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: लहइ सुयं संपयं परमं, गाथा-१३. २. पे. नाम. तिजयपहत्त स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. - प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निचमच्चैव, गाथा-१४. ३. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ.१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७७७७५. (#) महावीरस्वामिन हालरडं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १६x४१). महावीरजिन हालरडं, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसला झलावे; अंति: दीपविजय कविराज, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७७७६. समकित छप्पनी, दस सम्यक्त्वप्रकारनी रुचि व विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२६४११.५, १४४३४). १.पे. नाम. सम्यक्त्व छप्पनी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व छप्पनी, मा.गु., पद्य, आदि: इम समकित मन थिर करो; अंति: तथा श्रावक हे आराध, गाथा-५६. २.पे. नाम. ४ सम्यक्त यंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. यंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. दस सम्यक्त्वप्रकारनी रुचि, पृ. ३आ, संपूर्ण.. १० सम्यक्त्वरुचि बोल, मा.ग., गद्य, आदि: निसरक रुचि १ उपदेस; अंति: धर्मरुचि१०, (वि. सारिणीयुक्त.) ४. पे. नाम. समकितना ९ भेद, पृ. ३आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व के ९ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: द्रबस्स १ भावस्सकत २; अंति: कारकस्स ८ दीपकस्स ९. ५. पे. नाम. ८ सम्यक्त्व प्रभावक नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७७७७. कर्मविपाक फल व तीर्थंकरपरिवार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १३४३६). १. पे. नाम. कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पं. कुशलचंद, पुहि., पद्य, आदि: सुत्र गिनाता मे कही; अंति: चंदजी हो कवगुरु पसाद, गाथा-३४. २. पे. नाम. तीर्थंकरपरिवार स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन परिवार सज्झाय, मु. सुखलाल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: राजाराणीरो कटुंबो; अंति: सगला बेटाने दीनोछाड, गाथा-१४. ७७७७८. गुणठाणा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १८४४६-५०). गुणठाणा चौपाई, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३१, आदि: पंचपरमिट्ठिमिट्ठ नमि; अंति: कनकसोम० संघ सुखकार, गाथा-७६. ७७७७९ (+) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४२७-३०). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल तीरथ; अंति: जंपइ वेग सिवरमणी वरउ, गाथा-२५. ७७७८० (+) नवकार माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: शिवकुमारकथा, संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, २३४५०). नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नवकार इक्क अक्खर पाव; अंति: (-), (पू.वि. जिणदास की कथा तक है.) ७७७८१ (+) समकितशील रास व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. लोडीसादडी, प्रले. मु. खेतसी (गुरु मु. रामचंदजी); गुपि. मु. रामचंदजी (गुरु मु. वृधमानजी); मु. वृधमानजी (गुरु मु. रोडीदास); मु. रोडीदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २०४४६). १.पे. नाम. समकितशील रास, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वशीयल रास, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पढम जिणेसर प्रणमी; अंति: अजितदेव० कोडि कल्याण, गाथा-५१. २.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: देवनरलखमहियं तिरियाण; अंति: उकोमवेउवियाकालो, गाथा-२. ७७७८२. स्तवन व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ९, जैदे., (२४.५४११, १३४३५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. माणिक, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: के० दरिसन अहनिस चाउं, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. __ मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू क्या मागुं गुनह; अंति: आनंदघन० गुणधामा रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. राधाकृष्ण पखवाडीयो, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सखी पडवाने आवे पेहली; अंति: जेहवादुछे तुठामेहवा, गाथा-१५. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: तु आतम गुण जान रे; अंति: ओर न तोही छोडावणहार, गाथा-७. ५. पे. नाम. निरंजन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देव निरंजन भव भय; अंति: रूपचंद० सो तरीया हे, गाथा-३. ६.पे. नाम. प्रबोध पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-प्रबोध, मा.गु., पद्य, आदि: जाग रे अब जाग रे; अंति: वीतराग लहो शिवमाग रे, गाथा-३. ७. पे. नाम. गरबो, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-शील, श्राव. मीठादास, रा., पद्य, आदि: पुन्यप्रगट्यो रे; अंति: मन सुप्यु अंतरजामी, गाथा-८. ८. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मारुजी नीद नयणां बिच; अंति: (-), गाथा-३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ९.पे. नाम. महाभद्रजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान अढारमा रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७७७८३. भक्तामर स्तोत्र भाषानुवाद व कल्याणमंदिर स्तोत्र पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १८४५१). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., पद्य, आदि: आदिपुरूष आदिसजिन आदि; अंति: ते पावे सुख खेत, गाथा-४८. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र- पद्यानुवाद चौपाई, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम जोति परमातमा परम; अंति: कारण समकित शुद्धि, गाथा-४४. ७७७८४. (+) कल्याणमंदिर व भक्तामर भाषानुवाद तथा सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १९४५४). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद चौपाई, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम जोति परमातमा परम; अंति: कारण समकित शुद्धि, गाथा-४४. २.पे. नाम. भक्तामरभाषा, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहि., पद्य, आदि: आदि पुरुष आदीश जिन; अंति: ते पावहि सिवखेत, गाथा-४९. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: चतुर विहारी आतम; अंति: भुवनकीरति० तुम्हारइ, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहि., पद्य, आदि: इक काया अरु कामिनी; अंति: राजसमुद्र० कउ संसार, गाथा-५. ७७७८५. अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४१-४५). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलइनइ कडावइ हो पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७७८६. (+) दशविधयतिधर्म सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-५(१ से ५)=३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३९). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: ज्ञानविमल० अनुभवें, ढाल-११, गाथा-१३४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-५, गाथा-९ से है.) ७७७८७. (+) नवपद सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ११४२९). १. पे. नाम, नवपद सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदंबा प्रणमी कहुं; अंति: तिलकविजय जयकारीजी, गाथा-२१. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतसिद्धने करि; अंति: अमृतपदना थायो धणी, गाथा-११. ३. पे. नाम, पार्श्वनाथ दश गणधरनाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन १० गणधर गणन, सं., गद्य, आदि: श्रीशुभगणधराय नमः; अंति: विजयस्वामि गणधराय नम. ४. पे. नाम, दसपच्चक्खाण नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उपवास१ एकासणउ२; अंति: १० अलेवाणुं. ७७७८८. (2) कल्पसूत्र की कथा-पटावली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. ३,प्र.वि. पत्र मे छेद किया गया है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १७४६०). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: वीरनइ पाटि सुधर्मा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७७७८९ (+) प्रज्ञापनासूत्र के बोल-पद ५, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडीः पज्जवा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४३५). प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ७७७९०, राजीमतीरहनेम पंचढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. रामपुरा कोट, प्रले. आत्माराम; पठ. बालमुकंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रहन०, दे., (२५.५४११.५, १६४३९). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिय; अंति: रायचंद० मेढ्यो जोड, ढाल-५. ७७७९१ (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. नरहर; पठ.सा. भावविजया, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ९४३१). पार्श्वजिन स्तवन, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: विमल जस वास सिरि; अंति: प्रमोदइ पूरवउ सुजगीस, गाथा-२३. ७७७९२. ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, २६x२९). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: दिसिगइइंदियकाए जोए; अंति: (१)चर्म अनंतगुणा, (२)विधि कही तिम जाणवी. ७७७९३. धन्नासालिभद्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले.ऋ. भीमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११,११४२२-२६). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहिपुर नगरी; अंति: रंगा का सुख पाइया जी, गाथा-३९. ७७७९४. अरिहंतनां गुण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, २०४४५-५२). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: देवगुणअधिकार १ आसोग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उपाध्याय नमस्कार अपूर्ण तक लिखा है.) ७७७९६. कंसकृष्णविवर्ण लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. मु. मनोहरलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १०x४६). कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: गाफल मत रहे रे मेरी; अंति: सुणतां स्नेही आणंद, ढाल-२७, गाथा-४३. ७७७९७. कान्हडकठीयारा ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, १५४५०). For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७७७९८. श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, ११४३०-३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-२ गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७७७९९ सुरप्रीया रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्रले. मु. जैमल ऋषि (गुरु मु. समर्थजी); गुपि. मु. समर्थजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३२). सुरप्रियसाधु रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदात्त श्रीधर० घणी, गाथा-७४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ७७८०० (+#) सीतासती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, ११४३९). सीतासती सज्झाय, मु. मूलचंदजी शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिन आद दे चोवीसे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७७८०१ (+#) संग्रहणीसूत्र व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८२१, माघ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ५४-५३(१ से ५३)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. वाराहिनगर, प्रले. उपा. खुशालविजय (गुरु गच्छाधिपति विजयदयासूरि); गुपि. गच्छाधिपति विजयदयासूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री शांतितथा धर्मनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (७२२) जाद्रिसं पुस्तके द्रिष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२, ९-१९४३७-५४). १. पे. नाम. संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, पृ. ५४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३६६, (पू.वि. गाथा-३६२ अपूर्ण से है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: संघयणी जयवंती वर्तो. २. पे. नाम. जीवभेद-प्रभेदादि विचार संग्रह, पृ. ५४आ, संपूर्ण. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: संठाण५ गंधर रस६; अंति: काया ततो कालवाइ तेसं. ७७८०२ (#) प्रतिष्ठा विधि व नवग्रहबल विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १२४३८-४५). १. पे. नाम. प्रतिष्ठा विधि, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: स्वस्थानं व्रजइत्वा, (पू.वि. मात्र अन्तिम कुछ अंश है.) २. पे. नाम. नवग्रहबल विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नवग्रहपूजा विधि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नवग्रहे दशदिगपालना; अंति: खाई शक सराव संपुटइं०. ७७८०३ (+) पार्श्वजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४४१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: तारकदेव त्रेवीसमो; अंति: दिन-दिन कोडि कल्याण, गाथा-२२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे साहिब तुम ही; अंति: जस कहे०दीजे परमानंदा, गाथा-५. ७७८०४. (+) सिद्धाचलजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. गौरीशंकर भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, ११४३०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माहरु डुंगरिइं मन; अंति: सिद्धिविजय सुखवास हो, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७८०५ () पजुसणनी थोय, संपूर्ण, वि. १९६४, आश्विन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पट्टणानगर, प्रले. नारायण नत्थुजी बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १०४३९). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. चतुर, सं., पद्य, आदि: भो भो भव्यजनाः सदा; अंति: सा संघस्य सिद्धायिका, श्लोक-४. ७७८०६ (+) नमिऊण स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ५४३७). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-४ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक है.) नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण से है व १३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७७८०७. (+) ढंढणऋषि, स्थूलिभद्र व नवकारवाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३७). १. पे. नाम. ढंढणऋषि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. २. पे. नाम. थूलीभद्रनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो तुम गुणे; अंति: उत्तमसागर इम बोलेजी, गाथा-६. ३. पे. नाम. नोकारवाली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहेजो पंडित ते कूण; अंति: रूप कहे बुध सारी रे, गाथा-५. ७७८०८. पार्श्वनाथ, ऋषभदेव आरती व पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२५.५४११, १४४४०). १. पे. नाम, पार्श्वजिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जयकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: जै जै पारस आरती कीजै; अंति: जयकीरत के अंतरजामी, गाथा-१२. २. पे. नाम. ऋषभदेव आरती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... आदिजिन आरती, म. जयकीर्ति, पहिं., पद्य, आदि: जै जै आरती ऋषभ; अंति: जयकीरत सुख संपत पाई, गाथा-११. ३. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तुति-मंत्रमय, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभ पादाब्ज; अंति: सरोरुह हंसपद्म, श्लोक-६. ७७८०९ प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, १०४२६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. प्रारम्भिक ___ "जीवा विराहिआ एगेदिया" पाठ तक है.) ७७८१०. कल्पसूत्र प्रभावगाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, ११४३५). कल्पसूत्र-प्रभाव गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: तवेण बंभचारेण कणयदाण; अंतिः क्रियतेत्र प्रभावना, गाथा-१८, (संपूर्ण, वि. अंत में प्रशस्ति दी गई है.) ७७८११. (#) ऋषिमंडलसूत्र सह कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८-१०६(१ से १०६)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४४). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. गाथा-२०१ से २०६ तक है., वि. पाठांतर सहित.) ऋषिमंडल प्रकरण-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सिंहगिरि की आज्ञा से धनगिरि का सुनंदा के यहाँ से भिक्षा में बालकग्रहण प्रसंग से सुमतिसूरि कथा प्रसंग तक है.) For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७७८१२. देवसिराईयप्रतिक्रमण, ९ नियाणा व १४ गुणठाणा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १३४४०). १. पे. नाम. देवसिराईयप्रतिक्रण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. देवसीराइय प्रतिक्रमणादि विचार, मा.ग., गद्य, आदि: प्रथम आवश्यक ८ गाथा; अंति: ईच्छामो अणसटुिं. २. पे. नाम. ९ नियाणा विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: राजानु निया| करै; अंति: पणि मोक्ष न जाई. ३. पे. नाम. १४ गुणठाणा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणुं१; अंति: एक वार फुरसइं. ७७८१३. संवेगीरी लीला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १६४३७). कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शुद्ध संवेगी कीरिया; अंति: लाजे नही वलि टाल, गाथा-२२. ७७८१४. गोडीपार्श्वजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. भूपत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १७४४८). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सुमती आपो सुर; अंति: कुशललाभ० गोडी धणी, गाथा-२१. ७७८१५. नंदीसूत्र स्थविरावली व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८४२, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. वगडीनगर, प्रले. पंन्या. फतेंद्रसागर गणि; पठ. मु. मोतीचंद (गुरु पंन्या. फतेंद्रसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १७X४६). १.पे. नाम. नंदीसूत्र-स्थविरावली, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: नाणस्स परूवणा वुच्छं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-४० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण तक है.) ७७८१६. नेमिराजिमती सज्झाय व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४१). १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गुलाल, मा.गु., पद्य, आदि: रथवाली जिणवार गिर; अंति: कविय गुलाल इम उचरे, गाथा-१२. २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: यागंधि केतकीनां वहति; अंति: कस्तूरी त्रिधामता, श्लोक-३. ७७८१७. उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, ७७३८). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कामदेव श्रावक के समीप भगवान महावीर का पदार्पण प्रसंग अपर्ण से कामदेव श्रावक के द्वारा भगवान महावीर से प्रश्न पूछे जाने का वर्णन अपर्ण तक ७७८१८. (+#) साधुश्रावक प्रतिक्रमणसूत्र व सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ४,६)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, ११४३९). १. पे. नाम. साधुश्रावक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से गाथा-४७ अपूर्ण तक हैं.) २. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१९ अपूर्ण से मांगलिक पुरक श्लोक-४० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७८१९. उत्तराध्ययनसूत्र-नमिप्रवज्या अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, २१४४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७७८२० (+) महावीरजिन स्तुति, चउसरण प्रकीर्णकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३८, पौष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी: चउसरणप०, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५४१२, २०४६५). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसरि , प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भगवं; अंति: कययं अभयदेवसूरीहिं, गाथा-२३. २. पे. नाम, चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: करणं निव्वइ सुहाणं, गाथा-६३. ३. पे. नाम. औपपातिकसूत्र-अंतिम बाईस गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. औपपातिकसूत्र-सिद्धस्तुति गाथा, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: कहिं पडिहया सिद्धा; अंति: चिट्ठति सुहं पत्ता, गाथा-२२. ४. पे. नाम. द्रुमपुष्पिका अध्ययन, पृ. २आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रमपष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगल मुक्किठं; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ५. पे. नाम. वीसस्थानकतप गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: तित्थएरत्तं लहइ जीवो, गाथा-३. ७७८२१. संथारापोरसीसूत्र व इरियावही सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १५४३२). १. पे. नाम. संथारापोरसीसत्र, प. १२अ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र हैं. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. इरीयावही सज्झाय, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक के द्वारा बाद में लिखी गई है. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, म. प्रीतिविमल, मा.ग., पद्य, आदि: इरियावही पडिकमस्यं; अंति: मुक्तिफल अनुभवसे रे, गाथा-१८. ७७८२२. (4) नवकार महामंत्र व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २८-३६४१९-२६). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम, नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. श्रीदेव शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सीलै श्रीवरी राजल; अंति: श्रीदेवसेवक०दरि हरी, गाथा-९. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कन्या ज्येष्ठे वर; अंति: पापी पापेन पच्यते, श्लोक-२. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-निसालगरणं, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जनम्या आनंद; अंति: भणी घरे आवीया रे, गाथा-१९. ७७८२३. वृद्धशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. गीरधारीदास आतमारामजी वैष्णव, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १०४२७). बहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम, (पू.वि. "षोडशविद्यादेव्यो रक्षंतु" पाठ से है.) For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७७८२४. (+) चोवीसजिन आंतरा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३२-३७). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर देवर्द्धि; अंति: एतलउ अंतरकाल जाणिवउ. ७७८२५. भाभापार्श्वजिन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२५४११, १३४३६-४०). १. पे. नाम, भाभापार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, वा. जय, मा.गु., पद्य, आदि: वामासुत हो साहिब; अंति: वाचक जय० पासे छे पास, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वा. जयसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुधीया शांतिकरण श्री; अंति: जयसौभाग्य० नरनारि रे, गाथा-५. ७७८२६. जैन सुभाषित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१०(१,३ से ८,१० से १२)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१२,१३४३५-३८). जैन सुभाषित*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण से २८ अपूर्ण, ४४ अपूर्ण से ६२ अपूर्ण तथा १२२ अपूर्ण से १४३ अपूर्ण तक है.) ७७८२७.(+) नारकीनो चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल, रूपनगर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८४३९). नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदजीणंद जुहारीए मन; अंति: गुणसागर० हमारी आस, ढाल-४, गाथा-३१. ७७८२८. (+) गौतम कुलकादि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९६८, माघ कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, ले.स्थल. नागोर, प्रले. श्राव. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२.५, ५४४९). १. पे. नाम. गौतमकुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवंति सुखं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लु० लोभी न० मनुष्य; अंति: छांडी संवर आदरो. २. पे. नाम. विनयकलक सह टबार्थ, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. विनय कुलक, प्रा., पद्य, आदि: विणओ जिणसासणे मूलं; अंति: सारं संलेहणा मरणं, गाथा-१३. विनय कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वि० विनउ तेहीज जि०; अंति: म० मरणप्रधान छे. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: धन साधु संसार में; अंति: रूचसे उतरे उतारे पार, गाथा-२. ४. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति सह टबार्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) संसारदावानल स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सं० संसाररूपीओ जेह; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५. पे. नाम. सुभाषितावली सह टबार्थ, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सुभाषितावली, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) सुभाषितावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांच इंद्री प्रवडीया; अंति: (-). ७७८२९ सिंदूर प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: सिं. प्र., जैदे., (२५४१३, १३४३४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५० अपूर्ण से ७२ अपूर्ण तक For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७८३०. सम्यक्त्वना सडसठि भेद व नाणपदना ५१ भेद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १०४२९). १. पे. नाम. सम्यक्त्व सडसठि भेद, पृ. ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-६४ अपूर्ण से है और बोल-६५ तक लिखा है.) २. पे. नाम. नाणपदना ५१ भेद, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमी नमस्कार, सं., गद्य, आदि: स्पर्शनेंद्री व्यंजन; अंतिः (-), (प.वि. ५१वाँ भेद अपूर्ण है.)। ७७८३१. पार्श्वजिन चैत्यवंदनादि सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-९(१ से ८,११)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२४४१२, १४४३१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन की अवचूरि, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: तया लांछितश्चिह्नितः, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा की अवचूरि २. पे. नाम. तिजयपहत्त की टीका, पृ. ९अ-१२अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी: तिजयपुहु वृ. तिजयपहत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः कृत्वा चतुर्णा; अंति: नित्यमर्चयेत्, संपूर्ण. ३. पे. नाम. लघुशांति सह वृत्ति, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी: लघुशांतवृत्ति. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम श्लोक है.) लघशांति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., गद्य, वि. १६४४, आदि: सर्वं सर्वसिद्ध्यर्थ; अंति: (-). ७७८३२ (+) नवतत्त्वसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-७(१ से ७)=३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १६४३३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-३५ अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: १०८ लगै सिद्ध थाय, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ७७८३३. स्तवनचोवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्रले. मु. सोमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: जीवन प्राण आधारो रे, स्तवन-२४, गाथा-१२१, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., स्तवन-२२ अपूर्ण से है.) ७७८३४. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १४४४२). स्तवनचौवीसी, म. कवियण, मा.ग., पद्य, आदि: साहिबा वालेसर अरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., स्तवन-२ अपूर्ण तक है.) ७७८३५ (+#) जैन मंत्र-यंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ५-४(१ से ४)=१, प.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२, १०४३५). जैन मंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कष्टनिवारण यंत्रविधि अपूर्ण से नट्ठट्ठमयट्ठाणे मंत्रविधि अपूर्ण तक है., वि. मंत्र प्रयोगों मे क्रमांक दिये गए हैं. प्रयोग-३९ अपूर्ण से ४८ अपूर्ण तक है.) ७७८३६ (+) शांतिस्नात्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी: मंडलवि०., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२,१५४४४). शांतिस्नात्र विधि, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारम्भिक चैत्यवंदन अपूर्ण से बलि-बाकुलाविधि अपूर्ण तक है.) ७७८३७. बावीसअभक्ष्य बत्रीसअनंतकाय, आत्मोपदेश सज्झाय व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १६७७, फाल्गुन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. हेमराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १६x४५). १. पे. नाम, २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ आ. लक्ष्मीरत्नसरि, मा.ग., पद्य, आदि: जिनशासन रे सूधी; अंति: लक्ष्मी० सवि सुख लहइ, गाथा-१०. २.पे. नाम. आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: कबही तु नरह नरिंदा; अंति: तउ सोख मार्ग उजवालइ, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: देवनिंदा दरिद्री च; अंति: यतिनिंदा कुलक्षयः, श्लोक-१. ७७८३८. (+) अभिनंदनजिनादि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी: स्तवन., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४३). १.पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन अरिहंतजी रे; अंति: शिष्य नमे खुसीआल, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजणेसर देव म्हारा; अंति: खुशाल० गुण गाया रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरजी छो; अंति: खुसालमुनीने जेहसु रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: सैवादेवी सुत सुंदरू; अंति: खुशालमुनि० गाये राज, गाथा-७. ७७८३९. साधारणजिन स्तवनाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४५१). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके रवि; अंतिः सततं चितमानंदकारी, श्लोक-१०. ७७८४०. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन-५ पिंडैषणा अध्ययन, अपूर्ण, वि. १८५८, पौष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२७४१२.५, १८४४७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., सूत्र-४७ अपूर्ण से है.) ७७८४१ (4) चारगति वेलि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: नरगवेलि., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १५४४९). ४ गति वेलि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: देवदया परनमीय निरंजन; अंति: हुं वांछु गुणठाण, गाथा-१३६. ७७८४२. दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. वडोत, प्रले. मु. नेणसुख (गुरु मु. ख्यालीराम); गुपि. मु. ख्यालीराम; पठ. श्रीकृष्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १२४३१). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समय० सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१. ७७८४३. (+) अंतरिक्षपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४३०-३५). पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, वा. विनयराज, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: पर उपगारी परम गुरु; अंति: विनैराजै०त्रिभुवनधणी, ढाल-४, गाथा-२७. ७७८४४. भांगा ४९ श्रावकरा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५४१२, १२४२६). भगवतीसूत्र-श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावकना पचखाण ऊपरै; अंति: (-), (वि. अंतिमवाक्य अंकमय है.) ७७८४५. धर्मनाथ स्तवन व ज्ञानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. पंन्या. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. 'पठनार्थे' हेतु 'स्मरणाय' लिखा है., जैदे., (२६४१२, २०४४४). १.पे. नाम. धर्मनाथप्रभु स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखी गई है. धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतवू; अंति: विजयविनय रसपूरि, गाथा-१३८. २.पे. नाम. ज्ञानपंचविंशतिका आत्मस्वरूपचिंतन हितोपदेश, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हेत, ७७८४६. (+) आषाढभूतरो चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. आगेवा, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११.५, १३X२९). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरजग योन में; अंति: आपकुं उदय करन के गाथा - २५. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरशण परिसो वावीसमो; अंति: संगमनुं जोतप्रकास हो, डाल-७. ७७८४७. बावनाचंदन चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४. प्र. वि. हुंडी बावनाचंदणी. दे. (२५x१२, १८४३७). 3 "" वैरसिंहकुमार चौपई-जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: प्रणमुं सारद सामनी; अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ढाल ६, गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.) ७७८४८. पांचइंद्री संवाद ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. जाजबुद, दे., (२६X१२, १४-१६x४१). ५ इंद्रिय संवाद ढाल, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत देव नमी करी; अंति: रूपचंद० जगहु बडो रे, ढाल -६, गाथा - १३०. ७७८४९. (+) जंबूद्वीपादिपरिधिपरिमाण कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५x११.५, १९x३९). जंबूद्वीपादि परिधि परिमाण, मा.गु., को. आदि (-); अति: (-). " ७७८५०. ६२ बोल, चक्रवर्ती वासुदेवनो समय विचार व सोपक्रमीना ९ बोल, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैवे., (२५.५X१०.५, ३७X२२). १. पे. नाम. ६२ बोल विचार, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. ६२ बोल- मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि गइ४ इंदी५ काय६ जोय३: अंतिः प्रदेसरूप उदड़ होई. २. पे. नाम. २४ जिन आश्रित चक्रवर्त्ती वासुदेव समय विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभदेवनइ वारइ भरथ; अंति: वारइ कोई नही. ३. पे. नाम. सोपक्रमीना ९ बोल, पू. ४आ, संपूर्ण, ९ सोपक्रमी बोल, मा.गु., गद्य, आदि अज्झवसाण‍ निमित्ते २: अंतिः सतविहे८ झंझए आओ‍. ७७८५१. (+) पासाकेवली-शुकनावली, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., (२५.५X१२.५, १५x४४). पाशाकेवली भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवति; अति: देवदर्शन दीठी. ७७८५२. (क) अंतरिक्ष पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी कार्तिक कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. वरल, प्रले. मु. प्रवीणकुशल (गुरु मु. राजकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १२X३०). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन दे सरसति मात; अंतिः दरिसण हु बंछु सदा, गाथा-५१. ७७८५५. (*) उपसर्गहर स्तोत्र, चक्रेश्वरी स्तुति, श्लोक व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३३-१९३६, भाद्रपद कृष्ण, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. मकसुदाबाद ( अजीमग, प्रले. मु. अबीरचंद ऋषि, पठ. श्राव. मुन्नीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अभिनवपोषधशालायां., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६X१२, ११३३). १. पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र, पू. १अ संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं पासं अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. २. पे नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १अ. संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: देयं भोजधनं धनं; अंति: युगलंघर्षंतिमोक्षिका, श्लोक १. ३. पे. नाम. समुद्रपालनी सज्झाव, पृ. १आ, संपूर्ण. समुद्रपालमुनि सज्झाय, मु. ब्रह्म, पुर्हि, पद्म, आदि: चंपापुर पालित नामै अति: ब्रह्म० काजो रे, गाथा-८. ४. पे. नाम चक्रेश्वरी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि कंचनसमदेह अमितगुणगेह, अंतिः आवे मुझदाय सदावरदाता, गाथा १. For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७७८५८. पासाकेवली-शुकनावली व अबयदी प्रश्न, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, ले.स्थल. करहेडा, प्र.वि. यह प्रत वि.१७३१ फाल्गुण वदि ३० को ऋषि चिंतामणि के शिष्य मुनि खेतसी द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४५२). १. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ए काज करिवउ उत्तम, (पू.वि. अप्रकरण प्रथम अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अबयदी प्रश्न, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: ॐ विपुसिल्लीहि अमंथ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रश्न संख्या-३ लिखा ७७८५९ (+) असज्झायविचार सज्झाय, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ८x२५). असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिइ वीर जिणेसर राय; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ७७८६१. (#) इक्षकारराजा की ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३२-३५). इक्षकारराजा ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: देव हंता पूर्व भवे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७७८६२ (+) कल्याणमंदिर सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ४४२४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३४ अपूर्ण से ३७ तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७८६३. (+) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४३९). सिद्धचक्र स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथपति अरिहा नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ७७८६४. (+2) लब्धि विचार व विविधविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९१, चैत्र शुक्ल, ७, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. सुनाम, प्रले. मु. आसकरण जती, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अवशेष जगह पर बाद में अन्य भी साधारण विचार लिखे गये हैं. पत्रांक अनुमानित., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४११.५, ११-१५४३२-४६). १.पे. नाम. २८ लब्धिविचार गाथा सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: तेरस एयाओ नहु हुंति, गाथा-३, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २८ लब्धिविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तेरह ए० एह न० न होवइ. २८ लब्धिविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: १४ न हुई बाकी १३ हुई. २.पे. नाम. विविधविचार संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. विविध विचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कुलकोडिसट्ठिलक्खं मज; अंति: समुर्छिम २३ पामै. ७७८६५. संभवनाथ स्तवन व नवकार मंत्र, अपूर्ण, वि. १८९९, कार्तिक कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ७७-७६(१ से ७६)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. अकबराबाद, पठ. श्राव. गोकलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ८x२८). १. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. ७७अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुखें लीला सों तरइ, गाथा-८, (पू.वि. अंतिम गाथा-८ अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. नवकार मंत्र, पृ. ७७अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवइ मंगलं, पद-९. ७७८६६. (+) वीरथुई अज्झयण, प्रास्ताविक श्लोक संग्रह व नमिराय अज्झयण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, १३४४०). For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. वीरथुई अज्झयण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. प्रास्ताविकगाथा संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच महव्वयसुव्वय; अंति: जंबूस्वामि जांणिये, गाथा-८. ३. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ९, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७७८६७. अष्टवर्ग बत्तीसीअक्षर, संपूर्ण, वि. १९४२, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, ११४३४). कक्काबत्तीसी, मा.गु., पद्य, आदि: ककारे काम करता; अंति: लक्ष्मी पूजीजें, गाथा-८. ७७८६८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ९, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नमीराय, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२.५, १९४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-५९ अपूर्ण तक है.) ७७८६९ (4) वीरथुई अज्झयण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:वीथुईट०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ४४५१). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० नरकनां दुख; अंति: (-). ७७८७० (4) श्रावक आराधना, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, १६४५०). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत; अंति: (-), (प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सूच्यग्रभागप्रमितेनन्तकायेनन्ताजीवाः" पाठांश तक है.) ७७८७१ (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१३(१ से १३)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. गाथांक का उल्लेख नही किया गया है., संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १२४३१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश-१ गाथा-७८ अपूर्ण से अध्ययन-५ उद्देश-२ गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ७७८७२ (+#) सुदर्शनशेठ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४१). सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक है.) ७७८७३. (+) बीसविहरमान स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४५०). १.पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: समरूं मन सुंधै सदा; अंति: कारण हरखचंद सुगाय ए, ढाल-५, गाथा-३१. २.पे. नाम. विहमान २० जिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मनसुध वइहरमाण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा २१ अपूर्ण तक है) ७७८७४. (#) सीमंधरजिन, शंखेश्वरपार्श्व स्तवन व ऋषभजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १३४३२). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वताअशाश्वताजिन चैत्यवंदन, मु. महोदय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रमुख नमुंव; अंति: वंदीए महोदय पद दातार, गाथा-९, (वि. अंतिम वाक्य अंशतः खंडित है.) For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: शंखेश्वरा आप त्रुठा, गाथा-७. ३. पे. नाम. ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेवमोरी मंत्रै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७७८७५ (+) औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १३४४१). औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ऊखलि खंडी खंडीतुलि; अंति: स्थूलेषु कः प्रत्ययः, श्लोक-२३. ७७८७६. गणधरगुण गुंहली व सुधर्मागणधर सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ११४३४). १. पे. नाम. गणधरगुण गुंहली, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ___ गणधरगुण गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ठडो अनुभव रत्न लहंत, गाथा-९, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम, सुधर्मागणधर सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामीगणधर सज्झाय, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवरमां परधान; अंति: उत्तम पद वरेजी, गाथा-१३. ७७८७८. (4) महावीरजिन निसानी, सीमंधरस्वामी स्तवन व दसपच्चक्खाणफल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १६x४०). १.पे. नाम. बंभणवाडमंडन वीरवर्द्धमान नीसाणी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, म. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसत्ती सेवग; अंति: हुइ हर्षमाणिक्य मुनि, गाथा-३७. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी वीनती, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए गण; अंति: पूरी आस्या मन घणी, गाथा-१८. ३. पे. नाम.१० पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: दशमें प्रह उठी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) ७७८७९. २१ स्थान प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४०). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाण नयरी जिणया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक है.) ७७८८०. अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१२, १२४३२). अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७७८८१. शांतिकर स्तोत्र व तिजयपहुत्त स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १०४३२). १.पे. नाम. शांतिकर स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: मुनिसुंदर०संपयं परमं, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७७८८२ (+#) वीसविहरमान स्तवन, औषध संग्रह व सरस्वती बीजमंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, ११४३३). १. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-११ गाथा-४ अपूर्ण से स्तवन-१३ गाथा-६ ___अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह पेटांक हासिये में लिखा गया है. औषध संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. सरस्वतीबीज मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह पेटांक हासिये में लिखा गया है. मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७७८८३. महावीरजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२६४११.५, १९x४०). महावीरजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३७ अपूर्ण से है व ९३ तक लिखा है.) ७७८८५. जोगी रास, महाभाष्य व मेघकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-३४(१ से ३४)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १२४३१). १.पे. नाम. जोगी रास, पृ. ३५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. श्राव. जिनदास पंडित, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: करि सिद्धा समरण कीजइ, गाथा-४२, (पू.वि. गाथा-३९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, महाभाष्य, पृ. ३५अ-३६अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: जिनाअतिताखरुबत्तीमान; अंति: आकर्णितए भाष्यात्, श्लोक-१८. ३. पे. नाम. मेघकमार सज्झाय, पृ. ३६अ-३६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७७८८६ (+#) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, ज्योतिष व यंत्र विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४७). १. पे. नाम, यंत्रफल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. एकविसादि विविध यंत्रफल वर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसइ सुगुरु नमिय; अंति: जंतं एकइथसूरीहिं, गाथा-२२. २.पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह-, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. यंत्रफल चौपाई, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. १६ कोष्ठक यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोविशना पय प्रणम; अंति: अमरसुंदर०परमारथ लहें, गाथा-१६. । ४. पे. नाम, चतुर्विशतिजिन स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, म. नेतसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: वंदे धर्मजिनं सदा; अंति: संग्रंथितः सौख्यदः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. पंचषष्ठियंत्र विचार, पृ. २अ, संपूर्ण.. पंचषष्ठि यंत्र विचार, मा.गु., प+ग., आदि: घर वर्ग पंच मंडप चोल; अंति: भिन्नपणो नही है. ७७८८८. उपदेशशतक-संसारभावना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२६४१२, ५४२६). उपदेशशतक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) ७७८९०. (#) तीर्थवंदना चैत्यवंदन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १०४३१). १.पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सं., पद्य, आदिः (-); अंतिः सततं चित्तमानंदकारी, श्लोक-१०, (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७७९०२ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ मा.गु., पद्य, आदि: अहोनिशि सेवो रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७७८९१ (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व सकलार्हत स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४४२). १.पे. नाम, श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चौवीसं, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सकलार्हत स्तोत्र, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: __सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ७७८९९ सुमतिकुमतिचंद व पंचामृत कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. सोजत, प्रले. तेजराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कथाकोष, जैदे., (२५.५४११.५, १८४५१). १. पे. नाम. सुमतिचंदकुमतिचंद कथा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: सुमतचंद आजकालतो धंधो; अंति: दोनु युही करस्यां. २.पे. नाम. पंचामृतरी कथा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचामृत कथा, पुहि., गद्य, आदि: एक नग्रसे एक साहुकार; अंति: चढे येही वेकुंठावास. ७७९०१. अष्टमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. आठमनुं स्तवनपत्र, जैदे., (२६४१२, ११४२६). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे म्हारे ठाम; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२, गाथा-१५ तक है.) नभद्र नवरसो, अपूर्ण, वि. १७८३, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. खीचंद, जैदे., (२५.५४११, १४४३७-४०). स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: मनोरथ सहु फल्यां रे, ढाल-९, गाथा-७४, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-३ अपूर्ण से है.) ७७९०३. धन्नाशालिभद्र रास-खंड ४ ढाल-३४ से ३६, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १४४४०-४३). धन्नाशालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-४, ढाल-३६ के दोहे व देशी तक लिखा है.) ७७९०४. आत्मप्रबोध सज्झाय, एकाशीतिथि चैत्यवंदन व प्रश्नव्याकरण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१,३ से ५)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, ११४३२-३५). १.पे. नाम. आत्मप्रबोध स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रबोध, म. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पिउडारे पिउडा नरभव; अंति: चतुर रमो मुज साथि रे, गाथा-९. २.पे. नाम. एकादशी तीथी, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजी प्रभु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. प्रश्नव्याकरण सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्रश्नव्याकरणसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. भावना-३ से ४ तक है.) ७७९०५. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, ११४३०-३३). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविह परे; अंति: वविधऋध वंछीत लहे, गाथा-१८. ७७९०६. (+) विजयप्रभसूरि सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३६-३९). १. पे. नाम. विजयप्रभसूरि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विजयप्रभसूरि सज्झाय, पं. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चित्तधरी; अंति: जिहा लगि गिरि मेरु, गाथा-९. २. पे. नाम. विजयप्रभसूरी स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. विजयप्रभसूरिगुरुगुण सज्झाय, मु. विनितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुगुण निधि गुरु; अंति: विनीतविजय गुणगाय रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. विजयप्रभसूरी स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. विजयप्रभसूरिगुरुगुण सज्झाय, मु. विनितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरुं सुंदरि श्रुत; अंति: पटधार प्रतपो ए गणधार, गाथा-५. ४. पे. नाम. कल्याणविजय गुरुगुण स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. म. कल्याणविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मनवंछित पूरण कल्पतरु; अंति: करयो सानिध धर्मतj, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. कल्याणविजय-शिष्य, सं., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरतीर्थेश; अंति: कल्याण विजजश्रियम्, श्लोक-१. ७७९०७. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण अधिकमास शुक्ल, २, मध्यम, प. २, ले.स्थल. थोभ, प्रले. पं. अखैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४३६-३९). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयांण; अंति: सेवा देज्यो नित, गाथा-१३. ७७९०८. (#) ज्ञानपंचमी वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३४). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: समय० भाव प्रसंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. ७७९०९. दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. गुमान आर्या (गुरु सा. सीरदार आर्या); गुपि. सा. सीरदार आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, २२४४०). दानशीलतपभावना चौढालियो, आ. जिनसिंहसरि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय नमी; अंति: महतो रे, ढाल-४, गाथा-९९. ७७९१० पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, जैदे., (२५४११.५, ११४३६). पट्टावली लोंकागच्छीय, मा.ग., गद्य, आदि: हवें इहां दक्षिणार्द; अंति: तो परम पद पांमियें, (पू.वि. "श्रीपूज ऋ. दामोदरजी थया" पाठांश से "ते एहवा जे प्रमेश्वर चोवीशमा तीर्थंकर" तक नहीं है.) ७७९११. (4) पार्श्वजिन स्तवन-पाटणमंडण, अपूर्ण, वि. १९वी, चैत्र कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, प्रले. राघवजी गोर; पठ. धनीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १०४३०). पार्श्वजिन स्तवन-पाटणमंडण, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: पुण्यवि०पासजी रे लाल, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-२ से है.) ७७९१२. बुद्धि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १३४४४). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: परणमिव देव अंबाई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५५ अपूर्ण तक है.) ७७९१५. बासठमार्गणा द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, ४८४४०). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ ४ इंदिय ५ काए ६; अंति: १० भेद अनंतगुणा. ७७९१६. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१३, ४४३०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-३ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बाह्य मातापिता; अंति: (-), पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: एक आचार्यनई एक चेलो; अंति: (-), पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ७७९१७. पांडव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०८, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. विद्युतपुर, प्रले. मु. रूपसुंदर; पठ. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पद्मावती पार्श्वनाथ प्रसादात्, दे., (२६४१२.५, १२४३०). ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलो; अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा-१९. ७७९१८. लघुक्षेत्रसमास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, १७X४२). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. खेम, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य परमं देवं, (२)अहंक्षेत्र विचाराणु; अंति: (-). ७७९१९ (+) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १९-२९५६-५७). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ७७९२०. जीवदया छंद, संपूर्ण, वि. १८०२, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. धरोल, जैदे., (२५४११.५, १३४३७-४०). जीवदया छंद, म. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी पाय नमी; अंति: कर धर्म दया विना, गाथा-११. ७७९२१. (+#) सोलस्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४३७-४०). १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नयरी चंद्र; अंति: तेह ज गुणनो गेह जी, गाथा-३६. ७७९२२ (#) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४५). कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "जाणीजइ मुंहडौ धात्यौ तिसें पुत्रनी बहू" पाठांश से "हिवै बावीस तीर्थंकरना वाराना जीव ऋजुप्राज्ञ कहीजै" तक है.) ७७९२३. विचारामृतसार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६४-६२(१ से १५,१७ से ६३)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, १३४४०-४३). विचारामृतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १५०२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा-३ श्लोक-५० अपूर्ण से __ कथा-४ अपूर्ण तक है व कथा-१२ श्लोक-४६ अपूर्ण से कथा-१३ श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) ७७९२४. (4) पार्श्वजिन स्तोत्र, नेमनाथ स्तोत्र व प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १६x४८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ.१अ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु; अंति: पार्श्वजिनेश शिवम्, श्लोक-७. २. पे. नाम. नेमनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रधानभावभावकं; अंति: नमामि नेमनायकम्, श्लोक-५. ३. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: चारित्राचारने विषे; अंति: धम्मो सरणं पवज्झामि. ७७९२५ (+#) उत्तपत्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०३, आश्विन कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. अबीरचंद्र ऋषि (गुरु मु. इंद्रचंद्र, पासचंदगच्छ); उप. मु. हेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १७X४०). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जो जो आपणी मन; अंति: कहे सुवि श्रीसार ए, गाथा-७०. A For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७९२६. वैराग विवरण, संपूर्ण, वि. १८९९, वैशाख कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. एलचपुर, प्रले. पंडित. गणेश, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १७X४४-४८). तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी सुर; अंति: मंगलीक माला संपजइं. ७७९२७. आदिजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३४३३-३६). १. पे. नाम, आदिजिन बृहत्स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-बृहत्शQजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सयल जिणंद पाय; अंति: प्रेम० पामो भवपार ए, गाथा-२२. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, प. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७ व्यसन सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही हो सांभले; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७७९२८. पार्श्वजिन स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१७(१ से १७)=२, जैदे., (२६४११, १९x४०-४४). पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: दिणयर सयलअतिसयसंजुओ, ढाल-३, गाथा-१८, (पू.वि. मात्र अंतिम दो गाथाएँ हैं., वि. प्रतीक पाठ प्रतीत होता है.) पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगणस्थानकविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: पिणि अतिशयवंत करौ. ७७९२९. भगवतीसूत्र बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, २९४२५). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: उववाय१ परिमाणं२; अंति: (-), गाथा-३, (वि. भगवतीसूत्र शतक-११ उद्देशक-१ के ३२ द्वार गाथा सह विविध शतकों के बोल.) ७७९३०. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४२७-३०). १. पे. नाम. बारस स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण... बारसतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जे बारसनें ज्ञान; अंति: म पाखे न कमे पतीजं, गाथा-४. २. पे. नाम, बीज स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बीज दिने धर्म; अंति: नयविमल० कवि इम कहै, गाथा-४. ३. पे. नाम. पूनमतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पूर्णिमातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति संभव संजम; अंति: मल जिन नाम तणो गुणी, गाथा-४. ४. पे. नाम. अमावस्या स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अमावस्यातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अमावस्या तो थई उजली; अंति: नयविमल० नित्य नित्य, गाथा-४. ५. पे. नाम. दशम स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिणेसर पुजा; अंति: सुख संपति हितकार, गाथा-४. ७७९३१. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४१२, १२४४४). १.पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आज आणंद मुझ अतिघणौ; अंति: प्रगटे परम कल्याण रे, गाथा-४. २. पे. नाम. सुदर्शनमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: शीलरतन जतने धरो रे; अंति: सीस क्षमाकल्याण रे, गाथा-११. ३. पे. नाम, थुलिभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थुलिभद्र सज्झाय, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर जिनेसर; अंति: शिष्य क्षमाकल्याण, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४७ ४. पे. नाम. गौतमगणधर गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. __गौतमस्वामी गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी नित प्रणमीय; अंति: होज्यो वंदना वारंवार, गाथा-५. ५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरूनै पकरी वाहि; अंति: कहेत क्षमाकल्याण, पद-३. ७७९३२ (+) वांदणा भेद सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४५०). २५ आवश्यक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दोवणयमहाजायं; अंति: पणवीसावसयकिइकंमे, गाथा-१, संपूर्ण. २५ आवश्यक गाथा-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: बे वार नीचो नमिवो ते; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोषपूर्ण वंदना में से १८वें वंदन तक लिखा है.) ७७९३३. (+) भगवतीसूत्र शतक २४ गमा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २९४७२). भगवतीसूत्र शतक २४-संबद्ध दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारिकीयानो दंडक; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., असंज्ञी पंचेन्द्रिय ९ गमा तक है.) ७७९३४. सत्यवादी सज्झाय, ब्रह्मचर्य सज्झाय व सवैया, संपूर्ण, वि. १८०७, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. गुलाब; पठ. सा. कानाजी (गुरु सा. जीवूजी); गुपि. सा. जीवूजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, १६४४२-४५). १. पे. नाम. १६ सत्यवादी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. खेम, मा.ग., पद्य, आदि: ब्रह्मचार चुडामणी; अंति: खेम सदा सुखकार हो, गाथा-१९ २. पे. नाम. ब्रह्मचारी नव बोल विचारो सिझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मु. अमरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु पाय नमी कहूं; अंति: अमरमुनि० गुण गाया रे, गाथा-१४. ३. पे. नाम. खतरांणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रहेलिका सवैया-क्षत्रीयाणीपातशाह संवाद, पुहिं., पद्य, आदि: अते खतराणी दीनदुति; अंति: थे खतराणी डेर जावो. ७७९३५ (4) गौडीपार्श्वनाथ स्तवन व नेमिराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:पानोतवन, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३३). १.पे. नाम, गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, प. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनभक्ति, सं., पद्य, आदि: जय जय गोडीजी महाराज; अंति: त्वं प्रणमामि सदैव, श्लोक-९. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. माणक, मा.गु., पद्य, आदि: नेमीसर साहिब जिनतणा; अंति: जी मारी आवागमण निवार, गाथा-३१. ७७९३६. (#) दशवैकालिकसूत्र-प्रथम अध्ययन, नमस्कारमंत्र व मांगलिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२,७५२४). १.पे. नाम. दशवकालिकसूत्र-प्रथम अध्ययन दमपुप्फिया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९. ३. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: (-), श्लोक-१. ७७९३७. (+#) कल्प व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १८४४३). १.पे. नाम. ह्रींकाराम्नायकल्प विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ऐं ह्रींकारस्य किं; अंति: मुक्ति प्रदायक, श्लोक-२२. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. मायाबीज स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मायाबीज स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुवर्णपार्श्व लयमध्य; अंतिः पदं लभते क्रमात्सः, श्लोक-१५. ३. पे. नाम. मायाबीज कल्प, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ह्रींकार कल्प, आ. जिनप्रभसरि, सं., पद्य, आदि: मायाबीजबृहत्कल्पात,; अंति: (-), (प.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७७९३८. (+) सवैया व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १५४४५). १.पे. नाम. बत्तीस अनंतकाय सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: सूरण वजर कंद मूली; अंति: वैल अमृत की होय है, सवैया-१. २. पे. नाम. बावीसअभक्ष्य सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण.. २२ अभक्ष्य पद, म. रुघपति, पुहि., पद्य, आदि: भोजन निशाको घोलवडा; अंति: गिणती में आणीयै, गाथा-१. ३. पे. नाम. पंचमहाव्रत सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रुघपति, मा.गु., पद्य, आदि: पृथ्वी अपतेउ वनस्पति; अंति: चारित्र कुं उजवाल, सवैया-१. ४. पे. नाम. श्रावकवारैव्रत नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावक १२ व्रत सवैया, मु. रूपवल्लभ, पुहिं.,सं., पद्य, आदि: थूलजीव हिंसा टारै; अंति: सुग्यानी साता हेत है, सवैया-१. ५. पे. नाम. ६२ मार्गणा सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रुघपति, मा.गु., पद्य, आदि: च्यारगतांगिण इंद्रीय; अंति: बासठ नाम संभारी, सवैया-१. ६. पे. नाम. ९ वाड सवैया, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ९ वाड सवैया-ब्रह्मचर्यविषयक, मु. रुघपति, पुहिं., पद्य, आदि: त्रिस्त्रीय पसुपंडि; अंति: तौ ए नव वाडा आचरै, गाथा-१. ७. पे. नाम, यंत्रभरण विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. १६ कोष्ठक निर्माण सवैया, म. रुघपति, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतत आंक अरट्ठ एक; अंति: भावै जिसरौ यंत्र भर, सवैया-१. ८. पे. नाम. वधतीरौ यंत्र भरण विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. १७० कोष्ठक यंत्र निर्माण सवैया, म. रुघपति, मा.ग., पद्य, आदि: सोलह कोठा साझि; अंति: नव अट्ठ द्वितीय गणेस, गाथा-२. ९.पे. नाम. वृद्ध यंत्र भरणरी आह विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. १७० बृहद् यंत्र निर्माण विधि, मा.गु., पद्य, आदि: जंत्रां माहे त्रीस; अंति: ३ षोडस १६ दशमे १०, गाथा-२. ७७९३९ गोडीपार्श्वजिन स्तोत्र व शनिश्चर स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १०४२४). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीपुरमंडण; अंति: प्रभु निरमल नामी, गाथा-१४, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) २. पे. नाम, शनिश्चर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: समरदेव शनिराय थायै; अंति: हेम० सुप्रसन शनीश्वर, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखा ७७९४० (+) नेमराजुल नवरसो, संपूर्ण, वि. १८५८, भाद्रपद कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रोहीडा, प्रले. पं. नायकविजय (गुरु पं. कपूरविजय गणि); अन्य. ग. कांतिविजय (गुरु पं. नायकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३४३६). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: प्रभु उतारो भवपार, ढाल-९, गाथा-४०. For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४९ ७७९४१ () औपदेशिक व्याख्यान व आयुष्यबंध प्रमाण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४११, ११४३६-३९). १.पे. नाम, व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंत वीतरागदेव; अंति: जिनधर्मि सार छइं. २. पे. नाम. आयुष्यबंध प्रमाण विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. विविध जीव आयष्य विचार *, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७७९४२. औपदेशिक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१२, १८४४५). आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ७७९४३ (+#) चित्रसंभति चोढालियो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. जयसिंघ (गुरु मु. जीवराज), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,१६४५४-५८). चित्रसंभूति चौढालियो, मु. जयसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदिः प्रणमु सरसति सामणी; अंति: केरी विनती ___ अवधार ऐ, ढाल-४, गाथा-४८. ७७९४४. (#) आदीश्वर वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११,११४४०). आदिजिन स्तवन वृद्ध, मु. दयातिलक, मा.गु., पद्य, वि. १९५९, आदि: श्रीविक्रमपुर नयर; अंति: द्धिवृद्धि सुख थायसी, गाथा-१६. ७७९४५ (+) पौषध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हंडी: जग०, संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११४३०). पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूउं उसभो; अंति: उपन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. ७७९४६. सीमंधरजिन व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १०४२६-३२). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही साजन; अंति: जिनचंद० प्रेम अभंग, गाथा-१०. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, रा., पद्य, आदि: सुगुण सनेही जिनजी; अंति: श्रीजिनचंद० तारो राज, गाथा-५. ७७९४७. (+#) रतनकुमार सज्झाय व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२६, पौष कृष्ण, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. उग्रचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४५-४८). १. पे. नाम. रतनकुमार सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. रतनगुरु सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण आगला रे; अंति: उपज्यौ मत ते बोल, गाथा-४०. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर सोलमा रे; अंति: लाल आवागमन नीवार रे, गाथा-१५. ७७९४८ (#) शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३२). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंता रे सिख; अंति: कुमुदचंद कहे समझल्यो, गाथा-२०, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा लिखा है.) । ७७९४९. तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १३४३६-४०). तीर्थमाला स्तवन, म. प्रेमविजय, मा.ग., पद्य, वि. १६५९, आदि: सरसती भगवती मात जे; अंति: नाम मागे सिवपुर ठाम, गाथा-४१. ७७९५०. कंडरीकपंडरीक रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३०-३६). कंडरिकपुंडरिक रास, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: श्रीजनवययण आराधीय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६, गाथा-३९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७९५१ (+) भगवतीसूत्र बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. श्रावि. कसतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सजीया, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४१२, २०४४२). भगवतीसूत्र-नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पण्णवय १ बेय २ रागे; अंति: सामायकना संख्यातगुणा, द्वार-३६. ७७९५२. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८१४, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. सुजणाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३५). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं करेमि; अंति: वंदामि जिणे चोवीसं, सूत्र-२१. ७७९५३. ध्वजारोहण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२४४११,१५४५१). जिनमंदिर ध्वजारोहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम भुमी; अंति: समयो वान्यमय प्रोक्त. ७७९५४. (+) पुप्फचूलासाध्वी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: पुफचूला, संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १८४४४). पुप्फचूलासाध्वी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: संतनाथ जिन सोलमो; अंति: भाव भगति विलास, ढाल-९. ७७९५५. सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२९, वैशाख शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. शियाणा, प्रले. कृष्णराम दवे; पठ. मु. सौभाग्यविजय (गुरु मु. भक्तिविजय); गुपि. मु. भक्तिविजय (गुरु मु. धरणेंद्रविजय); मु. धरणेंद्रविजय (गुरु भट्टा. राजेंद्रसूरिश्वर); भट्टा. राजेंद्रसूरिश्वर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी: पंचमी०, दे., (२५.५४११, १२४३०-३४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पासजिनेसर; अंति: गुणविजय रंगे भणे, ढाल-६, गाथा-४९. ७७९५६ (+) संबोधसत्तरी, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०x२६). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६७ अपूर्ण तक ७७९५७. भाष्यत्रय सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. १, प.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११. ५४२७). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम भाष्य गाथा-४ अपूर्ण तक है.) भाष्यत्रय-अवचरि, सं., गद्य, आदि: वंदनीयान् परमेष्टिन; अंति: (-). ७७९५८. (+) संवादसुंदर सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२६४१०.५, १३४३८). संवादसुंदर, ग. रत्नमंडन, सं., प+ग., आदि: नमोर्हते एकदा जगाद; अंति: (-), (पू.वि. समवाय-१ अपूर्ण तक है.) संवादसुंदर-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: लक्ष्मीविवेकेनमतिः; अंति: (-). ७७९५९ (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १४४४०). पार्श्वजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभजिणेसर पाय; अंति: आसकरण सुखदाय हो जी, गाथा-२४. ७७९६०. अष्टप्रकारी पूजा व महावीरजिन स्तव, अपूर्ण, वि. १९१९, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन संवत कृति से पुराना होने के कारण व प्रत के लक्षण नये होने से प्रत में लिखित १८१९ जगह १९१९ सुधारकर लिखा गया है., दे., (२५.५४११.५, ६-१२४३५-३७). १. पे. नाम. अष्टप्रकारी भावपूजाष्टकं, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: (-); अंति: यांति मोक्षं हि वीरा, (पृ.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २.पे. नाम, महावीरजिन स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-कारकगर्भित, सं., पद्य, आदि: आनंदरूप निजशुद्ध गुण; अंति: कुरु नाथ परं न याचे, श्लोक-९. ७७९६१. निगोदीया व उदयउदीरणा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, २१४५०). १.पे. नाम, निगोदिया विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रत्नसंचय-हिस्सा निगोदविचार गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी लोक; अंति: एहवी रीते सांभलुं छै. २. पे. नाम. चौदगुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी ५ दर्शना; अंति: अंतरा. गु. १२ ताई. ७७९६३. (+) चतुर्विंशति तीर्थंकर प्रतिमा स्थापना यंत्र, संपूर्ण, वि. १९२७, भाद्रपद कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मगसुदाबाद(अजीमग, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १३४४४). २४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७७९६४. (#) ज्ञानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८६३, पौष शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मनजी ऋषि; पठ. मु. गलालचंद ऋषि (गुरु म्. मनजी ऋषि), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४२). ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: आपकुं उदयकरन को हेति, गाथा-२५. ७७९६५. शीतलजिन स्तवन व अइमत्तामनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १७४३७). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. श्रीसार, पहिं.. पद्य, आदि: सीतल जिणवरराया तम: अंतिः श्रीसार सदा सखकारी, गाथा-९ २. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ७७९६६. रावणमंदोदरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, २०४३४). रावणमंदोदरी सज्झाय, मु. हीराचंद, रा., पद्य, आदि: आ तो आइ मंदोदरी राणी; अंति: हीराचंद० मुकत पद भज, गाथा-२२. ७७९६७. रतनकंवर सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, २२४४१). रतनकुमर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतनकवर गुण आगला आगला; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४० तक है.) ७७९६८.(-) सीतासती सज्झायद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १८४३९). १. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: सोयन बारिम मीरग चरछ; अंति: थाय सीता ले घर आय. २.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. लक्ष्मीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुनसुबरतस्वामीन बीनव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७७९६९ (+) महावीरजिन विनती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. आसकरण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: स्तवन, संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३२-३५). महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. ७७९७०. (+) सुभद्रासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १३-१५४३०-३३). सुभद्रासती सज्झाय, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेशर केरो सीस; अंति: शीयल पाले शीवपूर लहे, गाथा-२३. For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७९७१. (+) प्रज्ञाप्रकाश सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. हुंडी: प्रज्ञा प्र०, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ५४३७). प्रज्ञाप्रकाशषत्रिंशिका, म. रूपसिंह, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं ____ हैं., श्लोक-८ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखन पुष्पिका वाले पत्र नहीं है.) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः प्रणीता क० कही, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७७९७२ (+#) मौनएकादशीपर्व माहात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३९). मौनएकादशीपर्व माहात्म्य, सं., पद्य, आदि: द्वारावत्यां; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२० तक है.) मौनएकादशीपर्व माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भव्यप्राणी ए मौन; अंति: (-). ७७९७३. आगमिक साक्षीपाठ संग्रह व भगवती आलापक, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्रले. ग. सुंदरहंस पंडित (गुरु आ. जिनसोमसूरि); गुपि. आ. जिनसोमसूरि (गुरु आ. लक्ष्मीसागरसूरि, लघुशालीयतपापक्षी गच्छ); आ. लक्ष्मीसागरसूरि (लघुशालीयतपापक्षी गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १७४६६). १.पे. नाम, आगमिक गाथा संग्रह, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: माहि ६ अध्ययनि, (पू.वि. भावपूजा साक्षीपाठ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, भगवतीसूत्र आलापक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: जीवाणं भंते किं; अंति: जीवा जाव अणारंभा, (वि. आरंभविषए भगवत्यां प्रथम शतके प्रथमोद्देशके आलापक) ७७९७४. शिखामण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३०). औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ तक ७७९७५ (+) कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १४४४०). १. पे. नाम, गौतमस्वामी काव्य, पृ. १अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नाणं पंचविहं पन्नत्त; अंति: वदना भारती भासितांगी. ७७९७६. पार्श्वजिन वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४३२). पार्श्वजिन स्तवन-वृद्ध, मु. चारित्रकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७७७, आदि: धन धन कासीदेस कहीजै; अंति: हो समकित द्यौ सुखदाय, गाथा-२१. ७७९७७. (+) नेमनाथ गीत व अणुव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. पुरुषोत्तम ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: दुहा, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १५४३७). १.पे. नाम, नेमनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: राजेमती इणि परि; अंति: ती हो प्रभु आस जगीस, गाथा-९. २. पे. नाम, अणुव्रत सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: हिव अणुव्रत पंचय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) ७७९७८. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १२४३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-४२ अपूर्ण तक है.) ७७९७९ (+) पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४२). पद्मावती स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाण चक्र; अंति: (-), (प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ७७९८१ (+) भावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १०४३८). For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावना सज्झाय, मु. कुशलसंयम, मा.गु., पद्य, आदि: पाय प्रणमी रे भगति अति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) " ७७९८२. पुण्यसार रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. हुंडी पुण्यसार रास, जैदे. (२६४१२, १८४४१). पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: नाभिराय नंदन नमुं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७७९८३. चतुर्विंशतिपरमेष्ठिनां स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२५.५x११, ९३३). २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि सुरकिन्नरनागनरेंद्र, अंतिः कमले राजहंससमप्रभाः, श्लोक ५, संपूर्ण ७७९८४. (+) भोजन पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१०.५, ११४३०). " " औपदेशिक पद भोजन, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम जनेसर लागु पाय, अंति: बात कही छे वीसबावीस, गाथा- १८. ७७९८५. (#) सूत्रकृतांगसूत्र की बृहद्वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२-४० (१ से ४० ) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी : सूयगडां०, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, १५x५६). सूत्रकृतांगसूत्र-वृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य वि. १०वी, आदि (-): अंति: (-). (पू.वि. श्रुतस्कंध १ अध्ययन-२ उद्देश-१ गाथा-२१ की टीका अपूर्ण से उद्देश- २ गाथा-८ की टीका अपूर्ण तक है.) ७७९८६. गणधर पद व वीरजिन गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. इलोल, प्रले. पंडित लक्ष्मीविजय; पठ. श्रावि. नवल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीकुंथुनाथजी श्रीऋषभदेव प्रशादेन सत्के भरवुं., दे., (२५.५X११.५, १४X३२). १. पे. नाम गणधरपद गहुली, पृ. १अ, संपूर्ण गणधरपद गहुली, ग. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि वीर पटोघर दिनमणी अंति रूपविजय० करे रंगे हो, गाथा ६. २. पे. नाम. वीरजिन गंहुंली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुंली, ग. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नव कनक कमल पगला धरता; अंति: रूपविजय संपत्ति पावे, गाथा-८. ७७९८७. गुरुवंदन भास व महावीरजिन गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, जैदे. (२५x११, ११४३९). १. पे नाम. गुरुवंदन भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि सखी आवोने गुरुवंदनने अति राज नमी प्रभुता पावी, गाथा ६. २. पे. नाम महावीरजिन गहली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सखी वीर जिणंद, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.) ७७९८८. चातुर्मासिक व होलिकापर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २३-२२ (१ से २२) =१, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, , ९X३७). १. पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. २३अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि (-); अंतिः सर्वेष्टार्थसिद्धिः, ग्रं. ४०१, ( पू. वि. पौषधव्रत की चर्चा से है.) २. पे. नाम. होलिकापर्व व्याख्यान, पृ. २३आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे अति (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पीडनादिकं कुर्वंति सर्वपीद" पाठांश तक लिखा है.) ७७९८९ पार्श्वजिन घग्घर निसाणी व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२५X११, १३x४५). ५३ १. पे. नाम. पार्श्वजिन निसाणी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: गुण जिनहरख गावंदा है, गाथा - २८, (पू. वि. गाथा २८ अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि मन मोहनगारो साम सही; अंति जसोवरधन० करी जी लो, गाथा- १०. For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " ७७९९० गच्छोत्पत्ति वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२६४१०.५, ११४४०). गच्छोत्पत्ति वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि : उर्वी गर्वी ०१; अंति: (-), (पू.वि. पूर्णतिल्ल गच्छ के वर्णन तक है) ७७९९१. (+) नवकार छंद व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १३x४५). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पू. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनप्रभसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि सुखकारण भवीयण समरो अंति: सूरवर सीस रसाल, गाथा- ७. २. पे. नाम. नमस्कारमंत्र स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपउ मनरंगइ; अंति: जास अपार री माई, गाथा - ९. " ७७९९२. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. ३. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x१०.५, १२x२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि भक्तामर प्रणतमौलि अति (-), (पू.वि. गाथा ३९ अपूर्ण तक है.) ७७९९३. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. ६-५ (१ से ५) = १, प्रले. पं. माणिक्यविजय (गुरु ग. वनीतविजय); पठ. मु. चतुरविजय (गुरु पं. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x१२.५, १८x४२). मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु, पद्म, वि. १७२७, आदि (-); अंति: अभयसोम० मतिमंदिर लहै, ढाल-१४, (पू.वि. ढाल -१३, गाथा- ७ अपूर्ण से है.) , " "" ७७९९४. उत्तराध्ययनसूत्र की सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२५x१२, ११४२८)उत्तराध्ययन सूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्त धरी; अंति: (-), (पू. वि. परिषह सज्झाय अपूर्ण तक है.) ७७९९५. गौतमपृच्छा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) १, जैवे. (२५x११, १४४५३). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा - ६४, (पू. वि. गाथा - ५१ अपूर्ण से है.) ७७९९६, नेमिजिन श्लोको, संपूर्ण, वि. १९११ कार्तिक शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, नवानगर, प्र. वि. हुंडी नेमलोको दे. (२५४११.५, १२४३८). , " नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सरसति माता तुझ पाए; अंति कवि० नेमने तोले, गाथा ५७. ७७९९७. (*) नयचक्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२४.५४१०.५, ४X३७). नकर्णिका, उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७३, आदि वर्धमानं स्तुमः सर्व अंतिः जयसिंह गुरुचतुष्टी, श्लोक-२३. नयकर्णिका- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: संतोषने अर्थे. ७७९९८. (+) ३३ बोल थोकड़ा, संपूर्ण वि. १९४४, भाद्रपद कृष्ण, ७, मध्यम, पू. ४, ले. स्थल बीलाडा, प्रले. ऋ. फूलचंद (लूंकानागौरीगछ); पठ. श्राव. खीवराज चोरडिया (लूंकागछ) (लूंकागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५x१२, २०४४१). ३३ बोल थोकडा-जैन पदार्थज्ञान, मा.गु., गद्य, आदि: इलोग भ १ परलोक भ २; अंति: आसातना शिष्यनै लागे. ७७९९९. (*) धर्मध्यान, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ४, प्र. वि. हुंडी धर्मध्यानपत्र, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x१०.५, १३X३६). धर्मध्यान लक्षण, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि धम्मेज्झाणे चउविहे अति तो वीमल सुख पाए, (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम नरक विचार आरंभ करके छोड़ दिया है.) ७८०००. विषापहार स्तोत्र व बीस विहरमान स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १०४३४). १. पे. नाम. विषापहार, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं. पद्य वि. १७१५, आदि विश्वनाथ विमलगुण ईश; अति श्रीजिणवर को नाम, गाथा - ४१. २. पे नाम. वीस विहरमानजिन स्तवन, पू. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि श्रीमंधर पहला सहीये, अंति (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७८००१ साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १९५०, चैत्र शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वडपत्र (बरोडा), प्रले. श्राव. शोभाचंद छगनलाल शाह (श्रीमालीज्ञाती) (श्रीमालीज्ञाती), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १२४५०). साधुदेवसिप्रतिक्रमणअतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं. ७८००२. शीतलनाथ स्तवन व नरभवदुर्लभ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. अमेदा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १८४३६-४०). १.पे. नाम, शीतलनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिव हो; अंति: चरण न छोडु तोरडा, गाथा-१४. २. पे. नाम. नरभवदुर्लभ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभवदुर्लभता, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुलहो नरभव नमतां; अंति: भइया जीवदया धरम पालो, गाथा-१३. ७८००३.(-) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११.५, १२४३५-३८). सीमंधरजिन स्तवन, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२४, आदि: महाविदेह मे विराजीया; अंति: विनतडी अवधारोजी, गाथा-११. ७८००४. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.८४-८०(१ से ७९,८१)=४, प्र.वि. हुंडी: स्वोपज्ञशतक टीका., जैदे., (२७४११, १७X४७-५०). शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००, (पू.वि. गाथा-९९ से है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: देवेन्द्र० तेन जनः, ग्रं. ४३४०, (पू.वि. "वला प्रवर्ते सापि तावद्यावदावलिका शेषो न भवति" पाठांश से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ७८००५ (+) कल्पसूत्र की टीका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-५१(१ से ३५,३७,३९ से ५३)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिए गएँ हैं. समान प्रत-७८११४., पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५४११.५, ४-१३४२५-३२). कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. गणधरवादे प्रभु समीप इन्द्रभूति आगमनाधिकार से गौतमस्वामी केवलज्ञानाधिकार तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं. बीच मे द्वितीय गणधराधिकार अपुर्ण लिखकर आगे का कुछेक पाठांश लिखना छोड दिया है.) कल्पसूत्र-टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८००६. गांगेयभंग विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, १६४३८). गांगेयभंग संख्या आनयन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: एक जीव सात नरक फिरणे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दस जीव भंग की संख्या तक लिखा है.) ७८००७. कल्पसूत्र का टबार्थ, व्याख्यान व कथा, अपूर्ण, वि. १८८७, कार्तिक, मध्यम, पृ. १६८-१६७(१ से १६७)=१, प्रले. पं. जसवंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुविधिनाथ प्रसादात् हुंडी: कल्पसूत्र पत्र, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४११.५, १५४३२-३६). कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मनोवाक्कायशुद्धितः, (पू.वि. पर्युषण में कल्पसूत्र वांचन के प्रसंग से है.) ७८००८. पगामसज्झाय सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, ११४३३). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंति: (-), (पू.वि. "अठारसहस्सलीलग्गधारा अखुयायार चरित्ता.." पाठांश तक है.) ७८००९. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १२४३४). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नालिकेर लइने नांदिकर; अंति: आचा० उपा० समस्त साध०. For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची "" ७८०१० (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्ध, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ९-६ (१ से ६) ३. पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी उत्ताधेन, संशोधित., दे., (२६X११, ४X३८). " "" उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अति: (-) (पू.वि. अध्ययन-१, गाथा ४६ अपूर्ण से अध्ययन-२, गाथा १५ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). ७८०११. (*) महावीरस्वामीनी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १२X३८-४२). महावीरजिन सज्झाय गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदिः आधार ज हुंतो रे एक; अति वरिया सिवपद सार, गाथा-१५७८०१२. बाहुजिन, नेमिजिन व ऋषभजिन फाग, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२६१२, १३४३७)१. पे. नाम. बाहुजिन फाग, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि परणे रे बहु रंग भरी; अंतिः न्याय० जिन आणि खरी रे, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमनाथ फाग, पू. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन धमाल, मु. सुमतिसागर, पुहिं., पद्य, आदि: सात पांच सखी इण की; अंति: सुमतिसागर वीरचंद, गाथा-६. ३. पे. नाम ऋषभजीन वसंत, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन फाग, ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भले हो ज्ञानी घेलीया; अंति: पद्मविजय० घेरीया, गाथा-५. ७८०१३. जीवकाया सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैये. (२६४१०.५, १०x३६). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि सुणि बहिनी प्रीवडो अति नारीसु सोभागी रे, गाथा- ७. ७८०१४ (#) पार्श्वधरणेंद्र पद्मावती स्तोत्र व पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११, ९X३३-३६). १. पे. नाम पद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वधरणेंद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: नमो भगवते श्री; अंति: सकलार्थ सिद्धिः. २. पे. नाम पद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि सवि अरिहंत, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १२ अपूर्ण तक है.) ७८०१५. औपदेशिक पद वस्तुपाल वैभव व आहार पद संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, जैदे. (२६४११. " १५X३९-४२). १. पे. नाम औपदेशिक दोहा संग्रह, पू. १अ, संपूर्ण, पुहि., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि खाजीइं पीजीई लीजीइं; अंति: नमि लें अंतर करें, गाथा-२. २. पे नाम. वस्तुपाल वैभव पद, पू. १अ संपूर्ण. उपा. सिद्धिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हाथी सहस्त्र अढार; अंति: वस्तुपाल वीतलाही लीउ, गाथा-४. ३. पे. नाम. आहार पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: चोला वरटी तेल साक; अंतिः ऋषभ० सघलो जोबरो, गाथा-२. ७८०१६. (+*) सामायिक, पौषध व पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, १६x४५-४८). १. पे नाम. सामायिक विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम गुरु समक्ष अंति: यथाशक्ति कीजई. २. पे नाम. पोसह विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.मा.गु., गद्य, आदि प्रथम इरिवावही पडिक अंतिः उपदि पडिलेहूं. ३. पे. नाम. पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम चैत्यवंदन, अंति: कीजे ए रीते जांणवुं. ७८०१८. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५X१२, १३x३२). For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण तक है.) ७८०२०. श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी: भूपतिश्रीपालचौपई, जैदे., (२६४११.५, १३४३७-४०). श्रीपाल चरित्र, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंतगुण धरिइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७८०२१. नमस्कारमहामंत्र पद व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. दीप ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: वडोनोका, जैदे., (२५.५४११, १४४३६-३९). १. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र पद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किपतरु रे अयाण चित; अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-१३. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. सबोधविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: अरज सुणी जइ हो जीनजी; अंति: डतै सुबोधविजै सुजगीस, गाथा-९. ७८०२२ (+) अवंतीसकमाल चौपाई, गुरुगण सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. ३, प्रले. गुलाब, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १७X२६-२९). १.पे. नाम. अवंतिसकमाल चौपाई, पृ. ४अ-५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. म. रिषभदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: (-); अंति: रिषभारिषरी वनणा होजो, ढाल-४, गाथा-५७, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. गुरुगुण सज्झाय-७ वार गर्भित, मु. लालचंद ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: हारे भबीणा जिणवर; अंति: लालचंद० मादोपुर मझार, गाथा-१०. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- नश्वर काया, क. नरसिंह महेता, मा.गु., पद्य, आदि: पांच दसां म पूबौ; अंति: नरसी० सवर्यो नहीं, गाथा-१०. ७८०२३. (+) गृहसुतक विचार, संपूर्ण, वि. १८९५, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, ९४२७-३०). सूतक विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: इहां कोई प्रश्न करै; अंति: कहै सो प्रमाण है. ७८०२४. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. विष्णुपुर, प्रले. मु. चुतर (गुरु ऋ. भागचंद); गुपि.ऋ. भागचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ९४३३-३६). सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: पूरि आस्या मनतणी, गाथा-१९. ७८०२५. स्त्री शीखामण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९३५, पौष कृष्ण, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, प. ६-४(१ से ४)=२, प्रले. म. मगतिचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, १२४२३). औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदय महाजस विस्तरे, गाथा-२०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-५ अपूर्ण से है.) ७८०२६. (4) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४४५). गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: (-), गाथा-४६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४५ अपूर्ण तक लिखा है.) ७८०२७. संखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १२४५२). For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी कल्प; अंति: जिणवर तणी राजगीता, गाथा-३६. ७८०२८. (+) रत्नप्रभापृथ्वी विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ९४२६-२९). रत्नप्रभापृथ्वी विचार, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: विवरे कहिता; अंति: कर्त्तव्यता जाणवी, (वि. सारिणीयुक्त) ७८०२९. अनित्य भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. लालजी शवजी ठक्कर; अन्य. मु. मोहनलाल जति, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १०४३६-४०). अनित्य भावना, रा., गद्य, आदि: अनित्यानि शरीराणि; अंति: तर मंगलिकमाला संपजे. ७८०३०. कल्याणमंदिर भाषाबंध व साढापच्चीस आर्यदेश विचार, संपूर्ण, वि. १७९७, चैत्र कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. पंडित. मयाचंद (भावहर्षिया गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३७-४०). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर भाषाबंध, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंति: वणारसी०समंकित सुद्धि, गाथा-४४. २. पे. नाम. साढापच्चीस देश विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. साढापच्चीस आर्यदेश विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेस १ राजग्रहीनगर; अंति: २५ आरज देस जाणवी. ७८०३१. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. पं. आणंदविजय (गुरु आ. विजयानंदसूरि*, तपागच्छ); गुपि. आ. विजयानंदसूरि* (गुरु मु. बुद्धिविजय', तपागच्छ); अन्य. श्राव. लक्ष्मीचंद पुंजाभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: षिमाछत्रीसी, जैदे., (२४.५४११, १३४३०-३४). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: चतुर्विध संघ सुजगीस, गाथा-३६. ७८०३२. (#) पद्मानंद महाकाव्य, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७४५४). पद्मानंद महाकाव्य, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अहँ नौमि; अंति: (-), ग्रं. ११५, (प्रतिपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्ग-१ से १७ तक लिखा है., वि. प्रथम सर्ग के २५ श्लोक के पश्चात् सर्ग-१७ के अंतिम दो श्लोकों का ही उल्लेख किया है.) ७८०३३. नेमिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८१५, कार्तिक शुक्ल, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. सा. करमाजी आर्या (गुरु सा. नोपांजी आर्याजी); गुपि. सा. नोपांजी आर्याजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: नेमजीरोतवन, जैदे., (२५.५४११, १४४३५-३८). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-नवभव गर्भित, म. नयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसहगुरुना पाय; अंति: नयरसिखर० जग आणंदणो, गाथा-४४. २. पे. नाम, पार्श्वजिन निसाणी, प. २अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७८०३४. (+) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ११-१४४३४-४०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: कहे पापथी छुटे ततकाळ, ढाल-३, गाथा-४१. ७८०३५ (#) परमकल्याणना ४१ बोल व चौरासीलाख योनि छप्पा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी: परमकल्याणना ४१ बोल, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १५४४७). १. पे. नाम. ४१ बोल संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ५९ ४१ बोल संग्रह-परमकल्याणकारी, मा.गु., गद्य, आदि: तपस्या करीने नियाj; अंति: दस राणीनी परे, (वि. अंतिमवाक्य का भाग खंडित है.) २. पे. नाम. चौरासी लाख योनि पद, पृ. २आ, संपूर्ण. ८४ लाख जीवायोनि मूकबधिर का छप्पा, मु.सुरगंग, मा.गु., पद्य, आदि: लख चोराशी योनिमां; अंति: सुरशशी० चोरासी ए थया, गाथा-१. ७८०३६. (#) गर्भनो थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. भुरीबाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडीः गर्भनो०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १६४५४). औपदेशिक बोल-गर्भावास दःख, मा.गु., गद्य, आदि: अरे जीव तुं ताहरो; अंति: थवा हमेशां तत्पर रहे. ७८०३७. (#) अढारबोल चोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: चोकडी, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४८-५२). १८ चतुष्क बोल -औपदेशिक व प्रास्ताविक, पुहिं., गद्य, आदि: पहेली चोकडि चार बोले; अंति: जांगनी साथर थइने जाय. ७८०३८. (+#) वीरजन्माभिषेकाधिकार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१५४५७-६०). महावीरजिन जन्ममहोत्सव, मा.गु., गद्य, आदि: (१)केतला एक श्लेष्म करइ, (२)अचेतना अपि दिश०; अंति: उत्सव करी ठामि गया, (वि. प्रारंभिक पाठ देखते हुए आगे पाठ होने की संभावना लगती है.) ७८०३९ (#) दीपमालिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हंडी: दीपमालिका, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ७४२०). दीपावलीपर्व स्तवन, श्राव. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दीवाली दिन अमर वखांण; अंति: निश्चे धरी आणंदो जी, गाथा-७. ७८०४०. परमकल्याणकारी बोल व सात स्थानक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४२). १. पे. नाम, परमकल्याणकारी ४१ बोल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ४१ बोल संग्रह-परमकल्याणकारी, मा.गु., गद्य, आदि: तपस्या करीने नियाj; अंति: दस राणीनी परे. २. पे. नाम. सात थानक विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. ७ स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दुषमकालनां सात थानक; अंति: नसुख ६ वचन सुख ए सात. ७८०४१. (#) स्थूलभद्र नवरसो व जीवकाया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४८, आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. भावी, प्रले. मु. मयाचंद ऋषि; पठ. सा. चंद्रावल आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५०-५५). १. पे. नाम. स्थूलिभद्र नवरसो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. रचनावर्ष १७१९ और स्थल उदयपुर है. उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा; अंति: मनोरथ सहु फल्यां रे, ढाल-९, गाथा-७२. २. पे. नाम. जीवकाय सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो वारु छु; अंति: धर्म हीये थिर थायो, गाथा-५. ७८०४२. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३९-४८). शांतिजिन स्तवन, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६४२, आदि: सोलमो जिनवर सेवीये; अंति: सन्न सोलमो जिनवर सदा, ढाल-८, गाथा-४५. ७८०४३. नेमगोपी संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, १४४३३). For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति: (-), (पू.वि. चोक-९ अपूर्ण तक है.) ७८०४४. (#) मेघरथराजानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१०, आश्विन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वीसलनगर, प्रले. मु.खेमचंद (गुरु पं. दीपविजय); लिख. सा. उजमश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १३४२५). मेघरथराजा सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: दशमें भवे श्रीशांतजी; अंति: कहे रायचंद शुभवाण, गाथा-२२. ७८०४५. (#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी: थुई, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३०). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदिः (-); अंति: धीमतं सावधाना, श्लोक-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आठम थोय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम, श्लोक-४. ३. पे. नाम. आठमनी थोय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जिन आगल; अंति: तपथी कोडि कल्याण जी, गाथा-४. ४. पे. नाम, अग्यारस स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निसदीस, गाथा-४. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, म. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारें श्रीवीरजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७८०४६. स्तवनचोवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१,३)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३२). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. अजितजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण से अभिनंदनजिन स्तवन तक एवं चंद्रप्रभजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण से श्रेयांसजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७८०४७. विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी-नंदिरयणाविही, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडीः विधिप्रपा, दे., (२५४१२, १८४५०-५८). विधिमार्गप्रपा नाम सविहितसमाचारी, आ. जिनप्रभसरि, प्रा., पद्य, वि. १३६३, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७८०४८. (+#) गौडीपार्श्वनाथ स्तवन व शांतिजिन पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ. मु. लाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४५-४८). १. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपर गोडीजी इतिहास वर्णन, म. प्रीतिविमल, मा.ग., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी __ ब्रह्मवादिनी; अंति: पासजी नाम आणंद थाई, ढाल-५, गाथा-५५. २. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. वा. कीर्तिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: शांतिलोचन हे आनि आरे; अंति: नई मोहसु हे अतिभारी, गाथा-३. ७८०४९ (+) मल्लिनाथ सूत्रोक्त स्तवन-ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र अध्ययन-८, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५०). मल्लिजिन स्तवन, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतसागर जिनवर; अंति: अविचल सुखदातार, ढाल-५, गाथा-६३. For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७८०५०. सदर्शनशेठ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १४४४२). सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिनवीर धीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ७८०५१ (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १३४४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ अप्काय आलापक अपूर्ण से गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ७८०५२ (+) शीखामणनी बात, संपूर्ण, वि. १८०३, चैत्र कृष्ण, १४ अधिकतिथि, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. जगन्नाथ ऋषि (गुरु मु. जीवण ऋषि); गुपि.पं. आसकरण; पठ. मु. प्रेमजी (गुरु मु. जगन्नाथ ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४५४). दिनचर्यादि विचार संग्रह, मा.ग., गद्य, आदिः सतां सवारे उठवा; अंति: पछेडी सारू सोड घालवी. ७८०५३. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १७४४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-३, गाथा-५ अपर्ण तक है.) ७८०५४. २१ ठाणा प्रकरण व औपदेशिक गाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. बिहार, प्रले. मु. कृष्णा ऋषि; पठ. मु. धर्मदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२५.५४१०.५, १०x४४). १. पे. नाम, इक्कीस स्थान प्रकरण, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: असे साहणा भणिया, गाथा-६६, (पू.वि. गाथा-६० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक गाथासंग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-२. ७८०५५. संसारदावानल स्तुति सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:संसारटी, त्रिपाठ., जैदे., (२६४११.५, २४३२). संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के ___पत्र नहीं हैं., गाथा-२ अपूर्ण तक है.) संसारदावानल स्तुति-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: अहं वीरं नमामीति; अंति: (-), पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७८०५६. उपदेशबत्रीसी, अपूर्ण, वि. १८८१, श्रावण कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. विद्यापुर, जैदे., (२५.५४११.५, ८४३८-४२). उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: वारु सीख सुनाईजी, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से है.) ७८०५७. गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खजवाणा, पठ. मानमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १३४३३-३९). गौतमस्वामी स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२७, आदि: जंबूदिप दिपा रे बिचम; अंति: रायचंद० हुलास रे माइ, गाथा-१३. ७८०५८. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सिद्धपुर, जैदे., (२६.५४१२, १९४५७). आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाभिकुलगुरु कुल नभ; अंति: ज्ञानचंद० कोई न तोलइ, ढाल-२, गाथा-२६. ७८०५९ (+) गुंहली व भास संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८८, आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी: गुंहली, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १७४३७). १.पे. नाम. जयचंद्रसूरि गुरुगुण गुंहली, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जयचंदसूरिगुरुगण भास, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुमारा दिए उपेदशना; अंति: रंगने सुदासुखदाय, गाथा-७. २. पे. नाम, गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे शुभ परिणामें; अंति: उत्तमने मंगलमालो रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. हर्षसूरिगुरुगुण भास, पृ. १आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद मनमां आणी; अंति: प्रतपो जीहा दूह तारी, गाथा-१०. ४. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. म. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही उद्यान के अंति: महानंद० एक मने रे लो, गाथा-७. ७८०६० (#) उवाईउपांग, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, ३४४१). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००, (पू.वि. सूत्र-४२ अपूर्ण से है.) ७८०६१. रात्रीभोजन त्याग सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, जैदे., (२६४११.५, १३४३५). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: साड्या आतम काज रे, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-२ से है.) ७८०६२ (+#) सप्तनयविचार सह टबार्थ व चार धर्मध्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११.५, ५-१२४४८-५८). १. पे. नाम. सप्तनयविचार सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरूप, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., गद्य, आदि: सप्तमूलनय पणत्ता; अंति: गुणट्ठिउसाहुसेतंणाए. अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरूप का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सप्तमूलनय जाणवी; अंति: जिनवचन साचा सद्दहिया. २.पे. नाम, चार धर्मध्यान श्लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ ध्यानवर्णन श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: राज्योपभोगशयनासनवाहन; अंति: अवसादासत्तणे मवंति, श्लोक-१७. ७८०६३. गणधरवाद स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). गणधरवाद स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सो सुत त्रिसलादेवी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ७८०६४. (#) वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ४४४२-४५). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: पुच्छिसुणं समणामाहणा; अंति: आगमे संत्ति तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० पुछेता हुया कोण; अंति: प्रमियं काल कहुं छु. ७८०६५ (+) शांतिकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३४, वैशाख शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, प्रले. चंदनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१०.५, १०४३०). संतिकरं स्तोत्र, आ. मनिसंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: सांतिकरं सांतिजिणं; अंति: सिद्धी भणइ सिसो, गाथा-१४. ७८०६६ (+#) उपदेशरत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. सा. रामदी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ७४२८-३२). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणमालं नासिअनीस; अंति: विउलं उवएसरयणमिणं, गाथा-२६, संपूर्ण. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेश रुपी या रत्न; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा-२६ का टबार्थ नहीं लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७८०६७. कर्पूरप्रकर का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७११, श्रावण शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३६-१३५(१ से १३५)=१, ले.स्थल. अणहलपुरपत्तन, जैदे., (२६४११.५, ९४२९-६२). कर्पूरप्रकर-बालावबोध, उपा. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: तादिक गुण छे जेह तणा, (पू.वि. मात्र अंतिम ___अंश का बालावबोध है.) ७८०६८. () रत्नकरंडक श्रावकाचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ८४३२-३५). रत्नकरंडकश्रावकाचार, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: नमः श्री वर्द्धमानाय; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक ७८०७० (+) रत्नसेन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१५४३६-३९). रत्नसेन रास, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकमल चितलाइ मुहि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१७ अपूर्ण तक ७८०७१, (+) मँहपती बोल, सिद्धभेद गाथा व जीवभेदादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १५४२०-३५). १. पे. नाम. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १ सूत्रअर्थ दृष्टि २; अंति: ६ छकायनी जयणा करु. २.पे. नाम. पनरे भेदे सिद्ध गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. १५ सिद्धभेद उदाहरण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जिणसिद्ध सयल अरिहा१; अंति: समये अणेग सिद्धा य, गाथा-४. ३. पे. नाम. दोहा संग्रह जैनधार्मिक, प. १अ, संपूर्ण, पे.वि. इस पेटांक के प्रारंभ में लिखा है-"गये काल को पडिक्कमणो वर्तमान काल की सामायिक संबर, आगामि काल का पच्चखाण" दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: वीसा हाथ आवै नही; अंति: श्रीजिनवाणी तहित, गाथा-१. ४. पे. नाम. ५६३ जीवविचार बोल संग्रह, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: १४ भेदे नारकी गति १; अंति: (१)देवतारा १९८ जाणवा, (२)कीधां ५६३ भेद जाणवा. ७८०७२. कल्पसूत्र की व्याख्यान व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पंडित. हर्षभक्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १६x४२-४८). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपर्ण, प.वि. रुद्र ब्राह्मण की कथा से सास-जमाई की दृष्टांत कथा तक है.) | ७८०७३. शाश्वतजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४२७-३०). शाश्वतजिन स्तवन, म. माणिक्यविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: वीर जिणेसर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) ७८०७४. (#) क्षमाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. १८२६, भाद्रपद कृष्ण, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: खिमाछत्रीसी, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३२). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण आदर; अंति: पूरो संघ जगीस जी, गाथा-३६. ७८०७५ (#) महावीरस्वामीनुं पाल, रुपियानी शोभा व रोटलानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३३-३६). १.पे. नाम. महावीरनुं पालj, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन हालरडं, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता जसोदा झलावे; अंति: दीपविजय कविराज, गाथा-१७. २. पे. नाम. रुपियानी शोभा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-रुपये की शोभा, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देश मुलकने रे परगणां; अंति: लां ए फूदडीयानां मान, गाथा- ११. ३. पे. नाम. रोटलानी सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. तपपद सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि सर्व देवदेव में अंति (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ७८०७६. गर्भावास दुःखना बोल व सित्तेर बोल, संपूर्ण, वि. १९३४, आश्विन शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. प्रले. श्रावि. अंदरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी गर्भावास, वे. (२५.५४१२, १५४३९-४५). २, " ९. पे. नाम. गर्भावासना दुःखना बोल, पू. १अ २आ, संपूर्ण. " औपदेशिक बोल-गर्भावास दुःख, मा.गु., गद्य, आदि: अरे जीव तूं कीहांथी; अंति: फरी मलवो दुःखकर छे. २. पे. नाम. सित्तेर बोल, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरणसित्तरी के ७० व करणसित्तरी के ७०बोल, मा.गु., गद्य, आदि: ५ महाव्रत १० जतिधर्म; अंति: ७० सितेर बोल. ७८०७७. (*) मेघकुमार चौडालियो, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी: मेघकुमार, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जै (२६११.५, २२-२५ ६० ). मेघकुमार चौडालिया, मु. गुणसागर, मा.गु, पद्य, आदि रिषभादिक चोवीसने अंति: जासी अविचल धाम, डाल-८. ७८०७८. सुमतिशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे. (२५.५४११, ९४२५). औपदेशिक सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि मारे घर आवजो रे वाला; अंति: रोता सांभलजो शुभभावे, गाथा-१६. "" ७८०७९. (*) सिद्धचक्र सज्झाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित दे. (२५.५४११.५, ११X३८). १. पे नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि माराने हाथ में नोकार अंति रूपविजय० सोवन सीधजी गाथा- ६. २. पे नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पू. १अ-२अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि अंगदेश चंपापुरी वासी अंति: उदयरतन० नीत दीवाली, गाथा ४. ७८०८०. सीमंधरजिन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., ( २६१२.५, १२X४२-४५). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः परम मुनि ध्यान वन; अंतिः सेवक सकलचंद कृपा करो, ढाल -४, गाथा- ३२. २. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पू. २आ, संपूर्ण, " उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि हम मगन भए प्रभुध्यान; अंति: जस कहे० मैदान में, गाथा-६. ७८०८१ (#) वीशविहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही गयी है, जैवे. (२६४१२, १३३४-३७). २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम सुबाहु वखांण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल -५ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ७८०८२. दंडकपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी क्रोधी प्रतिलेखन पुष्पिका अनुपलब्ध है. वे., (२५x११.५, १३X३०-३३). दंडकपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दंडक चोविसमां जीव; अंति: देजोनीया रोजी क्रोधी, गाथा - २५. ७८०८३. (*) चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, कुल पे. ६. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, १७x४३). १. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २अ संपूर्ण. मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः सिद्धचक्र आराधतां अंतिः तणो सौष्य कहे करजोडि, गाथा ५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेला प्रणमं विहर; अंति नाय वंदे कर जोड, गाथा- ६. For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर पुजीनीक; अंति: हर्ष० लहे अविचल रीध, गाथा-१. ४. पे नाम, बीसस्थानक चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण २० स्थानक चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत सिद्ध पवयणसुः अंति: हर्ष० कोडि कल्यांण, गाथा - १. ५. पे. नाम. अष्टमी नमस्कार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व नमस्कार, मु. जीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभु चंद्रवरण, अंतिः सेवता जितविमल जयकार, गाथा-५. ६. पे. नाम. सीमंधरस्वामी चैत्यवंदन, पृ. ३अ संपूर्ण " सीमंधरजिन चैत्वंदन, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान जिन वीसमा; अंति: तिहां लखमी जयजयकार, गाथा-१. ७८०८४. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११) १, जैवे. (२५४११, १६४६५). विचार संग्रह प्रा. मा. गु. सं., प+ग, आदि (-) अति परिवर्त्तयतः (पू.वि. रामायण विचाराधिकार अपूर्ण से है.) ७८०८५. बत्रीस उपमा, संपूर्ण, वि. १८८७, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, भुजनगर, प्रले. मु. अजरामलजी ऋषि (गुरु " मु. देवजी ऋषि); गुपि. मु. देवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १७x४२). ३२ उपमा शीलव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: ग्रह नक्षत्र तारा; अंति: रथ जुद्धे करीमो, (वि. प्रश्नव्याकरण संवर-४ से उद्धृत) ७८०८६. पार्श्वनाथजीनो छंद, संपूर्ण, वि. १९३४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. लीबंडी, प्रले. मु. जीवण; पठ. मु. लघुलाघा (गुरु मु. जीवण); अन्य. श्राव. ताराचंद रायचंद वारीया, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२६४११.५, १०x३०). पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, मु. चेतन, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: कल्पवेल चिंतामणि; अंति: समरो मन वच काय, ढाल - २, गाथा - २६. ७८०८७. (#) प्रव्रज्या विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : प्रव्रज्या, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १७५२-५६). दीक्षा विधि, प्रा.मा.गु., प+ग, आदि तिविहापवज्जापं अति: एसणमणे सणवा, (वि. विभिन्न आगमों से उद्धृत.) ७८०८८ (+) स्थूलभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी नोरसियो, संशोधित, जैवे. (२५x११.५, २६४५८-६२). ६५ स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ९ अपूर्ण तक लिखा है.) ७८०८९. पुण्यछत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७ - २५ (१ से २५ ) = २, प्र. वि. हुंडी : पुण्यछत्रीसी, जैदे., (२५X११.५, १३X३२-३६). पुण्य छत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुन्यतणा फल परितख; अंतिः समवसुंदर ० परतिक्ष जी, गाथा- ३६, संपूर्ण ७८०९० कार्तिकसेठ पंचढालिया व नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, जैवे. (२५.५४११, २३४५४). १. पे. नाम. कार्तिकसेठ पंचढालिया, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि अरहंत सिद्ध साहू; अंतिः ऋष जेमल उपयोगज राखी, ढाल ५, गाथा- ९१. २. पे. नाम नेमिनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रवीजे सुत लाडला; अंति: गुण चोथमलजी गाया रे, गाथा - १७. ७८०९१ (७) पद संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. २, कुल पे २४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११.५, १९४४२-४७). १. पे नाम. राधाकृष्ण पद, पू. १२, संपूर्ण, पुहिं., पद्य, आदि ईण वंसी मे मेरो अंति से लावो गड घेरी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हक मरना हक जानां; अंति: रूपचंद० जिनगुण गाना, गाथा-४. ३. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पंडित. सूरज, पुहि., पद्य, आदि: कुवरी वो दीन क्यो; अंति: सूरज० चरण चित मारो, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-परनारी परिहार, कमाल, पुहिं., पद्य, आदि: मदमोह की शराब; अंति: कमाल० जन बंधगी करो, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दानशीलतप, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जीया रे खोउ छो; अंति: सुण सतगुरुनी वातडी, गाथा-३. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक पद-पापकर्म परिहार, म. चतरकशल, पुहिं., पद्य, आदि: आरंभे मत पापक गत; अंति: सीवरमणीनो वासी, गाथा-६. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: फागुन में फाग रमो; अंति: निगोदसुं रहो न्यारे, गाथा-३. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: एही बतीया कुमत कहा; अंति: चतुरकुशल०दूर रहो बाई, गाथा-३. ९.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चतुरकुशल, पुहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: वीसरे मत नाम जीनंदजी; अंति: चतुरकुरंग पतंग फीको, गाथा-३. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म.ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: भोर भयो भोर भयो भोर; अंति: ग्यानसार जोत ठानी, गाथा-४. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्य, पं. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: जुग में जीवना थोरा; अंति: ज्ञानसार जोत ठानी, गाथा-४. १२. पे. नाम, नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: यादव जाओ फीरी स्या; अंति: रूपचंद० थयो भोर रे, गाथा-३. १३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सामरी सूरत मेरो दील; अंति: रूपचंद गुण हरख्यो छे, गाथा-६. १४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: कब मीलस्ये प्यारो; अंति: जिनदास० अब जूनो, गाथा-४. १५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. भाणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुनि प्यारो लागे छे; अंति: भाणचंद० दीजो माहाराज, गाथा-५. १६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहा रे अग्यान जीव; अंति: जिनराज० सेज मीटावे, गाथा-३. १७. पे. नाम. घडियाली गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर सुणउ चित लाइ कइ; अंति: समयसुंदर० एहज आधारा, गाथा-३. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जाग जाग रेण गई भोर; अंति: तो निरंजन पद पावे, गाथा-४. १९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-धैर्य, गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: रे मन धीरजता न धरे; अंति: तुलसीदास० नास करे रे, दोहा-६. २०.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ म. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: नित नमीए पारसनाथजी; अंति: एह अनाथांनाथजी, गाथा-५. २१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.. मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: लग जा हो जीव जिनचरणा; अंति: आतमा रे परमातम एहडूल, गाथा-५. २२. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तूं मेरा मन मे तं; अंति: में देव सकल में हो, गाथा-५. २३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: कोई दीन काल फोरेगो; अंति: चतुरकुशल०करो आठु जाम, गाथा-३. २४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पद, पृ. २आ, संपूर्ण.. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन मुगतपुरी सुर; अंति: पेखत पाप गौरी, गाथा-३. ७८०९२.(-) पुद्गल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १७४४४). पुद्गल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पुद्गदुव्यनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकासतिकाय के देसबंध प्रसंग तक लिखा है.) ७८०९३. (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १९-२३४५५-५८). आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अनुयोगद्वार मध्ये; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आचार्य भगवंत के आने पर उनके स्वागत का वर्णन तक लिखा है.) ७८०९४. नेमिराजीमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४११, ११४३४). नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोविंद मंदिरज रहिया; अंति: नेमीसर करम खप मगतजी, ढाल-४. ७८०९५. ३६३ पाखंडीना मत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: ३६३ पाखंडी, दे., (२५.५४११, २०४६४-६७). ३६३ पाखंडी मत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवे पांमो प्रश्न; अंति: छे तेवो हुं नथी, (पू.वि. सूयगडांगसूत्र से उद्धृत) ७८०९६. (#) औपदेशिक सज्झाय-सम्यक्त्व गर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: सुरतानी, अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४२६-३०). औपदेशिक सज्झाय-सम्यक्त्व गर्भित, म. आसकरण ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: नंदीसत्र में चवदे; अंति: आसकरणजी हम तासौ जी, गाथा-१८. ७८०९७. (#) सिद्धदंडिका स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३६-३९). सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: पद्मविजय ___ जिनराया रे, ढाल-५, गाथा-३८, (पू.वि. ढाल-२-गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-५, गाथा-२६ अपूर्ण तक नहीं है.) ७८०९८. चंदनबालानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मेताड, प्र.वि. हुंडी: चंदण, जैदे., (२५४११, २०४३८-४२). चंदनबालासती सज्झाय, म. कवियण, मा.ग., पद्य, आदि: कसुबीनगरी पधारीया; अंति: सुन पामो भव पार हो, गाथा-३०. ७८०९९. आराधना प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, प्र.वि. बाद मे "बाइ रामोपठनारत" लिखा है., जैदे., (२५.५४११, ३४३३-३६). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: ते सासयं सोक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५, (पू.वि. गाथा-६८ अपूर्ण से है.) पर्यंताराधना-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मुक्तिनां सुख लहइं. ७८१०१. (+) दादासाहेबनी अष्टप्रकारीपूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १३४३६). जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: स्मृत्वा गुरुपदांभोज; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., फल पूजा तक है.) For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८१०२ (४) रोहिणीतपनुं स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद्र (गुरु पं. तलसीरत्न गणि, वंदणीकगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, ९४३३) " 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंतिः श्रीसार०मन आस्या फली, डाल-४, गाथा-३२. ७८१०३. (+#) आठप्रहर पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X११, १७४३४). पौषधविधि - अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि रात्रीने पाछले वि, अंतिः शेष आहार आप करे. ७८१०४. इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) =४, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११, ११४३५). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-५ से ढाल-६, गाथा-४ तक है.) ७८९०५. कल्याणमंदिर व भक्तामरस्तोत्र का शेषकाव्य, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल, खटकड, प्रले. सुखजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५X११, १०x३७). " १. पे नाम, कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद चौपाई. पू. १अ ४अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास पुहिं. पद्य वि. १७वी, आदि परम जोति परमातमा परम; अति कारण सम्यक्त्वसुधः, गाथा-४४. २. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र का शेषकाव्य, पृ. ४आ, संपूर्ण, भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि गंभीरताररविपुरि अंतिः परिणतगुणैः प्रयोज्या, श्लोक-४. ७८१०६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८२७, माघ शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-१३ (१ से १३)=१, ले.स्थल. कोटीनगर, प्रले. पं. खुशालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १६x४८-५१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्म, वि. १वी, आदि (-); अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्लोक-३९ अपूर्ण से है.) " कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भव्य प्राणी, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७८१०७ स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१ (१) १, कुल पे ४ जैदे. (२५४१०.५, १५४३५). 1 "" १. पे नाम, गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, वि. १८१८, आदि: (-); अंति : ता सयल मनवांछित मिलै, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. सुमतिनाथ स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. रतनसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: हां रे म्हाराज सुमति; अंति: रतनसागर० अविचल मोख, गाथा - १०. ३. पे. नाम, पासजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंद मुझ मनमे वस्, अंतिः तेजपाल० सुख दायोजी, गाथा- ६. ४. पे. नाम. चोवीस जिननाम स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिननाम स्तवन, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: वरतमान चोवीसनेजी मन; अंति: देज्यो अविचल राजजी, गाथा-५. ७८१०८. नवतत्त्व का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी: नवतत्त्व, दे., (२६X१२, १५X४५). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि नत्वा जिनगिरं कुर्वे, अंति (-), (पू. वि. आश्रवबंध का वर्णन तक है.) For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७८१०९ (+) अभक्ष्य अनंतकाय विचार, अपर्ण, वि. १८९३, भाद्रपद कृष्ण, ५. श्रेष्ठ, प. ३-२(१ से २)=१. पठ. पं. रत्नसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३, १७X४२). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इणा आगै मूर्ख छू., (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अभक्ष्य वस्तु खाने से होने वाले नुकसान का वर्णन अपूर्ण से है.) ७८११० (+) पर्यंताराधना सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४३८). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५३, अपूर्ण से ६१ अपूर्ण तक पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८१११ (4) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्रले. मु. विमलविजय (गुरु मु. धर्महर्ष); गुपि. मु. धर्महर्ष (गुरु पं. विशाल); पं. विशाल (गुरु भट्टा. विजयदानसूरि); भट्टा. विजयदानसूरि; पठ. मु. कान्हा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, १५४४७). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, (पृ.वि. नेमिनाथ स्तुति की प्रारंभिक गाथा अपूर्ण से है., वि. २४ तीर्थंकरों की स्तुति का गाथांक क्रमशः है. गाथांक व तीर्थंकर के नाम में भेद नहीं किये गये हैं.) ७८११२. (+) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२०-११९(१ से ११९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. हंडी: श्राद्धप्र०व, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४७). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्रत-१० धनद कथा अपूर्ण से व्रत-११ की वृत्ति अपूर्ण तक है., वि. वृत्ति में रही प्राकृत गाथाएँ संदर्भरूप लगती हैं. विशेष संशोधन अपेक्षित.) ७८११३. (#) उवसग्गहर स्तोत्र व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३०). १. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: निब्भरेणहियएण तादेव०, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है., वि. साधारण विधि सहित.) २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्री तं नम; अंति: ए पाठ शुद्ध छै सही, (वि. मेरुतुंगसूरि रचित पद्मावती कल्प का संदर्भ दिया गया है.) ७८११४. (+) कल्पसूत्र की टीका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-३४(१ से ३४)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. समान प्रत-७८००५., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२४.५४११.५, १३४३३). कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गणधरवादे विविध विशेषणयुक्त इन्द्रभूति को प्रथम बार ___ महावीर दर्शनाधिकार से गौतम केवलज्ञानोत्सव प्रसंग अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८११५. (+) चउसरणपयन्ना सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पढमं पइण्णयं गाथा-३१ अपूर्ण से ४२ तक है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८११६. (4) पद्मावती स्तोत्र व अष्टक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १४४३२). For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथजिन; अंति: संपूजयामोर्बयंम००, श्लोक-११. २. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ७८११७. (+) साध्वीउपगरण विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४४८). साध्वीउपकरण विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: साधवीना उपगरण कहइ छइ; अंति: वारउ प्रमाण जाणिवो, संपूर्ण. ७८११८. (+#) प्राकृत संस्कृत शब्दकोषादि साधारण कृति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४११.५, १०x४३). प्राकृत संस्कृत शब्दकोषादि साधारण कृति , प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जुआ युवा अधाणो अधून. ७८११९ (4) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २३४४६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. मनोहर, मा.गु., पद्य, आदि: लख चौरासी जीवा जोनमै; अंति: लाल मनोहर कहे वीचारे, गाथा-११. २. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त कहे ब्रह्मराय; अंति: बंध्य बोल मानो हो, गाथा-१९. ३. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. नित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक धर्म करो; अंति: होसि पुतिखणा धरीजी, गाथा-११. ४. पे. नाम. भरथरीराजा सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. भर्तहरीराजा पद, कालू, मा.गु., पद्य, आदि: मोती वैरागर छै घणा; अंति: गुरु ज्ञान संभाड्या, गाथा-२१. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-लालच परिहार, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लालच, मा.गु., पद्य, आदि: लाचच विषीया रणै जी; अंति: लापडहा काया छोडै जाय, गाथा-१३. ६.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कव्यसनत्याग, पृ. २आ, संपूर्ण. कुव्यसन त्याग सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: छांडु रे छाडु; अंति: (१)सातमय कवण तो रासकारो, (२)कल्याण० दारिद्र भारी, गाथा-१०. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: ऊतपत्ति जोज्यो जीव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६४ अपूर्ण तक है.) ७८१२०. अंबिकादेवी छंद व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ११४२४). १.पे. नाम. अंबिकादेवी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (१)सगति रूप रूप कुंण, (२)जिण रिण निवाडीय उपडी; अंति: चगै चित सेवं मुदा, गाथा-६. २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: हमारे निरधने धन राम; अंति: दाता सूरदास सुखधाम, गाथा-३. ७८१२१. मौनएकादशीपर्व स्तवन व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३७). १.पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: समयसुंदर कहो द्याहडी, गाथा-१३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, पुहि., पद्य, आदि: मेरे मन मानी साहिब; अंति: श्रीधर्मसी उहिज संत, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७८१२२. चौवीसी स्तवन व वीसविहरमानजिन स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैदे., (२७४११.५, , १४४३१). १. पे. नाम. चोवीसी स्तवन, पू. १अ संपूर्ण २४ जिन स्तवन, सा. जसोजी आर्या, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात मया करो; अंति: जसो बे करजोड मनरंगजी, गाथा - १५. २. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: दया करते रहीयौ, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १ अपूर्ण तक है.) ७८१२३. (+) पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११.५, १४X३७). יי पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि सकल सिद्धिदायक सदा अति (-). ( पू. वि. ढाल - ३, गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७८१२४. (+) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित., जै.., (२६११, १४४५०). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. जमदंड द्वारा कथित प्रथम दिन कथा अपूर्ण से तृतीय दिन कथा अपूर्ण तक है.) ७८१२५. (+) संग्रहणी सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. हुंडी संग्रह०१, संशोधित, जैदे., (२५X११, १३X३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठे अरिहंताई दिइ अति (-). (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक " है.) ७८१२६. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३- २ (१ से २) = १, दे., (२५.५X११.५, ५X३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १० अपूर्ण से १७ तक लिखा है.) , ७८१२७. (+#) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र की टीका सह व्याख्या-मानोन्मानप्रमाण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, प्र. वि. प्रथम लिखित पत्रांक ७ की जगह १ किया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जै.., (२५X१०.५, १२३७). ७१ कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. टिप्पण में लक्षण लिखे गए हैं. प्रारंभिक पाठ देखते हुए आगे पाठ होने की संभावना है. कुछेक हद तक विनयविजयजी कृत टीका के साथ समानता लगती है.) कल्पसूत्र-टीका की व्याख्या, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ७८१२८. (f) बारमासा व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. अजनुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११.५, ८X२८). १. पे. नाम. नेमिनाथद्वादशमासा, पू. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only नेमराजिमती बारमासा, मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दान मुनि गावें मुदा, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. स्थूलभद्र सज्झाय, पृ. ९अ- ९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांति, मा.गु., पद्य, आदि: बोली गयो मुख बोल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७८१२९. (f) आराधना प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-५ (१३.५ से ६,८) =४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैवे. (२५.५x११.५, ४४३५). "" पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक, २२ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक, ४६ अपूर्ण से ५३ अपूर्ण तक व ६१ अपूर्ण से ६९ अपूर्ण तक है.) Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७८१३० रहनेमी चोक, संपूर्ण, वि. १९०४, कार्तिक कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. देवचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, ९-१६४३५). रथनेमि चोक, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: एक दिवस वसे रहेनेमी; अंति: सीसे उत्तम गुण गाया, गाथा-१४. ७८१३१ (4) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ३७४२१). बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "पाणी वनसपती माही" पाठांश से "मनुष्यनो तीज॑चनो" पाठांश तक है.) ७८१३२. (2) १४ गुणस्थानके कर्मप्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, ४१४२२). १४ गुणस्थानके कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बंधाधिकार अपूर्ण से उदयाधिकार __ अपूर्ण तक है.) ७८१३३. (4) तमाकु परिहार सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११, ११४२८). १. पे. नाम. तंबाकू सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-तमाकु त्याग, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवे; अंति: तस घर नवनिधान, ढाल-२, गाथा-१७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.ग., पद्य, आदि: कामणगारी हो पासजी तु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७८१३४. बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९३६, माघ शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. अणहलपुर पाटण, दे., (२६.५४११.५, ११४३९). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (१)पूज्यमाने जिनेश्वरे, (२)जैनं जयतु शासनम्, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., "रक्षतु वो नित्यं स्वाहा ॐ आचार्योपाध्याय प्रभृतिभिः" पाठांश से है.) ७८१३५ (+) ८ गुणदोष सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७९३, वैशाख शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. राजनगर, पठ. श्रावि. देवकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: आठगुणसझायपत्र., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ८-१३४४०). ८ गुणदोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सहज स्वभावनी सिद्धि, गाथा-१५, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ७८१३६. २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, ४९४२७). २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.ग., गद्य, आदि: च चे चो ला अश्वनी; अंति: २ लह महावीर वि १० लह. ७८१३७. औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८-४२). औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: अनोपही रूप कलाविध; अंति: ध्रमसी० सिद्ध कही की, सवैया-११. ७८१३८ (+#) योगादि प्रायश्चित विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१०.५, १८४७०). योगादि प्रायश्चित विधि, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: आवस्य निसाहिया भंगे, (पू.वि. "जल्देवगुर्वासातनाया" ___ पाठांश से है.) ७८१३९. पिंडविशुद्धि प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से २,४)=२, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. ग. हेमसमय (गुरु पं. समयरत्न गणि); गुपि.पं. समयरत्न गणि; पठ. श्रावि. रूपाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३५-४०). For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बोहिंतु सोहिंतु य, गाथा-१०३, (पू.वि. गाथा-४८ अपूर्ण तक व ६८ अपूर्ण से ९१ अपूर्ण तक नही है.) । ७८१४१ (+#) जंबुस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्रांक खंडित हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १८४४७). जंबूस्वामी चरित्र, सं., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. प्रायः गाथा-४५ अपूर्ण तक है., वि. आदिवाक्य खंडित है.) ७८१४२. २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, जैदे., (२५.५४११.५, २०४५५). २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चु चे चो ला अश्वनी; अंति: २ ल महावीर वि १० ल, संपूर्ण. ७८१४३. (+#) आशातनापरिहार कलक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: आशातनापरिहार कुलकं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ११४३४). आशातना परिहार कुलक, मु. पार्श्वचंद्र *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक है.) ७८१४४. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८२, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्रले. ऋ. जेराम केसवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: स्तवन, जैदे., (२६४११, १६x४६-४९). १.पे. नाम, रथनेमिराजिमति सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, म. देवविजय, मा.ग., पद्य, आदि: काउसग्ग व्रत रहनेमि; अंति: मनिदेव केवल लेसे रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: मे तो निजरे रहेस्युं; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-८. ३. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: व्हाला सुमति जिनेश्व; अंति: माणेक०सूमती दीदार रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. चौवीस जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभअजीत जिनदेवा संभव; अंति: न्यायसागर०प्रांणी रे, गाथा-६. ५. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदवर्धन, पुहि., पद्य, आदि: सेहेर वड़ा रे संसार; अंति: आनंद कहे आधार, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) ७८१४५ () जीरावला पार्श्वनाथ स्तवन व २४ जिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. माणेक ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११-१३४२१-४०). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. सोमजय, अप., पद्य, वि. १६वी, आदिः (-); अंति: उलि जिण मुज पूरि आस, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८, (वि. सारिणीयुक्त) ७८१४६. (+#) मौन एकादशीनं दोढसो कल्याणकनं गणणं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, ११४२२). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: श्रीमहायशः सर्वज्ञाय; अंति: आरण्यकनाथाय नमः. ७८१४७. (#) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ११४३७). For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिणेसर केसर; अंति: वाचक जसविजय सिर लही, ढाल-६, गाथा-४८. ७८१४८. (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १८४६, वैशाख शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. शीलरंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: ग्यानपंचमी, संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४४५-५०). वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: मुक्ति गया. ७८१४९ (#) आठ कर्म १५८ प्रकृति विवरण, अपूर्ण, वि. १९०५, श्रावण शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पठ. मु. रायचंद (गुरु मु. रतन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२, १५४३७). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धर्मने विषे उदम करवो, (पू.वि. वेदनीय कर्मविचार से है.) ७८१५०. साधुवंदना बड़ी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. फतेचंद ऋषि (गुरु मु. आसानंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १२४३७). साधुवंदना बृहद, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अणंत चउवीसी; अंति: जैमल एही तिरणरो दाव, गाथा-१११. ७८१५१ (+) कम्मपयडी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५५, वैशाख शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. जुहारमल यति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३४३३). कम्मपयडी स्तवन, उपा. तत्त्वप्रधान गणि, मा.गु., पद्य, वि. १९४१, आदि: सेना माता जितारि; अंति: अमृतगति चित नित वशी, ढाल-२, गाथा-२७. ७८१५२. दीवाली रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१२, १४४३७). दीपावलीपर्व रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंत रो गुण; अंति: इम कहइ दिवाली गाय, गाथा-४५. ७८१५३. (+) औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडीः सवैया., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १७X४२). औपदेशिक सवैया संग्रह, म. भिन्न भिन्न कर्तक, पहिं.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: तजरे ३ किन क तज; अंति: जिनदास डोकरो चाखतो, सवैया-१९. ७८१५४. (+) रतनकुमार सज्झाय, सीमंधरजिन व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १८४५५). १. पे. नाम. रतनकुमार सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख. रतनगुरु सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण आगला रे; अंति: उपे जिम तंबोल, गाथा-४१. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पं. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: मनडो उमाह्यो हो दरसण; अंति: नित रह आपने संग हो, गाथा-९. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: हढवाडो मेलाजी सो; अंति: जैमल० मीथ्या भर्म, गाथा-१९. ७८१५५ (+#) नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १९५९, वैशाख शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: नवकार छंद, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ११४२८). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: कुशललाभ० वंछित लहे, गाथा-१८. ७८१५६. (2) क्षमाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४३५). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६. ७८१५७. चौदगणठाणा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, १५४४२). For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व अभव्यनइं; अंति: गुणठाणा विचार, (वि. पत्र-२ आ पर गुणस्थानकक्रमारोह सह टबार्थ कृति आरंभ कर छोड़ दिया गया है.) ७८१५८. (+) पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ६४१६). नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुद दिन पांचम; अंति: ए सफल कीयो अवतार तो, गाथा-४. ७८१५९ (+) बीजतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ६४१६). बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लब्धिविजय० मनोरथ माय, गाथा-४. ७८१६० (+) मौनएकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ६४१८). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: संघ तणां निशदिश, गाथा-४. ७८१६१ (+) नंदिस्तव व जोगनंदी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ९४३४). १. पे. नाम. नंदि स्तव, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ___ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणइ नवकार उधणियं, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. नंदीसूत्र-जोगनंदी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "रायपसेणियस्स जीवभिगमस्स पन्न" पाठांश तक है.) ७८१६२. (+) भगवतीसूत्र आलापक संग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४१-१३९(१ से १३६,१३८ से १४०)=२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १७४५१-५८). भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देव अल्पबहुत्व अधिकार से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८१६३. (4) पार्श्वजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, २०४५२). पार्श्वजिन चरित्र, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. मुनि द्वारा मरुभूति को उपदेश प्रारंभ से उपदेशान्तर्गत ललितांग कथा में ललितांग को राज्यप्राप्ति व अधर्मि सजन का दुर्दशावस्था में मिलन प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७८१६४. (#) शत्रुजयतीर्थ व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ११४३५). १.पे. नाम, शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमन्निव भक्तिभरात्; अंति: लप्स्यते फलमुत्तमं, श्लोक-१४. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत नमो भगवंत; अंति: ज्ञानविमलसूरिस नमो, गाथा-८. ७८१६५. पुरंदरकुमार रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१०.५, १५४३९). पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से ५० अपर्ण तक है.) ७८१६६. औपदेशिक सज्झाय-शील, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पूवि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११,१२४३१). औपदेशिक सज्झाय-शीलव्रत, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " ७८१६८ (+) चंद्रधवलभूप धर्मदत्तश्रेष्ठि कथा, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पू. ६-३(१ से ३)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, जैवे. (२६.५४११, १५४४२). चंद्रधवलभूप धर्मदत्तश्रेष्ठ कथा, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि (-): अंति: (-), (पू.वि. धनसागर श्रेष्ठ द्वारा पुत्री धनवती के लग्न हेतु जन्मपत्री मिलान प्रसंग से धर्मदत्त स्वर्णपुरुष द्वारा १६ कोटि धन प्राप्त करके स्व गृह प्रति प्रयाण प्रसंग अपूर्ण तक है., वि. कृति में पद्य दिया गया है लेकिन गद्यबद्ध प्रतीत होता है.) ७८१६९ (४) विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९बी, जीर्ण, पृ. १, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५X११, १४X३३-४७). विविध विचार संग्रह, प्रा., सं., प+ग., आदि: अंडजाः पक्षिसर्पा, अंति: मिदं प्रवदंति०, (वि. साधु भिक्षा, अंडजादि व सचित्त आटा आदि विचार दिए गए हैं.) ७८१७० (+#) चतु: शरण प्रक्रीर्णक, कल्याणविजय गुरुगुण स्तुति व मन्हजिनाणं सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६११.५ १२४३६). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम चतुः शरण प्रकीर्णक, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. २. पे. नाम. कल्याणविजय गुरुगुण स्तुति, पृ. ४-४आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने पार्श्वनाथ स्तुति लिखा है. मु. कल्याणविजय - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि मनवंछित पूरण कल्पतरु; अंति: करयो सानिध धर्मतणुं गाधा-४. ३. पे. नाम मन्दजिणाणं सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि मन्हजिणाणं आणं मिच्छ, अंति: निच्वं सुगुरूवएसेणं, गाथा ५. " ७८१७१. आत्मनिदाष्टक व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२६११, १७२०). १. पे नाम. आत्मनिंदाष्टक, पू. १अ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि श्रुत्वा श्रद्धाय; अंति कार्य हहा कर्मभि श्लोक-१०. २. पे. नाम औषध संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८१७२. मौनएकादशी स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. सेजकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२५.५x११.५, 3 1 १३५३६). मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी द्वारामती कृष्ण; अंति: जे कवि नय इम पभणीजे, गाथा-४. ७८१७३. व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५.५x११.५, १३४५४). , व्याख्यान संग्रह, प्रा., मा.गु. रा. सं., प+ग, आदि दानं दया दमद्रीणां अति: बीचे मंगलमाला संपजे. ७८१७४ (+) धम्मोमंगल गाथा, आभरण नाम व श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१ (१) = १, कुल पे. ७, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., संशोधित., जैदे., ( २६.५x११.५, १८५६). १. पे नाम. धर्मलाभ लोक सह बालावबोध, पृ. २अ संपूर्ण. धर्मलाभ लोक सं., पद्य, आदि लक्ष्मीर्वेश्मनि अति श्रीधर्मलाभोस्तुवः श्लोक-१. धर्मलाभ श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तु भणइ ए श्रीधर्मलाभ; अंतिः पुण साधउजी तुं किमल०. २. पे नाम. धम्मोमंगल गाथा सह टीका, पृ. २अ संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा धम्मोमंगल प्रथम गाथा की टीका, सं., गद्य, आदि: यस्य पुरुषस्य धर्मे; अंति: इति गमनिका मात्रं. ३. पे नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. २अ संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. श्लोक संग्रह **, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: न सा दीक्षा न सा; अंति: लोभमिथ्यात्वमोहिता. ४. पे. नाम. मांगल्योपदेश, पृ. २आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ सं., प+ग., आदि: दिने दिने मंजुल मंगल; अंति: तत्रतत्रेष्टसिद्धयः. ५. पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः पुंसा शिरोमणि यं ते; अंति: लताभिरिव पादपाः, श्लोक-१, संपर्ण. ६. पे. नाम. १० आभरण नाम गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. ___प्रा., पद्य, आदि: अंगुलिमुद्दा१ नूवर२; अंति: जुअलं९ तओ मउडो१०, गाथा-१. ७. पे. नाम. महापुरुषों के नाम, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: साधुः श्रीसारंगो महण; अंति: (-), (पू.वि. "अन्येपि ऋषभ सुकृता" पाठांश तक है.) ७८१७५ (#) आलोयणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २१४६४). महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन सासन वीर जिनवर; अंति: धर्मसि०फलवर्द्धिपुरे, ढाल-४, गाथा-३०. ७८१७६. (+) व्याख्यान स्तुति, संपूर्ण, वि. १९६०, भाद्रपद शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. लींबडी, प्रले. श्राव. त्रंबकलाल सुंदरजीभाई शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: व्याख्यान स्तुति, संशोधित., दे., (२३.५४१०.५, १४४४८). महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गद्य, आदि: हवे इहां कणे कोण जे; अंति: मोक्षनां सुख पांमसे. ७८१७७. बीजतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. धोलीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १०४३२). बीजतिथि स्तवन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारें सयल सुहकर; अंति: भाखे ऋषभविजय जयकार ए, ढाल-२, गाथा-१२. ७८१७८. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७९७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सवाईजयपुर, प्रले. सुखराम; पठ. पंडित. भगवानदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १४४५४). __ ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-९१, ग्रं. १५०. ७८१७९. क्षमाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १५४३४-४०). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३३. ७८१८०. लघशांति, अपूर्ण, वि. १८२१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, प्रले. ग. भुपतिविजय (गुरु ग. प्रतापविजय); गुपि. ग. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ४४३४). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरिश्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ७८१८१ (+) चौदनियम गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १२४३१). १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित१ दिव्वर विगइ३; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. १४ श्रावकनियम गाथा-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: प्रभातें उठिनै; अंति: परिमाण भेलो छै. ७८१८२. शत्रुजय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११, १०४३५). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा-१६. ७८१८३. वीरजिन चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १५४३१). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: अठारगुणतालीस जानी, ढाल-४, गाथा-६३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ से लिखा गया है.) ७८१८४ (#) शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ तक लिखा है.) ७८१८५ (2) आठपहोरी पोषधविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०-१३४४०). __ पौषधविधि-अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: रात्रि पिछली घडी २; अंति: इत्यादि नमस्कार गुणै. ७८१८६. (+) दोढसोकल्याणक गणनु, संपूर्ण, वि. १७२१, पौष शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. श्रीपत्तन, प्रले. पं. लब्धिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४४१). मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गणणं, सं., को., आदि: श्रीमहाजश सर्वज्ञाय; अंति: श्रीनंदिकेशनाथाय नमः. ७८१८७. सत्तरभेदी पूजा व पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: सत्तरभे., जैदे., (२५.५४११,१२-१५४२९-३७). १. पे. नाम. १७ भेदी पूजा, पृ. ५अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: फल चुंणीयो रे, ढाल-१७, (पू.वि. १४वीं धूप-दीप पूजा अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा जिन; अंति: पार्श्वजिनं सिवं, श्लोक-७. ७८१८८. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, माघ शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४५). १.पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८५९, माघ शुक्ल, ५, गुरुवार, ले.स्थल. मेदिनीपुर. नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजे सुत लाडलो; अंति: गुण चोथमलजी गायो रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सैजै ऋषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ३. पे. नाम. शीलचुंदडी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शीयलव्रत सज्झाय-चुंदडी, मु. करण, मा.गु., पद्य, आदि: सील मुद्रडी खरीय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक ४. पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुमुदचंद कहे समुजलो, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-५ से है.) ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम रे सीखामण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७८१८९. पद व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१-७९(१ से ७९)=२, कुल पे. ७, दे., (२५४११.५, ९४३०). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८०अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ___मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नवभवरो लवल पोट सरणाय, गाथा-२, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण है.) २.पे. नाम, ५ इंद्रियविषय पद, पृ. ८०अ, संपूर्ण. म. जगराम, पुहिं., पद्य, आदि: भोग दुखदाई तजो भवि; अंति: राम सेवो धर्म जिनराई, गाथा-४. ३. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. ८०अ-८०आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कर्म, मा.गु., पद्य, आदि: कर्म अतिनिर्दयी जग; अंति: बिपत दिन दिनठई, गाथा-४. ४. पे. नाम, गुरुगुण पद, पृ. ८०आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आच्छी राह वताई हो; अंति: जगजीव सुखदाई, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org ५. पे. नाम औपदेशिक पद, पू. ८० आ-८१अ, संपूर्ण. जै.क. धानतराव, पुहिं., पद्य, आदि ब्रह्मम्यान नहीं; अंति जाने सो दीवानारे भाई, गाथा-६. " ६. पे. नाम. काचीकाया जाण, पृ. ८१-८१आ, संपूर्ण. " औपदेशिक पद-काया विषे, पुर्हि, पद्य, आदि काची काया जाण प्राणी; अति: सतगुरु सुजस बतायो रे, गाथा- ३. " ७. पे. नाम. औपदेशिक पद-कर्मगति, पृ. ८१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि हे मा बाकडी कर्मगति अति सकल में व्यापर ही गाथा ४. ७८१९०. (+) बुद्धि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २ ) = २, प्र. वि. 'अंत में पुनम के दिन प्रत लिखे जाने का उल्लेख है., संशोधित, जैदे. (२६११.५, १३४३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-) अंति: शालिभद्र० टलेशि तो गाथा ६४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-३३ अपूर्ण से है . ) ७८१९१.(+) आत्मनिंदा भावना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. हुंडी आत्मनंदा, संशोधित, जैवे. (२५.५x१२, १९४४२). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगुण प्रवीन. ७८१९२. (+) द्रव्य संग्रह सह पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६-४ (१ से २, ४ से ५ ) -२, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५४११, १६x४६). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: णेमिचंदमुणिणा भणियजं, अधिकार-३, गाथा-५९, (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण से ३१ अपूर्ण तक एवं गाथा ५२ से है.) ७८१९३. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २५X११.५, १३X३३). द्रव्य संग्रह-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: (१) प्रति करुं प्रणाम, (२) एती विनती कहित है, गाथा - ७०. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: कीयो जाणपणानो सार, दाल-३, गाथा-३३. ७८१९४. आलोयणासूत्र, संपूर्ण, वि. १८५८, मध्यम, पृ. २, जैवे. (२५x११, १४४४५). आलोचनासूत्र-देवसिप्रतिक्रमणगत, हिस्सा, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदीसह; अंति: कायकर दिवस विषे. ७८१९५. (+) नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे., जैदे. (२५.५४१२, १६x३१). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी: अंति: (-). (पू.वि. ढाल १०, गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ७९ ७८१९६. व्याख्याननी स्तुति, अपूर्ण, वि. १९५६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-३ (१ से ३) = २, अन्य. वालुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १४४४२). औपदेशिक काव्य, पु,ि पद्य, आदि (-) अति वींध्या घाले घाव, दोहा-५१ (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. गाथा ११ अपूर्ण से है.) , For Private and Personal Use Only ७८१९७. नववाडि डाल, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२५x११.५, १९५०-५२) " " ९ वाड डाल, मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि सारद माय पसाय करी, अंति (-), (पू.वि. डाल- ११, गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७८१९८. (+) १४ गुणस्थानक १२० प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७×१२.५, १२×३८). १४ गुणस्थानके १२० प्रकृति विचार, मा.गु, गद्य, आदि एकसउ अट्ठावन्न मध्ये अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अयोगीगुणस्थानकगत बंध विचार तक लिखा है.) ७८१९९. औपदेशिकश्लोक संग्रह, चौवीसदंडक स्तवन व गुणठाणाविचार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे. (२६१२.५, १६५३८). १. पे. नाम. औपदेशिक श्लोकसंग्रह, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुरि., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अति: (-). Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम, चोवीसदंडक स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पारसनाथ प्रह; अंतिः प्रसादे परमारथ लहै, गाथा-२४. ३. पे. नाम. चौदगुणठाणाविवरण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मुक्तिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: निजगुरु केरा प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ७८२०१. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२६.५४११.५, १७४५४-६०). १. पे. नाम. प्रभाति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रभातिजिन स्तवन, मु. जीन, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिश जिन तणी रे; अंति: जिन० घरि हरख वधामणा, गाथा-६. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., पद्य, आदि: असो रे अपुरव कोय; अंति: ते नरसु नित वासोजी, गाथा-९. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-देवगुरुधर्मतत्त्व गर्भित, मु. रंगदास, मा.गु., पद्य, आदि: अवसर आज छइ रे अवसर; अंति: रंगदास० भलीय कमाई, गाथा-४. ४. पे. नाम. समकित पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व पद, म. जिनभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वनि वनि चंदन न नीपजे; अंति: पामिस तिम समकितधारी, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: चउद भवनमांहि जो एक; अंति: अमरापुर पामिए रे, गाथा-७. ६. पे. नाम, सील सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. शीयलव्रत सज्झाय, ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: सील सील सिरोमणि; अंति: सील सुरंगजी, गाथा-७. ७८२०२. (+#) बुद्धि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४२-४६). बद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देव अंबाई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) ७८२०३. दया गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. सिंघा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: गीतं, जैदे., (२६.५४११, १३४४०-४४). औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभवदर्लभता, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुलहो नरभव भय भमंता; अंति: जीवदया प्रतिपालो, गाथा-१२. ७८२०४. स्तुति व स्वाध्याय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १८४४२-४८). १. पे. नाम, श्रुतदेवी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: कमलदल विपुलनयना कमल; अंतिः श्रुतदेवता सिद्धिम्, श्लोक-१. २. पे. नाम. नयणानी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नयनवशीकरण, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे सुंदर काया; अंति: तेहने सुख घणो रे लो, गाथा-४. ३. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पंन्या. देव वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरू पाय नमीयें; अंति: वाचक देव कहंदा जी, गाथा-११. ४. पे. नाम. चौदगुणस्थानक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. गुणस्थानकनी सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिनेसर पय नमी रे; अंति: ते पांमे भव पारो रे, गाथा-१६. ७८२०५. (+#) ज्ञानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३४). For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org ८१ ज्ञान पच्चीसी, जैक, बनारसीदास पुहिं पद्य वि. १७वी, आदि सुरनर त्रिजग जोनि अति वनारसी० करन के हेत, गाथा - २५. ७८२०६. चौदगुणस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६२, फाल्गुन शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: चीवगुणस्थानकसज्झाय, जैवे. (२५.५x११.५ १२४४२). " १४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सम रवि जिणवरदेव गणहर; अति: सासय सुख गल गर्ज करे, गाथा- १९. ७८२०७ (+४) विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-४३ (१ से १२, १४ से ४४) - २, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, १३४३८). विविध विचार संग्रह, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. मुखवखिका विचार अपूर्ण से "प्रमाणी कृतोसी ग्रंथ ततस्तदुक्तोप पाठांश तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) ७८२०८ (+) अर्हदास चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २७-२६ (१ से २६) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११.५, १४X३८). अर्हद्दासश्रेष्ठि चरित्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंतर्कथा-३ अपूर्ण से ४ अपूर्ण तक है.) ७८२०९ (+) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अजितनाथ प्रसादात् संशोधित. दे. (२४.५x१०.५, ११x२७). יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. नगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुखदायक गुनगनलायक; अंति: निराबाध सुखगेह रे, गाथा - १३. " ७८२१० (+) नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२४.५x११, १३४३३-३६). नेमिजिन स्तवन- सांमेला, मु. ज्ञानकुशल, पुहिं. पद्य, आदि नेमजी राजीमती रमणी: अंतिः भरी सासुडी वधायो है, गाथा - २९. ७८२११. (४) पंचप्रतिक्रमणसूत्र सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २ १ ( २ ) = १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, ११x४०). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, नमस्कारमंत्र अपूर्ण से है व खमासणा सूत्र अपूर्ण तक लिखा है) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का संक्षिप्त अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७८२१२. (+४) गौतमाष्टक, गौतमस्वामी स्तवन व वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १७x४५-५०). १. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रह उठी गौतम समरीजे अतिः पुण्यउदव परमाण, गाथा-८. २. पे. नाम गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. जयसागर मा.गु., पद्य, आदि गोयमसामी गुणनिलउ सोह: अंतिः श्रीजयसार बोलइ सही, गाथा १२. - ३. पे. नाम वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: सदहणा साची हिये ए; अंति: जल जिस तें तरीये, गाथा-६. ७८२१३. ६२ बोल विचार, अपूर्ण, वि. १८७७, आश्विन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८) = १, जैदे., ( २६११, १४X३४-३७). ६२ बोल- मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: अनतुल्यने अनंतगुणा, (पू. वि. गुणठाणा में जीव का भेद अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only ७८२१४. दसपच्चक्खाण सूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, जैदे., (२५.५X११.५, ७X२४-३०). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: गारेणं बोसिरामि, (पू. वि. आयंबिल पच्चक्खाण अपूर्ण से है.) ७८२१५ आगम स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २१, दे. (२४४११, १०x२७-३०). आगमगुण स्तुति, मु. पुण्य, मा.गु., पद्य, आदि मंगलकेली निकेतनं अंतिः लहिई मंगलमाल रसाल, गाथा- ११. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८२१६. (+) दंडक प्रकरण, भाव प्रकरण व भावना कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१,३)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४४४). १.पे. नाम, दंडक, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से ४२ अपूर्ण तक २. पे. नाम, भाव प्रकरण, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: विजयविमल० पुव्वगंथाओ, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. भावना कुलक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: निसाविरामे परिभावयाम; अंति: मे हुज्ज समाहिमरणं, गाथा-२१, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा-२१ तक लिखकर ही कृति समाप्त कर दी है.) ७८२१७. (+) स्तवन, सज्झाय व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४५०-५५). १. पे. नाम. साचलदेवी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. चूहड, रा., पद्य, आदि: सरसति गणपति वीनवुने; अंति: चूहड० हसकर घूमर गावे, गाथा-५. २. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल्या तणो; अंति: सहजसुंदररी वाण, गाथा-१८. ३. पे. नाम. गोडीजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: तुं त्रिभुवनरो नाहलो; अंति: लाल सुमतिहंस करजोडि, गाथा-७. ४. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: प्रह उगमते सूर जी, गाथा-५. ७८२१८. (+#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४२७-३०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (पू.वि. संतिकर स्तोत्र, गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७८२१९ (4) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ५,७)=२,प्र.वि. हुंडी: सप्तस्मरण हुंडी में सप्तस्मरण लिखा है, परंतु कृति नवस्मरण है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४४४). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., भक्तामरस्तोत्र, श्लोक-२ अपूर्ण से १२ अपूर्ण तक एवं श्लोक-४१ अपूर्ण से बृहत्शांति के पाठांश "तुष्टिर्भवतु पुष्टिर्भवतु ऋद्धिवृद्धिमांगल्योत्वाः" तक है.) ७८२२०. (4) प्रत्याख्यान भाष्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, अन्य. ग. विनीतविजय; ग. विमलविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ४४४५-४८). प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, गाथा-४८, (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण से है.) प्रत्याख्यान भाष्य-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: केहवा बाधा पीडा रहित. ७८२२१ (+#) सिद्धचक्र व केसरियानाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७२, चैत्र शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले.पं. गणपतसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, २३४३८-४२). For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो; अंति: दानविजय जयकारी रे, गाथा-२३. २. पे. नाम. केसरियानाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन छंद-धुलेवा, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहि., पद्य, वि. १८६३, आदि: सदाशिव राव आयो कपटकर; अंति: रोड० अवरन को नाहि, गाथा-३८. ७८२२२. पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२५, भाद्रपद कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. १८३१ भाद्रवद अमावस दिन सूर्यग्रहण के दिन लिखी गई प्रत के ऊपर से प्रतिलिपि की गई है., दे., (२४४१२, १४४३५-३८). १. पे. नाम, असज्झाय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हीर, पुहि., पद्य, आदि: श्रावण काती मिगसिर; अंति: नाम कहियो तु इण परै, गाथा-१५. २. पे. नाम. वांदणादोष सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी आणी; अंति: सीस क्षमाकल्याण जगीस, गाथा-१९. ३. पे. नाम. नयगर्भित सामायिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सामायक चितधारो चतर; अंति: ज्ञानवंत के पासे, गाथा-७. ४. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्य, आ. जिनराजसूरि, पुहि., पद्य, आदि: रे मन मूढ म कहि गृह; अंति: बार बीचि कौडेरौ रे, गाथा-३. ७८२२३. (#) ध्यान विचार, संपूर्ण, वि. १८८३, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. डीडपुर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११,१३४४८-५२). ४ ध्यान विचार, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: ध्यानरा ४ भेद छै; अंति: ध्याननो अधिकार कह्यौ. ७८२२४. साधुगुण गीत व गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अंत में एक गाथा लिखी गई है. प्रत के अंत में ग्रंथाग्रसूचक ६३९, ८३४,७१२,५५. २३,७२७०० जैसा कुछ उल्लेख किया गया है., जैदे., (२५.५४११, १५४५०). १. पे. नाम. साधुगुण गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दोइ कर जोडीय नित नमउ; अंति: वंदउ भविकजन साधु रे, गाथा-२१. २. पे. नाम. गयसुकमाल राजरिषि सिझाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. गजसकमालमुनि सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५५८, आदि: सोरठ देस वखाणीइ; अंति: ननसूरि० विलसइ अंगि, ढाल-४, गाथा-४६. ७८२२५. (4) महावीरस्वामी हालरडु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३८-४२). महावीरजिन हालरडं, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला ; अंति: दीपविजय कविराय रे, गाथा-१७. ७८२२६. (+) सामायिक सज्झाय, नागिलाभवदेव सज्झाय व शालिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-८(१ से ८)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३३). १. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रावक व्रतधारी गुण; अंति: कहे गणी कान उलास, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) २. पे. नाम. नागीलाभवदेव सज्झाय, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: नागला For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाई घर आवीया; अंति: पामसे भवनो पार रे, गाथा-१६. ३. पे. नाम, शालिभद्र सज्झाय, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणे भव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ७८२२७. गर्भावासनी उत्पत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राजकोट, प्रले. अमरसी लीलाधर खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: गर्भनीवात, दे., (२५४११.५, १५४५६). गर्भावासनी उत्पत्ति, मा.गु., गद्य, आदि: स्त्रीनी नाभि हेठे; अंति: शरीरमां जांणवा. ७८२२८ (+#) नंदीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४-३१(१ से २६,२८,३० से ३३)=३, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१०४२९-३३). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-७० अपूर्ण से ७२ अपूर्ण तक, पाठांश "खग्गे ८७ धूभिंदे ८८ परिणामिया बुद्धी" से "पच्चाउट्ठपार्याउवाए बुद्धीविणानि" तक व "दसाउ ९ पएहावगेरेणाइ १० धिपागेसुयं ११" से "इच्चइअर्दे०वालसंगं गणिपिडगं" तक है.) । नंदीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ७८२२९ (2) जिनपंचक स्तवन, भीडभंजनपार्श्वजिन पद व गौतमस्वामी छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: प्रभातिस्तोत्र, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०४३०-३३). १. पे. नाम. जिनपंचकप्रभाती स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ५ जिन स्तवन, उपा. उदय, मा.ग., पद्य, आदि: पंच परमेसरा परम; अंति: भगवंतनी कीर्ती भणता, गाथा-७. २.पे. नाम, भीडभंजन पार्श्वजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: भीडभंजन प्रभु भीड; अंति: धरी नाथजी हाथ सायो, गाथा-५. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात प्रथवि सुत प्रात; अंति: (-), (पू.विगाथा-५ अपूर्ण तक ७८२३०. प्रतिक्रमण हेतवे, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१२, १५४४६). प्रतिक्रमणहेतु विचार, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, आदि: साधु अने श्रावक दोइ; अंतिः क्षमाकल्याण० मुदा. ७८२३१. स्तवनचौवीसी व वीसस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, लिख. मु. अमृतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १६x४५). १.पे. नाम. स्तवन चौवीसी-स्तवन १-९, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव सुखकारी जगत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. वीसस्थानक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचरणे करी; अंति: श्रीसंघ आराहो निसदिस, गाथा-७. ७८२३२ (#) जीव रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: कहइ पापथी छुटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३१. ७८२३३. अढारनातरा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७३७, भाद्रपद शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. दीपसौभाग्य; पठ. श्रावि. वाल्हबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ११४२६-२९). For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १८ नातरा सज्झाय, पंन्या. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: श्रीवीरजिणेसर पाय पण; अंति: देवविजय० __अतिआणंद, ढाल-३, गाथा-२२. ७८२३४. चैत्यवंदन, सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १५-१८४४०-४४). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पवित्र; अंति: पांचे पांच जैती देवै. २.पे. नाम. ११ अंग सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: पहिलो अंग सुहामणों; अंति: लाल एहिज अंग आधार रे, ढाल-१२. ३. पे. नाम. ज्ञानपदना ५१ गुण, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमी नमस्कार, सं., गद्य, आदि: स्पर्शनेंद्री व्यंजन; अंति: श्रीकेवलज्ञानाय नमः. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचम तप तुम करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ७८२३५. स्वप्न विचार व नवग्रहशांति विधि, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रावण कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५४४०-४५). १. पे. नाम. स्वप्न विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ३० स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हस्ती १ वृषभ २ सिंह; अंति: स्वप्न तत्काल फलै. २. पे. नाम. नवग्रहशांति विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथमसूर्यस पूज हुवै; अंति: ग्रहशांति मुदाहुताः. ७८२३६. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१२, १४४३६-४२). औपदेशिक सज्झाय-संतोष, पुहिं., पद्य, आदि: औरन को सुखिया लखके; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३४ तक लिखा है.) ७८२३७. (+) पचास बोल व सतरह बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२, २५४४०-४४). १.पे. नाम. पचास बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५० बोल-कर्मफलप्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भगवानजी सरीरम; अंति: बादिलीना होइजी पापसु. २. पे. नाम. सतरह बोल, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. १७ बोल-जीवभेद मोक्ष प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: तीलमोही तिल रमरयो; अंति: सममोही मोख जाय, गाथा-१७. ७८२३८. कयवन्ना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७१७, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. श्रीपत्तन, प्रले. ग. जिनविजय, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १३४३६-३९). कयवन्ना सज्झाय-दानविषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदि जिनवर ध्याउं; अंति: लालविजय कहे० उलट आणी, गाथा-२७. ७८२३९. देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१२, १७४६०-६३). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उस्सप्पिणीहि पढमं; अंति: नमः जाप २००० कार्य. ७८२४०. आषाढ डाळियुं व स्वप्न विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १९४५५-५८). १. पे. नाम. आषाढभूति पंचढालियो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमनि पंचढालियो, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दर्शण परिसो बावीसमो; अंति: ते जाणो जगमे धन हो, ढाल-७. २. पे. नाम, स्वप्न विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जन्म १ वियोग २ संपदा; अंति: चुलिया १० ए १० सुपना. For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Demon कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८२४१. (+#) प्राकृत छंदकोश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३६). प्राकृत छंदकोश, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, आदि: गामं णामं जाई वंसं; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२४ तक लिखा है., वि. गाथा-२३ के बाद मा.गु. व संस्कृत में कुछेक बालावबोध दिया गया है.) ७८२४२. अषाढाभूति सज्झाय, चौपाई व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११, १७४४२-४६). १. पे. नाम. अषाढाभूति सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अषाढाभूतिनी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आरज अनारज सदा वचरे; अंति: धनह अषाडो मुनीराज है, ढाल-७, गाथा-५०. २. पे. नाम. अषाढाभूति चौपाई, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-चौपट, आ. रत्नसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम कउ सब मिल जात; अंति: रतनसागर कहै सूर रे, गाथा-१६, (वि. एक गाथा को दो गाथा गिना गया है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा- देवगुरुधर्म, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: देवगुरुधरम तीनो भला; अंति: सरदासु सुद पालो रे, (वि. गाथा-१) ७८२४४. (#) सुदरसणनी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: सुद०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., __ (२५४११.५, २७४६०-६४). सुदर्शनश्रेष्ठि कथा, मा.गु., गद्य, आदि: जे गृहस्थ को सील; अंति: ज्यु मोक्ष सुखपामो. ७८२४५. समुद्रपालमुनि, परदेशीराजा सज्झाय व सीलपेसटी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११.५, २४४४२-४५). १.पे. नाम. समुद्रपालमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. तेजमल, मा.गु., पद्य, वि. १९६८, आदि: समुद्रपाल मुनि वंदीए; अंति: भावसुं गाया हरख अपार, गाथा-११. २. पे. नाम. परदेशीराजानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. परदेशीराजा लावणी, मु. तेजमल, पुहि., पद्य, वि. १८६७, आदि: एक स्वारत की संसार; अंति: तेजमल०जोड करी त्यारी, गाथा-७. ३. पे. नाम. शीलपेसटी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मु. तेजमल, पुहिं., पद्य, वि. १९६९, आदि: ऐसी कलावती रे ऐसी; अंति: तेजमल० वेसी कमाय, गाथा-६५. ७८२४६. नेमिराजीमती चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १९६३, माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. चुनीलाल (गुरु ग. अमृतहेम, बृहत्खरतर); गुपि.ग. अमृतहेम (बृहत्खरतर); पठ. श्राव. अगरचंदसेवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: नेमराजे०, दे., (२५४१२, १७४४७-५०). नेमराजिमती चौढालीयो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे; अंति: रायचंदजी कीनी जोड, ढाल-५, गाथा-७९. ७८२४७. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२६४१२, ९x४२). चातुर्मासिक व्याख्यान *, रा., गद्य, आदि: श्रीपार्श्व सुख; अंति: (-), (पू.वि. सामायिक के फल का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७८२४८. बोल संग्रह-एकद्व्यादि संख्याद्वारबद्ध पदार्थ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, २०४१५-५३). बोल संग्रह-एकद्व्यादि संख्याद्वारबद्ध पदार्थ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार-७ अपूर्ण से १० अपूर्ण तक है.) ७८२४९. त्रणमनोरथ व चारशरणां, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४११, १९४४६-५०). For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org १. पे. नाम. आवक ३ मनोरथ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी मनोरथ ३नो पार्नु मा.गु., पद्य, आदि पहलो मनोर्थ समणोपासक, अंति नो क्यारे करम खय करइ. २. पे. नाम, चारशरणा, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.बि. हुंडी: सरणा ४नो पानू छे ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि णमो अरिहंताणं० चत्ता अति समय २ मुझनें हूड्यो, ७८२५० (+४) मौनएकादशीनु स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७३ श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ५-३ (१ से ३) २, प्रले. सा. पद्माजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १०x२९-३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमी पूछे वीरने; अंति: जिनेंद्र०भविय सादरे, ढाल - ३, गाथा-२८, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८२५१. दीक्षा विधि व साधुसाध्वी उपकरण विचार, संपूर्ण, वि. १९७०, वैशाख शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, प्रले. रवजी भीमजी दवे; लिख. मु. मोहनलाल जति, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६४१२, १५x५०-६२). १. पे नाम दीक्षाविधि, पू. १अ १आ, संपूर्ण. दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: योग्य स्त्री पुरुष, अंति: १ नवकार वाली गुणवीयै. २. पे. नाम. साधुसाध्वी उपकरण विचार, पू. १आ, संपूर्ण साधुसाध्वी उपकरण वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि उंधेरी डांडी आंगुल २ अंति: (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, लारला विधि अपूर्ण तक लिखा है.) ७८२५२. ज्ञानपच्चीसी व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. आणंदविजय गणि (गुरु पं. हस्तिविजयजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, १५X४२). १. पे. नाम, ज्ञानपच्चीसी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरजग जोनमइ; अंति: आपकुं उदय करन के हेत, गाथा - २५. २. पे नाम औपदेशिक लोकसंग्रह. पू. १आ, संपूर्ण औपदेशिक श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक ७. ७८२५३. गौडीजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. विजापुर, जैवे. (२६४१२.५, १४४४८). " ८७ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: सरसति देवीने नमी; अति: रे गाइओ श्रीगोडी धणी, गाथा - २६. ७८२५४. नंदीसूत्र- स्थविरावलीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, वडसालिबंदर, प्रले. पं. नयविजय गणि प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, १३x४४). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: परुवणां वुच्छ, गाथा - ५०. ७८२५५. (+) सत्तरिसयठ्ठाणा, ज्योतिष व वैद्यक, अपूर्ण, वि. १६४४, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, ८X३६). १. पे. नाम. सत्तरिसयङ्काणा सह टवार्थ, पू. १८आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा. पद्य वि. १३८७, आदि (-) अति जाइ सो सिद्धिठाणे, " " गाथा - ३६०, ( पू.वि. गावा- ३५५ से है.) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति सिद्धस्थानकनइ विषइ. २. पे नाम, अंकज्योतिष सारिणीयुक्त, पृ. १८आ, संपूर्ण. ज्योतिषसारणी संग्रह, मा.गु., को., आदि (-); अति: (-). ३. पे. नाम. शक्तिवर्द्धक औषधि निर्माण विधि, पृ. १८आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह", पुष्टि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अति: (-). For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८२५६. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१७(१ से १७)=२, प्रले. जगा मथेन; अन्य. ग. रामविमल (गुरु ग. पुण्यविमल); गुपि.ग. पुण्यविमल (गुरु ग. विनयविमल); ग. विनयविमल (गुरु ग. सिंहविमलगणि); ग. सिंहविमलगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रत में "लघुसंग्रहणी" लिखा है, परंतु वस्तुतः बृहत्संग्रहणी है., संशोधित., जैदे., (२५४११, ८४४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नंदोजा वीर जिण तित्थ, गाथा-३२५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-२५० अपूर्ण से है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वीरनुं तीर्थ वर्तइ, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ७८२५७. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: नवतत्त्व, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-१७ तक है.) ७८२५८ (+) नमस्कारमहामंत्र छंद व सीमंधरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४१२, १६४४४). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: भोर भयो ऊठो भवि; अंति: वरदायक लाधो वदे, गाथा-१८. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७८२५९ (+) श्राद्धविधि प्रकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५०-१४९(१ से १४९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हंडीः श्राद्ध, संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४७). श्राद्धविधि प्रकरण-टीका*, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-३ पर्वकृत्याधिकार अपूर्ण से उदयतिथि प्रामाण्य विचार अपूर्ण तक है.) ७८२६०. तेरकाठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, ११४३१). १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आलस पेलो काठियो धर्म; अंति: महिमाप्रभ०तेह निवारो, गाथा-७. ७८२६१ (+#) भगवतीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११,१३४४०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "पम्हलेस्साए सुक्कलेस्साए" पाठांश से "से णं भंते सिज्झति जाव अंतं" पाठांश तक है.) भगवतीसूत्र-बालावबोध *, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८२६२. (4) पाक्षिक नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. पत्तननगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ७४२७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: पक्षालनजलोपमा, श्लोक-२६, (पू.वि. श्लोक-२८ अपूर्ण से है.) ७८२६३. (+) शनीश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. फतेचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४५०). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: तुं प्रसन्न सनीसर, गाथा-१७. ७८२६४. (+) सौभाग्यपंचमी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी: पंचमीकथा, संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३८). For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ७८२६५ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १०४३६-३९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-१, श्लोक-१२ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण तक है.) ७८२६६. प्राकृत छंदकोश, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १५४४२). प्राकृत छंदकोश, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण से ६६ अपूर्ण तक है.) ७८२६७. (+#) दशवकालिकसूत्र व स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, ले.स्थल. पत्तननगर(पाटण), पठ. ग. खिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३५-४०). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-३ खुडियायारकहा गाथा-१ तक लिखा है.) २. पे. नाम. विशाललोचन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. विशाललोचनदल स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-३. ३. पे. नाम. साधुचितवनअतिचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. साधअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सयणासन्नपाणे चेइअसिज; अंति: वितहायरणे अइयारो, गाथा-१. ४. पे. नाम. गोचरी आलोयणा गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहं आसावज्जा; अंति: साह देहस्स धारणा, गाथा-२. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: विश्वस्वामी जीयात्; अंति: विशालां मंगलमालाम्, श्लोक-४. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: सनो देवी दया दंबा, श्लोक-१. ७८२६८. स्तवन, पद व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ८, जैदे., (२५४११.५, १७X४६-५४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे नय निरधारी, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-देशभक्ति, म. मलकचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: पाक तुमारा नाम है; अंति: जाएगी एक साफ निसानी, दोहा-३. ३. पे. नाम. सुमतिनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: विवाहलानी वाला सुमती; अंति: माणेक०समती दीदार रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, म. कांतिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु चितथी; अंति: रे वागागुहीर निसाण, गाथा-५. ५. पे. नाम. सुविधिनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरी अजबशी योगनी; अंति: कांति०मनमंदिर आवो रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअजित जिनेसर देव; अंति: खुसाल० गुण गाया रे, गाथा-५. ७.पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: जगपति तारक श्रीजिनदे; अंति: उदयन० भावेस भावीया, गाथा-५. ८.पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.ग.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७८२६९ कल्पसूत्र-प्रतिलेखन पुष्पिका व औपदेशिक गाथा, अपूर्ण, वि. १८९१, श्रावण शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८५-८४(१ से ८४)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. महिमापुर, प्रले. मु. रूपचंद (पार्श्वचंदसूरि); पठ. पं. चिमनविजय; अन्य. मु. दीपसागर (गुरु पं. हस्तीसागर); गुपि. पं. हस्तीसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अजितनाथ प्रसादात्. विक्रम् १९४२, आसाढ वदि ५ को दीपसागर, रत्नगच्छ के फलोधी में चातुर्मास करने का उल्लेख मिलता है. हुंडी: कल्पसूत्र, जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३०). १.पे. नाम. कल्पसूत्र-प्रतिलेखन पुष्पिका, पृ. ८५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. साधु समाचारी समाप्तिसूचक संकेत के पश्चात प्रतिलेखन पुष्पिका मात्र है.) २. पे. नाम, औपदेशिक गाथा-संतोष, पृ. ८५आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ग्यान गरीबी गुरुबचन; अंति: सरधा शील संतोष, (वि. दोहा-१) ७८२७० (+) गौतमपृच्छा सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १४४४५). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण से ६२ अपूर्ण तक है.) गौतमपृच्छा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८२७१ (+) अष्टप्रकारी पूजा अष्टक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६-२५(१ से २५)=१,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १७X५७). ८ प्रकारीपूजा कथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: रियं सिरि विजयचंदस्स, कथा-८, ग्रं. १२००, (पू.वि. गाथा-९९ अपूर्ण से है.) ७८२७२. पट्टावलीसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२६४११, ३४१५-४६). पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-२० से है.) पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: शिवविजयगणिरलिखत्. ७८२७३ (+) विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११,१५४४०-४३). विविध विचार संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्राद्धपठनाधिकार से काल स्वभाव नियत्यादि पंच कारण व्याख्या अपूर्ण तक है.) ७८२७४. (+) अज्ञात जैन प्राकृत पद्य कति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४४२-४८). ___ अज्ञात जैन प्राकृत पद्य कृति, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७६ अपूर्ण से ११५ अपूर्ण तक है.) ७८२७५ (+) फलसार कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८०२-१८०३, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२७४१०.५, ५४४५). For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ फलसार कथा, आ. जिनकीर्तिसरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नित्यं विधिसावधाना, श्लोक-४६, (वि. १८०२, माघ शुक्ल, १५, पृ.वि. गाथा-४४ अपूर्ण से है., प्रले. ग. हमीरविजय (गुरु पंडित. ऋद्धिविजय); गुपि. पंडित. ऋद्धिविजय (गुरु पं. प्रेमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य) फलसार कथा-टबार्थ, पंडित. ऋद्धिविजय, मा.ग., गद्य, वि. १८०३, आदिः (-); अंति: सदाई विधि करी सावधान, (वि. १८०३, चैत्र शुक्ल, ६, रविवार, प्रले. पंडित. ऋद्धिविजय (गुरु पं. प्रेमविजय); गुपि.पं. प्रेमविजय (गुरु पं. चतुरविजय, तपागच्छ); पं. चतुरविजय (गुरु पं. प्रमोदविजय, तपागच्छ); पं. प्रमोदविजय (गुरु पं. मुक्तिविजय, तपागच्छ); पं. मुक्तिविजय (गुरु पं. भीमविजय, तपागच्छ); पं. भीमविजय,प्र.ले.पु. विस्तृत) ७८२७६. सम्यक्त्वपच्चीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४-२(१,३)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, १७४४८). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ से १७ तक व २० से २४ तक नहीं है.) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७८२७७. (+#) सात निह्नव विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४३२). ७निह्नव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरनि केवलात्; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ५वें निह्नव का वर्णन तक है.) ७८२७९. विनयचटनो रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हंडी: विनयचटनो रास, जैदे., (२६४१०.५, १७४३६-४०). विनयचट रास, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: पार्श्वनाथ जिनवर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१ तक है.) ७८२८०. भरतबाहुबली सलोको, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १८४४९). भरतबाहुबली सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमुं माता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण तक ७८२८१ (4) शांतिजिन जन्माभिषेक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १२४४२). शांतिजिन स्तव-जन्माभिषेक, मा.गु., पद्य, आदि: जय सयल सुरासुर; अंति: विजय सिरि संति करो, गाथा-१८. ७८२८२ (+#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४४). श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७८२८३ (4) गौतमपृच्छा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४५०). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण तक है.) ७८२८४. (#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १७५४, पौष कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, ले.स्थल. नवानगर, पठ. पं. अभयराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४४२). श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: सह चितचंगई रे, ढाल-४०, गाथा-७५६, ग्रं. ११३१, (पू.वि. ढाल-३९, गाथा-८ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने सर्वगाथा-७६५६ लिखा है.) ७८२८५ (4) चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३७-४०). For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडै ते माहरै वसीओ; अंति: जिनगुण मोहनविजय एह, गाथा - ९. ७८२८६. (W) भ्रमरगीता व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३ कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५x११.५, ११४३१). १. पे नाम भ्रमरगीता, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समुद्रविजयनृप कुलतिल; अंति: थुण्यौ सानुकूल, गाथा-२७. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. लक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसवचन वर वरसती कविज; अंतिः मोकल्यो कोई हाथ रे, गाथा - ११. ७८२८७. व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२५x१२, ११४३३) "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु., रा., सं., प+ग., आदि: जिनेंद्रपूजा गुरु; अंति: मंगलिकमाला संपजे, (वि. मात्र मांगलिक है.) ७८२८८. (*) ज्ञानपंचमी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८९१, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२५४११.५, १०X२८-३२). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा. मा. गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पवित्र, अंति लाल एहिज अंग आधार रे. ७८२८९. (W) गुणमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. झूमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : गुणमाला, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४११.५, २१x४५-५०% "" साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु पद्य वि. १८०७, आदि नमुं अनंत चोवीसी ऋषभ, अंति: भव होसी निपट निहाल, गाथा - १०८. " 1 ७८२९० (+) सुजात चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी सुजात, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२५x११, २०x४७-५०). सुजात चौपाई, मु. लाल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९७, आदि आदिनाथ सुरतरु समो मन; अंति: दिने जोड करी उल्हास, ढाल ४. ७८२९१. रतनकलसरतनवती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५X११, १७७३). रत्नावती चौपाई, मु. सुखलाभ, मा.गु., पद्य, आदि जुगादीस जिनवरतणा अति सुखलाभ० सगली सिद्धि, ढाल -९, • गाथा - १५८. ७८२९२. (*) भक्तामर स्तोत्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५x११.५, " १३४३६-४२). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, आव, हेमराज पांडे, पुहि., पद्य, आदि आदिपुरुष आदिसजिन आदि; अति: हेमराज० पावै शिवखेत गाथा ४८. ७८२९३. साधुपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १८४३, वैशाख कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४-१ (१) = ३, प्रले. पं. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२६४११.५, १०x३६). साधुपाक्षिक अतिचार-श्वे.मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम् (पू.वि. दर्शनाचार का वर्णन अपूर्ण से है.) " ७८२९४. (१) शांतिजिन स्तवन- चौदगुणठाणा गर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४-१ ( २ ) = ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x११.५, १८x२५-४० ). शांतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानकगर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर जग हित; अंतिः वाचकमानविजय सुहंकरू, गाथा- ८५, (पू.वि. गाथा - २४ अपूर्ण से ४६ अपूर्ण तक नहीं है., वि. सारिणीयुक्त) ७८२९५. नेम गोपी संवाद- चौबीस चौक, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२५४११.५, ९८४४० ). For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सुंण वांसडली वैरण थई; अंति: शिष्ये अमृतगुण गाया, चोक-२४. ७८२९६. साधुवंदना व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१०.५, १६४५६). १.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: देख्यौरी कहं नेम; अंति: भूधर० राजल कुं प्यार, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: उस मारग मत जाय रे नर; अंति: भूधर० बात जताई रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अंध कहा जाणे कामनी; अंति: प्रीत कबहुं न नभी है, दोहा-४. ४. पे. नाम. साधु वंदना, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंतिः श्रीपासचंदइ संथुआ, ढाल-७, गाथा-८७. ७८२९७ (+) अषाढाभूति चरित्र व गुरुगुण स्तुति, संपूर्ण, वि. १७६७, कार्तिक शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले.पं. सुखानंद; सा. जीवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४४). १. पे. नाम, आषाढाभूति चरित्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: कनकसोम० कु सुखकार, गाथा-६३. २. पे. नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर-चयनित गुरुगुण स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्ति तीर्थंकरे १; अंति: तारयितुं क्षमः परम्, श्लोक-२. ७८२९८. (#) नवकार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३४, पौष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. पृथ्वीराज (गुरु पं. नाथुहर्ष); गुपि.पं. नाथुहर्ष (गुरु पं. तिलोकहर्ष); पं. तिलोकहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १३४४२-४५). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम होइ मंगलं, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरउ; अंति: भणी सिद्ध वडा कहीइं. ७८२९९ (4) शीलप्रकाश रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-२(३ से ४)=३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४५०-५३). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ से ____ गाथा-२७ अपूर्ण तक व ५७ अपूर्ण से गाथा-७० अपूर्ण तक है.) ७८३००. चौवीसतीर्थंकर सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. लाधाजी; पठ. मु. लाधाजी शिष्य (गुरु मु. लाधाजी), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सवैया., जैदे., (२६४१२.५, १९४३३-४०). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता वाणी; अंति: धरि निसुणो नरनारी, गाथा-२७. ७८३०१ (+) भक्तामर महामंत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९९, आषाढ़ कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३७). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१० से लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८३०२. (+) मांडला बोल, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रावण कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. आंबामाडण खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : मांडला, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे., (२५४११.५, १५X४०). जंबूद्वीप क्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीपमां बे; अंति: जोजन आखे दाडे चाले. " ७८३०३. स्थानांगसूत्र चयनित सूत्र व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे २, जैवे. (२५x११, ७-१५X४५)१. पे. नाम. स्थानांगसूत्र चयनित सूत्र संग्रह, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र- चयनित सूत्र संग्रह, प्रा., गद्य, आदि लिन्हं दुपडोवारं; अति दसमे य उवसम सच्चे य २. पे. नाम. स्थानांगसूत्र बोल, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थानांगसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जातिमद कीधइ हुतइ; अंति: कर्म आगल कोई न छुटइ. ७८३०४. बुढापा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी : बुढा की चोपी, दे., (२५X१०.५, २०x४२). बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. डाल ९ गाधा-३ अपूर्ण से डाल- २३ गाथा २५ अपूर्ण तक है.) ७८३०५. वसुधारा स्तोत्र व जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८२१, श्रावण कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (२) =२, कुल पे. २, ले.स्थल. साहिपुर, प्रले. ऋ. माणिकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, १७-१९x४३). १. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र, पृ. १अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. सं. गद्य, आदि: संसारद्वयदेवस्य अति भाषितमभिनंदन्निति, (पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं है. वि. सामान्य पाठांतर मिलता है.) " २. पे. नाम जीवविचार प्रकरण, पू. ३आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७८३०६. गुरुगुण गहुंली, साधुगुण गहुंली व सुधर्मास्वामी गहुंली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३४). १. पे नाम. गुरुगुण गहुली, पृ. १अ संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु, पद्य, आदि तुम्हे सुभ परिणमें; अति उत्तमने मंगलमालो रे, गाथा-७. २. पे. नाम. साधुगुण गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि षट्व्रत सुधा पालता अति उत्तम० निमित्त रे, गाथा- ९. ३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. १आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान दरसण गुण धरता; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम गाथा-५ का अंतिम "जीव" शब्द नहीं है.) ७८३०७. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५X११, २०५०). १. पे. नाम. ११ औपदेशिक बोल, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ११ उपदेश बोल, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: विधवाद १ चरितानुवाद; अति मिश्रपत्ती कहीयइ. २. पे. नाम. नव विधे जीवना भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जघन्य मध्यम उत्कृष्ट; अंति: विचारता जीव अनंतपरि पे. नाम ७० अजीव भेद, पृ. १आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय द्रव्य; अंति: ५ एवं रूपी ४० भेद. ४. पे. नाम. जीवअजीवभेद विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जीव अजीवभेद विचार- १४ राजलोके, मा.गु., गद्य, आदि: चउदराज जिवलोकमांहि ११; अंति: (-), (पू.वि. एकेंद्रिय के ४ भेद प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७८३०८ (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २२-१९(१ से १५, १८ से २९) =३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र.वि. हुंडी: दशवैकालसूत्र, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १३x४४). For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-६ गाथा-५६ अपूर्ण से अध्ययन-७ गाथा-३४ अपूर्ण तक एवं अध्ययन-९ उद्देश्य-२ गाथा-६ अपूर्ण से अध्ययन-९ उद्देश्य-३ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७८३०९. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२४.५४११.५, १६४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३६ की गाथा-१९ अपूर्ण से ५८ अपूर्ण तक है.) ७८३१०. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १६४५३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ गाथा-१७ अपूर्ण से अध्ययन-५ उद्देशक-१ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ७८३११. (#) स्थूलिभद्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७२७, पौष कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. ग. सुमतिविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४४०-४४). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोशा कामिनी पूछइ चंद; अंति: गुण गाणरि तस हसी रे, गाथा-२२. ७८३१२. (+) धर्मोपदेश व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४३९). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: सुकुलजन्मविभूतिरनेक; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक-१८ अपूर्ण तक है.) ७८३१३. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: पद्मा०, दे., (२६४११, ९४३४). _पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रः, श्लोक-१३. ७८३१४. औपदेशिक लावणी, सिखामण लावणी व नेमराजिमती लावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, दे., (२६.५४११.५,१०४२६). १.पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनदास सुनो जिनवाणी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ से है.) २. पे. नाम, शिखामण लावणी, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-शीखामण, म. जिनदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जोटो ए जीनवर का नाम; अंति: जिनदास सुनो जिनवाणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: अरी माइ रे मेरो नेम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्णमात्र है.) ७८३१५. (+) समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९७, फाल्गुन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. जैनवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: समवसरण, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १२४३३). महावीरजिन स्तवन-समवसरणगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसलानंदन वंदिइं; अंति: जस० जिनपद सेवा खंत, गाथा-१७. ७८३१६. (+) अज्ञात जैन संस्कृत पद्य कृति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १९४६५-६८). अज्ञात जैन संस्कृत पद्य कृति , सं., प+ग., आदि: प्रणम्यवीरं जगदेकवीर; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५१ अपूर्ण तक है., वि. मंगल-प्रयोजन-अभिधेयादि का प्रतिपादन, वैदिक शास्त्रों में जैन मान्यताओं के साक्ष्य व विविध आगमादि के संदर्भ युक्त रचना.) ७८३१७. (+) शुकराज कथा-शत्रुजयमाहात्म्ये, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४४७-५५). For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शुकराज कथा-शत्रुजयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीशत्रुजयतीर्थेशः; अंति: (-), (पू.वि. "मृगध्वजराजा का पवनवेग नामक घोड़ा लाने हेतु आदेश प्रसंग" तक पाठ है.) ७८३१८. (#) गौतम कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: गौतमकु., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४४२). गौतम कलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थिपरा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७८३१९ (+#) अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १६x४२). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलने कडq हो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७८३२०. भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, १२४३७). भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भक्तामर० १ मंत्र ॐ; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., पाठ "१०८ कांकरी ४ मंत्रि च्यारौ दिसाडारै चोरभयं" तक है.) ७८३२१ (#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४०). स्तवनचौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. कुंथुजिन स्तवन, गाथा-४ अपूर्ण से नमिजिन स्तवन, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७८३२२. (#) आदिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १२४३७). आदिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: शासन देवीअ पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७८३२३. नेमराजिमती बारमासा, कलावती सज्झाय व साधसंजम सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४१). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: घनघोर घटा उमटी विकटा; अंति: कंचन उधार ले देत हैं, गाथा-१५. २. पे. नाम, कमलावतीसती सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: महला मे बेठीजी राणी; अंति: मिछामि दुक्कडं मो, गाथा-२८. ३. पे. नाम. साधुसंयम सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सोहे ने सलोन हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७८३२४. (+) संतिकरं स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ९४२९). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७८३२५ (+) पार्श्वनाथजी रो स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हंडी: पार्श्वनाथजीरो स्तोत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १३४३४). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: (-), (पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१७ अपूर्ण है.) ७८३२६. (+) भयहर स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४४१). १. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: परमपयत्थं फुडं पासं, गाथा-२३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. पार्श्वजिन स्तोत्र-मंत्रमय, मा.गु., पद्य, आदि: पासह समरण जो करइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ७८३२७. चोवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५). For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २४ जिन स्तवन, मु. धर्म, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर गुणराशि; अंति: धर्ममुनि० सकल कल्याण, गाथा-१५. ७८३२८. (+#) विजयसेठविजयासेठानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, २२४७५). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणेसरदेव; अंति: लालचंद० किया सिरनामी, गाथा-२२. ७८३२९ (+) पंचतीर्थी स्तुति, पार्श्वनाथ स्तवन व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ६-२३४३१-६९). १. पे. नाम, पंचतीर्थ स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस; अंति: शिवसुंदर सौख्यकरं, श्लोक-७. ३.पे. नाम. कुमारपाल चरित्र, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह पेटांक ३आ में भी लिखा गया है. कुमारपाल चरित्र-चयनित कथा संग्रह, सं., प+ग., आदि: चिदानंदैककंदाय नम; अंति: (-), (पू.वि. अभयंकर कथा __ अपूर्ण तक है.) ७८३३० (+) मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, १५४४८). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: पामे भवपार स्वामीजी, गाथा-२१. ७८३३१. श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १५४४५-५०). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०२ अपूर्ण तक है.) ७८३३२. भगवतीसूत्र-शतक-१, उद्देशक-१, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, दे., (२५.५४११.५, ९x४४-४७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक ___ द्वारा अपूर्ण., पाठ "वुच्चति तिविहा जागरिया जीव सुदक्खु" से लिखा है.) ७८३३३. क्षमाछत्रीसी व नवकारवाळी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ७X३२). १.पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण से २.पे. नाम. नवकारमंत्र सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: रे नित नित नवकार, गाथा-९. ७८३३४. आराधना प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, ९४३८). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक है.) ७८३३५ (+#) संथारापोरसी सूत्र, वरकनक सूत्र व पार्श्वजिन चैत्यवंदन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. मुख्य लिखावट की अपेक्षा प्रत संपूर्ण कही जाएगी लेकिन बाद में लिखित "श्रीमहीशानो" पाठ के कारण प्रत को अपूर्ण किया गया है. हुंडी खंडित है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४३८-४१). १. पे. नाम. संथारापोरसी सूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: तिविहेण वोसिरीयं. २.पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वरकनक स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: वरकनक शंखविद्रुम; अंति: सर्वामरपूजितं वंदे, श्लोक-१. ३. पे. नाम. असनपानखादिमस्वादिमपीढफलसेज्जासंथारादि आदेश सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: इच्छकारी भगवन् फासुए; अंति: भयवं अणगउ कायव्वो. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: बार उघाडण बइसण; अंति: ति हुइ गच्छतइ सिद्धि, गाथा-१. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. चउक्कसायसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लूरण; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२. ७८३३६. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: सज्झाय०, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४५०). १.पे. नाम. शील सज्झाय, पृ.१अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, मु. धरमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ए तुझ सहज किहाथी; अंति: करइ प्रणामो रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोधइ ईरया रे; अंति: सोना केरइ ठामि, गाथा-२०. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. औपदेशिक पद-ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: थाके नयण चलण पणि; अंति: जे ढाली जाणइ पासा, गाथा-३. ७८३३७. श्रावककरणीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. परिमाण गाथा-२१., जैदे., (२६४१०.५, १२४४१). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२१. ७८३३८. आलोचना विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-४१(१ से ४१)=१, जैदे., (२५४११, १९४५४-६०). आलोचना विचार, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: जुत्तीही समयाउ, (पू.वि. पंचिंद्रिय को अहंकार से प्रहार करने की आलोचना से है.) ७८३३९ (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है..प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ९४२३). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उवसग्गहर स्तोत्र, गाथा-४ अपूर्ण से संतिकर स्तोत्र, श्लोक-१० अपूर्ण तक है.) ७८३४० (+) सज्झाय, लेख व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १७४३५). १.पे. नाम. नेमराजिमती लेख, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरेवंतगिर; अंति: रूपविजय उलासरे, गाथा-१९. २. पे. नाम. ५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामे अंध गजराज अगाज; अंति: सुजाण लहो सुख सासता, गाथा-६. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. __ औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८३४१. चक्रवर्ति आयुष्यादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८, जैदे., (२५४११, १३४४२). १. पे. नाम. बारह चक्रवर्ती आयुमान देहमान, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ चक्रवर्ती आयुमान देहमान बोल, मा.गु., गद्य, आदि: भरथेस्वररो आ० पूरब; अंति: काया धनुष ७३. २.पे. नाम. मेरु पर्वतरा माननइ नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मेरुपर्वत मान, मा.गु., गद्य, आदि: १००००० सुदरसण जंबूद; अंति: पुष्करार्द्ध ८४०००. ३. पे. नाम. अनागत चौवीसी, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २४ जिननाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपद्मनाभ१ श्रीसुर; अंति: २४ सयंबुधनो जीव. ४. पे. नाम. ज्योतिष मान, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिषचक्र मान, मा.गु., गद्य, आदि: समभूमथी जोतग मंडल; अंति: ८९७ शनीसर जोइण ९००. ५. पे. नाम. रात्रिभोजनरो विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ९६ भवतांई जीवहत्या; अंति: रात्रिभोजन पाप होइ. ६. पे. नाम. पूर्वमान गाथा सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. विचारसार प्रकरण-हिस्सा पूर्वमान गाथा, आ. प्रद्युम्नसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पुव्वस्सय परिमाणं ७०; अंति: बोधव्वा वास कोडीणं, गाथा-१. विचारसार प्रकरण-हिस्सा पूर्वमान गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सितर कोडा कोड लाख; अंति: पल्योपमे सागरोपम होइ. ७. पे. नाम. जंबूद्वीपक्षेत्र विस्तारमान विचार, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.. जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबद्वीप लाख जोजननो; अंति: कोड ८० लाख प्रतिमा. ८. पे. नाम, पाँच बोल, पृ. ३आ, संपूर्ण.. ५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: चक्रवर्त्तिरइ पचवीस; अंति: पयतालीस लाख विमानरा. ७८३४२. आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १४४३८). आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: शंका कंखादिक; अंति: मैथुन देखीने. ७८३४३. वंदित्तसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, १०४३४). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ७८३४४. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडीः सामायक., संशोधित., जैदे., (२५४११, १०-१३४३०-३३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: ते मिच्छामि दुक्कडं. ७८३४५ (+) पर्युषणपर्व व्याख्यान गहुंली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, ११४३८). पर्युषणपर्व व्याख्यान गहुंली, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती स्वामीने; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-४ की गहुलीगाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७८३४६. (+#) खरतर गुर्वावली व कल्पसूत्र पीठिका, संपूर्ण, वि. १७३५, श्रावण शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. देवीझर, प्रले. मु. रंगसमुद्र (गुरु मु. मतिमंदिर); गुपि. मु. मतिमंदिर (गुरु वा. अभयसोम, खरतरगच्छ); वा. अभयसोम (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अल्प अवाच्य है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १८४४५-५५). १. पे. नाम, पट्टावली खरतरगच्छीय, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: तमपच्चिम सयल सुअनाणं, श्लोक-१५. २. पे. नाम. कल्पसूत्र की पीठिका, पृ. १-३, संपूर्ण.. कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत उत्पन्न; अंति: कोई अर्थ कही वखाणइ. ७८३४७. सनत्कुमार रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५०). सनत्कुमारचक्रवर्ती रास, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, वि. १६१७, आदि: सुखकरि संतीसर नमुं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के __पत्र नहीं हैं., गाथा-८७ अपूर्ण तक है.) ७८३४८. बारह व्रतआलोचना विधि, संपूर्ण, वि. १८३८, चैत्र शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. मु. महानंद ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. ऋषि जगसीजी के पाना से लिखा गया है., जैदे., (२६४११.५, १७४४६). For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवक आलोयणा प्रायश्चित विचार, प्रा. मा. गु. सं., प+ग, आदि नोकारवाली बोडी ० तो अति: २००० सिझाई उपवासफलं. ७८३४९. षडावश्यक स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. ३, जैदे. (२६४१२, ११३७). " " " ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि चोविसे जिन चिंतवी, अंति विनयविजय ० शिवसंपद लहे, ढाल - ६, गाथा-५०. ७८३५०. डंडकनि चरचा बोल, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. आंबामाडण खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी डंडकनिच०, दे., (२५.५X११.५, १५X३६-३९). २४ दंडक बोल संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: नारकि गतिमां डंडक १; अंति: डंडक २४ चोविस लाभे. ७८३५१. चंद चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११८-११४ (१ से ११४) ४, पू.वि. बीच के पत्र हैं, जैबे, , (२५x११.५, १३४३५-३८) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास -४ डाल- ३० गाथा- १० अपूर्ण से ढाल ३३ कलश गाथा १ अपूर्ण तक है.) ७८३५२. (+) वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण वि. १८९० श्रावण कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. पुण्यसुंदर गणि (कवलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५x११.५, ११४३७). " महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंतिः नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल - ३, गाथा - ५६. ७८३५३. (+) गुरु जयमाल सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५- १ ( ४ ) = ४, प्रले. पंडित. वखतराम; अन्य. पं. माणिक्य गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५.५X११.५, ३-५x२२). मुनिगुण जयमाल, मु. जिणदास, मा.गु., पद्य, आदि सकल मुनीस्वरो नमि, अंतिः जिणदास कृपा करी, गाथा- १३, संपूर्ण. मुनिगुण जयमाल-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अतीत अनागत वर्त्तमान; अंति: भलो एवो कंत केहेता, संपूर्ण. ७८३५४. स्तुति व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६-२ (१ से २ =४, कुल पे. १५, ले. स्थल भृगुकच्छ, प्रले. पं. दयाल विजय पठ. पं. धर्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x११.५, १५४४५). १. पे. नाम. विमलाचल स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: वरदान देजो गुणमालिका, गाथा-४, (पू. वि. गाथा- १ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. चैत्री पूर्णिमातिथि स्तुति, पृ. ३अ संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि विमलाचलभूषण ऋषभ अति दान मान वरदाय, गाथा-४. ३. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि शत्रुंजय गिरिवर वासव अंति: सफल करो अवतारो जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि सेतुंजयमंडण मोहनिख; अंति: करो कुशल विस्तार, गाथा-४. ५. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचलसिंह शिरोमणी; अंति: दान देजो सुप्रभाविका, गाथा-४. ६. पे नाम. चैत्रीपूर्णिमातिथि स्तुति, पृ. ४अ संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि मरुदेवि उयरि सरोवर: अति दान सकल दुःखडा जाय, गाथा-४. ७. पे नाम. चैत्रीपूर्णिमातिथि स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्रीतप तिरथ भाषतो; अंतिः त्रीतप विघन निवारजो, गाथा ४. ८. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि सेतुंजय महिमा प्रग; अंतिः विजयराज० चित्त लाइ गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १०१ ९. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, सं., पद्य, आदि: परम सुख विलासी शुद्ध; अंति: दान० चक्रा वरिष्टा, श्लोक-४. १०.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल तीरथ सुंदरु; अंति: इम दान कहे उलट आंणी, गाथा-४. ११. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ___मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारी रे सिधाचल; अंति: दान शिवसूख होय रे, गाथा-५. १२. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजय तीरथसा; अंति: दानविजय भाखे इम मुदा, गाथा-७. १३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमो प्रेमे पुंडरी; अंति: दान गया दुख लेस, गाथा-७. १४. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल; अंति: दान करि गुण ग्राम, गाथा-५. १५. पे. नाम, चैत्रीपूर्णिमातिथि स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भाव भगति भविजन धरी; अंति: दान० रे ए तिरथवास, गाथा-९. ७८३५५. (+) महावीर सत्तावीस भव विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ४, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४०). महावीरजिन २७ भव विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ग्रामेशौ १ त्रिदशो २; अंति: (-), (पू.वि. २५वें भव तक है.) ७८३५६. (#) रेटीयानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १४४४४). रेंटिया सज्झाय, श्रावि. रतनबाई, मा.गु., पद्य, वि. १६३५, आदि: बाई रे अमने रेंटीयो; अंति: रतनबाई० फली मन आश रे, गाथा-२४. ७८३५७. (+) गुणस्थान क्रमारोह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ८x२५). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हत; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ७८३५८ (+) उपदेशरत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. २, प्रले. पं. अमीचंद्र गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी: उपदेशरत्न, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ७४३८). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: पउम० उवएस मालमिणं, गाथा-२६. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेश रूपीया रत्न; अंति: उपदेशमालानाम शास्त्र. ७८३५९ (#) स्थूलिभद्र सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. धांगध्रा, प्रले. मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १२-१४४४०). १. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाटडीनगर. स्थूलिभद्रकोशा संवाद सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वतीने चरणे नमी; अंति: सोमविमल० रंगरोल रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. ध्रागध्रा. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: रंगविजय० पाय सेव हो, गाथा-५, (वि. अंत में हनुमान मंत्र दिया गया है.) ७८३६०. श्रेणिकचेलणा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी: श्रेणकचेल, जैदे., (२६४१०.५, १९४४३). चेलणासती चौपाई, रा., पद्य, आदि: मगधदेशनो अधिपति; अंति: (-), (पृ.वि. ढाल-२, गाथा-३० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८३६१. नंदिषेणमुनि सज्झाय व पाँचपांडव सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १६x४१). १.पे. नाम. नंदिषणमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो वासी; अंति: मेरुविजय० न तोले हो, ढाल-३, गाथा-१६. २. पे. नाम, पाँचपांडव सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर व भलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ७८३६२. औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, २४४३५). औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: एक वार का परखणा क्या; अंति: जीवडो गरज सही नही एक, दोहा-८४. ७८३६३. शील कुलक की व्याख्या कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७६-१७२(१ से १७२)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडीः शीलकुलं., जैदे., (२६४११.५, ११४३७). शील कुलक-व्याख्या+कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. लक्ष्मण द्वारा कोटिशिला धारण करना अधिकार अपूर्ण से शंखस्वप्नसूचित गर्भवती सीता के दक्षिणनेत्रस्फुरण प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७८३६४. (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२९-२२८(१ से २२८)=१, क्रीत. मु. भोजाजी गोरजी; विक्र. मु. सुखविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:कल्पअंत., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३१). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: व्याख्यानयंत्यादरात्, (पू.वि. मात्र अंत के कुछेक भाग हैं.) ७८३६५. महावीरस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४३३). महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो वीरने चीतमे नीत; अंति: लह्यो मे आज तेरो, गाथा-१५. ७८३६६. ज्ञानपंचमी व अष्टमीतिथि नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १२४३६). १.पे. नाम, ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, प. १अ, संपूर्ण.. म. जिनविजय, मा.ग., पद्य, आदिः युगला धर्म निवारिओ; अंति: श्रीखिमाविजय जिणचंद, गाथा-९. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदि आठिमने; अंति: प्रगटे ज्ञान अनंत, गाथा-१४. ७८३६७. (+) पगामसज्झायसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी: पडि०., संशोधित., दे., (२६४११.५, १६x४१). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इछाकारेण संदेसो; अंति: (-), (पू.वि. "तस्स सव्वस्स देवसिअस्स" पाठ अपूर्ण तक है.) ७८३६९ (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी: भगवतीसू०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४९). ___ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. "तएणं ते समणोवासया थेरेहिं" पाठांश से "एयारुवाई वागरणाइं वागरेत्तए" पाठांश तक है.) ७८३७० (+) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११७-११५(१ से ११३,११५ से ११६)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडीः श्राद्धवृधि. बाद में पत्रांक २३ और २६ लिखे गएँ हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १५४३९-४२). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. तृतीय प्रस्तावे भोजन द्वार अपूर्ण मात्र है व बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. विशेष संशोधन अपेक्षित.) ७८३७१ (+) आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११-१२.०, १४४५६). For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-) (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ज्ञाताधर्मकथा साक्षीपाठ अपूर्ण से है व राजप्रनीय साक्षीपाठ अपूर्ण तक लिखा है.) ७८३७२. (*) महावीरजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी महावीरस्तव, संशोधित.. जैदे., ( २५X१०, १९६३). १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः सदा जिन चोवीस मन; अंति वारउ मोरो वीरस्वामी, गाथा-१४. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय वीर जिणिंद, अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक १० गाथा सहित ढाल -१ की गाथा-१ प्रारंभ तक है.) ७८३७३ (७) जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११, १६x४२). जिनदर्शन लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-) श्लोक-६४, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "" ७८३७४. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. प्र. वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है. दे. (२५.५x११, ९३७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. शतक-२ उद्देशक-५ गौतमस्वामी द्वारा भगवान को गोवरी दिखाकर तुंगीवा नगरी विषयक बात करने का प्रसंग अपूर्ण से है व भगवान द्वारा उसका उत्तर देने के प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ७८३७५ (+) प्रोहितपुत्र स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, पठ. पं. अमृतकुशल गणि (गुरु पं. दानकुशल गणि); गुप. पं. दानकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१०.५, २४X६५). ७८३७६. जीव रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : हिवरा०, दे., (२५X११.५, १६x४३). पुरोहितपुत्र सज्झाय, उपा. सहजसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: सहज सलूणा हो साधुजी; अंति: सफल फला मुझ आस, ढाल -३, गाथा- ६४. पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि हिव राणी पद्मावती; अंति: कहइ पापधी छुटइ ततकाल, दाल-३, गाथा- ३५. ७८३७७. पुण्य कुलक, स्तोत्र व बोलविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११) = १, कुल पे. ८, (२६×११, १९५१). १. पे. नाम. पुण्य कुलक, पृ. १२अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: संपुण इंदियत्त; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०. २. पे नाम बत्तीस अनंतकाय नाम, पृ. १२अ संपूर्ण २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि पंचुंबरि ५ चउविग्गाई, अंति: अभक्खाण बावीसम्, गाथा-२. ४. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि परमेष्ठि नमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक ८. १०३ ३२ अनंतकाय गाथा, पुहिं., प्रा., पद्य, आदि सूरणकंदो १ अ वज्रकंद, अंति: आलू३१ तह पिंडालू३२, गाथा ५. ३. पे नाम. बावीस अभक्ष्य विचार गाथा, पृ. १२अ, संपूर्ण , जैवे., For Private and Personal Use Only ५. पे. नाम. १० नपुंसक विचार, पृ. १२आ, संपूर्ण. १० नपुंसकभेद विचार, प्रा., सं., प+ग, आदि: महिलासहावो सरवन्नभेउ; अंति: चिरं तिष्ठति स आसक्त. ६. पे. नाम. पुरुषस्त्रीनपुंसकभेद श्लोक, पृ. १२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मेहनं १ खरता २; अंतिः भावे स्यान्नपुंसका, श्लोक-२. ७. पे. नाम. षड्दीक्षा अयोग्या नपुंसकाः, पृ. १२आ, संपूर्ण. " दीक्षायोग्य अयोग्य विचार, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: वडिए चिप्पिए प्राय: अंति नपुंसक वेदोदयो भवति, ८. पे. नाम. रत्नसंचय-गाथा-८४ व २६२-२६३, पृ. १२आ, संपूर्ण, पे. वि. गाथा ८४ पत्रांक- १२अ पर उपलब्ध है. रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शु १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८३७९ (4) सर्वसिद्धांतनाम कुलक व सभालक्षण श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १४४३७-४०). १. पे. नाम. सर्वसिद्धांतनाम कलं, प. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ___ सिद्धांतनाम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: थुओ थिरो होउ मह हियए, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सभास्थितिलक्षण श्लोक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: देवदानवमानुष्या सा; अंति: बाह्येष्वप्यधमाधमा, श्लोक-११. ७८३८० (+) पगामसज्झाय सूत्र, अपूर्ण, वि. १८४६, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. ग. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनेमिश्वरप्रासादात्., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४३९). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चोवीसं, सूत्र-२१, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पाठ "पारिट्ठावणियासमीए पडिकम्मामी" से है.) ७८३८१. शिवपुरनगर सज्झाय, वैराग्यपच्चीशी व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी खंडित है., जैदे., (२४.५४११, १४४४३). १. पे. नाम. शिवपुरनगर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: गोतमसामी पुछा करे; अंति: वरो पामो सुख अपार हो, गाथा-१६. २. पे. नाम. वैराग्यपच्चीसी-गाथा २६ से २८, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. साबो (गुरु सा. रायकौर); गुपि. सा. रायकौर, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक पच्चीसी-वैराग्य, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२१, आदिः (-); अंति: रायचंद जपो जाप, प्रतिपर्ण. ३. पे. नाम, दोहा संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सनाचादी वी कासापीतल; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-८ अपूर्ण तक है.) ७८३८२. (+) प्रतिक्रमणसूत्र व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, पठ. सा. लीलाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४५७). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चौवीसं, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१३. ७८३८३. (+) श्राद्धविधि प्रकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४१-३९(१ से ३९)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १७४५३). श्राद्धविधि प्रकरण-टीका, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सामायकव्रते मेघरथ कथा की गाथा-६१ अपूर्ण से देशावगाशिकव्रते पवनंजय कथा की गाथा-८७ तक है.) ७८३८४. (+) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. दीपचंद ऋषि (गुरु मु. धर्मसी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पोलिया उपासरा मध्ये, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१७. ७८३८५ (-) औपदेशिक सज्झाय व गुरुभक्ति पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४५१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जिनधर्मपालन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर धाइए; अंति: धरो तो सेवपुर पाउ, गाथा-२२. २. पे. नाम. औपदेशिक गुरुभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सेवक, पुहि., पद्य, आदि: एते दिन मे भेद न जाण; अंति: पायो बडो खजानो, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक गुरुभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: कंत विना नार माता; अंति: सेवक० उतर पार जणा, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १०५ ७८३८६. (4) देवलोक वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२, १५४५३). देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो सुधरमा देवलोक; अंति: ते देखवा जो पछै. ७८३८७. (+) सनत्कुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०३, कार्तिक कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. पुनमचंद्र ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १२४३४). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे; अंति: खेम कहै० सुख पावै, गाथा-१७. ७८३८८. मांगलिक श्लोक संग्रह व पार्श्वजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १८३४, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १४४३०-३७). १.पे. नाम. मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: कुर्वंति वो मंगलं, श्लोक-३२, (पू.वि. श्लोक-२१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जयति जगति भास्वात्; अंति: भावाहरै दुरितं मम, श्लोक-४. ७८३८९ (+) प्रास्ताविक गाथा संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३६). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३० अपूर्ण से ४९ अपूर्ण तक है.) प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८३९०. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०७-१०५(१ से १०५)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: कल्पसूत्र, जैदे., (२५४११, ६४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. "णाणं जिणसंकासाणं पाठ से छिन्नजाइजरा" पाठ तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७८३९१. साधुप्रतिक्रमण सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(३ से ४)=४, जैदे., (२६४११, ६x४८). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१, (पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., दस विध यतिधर्म के विषय में दोष अपूर्ण से उपधानतपयोग के विना सूत्रपाठ न करने का वर्णन अपूर्ण तक नहीं है.) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि ईच्छु वांछउ; अंति: अरिहंत २४ ऋषभादिक, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. ७८३९२ (+) मरुक दृष्टांत-रात्रिभोजन विषये, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, २१४४७). मरुकदृष्टांत कथा-रात्रिभोजन परिहारे, सं., पद्य, आदि: अस्त्यत्र भरतक्षेत्र; अंति: वर्जत रात्रिभक्तं, श्लोक-१०८. ७८३९३. (+) पगामसज्झाय सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४३४). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (१)चत्तार मंगलं अरिहंता, (२)इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: (-), (पू.वि. पाठ "आयाण भंडमत्त निखोवणासमीए उचारपासवण" पाठ तक है.) ७८३९४. (+) प्राणप्रियभक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४४३). भक्तामर स्तोत्र चतुर्थपादपूर्तिरूप-प्राणप्रियभक्तामर स्तोत्र, संबद्ध, मु. रत्नसिंह, सं., पद्य, आदि: प्राणप्रियं नृपसुता; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३० अपूर्ण तक है.) ७८३९५. महावीरदेवनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. उदयरत्न; पठ. श्रावि. चंदनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, ८४३१). For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी तमे तो कीहा; अंति: उदयरतन कहि एह वडाई, गाथा-११. ७८३९६. (+) एकविंशतिस्थानक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४२९-३७). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा १ नयरी २; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६७. ७८३९७. (+) गुणरत्नाकर छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१४४४३). गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम अधिकार गाथा-१९ अपूर्ण से द्वितीय अधिकार गाथा-४९ अपूर्ण तक है.) ७८३९८. (+) स्थंभनपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६२, भाद्रपद शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. नागोर, प्रले. गोकलदास पीरोयत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११.५, १०x४१). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: जाणी कुसललाभ पपये, ढाल-५, गाथा-१८. ७८३९९ (#) सीमंधरजिनविज्ञप्ति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-३(१ से ३)=४, प्रले. मु. लालचंद; लिख. मु. दयाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, ११४३०). सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, मल्लिदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पइ एणि विधि मलिदास ए, गाथा-८७, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-३५ अपूर्ण से है.) ७८४०० (+) आठकर्म १५८ प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १०४३०-३५). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला आठकमरा नाम; अंति: (-), (पू.वि. जीव महामोहिनी कर्म के तीस बोल में से आठवाँ बोल अपूर्ण तक है.) ७८४०१. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१३, कार्तिक कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४, दे., (२५४११.५, १९४५७). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८४०२. कल्याणमंदिरभाषा, अपूर्ण, वि. १७३१, आश्विन शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ५-१(२*)=४, प्रले. मुरारीदास; पठ. श्राव. रायकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्याणमंदरभाषा. पत्रांक-१ व २ एक ही पत्र पर है., जैदे., (२५.५४१२, १२४२१-३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंति: कान समकित बुद्धि, गाथा-४४, संपूर्ण. ७८४०३. चतुर्विंशतिजिनावली स्तवन, अपूर्ण, वि. १६९३, मार्गशीर्ष, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पठ. श्रावि. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५,११४३४-४०). २४ जिन स्तवन, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जोडीकर जुगि वीनव्या, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ७८४०४. आदिजिन स्तवन, पार्श्वजिन छंद व हितशिक्षा सज्झायादि संग्रह, अपर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ११-७(१ से ३,५ से ६,९ से १०)=४, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १५४४०). १. पे. नाम. आदिजिन बृहत्स्तवन, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. आदिजिन स्तवन-बृहत्श@जयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १०७ पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से ४८ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. हितसिख्या सझाय, पृ. ११अ-११आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय, म. विजयभद्र, मा.ग.. पद्य, आदिः (-): अंति: विजयभद्र० नवि अवतरे, गाथा-२५. (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. बुढापा सज्झाय, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण बुढापो आवीयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ तक है., वि. प्रतिलेखक ने भूल से गाथांक १२ की जगह १३ दे दिया है.) ७८४०५ (+) नंदमणियार चरित्र व अंबड चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १८४५२-५५). १.पे. नाम. नंदमणियार चरित्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: तिण कालै नै तिण समै; अंति: रिष जैमलजी कहइ एम, ढाल-१२, गाथा-१२३. २. पे. नाम. अंबड चौपाई, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. म. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आगइ अतित एहवा हवा; अंति: उववाइ अधिकार हौ गोतम, ढाल-३, गाथा-५६. ७८४०६. (+) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., ले.स्थल, बनारस, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३३). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रकाश-२, श्लोक-८४ अपूर्ण से १०६ अपूर्ण तक है.) ७८४०७. स्याद्वाद स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, १५४३८-४२). १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्याद्वादमति श्रीजिन; अंति: श्रीसार० रतन वहुमोल, गाथा-२१. ७८४०८. (+#) महासत महासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४२९). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: पडुहो तिहु अणे सयले, गाथा-१३. ७८४०९ मोक्षप्राभृत सह छाया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७-३४(१ से ३४)=३, जैदे., (२६४१२, १७४३४). अष्टप्राभत-हिस्सा मोक्षप्राभत, आ. कंदकंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंतिः सो पावइ सासयं सोक्खं, गाथा-१०६, (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-७५ से है.) अष्टप्राभृत-हिस्सा मोक्षप्राभूत की छाया, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सौख्यं प्राप्नोति, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७८४१०. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५४१२, १३४३०). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम दो सूत्र नहीं है.) ७८४११. अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६४११.५,१३४४५). अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१९ अपूर्ण से ३९ अपूर्ण तक है.) ७८४१२. रूक्मिणीरानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उदेपुर, प्रले. मु. रूपराज (गुरु मु. हेमसागर, संवेगी); पठ. जडाव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. चंद्रप्रभुजी प्रासादात्, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२७-३०). रुक्मणीसती सज्झाय, म. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणे, गाथा-१४. ७८४१३. चौवीसजिन व शारदा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, ११४२१). १.पे. नाम. चौवीसजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८. , प्रले. मु. रूपराज ८४१३. चौवीसज्झिाय, मु. राजविसादात्, जैदे., (२५ For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राज्यते श्रीमती; अंति: मेधामावहति सततमिह, श्लोक-९. ७८४१४. पंचमआरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १३४४५-४८). पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: जिनहर्ष० वयण रसाल, गाथा-२०. ७८४१५. शंखेश्वर पार्श्वनाथ छंद, ज्योतिष श्लोक व नवपद चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४१). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरतरू जग; अंति: नाथ त्रिभुवनतिलओ, गाथा-५. २. पे. नाम. पुत्रपुत्रीज्ञान श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३. पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राजगृहे पुरे रम्ये; अंति: सिद्धचक्रप्रधानं, श्लोक-१४. ७८४१६. (4) चेतनबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १७९२, चैत्र कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सांडहा ग्राम, प्रले. मु. क्षमारतन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, ३५४१७-२०). चेतनबत्रीसी, मु. राज, मा.गु., पद्य, वि. १७३९, आदि: चेतन चेत रे अवसर मत; अंति: बोलै राजबत्तीसी, गाथा-३२. ७८४१७. (4) पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४३९). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: राई पडिकमणुं करी देव; अंति: आसातना मिछामीदुकडं. ७८४१८. (#) बलदेवमुनि व अइमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २६४१६). १. पे. नाम. बलदेवमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगीआगीर शिखर सोहे; अंति: सकल मुनि सुख देइ रे, गाथा-८. २. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रत्नसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अयमत्तो मुनि वंदिइ; अंति: ते पामे भवपार लाल रे, गाथा-८. ७८४१९ (#) झांझरियामनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४११.५, ९४२५). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: (-); अंति: इम सांभलतां आणंदे के, ढाल-४, गाथा-४३, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-८ अपूर्ण से है.) ७८४२० (+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १४४४४). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से ४४ अपूर्ण तक है.) ७८४२१. (4) भक्तामर स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ३४३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४२ अपूर्ण से भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: अधिष्ठायिका समपैति. ७८४२२. अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, १०x४१). अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअसव्वभयं संत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १०९ ७८४२३. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४१२, १३४२८). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ की गाथा-३अपूर्ण से अध्ययन-३ गाथा-५अपूर्ण तक है.) ७८४२४. सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. पं. ज्ञानविजय; अन्य. पं. रत्नविजय (गुरु पं. ज्ञानविजय); पठ. सा. पुरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अभिनंदनजी प्रसादात्., जैदे., (२६४१२, ११४२७). त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-२७. ७८४२५ (4) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, ७४२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पाठ उत्तराफाल्गुनी में ५ प्रसंगसूचकसूत्र अपूर्ण से चतुर्थआराप्रमाणसूचकसूत्र अपूर्ण तक है.) ७८४२६. (4) पार्श्वजिन स्तव सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६x४६-४९). पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: जस सासणदेवि वएसकया; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-३१ तक है.) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि: जं संथवणं विहिय तस्स; अंति: (-), पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ७८४२७. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४५, फाल्गुन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. सा. चैनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४३०). १.पे. नाम. नेमीजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. नगजी, मा.गु., पद्य, आदि: नारि मनावे हे नेम; अंति: लुलि लुलि लागुं पाय, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीत; अंति: भव भवना मुज बंधण छोड, गाथा-८. ३. पे. नाम, बारह देवलोक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्म १ ईशान २; अंति: आरणै ११ अच्युत १२. ४. पे. नाम, पाँच अनुत्तर विमान नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ अनुत्तरविमान नाम, मा.गु., गद्य, आदि: विजय १ वैजयंत २ जयंत; अंति: जयंत४ सर्वार्थसिद्ध५. ७८४२८. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-१९(१ से २,४ से २०)=२, जैदे., (२६.५४११, १२४३१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. इरयावहीसूत्र अपूर्ण से है व बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. कहीं-कहीं प्रतीक पाठ दिया गया है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वांदु जिन चउवीसइ. ७८४२९ आत्मानुशासन, लोकनालिबत्रीसी व आत्मोपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १५४५४). १. पे. नाम, आत्मानुशासन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ग. पार्श्वनाग, सं., पद्य, वि. १०४२, आदि: (-); अंति: भाद्रपदिकायाम्, श्लोक-७७, (पू.वि. श्लोक-४४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. लोकनालिविचार बत्रीसी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: धम्मकित्ति० इह भिसं, गाथा-३२. For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम, आत्मोपदेशमाला, पृ. ३आ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे अणंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६२ अपूर्ण तक है.) ७८४३०. (+) पंचकल्याणक मंगल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४४०). पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि पंच परम गुरु; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७८४३१. उत्तराध्ययसूत्र-अध्ययन-३६ जीवाजीवविभत्ति, अपूर्ण, वि. १८४७, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, १४, मध्यम, पृ.७-५(१ से ५)=२, ले.स्थल, जोधपुर, जैदे., (२६.५४११, १६४५४). उत्तराध्ययनसूत्र, म. प्रत्येकबद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, (प्रतिअपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-२०८ अपूर्ण से है.) ७८४३२. नेमराजुल गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). नेमराजिमती गीत, म. माणिक्यरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सारदने समरी करि गाउ; अंति: ण गाई मनमे हरखे अपार, गाथा-११. ७८४३३. अभिग्रह पच्चक्खाण व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३४३०-३५). १. पे. नाम. दशपच्चक्खाण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सरे नमक्कार; अंति: सव्वसमा० वोसरइ. २.पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-२. ७८४३४. (+#) प्रतिक्रमण विधि, नवकारजाप फल व आगम विचार, अपूर्ण, वि. १८४५, भाद्रपद कृष्ण, १०, जीर्ण, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १८४३७-४०). १.पे. नाम. प्रतिक्रमण विधि, पृ. २४अ-२४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. प्रतिक्रमण विधि-स्थानकवासी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शक्ति पच्चक्खाण करइ, (पू.वि. अतिचार अपूर्ण से है., वि. अंतिमवाक्य खंडित होने से अवाच्य है. सूत्रयुक्त विधि.) २. पे. नाम, आनुपूर्वि नवकारजाप फल, पृ. २४आ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग., आदि: आणपुरवि गुणजो जोई; अंति: छै अविनीत नई नथी, (वि. आनुपूर्वि के अंक भी दिये गए हैं.) ३. पे. नाम. ३२ आगम नाम, अध्ययन व गाथा संख्यादि विचार, पृ. २४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. मा.गु., गद्य, आदिः श्रीआचारंग प्रथम अंग; अंति: (-), (पू.वि. आवसगसूत्रजी गाथा १२८ के बाद का पाठांश नहीं है.) ७८४३५ (+) कायस्थिति प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ७४२२). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दसणरहिओ काय; अंति: अकाय पद संपदं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: हे जिन ताहरा दर्शनथी; अंति: मोक्ष पद शीघ्र दइ. ७८४३६. (+) आगमिकपाठ संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १९४५१). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: इति पंचवस्तु वृत्तौ, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., सम्यक्त्वरहस्यवृत्ति साक्षीपाठ उल्लेख से है.) ७८४३७. (#) बृहत्शांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ८४४२). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतु शासनम्. बहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भो भो एहवे संबोधने; अंति: वर्त्त शासन जेते. For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १११ ७८४३८. (+) जंबू चरित्र, अपूर्ण, वि. १९२०, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, प्र.वि. हुंडी: जंबुचरित्र, पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२, २१४५८). जंबूकुमार चरित्र, मु. राम, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: (-); अंति: विपरीत रो परिहारो रे, (पू.वि. अंतिम दो ढाल अपूर्ण गाथा-६ से है.) ७८४३९. सबल दोष, मोहनीय स्थान व जीवोत्पत्ति स्थान बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६४, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. धीरजमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १६४३५). १. पे. नाम. २१ सबल दोष बोल, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. २१ बोल-सबल दोष, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: खरड्या आहारादि लेवै, (पू.वि. ७वें दोष से है.) २. पे. नाम. मोहनीय कर्मबंध के ३० स्थानक बोल, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ३० बोल-मोहनीय कर्मबंध स्थानक, मा.गु., गद्य, आदि: १तसजीवनै पाणीमै डबोय; अंति: कहे हुं देवता देखु. ३. पे. नाम. जीवउत्पत्ति के १४ स्थान, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: १उचारेसु वा वडीनीतम; अंति: पद समुर्छिम मनुष्य. ७८४४०. गोम्मटसार की भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, १०४३१). गोम्मटसार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)अरिसिद्धाण वंदित्ता, (२)पेला श्रीअरिहंतजीने; अंति: (-), (पू.वि. "जीव सरूप भेद परापती" पाठांश तक है., वि. साथ में रही गाथाएँ मंगल व संदर्भरूप होना संभव है. विशेष संशोधन अपेक्षित.) ७८४४१. (+) प्रतिक्रमण विधि-स्थानकवासी-चतुर्थ आवश्यक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, २१४६२). प्रतिक्रमण विधि-स्थानकवासी, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सामायिकव्रत अतिचार अपूर्ण से है., वि. सूत्रयुक्त विधि.) ७८४४२. श्रावकअतिचार-खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११.५, ११४४२). श्रावकअतिचार-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि अदंसणंमि अ; अंति: (-), (पू.वि. दर्शनाचार अपूर्ण तक है.) ७८४४३. (#) दीपावलीपर्व स्तवन व गौतमस्वामी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३०). १. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीमहावीर मनोहरु; अंति: ज्ञानविमले कहिई, गाथा-९. २. पे. नाम. गौतमस्वामी चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नमो गणधर नमो गणधर; अंति: नय० होवे जय जयकार, गाथा-३. ७८४४४. स्तुति, आरती, व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९४४, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. गिरधारीलाल पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १७X४२). १.पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: संस्तौमि वीरं विभु, श्लोक-१. २. पे. नाम. महावीरजिन निर्वाण आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. म. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जगदीश जिनेसर; अंति: भाबै जिन घट परवाना, गाथा-११. ३. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षना; अंति: देवचंद्र पद लीधो रे, गाथा-९. ४. पे. नाम. दीपालिकापर्व व्याख्यान, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दीपावलीपर्व व्याख्यान, प्रा.,सं., गद्य, आदि: सिंहांकजिनमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. आर्यसुहस्तीजी के पास वंदन प्रसंग ___ अपूर्ण तक है.) ७८४४५. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रतनालाम, प्रले. मु. हरचंद (गुरु मु. मोतीचंद); गुपि. मु. मोतीचंद (गुरु मु. हेमराज), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १०४२५-२८). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जीव वे वारमे केतलो; अंति: होये सातामीये. ७८४४६. (+#) सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४२९). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, म. गणविजय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मणि, ढाल-६, गाथा-४९. ७८४४७. (4) सुबाहुकुमार संधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, प्र.वि. हुंडी: सुबाहुऋषि, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३७-४०). सुबाहुकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६०४, आदि: पणमिय पासि जिणेसर; अंति: थायउ नितु भणतां, गाथा-८९, ग्रं. १४०, संपूर्ण. ७८४४८. मौनएकादशी कथा का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६८, पौष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. फलवर्धिका, __ प्रले. मु. नयणरंग (गुरु मु. क्षमाधीर); मु. क्षमाधीर (गुरु पं. राजसुंदर गणि); गुपि. पं. राजसुंदर गणि (गुरु पं. राजलाभ गणि); पं. राजलाभ गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (११६८) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२५.५४११, १९४४५-४८). मौनएकादशीपर्व कथा-बालावबोध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गद्य, आदिः (१)अहँ नमः श्रीपरमे०, (२)श्रीमहावीरस्वामीनइ; अंति: आराधिवा उजमाल थया. ७८४४९. बालचंदबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पोरबंदर, जैदे., (२६४११.५, १३४३७-४०). अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर परमेश्वरकुं; अंति: धंग रंग मन आणीइं, गाथा-३३. ७८४५० (+) साधुवंदना लघु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: छो॰साधु, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४३६-३९). साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोविसी; अंति: (१)रिष जेमलजी इम कहे, (२)कहेइ एहीज तरणरो दाव, गाथा-५५. ७८४५१ (4) उपकेशगच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अंत में विभिन्न ग्रंथों के नाम की सूची दी गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४५-३९). पट्टावली-उपकेशगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ शुभदत; अंति: तिके विद्यमान छै. ७८४५२. (+) स्थापन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १६४५०). मूर्तिपूजामतस्थापन सज्झाय, उपा. मतिकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: आणंद आणी अंगमइ आलस; अंति: भणइ निजमन केरइ भाइ, गाथा-६१. ७८४५३. (#) चोवीसजिन स्तवन व द्रोपदीसती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. जयपुर, प्र.वि. हुंडी: द्रोपत, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २०४३७-४०). १.पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: प्रभु राजाराणि के; अंति: थ चोथ मीगसरमास जीणसर, गाथा-१८. २. पे. नाम. द्रोपदीसती चौपाई, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. द्रौपदीसती चौपाई, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सील वडो संसारमै; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-१४, दुहा-१ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ११३ शुक्ला ७८४५४. (+) चेलणाराणी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९-७ (१ से ७) = २, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अस्पष्ट है. प्रतिलेखक दयालजी के शिष्य घनीरामजी होने की संभावना है. तिथि भी अस्पष्ट है, अस्पष्ट मास की ११ भी दी है एवं कार्तिक शुक्ला २ भाईबीज का भी उल्लेख है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, १५X३२). चेलणासती चौपाई, रा., पद्य, आदि (-); अंति: तिहा पधारीयाजी, डाल-९, (पू.बि. डाल-८ गाथा २२ अपूर्ण से है.) ७८४५५ (+३) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११.५, ११४२७-३०). औपदेशिक सज्झाय-हमचडी, मु. वर्द्धमान पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीनें पाए नमी रे; अंति: ते नरभव अजूआलहरे, गाथा - २५. ७८४५६. (+) आषाढभूति पंचढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : आषाडभूत, संशोधित. दे., (२५.५४१२.५, १६४४५-४८). आषाढाभूतिमुनि पंचडालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परिसोह बावीसमो; अतिः (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) ७८४५७. सील रास व सोलसुपन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४ (१ से ४) = २, कुल पे. २, ले. स्थल. नंदग्राम, जैदे., (२५X११.५, १७x४७-५०). १. पे. नाम. शील रास, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे. वि. पत्र चिपके हुए हैं इसलिये अंतिमवाक्य अपूर्ण एवं अस्पष्ट है. शीय प्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि (-); अति इमश्री० सेवज्यो, गाथा-७७, ग्रं. २५१, (पू.वि. गाथा-७५ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. सोल स्वप्न सज्झाय, पू. ५अ-६अ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलपुर नगरी भली; अंति: चंद्रगुपत राजा सुणों, गाथा - ३६. (७८४५८. (#) अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१२, १३x२९). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. ढाल - २, गाथा - १६. ७८४५९. (+#) गीत, पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ९, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x१२.५, १९x४२-४५). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल गढमंडणो कांइ अति: जयकार हो, गाथा-६. . कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे माहरे ठांम; अंति: कांति सुख पामे घणुं, २. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद पु,ि पद्य, आदि: तुं बालाब्रह्मचारी अंति: वीनती भवभव होत सवाई, गाथा ३. ३. पे. नाम. मगसी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि सिवमगसी मगसी जिनराया अति: कहे० आवागमण निवारी, गाथा ६. ४. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुंजा गढनो राजीओ; अंति: चरणनी सेवा रंग रसाल, गाथा-७. ५. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. . मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराय अलग; अंति: मोहण० पंडित रूपनो, गाथा-७. ६. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो लागे० ऋषभ; अंति: साहिब थारी जो सेव, गाथा-७. ७. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. म. राजेंद्रविजय, रा., पद्य, आदि: देरावर थारो देवरे; अंति: हो अरज करे राजिंद, गाथा-७. ८. पे. नाम, जिनकुशलसूरि गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: निरधारां आधार कुसल; अंति: राज० आतम प्राण आधार, गाथा-४. ९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. राजसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: भज मन नाभिनंदन देव; अंति: राजसिह नाथ है नितमेव, गाथा-३. ७८४६० (+) नमोत्थणं कल्प व जिनदत्तसूरि सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १०४२८-३२). १.पे. नाम, नमोत्थुणं कल्प, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नमुत्थुणं कल्प, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमुत्थुणं अरिहंता; अंति: प्रमुख सघला भय नासे, गाथा-१६. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरि सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण... म. धर्मसी, पुहि., पद्य, आदि: बावन वीर कीए अपने वस; अंति: जिणदत्त की एक दुहाई, सवैया-१. ७८४६१. अट्ठोत्तरपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १६४१, वैशाख कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वांसावाला, प्रले. मु. सवा; अन्य. आ. मानकीर्तिसूरि (गुरु आ. चंद्रकीर्तिसूरि, नागपुरीयतपागच्छ); गुपि. आ. चंद्रकीर्तिसूरि (गुरु मु. राजरत्न, नागपुरीयतपागच्छ); पठ. श्रावि. धनाबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४१०.५, ११४३३-३६). पार्श्वजिन स्तवन-अहिमदपुरमंडन, मु. धर्मसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि मागीइ ए; अंति: धर्मसुंदर० श्रीपासजिण, गाथा-४०. ७८४६२ (4) गुरुसुगुरु प्रदीप स्तव दसमताधिकार, संपूर्ण, वि. १८०५, फाल्गुन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पत्तननगर, प्रले.पं. कृष्णविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २०४५६). महावीरजिन स्तवन-दसमताधिकार स्वरूप, वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जयदायक जिनराज ए; अंति: पूरो वंछित काज ए, ढाल-९. ७८४६३. (#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, कुल पे. ७, प्र.वि. हुंडी: थुईपरत, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३८). १.पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४. ३. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. बालचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येष सिद्धं, श्लोक-४. ४. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु.पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीपास जिनेसर पूजा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. श्रुखडी थुइ, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: माई जो तु से अंबाई, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) ६.पे. नाम. शेव॒जातीर्थ थुइ, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेāजो तीरथ; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ७. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ७८४६५. गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४१२, १७X४२). For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ११५ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: द्वारिकानगरी ऋद्धि; अंति: सुगुरु सहाय रे, ढाल-३, गाथा-३८. ७८४६६. पौषध विधि, प्रतिक्रमण विधि व देववंदन विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १२४३०). १.पे. नाम. पोसा लेवा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: हुइ हवै ते सवि हं०. २. पे. नाम. प्रभातना पडिकमणा विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., प+ग., आदि: इरियावही पडिक०; अंति: संदि० बहुवेल करस्युं. ३. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चैत्यवंदन आदेश तक लिखा ७८४६७. समकित बोल व नवअंग पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. श्राव. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १२४३७-४०). १. पे. नाम. सम्यक्त्वना सडसठ बोल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम सम्यक्त; अंति: रहित सदा नित्य छै. २.पे. नाम. नवअंग पूजा, पृ. २आ, संपूर्ण. नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रमा; अंति: कहे सुभवीर मुंणिद, गाथा-१०. ७८४६८. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४०). १. पे. नाम. नारीरूपवर्णन दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: नयण मटको वयण रस गोरी; अंति: मुजरो मोटी बात, दोहा-२. २. पे. नाम. पजुषण स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंति: पूरे देवी सिद्धाईजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पजुसण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर; अंति: बुद्धिविजय जयकारी जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ.१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: कल्याण महात्म्यत, श्लोक-१. ७८४६९ (#) गुणठाणा १४रो बंधउदैउदीरणासत्ताप्रकृति १४८रो विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २१४६०). १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलइ गुणठाणइ को; अंति: सत्ता पूरी थई. ७८४७०. (+) पंचपरमेष्ठिमहामंत्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३६-४०). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण: अंति: सेवा देज्यो नित्त, गाथा-१३. ७८४७१. (#) झांझरीयामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सज्झायपत्र, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३४-३७). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: इम सांभलतां आणंदे के, ढाल-४, गाथा-४३. For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८४७२ (#) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. हेमराज ऋषि (विजयगच्छ); पठ. श्रावि. भक्तादे समरथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६४३७-४०). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: आणी कुशललाभ पयंपए, ढाल-५, गाथा-१८.. ७८४७३. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय व नेमिजिन चोमासं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. नडुलाई, प्रले. पं. रत्नराज (गुरु वा. उदयराज), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, २१४७०-७३). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: मंगलिक महिमा निलो रे; अंति: परे वांछित आसो रे, अध्याय-१०. २. पे. नाम. नेमिजिन चोमासं स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ___मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मारा सम जाउं मारे; अंति: मलवानु मन काचुं, गाथा-६. ७८४७४. (#) सज्झाय, पद व गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. सादरी, प्रले. पं. चतुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४६-५०). १.पे. नाम, पिंडविसोद्धिसूत्रोक्त बेतालीस दोष सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पिंडविशद्धि प्रकरण-४२ आहारदोष सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७३६, आदि: सरसति सामिण प्रणमी; अंति: नित्यवि० होज्यो आपणे, गाथा-५८. २.पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धरिय उमाहो रस भरी; अंति: (-), गाथा-११, (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ दो पाद तक लिखा है.) ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण.. औपदेशिक पद-नारी महिमा, मा.गु., पद्य, आदि: नारी सम जग को नही नर; अंतिः क्षीणमे मीन न मेष, गाथा-५. ४. पे. नाम, औपदेशिक गाथा- भावभक्ति, पृ. २आ, संपूर्ण... श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ७८४७५. शांतिनाथ व आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १०४२६-२९). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, म. भावसागर, पुहिं., पद्य, आदि: सेवा शांतिजिणेसर की; अंति: संघ मंगलकारी बेलो, गाथा-१५. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन; अंति: लालचंद० मझारो रे, गाथा-११. ७८४७६. आदिनाथ व सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: सिद्धाचलस्तवन, जैदे., (२६४११.५, १४४३१). १.पे. नाम, आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिश्वर अजर; अंति: ते दरसण लहे पुन्यवंत, गाथा-२२. २.पे. नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धाचल समरो सदा; अंति: रिद्धिलक्ष्मी गुणगाय. ७८४७७. माणिभद्र छंद व अध्यात्म पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १७४४५). १.पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म.शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनी पाय पण; अंति: आपे मुझ सुख संपदा, गाथा-४४. २. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ११७ औपदेशिक पद, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मायडी मुने निरपख; अंति: आनंदघन० सगली पालै, गाथा-८. ७८४७८. बोल, संवाद व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.५-३(१ से ३)=२, कुल पे. ४, ., (२६४१२, १०x४०). १. पे. नाम. भमरा सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायाविषे, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मनभमरा काई भम्य; अंति: रिया लेखो साहीब हाथ, गाथा-९. २. पे. नाम. मंदोदरी रावण संवाद, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-रावणमंदोदरी संवाद, म. सोभागमल मुनि, पुहिं., पद्य, आदि: अणी लंकागढ मे आइरे; अंति: सोभागमल० की आस हो, गाथा-१६.. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मारो मनडो ऋषभजीसु; अंति: मारी विनतडी भली ताजी, गाथा-६. ४. पे. नाम. श्रावक के आठ बोल, पृ. ५आ, संपूर्ण. ८ श्रावकाचार प्रश्नोत्तरी, पुहि., गद्य, आदि: श्रावकजी खावे काई; अंति: पाले सद्गुरुमार्ग. ७८४७९ (#) कातिकसेठ चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १८४५५-६०). कार्तिकसेठ चौढालियो, मा.ग., पद्य, वि. १८४६, आदि: श्रीआदेसर आदेनमं; अंति: कोइ तो मीछाडुकडो होइ, ढाल-४. ७८४८०. पार्श्वजिन १० भव वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. नायक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १६४३३-३६). पार्श्वजिन १० भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पोतनपुर नगरे अरिविंद; अंति: १ भुक्त पारणु करे, (वि. संक्षिप्त वर्णन किया गया है.) ७८४८२ (+#) भक्तामर स्तोत्र, शांतिजिन स्तवन व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, प. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. अनोपरत्न, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, १३४३६). १. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ३५ पाद-२ से श्लोक-३८ तक, पृ. १अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-३५ से है व ३८ तक लिखा है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा जिनवरराय हुं; अंति: राज हुकमी ताहरो, गाथा-१४. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. __ सं., पद्य, आदि: कल्याणकरं करुणानिलयं; अंति: तव्र प्रमानंदकं, श्लोक-५. ७८४८३. सत्ताविस भववर्णन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३०-३५). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: सेवक विरविजयो जयकरो, ढाल-६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-४, गाथा-४ अपूर्ण से है.) ७८४८४. (#) गोडीपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. जिनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१४४३२-३५). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आप; अंति: कवि कुसललाभगोडी धणी, गाथा-२२. ७८४८५ (#) समोसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १३४४०). महावीरजिन स्तवन-समवसरणगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, आदि: त्रिसलानंदन वंदिइं; अंति: जिनऋद्धि जोवा खंति, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८४८६. महावीरजिन, शांतिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, ले.स्थल. आणंदपुर, प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १५४३२-३५). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सारदमाय नमुंसीरनामी; अंति: गुणसागर० निसचेइ पावै, गाथा-२२. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि; अंतिः प्रभु पारसनाथ कीयै, गाथा-१५. ७८४८७. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १२४३६). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदाजी, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसुवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ३. पे. नाम, विहरमान २० जिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. ४. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: जिनसुख० सुरि सुह जाण, गाथा-४. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ____ आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेश्वर वामा; अंति: भक्तिसूरि० बहु वित्त, गाथा-४. ७८४८८ (2) २४ दंडक लेश्या विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३५). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. १३वें दंडक नाम अपूर्ण से ७वीं नरक के देहमान का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७८४८९. चौदगुणठाणा स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४११, १३४२५-२८). १४ गुणस्थानक सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: चंद्रकला निर्मल सुह; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१६ अपूर्ण तक है., वि. सारिणीयुक्त) ७८४९० (#) जिनरक्षा व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६२, फाल्गुन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पटणा, प्रले. मु. लालमण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४२५-२८). १. पे. नाम. जिनरक्षा स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ जिनरक्षा स्तोत्र-भाषा, मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: गुरुचरण सदा नमो हाथ; अंति: ऊपजे बाधे मंगलमाल, गाथा-२१. २. पे. नाम. रोगहर स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-रोगहर, मु. चेतन, पुहिं., पद्य, वि. १८५९, आदि: (१)ॐ ह्रीं अरिहंत सिद्ध, (२)पारसनाथ परमसुख दाता; अंति: पार्श्वनाथ मंगल करन, गाथा-१९. ७८४९१. ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: बासटीयो. हुंडी खंडित है., जैदे., (२६४११.५, १४४३४-४०). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: जीव गइ इंदिय काय जोए; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७८४९२. (+) लोकनाडी व आर्य देश नामादि विचार, संपूर्ण, वि. १९८१, भाद्रपद शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. श्राव. मोहनलाल उत्तमचंद्र शाह; अन्य. सा. माणेकबाई स्वामी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: लोकनाडी., संशोधित., दे., (२५४११.५, १७४४३-४८). १. पे. नाम. लोकनाडी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १४ राजलोक परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम लोकनु जाडपणु; अंति: गीतार्थथी जाणी लेवं. २. पे. नाम. साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ मगधदेश राजग्रही; अंति: १४ हजार गाम. ७८४९३. (#) आठकर्म विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४३३-३६). ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो ज्ञानावरणी; अंति: (-), (पू.वि. त्रीजी कर्मवेदनीय विचार वर्णन अपूर्ण तक है.) ७८४९४. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: श्रीपाल०, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२, गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७८४९५. ८४ लाख जीवयोनि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, १३४४५). ८४ लाख जीवायोनि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: स्त्रीवेदमा पुरुषवेद; अंति: एम सुत्त बोले अमीआ. ७८४९६ (+#) पंचपरमेष्टि नमस्कार स्तुति सह बालावबोध व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४३७-४०). १.पे. नाम, पंचपरमेष्टिनमस्कार स्तुति सह बालावबोध, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत भवभयहरण; अंति: मंगलमाला प्रवर्तते. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहासंग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ७८४९७. शांतिनाथ व सम्मेतशिखर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १०४२८). १. पे. नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद; अंति: इम उदयरतननी वाणी, गाथा-१०. २. पे. नाम. सम्मेतशिखर स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज सफल दिन उग्यो; अंति: कहे रुपवीजे कविराज, गाथा-४. ७८४९८. आलोयणा सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४४). आलोचनासूत्र-देवसिप्रतिक्रमणगत, हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह; अंति: (-), (पू.वि. सत्तर प्रकार के असंयम का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७८४९९ (+) रुपकमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. हर्षकीर्ति (गुरु पं. हर्षसिंहगणि); गुपि.पं. हर्षसिंहगणि; पठ. मु. खेतसी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३७). रूपकमाला-शीलविषये, मु. पुण्यनंदि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर आदिसउ; अंति: पभणइ श्रीपुण्यनंद, गाथा-३२. ७८५००. इरियावही स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १०४३८). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदिः श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति: विनयविजय उवज्झाय रे, ढाल-२, गाथा-२५. ७८५०१. पर्युषणपर्व स्तुति व प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १०-१२४३२-४०). For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम, पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. जिनेंद्रसागर, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवस मांहे सार; अंति: जैनेंद्रसागर जयकार, गाथा-४. २. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ.१आ, संपूर्ण. म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राज छोडी रलीयामणो रे; अंति: जिणे दीठा ए प्रतिष्य, गाथा-७. ७८५०२. (+#) नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १५४३८). | नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नेम निरंजन ध्यावो; अंति: सिवरमणी सुख लीना रे, गाथा-२९. ७८५०३. (+) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी: कल्पार्थ., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०). कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पर्वशिरोमणि विशेषण विचार अपूर्ण से १० कल्प वर्णन अपूर्ण तक है.) ७८५०४. वीसस्थानकपट्ट स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३४). २० स्थानकपट्ट स्तवन, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९९, आदि: आज आणंद वधाई म्हारे; अंति: वाधे कीर्ति आणंदा रे, गाथा-९. ७८५०५. वीसविहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, २४४१५). २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: वीस विहरमान सादा; अंति: साधू सताइ गुणवाला, गाथा-१७. ७८५०६.(#) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १०x४५). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुरि सिरि पासजिण; अंति: पासनाह सुविशालो, गाथा-१६. ७८५०७. (+) तपआलोयना विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १६४४५). आलोयणाविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: एक वरस नाने आलोयण तप; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ४८वे वरस की आलोचना तक है.) | ७८५०८. (+) परिगृहिता देवी संख्या, इंद्राणी संख्या व देवायु यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, ४६४११). १.पे. नाम. परिगृहिताअपरिगृहितादेवी आयु बोल यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. अग्रमहिसी संख्या यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. इंद्र अग्रमहिसी संख्या यंत्र, मा.ग., यं., आदिः (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव आयुष्य बोल यंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७८५०९. आयंबिलतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५५, पौष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल, पाटण, प्रले. पं. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४४४०). आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: समरी श्रुतदेवी सारदा; अंति: भाखे विनयविजय सज्झाय, गाथा-११. ७८५१०. साधुगुण स्वाध्याय व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३३). १. पे. नाम. साधुगुण स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-साधगण, रा., पद्य, आदि: चोरासी लख जोनमे रे; अंति: जी री मानज्यो रे लाल, गाथा-११. २.पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५. ७८५११. विजयशेठ विजयाशेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १७X४५). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय,म. कसल, मा.ग., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रे रे; अंति: कुशल नित घर अवतरे, ढाल-४, गाथा-३०. ७८५१२. चोवीसजिन आंतरा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, १४४३२). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: वीर निर्वाणथी; अंति: २४ श्रीमहावीर अंतरो. ७८५१३. (#) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १६७५, आश्विन कृष्ण, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १८४५१). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिण पमुह चउवीस; अंति: पासचंदे० आणंदे संथुआ, ढाल-७, गाथा-८६. ७८५१४ (+) संथारापोरसी व छमासीतप चिंतवन विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, २१४४७). १.पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र-खरतरगच्छीय, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: वंदामि जिणे चउव्विसं, (वि. अंत में प्रत्येक खामणेणं अब्भुट्टिया व पक्खियं पडिक्कमावेह के दो आदेश लिखे गए हैं.) २.पे. नाम, छमासीतपचितवन विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: छम्मासी चिंतवीयइ; अंति: कही काउस्सग्ग पारइ. ७८५१५. वीसविहरमानजिन चैत्यवंदन व शिवभक्ति कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १२४३८). १. पे. नाम. वीसविहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, श्राव. लाधो साह, मा.गु., पद्य, आदि: अढीयद्वीपमा आज छ; अंति: लाधो० करुं प्रणाम, गाथा-४. २. पे. नाम, कवित्त संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. कवित्त संग्रह-शिवभक्ति, पुहिं., पद्य, आदि: संकरदास गादीमरद; अंतिः सो आज फल्यो जगदीस, गाथा-४. ७८५१६. शीतलजिन स्तवनद्वय व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३०). १.पे. नाम, शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिन सहेज सुरंगा; अंति: सुबधकुसल गुण गाया हो, गाथा-६. २.पे. नाम, शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिनवर आगलै हुँ; अंति: कांतसागर पुरो आस रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर सोलमो रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७८५१७. राजीमती गीत व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४४६). १. पे. नाम, राजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण चतुर सुजाण; अंति: जपै इम जयतसी हो, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: नेमीसर आदेसि आदेसि; अंति: कर जोडी वांदे जयतसी, गाथा-९. ७८५१८. त्रिषष्टिशलाकापुरुषनी सज्झाय व मानवभवउत्पत्ति सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १४४३३). १. पे. नाम, त्रेषठशलाकापुरुषनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची त्रिषष्टिशलाकापुरुष सज्झाय, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिजिन वार इहं; अंति: आणी श्रीसंघ जय जयकार, गाथा-१८. २. पे. नाम. मानवभवउत्पत्ति भास, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक भास-मानवभव उत्पत्ति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चेति न चेति न प्राणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७८५१९. (+) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, पंचपरमेष्ठिगुण गाथा व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, २०४४५). १. पे. नाम. ५परमेष्ठि नमस्कार स्तुति सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण.. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, गाथा-१, (वि. पत्र का शीर्षस्थ भाग __खंडित होने से प्रारंभिक पाठ अनुपलब्ध है.) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत असरणसरण; अंति: मंगलीक संपदा पामै. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिगुण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि १०८ गणवर्णन गाथा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: बारसगण अरिहंता; अंति: साह सगवीस अट्ठसयं, गाथा-१. ३. पे. नाम. ज्योतिष चिकित्सा, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अश्विनी ते गणी जन्म; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १२ भाव विचार अपूर्ण तक लिखा है.) ७८५२० (+) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. मांडवीबंदर, प्रले. पं. विद्यारंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, १४४४३). १. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देव सकल सिरसेहरौ लाल; अंति: जिनचंद भेट्या आज, गाथा-१०. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उप 7. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो: अंति: जिनप्रतिमासु नेह, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. रूपविजय, रा., पद्य, आदि: पुरसादाणी पासजी थे; अंति: देज्यो बारंबार जी, गाथा-७. ७८५२१. (+) पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४४). १. पे. नाम. जिनसिंहसूरि गुरुगुण पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. गुणविनय, पुहि., पद्य, आदि: अकबर साहिदरि पावत; अंति: गुणविनय० उद्योत करु, गाथा-२. २. पे. नाम. जिनसिंहसूरि गुरुगुण पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: इक दरबार मान अकबर कउ; अंति: जासु सबही तइ जाजति, गाथा-२. ३. पे. नाम, २४ जिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति-अतीत अनागत वर्तमान, मु. गुणविनय, पुहिं., पद्य, आदि: केवलनाणि निर्वाण; अंति: गुणविनय प्रभु सुखकरण, गाथा-३. ४. पे. नाम, जिनकशलसरि गरुगण गहली, प. २आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गुरुगुण सज्झाय, मु. गुणविनय, मा.गु., पद्य, आदि: चलउ सखि गुरुअ मुगट; अंति: गुणविनय०मुझ मनि मानइ, गाथा-६. ५.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १२३ औपदेशिक पद-प्रायश्चित, मु. गुणविनय, पुहि., पद्य, आदि: अब पछताबइ कीयइ क्या; अंति: गुणविनय० ज्युं तोरा, गाथा-४. ६.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-प्रमादपरिहार, मु. गुणविनय, पुहिं., पद्य, आदि: ओ दिन तुझकु विसर्यउ; अंति: गुणविनय० धणकुं गोसी, गाथा-३. ७८५२२. (+) अजितजिन गीत, विहरमानजिन व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १०४३२). १. पे. नाम. अजितजिन गीत, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अजितजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मनवंछित सुख पामीजै, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से २. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. २० विहरमानजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीस जिनेसर जग जयवंता; अंति: जिनराज० जिनवीस, गाथा-५, संपूर्ण. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७८५२३. मेघकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४.५४११, १३४२५). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक ७८५२४. (+) जिनकुशलसूरि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३७). जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं माता सरसती; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., लघुनाराच छंद में तीर्थोद्धार वर्णनगत "नागोर नाम दीपतो" पाठांश तक है.) ७८५२५. मौनएकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ७४२६). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजिण उपदिसी मौनएका; अंति: सानिधकरा सत सुहकरा, गाथा-४. ७८५२६. (#) सर्वार्थसिद्धमुक्ताफल स्वाध्याय व अष्टमीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १८६१, चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. माणकविजय; पठ. श्रावि. रिधुबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२६४११.५, १०४२७). १.पे. नाम. सर्वार्थसिद्ध मुक्ताफल स्वाध्याय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, म. गणविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: गुणविजय० फल आसो रे, गाथा-१६, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्णमात्र है.) २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करै जसु आगल; अंति: तपथी कोडि कल्याण जी, गाथा-४. ७८५२७. (+#) औपदेशिक सज्झाय व रतनमुनि वर्षावास निवेदन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५,१३४३३). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु मानो जी सीख; अंति: तब थोडो न दख घणो, गाथा-१६. २. पे. नाम. रतनमुनि वर्षावास निवेदन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. रत्नमुनि वर्षावास निवेदन पद, मा.गु., पद्य, आदि: अबको चोमासो पूजजी; अंति: देख्या मुनि दीदार, गाथा-४. ७८५२८. नेमराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: सिझाय, दे., (२५.५४१२, १०४३०). For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अब राय ऋषजी हो राज ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१० अपूर्ण तक है.) " ७८५२९ (*) कुंथुजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. उमा (गुरु सा ग्यानाजी); गुपि. सा. ग्यानाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : स्तवन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७१३, १७३७). कुंथुजिन स्तवन, मु. मलुकचंद, रा. पद्य वि. १८६१ आदि लख चोरासी भर दुख अंति कर साहेब पार उतारोजी, गाथा- २३. ७८५३०. (+) महावीरस्वामी जीवन प्रसंग, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६ १२, १२x२६). महावीरजिन जीवन प्रसंग, मा.गु., गद्य, आदि: परमेश्वर परमात्मा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सिद्धाचल पर्वत के २१ नाम का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७८५३१. चौदस्वप्न स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X१०, १३३८). १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तीर्थंकर केरडी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ९ वें स्वप्न का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७८५३२. मोढेरापार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. ले. स्थल. प्रेमापुर, पठ. मु. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६x११.५, १२X३८). पार्श्वजिन स्तवन- मोढेरा, मा.गु., पद्य, आदि श्रीपास जिन जगदीसरू, अंतिः शुभमति दिउ नितमेव गाथा- ९. ७८५३३. लीलावतीसुमतिविलास रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२६.५x११, १०x२८). लीलावती सुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्म, वि. १७६७, आदिः परम पुरुष प्रभु पास; अति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल -२, गाथा-११ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८५३४ (+) पुगलभेद विचार-भगवतीसूत्र शतक ८ उद्देस १, संपूर्ण वि. १७९६ कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. अमदावाद, प्रले. मु. रूपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X१२, ११X३०). पुद्गल भेद विचार-भगवतीशतक ८ उद्देशा१, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पिहेला दंडकनां भेद; अंति: सरवबोल ८८६२५ थया. १. पे. नाम. श्रुतज्ञानगुण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ७८५३५ (+) नामावली व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५x११.५, ११४३३). " अविनीत शिष्य लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: अनुपकारी गुरुना; अंति: गोद्रष्टांनी जेम ४. पे नाम. सामायिक के नौ द्वार, पृ. १आ, संपूर्ण. יי मा.गु., गद्य, आदि निर्दोषम् उक्त; अंति: पारने नहीं प्ररूपणार. २. पे. नाम. ५२ भेदानुसारे तीर्थंकर, सिद्ध, कुलादि १३ नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ५२ बोल- तीर्थंकर, सिद्ध कुलादि १३ नाम, मा.गु., गद्य, आदि १ तीर्थंकर २ सिद्ध: अंति: ( १ ) कुलानागुण स्तवन करवो, (२) १३ गणा व छेद. ३. पे नाम, अविनीत शिष्य के लक्षण, पू. १आ, संपूर्ण ९ सामायिक द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: हेतु अन्वय व्यतिरेक; अंति: करी मनुष्यक्षेत्र. " " ७८५३६. पुलपरावर्तन विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी कायस्थिती, जैवे (२६११, ११४४१)पुलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सातवर्गणाइ उदारिकइ अति: कहिवाय ते सादिनिगोद. ७८५३७ गुणसागरगुरु गुहली, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, दे. (२७४१२, ८x२६). "" जंबूस्वामी गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि अजब कीओ रे मुनिराय, अंतिः रे सणि पार्मे सिवरां, गाधा- ७. ७८५३८. पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २- १ (१) = १, कुल पे. ५, जै., (२८१२.५, १०x३२). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only मु. ज्ञानानंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आदर ज्ञानानंद रमायो, गाथा-३, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १२५ मु.ज्ञानानंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे तो मुनि वीतराग; अंति: ज्ञानानंद भाई., गाथा-४. ३. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. मु. ज्ञानानंद, पुहि., पद्य, आदि: ब्रमरूप जोति रूप; अंति: ज्ञानानंद बास के, गाथा-३. ४. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. ज्ञानानंद, पुहि., पद्य, आदि: ब्रह्मज्ञान कांति; अंति: ज्ञानानंद लहियां, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. आगे की कृति का प्रारंभिक "यानगरिमें क्यु कर" मात्र पाठ है. औपदेशिक पद-चारित्रधन, मु. ज्ञानानंद, पुहिं., पद्य, आदि: साहिब बास पहिचानियै; अंति: ज्ञानानंद सुजान, गाथा-३. ७८५३९ (+#) आनंदघन चोवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४०). स्तवनचौवीसी, म. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (-), __(पू.वि. अभिनंदनजिन स्तवन गाथा-४ अपूर्ण से सुपार्श्वजिन स्तवन तक है.) ७८५४० (4) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४३). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहै जिनलाभसूरिंद, गाथा-४, (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, प. ३आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जिननायक; अंति: भणे श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मूरति मनमोहन किंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसुरंद, गाथा-४. ५. पे. नाम. समवसरण स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: मिल चौविह सुरवर; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ७८५४१. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४.५४११, १२-१७४४०-४५). १७ भेदी पूजा, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., प+ग., आदि: ज्ञानज्योति प्रकाशकर; अंति: गुणसागर० श्रीभगवान. ७८५४२. आषाढभूति पंचढालीयो व गौतम रास, संपूर्ण, वि. १९१०, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. प्रतापगढ, प्रले. मु. रामचंद; गुपि. मु. रतनचंद ऋषि (गुरु मु. लालचंद); मु. लालचंद (स्थानकवासी); पठ. सा. केसरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (४९४) कर कुबड कर बंकडी, दे., (२६४११.५, १८४४२). १. पे. नाम. आषाढाभूति पंचढालिया, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: आषाढभुत आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परीसो बावीसमो; अंति: रायचंद०जोत प्रकास हो, ढाल-७. २. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: गोयमरास मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गावो गोतम तणा; अंति: रायचंदकीयो चोमास जी, गाथा-१३. ७८५४३. (#) गौतमस्वामी रास व औपदेशिक गाथा, अपूर्ण, वि. १८७४, फाल्गुन शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५-१(१)-४, कुल पे. २, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. पं. चंदनसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: गौतमनुरास, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१३४३५). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. २अ-५आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ७८५४४. राजनगरनी तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२४४११.५, १७४४०). राजनगर तीर्थमाला, मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०४, आदि: वचन सुधारस वरसति; अंति: रतन० सज्जन गुणमणीजी, ढाल-४, गाथा-७०. ७८५४५ (+) अरहंन्नक चउढालीयो व जिनकुशलसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३८). १.पे. नाम. अरहन्नक चौढालियो, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि चौढालियो, उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान चउवीसमउ; अंति: दिन दिन जयजयकार, गाथा-६३. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वयण मुझ; अंति: वाचक विमल० इम बोलइ, गाथा-८. ७८५४६. (4) पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४७, आश्विन शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: पुण्यप्रकाशस्तवन अंतमे पं. माणेक्यसोम गामचंडीसरना संवंत १८९५ मागसर वदी ५ वार गुरू लिखा हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १८४३६). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुन्य प्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०५.. ७८५४७. (+) देववंदन विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ९४३३). देववंदन विधिसहित-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: श्रीमंधरस्वाम; अंति: लोगस्स प्रगट कहणौ. ७८५४८. (+) जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आरती व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १०४३६). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: स्मृत्वा गुरुपदांभोज; अंति: त्संस्तुवैः संस्तुतं, ढाल-८. २. पे. नाम. दादाजिनकुशलजी की आरती, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि आरती, मु. लाभवर्द्धन, पुहि., पद्य, आदि: जय जय सद्गुरु आरती; अंति: गुरु चरण कमल बलिहारी, गाथा-५. ३. पे. नाम. दादाजिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अरे लाला श्रीजिनकुशल; अंति: बारो बार रे लाला, गाथा-९. ७८५४९ (+#) आलोयण आराधना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य. ऋ. पांथाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पूज्यश्रीमानघजी प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १७४४६). आलोचणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पहला नवकार कहणो पछै; अंति: विषै घणो उद्यम कीजै. ७८५५० (+) गति आगति विस्तार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, १०४३२). गति आगति विस्तार, मा.गु., गद्य, आदि: १५कर्मा भोमी ३० अकर; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ५ अणुत्तर विमान ७ नारकी आदि का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७८५५१. (+-) नेमराजिमती व आदिजिन गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १७४२८). १.पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: हेतक्र लरा रहस्याजी, (वि. कृति के अंतभाग की पूर्णता व गाथा संख्या हेतु संशोधन अपेक्षित.) २.पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १२७ रा., पद्य, आदि: आदिनाथ अंतबली घर घर; अंति: वोल पाछीइ फर गया जी, गाथा-९. ७८५५२. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८१, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३७). सिद्धचक्र स्तवन, मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धनइं पाए; अंति: हेमविजय नवपदसार, गाथा-९. ७८५५३. (+) औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपदेश, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: आठान, संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १७४३१). औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपदेश, मा.गु., पद्य, आदि: मनुषाभव पायोजी उचकुल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ७८५५४. शारदा स्तुति, औपदेशिक सज्झाय व सीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. श्री भटावाजी प्रसादात्., जैदे., (२७४११.५, १२४३१). १.पे. नाम. शारदा स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: विपुलसौक्षमनंतधनागम; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम श्लोक लिखकर प्रतिलेखक ने कृति समाप्त कर दी है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: मायाने वश खोटुं बोले; अंति: तेहथी अनुभव लहीइं रे, गाथा-१४. ३. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी केवल; अंति: आतम समकीत अजुआलता, गाथा-४. ७८५५५ (-) अवंतिसुकुमाल ढाल व कृष्णभक्ति गीतद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्रले. मु. गुला ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडीः अवंतीसुक., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११, २०४४२). १. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल रास, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. म. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, वि. १७४१, आदिः (-); अंति: कीधी सिझा जगीसो रे, (पू.वि. ढाल-१२, गाथा-२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. राधाकृष्ण गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: महीधन बेचण चाली; अंति: छ चरणरय रल पडी, कडी-८. ३. पे. नाम. कृष्णभक्ति गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: ल्हसनी लटको बन मधी; अंति: लागो जरा लागो आस्य, कडी-९. ७८५५६. औपदेशिक दोहा सवैयादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, जैदे., (२५४१२, १७X४५). औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अढारसहिस गजराज; अंति: लज्जा न कारयेत्, गाथा-२२, (संपूर्ण, वि. दशार्णभद्र, घी के गुण आदि महत्वपूर्ण सवैया, दोहा व श्लोकों का संग्रह.) ७८५५७. (+) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-३९(१ से ३३,३५ से ४०)=२, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४३७). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३३ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-३४ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ७८५५८. मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१३, १२४३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-९ तक है.) ७८५५९ (+) स्तवन चौवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १०४२५). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-), (प.वि. आदिजिन स्तवन गाथा-५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८५६० (4) अंजनीसती रास, अपूर्ण, वि. १८३५, पौष शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. मु. बालचंद; पठ. श्रावि. लाडुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३३). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भार्या जगतनी मात, ढाल-२२, गाथा-१५७, (पू.वि. गाथा-१५६ अपूर्ण से है.) ७८५६१. (2) झांझरियामुनि व बीजतिथि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. अंतरपुर, प्रले. मु. धनविजय (चंद्रगच्छ); पठ. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १४-१५४३०-३९). १.पे. नाम. झांझरियामनि सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: (-); अंति: सांभलता मन मोहे के, ढाल-४, गाथा-४३, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित विविध विनोद रे, गाथा-८. ७८५६२ (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ गाथा-३ अपूर्ण से खंड-२ ढाल-२ गाथा-३ तक है.) ७८५६३. () गौतमगणधर रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्र के दूसरी ओर एक कृति आरंभ कर छोड़ दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, ९४२८). गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ७८५६४. चोत्रीसअतिशय स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रामपुरा, प्रले.ऋ. सांगा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४३३). सीमंधरजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.ग., पद्य, वि. १७वी, आदिः श्रीसेमीधर स्वामी; अंति: मांग देव पदवी आपणी, गाथा-१५. ७८५६५. सिद्ध पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, १०x४०). सिद्धचक्र पूजा, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हांजी रतन जडत की; अंति: अवगुणेति सिद्धाणं, गाथा-१०, (वि. मंत्र संस्कृत व प्राकृत में हैं.) ७८५६६. (+) शिवपुरनगर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. १, प्र.वि. हंडी: सीवपुरी, संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १७४३६). शिवपुरनगर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो श्रीसीवपुर नगर; अंति: दजी जोड जुगतसुं कीधी, गाथा-२१. ७८५६७. दशवैकालिकसूत्र का टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४४). दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), (पू.वि. "आत्मप्रवादपूर्वथकी धम्मपन्नीत्तीनामछट्ठअ" पाठ तक है.) ७८५६८.(-) औपदेशिक सज्झाय, भरतबाहुबली सज्झाय व विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १९४३३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: गुर माहवीर मल्या; अंति: चुतरा रे बले चीत भाइ, गाथा-१६. २.पे. नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १२९ रा., पद्य, आदि: हव भरथ कह भाइ भणी थे; अंति: पुता मुकत मजार लाल, गाथा-८. ३. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पुरब माहबदेहम; अंति: रायचंद० लीजो मानी जी, गाथा-१०. ७८५६९. पार्श्वजिन आरती व शत्रंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., दे., (२६४११.५, ७-९४३०-३२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. विमलसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: भव भव आरति टालि हमार; अंति: विमलसूर० भितर वासे, गाथा-७. २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचल नित वंदीये; अंति: लहे ते नर चिर नंदे, गाथा-५. ७८५७०. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६-६५(१ से ६५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४१२, १८४४४). कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मूलराज कथा मात्र है., वि. हंडी में "कल्पपत्र बीजो" दिया गया है, अर्थात् द्वितीय व्याख्यान की बात होने का संकेत है, बहुलतया स्वप्नफलपृच्छा का यह अधिकार चतुर्थ व्याख्यान के प्रारंभ में होता है. मूलराज का उदाहरण भी प्रायः नहीं आता है. संशोधन अपेक्षित.) ७८५७१. कर्मसूदनतप गणj, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अंत में लिखित- "लया जोसी सीरीनाथः रामनाथ: मु० अमदावाद ठी। देवसाने पाडे. फिर" लिखा है- "मुं। नागौरः जीला जोधपुर ठी। तेलिवाडा मे", दे., (२६४१२, ११४२१). कर्मसूदनतप गणj, मा.गु., गद्य, आदि: एक एक कर्मनो तप दिवस; अंति: चोसठे पूजा भणावी. ७८५७२. भगवतीसूत्र बोल-शतक-१२ उद्देशक-५, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १४४५०). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८५७३. (+) औपदेशिक लावणी- जिनवाणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १०४३८). औपदेशिक पद-जिनवाणी, मु. पुनमचंद, रा., पद्य, वि. १९६२, आदि: धन जिनशासन जिनवाणी; अंति: विनय भक्ति करु अति, गाथा-७. ७८५७५. आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १६३६, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. सेरूणा, राज्यकाल गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १७४५०-५८). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: ते आज जयवंतउ छइ, (पू.वि. बोल-६४ अपूर्ण से है.) ७८५७६. (+) दस अछेरा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४३३). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अनंती उत्सर्पिणी; अंति: (-), ग्रं. ११३, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दस अछेरा के नाम के पश्चात उनकी विस्तार से चर्चा प्रारंभ कर छोड़ दिया गया है.) ७८५७७. (2) चैत्यवंदनसूत्र व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १४४३०). १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: श्रीनेमिसर नित नमु; अंति: सहु थास्यै नेमजी कै, गाथा-१५. २. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र सह बालावबोध, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत असरणसरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. पार्श्वनाथ को अंधकार में सूर्य के समान बताने का प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७८५७८. सीतासती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडीः सीतारी., जैदे., (२७४११, १७X४२). For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीतासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७८५७९ (+) कर्मग्रंथ के बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, २४४४९). कर्मग्रंथ के बोल, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. दर्शनावरणीय बोल अपूर्ण से नरकायु बोल अपूर्ण तक है.) ७८५८० मेघमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, ११४३५). मेघमनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: उलटि अतमामसु परम; अंति: वीरजी मेघने बोलाय रे, गाथा-१०. ७८५८१. चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. य. लछीराम; पठ. श्रावि. फतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११,११४३६). चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल कलागुण नीलो; अंति: आवइ नवनिध तास घरे, गाथा-११. ७८५८३. (+) सिवपुरनगर सज्झाय व खंधकऋषि चौढालिया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १९४५४). १. पे. नाम. सिवपुर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. शिवपरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अहो सिधसिला सगला; अंति: महारी आवागमण निवार, गाथा-१७. २. पे. नाम. खंधकऋषि चौढालियो, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. खंधकमुनि चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: पांचसैइ तिण अवसरै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ७८५८४. मिच्छामिदक्कडं सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४३२). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सन्मुख रही विनय; अंति: वरते एकवीस वरस हजार, गाथा-१४. ७८५८५. अष्टमीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पठ. श्रावि. प्रेमकोर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: आठमनुंस्तवन, दे., (२५.५४११.५, ४४२६). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: कांति सुख पांमे घj, ढाल-२, गाथा-१६, (पू.वि. कलश मात्र है.) ७८५८६ (+) सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १५४५७). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-संतसमागम, मु. ज्येष्ट, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु उपाशना अधिकार; अंति: संचत सिद्ध सरूप थइजे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आर्तध्यान निवारण, म. ज्येष्ट, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन तुं ध्यान आरत; अंति: तुरत ही आणंद पावै, गाथा-७. ३. पे. नाम, संवेगरश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभ, मु. ज्येष्ट, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं गतमांहि भ्रमता; अंति: ज्येष्ट० सुखश्रीकार, गाथा-११. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-चेतन, म. ज्येष्ट, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम नहीं माने; अंति: जपे धनजे मन समझात, गाथा-५. ५.पे. नाम. जीवदया सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, म. ज्येष्ट, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन ज्यो सुख चाहो; अंति: ज्येष्ट० पांमे भवपार, गाथा-९. ६. पे. नाम, अष्टादशपाप निवर्तण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org १३१ १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. जेठमल, मा.गु., पद्य, वि. १९९९, आदि श्रीगुरुपद कज बंदतां अंति: जेठमल्ल० जे धनदीश. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७. पे. नाम. चेतन सज्झाच, पू. २आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-चेतन, मा.गु., पद्य, आदि: पंचप्रमेष्टी प्रणम; अंति मानी तुमची वाच रे, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, आदि: सुमत कहे सुण; अंति: नितही मंगलचार रे, गाथा-९. ९. पे. नाम. जीवोपदेश सज्झाय, पृ. ३आ, , संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवोपदेश, मु. ज्येष्ट, पुहिं., पद्य, आदि : आयो एकलोइ कोइ जाशी; अंति: सोही शिव पामे रे जी, गाथा-७. १०. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. , मु. ज्येष्ट, मा.गु., पद्य, आदि अनंत ज्ञान दरसण बली; अंति: ज्ञानचंद० श्रेष्ठ रे, गाथा- ९. ७८५८७ (+) दशवैकालिकसूत्राध्ययन गीत व नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १६x४९). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्राध्ययन गीत, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्म, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा निलो; अति जयतसी जय जय रंग, अध्याय- १०. २. पे. नाम राजिमती गीत, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण, पे. वि. सारिणीयुक्त राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण चतुर सुजाण; अंति: जंपै इम जयतसी हो, गाथा-८. ७८५८८. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय व खंधकमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल, पीपाड प्रले. सा. अखु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : खंदकनी., जैदे., (२४X१०.५, २०x४६). १. पे नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. संबद्ध, मु. अर्जुन ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि नमू उत्तराधेन मे जे अंति: उरजन० भवतणी खोडने जी, गाथा १९. २. पे नाम. खांधकमुनि चौपाई, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि वध परिसो वर्णवु अति रायचंद० पालो रे, ढाल ८. ७८५९०. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५x११, १३x४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै. क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदिः परम ज्योति परमातमा; अंति कारण समकित शुद्धि, गाथा- ४४. ७८५९१. नेमराजुल, पार्श्वजिन स्तवन व तारादेवी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२४X१२, १२X३४). १. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाब, मु. सांवतराम ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि दुवारामतिसु वरात, अंतिः पुनमतिथ महासुखकारी, गाधा- २२. २. पे. नाम. तारादेवी सज्झाय- शीलपालनविषये, पृ. २आ- ३अ संपूर्ण तारादेवी सज्झाय-शील विषये, मा.गु., पद्य, आदि: वचन सुण्या वीरंमण; अंति: जीन पाल्यो सील अभंग, गाथा- १२. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. वा. क्षमाकल्याण, पुर्हि, पद्म, वि. १८४७, आदि आज हमारे हरख वधाई अति प्रभुजी की गाइ रे, गाथा-५. ७८५९२. (+) कर्मग्रंथ बोल व सामायिकादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., (११X१०, ५५X३१). १. पे. नाम. छट्ठा कर्मग्रंथना बोल, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मूल प्रकृति आठ तेहना; अंति: ज छै पणि उदीरणा नथी. २. पे. नाम. समायिक, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नाम सामयिक ते जीव; अंति: प्रस्तकर अप्रस्तकर, (वि. षड्विध सामायिक, निक्षेपादि विचार बोल. अंत में 'अप्र' इतना लिखा है उसे देखकर अपूर्ण की भ्रांति होती है लेकिन अन्य लक्षण-प्रमाणों से कृति को संपूर्ण मान लिया गया है.) ७८५९३. (+) चोवीसतीर्थंकररो लेखो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६४३८). २४ जिन लेख, रा., गद्य, आदि: पहला वाद् श्रीऋषभ; अंति: त्रिकाल वंदणा हुजो. ७८५९४. (+) पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९३३, वैशाख शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. घेलाशंकर पुजाभाई शुक्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: पार्श्व०, संशोधित., दे., (२५४११, ९४३५). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: सुमुदा प्रसन्नात्, गाथा-३२. ७८५९५ (+) बुढारो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २१४५३). बुढ़ापा रास, रा., पद्य, वि. १८४५, आदि: अरिहंत सिद्ध साधु; अंति: धर्म विना जीवनी कमाइ, ढाल-१५, गाथा-१२७. ७८५९६. सनतकुमार चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: सनतकुमार, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४०). सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, मु. कुशलनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: सुखदाई सासण धणी त्रि; अंति: चरम नमुं सुखकंद, ढाल-४, गाथा-५२. ७८५९७ (+) उपकेशगच्छ प्रतिक्रमण, पौषध, सामायिकादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे.८,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १५४३७). १. पे. नाम. स्थापनाचार्य स्थापवा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजी स्थापने की विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, रा., गद्य, आदि: पहिलां थापना सूर्य; अंति: आगलि प्रतिक्रमण कीजै. २. पे. नाम. देवसी प्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमण विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,रा., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही पडकमी; अंति: श्रीमते नाथाय कहिणो. ३. पे. नाम. देववांदवानी विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. देववंदन विधि-उपकेशगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: मंगल जैनं जयति शासनं. ४. पे. नाम. पाक्षी पडिकमणा विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,रा., प+ग., आदि: इच्छाकारेण० पाक्षि; अंति: ठोड वडीशांति कहणी. ५. पे. नाम, चौमासी पडिकमणा विधि, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. चौमासी प्रतिक्रमण विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,रा., प+ग., आदि: इच्छाकारेण चोमासी; अंति: अतः परं देवसियं भणेह. ६. पे. नाम. छमछरी पडिकमणा विधि, प. ३अ, संपूर्ण. संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिस्सह०; अंति: अतः परं देवसिये भणेह. ७. पे. नाम, श्रावक सामायक लेवा विधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सामायिक विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,रा., प+ग., आदि: (१)पंचिंदिय संवरणो नव, (२)गाथा थापनारी कहणी; अंति: पछै कपडा पहरणा. ८. पे. नाम, पोसह लेवा विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. पौषध विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,रा., प+ग., आदि: इरियावही तस्सुत्तरी; अंति: करुं ३ नवकार गुणणा. ७८५९८ (+) नंदणमणियाराको चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: नंदनमी, संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४३८). For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ नंदमणियार चौढालियो, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गिनातारा तेरमा अध्यय; अंति: कीजो आत्मारो उधार ए, ढाल-४. ७८५९९ सीमंधरस्वामीने कागळ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४११.५, १५४३१). सीमंधरजिन विनती पत्र, क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: (-), (पू.वि. मोह का पराजय एवं धर्मराजा की जीत का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७८६००. श्रावकाचार चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, जैदे., (२५४११,११४३१-३४). श्रावकाचार चौपाई, मु.क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: क्षेमकुशल० लहइ अपार, गाथा-८०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-३६ अपूर्ण से है.) ७८६०१. कर्मसत्तरी, संपूर्ण, वि. १९३७, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. विदासर, प्रले. मु. शिखरचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १५४२०-४०). कर्मविपाकफल सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तिर्थंकर; अंति: माहाराजा रे प्राणी, गाथा-१८. ७८६०२ (+) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. श्रीमालनगर, प्रले. पं. वल्लभविजय; पठ. मु. गजेंद्रविजय (गुरु पं. वल्लभविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १६x४४-४८). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर निकलंक जे; अंति: खांति मोक्ष हि वीरा, ढाल-९, गाथा-७७. ७८६०३. २५ बोल थोकडा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४११.५, १७४४५-४८). २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: पहलै बोलै गत ४ नारकी; अंति: (-), (पू.वि. आकास्तिकाय के ५ भेद का वर्णन __अपूर्ण तक है.) ७८६०४. (+#) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६x४०-४५). नेमिजिन चरित्र, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: नेयर सोरीपुर राजीयो; अंति: रीष जेमल कह नेम जणदा, गाथा-५१. ७८६०५. आषाढभूत चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४१२, २०४४२-४५). आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसन परीसह वावीसमो; अंति: आसोजवदि दसमी होइ, ढाल-७. ७८६०६. (+) स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३०-३५). शांतिस्नात्र विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तिहां चंद्रबलयोगे गत; अंति: परमेष्ठि स्तवन कहै. ७८६०७. आबुतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३३, फाल्गुन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. सालगचंद (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ७४२३). अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रीडा भाई आबूजीनी; अंति: आवै रूपचंद बोलै रे, गाथा-२४. ७८६०८. कल्पसूत्र पीठिका व ज्ञान पहिरावणी गाथा, संपूर्ण, वि. १९३६, आषाढ़ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मंगूमल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ११४२७-३०). १.पे. नाम, कल्पसूत्र पीठिका, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: जयवंतो प्रवर्तो. २. पे. नाम. ज्ञान पहिरावणी गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. ज्ञानपहिरावणी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंतमही विनाहं; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा-२. ७८६०९) साधु दसलक्षण सज्झाय, साधुगुण सज्झाय व समतारस की ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. भनोर, प्रले. इमरती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सज्झाय, अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, १६४२८-३२). १.पे. नाम. साधु १० लक्षण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ आपदाशक कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १० साधुलक्षण सज्झाय, रा., पद्य, आदि: तीरन तारण जाज समान; अंति: धन धन ते अणगार, गाथा-११. २. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सुणो सुणो भवक मन; अंति: रतनचंद० हरख हुलास, गाथा-२३. ३. पे. नाम, समतारस की ढाल, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, श्राव. शंभ, मा.गु., पद्य, आदि: जेह हुवा उतसपरांणी; अंति: संब० लीज्यो रे, गाथा-५४. ७८६१० (4) अष्टप्रकारी पूजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी __ है, जैदे., (२६४१२, १३४३६-३९). ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: अजर अमर अविनाश जे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७८६११. (+) चोवीसजिन चैत्यवंदन, साधुगुण सज्झाय व समतारस सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १५४३०-३४). १.पे. नाम. चौवीसजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पदमनाभ पहिला जिणंद; अंति: नयविमल कहे सीस, गाथा-१५. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हां रे में वारी नेम; अंति: रूपचद० खेलन हारे रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. अध्यात्मिक गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आध्यात्मिक पद, पुहि., पद्य, आदि: जालेम जोगिडासु लागी; अंति: तन मन करुं खुरवाण, गाथा-५, संपूर्ण. ७८६१२. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ११४३२-३६). आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, म. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माताने नम्; अंति: ऋषभविजयनी वाणी रे, गाथा-१३. ७८६१३. २० बोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. हंडी: सज्झाय, जैदे., (२६४११, १३४३०-३३). २० बोल वादनिवारण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणशुं वाद विवाद न; अंति: केरै __ आतम पर उपगारजी, गाथा-१९. ७८६१४. (-) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुडी: वेधी., अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२.५, १९४३०-३४). बोल संग्रह , प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. प्रारंभ में 'ढाल' लिखकर एक गाथा जैसा लिखा है यथा-'च्यार पोहोररो दिन भलो' आदि, फिर विविध भांगा के बारे में लिखा हुआ है. पाठ अशुद्ध व अस्पष्ट है. विशेष संशोधन अपेक्षित.) ७८६१५ (#) ज्ञान सज्झाय व चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: ग्यानीगर, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४२३-४३). १. पे. नाम, ज्ञान सज्झाय, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. गुरुगण सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: पुण्य जोगै नर भव; अंति: रायचंद०वीकानेर चौमास, गाथा-१९. २. पे. नाम, चंदनबाला सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४२, आदि: चीत चोखी चनेणबाला; अंति: रायचंद०हुइ सारा पेली, गाथा-१२. ७८६१६. (+) श–जयगिरि नाटक व वासपूज्य सवैया, संपूर्ण, वि. १८८१, वैशाख शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पीलूचाग्राम, प्रले. ग. सुरेंद्रविजय (गुरु ग. सुखविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वनाथ प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १३४३७). For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १३५ १.पे. नाम. शत्रुजयगिरि नाटक, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: धुनी अकती अकती धपमप; अंति: कांति० तें होय अजरं, गाथा-५. २. पे. नाम. वासुपूज्य सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन सवैया, मु. धर्मरंग, मा.गु., पद्य, आदि: लाल केसु फुल लाल रति; अंति: धर्मरग० जाको अंग हे, गाथा-१. ७८६१७. गौतमगणधर व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८२५, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. मेवाड-भीलाडा, प्रले. पं. गंभीरसुंदर; पठ.पं. माणिक्यसौभाग्य गणि (गुरु पं. लावण्यसौभाग्य गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५,१५४२९). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ, अपर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सकलसांग रे बास, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गौतमगणधर सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, वि. १८१२, आदि: आदि जनेसर जीन चोविस; अंति: मनवंछित सूखसंपति कोड, गाथा-१२. ७८६१८. (+) शीलव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३४). औपदेशिक सज्झाय-शीलव्रत, मु. पद्मतिलक शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हवी पुण्य वडुं संसार, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ७८६१९ (+) जंबूस्वामी, धन्नाशालिभद्र सज्झाय व महावीरजिन दसस्वप्न स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १९४४४-४८). १. पे. नाम. जंबुस्वामी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: राजग्रही नगरीनो वासी; अंति: नागौर माहै बखाणी, गाथा-१५. २. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: राजग्री मै गोमद सेठौ; अंति: रायचंद० हीवडो ही रे, गाथा-१६. ३. पे. नाम. महावीरजिन दसस्वप्न स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: सासणनायक समरीयैरे; अंति: रायचंद नगर मझार, गाथा-१५. ७८६२०. शांतिजिन, कंथजिन व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १४४४६). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धन दिन वेला धन वली; अंति: ते वाचक जस करि जी, गाथा-५. २.पे. नाम. कुंथुनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. कंथजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: साहेल्यां ए कुंथ; अंति: जस कहे इणिपरे हो लाल, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. शांतिकशल, मा.गु., पद्य, आदि: विनवे राणी राय ने; अंति: होज्यो सफल पूरो आस, गाथा-११. ७८६२१ (4) नवतत्त्व भेद व सिद्धगति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १६७३७-४०). १. पे. नाम. नवतत्त्व २७६ भेद विचार, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तत्वना २७६ भेद जाणवा, (पू.वि. संवर भेद अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सिद्धगति विचार, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वप्रयोग१ गती; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८६२२. (4) चौवीशतीर्थंकर कोष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७-२५४४५-४८). २४ जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, नाम देहायुमान विवरण, मा.गु., को., आदि: ऋषभ१ भरत धनुष ५००; अंति: (-), संपूर्ण. ७८६२३. (4) पार्श्वजिन स्तवन-शेरीसा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४४७-५०). पार्श्वजिन स्तवन-शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: स्वामि सुहाकर श्रीसे; अंति: नमो जिन त्रिभुवनधणी, गाथा-३०. ७८६२४. (+) सागारी अनशन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, ११४२५-२८). सागारी अनशन विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: आगार सइयेणं वोसरामि. ७८६२५. (+-) प्रत्याख्यानसूत्र, अपूर्ण, वि. १९१९, भाद्रपद शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. वर्ष में मात्र १९ ही लिखा है, उसे १९१९ मानकर भरा गया है. पत्रांक न होने से अनुमानित दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११.५, १२४२५-२८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: एकासणं पचखामि, (पू.वि. एकासणा पच्चखाण अपूर्ण से है.) ७८६२६. ऋषिमंडल प्रकरण सह बालवबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १४४५०-५३). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ ___तक है.) ऋषिमंडल प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: वली श्रीऋषभदेव केहवा; अंति: (-). ७८६२७. (4) प्रतिमास्थापन सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ३०-३५४१९). १. पे. नाम. प्रतिमास्थापन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदन; अंति: जस० कीजइ तास वखाण रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पूरण आसा; अंति: श्रीसंघने मंगल करो, गाथा-१४. ७८६२८. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३७-४०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सीख सुणो रे प्रिउ; अंति: रे हीयडे आगमवेण, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. हरख, रा., पद्य, आदि: कांई हठ मांड्यौ; अंति: हरखचंद० मुगत रे वास, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: ते क्या गरब करदा बै; अंति: इस विध सिवै दरजी, गाथा-८. ७८६२९ (4) शक्रस्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ११४३३). शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते भगवते; अंति: (-), (पू.वि. "अच्युताय श्रीपतये विश्व" पाठ तक हैं.) ७८६३०. व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, १५४४६). For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १३७ व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्यवहारनय चर्चा अपूर्ण से "इम दान शील तप पूजा जीव अजीव" पाठांश तक है., वि. निश्चय-व्यवहार नय के बारे में विशेष चर्चा की गई है.) ७८६३२. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ७X५०-५५). पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप मप; अंति: दिसतु शासनदेवता, श्लोक-४. ७८६३३. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१२, १४४४५-४८). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वलि वलि हुं ध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: संति कल्याणदाता, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ४. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसुवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७८६३४. (#) श्रावककरणी सज्झाय व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ. मु. हुकमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १३४२५). १.पे. नाम, श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष० नवनिध गेह, गाथा-२२. २. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंद ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाइ, गाथा-४. ७८६३५ (+#) गोतमपृच्छा सह टबार्थ व दृष्टांत कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४११.५, ९-१२४३७-४०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण तित्थनाहं जाणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ तक है.) गौतमपृच्छा -टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ; अंति: (-). गौतमपृच्छा-कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: जीमजयंती नामानगरीने; अंति: (-). ७८६३६. (4) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. आजोल, प्रले.पं. गलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४४२-४५). १.पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनजी हो गुण बहुला; अंति: कांति० सुधाररस पान, गाथा-५. २. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरी अजबशी योगनी; अंति: कंति० मनमंदर आवो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-पदस्थध्यान गर्भित, उपा. मानविजय, मा.ग., पद्य, आदि: पद्मप्रभना नामने; अंति: मानवि० मको बीजो वाद, गाथा-५. ४. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नीरखी नीरखी तुंज; अंति: जिनप्रतिमा जयकार, गाथा-७. ७८६३७. पडिलेहण विचार, २२ अभक्ष्य व ३२ अनंतकाय गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम, पडिलेहण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तत्त्वदृष्टि सम्यक्त; अंति: जाउ जीमणै पगि. २. पे. नाम. बावीस अभक्ष्य गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचुबर चउविगई हिमविस; अंति: वज्जहवज्जाणि बावीसं, गाथा-२. ३. पे. नाम, बत्तीस अनंतकाय गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सव्वाउ कंदजाई सूरण; अंति: बत्तीसं जाणिउ अणंताई, गाथा-३. ४. पे. नाम. मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दिट्ठपडिलेह एगा नव; अंति: एसा पुण देह पणवीसा, गाथा-२, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम एवं अंतिम गाथा लिखा है) ७८६३८. (#) ऋषभजिन स्तवन व पार्श्वजिन प्रभातियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४५२-५६). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अभिनंदनजिन स्तवन-४ गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा हैं.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ प्रभातियो, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अन्य प्रतिलेखक के द्वारा बाद में लिखा गया प्रतीत होता है. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सेरीमाहे रमतो दीठो; अंति: अमचो भाग्य उघडीयो रे, गाथा-८. ७८६३९ (#) प्रतिक्रमण व हितशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५०, माघ शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मोरबी, पठ. मु. वालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४४२-४५). १. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: समकितवंत सदा; अंति: मुनि आणंद भणीजे, गाथा-८. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छे पूरा रे; अंति: सहजसुंदर च्यार बोल, गाथा-५. ७८६४० (#) तीर्थंकर अंतरो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३९). __ कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला श्रीआदिनाथनै; अंति: पुस्तकारूढ थयौ. ७८६४१. (+#) नवतत्त्व प्रकरण व सिद्धभेद गाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३१-३५). १.पे. नाम, नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. २. पे. नाम. सिद्धभेद गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. १५ सिद्धभेद गाथा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जिण अजिण तित्थतित्था; अंति: द्धबोहिय इक्कणिक्काय. ७८६४३. (#) सोलस्वप्न सज्झाय व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२x२७-३०). १. पे. नाम. सोलस्वप्न सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलिपुर नामे नगर; अंति: मुगतरमण ते वरसी, गाथा-३६. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण पायो प्रभुजी; अंति: अमर लुल लागु पाय, गाथा-४. ७८६४४. (+#) गोडीपार्श्वनाथ स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३२-३६). For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १३९ १.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ वृद्धस्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. दयाधीर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: गुणगावो गौडीतणा राचौ; अंति: करी जात्रा सुहामणी, गाथा-२२. २. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ वृद्धस्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. सुमतिसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: पुरुषादेय उदय करु; अंति: वे मनवंछित फल ते लहे, गाथा-२०. ७८६४६. (#) बोल व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे.५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४२५). १.पे. नाम. ३० बोल-मोहनीयकर्मबंध स्थानक, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ३० बोल-मोहनीय कर्मबंध स्थानक, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (१)मरे देवता आव न आव तो, (२)देवता आवे न __आवे तो, (पू.वि. २७वे बोल अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, बत्रीश उपमा, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. ३२ उपमा शीलव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व ग्रह नक्षत्र; अंति: वसुदेवनो जुद मोटो. ३. पे. नाम. पंचमआरा बोल संग्रह, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. ५२बोल-पंचम आरा, मा.गु., गद्य, आदि: राजा लोभी होसी; अंति: संसार चलाचल होसी. ४. पे. नाम. त्रीस बोल, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ३० बोल-दुषमकाल, मा.गु., गद्य, आदि: नगर गाम सरीका होसी; अंति: हिंदुनो राज अलप होसी. ५. पे. नाम. अग्यारपडिमानी सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रावक ११ प्रतिमा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली पडमा एक महिना; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिमा-३ अपूर्ण तक है.) ७८६४७.(#) सज्झाय, गीत व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४३, फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १०४३०-३३). १. पे. नाम. धन्नाऋषि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: गाया है मनमै गहगही, गाथा-२२. २. पे. नाम, धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. म. सिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: समरं साधु सुहामणा; अंति: एहवा साधुनो सरण, गाथा-१५. ३. पे. नाम. नवकारमंत्र गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र गीत, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: महामुनि इम चंपीइ; अंति: मोटो मुखथी मत विसारि, गाथा-४. ४. पे. नाम, निरवाण पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. निर्वाण पद, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: कागद आणि बिवनावंगी; अंति: विण कुण निसतारे रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, पुहि., पद्य, आदि: ज्ञान गरीबी पुरधर्म; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७८६४८. (+) मुनिमालिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८३, ज्येष्ठ शुक्ल, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. लक्षमणपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १२४३२-३५). मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पाय; अंति: सदा कल्याण कल्याण, गाथा-३६. ७८६४९ औपदेशिक दोहा संग्रह सह भाषाटीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. अलवर, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२५४१२, २२४३९-४५). For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा गुरुनाथ; अंति: नामे राम आधार. "" विविध दोहा गाथा श्लोक सवैया कवित्त हरियाली गूढा आदि संग्रह-भाषा टीका, पुहिं., गद्य, आदि: यह चारो मोक्षद्वार, अंति: भंडार शतक मे का है, (वि. कुछेक सवैयादि की ही टीका लिखी गई है.) ७८६५० (+) देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९३१, फाल्गुन शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल मेडता प्रले. शिवबगस जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२६४११.५, ९४२६). देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि प्रथम सामायक लेवा; अंति पाडने की कीरीया करणी. (७८६५३. (*) वर्त्तमानजिन चतुर्विंशतिका, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., (२५.५x१२.५, १३X३२). "" कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो जिनेंद्रस्य अंतिः सम्या न० हंसाद्रव, श्लोक-२५. ७८६५४ (१) जीवदया सज्झाय व आदिजिन प्रभाती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. २, कुल पे. २, ले. स्थल, पाल्हणपूर, प्रले. पं. हेमसोम गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संभवनाथ प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५x१२, ११X३३). १. पे. नाम जीवदया सज्झाय, पू. १अ २अ, संपूर्ण, पे. वि. रात्रि समये लिखतं दयापच्चीसी, . विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि सयल तीर्थंकर करूं, अंतिः विवेकचंद० एह विचार, गाथा-२५. २. पे नाम. प्रभात गीत, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. दिवसे लिखतं , आदिजिन प्रभाती, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदिः प्रभाते पंखीडा बोले, अंति पयपे बंदो कर जोडी, गाथा-५. ७८६५५ () सुकोशलमुनि व चंद्रावतीभीमसेन सज्झाव, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १२X४०). १. पे नाम. सुकोशलमुनि सज्झाय, पू. १अ २आ, संपूर्ण. मु. सूरचंद, मा.गु., पद्य, आदि नवरी अयोध्या जयवती अति श्रीसंघ सुप्रसन्न, गाथा- ४३. २. पे. नाम. चंद्रावती भीमसेन सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चंद्रावती भीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जस मुख सोहें सरसति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७८६५६. षड्द्रव्यदोहाबंध विचार, औपदेशिक सज्झाय व औपदेशिक गाथा संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे (२५X१२, १३X२९-३२). १. पे नाम षद्रव्यदोहा बंध विचार, पू. १अ-२अ संपूर्ण अध्यात्मवत्तीसी, आव, बनारसीदास पुडिं, पद्य, वि. १७वी, आदि: शुद्ध वचन सदगुरु कहै; अंति: धर्म जाणे गुण लेस, गाथा - २७. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-साधुसंगति, मु. माधव, पुहिं., पद्य, आदि: लसन वसो चंदन निकट; अंति: चंदनमे डारतहे भरजाहि For Private and Personal Use Only गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अति (-) (वि. अलग-अलग ३ गाथाएँ हैं.) ७८६५७. पंचागुलीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १८७९, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. मंबाइबंदर, प्रले. पं. हेमविजय; पठ. मु. अमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. गोडीपार्श्वनाथ प्रसादात्, जैदे., ( २६.५X१२, १०X२४-२८). ७८६५८. (+#) पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि भगवती भारती पर नमी अंति: करणी सदा शक्ति पुरंत, गाथा - ११. बुध रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. खंभनगर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १५X३७-४०). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु देवी अंबाई: अति हो टले सवी कलेस तो गाथा ६२. Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १४१ ७८६५९. (+) भगवतीसूत्र उद्देशक सह स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५x१०.५, १४X३०). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१९ उद्देशक- ३ सूत्र- ७६२ से ७६४ का संबद्ध महावीरजिन स्तवन, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जय सकल नरासुरस्वामी, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २८ अपूर्ण तक लिखा है.) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक १९ उद्देशक ३ सूत्र ७६२ से ७६४ आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि एएसि णं भंते पुढवि; अंति: भंते सेवं भंते त्ति, संपूर्ण. पे. २. ७८६६०. कुबेरदत्तासाध्वीप्रबंध छत्तीसी व चिंतामणिपार्श्वजिन वृद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ले. स्थल. जेसलमेर, प्रले. पंडित, हेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६११, १५X४५-४८). "" १. पे. नाम. कुबेरदत्तासाध्वी छत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. कुशलधीर पाठक, मा.गु., पद्य, आदि नरभव पामी निरमलो अंतिः कुशल० निसतारो रे, ढाल ७, गाथा- ३६. २. पे नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन वृद्धस्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन-वृद्ध चिंतामणि, मु. कुशलधीर पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: तेवीसमो जिन ताहरो; अंति: फल मुज धाय हो सांभलि, गाथा- ११. ७८६६१. (*) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१०.५, १८४४६). "" दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ४ गाथा- ७ अपूर्ण तक लिखा है.) ७८६६२. (*) कर्मप्रकृति बोल व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११, १५×५०). १. पे. नाम कर्मप्रकृति बोल संग्रह, पू. १अ १आ, संपूर्ण. ७ ज्ञानावरणी कर्म, मा.गु, गद्य, आदि ज्ञानवरणी कर्म किंम; अति बनासपतीनो धवलो वर्ण. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. . गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि (-); अति (-), गाथा-३. ७८६६३. (*) नवतत्व भेद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-४ (१ से ४)-२, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे. (२५x१२, ११४३३). יי नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति (-). (पू.वि. जीवतत्त्व के १४ भेद वर्णन से आश्रव तत्त्व के २० भेद वर्णन अपूर्ण तक है.) ७८६६४. गुणसुंदरगुणमंजरी रास-शीलविषये, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे. (२६४१२, २०x४५-४८). गुणसुंदरगुणमंजरी रास - शीलविषये, मा.गु., पद्य, आदि सासणनाएक समरीए पुरण; अंति: (-) (पू.वि. ढाल-५, गाथा १० तक है.) For Private and Personal Use Only ७८६६५. मेघकुमार चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५X११.५, २२x४९). मेघकुमार चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि रिषभादिक चोवीसने अति: गुणसागर सुख थाय, ढाल ८. ७८६६६. (*) बुद्धि रास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६x११, १५४४२-४५). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देवि अंबाई; अंति: तीह सवि टलइ कलस, गाथा-४५. ७८६६७. (+) महावीरजिन स्तवन सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५, ६x२८-३२). महावीरजिन स्तवन- २४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सुखकर स्वामी वीरजिन; अति (-). (पू.वि. गाधा १८ अपूर्ण तक है.) Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुखनाकरण हार ठाकुर; अंति: (-). ७८६६८.(+) चार शरणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११,१७४५०-५३). ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो शरणो अरिहंत; अंति: धरमनो पडिव जंबू. ७८६६९. महावीरजिन स्तवन, पार्श्वजिन स्तवन व पाटपरंपरा वधावो आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. विदासर, प्रले. मु. सागरचंद ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १३४३३). १. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु सांभल अरज सेवक; अंति: प्रभु तुम केरी, गाथा-११. २.पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. शिवदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: मे तो तेरा बंदा; अंति: जंपे परमानंद, गाथा-७. ३.पे. नाम. नेमनाथ स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, म. परमानंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज चालो रे सखी; अंति: परमानंद पद लहो भरपूर, गाथा-७. ४. पे. नाम. पनरपाटांरो वधावो, पृ. २आ, संपूर्ण. १५ पाट वधावो-स्थानकवासी गुरुपरंपरा गीत, रा., पद्य, आदि: कठोडैरा वाजा वाजीया; अंति: माय उवारी लाल. ७८६७० (4) स्तवन, विचार व बोल आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १४-१७४२७-३३). १.पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: जस० भय भंजन भगवंत, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चौरासीलाख जीवयोनी, पृ. ६अ, संपूर्ण. ८४ लाख जीवायोनि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ७ लाख पृथ्वीकाय; अंति: चउदलाख मनुष्य. ३. पे. नाम. मुंहपत्ति के पचास बोल, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ___ मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व; अंति: जीमणा पगथी छांडवी. ४. पे. नाम, अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे म्हारे ठाम; अंति: कांति सुख पावे घणो, ढाल-२, गाथा-२४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मा.गु., पद्य, आदि: संखेसर सुखकारी प्रभु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक हैं.) ७८६७१. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय व पार्श्वजिन महिमागर्भित स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १६४२५). १.पे. नाम. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जस० कीजइ तास वखाण रे, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-४ से २.पे. नाम. पार्श्वजिनमहिमागर्भित स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन महिमागर्भित स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: ॐ नमो तुह दसणेण सामि; अंति: (-), गाथा-५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) । ७८६७२. छमासी तप, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, ११४३३-३६). छमासीतपचितवन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: कौशांबी नगरी श्रमण; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., यथाशक्ति पच्चक्खाण लेने का प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ७८६७३. आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३७-४०). For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक अंश नहीं हैं व बोल-३० अपूर्ण तक लिखा है.) ७८६७४. जिनकुशलसूरि छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३२-३५). जिनकुशलसूरि छंद, मु. भावराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुसलसूरि; अंति: सदा भावराज इण पर भणे, गाथा-१४. ७८६७५. प्रहेलिका पद व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२.५, १०४३०-३५). १.पे. नाम. प्रहेलिका पद, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रहेलिका पद-श्रावक, रा., पद्य, आदि: जाजमरी नही जुगत चुंप; अंति: जड जड जीमै वारणा. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: गोडीराय कहो वडी देर; अंति: ग्यारमुख खोल कही, गाथा-३. ७८६७६. (+) नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२,१०४३२-३५). सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्ति शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो ध्यान धरीजै; अंति: चक्रने कोइ न तोले हो, गाथा-१५. ७८६७८. पक्षवासो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०-४३). पाक्षिकतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुद्वीप सोहामणो; अंति: समयसुंदर० मनह जगीस, ढाल-२, गाथा-१४. ७८६७९ (#) सीमंधरजिन चैत्यवंदन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १३४४२-४६). १.पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, प. १अ, संपूर्ण. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेला प्रणमुं विहर; अंति: पुन्यतण्यो भंडार, गाथा-६. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर अरिहंतजी प्रभू; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) ७८६८० गौतम विलाप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, ११४३३-३६). महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि: आधारने हु तो रे एक; अंति: पाम्या सीवपद सार, गाथा-१५. ७८६८१ (+#) जन्मनष्ट, सीमंधरजिन स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४४४). १.पे. नाम, जन्मनष्ट, पृ. १अ, संपूर्ण. नष्ट जन्मकाल विचार, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम, श्रीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर साहिबा रे हुं; अंति: होज्यो मुझ चित हो, गाथा-९. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: मगन भये माहाराज; अंति: पाप मिथ्यात्व गये, गाथा-४. ७८६८२ (2) जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४३). जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोयनइ आपणि मन; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) ७८६८३ (+) चोघडिया, वासुपूज्यजिन स्तवन व पच्चक्खाण आगारगाथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६१, फाल्गुन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. कालीसेरी, प्रले. आ. भाग्यरत्नसूरि; पठ. श्रावि. सोनबाई श्राविका, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४३०-३८). For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४४ www.kobatirth.org 1 १. पे. नाम. चोपडीया चक्र, पृ. १अ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि श्रविदन चोघडिआ उदवेग; अंति: ६रोगवेला ७कालवेला, २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. भाग्यरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि वासुपूज्य जिनराजजी अति: रे पोहती मनडानी आस, गाथा-७. ३. पे. नाम. पच्चक्खाण आगार गाथा सह अर्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. , प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि दो नवकारसी छ पोरसी अति (-) (पू. वि. गाथा- १ तक है.) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा- अर्थ, मा.गु. गद्य, आदि नोकारसीना २ वे आगार अंति: (-). ७८६८४. औपदेशिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६X१२, १५X३५-३८). पर्युषण पर्व व्याख्यान - जिनपूजादि आराधना, मा.गु., गद्य, आदि आज पर्युषणा पर्व अति (-), (पू.वि. आर्द्रकुमार कथा संदर्भ तक है.) ७८६८५. औपदेशिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) -२, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जैदे... (२६X११, २०४९-५४). पर्व आराधना व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), ( पू.वि. सामायिक - ६ का वर्णन अपूर्ण से प्रतिक्रमण वर्णन अपूर्ण तक है., वि. ८ प्रकार के सामायिक की कथा, ८ प्रकार के प्रतिक्रमण की कथा आदि दिये गये हैं.) ७८६८६. (*) चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २- १(१) १, कुल पे. ७. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १४X४२-४५). १. पे नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: शुभ फल पामे तेह, गाथा १२. (पू.वि. गाथा- ११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि सिद्धचक्र आराधतां अति सीस कहे कर जोड, गाथा-५. ३. पे. नाम. अड्डाई नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय शृंगार; अंति: आराधीए आगम वाणी वनीत, गाथा-३. ४. पे नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रणनुं श्रीदेवाधि; अति प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. " ५. पे. नाम. लोहकल्प चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरु कल्पसूत्र; अंति: लहे उपजे विनय वनीत, गाथा - ३. ६. पे. नाम संवत्सरी नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु, पद्य, आदिः सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ७. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: कार्त्तिक सुद दीन, अंति: (-) (पू.वि. गावा-३ अपूर्ण तक है.) "" ७८६८७. पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २-९ ( १ ) - १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे. (२५x११, १०x४६). पार्श्वजिन छंद, पुहिं, पद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. पहाडा जंगी जाडा सज्जाडा ढाहंदा है पाठांश से "सिधपुरी " पोहचंदा है, तोरी कीरति" पाठांश तक है.) ७८६८८. विहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४-१ (१) ३. पू.वि. बीच के पत्र हैं. जैदे. (२६४१२, १५X३५-३९). "" 1 For Private and Personal Use Only २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-) अति (-) (पू.वि. श्रीयुगमंधर स्तवन, गाथा-६ अपूर्ण से भुजंगनाथ स्तवन गाथा ५ अपूर्ण तक है.) Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १४५ ७८६८९ आदिजिन स्तवन व महादेव छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३४४२-४५). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसंदर, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: तुम दरसण सरतरु तोलै, ढाल-२, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) । २. पे. नाम, महादेव छंद, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: संकर वसै कैलास में; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७८६९०. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी: शेजा., जैदे., (२५४११.५, १३४३६). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६९ अपूर्ण से ९० अपूर्ण तक है.) ७८६९१ (4) अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४४०-४४). अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वागवादिनी वागेसरी; अंति: प्रणमें जिनवर जयकरु, गाथा-६६. ७८६९२. (4) शेव्रुजानो छंद, संपूर्ण, वि. १८८२, भाद्रपद शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालनपुर, प्रले. मु. खेमा; पठ. श्राव. सोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रथम चोमासे लख्यु छे गुरुदेव प्रतापे., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १०४३७). आदिजिन स्तवन-बृहत्शत्रंजयतीर्थ, म. प्रेमविजय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमिय सयल जिणंद; अंति: प्रेमविजय०जे भवपार ऐ, गाथा-४४. ७८६९३ (4) दानशील संवाद, अपूर्ण, वि. १८०८, भाद्रपद कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, प्रले. मु. खुशालविजय (गुरु __पं. लब्धिविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३५-४०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति: ___ समयसुंद०सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, संपूर्ण. ७८६९४. (+) १६ संज्ञा, नवतत्त्व भेद व कर्मादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-११(१ से ४,७ से १३)=३, कुल पे. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १०-१३४३५-४०). १.पे. नाम, पाँचे थावररा नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. ५ स्थावर वर्णविचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)इंद्रिथावरकाऐ १, (२)इंदी १ बभी २ सेपी ३; अंति: बहु वर्णना नाम छै. २. पे. नाम. १६ संज्ञा नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आहार१ भय२ परिग्रह३: अंति: उघ१४ धम्मो१५ जसोह१६. ३. पे. नाम. नवतत्त्व भेद विचार, पृ. ५अ, संपूर्ण. नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकायना भेद; अंति: भेद ७८ उपादेय आदरवा. ४. पे. नाम. भरतक्षेत्राधिष्ठायक भरतदेव विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: भरतखेत्रनो अधिष्ठायक; अंति: १ पल्यौपमनु आउखू छै. ५. पे. नाम. ज्योतिषचक्र विचार, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)समभूतला प्रथवी तेथी, (२)तारा ७९० जोजन; अंति: माहे सगला जोतिषी छै. ६. पे. नाम. ४५ लाख योजन मनुष्यक्षेत्र संख्यामान, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जंबूदीप लाख जोजन; अंति: मनुष्यखेत्र जाणवो. ७. पे. नाम, अढीद्वीप चंद्रसूर्यसंख्या विचार, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जंबूदीप २ सूर्य; अंति: ज्योतिषीनी संख्या छै. For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८. पे. नाम. जंबूद्वीपाधिष्ठायकदेव विचार, पृ. ६आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: जंबूदीपनो अधिष्टायक; अंति: १ अल्पौपनो आउखू छै. ९. पे. नाम. देवतारो आउखारो विवरो, पृ. १४अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने भूल से पत्रांक-८ का उल्लेख किया है, वस्तुतः यह पत्रांक-१४ है. १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव आयुष्य बोल यंत्र, मा.गु., यं., आदि: १ सोधर्मदेवलोके आउखू; अंति: आउस्थिती जाणवी. १०. पे. नाम. ७ नरक गोत्र, पृ. १४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ रतनप्रभा २ सकर; अंति: ६तमप्रभा ७तमप्रभा. ११. पे. नाम. १४ गुणस्थानक विचार, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो गुणठाणो; अंति: ऋ ल एतली स्थिति १४. १२. पे. नाम. ८ कर्म नामप्रकृतिस्थिति विचार, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो १ ज्ञानावरणी; अंति: (-), (पू.वि. वेदनीयकर्म स्थिति अपूर्ण तक है.) ७८६९५ (#) रत्नाकर पच्चीसी, महावीर द्वात्रिंशिका व सामान्यजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-४(१ से ४)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४२६-२९). १. पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदिः (-); अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. महावीरद्वात्रिंशिका, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण, प्रले. पं. भांणविजय (गुरु पं. जसवंतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. हिस्सा, आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसात्म्यात; अंति: तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३. ३. पे. नाम. सामान्यजिन स्तवन, पृ. ७आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन स्तुति, ग.,सं.,हिं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगन्नाथ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७८६९६ (+#) वीसस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल, बालोचर, प्रले. मु. रतनचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ८x२३). २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीसथानक तप सैवीयै; अंति: भावै० वसतो मुनिवरो, ढाल-३, गाथा-१९. ७८६९७. सुभाषितश्लोक संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३५-३९). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशुद; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२ तक है.) सुभाषित श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत भगवंत वीतराग; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७८६९८ (+#) पंदरतिथी स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १७७३७-४०). १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: (-), स्तुति-१६, गाथा-६४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तेरसतिथि की स्तुति तक लिखा है.) ७८६९९ (#) नेमराजिमती पद, धनधनो अणहार व मरुदेवीमाता सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १६४२७-३०). १. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीत; अंति: प्रमाणसागर० बंधण छोड, गाथा-९. २. पे. नाम. धनधनो अणहार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: समयसु० फल त्यांह रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १४७ मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगरी भली विराजै झीग; अंति: (-), गाथा-१३, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ७८७०० गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८८२, आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मेंसाणा, प्रले. मु. राजविजय; अन्य. पं. चतुरसतक; पठ. श्रावि. सामाबाई,प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. हुंडी: गौतमस्वामीनोरास, जैदे., (२५४१२,१५४३४-३८). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिनेसर चरणकमल; अंति: विजयभद्रसूरि इम भणई, गाथा-६०, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ७८७०१. नेमराजिमती व आध्यात्मिक होरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२.५, १४४३९). १.पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भूपविजय, पुहि., पद्य, आदि: आई वसंत महासुखकारी; अंति: पूजो तीन भवन सिरताज, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भूपविजय, पुहि., पद्य, आदि: सब मिलि खेलै होरी रे; अंति: चिरजीवो यह जोरी रे, गाथा-८. ७८७०२. (+) चंद्रगुप्त १६ स्वप्न विचार व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४२७-४५). १. पे. नाम. चंद्रगुप्त १६ स्वप्न विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (१)श्रीचंद्रगुप्तेन, (२)पहिलै स्वप्नै कल्प; अंति: (१)प्राणीयो सुखी थास्यै, (२)स्वामीना व्याख्याता, (वि. प्रारंभ में श्लोक दिया गया है.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: इह भरहे के जीवा; अंति: पादुका सेवनं व्यसनं, श्लोक-१२. ७८७०३. (+) ४५ आगम पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२४(१ से २४)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३२). ४५ आगम पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अनुयोगद्वारसूत्र पूजा से है व कलश गाथा-५ तक लिखा है.) ७८७०४. (+) चित्रसंभूति चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४२८). चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३० गाथा-१४ अपूर्ण से ढाल-३१ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७८७०५. तीर्थयात्रा स्तवन, अष्टमीतिथि स्तुति व वीसविहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १८४५०). १.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-पीलुचामंडन, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष सोहे जे; अंति: नेमविजय जयकारी, गाथा-४. २. पे. नाम, अष्टमीतिथी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: संप्रात संसारसमुद्र; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ३.पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, प. १आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कांतिविजय, पुहि., पद्य, आदि: सीमंधर सुंणो वीनती; अंति: (-), (पू.वि. बाहुजिन स्तवन गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७८७०६. सौभाग्यकरो यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, ६४२९). सौभाग्यकरो यंत्र, रा., गद्य, आदि: चउवीस तीर्थंकरनी आण; अंति: जिसो होवे तिसो कहें, (वि. यंत्र+मंत्र सहित.) ७८७०७. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १०४३२). महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजी सुणो एक विनति; अंति: विर तारे चरणे रे, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८७०८. आत्महितविनंति छंद व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२४.५x१०, १२४३७). १. पे नाम. आत्महितविनंति छंद. पू. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि प्रभू पाव लागी करूं; अंति: स्वामी सदा सुख देसे, गाथा १०. - २. पे. नाम. औपदेशिक गाथासंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अति: (-). ७८७०९ (+#) औपदेशिक छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : तवण, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५x११, १३x२९). औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि भगवति भारति चरणन; अंति: धरम रंग ते रातो चोल, गाथा - १६. ७८७१०. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३५-३२ (१,३ से ३३-३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. बाद में लिखीत पत्रांक १२, १३, २४ भी हैं. जैदे. (२६४११.५, १५X४४). ', " कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अहिछत्रापुरी कथा अपूर्ण से वज्रस्वामी कथा अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי ७८७११. (+#) समकित के ६७ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-२ (२ से ३ ) = २, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ११×३२). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-७ अपूर्ण तक एव ढाल -६ गाथा-३५ अपूर्ण से ढाल - ९ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७८७१२. (+) परमाधामीनामादि विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२४.५x११. .. १५४५४). नारकी १५ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: अंबक हणीने बांधी; अंति दुख अनुज जाणिवा ७८७१३. धर्मजिन, नेमजिन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२४४११, १०x४८). १. पे. नाम. धर्मजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहि., पद्य, आदि: एक सुनले नाथ अरज, अंति: अनुपम कीरत जग तेरी, ७८७१४. गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५X१२, १०X३३). गाथा-५. २. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुडि., पद्य, आदिः यादव मन मेरो हर लीयो; अति चंद कहे मन हरखियो रे, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-परमात्मभक्ति, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: परमातम पद भज रे मेरे; अंति: नि ताहीको संग सजरेमे, गाथा-७. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. गुणनिधि, मा.गु., पद्य, वि. १९२५, आदि: द्वारिकानगरि समोसर; अंति: दर्शनथी सिव थाय, गाथा - १०. ७८७१५ (-) रेवती सज्झाय व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे २, प्र. वि. हुंडी रेवतीनीस, अशुद्ध पाठ., जैवे. (२४.५x११, १२४३६). १. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासण रेवती, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुर्हि, पद्य, आदि प्रात उठ श्रीसंतिजिण अति पी पापी जाय कषाय टली, गाथा ५. For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १४९ ७८७१६. सिद्धचक्र स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८३, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १६x४४). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुशलविजय०हेज रे लाला, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिले पद जपीइ अरिहंत; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ३. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. __ पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर अति अलवेस; अंति: नित नित आशा पूरे जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधो; अंति: सवि सुखदि भरपुरजी, गाथा-४. ७८७१७. महावीरजिन विनती, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ११४२९). महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विर सुणो मोरि विनती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ तक है.)। ७८७१८. स्नात्रपूजा विधिसहित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, १२४३३). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. "मध्यखंडे अवतरे जिननिधान" पाठांश से कलशविधि अपूर्ण तक है.) ७८७१९ (+) सूर्यचंद्र अंतर, एकेंद्रीय भव व श्वासोश्वासमान विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. छबील व्यास; पठ. श्राव. सामजिचंद जेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, १४४३६). १. पे. नाम. सूर्य चंद्र अंतर विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सूर्यचंद्र अंतर विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपमां बे; अंति: ०५९९८८८ सु. १०५९९८८८. २. पे. नाम, एकेंद्रीय भव विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: २ घडीना ६५५३६; अंति: अठासी लाख. ३. पे. नाम, श्वासोश्वास मान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. महर्त श्वासोश्वासमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: २ घडीना २ घडीना ३७७३; अंति: करोड चोरासी लाख. ७८७२० (#) जिनबिंबस्थापन स्तवनादि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १६४३८). १.पे. नाम. जिनबिंबस्थापन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारंभ में किसी अज्ञात कृति का अंतिम वाक्य अपूर्ण मात्र है. जिनप्रतिमामंडन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिक उधार जेउ; अंति: वाचक जसनी वाणी हो, गाथा-१०. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो कहै; अंति: जे होके बहु सुख पाया, गाथा-५. ३. पे. नाम, सिद्धचक्र सज्झाय, प. ३आ, संपूर्ण. मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: उत्तमसागर० जाणीइं, गाथा-५. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वखाण्यो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७८७२१. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५,११४३६). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसति स्वामीने वीनवु; अंति: धन धन जंबू स्वामीने, गाथा-१५. ७८७२२. आदिजिन विनंति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, १४४४९). For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: पांमी सुगुरु पसाय; अंति: विनय करीने विनवे ए, गाथा-५८. ७८७२३. गोचरी दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ८४३५). ४२ गोचरी दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आधाक्रमी दोष १; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोष-११ तक लिखा है.) ७८७२४. (+) संथारापोरसीसूत्र व नवकार महिमा गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १०४३२). १.पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. २. पे. नाम. नवकार महिमा गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.. नमस्कार महामंत्र महिमा गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नमुकार इक्क अक्खर; अंति: सूइनिचिंतउकाई. ७८७२५ (#) उपदेशरत्नाकर का बालावबोध व श्रावक के १२ व्रत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १६४५३). १. पे. नाम. उपदेशरत्नाकर का बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __उपदेशरत्नाकर-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतराग परमपुरुषो; अंति: मोक्ष मां सुख माने. २. पे. नाम. श्रावक के १२ व्रत नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पेहेले प्राणातिपात; अंति: अतिथि संविभाग १२. ७८७२६. जैनधार्मिक श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५३, माघ शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. मु. कृष्णा (गुरु मु. मंगलस्वामी); गुपि. मु. मंगलस्वामी; पठ. श्रावि. उजमबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १४४४५). श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: एवं खु नाणिणो सारं; अंति: श्रीजंबूस्वामी जाणीए, श्लोक-११. ७८७२७. रावण पद, औपदेशिक पद व गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२.५, ११४३६). १.पे. नाम. रावण पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जवाहर ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: रावण को समजावे राणी; अंति: हरसे हमने क्या जाणी, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, पहिं., पद्य, आदि: अव घर जा मोरे वीर; अंति: र पहचीगी चरणाकी धीर, पद-४. ३. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पुहि., पद्य, आदि: जब लगे होसी० चेत चित; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ७८७२९ (-) सुदर्शनशेठ सज्झाय-शीयलविषये, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. बुध ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १२x२८). सुदर्शनशेठ सज्झाय-शीयलविषये, मा.गु., पद्य, आदि: रीस चोलो छै राणी सेठ; अंति: सफलो तिण वारो जी, गाथा-१४. ७८७३०. औपदेशिक गाथा संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है, कृति अपूर्ण दर्शाने हेतु पत्रांक नं.२ दीया है., दे., (२६.५४१२, १३४३०). औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सचक्खु अस्सा पयासे, गाथा-२०, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., गाथा-१९ से है.) औपदेशिकगाथा संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: कह्यो एहवो देखाडे छै, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम दो गाथाओं का बालावबोध नहीं लिखा है., वि. कुछेक गाथाएँ संबोधसप्ततिका, आवश्यकनियुक्ति व विशेषावश्यक भाष्य आदि में भी मिलती हैं.) ७८७३१ (+) पद, दोहे व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मिलषी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १७४३३). For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३. पे. नाम औपदेशिक गाथा, पू. १अ, संपूर्ण. १. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. जीयालाल, पुहिं., पद्य, आदि: जुनागढ विया मन को; अंति: राजुल गिरनारी पर आई, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहे, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं. पद्य, आदि नगारा कूच का होया; अंति: कर्म कलंक को टाको, गाथा- ११. www.kobatirth.org * , औपदेशिक गाथा संग्रह ४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- वैराग्य, मु. अमरचंद, पुर्हि, पद्य, आदि इस तन पिंजरे को छोड अंति: अमरचंद० दाउ मिली ढोता, गाथा-४. ७८७३२. अभिनंदनजिन व युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२५.५४११.५, १७४३५)१. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. . रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२६, आदि: वनीता नगरी अतिभारी; अंति: जालोर भज्यो जगदीसो, गाथा-२६. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि मोटो क्षेत्र अति सुणता जै जै कारो रे, गाथा-१४. ७८७३३. पंदरतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२६४११, १२४३२) १५ तिथि सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: पडवे परतो तारो मे; अंति: जिणंदने मन भावि, गाथा - १६. ७८७३४. (४) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. खोडाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११.५, १०X३७). पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि प्रभु पासजी ताहरु, अंति चुरे आणंदघन वर वीनवे, १५१ गाथा - १०. "" ७८७३५. २० असमाधिस्थान गाथा व २१ सबला दोष, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२५.५११.५, १४४३०). १. पे. नाम. वीस असमाधिस्थान गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मपाप परिवार विचार, मा.गु., रा., गद्य, आदि: पापनी माता ते हिंसा; अंति: मूले विनय तथा क्षमा. २. पे. नाम. औपदेशिक बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. २० असमाधिस्थान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दवदवचारि १ अपमज्जिय; अंति: एसणाअसमाहिएयाविभवइ, गाथा- ३. २. पे. नाम. २१ सबला दोष, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. २१ बोल-सबल दोष, प्रा., गद्य, आदि: हत्थकम्म करेमाणे सबल, अंति: पडिगहता भुजमाणे. ७८७३६. धर्मपापपरिवार विचार, औपदेशिक बोल व पंचमआरा आयुमान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी : छुटक, दे., (२५.५X११.५, १२X३३). १. पे. नाम. धर्म व पाप का परिवार, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक बोल- संयमितवाणी, मा.गु., गद्य, आदि: थोडुं बोले ते निपुण; अंति: रीत प्रमाणे बोली . ३. पे. नाम. पंचम आरे आयुमान, पृ. १अ १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only पंचमआरे आयुमान, मा.गु., गद्य, आदि मनुष्वनुं आउखु १२० अति पोपटनु ५० वरस. ७८७३७ (7) सिझणद्वार व अशाश्वता बोल, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २- १ (१) = १, कुल पे. २, अन्य. मु. हीरचंदजी स्वामी; सा. बखतबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी सिझणदूवार. अंत में लिखा है- "माहपुरस ७ श्रीहीचंदजी सामीनो से सिखवा सारु आपो छे" "माहासती वखतबाइना छे" "महापुर्ष श्रीकानजी सामी पासेधी उतारी छे" अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२६१२, १७३० ). १. पे. नाम बोल संग्रह, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नरगना नीकला १० मोक्ष; अंति: केवली १०८ सिज्झा. २. पे. नाम. ३ अशाश्वता बोल, पृ. २आ, संपूर्ण, अन्य. मु. कानजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य. ३ अशाश्वता बोल-९८ बोल मध्ये, मा.गु., गद्य, आदि: हवे ९८ बोल मधे ३ बोल; अंति: ते माटे असास्वतो ३. ७८७३८. साधुआचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७६, माघ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. झूठाग्राम, प्रले. मु. भगानंद ऋषि (गुरु मु. कुशालचंद); गुपि. मु. कुशालचंद; पठ. मु. कनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५३). साधु आचार सज्झाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर उपदिस्यो; अंति: कुशालचंद०करजो विखवाद, गाथा-३६. ७८७३९ २४ जिन आंतरा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, ९४२६). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीनमिनाथना निर्वाण; अंति: (-), (पू.वि. चंद्रप्रभजिन आंतरा तक ७८७४१. आदिजिन विनतीस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, १३४३८-३९). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: मन वइरागइ इम भणीय, गाथा-४५. ७८७४२. (+) स्थूलभद्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १७X४५). स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-९ गाथा-१२ तक लिखा है.) ७८७४३. (+) सुक्तिमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १०४३२). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७८७४४. (+) पंचमआरा के लक्षण, जिनजन्म महिमा व २३ पदवी आदि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २०, अन्य. सा. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १७४४२). १. पे. नाम, दस प्रकारे दोष लगाडे, पृ. १अ, संपूर्ण. १० बोल-दोषोत्पत्ति के, मा.गु., गद्य, आदि: १ विगेनो लोलपी होय; अंति: विचारणा विचारतो दो०. २. पे. नाम. दस प्रकारे दोष आलोवे, पृ. १अ, संपूर्ण. १० बोल-आलोयणा लेने वाले के, मा.गु., गद्य, आदि: १ पहिले बोले जातीवंत; अंति: पछाताप करे तो आलोवइ. ३. पे. नाम. १३ घटाड्या घटे, पृ. १अ, संपूर्ण. १३ बोल हानीवृद्धि के, मा.गु., गद्य, आदि: १ कलहो २ रामत ३ खाज; अंति: क्रोध १२ लोभ वेर १३. ४. पे. नाम. १५ प्रकारे वैराग्य, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. १५ बोल वैराग्योत्पत्ती के, मा.गु., गद्य, आदि: १ पहिले बोले साध; अंति: हलुकमीने वेराग उपजे. ५. पे. नाम. पांचमा आराना ३० बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. ३० बोल-दषमकाल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले नगर ते; अंति: मलेचना राजा घणा थासइ. ६. पे. नाम. पांच प्रकारना वरसात, पृ. २अ, संपूर्ण. ५ मेघ प्रकार-प्रथम आरे, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम आरे पांच; अंति: ते तीकादिक रस परणमे. ७. पे. नाम. दस बोल अनंता, पृ. २अ, संपूर्ण. १० अनंता द्रव्य प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: १ पहिले बोले सिद्ध; अंति: १० दसमे भवजीव अनंता. ८. पे. नाम. अवधिज्ञान विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भवनपतीने उचो अवधि; अंति: ज्ञान सगले प्रकार छइ. ९.पे. नाम. आवती चोवीशीना नाम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. २४ जिननाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रेणिकनो जीव पद्म; अंति: नामे तिर्थक्र, (वि. किस का जीव कौन से तीर्थंकर होंगे उस (पूर्वजन्म) नाम के साथ लिखा गया है.) For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १०. पे. नाम. १० बोल-प्रास्ताविक, पृ. २आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: १ दो स्त्री वालाने; अंति: कोठे संतोषनो वासो. ११. पे. नाम. देव च्यवन लक्षण, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)देवतानो शेष ६ महीना, (२)१ माला फुलनी कुमलावइ; अंति: उपजइ १० दिष्ट फिरे. १२. पे. नाम. ज्ञानबाधक बोल संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. ८ बोल-ज्ञानबाधाकारक, मा.गु., गद्य, आदि: १आलस करे तो ज्ञाननु; अंति: अंतराय ग्यान आवइ नही. १३. पे. नाम. १० बोल-दीक्षा लेने के कारण, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आपण मेले दीक्षा ले; अंति: लीधा दीख्या ले तो०. १४. पे. नाम. तीर्थंकर जन्म महिमा बोल, पृ. ३अ, संपूर्ण. तीर्थंकर जन्ममहिमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले तीर्थंकर; अंति: देवता मनुषनु बांधे. १५. पे. नाम. स्वप्न विचार-मोक्षसूचक, प. ३अ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १पहिले सपने घोडा; अंति: उदेसो ६छट्टा जाणवो. १६.पे. नाम. ८ मोती उत्पत्ती स्थान, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: आठ ठीकाणे मोती नीपज; अंति: ते माहि मोती वरसइ. १७. पे. नाम. २३ पदवी विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १चक्ररत्ननी पदवी; अंति: मलीने २३ पदवी थाइ. १८. पे. नाम, २३ पदवीनी गतागती, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. २३ पदवी गतीआगती विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)हवे कहि गतीनो आव्यो, (२)पहिली नर्गनो नीकलो; अंति: जाय समदष्टी वध्यो. १९. पे. नाम. मर्णनी समुद्धात, पृ. ४आ, संपूर्ण. मरणोन्मख जीव की भावी गति के लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: (१)मार्णनी समुद्धात ते, (२)देवसेजा देवांगना; अंति: मुझने मुकावो एम कहइ. २०. पे. नाम. ८ आत्मा विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: दरव आत्मा१ कषाय आतमा; अंति: आतमा७ वीर्ज आत्मा८. ७८७४५. मनुष्यजन्म दर्लभता गाथा व सात निह्नव गाथा सह दृष्टांत कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ., जैदे., (२४.५४११, १४३१). १. पे. नाम. मनुष्यजन्म दस दृष्टांत सह कथा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मनुष्यभव दर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चूल्लग१ पासग२ धन्ने३; अंति: दिटुंता मणुयभवलंभे, गाथा-१. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: जिम पूर्व कालिक; अंति: जन्म ते दुर्लभ जाणवो. २. पे. नाम. ७ निह्नव गाथा सह दृष्टांत कथा, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. ७ निह्नव गाथा, प्रा., पद्य, आदि: बहुयर जमालि पभवा; अंति: पुट्ठमवड्ढं परूवंति, गाथा-२. ७ निह्नव गाथा-दृष्टांतकथा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जमाली कुंडपुर; अंति: सातमो निह्नव हुओ. ७८७४६. (+) लब्धिना २२१ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडीः लधीना बोल., संशोधित., दे., (२६४११.५, १०४३०). २२२ बोल-लब्धि २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ गइ ५ इंदि ७; अंति: (-), (वि. अंत में तद्विषयक अल्पबहुत्वादि की सारणी भी दी गई है.) ७८७४७. (+) स्नात्र पूजा व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. १८२६, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. पट्टन नगर, प्रले. मु. खुस्यालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२-४४). १. पे. नाम, स्नात्र पूजा, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. मटा वध्या. For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. मंगलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १३वी, आदि: (१)प्रथम साथीउ करी धूप, (२)मुक्तालंकारविकारसार; अंति: मंगलवल्लभो भवेत्सदा. २.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: इंद्र कलश भरि ढारै; अंति: जगतपति जगजीवन जयकारे, गाथा-३. ७८७४८. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जेशलमेर, पठ. श्राव. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १०४३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५२. ७८७४९ (+) धन्नाकाकंदी चौढालिया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: धनाजीरी, संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४१). धन्नाकाकंदी चौढालिया, म. आसकर्ण ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८५९, आदि: नवमा अंग तीजा वर्गमा; अंति: आसकरण अणुसारे जोय के, ढाल-७. ७८७५० (4) जीवपर्याप्ति विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२, १६४३६-३८). जीवपर्याप्ति विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: जीव गइंदियकाए जोगे; अंति: भव्यने सादी अपजव सिध. ७८७५१ (+#) खरतरगच्छीय सामायक पौषध प्रतिक्रमणादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १४४४२). १. पे. नाम. सामाई पोसा लेवा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पौषध व राईप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमी लोगस; अंति: गुणै वखाण सांभलै. २. पे. नाम, प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहिली पडिलेहण कराईजै; अंति: (अपठनीय). ७८७५२ (+) रात्रिभोजन चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११.५, १२४३३). रात्रिभोजन चौपाई, उपा. समतिहंस, मा.ग., पद्य, वि. १७२३, आदि: सुबुधि लबधि नव निधि; अंति: (-), (पृ.वि. ढाल-३, गाथा-४ तक है.) ७८७५३. स्थूलिभद्र नवरसो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१०.५, १२४४०). स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७८७५४. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १७X४१). साधुवंदना बृहद, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अनंत चौवीसी रिषभ; अंति: एहीण तरणनो दावो, गाथा-१०८. ७८७५५ (+) चैत्रीपूनम विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१०.५, १३४३९). चैत्रीपूर्णिमा विधि, मा.गु., प+ग., आदि: श्रीआदिनाथ पुंडरीक; अंति: मुक्तिरा सुख आपे. ७८७५६. (4) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४३९). मानतंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदिः (-); अंति: (-), ___(पू.वि. ढाल-३२ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-३३ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७८७५७. पार्श्वनाथ व युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४७, फाल्गुन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वालीनगर, प्रले. पं. सदारूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री मनमोहनजी प्रसादात्., जैदे., (२५४११, ११४३२). For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १.पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि: आज अरदास निजदास जाणी; अंति: कविराज० रमणी सहेली, गाथा-७. २. पे. नाम. युगमंधर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, म. जिनसागर, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीयंगमिंधर भेटवा; अंति: अंगो अंग जिणंदराय, गाथा-६. ७८७५८. पद्मावती ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३६). पद्मावती आराधना बृहत्-जीवराशिक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हिवे राणी पद्मावति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) ७८७५९. संघयात्रा स्तवन-बीकानेर से शत्रुजय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १७X५०). संघयात्रा स्तवन-बीकानेर से श@जय, मा.गु., पद्य, आदि: कथन इसौ माता कहइ; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ७८७६०. घृत सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१०.५, ११४३१). औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण भाव धरी घणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ तक है.) ७८७६१. पुलाकबकुशकुशीलादि पंचभेद विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८७-८६(१ से ८६)=१, अन्य. पंडित. रामचंद्र; श्राव. माणकचंदजी भमरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२४४२). पुलाकबकुशकुशीलादि पंचभेद साधु विवरण, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पेक्षा ही करी सर्व" पाठांश से है व "शत्रु कै दर्शने करीने" पाठांश तक लिखा है.) ७८७६२. पांचमा आरानी सज्जाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१२, ९४२९). पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७८७६३ (+) आद्रकुमारनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८११, फाल्गुन शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. २३-२२(१ से २२)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४३५). आर्द्रकुमारमुनि सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: (-); अंति: न्यानसागरभावफल साधो, ढाल-१९, गाथा-९८, (पू.वि. गाथा-८२ अपूर्ण से है.) ७८७६४. स्तवन व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. हर्षसागर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १०-१५४३९). १.पे. नाम, मेरुतंगसूरि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मेरुतुंगसूरि स्तवन, मु. संघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि गोयम गणहर पाय; अंति: अतिसय बहु सुणीअ, गाथा-१५. २.पे. नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, म. शिवसंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: विभवा विभवा विभवा, श्लोक-७. ७८७६५ (+) केवली आहारादि विचार व ऐतिहासिक घटनाक्रम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६-१८४४०). १.पे. नाम. केवली आहारादि प्रश्नोत्तर, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: केवली गमनागमन करइ ति; अंति: छइ ते प्रीछज्यो७. २.पे. नाम. प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: हुनदेंद्रिय रौद्र; अंति: ९ पासो१० पुण संपइंमो. ७८७६६. क्षमापना गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १०४३२). क्षमापना गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मिअणंते परभव; अंति: जं च कडे वरमुत्तं६३, गाथा-६३. For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 3 १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८७६७. (+#) क्षमापना गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १४X३७). क्षमापना गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मिअणंते परभव, अंति: देवभवेणं जीवा, गाथा- १०२, (वि. सूयगडांगसूत्र का संदर्भ दिया गया है. वस्तुतः ये गाथाएँ लहु-आउरपच्चक्खाण की होनी चाहिए.) ७८७६८. दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२६X११.५, १४x२६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि प्रथम जिणेसर पय नमी अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २, गाथा - १२ अपूर्ण तक है.) ७८७६९. शांतिजिन रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२६४१२, १५४४७). ', " शांतिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्म, वि. १७२०, आदि: सकलसुखसंपतिकरण प्रभु अति (-) (पू.वि. ढाल २ का दोहा १ अपूर्ण तक है.) ७८७७०. रथनेमराजिमती, नंदमणियार व मदनरेखा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७ (१ से ७) = १, कुल पे. ३, दे., (२६.५X११.५, ११X३६). १. पे. नाम. रथनेमराजिमती सज्झाय, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, रा., पद्य, आदि (-); अंति हेत० राजुल लह्यो जी, गाथा-११, (पू.वि. गाथा - १० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नंदमणिआर सज्झाय, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. मु. , धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि पर वचन वचन सोहामणा; अंति: नी धर्मदास रे चतुरनर, गाथा- ७. ३. पे. नाम. मदनरेखासती सज्झाय, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा प्रीतमजी तुं सु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७८७७१. (*) अध्यात्म फाग, सरस्वती अष्टक व परमार्थ हिंडोलना, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, वे. (२५.५x११. १७४४८). " १. पे. नाम. अध्यात्म फाग, पृ. १अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: अध्यातम विनु क्यौं; अंति: फिर तिहां खेल न कोय, गाथा-१७. २. पे. नाम सरस्वती अष्टक छंद. पू. १अ १आ, संपूर्ण शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमौ केवल नमौ केवल; अंति: परमसुख तज संसार कलेश, गाथा-१०, ३. पे. नाम. परमार्थ हिडोलना, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. केसवदास, पुहिं., पद्य, आदि: सहज हिंडोलना हरख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७८७७२. (+) चौवीसजिन चौढालिया, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम पू. १, प्र. वि. माहासती श्री जीवीबाई सामीनी चेली ही बाइसामीनु पानुं छे., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., दे., ( २६१२, १५X४२). २४ जिन चोढालिय, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य वि. १९९८ आदि प्रभुजी आदि जिणेशर अति (-) (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल ४, गाथा- ८ तक है., वि. कृति संपूर्ण होने की संभावना है.) ७८७७३. नवकार रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X१०, १५X४५). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो लीजि; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा २० अपूर्ण तक है.) ७८७७४. (+०) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २१(१) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५.५४११, १२४३३). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १, गाथा-११ अपूर्ण से प्रशस्ति दुहा ४ अपूर्ण तक है.) ७८७७५. ऋषभजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, वे. (२५.५४११.५, १२४३४). For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १५७ आदिजिन चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जीणेसर गावतां; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-४, ___ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७८७७६. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १८५६, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४३). आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परीसो बावीसमो; अंति: बचन की आसता रे लाल, ढाल-७. ७८७७७. (+) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४४८). हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामण विनवू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ७८७७८. सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. कानजी ऋषि; अन्य.सा. जेठीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१०.५, १२x२७-३०). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: सोलमी सती पद्मावती ए, गाथा-१६. ७८७७९ (+) चार शरणा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. श्राव. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, २१४३६). ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मुजनवोइ सरणो होज्यो, (पू.वि. "बजावी राणी लब्धनी धरणाहार तपसी" पाठांश से है) ७८७८० (+) चौबीसजिनतीर्थमाला स्तवन व अनागतचौबीसीजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८४०, माघ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. खेमवर्द्धन, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४२४-४२). १.पे. नाम. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजे ऋषभ समोसर्य; अंति: समयसुंदर कहे इम, गाथा-१५. २. पे. नाम, अनागतचौवीशीजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पदमनाभ पहिला जिणंद; अंति: कहे ज्ञानविमलसूरीस, गाथा-१५, (वि. प्रतिलेखक ने तीन गाथा को १ गाथा गिना है.) ७८७८१ (+) आदिजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११, २६४१८). आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धत, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत नमो भगवंत; अंति: ज्ञानविमल सूरीश नमो, गाथा-८. ७८७८२. आउखानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, दे., (२५.५४१२, ९४२०). औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मा.गु., पद्य, आदि: अणी आउखो तुटाने सादो; अंति: नही ममता लोभ लगार रे, गाथा-८. ७८७८३. (+) बीजतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १०४३४). बीजतिथि स्तुति, मु. वीरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पुरवदिसि उतरदिसि वचम; अंति: वीरसागर० रसाली जी, गाथा-४. ७८७८४. अल्पबहुत्व बोल व ६कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ३०४७७). १. पे. नाम. अट्ठाणु बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-अल्पबहुत्व ९८ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वथी थोडा गर्भज; अंति: सर्वजीव वसेष अधिका. २. पे. नाम. छ काय उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ६काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय सूखिम बादर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ८ कर्मस्थिती में दर्शनावरणीयस्थिती तक लिखा है.) ७८७८५ (+) रत्नप्रभापृथ्वी विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, २०-३४४१०-३३). For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रत्नप्रभापृथ्वी विचार, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: तत. योजन ८० मध्ये अण; अंति: ५०० सर्वछेमली १०५०००. ७८७८६. (+#) कुमारपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-३१(१ से २९,३१,३३)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६x४५). कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९४६ अपूर्ण से ९८० तक, १०११ अपूर्ण से १०४६ अपूर्ण तक, १०७८ अपूर्ण से ११०९ अपूर्ण तक है.) ७८७८७. (+) चौवीसजिन चौढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पंडित. घेधला शुक्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १०४३७). २४ जिन चोढालिय, म. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१८, आदि: प्रभुजी आदि जिणेशर; अंति: खोडीदास पुरो मुज आस, ढाल-४, गाथा-२८. ७८७८८. अर्बुदगिरि, नेमिजिन व विजयशेठ आदि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-२७(१,३ से २८)=३, कुल पे. ४, दे., (२५४१२, १३४३१). १.पे. नाम, अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: (-); अंति: रूपचंद०तीरथना गुणगाव, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-८ से है.) २. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन स्तवन, म. जिनचंद, मा.ग., पद्य, वि. १८६७, आदि: शुयदेवी सानिध करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम, चौतीसअतिसय स्तवन, पृ. २९अ-३०अ, संपूर्ण. ___३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमति दायक दुरित; अंति: पद सेव मागुं भवोभवे, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है. गाथांक २ तक ही संख्या दिया गया है.) ४. पे. नाम. विजयशेठविजयाशेठाणी स्तवन, पृ. ३०अ-३०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७८७८९ प्रतिमादिविशिष्टतप उच्चराववानो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४१२, १४४३८). ११ प्रतिमा तपोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम शुद्ध; अंति: मुखो जिणसासणे भणीओ. ७८७९० चंदनबाला चौपाई व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२४.५४१३, २५४५०). १.पे. नाम, चंदनबाला चौपाई, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. __ चंदनबालासती चौपाई, मु. ब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: मोह पिसाच वसकरणकुं; अंति: ब्रह्म तणां फंद के, गाथा-१५९. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. दर्गादास, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: जोग लेईने बीर जिणेस; अंति: जपे तुम नामे आनंदा, गाथा-१४. ७८७९१. सुदर्शनसेठ चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: सुदर्शन, दे., (२४.५४१२, २१४४९). सुदर्शनशेठ चौपाई, जै.क. जवाहरलाल दास, पुहि., पद्य, आदि: सिद्ध साधु को नमन कर; अंति: जवाहिर० धर्म का सार, गाथा-१३४. ७८७९२. शीयलनी नववाडनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३२, भाद्रपद कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले.ऋ. मोतीचंद्रजी; पठ. श्रावि. कपुरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १४४२९). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदिः श्रीगरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भांमणे, ढाल-१०, गाथा-४३. ७८७९३. (+#) महावीरजिन सत्तावीस भव स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १७४३७). For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १५९ महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंति: (-), __(पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-६, गाथा ८२ तक है.) ७८७९४. देवकी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१३(१ से ३,६ से १५)=३, जैदे., (२५.५४१२, २४४५८). देवकी चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ ढाल-२ गाथा-१३ अपूर्ण से है व ढाल-१५ गाथा-१६ अपूर्ण तक लिखा है.) ७८७९५ (+) स्थानांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडीः ठाणांगना अरथना., त्रिपाठ-द्विपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ३४४७). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., "स्थान-१० दसविहे दोषे से दसविहे संखाणे" पाठ तक है.) स्थानांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ७८७९६. जीवदया सवैया, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०९-१०६(१ से १०६)=३, दे., (२५४११.५, १६४३९). जीवदया सवैया, मु. कृपाराम, पुहिं., पद्य, वि. १९३२, आदि: चोथे आरे केरा वृसतीन; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ७८७९७. महावीरजिन सत्तावीस भव स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १३४२५-४२). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंति: (-). (पू.वि. गाथा-७७ अपूर्ण तक है.) ७८७९८. (#) चोवीसजिन आंतरा, संपूर्ण, वि. १६९५, चैत्र कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. रषभजी; लिख. सा. राणीजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५,१३-१५४१२-१५). ___ कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: चोवीस तीर्थंकर जनमाह; अंति: पछी पुस्तक लखाणो छइ. ७८७९९ (+) चोवीसजिन नाम, नक्षत्र, लक्षण, वर्ण आदि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, ११४४६). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७८८००. छ आवश्यक स्तवन व इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १०४३८). १.पे. नाम. छ आवश्यक स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ६ आवश्यक स्तवन, संबद्ध, म. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोवीसे जिन वीनवं; अंति: सिव संपद सुख लहे, ढाल-६, गाथा-४३. २. पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सन्मुख रही विनय; अंति: वरते एकवीस वरस हजार, गाथा-१४. ७८८०१. (+) जिनपंजर स्तोत्र, घंटाकर्ण स्तोत्र व महपती बोल आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४२६-३३). १.पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. २.पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः , श्लोक-२५. ३. पे. नाम. नवकारमंत्र स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिचापि कदाचन, श्लोक-७. ४. पे. नाम. मुहपतीनी पडिलेहणनो मर्म, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: प्रथम दृष्टि पडिलेहण; अंति: हिसा वरिहारु छु. For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८८०२. (+) स्तवन, पद व चौढालिया संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, ले. स्थल. पाटडी, प्रले. मु. साधु ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२५x११.५, १८४४८). १. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, वि. १८९६, पौष कृष्ण, १२. ऋषिवत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्री आदिजिणंद, अंति: जिनहरष नमुं कर जोड़, गाथा- ३२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणै घर बैठा लील करो; अंति: सुंदर कहे गुण जोडो, गाथा ८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. सुखसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तु मेरा मनमै तु मेरा; अंति: कनककीर्ति० भवन मै हो, गाथा - ५. ४. पे नाम, चंद्रप्रभुजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीचंदाप्रभु जिनवर अंति भव तुम चरणां बलिहारी, गाथा ६. ५. पे. नाम. ईलाचीपुत्र चौढालियो, पृ. २अ ३अ संपूर्ण, वि. १८९६, माघ शुक्ल, ११. गुरुवार. इलाचीपुत्र चौडालीयो, मु. भूपति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुण मिलो; अति नदिन दोलत धाय मुनीसर, " ढाल-४. ७८८०३. (+) नंदराजवेंरोचनप्रधान कथा, संपूर्ण वि. १९१६ पौष शुक्ल ७, श्रेष्ठ, पू. ३ ले स्थल विक्रमपुर, प्रले. क्र. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २४.५x११.५, १७४८). नंदराजवेरोचनप्रधान कथा, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि जिन वीर जिनेश्वरू, अति सीये जयपुर जयसंघराज, ढाल ७. ७८८०४. संयोगी भांगा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४८). संयोगी भांगा, मा.गु., गद्य, आदिः यन्नाक प्राणि विकल्प अंति: ५२२ ए बीसमुं रूप छे, (वि. अंत में भांगा के अंक भी दिये गए हैं.) ७८८०५. तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, वे. (२५x१०.५, ७४१६). २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेतुंजे रीषभ समोसर; अंति: सरग मृत्यु पाताल, गाथा - १९. ७८८०६. गौतमस्वामी रास, पत्र व वर्णमाला, संपूर्ण वि. १८६४, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले. स्थल. खंडपनगर, प्रले. मु. आनंदराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४१०.५, १४४४५). १. पे. नाम गौतमस्वामी रास. पू. १अ ३आ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल अंतिः सयल संघ आणंद करो, 1 गाथा-४७. २. पे. नाम. जीवाजीगुरु के नाम शिष्य का पत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. गुरुशिष्य पत्रलेखन विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अनेक ओपमा सकल शुभ; अंति : (अपठनीय). ३. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. ३आ, संपूर्ण. वर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमः सिद्धं अ आ इ ई अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लृ से क्ष तक लिखा है.) ७८८०७ जैनधार्मिक प्रश्नोत्तरी व ब्रह्मचर्य के ९ बोल, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे २, दे., (२५.५४११.५, १७४४५). १. पे नाम, जैनधार्मिक प्रश्नोत्तरी संग्रह, पृ. ११-३आ, संपूर्ण. जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर-विविधग्रंथोक्त, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: द्वादशव्रतधारक केवल; अंति: पन्नवणा ३६ पदे. २. पे. नाम ब्रह्मचर्य के नौ बोल, पृ. ३आ, संपूर्ण. ९ बोल- ब्रह्मचर्य विषये, मा.गु., गद्य, आदि: नारी पुरुषने वैरी; अंति: नरक पुहचावै. For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७८८०८.(+) अषाढभूति रास, संपूर्ण, वि. १९८४, चैत्र शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. हुंडी: आसाढ०, संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४५०). आषाढाभूति रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: गणधर गौतम गुणनीलो; अंति: रतनचद० फासी रे लो, ढाल-९. ७८८०९ (+) दोहावली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४४७). दोहावली, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: लोचन प्यारे पलकको कर; अंति: वाचै चतुर सुजाण, गाथा-७३. ७८८११ (+) मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८४, फाल्गुन कृष्ण, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३३-३५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: शांतिकरण श्रीशांतिजी; अंति: विशुद्धविमल० गायाजी, ढाल-५, गाथा-४२. ७८८१२. मेघकुमार, गजसुकुमाल व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२६४१२.५, ६x२७). १.पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. देव, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे कारण मेहा जिनवर; अंति: सेवक मुनि गुन गाया, गाथा-१८. २. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हे सोरठ; अंति: करजोडी रत्नु भणे, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: अगनी में जैसे अरविंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ७८८१३. भीषणमत प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४१२, ८४३३). तेरापंथी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: ज्ञाता सूत्र का सोलम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दशाश्रुतस्कंध के पाठ "परिग्रहे अधमि ए जावदाहीणगामि" तक लिखा है.) ७८८१४. (+#) गुणस्थानके कर्मप्रकृति विचार व सन्निपातिक भेदादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९८, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. वा. क्षमाप्रमोद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ४२४२३). १.पे. नाम. १४ गुणस्थानके १५८ कर्मप्रकृति विचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: बंध योग्य प्रश्न०; अंति: ए तेर क्षय करी सीझै. २.पे. नाम. १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिथ्यात गणठाण; अंतिः अयोगी १४ अनुदीरक. ३. पे. नाम. ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: औपशमिकभाव१ क्षायिक; अंति: ५३रा नाम जाणवा. ४. पे. नाम. सन्निपातिक भेद विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण... मा.गु., गद्य, आदि: द्विकसंयोगी भांगौ श; अंति: एवं १५ जाणवा. ७८८१५. दसदृष्टांत कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११,१५४५२). मनुष्यभव दर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: चुल्लग कहतां भोजनो; अंति: (-), (प.वि. राजा और ब्राह्मण की कथा अपूर्ण तक है.) ७८८१६. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: नाभ, दे., (२६४११, १६x४१). आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीनाभिकुलगुर; अंति: ग्यानचंद० कोइ न तोलै, ढाल-२, गाथा-२६. For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८८१७ (4) चौवीसजिन स्तवन व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १५४४१). १.पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., पद्य, आदि: बोहाबनु आदेजणंदजी; अंति: प्रभु आवागवण नवारजी, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१२. ७८८१८. (+) षष्ठीशतक प्रकरण सह बालावबोध व आठकर्मस्थिति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, १०४३३). १. पे. नाम. षष्ठीशतक प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. षष्ठिशतक प्रकरण-हिस्सा गाथा १, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरु; अंति: निरंतरंवसैइहीययम्मि, गाथा-१. षष्ठिशतक प्रकरण-हिस्सा गाथा १-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत असरणसरण; अंति: मंगलीक माला संपजौ. २. पे. नाम. आठ कर्मस्थिति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ कर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावीरी ३०; अंति: गोत्रकर्म २० कोडाकोड. ७८८१९ (+) साधारणजिन होरी व नेमिजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११, १५-१९४४८). १.पे. नाम. साधारणजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. बोल-विचारों की सूची भी दी गयी है. मु. कवियण, पुहिं., पद्य, आदि: देव जिणंद साधगुरु; अंति: ण गावे हो गाव नरनारि, दोहा-१५. २. पे. नाम, धमाल, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन होरी, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मवसंत सुहावणो; अंति: सरस मलि राचे हो, गाथा-११. ३. पे. नाम, नेमजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. सुंदर, रा., पद्य, आदि: जा दिन थे प्रभु ओतरे; अंति: सुंदर०सरीखो ओर न कोय, गाथा-५. ७८८२०. भगवतीसूत्र बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१२, १८४४५). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२६ बंधशतक का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाय लेस पखी दिठी; अंति: (-), (प.वि. "लेसा माहि पहिलो तीजो २ भांगा मिश्र" की चर्चा अपूर्ण तक है.) ७८८२१. औपदेशिक गंहलीद्वय, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रावण कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १४४३७). १. पे. नाम, औपदेशिक गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गहंली-जिनवाणी, मा.गु., पद्य, आदि: सखी मोरी सरस अमृति; अंति: अनोप रतन्न, गाथा-७. २. पे. नाम, औपदेशिक गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक गहुँली-जिनवाणी, मु. अनोप, मा.गु., पद्य, आदि: सरस अमृतिथी रे मीठी; अंति: शुद्ध स्वरुप स्वभावे, गाथा-९. ७८८२२. चोवीसजिन आंतरा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, ३३४१९). १.पे. नाम. चोवीसजिन आंतरा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: २४ श्रीमहावीरनै वरस; अंति: वरसे उणु एतले समझयं. २. पे. नाम, औपदेशिकश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-६. ७८८२३. (+) जिनलाभसूरिगच्छपति भास, संपूर्ण, वि. १८३४, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. श्रीचंद (गुरु पं. अमरचंद); गुपि.पं. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४२७). जिनलाभसूरिगच्छपति भास, म. राज, रा., पद्य, आदि: वारी जाउ पूज म्हारी; अंति: श्रीजिनलाभिसूरिदि, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १६३ ७८८२४. (+) दीक्षाउच्चराववानी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १३४४५). दीक्षा उच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथमनांदि पट पासे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चार नवकार गिनने के बाद गुरु की वंदना करने के प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ७८८२५. (+) स्वप्नफल चौपाई व स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: स्वप्नचउपई, संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २०४६८). १. पे. नाम. स्वप्नफल चौपाई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सिंघकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५६०, आदि: पहिलुं मन जोई करी; अंति: शिवसुख इणिपरि कहइ, गाथा-४३. २.पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि कोशा सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थूलिभद्र कोशा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मृगवयणी रे ससिवयणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७८८२६. (#) मौनएकादशीनो गणौ डोढ से कल्याणक, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२, १८४४५). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजस सर्वज्ञाय; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ७८८२७. औपदेशिक सज्झाय, नेमिजिन व महावीरजिनादि पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ५, दे., (२५.५४११, १३४३१). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तास जन्मप्रमाण, गाथा-६, (पू.वि. अन्तिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. दोलत, पुहिं., पद्य, आदि: जिन दरसण की प्यासी; अंति: दोलत गुण गासी रे, गाथा-३. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. म.रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुही तुही आदि आवै; अंति: रूपचंद० पावै दरद मे, गाथा-५. ४. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.. म. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सह नरनारी मिल आवो; अंति: गावै विनीतसागर मुदा, गाथा-७. ५. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अखिया मेरा प्रभजी से; अंति: जिनचंद०प्रभु पलक घडी, गाथा-३. ७८८२८.(#) सूर्याभदेव सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११, १२४५५). सूर्याभदेव सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: ए आवै असवार घोडारी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२० तक लिखा है.) । ७८८२९ गौतमगण रत्नमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, १६४५६). गौतमगणधर स्तवन, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, वि. १९५५, आदि: प्रह उठी गौतम गुरु; अंति: सुमति मंगल कीजिये, गाथा-१९. ७८८३० (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विमलजिन स्तुति श्लोक-४ अपूर्ण से कुंथुनाथजिन स्तुति श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ७८८३१ (4) महावीरजिन स्तवन व कृष्णलीला पद, संपूर्ण, वि. १९६४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: स्तवन, अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२४.५४११, ८४३३). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, वि. १९६४, आदि: म्हारा प्रभुजी सुमेल; अंति: सादडी मे चतुरमास, गाथा-१३. २.पे. नाम. कृष्णलीला, पृ. १आ, संपूर्ण. कृष्णलीला पद- बालवर्णन, पुहिं., पद्य, आदि: जुनी मटनी मा भइ; अंति: ए जब जाणे रघुराई, दोहा-४. For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८८३२. (+) जंबुकुंवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १५४३१). जंबूकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगरी नगरी को; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२० तक लिखा है.) ७८८३३. (+) चारमंगल पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ३०४३५). ४ मंगल पद, म. उदयरत्न, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धार्थ भूपति सोहे; अंति: उदयरत्न भाखे इम, गाथा-८. ७८८३४. (+) चोवीस तीर्थंकरोनां नाम तथा माता पिता, वर्ण, राशि, आयु आदि विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १३४५८). २४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७८८३५ (#) पार्श्वजिन, आदिजिन व महावीरजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी: स्तवन, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १६४५१). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन स्तवन, म. कीरत, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: कीरत० पारसनाथ कीयै, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१३ से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वयण हमारा लाल हीयडै; अंति: जिनहरष० हुं बंदा लाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन ऋषभ जयौ सदा; अंति: भव भव दाहउ वारी जाउ, गाथा-१४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तुं जगनायक जगगुरु; अंति: प्र. पुरो मनहजगीसजी, गाथा-११. ७८८३६. (+) षट्चत्वारिसत्बोलगर्भित चउवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १४४४१). २४जिन स्तवन-४७ बोल गर्भित, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपरमातम परमगुरू; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-१, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७८८३७. ३२ सूत्रो की फहरिस्तनंबर, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रावण शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. श्रावि. गणेशदाश मुनिलाल (खरतरगच्छ) (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, २६४१३). ढुंढिया मान्य ३२ आगम सूत्रना नाम, मा.गु., गद्य, आदि: दशवैकालक उत्तराध्ययन; अंति: बनीदसाजी. ७८८३८.(+) झांझरियामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, १९x४६). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे सिस नमावि; अंति: पाप करमने खपावे रे, ढाल-४, गाथा-४३. ७८८३९. महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२१४११, १०४३८). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-६ अपूर्ण से है व ढाल-३ गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ७८८४०. सीमंधरजिन स्तवन व मणिभद्र छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२५४११, ११४३२). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, प.वि. मात्र अंतिम पत्र है. __ आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनराज०मत मुको विसार, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मणिभद्र छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा; अंति: मुनि सुजस लहे, गाथा-९. ७८८४१ (+) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे., दे., (२५.५४१०.५, ११४४७). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सुविधिनाथ स्तवन गाथा-२ अपूर्ण से मुनिसुव्रतनाथ स्तवन गाथा-२ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७८८४२. (९) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ५२-४९ (१ से ४९) ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी: श्रीपा०, संशोधित., दे., (२५.५X११.५, १३३६-४२). יי श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-४ डाल-८ गाथा- ६६ अपूर्ण से खंड-४ डाल- १० गाथा २५ अपूर्ण तक है.) ७८८४३. (*) पंचकल्याणक विचार व विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पं. लावण्यधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२, २९x९) " १. पे. नाम, चौवीसजिन पंचकल्याणक विचार, पू. १अ- ३आ, संपूर्ण. יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: कातिवदि संभवजिनज्ञान; अंति: (१)आसोज सुदी नमिनाथ चवन, (२) कार्तिकवदि ३० मुक्ति. २. पे नाम. चौवीसजिन पंचकल्याणक विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. कल्याणक विधि, सं., पद्य, आदि: च्यवनकल्यांणक दिने; अंति: २००० गुणणौ कीजै, श्लोक १. ७८८४४ (१) दश दृष्टांत, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२.५, ११४२५). मनुष्य भवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि चुल्लग पासग धन्ने; अंतिः भव मीलवो कठिन छे, लोक-१०. पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५X११.५, ९X३०). १. पे. नाम ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पू. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. ७८८४५. नववाड सज्झाय व चंदनबालासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६२२, भाद्रपद शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, गोरा रावत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५x११, १३४४९). " १. पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि आदि आदि जिणेसर नमुं; अंति: वृद्धि रे मंगलमाल, ढाल-९, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि त्रिगडे बेठा वीर अंति: वरदत्त तेणी परे, गाथा ५. २. पे. नाम. पांचपांडव सज्झाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. १६५ गाथा-५७. २. पे. नाम. चंदनवालासती सज्झाय, पू. ३आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि धन धन दीन माहरइ आजनु; अंति: भानुमेर० माग रे, गाथा - १९. " ७८८४६. (+) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन व पांडव सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलो; अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा- १९. ७८८४७. सतीयारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. श्राव. वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५x११, ११४३०). 1 २७ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि प्रह सम उठी मनमे भाय; अतिः न मिलै जाये विरह दुख, गाथा-२८. ७८८४८. रोहिणीतप स्तवन व दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पै. २, जै. (२५x११, " For Private and Personal Use Only १४X३२). १. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १अ ३अ संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: हिव सफल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा - १५. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., डाल- २, गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ७८८४९. (*) कयवन्ना चौढालियो दानाधिकारे, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३-१ ( २ ) = २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५x१२, १६x४५). Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कयवन्ना चौढालियो-दानाधिकारे, म. फतेचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: पार्श्वनाथ प्रणमी; अंति: फतेचंद० ग्यारस सुहाय, ढाल-४, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., ढाल-२ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-१७ अपूर्ण तक नहीं है.) ७८८५० (+#) गौतमस्वामी रास व अध्यात्म स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०६, वैशाख शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. जावाल नगर, प्रले. पं. केसरविजय गणि; पठ.पं. रूचिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ११-१४४४२). १.पे. नाम, गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. श्राव. शांतिदास, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सरस वचन दायक सरसती; अंति: गौतमरिषी आपो सुखवास, गाथा-६६. २. पे. नाम. अध्यात्म स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: काया मे वासमे रे; अंति: मे वासमेरे मरदो मगन, गाथा-६. ७८८५१. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८६०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. रत्नविजय (गुरु पंन्या. खुशालविजय); गुपि. पंन्या. खुशालविजय; पठ. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १०४३५). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: संवच्छरी तप गाथा. ७८८५२ () ढुंढक रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. लेच, प्रले. पं. लब्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४४०-५०). ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरसति चरण नमी करि; अंति: अविचल पद लीला रे, ढाल-७. ७८८५३. (+) प्रतिष्ठा व दीक्षा विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८२, आश्विन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४३८). १.पे. नाम. प्रतिष्ठा विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी: प्रतिष्टावि. जिनप्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मूल गुंभारे कु अच्छी; अंति: गुणी बलबाहुल उछालै. २. पे. नाम. दीक्षाग्रहण विधि, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: दीक्षाग्रह दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रो; अंति: वास ९ उस्सग्गो १०. ७८८५४. (+#) गौतमपृच्छा चोपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४४०). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: मन जे जिनवचने वस्यो, गाथा-१२१. ७८८५५ (+#) मृगापत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.५-१(४) ४, प.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३१). मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर समरु सदा मुगत; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ से गाथा-४४ अपूर्ण तक एवं गाथा-६० अपूर्ण से गाथा-७७ अपूर्ण तक है.) ७८८५६. महावीर व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १२४३५). १.पे. नाम. महावीरस्वामीनं स्तवन, प. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेश्वर चरणे; अंति: आनंदघन प्रभु जागे रे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ध्रुवपद रामी हो; अंति: आनंदघन मुज मांहि, गाथा-८. ७८८५७. (+#) पार्श्वजिन, शांतिजिन व महावीरजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६x४४). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org १६७ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पं. रंगविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिब अति वक रंगविजय गुणगाय रे, गाथा-७. २. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि शांतिजिनेसर साहीबा अंति मोहन जय जयकार, गाथा- ७. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजि वीर जिणंदने; अंति: रंगविजय० पाय सेव हो, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- नवखंडा, मु. विवेकविजय, मा.गु, पद्य, आदि अलखनीरज अज अवीनासी अति सीवसुख आलो हो, गाथा-७. ७८८५८ (+) तारातंबोल नगरी वर्णन, नक्षत्र फल व बोल आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ५. प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२५.५x११.५, ३२x१८). " १. पे. नाम. तारातंबोलनगरी वर्णन, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि लाहोरथी गाऊ १५०: अंति: तिवारई जैन धर्म आवड. २. पे. नाम. ४५ आगम नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: मूल सूत्र ४ आवश्यक १; अंति: आगमना नाम लख्यां छइ. ३. पे. नाम. औषधमंत्रादि संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि खोरासाणी अजमो रटी; अंति: (-). ४. पे नाम नक्षत्र प्रश्नफल विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु. गद्य, आदि (-); अति: (-), (वि. कोष्ठक में दिया गया है.) "" ५. पे. नाम बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि १३ भव ४ जंबूद्विप ४ अति (अपठनीय). ७८८५९ जीवाभिगमसूत्र का टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८९-८८ (१ से ८८ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडीः जीवाभि०टबा०., जैदे., (२५X११.५, १५x५२). वाभिगमसूत्र-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (-) (पू.वि. नरकावास भेद अपूर्ण मात्र है. वि. अन्य टवार्थ की "" तरह नहीं है.) ७८८६० (+) नेमिराजिमती बारमासा व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे., (२५x११, १४X३७). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.. नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवियण० नवनिध पामी रे, गाथा-१३, ( पू. वि. गाथा - ९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि वालम सुणी जे म्हारी; अतिः सदा चरण कमलरी सेव, गाथा- ११. ७८८६९. अजितजिन स्तवन, औपदेशिक दोहा संग्रह व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे. (२५x१२, " १४५६३). १. पे नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरत मे; अति रीष रायचंद कहे एम, गाथा- ३८. २. पे नाम. दहा संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद संग्रह, मीर वलीउद्दीन, पुहिं., पद्य, आदि: क्रोधी कपटी लालची; अंति: करुता नव तेरे वावीस, दोहा-१५. ३. पे नाम औषधवैद्यक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७८८६२ (#) गरुगण सज्झाय व वीस विहरमानजिनलंछण गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. २. प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, ११४३०). १. पे. नाम, गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गरुगण गहली, जै.क. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: ते गुरु मेरे उर वसौ; अंति: पडो भूधर माँगे तेह, गाथा-१४. २. पे. नाम. विहरमानजिनलंछण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिनलंछन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वसह १ गय २ हरिण; अंति: वीसाइक्क मेणनायत्था, गाथा-२. ७८८६३. कल्याणकतिथि विचार, संपूर्ण, वि. १६७९, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. जगमाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १७४४०). पंचकल्याणकआराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कार्तिक वदि ५ नाणं; अंति: मेरु नरणं क्रियते५, (वि. टिप्पणी सह संस्कृत में विधि दी गई है.) ७८८६७. दोषावली, वैराग्य कुलक व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८२२, चैत्र कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. छठीआडा, प्रले. पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १८४४८). १. पे. नाम. दोषावली, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: बांधीइ सुखं भवति, (पू.वि. "नीकंद कुदालयंत्र अष्ट गंधसुं लखीइं" पाठ से है.) २. पे. नाम. वैराग्य कुलक, पृ. ५अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सिरीजिणनाहवीरं नमिउण; अंति: भद्दकरो होई भवीआणं, गाथा-१४. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: बीजो सहुको वरचयो तूं; अंति: घासवइ वली चडावे पाड, गाथा-६. ७८८६९ (+#) नेमिजिन वसंत गीत व कृष्ण वसंत गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ९-१२४४०). १.पे. नाम. कृष्ण वसंत गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. क. सुर, पुहिं., पद्य, आदि: सांमरा मत मारो; अंति: सुर० ल्युंगी उतारी, कडी-४, (वि. कर्ता 'सुर' से सुरदास होना संभव है.) २. पे. नाम. नेमिजिन वसंत गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. वीर, पुहिं., पद्य, आदि: सांमरा मत मारो; अंति: (१)वीर०हु मे नीत्य एसाई, (२)वीर० प्रभु सीवसुखदाई, गाथा-८. ७८८७१ (+) पार्श्वजिन स्तवन- चौवीसदंडकविचार गर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६४५०). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, म. धरमसी, मा.ग., पद्य, वि. १७२९, आदि: परि मनोरथ पासजिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ७८८७२. सीतासती सज्झाय व वैराग्य पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, ११४३७). १.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, प. १अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: करै मोटी सती रे लाल, गाथा-८. २.पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न किजीये; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-४. ७८८७३. (+) वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: जीवापां०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१०.५, १४४४७). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद; अंति: ऋष जैमल कहै एम जी, गाथा-३५. For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७८८७४. (+) आर्य-अनार्यादि विचार-प्रज्ञापनासूत्रे, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४६). आर्य-अनार्यादि विचार-प्रज्ञापनासूत्रे, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: पन्नवणा पद १ पन्नवणा; अंति: वियरा० इत्यादि पाठ, (वि. मूल पाठ भी दिया गया है.) ७८८७५. लावणी, बोल व बीजकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५४११.५, १६४५१). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. कच्छ गुंडाला, प्रले. मु. शिवजी ऋषि; पठ. मु. सिंहजी (गुरु मु. देवचंद्र); गुपि. मु. देवचंद्र (गुरु मु. कहानजी स्वामी); मु. कहानजी स्वामी, प्र.ले.पु. मध्यम. मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: शुभ ज्ञान रसिली रूडी; अंति: ख्यो एह सुभ उपदेश जो, गाथा-६. २. पे. नाम, बीस असमाधिना स्थानक, पृ. १अ, संपूर्ण. २० बोल असमाधि, मा.गु., गद्य, आदि: उतावलो उतावलोचाले; अंति: आहार भोगवे तो असमाधि, कडी-२०. ३. पे. नाम. इक्कीस सबला स्थानक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २१ बोल-सबल दोष, प्रा., गद्य, आदि: हत्थकम्म करेमाणे सबल; अंति: पडिगहता भुजमाणे. ४. पे. नाम, विभिन्न आगमों के विषयानुक्रमणिका, पृ. १आ, संपूर्ण. आगम यथाक्रमबीजक संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्रकृतांगसूत्र, ज्ञाताधर्म तथा आचारांगसूत्र की विषयानुक्रमणिका लिखा है) ७८८७६. (+) २४ जिन परिवार, ८४ लाखपूर्वमान व इंद्राणी संख्यादि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, २६४९). १. पे. नाम. तीर्थंकर चउवीसनो परिवार, पृ. ६अ, संपूर्ण. २४ जिन परिवार संख्या विचार, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कोष्ठक में दिया गया है.) २. पे. नाम. ८४ लाख पूर्व मान, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में आठवे द्विप की परिधी की संख्या लिखी है. ८४ लाख पूर्वमान-मास पक्ष दिन घडी आवलिकादि विचार, पुहिं., गद्य, आदि: ५९२७०४० पूर्व ८४ लख; अंति: ८४ लख पूर्व की० ०००. ३. पे. नाम. इंद्र के आयुष्य में च्यवन होनेवाली इंद्राणी की संख्या, पृ. ६आ, संपूर्ण.. इंद्र के आयुष्य में च्यवन होनेवाली इंद्राणियों की संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: २८५७१४२८५७१४२८५ पहिल; अंति: एतली देवी उपजइ चवइ. ७८८७७. मूर्तिपूजामतखंडन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३८). मूर्तिपूजामतखंडन सज्झाय, श्राव. अचल ओसवाल, मा.गु., गद्य, आदि: समकित दृष्टि साचउ; अंति: अचल० समकित उजपालउ. ७८८७८. सीतासती सज्झाय व तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. विनयविजय (गुरु पं. सूरविजय, तपगछ); गुपि.पं. सूरविजय (तपगछ); पठ. ग. सिंघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४२). १.पे. नाम. सीता सज्झाय, प. १अ-१आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, मु. जयवंत शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि वीनवू; अंति: मइ सीवपुर ठाम रे लाल, गाथा-१३. २.पे. नाम, २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सैजै ऋषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहे एम की, गाथा-१५. ७८८७९ (+) चक्रवर्ती आदि की गति, काल प्रकार व अनागत २४ जिन नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ५३४२९). १.पे. नाम, चक्रवर्ती-वासदेव-प्रतिवासदेव-बलदेव गति विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: भरतः सिद्धः१ सगरः; अंति: ९ प्रतिवासुदेवाः. २.पे. नाम. ३ उत्सर्पिणी आदि काल प्रकार विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., गद्य, आदि: कालस्त्रिविधः; अंति: (१)न्नैकस्त्वस्त्येवेति, (२)प्रतिपन्नः संभावनीयः. ३. पे. नाम, अनागतचौवीसी जिन नाम व पूर्वभव नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम व पूर्वभव नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रेणिकजीव पद्मनाभ; अंति: भद्रकृत् जिनः. ४. पे. नाम. चक्रवर्ती-वासुदेव-रुद्र आयु देहमान व जिन अंतरकाल कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७८८८० गुणस्थान चढवापडवानो विचार व सत्तानो अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १७४५३). १.पे. नाम. गुणस्थान आरोहावरोह विचार सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. गणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चउरिक्कदपणपंचय; अंति: तिय दोहिं गच्छंति, गाथा-१. गणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: चउक्क० च्यारि पैडा; अंति: चवदमाथी मोक्ष जावै. २. पे. नाम, सत्तानो अधिकार आदि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलां गुणठाणांथी; अंति: सुधी १३८नी सत्ता छै, (वि. सारिणीयुक्त) । ७८८८१ (4) चरणसित्तरी करणसित्तरी गाथा, तत्वविचार श्लोक सह विवरणादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले.ग. उदयसहज गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११,१४४४९). १. पे. नाम, चरणसित्तरी करणसित्तरी गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. करणसित्तरीचरणसित्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय ५ समणधम्म १०; अंति: ४ चेव करणंतु २, गाथा-२. २. पे. नाम. तत्त्व विचार श्लोक सह विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि९ व्रत१२; अंति: ३४ ज्ञेयाः सुधिभिः, श्लोक-१. तत्त्व विचार श्लोकसंग्रह-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ अजीव २ पुण ३; अंति: १४ ए गुणठाणा विचार. ३. पे. नाम. चौवीस दंडक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ दंडक द्वार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नेरइया असुराई पुढवाई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "वंतर १जोइसिअ १ वेमाणी १" पाठाश तक लिखा है., वि. यह कृति हासिये में लिखी गयी है.) ७८८८२. १६ सती सज्झाय, दानशीलतपभावना सज्झाय व औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, अन्य. सा. जोता आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १४४४२). १.पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रेमराज, पुहि., पद्य, आदि: सीलसु रंगी भातसु ओडण; अंति: प्रसन्न सदा पद्मावती, गाथा-७. २.पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जयैतादास, मा.गु., पद्य, आदि: दान एकमन दे रे जीवडा; अंति: कहे जयंतीदास रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-धैर्य, मा.गु., पद्य, आदि: सबते सबर कहि मोहेनि; अंति: ते सबर कहिं मोहिनि, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कुगुरु परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानी का गुरु चालणि; अंति: सो कणि कणि राखंत, गाथा-२. ७८८८३. (4) सीमंधरजिन चैत्यवंदनादि व महावीरजिन स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२,१५४५०). १.पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदं जिणवर विहरमाण; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-३. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १७१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूरब विदेह पुप्फलावइ; अंति: जिनहरख घणे ससनेह, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मनसुध वंदो भावै भवि; अंति: श्रीजिनहर्ष सहाईजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तति, म. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ ताता जग; अंति: जिनचंद० एहवी वाणी, गाथा-४. ७८८८४. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५४११, १२४३८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीज्ञाताजी कै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-४ तक लिखा है.) ७८८८५ पट्टावली, २४जिन परिवार व सामायिक विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१२, १३४३९). १. पे. नाम. पट्टावली खरतरगच्छीय, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: निश्शेष सूर्यावली, श्लोक-७. २. पे. नाम. २४ तीर्थंकर परिवार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. २४ जिन परिवार, म. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: चवदैसेवावन गणधार लाख; अंति: करमसी० प्रणमुं सही, गाथा-६. ३. पे. नाम. सामायिक लेने की विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक लेने की विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंति: पछै नवकारवाली फेरीजै. ४. पे. नाम. सामाइक पारण विध, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक पारने की विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण तस्स; अंति: तस मिच्छामि दुकडं. ७८८८६. अतिचार आलोयणा, भोगोपभोगपरिमाण विचार व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, ९४३४). १.पे. नाम. अतिचार आलोयणा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में साधारण दोहा जैसा कुछ लिखा गया है. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजु चउपहर दिवस माहि; अंति: कृत अतीचार चिंतवणा. २. पे. नाम, भोगोपभोगपरिमाणव्रत विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः (१)अव भोगोपभोगपरिमाण, (२)एक वार भोग मै आवै ते; अंति: ते निश्चै भोगोपभोग. ३. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमः सिद्धं अ आ इ ई; अंति: व श ष स हल्लं क्षः. ७८८८७. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १३४२३). महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. ७८८८८. रूकमणीराणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पारोला, प्रले. रूपराज; पठ. श्रावि. नवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १०x२८). रुक्मणीसती सज्झाय, म. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामोगाम नेमि; अंति: राजविजय रंगे भणे, गाथा-१४. ७८८८९ (+-) ५ शरीर सर्वबंध देशबंध विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५-२५.५४११, १८४४२). For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ शरीरे सर्वबंध देशबंध विचार, मा.गु., गद्य, आदि: थित० अलपाबहुत उदारीक; अंति: (-), (पू.वि. "नवमा आपरी ज" पाठांश तक है.) ७८८९० (+) प्रत्याख्यानसूत्र का बालावबोध व प्रत्याख्यान गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १७७५५). १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र का बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध *, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: अनत्थणाभोगेणं अनत्थ; अंति: तो व्रत भंग होवै. २.पे. नाम. पच्चक्खाण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण पारणक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: फासियं पालियं चेव; अंति: आज्ञया आराधितत्वात, गाथा-६, (वि. अंत में- "२शत १उद्देश स्कंधक प्रतिमावहनाधिकारे टीका" ऐसा लिखा गया है.) ७८८९१. विविधसंख्यक बोल, वनस्पती प्रमाण व धोवण आदि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२५.५४११.५, १७४४६). १. पे. नाम. बोल संग्रह-एकद्व्यादि संख्याद्वारबद्ध पदार्थ बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: २ना बोल राग ने द्वेष; अंति: संसतो४ अहछंदो५. २. पे. नाम. वनस्पति, प्रमाण, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पति मान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ३८क्रोड ११लाख १२हजार; अंति: वनस्पति जगतमां छे. ३. पे. नाम. लोहभार प्रमाण, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ राजलोक प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: ३क्रोड ८१लाख १२हजार; अंति: पण प्रथिवी पर नावे. ४. पे. नाम. पद प्रमाण, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___ मा.गु., गद्य, आदि: ५१क्रोड ८लाख ८४हजार; अंति: २१ गाथाये एक पद थाय. ५.पे. नाम. धोवण पाणी विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. धोवणपाणी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ उपवासमा पीठानो; अंति: एक उनो पाणी खपे. ७८८९२. (+) सिद्धदंडिका स्तवन, यंत्र व स्तव सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: सिद्धदंडिका, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४६१). १. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: विपुल विमलमति विमल; अंति: नाह प्रणमिस पाय रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. सिद्धदंडिका यंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका स्तव-यंत्र, सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तव सह अवचूरि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदित्यजसोनृपाद्याः; अंति: (-). ७८८९३. शत्रुजयतीर्थोद्धार प्रशस्ति संग्रह व प्रज्ञापनासूत्र पद नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, ३६x२८). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थोद्धार प्रशस्ति संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संवत १५८७ वर्षे शाके; अंति: भद्रसेनादि सत्परिकरै, (वि. सप्तमोद्धार वर्ष १५८७ की व वर्ष १६७५ वाली इस प्रकार दो प्रशस्तियाँ हैं.) २. पे. नाम. ३६ प्रज्ञापना पद नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रज्ञापनापद १ स्थान; अंति: वेदना ३५ समुद्धात ३६. ७८८९४. (+) पाक्षिक स्तुति, नेमिजिन स्तुति व सीमंधरजिन स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३४). १.पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. १६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धिः श्लोक-४. २. पे. नाम नेमिजिन स्तुति, पृ. १६अ १६आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि श्रावण सुद दिन पांचम अति सफल करो अवतार तो गाधा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पू. १६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. " मा.गु., पद्म, आदि: सीमंधरस्वामी केवला; अंति: आवागमन नीवार वार, गाथा-१, संपूर्ण. ७८८९५. (+#) साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५X११, १०x४० ). साधारणजिन स्तवन, मु. क्षमासागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मूरत थारी सारी; अंति: साहिब भवसायर निस्तार, गाथा-७. וי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८८९६. गौतमपृच्छा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. जावड ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी गोयम, प्र.ले. श्लो. (१२७६) मझ मुखि एकज जीभडी (१२७७) मसि काली गुण उजला, (१२७८) लेखिणि भांगी मसि ढली. (१२७९) किहा कोइलि किहा अंवन, जैदे., (२५x१०.५, १३X३१). गौतमपृच्छा चोपाई, मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: प्रणमीअ वीर मुगति; अंति: एहवु जाणी म करजो पाप, गाथा ६४. ७८८९७. आलोयण एकावनी, संपूर्ण वि. १९४५ आषाढ़ कृष्ण, ३०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल जोडीयाबंदर, प्रले. मोतीचंद कपुरचंद, पठ. सा. जीवीबाई माहासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी आलोयण एकावनी, दे. (२५४१२, ७-९४३७)औपदेशिक सज्झाय-आलोयण, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्रपाठ सु अर्थ; अंति: मुझ मीछामी दुक्कडं, गाथा-५१. ७८८९८. औपदेशिक दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) = ४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५X११, १३X३४). औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दोहा-११ अपूर्ण से ६७ अपूर्ण तक है., वि. संस्कृतादि के जैन धार्मिक श्लोकादि भी विशेष मात्रा में दिये गए हैं.) पे. ३, ७८८९९. (+) दानशीलतपभावना संवाद, धर्मछत्रीसी व मनगुणतीसी सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. प्र. वि. हुंडी: दानशीलतप, संशोधित. जैवे. (२६११.५, १७४५३-५६). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद. पू. १२- ३अ, संपूर्ण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि प्रथम जिनेसर पाय; अंति समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल ४, गाथा- ९७ . १३५. २. पे. नाम धर्मछत्रीसी, पू. ३अ ४अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: साचे मन जिन धर्म; अंति: इम कहि श्रीसार रे, गाथा- ३६. ३. पे. नाम मनगुणतीसी सज्झाय, पू. ४अ ४आ, संपूर्ण. १७३ आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा म मेलइ रे इउ; अंति: र कहि पाप पणासि दुरि, गाथा-२९. ७८९०० (+) केशीद्विपंचाशिका, संपूर्ण, वि. १७७२, चैत्र शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. अणहिलपुर पाटण, प्र. मु. विनयचंद ऋषि (गुरु मु. मोहन ऋषि); गुपि मु. मोहन ऋषि (पासचंदसूरिगच्छे), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसामलाजी प्रासादात्, संशोधित, जैदे. (२६४१२, १४४४१). केशीद्विपंचाशिका चोपाई, मु. पासचंद, मा.गु., पद्य, आदि पणमउ सिरिजिण पास अंति घरी पभणइ श्रीपासचंद, गाथा-५२. ७८९०१ (+) चौवीसजिन अंतरकाल, भववर्णन स्तवन व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११.५ ११५२६). १. पे नाम. २४ जिन अंतरकाल स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. २. पे. नाम. चौवीसजिन भववर्णन स्तवन, पृ. २अ - २आ, , संपूर्ण. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि जिनचउवीस त्रिकाल ए अति श्रीदेव० उ आज ए, गाथा- १६. For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तवन-आयमानगर्भित, म. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय चोवीसे जिन; अंति: श्रीदेवै इम गुण गाया, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-३. ७८९०२. (+) जिनभवन चौरासी आशातना स्तवन व प्रहेलिका, संपूर्ण, वि. १९१४, आश्विन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. अबीरचंद ऋषि; पठ. श्राव. लक्ष्मीपतिजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १२४३७-४०). १. पे. नाम. जिनभवन चौरासी आशातना सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ८४ आशातनापरिहार स्तवन-जिनभवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर प्रणमी; अंति: वीर जिनेसरनी ए बांण, गाथा-२८. २. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ७८९०३. (+) दशपच्चक्खाणनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२,१०४३६). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामविजय तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ७८९०४. (#) साधुपाक्षिक अतिचार-खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, अन्य. मु. नन्नसूरि; श्राव. खेमराज; प्रले. श्राव. किल्याणमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३२-३६). साधुपाक्षिकअतिचार-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: साधुसमाचारी विषईओ, (पू.वि. ज्ञानाचार अपूर्ण से है.) ७८९०५. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११.५, १६४२७-४८). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८९०६. समाचारी, प्रतिप्रत्ति विधि व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९१, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. जयपत्तन, प्रले. पं. मनरुप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १८४५२-५५). १.पे. नाम. खरतर समाचारी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सामाचारी-खरतरगच्छीय, आ. जिनपतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आयरिय उवज्झाए इच्छाइ; अंति: वीरस्स छ कल्लाणया, गाथा-६८. २. पे. नाम. नवांगीवृत्तिकार, प. २अ-२आ, संपूर्ण. पदव्यवस्था, आ. जिनदत्तसरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: श्री युगप्रधानस्य; अंति: (१)एक कंबलो दीयते, (२)प्रवर्तितव्यम्. ३. पे. नाम, मोती उत्पत्ति के ८ स्थान, पृ. २आ, संपूर्ण. ८ मोती उत्पत्ती स्थान, पुहि., गद्य, आदि: आठ स्थानक में मोती; अंति: निलाड में ऊपजै, (वि. सूत्रकृतांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध आहारकी उद्देशा का संदर्भ दिया गया है.) ७८९०७. (+) चोवीसजिन आंतरा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १३४३६-३९). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीनमीनाथ निर्वाण; अंति: सर्वसूत्रथी जाणवू. ७८९०८. (2) सात व्यसन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. गोपाल ऋषि; पठ. सा. तारा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सातविसन, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०४३२). ७ व्यसन सज्झाय, ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: काया कामिनी जीवस्युं; अंति: रीतम एह सीख हमारीयां, गाथा-८. ७८९०९ पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मीठानगर, प्रले. पं. सुमतिविजय; पठ.सा. चंदना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ८x२४). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: आजसू दिन में बाइ जीन; अंति: अरज अमरचंद पावै, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १७५ ७८९१०. (+) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ.सा. समयसुंदरि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,११४३०-३३). सीमंधरजिन स्तवन, आ. विशालसोमसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकलसुखकर श्रीसीमंधर; अंति: श्रीजगगुरु ए पाईउ रे, गाथा-२८. ७८९११. (+) जंबूकमार चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. केकडी, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: जंबुक, संशोधित., दे., (२६४१२, १५४३५). जंबुकमार चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जणेसर वेहरता; अंति: राज मुनीवर आया, ढाल-४. ७८९१२. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१५(१ से १५)=२, प्र.वि. हुंडी: दसमी०, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १६४३३-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), अध्ययन-१० चूलिका २, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-७ गाथा-४९ अपूर्ण से है व अध्ययन-८ गाथा-३५ अपूर्ण तक लिखा है.) ७८९१३. आणंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, १५४३०). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२३ से ढाल-३ गाथा-५७ अपूर्ण तक है.) ७८९१४. (+) दशार्णभद्र चौपाई व नेमराजुल बारमासो, संपूर्ण, वि. १८४९, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. दीपचंद्र; मु. केशवचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४७-५०). १.पे. नाम. दशारणभद्र चतुर्थढाल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, म. कशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: कुसल सीस गुण गाइयै, ढाल-४. २. पे. नाम. नेमराजुल बारमासो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: हो सांमी क्युं आव्यु; अंति: श्रावणीयांरी तीजो, गाथा-१८. ७८९१५ (#) मौनएकादशी दिने १५० कल्याणकन गणन, संपूर्ण, वि. १७८४, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सत्यपुरनगर, प्रले. पं. मोहनविजय गणि (गुरु पं. सुमतिविजय गणि); गुपि.पं. सुमतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १८४४५-४८). मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: श्रीआरण्यकनाथाय नमः. ७८९१६. (+) नागश्री सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. हस्तुश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १५४३४). नागश्री सज्झाय, म. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मघोष आचार्यना; अंति: सब दख जात परेरा रे, ढाल-२, गाथा-४६. ७८९१७. (+#) सौभाग्यपंचमी स्तवन व शकुन विचार, अपूर्ण, वि. १८२४, चैत्र शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. ज्ञानशील (गुरु ग. राजशील); गुपि.ग. राजशील, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३०-३३). १. पे. नाम. सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. हर्षशील, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: हर्षशीयल० संस्तव्यौ, ढाल-२, गाथा-२१. २. पे. नाम. शकुनविचार संग्रह, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वदश चिकनु विचार; अंति: (-), (पू.वि. खूर शकुन अपूर्ण तक है.) ७८९१८. (+#) अक्षर द्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: कका बत्तीशी, पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३०). अक्षरबत्तीसी, मु. महेश, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: कका ते किरिया करी; अंति: मुनि महेस हित जाण, गाथा-३५. For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८९१९ (+) बृहत्नमस्कार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९९, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले. मु. दोलतराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १०४३६-३९). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-१३. ७८९२० (+#) वृद्धनवकार, संपूर्ण, वि. १८४०, ?, वैशाख कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-१३. ७८९२१. वीरनं पारणं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ., (२५४१२, ११४२७). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: नमे मुनि माल जग, गाथा-३२. ७८९२२. (+) ६२ मार्गणाद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २४४१५). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. क्रमांक-१०३ तक है., वि. कोष्ठक में दिया गया है.) ७८९२३. प्रायश्चित्तप्रदान बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १८x१०-३५). आलोयणाप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान आसातनाई जघन्य; अंति: गीतार्थ मुखे जाणज्यो. ७८९२४. परभंजना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. खेटकपुर, प्रले. पं. रत्नविजय (गुरु ग. नेमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रशस्ति मिटाई गई है., जैदे., (२६४१२, २०४३३). प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गीर वैत्याढने उपरें; अंति: देवचंद्र०लील सदाई रे, ढाल-३, गाथा-४९. ७८९२५. खंधकमुनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११.५, २०४४५-४८). __ खंधकमुनि चौढालिया, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमुं वीर सासनधणीजी०; अंति: हो करज्यो सहु कोय, ढाल-४. ७८९२६. रात्रिभोजन व गजसुकमाल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, ११४३२). १. पे. नाम. रात्रीभोजननी सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतलि माहि; अंति: साध्या आतम काज रे, गाथा-१९. २. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७८९२७. इलायची पुत्र चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १३४३२). इलाचीपुत्र चौढालीयो, मु. भूपति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुणनीलो; अंति: नदिन दोलत थाय मुनीसर, ढाल-४. ७८९२८. (+) स्तवन, स्तुति व यंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १६४९-३७). १.पे. नाम, अल्पबहु यंत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: पर्याप्ता विशेषाधिका, (पू.वि. बोल संख्या-६५ से है.) २. पे. नाम. महावीरस्वामि स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरनरपति सेविं सदा; अंति: जिनलाभ० मिले तसु आय, गाथा-१५. ३. पे. नाम. १४ गुण, पृ. ३आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गणठाणो १: अंति: १४ अबंध. For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १७७ ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यो योगैर्योग योगैर्य; अंति: पटदं पाटदं पोटदं च, श्लोक-१. ७८९२९ (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३३-३६). महावीरजिन स्तवन, मु. विद्याचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धुरि समरी समरथ सरसती; अंति: द्याचंद वंदइ जगगुरो, ढाल-२, गाथा-३५. ७८९३० (+) साधुआचार बोल, आगम विचार व लुंकामतमंडन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडीः सिद्धांतनी हुंडी., संशोधित., जैदे., (२६४१२, २४४५७-६०). १.पे. नाम. साधुजीने इतरा बोल आचरवा नही, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. साधु आचार १०८ बोल, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: जती थईनै आधाकर्मी; अंति: त्था नसीतमाये उ.३. २.पे. नाम. ३५ साधु उपकरण विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पत्तं. कहतां पात्रा३; अंति: संजम पालवानै काजै छै. ३. पे. नाम. सूत्र संख्या , पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ३२ आगम नाम, अध्ययन व गाथा संख्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ११ अंग १२ उपांग; अंति: सज्झाय सूत्र जाणवा. ४. पे. नाम. सूत्र पढण की मरजाद, पृ. २आ, संपूर्ण. आगम पठन अधिकारी, मा.गु., गद्य, आदि: ३ वरस दीखत कुं; अंति: कुं सर्व सूत्र भणावै. ५. पे. नाम. सूतर विरुध बोल, पृ. २आ, संपूर्ण. चर्चा संग्रह-स्थानकवासीमतमंडन, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: उवाइ भगवती पनवणा मधे; अंति: ग्यांनी विचारी जो जो. ७८९३१ (+) सोल स्वप्न, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३०). १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपूर नामे नगर; अंति: जूं उतरो भव पारो रे, गाथा-३७. ७८९३२. तेतीस को थोकडो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४११.५, २४४४३). ३३ बोल थोकडा-जैन पदार्थज्ञान, मा.गु., गद्य, आदि: १इहलोकभय २परलोकभय; अंति: (-), (पू.वि. ३३ में से २८वा अपूर्ण तक है.) ७८९३३. धन्नामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्रावि. लक्ष्मीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: धन्नानीसझाय, दे., (२५४११.५, ११४३६-४०). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. झवेरलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४२, आदि: काकंदी नगरी हुतीस रे; अंति: झवेरलाल० अनुसार रे, गाथा-१५. ७८९३४. (+) मेघरथ राजा सज्झाय, दशार्णभद्र सज्झाय व सुबाहुकुमार सज्जायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडीः स्तवन., संशोधित., दे., (२६४१२, २३४६१). १. पे. नाम. मेघरथराजा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९२९, आदि: धन मेगरथराजा राख्यो; अंति: तिलोय रिष० तणा ए भाव, गाथा-१५. २. पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: पधारीया वीरजिणंद; अंति: हीरालाल० संत की लार, गाथा-११. ३. पे. नाम. सुबाहुकुमार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., पद्य, वि. १९६१, आदि: सफल कर लीनो नरभव आप; अंति: नंदलाल०वरते मंगलाचार, गाथा-४३. ४. पे. नाम. ललितांगकुमार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ललितांगकमार सज्झाय-शील विषये, म. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९५९, आदि: सुंदर सहर मनोहरो कवर; अंति: हीरालाल०हर्ष होल्लास, गाथा-१३. ७८९३५. गोचरीना ४२ दोष, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४१२, २०४४८-५२). For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: साधु थईने अठार अति (-), (वि. अंतिमवाक्य आंशिकरूप से खंडित व अस्पष्ट है.) 3 ७८९३६. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी प्रकृतिप जैदे. (२५४११.५, २०४४५-४८). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि आठकर्मना नाम पहिलो अंतिः धर्मने विषे उदम करवो. ७८९३७. नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X११.५, ११X२७-३०). नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसमुद्रविजय नरिंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - २१ अपूर्ण तक है.) ७८९३८, (४) भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५x११, १५X३५-३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि हम नवि कीजि हो सगुण अंति रे लाबधि ललि लली, गाथा - २९. " ७८९३९. (+) संयोगी भांगा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६११, २४४५४-६०). संयोगी भांगा, मा.गु. गद्य, आदि (-); अति (-) (वि. कोष्ठक में भी लिखा गया है.) ७८९४०. पच्चक्खाण भांगा व इंद्रिय विषय विचार, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, वे., (२५.५x११.५, १५x२५-४५), १. पे. नाम. भगवतीसूत्र श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र - श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि (१) श्रीभगवतीसूत्रे शतक८, (२) त्रिविह त्रिवि अंति: अनुमोदु नही कायासु ३. २. पे. नाम. ५ इंद्रिय विषय, पृ. २आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय विषय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: स्रोत्रेंद्रिनो आकार; अंतिः असंख्यातमै भाग ५. ७८९४१. जैन कानून, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, वे. (२६११.५, २०x४२-४७). " बोल संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि (-) अति (-). ७८९४२. (*) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, १८x४२). १. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पाठक धरम वरधान धार ए, डाल - २, गाथा २९ (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पू. २आ-३अ संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गोयम सूणो; अंति: समयसुंदर० रसालो रे, गाथा-२२. ३. पे. नाम. इलापुत्र सज्झाय, पू. ३अ संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि नाम इलापुत्र जाणीइ अति: करे समयसुंदर गुण गाय, गाथा- ९. ४. पे. नाम. अमलरी सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय अमलवर्जनविषये, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीगुरुवाणी मन घरी अंति: कहे माणिक मनोहार, गाथा- २३. ५. पे. नाम. तमाखु सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय-तमाकु त्याग, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ८ तक है.) ७८९४३. शत्रुंजयस्तवन इय व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-१ (१)=२, कुल पे. ३, जैवे. (२६४११.५, 1 १२४३३). १. पे. नाम. शेत्रुंजय स्तवन, पृ. २अ- ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org १७९ आदिजिन स्तवन-बृहत्शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रेम० पामो भवपार ए, गाथा-४२, (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण से है. ) २. पे नाम. शेत्रुंजय स्तवन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेतुंजे ऋषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहे इम, गाथा - १८. ३. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी त्रिसलासुत; अंति: (-), (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ७८९४४. मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (२५.५X११.५, १०X३३-३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७८९४५ (+) जीवअजीव भेद विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६-१४(१ से १४) =२ पू.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, १५-१८x४५). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ७८९४६. (+४) सिद्धांत विचार व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३२-३० (१ से २९,३१) २. कुल पे. ८. प्र. वि. हुंडी: सिद्धांतसार, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०, ५-२०x४७-५०). १. पे. नाम. चौविसजिन नाम, चक्री, वासुदेव, देहाबुमान आदि विवरण, पृ. ३०अ, संपूर्ण २४ जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, नाम देहायुमान विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सामायिक के बत्तीस दोष, पृ. ३० अ-३०आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम १२ कायाना दोष; अंति: १० दोष मनना जाणिवा .पे. नाम. ३२ व्यंतरेंद्र नाम, पृ. ३० आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कालिंद्र १ महाकालिंद, अंति: पयंगपति ३२. ४. पे. नाम. तेत्रीस गुरु आशातना, पृ. ३०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: गुरु आगलि आसन्न जाता, अंतिः (-), (पूर्ण, पू.वि. ३२वाँ बोल अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. आचार्य के छत्रीस गुण, पृ. ३२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ३६ आचार्यगुण वर्णन, प्रा.मा.गु., पद्य, आदि (-) अंति: गुणा हुति छत्तीसं (पू.वि. ३६वाँ गुण अपूर्ण से हैं) ६. पे नाम, छत्रीस वंश नाम, पृ. ३२अ, संपूर्ण. ३६ राजकुल नाम, मा.गु.. गद्य, आदि सूर्यवंश १ सोमवंश २; अति: ३४ होडवंश ३५ मारववंश. ७. पे. नाम. ५६३ जीव के भेद, पृ. ३२अ, संपूर्ण. ५६३ भेद जीवराशि क्षमापना, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना पांचसइंत्रिसठ; अंति: मिच्छामि दुक्कडं.. ८. पे. नाम बोल संग्रह, पू. ३२आ, संपूर्ण बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७८९४७ (४) आदिजिन, पार्श्वजिन व औपदेशिकादि पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-१ (१)-२, कुल पे, ९, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १०X३३). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पू. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. गुमान, पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति: गावत हे हिरदे ले लाइ, गाथा-३, (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-केसरियाजी, पं. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: गजरो चढाउ रे मारा; अंति: ऋषभदास ० गुण गावं रे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव ऋषभदेव ऋषभदेव; अंति: लाक्ष्य जयत भणे वाणी, गाथा-३. ४. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. माल मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: शंतिनाथ शंतिकरण; अंति: जैसे जपे मुनीमाल, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद-गुरुगुण, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुने पकडी बांह; अंति: कहेत क्षमाकल्याण, पद-३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हां हे श्रीपारस सेतो; अंति: गुणीजन चरण नमइया, गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. रत्नविजय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनराज केशतर; अंति: रत्न शिस गाये जी, गाथा-३. ८. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. अमृत, पुहि., पद्य, आदि: देखन दे एसे नेम; अंति: अमृतरंग शिवसुख दानी, गाथा-३. ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-मिथ्याभिमान परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे मन में मैल घणा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ तक ७८९४८.() मानतुंगमानवती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९७८, फाल्गुन शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. मु. मनोहरलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, २५४५५-५९). मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदिः श्रीजिनशांति जिनेसरू; अंति: सित्तरे जयनगरे ए कहि, ढाल-८. ७८९४९ (+) धर्मरुचि लावणी, अमरकुमार लावणी व आध्यात्मिक होरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: लावणी, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२, १३४३४-३८). १.पे. नाम. धर्मरुचि लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धर्मरुचि अणगार लावणी, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी धर्मघोष; अंति: हीरालाल धरी हरख हीया. २. पे. नाम, अमरकुमार लावणी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: देखो जगत की रीत; अंति: रालाला० भवभव सुखकारी, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुमतिजिन होरी, पृ. २आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरी, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: असी खेलो रे जीव सदा; अंति: हीरालाल० महीथुन चोरी, गाथा-११. ७८९५०. चंदनबाला लावणी व केशीगणधर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १९४३५-३८). १.पे. नाम. चंदनबालानी लावणी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. चंदनबालासती लावणी, मा.गु., पद्य, आदि: मोटी सति श्रीचंदनबाल; अंति: एसा हुआ अंजामजी, गाथा-२२. २. पे. नाम. केशी गणधर सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. केशीगणधर सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: पुरीसादाणी पासजीनेसर; अंति: पनी सुख अनंता पायेजी, गाथा-२२. ७८९५१. (#) वंकचूल व स्थूलिभद्र कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३५-३८). १. पे. नाम, वंकचूल कथा, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एहवे जंबुद्वीपे तेह; अंति: ल पालो जीम सुख हुवै. २.पे. नाम. थूलिभद्र कथा, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १८१ स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, मु. वरमल्ल, मा.गु., पद्य, आदि: इण भरत खेत्र पाडली; अंति: (-), (पू.वि. पाडलीपुर नगरी का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७८९५२. महावीरजिन, पार्श्वजिन व शत्रुजयतीर्थ स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, कुल पे.६, जैदे., (२५४११, १०x२७-३०). १.पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ.१अ, संपूर्ण. पं. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: ॐ नमः सिद्धाचलत भैरव; अंति: जिनहर्ष० जय जयकारा, गाथा-४. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनहर्षसरि, पुहि., पद्य, आदि: राखंरे हमारा घटमें; अंति: जिनहर्षसूरि० ही राखै, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नरेस प्रधान; अंति: प्रभुगुण गावे रे, गाथा-११. ४. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: इम विमलाचल गुण गायै, गाथा-१५. ५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पावापुरश्री वीर; अंति: जिनहर्ष० पद पाता, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, ग. रंगकलश वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरीक प्रभु पासजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७८९५३. (+) कर्मग्रंथ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १४४४५-४८). कर्मग्रंथ के बोल, मा.गु., गद्य, आदि: कहो स्वामी काणु हे; अंति: जरा कीधा ते प्रतापे. ७८९५५. (#) मोतीकपासीया संबंध व पार्श्वजिन श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. विजैचंद (गुरु मु. जयचंद); गुपि. मु. जयचंद (गुरु मु. कपुरचंद ऋषि); मु. कपुरचंद ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४३-४६). १. पे. नाम, मोतीकपासीया संबंध, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रुप सोहामणो; अंति: चतुरनरां चमतकार, ढाल-५, गाथा-१०८. २.पे. नाम, पार्श्वजिन श्लोक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन सलोको, मु. हरख, मा.गु., पद्य, आदि: चरम जिणेसर प्रणमीय; अंति: जिण गुणगाय हरख सवायै, गाथा-१३. ७८९५६. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, ११४३२). १.पे. नाम. अनागत चौवीसीजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २४जिन स्तवन-अनागत, म. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: न्यायसागर संघ जगीस, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ दस गणधर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. १० गणधर सज्झाय-पार्श्वजिन, म. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभाति ऊठीनै पहिलं; अंति: न्यायसागर० लीजइ. ३. पे. नाम, महावीर गणधर सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ११ गणधर सज्झाय-महावीर, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव गणधर वांदीइं; अंति: इम वीनवै मनउलट आणी, गाथा-७. ७८९५७. (#) नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १२४४४). नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: भयो भोर उठो भवि; अंति: वाणि इम लाधो वंदे, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७८९५८. (+) योगोद्वहन विधि, अपूर्ण, वि. १९३१, पौष शुक्ल ११, श्रेष्ठ, पृ. ३८- ३७ (१ से ३७) = १, ले. स्थल. मेडतानगर, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४७९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (४८०) जले रक्ष स्थले रक्ष (१२६१) पोथी अरु पदमनी दे. (२५.५४१२, ११४२५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगोहन विधि, मा.गु., गद्य, आदि आवश्यक योगदिन ८ प्रथ अंतिः सुयोगरी किरिया कीजे, संपूर्ण. ७८९५९. चोवीसतीर्थंकर माता पिता गणधरादि कोष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैये. (२५.५४११, २५४६४). २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु., को, आदि (-); अति: (-). ७८९६०. (*) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) १, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२५.५x११, . १३x४२-४९). महावीरजिन स्तवन, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: विजयदेवसूरि० अपार, गाथा-३०, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा- २३ अपूर्ण से है., वि. गाथांक - २६ एवं २७ दो बार लिखा गया है.) ७८९६१ (७) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२६.५५११, १३x४६). प्रश्नबोल संग्रह, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: मूलसूत्रना बीजा तु; अंति: (-), (पू.वि. प्रश्न-१२ अपूर्ण तक है.) ७८९६२. इक्षुकार कमलावती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२५x११, १०X३६-३९). इक्षुकार कमलावती सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि पुर इखुकार नृपबुका, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ७८९६३. (+) स्थानांगसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११९-११८(१ से १९१८) = १, प्र. बि. हुंडी: ठाणंग., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११.५, १९x१६). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, स्थान- ७ विनय प्रकार सूत्र ६८६ अपूर्ण मात्र है.) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. स्थानांगसूत्र- खालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-). (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. अपेक्षित स्थानों का बालावबोध लिखा है. चमरेन्द्रादि की सेना के देवादि संख्या का कोष्ठक दिया गया है.) ७८९६४. साधु समाचारी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : समकित की समाचारी, जैदे., (२५.५X११, १५X४९). साधु सामाचारी, मा.गु., गद्य, आदि जे साधु आधाकरमी उपास अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. समकित सहित क्रिया और समकित रहित क्रिया का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७८९६५. असज्झाय विचार व सचित्तअचित्त सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २, कुल पे. २, जैदे. (२६११. ११X३६-३९). १. पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. असज्झाव सज्झाच, मु. हीर, पुहिं., पद्य, आदि श्रावण काती मगसिर, अंतिः कवि नाम कहि उण परे, गाथा- १५. २. पे नाम सचितअचित सज्झाय, पू. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी सदा; अंति: (-), (पू. वि. गाथा २० अपूर्ण तक है.) ७८९६६. स्तवन चोवीसी, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १० ९(१ से ९) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे., (२६११.५, ११x२५-२८). स्तवनचीवीसी, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. अरनाथ स्तवन गाथा-६ अपूर्ण से मल्लिनाथ स्तवन तक है.) For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७८९६७. महावीरजिन स्तवन, सवैया व चौवीसजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. सा. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १२४२५-२८). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: सी सीधारथ कुल शणगार; अंति: मुनिभाव प्रधान, गाथा-५. २.पे. नाम. महावीरस्वामी सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसमा महावीर; अंति: ध्याने उपजे आणंद हे, गाथा-१. ३. पे. नाम. २४ जिन छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमेसर संभव साम; अंति: मुनी भाव प्रधान, गाथा-७. ७८९६८. पद व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, ९४३०-३३). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमी तप तुमे करो; अंति: समयसुं०पांचमो भेद रे, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, पुहिं., पद्य, आदि: मे मुख देख्यो पारस; अंति: प्रभुतारण तरण जिहाज, गाथा-५. ३. पे. नाम. बारह राशि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ राशि पद, मा.गु., पद्य, आदि: नगर गोरवै नारी आई; अंति: चूनो पान बीडी का अडी, गाथा-२. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सुंदरदास कवि, मा.गु., पद्य, आदि: साच वचन धन सीध बले; अंति: (-), गाथा-१, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ तक लिखा है.) ७८९६९ अज्ञात श्राविका के अभिग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १३४४०). अज्ञात श्राविका के अभिग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: देव श्रीअरिहंत गुरु; अंति: सूर्य डोरे की तरे. ७८९७० (#) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४३५-३८). नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजै सुत गुण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है., वि. गाथा-१० के बाद गाथांक नहीं दिया है.) ७८९७१. शिखामण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८१०, फाल्गुन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मानविजय (गुरु ग. दीपविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १४४३५-३८). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि कंता रे; अंति: उज्जलो ते पांमस्यें, गाथा-१०. ७८९७२. व्याख्यान पद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १८४४२). व्याख्यान पद्धति, मा.गु., गद्य, आदि: जय जय भगवान वीतराग; अंति: तत्संबंधनी वांचना. ७८९७४ (+#) ५ समवाय, पाखंडी भेद व वासी आहारादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १८४५६). १.पे. नाम. उपदेशरत्नमाला के बोल, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. उपदेशरत्नमाला-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: रागद्वेष न करइ, (पू.वि. "दुष्टर्नु सभा में आदर देवै" पाठ से है.) २. पे. नाम. ३० बोल पाचमा आराना, पृ. २अ, संपूर्ण. ३० बोल-दषमकाल, मा.गु., गद्य, आदि: १नगर ग्राम सरीखा; अंति: का राज थोडो होसी, (वि. भगवतीस्त्रवत्ति का संदर्भ दिया गया है.) For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम, पांच वादीनी चरचा, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.. ५ समवाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: काल१ सभावर नियत३; अंति: तो ते मिथ्याती छै. ४. पे. नाम. ३६३ पाखंडी भेद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ३६३ पाखंडीभेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आपणो जीव सासतो छै; अंति: एवं सर्व ३६३ मत हुवा. ५. पे. नाम. षट द्रव्यनी चर्चा के ११ दवार, पृ. ३आ, संपूर्ण. ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: परणाम१ जीव२ मुत्ती३; अंति: गति इग्यारमा दुवार११. ६. पे. नाम. वासी आहारग्रहण योग्यायोग्य विचार, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागजीना मार्ग; अंति: नथी बुधवंत विचारजो. ७. पे. नाम. २४ दंडक २६ द्वार विचार, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकी का १ दंडक; अंति: (-), (पू.वि. पृथ्वीकाय नाम अपूर्ण तक है.) ७८९७५. भक्तामर स्तोत्र, नेमिजिन स्तुति व नेमिराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११.५, ११४३३). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतीत होती है. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: मंगल करो अंबादेवीई, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमराजुल बे एक; अंति: रूपचंद०घर जयजयकार रे, गाथा-१०. ७८९७६. (#) समवसरण त्रिगडो, संपूर्ण, वि. १८९५, भाद्रपद शुक्ल, १, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: त्रिगडैरोत, मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५). पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरो जग; अंति: पाठक धर्मवर्धन धार ए, ढाल-२, गाथा-२७. ७८९७७. रामयशोरसायन चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६४११, ३२४१५). रामयशोरसायन चौपाई, म. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-३ की ढाल-४६ अपूर्ण से अधिकार-४ की ढाल-५९ अपूर्ण तक है., वि. ढालों की सभी गाथाएँ नहीं है बल्कि प्रत्येक ढाल की गाथाओं का आंशिक व स्पर्शमात्र विषयसंकेत है.) ७८९७८. मोरलीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, ११४३०). रुक्मणीसती सज्झाय, म. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणे जी, गाथा-१४. ७८९७९. गुरु विहार गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२.५, १२४३०-३३). गुरुविहार गहली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज रहो मन मोहना तुम; अंति: चतुरं गावति नरनार रे, गाथा-१७. ७८९८० (+) हुंडीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. मु. भगवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में अशुद्ध व अस्पष्ट कोई कृति लिखि हुई है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२-४२). औपदेशिक सज्झाय-आध्यात्मिक व्यापार, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नेम कहे सेठ सांभलो; अंति: मांडण० धोला उपर कालु, गाथा-२२. ७८९८१. सीमंधरजिन स्तवन व गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: स्तवन, जैदे., (२५.५४११,१३४४०). १. पे. नाम. श्रीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ सीमंधरजिन स्तवन, म. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीतेमंदर; अंति: जे हवे दरसण दोने साम, गाथा-१६. २. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुगण, मा.गु., पद्य, आदि: पापरूपणी खोड लागि रे; अंति: भव सायर पार उतारे, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखा है.) ७८९८२. (+#) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ९४२६-२९). १. पे. नाम. पंचासर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७१४, श्रावण शुक्ल, ३. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरमंडण, मु. ललितसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी गुरुपय अरविंद; अंति: ललितसागर सुख पाया रे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, वि. १७१४. पार्श्वजिन स्तवन-पहुवीहारमंडण, मु. ललितसागर, मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: ललितसागर जयजयकार, (वि. आदिवाक्य वाला भाग अन्य पत्र से चिपका हुआ है.) ३. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. ललितसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल नेमि प्रतइ इम; अंति: ललितसागरनी पूरो आस, गाथा-७. ४. पे. नाम, गुरु स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण.. गुरुगुण सज्झाय, मु. ललितसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो सारद पय प्रणमी; अंति: दिन दिन चढतइ नूर, गाथा-५. ७८९८३. (+) रतनबाईना सलोको, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हंडी: रतनबाईनो सलोको, संशोधित., जैदे., (२५४११, २१४४४). रतनबाई श्राविका सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता समरु तमने; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ७८९८४. प्रदेशीराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी: प्रदेसीनीजाल, दे., (२५.५४१०.५, २१४४५-४८). प्रदेशीराजा चौपाई, म. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ से ढाल-१२ गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७८९८५. महावीरजिन गहंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ९४२७-३२). महावीरजिन गहंली, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारो भोग करम; अंति: पाली कारज सीधो रे, गाथा-७. ७८९८६. (#) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३६). अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक*, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक किसी ढाल की गाथा-३ अपूर्ण से है व तत्पश्चात की ढाल गाथा-६ तक लिखा है.) ७८९८७. (+#) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४२८). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अरिहंतपद पूजा में "अरिहंत पद ध्यातो थको" से सिद्धपद पूजा "रूपातीत स्वभाव जे" गाथा अपूर्ण तक है.) ७८९८८ (#) शीखामण स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११४२५-२८). औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल कर्ण नमिजण जन्म; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७८९८९ चैत्यवंदन व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५.५४१२.५, १२४३३). १.पे. नाम. अतीतचोवीसी गीत, प. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अतित चोवीसी गीत, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अतीत चोवीसी वंदियइ; अंति: ध्यानथी अमृतपद पाउ, गाथा-५. २.पे. नाम. वर्तमान चोवीसी, पृ. १अ, संपूर्ण.. २४ जिन स्तवन-वर्तमान, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंद चितमां धरो; अंति: गुणीजन चित्तमां धार, गाथा-५. ३. पे. नाम, अनागत चौवीसी नाम स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-अनागत, मु. अमत, मा.गु., पद्य, आदि: सुप्रभातें प्रणमीइं; अंति: ऋद्धि कीर्ति श्रीकार, गाथा-५. ४. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: संभव साहिब सेवीइं; अंति: सही भवसायर तरतो, गाथा-५. ७८९९० (4) चैत्यवंदन व औपदेशिक गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२,१५४३७-४०). १. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मप्रभुने वासु; अंति: करीयें अहनिसि सेव, गाथा-११. २. पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ७८९९१. अरनिकमुनि व धन्नाकाकंदी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १५४३९). १. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या; अंति: समयसुंदर० फल सिधो जी, गाथा-८. २. पे. नाम, काकंदी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन्नो ऋषि वंदीयै; अंति: नाम थकी निस्तार रे, गाथा-७. ७८९९२ (+#) नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२-३५). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, म. अमतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-१४ गाथा-१ अपूर्ण तक है., वि. इस प्रत में 'चोक' की जगह 'ढाल' दिया गया है.) ७८९९३ (+) वैराग्य गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १७X४५-५०). औपदेशिक गीत-वैराग्य, श्राव. दामोदर, मा.गु., पद्य, आदि: मारग वहइ रे उतावलो; अंति: दामोदर० नाम आधार, गाथा-२४. ७८९९४. राईप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १४४३२-३५). राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावहि; अंति: १० म० १० व० १२ का०, (वि. सामायक लेने पारने की विधि व राईप्रतिक्रमण विधि.) ७८९९५ (4) गीत व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. १०, प्रले. मु. आणंदजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १८४५०-५३). १.पे. नाम. चंद्रबाहजिन गीत, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: करा लेख लीखा जइ है, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. भुजंगम गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. भुजंगजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सामि भुजंगम ताहरो; अंति: तूं मणिधर जिनराज, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमप्रभु गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नेम प्रभु माहरी; अंतिः जिनराज० अवसर पाम, गाथा-५. ४. पे. नाम. ईश्वर गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: परतख पास अमीझरो; अंति: पिण जीनराज कहायो रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ५.पे. नाम. वीरसेनजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: मुझने हो दरसण नायन; अंति: जिनराज० दे महाराज, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-संयमितवाणी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वेग पधारो महलथी; अंति: जिनराज० हुवे लाज, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-गुरुभक्ति, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: लही मानव अवतार गुरु; अंति: जिनराज. सेवक नेउ धरे, गाथा-५. ८. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: मिली आवो रे मीली आवो; अंति: मनवंछित सुख पामीजै, गाथा-५. ९. पे. नाम. बीस विहरमानजिन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीस जिनेसर जग जयवंता; अंति: जिनराज० जिनवीस, गाथा-५. १०. पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिणकुं कहीइं एक दुख; अंति: (अपठनीय), (वि. गाथा-१.) ७८९९६. आदिजिन लावणी व छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १३४३३). १.पे. नाम, आदिजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु. लालदास, मा.गु., पद्य, आदि: (१)गवरी के नंदन दुख के, (२)सुणज्यौ रे वातां राव; अंति: लालदास० पास खडा, गाथा-१८. २. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम में मात्र लावणी लिखा है. आदिजिन छंद-धुलेवा मंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आदिकरन आदिजगत आदिजिन; अंति: सूरनर सब कीरत करे, गाथा-४९. ७८९९७. () गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४३७-४०). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: होए घरे आंगणे ए, गाथा-७३. ७८९९८. पच्चीस क्रिया, संपूर्ण, वि. १९३९, कार्तिक शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विसलपुर, प्रले. श्राव. मोतीलाल मनसुखराम शा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: पचीसक्रिया, दे., (२६४११.५, ११४२८-३२). २५ क्रिया भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: १ काईयाक्रिया; अंति: एक पचीसमी आदरवी. ७८९९९. पद्मावती ढाल, संपूर्ण, वि. १९७४, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५.५४११.५, १३४३४). पद्मावती आराधना बृहत्-जीवराशिक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोटी सति पदमावती; अंति: पापथी छूटे ते तत्काल, ढाल-३, गाथा-८२. ७९००० (#) दशवकालिक ढाल, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रावण शुक्ल, ५, मध्यम, पृ.४, प्र.वि. हंडी: दसमीक०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १३४४०). ___ दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा निलो; अंति: जयतसी जय जय रंग, अध्याय-१०. ७९००१. वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, ७X२९). वासुपूज्यजिन स्तवन, म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो; अंति: एम जपे जिनराजो रे, गाथा-५. ७९००२. आदिनाथजीनुं चोढालीयुं, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. दीवबिंदर, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., ., (२६४११.५, १३४३७). For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन चौढालिया, ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: गणी मेघराज उल्लास ए, ढाल-४, गाथा-३४, (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१७ अपूर्ण से है.) ७९००३ (+) गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ११४२४). गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गौतम प्रणमी; अंति: प्रगट्यो परधान, गाथा-८. ७९००४. () अष्टादशनातरांस्वरुप स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५,११४४०). १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलाने समरु रे पास; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) ७९००५. आदिजिनविनती व छप्पनदिक्कुमारी जन्मोत्सव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १३४४७). १.पे. नाम, आदिजिनविनती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... आदिजिनविनती स्तवन-शत्रंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पांमी सुगुरु पसाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. छप्पनदिक्कमरीमहोत्सव स्तवन, प. १अ-१आ, संपूर्ण. ५६ दिक्कमारी जन्मोत्सव स्तवन, म. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर जिणंदनो; अंति: नितलाभ०कम कमला पावें, गाथा-१२. ७९००६. (#) चौवीसजिन गर्भकाल व अठासी ग्रह नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ९x४०). १. पे. नाम. चौवीसजिन गर्भावास काल, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन गर्भावास काल, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम, ८८ ग्रह नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अंगारक १ वीकाल २; अंति: ८६पुष्प ८७भाव ८८केतु. ७९००७. एकादशीतिथि सज्झाय व चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, ११४२८). १. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज मारे एकादशी रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः प्रभा; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५. ७९००८. (+#) चौरासीजीवयोनि क्षमापना व छकायविचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १३४४४). १.पे. नाम. ८४ जीवयोनि क्षमापना, पृ. १अ, संपूर्ण. क्षमापना गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि अणंते परभव; अंति: अविरइ० तेवि खामेमि, गाथा-१. २. पे. नाम. छः काय विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. काय जीव उत्पत्ति आयष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथविकाअ१ अपकाय २; अंति: १०२ वेमाणिदेवमवणंजया. ७९००९. महावीरस्वामी- पारगुं, संपूर्ण, वि. १९०२, पौष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. भुजनगर, प्र.वि. हुंडी: महावीरनोहालरवो, दे., (२६४१२, १५४४५). महावीरजिन पारणं, म. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसलाइं पुत्र; अंति: कहे थासे लीला लेहेर, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १८९ ७९०१० (4) मेघकुमार सज्झाय व तिरेपन क्रिया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १६x४०). १.पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. पनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: सिरी हमका जुरा माइ, गाथा-२१. २. पे. नाम, तिरेपन क्रिया, पृ. १आ, संपूर्ण. ५३ क्रिया विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गुणवयतवसमपडिमै दाणं; अंति: तेवण साचववा १२ भणिया. ७९०११ (#) शीतलजिन स्तवन व श्रावक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,११४३५). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ.१अ-२अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मौरा साहेब हौ श्रीसी; अंति: समयसुंदर० जनमनमोह ए, गाथा-१५. २. पे. नाम. श्रावक विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावकनी करणी सांभलो; अंति: मयसुंदर जेय साचउ कहय, गाथा-१४. ७९०१२. सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४११.५, १५४४९). सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: परम मुणि झाणवण गहण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-२५ ___ अपूर्ण तक है.) ७९०१३. वैराग्य गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. विजयभद्र, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३१). औपदेशिक गीत-वैराग्य, ग. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: राति तीस काया मुढ; अंति: विजयभद्र एणी परिभाषइ, गाथा-७. ७९०१४. (+) पार्श्वनाथ स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ९४३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु प्रणमी पाया गाउ; अंति: कातिविजय० निशदीस रे, गाथा-७. २.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वडोदरामंडण, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे सकल मनोरथ मुझ; अंति: कांतिविजय गुणगाय, गाथा-७. ७९०१५ (4) जिनबिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १६x४२). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: पूर्व मुहर्त्त; अंति: दस दिनानि यावत् नोग. ७९०१६. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, पठ. श्राव. परमकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३३). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: समर समाहि जीलि चंचल; अंति: विमलहरख० गुण गायस्यु, गाथा-२. २. पे. नाम. अरणकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक ऋषि मुनि राजिउं; अंति: सरग नगरी जइ चढई, गाथा-३. ३. पे. नाम. समता सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ____ औपदेशिक सज्झाय-समता, मा.गु., पद्य, आदि: देहकुट बधन कारिमु; अंति: तिमतिम सुखनिधान, गाथा-१२. ४. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. गौतमस्वामी वैराग्य गीत, वा. मतिशेखर, मा.ग., पद्य, आदि: समोसरण सिंघासणि जी ब; अंति: मतिशेखर० सप्रसन, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दसविह प्रह उठी; अंति: पामो निश्चै निरवांण, गाथा-८. ६. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथुलभद्रसाधु भले; अंति: शिवचंद० अविचल पाली, गाथा-१०. ७९०१७. महावीरदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. वि. १७७१ में लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., जैदे., (२५४१०.५, ११४३८). महावीरजिन स्तवन-तपगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: बारे वरसे रे वीरे; अंति: वांद वीरजी सोहामणा, गाथा-८. ७९०१८. महावीरजिन व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १३४४०). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-राजनगरमंडण, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुगुण सनेही रे; अंति: दीजई कोडि कल्याण रे, गाथा-१२. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: निसनेही सुं नेहलो; अंति: जग जस माम हे चित, गाथा-७. ७९०१९ (4) योगी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. तेजपाल; पठ. श्रावि. बीछु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: योगी, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३४). __योगी रास, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरुष जु आदिजतीस; अंति: सिद्धह समरणु कीजइ, गाथा-४२. ७९०२०. (+) सिंदूरप्रकर, पार्श्वजिन स्तुति व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११x१९-३०). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर-मंगलश्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. ___सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तुति-प्रार्थना संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंति: ताइं सव्वाइं वंदामि, श्लोक-४. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: कंत न कीजइ रुसणंरे; अंति: सोम० आवागमन निवारी, गाथा-५. ७९०२१ (4) मेघकुमार चौढालिया, संपूर्ण, वि. १६८५, भाद्रपद कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. आगरा, प्रले. पं. लब्धसिंघमुनि (गुरु मु. जयनिधान, खरतरगच्छ); गुपि. मु. जयनिधान (गुरु वा. राजचंद्र गणि, खरतरगच्छ); वा. राजचंद्र गणि (गुरु वा. सहजकीर्ति गणि, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); पठ. श्रावि. सुभद्रा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ९x४४). मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहे जाणीयइ; अंति: कवि कनक भणइ निसिदीस, ढाल-४, गाथा-४६. ७९०२२. चौवीसजिन भास व औपदेशिक दोहा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२). १.पे. नाम. चौवीसजिन भास, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन गीत, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, वि. १५८१, आदिआदि जिणंद मया करो; अंति: (-), (पू.वि. सुपार्श्वजिन गीत गाथा-३ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. जैनधार्मिकदोहा संग्रह, प. १आ, संपूर्ण, पे.वि. शीर्षस्थ भाग में लिखा गया है. दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ७९०२३. (4) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १५४४१). पट्टावली अंचलगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर ४३० वरसे; अंति: श्री क्षमारत्नसूरि. For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७९०२४ (+) सुभाषित संग्रह, वासुपूज्यजिन स्तवन व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. मु. लाभसागर (गुरु ग. धनसागर); गुपि. ग. धनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: सुभाष्यत कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२५.५x११, १२X३५). १. पे नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सुभाषित संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि जीव सवे ते आतमा धरम, अंति: लहलि मूआ सुवगति जाइ, गाथा-५५. २. पे नाम वासुपूज्यजिन स्तवन, पू. ३अ -३आ, संपूर्ण. मु. लाभसागर, मा.गु., पद्य, आदि वासुपूज्य जिनराय, अति भणइ आनंद अति घणड़, गाथा- १०. ३. पे. नाम औपदेशिक लोक संग्रह, पू. ३आ, संपूर्ण श्लोक संग्रह, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-७. ७९०२५. जिनभक्तिसूरि गुरुगुण गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०.५, १२x२९). जिनभक्तिसूरि गुरुगुण गीत, मु. कुसलविनय, मा.गु., पद्य, आदि अब मारा साहिबाजी; अंति: मधुरी अमृतवाण, गाथा - १५. ७९०२६. कलावतीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५x११.५, १२४३२). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजगृहनगर वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: नगर वर्णन जे एतले; अंति: सोभो पामे रह्यो छे. ३. पे नाम. समवसरणविस्तार गाथा सह वालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. समवसरणविस्तार गाथा, प्रा., पद्य, आदि रिसहो बारस जोयण, अंति: पासे वरिण पंच चउ, गाथा- १. कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी कोसंबीनो राजा; अंति: तारो भवपार रे कलावती, गाथा - १३. ७९०२७ (#) समवसरणवर्णन विचार, राजगृहनगर वर्णन व समवसरणविस्तार गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५४११, १३x४२). "" १. पे. नाम. समवसरणवर्णन विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ पर्षदा समवसरण विचार, मा.गु., गद्य, आदि हिवे भगवान विहार अति सोग संताप न हुवे. २. पे. नाम. राजगृह नगर वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. समवसरणविस्तार गाथा - बालावबोध, रा., गद्य, आदि: ऋषभदेव भगवानरो बारे; अंति: गाउरो समोसरण हुवें . ७९०२८. (+) पच्चक्खाणसूत्र यंत्र, आगार गाथा व पच्चक्खाणनाम गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६५११, ५X४८). १. पे नाम प्रत्याख्यानसूत्र यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र-यंत्र, प्रा., सं., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः सव्व स० वोसिरइ. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. १आ, , संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि दोचेव नमुक्कारे आगार, अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३ ३. पे. नाम. प्रत्याख्याननाम गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. १० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि विहि गहि अंविहि भुत, अतिः ८ अभिग्गहे ९ विगई, गाथा-२. ७९०२९. (+) जीवदया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७७, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. रानेर बंदर, प्रले. मु. दोलतविजय; पठ. मु. मुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११.५, १४X३३). दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करूं, अंति कहे एह विचार, गाथा २४. ७९०३०. (+) दंडक यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : तंडकयंत्र, संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १४४४९). दंडक यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ३, ७९०३१. (+#) चोवीसजिन स्तवन, महादंडक स्तोत्र व पुद्गलजीवकर्म गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६१०.५, २०६२) - १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. "" For Private and Personal Use Only १९९ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयलजिणेसर पणमुं पाय; अंति: तासु सीस पभणै आणंद, गाथा-२९. २. पे. नाम. महादंडक स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवंमि भमिओ; अंति: सामिणूत्तर पयंदेसु, गाथा-२०. ३. पे. नाम, पुद्गलजीवकर्म गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: ए चुदउ कर्म सो जीवा; अंति: गामा दाहिणे झुसरं, गाथा-२. ७९०३२ (+#) आदिजिन स्तवन व २४ जिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४११.५, २०४४६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्री आदि जिणंद वंदीय; अंति: स्वामी सरणो पाइइ, गाथा-३४. २. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम, श्लोक-८. ७९०३३. (+) स्तवन, गीत व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४३९). १.पे. नाम. विमलनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विमलजिन स्तवन, मु. नानजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अमल कमलसम गुण घणारे; अंति: मुझनइ मनहवंछित दीजए, गाथा-९. २.पे. नाम. शील गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-शीलव्रत, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर शील महाव्रत; अंति: सुकृत भंडारह तरीइ, गाथा-३. ३. पे. नाम. २४मा जिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन गीत, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: शरण तुह मारूं; अंति: त्रिसलासुत गंभीर, गाथा-४. ४. पे. नाम. युगबाहुजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजगबाहस्वामी हो; अंति: पंचमगति कामी हो, गाथा-२. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी भविक; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा ७९०३४. (#) चोवीसदंडक नाम व चौदगणठाणा नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, ले.स्थल. पत्तन (पाटण), प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १४४३७). १. पे. नाम. चोवीस दंडक नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो दंडक नारकीनो; अंति: ए चवीसम सद्धनो दंडक. २. पे. नाम. चौदगुणठाणा नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो मिथ्यात्व; अंति: गुणठाणा अयोगगुणठाणा. ७९०३५ (+) अढीद्वीप रास, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, प्रले. मु. दीपचंद ऋषि (गुरु मु. धर्मसी ऋषि); गुपि. मु. धर्मसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३३). अढीद्वीप रास, मु. धर्मचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७५३, आदि: श्रीजिनवर महावीरना; अंति: ऋषि धर्मचंद तो, गाथा-६४. ७९०३६. (#) विजयशेठविजयासेठानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १३४३६). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: केवल ले गया निरवाणी, गाथा-१५, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) ७९०३७. श्रावकने पोषह लेवानी विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४.५४१२, ९४३०). For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: (-), (पू.वि. "इच्छाकारेण संदेसह भगवन् बहबेल करस्यु पचे इच्छाकारेण" पाठांश तक है.) ७९०३९ श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४११.५, ११४३१). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं, (संपूर्ण, वि. साधु अतिचार भी हो सकता है.) ७९०४०. पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १३४४२). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमिय; अंति: (-), (पू.वि. रात्रिभोजन त्याग का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७९०४१. (+) छ अट्ठाईजिन व धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. थुडी, प्रले. पं. लाभविजय; पठ. श्रावि. ईद्रबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४३). १.पे. नाम. ६ अट्ठाइ स्तवन, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्याद्वाद शुद्धो; अंति: बहू संघ मंगल पाया, ढाल-९, गाथा-५४. २. पे. नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे मने धर्म; अंति: मोहन० अति घणोरे लो, गाथा-७. ७९०४२ (+#) दीपावलीपर्वोत्पत्ति कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४४०). दीपावलीपर्व महात्म्य, मा.गु., गद्य, आदि: उज्जयणी नगरी तिहां; अंति: सुख संपदा पामि. ७९०४३. सीमंधरस्वामीने पत्र, संपूर्ण, वि. १९११, श्रावण शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. गुणसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १२४२७-३५). सीमंधरजिन विनती पत्र, क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: या विधी नौवत बाजै, पत्र-२. ७९०४४ (+#) अनाथीमुनि संधि, संपूर्ण, वि. १८१४, आश्विन अधिकमास शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३९). अनाथीमुनि रास, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: वंदीय वीरजिणेस जगीस; अंति: सफल करे अवतार, ढाल-८. ७९०४५ (2) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १७४४९). १.पे. नाम. चतुर्गति आगत एक समय मोक्षगामी जीव ५१ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. __५१ बोल-चतुर्गति आगत एक समय मोक्षगामी जीव, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली रत्नप्रथविना; अंति: ४ मो? जाइं. २. पे. नाम, अल्पबहुत्व ९८ द्वार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-अल्पबहत्व ९८ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वथी थोडा गर्भज; अंति: सर्वजीव विशेष अधिका. ३. पे. नाम. एकसमय उत्कृष्ट मोक्षगामी जीव विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. एक समय उत्कृष्ट मोक्षगामी जीव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुषलिंगे १०८ मोक्ष; अंति: अधिक ४ मोक्ष जाइ. ४. पे. नाम. २४जिन पंचकल्याणक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कार्तिक वदि ५; अंति: सुदि १५ नमि च्यवन. ७९०४६ (+#) कर्मपच्चीशी व ककाबत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १४४३६). १.पे. नाम. कर्मपच्चीशी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १९३८, आदि: करमकुं मन बांधे भाइ; अंति: रम हे सदाई सुखदाई रे, गाथा-२५. २.पे. नाम. ककाबत्रीसी, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कक्काबत्रीसी, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: कका करणी अजब गती है; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९०४७. (+) श्रुतनावीस भेदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९००, श्रावण कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. रामचंद्र व्यास, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, २९४४९). बोल संग्रह, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७९०४८. दस अछेरा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४५-४८). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जेतला उपसर्ग; अंति: (-), (पू.वि. १० वें आश्चर्य मे सात क्षेत्र का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७९०४९ (+) कल्याणमंदिर, जीवविचार प्रकरण व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२१(१ से २१)=४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४-१७४३३-४४). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २२अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ___ आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. २२अ-२३आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. ३. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २३आ-२५आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१. ७९०५० (+) बार भावना, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४३९-४६). १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पायनमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१२, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७९०५१ (4) नेमराजिमती सज्झाय व शीतलजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४३). १.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोखे रे बेठी राजुल; अंति: संयम लेई गई मुगतै रे, गाथा-९. २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ___ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: शीतल जिनवर देव सुणो; अंति: मेघराज पुरी मन भावना, गाथा-६. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. जगजीवन, मा.गु., पद्य, आदि: तुं सुगणाकर स्वामी; अंति: मुनी मनरंजन सीतल नाम, गाथा-६. ७९०५२. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-९(१ से ९)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६.५४११.५, ९४३०). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. आहारिक अंगोपांग, उदारिकबंधन आदि का वर्णन अपूर्ण से गोत्रकर्म अपूर्ण तक है.) ७९०५३. (+) थिरावली, संपूर्ण, वि. १८४२, पौष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले.पं. तेजचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्री गोडीपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४४४). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वछं, गाथा-५०. ७९०५४. स्तुतिचतुर्विंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, १३४४०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२१ अपूर्ण तक है.) ७९०५५. वस्तुपाल द्रव्यव्यय संख्या, दशश्राद्ध गाथा व ८४ ज्ञातिनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, ९-२०७४७-६७). १. पे. नाम, वस्तुपाल द्रव्य व्ययसंख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org १९५ मंत्रीवस्तुपालसुकृतसूची, आव. वस्तुपाल महामात्य, सं., गद्य, आदि श्रीजिनबिंब १ लाख २५: अंति: धवलक्कनगरे वापारकरणं. २. पे नाम. दसश्राद्ध गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. १० श्रावक कुलक, प्रा., पद्य, आदि: वाणियगामपुरम्मि आणंद, अंति: आणंद समो अरिद्धीए, गाथा-१२. ३. पे. नाम. ८४ ज्ञाति नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमाली १ ओसवाल२ पोर; अंति: नीफाडा८३ श्रीगउलवाल८४. ७९०५६. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. प्रारंभ में कान्हड कठियारा रास का मात्र अंतिम वाक्य है., जैदे., (२५.५x११, ११x२९). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि अमल कमल जिम धवल अंतिः जिनचंद ० , १. पे नाम. व्याकरण, पृ. १अ, संपूर्ण, फली सहु आस, गाथा- ९. ७९०५७. (*) शलाकापुरुष नाम, आरती, व्याकरणादि संग्रह, संपूर्ण वि. १७८६ कार्तिक कृष्ण, २ रविवार, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. द्विपाठ-संशोधित, जैदे., (२५.५x१०.५, १३x४१). व्याकरणग्रंथ, सं., गद्य, आदि (-); अंति (-). २. पे. नाम. पार्श्वनाथजी आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन आरती, मु. मतिहंस, पुहिं., पद्य, आदि: पहिली आरती आससेण; अंति: प्रभुजी की आरती गाई, गाथा - १०. ३. पे. नाम. त्रेसठ शलाका पुरुष नाम विवरण, देहमान व आयुष्य, पृ. १आ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: २४ तीर्थंकर १२चक्र अति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अनादि अनंतमिथ्यात, अभव्य, अनादिअंतमिध्यात्, भव्यजीव आदि का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७९०५८. ५१ बोल द्वार व लुंकागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गोवरधन; पठ. मु. चतुरा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४११.५, १७४४७). १. पे. नाम. ५१ बोल द्वार, पृ. १अ, संपूर्ण. ५१ बोल - चतुर्गति आगत एक समय मोक्षगामी जीव, मा.गु., गद्य, आदि: रयणप्रभाना आव्या एक अति एक समझ सीझे तो १०. २. पे नाम. पट्टावली लोकागच्छीय, पृ. ९आ, संपूर्ण रा., गद्य, आदि ऋषि श्रीभाणा सीरोहि: अंतिः भीखनचंद० प्रेमचंद. ७९०५९. (+) १४ राजलोक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) = ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, ११x२५). १४ राजलोक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. गाथा ९ से ४८ अपूर्ण तक है.) ७९०६०. नियंठा विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६.५x११, १२X४७-५२). भगवतीसूत्र नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि नियंठा० कहतां बाह्य अंति: निरुद्ध योग इत्यर्थः ७९०६१. (*) उपदेशमाला यंत्र, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५१२, ५३१२). उपदेशमाला- -उत्कृष्ट-मध्यम गाथा व अक्षरसंख्या यंत्र, मा.गु., को., आदि: ॐ सच्चं भासइ अरहा; अंति: संति विलंबो न विधेयः ७९०६२. युगमंधरजिन स्तवन, नेमिराजिमती सज्झाय व संभवजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११.५, १३X३०-४२). १. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चांदलिया तु कहीजे; अंति: रामचंद प्रते खोज, गाथा - ७. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मोरा तोरण आवी; अंति: रामचंद नीत्य इम कहे, गाथा-७. ३. पे. नाम, संभवजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिन सुदेव अरज; अंति: एम मुगत पद साधो रे, गाथा-५. ७९०६३. (+#) साधारणजिन स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ४४३६). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाप्रभोयं विधिना; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि: देवाः प्रभोयमिति; अंति: श्रीजयानंदसूरिनाम. ७९०६४. उपधानतपविधि यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४०). उपधानतपविधि यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७९०६५. सिद्धचक्र पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सादडी नगर, प्रले. ग. कनकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, १४४३५). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धचक्र आराधिइं सु; अंति: तणो सिस कहे कर जोड, गाथा-५. ७९०६६. (+) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले. ग. कनकसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १२x२४). थेरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वछं, गाथा-५०. ७९०६७. (4) धर्मनाथ अष्टक व शांतिजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३७). १.पे. नाम. धर्मनाथ अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन अष्टक, म. धर्मसागर, सं., पद्य, आदि: यस्योज्वलं याति यशोख; अंति: धर्मसागरमहोदयमातनोतु, श्लोक-९. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __पं. विचारसागर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: शिष्ये सीता संपदं, श्लोक-२६, (पू.वि. श्लोक-२१ अपूर्ण से है.) ७९०६८. (+) सुरसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२१(१ से २१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १५४३०-३६). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१८ गाथा-६१ अपूर्ण से ___ ढाल-१९ गाथा-६५ अपूर्ण तक है.) ७९०६९. औपदेशिक कुंडलिया व कवित्त द्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. चमन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ८x२५). १. पे. नाम, औपदेशिक कुंडलिया, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कंडलिया-माया परिहार, म. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: माया कोई संचो मती; अंति: मेली हती किण लार गई, पद-२. २. पे. नाम, औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चुल्हो ने हांडली धोय; अंति: लालचंद० वाना तोलडी, गाथा-१. ३. पे. नाम, औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: मित्ता सुण मित्ता कह; अंति: दिन ही जाग मित्ता, गाथा-१. ७९०७०. आत्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १४४४३). आध्यात्मिक सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: अरिहंत राजा मोहराय; अंति: जीन सेवा तडिया बे, गाथा-२३. For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १९७ ७९०७१. पर्युषणपर्व स्तुति द्वय, संपूर्ण, वि. १९१६, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मोतीलाल ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १४४४०). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. जय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंति: मानविजय० सिद्धाइ जी, गाथा-४. २.पे. नाम, पजुषण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुन्य; अंति: शांतिकुशल गुण गायाजी, गाथा-४. ७९०७२. वीसस्थानकपद विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, १३४२६). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: ५नो काउसग्ग करवो. ७९०७३. (#) साधुश्रावक सम्यक्त्व विचार व ऋषभदेवतीर्थ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १७४५५). १.पे. नाम. साधश्रावक सम्यक्त्व विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: आईसाणं अमरस्स अंतरं; अंति: सभावओ जाइ सरणस्स. २. पे. नाम. ऋषभदेवतीर्थ छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन छंद, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सतगुरु कहै सुगुरुराय; अंति: आखै श्रीध्रमसीह इम, गाथा-२२. ७९०७४. कर्महीडोलणा पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११, १४४५३). कर्महींडोलणा पद, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: दोइ थंभ रागने द्वेष; अंति: भविजन मन ही पुरो आश, गाथा-९. ७९०७५ (4) गौतमस्वामी सज्झाय, मनोरथ गीत व ११ गणधर सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१०.५, ११४३४). १. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेसर केरो सीस; अंति: लावण्य० संपति कोड, गाथा-९. २.पे. नाम, मनोरथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: धन धन ते दीन मुज कही; अंति: तो भवनो हुं पारो जी, गाथा-३. ३. पे. नाम. ११ गणधरसंशय सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ११ गणधर संशय सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: परभाते उठिने भविका; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक ७९०७६. (+) पांचमहाव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, १२४३१-३९). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे; अंति: (-), (पू.वि. चतुर्थ महाव्रत अपूर्ण तक है.) ७९०७७. (+#) हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, प्रले. पं. यसवंत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४३५). आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसइ कांबलि भीजइ पाण; अंति: मूरख कवि देपाल वखाणइ, गाथा-६. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबली कहतां इंद्री; अंति: देपाल नामे इम वखाणि. ७९०७८. नेमजिन सज्झाय व आत्मध्यान सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१०, १६४३७). १.पे. नाम, नेमिजिन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: हो जी माता शिवादेवी; अंति: कहीयो कु नही मान, गाथा-१७. २.पे. नाम, आत्मध्यान सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय, मु. कमलकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: करुंजी कसीदो ग्यान; अंति: सोइ आतम ध्यान करुंजी, गाथा-९. ७९०८०. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, ११४३७). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोवसरण बेठा भगवंत; अंति: समय० कहे करो द्याहडी, गाथा-१३. ७९०८१. चौवीसजिन स्तवन, आदिजिन स्तवन व पंचपरमेष्ठि आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४५१). १.पे. नाम. चौविसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन अष्टक, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अविचल थानक पहुता; अंति: पभणे श्रीउदैसागरसूरि, गाथा-८. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-रामपुरमंडन, मु. केसराज, मा.गु., पद्य, आदि: अदभुत रूप अनुप खरो; अंति: रामपुरे नमो आदिजीनं, गाथा-८. ३.पे. नाम. ५ परमेष्ठी आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: एह विधि मंगल आरती; अंति: नरनारी अमर पद पावै, गाथा-८. ७९०८२. () चेलणासती सज्झाय, कुंथुजिन स्तवन व ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १४४३२). १.पे. नाम, चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वंदी घरे आवतांजी; अंति: पांमिस्यै भव तणो पार, गाथा-७. २. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनडुं किम हि न बाझे; अंति: साचो करि जांणुं हो, गाथा-९. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी तप तुम्हे करो; अंति: समयसुंदर० भेद रे, गाथा-५. ७९०८३. (+) वस्तुपाल तेजपालना धर्मकार्योनी विगत, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४५०). वस्तुपालतेजपालकृत धर्ममार्ग धनव्यय संख्या, अप., गद्य, आदि: वर्ष ३६नो आऊखौ वीर; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वस्तुपाल तेजपाल की संतानादि का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७९०८४. त्रेवीस पदवी विचार, संपूर्ण, वि. १८५९, वैशाख शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जेतपुर, प्रले. मु. प्रागजी ऋषि; अन्य. सा. कमरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: त्रेवीसपदवी०, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४२). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम एकेंद्री ७ रतन; अंति: पदवी त्रेवीसनो विचार. ७९०८५ (+) गीत व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, २०४४८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन-भटेवा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानविमल० वासो रे, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, जीवकाया गीत, पृ. १५अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-जीवकाया, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव जुगति स्यू; अंति: नयविमल कहीजे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३.पे. नाम, अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिरि यात्र; अंति: ज्ञान०सुरनरनायक गावइ, गाथा-८. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरो लेज्यो अर०गढ उ; अंति: ल० अधिक उदय हवइ देयो, गाथा-५. ५. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १५आ, संपूर्ण. म.ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज सुणौ मोहि वीन; अंति: इम कहे ज्ञानविमल यती, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म.ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि सहीर वातडी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७९०८६. (+#) पच्चक्खाण भांगा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. आघाटपुर, प्रले. ग. वसंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४३४). प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिविहं तिविहेणे एगो; अंति: करंति नाण जाणइ कायसा, (वि. भगवतीसूत्र से उद्धृत) ७९०८७. २४ जिन चंद्रावला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३६). २४ जिन चंद्रावला, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निजगुरु चरणकमल नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ७९०८८. (#) आदिजिन, महावीरजिन स्तवन व गुरुगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३४). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. कल्याणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनवर पाय नमी; अंति: कल्याणचद० भवनो पार, ढाल-४, गाथा-३०. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कल्याणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सकलसुरासुर नरवृंद; अंति: कल्याणचद० आपोतिर, गाथा-८, संपूर्ण. ३. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: आचारीज जिनधरम वैरागि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७९०८९ (+) धम्मिल रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४८). धम्मिल रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५९१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५७ अपूर्ण से ८९ अपूर्ण तक है.) ७९०९०. कल्पसूत्र-कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९९-९८(१ से ९८)=१, प्र.वि. हुंडी: कल्पसूत्रप., जैदे., (२५४११.५, १६४४५). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जोगै पवित्र थया, (पू.वि. गंगानदी की कथा है.) ७९०९१ (+) आगम योगोद्वहन विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ८x२१). योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: ४०० सर्व योग काउसग्ग, (पू.वि. आचारांगसूत्र की विधि नहीं है.) ७९०९२. (+#) शgजयतीर्थ रास व अंतरिक्षप्रभु स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५९, फाल्गुन शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. वखतराम ऋषि; पठ. श्राव. भेरुदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सेजारास, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५,१३४४५). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-१०७. For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. अंतरिक्षप्रभ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण... पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: अंतरीक जिन अंतरजामी; अंति: जिनचंद्र० जयकारी रे, गाथा-९. ७९०९३. पांचकारण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नागोरीसरा, प्र.वि. श्री संखेश्वरपार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., (२५.५४१२, १४४३२). ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सुत सिद्धारथ वंदीइं; अंति: विनय कहे आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५८. ७९०९४. बलभद्र सज्झाय, नेमिजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ शुक्ल, ६, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. वीदासर, प्रले. मु. सुरुताण (परंपरा मु. हरिदास); गुपि.मु. हरिदास; पठ. श्रावि. गूजरदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४३५). १.पे. नाम, बलभद्र सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. बलभद्रमनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपति नित जिन वंदी; अंति: (अपठनीय), गाथा-३४, (वि. पत्र चिपके होने के कारण अन्तिमवाक्य अवाच्य है.) २.पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. मु. तीकम, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल कर रे नरवर नेमि; अंति: टीकम०करो कुसल शरीर ए, गाथा-३१. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. श्राव. भैया, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: भैया०मुगध न रखु तोरे, गाथा-१४, (वि. पत्र चिपके होने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) ७९०९५. पक्खी चउमासी पडिक्कमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १३४४२). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: चौदस के रोज च्यार; अंति: (-), (प.वि. चौमासी प्रतिक्रमण प्रारंभिक भाग अपूर्ण तक है.) ७९०९६. पद्मावती आराधना व सुभद्रासती रास, संपूर्ण, वि. १८०९, भाद्रपद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. देवरीया नगर, प्रले. पं. खुशालसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १५४४०). १. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: समयसूंदर० छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. २. पे. नाम. सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. म. मानसागर, मा.ग., पद्य, वि. १७५९, आदि: सरसती सामण वीनवं; अंतिः फलीया मनोरथ माल, ढाल-४. ७९०९७. (#) नेमजिन चोवीस चोक, संपूर्ण, वि. १८४६, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: चोक, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४५५). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, म. अमृतविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८३९, आदि: सरसती चरण कमल नमी; अंति: दहा जयजयकार, चोक-२४. ७९०९८. (#) श्रीमतीचौढालीयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. हंडी: श्री० चौ., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १९४४५-५२). १. पे. नाम. डोकरी राजाभोज प्रतिबोध कथा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. भोजराज डोकरी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: गोहुं का खेत की एकरी; अंति: बेटा बीरा राम राम. २. पे. नाम, बीबी का गहना, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. बीबी का गहना दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: कर मरदानी वेस भली; अंति: कडी ए बीबी का माल. ३. पे. नाम. श्रीमती चौढालीयो, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि चोबीसु जिणवर नमुं सत, अंति: लालचंद० मोन तारज्यो, डाल- ४, गाथा-८६. ७९०९९. बोल संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल मेमाइ, प्रले. ग. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x११.५. ११४३४-४५). " ११ उपदेश बोल, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: विधवाद १ चरितानुवाद; अति तत्र वासो न कारयेत्. ७९१००. सीमंधरजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २६१२, १५X४४). १. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वा. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि ओलुडी विदेह खेत्रमा अति मानविजय० तुम पद सेव, गाथा- १०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. ज्ञानमहोदय, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणी चिंता सब; अंति: ज्ञानमहोदय० दासा रे, २०१ गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन गोडीजी, पू. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. ज्ञानमहोदय, मा.गु., पद्य, आदि औषध गोडी पासजी तुम अंतिः औषधे बहुरोग विदारे, गाथा-३. ७९१०१. साधुमार्ग स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी: साधुमार्ग०, जैवे. (२५.५४१२, १२४३२)साधु आचार स्तवन, मु. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: जी सांमी घरछोडीने अंति: सांभलजो नरनार जी, गाथा-४४. ७९१०२. पांचकारण महावीर व शांतिजिन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैवे. (२६११.५, १६x४७-५२). १. पे. नाम. पांचकारण महावीर स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७३२, आदि सिद्धारथसुत वंदिये अति विनय कहे आणंद ए. ढाल - ६, गाथा - ५८. २. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिस केसर, अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७९१०३. (d) गौडीपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८७० वैशाख कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. रालमकर, प्रले. मु. भेरुदास ऋषि लिख दोलतरावजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे (२६११.५, १०४०). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशे वसी; अंति: नमो नमो गोडीधवल, गाथा - ३७. ७९१०४. कार्तिकशेठ चौढालिया, संपूर्ण, वि. १८८७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. राजकोट, प्रले. मु. लाधाजी ऋषि (गुरु मु. तलकसी); गुपि. मु. तलकसी (गुरु मु. देवजी ऋषि); मु. देवजी ऋषि; पठ. मु. राघवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : कार्तिकसेठपांच०, जैदे., (२६X११.५, १६X३८-४२). कार्तिकसेठ पंचढालिया, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरहंत सिद्ध साहु; अंति: जैमल० उपीउग दिल राखी, ढाल - ५, गाथा - ९१. ७९१०५ () मौनएकादशी गणनु, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३X३०). प्र. वि. हुंडी जीवविचार, संशोधित, जैदे. (२६४११.५, १३४३५-३८). " .पे. नाम महावीर चरित्र, पृ. २९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मी एकादशीपर्व गणणुं, सं., को, आदि: जंबूद्वीपे भरते; अति: श्रीआरणनाथाय नमः. ७९१०६. (+) महावीरचरित्र, जीवविचार प्रकरण व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१-२८ (१ से २८) = ३, कुल पे. ३, For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४५, (पू.वि. गाथा-४२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. २९अ-३१अ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. ३. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३१अ-३१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ७९१०७. औपदेशिक पद व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८४, पौष कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, अन्य. सुकदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पाठ क्रमशः है किन्तु पत्रांक-१, ५ व ६ का उल्लेख है. अतः पाठ के अनुसार पत्रांक क्रमशः दिया गया है. किनारी भागवाला पाठ आंशिक रूप से खंडित है, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२४.५४११, २२४५७-६०). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. हासिया में लिखा है. ब्रह्मानंद मुनि, पुहिं., पद्य, आदि: राम नाम की कोरे सोइ; अंति: ब्रह्मानंद० ज्यु उका, पद-२. २.पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र-१आ के हासिये में एक अस्पष्ट कृति लिखी गई है. औपदेशिक सवैया संग्रह-जैनधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: कहं नग लाल कहं; अंति: गुरुदेव वात है तसरपी, सवैया-२४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह-आध्यात्मिक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: अविनासी अविकार परम; अंति: है के आपरूप भए है, सवैया-३३. ४. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. __ आध्यात्मिक दोहा संग्रह, दादूदयाल महात्मा, पुहिं., पद्य, आदि: जब लगु अग्यान चेतना; अंति: (अपठनीय), दोहा-१३, (वि. किनारी खंडित होने के कारण अंतिमवाक्य अवाच्य है.) ५. पे. नाम. औपदेशिक वैराग्य पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.. औपदेशिक पद-वैराग्य, म. लालचंद, पुहि., पद्य, आदि: आउ घटी बल छीन भयो नर; अंति: लालचंद० रे गधो है, पद-२. ७९१०८. (+) सुरप्रियमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: सरपी, संशोधित., दे., (२५४११, १७४३२). सरप्रियमनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देव सदा मनि धर; अंति: निश्चय भवजल तरई, गाथा-७०, (वि. गाथा-५३ के पश्चात गाथांक का उल्लेख नहीं है.) ७९१०९. वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: वासु०स्तव०, जैदे., (२६४११.५, १३४२७-३०). वासुपूज्यजिन स्तवन-सूर्यपुरमंडण, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसांतीसार सोलमो; अंति: वाणि आराधा एहने सुधी, ढाल-६, गाथा-५९. ७९११०. कल्याणमंदिर स्तोत्र व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, कल पे. २, ले.स्थल. मोहनपुर बंदर, प्र.वि. पार्श्वप्रसादात्, जैदे., (२६४११.५, १८४५४-६२). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि: चरणांबुश्री जिनराज; अंति: आनंद मुगति के सुखकार, गाथा-४४. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पांमी सुगुरु पसाय; अंति: विनय करीने वीनव्यो ए, गाथा-५७. ७९१११. पाक्षिकप्रतिक्रमणादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १४४३६). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: देवसी बंदितु कही; अंति: ठिकाणे देवसी भणजो. For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २०३ ७९११२. गुरुगुण सज्झाय व विजयधर्मगुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८११, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. चांणोदनगर, प्रसं. पं. हरिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४३५). १.पे. नाम, गुरु स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आज उछरंग रसरंग मंगल; अंति: तुम वीस्तरी जगत आखै, गाथा-९. २. पे. नाम. विजयधर्मगुरुगुण स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयधर्मसूरि गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जयजयो श्रीविजयधर्म; अंति: नित्य चढतें दिवाजा, श्लोक-७. ७९११३. (+) ७२ स्वप्न विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३२-३५). ७२ स्वप्न विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वप्नशास्त्रनै विषइ; अंति: अखत्र४१ गतराडो४२. ७९११४ (+) नवकार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १३४३६-३९). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित० श्रीजिनशासन; अंति: कुशललाभ० वंछित लहे, गाथा-१८. ७९११५. पार्श्वजिन स्तुतिद्वय व औपदेशिक श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२.५, १५४४२-४५). १.पे. नामपार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीजिनो जयतिकल्प; अंति: सिंहस्य न चेति भूयः, श्लोक-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकशलसरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं धरणोरगेंद्र; अंति: नमामः कशलं लभामः, श्लोक-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: वपुरेव तवाख्याति; अंति: तरुर्भवति शाडूलः, श्लोक-१, संपूर्ण. ७९११६. सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १४४३५-३८). सीतासती सज्झाय, मु. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दशरथ नरवर राजीयो; अंति: सीलवंत तणो हुं दास, गाथा-२१. ७९११८. मच्छोदर चोपई, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:मच्छोदर चोपई., जैदे., (२५४११, १८४६०-६४). मत्स्योदर रास, मु. जयराज, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से ५६ अपूर्ण तक ७९१२० (+) नवतत्त्व भेद व ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४६०). १.पे. नाम. नवतत्त्व भेद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: जीवरा १४ भेद; अंति: भेदप्र १०. २. पे. नाम. कुंडली-ज्योतिष, पृ. ३आ, संपूर्ण. __मा.गु., कुं., आदि: (-); अंति: (-). ७९१२१ (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-२६(१ से २६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१२, ९४२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-६५ अपूर्ण से ७० के प्रारंभिक अंश तक है.) ७९१२२. आदिजिन, पार्श्वजिन आरती व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, ९४३१). १. पे. नाम, आदिजिन आरती, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मूलचंद ऋषभ गुण गावे, गाथा-३, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा का अंतिम पद है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. २अ, संपूर्ण. य. अगरचंद, पुहि., पद्य, आदि: आरती करत श्रीपासजिणं; अंति: जिवित सफल भया उनका, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, म. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठोने मोरा आतमराम; अंति: वरतां सिध वधाइ रे, गाथा-६. ७९१२३. तेरकाठिया ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: तेरेकाठ, जैदे., (२५४११.५, १८x२९). १३ काठिया सज्झाय, मु. रायचंदजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: रतन चिंतामणि एहेवो; अंति: प्रांणी भवजल पारो जी, गाथा-२०. ७९१२४. (4) पद, रास व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ३०x४२-४५). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तजौ जगत का ख्याल; अंति: उपदेस सुनो मत काना, गाथा-४. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व रास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मनोवर, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंतरो गणधर; अंति: मनोवर० वंदु नितमेव, गाथा-३७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग, मु. चंपालाल, पुहि., पद्य, आदि: जगत से जाना जलद जरूर; अंति: तां छ्यद मीटं तुर, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: कुमत कलेसण नार लगी; अंति: की वात खौब मत खरै, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह , पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७९१२५ (+) राईप्रतिक्रमण व पाक्षिकादिप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सांडेराव नगर, प्रले. मु. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, ५४३८-४२). १.पे. नाम. राइप्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कुसमणदुसमणं राइय सोल; अंति: संदेसावहभवनहंतीमेवी, गाथा-५. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि-टबार्थ, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह; अंति: संदेसाह बोहल करू. २. पे. नाम. पाक्षिकादिप्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मुहपत्ति वंदणीयं; अंति: पक्खि पडिक्कमणं. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेणसंदिसह; अंति: (१)पडिक्कमण विधि, (२)तपरो विवरो जांणवो. ७९१२६. (4) उपदेशरत्नमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ८४४४). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएस रयणकोसं नासइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरत्ननु भंडारना; अंति: (-). ७९१२७. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. हंडी: कल्याणमंदिर, पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १४४३९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७९१२८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. पत्र के दूसरे भाग में पेंसिल से लिखी गई दो कृतियाँ हैं., दे., (२५४१२.५, २०४४७-५०). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: समरु शासनस्वामि कु; अंति: सार समजो कछु स्याण, गाथा-१३. ७९१२९ औपदेशिक व मान सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १२x२५-२८). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडवां फल छे क्रोधनां; अंति: निर्मली उपशम रस नाही, गाथा-६. २. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए; अंति: मानने देजो देशवटो रे, गाथा-५. ७९१३०. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-२४(१ से २१,२३ से २५)=२, प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं..प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-९३ अपूर्ण से सूत्र-१०० का प्रारंभिक अंश ___ एवं सूत्र-१८१ से १९५ अपूर्ण तक है.) । ७९१३१. वासुपूज्य स्तुति व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. समीनगर, प्र.वि. महावीर प्रसादात्, जैदे., (२५.५४१२, १४४३६-३९). १.पे. नाम. पृ. १आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तुति-आंतरोलीमंडण, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वासुपूज्य जिनराज; अंति: वाणी वाचक जश सुखखाणी, गाथा-४. २.पे. नाम, औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दुहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), दोहा-१. ७९१३२. ज्ञानपंचमी स्तुति व गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १६६७, चैत्र शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ११४२५-२८). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदिः (-); अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४, (पू.वि. अंतिम श्लोक अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, म. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभाते गौतम प्रणमी; अंति: उदय प्रगट्यो कुलभांण, गाथा-८. ७९१३३. (+#) भगवतीसूत्र-तुंगीयानगरी अधिकार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १६४३८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. तुंगीयानगरी अधिकार अपूर्ण मात्र ७९१३४. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, २१४५०). स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदिश्वर सामी हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आदिजिन स्तवन मात्र लिखा है.) ७९१३५. ऋषिमंडल प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, पठ. सा. चंपकमाला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ५४३६-४०). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: धम्मघोस० सिद्धिसुहं, गाथा-२२४, ग्रं. २५९, (पू.वि. गाथा-२२१ अपूर्ण से है.) ऋषिमंडल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: लहइ पामइ मोक्षसुख. For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९१३६. उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, ८४४५-४८). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण से ४८ अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-)... ७९१३७. काव्य प्रस्तावी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: काव्यप्रस्तावी, जैदे., (२५४११, १३४४०). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्माज्जन्मकुले० सौभ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ७९१३८, (-) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. भीलोडानगर, प्रले. मु. हर्षचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१२४४) कट कूबडी कर वेगडी, (१२६३) तेला रक्षे कुला रथे, जैदे., (२६४११, १६४२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपिति लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४१ अपूर्ण से ७९१३९. प्रत्याख्यानसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, १७४४१). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. एकासणा पच्चक्खाण से निवि पच्चक्खाण तक है.) प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७९१४०, नेमिराजिमती बारामासा व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १२४३७-४०). १. पे. नाम, नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासा, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सखी री सांभल ए तु; अंति: लील विलासी हौ लाल, गाथा-१६. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा काई; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-९. ७९१४१. अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३८, फाल्गुन कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५४११.५, १२४४०). अनाथीमुनि सज्झाय, मु. खेमकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: श्रीअरिहंत सिद्ध; अंति: खेमकीरत० दीख प्रगासी, गाथा-६८. ७९१४२. (+) साधुआचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: साधुअचार, संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १४४३४). ४ श्रावक प्रकार पद, मु. मोतीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: वर्धमान शासनधणी गणधर; अंति: थोरो पलो लिजो सांभली, गाथा-५४. ७९१४३. आषाढमुनि व आर्द्रकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १६४३७). १.पे. नाम, अषाढाभूति धमाल, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: कनकसोम० सुखकारा, गाथा-६७. २. पे. नाम. आर्द्रकुमारमुनि सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: सकल जैन गुरु प्रणमं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ तक है.) ७९१४४. (+) खंधकमुनि चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: खंधकनी, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १६४५५). For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २०७ खंधकमुनि चौढालिया, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३९, आदि: प्रणमुं जगनायक सदा; अंति: धर्म सदा श्रीकार रे, ढाल-४, गाथा-८३. ७९१४५ (+) पद्मावती ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३५-३८). - पद्मावती आराधना बृहत्-जीवराशिक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हिवे राणी पद्मावति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६४ अपूर्ण तक है.) ७९१४६. महावीरजिन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, कल पे. २, प्रले. मानचंदवखतराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १५४४२). १. पे. नाम. समकितबीज महातम स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-सम्यक्त्वविचारगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: आरजदेसमां आरजदेस मगध; अंति: सादवाद प्रकासता, ढाल-३, गाथा-३६. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. कृष्णविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा सांति जीणंद; अंति: कृष्णविजय० आसीस रे, गाथा-७. ७९१४७. जिनगुण व्याख्यान पीठिका, सीमंधरजिन स्तवन व नमिराजर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. अंबाराम पटेल; पठ. सा. डाइबाइ आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १६४३५-३८). १. पे. नाम. भगवंत गणग्राम व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)इहां कुण जे समणभगवंत; अंति: मोक्षना सुख पामीइं. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तु तो मावदेहनो वासी; अंति: गुणगावे नीत ताहराजी, गाथा-९. ३. पे. नाम. नेमिराजा सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथलानयरीनो; अंति: कहै० पामीजै भवपार, गाथा-७. ७९१४८. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८, प्र.वि. हुंडी: स्तवनपत्र, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३६-३९). १. पे. नाम. गौडीजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: सरसति देवीने नमी; अंति: गायो ते गोडी धणी, गाथा-२६. २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंति: रामविजय० कोडि कल्याण, गाथा-७. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहज सुरंगा; अंति: सुबुद्धिकुसलगाया रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी संभव स्वामी; अंति: सवी आस्या फली रे लो, गाथा-५. ५. पे. नाम, अर्बुदाचल स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. तीर्थयात्रावर्णन स्तवन-विमलमंत्रीकारापित, मा.गु., पद्य, आदि: पाटण माहे पांचासरो; अंति: गरीब ऊपर मेहर थाय, गाथा-७. ६. पे. नाम. दयाणा म्हावीरजी स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-दयाणा, म. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: साहीबा उलग करु अरदास; अंति: मुजरो मानज्यो रे लोल, गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोढणमंडण, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीलोढण प्रभुपासजी; अंति: रूप नमे करजोड, गाथा-९. ८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, पंडित. मानविजय, मा.ग., पद्य, आदि: पोपटरा संदेसो केहज्य; अंति: मानवि० जाउं बलीहारी, गाथा-०६. ७९१४९ (+-) नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. दयाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १८४४२). नेमिजिन चरित्र, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: नगरी सोरिपुर राजीयो; अंति: रीष जेमल कह नेम जणदा, गाथा-५२. ७९१५० (4) पंचप्रतिक्रमणसत्र व मंहपत्ति पडिलेहण ५०बोल, संपर्ण, वि. १८२७, मध्यम, प. ३, कल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखनपुष्पिकावाले भाग का कुछ अंश फट गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७X४५). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरियाविही पडि; अंति: कहीजै पछै शांति कहै. २.पे. नाम. पचास मंहपत्तिपडिलेहण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्रार्थ तत्त्वदृष; अंति: लाख ८४ लाख जीवा जोन०. ७९१५१. ६२ मार्गणा ९ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-९(१ से ९)-४,प्र.वि. हुंडी: कर्मग्रंथ४, जैदे., (२५४१२, १२४३७-४०). ६२ मार्गणा ९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ४८ उत्तरभाव जाणवा, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., काययोग, उपयोग, ज्ञान, दर्शन आदि का वर्णन अपूर्ण से है.) ७९१५२. (+#) योगदृष्टि सज्झाय सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: अष्टदृष्टिनोसज्झाय, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १४४४४). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निरुपद्रव्य सुख-; अंति: (-).... ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतं; अंति: (-). ७९१५३. (4) मेघकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: मेघकुमार, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४२८-३२). मेघकुमार रास, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ सिद्धि; अंति: भामइ भाव करीसु, ढाल-८, गाथा-७१. ७९१५४. (4) बावीसपरीषह सज्झाय व नेमिराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १८७८, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. जपुर, प्रले. मु. लालचंद (गुरु मु. जसकरण); पठ. सा. हीराजी (गुरु सा. पाराजी); गुपि. सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४५६). १. पे. नाम. २२ परिसह सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: आदेसर जिन आदि दे; अंति: बृहस्पत भलो वारो जी, ढाल-२२. २. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. ४अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वैशाखें वन मोरीया; अंति: ध्रिगपडो संहसार, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २०९ ७९१५५. (+) जीवगति विचारादि द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, २७४१४-३०). "" बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं. गद्य, आदि जीवगइ १ इंदिय २ काये अंति (-), (पू.वि. १२९ द्वार तक है.) ७९१५६. पद्मप्रभुजिन गीत व औपदेशिक पद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जै., (२५.५४११.५, ११४३२). १. पे. नाम पद्मप्रभुजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कागली थउ करतार भणी; अंति: इण घरि छइ आ रीति, गाथा-५. २. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि तुम्ह हो सलूणे चस्मन, अंति रूपचंद० गाफल न रीझिये, गाथा- ३. ७९१५७. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. जितविजय, पठ. श्रावि. विजलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६१२, ११x२७). १. पे. नाम. विमलनाथ नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. विमलजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि कंपीलपुरे विमलप्रभुः अंतिः सेतुं घरी ससनेह, गाथा- ३. २. पे. नाम. अनंतजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि अनंत अनंत गुण आगरु; अति लहीवे सहज विलास, गाथा-३. ३. पे नाम. श्रेयांसजिन नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. " श्रेयांसजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीश्रेयांस अग्यार, अति: नमतो अविचल थान, गाथा-३. ४. पे. नाम वासुपूज्यजिन नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि वासव वंदित वासुपूज्य अंतिः सुणी परमानंदी धाय, गाथा - ३. ७९१५८. (७) स्वाध्याय, वैद्यक व सवैचा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११, १३४४१). १. पे नाम, जीव स्वाध्याय, पू. १अ संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय विषय परिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि रे जीव विषय न राचीई अति तस प्रणमुं नसदीसो रे, गाथा- १३. २. पे नाम बधेज गोटिका, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: दारु एक कह्युं बधेज; अंति: रातनो बत हीवाज रेवे. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. सुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: सुंदरलाल अनोप त्रिया; अंतिः संभुकु पूजन नागन आई, सवैया - १. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि नवसतमे यौवन चाल अति (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ', ७९१५९. औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. ज्येष्टमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सवैयाख्याछे दे. (२४.५४११.५, १५४३५-३८). . औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१२. ७९१६०. आत्मतत्व व तिथी फल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैये. (२४.५४१२, १२-१६४३०-४८)१. पे. नाम. आत्मतत्व विचार, पृ. १अ संपूर्ण, आत्मतत्त्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी; अंति: पारिणामिक स्वभाव. २. पे नाम. मूलतिथि फल, पू. १आ, संपूर्ण. तिथि फल संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग, आदि: षट्शिरदिन्ह प्राण; अंति: जाता मुल संहरते कुले. For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९१६१ (4) स्थुलिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४५-४८). स्थलिभद्रमनि सज्झाय, पंडित. नयसंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोस्या कामिनि कहे; अंति: करइ तस हीसि रेइ, गाथा-२२. ७९१६२ (4) भयहर स्तोत्र व गणधरदेव स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३९). १. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सयल भुवणच्चि अचलाणो, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गणधरदेव स्तुति, पृ. १६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तं जयउ जए तित्थं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ७९१६३. (+#) कल्याणमंदिर व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. प्रल्हादनपुर, प्रले. मु. जिनविजय; पठ. ग. प्रीतिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३१-३५). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.. आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ७९१६४. (#) बीस बोल व बत्तीस उपमा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३७-४०). १.पे. नाम. वीस बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले; अंति: त्रिकाल वंदणा होज्यो. २.पे. नाम. शीलनी ३२ ओपमा, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ३२ उपमा शीलव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: पहली उपमा सर्वग्रह; अंति: (-), (पू.वि. उपमा-१० अपूर्ण तक है.) ७९१६५. भीलडीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४३२). भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने विनQ; अंति: पूरी वन छे अति रुडी, गाथा-१८. ७९१६६. (+#) धनपालकवि व मंडनमिणी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४३६). १. पे. नाम. धनपालकवि कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. रघुवंश प्रथम सर्ग का १ श्लोक अलग से लिखा गया है. सं., गद्य, आदि: मालवदेशे धारानगर्यां; अंति: च लक्षतेर्गतः. २.पे. नाम. मंडनमिणी कथा, पृ.१आ, संपूर्ण. कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: विपद्यपि भवेत्सा ; अंति: मंडन० स्वामि झो वरो.. ७९१६७. (#) आठकर्मनी स्थिति व एक सौ अठावन प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १६७२, वैशाख शुक्ल, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. मलदास ऋषि; पठ. सा. लाडकी आर्या (गुरु सा. नाउनी आर्या); गुपि.सा. नाउनी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ३५-४०४६-२४). १.पे. नाम. आठकर्मनी स्थिति, प. २अ, संपूर्ण. ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी थिति जघन; अंति: भव्यजीव अनंत गुणा. २.पे. नाम. आठ कर्म एक सौ अठावन प्रकृति विचार, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीनी पांच; अंति: (-), (पू.वि. अंतरायकर्म के पांच प्रकृति का वर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७९१६८. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, ४५X१०-३०). बोल संग्रह प्रा. मा. गु. सं., गद्य, आदि (-); अति: (-). ७९१६९. तपउच्चारण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२४.५४११.५, १४४३२). " तपउच्चारण विधि, प्रा., मा.गु. गद्य, आदि प्रथम ठवणीमांडि झीय; अति: नाम फेरवीने ओचरावी. ७९१७०. स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १(१) = १, कुल पे. ५, जैदे., (२५X११, १६x४५). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे. वि. प्रारंभ में किसी अन्य कृति का अंतिमवाक्य अपूर्ण मात्र है. मा.गु., पद्य, आदि: मांन असाडी वतियां; अंति: करुणा आणो छतियां, गाथा-३, संपूर्ण. २. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. २अ संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जाके पारसनाथ सहाई, अंति: गावै संपूरण हुय जाय, ३. पे. नाम. वरकाणांपार्श्वनाथ गीत, पृ. २अ संपूर्ण पद- ३. पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कांई रे जीव मन मै कस; अंति: जिनहर्षसूरि ० रंगरली, गाथा - ९. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धि, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि देव सकल सिरसेहरी लाल; अंति: जिनचंद भेट्या आज, गाथा- ९. ५. पे. नाम गौतमाष्टक, पू. २आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत, अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-१०. ७९१७१. (४) शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प सह अन्वय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. प्र. वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६११, ११४३२). २११ शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: (-), (पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प- अन्वय, सं., गद्य, आदि अतिमुक्तक श्रीकेवलि; अंति: (-), पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७९१७२ (४) सीमंधरजिनविनती स्तवन, साधारणजिन पद व कृष्णभक्ति पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४४११, १५४४२). १. पे. नाम. सीमंधरजिनविनती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: पुर्व पुखलावती बीजै; अंति: प्रभुजीने वांदव्या, गाथा - १३. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सीवचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि जुहारै जुहारै जुहारे अति प्रीया कर मया करे, गाथा-३. , ३. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मीराबाई, पुहि., पद्य, आदि कोई दिन याद करो रे; अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७९१७३ (+) वयरस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२४X१२, १२X३२-३५). वयरस्वामी सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि सांभलजो तुमे अद्भूत, अति नित्य नमिये नरनारी, गाथा- १४. ७९१७४. (#) गगनधूलि कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : गगनधूलीकथा, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १५X४६-५०), For Private and Personal Use Only गगनधूलि कथा, सं., गद्य, आदि: उज्जयिन्यां विक्रम; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "समजल्यामि परं कलत्रं नावलोकयामि रात्रो मे सुप्तस्य पाठांश तक है.) Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९१७६. गजसुकमाल सज्झाय व अढारनात्रा नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ६-११४३८-५२). १.पे. नाम, गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दानने एहवा मुनिवरू, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अढारनात्रा नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. १८ नात्रा नाम, सं., गद्य, आदि: १ भ्राताएक मातृत्वात; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ "सपत्नीभर्तृभोग्यतः इंतिमात्रासहषटनात्रकापि" पाठांश तक लिखा है.) ७९१७७. (#) जीराउला पार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१३४३६-३९). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. सोमजय, अप., पद्य, वि. १६वी, आदि: जीराउलि राउल कयनिवास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक लिखा है.) ७९१७८. (4) पंचमहाव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४२५). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., दूसरे व्रत से है व चौथे व्रत तक लिखा है.) ७९१७९. नरक विचार, संपूर्ण, वि. १८५२, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. जतीशिवा, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ३६४२३). नरक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ पहिली रत्नप्रभा; अंति: भुवनपती एरुंधी छइ. ७९१८० (#) पर्यंताराधना, तेरकाठिया नामादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६६८, पौष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. ४, प्रले. ग. मान्यसौभाग्य (गुरु ग. सूरसौभाग्य, तपागच्छ); गुपि.ग. सूरसौभाग्य (तपागच्छ); राज्यकाल आ. विजयसेनसरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५-१२x२३-२८). १.पे. नाम. पर्यताराधना सह टबार्थ, प. १०अ, अपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: लहंति ते सासयं सुखं, गाथा-७०, ग्रं. २४५, (पू.वि. गाथा-७० अपूर्ण मात्र है.) पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: लहइ ते शास्वतुं सुख. २.पे. नाम. तेर काठिया नाम, पृ. १०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आलस १ मोह २ अवन्ना ३; अंति: कुहली १२ रमणी १३. ३. पे. नाम. सात भय नाम, पृ. १०आ, संपूर्ण. ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इहलोक भय १ परलोक भय; अंति: भय ६ कस्मात्रभय ७. ४. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७९१८१ (2) आयुष्यकालज्ञान गाथा, छायापुरुषलक्षण श्लोक व कवित्तलावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३-३३४२९-३३). १.पे. नाम. आयुष्यकालज्ञान गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. कालज्ञान चक्र सहित. आयुष्यकालज्ञान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पयभायणंमि भरिए पिछइ; अंति: आस्सिआई मुणंयव्वं, गाथा-३. ___ आयुष्यकालज्ञान गाथा-बालावबोध, मा.गु., पद्य, आदि: सूर्य मेषसंक्रांति; अंति: भाषिय अन्यथा न हुवइ. २. पे. नाम. छायापुरूषलक्षण श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. छायापुरुषलक्षण श्लोक, सं., पद्य, आदि: अथातः संप्रवक्ष्यामि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ के प्रारंभ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २१३ ३. पे. नाम, औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हंहा गड दीहंत हनुमंत; अंति: लाज थोरी थोरी आसाउरी, पद-३. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक लावनी, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ कालुराम, पुहिं., पद्य, आदि: नाचत कवरी के नंदनं; अंति: कालु०प्यारे से उडाती, गाथा-५. ७९१८२. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. लषमीचंद; पठ. श्रावि. सूर्यबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२,१३४२७-३०). सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा हु; अंति: होज्यो मुज चित्त हो, गाथा-९. ७९१८३ (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३६-१३५(१ से १३५)=१, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, १८४४४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र हैं., शतक-१० उद्देश-५ अपूर्ण से है, शतक-११ उद्देश-९ व उद्देश-१२ अर्थ सहित आंशिक पाठ है.) ७९१८४. सामायिक, राईप्रतिक्रमण व सामायिक पारने की विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १४४३१). १. पे. नाम, सामायिक लेने की विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम खमास० देइ इच्छ; अंति: इम कही ३ न० प्रगट क०. २. पे. नाम. राईप्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामा० लेइने राइ पडिक; अंति: शेजाजीनी कहवी. ३.पे. नाम. सामायिक पारवानी विधि, प. १आ, अपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडि० तस्स०; अंति: (-), (पू.वि. इरियावही सूत्र प्रारंभ मात्र है.) ७९१८५ (+) सामायिक ३२ दोष स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १९४३१). १.पे. नाम. सामायिक ३२ दोष स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरना प्रणम; अंति: मुगतिरमणि निसचे वरै, गाथा-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: खाइजो पिजो वागरो जाण; अंति: द्यो किसी फलना सेव, गाथा-२१. ७९१८६.(-2) उत्तमबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, लिख. श्राव. भाणचंद; पठ. श्रावि. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०४३०-३५). औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगव भारति चरण नमेम; अंति: धरम रंग मन धरजो चोल, गाथा-१६. ७९१८७. (#) लीलावती चौपाई व औपदेशिक सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक न होने से पत्र संख्या अनुमानतः दी गयी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४५९). १. पे. नाम. लीलावती चौपाई, पृ. ११अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२१ की गाथा-३ अपूर्ण से है व ढाल-२३ की गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ११आ, संपूर्ण. हरिदास, पुहिं., पद्य, आदि: कुलजुग के पुहरे भइया; अंति: हरिदास० नेरा आता है, सवैया-१. ७९१८८. (+) अर्बुदगिरि स्तवन, अपूर्ण, वि. १८९५, वैशाख कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १७४३६-३९). For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आबु गीरवर चैत्य; अंति: जयसागरे आयथी रे लो, गाथा-२१, ___ संपूर्ण. ७९१८९ (#) महावीरस्वामीनं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १०४३३-३६). महावीरजिन स्तवन, म. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: म्हें तो नजीक रहेश्य; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-७. ७९१९० (+) आहारमान विचार व जापविचार श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १७४४२). १. पे. नाम. आहारादि मान विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: इह विदेहेषु संपूर्णः; अंति: मुखवस्त्रिका भवंति. २. पे. नाम, जापविचार श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण.. चिंतामणि कल्पे जाप विचार, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अंगुष्टजापो मोक्षाय; अंति: निप्फलं होइ गोयमा, श्लोक-१०. ७९१९१ (4) मृगांककुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४५-४८). मगांककुमार रास, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि: सरसति सामिणि वीनवू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ७९१९२. (#) महावीरजिन स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. लुहारा, प्रले. सा. रामकवर आर्या (गुरु सा. केसरजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १६४३०). १. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: जोग लेई बीर जिणेस; अंति: तुम नामे आनंदा काइक, गाथा-१४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. सुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: पायोह मनुष देह ओसर; अंति: सुंदर० कर हरमसमाइय, गाथा-१. ९३.(+) दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई व चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७९०, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. हरचंद; पठ. अजानवाजाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४०). १. पे. नाम. दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, म. कशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: (-); अंति: कुसल सीस गुण गाइयै, ढाल-४, __(पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणी पास पास; अंति: कुसल गुण मुदाजी, गाथा-५. ७९१९४. (+) स्तुति, स्तोत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १४४४०-४४). १.पे. नाम. नमस्कारमंत्र स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: जेहनो अपार री माई, गाथा-९. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो कहै; अंति: जपे हो बहु सुख पाया, गाथा-५. ३.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनायक जिनवरू रे; अंति: प्रति नमति कल्याण, गाथा-५. ४. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २१५ मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र महाराय सेव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७९१९५. ५ मंगल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मुंबइबंदर, पठ. धोलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४११.५, १३४२६-२९). ५ मंगल स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलं ए मंगल मन धरो; अंति: नामथी शुभगुण ते वरे, गाथा-८. ७९१९६. (#) दानशीलतपभावना संवाद व क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११, १४४५०-५३). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. २.पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: समयसुंदर० जगीस जी, गाथा-३६. ७९१९७. बासठमार्गणा नाम, १४ जीवभेद, १४ गुणठाणा, १५ योग, १२ योगादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, प्र.वि. *पत्र १४४., दे., (२६४११.५, ३१४२३). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७९१९८. (+) जीववारभेद विचार कोष्टक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, १०x२७). ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ समुचैजीवमाहि २नार; अंति: (-), (पू.वि. १४ गुणठाणा वर्णन अपूर्ण तक है.) ७९१९९ ६२ मार्गणा, १४ गणठाणा व कर्मग्रंथ यंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. *पत्र १४४, दे., (२६४१२, ४०४२०-२८). मार्गणा, गणस्थानक व कर्मग्रंथादि यंत्र संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: परिणामि १ जीव २ मुत; अंति: (-). ७९२००. श्रावक १२ व्रत अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, जैदे., (२५४११.५, १५४३०-३५). श्रावक १२ व्रत अतिचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चले ते पतिभगति नार, ढाल-४, गाथा-७४, (वि. गाथा-२ से लिखना प्रारंभ किया है.) ७९२०१ (+) पौषधविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जालोर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४५७). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पहिली इरिआवही पडी०; अंति: पडिलेहीजे० पालटीइं. ७९२०३. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१२(१ से १२)=२, प्र.वि. हुंडी: दसमी, दे., (२६४१२.५, १३४३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., अध्ययन-६, गाथा-३९ अपूर्ण से अध्ययन-७, गाथा-१९ तक है.) ७९२०४. (+) महावीर द्वात्रिंशिका, पार्श्वजिन स्तवन व भवानी छंद, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४५२). १. पे. नाम. महावीरद्वात्रिंशिका, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसात्म्यात; अंति: तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३. २.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, प. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: शिवसुंदर सौख्य पदं, श्लोक-७. ३. पे. नाम. भवानी छंद, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भवानीछंद आरार्तिक स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: अयि गिरिनंदिनि नंदित; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९२०५. (+) वर्तमान चोवीस तीर्थंकर नामादि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, संशोधित., दे., (२५.५४२४.५, २५४४७). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७९२०६. (+) अल्पबहत्वरा अठाणु बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११,१३४२१). ९८ बोल-अल्पबहत्व, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वथी थोडा पुरुष; अंति: सर्वजीव विशेष अधिका. ७९२०७. खरतरगच्छराज मजलस, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४११.५, १५४४२). खरतरगच्छराज मजलस, पुहिं., पद्य, आदि: अहो आओ बेयार बेठो; अंति: पास रहणा तो० कहणा. ७९२०८. (+) सील गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३४३३). शीयलव्रत सज्झाय, मु. ज्ञानकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम उठी मने भावि; अंति: लहियै परमानंद, गाथा-३१. ७९२०९ सहस्रकूटजिन स्तवन व महावीरजिन पद, संपूर्ण, वि. १९०२, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. सा. रामा आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२५४१२, ९४२७). १. पे. नाम. सहसकूटजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सहसकूट जिन प्रतिमा; अंति: देवचंद्रनी प्रीति, गाथा-१४. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. शिवचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: इक दिन प्रभु वीर सम; अंति: स्यादवाद अमृत झरिया, गाथा-५. ७९२१०. अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४१२, १४४३४). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धरम; अंति: कांति सुख पामे घj, ढाल-२, गाथा-२४.. ७९२११. (+#) साधुपाक्षिकादि अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३२). साधपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.प., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: संबंधीओ अनेरो०, (पू.वि. ज्ञानाचार के ___विषय में दैनिक अतिचार का वर्णन अपूर्ण से है.) ७९२१२. १५ प्रश्नोत्तर जैनसिद्धांतसंबद्ध-स्थानकवासीमत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ., (२५४११.५, १४४४०). १५ प्रश्नोत्तर जैनसिद्धांतसंबद्ध-स्थानकवासीमत, मु. धर्मसी, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: केतलाक इम कहे छे जे; अंति: (-), (पू.वि. सूत्रार्थ-३१ अपूर्ण तक है.) ७९२१३. (+) दसपच्चक्खाण फल, चौरासी आशातना व दादाजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: पच्चक्खाणरौ, संशोधित., दे., (२५.५४१२, १७४६१). १. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथ नंदण नमु; अंति: रामचंद तपविधि भणै, ढाल-३, गाथा-३३. २. पे. नाम. चौरासी आशातना स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनपास जगत्र; अंति: श्रीजिनसासन ते वली, गाथा-१८. ३. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, उपा. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसूरेसरूरे; अंति: ग्यानसागर० अणाय रे, गाथा-१३. ७९२१४. (+) प्रतिक्रमणाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ३४४२०). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.प.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: १पंचविध आचारनी शुद्ध; अंति: जावु ते अप्रशस्त. ७९२१५. योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, जैदे., (२४.५४१०, १३४५४). For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २१७ योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., को, आदि: श्री आवश्यकयोग श्रुत: अंति: (-). (पू.वि. मध्यभाग का कोष्ठक नहीं है) www.kobatirth.org ७९२१६. गौतमस्वामी छंद, सज्झाय व बृहस्पति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५.५X११, १०X२६). १. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस, अति गौतम तुठे संपति कोड, गाथा ९. २. पे नाम गौतमगुरु सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोतम गुरु प्रभात; अंति: वीजयसीखरकहे सुवीलासे, गाथा - १३. ३. पे नाम, वृहस्पति स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रीतिः तस्य जायते, श्लोक-५. ७९२१७ (+) साधुपाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, पठ पंन्या. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X१२, १४X३२). साधुपाक्षिक अतिचार-छे.मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: एकएक तप लेखे. ७९२१८. () शीयलनववाड, सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( २६१२.५, २०x४१). १. .पे. नाम, शीयलनबवाड सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहेली प्रणमं गोयम, अंति: मानव भव उजवालसी, गाथा - २८. २. पे नाम, शीयल सज्झाय, पू. १आ-२आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मु. ज्ञानकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम उठी मने भावि; अंति: ज्ञान० लहियै परमाणंद, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ३१. ३. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. तिलोकचंद, मा.गु., पद्य, आदि शिवपुर नगर सुहामणो अंति: बीनवे श्रीतिलोकसूरि, गाथा- १३. ७९२१९ नरकविस्तार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २, प्रले. पं. बुद्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५X१२.५, १२X३१). नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि वर्द्धमान जिनने अति परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा- ३५. ७९२२० (+) आलोयणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रावण कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, बीकानेर, प्र. वि. हुंडी: आलोयणा, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैदे., (२५४१२, १५५३७). आलोयणा स्तवन-वृद्ध, मु. धमसीह, मा.गु., पद्य वि. १८५४, आदि एह धन सासन वीर जिनवर, अंति कीधो चीपने फलवधिपुरै, गाथा-३०. ७९२२१. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२६.५x११.५, १५X४४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती चरणे अनुसरी अति: सिसु भावसागर संकल्यो, ढाल -६, गाथा- ६२. ७९२२२. दसारणभद्र चौढालीयो व कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६X१३, १५X३६). १. पे नाम. दशार्णभद्र चौपाई, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि सारद समरु मनरली समरु; अंति: कुसल सीस गुण गाइयै, ढाल-४, गाथा-२८. २. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. " कवित संग्रह", पुहिं., मा.गु..रा., पद्य, आदि (-): अंति: (-). , ७९२२३. अक्षयनिधितप खमासमण दूहा व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, पठ. मु. अमृत (गुरु ग. रत्नविजय, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४१३, १३४३५). For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम, अक्षयनिधितप खमासमण दहा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर संखेश्वर नमी; अंति: होज्यो ज्ञानप्रकाश, गाथा-२६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: तपवर कीजे रे अक्षय; अंति: पद्मविजय फल लीधो, गाथा-१२. ७९२२४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५,१६x४५). उत्तराध्ययनसूत्र, म. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., अध्ययन-१ गाथा-३ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: भिक्षो विनयं प्रादुष; अंति: (-), पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हुं विनयमार्ग प्रकट; अंति: (-), पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ७९२२५. (+) स्तवन व होरी संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३४३१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन समरण करि जीनपासतण; अंति: शिववधु करि वरणो, गाथा-७. २. पे. नाम. शीखरजीतीर्थ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीउ कर रे जात्र शीखर; अंति: कीजे सुचिता तन की, गाथा-६. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन भज रे श्रीजिन भाव; अंति: रूपवि० कमला कोडि वरी, गाथा-७. ४. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी, म. रूपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: गिरनार पे खेलत होरी; अंति: गीरनारि तीन कल्याणक, गाथा-५. ५. पे. नाम. आदिजिन होरी, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: नाभीनंदन दरबार रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७९२२६. विधिविधान संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१०, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. वडगाँव, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४४). १. पे. नाम. जिनबिंबप्रवेशस्थापना विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलु मुहूर्त भलु; अंति: नाम १०८ वार स्मरे. २. पे. नाम. जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, पृ. २अ, संपूर्ण.. __प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अथ प्रतिष्ठित नवीन; अंति: जिनभवन पूजन विधीयते. ३. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहेलू पंचपरमेष्टि; अंति: पच्चक्खाण करें करावे. ४. पे. नाम. जैनधर्ममहिमा श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. जैनधर्म महिमा श्लोक, सं., पद्य, आदि: देवो यत्र जिनो गुरुः; अंति: कल्पद्रुमाभो यथा, श्लोक-१. ७९२२७. ४७ एषणा दोष सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९०४, फाल्गुन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. लसकर, दे., (२५.५४११.५, १२४२८-४२). ४७ एषणा दोष, मा.गु., गद्य, आदि: १आधाकर्मि २उद्देशिक; अंति: अंगारदोष धूमदोष. ४७ एषणा दोष-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: साधु अर्थ साधु के; अंति: पटने धुवा समान करै. For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २१९ ७९२२८. तप व आलोयणा विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तपोविधिप., जैदे., (२६४१०.५, १५-१७४५५-५७). १. पे. नाम. तप संग्रह, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. तपस्या विधिसंग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: प्रमाण मोदक इति देयं, (पू.वि. ३७वे लघुसंसारतारण तप से है., वि. कुल तपसंख्या-६२.) २. पे. नाम. आलोयणा विधि संग्रह, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आलोचणा विधि संग्रह, सं., गद्य, आदि: ज्ञानाशातनायां जघन्य; अंति: (-), (पू.वि. करकर्मणि उ० ३ तक है.) ७९२२९ दीपावलीकल्प का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: दी.कल्प, दे., (२५४१२, ११४३०). दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)स्वस्ति श्रीसुखदातार, (२)स्वस्ति श्रीलक्ष्मी; अंति: (-), (पू.वि. पुण्यपाल मंडलीक राजा द्वारा महावीरस्वामी वंदन प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७९२३० (+) उपदेशबत्रीसी व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२९, श्रावण शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. नाथद्वारा, प्रले. पं. गजेंद्रसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १५४३२). १. पे. नाम. उपदेशबत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: (१)क्या गुमांनी आखर, (२)आतमराम सयाने तुं; अंति: राज० सुपात्रे दीजे, गाथा-३२. २. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मुनिसुव्रतशुं मोहनी; अंति: यनो राम कहे शुभ शीश, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरूषादानीय, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमातमा; अंति: प्रगटे झाकझमाल हो, गाथा-७. ४. पे. नाम, सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देह गेह सोहाविए मन; अंति: खिमाविजय जिन सनुर, गाथा-६. ७९२३१. अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी: पूजापत्र, दे., (२६.५४१२.५, १२४३१). ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१३, आदि: श्रुतधर जस समरें सदा; अंति: (-), (पू.वि. जलपूजा गाथा-११ अपूर्ण से पुष्पपूजा गाथा-२ अपूर्ण तक एवं दीपपूजा गाथा-२ अपूर्ण से नहीं है.) ७९२३२. इलाचीकुमार चौढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४.५४१०.५, १२४३१). इलाचीपुत्र चौढालीयो, मु. भूपति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुणनीलो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ अपूर्ण तक ७९२३३. वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७८७, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. उंझा, प्रले. पं. राजरत्न; पठ. श्रावि. अगरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४३८). महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.ग., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमी; अंति: सेवक सकल जनमन रंजणो, ढाल-५, गाथा-५४. ७९२३४. (+) समोसरण रचना स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२.५, १४४३१-३८). समवसरण रचना स्तवन, मु. अमरविबोध, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: तेहने सिद्ध फल दाखे, गाथा-२३. ७९२३५ (+) नेमराजिमती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १७७५५). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: पुन्य० नेमीजीणंद के, गाथा-७०. For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९२३६. (+-) वीरप्रभु स्तवन व परमानंद स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ११४३२-३४). १. पे. नाम. वीरप्रभु स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-कारकगर्भित, सं., पद्य, आदि: आनंदरूप निजशुद्धगुण; अंति: कुरु नाथ परं न याचे, श्लोक-९. २. पे. नाम. परमानंद स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंपन्न; अंति: परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५. ७९२३७. (+) पद्मावती स्तोत्र व स्तोत्रफलश्रुति विचार, संपूर्ण, वि. १७६१, माघ कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. कृष्णदास (गुरु मु. गोविंदजी, लुंकागच्छ); गुपि. मु. गोविंदजी (गुरु मु. त्रीकमजी, लुंकागच्छ); पठ. सा. जसांजी (गुरु सा. संतोखदे); गुपि. सा. संतोखदे, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३८). १.पे. नाम. पद्मावतीमहादेवी स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-१३. २. पे. नाम. पद्मावती काव्य समरणफल, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी अष्टक-निमित्तसाधन विचार, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: प्रथम काव्येन सकल; अंति: वांछितसिद्धिर्भवति. ७९२३८. (+#) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. दयालाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४२-४५). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुनि, ढाल-६, गाथा-४९. ७९२३९. ऋषभजिन व पार्श्वजिन बृहत्स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १५४३७). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ आदिजिन स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवननायक ऋषभजिन; अंति: अरज श्रीध्रमसी तणी, गाथा-१६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन बृहत्स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-बृहत् गोडीजी दशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर जगतिलौ ए; अंति: समयरंग इण परि बोलै, ढाल-५, गाथा-२३. ७९२४० (+#) मेघकुमार चौढालिया, दशार्णभद्रराजा व इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७३३-१७४२, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९४५१). १. पे. नाम. मेघकुमार चौढालिया, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १७३३, माघ कृष्ण, १३, रविवार. क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहे जाणीयइ; अंति: इम कनक भणे निसदीस, ढाल-४, गाथा-४९. २. पे. नाम. दशार्णभद्रराजा सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुद्ध देई सेवक; अंति: पभणे लालविजय निसदीस, गाथा-१४. ३. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १७४२, पौष कृष्ण, ५, रविवार. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: लबधविजय गुण गाय, गाथा-९. ७९२४१. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला की कांडानुक्रम नामसंख्यासूचि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४२७). अभिधानचिंतामणि नाममाला-बीजक, सं., गद्य, आदि: २४ वीतरागना नाम; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक __ द्वारा अपूर्ण., कांड-२ पौषमास नाम तक लिखा है.) ७९२४२. (+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन व नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३५). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ आदिजिन स्तवन, ग. पुंजराज, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: जगगुरु चरण नमी करी; अंति: पूरउ परम जगीस हो, गाथा-१८. २. पे. नाम, नेमराजिमती गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. ग. पुंजराज, मा.गु., पद्य, आदि: सुर नर असुर सेवा करइ; अंति: पुंजराज० सुखसार रे, गाथा-५. ७९२४३. (#) सज्झाय संग्रह, पार्श्वजिन स्तवन व झाझरियामुनि चौढालियो, अपूर्ण, वि. १८७०, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १७-१५(१ से १५)=२, कुल पे. ५, ले.स्थल. गुवालेर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४४). १.पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १६अ, संपूर्ण. मु. हर्षमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी आवे अति भली आवत; अंति: हमे लेस्यां संजमभार, गाथा-११. २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवांछित फल सीधो जी, गाथा-१०. ३. पे. नाम. इलापुत्र वैराग्य सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे ईलापुत्र जाणीयै; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि; अंति: कीरत० पारसनाथ कीय, गाथा-१५. ५. पे. नाम. झांझरीयामुनिनो चौढालियो, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसती चरणे सीस; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१ तक है.) ७९२४४. (+) असज्झाय विचार, संपूर्ण, वि. १९५९, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पीफाड, प्रले. मु. राजमल्ल ऋषि; पठ. मु. दलीचंदस्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: असज्झाय, संशोधित., दे., (२५.५४१२, १३४३७). असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दसविहे अंत लिखिए; अंति: आसातना लागे नहीं. ७९२४६. उपधान विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १४४३६). उपधानतप विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्र प्रथमोपधान; अंति: (-), (पू.वि. "पवेह शिष्य कहि इत्थं खमास० उभा नवकार १ कहि" पाठांश तक लिखा है.) ७९२४७. आठ कर्म १५८ प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. पाटडीनगर, प्रले. मु. उत्तमविजय (गुरु पं. वल्लभविजय); गुपि. पं. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: आठकर्म, दे., (२५.५४११.५, १५४३६). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: अह गाम दाहिणे झसिरा, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., चक्षुदर्शनावर्ण१ अक्षुदर्शनावर्ण २ अवधीदर्शनावर्ण३ आदि वर्णन अपूर्ण से है.) ७९२४८. पार्श्वजिन अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४१२, १४४३६). पार्श्वजिन ८ प्रकारी पूजा, आ. दीपरत्नसूरि श्राव. वच्छ भंडारी, मा.ग., पद्य, आदि: क्षीर जलनिधि नीर; अंति: (१)इम __ भणे वछ० जिनेश्वरो, (२)दीपरत्न तिमिरविनाशनं, पूजा-८. ७९२४९ (+) नेमराजिमती चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३९). नेमराजिमती चरित्र, म. फतेचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: सदगुरुने चरणे नमी; अंति: सेवा सयल जग आणंदणो, गाथा-३७. ७९२५०. महावीरजिन स्तवन- उपधानतप विधिगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. राधिकापुर, दे., (२६४१२, १२४३६). महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, म. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरे; अंति: मुझ देज्यो भवो भवे, गाथा-२७. For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९२५१ (+) चोवीसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. हुंडी: चोवीसजिनस्तवनं, संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, २४४६१). २४ जिन स्तवन, मु. रुचिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., अरनाथ स्तवन गाथा-३ अपूर्ण से महावीरजिन स्तवन गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७९२५२. पर्यषणपर्व स्तुति, ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय व भोगउपभोग वस्तनाम गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१२, १२४३३). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जिन पूजा; अंति: मान० देवी सिद्धाइ जी, गाथा-४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. ३. पे. नाम, भोगउपभोग वस्तुनाम गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. भोगोपभोग वस्तुनाम गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: एक बार जे भोगमां आवे; अंति: वल्लभा ते कहीइ उपभोग, गाथा-२. ७९२५३ (+) श्राद्धगुण विवरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५९-५७(१ से ५७)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४४१-४६). श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमंडन, सं., गद्य, वि. १४९८, आदि: (-); अंति: चिरं नंद्यात्, अध्याय-३५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., दृष्टांत श्लोक २९ अपूर्ण से है.) ७९२५४. लक्ष्मीपुंज व्यवहारी व कर्मसारपुण्यसारसौभाग्यसार बंधुत्रय कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५-२६.०x११, १७X५४-५८). १. पे. नाम. देवद्रव्यानर्पणार्पणे लक्ष्मीपुंज कथा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. लक्ष्मीपुंज कथा-देवद्रव्यानर्पणार्पणे, प्रा., गद्य, आदि: इहेव भरहे लच्छीसारं; अंति: सावगधम्मो गओ देवलोगं. २. पे. नाम. कर्मसारपुण्यसारसौभाग्यसार कथा, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मसारपुण्यसारसौभाग्यसार कथा-ज्ञानसाधारणदृष्टांते, सं., गद्य, आदि: भोगपुरे चतुर्विंशति; अंति: (-), (पू.वि. जिनदत्त जिनदास अन्तर्कथा अपूर्ण तक है.) ७९२५५. वेलातेलाग्रहण तथा पारण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११, ११४३३). १.पे. नाम, वेलातेलाग्रहण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. __बेला तेला ग्रहण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम देहरे निसही कह; अंति: ञानपूजा गुरुपूजा करे. २.पे. नाम. वेलातेलापारणा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. बेला तेला पारणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: इसी तरै पारणा; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ७९२५७. (+) आदिजिन व चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, १९४५०). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. किसन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिणेसर जगत; अंति: कीरत मुनि कृसन भणी, गाथा-१८. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: श्रीरिषभ अजित संभव; अंति: महासुखा की ख्यान है, गाथा-८. ७९२५८. (+#) सरस्वती छंद व शनीश्चर छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. भुजपत्तन, पठ. मु. अमीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १७४३४). १. पे. नाम, सरस्वतीदेवी छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २२३ सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आस्या फलसे सवी ताहरी, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-३१ से है.) २. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अही नर असुर सुरांपती; अंति: हेम० सनीसरवर, गाथा-१२. ७९२५९. वेलातेलाग्रहण तथा पारणा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, ८४३४). १. पे. नाम. वेलातेला विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बेला तेला ग्रहण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम देहरे निसही कह; अंति: ञानपूजा गुरुपूजा करे. २. पे. नाम. वेलातेलापारणा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. बेला तेला पारणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: इसी तरै पारणा; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ७९२६०. तीर्थमाला स्तवन, शालिभद्र सलोको व इलाचीकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८३८, पौष शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. बुदीगाम, प्रले. मु. नाथा; पठ. धनरूप मनरूप; राज्यकालरा. अभयसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में २ बीसा यंत्र आलेखित है., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४६). १. पे. नाम. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण.. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजेजे रीषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहै एम, गाथा-८. २. पे. नाम. शालिभद्र शलोको, प.७अ-७आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि शलोको, ग. कनकप्रिय, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: सरसतसामण समरु सुखदाई; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: लबधविजै गुण गाय, गाथा-९. ७९२६१ (+) आदिजिन स्तवन, पार्श्वनाथ लघुस्तवन व नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४३७). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: सुगुण सहेजा सांभलो; अंति: जिनभक्तिसुरिंद कि, गाथा-१२. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन पद-अमीझरा, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगिरनारै पास नमिय; अंति: देव दरसण दीजै रे, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमराजिमति गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. भीम, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजयसुत नेम; अंति: नाह पहतौ रंगैरे, गाथा-३. ७९२६२. सुदर्शनशेठनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, २१४४३-४८). सुदर्शनसेठ सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रीस चढी बोलै छै राणी; अंति: गया वो जयजयकार, ढाल-३, गाथा-३१. ७९२६३. मल्लिजिन-नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १३४३७). मल्लिजिन-नेमिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४२, आदि: मलीकुमरी ने नेमनाथो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ तक लिखा है.) ७९२६४. (+) सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १५४४३). औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७९२६५ (+-) चित्रसंभूति वशीयल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प.१, कल पे. २, प्र.वि. हंडी: चीतसवकीढालछजी, संशोधित-अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११.५, २०७४४-४६). १.पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चत कह बरमराएन कछ दील; अंति: थारा करम रुलाव होक, गाथा-२४. २. पे. नाम, शीयल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चोथो व्रत छे मोटकीय; अंति: हे जिम उतरो भवपार, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९२६६ (#) इलाचीकुमार व विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. प्रारंभ में ७ गाथावाली किसी अज्ञात सज्झाय की मात्र अंतिम कडी का अंतिम भाग है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १२४४७). १. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारंभ में एक अज्ञात कृति का अंतिम वाक्य अपूर्ण मात्र है. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुत्र जाणिये; अंति: लबधविजै गुण गाय, गाथा-२१. २.पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतरागदेव नमुं; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ की गाथा-३ तक है.) ७९२६७. (+) मृगापुत्र रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गोविंद; अन्य. धनपतराय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिकावाला भाग अर्धखंडित है., संशोधित., दे., (२५४११.५, १५४३५). __ मृगापुत्र रास, मु. मनधर, पुहिं., पद्य, आदिः शक्र इंद्र प्रसंसा; अंति: तजे पावे मुक्तिवास, गाथा-३०. ७९२६८. (+) साध्वी उपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: श्रावकसी, संशोधित., दे., (२६४१२, १५४४३). औपदेशिक सज्झाय-साध्वी, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: थे सणज्यो हे साधवि; अंति: कोई नहीं रागने रीस, गाथा-२५. ७९२६९. आवश्यकसूत्र नियुक्ति व उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५८-५६(१ से ५६)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४३६-४०). १. पे. नाम. आवश्यकसूत्र-उपोद्घातनियुक्ति, पृ. ५७अ-५८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-१७७ से है व २०८ तक संकलित है.) २.पे. नाम. उत्तराध्ययनसत्र-मगापत्रीय व नमिप्रव्रज्या अध्ययन की चयनित गाथाएँ, पृ.५८अ-५८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. नमीप्रव्रज्या अध्ययन गाथा-सुवण्णरुप्पस्स० अपूर्ण तक है.) ७९२७० (4) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, शारदाष्टक व मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ४४४२६). १.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. २. पे. नाम, शारदाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (१)सरस्वती महाभागे वरदे, (२)ॐ ऐं श्री मंत्ररूपे; अंति: सदा शारदा तुष्ट देवि, श्लोक-९. ३.पे. नाम. विविध विघ्नोपद्रव निवारण मंत्र संग्रह, प. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ७९२७१. सुबाहुकुमारनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी: सुबाहु०, दे., (२६४१०.५, १४४४५). सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: हवे सुबाहुकुमार एम; अंति: जासे मोक्ष भविक, गाथा-१५. ७९२७२ (+) पार्श्वजिन स्तोत्र, आत्मनिंदा स्वाध्याय व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., प्रले. मु. लीलाधर (गुरु मु. अजबचंद ऋषि); गुपि. मु. अजबचंद ऋषि (गुरु मु. सुजाण ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, म. लब्धिरूचि, मा.ग.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदिः (-); अंति: मुदा प्रसन्नात्, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. आत्मनिंदा स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण, ले.स्थल. दीवबिंदर, प्रले. मु. अजबचंद ऋषि (गुरु मु. सुजाण ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, पुहिं., पद्य, आदि: दया मे वास मे हो; अंति: उदयरतन०पुरी में खेलो, गाथा-७. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. नेम, मा.गु., पद्य, आदि: वारु वारु रे म्हारा; अंति: निज सेवक करी मानोरा, गाथा-५. ७९२७३. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी: स्तवनपत्रं, दे., (२६४११, १४४४५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गगन छायो घनवादल रे; अंति: मुझ पणि एहिज टेव, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादानी पासजी; अंति: सफल थई मुज आसि हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. रूपविजय, मा.ग., पद्य, आदि: अश्वसेनकुल दिनमणी; अंति: शिवपुर सद्म हो, गाथा-६. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: त्रेवीसमो जिनराज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) ७९२७४. (#) जंबूस्वामि सज्झाय व मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. चंडावलि, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६४५०). १. पे. नाम. जंबूस्वामि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. जंबूस्वामी सज्झाय, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सोहमस्वामि पधार; अंति: घरे आवी कहेइ मातन, गाथा-१८. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: समयसुंदर०इग्यारस वडी, गाथा-११. ७९२७५. (+) बोल विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४३९). १. पे. नाम. वाणी के पांत्रीसगुण वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. ३५ जिनवाणीगण वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहली बाणी भगवान; अंति: अभीथुण बचन कहै. २. पे. नाम. दस श्रावक महावीर के, पृ. १आ, संपूर्ण.. महावीरजिन १० श्रावक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत महावीर बीरदमान; अंति: पीया ९ सालणीपीया १०. ३. पे. नाम. षट्काय आयुष्यादि विचार, पृ.१आ, संपूर्ण. ६काय जीव उत्पत्ति आयष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय को आउखोजी; अंति: तीन पल को आउखो. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: लागो चीत सुजाणसं वर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७९२७६. (+#) रहनेमीराजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९०, पौष कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. पानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगौडीजीपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४४०). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग ध्याने मुनि; अंति: रूपविजय० देह रे, गाथा-८. ७९२७७. कर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, ११४४३). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: नमो नमो कर्म राजा रे, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९२७८. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्रले. पं. नेतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १५४४४). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी वृद्धस्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर प्रसंसीयौ, ___ ढाल-३, गाथा-२०, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमी तप तुमे करो; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजी स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु श्रीजिनकुशलस; अंति: जिनचंद्र० तरु फल्या, गाथा-६. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हेली जेसलनगरे रे; अंति: रभूसु प्रीतबंधाणी हे, गाथा-६. ७९२७९ जिनकुशलसूरि स्तवन व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, १३४३८). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमृतशील, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुसलसूरिस्वर; अंति: अमतशील दरसण पावे हो, गाथा-१०. २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७९२८०. (#) मनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. हुंडी: मुनिपति, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १७४४४). मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, ढाल-७ गाथा-८ से ढाल-१० तक है.) ७९२८१ (+) पार्श्वजिन स्तोत्र व जिनपूजादर्शन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३४३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि; अंति: जंपै पुरो संघ जगीसउ, गाथा-७. २. पे. नाम, जिनप्रतिमापूजन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमापूजासिद्धि स्तवन, ग. कीर्त्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चउवीसइ करूं; अंति: कीर्तिविमल सुख वरवा, गाथा-११. ७९२८२. (+) ऋषभजिन, साधारणजिन व औपदेशिक लावणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १२४३५). १.पे. नाम, ऋषभजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-धलेवामंडन, मा.गु., पद्य, आदि: आदिकरण आदि जगत आदि; अंति: ध्यान धरे मन कंदरपे, गाथा-९. २. पे. नाम. साधारणजिन लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: तुं ही अरिहंत तुं ही; अंति: दुख दोहग टालणहार, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: करूं अरज एक तो पें; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७९२८३. ऋषभजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४१२, ८x२७). For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २२७ आदिजिन स्तवन, म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ७९२८४. चौवीसजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५.५४१२, १२४३४). २४ जिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुमतिजिन चैत्यवंदन गाथा-३ अपूर्ण से चंद्रप्रभुजिन चैत्यवंदन गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७९२८५ (+) देवसिकप्रतिक्रमणविधि तपागच्छीय, अपर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १६४३२-३५). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रावकने; अंति: (-), (पू.वि. समस्त साधुओं ____ को त्रिकालवंदन देवीसीय प्रायश्चित आदि का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७९२८६ () तीर्थवंदना चैत्यवंदन व शीलवतोच्चार विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १३४४०). १.पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: जांन चैतालिआनी, श्लोक-१०. २. पे. नाम. चोथा व्रत उच्चरवा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण.. शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: अपाणू वोसरामि. ७९२८७. महावीरजिन स्तवन, ५ बोल व २० विहरमानजिन नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., दे., (२५४११, ७४३५). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, म. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबरी सेवामें; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-७, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंतनी; अंति: निजरां रहिस्यु., (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ से गाथा-६ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) २.पे. नाम. पांच बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै अहंकारी; अंति: धर्म उदैनावै. ३.पे. नाम. वीस विहरमानजिन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीमंदीरस्वामी; अंति: १९ अजितवीर्य २०. ७९२८८. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, १२४२८). महावीरजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ सुत सेवीयै; अंति: मनरूप एह उल्हास रे, गाथा-१३. ७९२८९ (+) भरतक्षेत्र जिनवर्णनादि श्लोक व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, २०-२५४५७). १. पे. नाम. भरतक्षेत्र जिनवर्णन श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भरतक्षेत्र जिनवर्णन श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: अथ नाथोप्यभाषिष्ट; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४१ तक लिखा है.) २. पे. नाम. स्त्रीपुरूषमध्य प्रथममृत्युविचार दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अख्यरबिंदु उकारि दूण; अंति: सूनइं पुरुष विनासि, दोहा-२. ३. पे. नाम. ज्योतिष विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम, विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नवनिधान मजूषनइ आकारि; अंति: प्रत्येकि सेवित होइं. For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९२९०. औपदेशिक दोहे- जैनाचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. तोलाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, १३४४१). __ औपदेशिक सज्झाय-जैनाचार, मा.गु., पद्य, आदि: आदि अंत बेहू नही सकल; अंति: मुनिपतिनं आधार, ढाल-२, दोहा-१८. ७९२९१ जीरावला पार्श्वनाथनी निसाणी, फलवर्धी पार्श्वनाथ छंद व २४जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२२, चैत्र अधिकमास शक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. जुनागढ, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक ८१ से ८४ भी लिखा हैं., जैदे., (२५४११, १४-१६४५३). १. पे. नाम, जीरावला पार्श्वनाथनी नीसाणी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: हर्ष गुण गावंदा हैं, गाथा-२७. २. पे. नाम, फलवर्धीपार्श्वनाथ छंद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परत्यापुरण प्रणमीए; अंति: सेवकने सानिधि करे, गाथा-२१. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.. ___ मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ प्रभु अंतरजाम; अंति: सुणता सुख मंगलकारी, गाथा-३१. ७९२९२ (+#) स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८५२, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. श्राव. पानाचंद गुणचंद साहाजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: स्नात्रपत्र ईष्ट प्रशादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३९-४३). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: देववचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०. ७९२९३. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८९१, आश्विन कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. पंडित. लक्ष्मीविजय; पठ. श्रावि. झविरी; अन्य. पं. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३४-४०). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: आणी आप समोवड थापीये, ढाल-९, गाथा-७७. ७९२९४ (+) प्रदेशीराजा के प्रश्न- राजप्रश्नीयसूत्रे, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २०४३४). प्रदेशीराजा के प्रश्न-राजप्रश्नीयसूत्रे, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमतो प्रदेशी राजा; अंति: मानव ग्रिवैकै जाय, प्रश्न-११. ७९२९५. गोडीपार्श्वनाथजीरो बृहद् स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३५, आश्विन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: पार्श्वजीन०, दे., (२५.५४१२, १०४२७). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. प्रीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी; अंति: जिन नाम अभिराम मंते, गाथा-५५. ७९२९६. (+#) चंदनबालासती सज्झाय व विषापहारभाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २०४४२). १. पे. नाम, चंदनबाला सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ___चंदनबालासती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: श्रीसिद्धार्थ कुलतिल; अंति: दान सुपात्र दीजीये, ढाल-२. २. पे. नाम, विषापहारभाषा, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं., पद्य, वि. १७१५, आदि: रीषभनाथ विमल गुणे इस; अंति: अचलकी० साहब को नाव, गाथा-४१. ७९२९७. (+) बांसुरी पद व नेम गोपी संवाद, संपूर्ण, वि. १८५६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४२). १.पे. नाम. बंशी पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेसिक पद-बांसुरी, मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सुण वांसडली वैराग; अंति: मोहन दया धारी मनमें, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २. पे. नाम. नेमगोपी संवाद, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति: सीसे अमृत गुण गाया. ७९२९८. जोणिभेद पद व चौदगणठाणा, अपूर्ण, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)-४, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी: गुणठाणा, दे., (२५४१२, २४४५२). १.पे. नाम. जोणिभेद पद सह बालावबोध, पृ. २अ, संपूर्ण, वि. १९२५, फाल्गुन शुक्ल, २, प्रले. मु. प्रेमचंद (गुरु मु. ज्ञानचंद); गुपि. मु. ज्ञानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा जोणिभेद पद, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: कुमुणया १ संखावति २; अंति: पिहु जणा गब्भ वति , (वि. पद-९ का अंतिम सूत्र) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा जोणिभेद पद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिणभैद जोनिना; अंति: कुरमोनती जोनिने विषे. २. पे. नाम. चौदहगुणठाणा २१द्वार विचार, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १४ गुणस्थानके २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणो १; अंति: (-), (पू.वि. जोग द्वार अपूर्ण तक है.) ७९२९९. रोहिणीतप व ज्ञानपंचमीपर्व महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०८, चैत्र शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. श्रावि. चांदबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: पंचमीतवनं, दे., (२६४११.५, १२४३४). १.पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामणी ए मुझ; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं सदगुरु पाय; अंति: समयसुंदर पर संथुणो, ढाल-३, गाथा-१७. ७९३००. जंबुस्वामी चरित्र व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७६३, पौष शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. छवीला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: जंबुस्वामीकथा, जैदे., (२४.५४११, १५४५१). १. पे. नाम. जंबूस्वामी चरित्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी चरित्र-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजंबूस्वामि प्रथम; अंति: गया ५२७ सर्व जाणवा. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुवाणी, पंडित. बिट्ठल, मा.गु., पद्य, आदि: घरि आव सुज्ञानी जीव; अंति: बिटठल० कहइ संसार हो, गाथा-१०. ७९३०१. (+) सिद्धांतसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १५४४०). सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: ५२६ योजण ६ कला; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "मूसावा उवहिगणउ वेरमण इति ठाणांगे" पाठांश तक लिखा है) ७९३०२. (#) वज्रस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १७८३, वैशाख शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. माणकविजय (गुरु ग. रत्नविजय); गुपि.ग. रत्नविजय (गुरु ग. ज्ञानविजय); ग. ज्ञानविजय (गुरु मु. देवविजय); मु. देवविजय (गुरु आ. विजयसिंहसूरि); आ. विजयसिंहसूरि (गुरु आ. विजयदेवसूरि, तपगच्छ), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४०). वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: वयर गुण गाया रे, ढाल-१५, गाथा-८९. ७९३०३. (#) धनजी अनगार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जगतारणी, प्रले. म. सोनाजीशिष्य, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धनजी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १६x४०). ___ धन्नाअणगार रास, मा.गु., पद्य, आदि: सासणेनाय समरीय पो उग; अंति: नहीं कीयो इन्यावै, ढाल-६, गाथा-१३१. ७९३०४. (#) पट्टावली खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(१,४)=४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४४१). For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अति (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं, रेवतिसूरि से प्रबोधमूर्ति गणि व जिनप्रबोधसूरि से सागरचंद्रसूरि तक पाटपरंपरा है.) ७९३०६. (#) स्तुति, पद व दोहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, ११x४० ). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझनै; अंतिः शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि: सकल तिरथमां मुख्य; अंति: मुरतीकरीतीर्णे ठाय, पद-६. ३. पे. नाम आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. . मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुंजेथी ऋषभदेव, अंति: मानविजय गुण गाया, गाथा-३. ४. पे. नाम औपदेशिक दोहा संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण मु. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दोहा संग्रह - जैन धार्मिक, पुहिं. मा. गु., पद्य, आदि (-); अति: (-), दोहा-३. ७९३०८ (#) सुपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६५१२. ११X१६-२५). सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. राजऋद्धि, मा.गु., पद्य, आदिः सुपास जिनराया हुं, अंतिः आस्याजी पूरि पूरयो, गाधा-५. ७९३०९. (+) होरी, पद व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३६-३९). १. पे. नाम. औपदेशिक होरी पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक होली पद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: तेरे पाप सबल थरकै हो, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, नेमजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि भवि बंदौ जी सिवानंदा अति जिनहरष० सिवचंदारी, गाथा-५. ३. पे. नाम, नेमजिन होरी, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि ऐ ऐ साम सलूगै खेलत; अंति पद कीनो निज अधिकार, गाथा ५. ४. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम है श्याम सरण अति: शिवचंद अरज मेरी, गाथा-५. ७९३१० वल्लभविजयजी के नाम आनंदविजयजी का पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५४११.५, २५४१७)वल्लभविजयजी के नाम आनंदविजयजी का पत्र, मु. आनंदविजय, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंतिः १९४४ का भाववासुदै १५. ७९३११ (#) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. हेमविजय (गुरु मु. ऋषभविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १५X४६). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अतिः शिवं भवंतु स्वाहा. ७९३१२. (*) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-१(१) ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी: नवतत्त्व, पदच्छेद 2 सूचक लकीरें., जैदे., (२६×११.५, १३x३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा- २३ अपूर्ण से ९१ अपूर्ण तक है.) ७९३१३ (४) भगवतीसूत्र गहली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५४१२.५, १२x२५-२८). भगवतीसूत्र गहुली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि सहियर सुणीये रे भगवत; अंतिः दीप० मंगल कोटि वधाई, गाथा-७. ७९३१४. जिनवाणी हली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जीवे. (२६४१२, १०x४०). For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org २३१ जिनवाणी गली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: साहेली हो आवी हु; अति: वंडे घणुं हो लाल (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) " ७९३१५. चौवीश तीर्थंकर नामावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, १२X४८). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: ऋषभ१ अजित २ संभव अति: पार्श्वनाथ महावीर, ७९३१६. (४) गीत व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५.५X११, १७४०-४४). १. पे. नाम. मृगापुत्र महारिष स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. मृगापुत्र सज्झाय, मु. कानजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि पुर सुग्रीव सुहामणो अति सुध प्रणाम हो, गाथा १८. २. पे. नाम थुलिभद्र महामुनि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि प्रीतडी न कीजै नारी अंति समयसुंदर प्रभु रीत, गाथा-७. ३. पे नाम. आत्मप्रबोध गीत, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय-रागद्वेष परिहार, मु. ज्ञानानंद, मा.गु., पद्य, आदि सुणि चेतन तन ए अति ज्ञानानंद० अविचल राज, गाथा-७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घरि घोडा हाथीआ रे; अंति: ( - ), ( पू. वि. गाथा - ७ अपूर्ण तक है.) ७९३१७. धर्मजिन व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X११.५, १२४३५-३८). १. पे नाम, धर्मजिन स्तवन, पू. १अ संपूर्ण. 7 मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, बि. १९वी आदि इम करीए रे नेडो इम, अंति: सुख रंगे वरिये जी, गाथा - ६. २. पे. नाम नेमिजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु, पद्य, आदि न करिये जी नेडो न अंतिः रंगे वरिये जी नगणा, गाथा- ७. ७९३१८. (#) उपदेशमाला सह टबार्थ व दृष्टांतकथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२-४१ (१ से ४१) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ५-१४X३९-४५). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८९ अपूर्ण से ९१ अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-). उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. २४मी अवंतिसुकुमाल कथा संपूर्ण तक है.) ७९३१९. प्रतिक्रमणसूत्र देवसीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २५X१२, १३x३१). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं; अंति (-) (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "एवमए अभिथुआ विहुरयमलापहिण" पाठांश तक है.) ७९३२० () अध्यात्म दुहा, स्थूलिभद्र वारहमासा व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५x५२). १. पे. नाम. अध्यात्म छुटक दुहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक दुहा, मा.गु., पद्य, आदि झुरिने पंजर धया मुख; अंतिः सहजै शिव अभ्यास, गाथा- १९. २. पे नाम. धुलिभद्र बारमासा सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, स्थूलभद्र बारमासा सज्झाय, मु. प्रीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि सम्यग्दृष्टीजीवडो अंति: प्रीतवि०हुवै मोटा रे, गाथा - २०. ३. पे नाम, स्थूलभद्र सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न किजीये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ - अपूर्ण तक है.) ७९३२१. श्रीपाल रास बृहद्, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १२४४२). श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: अरिहंत अनंतगुण धरीये; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) | ७९३२२. (-) औपदेशिक श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०८, वैशाख शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्रले.पं. खुस्यालविजय; अन्य. उपा. सुमतिसागर (खरतरगच्छ); लिख. पं. माणिक्यविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२, २-५४२७-३३).. १. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली; अंति: वनस्पति यथा द्रमम्, श्लोक-८. औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: समस्त मंगलीक रूपणी; अंति: परे विणास पामेइ सही. २.पे. नाम.५ संख्यात्मक विषयनाम दोहा सह टबार्थ, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ५ संख्यात्मक विषयनाम दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: पंचे परमेष्ठि ज्ञान; अंति: पंचे पालो पंचाचार, दोहा-१. ५ संख्यात्मक विषयनाम दोहा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पंच परमेष्ठि अरिहंत; अंति: पालो ए पंचाचार. ३. पे. नाम. कार्यसिद्धियोग्य ५विषयनाम गाथा सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. कार्यसिद्धियोग्य ५विषयनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सामग्गिअभावाओ विवहार; अंति: सिद्धिसुहं न पावंति, गाथा-१. कार्यसिद्धियोग्य ५विषयनाम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सामग्रीना अभाव थकी; अंति: थकी भवि अनंता छे. ४. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिगुणवर्णन सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना १२ गुण अशोक; अंति: पुणा इयरे णरे जीव. ५.पे. नाम. औपदेशिक-धार्मिक दृष्टांतश्लोक संग्रह, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: दाने दर्गतिनाशाय; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ७९३२३. नरक चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१, प्रले. श्राव. नरतोजी; अन्य. सा. प्रेमा आर्या (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११-११.५, १८४३८). नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिजिणंद जुहारिए; अंति: गुणसागर० हो स्वामी, ढाल-४, गाथा-३२. ७९३२४. स्तवन संग्रह, प्रहेलिका दोहा व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२५.५४११.५, १७४३६-३९). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: होयगो कब छन० केवली; अंति: पर अजर अमर सुख थाय, गाथा-७. २. पे. नाम. भावपूजा स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... पुहिं., पद्य, आदि: पंडित पूजा कहिए सोही; अंति: उपजइ जैनधरम इम गावै, गाथा-१४. ३. पे. नाम. ऋषभजिणंद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण... आदिजिन स्तवन, ग. मोहनसुंदर, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणंद प्रभु भेटए; अंति: मोहणंसुदर० कोडि होसु, गाथा-७. ४. पे. नाम. प्रहेलिका दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: सिंहराशि चालीस सिर; अंति: है सुरता ल्यो विचारी, दोहा-१. ५. पे. नाम, औपदेशिक सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: चिंतातुराणां न सुखं; अंति: न बलं न तेजः, श्लोक-१. ७९३२५. एकेंद्रिय मोहनीय स्थिति व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा गया है., दे., (२५.५४१२, २५४८-५१). For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २३३ १.पे. नाम. एकेंद्रिय मोहनीय स्थिति विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. एकेंद्रीय मोहनीयस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १एकेंद्री मोहणीय; अंति: कोडाकोड सागरनी बांधे. २.पे. नाम, विचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. ५वर्ष प्रकार, जिन छद्मस्थ काल, जिनतप कालमान, जीव साँस-उसासादि विचार व कोष्ठक संग्रह) ७९३२६. (4) हितशिक्षा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९४४९-५५). हितशिक्षा चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ की गाथा-११ अपूर्ण से ढाल-८ की गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ७९३२७. (+) लघुसंग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ५४२६-२९). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-८ अपूर्ण तक है.) लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय कहता प्रणमी करी; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक का टबार्थ ही लिखा है.) ७९३२८ (+) नवतत्त्व, अपूर्ण, वि. १९०२, पौष शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, ले.स्थल. इंदौर, पठ.पं. जसरुप (गुरु पं. रतनचंद); गुपि.पं. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: नवतत्त्व, संशोधित., दे., (२६४१२.५, १२४१७). नवतत्त्व प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: एकसिद्ध अनेकसिद्ध, (पू.वि. अनागत काल विषयक अनंतगुणा पुद्गल परावर्त आने के प्रसंग से है.) ७९३२९ (+) प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १०४३०). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "अभिहया वत्तिया लेसिया संघाइया संघहिया परिया" पाठांश तक है.) ७९३३० (+#) युगमंधर, पार्श्व व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४३२). १. पे. नाम. युगमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने सीमंधरस्वामी स्तवन ऐसा लिखा है, परंतु वास्तव में युगमंधरजिन स्तवन है. युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजुगमंधरने कहेजो; अंति: पंडित जिनविजये गाया, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु; अंति: अविचल पद निरधार, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उत्तरवालीओ नहीं घन; अंति: निर्वाहूने स्यावास, गाथा-७. ७९३३१. महावीरजिन स्तुति, स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १३४३२). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: संप्राप्तसंसारसमुद्र; अंति: वाणी संदेह देहे भवणे, श्लोक-४. २. पे. नाम. आणंदवर्द्धन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मन मान्यो वीरजी; अंति: आणंदमुनि गुणगाय, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरमंडन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: छांजि छांजि छांजी; अंति: मोहनविजयै पायो, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९३३२ (#) घीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७१७, फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. प्रेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३९). औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण भाव घणो धरी; अंति: लाल० घी नो __ गुण कह्यो, गाथा-१९. ७९३३३. गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. आणंदविजय; पठ. श्रावि. सुरज बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२,११४२६). गुरुगुण गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे जिनवर वचन सुहंक; अंति: र अमरित शिव निसान रे, गाथा-९. ७९३३४. सज्झाय, स्तोत्र-स्तवन व नवतत्वादि औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, अन्य. पं. कस्तुरविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, २०४४६). १.पे. नाम. ११ अंग सज्झाय-आचारांग सज्झाय १, पृ. १अ, संपूर्ण. ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: आचारांग वडु कां; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, म. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीमहंतुल्य सती; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम, श्लोक-९. ३. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण-चयनित गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-धर्मसूरीय, आ. धर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सिरिधम्मसूरीहिं, (प्रतिपूर्ण, वि. अलग-अलग क्रम की ५ गाथाएँ हैं.) ४. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सखि दहती वसंत; अंति: नहि ताथी भली उजाड, श्लोक-३. ७९३३५. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १४४४२-४६). सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धन ते मुनिवरा रे जे; अंति: सीमंधर तुज रागइ, गाथा-२४. ७९३३६. ऋषभजिन व नेमिराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. निवाज, प्रले. मु. देवीचंद ऋषि; मु. वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३६-४०). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सेवक, रा., पद्य, वि. १८२२, आदि: मूरत मोहनगारी अती; अंति: सेवक० सांवल सासता जी, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिराजिमती पद-केशरीया, मु. वल्लभकुशल, रा., पद्य, आदि: जो थे चालो सिवपुरी; अंति: निवार हो हठीला नेमजी, गाथा-४. ७९३३७. आत्मशिक्षा गीत व प्रास्ताविक दुहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, ११४४४). १.पे. नाम. आत्मशिक्षा गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि जीवडा रे; अंति: मानव भव सफलो कीजिये, गाथा-४. २.पे. नाम. प्रास्ताविक दहा, पृ. १आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)कुड छइल्लां संवलो, (२)दोइ दूजन दोइ व्यावण; अंति: लागी लाय बुझावण जाय, गाथा-७. ७९३३८. (#) सीमंधरजिन विनती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जेसिंघ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५,१६४३६-४०). सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार एहवु; अंति: पुरौ आस्या मन तणी, गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २३५ ७९३३९. . (#) वैराग्योपदेश स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. गोकल शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२६.५x१२, १५X३६). औपदेशिक सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, पुहिं., पद्य, आदि: करिज्यौ मत अहंकार ए; अंति: धरमसीह०धरम मन मै धरो, गाथा - ११. ७९३४०. इक्कीस लब्धि द्वार बोल, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, दे. (२६४१२, १०x४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लब्धिद्वारे २१ द्वार विचार, पुहिं., प्रा., गद्य, आदि जीव गइ इंदिय काए सुह, अंतिः पणई भव प्रत्यई अव, (वि. सारिणीयुक्त) ७९३४१. शत्रुजयतीर्थ अधिकारविषये संवेगी यति विवाद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५.५४११.५, , १८X६०). शत्रुंजयतीर्थ अधिकारविषये संवेगी यति विवाद सज्झाय, श्राव. भीम भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: सरसति माता सानिधै कहः अति रुडो राख्यो रंग गाथा २५. ७९३४२. देवसीप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २५X११.५, १५x२७). 7 देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: इच्छामि खमा० इम कही; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नमोत्थुणं पाठ करने के संकेत तक लिखा है.) ७९३४३. (*) विनय अध्ययन सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी उत्तराध्ययनगीत, संशोधित., जैवे. (२५.५४११.५, १३x२२) १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन १ सज्झाय, पू. १अ संपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्म, आदि: पवयणदेवी चित्त धरी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण २. पे. नाम. उत्तराध्ययन गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, ग. कृपासौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि सोहम कहे जंबू सूणो; अंति: (-) (पू.वि. अध्ययन-१ की गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ७९३४४. (+) कर्पूरविजयगणि निर्वाण रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है ., प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११.५, १३३४). कर्पूरविजयगणि निर्वाण रास, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ की गाथा ४ अपूर्ण से ढाल ६ की गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ७९३४५. स्तवनविशिका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, जैवे. (२५.५x१२, १४४३६-३९). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे; अति: (-), (पू.वि. युगमंधरजिन स्तवन गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७९३४६. प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल कांणाणानगर, लिब. मु. नित्यसौभाग्यजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५. ५x११, २२४५५-५८). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: समरुं सरसती सामिनी; अंति: पुण्य 'अधिक परमोद, ढाल - ११, गाथा - २२०. ७९३४७. () ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय संग्रह व महागिरिसूरि सज्झाय, संपूर्ण वि. १६९५, मध्यम, पू. ४, कुल पे. ३, प्र. ग. कमलराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५४११.५, १४४४५). १. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ- ३आ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय- बृहत् उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., पद्य, आदि देश कलिंगइ नगरी चंपा अंति: राज० मुनिवरगुण गाइ, सज्झाय- ४, गाथा-७६. २. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: करकंडू दोमुंहमुनि मन; अंति: राजरत्न०गाइ आनंदपूरि, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम, महागिरिसूरि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथूलिभद्रसूरि पटो; अंति: राज० ऊगतइ सुविहाण रे, गाथा-२१. ७९३४८. वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १८३८, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११.५, १२४३६-३९). वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: मुक्ति गया.. ७९३४९ (4) चतु:शरण प्रकीर्णक व नक्षत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८०५, आश्विन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. पूजाबाई; पठ. श्रावि. लक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४३३). १.पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २. पे. नाम. नक्षत्र सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. पं. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी गणहर गोयम; अंति: ऋषभदास कह्या ससनेह, गाथा-१२. ७९३५०. असंख्यात अनंतादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, ले.स्थल, भरतपुर, प्रले.ऋ. रामवकस, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, २०४५८-६२). १.पे. नाम, संख्यात अनंतानंत गणितमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. असंख्यात अनंत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ सरसम करी एक जव; अंति: असंख्याते कहिये. २. पे. नाम. षोडश बोल अल्पबहुत्व, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सब ते थोडा समे का; अंति: प्रजाए अनंतगुणी. ३. पे. नाम. षद्रव्य विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय १ अधर्म; अंति: पयसठया अनंतगुणा. ४. पे. नाम. धर्मास्तिकायलक्षण दोहरा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एक द्रव्य है लोकमित; अंति: गगने होत सहाय, दोहा-५. ५. पे. नाम. लोकनालिकाविवरण दोहरा, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कर दो कटि पर कंचुकी; अंति: मुक्तल रहे आकार ज एन, दोहा-४६. ६. पे. नाम, प्रज्ञापनासूत्र प्रश्नोत्तर संग्रह, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-प्रश्नोत्तर, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: बीजा पदना प्रश्न तथा; अंति: भावपणे न मिटे ते भणी. ७९३५१ (+#) स्नात्रपूजा विधि सहित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३५-३८). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८ अपूर्ण तक है.) ७९३५२. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महावीरजिन च्यवनकल्याणक अपूर्ण से है व 'चंदेण जोगमुवाग" तक लिखा है.) ७९३५३. (+) पनरह चौपाइ व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३९). १.पे. नाम. पनरहभेद पात्र चौपाइ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. १५ भेद पात्रविचार चौपाई, श्राव. किशोर, पुहि., पद्य, आदि: नमु देव अरिहंत को नम; अंति: फिरे विनवे दास किसोर, गाथा-२४. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७९३५४. (+) चौवीसदंडक विचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पंड्याण्या, प्रले.पं. महिमाभक्ति (गुरु मु. गुणानंद, खरतरगच्छ); पठ. श्राव. बीझराज शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १३४४०). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, म. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसिंह जगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ७९३५५ (+#) झांझरियामुनि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७१९, श्रावण कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३५). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महियलि मांहि मुनिवरु; अंति: एह भण्यो मनखंत, ___गाथा-३८. ७९३५६ (#) जंबद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ४८x२७). जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप लांबो पहुल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महाविदेह ___में ३२ विजय नाम तक लिखा है.) ७९३५७. (4) स्तवन व बारमासा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १५४५३). १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक मन वंदो श्रीवीर; अंति: देह मनवंछित घणी, गाथा-२८. २. पे. नाम. नेमजी बारमासो, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. हर्षकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: हो सामी क्युं आये; अंति: हरखकिरत० सुख पाब, गाथा-२६. ३.पे. नाम, नेमराजिमती बारमासो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदिः श्रावणमासे स्वामि; अंति: कविअणनवनिधी पामी रे, गाथा-१३. ४. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: सरस श्रावण केरा सखडा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ७९३५८ (4) एलाचीपुत्र चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९३०, कार्तिक शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कुचराम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२५४१२, १४४३४). इलाचीपुत्र चौढालीयो, मु. भूपति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुणनीलो; अंति: नदिन दोलत थाय मुनीसर, ढाल-४. ७९३५९. (-) सेवकरामगुरुगुण व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, १४४२६-२९). १. पे. नाम. सेवकराम गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. सेवकरामशिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १९३१, आदि: पंचपरमेष्टी प्रणमु; अंति: वीच रे० फारे दीज, गाथा-२५. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में अस्पष्ट कृति शुरु करके अपूर्ण छोड़ दी गयी है. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जाग रे जंजाली रे जीव; अंति: जैसे बटाउ बाटका रे, गाथा-५. ७९३६० (4) बारह भावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हुंडी: १२भावना, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९४४५). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: जयसोम० शिवसुख थाई, ढाल-१२, गाथा-७२. ७९३६१ (2) शुक्लपखि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४१०.५, ११४३३). For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कृष्णशुक्लपक्ष सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन रे मल्लिजिण; अंति: कुसल नित घरि अवतरइ, ___ ढाल-३, गाथा-१९, (वि. सभी ढालों का गाथानुक्रम क्रमशः है.) ७९३६२. सम्यक्त्व भेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, २५४६०-६६). सम्यक्त्वभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: औपशमिक अंतर्मुहुर्त; अंति: पाखंडी भेद जाणिवा. ७९३६३. (+) सूर्यप्रज्ञप्त्युपांग विषयानुक्रम व ६ काय जीवोत्पत्ति आयुष्यादि विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२.५, २१४५४). १. पे. नाम. सूर्यप्रज्ञप्त्युपांग विषयानुक्रम, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सूर्यप्रज्ञप्ति-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला पाहुडानइ विषइ; अंति: (-), (पू.वि. योगक्रिया अनुक्रम तक है.) २. पे. नाम. ६ काय जीवोत्पत्ति आयुष्यादि विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय अपकाय; अंति: उत्कृष्टा भव २ जाणवो. ७९३६४. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ९, जैदे., (२५.५४१२, १८४४२). १.पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: समर रे जीव नवकार नित; अंति: आपणा कर्म आठे विछोडी, गाथा-६. २. पे. नाम. २४ जिनवर्ण दहा, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन वर्ण दहा, मा.गु., पद्य, आदि: दोय धोला दोय सावला; अंति: चवीसे जिण जीणचंद, गाथा-१. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. नंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा कीम जीवस्ये; अंति: नंदुतत नीसांण बजावो, गाथा-५. ४. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-वीरवाडामंडन, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरवाडामंडण आदिजिण; अंति: चंद्रविजय गुण गाय, गाथा-४. ५. पे. नाम. अध्यात्मषट्दर्शन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: ओरन से रंग न्यारा; अंति: रूपचंद० तुमारे हैं, गाथा-९. ६. पे. नाम. धनाशालीभद्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अजी आ जोरावर कारमी; अंति: जीयां ते पामे भव पार, गाथा-७. ७. पे. नाम. शेजा स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. शजयतीर्थ स्तुति, पुहि., पद्य, आदि: आगे पूरव वार नीवाणु; अंति: कारिज सिद्ध हमारी जी, गाथा-४. ८. पे. नाम. शेव्रुजय स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. श@जयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुतां सुहणे में लखुं; अंति: जगमंडण जगें देव, गाथा-४. ९. पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मने धर्मजिणंद; अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-७. ७९३६५. (#) प्रदेशी प्रश्न, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६४५१-५६). केशीगणधर परदेशीराजा संवाद, मा.गु., गद्य, आदि: परदेसी राजा कहै छै; अंति: कुमारे प्रतिबोध दीधो. ७९३६६. (+) संबोधसप्ततिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १०४२९). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक है.) ७९३६७. कृतपुण्य कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२५.५४११, १६x४७-५०). For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org कृतपुण्य कथा, सं., गद्य, आदि : आरोग्यं सौभाग्यं; अंति: मोक्षं यास्यति. ७९३६८. (+) पद्मावती आराधना व लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. सामा ऋषि; पठ. सा. रंगीली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५x११.५ १३४३२) "" १. पे. नाम पद्मावती आराधना, पू. १अ २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: कीयो जांणपणानो सार, ढाल -३, ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पवित्र अंतिः व्याख्यान सुणीजे. गाथा - ३६. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि जेमेहु जुप्पमाउ इम अंति देही चरमउसास वेसरे, गाथा- ७. ७९३६९. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २४.५X११.५, ११४३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि णमो अरिहंताणं० पढमं अंति (-) (पू.वि. भगवान महावीर के जीव के द्वारा बीस सागरोपम की आयु, भव और स्थिति को पूर्ण करने का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७९३७० (#) नेमराजीमती रास, संपूर्ण, वि. १७५३, वैशाख कृष्ण, १, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. ग्रामसर, प्रले. मु. बलू ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी यादवरास अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६११, १७x४८). "" नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सारद पाव प्रणमी करी, अंतिः पुन्यरतन० नेमजिणंद गाथा - ६५. ७९३७१. (+) चंदगुप्तिरा सोलौ सुपना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. चित्तसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : १४ स्वप्ना. गाथा-२२ नहीं लिखी गयी है, उसकी जगह खाली है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११.५, ११x२६). १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलिपुर नामे नगर अति होसी अनेरा तोडाजी, गाथा - २९. ७९३७२. (+) ज्ञानपंचमी चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. १८१६ कार्तिक कृष्ण, ४, मध्यम, पू. २, प्रले. पं. सुमतिमंडण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१२, ८x२६). ७९३७३. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैवे. (२५.५x११, ११३६-३९). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि : आदरि जीव क्षमागुण; अंति: समयसुंदर०संघ जगीश जी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५.५४१२, १४४२७-३० ). १. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पू. १अ संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. " मु. वृद्धिकुशल, रा., पद्य, आदि तेवीसमा जिनराज जोडे, अंतिः विरधकुसल० दीदार, गाथा- ३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा - ३६. ७९३७४. (*) पद, होरी व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., मु. रत्नसागर, पुहिं, पद्य, आदि फागुन के दिन चार चाल; अंतिः रत्नसागर बोले जयकार गाथा-७. ३. पे नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २३९ " शांतिजिन स्तवन, ग, समयसुंदर, पुहिं, पद्य, आदि अंगन कलप फल्योरी हमा; अति हुं रहिस्यु सोहलोरी, गाथा-३. ४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्यप्रद, मु. रत्नतिलक, मा.गु., पद्य, आदि काया रे वाडी कारमी; अति रतनतिलक० करजो डंगवाली, गाथा ८. ५. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण, पे. वि. वह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. मु. वृद्धिकुशल, रा., पद्य, आदि: तेवीसमा जिनराज जोडै; अंति: विरधकुसल० दीदार, गाथा-३. ७९३७५. (+) सगुना निगुना व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, अन्य. मु. भगवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x११.५, १३४३७-४०). " १. पे. नाम. सगुणा निगुणा सज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ आंबो मोरीयो सुड; अंति: मत को करो अभंग, गाथा-२७. For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकरण नमी जिनचरण; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ७९३७६. (+#) भगवतीसूत्र-शतक-१२ उद्देश-२ जयंति अधिकार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. हंडी:जयंती., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४२६-२९). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., मृगावती, जयंती श्राविका देवानंदा की तरह प्रभु महावीर को भी वंदन प्रसंग अपूर्ण से धर्माचरण प्रेरक प्रसंग अपूर्ण तक नहीं है.) ७९३७७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४४, माघ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. श्राव. भानीराम वोरा; अन्य. श्रावि. पार्वतीबाई गिरधर पानाचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: उपदेशी, दे., (२५.५४११.५, १०४३२-३६). औपदेशिक सज्झाय-कषाय परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: सो ग्यानी रे श्रीजिन; अंति: पणी टालो कूबदी सूरीस, गाथा-२४. ७९३७८. (#) व्याख्यान पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २०४६०-६३). व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पंचपरमेष्ठी मंगल पाठ अपूर्ण से "धर्मतः सकल ____ मंगलावली" पाठ अपूर्ण तक है., वि. प्राकृत व संस्कृत पद्यों का अर्थ भी संलग्न है.) ७९३७९. नेमिनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. हीरा (गुरु सा. मानाजी); गुपि. सा. मानाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १५४४७). नेमिजिन स्तवन, मु. पावन शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सकल सिद्ध प्रणमेवि; अंति: पाठकजननइ सुखकरु, __ ढाल-६, गाथा-४२. ७९३८० (+2) धर्मध्यान लक्षण व सिद्धपद स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, २१४५८). १. पे. नाम, धर्मध्यान लक्षण, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: इं धर्मध्यान ध्याइइं, (पू.वि. धर्मध्यान के प्रथम आलंबन की चर्चा अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण; अंति: नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा-१३. ७९३८१ (#) चउवीसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, २३४७०). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के __ पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सुपार्श्वजिन स्तवन गाथा-७ अपूर्ण से नेमिजिन स्तवन तक लिखा है.) ७९३८२. षडावश्यसूत्र, अपूर्ण, वि. १८०६, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, प्रले. मु. जयवंत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२,११४२५-२८). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, अध्ययन-६, सूत्र-१०५, (पू.वि. १४ नियम गाथा से ७९३८३. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, ले.स्थल. जालोरनगर, जैदे., (२५४११.५, ९x१३-३४). नवपद पूजा, म. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: (-); अंति: उत्तमविजय जगीस रे, ढाल-९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-९ गाथा-२ अपूर्ण से है.) ७९३८४. चरणकरणसित्तरी गाथा व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२६४११, १५४४५). १. पे. नाम. चरणसित्तरीकरणसित्तरी गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण.. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय ५ समण धम्म १०; अंति: अभिगाहा ४ चेवकरणं उ, गाथा-२. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलं बोल वय पंचमहा; अंति: वेरम एतलइ व्रत हुओ. For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २.पे. नाम. १० प्रकार श्रमणधर्म, पृ. १अ, संपूर्ण. १० यतिधर्म भेद, मा.गु., गद्य, आदि: १क्षांति क्षमा; अंति: विषइ उद्यमवंत. ३. पे. नाम, श्रमणधर्मना १७ भेद, पृ. १अ, संपूर्ण. १७ संयमभेद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पृथवीकाय असंयम १; अंति: एतलइ संयमना १७ भेद. ४. पे. नाम. वैयावच्च के १० भेद, पृ. १अ, संपूर्ण. १० वैयावच्च भेद, मा.गु., गद्य, आदि: १ आचार्य २ उपाध्याय; अंति: दसनुं वैयावच्च करवं. ५. पे. नाम, ब्रह्मचर्य के नौ भेद, पृ. १अ, संपूर्ण. ९ वाड ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, आदि: वसति १ स्त्रीनी कथा; अंति: शरीर सुश्रुषा न करवी. ६. पे. नाम, बोलविचार संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७९३८५. () स्तवनचोवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २०४५५). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाला हो; अंति: (-), (पू.वि. सुव्रतजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७९३८६ (+#) नेमिनाथप्रबंध रास, संपूर्ण, वि. १८१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जसोल, पठ. मु. महेसदास (गुरु पं. सिद्धसागर),प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४९). नेमराजिमती रास, म. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: नेमि जिणंद हं, गाथा-६४. ७९३८७. पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १३४१८). पट्टावली खरतरगच्छीय , रा., गद्य, आदि: १ श्रीमहावीरस्वामी; अंति: संघ जयवंतो प्रवर्तउ. ७९३८८. विजयसेठविजयासेठाणी व मधुविंद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रावण कृष्ण, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मालेगाम, प्रले. मु. लालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १५४३६-३९). १.पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रैपरमेष्टि; अंति: हर्षकीर्ति० घर अवतरै, ढाल-३, गाथा-२४. २. पे. नाम, मधुबिंदु सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरस्वती रे द्यो; अंति: परम प्रमोद मे मागीयौ, ढाल-५, गाथा-१०. ७९३८९ (+) खंधककमार चौढालियो, संपूर्ण, वि. १८२२, पौष शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. गजराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, २१४४३). खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: वीरजिणंद सासणधणीजी; अंति: मिच्छामि दुक्कडम मोय, ढाल-४. ७९३९० (4) नेमराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १७५४, कार्तिक शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मसुद, प्रले. मु. अमरा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५४). नेमराजिमती रास, म. पण्यरत्न, मा.ग., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: पन्य० नेमिजिणंद कै, गाथा-६५ ७९३९१ (2) जीवोत्पत्तिकारण व महावीरजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६४२६-२९). १.पे. नाम, जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोइनइ आपणी; अंति: लीजइ भव तण लाह रे, गाथा-३१. २. पे. नाम. महावीरजिन सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु.सकल, मा.गु., पद्य, आदि: एक वरसीजी ऋषभ करी; अंति: सकल जिण आधार हे, गाथा-१२. ७९३९३. फूलडा सज्झाय व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, ३४२८). For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम, फूलडा सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पुहि.,रा., पद्य, आदि: बाई हे मि कउतिग दीठ; अंति: विण सुखे सुखीओ थयो ए, गाथा-२२. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. __औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ७९३९४. गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २, जैदे., (२५४१२, १४४३२). गौतमस्वामी रास, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गौतम तणा; अंति: रायचंदगुण ग्रामो जी, गाथा-१२. ७९३९५. सिद्धपद स्तवन, आदिजिन स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, ११४२७). १.पे. नाम, सिद्धपद स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण; अंति: नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा-११. २. पे. नाम, ऋषभजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: प्रणमामि जिनेस मुनीस; अंति: कविनं रचितं सततं, श्लोक-४. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. विक्रम, मा.ग.,सं., पद्य, वि. १७२१, आदि: प्रथम आदिजिनंद वंदत; अंति: विक्रम० सुख जे भणे, गाथा-४. ७९३९६. अक्षतपूजा व पडिलेहन बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, ८x१८). १.पे. नाम, अष्टप्रकारी पूजा-अक्षतपूजा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. प्रतिलेखन के पचास बोल, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ साचौ; अंति: परिहरूं डावा पगनी. ७९३९७. चौदहगणस्थानक बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४११, २४५१९). १४ गणस्थानक विचार-यंत्र, मा.ग., को., आदि: (-); अंति: (-). ७९३९८. कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १८२६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १५४३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंति: कारन समकित सुद्ध, गाथा-४४. ७९३९९ (+) चउवीसदंडक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४३०-३३). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, म. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ७९४०० (+) स्तोत्र व अष्टक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १३४४३). १. पे. नाम. ज्वालामालिनी स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: सर्वरोगहरं स्तोत्रं. २. पे. नाम, ज्वालामालिनी स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: रात्रौसूप्ते सूत्रीत; अंति: पद्रव २ नासीत् भवती, श्लोक-१. ३. पे. नाम, चंद्रप्रभस्वामी अष्टक, पृ. २अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह; अंति: अथवा ७ अथवा पठते, श्लोक-८. ४. पे. नाम, चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः प्रभा; अंति: दायिनी मे वरप्रदा, श्लोक-५. ७९४०१. दीपालिका देववंदनविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ५, ले.स्थल. ब्रानपुर, दे., (२५.५४१२.५, १३४४२). For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org १. पे. नाम वीरदेव वंदन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: ज्ञानविमले कहिइं, गाथा-९, (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण से है. ) २. पे. नाम गौतमगणधर चैत्यवंदन, पृ. ७अ संपूर्ण ४. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति गणभृद्, अंति ज्ञान० वरदायकाश्च श्लोक-४. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि नमो गणधर नमो गणधर अंति: नय० होवे जय जयकार, , गाथा - ३. ३. पे. नाम. दीवाली स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. गीतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि इंद्रभूति अनुपम गुण; अंति: नित नित मंगलमालिका गाथा ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर मधुरी वाणी भाखे; अंति: नय करे प्रणाम रे, गाथा-७. ७९४०२. गीत, पद व श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, कुल पे ४ वे. (२५x१२, ११x२६). १. पे. नाम. स्थूलभद्रमुनि गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीऊडा मानौ बोल हमा; अंति: कहै प्रणमु पाया रे, गाथा-६. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन पद- केसरियाजी, मा.गु., पद्य, आदि धुलवनगर सोहामणो साहब अति साहब राणी सेव, गाथा-२. ३. पे. नाम औपदेशिक लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ४. पे. नाम जिनकुशलसूरि गीत, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. मु. राजेंद्रविजय, रा., पद्य, आदि (-); अति: साहिब अरज कौ राजिंद, गाथा-७, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) ७९४०३. पौषध विधि व पाक्षिकादि पडिकमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-१० (१ से १०) = १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५X११, १३५३). १०X३१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. २४३ १. पे. नाम. पौषध विधि, पृ. ११अ - ११आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: लेवाना विकल्प जाणवा, (पू. वि. प्रारंभिक भाग अपूर्ण से है.) २. पे नाम. पाक्षिकादि पडिकमण विधि, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: तिहाँ प्रथम वंदेतु; अंति: (-), (पू.वि. "चउमासै चउण्हं" पाठ अपूर्ण तक है.) ७९४०४. औपदेशिक, भरतबाहुबली व इलाचीकुमार सज्झाब, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, वे., (२५x११.५, 1 ! For Private and Personal Use Only औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निद्या म किजे केहनी; अंति समयसुंदर सुखकार रे, गाथा ५. २. पे. नाम भरतवाहुवली सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि राजतणा अति लोभीया; अंतिः समवसुंदर० पाया रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नामे एलापूत्र जाणीई अति (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७९४०५. (*) रत्नचूड व्यवहारीनो रास, अपूर्ण, वि. १७९८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ३०- २९(१ से २९) = १, ले.स्थल. चेलावस, प्रले. पं. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १६x४०). Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य वि. १७२८, आदि (-); अंतिः कनकनि० लील विलासो रे, डाल- २४, (पू.वि. ढाल - २३ गाथा-८ अपूर्ण से है. ) जै... ', 1 ७९४०६. पालामान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : पालाना माण., (२५.५X११.५, १९X५३). अनुयोगद्वारसूत्र-प्यालामान विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअनुयोगद्वारसूत्र; अंति: (-), (पू.वि. जघन्य असंख्यातमान विचार अपूर्ण तक है.) मु. २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पू. ६आ, संपूर्ण. ७९४०७. स्तुति व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५ ) = १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५X१०.५, १४४४८-५०). १. पे नाम. युगबाहुजिन स्तवन, पू. ६अ, संपूर्ण, जिनदेव, मा.गु., पद्य, आदि इण जंबूदीपे जाणीये; अंति: नित्य सेवरे, गाथा- १५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा अति जिनभक्तिसूरि० वित्त, गाथा-४, ३. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ७९४०८. २४ जिननाम चक्रिनाम वासुदेवनामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५.५४११, १०x३६). अनागत २४ जिन नाम, पूर्वभव, आयु, देहमान, चक्रि, वासुदेव समय कोष्टक, मा.गु., को., आदि (-); अंति: (-). ७९४०९. (+) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १७२९, कार्तिक शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. ३१-३० (१ से ३०) = १, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. १८००, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५X११, १४४४५). हंसराजवत्सराज चौपाई, मु. वर्द्धमान, मा.गु., पद्य, वि. १७०५, आदि: (-); अंति: वर्द्ध० सुपलहस्ये रे, खंड-४, (पू. वि. मात्र चौथे खंड की अंतिम ढाल १५ है.) ७९४१०. (W) ५ सुमति ३ गुप्ति सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रसं. सा. वीराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सुमतिगुपति., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X११.५, १७x४१). ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: पांचसुमत तीनगुप्त आठ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ८, गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७९४११. अनाथीमुनि सज्झाय, साधारणजिन पद व औपदेशिक सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे., (२४.५X१०.५, ९३६). १. पे नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि श्रेणिक रेवाडी चढ्यो; अति प्रणमइ रे वे करजोडी, गाथा- ९. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: केई उदास रहै प्रभु; अंति: महे मोहे सूझत नीके, गाथा- १. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: चेतनजी तुम जागि; अंति: अनीति न कीजै गुसांई, पद-१. ७९४१२. कर्मप्रकृति भांगा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२५.५x११.५, १६५३६). कर्मप्रकृति-भांगासंग्रह, रा., गद्य, आदि: पहिली २० रो उदै; अंति: (-), (पू.वि. "उपघात १ प्रत्येक क्षेपें २५" पाठ तक है.) 1 ७९४१३. शेत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. यही कृति देवनागरी लिपि में दो पंक्ति लिखकर छोड़ दिया है.. गु., (२५.५x११, १०x४२). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि सुण जिनवर शेडुंजा; अंतिः जिनहरख० परमानंद रे, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २४५ ७९४१४ (f) ज्ञानपंचमी व शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १४x२७). १. पे नाम ज्ञानपंचमी लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि पांचम तप तुमे करो रे; अंति न्याननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय प्रणमी रे जिनवरना; अंति: साधुकीरति इम कहै, ढाल-३, गाथा-१३. ७९४१५. ऋषभजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) -१, प्रले. मु. पृथ्वीराजजी (गुरु मु. रतनचंदजी); गुपि. मु. रतनचंदजी (गुरु मु. रूपचंदजी); गुभा. मु. रूपचंदजी (गुरु मु. खेमराजजी); गुपि. मु. खेमराजजी (गुरु मु. भाणजी राय); मु. भाणजी राय (गुरु मु. पदारथजी); राज्ये मु. पदारथजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६x१२, १२x४३). आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिणेसर जगत अति: ज्ञान० कही कीसत सुणी, गाथा १९, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपूर्ण. ७९४१६. औपदेशिक व पार्श्वजिन सवैया, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. दोनो कृतियों के गाथांक क्रमशः हैं., दे. (२५x११. १४४५४). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. . केशवदास, पुहिं., पद्य, आदि: जा घरि तेल फुलेल सही; अंति: केशव० सदा गुण गावै, सवैया- १०. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन सवैया, मु. केशवदास, पु,ि पद्य, आदिः प्रतपै प्रभ जास भले अति (-), गाथा- २ (अपूर्ण, " पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ तक लिखा है.) ७९४१७. पार्श्वनाथ स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५X११.५, १६X५८). १. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि मिता चालो तो जिनजि; अति: ज्ञान० मंदिरमां आइये, गाथा-८. २. पे. नाम साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज हमारे दिल; अंति: न्याय० गुण सवि हस्यां, गाथा-३. ३. पे नाम पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. ज्ञानसागर, पुहिं., पद्य, आदि अनीकी मुरत पाश की अति ज्ञान० रिद्ध आवास की, गाथा - ५. ४. पे नाम, पार्श्वजिन पद. पू. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनवचकाया वश करी रे; अंति: रे नयविमल थुणीओ, गाथा - ५. ७९४१८. (+#) गौतमस्वामी अष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X११, १०x२९). गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: गौतम तूठे संपत कोडि, गाथा- ९. ७९४१९. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५x१०.५, १२X३४). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वांदु श्रीजिनराय मन; अंति: नार सुरगा सुख लो जी, गाथा-१५. ७९४२०. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२६११, १०x२४) 1 " सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ९ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९४२१ (+#) उत्कृष्ट मनुष्यसंख्या विचार व आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १९४३३). १. पे. नाम, उत्कृष्ट मनुष्यसंख्या विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. उत्कृष्ट मनुष्य संख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गरभेज मनुष २९ अखरका; अंति: ७९२२ मनुषनी संख्या. २. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय-गर्भावास, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: वार वार सतगुरु समजाव; अंति: जयकार हो जीव ___जीवार, गाथा-२६. ७९४२२. बीजतिथि स्तवन व नवपद चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. नवापाडा, प्रले. पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी: बीजस्तवन, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३९). १. पे. नाम. बीजतिथि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरस वचन रस वरसती; अंति: तस घर लील वीलास हे, ढाल-३, गाथा-१६. २. पे. नाम. नवपदजी- चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. नवपद चैत्यवंदन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार गुण अरिहंतना; अंति: तणा चतुर करे प्रणाम, गाथा-६. ७९४२३. अर्बुदगिरि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, ११४२७). अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसर पूजतां; अंति: पामीये वीरविजय जयकार, गाथा-१०. ७९४२४. (+) संसाररथ, आलोयणरथ व शीलांगरथ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. यंत्र सहित., संशोधित., दे., (२५.५४११, १९४८-६६). १.पे. नाम. संसार रथ, पृ. १अ, संपूर्ण. __प्रा., प+ग., आदि: उड्ढदिसिं पुरिस जीवो; अंति: सो संसारं परब्भमए, गाथा-२, (वि. यंत्र सहित) २. पे. नाम. आलोयण रथ, पृ. १आ, संपूर्ण. आलोचणा रथ, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: कय चउसरणो नाणी नियमि; अंति: अरिंतयमक्खं खमोवेमि, गाथा-१, (वि. यंत्र सहित) ३. पे. नाम. शीलांग रथ सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांगरथ, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जे नो करंति मणसा; अंति: ९ वंभं १० जइ धम्मो, गाथा-२. १८ हजार शीलांगरथ-बालावबोध, रा., गद्य, आदि: एक पृथ्वीकायरा आरंभ; अंति: शीलांग रथ भेद, (वि. यंत्र सहित) ७९४२५. वीसविहरमानजिन नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १०x४०). २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहिं., गद्य, आदि: श्रीमंधरस्वामि; अंति: रत्नमाला स्वस्ती. ७९४२६. दीपावली चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ११, ले.स्थल. छायापुरी, प्रले. मु. तीर्थसोमगणि (गुरु पंन्या. रंगसोम, वडतपागच्छ); गुपि. पंन्या. रंगसोम (गुरु आ. आणंदविमलसोमसूरिश्वर, वडतपागच्छ); आ. आणंदविमलसोमसूरिश्वर (वडतपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पेटाकृति-१ से ३ ज्ञानविमलरचित महावीरजिन व दीपावली चैत्यवंदन की गाथाओं को एक में ही मिला दिया है. तीनों कृतियों के गाथांक क्रमशः है., प्र.ले.श्लो. (९६३) यादशं पुस्तकं द्रष्टा, दे., (२६४१२, १३४४३). १. पे. नाम. दीवाली चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: कहे मलिया नृपति अढार. २. पे. नाम. महावीर चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: देव मलिया देव मलिया; अंति: धन धन दिहाडो तेह, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धारथ नृपकुल; अंति: नय कहे ते गुण खाण, गाथा-१. ४. पे. नाम. दिवालीनी थोय, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनोहर मुरति महावीर; अंति: जिनशासनमां जयकार करे, गाथा-४. ५. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय जय भवि हितकर वीर; अंति: गुण पूरो वंछित आस, गाथा-४. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीमहावीर मनोहरु; अंति: ज्ञानविमल कहिये, गाथा-९. ७. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नमो गणधर नमो गणधर; अंति: नामथी होवे जय जयकार, गाथा-३. ८. पे. नाम. गौतमस्वामीनी थोय, पृ. २अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: इंद्रभूति अनुपम गुण; अंति: नित नित मंगलमालिका, गाथा-४. ९. पे. नाम. दीपालीपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण.. गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति गणभृद; अंति: ज्ञान० वरदायकाश्च, श्लोक-४. १०. पे. नाम. गौतमगणधर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ५, शनिवार. गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर मधुरी वाणी भाखे; अंति: नय करे प्रणाम रे, गाथा-७. ११. पे. नाम. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, आश्विन कृष्ण, ६, रविवार. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दुःखहरणी दीपालिका रे; अंति: ज्ञानविमल० गुण खाण, गाथा-९. ७९४२७ (4) छ अट्ठाइन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६०, वैशाख कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल.खेडानगर, प्र.वि. श्री भीडभंजनप्रसादेन, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १७४३१). ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्याद्वाद शुद्धो; अंति: बहु संघमंगल पाईया, ढाल-९, गाथा-५४, (वि. अंत में इसी कर्ता की किसी अन्य कृति का मात्र कलशपाठ दिया गया है.) ७९४२९ (+) बोल व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४३). १. पे. नाम. दस मनुष्यजन्मदुर्लभ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. १० मनुष्यजन्म दुर्लभ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै मनुष्यभव; अंति: पालणी दुर्लभ १०, अंक-१०. २.पे. नाम. आठ बोलजीवने उद्यम करवो, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ बोल-उद्यमी जीव के, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोल भणवारो; अंति: बोलै धरम संख्या करै. ३. पे. नाम. आठ बोल- श्रावकाचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ बोल-श्रावकाचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै हिस्या; अंति: आठमे सत्य वचन बोलै. ४. पे. नाम. पांच बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ बोल-धर्मप्राप्ति अयोग्यता, मा.ग., गद्य, आदि: पांचै बोलै धरम न; अंति: आलसी जीव धरम न पामै. ५.पे. नाम. चार भाषा विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.. ४ बोलवाणी व्यवहार, मा.गु., गद्य, आदि: सत्य भाषा १ असत्य; अंति: विवहार भाषा ४. ६.पे. नाम. क्रोध के ४ कारण, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कषायभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ संजलनो क्रोध; अंति: च्यार चौका सोलै कषाय. ७. पे. नाम. आठ कर्म एक सौ अठावन प्रकृति विचार, पृ. १आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०३सरा प्रकृति अपूर्ण तक ७९४३०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४११, १०४३४). गुरुविहार गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज रहो मन मोहना तुम; अंति: शुभवीर० नार रे, गाथा-१६. ७९४३१. औपदेशिक सवईया व गीसती कुंडलिया, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १७X४१). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया- जीवदया, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. जीवदया सवैया, म. कृपाराम, पुहिं., पद्य, वि. १९३२, आदि: चोथे आरे केरा वृसतीन; अंति: कृपाराम० नीत पालजो, गाथा-२६. २. पे. नाम. गीसती कंडलिया, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. - महासती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: गीसती के घर साधने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७९४३२. पुण्य कुलक, विनय कुलक व दान कुलक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११, २७४४८). १. पे. नाम. पुन्य कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: ते सासयं सुखं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांचइंद्री प्रवडी; अंति: रभुतं पुने सासतासुखं. २. पे. नाम. विनय कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. विनय कुलक, प्रा., पद्य, आदि: विणओ जिणसासणे मूलं; अंति: सारं संलेहणा मरणं, गाथा-१३. विनय कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीनो जिनसाणनो मूल; अंति: प्रधान संलेखण संथारो. ३. पे. नाम. अभयदानाधिकार सह टबार्थ, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण तक है., वि. गाथा-२९ पर अभयदानाधिकार समाप्त कर नए गाथाक्रम की शुरुआत की गई है.) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेवने नमू; अंति: (-). ७९४३३. पार्श्वजिन वृद्धस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडीः तवनपत्र, जैदे., (२४.५४१०, ११४३५). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी; अंति: प्रीतविमल० मंते, ढाल-५, गाथा-५५. ७९४३४. पार्श्वनाथनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. विक्रमपुर, पठ. सा. गुमानाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४०). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपो शारदा मया; अंति: स्तव्यो छंद देशांतरी, गाथा-४७. ७९४३५. गर्भावासना दःखना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४११.५, ११४२८). औपदेशिक बोल-गर्भावास दुःख, मा.गु., गद्य, आदि: अरे जीव तुं तारो; अंति: माटे चेतन मारा चेत. ७९४३६. संवच्छरीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १८७८, आश्विन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. राजकुशल (गुरु पं. जगरूपकुशल); गुपि.पं. जगरूपकुशल (गुरु पं. वर्द्धमानकुशल); पं. वर्द्धमानकुशल (गुरु पं. फतेकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, ८x२५). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बंदेत्तुताईतो देवसि; अंति: पछै वडीसांति कहीजै. ७९४३७. (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १७९५, आषाढ़ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. समायलखान, प्रले. मु. माणिक्यचंद्र (गुरु ग. महिमाविजय); गुपि.ग. महिमाविजय (गुरु मु. युक्तिसुंदर); मु. युक्तिसुंदर (गुरु वा. यशोलाभ गणि); वा. यशोलाभ गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३३). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम अहो प्रीछक; अंति: कल्पां सुख होइ सही. For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २४९ ७९४३८. २४ दंडक २३ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. कामठी, प्रले. पं. परमसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १९४२५). २४ दंडक २३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीदंडके शरीर३; अंति: व्यंतर ज्यं सर्व. ७९४३९ (+) मौनएकादशीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १७८६, आषाढ़ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पत्तननगर, प्रले. ग. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४४३). मौनएकादशीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंतिः रलोकने विषे सुखी थाइ. ७९४४० (+#) छत्रीसी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १७X५२). १. पे. नाम. आलोयणाछत्रीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोय तुं आपणा; अंति: समयसुंदर० आलोयण उछाह, गाथा-३६. २. पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करमथी कोइ छूट नही; अंति: समय० धरम तणइ परमाणजी, गाथा-३६. ३. पे. नाम, पुण्यछत्रीसी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पुण्य छत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुन्य तणा फल परतिख; अंति: समयसुंदर० परतक्ष जी, गाथा-३६. ७९४४१ (+) पार्श्वजिन व अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४३४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदिः ! पास; अंति: जाणी कुशललाभ __पयंपए, ढाल-५, गाथा-१८. २. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ अष्टापद नित नमी; अंति: वांदै नित नेहोजी, गाथा-८. ७९४४२. पद्मावती आराधना व आत्मानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९९, फाल्गुन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. नाणानगर, प्रले. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: पद्मावती, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४२९). १. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवइ राणी पदमावती; अंति: कहइ पापथी छुटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३१. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ____ क. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मानवनो भव पामीयो; अंति: कहे सुख लहो सुवीसाल, ढाल-२, गाथा-११. ७९४४३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, सूत्रकृतांगसूत्र व सुभाषितानि, संपूर्ण, वि. १९३१, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. भगवान शीवलाल रांमी; पठ.सा. बीजैकुंवर (गुरु सा. सीरकुंवरजी); गुपि.सा. सीरकुंवरजी (गुरु सा. जैडावजी); सा. जैडावजी, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १८४५२). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ९, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: नमिए उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. वीर थुइ-षष्टम अज्झयण, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पुछिसु सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमस्संति त्तिबेम्मि, गाथा-२९. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पुछीसु For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: साधु सोहंताईम्रतवाणी, गाथा-६. ७९४४४. स्थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५.५४१२, १९४३२). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ सगला फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४. ७९४४५. १४ नियम विचार व शांतिनाथ स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६६, चैत्र कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. भुसावल, प्रले. गंगाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १८४४८). १.पे. नाम. चौद नियम विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सचेतन काचो पानी कोरो; अंति: साखसूत्र आव सगणी छे. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १९६६, चैत्र कृष्ण, ८, शनिवार. शांतिजिन स्तवन, मु. रामकृष्ण ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८६४, आदि: शांतीनाथ प्रभु संती; अंति: या सहर नीमच के मजारे, गाथा-२३. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन लावणी, मु. सुखराम, पुहि., पद्य, आदि: कुंडलपुरनगरी पिता; अंति: (१)सुखराम० सदा एम गावे, (२)सीस नम्या दुख जावे, गाथा-१२.। ४. पे. नाम, भरतमहाराजा की सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि: मुगतपद पाया हो; अंति: पूरो मन की आस, गाथा-११. ७९४४६. रामयशोरसायन-अधिकार-२ ढाल-३२, संपूर्ण, वि. १८७३, कार्तिक शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. मु. जसराजजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१२६४) नेह निभावन कठण है, (१२६५) कागद नरिशुजांनकि, जैदे., (२६४१७, १६४३६). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७९४४७. (+) महावीरजिन सत्तावीसभव वर्णन व आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५३, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. आंबामाडण खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सातावीस०, संशोधित., दे., (२५४१०.५, १४४४६). १. पे. नाम. वीरजिन सत्तावीसभव वर्णन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, आदि: पहीले भवे जंबूद्वीप; अंति: मोक्ष पोहोतां. २. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. __ आदिजिन स्तवन, मु. जेठा, मा.गु., पद्य, आदि: रीषभ जीणेसर समोसर्या; अंति: दास जेठो गुण गाय हो, गाथा-१८. ७९४४८. (+) खेताणवाई, संपूर्ण, वि. १९१६, कार्तिक शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. फलवर्द्धिनगर, प्रले. मु. रामलाल साधू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२, २५४४५). क्षेत्रोपपत्ति, मा.गु., गद्य, आदि: खेताणुवाएणं सव्वत्थो; अंति: अधोग्राममाही जाणवा, (वि. यंत्र सहित) ७९४४९ गुणस्थानकने विशे २२ परिसह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४३). २२ परिषह उदयहेतुभूत कर्म विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमं उष्णपरीसह; अंति: (-), (पू.वि. षटद्रव्य के लक्षण अपूर्ण तक है.) ७९४५०. देवकी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०७, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जयनगर, प्रले. मु. पद्मचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४११, १७X४८). देवकी सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: रथनेमी नामे भला लखण; अंति: आठ वरसनो थाय, ढाल-१०, गाथा-१०२. ७९४५१. महावीरस्वामिनुं हालरडु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३७). For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org महावीरजिन हालर, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि माता त्रसदे जुलावे; अंति होजो दीपविजे कवीराय, गाथा - १७. ७९४५२. विचार संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२६४११, १४४५४). ९. पे नाम पचीस भावना विवरण पू. १अ संपूर्ण, 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५ भावना विवरण-५ महाव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: मनोगुप्ति १ एषणासमित; अंति: शब्द ऊपरि राग नही. २. पे. नाम बोल संग्रह, पू. १अ १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-) अति: (-). "" ७९४५३. (*) स्तवनचोवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५x११, १४४३७). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि जगजीवन जगवाला हो; अति: (-), (पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., अजितजिन स्तवन तक है.) ७९४५४. गजसुकुमाल सज्झाय व साधुसंगतिनी सज्झाव, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, कुल पे २, प्रले. पंडित रतन भट्ट, अन्य. सा. वेलबाई आर्या (गुरु सा. बाईबाई आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी गजसुकमा. वे., (२५.५x१०.५, ९-१२x२८-३५). " १. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाच, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. . दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दाननें एहवा मुनिवरू, गाथा-१७, (पू. वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम साधुसंगति सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. २५१ मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन वचन सोहामणां; अंतिः भावे मुनी धरमदास रे, गाथा - ६. ७९४५५. (मैं) स्तवन, सज्झाय व सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे ४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२५x११.५, १५४४३). १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ राजानो नंदन; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-७. २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी सुण हो तेवीसम; अंति: रूपचंद० ए वीनती भणी, ७९४५७. महावीरजिन तपप्रमाण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२५.५४११.५, १३४४७). " गाथा- ७. ३. पे. नाम संगति गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाव-संगति, मु. रंगसार, मा.गु., पद्य, आदि (१) आर्द्रकवेसइ रे, (२) जीवडा करजे संगति; अंति: जंपड़ मुनि रंगसार, गाथा-८. ४. पे नाम. जिनदत्तसूरि गुरुगुण सवैया, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिनदत्तसूरि गुरुगुण महिमा सवैया, मु. दानविनय, पुहिं., पद्य, आदि: वलगंग तरंग जिसी जग; अंति दानविनय० भरोसी तिहारो, सवैया-२, संपूर्ण. ७९४५६. प्रत्येकबुद्ध रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६११, २१X५५). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२, ढाल-८, गाथा-१२ अपूर्ण से खंड-३, ढाल २, गाथा ४ अपूर्ण तक है. ) महावीरजिन तपप्रमाण विचार, रा., गद्य, आदि: ६मासी १ ति केरा मास६; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. "पांच मास मध्ये वधीइ जै ए पांच मास साढा चारे वरस माहिला छै इण तरेसुं तेरे १३ पक्ष हुआ" पाठांश तक लिखा है.) " For Private and Personal Use Only ७९४५८. (+) देवसी पडिकमणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६१२, १२४३०). देवसीराइअ प्रतिक्रमण, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि पहिले पडिकमणो करती अंति कहणा पीछे सिझाय कहणा. Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९४५९. ऋषभदेव स्तवन व मांगलिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८८५, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. सौभाग्यधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४२७). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: जिनजी आदिपुरुष; अंति: आपो सुख अविकारक हो, गाथा-११. २. पे. नाम. जिनपूजा फल माहात्म्य, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनदर्शनपूजा फल, सं., पद्य, आदि: आद्यप्रक्षालितंगात्र; अंति: जिनेंद्र तव दर्शनात्, श्लोक-१. ७९४६०. वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. रूपचंद (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १०४३०). वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. सिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य वंदन करीयै; अंति: सिवचंद उवज्झाय, गाथा-१३. ७९४६१. इरियावहीविचार स्तवन, ऋषभजिन स्तवन व चंद्रप्रभजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, ९४३५). १. पे. नाम. इरियावहीविचार स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. इरियावही मिच्छामिदक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम संथव्यो भावइ करी, ढाल-४, गाथा-१५, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीऊडा जिनचरणांनी; अंति: मोहन अनुभवि मांगै, गाथा-३. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुखचंद; अंति: तरु आनंदघन प्रभु पाय, गाथा-७. ७९४६२. (+#) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३९). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तुं कहिआ पछी; अंति: रह्यो छै ते करीइ. ७९४६३. सम्यक्त्वादि व्रतारोपण विधि व श्रावक १२ व्रत नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२, १२४५२). १. पे. नाम. सम्यक्त्वादि व्रत आरोपण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)अरिहंतो महदेवो जीवा, (२)देव अरिहंत अष्ट महा; अंति: समकित पालवानी खप करु. २. पे. नाम. श्रावक १२ व्रत नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पेहेले स्थल प्राण; अंति: संविभाग सुपात्रदान. ७९४६४. जिननामचिंतवणी कतहल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. रत्नविमल, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १३४२६). जिननाम चितवनी कुतूहल, ग. रत्नविमल, मा.गु., गद्य, आदि: चक्रेश्वरी चंद्रानन; अंति: शासनदेवी ३१, (वि. सारिणीयुक्त) ७९४६५ (#) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३४). अक्षयतृतीया स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ वरस रह्या उपवासी; अंति: जेणे आदि धर्मने पाया, गाथा-७. ७९४६६ (+) कल्पसूत्र की व्याख्यान कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:अच्छेराकल्प कथा., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १८४४२). कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अछेरा-५ अपूर्ण से ८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७९४६७. सुभाषित व पिस्तालीस आगम नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १५४४२). १. पे. नाम. सुभाषितानि, पृ. ७अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. २. पे. नाम, पैंतालिस आगम नाम, पृ.७अ, संपूर्ण. ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ११ अंगनाम १ आचारांग; अंति: मिली ४५ आगम जाणिवा. ७९४६८. (+) सुरप्रियऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १६४५३). सुरप्रियऋषि सज्झाय, मु. धनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवरनाम हदइ धरीजी; अंति: वलि सुरप्रिय दुखहरो, गाथा-३६. ७९४६९ सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२-४१(१ से ४१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२.५, १३४३१). १. पे. नाम. २४ जिन सज्झाय, पृ. ४२अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. म. हेत ऋषि, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: माहासुख कि खान हे, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. पुकार पच्चीसी, पृ. ४२अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिनवंदना पच्चीसी, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिनराजगरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ३.पे. नाम, चोविसजिन स्तवन, पृ. ४२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. भारमल्ल, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ पहिला अरिहंत; अंति: रमल्ल भणे विहु भायइ, (वि. गाथांक का उल्लेख नहीं है. प्रारंभ में अमरकोश के दो श्लोक लिखकर छोड़ दिया गया है.) ७९४७० (4) गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. खेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १६४५०). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देस मझार दुवारक; अंति: सुख लहीए इणरीत वधीजी, गाथा-४७. ७९४७१ (+) रहनेमि पंचढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १४४३९). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७९४७२. दादाजी गीत, पार्श्वजिन होरी व नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, ११४३६). १. पे. नाम. दादाजी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अरे लाला श्रीजिनकुशल; अंति: राज० वारोवार रे लाला, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सिवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी लगी लगन प्रभु; अंति: प्रभु सिवचंद्र समोरी, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: यादव मन मेरो हर लीयो; अंति: चंद कहे मन हरखियो रे, गाथा-५. ७९४७३. (+) पार्श्वजिन स्तवन व वासुपूज्यजिन पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पास; अंति: जिनचंद० रिपु जीपतौ, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम, वासुपूज्यजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: वासुपूज्य जिनवर साहि; अंति: प्रभजी कुं पधरावैरी, गाथा-४. ७९४७४ (-) साधारणजिन पद, हिडोला व ज्ञानपंचमी लघुस्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, ११४३३). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुन लीजे विनती हमारी; अंतिः अबकी हरो छुदा तन की, गाथा-३. २. पे. नाम. साधारणजिन हिडोला, पृ. १अ, संपूर्ण.. साधारणजिन हिंडोला, म. ज्ञान, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु भजो चितलाय; अंति: ज्ञान० मुगत रली, गाथा-६. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचम तप तुम्हे करो; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: अब के सावन प्रभु घर; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-३ तक है.) ७९४७५. सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १६४३६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: पासजिणेसर तुमने; अंति: लालचंद० करि दरै, गाथा-७. २.पे. नाम, आदिनाथ वृद्धस्तवन-रांणपुरातीर्थमंडण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपर वृद्ध, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: श्रीजिनधर्म तणौ; अंति: फल जात्र कीधी सुखदाय, गाथा-१६. ३. पे. नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल चारित लीयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७९४७८. १० श्रावक सज्झाय व नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: सरावग, जैदे., (२६४१०.५, १७४४२-४६). १.पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: आणंदजी रे सिवानंदा; अंति: चोलमजीठ कोसो रंग हो, गाथा-१६. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीत; अंति: भवना म्हारा बंधण तोड, गाथा-९. ७९४७९ ५ मंगल स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६०, चैत्र कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राहण, प्रले. सा. खुशालश्री; पठ. श्राव. चोखाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०,१५४३४). ५ मंगल स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: उस पहलो मंगल अरिहंत; अंति: छजी मंगल पांचमो, गाथा-१२. ७९४८०. चौवीस जिनाश्रित चक्रवर्ती, वासुदेवादि समय विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी: चक्रवत, जैदे., (२५४१०.५, १७४३४). २४ जिन आश्रित चक्रवर्ती वासुदेव समय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आदिनाथजी के बार भरते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ९ प्रतिवासुदेव के नाम तक लिखा है.) ७९४८१. आध्यात्मिक बारहमासा राखडी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. सा. चनणा आर्या (गुरु सा. नंदु आर्या महासती), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:राखडीसपू., दे., (२५.५४११.५, २०४३५). आध्यात्मिक बारहमासा राखडी, पुहिं., पद्य, आदि: पहलीजी लीजे अरिहंत; अंति: पजोइ म्हारी मन तणी, गाथा-१८. ७९४८२. जंबुकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. चनणा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: जंबुक., जैदे., (२५.५४१०.५, १८४३८). For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org २५५ जंबूकुमार सज्झाय, मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८६१ आदि राजगरी नगरीरो वासी; अंति: नरधीरी तम परवारी, गाथा- १८. ७९४८३. आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २१(१)-१, जैदे. (२५.५४११, ९३५). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अतिः समवसुंदर गुण भणे, गाथा-३१, (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७९४८४. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५. ५X११.५, १३४३८). स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि आज अधिक भावे करी, अंति: (-), (पू.वि. सुमतिजिन स्तवन गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ७९४८५. (+) गौतमगणधर व अग्निभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : गणध्र, संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, १६X३६). १. पे. नाम गौतमगणधर सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि गौतम गुणधर गुण गाय अतिः ऋषि चंद्रभाणजी विचार, गाथा १३. २. पे. नाम. अग्निभूति सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: अगनभुति अराधीइ उलट घ; अंति: रामगढ गुणसार, गाथा - ९. ७९४८६. कल्याणमंदिर स्तोत्र पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १७८२ आश्विन शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पू. ३, जै, (२५X१०.५. ११४४३). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास पुहिं, पद्य वि. १७वी, आदि परम जोति परमातमा परम अंतिः बनारसी० समकित शुद्ध, गाथा-४४. , ७९४८७. चारप्रत्येकबुद्ध चौढालीया, संपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, ले. स्थल. महिमापुर (भागीरथ, प्रवे. पं. दयामाणेक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५x११.५, १०x२९). १. पे नाम. प्रथम प्रत्येकबुद्ध सिज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. करकंडुमुनि सज्झाव, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि चंपानगरी अतिभली हु; अंतिः प्रणम्या पाप पलाय रे, गाथा - ५. २. पे नाम. द्वितीय प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण दूमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर कपीलानो धणी रे; अंति: नितनित प्रणमुं पाय, गाथा-८. ३. पे नाम. तृतीय प्रत्येकबुद्ध गीत, पृ. २अ संपूर्ण नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयर सुंदरसण राय हो; अंति: समयसुंदर कहै साधुनै, गाथा ६. ४. पे. नाम. चतुर्थ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: परबत ऊपर पुंडरवरधन; अंति: चोथो प्रक, गाथा-६. ५. पे. नाम. च्यारे प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिसथी च्यारे; अतिः गाया हे पाटण परसिद्ध, गाथा - ५. ७९४८८. गणधरवाद व चौवीसजिन आंतरू, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. विक्रमपुर, पठ. श्राव. भागां, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११.५, १७४५२). १. पे. नाम. गणधरवाद, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. मा.गु., सं., गद्य, आदि: हिवइ एहवइ अवसरि अपाप; अंति: ११ गणधर दीख्या लीधा. २. पे नाम, चौबीसजिन आंतरु, पू. ३२-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला बीजा विचै पचास; अंति: पचास वरसरो आंतरो. ७९४८९ (+) भास, पद व गीतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४३३). १. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिलू ए मंगल जिनतण: अंति: भवजलनिधि तरो ए, गाथा-६. २. पे. नाम. शत्रुजयऋषभजिन भास, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन भास-शत्रंजयतीर्थमंडन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: संघपति भरतनरेसरू; अंति: हो तुं अखयभंडार तो, गाथा-७. ३. पे. नाम. संध्यामांगलिक गीत, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मंगल स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय शासन देवता; अंति: नमउ पद्मविजय कहेइ ए, गाथा-१७. ४. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धरम उछव समै जैनपद; अंति: पद अनुसरे ए, गाथा-४. ७९४९० (+) समाधितंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४३५). समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ५वी, आदि: येनात्माबुध्यतात्मैव; अंति: (-), श्लोक-१०६, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक है.) समाधिशतक-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मा.गु., गद्य, आदि: जिनान् प्रणम्याखिलकर; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बालावबोध के अंतर्गत अधिकार-६ तक लिखा है.) ७९४९१. साधपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१०.५, १२४३५). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि अ; अंति: (-), (पू.वि. "इच्छकार इत्यादिक विनय साचव्यो" पाठांश तक लिखा है.) ७९४९२. (#) चंदनबाला चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: चंदनबाला, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २१४३६). चंदनबालासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि मंडत नीलतन; अंति: अटल ओगणा राखी रे लो, ढाल-१३. ७९४९३. इलाकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १५४४५). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदाइ सदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-७, गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ७९४९४. आनंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३७). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-७, गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ७९४९५. साधुवंदना बडी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:साधसाधवीना., दे., (२६४११, १४४४१). साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोवीसी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५१ अपूर्ण तक है.) ७९४९६ (4) कर्णाटकीय दिगंबर जैनतीर्थ यात्रावर्णन पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ११४२६). कर्णाटकीय दिगंबर जैनतीर्थयात्रा वृत्तांत पत्र, पुहि., गद्य, आदि: श्रीअजितनाथजी की चोड; अंति: जिनाय नमः कहीजौ. ७९४९७. बुध रास व नेमराजुल स्तवन, संपूर्ण, वि. १८००, कार्तिक शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. बेडा, प्रले. मु. प्रीतसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: बुधरास, जैदे., (२५४११, १४४४०). १. पे. नाम, बुद्धि रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देव अंबाई; अंति: हां टले सवी कलेस तो, गाथा-६५. For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २५७ २.पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. नित्यविजय, रा., पद्य, आदि: सूरति थाहरी हो; अंति: (१)नित्यविजय० जादवजी, (२)चालो हो नेम डुंगरा, गाथा-५. ७९४९८. (+) चंद्रगुप्तराजा सोलस्वप्न, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १०४४२). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: सिख जेमलजी जोडो रे, गाथा-५०. ७९४९९ (4) अवंतिसुकुमाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पीसांगण, प्रले. माना; पठ. सा. कुनणां, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: अवंतीसु., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १९४४३-४६). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्याहसत किण; अंति: अवती पास कवायो रे, ढाल-१३, गाथा-१०७. ७९५००. स्तवन, सज्झाय व होरी, संपूर्ण, वि. १९३३-१९५०, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. विठोरा, प्रले. पं. चतुरसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३,१३४२९). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरं सारद माय; अंति: केसर० तुज लली लली जी, गाथा-८. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ.१आ-३अ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमं दिन; अंति: कहे मानविजय उवजाय, ढाल-४, गाथा-२५. ३. पे. नाम. आंबेलतपनी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९३३, आश्विन शुक्ल, ७. नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु नमतां गुण उपजे; अंति: मोहन सहज स्वभाव, गाथा-९. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक होरी, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. धनमुनि, पुहिं., पद्य, आदि: होरीया मन रंग रमाउं; अंति: अक्षय सुख आतम भाउं, गाथा-७. ७९५०१. सज्झाय, स्तवन व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्रले. मु. हीराचंद ऋषि; पठ. मु. लाधाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३६-३९). १. पे. नाम, सर्वार्थसिद्ध चंद्रोदय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: गुणविजय० फले आसो रे, गाथा-१६. २.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पदलध्य रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. जिनवर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. हीराचंद ऋषि; पठ. मु. लाघा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: मदन मद विदारी चारु; अंति: वर्द्धमानो जिनेंद्र, गाथा-१. ४. पे. नाम. विजयकुमारविजयाकुमारी लावणी, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंति: लालचंद० किया सिरनामी, गाथा-१७. ५. पे. नाम. पद्मचंद्रऋषि सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राज छंडी रलीयामणो; अंति: ऋद्धिहर्ष० ए परतख्य, गाथा-६. ७९५०२. चित्तसंभूति व रथनेमिराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५४३६). १. पे. नाम. चितसंभूति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त कहे ब्रह्मराय; अंति: सीवपुरी लेसे हो के, गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५८ २. पे. नाम रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: नमुं नमुं नेमजिणंदने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ तक है.) ७९५०३. नवपद नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २, जैदे. (२६४११.५, ११४३३). "" , www.kobatirth.org (२४.५X१०.५, २२X५६-६०). १. पे. नाम. बारव्रत ढाल, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि नमोनंत संत प्रमोद, अंति ज्ञानविमल० जयकार पावे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - २२. ७९५०४. (२) धर्मध्यान पत्र, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : धर्मध्यान, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x११.५, १५X४० ). धर्मध्यान लक्षण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: धम्मेज्झाणे चउविहे; अंति: (-), (पू.वि. त्रीजी अणुप्पेहे के प्रारंभ तक है) ७९५०५. बारहव्रत ढाल व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : बाराव्रत, जैदे., कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ व्रत ढाल, मा.गु., पद्म, आदि पांच अणुवरत प्रवडा; अंतिः अतीचार टालो भावसुं ढाल १०, गाथा १६५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि संत करता श्रीसंतजिन; अति मरण मुझ दुख हरणा, गाथा ९. ७९५०६. नास्तिक आस्तिक धर्मप्रमेयसिद्धि खंडनमंडन विचार, संपूर्ण, वि. १७४४, चैत्र ३, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. भुवनसागर (गुरु मु. जीतसागर); गुपि. मु. जीतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१२, ११४३१). नास्तिक आस्तिक धर्मप्रमेयसिद्धि खंडनमंडन विचार, सं., गद्य, आदि नास्तिकैर्यदुच्यते; अंति विलासहावभावयुक्ताः. ७९५०७. नेमजिन रास, संपूर्ण, वि. १९१६, आषाढ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. मोहनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ११X३५-३८). नेमराजिमती स्तवन, पुहिं. पद्य वि. १८५९, आदि समुद्रविजय के नंद, अंतिः सेर रामपुरामांहि गाथा ४७. , 7 ७९५०८. खंधकमुनि चौडालियो, संपूर्ण, वि. १८६९ चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, प्रले. सा. जीता (गुरु सा सीता आर्या); गुपि. सा. सीता आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : खंधक, जैदे., (२६X११, १६X३६). खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा. पद्य वि. १८९१, आदि नमुं वीर सासनधणीजी; अति हो मिच्छामिदुक्कडम, डाल- ४. " ७९५०९. (#) १२ देवलोक आयुमान विचार, सीमंधरजिन स्तवन व धर्मोपदेश व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११.५, २५x७२). ९. पे नाम. १२ देवलोक आयुमान विचार, पू. १अ, संपूर्ण देवलोक देहमान आयुमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सुधर्मा इंद्र: अंतिः वरनथी पछे इंद्र चवे. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि मारी वीनतडी अवधारो; अतिः अगरचंद० गरीब नवाज, गाथा - २१. ३. पे. नाम. धर्मोपदेश व्याख्यान संग्रह, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह, प्रा., मा.गु., रा. सं., प+ग, आदि अर्हत भगवंत वीतराग, अंति (-) (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा " अपूर्ण. मनुष्यभव के ८ धर्मकार्य व्याख्यान आंशिक अपूर्ण तक लिखा है.) ७९५१०. (+) चौढालियो व नामावली, संपूर्ण, वि. १८६७, आषाढ़ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जै.., For Private and Personal Use Only (२६X१२, १६X३६-४०). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ चौढालियो, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, पे.वि. कलश पत्र - ३ब पर है. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी अंति: (१) जिननाम अभिराम मंतः, (२) प्रितिविमल० मंगल करू, डाल-५, गाथा- ५५. Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २५९ २. पे. नाम. चौरासीगच्छ नामावली, पृ. ३अ, संपूर्ण. ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ओसवालगच्छ १ खरतरगच्छ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ७७ गच्छ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. १२ मत नामावली, पृ. ३आ, संपूर्ण. १२ मत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आंचलीयामत १ पायचंदमत; अंति: अध्यात्ममती १२. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ के १० गणधर नामावली, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन १० गणधर गणनु, सं., गद्य, आदि: श्रीशुभगणधराय नमः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सातवें गणधर तक लिखा है.) ७९५११ (+) गणधरवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १६x४०). गणधरवाद, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेव केवल; अंति: (-), (पू.वि. इंद्रभूति को समवसरण में आने संबंधी आत्मचिन्तन अपूर्ण तक है.) ७९५१२. (+) पारसनाथ स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. तत्त्वसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४५५). १.पे. नाम. पारसनाथ गुरुस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-बृहत् गोडीजी दशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर जगतिलोए; अंति: समयरंगगणि इम बोले, ढाल-५, गाथा-२४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सोभागी हो साहि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ मात्र लिखा है.) ७९५१३. (+) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २२४५४). १. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गजसकमालमनि सज्झाय, म. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हो सोरठ; अंति: मझार करजोर रतनो भणैः, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: आरिज देस उदार नरभव; अंति: हे. ज्युं पामो भवपार, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जबरा होइ जगतमै डोलै; अंति: शिव भसत न पाती है, गाथा-१२. ४. पे. नाम. गच्छमत चौपाई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: एक घरम तीन प्रतिमाता; अंति: हासो लोगा तणो तमासो, गाथा-७. ५. पे. नाम. राजगहतीर्थ वर्णन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: राजगरी नगरी अतिसुंदर; अंति: जासी बरतसी जजकार हो, गाथा-८. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पुहि., पद्य, आदि: का तन मजणा र गबरु; अंति: कदे न सीव दरजी, गाथा-९. ७९५१४. गजसुकुमाल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: सझा, जैदे., (२५४११.५, ९४३२). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. जेठमल, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु गजसुकमाल महामुन; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७९५१५ (+#) भरतबाहबली सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४५३-५७). For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भरतबाहुबली सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ अपूर्ण से है तथा १४ तक लिखा है.) ७९५१६. भैरुजी व क्षेत्रपाल स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ११५३०). १.पे. नाम, भैरुजी स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: यै कीजै ए तो काज हो, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. क्षेत्रपाल स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. अमर, पुहिं., पद्य, आदि: चरताला चामुंड के; अंति: णौ कारिज ए तो किजैरी, गाथा-५. ७९५१७ (4) सिद्धचक्र व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०४३५). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अति अलवेसर; अंति: सानिध करजो मायाजी, गाथा-४. २. पे. नाम. दिवालीनी थोय, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनोहर मरति महावीर; अंति: जिनशासनमां जयकार करे, गाथा-४. ७९५१८. आनंदघनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ११४३६-३९). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., संभवजिन स्तवन गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७९५१९ (4) नवअंगपूजाना दुहा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ९४३५). नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रमा; अंति: कहे सुभवीर मुणंद, गाथा-१०, संपूर्ण. ७९५२०. तीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४१२, ११४३२). तीर्थमाला स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण से १० अपूर्ण तक है.) । ७९५२१. ग्रंथनाम सूचीपत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ४७X१८). ग्रंथसूची, मा.गु., गद्य, आदि: १ रायपसेणी प १०६; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ७९ नं. के ग्रन्थ तक लिखा है.) ७९५२२. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९७४, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. सं. १९७४ मिति आसु १५ लालारंजीतराय तत्पुत्र मुन्नीलाल श्रीमालझाडचुरेण इदं जंत्रं कारापितं प्र. भ. श्रीजिनरत्नसूरिभिं, दे., (२५४१२, २९x१४). खरतरगच्छ पट्टावली, सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामी; अंति: संघ जयवंता प्रवर्तो. ७९५२३. अष्टप्रकारीपूजा गीत व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४४६). १. पे. नाम. अष्टप्रकारीपूजा गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भाणजी, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिन भगति करइ; अंति: पूजा भणतां आणंद आवइ, गाथा-१६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-वाराणसी, प्रा., पद्य, आदि: चित्तबहुलाइ चविउं; अंति: वियसे बोहिलाभम्मि, गाथा-३. ७९५२५. साधु आचार वर्णन-आगमिकटीकागत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १३४३७-४०). साधु आचार वर्णन-आगमिकटीकागत, प्रा.,सं., प+ग., आदि: अथ भक्तार्थिनस्ते तत; अंति: वहणं जाव आसियावियाओ. ७९५२६. सीतासती चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३०). For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ सीतासती चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ के अंतिम दोहा से पुत्र न देखने पर सीतासती द्वारा __ विलाप प्रसंग ढाल-४ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७९५२७. पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १०x१३). १. पे. नाम. उवसगहर स्तोत्र, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: नरेंद्रं फणींद्र; अंति: (-), (पू.वि. गाथ-५ अपूर्ण तक है.) ७९५२८. (#) तेरठा, अपूर्ण, वि. १९२२, कार्तिक शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ६-३(३ से ५)=३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४११.५, १९४३९). नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)मुल१ दृष्टांत२ कुण, (२)जीव ते चेतन अजीव ते; अंति: न्याय छोड़वा जोग छे, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., अधर्मास्तिकाय व आकासतीकाय का वर्णन अपूर्ण से अचेतनगुण, द्रव्य थकी अनंता द्रव्यक्षेत्रथकी जीव का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७९५२९. बाराक्षरी व्याकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १५४३२-३५). वर्णमाला, सं., गद्य, आदि: ॐ नमः सिद्धं अ आ इ ई; अंति: सीद्ध सिद्ध सीद्ध. ७९५३०. (#) दिवाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११, १८४३२-३५). दीपावलीपर्व सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंत रो गण; अंति: अवसर लाधो छै आज, गाथा-२२. ७९५३१ (+) युगमंधरजिन भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १०x२९-३२). युगमंधरजिन भास, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारग वहइ उतावलो श्री; अंति: भउदयथी मिलसइ सहू संच, गाथा-७. ७९५३२. रोहीणीतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६७, फाल्गुन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. लाभविजय (गुरु पं. भाग्यविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४३५-३८). रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद; अंति: विजयलक्षमिसूरी भुप, गाथा-९. ७९५३३. पूजाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२,१४४३६-३९). पूजाष्टक, श्राव. प्राणलाल सेन, मा.गु., पद्य, आदि: क्षीर नीरसु नीरनीरमल; अंति: धारसौं दीजै अरथ अभंग, गाथा-९. ७९५३४. आलोयण पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १५-१८४३६). ___ आलोयणाविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: १ वरस नानि आलोयण; अंति: १८० स. १०५ स. दी. ७९५३५. अनाथीऋषि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. आणंदविजय गणि (गुरु पं. हस्तिविजयजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १७X४२-४५). अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक; अंति: राजन पंचमहाव्रत धारी, गाथा-३०. ७९५३६. महावीर स्तुति व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. विनयवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १०४३७-४०). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरविजयसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सेवित नरसुंदरू; अंति: तदेवी ओच्छव मंगल करो, गाथा-४. २. पे. नाम, घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: घंटाकर्णो नमोस्तु ते, श्लोक-४. ७९५३७. इरयावही व मंहपत्तिबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १६x४२). For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम इरियावहि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि सकल कुशलदायक अरिहंत अंति मेरुविजय० नामेह शीश, गाथा - १६. २. पे. नाम. मुहपत्तिबोल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. • मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर करि जुहार अंति: मेरुविजय तस नामे सीस, गाथा- ११. ७९५३८. गुरुगुण गूंहली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, प्रले. मु. अमीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X११.५, ७०३८-४२). गुरुगुण गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि (-) अंति: मनमाहि वाचना बेला रे, गाथा-७, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा-३ अपूर्ण से है., वि. पत्र-२आ पर ज्योतिष यंत्र अपूर्ण दिया गया है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७९५३९. चैत्यवंदन व नेमिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, जैवे. (२५.५४११.५. १३-१५X३४). १. पे. नाम सिद्धांतसार विचार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सिद्धांतसारविचार सज्झाय, आ. आणंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जंपि खरतपागच्छ नायको, गाथा- १५, (पू.बि. गावा- १२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखि गइ है. - मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि सेवत श्रीरैवतगिरि: अंतिः गाय बेहला घेर आवज्यो, गाथा १७. ७९५४०. अरिहंत गुणदर्शन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५x११, १२x२३-४६). , १८ दोषरहित अरिहंत परमात्मा, पुहिं, गद्य, आदि अरिहंत प्रभु १८ दोष अति (-), अंक-१८, (अपूर्ण, , पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १३ दोष तक लिखा है.) " ७९५४१. (४) चित्रसंभूति चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १८X३७). चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: प्रथम नमुं परमेसरु अति: (-), (पू.वि. ढाल-५, गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ७९५४२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे., (२५X११.५, ११×२७-३०). १. पे. नाम. करमउपर सिज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंतिः कर्म समो नही कोई, गाथा - १८. २. पे नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पू. २आ-३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक रविवाडी, अंति पाइ प्रणमे रे वारवार, गाथा- ९. ३. पे. नाम. चेलाणासती सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदीने वलतां; अंति: पांमिस्यै भव तणो पार, गाथा-७. ४. पे. नाम. पासाकेवली, पृ. ३आ, संपूर्ण. शुकनावली, मा.गु., हिं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवती, अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सत्यं कथ स्वाहा वारे ७ पासो मंतरवो" पाठांश तक लिखा है.) ७९५४३. छ ठाणा विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी छठाणारीगा, जैदे. (२५.५x१२, १२x२८-३२). सम्यक्त्व ६ स्थानकबोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१) तित्थयरा गणहारी, (२)श्री अर्हंत भगवंत; अंति: मंगलीकमाला विस्तरंतु. , "" ७९५४४. (*) छुटक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जै. (२६५११, १८x४६-५२). बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७९५४५. महावीरजिन स्तवन व खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. लींबडीनगर, प्रले. ग. रुपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४३४-३८). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, म. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वलि जाउं श्रीमहावीर; अंति: न्यायसागर दिन मुझ आज, ढाल-२, गाथा-४३. २.पे. नाम. खंधकमुनि सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक महामुनि; अंति: सेवक सुखियां कीजे रे, ढाल-२, गाथा-२०. ७९५४६. (+) बुढापा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: ढालीकी चौपई (हुंडी खंडित है), टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १९x४४). बढ़ापा चौपाई, मा.ग., पद्य, वि. १८४५, आदि: जंबद्वीपनै भरतमै; अंति: विना जीवना एह कमाइ, ढाल-१२. ७९५४७. महावीरजिन चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९४२, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: चोढा., दे., (२६४११.५, १२४३७-४०). महावीरजिन चौढालिया, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुलमां रे; अंति: दिवाली लीजो मानी, ढाल-४, गाथा-६३. ७९५४८. (+) स्तवन, छंद व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १६४३७-४२). १.पे. नाम. शांतिजिन छंद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय नमुं; अंति: फल निश्चै पावै, गाथा-२१. २. पे. नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शांतिनाथ शरणागत; अंति: संत कोइ समो नही तोलै, गाथा-६. ३. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पंडित. भेरुंदास, मा.गु., पद्य, आदि: संत जिणेसर साहब साचा; अंति: भेरुंदास० फल पावे, गाथा-४. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. म. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसंतिजिणेसर संति; अंति: ध्यान श्रीसाध धरे, गाथा-१२. ५. पे. नाम. भक्तामर गीत, प. ३अ-३आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-गीत, संबद्ध, आ. पुण्यरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनसवरं चकेसरी; अंति: पुण्यरत्न० जैजैकार, गाथा-१३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मन सुधी आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणे घर बठा लील करो; अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. ७९५४९. केशीगौतम गणधर संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. डीघ, प्रले. नानगराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, १८४५३). केशीगौतमगणधर संवाद, म. जसकीर्ति, मा.ग., पद्य, आदि: केसी पास संतानीया; अंति: जस० करता इम कहै, गाथा-१०५. ७९५५० गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८, ले.स्थल. हमीरपुर, प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि (नागोरीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ११४३१-३४). १. पे. नाम. औपदेशिक पद- मायावी संसार, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: जग आशा जंजीर की गति; अंति: आनंदघन० निरंजन पावे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: आसा ओरन की क्या; अंति: आनंदघन० लोक तमासा, गाथा-४. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू राम राम जग गावे; अंति: रमता अंतर भमरा, गाथा-४. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू क्या मागुंगुनह; अंति: रटन करूं गुण धामा, गाथा-४. ५.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नट नागर की बाजी; अंति: रस परमारथ सौई पावे, गाथा-४. ६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू अनुभव कलिका; अंति: जगावै अलख कहावे सोई, गाथा-४. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद- वैरागी जीवन, पृ. २आ, संपूर्ण. __ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नाम हमारा राखे; अंति: मुरत सेवकजन बल जाइ, गाथा-४. ८. पे. नाम. समता पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू ममता संग न कीजे; अंति: हित कर कंठ लगाई, गाथा-४. ७९५५१. आदिजिन विनतिरूप स्तवन, संपूर्ण, वि. २१वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक दोनों ओर लिखे गए हैं. प्रतिलेखक ने यह कृति श्रीमद् बुद्धिसागरजीसूरि कृत भजन पद भाग-१ के पृष्ठ ५०१ से ५१२ से उतारा है. ऐसा उल्लेख मिलता है., गु., (२४.५४१२, १०४४२). आदिजिनविनति स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रेय श्रीरतिगेह छो; अंति: देवचंद० मंगलवृंद ए, गाथा-३४, (वि. रत्नाकरपच्चीसी से उद्धृत) ७९५५२ (+) औपदेशिक दोहे, प्रभाती स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४११, २८४५४). १.पे. नाम. औपदेशिक दोहे, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहासंग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: दया धरम को मूल है; अंति: मांगे दरे न कुछ, दोहा-१०३. २. पे. नाम, प्रभाती स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रभातीजिन स्तवन, पुहि., पद्य, आदि: सीध श्रीप्रभातमा; अंति: पावे मुगत समाध, गाथा-८८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: कोन सुने कासु कहे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ७९५५३. (+) पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४३६-३९). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीर तत्पट्टे; अंति: (-), (पू.वि. सोमतिलकसूरि तक है.) ७९५५४. नेमिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१२.५, १२४३२). नेमिजिन लावणी, म. माणेक, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीनेमि निरंजन बाल; अंति: गावे लावणी मनने कोडे, ढाल-४, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २६५ ७९५५५ (#) नेमराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. श्राव. बकसीराम; पठ. सा. सरुपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४२४-२७). नेमराजिमती बारमासा, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चढी सांवणे सामि; अंति: चालदेस प्रसीध पुहवी, गाथा-१३. ७९५५६. जीवआउखा स्वाध्याय व १० पच्चक्खाणफल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १४४३७-४०). १.पे. नाम. जीवआउखा स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणकमल प्रणम; अंति: भावसा०सज्झाय दाखी जी, गाथा-१०. २. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: सीस गुणचंद तपविध भणै, ढाल-३, गाथा-३३. ७९५५७. (+) पद्मावती आराधना व चार शरणा, संपूर्ण, वि. १८४०, फाल्गुन कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. सूरधणा, प्रले. मु. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: आराधना, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १३४२७-३२). १.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर०छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३४. २. पे. नाम, ४ शरणा-अध्याय प्रथम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुजने चार शरणा; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम अध्याय गाथा ३ तक लिखा है.) ७९५५८, कल्पसूत्र व्याख्यान कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५-३(१ से २,४)=२, जैदे., (२६४१२, ८x२३-२६). ___ कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., बीच के पाठांश है) ७९५५९ (#) रत्नपालरत्नावती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २१४४७). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीरिषभादिक जिनवर; अंति: (-), खंड-३, गाथा-७७४, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-१, ढाल-५ तक लिखा है., वि. ढाल ३२) ७९५६० (+) निह्नवमत चर्चाविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:चर्चापत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, २४४५३). १. पे. नाम. निह्नवपंथी चर्चाविचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: १ राजा श्रेणिक कसाइ; अंति: श्रद्धा छे जेहनी. २. पे. नाम, निह्नवविचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.. निह्नवविचार पद, मु. खीमसी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक केरा दानज; अंति: ताम नही भाषी जी, गाथा-५. ३. पे. नाम, रुघनाथजी भिषनजी मत चर्चा संग्रह, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. रुघनाथजी भिखनजी मत चर्चा संग्रह, रा., गद्य, आदि: संवत् १८१५ चेत सुद ९; अंति: श्रद्धा में भंग नही. ४. पे. नाम. निह्नवमतखंडन झलणा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण... रा., पद्य, आदि: सूत्रसिद्धांतरा अरथ; अंति: काज सदाइ सर्यो हे, पद-५. ५. पे. नाम. निह्नवमतदूषण चर्चा, पृ. २आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: इण श्रद्धावाला कोइ; अंति: दया धर्म आद्रवो सत्य. ७९५६१. चैत्रीपूनम देववंदनविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.२, जैदे., (२५४१२, १२४३२). For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: प्रथम चउखुणी गोबररी; अंति: कीजै पछे उजमीजै. ७९५६२. (#) गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: गयसुकुमालचउढालियं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४-१७४३५-३८). गजसकमालमुनि सज्झाय, आ. नन्नसरि, मा.गु., पद्य, वि. १५५८, आदि: सोरठ देस वखाणीइ साहे; अंति: विलसइ अगि श्रीजिन, गाथा-३४. ७९५६३. जिनहर्षसूरि विनतीपत्र, १८ नातरा कवित्त व १८ नातरा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १३४३६-३९). १. पे. नाम. खरतरगच्छनायक जिनहर्षसूरि के प्रति विनती पत्र प्रशस्ति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८५७, पौष शुक्ल, ११. जिनहर्षसूरि खरतरगच्छनायक विनतीपत्र, रा., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंति: सो दिन सफल हुस्यै जी. २. पे. नाम, अढार नातरा कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ नातरा कवित्त, पुहिं., पद्य, आदि: देवर भतीजो भ्रात; अंति: सुता अठारह नाते है, पद-१. ३. पे. नाम. १८ नातरा विवरण, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली साध्वीये छ नात; अंति: नाता का संबंध जाणेना. ७९५६४. स्तवनचौवीसी व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, २२४५०-५३). १. पे. नाम, स्तवन चौवीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: ते संसार सारो रे, स्तवन-२४. २.पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. वल्लभ विजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासण रेवती; अंति: वल्लभ० भव तणो पार रे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. घडपण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: घडपण आवीउंजीव समर; अंति: रुपविजय गुण गाय, गाथा-८. ७९५६५. ब्रह्मपिंड समाधिध्यान सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१२, ३४२८-३२). ब्रह्मपिंड समाधिध्यान श्लोक, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमज्योति; अंति: प्राण इंद्री मन्मथ, श्लोक-२, संपूर्ण. ब्रह्मपिंड समाधिध्यान श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे मनुष्यनी गतिमां; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुमता पांखडीस्थित जीव परिणाम विचार अपूर्ण तक लिखा है.) ७९५६६. (#) साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७७१, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. धर्मरंग; पठ. श्रावि. रूपा वैरागण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १२४३५-३८). साधुगुण सज्झाय, ग. कल्याणधीर, मा.गु., पद्य, आदि: संजम सूधो आदरइ जे; अंति: णधीर हो मननै उल्लासि, गाथा-६७. ७९५६७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे.५, प्रले. श्राव. धनराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: तवनल, जैदे., (२५४११, १३४३६). १. पे. नाम, मनभमरा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो ज्ञान भमरा कांई; अंति: महंमद०लेखो साहिब हाथ, गाथा-१०. २. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघकु; अंति: छुटे भवतणा पासोजी, गाथा-५. ३. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रीउडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा-७. ४. पे. नाम, घेवर सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. घेवर सज्झाय-अंतरायकर्म, मु. वनेचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ठाकुर घरे जमाई; अंति: वनेचंद० ग्रहो सुखदाय, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २६७ ५. पे. नाम. नागलाजी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. भवदेवनागिला सज्झाय, म. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भवदेव जागी मोहनी तज; अंति: रतनचंद० नित सीस नमाय, गाथा-११. ७९५६८. (+#) २४ जिन स्तवन व मौनएकादशीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ. मु. दोला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४२७-३०). १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमुं; अंति: तास शिस पभणे आणंद, गाथा-२९. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुण० संघ तणा निसदीस, गाथा-४. ७९५६९ (+) शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १२४३३). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१४ अपूर्ण से ढाल-४ तक है.) ७९५७० (+) प्रास्ताविक ज्ञानकथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: प्रस्ताविक ज्ञानकथा, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १६४३५-३८). भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालागमन पंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, आदि: प्रभुजी नैंलेसालै; अंति: (-), (पू.वि. ब से प्रारंभ होने वाली दृष्टांत अपूर्ण तक है.) ७९५७१ (4) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-११(१ से ११)=२, कुल पे. ५,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२-३५). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १२अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: एम उदयरतन कहै वाणी, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंति: देव० सुख लहैस्यै रे, गाथा-११. ३. पे. नाम, साधुगुण सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. ग. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ते बळीयो भाई ते बळीय; अंति: हर्षविजय हित कारी रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. देवानंदामाता सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: पूछ उलट वात मन आंणी, गाथा-११. ५. पे. नाम. अर्द्धपद्गलपरावर्तनविचार सज्झाय, पृ. १३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अर्द्धपुद्गलपरावर्त्तनविचार सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिन उपदेसे सुललित सर; अंति: (-), ___ (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ७९५७२. (+) नरकविस्तार स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १२४२६-२९). नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान जिनने; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७९५७३. (+) औपदेशिक पद, स्तवन, सज्झाय व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, २५४४२-४६). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, मा.गु., पद्य, आदि: परलोके सुख पामवा; अंति: चेत चेत नर चेत, गाथा-१०. २.पे. नाम, औपदेशिक दहा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक दुहा संग्रह-पर्युषणपर्व पत्रिका, पुहिं., पद्य, आदि: सजन सारे समुमन हो; अंति: मुठी में न समाय, गाथा-३७. ३.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: देखकर जिनकी दया; अंति: उनके चित खीचें, गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पेट के लिये धर्मपरिवर्तन, पहिं., पद्य, आदि: कल जातियो तीन चाहि; अंति: हम हैं विदेशी हो रहे, गाथा-५. ५.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दान, पुहिं., पद्य, आदि: धनवानों धन रक्षा; अंति: धन कर दो वलिहार, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ६.पे. नाम, औपदेशिक पद संग्रह, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: गुलसने आलस में अब; अंति: सब सुखी संसार हो, पद-१२, (वि. विविध विषय सम्बद्ध पद्य संग्रह.) ७९५७४. कर्मप्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२,प्र.वि. हुंडी: प्रक्ति, जैदे., (२६.५४११, १९४३७-४०). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धर्मने विषे उदम करवो, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., संग्रायतन, बेकरकोसंघातन, आहारकनो संघात, तेजसनोसंघात आदि का वर्णन अपूर्ण से है.) ७९५७५. कलावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १२४३२-३६). ___ कलावतीसती रास, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रि रे नगरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ७९५७७. (+) महावीरजिन चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. आगरा, प्रले. श्राव. रायकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी: म्हावीरजीकोचौ, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११,१६४५०). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुले तुं; अंति: अठारगुणतालीस जानी, ढाल-४, गाथा-६३. ७९५७८. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी: स्तवनप., जैदे., (२४.५४११, २१४५४-५८). १.पे. नाम. उपदेश पच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७८, आदि: निठ निठ नर भवे लहो; अंति: मेरे एह दीयो उपदेस, गाथा-२६. २.पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. कसालचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: चेत चेत रे प्रांणीया; अंति: खशालचंद० ते तांणी, गाथा-१७. ३.पे. नाम, जैवंती सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मृगावतीजेवंती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि: कहे जयंती सुण भोजाइ; अंति: गुणगाया गुर बुधथी हो, गाथा-२०. ४. पे. नाम. गुरुगण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: सामीजी साहेब सुणो; अंति: अविचलज लील विलासी, गाथा-१७. ५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. नरसींग ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: प्रभुजी ऋषभ जिनेसर; अंति: नरसिंगभणे उल्हास रे, गाथा-१५. ७९५७९ पारसनाथजीरो सिलोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४११, १५४५०-५३). For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७९५८०. चित्रसंभूति चौडालिया, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१०५ १२x४४). " www.kobatirth.org २६९ पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा. पद्य वि. १८५१, आदि परथम परमारथ अविचल अंति: बात नह काह छानी, गाथा-५६. चित्रसंभूति चौडालियो, मु. जयसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: प्रणमु सरसति सामणी अंति: पहूतो मोक्ष मझार, ढाल-४. ७९५८३. (*) अहिपुरगच्छपती जीवणजी गीत संग्रह व आसकरणजी गीत संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४११.५ १३४५२) , יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम. आचार्य श्री जीवणदासजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, जीवणदासजी गीत अहिपुरगच्छपति, मु. सिव, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि सदगुरु चरणे हो चित; अंति: सिवो क० जेठ ज मासो गाथा. ९. ७९५८५ (+) २. पे नाम. आचार्य श्री जीवणदासजी गीत. पृ. १अ १आ, संपूर्ण जीवणदासजी गीत अहिपुरगच्छपति, मु. खेम, मा.गु., पद्म, वि. १७७१, आदि: श्रीजिनवाणी हे सखी; अति खेम० मया मन सुध सवाजी, गाधा- १४. ३. पे. नाम. आचार्य जीवणदासजीरो गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. जीवणदासजी गीत-अहिपुरगच्छपति, मु. ठाकुरसी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सदगुरु पाया हो नमुं; अंति: ठाकुर पूगी मनरली जी, गाथा- ७. ४. पे नाम अहिपुरगच्छपती जीवणदासजी गीत, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. ५. पे. नाम आसकरणगुरुगुण गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. भीम, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीगुरुगुणगणपूर सूर; अंति भीम० रीझवा रे हां, गाथा- ९. ७९५८४ (०) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-३ (१ से ३ ) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२, १२x२९-३२). जीवणदासजी गीत-अहिपुरगच्छपति, मु. ठाकुरसी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सरसति सानिध होय अब; अंतिः ठाकुर पुगी रली जी, गाथा- ११. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. डाल-४ की गाथा - १० अपूर्ण से ढाल ६ की गाथा ८ अपूर्ण तक है.) श्रुतज्ञानना भेद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६ ११.५, १०X३०). श्रुतज्ञान प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: हवइं श्रुतज्ञाना भेद; अंति: ज्ञानना भेद कह्या. ७९५८७. आलोयणाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. प्रतिलेखक ने प्रत के प्रारंभ में प्रत्येकबुद्ध रास खंड ३ की पहली दाल का प्रारंभ प्रथम पाद अपूर्ण तक लिखा है एवं इसी के साथ आलोयणाछत्रीशी नाम कृति संपूर्ण रूप से लिखा है. अतः कृति प्रत्येकबुद्ध रास नहीं अपितु आलोयणाछत्रीशी है. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. जैवे. (२५.५x११, १२४३७-४०). आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्म, वि. १६९८ आदि पाप आलोइ तु आपणा; अंतिः समयसुंदर ० . आलोयण उछाह गाथा - ३६. ७९५८८. (*) खरतरगच्छ सामाचारी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. जैदे. (२५.५४१२, १३४३५-३८). . खरतरगच्छीय शुद्ध समाचारी, मा.गु. सं., गद्य, आदि धूअरिपडे तांसीम अति पजूसण आराधीये. ७९५८९. (A) अरहन्नकमुनि रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-१ (१) २, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२६११.५, १५x४२). अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., पच, वि. १७०२, आदि (-); अंति कह्यो विलास के, ढाल-८. (पू.वि. ढाल ४ से है.) For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९५९० (+) पार्श्वनाथ देशोतरी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: छंददेशांतरी, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १६x४५). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपो सारदा मया; अंति: पास० छंद देशांतरी, गाथा-४७. ७९५९१. ज्ञानपंचमी वृद्धस्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ७९५९२. (+) प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम, अपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ९४३३). प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: महावीरसं ६० वर्षे; अंति: छोटा नारायण नरसिंघ, संपूर्ण. ७९५९३. (+) महाबलमुनि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४३३). महाबलमुनि रास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमु जिन जगत; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७९५९४. (+) उपदेश बत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३५). उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सयाने तुं; अंति: सदगुरु शीख सुणीजै, गाथा-३०. ७९५९५. गौत्मस्वामीनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, ८x१७). गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजनेसर केरो सीस; अंति: मन वंछित फल दातार, गाथा-९. ७९५९६. (+#) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५५, चैत्र शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. कान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पडिकमणाविध पत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४४३). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरीयावहि नोकार; अंति: उतरे पीठफल वोसरावु. ७९५९८. प्रास्ताविक कुंडलीआनी बावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: कुंडलियाबावनी, जैदे., (२५४१०.५, २०४५५-५८). प्रास्ताविक कुंडलियानी बावनी, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: ॐ नमो कहि आदीथी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण तक है.)। ७९५९९. दशवकालिकसूत्रनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १४४३६-३९). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७९६०० (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. सिद्धिविजय (गुरु मु. भावविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. भावविजय (गुरु ग. शुभविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २३४६४-६८). १. पे. नाम. वैराग्य स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, ग. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मात पिता धूअ मित्र; अंति: कीजइ सद्गुरु सेवा एक, गाथा-२६. २. पे. नाम. सकलजिन परिवार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-२४ जिन परिवार, म. विद्याचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पय प्रणमी रे ऋषभादिक; अंति: विद्याचंद० गहगह्यो, गाथा-१०. ३. पे. नाम. विजयहीरसूरी द्वादशमास, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदि: नैगमः१ संग्रह वि.१९वी, श्रेष्ठ, नो मंगलां, श्लोक-१.. यमाला संपजै. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २७१ हीरविजयसूरि बारमासा, म. सचवीर मनि, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: सरसति भगवती गुणवती; अंति: सरवीर० जगिहीरजी रे, कडी-५८. ७९६०१ () जिनबिंबसंख्या विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री पार्श्वनाथजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ११४३२). शाश्वतजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलइं देवलोक सौधर्म; अंति: सातसइ अने सठबींब. ७९६०२. १५ सिद्धभेद नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३३). १. पे. नाम. १५ सिद्धभेद गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: गिहलिंग सिद्धभरहो; अंति: तत्थ सिद्धाय मरुदेवि, गाथा-५. २. पे. नाम. ४५ आगम नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इग्यारे अंगरा; अंति: १० ३०० पयना नाम. ३. पे. नाम. ४५ आगम कुलश्लोक संख्यामान गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पणयालिसं आगम समग्गा; अंति: छसया चेव पणतीसा, गाथा-१. ४. पे. नाम. मठी में ४ जीवभेद नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मुठी मध्ये ४ जीवभेद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सुख्यम १ बादर २; अंति: च्यार भेद कह्या छे. ५. पे. नाम. ७ नयनाम श्लोक, पृ.१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नैगमः१ संग्रहश्चैव२; अंति: एवंभूत७ नया स्मृताः, श्लोक-१. ७९६०३. पंचपरमेष्ठि स्तुति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५,१४४२८). पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु नो मंगलां, श्लोक-१. पंचपरमेष्ठि स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हतभगवंत अशरणशरण; अंति: मांगलिक्य माला संपजै. ७९६०४. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, ८x२९). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: भले दीठो दरसण आज; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) ७९६०५. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १६x४४). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वांछितपूरण विबुधजन; अंति: (-), गाथा-१८, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० अपूर्ण तक लिखा है.) ७९६०६. वैराग्यवर्धक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४२९). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पर्षदा आगे दिये मुनि; अंति: उदयरत्न० छे एह हो, गाथा-११. ७९६०७. (#) द्रौपदीकृत जिनप्रतिमा पूजन संसारार्थ या धर्मार्थ विषयक प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १९४४१). द्रौपदीकृत जिनप्रतिमा पूजन संसारार्थ या धर्मार्थ विषयक प्रश्नोत्तर, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: केई कुमती कहै छै; अंति: प्रत्यक्ष दीसै छै. ७९६०८.(#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७९, आषाढ़ कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. मुक्तिविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३७). महावीरजिन स्तवन, मु. मुक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहि मोरी सरसति नमुजी; अंति: मुक्तिमुनि जय जय वरि, गाथा-१०. ७९६०९. साधुआचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १६४३६). औपदेशिक सज्झाय-साध्वाचार, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान सासण धणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९६१० (+-) स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १०x२९). १.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. फतेह, पुहिं., पद्य, आदि: हम से कर छल वल कर; अंति: फते० चरण चित रहे रहे, गाथा-३. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: लोक चवदके पार किनारै; अंति: रूपचंद० का दासा है, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: टुंक इहा रहो जादव दो; अंति: हुई मेरी आंखडीया, गाथा-४. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, रा., पद्य, आदि: नीसदिन जोउ थांरी वाट; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७९६११ (+) पार्श्वजिन स्तवन व दसस्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. लखीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १६४३४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जन्मकल्याणक, हिस्सा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रमतीने गमती अमल साहे; अंति: प्रभुने चर्णे आवी रे, गाथा-१८. २. पे. नाम. दस स्वप्न सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १० स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम आराध; अंति: अहो रे जीनधर्म सासे, गाथा-१०. ७९६१२. सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१३, १३४३२). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदे जिनवर; अंति: उदयरत्न० सुखसंपदा ए, गाथा-१६. ७९६१३. (+) महावीरजिन स्तवन, पर्युषणपर्व स्तवन व सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, ८४३०). १.पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ___मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पहुता भवनै रे पार, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: संघ सकल हितकारी जी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ से है., वि. अंतिमवाक्य में प्रशस्ति वाला भाग नहीं लिखी है.) ३. पे. नाम. सिंदूरप्रकर-श्लोक ९,१० व १५ सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७९६१४ (+) आध्यात्मिक, औपदेशिक छुटक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ४०, प्र.वि. हुंडी:छुटकर पद., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २३४६३). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद-गाथा १ से ४, पृ. ३अ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: संता ऐसी दुनिया भोली; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. रतनचंदगुरुगुण पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. दोलतराम, रा., पद्य, वि. १८८०, आदि: रतनचंदमुनि दीपता जी; अंति: दोलतराम० थारै पाव जी, गाथा-७. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मीठा, पुहि., पद्य, आदि: क्यूं जावो महाराज वन; अंति: रहीयै सदाई भजन मै, पद-५. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: घणा दिन पाडै छै काना; अंति: आनंदघन० लाज उघोडो छो, पद-२. For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ५.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. क. सूरदास, पुहि., पद्य, आदि: जीवन जैसे प्रति भजन; अंति: सूरदास० कुटुंब समेत, पद-३. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: लगा इसकादा तीर बै; अंति: को जाणै परपीड बै, पद-३. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: मारो भर्म रवी लूच्यो; अंति: प्राण दुहेली बै, पद-२. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कैसे सोउ नीद साइ; अंति: एही वखत सुहाग दाबै, पद-३. ९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. कबीर, रा., पद्य, आदि: थारी काया मै गुलजार; अंति: कबीर० आवागमण निवार, पद-४. १०. पे. नाम. श्रीकृष्णभक्ति पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, पुहिं., पद्य, आदि: अब तो श्याम सोचन दे; अंति: वण्यौ पातन की छाय, पद-३. ११. पे. नाम. श्रीकृष्ण होली पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.. कृष्ण होली पद, घन सखी, पुहि., पद्य, आदि: एक समै घनश्याम के; अंति: घनसखी० भए परम आनंदी, पद-२. १२. पे. नाम, आध्यात्मिक होलीपद, पृ. ३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरीपद, घन सखी, पुहिं., पद्य, आदि: जोरी से खेलै होरी रे; अंति: दोह करत करजोरी रे, पद-३. १३. पे. नाम. रतनसाधुगुरु भक्तिपद, पृ. ३आ, संपूर्ण. रतनगुरुभक्ति पद, मु. शंभुनाथ, रा., पद्य, आदि: उवारी जी वारी जी था; अंति: संभुनाथ० गति भारी हो, पद-४. १४. पे. नाम, कृष्णभक्ति पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. किसनदास, पुहिं., पद्य, आदि: कीसन दर्स से अटकी हे; अंति: कीसन० लाज सब पटकी ए, पद-३. १५. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: विश्वसेन अचलाजू कै; अंति: हरखचंद०मीटावो भरम की, पद-४. १६. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. राजरतन, पुहि., पद्य, आदि: दीनानाथ आदनाथ दीन कै; अंति: राजरतन० रीछपाल हो, पद-३. १७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ले गागर सागर पै निकस; अंति: चरणा लपटाणी रे बाला, पद-३. १८. पे. नाम. समकितबोध पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वबोध पद, पहिं., पद्य, आदि: अब मेरे समकित समण आए; अंति: जिन निरब घर पायो, पद-४. १९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कोटक वेर कही रै मनो; अंति: गुरुसेवा आतो सून भई, पद-४. २०. पे. नाम, श्रीकृष्ण भक्तिपद, पृ. ३आ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, पुहिं., पद्य, आदि: पोथी तो खोल पांडै; अंति: सखीनै दर्शण दीजो, पद-३. २१. पे. नाम. साधू आचार पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. साधु आचार पद, मु. शंभुनाथ, पुहि., पद्य, आदि: जाजा द्यो रे सहीया; अंति: सींभू० हे चरण मे नीत, पद-५. २२. पे. नाम. श्रीकृष्ण भक्तिपद, पृ. ४अ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं., पद्य, आदि: कोई दिन याद करो रे; अंति: मीरा० थाकी सकामित, पद-४. २३. पे. नाम. श्रीरामभक्ति पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. रामभक्ति पद, सरदासजी, पुहि., पद्य, आदि: संतो द्यो रे गंडकरै; अंति: सूरदास० भई रघुवीर की, पद-३. २४. पे. नाम, श्रीकृष्णभक्ति पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, चंदसखी, पुहि., पद्य, आदि: श्रीव्रजराज बुलावे; अंति: चंद०प्रीत घुलावे हैं, पद-२. For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir र७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सब जादव मिल जाण वणाए; अंति: सब जग को रस लीनो रे. २६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद-औपदेशिक, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम जिनंद जगतपति; अंति: रेसुं किरीया सब नाखी, गाथा-३. २७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पंडित. हरसुख, रा., पद्य, आदि: थारा चरणांसु मारो; अंति: हरसुख० गयो सब भाज जी, पद-४. २८. पे. नाम. आदिजिन पद-केसरियाजी, पृ. ४अ, संपूर्ण.. पंडित. हरसुख, रा., पद्य, आदि: केसरीया आदीसर नाथ; अंति: हरसुख०जमण मर्ण मिटाय, गाथा-७. २९. पे. नाम. श्रीकृष्णभक्ति पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, रा., पद्य, आदि: हर भगता की संगत करता; अंति: मीरा कह मुख मोर्यो, पद-३. ३०. पे. नाम, श्रीकृष्ण भक्तिपद, पृ. ४अ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, वखतावर, रा., पद्य, आदि: बिहारीजी थारी तरो; अंति: वखतावर०पवाडा गावै छै, पद-२. ३१. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: कोन सुणै किनसु कहू; अंति: चतुरन को कछू और, गाथा-६. ३२. पे. नाम. राधाकृष्ण पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. क. नरसिंह महेता, रा., पद्य, आदि: रातडली क्या जाग्या; अंति: नरसी० संग विलुधा जी, पद-३. ३३. पे. नाम, श्रीकृष्णभक्ति पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, रा., पद्य, आदि: दुखन लागै नैन दर्श; अंति: मीरा० मेटण सुख देन, पद-३. ३४. पे. नाम. श्रीकृष्णभक्ति पद, पृ. ४आ, संपूर्ण.. कृष्णभक्ति पद, पुहिं., पद्य, आदि: वालै मारे कामण कीधा; अंति: मधूरी बैण बजाय, पद-३. ३५. पे. नाम, औपदेशिक पद, प. ४आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहि., पद्य, आदि: तुमारो बावो रे बावो; अंति: कबीर० ओदो जगना जावो, पद-७. ३६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्य, सा. भोलीबाई, रा., पद्य, आदि: तुं कांई भूलो रे चेत; अंति: भोली० घणीयै विगुतिए, पद-४. ३७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मीराबाई, पुहिं., पद्य, आदि: लगन को नाम न लीजिये; अंति: मीरा० चित्त दिजिये, पद-६. ३८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. आतमराम, पुहिं., पद्य, आदि: बीत गई सारी रैन चटा; अंति: अब सुख पायो चेन, गाथा-४. ३९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: लगन को पैडो न्यारो; अंति: साच साहबनै प्यारो, पद-२. ४०. पे. नाम, औपदेशिक दोहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहासंग्रह', पहिं., पद्य, आदि: थोडी करो जी अनीत एतै; अंति: हो दसमण होय गए मित, दोहा-१. ७९६१५. (+) कल्पसूत्र कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-२२(१ से २२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १८४३७). कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन भव-१ मरीचि के कुलमद प्रसंग से बावीसवें भव वर्णन अपूर्ण तक है.) ७९६१६. असज्झायबत्रीसादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२५.५४११.५, १४४३९). १. पे. नाम. अरिहंत के बारह गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ गुण अरिहंत, मा.गु., गद्य, आदि: अष्टमाहाप्रातिहार्य; अंति: विनाशरूपातिशय, अंक-१२. For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २७५ २. पे. नाम. सिद्धपद के आठ गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्ध के ८ गण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रगट्या अनंतज्ञान १; अंति: लघुपण ७ अनंतशक्ति ८. ३. पे. नाम. आचार्य के छत्रीस गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. ३६ आचार्यगुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: पांच इंद्रियना संवरण; अंति: गुणना धारणहार आचार्य. ४. पे. नाम. उपाध्याय के २५ गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. उपाध्यायपद के २५ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग १ सुयगडांगाद; अंति: चउद पूर्वनामधारी. ५. पे. नाम. साधु के सत्तावीस गुण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २७ साधु गुण, मा.गु., गद्य, आदि: पंचमहाव्रतधारी पंच; अंति: वेदना अहिया सणया २७. ६. पे. नाम. असज्झाय बत्रीस, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ हाडकानी अरमासनी; अंति: मधरात्रे बे घडीनी ३२. ७९६१७. असज्झाय, जिनपालजिनरक्षित व धन्नासेठ की सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११, २४४५८). १. पे. नाम, असज्झाई सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय वीर जिणेस्वर; अंति: रमणी हेजे सुंवरो, गाथा-२४. २.पे. नाम, जिनपालजिनरक्षित सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनपालितजिनरक्षित सज्झाय, ग. कल्याणतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरणकमल मनि; अंति: कल्याणतिलक० माणे रे, गाथा-२२. ३. पे. नाम. धन्नाशेठ सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. धन्नाशेठ सज्झाय-भावचारित्र गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशारदाए अणुसरीरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ७९६१८ (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल, मांडवगढ, प्रले. ग. मोहनविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: स्तवन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, २१४७०). १.पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. रुचिरविमल, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रुचिर०सौकृता सभूर्वे, श्लोक-१४, (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. बारदेवलोक नवग्रैवेक पांच अनुत्तरविमान शास्वतजिनवर स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तवन-देवलोकग्रैवेयकअनुत्तरविमानस्थ, मु. भोजविमलशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपयपंकज नमी; अंति: सकल सुख ते अनुभवे, ढाल-३, गाथा-३४. ३. पे. नाम, नेमराजिमति सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारा नेमि पिया; अंति: रूचिर० सफल थइ रे लो, गाथा-६. ४. पे. नाम. रत्नसूरिगुरुगुण सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु भजीए हो जीय; अंति: रुचिर० सुयश सवाया हो, गाथा-१६. ७९६१९. मौनएकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. विजयलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बेन रतन गृहे लिखितं., दे., (२५४११, ८४३३). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघना वीघन नीवारी, गाथा-४. ७९६२०. वीशविहरमानजिनना नाम मातापितादि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५.५४१०.५, २१४५३). २० विहरमानजिन परिवारादि कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ७९६२१. नमस्कार महामंत्र छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १३४३६). For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-११ अपूर्ण तक है.) । ७९६२२. (#) चैत्रीपुनमपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८१२, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८४६०). __ चैत्रीपूर्णिमा पूजाविधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमतः श्रीआदिनाथ; अंति: चैत्र पूर्णिमा. ७९६२३. (+) चौदगुणठाणा विवरणयंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ४८x१७-४४). १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७९६२४. देवलोकैजिनप्रासाद व जिनप्रतिमा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, १३४२१). ऊर्ध्वलोकजिनप्रासाद व जिनप्रतिमासंख्यासंक्षिप्त विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. सारिणीयुक्त) ७९६२५. बत्रीसजिन नाम-द्वितीय व तृतीय महाविदेहक्षेत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १४४२७). १. पे. नाम. बत्तीस जिननाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ३२ जिननाम-द्वितीयमहाविदेह क्षेत्र, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीविरचंद्र; अंति: श्रीजयनाथ. २. पे. नाम. बत्तीस जिननाम, पृ. १आ, संपूर्ण. बत्तीसजिन नाम-तृतीयमहाविदेह क्षेत्र, मा.ग., गद्य, आदि: १ श्रीधर्मदत्तनाथ; अंति: ३४ श्रीपुष्पदंतनाथ. ७९६२६. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५४११.५, १०४३३). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-३, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७९६२७. मानतंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४११.५, १४४४०). ___मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७९६२८. चैत्यवंदन व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२९, पौष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. खुशालचंद मलुकचंद वसा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३४३३). १. पे. नाम. अतीतचोवीसी प्रभाति, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-अतीत, म. अमत, मा.ग., पद्य, आदि: अतीत चोवीसी वंदियइ; अंति: ध्यानथी अमृत पद पाउं, गाथा-५. २. पे. नाम. वर्तमानचोवीसीजिन प्रभाति, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-वर्तमान, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंद चितमां धरो; अंति: गुणीजन चित्तमां धार, गाथा-५. ३. पे. नाम, अनागतचौवीसीनाम स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-अनागत, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: सुप्रभातें प्रणमीइं; अंति: ऋद्धि कीर्ति श्रीकार, गाथा-५. ४. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण... मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: संभव साहिब सेवीये; अंति: सही भवसायर तरतो, गाथा-५. ७९६२९. गीत, हरियाली व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६१, माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्रले. मु. ऋधि ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३९). १.पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेज्यो पंडित ए; अंति: समयसुंदर० हुज्यो रे, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंखी एक वन उपनो हो; अंति: समय० म करस्यउ वेसास, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद-गूढार्थगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: सखी कोउ मोहनलाल मनाव; अंति: समय० जिणंद गुण गावइ, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २७७ ४. पे. नाम, जग सृष्टिकार परमेश्वर पच्छागीतम्, पृ. १आ, संपूर्ण. जगसृष्टिकार परमेश्वरपृच्छा पद, मु. समयसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: पूर्छ पंडित कहउ का ह; अंति: तउ सहु विध समझावइ रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: करम अचेतन किम हुवै; अंति: समयसुंदर०ते साचुरे, गाथा-३. ७९६३० (+) पवयणा-वायणा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६x४२). ___ उपधान वाचना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: खमासमण० मुहपत्ती प०; अंति: वाचना०पूर्ववज्ज्ञेयः. ७९६३२ (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला की अनुक्रमणिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, २३४४७). अभिधानचिंतामणि नाममाला-बीजक, सं., गद्य, आदि: नाममाला पीठिका जिनेश; अंति: (-), (पू.वि. तिर्यग्कांड की वृक्ष-वनस्पति के नामों की सूची तक है.) ७९६३३. सिद्धाचलजी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७-६(१ से ६)=१, दे., (२५.५४११.५, ५४३४). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लब्धे० गिरि सुहंकर, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) ७९६३४. (#) गोचरी के ४२ दोष सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.१,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४६०). ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १ देसिअ २; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-५. ४२ गोचरी दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकर्मी ते कहीईजे; अंति: (अपठनीय), (वि. अंतिमवाक्य खंडित __ एवं अस्पष्ट है.) ७९६३५ (+#) चौत्रीस अतिशय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १०४३९). ३४ अतिशय छंद, म. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमतिदायक कुमति; अंति: पद सेवा मांगु भवो भव, गाथा-११. ७९६३६. (१) १८ चोकडी बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. सा. चंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२५.५४११.५, १३४३०). १८ चोकडी बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)जाघता चोर नासै, (२)उंदम करतां दलद नासै, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र __ नहीं हैं., १२वी चोकडी अपूर्ण से है.) ७९६३७. युगमंधर व सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, ले.स्थल. विनारीया, दे., (२५.५४११, १८४४१). १.पे. नाम. युगमंधर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: जंबुद्वीपे दीपतो रे; अंति: चोमास मन लागोजी, गाथा-१५. २.पे. नाम, सीमंधरजिनवीनती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. जैमल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: पुरबे पुखलावति विजै; अंति: भवभवनी टलय खामी, गाथा-२१. ७९६३८. गौतमस्वामी व मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, १९४४८). १. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतमस्वामी पूछा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ तक लिखा है) २. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. देव, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे कारण मेहा जिनवर; अंति: देव० सेवग ए गुण गाया, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९६३९. अइमुत्तामुनि सज्झाय व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल विकानेर, प्रले. वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५x१०.५, १३४३८-४२). १. .पे. नाम. अईमुत्तामुनि सज्झाय, पू. १अ, संपूर्ण. www.kobatirth.org अमुत्ताऋषि सज्झाय, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि श्रीवीर जिणंदनी अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि शांति जिणेसर समरिये अंति: भलो धरम उपगार, गाथा - १०. ७९६४०. परोपकार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. दे. (२६११.५, १३४३४). " 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय-परोपकार, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: करि करि परि उपगार; अंति: लह्या जिणमानी उल्हास, गाथा - १६. ७९६४१. ढालसागर, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी ढालसागर, दे., (२५.५X११.५, १४४४५). ढालसागर, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १८५६, आदि: समरु ऋषभ जिनेसरु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ११, गाथा १० अपूर्ण तक है.) ७९६४२ (+) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१० (१ से ९१३) ४, कुल पे १२, प्र. वि. संशोधित. दे., (२५.५४११.५, " १४X३४). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०अ अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति सुख संपति हितकार, गाधा-४, (पूर्ण, पू.वि. गाथा - १ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तुति - पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जयो पासदेवा करूंअ अंति केरी संघ आस्या पूरणी, गाथा-४. ३. पे नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तुति, पृ. १० आ-११अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, पं. माणिकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दोलतीयो दादो नयणें; अंति: माणिकविजय० सुखकारी, गाथा ४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. लब्धिरुचि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिन गोडीपार्श्व; अंति: लब्धिरुचि जयकार, गाथा-४. ५. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्षसीस० निसदीस, गाथा-४. .पे. नाम. मीनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ११ आ-१२आ, संपूर्ण मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि गौतम बोलइ ग्रंथ संभा अति लालविजय विघन निवारी, गाथा ४. ७. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि संसारदावानलदाहनीर, अंति देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ८. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि स्नातस्याप्रतिमस्य अंति (-), (पू. वि. मात्र प्रथम श्लोक है.) ९. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. १४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है... मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति देवी लब्धिविजय जयकार गाथा-४, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) १०. पे नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. १४-१४आ, संपूर्ण. मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अति सीस धीरनें सुख संयोग, गाथा-४. ११. पे नाम रोहिणीतप स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि श्रीवासुपूज्यजी जिन अति संघनै करे कल्याण, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २७९ १२. पे. नाम. रोहिणी स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, म. देवकशल, रा., पद्य, आदि: फलवधीरो मंडण सांति; अंति: देवकशलनी० सफल करै, गाथा-४. ७९६४३. शील री नववाडढाल, संपूर्ण, वि. १९६४, चैत्र शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. हुंडी: सीलरीनव, दे., (२६४१२, १९४४९). शीयलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणम पंचपरमेष्ठि; अंति: वडे हरख अपार री माई, ढाल-१०. ७९६४४. प्रश्नोत्तरी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५४११.५, २६x६५). जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: विभंगज्ञान उचो नीचो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रश्न संख्या-७५ तक लिखा है.) ७९६४५. आठ योगदृष्टिगण सज्झाय व अध्यात्म गीता, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. २, दे., (२५४१३, १४४४७). १.पे. नाम. आठयोगदृष्टि गण सज्झाय, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वाचक जशने वयणे जी, ढाल-८, गाथा-७६, (पू.वि. प्रथम मित्रा दृष्टि गाथा-१५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अध्यात्म गीता, पृ. ४आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमिए विश्वहित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण तक है.) ७९६४६. जीव उत्पत्ति सज्झाय व औपदेशिक दोहे, संपूर्ण, वि. १९०८, फाल्गुन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. अबीरचंद जती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ११४३३). १.पे. नाम. जीव उत्पत्ति सज्झाय, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोय जीव आपणी; अंति: इम कहीये श्रीसार ए, गाथा-७२. २.पे. नाम, औपदेशिक दोहे- चतुराई, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), दोहा-२. ७९६४८. कलावतीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, १३४३७). कलावतीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-५ __अपूर्ण से ढाल-१५ गाथा-४ अपूर्ण से है.) ७९६४९. नवपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५७, फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. दीव बिंदर, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि (गुरु मु. राघव ऋषि); गुपि. मु. राघव ऋषि (गुरु मु. गोलक ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: नवपदसीझाय, जैदे., (२५४११.५, १२४४६). नवपद सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समरूं जिनशासन धणी; अंति: महानंद० मंगलमाला जी, ढाल-१०. ७९६५० (+) विक्रमकुमार कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२.५, १७४५२). विक्रमकुमार कथा-जीवदयोपरि-अनुवाद, पुहिं., गद्य, आदि: प्रणम्य नमस्कार करके; अंति: राजकुमार की कथा कही. ७९६५१. (#) लघुभावाध्याय व गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १६x४२-५५). १.पे. नाम, लघुभावाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सूर्यो भोमस्तथाराहु; अंति: जन्माति को ग्रहः. For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गरुगण, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: सहजानंद नमी करी सुखद; अंति: कल्याण कइ विनती सुणो, गाथा-९. ७९६५२ (4) जयतिहुअण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १५४५१). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ७९६५३. () सगरराजा चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १६४३८). सागरचंद्र चौढालियो, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: सागररायनी वारता कहुं; अंति: (-), ढाल-४, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२, गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७९६५४. (4) परमात्मस्वरूप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३३). जिनस्वरूप स्तवन, म. दानविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चिदानंद रूपं सरूपं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक ७९६५५ (#) चोविसजिन आंतरा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १५४४५). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर २४; अंति: पुस्तक वाचना थयो. ७९६५६. उत्तराध्ययनसूत्र-बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ., जैदे., (२५४११.५, १९४४७). उत्तराध्ययनसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: पहला विनय अध्ययन; अंति: अजीवना भेद कहइ छइ. ७९६५७. (+#) भगवतीसूत्र सज्झाय व अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४-१८४४०-४५). १. पे. नाम, भगवतीसूत्र की सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदी प्रणमी; अंति: विनयविजय गुण गाय रे, गाथा-२१. २.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करें जस आगल; अंति: नय० कोमल कल्याणजी, गाथा-४. ७९६५८. (+#) आत्माराम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४३६). उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: आतमराम सयाने तुम झुठ; अंति: लीज्यो सरस भलाइजी, गाथा-३२. ७९६५९ (+) कर्मप्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, २३४६३). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १४८ प्रकृति आठ कर्म; अंति: (-), (पू.वि. "१ घावरनाम २ साधार्ण ३ अताप ४ उद्योत ५ तीन उप" पाठांश तक है.) ७९६६० (+) श्राद्धव्रतभंग यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. भाग्यसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ४२४७-३३). श्राद्धव्रतभंग यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७९६६१ (#) जिनपूजोपरि शुकदृष्टांत कथा व अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९४२९). १. पे. नाम. अज्ञात जिनपूजाविषये शुकदृष्टांत कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २८१ शुक कथानक-जिनपूजाविषये, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपना भरते; अंति: कर्म करी सिद्धि वरी. २.पे. नाम. अभिधानचिंतामणि नाममाला, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (प.वि. कांड-१, श्लोक-७ तक ७९६६२. (+) समवसरण, आदिजिन व अभिनंदनजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४४२). १.पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पाठक धर्मवर्धन धार ए, ढाल-२, गाथा-२७, (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: ऋषभ जिणंदशं प्रीतडी; अंति: मुझ हो अविचल सुखवास, गाथा-६. ३. पे. नाम, अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अभीनंदनजिन तरसीयइ दस; अंति: थकी आनंदघन महाराज, गाथा-६. ७९६६३. (4) लक्ष्मीनिवास वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: लक्ष्मीनीकथानुपत्र, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १४४४८). श्रीदेवी कमलस्वरुप वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: उच्चागतिक० हेमवंत; अंति: लक्ष्मीनू वर्णवं. ७९६६४. अष्टमीतिथि थोय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, २४३९). अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी जिन चंद्रप्रभ; अंति: राजरत्न० पोहोजसार, गाथा-४. ७९६६५. मेघकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र के दूसरे भाग में दशवैकालिकसूत्र का मंगलाचरण सह टबार्थ मात्र प्रारंभ कर छोड़ दिया है., जैदे., (२५४११.५, १३४४७). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या; अंति: (-), गाथा-२१, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७९६६६.(#) सोलह स्वप्न सज्झाय व गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. वरधीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १६x४३). १. पे. नाम, साधुवंदना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. साधवंदना बृहद, म. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अनंत चौवीसी रिषभ; अंति: एहीण तरणनो दावो, गाथा-१०८. २. पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. म. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: ऋष जेमल कीधी जोडो रे, गाथा-४९. ७९६६७. (+) १९ निर्वृत्त व ५५ करणभेद बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १७४३३). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१९ उद्देश ८ से ९ निर्वृत्ति व करण अधिकार का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ___मार्गणाद्वार१ नारकी७; अंति: ५अणुत्तरविमाण. ७९६६८. भगवतीसूत्र सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १९४३८). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: हाथ जोडी गोयम कहै; अंति: थमलजी ए भाख हो गोतम, गाथा-१५. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम स्याम्म बुजा; अंति: चवसी माहावदे खेत, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९६६९. खोटी कमाई परिहार सज्झाय व श्रावकगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५X११.५, १६x४४). १. पे. नाम. श्रावकगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय श्रावकगुण, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९७६, आदि सम्यक्त्वरत्न जतन कर; अंति ल श्रावक गुण गाया रे, गाथा- ९. २. पे. नाम शिखामण सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय-खोटीकमाई परिहार, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९७६, आदि: सुण वाणीय महाजन भाई, अंति: नेकी सुख संपत आवो रे, गाथा ११. ७९६७०. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५X१०.५, ९X२७). महावीरजिन स्तवन, मु. रत्नहृदय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर मारा पावापुर; अंति: ख रत्नहृदय म राखी रे, गाथा-८. ७९६७१. (+) २४ दंडक यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११, १६x४०). २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७९६७२. (+*) रात्रिभोजनपरिहार सज्झाब, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X१०.५, १२x२६). , रात्रिभोजन त्याग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि अवनीतलि नयरी वसैजी, अंतिः सारिउ आपणुं काज रे, गाथा २०. ७९६७३. श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X११, १४४२). श्रवककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि श्रावक तु उठे परभात अति करणी दुखहरणी छे एह, गाथा - २२. ७९६७५. ६२ मार्गणा ७८ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५X११, ४०X२२). ६२ मार्गणा ७८ बोल, मा.गु., गद्य, आदि १समरचइ जीवमाइ जीव १४, अंति अने आहारीकम १२१२१. ७९६७६. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १४-१३ (१ से १३) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५x११.५, २३X३४). बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. १४९ बोल में से ११३ से २४ दंडक बोल अपूर्ण तक है.) " ७९६७८. परमात्मस्वरूप स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२४.५x११.५ १२४३०). जिनस्वरूप स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु. सं., पद्य, आदि चिदानंदरूपं सुरूपं अंति: (-) (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ७९६७९. एक समय उत्कृष्ट मोक्षगामी जीव विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १६x२१-३०). एक समय उत्कृष्ट मोक्षगामी जीव विचार, मा.गु., गद्य, आदि : ४ उर्ध्वलोके सिद्धि; अंति: एके समये मोक्ष जाई. ७९६८०. गुरुचेला संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२४.५४१२, १५X३५). औपदेशिक सज्झाय-गुरुशिष्य संवाद, पुहिं., पद्य, आदि: गुरु देखयो रे चेला; अंति: गुराजी वीन मोत मुवा, गाथा-१२, (वि. गाथांक ४-४ के टुकड़ों में बटा है.) ७९६८१. सरस्वती छंद व जिनकुशलसूरि मंत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल. रतनगढ़, प्रले. पं. आशा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, १४X४१). १. पे नाम सरस्वती छंद, पू. १अ १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि बुद्धि विमल करणी अंति देवी नित नमेवी जगपती, गाथा- ९. २. पे. नाम जिनकुशलसूरि मंत्र. पू. १आ, संपूर्ण सं., गद्य, आदि ऐं नमः ॐ ह्रीं श्रीं अंतिः चिंतवीजे सो पांमीजे, (वि. विधि सहित) For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७९६८२ (4) विजयसेठविजयासेठानी सज्झाय व कर्मस्वरूप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २०४४७). १.पे. नाम, विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. हर्षकीर्तिसरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: हर्षकीरत० घरि अवतरइ, ढाल-३, गाथा-२४. २. पे. नाम. कर्मस्वरुप सज्झाय, पृ.१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कर्मफल स्वरुप, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनस्वामी शिवपु; अंति: इम कहे गुणसूरिंद रे, गाथा-८. ७९६८३. समवसरण, मौनएकादशी व पार्श्वजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १५४४०). १.पे. नाम. समवसरण स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पामै जयति सुनाणी, गाथा-४, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंतिः सुखं विस्मत हृदः, श्लोक-४. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तति, प. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ३ दें कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ७९६८४. विविध जिनप्रासाद निर्माणकर्ता-स्थल विवरण व श्रावक के चौद नियम संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, ३१४२२). १. पे. नाम. विविध जिनप्रासाद निर्माणकर्ता-स्थल विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: जैतारण भंडारीजी; अंति: पुत्र विनचंद, (वि. विभिन्न तीर्थों में जिनप्रासाद के निर्माण कराने वाले दानवीरों का विवरण है.) २. पे. नाम, श्रावकना १४ नियम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त सचित्तस्युं; अंति: शुद्ध श्रावक कहीय. ३. पे. नाम, श्रावक के चौदह नियम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ नियम नाम-श्रावक, मा.गु., गद्य, आदि: १ सचित्त, २ दव्व; अंति: १३ स्नान १४ आहारपाणी. ७९६८५. विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४४३). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. क. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मानवनो भव पामीयो; अंति: म कहे सुख लहे नीरवाण, ढाल-२, गाथा-११. २. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुकलपख विजीया वरत; अंति: सील राख्या समता आणी, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: आउको ट्टी न सोदो को; अंति: जालोर सहेर मोजार रे, गाथा-९. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-मोक्षगमन, मा.गु., पद्य, आदि: मोख जावारो मोख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७९६८६. पांडव रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७२-७१(१ से ७१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १५४३७). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१९८ से २२२८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९६८७. गुणस्थानक, अष्टमंगल, व्रतादि की नामावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, दे., (२६X११.५, ११३५). १. पे. नाम. चौदह गुणस्थानक नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणो १: अंतिः सयोगी १३ अयोगी १४. २. पे. नाम. अष्टमंगल नाम, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि आरीसो १ भद्रासण २; अंति: साथीउ ७ नंद्यावर्त ८. ३. पे. नाम छः भाषा नाम, पृ. १अ, संपूर्ण, ६ भाषा नाम, मा.गु., गद्य, आदि: संस्कृत १ प्राकृत; अंति: पैशाची ७ अपभ्रंश. ४. पे. नाम. चौदह रत्नचक्रवर्ती नाम पु. १अ संपूर्ण " १४ रत्न विचार- चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, आदि: चक्र १ छत्र २ चामर; अंति: अश्वरत्न ६ गजरत्न ७. ५. पे. नाम. ३१ गुण सिद्ध के, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पांच स्थान रहीत ५; अंति: संगरहीत १ जनमरहीत १. ६. पे नाम. ३० अकर्मभूमि क्षेत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: हेमवंत ५ उत्तरकरु ५ अति देवकुरु ५ ऐरण्यवृत ५. ७. पे. नाम. १५ कर्मभूमि नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भरत क्षेत्र ५ ऐरावत अति महाविदेह क्षेत्र ५. ८. पे नाम. १२ व्रत नाम, पृ. १आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात १; अंति: १२ मे अतिथसमभाग १२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७९६८८ (४) जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैसे., (२५.५x११, १३४३३). जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि : उतपति जोइनइ आपणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - २१ अपूर्ण तक है.) ७९६८९. (#) बीजतिथि व एक सौ सित्तरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५x११, १३४३२). १. पे नाम बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आणंदरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्र विमानि कह्या; अंति: आणंदरुचि दौलतिदाय, गाथा-४. २. पे. नाम. एकसौसित्तर जिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. १७० जिन स्तुति, मु. आणंदरुचि, मा.गु., पद्य, आदि : उजल वर्णा जिन पंचास; अंति: आणंदरुचि० मनह जगीस, गाथा-४. ७९६९०. दीवालीना देववंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मोतीलाल ताराचंद पठ. मोतीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, (२५X१२.५, १९३४). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिनवर वीर जिनवर; अंतिः प्रगटे सकल गुणखाण. ७९६९१. (+) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत व नंदिषेण मुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१९-१८२३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. जितविजय (गुरु ग. धर्मविजय); गुपि. ग. धर्मविजय (गुरु ग. खीमाविजय); ग. खीमाविजय (गुरु ग. कपूरविजय); ग. कपूरविजय (गुरु ग. देवविजय, तपागच्छ) पठ. पं. प्रतापविजय गणि (गुरु ग. भाग्यविजय); गुपि. ग. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्री वासपूज्यप्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १५X४६). १. पे. नाम. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत सज्झाय, पृ. १अ ४अ संपूर्ण वि. १८१९ फाल्गुन कृष्ण, २, मंगलवार. १० दृष्टांत सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभता, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: श्रीजिन वीर नमी अति तस्य घरे कोडि कल्याण, ढाल १०. २. पे नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पू. ४आ, संपूर्ण, वि. १८२३ भाद्रपद कृष्ण, १३, बुधवार, मु. . मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी, अंति: मेरुं०को नवी तोले हो, ढाल -३, गाथा- १३. For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २८५ ७९६९२ (+) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: संबप्रजु०, संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४३). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: (-), (प.वि. खंड-१, ढाल-५ गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७९६९३. औपदेशिक बारमासा व रतनसी गुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १२४३०). १. पे. नाम. आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक बारमासा, रुपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे भाई कारतके कर; अंति: हु सेवक प्रभु नामनो, गाथा-२४. २.पे. नाम, रतनसीगुरु स्वाध्याय, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. रत्नगुरु सज्झाय, मु. देवजी, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण मीठडा रे; अंति: उपगारी गुणवंत, ढाल-१०, गाथा-४५. ७९६९४. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. फतेचंद मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: गौतमस्वा, जैदे., (२५४१०.५, १३४३५). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: जयभद्रसूरि इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-७८. ७९६९५ (+) वीरजिनपारणु व चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९०७, वैशाख शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. जेपुर, प्रले. सा. रुपा (गुरु सा. डाहीजी); गुपि. सा. डाहीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: महावीरजीकोचढालियो, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२.५, १६४२७). १. पे. नाम, महावीरस्वामीनु पारj, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुणा; अंति: तासु नमै मुनि माल, गाथा-३१. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धार्थकुलमइजी उपन; अंति: अठारगुणतालीस जानी, ढाल-४, गाथा-६३. ७९६९६ (+) चंदराजापरमलीरानी चौपाई व सरसंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १५-१७४५७). १.पे. नाम. चंदपरमली चौपाई, प. १अ-४अ, संपूर्ण. चंदराजापरमली चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पय नमी; अंति: हरै सुख पावै संसार, ढाल-६, गाथा-१२६. २. पे. नाम. सुरसुंदरी चौपाई, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सुरसुंदरी चौपाई-दशमीव्रतगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी पणमो पास; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-३३ अपूर्ण तक है.) ७९६९७. महावीरजिन स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२९). १. पे. नाम. विर थुति नाम अध्ययन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. __प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच महवय सुहमूलं समण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) ७९६९८. (#) स्तवनचोवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७-१९४५२). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: रीषभजिणंदा रीषभजिणंद; अंति: (-), (प.वि. धर्मनाथ स्तवन तक है.) For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २८६ " ७९६९९. (*) नलदमयंती चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-७(१४ से ९) =४. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पत्रांक खंडित है. वैकल्पिक पत्रांक दिया गया है., संशोधित, जैदे., (२५.५x१०.५, १७५१). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १६७३ आदि (-); अंति: (-). (पू.वि. ढाल १ गाथा- ११ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण तक, ढाल -७ गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-गाथा-१२ अपूर्ण तक, खंड-२ की अंतिम ढाल गाथा-७ अपूर्ण से खंड-३ ढाल-५ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७९७००. बुध रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : बुधरास, जैदे., (२५X११, १२X३०). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देव अंबाई; अंति: टलइ सवि किलेस, गाथा-५५. ७९७०१. नेमराजीमतीना बारमासा, संपूर्ण, वि. १८७८, आषाढ़ कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल नागोरीसरा, प्रले. खेमा जेठा भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४१२, ११४२७). नेमराजिमती बारमासा, मु. तेजराम, मा.गु., पद्य, आदि आदि जिनवर पद नमी; अंति: वे तेजराम रथडो वाणी, गाथा - २६. ७९७०२. ६२ मार्गणद्वार १०६ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५x१२, ३३x२१). " . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२ मार्गणाद्वार १०६ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दिसी गइ इंदी वेय काय; अंतिः मनुखमा २२३४३. ७९७०३. (+) ९ पदार्थ विचार, संपूर्ण, वि. १७८३, वैशाख शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६११.५, १०X२८-३०). नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: नवपदार्थनुं स्वरूप; अंति: निरंजन पद पामीइ, (वि. स्थानांगसूत्र से उद्धृत) ७९७०४. (*) श्रीपति कथा, संपूर्ण, वि. १९९९ श्रावण कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल नागोर, प्रले. गोकजदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: श्रीपतिसेठचरि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., दे., (२५.५X११.५, २०५४). श्रीपति कथा, मु. चोधमल ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यग ज्ञान दर्शन; अति: चोथमल० आ कथा विख्यात. ७९७०५ (१) द्रौपदीसती रास, पांडवसंदेश व द्वारिकानगरी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे. (२५.५४११.५, २३-२६४५०-६२). " १. पे. नाम. द्रौपदीसती रास, पृ. १अ २आ, संपूर्ण मु. सोभ, मा.गु., पद्य, आदि: कृष्णनरेसर आद लेहे; अंति: सोभ कही विस्तारो रे, ढाल - २७, (वि. ढाल १ से ४ क्रमशः है, किन्तु ढाल ५ की जगह सीधे २७वी ढाल का पाठ मिलता है. दूसरी प्रत में भी ऐसा देखा गया है.) २. पे. नाम. पांडवसंदेश सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: इण अवसर आयो तुरत पही; अंति: पूरी कही केदारे राग, गाथा-१४. ३. पे. नाम. द्वारिकानगरी सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: दुवारामतीरो साहब आयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ तक है.) ७९७०६. (*) चैत्रीपूनमदेववंदन, संपूर्ण वि. १८३१, चैत्र कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल राजनगर, प्रले. पं. विनयसागर गणि पठ. पं. सुंदरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. श्री वीरप्रसादात्., संशोधित, जैदे. (२६४११.५, १३x२८). " चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदनविधि, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारि रे सिद्धाचल; अंति: दान अधिक उछरंग रे, देववंदनजोडा-५. ७९७०७ (+*) नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६५११, १३X३६-४०). ९ वाड सज्झाय, उपा, उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि श्रीगुरुने चरणे नमी; अति हो तेहने जाउ भामणे, ढाल - १०, गाथा ४३. ७९७०८. (+*) गौतमगणधर रास व सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ३, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल ', गयी है, जैदे., (२५x११, १५X४९). १. पे. नाम गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य वि. १४१२, आदि वीरजिणेसर चरणकमल, अंति: विनवंत गुरु भर्णे ए, डाल-६, गाथा-६६. For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २८७ २. पे. नाम. गौतमस्वामि भास, पृ. ३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी सज्झाय, म. मेघराज, मा.ग., पद्य, आदि: जिनवर श्रीवर्धमान; अंति: मेघराज० इम सुजस कहे, गाथा-९. ७९७०९ (+) मौन एकादशी गणना कोष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३,प्र.वि. हुंडी: मौनएका., संशोधित., दे., (२५४१०.५, १२४३२). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजस सर्वज्ञाय; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ७९७१० (+) सीलपच्चीसी, ज्ञानपच्चीसी व परमेष्ठि आरती आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४११, २३४४८). १. पे. नाम. सीलपचीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शीलपच्चीसी, श्राव. नेतो, मा.गु., पद्य, आदि: सुर नर किंनर नाग; अंति: सीले कारज सारे जी, गाथा-२६. २. पे. नाम, पंचपरमेष्ठि आरती, प. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पहेली आरति अरिहंतदेव; अंति: वंछित फल निश्चे पावो, गाथा-१८. ३. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: करीये रे सुग्यांनी स; अंति: अष्ट क्रमसुंलरीये, गाथा-१२. ४. पे. नाम. वैराग्यपच्चीसी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक पच्चीसी-वैराग्य, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२१, आदिः (-); अंति: रायचंद० जीणजी रो जाप, गाथा-२६, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण है.) ५. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, प. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. सार, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: चिहुंगतमाहे चाकजुरे; अंति: ग्यानपचीसी कही सार, गाथा-२५. ७९७११ (4) केशीप्रदेशीराजा सज्झाय, आगम स्तवन व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक हेतु मात्र "महासतीजी" का उल्लेख मिलता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १३४३१). १. पे. नाम. केशी प्रदेशीराजा सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. केशीप्रदेशीराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६६ अपूर्ण से है व ७१ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम, आगम सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. आगमपूजा स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आगमनी आशातना नवि; अंति: सुखमांहो मगन्न, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरकुंवरनी वातडी; अंति: भांगे सादि अनंत, गाथा-१०. ७९७१२. (#) स्तवन चौवीशी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १४४४३). २४ जिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु हौ रीषभ जीणंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संभवजिन स्तवन, गाथा-३ तक लिखा है.) ७९७१३. (+) साधुगुण सज्झायद्वय व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४५०). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ___आ. विजयदेवसूरि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भणे विजयदेवसूरो जी, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. वल्लभदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव जिणवर अरिहंत; अंति: भाषित सुख करुणाकरा, गाथा-१६. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: विनय म चूकिस धर्म; अंति: लावन० चिर कालइ नंदो, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९७१४. गौतमपृच्छा का बालावबोध व औपदेशिक श्लोक, अपूर्ण, वि. १७७६, पौष शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. २५-२४(१ से २४)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. माणकचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: गौतमपृछाबालावबोध, जैदे., (२६४११.५, २२४४४). १.पे. नाम. गौतमपृच्छा का बालावबोध, पृ. २५अ-२५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. मुनिसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुधा भूषण सेविना, (पू.वि. अभयकुमार कथा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक- दर्जन के लक्षण, पृ. २५आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ७९७१५. पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७७१३, १२४३९). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-६ गाथा-७ ___ अपूर्ण से अधिकार-११ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७९७१६. उपमा पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १२४३४). उपमा पद संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: ईंद्र वडो जेम अमरमां; अंति: जेम मुक्ताफलहार, गाथा-२१. ७९७१७. गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८९, चैत्र शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नउतनपूर, प्रले. मु. भाणजी देवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १२४४६). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिसर जिनवर; अंति: दान के एहवा मुनिसरु, गाथा-१७. ७९७१८. (+) वाडीफूलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. साकरी (गुरु सा. दुधीबाई); गुपि. सा. दुधीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११.५, १३४२५). औपदेशिक सज्झाय-वाडीफूलदृष्टांत, मा.गु., पद्य, आदि: वाडीराव करे कर जोडी; अंति: ने वीर न सके वारी जी, गाथा-१५. ७९७१९ चेलणाराणी सज्झाय व भाषाभूषण अलंकार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. जेठीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १३४४१). १. पे. नाम, चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-६. २. पे. नाम, भाषाभूषण अलंकार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __जसवंतसिंघ भूपती, मा.गु., पद्य, आदि: विघन हरन तुम्ह हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथ-१४ अपूर्ण तक है.) ७९७२०. मोक्षतत्त्वभेदबोल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. मोतीबाई आर्या (गुरु सा. कडवीबाई आर्या); गुपि.सा. कडवीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: मोक्ष., जैदे., (२५४१२, १४४३२). मोक्षतत्त्वभेदबोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवे मोक्षतत्त्वना ९; अंति: होय तेमाथी मोक्ष जाय. ७९७२१. कल्पसूत्र व्याख्यान- पीठिका, अपूर्ण, वि. १८७५-१८७६, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४१२, १८४४०). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७९७२२ (4) चौवीस दंडक तेवीस द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २१४७४). २४ दंडक २३ द्वार यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७९७२३. पार्श्वनाथना १० गणधरनामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२६.५४११.५, ११४३६). १.पे. नाम, षड्द्रव्य परिणाम विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: परिणामि जीवमुत्तं; अंति: सुद्धबुद्धिहिं, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २. पे. नाम. पार्श्वनाथ के दस गणधर नामादि, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन १० गणधर गणनं, सं., गद्य, आदि: श्रीसुभद्रसर्वज्ञाय; अंति: श्री विजयसर्वज्ञाय. ३.पे. नाम, मेरु पर्वतनु गणनु, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ मेरुपर्वत गणना, मा.गु., गद्य, आदि: १. पूर्णगिरिनम; अंति: सज्जनगिरिन. ४. पे. नाम. बावन जिनालय गणना, पृ. १आ, संपूर्ण. ५२ जिनालय ओली गणणं, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: सूरि ८में श्रीऋषभानन; अंति: श्रीवारीषेणसर्वज्ञा. ५. पे. नाम. गुणठाणानो फल, पृ. १आ, संपूर्ण.. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व जगत एक समय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अयोगी पंच ह्रस्वाक्षनो काल" तक लिखा है.) ७९७२४. (4) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३५). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पछै वंदेतु कहीइ; अंति: छै तिहांथी लेईइ. ७९७२५. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. गलाल ऋषि (गुरु मु. पीतांबर ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२६४११, ३८x१९). __ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-३३. ७९७२६. उपसर्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रावण कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. १, प्रले.पं. मुक्तिविजय; अन्य. मु. सांमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५,१३४३०). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-९. ७९७२८. बावीस अभक्ष बत्रीस अनंतकाय विचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सारंगपुर, प्रले. मु. हस्तिविजय; पठ. श्रावि. जेवंति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १३४२९). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देव गुरुना लीजै नाम; अंति: तणा फल लहस्यें तेह, गाथा-१६. ७९७२९ (+) सम्मेतशिखर व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२, १२-१४४२८-३१). १. पे. नाम, सम्मेतशिखर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, गच्छा. जिनचंद्रसरि, मा.ग., पद्य, वि. १८४६, आदि: आज भलै मै भेट्या हो; अंति: थई जात्र सफल जयकार, गाथा-९. २.पे. नाम, महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, रा., पद्य, आदि: आसणरा रे जोगी एहडा; अंति: चित अधिक आनंद रे, गाथा-८. ७९७३० पार्श्वनाथ लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक नहीं है., दे., (२६४११, ६४१४-३४). पार्श्वजिन लावणी, मु. आणंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ प्रगट; अंति: आणंद० दुखडा नीवारो, गाथा-४. ७९७३१ (+#) सीमंधरजिन, धर्मजिन स्तवन व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५४, माघ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. ऐलाणागाम, प्रले. मु.स्वरूपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १८४३५). १.पे. नाम. सीमंधरजिनविनती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए हु; अंति: भगतलाभ० आस्या मनतणी, गाथा-१८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन जन्मोत्सव पद, मा.गु., पद्य, आदि: आज हमारे घरि आणंदा; अंति: कहै तमैत्वंम बंदा, गाथा-५. ३. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मोने धरमजिणंद; अंति: मोहन० अती घणे रे लो, गाथा-७. ४. पे. नाम. द्रुपद, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मांरो मुनें कब मिलसै; अंति: विण कोन विलगै वेल, गाथा-३. ५. पे. नाम. द्रुपद, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मिलस्यै शांतिसनेही; अंति: आनंदघन० जीवै मधुमेही, गाथा-३. ७९७३२. बाहबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १०४३१). बाहुबली सज्झाय, मु. न्यानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीराजी मानो वीनती; अंति: मुझ वंदन होजो तास, गाथा-९. ७९७३३ (+#) भगवतीसूत्र गहुंली, भास व जयंतीप्रश्न गंहुली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३७). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र गहुँली, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयर सुणीय रे भगवति; अंति: दीपविजय० कोटी वधाई, गाथा-७. २. पे. नाम, भगवतीसूत्र भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-भास, संबद्ध, केसरीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती अंग सुणीजी रे; अंति: सीधा कहे केसरीचंद रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. जयंतीप्रश्न गंहली, पृ. १आ, संपूर्ण. जयंतीप्रश्न गहंली, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चितहर चोवीसमा जिनराय; अंति: छेह न देस्यो मुज कदा, गाथा-९. ७९७३४. अढारपाप स्थानक, सातलाखसूत्र व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक उपलब्ध नहीं है., दे., (२६४१२, १०x१६-२६). १.पे. नाम, अढार पाप स्थानक, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पहलो प्राणातिपात; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. सातलाखसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. ३.पे. नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन, प. १आ, संपूर्ण. चउक्कसाय, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लूरण; अंति: जिण पास पयच्छउ वंछिअ, गाथा-२. ७९७३५ (+#) पार्श्वजिन पद नेमिजिन स्तवन व परमेश्वर पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ११४४४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-पंचासरा पाटणमंडण, मा.गु., पद्य, आदि: जिनंदा तेरो दरिसन; अंति: जय जय जपत मुखमाइरे, गाथा-२. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: घेर आवोने नेम वरराज; अंति: मनोरथ सवि फल्या रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. परमेश्वरस्तुति पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. पं. रंगविजय; पठ. श्राव. दुल्लभजी सा, प्र.ले.पु. सामान्य. साधारणजिन पद, मु. भानुचंद, पुहिं., पद्य, आदि: बहोत रोज गुदस्ते प्य; अंति: भानचंद० दीद न पायावे, गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण... भगवतीदास, मा.गु., पद्य, आदि: तूं बालाब्रह्मचारी क; अंति: भगवतीदास० तास निवारी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २९१ ५. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, प. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदराम, मा.गु., पद्य, आदि: मिडंडेमहेरंमसायांनी; अंति: आनंदराम गुण गाइयां, गाथा-५. ७९७३६. बतरीस असज्झाय व उत्कालिक कालवेला विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, १६x४५). १.पे. नाम. बत्रीस असज्झाय विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ३२ असज्झाय विचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: धुंहरि पडे तासीम; अंति: असिज्झाई पहुर १२ ताई, गाथा-३२. २. पे. नाम. उत्कालिक कालवेला विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: उत्कालिकसूत्र तिके; अंति: उत्कालिक जाणिवा. ७९७३७. (2) सिद्धचक्र स्तुति, पार्श्वजिन स्तुति व थावरजीरो सवैयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. अगवरी, प्रले. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १३४३३). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नीरुपम सुखदायक जग; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, प. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तमहापणं; अंति: जयत् सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ३. पे. नाम. थावरजीरो सवैयो, पृ. १आ, संपूर्ण. शनिश्चर प्रभाती, मा.गु., पद्य, आदि: थावर जाप जपो नीत; अंति: प्रणमीजे प्रतारो, गाथा-२. ७९७३८. शत्रुजयतीर्थ स्तवन व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, ८x१८-३८). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरो मन मोह्यो रे; अंति: कहेता नावे पार, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण पीयाराजी हो; अंति: चंद० वसीया सुखवास, गाथा-५. ७९७३९. शत्रुजयतीर्थ स्तवन व १६सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. रंभाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १४४३८). १. पे. नाम. शेजयगिरी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथी एक संदेसडो काइ; अंति: सेतजो सीखर सुहामणो, गाथा-७. २. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. त्रिकम, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: श्री ऋषभ तणी ध्याओ; अंति: टीकम०माहरा मननी कोड, गाथा-१६. ७९७४०. मौनएकादशी स्तुति व एकमतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रावण कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., प्र.ले.श्लो. (१२६७) जिहा लग मेरू अडग है, जैदे., (२५.५४११, १३४२८). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम बोले ग्रंथ; अंति: संघने विघन निवारी, गाथा-४. २. पे. नाम, एकमतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: नितु नितु होइ लीलाजी, गाथा-४. ७९७४१. कर्मविपाकफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४११, १५४३४). कर्मविपाकफल सज्झाय, पं. कशलचंद, पुहि., पद्य, आदि: सुत्र गिनाता मे कही; अंति: कुशल० सगुरु परनापक, गाथा-३५. ७९७४२. पीठिका, कवित्त व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१२, ११४३५). १.पे. नाम. व्याख्यान पीठिका, प. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: हवें श्रीवीतरागदेव; अंति: मोक्षनासुख पामसे सहि. For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-उदर, मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: केश दिये सिर सोभन; अंति: मान कहे० पत खोवन कुं, गाथा-३. ३. पे. नाम. मंत्र विधिसहित, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७९७४३. (+) सिवपूर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १२४२८). शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी पृच्छा; अंति: पामै सुख अपार हो, गाथा-१६. ७९७४४ (4) सिद्धचक्र व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, वैशाख कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राजद्रंग, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, ११४३०). १. पे. नाम. सिद्धचक्रजीनुं स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्रनी करो; अंति: अमृत पद लहे तेह, गाथा-७. २. पे. नाम, वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: जगपति तु तो देवाधि; अंति: भगवंत चोवीसमो भेटीया, गाथा-५. ७९७४५. षट्लेश्यालक्षण व समवसरण विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: लेश्यार्थ, दे., (२५.५४१२,७४२७). १.पे. नाम. षट्लेश्या लक्षण सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अतिरौद्र सदा क्रोधी; अंति: पन्नत्तं वीयराएहिं, श्लोक-८. लेश्यालक्षण श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अति वीहामणो सदा; अंति: वीतरागदेवे कह्या. २. पे. नाम. समवसरणविचार सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ पर्षदा स्तुति, सं., पद्य, आदि: आग्नेयां गणभृद्विमान; अंतिः संभूषितं पातु वः, श्लोक-१. १२ पर्षदा स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अग्निकुणरे विर्षे; अंति: युष्माकं पातु रक्षतु. ७९७४६ (+#) सज्झाय, पद व मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ९-११४३५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने १अ के पश्चात् २अ पर लिखा है १आ और १अ पर तीसरी कृति की लिखावट है, जिसके कारण पेटांक प्रतांक अनुमानित लिया है. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: भावसागर० सयल जगीस रे, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: हरीयाले डुगर जाइजो; अंति: उत्तम पुरो आस्या रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पगवीसलवारो मंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र १असे १आ तक है. __ मंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. सुभद्रासती रास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र १आ-२अ व २आ पर लिखा हैं. सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोधतो इरज्या; अंति: गावतो जम लहीऐ भवपार, गाथा-२२. ७९७४७. (#) वैद्यकसार रत्नप्रकाश व मणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५-१६४३८-४०). १. पे. नाम. वैद्यकसार रत्न प्रकाश चौपई, पृ. १अ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सरस्वती सरस वचन मूझ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ तक लिखा है.) २.पे. नाम. माणिभद्र छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती स्वामिनी पाय; अंति: शांतिसूरि० सूखसंपदा, गाथा-४०. For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २९३ ७९७४८. (+) सनत्कुमारचक्रवर्ती स्वाध्याय व जिनपुजाष्टकगुणवर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले.पं. केशरचंद्र गणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १३४३३). १.पे. नाम. सनतकुमार चक्रवर्तीनी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कुरुदेशने गजपुर ठांम; अंति: बे करजोडि वंदू पाय, ढाल-४. २.पे. नाम. जिनपूजा अष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जलधारा चंदन पुहप; अंति: दीजे अर्ध अभंग, गाथा-१०. ७९७४९. जिनजन्माभिषेक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: जन्माभिषेक, दे., (२४४१२.५, १६x४८). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा पांचवांवक्षस्कार-जिनजन्माभिषेकअधिकार-संबंध तीर्थंकरजन्माभिषेक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: अधोलोकनी आठ दिसी; अंति: दीस दीस दीपे आवे. ७९७५०. (+#) विजयकुमारविजयाकुमारीनी लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९२, माघ शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्राव. नानजी उकरडा दोसी,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: वजेकुमरनीलावनी पत्रांक २१ व २२ भी अंकित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १७४३५). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंति: ___लालचंद० विहार करता, गाथा-१६. ७९७५१. उपदेसी पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव. भानीराम वोरा; अन्य. श्रावि. पार्वतीबाई गिरधर पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: उपदेसी., दे., (२५४११.५, ९४३४). औपदेशिक सज्झाय-कषाय परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: सो ग्यानी रे श्रीजिन; अंति: पणी टालो कूबदी सूरीस, गाथा-२४. ७९७५२ (4) दशसंज्ञा विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४७). १.पे. नाम. दश संज्ञा विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. १० संज्ञा विचार-वनस्पति, मा.गु., गद्य, आदि: वनस्पतिनी दस संज्ञा; अंति: छोडी वाड ऊपरे चढे. २.पे. नाम. चारमेघ विचार, प. १अ, संपूर्ण.. ४ मेघ विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पुष्करावर्त्तमेघ,; अंति: एकवार धान नीपजै. ३. पे. नाम. च्यार प्रकारना विष, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ जाति आसीविष, मा.गु., गद्य, आदि: वीछ्नो विष१ डेडकानो; अंति: लाख जोजन ताइ जावै. ४. पे. नाम, सर्वार्थसिद्धविमानादि परिमाण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सरवारथसिद्ध विमान; अंति: लाख जोजननो कह्यो. ५. पे. नाम, आठप्रवचनमातानो विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मार्ग चालता जीवनी; अंति: प्रवचननी माता जाणवी. ६. पे. नाम. देवता विषयसेवन विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: भवनपती व्यंतर जोतिषी; अंतिः परं इहां कोइ आवै नही. ७. पे. नाम. चोतीस अतिशय विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम अतिशय शरीरनी; अंति: चौतीस अतिशय जाणवा. जापनासत्र-पद १० चरम पद के बोल, संपर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, प्रले. म. वेलजी ऋषि (गरु म. नानजी ऋषि); पठ. मु. किशोरदास ऋषि (गुरु मु. प्रागजी ऋषि); गुपि. मु. प्रागजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १९४४६). प्रज्ञापनासूत्र-पद १० चरम पद के बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: एक वचन भांगा३ १चरम २; अंति: मुहूर्त विरहकालै, (वि. भगवतीसूत्र महायुग्म शतक-३५ मूलपाठ व टीकादि संदर्भयुक्त निरूपण किया गया है.) For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९७५४. (+) क्षमाछत्रीशी व २४ जिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, पठ. मु. रूपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १२४३८). १. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण आदर; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. जादराय, पुहिं., पद्य, आदि: वंदु जिनदेव सदा चरन; अंति: यादराय चरनन के चेरे, गाथा-४. ७९७५५. करसंवाद, संपूर्ण, वि. १८२२, चैत्र शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रोहित, जैदे., (२५.५४११, १७X४०-४४). आदिजिन स्तवन-करसंवाद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५७५, आदि: पहिलूं प्रणमुं सारदा; अंति: लावण्यसमै०देवगुरुतणा, गाथा-६८. ७९७५६. (+) अढारनातरानी सज्झाय व २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३२-३५). १. पे. नाम. अढारनातरानी सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलीने समरू रे पास; अंति: रीद्धविजय० मनरंगीला, ढाल-३, गाथा-३२. २.पे. नाम. २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती आपें सरस वचन; अंति: वृद्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ७९७५७. (+) प्रत्याख्यान विचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. श्राव. ताराचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४३४). प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: धुरि समरु सामिनि; अंति: सयल सुख संपति वरौ, ढाल-२, गाथा-१७. ७९७५८.(+) सिद्धचक्र स्तवन व अष्टप्रकारीपूजा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १५४३०). १.पे. नाम. नवपदगुण वर्णन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथपति अरिहा नम्मी; अंति: देवचंद्र सुशोभता, गाथा-२१, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: मूलं दर्शनं सल्लभंते, श्लोक-९. ७९७५९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४१२, ९४२८). औपदेशिक सज्झाय-जीवशीखामण, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदि: उंडोजी अरथ विचारज्यो; अंति: लहै ____ समयसुंदरनी वाण, गाथा-३०. ७९७६० (+) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्रले.पं. कनकविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४२६). १.पे. नाम. सनत्कुमार चक्रवर्ती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन रस; अंति: देवलोक त्रीजे संभाली, गाथा-१५. २. पे. नाम. सनत्कुमार चक्रवर्ती सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. आणंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तणी रे वाणी सुणी; अंति: आणंदविजय०मोरा लाल रे, गाथा-१३. ७९७६१. नवकार, द्वारिका व शीयलव्रतादि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२२(१ से २२)=२, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५,१३४३४). For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २९५ १. पे. नाम, नवकारमहापदार्थनी सज्झाय, पृ. २३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आणंदहर्ष अपार, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. द्वारिकानगरी सज्झाय, पृ. २३अ-२४अ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दोनु बंधव आरडे दुःख; अंति: पडी आपदा आय रे, ढाल-१, गाथा-२४. ३. पे. नाम. शीयलव्रत सज्झाय, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. मु. दयाराम, मा.गु., पद्य, वि. १८२६, आदि: सदगुरु ज्ञान दाता तण; अंति: दयारामने उलास्य रे, गाथा-११. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, पृ. २४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीभडली सुणि बापडली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ७९७६२. (+) सीयल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४४५). शीयलव्रत रास, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: शीलरतन जतने धरौ छंडी; अंति: मसीह रच्यौ शीलरास कि, गाथा-६४. ७९७६३. (+) आत्मनिंदा भाषा, संपूर्ण, वि. १८८४, वैशाख शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. जसराजजी; पठ. सा. सेरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३९). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन; अंति: ते नर सुगुन प्रवीन. ७९७६४. (+) चंदनबालासती वेल, संपूर्ण, वि. १८२८, कार्तिक शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. केसरीचंद्र; पठ. सा. फतू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४३). चंदनबालासती वेल, आ. अजितदेवसरि, मा.ग., पद्य, आदि: कौशंबी नयरी पधारीया; अंति: अजित० पर हो स्वामी, गाथा-२६. ७९७६६. (+#) नवकारगुण चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. हुंडी: नवकारतव., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३५). नमस्कार महामंत्र चौढालिया, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: नवकारवाली मणियडा; अंति: पाठक राजसोम भणइ ए, ढाल-४. ७९७६७. (+) तिर्यंचादिभेदविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७X५५). विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ७९७६८. ज्ञानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हुंडी: ग्यान०, जैदे., (२५.५४११.५,१०४३२). ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग योनि मे; अंति: बनारसी० कर्म के हैत, गाथा-२५. ७९७६९. १७० जिन कल्याणक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. कलकत्ता, प्र.वि. हुंडी : कल्याणक १७०., दे., (२६४१२, १७X४३). १७० जिन विजयतपविधि गणणं, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपे बत्रीश; अंति: साधर्मी कुं बाटै. ७९७७० (+#) पंचमआरा सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२, १०४३४). १. पे. नाम, पंचमआरा सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गोयम सूणो; अंति: भाख्या वयण रसालो रे, गाथा-२१. २. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सूतकं वृद्धिहानिभ्या; अंति: प्रवर्भक, श्लोक-६. ३. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: १२ दिन देवपूजा न कर; अंति: सच्चे एयारिसामने. For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २९६ ७९७७१. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५४१२, ६x४१). औपदेशिक पद - आत्मा, गोपीलाल, मा.गु., पद्य, आदि पाये लागो सुधरमा; अंति: पीलाले चरण चीत धारे, गाथा-६. ७९७७२. मयारामजी गीत संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. वे. (२५४१२, १०x३८). 3 " " मयारामजी गीत, पुहिं., पद्य, आदि श्रीमयारामजी के अति (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-७ अपूर्ण औपदेशिक दुहा, पुहिं., पद्य, आदि: भुजा भई बलहीन मेरे; अंति: उसका काडू रे खोज, दोहा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तक लिखा है.) ७९७७३. धन्ना सज्झाय व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे. (२५४१२, १०-१४४५३). १. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. १अ १आ, , संपूर्ण. धन्ना काकंदी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: काकंदी वासी सकजे; अति धना पामसी केवलज्ञान, गाथा २०. २. पे. नाम औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दुहा, पु.ि, पद्य, आदि पितर पुत्र जोदयः खसम अंतिः घर भिष्या क्यूं करे, गाथा- १. ७९७७४. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५.५४११, ८४३५ ). "" १३४३७). १. पे नाम. सिद्धशिला नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर अंति: जिनहर्ष० सायरथी तारौ, मा.गु., गद्य, आदि: ईसीतिवा १ ईसिपभाराति; अंति: तठे सिद्ध विराजे छे. २. पे नाम, भरतक्षेत्रादि परिमाण विचार, पृ. १अ संपूर्ण गाथा ५. ७९७७५ (+#) इलाचीपुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. देवचंद्र यति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x१०.५, १०२७). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नाम इलापुत्र जाणीयइ: अंति: लबधिविजय गुण गाय, गाथा - १५. ७९७७६ (+) सिद्धशिलानामादि बोल संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५४१०.५, " मा.गु., गद्य, आदि भरतक्षेत्र ५२६ योजन; अंति: ५२६ योजन ६ कला. ३. पे. नाम. गुणस्थानककाल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानकस्थिति काल, मा.गु., गद्य, आदि मिध्यात्व गुणठाणानो; अंति बेला लागे तेतलो मान. ४. पे नाम, चौदगुणस्थानक नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु.. गद्य, आदि: १मिध्यादिट्ठी २सासा अति: १४अयोगी केवली. ५. पे. नाम. अष्ट कर्मनी १५८ प्रकृतिनी विगत, पृ. १आ, संपूर्ण ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि ज्ञानावरणी प्रकृति ५ अतिः असंख्यातमो भाग. ७९७७७. नवपद गहुंली व मुनिसुव्रतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. श्रीचंद्र, पठ. श्रावि. लक्ष्मीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११.५, ११×३९). १. पे नाम. नवपद गहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. आत्माराम, मा.गु., पद्य, आदि: सहियर चतुर चकोरडी; अंति: दीजे हो सहि सुख अनंत, गाथा-७. २. पे नाम मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. विमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी आया रे सेर; अंतिः बुध विमल सुर प्रमाण, गाथा-५. ७९७७८. वत्रीसविजयनी ओली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १ ले स्थल, भुजनगर, प्रले. ग. प्रमाणकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६११.५, ३९x१९). " अढीद्वीप ३२ विजयजिन नाम, मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्रीजयदेवः; अंतिः श्रीसुरेंद्रदत्त. Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७९७७९. महावीरजिन विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रावण, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. भावी, प्रले. सा. खुस्यालू आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४४१). महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: सुंदर संथणो अवनितिलौ, गाथा-२०. ७९७८० (4) चउदसगुणठाणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४७). महावीरजिन स्तवन-१४ गणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: महावीरजिनरायाना पाय; अंति: श्रीवीरजिन सेवो सदा, गाथा-२३. ७९७८१. सिद्धचक्र स्तवन, सातवार सज्झाय व औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११, १४४३२). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र सुणो; अंति: भणे ए उत्तम अधिकार, गाथा-८. २.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___औपदेशिक पद-माया, मु. राम मुनि, पुहि., पद्य, आदि: माया के मजूर सोतो; अंति: राम० जियां घणी गंधगी, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हारे इण सेर वीचे कोन; अंति: रूपचंद० को कबान है, गाथा-४. ४. पे. नाम, सातवार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदित्य जोइने जीवडा; अंति: भणे वंद श्रीमहावीर, गाथा-८. ७९७८२ (+#) महासेनमुनि सज्झाय व नेमिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १३४३२). १. पे. नाम. महासेनमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सोभागी हो साधु; अंति: ज्ञानविमल० मुनि योध, गाथा-८. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ७९७८३. धर्मरुचिमनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १३४३८-४०). धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपानगर अनोपम सुंदर; अंति: सुणतां मंगल मालो, गाथा-१३. ७९७८४. (+) नारीगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८४५४). औपदेशिक सज्झाय-नारीगुण, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सर्व सरीखा नर नही; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ तक है., वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ७९७८५ (#) २३ पदवी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, ११४३७). २३ पदवी सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: गणधर गोतम स्वांमजी स; अंति: इम कहे ऋषभदासो रे, गाथा-१०. ७९७८६. पद्मप्रभु स्तवन व दिवालीपर्व रास, संपूर्ण, वि. १९३५, आश्विन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. रूपचंद्र ऋषि (गुरु मु. सूर्यमल्ल ऋषि); गुपि. मु. सूर्यमल्ल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: दीवालिका., दे., (२५४११.५, १५४४७). १. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मप्रभजिन स्तवन, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: पो उठि प्रभाते वंद; अंति: ग्यान तणो अभ्यास रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व रास, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंत रो; अंति: जैमल्ल०दीवाली रे मान, गाथा-४४. ७९७८७. दान सज्झाय व ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १५४३०-३४). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घरि घोडा हाथीया; अंति: लावण्य०दीधाना फल जोय, गाथा-१२. २. पे. नाम. ढंढणऋषिसज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि तइ साचउ; अंति: तास समरण कीजइ ए, गाथा-९. ७९७८८. (+#) सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५,१३४३३). १७ भेदी पूजा, मु. जीतचंद, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जिनतनु नीर सुगंधसौं; अंति: बाचक कहें जीतचंद, पूजा-१७, गाथा-२८. ७९७८९ (#) स्त्रीओना कथलानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, ९४२१). औपदेशिक सज्झाय-स्त्री कथला, श्राव. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यकरणी पाखीने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ७९७९०, चतुर्विंशतिदंडक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, १५४४४). गति आगति द्वार विचार-२४ दंडके, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: नारकीदंड २ गति; अंति:१ जोइसिय १ वैमाण १. ७९७९१ (4) सिद्धचक्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७८१, फाल्गुन कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. प्रत के अन्त में अस्पष्ट अक्षरों में किसी कृति का अपूर्ण पूरक पाठ किसी ने लिख दिया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३९). सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमुं दिन; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४, गाथा-२५. ७९७९२. (+) सीमंधरजिन स्तवन, भव्योपदेश सज्झाय व रिषभदेवजीरी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: तवनढा., संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४४५). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भगवानदास ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८९३, आदि: मना तुम माहादेव जाणा; अंति: सामी कुसालचंदजी चरणा, गाथा-१०. २. पे. नाम. भव्योपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-भव्योपदेश, म. भगवानदास ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८८६, आदि: तेज तुरंग पर चढे; अंति: जेयपुर सहिरमें गाई, गाथा-९. ३. पे. नाम. ऋषभदेवजीरी ढाल, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: मै दीख्यार दिन तुनै; अंति: गुणचालीसमी ढाल, गाथा-१४. ७९७९४. (+) माननी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: आत्मस., संशोधित., दे., (२५४१२, १२४४८). मान परिहार सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि: मान न कीजे रे मानवी; अंति: इम कहै छोडो आलजंजाल, गाथा-४१. ७९७९५ (+) पार्श्वजिन छंद व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २, कल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४१२, २३४५८). For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९१९, आषाढ़ कृष्ण, ४, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. मीरगा (गुरु सा. मखुजी); गुपि. सा. मखुजी (गुरु सा. महासत्याजी); सा. महासत्याजी, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात मया करी आपो; अंति: भावविजय०देव जय जयकरण, गाथा-५१. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२७ तक लिखा है.) ७९७९६. ढालसागरनी अंतरढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. नोगामा, प्रले. मु. रामरतन; पठ. सा. जेकुंवरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, २३४४०). ___ पांडव रास-ढाल-३३ से ३४ अंतरढाल, संबद्ध, मु. माणकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: घोडो रे मेले मोकलो; अंति: माणकचंद० अती अहेलाद, ढाल-२, गाथा-८९. ७९७९७. (4) चंद्रगुप्तराजा सोलसुपना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. पेमा (गुरु सा. छोटीजी); गुपि. सा. छोटीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सोलसुपना., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११, १६४३४-४०). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपूर नाव नगर; अंति: चंद्रगुपत राजा सुणो, गाथा-३३. ७९७९८ (+) रोहीणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: रोहिणीस्त., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३७). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. ७९७९९. सिद्धदंडिका स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, ४४३३). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसह केवलाओ अंतरमु; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. ७९८०० (+-) नेमिजिन सज्झाय, पार्श्वजिन स्तवन व सगरचक्री सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११, १६४३३). १. पे. नाम. दम की सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, पुहिं., पद्य, आदि: दमका नहि भरोसा रे; अंति: साधु हरचरणा विसराम, गाथा-६. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज जोयानी तक जाय; अंति: बांह उसाहे छे रे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी कागल मोकलें द; अंति: रुप नमे एकचित्त, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमनाथ राजमती नवभव, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मा.ग., पद्य, आदि: नवभव के तुम वालेहा; अंति: भणे आवागमण निवार, गाथा-१४. ५. पे. नाम. सगरचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सगर रायनी वारता कहुं; अंति: वरत्या जयजयकार रे, गाथा-२२. ७९८०१ (+) मतिज्ञान भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, २८x२०). २८ मतिज्ञान भेद, मा.गु., गद्य, आदि: सुतनिष्टत मतिज्ञाण; अंति: पूर्ण श्रुतज्ञानी. ७९८०२. (4) जैनधार्मिक श्लोकसंग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११.५, २२४६०). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "धर्मतः सकल मंगलावली" उत्तरपाद से सज्जन गुण वर्णन अपूर्ण तक है.) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९८०३. (#) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १६-१९४३८). साधुवंदना, मु. शांतिकुसल पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: साधु गुणेस जै भलाजी; अंति: शांति० आज्ञा परिमाण, गाथा-२९. ७९८०४. (+#) पार्श्वनाथ स्तवन व जिनदत्तसूरि पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३१). १.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जगगुरु श्रीगोडीपुर; अंति: क्षमा० सवाई थायै हो, गाथा-७. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दादा चिरंजीवो सेवक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ७९८०५. च्यारमांगलिक शरण व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १४४३४). १.पे. नाम. ४ मंगल शरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. नागोर, पठ. श्रावि.रीभाजीबाइ, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: पो उठीनें समरीजै हौ; अंति: (१)चौथमल वाल गोपाल, (२)मंगलीक सरणा च्यार, गाथा-११. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. . भाव, मा.गु., पद्य, आदि: आज ऊछव छरे ईदको जोय; अंति: भाव प्रणमी जगदीसो, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ७९८०६. (+) गौतम सज्झाय व सुधर्मापंचम सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११.५, १२४२५-२८). १.पे. नाम. गौतम सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी सज्झाय, मु. धर्मजीत, मा.गु., पद्य, आदि: जे शंकर विरंचिनी; अंति: धर्मजीत नोबत वागी, गाथा-६. २. पे. नाम. सुधर्मापंचम सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामीगणधर सज्झाय, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीर मुखे सुणी त्रिपद; अंति: धर्मचंद्र० जंजीर तोड, गाथा-८. ७९८०७. (+) चौबीसतीर्थंकर स्तवन व नेमनाथ रेखता, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, ले.स्थल. आगरा, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ११४२८-३२). १.पे. नाम. चोवीसतीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन अष्टक, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अवीचल थानिक पहुता; अंति: पभणे श्रीउदैसागरसुर, गाथा-८. २.पे. नाम. नेमनाथ रेखता, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहि., पद्य, आदि: व्याहन खुब आए सिर; अंति: मुजकू कफन कहां हे, सवैया-४, (वि. इस प्रत में रचनाकार का नाम नहीं है.) ७९८०८.() नेमिजिन, पंचमी व अष्टमीतिथि आदि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २-१(१)=१, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४४०). १.पे. नाम. नेमनाथजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है.. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनवर मंगलाकर देवियै, गाथा-४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २.पे. नाम, पंचमी स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: संघ कल्याणदाता, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वप्रभो स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ५.पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिणवर प्रणमुं; अंति: जिनसुख० जनम प्रमाण, गाथा-४. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वलि वलि हुं ध्यावं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ७९८०९ (#) असज्झाय दोषण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३३-३६). असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवियण देवी समरी मात; अंति: शिवलच्छी तस वरै, गाथा-१६. ७९८१०. चौवीस तीर्थंकरों के नाम, पूर्वभव, माता, पितादि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ३३४३०). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७९८११ (+#) दशार्णभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३५-३८). दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७९८१२. पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४१२, ६४१९). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: (-), (प.वि. मात्र प्रथम स्थूल अपूर्ण तक हैं.) ७९८१३. गुणस्थानक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५, २४४१०-२४). १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इग्यारमे बार में तेर; अंति: ओघनियु० कह्यौ छै. ७९८१४ (+#) षड्द्रव्यपंचास्तिकाय विचार, पद्गलानंतलक्षण गाथा व भक्ति चतर्नंगी विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३-१६४३१-५०). १. पे. नाम. षड्द्रव्यपंचास्तिकाय विचारगाथा सह बालावबोध, पृ. ४अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: परिणामि जीव मुत्ता; अंति: सुद्धबुद्धिहिं, गाथा-३, (वि. कोष्ठक सहित.) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: परिणाम जीव तेरा; अंति: प्रदेसे रहइ छइ. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण-क्षेपकगाथागत पुद्गलानंतलक्षण गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-क्षेपक गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सबंधयार उज्जोय; अंति: पुग्गलाणंतलक्खणं, प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. भक्तिचतुर्भंगी विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: निद्दा विगहा परिवज्ज; अंति: कमेण चउवीसठाणेण. ७९८१५ (#) भवदेवनागिला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४२७-३०). भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदत्तभाई घरि आवीआ; अंति: समयसुंदर वंदइ पाय रे, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९८१६. (#) इलाचीकुमार सज्झाय, संभवनाथ स्तवन व सर्वार्थसिद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४६-४९). १. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीयइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) २. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु परणमुरे संभव; अंति: सागर सुख लीला तरइ, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. धर्महर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सरवारथीसीद्धने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ७९८१७. (+#) कुशलसूरी व जिनचंद्रसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३७). १.पे. नाम, कुसलसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुसलसूरि गीत, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, आदि: अम्ह घरि कुसल वधावणा; अंति: कनकसोम० जय जयकार, गाथा-७. २. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, आदि: आला जिणचंदसूरि दिखाउ; अंति: कनकसोम गुण गाउ, गाथा-६. ७९८१८. (4) साधारणजिन पद, औपदेशिक लावणी व पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १७४४०-४६). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. दौलत, पुहि., पद्य, आदि: सरण जिनराज तेरी हो; अंति: तोडी करम की बेरी हो, गाथा-३. २. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: किसी की भुंडी ना कही; अंति: जिनदास०जिनदरसण चहिये, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. कांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पास जीनंदासु लगी; अंति: कांतीसूरी० अम्ह आसा, गाथा-६. ४. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु. मूलचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १८६३, आदि: सुणीयो वाता सदा; अंति: नास भाग गये मुरजीवा, गाथा-९. ५. पे. नाम. महादेव गीत, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: हाथ चक्र तरसुल वीराज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७९८१९. पार्श्वनाथ नीसाणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १०x४५-४८). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतदायक सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. पाठ "खोणीयतिषे संदाहै वडा" तक हैं., वि. प्रतिलेखक ने गाथा ७ के बाद गाथांक नहीं लिखा है) ७९८२० (+) सज्झाय व दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १७४३१-३४). १.पे. नाम. सचित्तअचित्त सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, म. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमं श्रीगौतम; अंति: वीरविमल करजोडी कहई, गाथा-१८. २. पे. नाम. सामान्य दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org दहा संग्रह जैन, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-२. ७९८२२. आदिजिन पद, गौतमस्वामी गीत व पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२२.५X११.५, १५X४०). १. पे नाम पार्श्वजिन पद, पू. १अ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि रूप भली जिनजी की अंति: चंत० जगजीवन सबही को, गाथा-३. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि आज सकल मंगल मिलै आज; अति: अनुभव रस माने, गाथा-५. " ३. पे. नाम गौतमस्वामी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि गोतम नाम जपो परभाते अति समयसुंदर० गुण गाते, गाथा ३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. सोभाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अहो श्रीचिंतामण पास; अंति: सोभाचंद० कर दोयजी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपास वडे धमचकव; अति जीत नीसाण बजावु लाल, गाथा ६. ७९८२३. सारसीखामण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल अहिमदनगर, प्रले. मु. भावरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, १५X४२-४५). औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकरण नमी जिनचरण; अंति: ते नही अवतरि, गाथा-२६. ७९८२४. () राइप्रतिक्रमण, पाखीप्रतिक्रमण व देववंदन विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४९, फाल्गुन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, प्रले. पंन्या. गलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १२X३५-३८). १. पे. नाम राइप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पंचप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि, संबद्ध, प्रा. पद्य, आदि प्रथम झीयावही पडीकम; अंति सीद्धाचल साहमु. २. पे. नाम. पाखीप्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहिं., प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: वंदेत्तु कही इच्छा; अंति: खामणा ४ पछे देवसी. ३. पे. नाम देववंदन विधि, पू. १आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम झरीयावही अंति उवसग्गहरं जयवीराय. ७९८२५. शत्रुंजयतीर्थ व चैत्रीपुनम स्तुति स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४)= १ कुल पे. ८, जैदे., " मु. . दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय सिद्धा; अंति: दान करइ गुणग्राम, (२६X११.५, १८X३९-४२). १. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति दान० सामीशुं चितलाई, गाथा-४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा के कुछेक भाग हैं.) २. पे नाम. शत्रूंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. ३०३ गाथा - ५. ३. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभनी प्रतिमा मणीमयी; अंति: दान० प्रणमो हित आण, गाथा-३. गाथा - ३. .पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ४. पे नाम. चैत्रीपूनम चैत्यवंदन, पू. ५अ, संपूर्ण चैत्रीपूर्णिमापर्व चैत्यवंदन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सगरादिक नरपति अनेक; अंति: दान सकल सुखकार, Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन-रायण पगला, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एह गिरि उपर आदिदेव; अंति: दानविजय जयकार, गाथा-३. ६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. म. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुख शुद्ध चिद्र; अंति: दान० चक्रावरिष्टा. गाथा-४. ७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल तीरथ सुंदरु; अंति: इम दान कहे उलट आंणी, गाथा-४. ८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भाव भगति भविजन धरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७९८२६. चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, जैदे., (२६४११.५, १२४३२-३५). चित्रसंभूति सज्झाय, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त कहै ब्रमरायनै; अंति: भणे ते सिवपुर लहसीजी, गाथा-२१. ७९८२७. थानिकबोली पारवा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १२४२५-२८). थानिकबोली पारवा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही तस्स; अंति: करि मिच्छामिदुक्कडं. ७९८२८. (+) सहस्त्रकूट जिनविवरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५४, माघ कृष्ण, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १५४३२-३६). जिनप्रतिमा स्तवन-सहस्रकूट, पं. रामविजय पाठक, मा.ग., पद्य, आदि: सिद्धाचल हो तीरथराइ; अंति: राम० जिन यात्रा लहै, गाथा-१७. ७९८२९ (+#) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, स्तवन व भजनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२-१७४२७-३६). १. पे. नाम. कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, पृ. १अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक पाठ लिखा है.) २. पे. नाम, ऋषभदेव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, म. ऋषभदास, रा., पद्य, आदि: मरुंदेवीना नंद थारा; अंति: ऋषभदास बलीहारी रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक भजन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८५८, चैत्र कृष्ण, ७, प्रले. कांति, प्र.ले.पु. सामान्य. कबीर, पुहि., पद्य, आदि: पंडिता पूछ पीयो जल; अंति: कबीर० रामजी का सरना, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक कीर्तन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८५८, चैत्र कृष्ण, १३. औपदेशिक भजन, प्रीतम, पुहिं., पद्य, आदि: हरी भजन विना दषदरीया; अंति: प्रीतम० मरण तणा जाणी, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहासंग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: सुजस सवाइ ताहरी; अंति: उत्तम तणा सनेह, दोहा-३. ७९८३०. गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १८४४२-४५). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देश मझार; अंति: लीधी मुनिवर सासताजी, गाथा-४३. ७९८३१ (#) केसरीयाजी व लोद्रवपुर तीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १५४३३). १.पे. नाम. केसरीयाजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सखि रे जागती जोत; अंति: रत्न हीये धर लीधी, गाथा-९. २. पे. नाम. लोद्रपुर चिंतामणी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपर-चिंतामणी, म. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९११, आदि: तीर्थपति त्रेवीसमा; अंति: जिनराज सुधारे काज, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ 3 "" ७९८३२. (*) पंचतीर्थं स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे. (२५.५५११, १४४३५-३८). ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आदए आदए आदिजिणेसरु ए; अंति: मुनि लावण्यसमय भणे ए, गाथा- ७. ७९८३३. (+*) गौतमस्वामी अष्टक व भमरानी सज्झाव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५४११, ११४३२-३८). " १. पे. नाम. गौतमस्वामीरी सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: लावण्यस० संपति कोडि गाधा ९. २. पे. नाम. भमरारी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायाविषे, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मनभमरा काई भम्य; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा- ११. ७९८३४. (४) नवकार पद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६४१२.५, १३४३३). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि उवसग १ गब्धहरणं २ अति अनंते काले होइ ज. ७९८३६. मरुदेवी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैये. (२५.५x१२.५, ११४३२-३५). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्कार महामंत्र पद, मा.गु., पद्य, आदि: जगमे सार मंत्र नोकार; अंति: सीवपुर दो पोचाय, गाथा-१७. ७९८३५ (१) १० आश्चर्य, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, अन्य मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५४११, १२X३६). , י मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन मरुदेवी आई; अंति: परगटी अनुभव सारि रे, गाथा - १८. ७९८३७. (#) हरिबल चौपाई व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले. स्थल. खंभायतनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६१२.५, १४४४०-४५). ३०५ १. पे. नाम. हरिबल चौपाई - उल्लास ३, पृ. १अ, संपूर्ण. हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उल्लास-३, ढाल १, गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. . मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मुंने धरमजिण; अंति: उलट अति घणे रे लो, गाथा-७. ३. पे. नाम ऋषभ गीत, पू. १आ, संपूर्ण आदिजिन पद, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि आदिजिणंद मया करी; अंति आनंदवर्द्धन० आसा रे, गाथा- ३. ४. पे. नाम. प्रभाति स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. साधारणजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: मिल चौविह सुरवर; अंति: वे पामे जयति सुनाणी, गाथा-४. २. पे. नाम. चैत्रीपूनम स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. "" 1 आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं पद्य वि. १८वी आदि रे घडीवा रे बाहू रे; अंतिः विरला कोइ पावे, पद-३. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुर्हि, पद्य, वि. १८वी, आदि अनुभो हमती रवरीदासी अति: अठकिलि ओर लिवासी, गाथा - ३. ७९८३८. समोसरण स्तुति व चैत्रीपुनम स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जै. (२५.५४१२, १०४२४-२८). 1 , १. पे. नाम. समोसरण स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुंजगिर नमीयै; अंति: श्रीजिनलाभसुरिंद, गाथा-४. ७९८३९. सरस्वती छंद व स्वप्न फल कथन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. कुल ग्रं. १९, जैदे (२६५११.५, १२X३५-३८). Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. सरस्वतीनो छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मा भगवती विद्यानी; अंति: जाउं तारी बलीहारी, गाथा-७. २. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन मंत्र-स्वप्नफलकथन, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐजितु ॐजितु ॐजि उपशम; अंति: जिननाम अभिराममंते, गाथा-५. ७९८४०. चौदगणठाणा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १६४३५-३८). १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७९८४१. भक्तामर स्तोत्र व ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, १४४३३-३६). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. __ आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. पंचमी तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: समय० पंचमो भेद रे, गाथा-५. ७९८४२. (4) कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, २३४५२-५५). १. पे. नाम, शुभ स्त्री कथानक, पृ. १अ, संपूर्ण. शुभस्त्री कथागीत, मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेस एलापुर गाम; अंति: सुखीउ कीधउ तीणीइ धणी, गाथा-१२. २. पे. नाम. सोभनराजकुमार कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शोभनराजकुमार कथा, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सिबलेई राजा नीसरइ; अंति: (१)तणी नारी कहइ राय, (२)सर्वेषु पेयेषु पयः, गाथा-२०. ३. पे. नाम. ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती कथा, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: कंपिल्यपरि नगरि; अंति: वरस सघलउ आउखु हूउ. ४. पे. नाम, रोहिणीयाचोरनी कथा, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.. रोहिणीयाचोर कथा, मा.गु., गद्य, आदि: राज्यगृह नगरि; अंति: पाप धोई देवलोकि गयउ. ५. पे. नाम, अभयाराणी सुदर्शनशेठ कथानक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चंपानगरीइ दधिवाहन; अंति: ऋषि मोक्ष पहुतो. ६. पे. नाम. बोधदायक कथा संग्रह, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जिम एक वाणीउ अनइ; अंति: (अपठनीय). ७९८४३. बासठमार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सवाईमाधोपूर, प्रले. मु. निहाल (गुरु मु. दोलतराम); गुपि.मु. दोलतराम; पठ. सा. लाडकंवर (गुरु सा. खुसाला आर्या); गुपि. सा. खुसाला आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२४.५४११, ३८x२२-२५). ६२ मार्गणा उदय यंत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ७९८४४. दानशीलतपभावना, संपूर्ण, वि. १८५४, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. बीघोदनगर, प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि (गुरु मु. रायचंद, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४३८). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर प्रणमीय; अंति: समयसुंदर०भावबिना अकथ, ढाल-४, गाथा-८९. ७९८४५. गणधरवाद बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, १३४४०-४३). कल्पसूत्र-कल्पसबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हिवइ एहवइ अवसरि अपाप; अंति: गणधर पदवी दीधी. For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३०७ ७९८४६. (#) नमिराजर्षि ढाल व भरतचक्रवर्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२-४५). १.पे. नाम. नमिराजारी ढाल, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सासणनायक समरीये; अंति: तेरस तिथरो नामयं, ढाल-७. २.पे. नाम, भरथजीनी सिज्झाय, प. ४आ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आकार अलुकार सबही; अंति: पुरब मुगत गया सौभागी, गाथा-९. ७९८४७. (+#) षद्रव्य विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१०(१ से १०)=३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१२.५, १२४३२-३५). नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा का विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: अथ षद्रव्यना नाम; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "स्व स्व द्रव्य प्रदेशगुणपर्याय धर्मे स्व स्व भावे" पाठ तक है.) ७९८४८. शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५४१२, १७२३२-३५). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)ॐ नमो भगवति, (२)१११ उत्तम थानक लाभ; अंति: चिंतीत सिद्ध थास्यइ. ७९८४९. गौतमस्वामिनो रास, संपूर्ण, वि. १८५४, पौष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. जीवराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १७४३५-३८). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरणकमल; अंति: भद्र गुरु इम भणे ए, गाथा-६५. ७९८५० (+) नियंठा विचार-भगवतीसूत्रगत, संपूर्ण, वि. १८२५, चैत्र कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. मारवाड, प्रले. सा. राज कंवरजी (गुरु सा. महाकंवरीजी); गुपि. सा. महाकंवरीजी; राज्यकालरा. विजैसिंघ; अन्य. मु. मनोहरलाल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १७४४३-४८). भगवतीसूत्र-नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पण्णवय १ बेय २ रागे; अंति: पहिलाना संख्यातगणा, द्वार-३६. ७९८५१ (+2) औपदेशिक पद व जिनपद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांकभाग खंडित है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४४६). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. गढदास, पुहि., पद्य, आदि: काहे कुं प्रीति करी; अंति: गढदास इंद्रीसुख जानी, गाथा-४. २.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: गाय गाइ सब पाउं ताहि; अंति: राखो पासा रे, गाथा-४. ३.पे. नाम. नेमिराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. जसवंत, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु लाइ मेरो इ; अंति: जसवंतराखे ह न रहाइ, गाथा-३. ४. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. अमियपाल, पुहि., पद्य, आदि: सुरनरगण गंधरप जाकइ०; अंति: अमियपाल० की दाया रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. जसवंत, पुहिं., पद्य, आदि: विचारी हो जादु देखो; अंति: पाइ पडित बलिहारी हो, गाथा-३. ७९८५२. (#) शीतलजिन, पार्श्वजिन व पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४१). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ.१अ, संपूर्ण. ___ मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहिज सुरंगा; अंति: कुशल गुण गाया रे, गाथा-११. २. पे. नाम, गौडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आंणीने सोहावो जिनजी; अंति: नमी बोले केसर धीर, गाथा-७. ३. पे. नाम. पद्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, उपा. उदयरतन, रा., पद्य, वि. १७९८, आदि: साहिबा थारी मूरतिरी; अंति: उदयरतन० उपाया हो राज,गाथा-५. ७९८५३. सिद्धचक्र व ऋषभदेव नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिद्धचक्र नमस्कार., अ., (२४.५४११.५, १२४२६). १.पे. नाम, सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, म. साधविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: साधुविजयतणो० करजोड, गाथा-१५. २. पे. नाम. ऋषभदेव नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ७९८५४. (#) स्थूलिभद्र नवरसो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११, १७४४२-४५). स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७९८५५ (+) २४ जिन स्तवन व जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४५५). १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, म. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमो; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. २. पे. नाम, जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पं. शीलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृह नगरी वसै ऋषभ; अंति: तास तणा गुण गाया रे, गाथा-१४. ७९८५६. (+) अध्यात्मगीता, गणधर होरा व गणधरहोरा संबंधगाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल, विक्रमपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६x४२-५५). १. पे. नाम. अध्यात्मगीता, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८६८, चैत्र कृष्ण, २, मंगलवार, ले.स्थल. विक्रमपुर. अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४९, (पृ.वि. गाथा-४६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गणधर होरा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. __प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवाई पयत्थसत्थ; अंति: भयं होई गुरुदक्खं, श्लोक-३१. ३. पे. नाम. गणधरहोरा संबंधगाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. गणधर होरा-संबंधगाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दुइगेगएगदोदो दोदो; अंति: दोदो होरकाएनभट्टपरा, गाथा-१, (वि. संख्या स्पष्टीकरण सहित.) ७९८५७. (+) सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणागर्भित, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ११४३६-४०). सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणागर्भित, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६१ अपूर्ण से ८१ अपूर्ण तक For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७९८५८. (*) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३०- २९ (१ से २९) = १, ले. स्थल पलिका, प्रले. पं.उदैचंद, अन्य. मु. अगरचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी भक्ता०क०. अंतिम पत्र पर पुफावतीमध्ये का भी उल्लेख है. यह प्रत अगरचंदजी की प्रत पर से प्रतिलिपि की गयी है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे., (२५.५x११, १०X३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४ (पू. वि. अंतिम ४३ व ४४वां काव्य है.) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सगला कष्ट विलय जायै. भक्तामर स्तोत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति धर्मनै विषै दृढ हुवौ कथा-२८ (पू.वि. अंतिम २८वी कथा अपूर्ण से है.) ७९८५९. नागलारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०५ आश्विन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. राश, प्रले. पं. पुण्यसुंदर गणि (कवलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४×११-११.५, ९×२३). भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८७२ आदि भवदेव जागी मोहणी काइ अति हो नित सिस नमाय गाथा ११. , ७९८६० (मैं) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२६४११.५, १७x४२-४६). पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हिव राणी पदमावती: अतिः समय० पापथी छूटइ ततकाल, ढाल -३, गाथा-३६. ७९८६१. मेघरथराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्रले. श्रावि. मूली, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६४११, २०X३६-३९). मेघरथराजा सज्झाय पारेवडाविनती, मा.गु., पद्य, आदि दवा बरोबर धर्म नहीं, अंतिः सत सुख अणगारोजी कोइ, गाथा - ३१. ७९८६२ सुधर्मादेवलोक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, वे. (२५.५X११, ९×३५-४०) सुधर्मदेवलोक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि सुधर्मादेवलोकना रे; अंतिः एछे अमारी बलाये रे, गाथा १०. ७९८६३. आंतराधिकार व जंबूद्वीप १९० खंड विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी: आंतराणी., जैदे., " ३०९ (२६X११.५, १४X३६-३९). १. पे. नाम. आंतराधिकार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: २४ महावीर २३ पार्श्व; अंति: २४ श्रीमहावीर हवा. २. पे नाम. जंबूद्वीप १९० खंड विचार, पृ. १आ, संपूर्ण प्रले, मु, मुगतिचंद्र ऋषि पठ श्रावि जमना, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. प्रतिलेखनपुष्पिका का कुछ अंश मूषकभक्षित है. जंबूद्वीप के १९० खांडुआ विचार- भगवतीसूत्रे, मा.गु.. गद्य, आदि: जंबूद्वीपमां भरतखंड अति: एकसोनेवुं खंड थवा. ७९८६४ (+) चंद्रसूरिगुरुगुण गहुंली व प्रास्ताविक दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) = १, कुल पे. २, ले. स्थल. चितोडगढ, प्रले. ऋ. केसरीचंद मोतीचंद, पठ, मु. कल्याणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. प्र. ले. श्लो. (४५८) जब लग मेरु महीधर दे. (२५x११.५, १२x२३-२६). १. पे. नाम. हर्षचंद्रसूरिगुरुगुण गहुंली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. . देवजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: श्रीसद्गुरु चरण पसाय; अंति: किधी ते संघ समक्ष रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं., मा.गु., रा., पद्य, आदि: भोमडसण रीपु बोलियो; अंति: एक है केम करुं बगसीश, गाथा- २ (वि. पहेलीमय दोहा.) ७९८६५. (+) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X११, १x२५). आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., पद्य, वि. १८वी, आदि : मरुदेवी मात केरा; अंति: मोहने प्रभु गुण गाया, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९८६६. नेमराजिमती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., गु., (२६४११.५, ९४३३). नेमराजिमती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५३ अपूर्ण से ७५ अपूर्ण तक है.) ७९८६७. (4) पार्श्वप्रभु स्तवन प्रभाती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १०४२६-२९). पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपने घरि बेठा लील; अंति: समयसुंदर० जिन रूडो, गाथा-७. ७९८६८. महावीरजिन गुणवर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, १५४२७-३०). महावीरजिन गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरि० श्रमणभगवंत; अंति: सूत्र इहां कणे कुणजे. ७९८६९. नेमिजिन विवाह वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३५-३८). नेमिजिन विवाहवर्णन, मा.गु., प+ग., आदि: हवे श्रीनेमकुमर अनइ; अंति: कुमरनो विवाह मनाव्यो. ७९८७०. (#) सज्झाय व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्रले. मु. कचराजी ऋषि; अन्य. सा. दुधीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४२२-२६). १.पे. नाम. मोक्ष तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मोक्षनगरी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: छे भवि निर्वाण रे, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: अरिहंतजीनो नाम मारे; अंति: दया पलावे दइने, गाथा-१२. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहासंग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: सजन सब जग सरस है जब; अंति: न कहे लाख हमारा मुल, दोहा-२. ७९८७१ (4) सीमंधरजिन स्तवन, नीरंजन पद व दौपदीसती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:नारदनी., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३६-४०). १. पे. नाम, श्रीमंदिरस्वामीनु तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न*, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवशे; अंति: उदयरत्ननिर्मल थासु, गाथा-७. २.पे. नाम. नीरंजन पद, पृ. १०अ, संपूर्ण, अन्य. श्रावि. कमखाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. साधारणजिन गीत, म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुहि निरंजन इष्ट; अंति: रूपचंद० होवे फेरा रे, गाथा-३. ३. पे. नाम. द्रौपदीसती सज्झाय, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आव्या नारद मुनिवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७९८७२. पल्यमान विचार भगवतीअनुयोगद्वारसूत्रगत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १५४४७-५०). सागरोपम पल्योपम पूर्वमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एक मुहूर्त्तना सास; अंति: खंड२ बीचे छेटों छे, (वि. भगवती व __ अनुयोगद्वार में वर्णित.) ७९८७३. अनाथीमुनि सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९२, आश्विन कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मंगलापुरी, प्रले. मु. कानजी ऋषि (गुरु मु. विजपाल पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३२). १.पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण... उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक रायवाडी गया; अंति: वंदे रे बे कर जोड, गाथा-९. २. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद नानडीया; अंति: चरणकमल चित लावेरे, गाथा-७. ७९८७४. ज्ञानपंचमी, अष्टमीतिथि व देवानंदामाता सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १३४२७-३०). १. पे. नाम. पांचमनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३११ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुना हुं प्रणमी; अंति: वाचक देवनी पुरो जगीस, गाथा-५. २. पे. नाम. अष्टमी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा-७. ३. पे. नाम. देवानंदामाता सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७९८७५. (#) प्रतिक्रमण व सामायिक विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ९४३०-३४). १. पे. नाम. प्रतिक्रमण विधि, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: शांति लोगस्स भणीजे, (पू.वि. देवसिय पायच्छित १६ नवकार काउसग्ग अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सामायिक विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडि० तस्स०; अंति: दोष लागो हुवे ते स०. ७९८७६. (+) विक्रमचौबोली रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. ८-७(१ से ७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, २१४५५-६०). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-११ का दौहा-१ अपूर्ण तक है.) ७९८७७. आनंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१०.५, १५४४०). आनंदश्रावक संधि, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ एवं क्रमशः गाथा-३८ अपूर्ण तक है.) ७९८७८. सिखामण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १०४३२-३५). औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम सीखामण खरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७९८७९ (#) नेमीनाथ राजेमती स्तवन व चंदनबाला स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३८-४२). १.पे. नाम. नेमीनाथराजेमती स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १७९०, आषाढ़ शुक्ल, ४, प्रले. मु. पानाचंद (अज्ञा. पं. गोकल); गुपि.पं. गोकल, प्र.ले.प. सामान्य. नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.ग., पद्य, वि. १६६७, आदिः (-); अंति: नेमि जिनेश्वरो. २. पे. नाम. चंदनबाला स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, श्राव. लाधाशाह, मा.गु., पद्य, आदि: मनना मान्या; अंति: लाधो० बलिहारी रे, गाथा-१०. ७९८८०. जोतकनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है.,प्र.वि. हुंडी:जोतकनी., जैदे., (२६.५४१२, २२४५०-५३). भीमसेनचंद्रावती चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: ओर दरसणी पुछीया घणा; अंति: (-), (पूर्ण, पृ.वि. अंतिम ढाल का __दोहा-२ अपूर्ण तक है.) ७९८८१. लोभनी स्वाध्याय व आध्यात्मिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १५४२५-२८). १. पे. नाम. लोभनी स्वाध्याय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, म. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: उदयरतन० तेहने सदा रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. विनयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सासरीए एम जाए रे बाइ, अंतिः वे सीवपद लहीई रे बाई, गाथा १०. ७९८८२. (#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, तीर्थमाला स्तवन व धन्ना अणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५X३८-५६). www.kobatirth.org १. पे. नाम. शेत्रुंज स्तवन, पू. १अ संपूर्ण, शत्रुजयतीर्थ गीत, मु. जबसोम, मा.गु., पद्य, आदि: मारुं मन मोह्यी इण; अंति: जयसोम० मनतणा काम है, गाथा- ११. २. पे. नाम. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि शत्रुजे ऋषभ समोसर्व अति समयसुंदर कहे एम, गाथा- १६. ३. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि जिन वचने वैरागीयो रे; अति होये जय जयकार रे, गाथा-१३. ७९८८३. (*) विक्रम चरित्र व गुणकरंडगुणावली चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १० ९(१ से ९)-१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक का भाग नष्ट होने से काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११, १५४५५-६०). १. पे नाम. विक्रम चरित्र, पू. १०अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि (-) अंति मतिमंदिर काजे सही, ढाल-१७, (पू.वि. अंतिम ढाल १७ की गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गुणकरंडगुणावली चौपाई, पृ. १०अ १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गुणकरंडगुणावली चौपाई ज्ञानपंचमीतप पुण्यप्रभाव, मा.गु., पद्य, आदि कर जोडी सारद कहुं, अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७९८८४. (+#) धनसाधु तपवर्णन, ब्रह्मदत्त सुखदुख विचार व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पे. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११, १२X३५). कुल १. पे. नाम. धनसाधु तपवर्णन गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. ब्रह्मदत्त सुखदुखविचार गाथा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: बंभदत्तेणराया सवउवरस; अंति: नेरीय दुखमिगउ सासि, गाथा-८. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ७९८८६. प्रा. पद्य, आदि वद्धमानजिनसीसो भद्दा अति: सहवता उत्तम तम्हा, गाथा ५. " गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ७९८८५. (#) सुबाहुमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११, १५X३८-४२). सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. प्रेम मुनि, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: धर्म जिणेसर चित्त; अंति: प्रेम मुनि सुखवास रे, गाथा - २१. (-) ) नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५X१०.५, १५X३६-३९). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मनवंछित पूरो विविध; अंति: कुशललाभ० वंचित लहे, गाथा १५. ७९८८७. बूधरनागिलानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५X१२.५, ७X२३). भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, आदि: बूधरभाई घर आवीये जी अति समयसुंदर गुण गाय जी, गाथा-६. " ७९८८८. पुण्यसार रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२५.५४११, १६४४६ ४९)पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य वि. १६६६, आदि नाभिरायनंदन नमुं अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३५ अपूर्ण तक है.) ७९८८९. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. नाथद्वारा, प्रले. सा. चनणा आर्या (गुरु सा. नंदु आर्या महासती), प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. हुंडी रीषभजी, दे., (२५.५४११, १५४३०). 7 For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३१३ आदिजिन स्तवन, मु. नरसींग ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: प्रभुजी ऋषभ जिनेसर; अंति: नरसिंग०भणे उल्हास रे, गाथा-३०, (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाथा गिना है.)। ७९८९० (#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ११४३२-३५). सीमंधरजिन स्तवन, म. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामिजी; अंति: हवे दरिसण दिजे नाथ, गाथा-१६. ७९८९१ (+#) अढारपापस्थानकनी सज्झाय व शत्रुजयतीर्थोद्धार स्तवन, अपूर्ण, वि. १७६९, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४२) अदृष्ट दोषा मतिविभ्रमाश्च, जैदे., (२५४११, १९४३८-४२). १.पे. नाम.१८ पापस्थानक सज्झाय, पृ. ६अ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जस इम आखइ रे, सज्झाय-१८, ग्रं. २११, (पू.वि. तृतीय पापस्थानक सज्झाय गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श@जयतीर्थोद्धार स्तवन, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थोद्धार स्तवन-भरतमहाराजाकारित, मा.गु., पद्य, आदि: हवइ नरपति रे भरत भली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७९८९२ (+#) स्तवनचौवीसी व सीखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, २१४४०-४५). १. पे. नाम, स्तवनचौवीसी, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: रीषभ जिणंदा ऋषभ; अंति: मानविजय नित ध्यावे, स्तवन-२४. २.पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धोबीडा तुं धोजे मननु; अंति: वीनती अमृत वेलि रे, गाथा-६. ७९८९३ (+#) शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १४४३३). शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिक्यविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: वीर जिणेसर पाय नमी; अंति: माणिकविमल० संपति घणी, ढाल-७, गाथा-८४. ७९८९४. सामायिक व देवसी पडिकमण विधि, संपूर्ण, वि. १८७२, आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. रतनगढ, प्रले. पं. आसकरण, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५४११, १०४३६-४०). १.पे. नाम. सामायिक विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: गुरु आगै अथवा थापना; अंति: कही धर्मध्यान करै. २. पे. नाम. देवसी पडिकमण विधि, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: खमासमण देई इच्छा० सं; अंति: रीते सामायिक पारे. ७९८९५ (#) चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १६४३२). चैत्यवंदनचौवीसी, ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथमजिन युगादिदेव; अंति: सीसना सरीया सघला काज, चैत्यवंदन-२४, गाथा-७५. ७९८९६ (+) बावीस परिसहनी ढाल, संपूर्ण, वि. १९७३, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हंडी:बावीसपरीसह., संशोधित. कुल ग्रं. श्लोक२७५., दे., (२५.५४११.५, २३४६०-६६). २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: अरिहंत सिद्धने; अंति: काटे कर्मना फंदो रे, ढाल-२२. For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९८९७. (+#) नेमनाथ श्लोक, संपूर्ण, वि. १७९५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. नारायणशिष्य (गुरु मु. नारायण ऋषि); गुपि. मु. नारायण ऋषि (गुरु मु. हेमराज ऋषि); मु. हेमराज ऋषि, पठ. सा. रतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक के नाम का संकेत-अंकबद्ध होने से अस्पष्ट है. अंत में "मुखे जयणाये करी भणजोजी" का उल्लेख है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, १४४३०-३५ ). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुद्ध बुध दाता ब्रह्; अंति: परे बोले० सुजस सवायो, गाथा-५४. ७९८९८. अमरसेनवयरसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, जैदे. (२५४११, १७४४७-५०). " अमरसेन वयरसेन चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवदन कमल विलास; अंति: जंपै हिव जयती जाणी, गाथा - ९९. ७९९०० () वीसविहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी वेहरमानगीत. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैदे., (२३.५X११, १५X४६-४९). विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि स्वामि सीमंधर विनती, अंति रे श्रीजिनसागरसूर, स्तवन- २०. ७९९०१. संथारा मरणांत विधि, संपूर्ण, वि. १८६५, फाल्गुन कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. लसकर, प्रले. दोलतराव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: संथारापोरसी विधि., जैदे., (२५X१०.५, १३x४०). अनशन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अथादौ वांदणा ३ दीजै; अंति: सात क्षेत्र दान दीजै.. ७९९०२. (") ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १६८९, वैशाख शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, सावडी, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११. ११४३२). आदिजिन स्तवन, गच्छा. रूपसिंघजी, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: प्रथम प्रभु श्रीऋषभज; अंति: य पाठक सुखकर सर्वत्र. ७९९०३. सुकोसलमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पठ. पं. ऋद्धिसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५x११.५, १३४३५). . सुकोशलमुनि सज्झाय, मु. सूरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी अयोध्या जयवती; अंति: सुरचंद० संघ प्रसन्न, गाथा ४३. ७९९०४. (+#) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. धानेरानगर, प्रले. मु. शिवसागर (गुरु क. योग्यसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ११×३३). सिद्धचक्र स्तवन, मु. शिवसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर जिणेसर; अंति: शिवसागर इम उच्चरे रे, ढाल -३. ७९९०५. (+) सुखमछत्रीसी व सूत्र सज्झाव, संपूर्ण, वि. १८९० वैशाख कृष्ण ९, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल रुपनगर, प्रले. सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी); गुपि. सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १४X३६-४३). १. पे नाम. सुषमचोपनी, पू. १अ ३आ, संपूर्ण, सूक्ष्मछत्रीसी, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि सुखम छत्तीसी सांभलो अंति कीधो ग्यान विचारजी, गाथा- ६२, (वि. प्रतिलेखक के द्वारा एक गाथा को दो गाथा लिखे जाने की संभावना है. ) २. पे. नाम. सूत्र सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सूत्र अध्ययन प्रेरणा, मु. सुखलाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (१) सूत्र भणचारी कल्पनी, (२) सूत्र भणज्यो आग्या; अंति: य रिष सुखलाल इम भाखे, गाथा-१५. ७९९०६. श्रीस बोल सूत्र मतखंडण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे. (२५४१२, १४४४५). ३० बोल सूत्र मतखंडण, मा.गु., गद्य, आदि: तपागच्छीय श्रीविजय; अंति: (-), (पू.वि. "अठपुहरी पोसहीताने पाछिली राते सामायक" पाठांश तक लिखा है.) ७९९०७. बासठीया उपर डंडक चरचा, संपूर्ण, वि. १९६७, माघ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. कानजी माधवजी महेता, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१२, ११×३५-३८). , २४ दंडक बोल संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: नारकि गतिमां डंडक १; अंति: डंडक २४ चोविस लाभे. For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३१५ ७९९०८. अनंतनाथ तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, ९४३६). __ अनंतजिन स्तवन, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलउ जिम जिम; अंति: सेवउ आणंद पुरि, ढाल-७, गाथा-१४. ७९९०९. स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १२४३१). २४ जिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सुमतिजिन स्तवन की अंतिम ___गाथा अपूर्ण से विमलजिन स्तवन, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७९९१० (+) आदिजिन, पार्श्वजिनकलश व आरतीमंगलदीपक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३-१५४५१). १. पे. नाम. आदिजन्माभिषेक कलस, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिम तुअ दइ वरमुत्ति, गाथा-१९, (पू.वि. १४ स्वप्नदर्शन प्रसंग से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन कलश, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन कलश-मांगरोलमंडन, मु. महिमासागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुराटदेस मध्ये; अंति: जयो जयो भगवंतो जी, गाथा-७. ३. पे. नाम. फूलपूजा दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: मोगर लाल गुलाल मालती; अंति: सब उपद्रव धूजइ, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन आरति, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारणजिन आरती, मा.गु., पद्य, आदि: उतारो आरती दुख; अंति: उतारे भवदुख टाले, गाथा-१. ५.पे. नाम. मंगल दीवो आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण. मंगल दीवो, श्राव. देपाल भोजक, मा.ग., पद्य, आदि: दीवो रे दीवो मंगलिक; अंति: देपाल० कुमारपालें, गाथा-२. ६. पे. नाम. मंगलदीपक आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण. मंगल दीवो, मा.गु., पद्य, आदि: दीवो दीवो मंगलिक दीव; अंति: भवीना दुरित दझावे, गाथा-४. ७. पे. नाम. लूण उतारवा विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. लूण उतारण गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: लूण उतारो वीरजी आगे; अंति: करीजे विविध प्रबंधे, गाथा-५. ७९९११. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५.५४११, १४४३३). १. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लच्छ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामि; अंति: निसदिन करते प्रणाम, गाथा-१. २.पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लच्छ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वीस जिणंदनो धाम नाम; अंति: नित प्रणमै ऋषि लच्छ, गाथा-१. ३. पे. नाम. सिद्धाचल चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, म. लच्छ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय ऋषभ जिणंद; अंति: भभावसु वंदै वार हजार, गाथा-१. ४. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणंदनो धाम; अंति: लहे पामे पद जगदीश, गाथा-३. ७९९१२. भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, ११४३०). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पडहो तिहुणे सयले, गाथा-१३. ७९९१३. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १०४३०). मौनएकादशीपर्व स्तवन, आ. जिनउदयसूरि, पुहि., पद्य, वि. १८७५, आदि: अविचल व्रत एकादशी; अंति: हो जिनउदयसुरिंद के, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९९१४. (#) अज्ञात रास खंड ३ ढाल १३, संपूर्ण, वि. १८८१ फाल्गुन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. तिलोकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x१२, १६x४०). , अज्ञात जैन रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७९९१५ हीरविजयसूरि सज्झाय, शीतलजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८०२ श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, ले.स्थल. नीबेडा, प्रले. मु. खुश्यालसौभाग्य (गुरु मु. प्रीतसौभाग्य); गुपि. मु. प्रीतसौभाग्य (गुरु ग. जयसौभाग्य); ग. जयसौभाग्य (गुरु ग. नेमसौभाग्य); ग. नेमसौभाग्य, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५X११, १५X४०). १. पे नाम. हीरविजयसूरिजी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडीजी वीनवुं; अंति: होज्यो मुझ आणंद, गाथा-१०. २. पे. नाम शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि शीतलजिन सहज सुरंगा अंति: सुबुद्धिकुशल गाया रे, गाधा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. . केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जयो जगनायक गुरु रे; अंति: द्यो दरसण रो सुखकंद, गाथा-५. ७९९१६. (४) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८९० वैशाख शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी 1 है, जैसे. (२५.५x११, १०३७). महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामण बुध द्यौ; अंति: आपो स्वामी सुख घणा, गाथा - १०. ७९९१७ (+#) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन व आदिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों , की स्वाही फैल गयी है, जैसे. (२५.५x१२, १४४३४). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि महा सुदी आठमने दिने अति: पद्मनी सेवाथी शिववास, गाथा-७. , २. पे. नाम जिन नमस्कार, पू. १अ १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमंडणो; अंति: तणौ धीर करे गुणग्यान, गाथा-७. ७९९१८. (+) सातव्यसननिवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. रामशरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२६११, १६५३६). ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मनुष जमारो पायक करणी; अंति: पाई रिष लालचंदजी गाइ, ढाल ४, गाथा - १६. ७९९१९ (+४) २४ जिन माता पितानामादि विवरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५x१०.५, १९५६). २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु., को., आदि (-); अंति: (-), संपूर्ण. ७९९२०. तपावली विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, जैदे. (२६४११, २९५६०). " तपावली, मा.गु., गद्य, आदि पुरिमढ्ढ१ एकासनां२ अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तप संख्या ३३ माणिक थाली तप तक लिखा है., वि. विधि सहित) ७९९२१.(+) सोलसती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है, " For Private and Personal Use Only प्र.वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x११, १६५३६). " १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल -५ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७९९२२. भरतक्षेत्र ५१ जीवभेद बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२५.५X१२, १२x२५). भरत ऐरावत जीवभेद, मा.गु., को., आदि: तिर्यंचना ४८ मनुष्यन, अंति: (-), (पू.वि. ८६ जुगल्या भेद अपूर्ण तक है.) Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७९९२३ (+) अर्जुनमाली चौपाई आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. गुलाब, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी: उरजन, संशोधित., जैदे., (२६४११, २०७४४). १. पे. नाम. अर्जुनमाली चौपाई, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अर्जुनमालीमुनि चौढालिया, रा., पद्य, आदि: सोदागर मीलीया पछ नयी; अंति: वरत्या जयजयकार हो, ढाल-६. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., पद्य, आदि: यो संसार पुस को; अंति: ज्यु पामो नीरबाण, गाथा-१०. ३. पे. नाम, औपदेशिक दोहे, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: बनै बनै कोइ झपी; अंति: कबीर० काया काची घडी, गाथा-८. ४. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु जीण राजक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ७९९२४. (4) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १२४२९). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. जेठमल, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु गजसुकमाल महामुन; अंति: जेठमल० फल पामै जेह, गाथा-१७. ७९९२५ (+) नवलक्षपुरमंडण सुविधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४३). सुविधिजिन स्तवन-नवलक्षपुरमंडण, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि: निज गुरोश्वरणां; अंति: स्ताद्धोधि लाभाय. ७९९२६. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित व पार्श्वमंत्राधिराज स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४४२-४९). १. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासं, श्लोक-८, (वि. सारिणी युक्त) २. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१० अपूर्ण तक लिखा है.) ७९९२७. नेमराजिमती विवाह वर्णन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., __जैदे., (२६.५४११, १६x४४). नेमिराजिमती विवाह वर्णन, अप.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक है.) ७९९२८. पंचमहाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. परमानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४४२). ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरूनी परो दोहिलोज; अंति: इम भाखीजी वीजैदेवसुर, गाथा-१६. ७९९२९ (#) उपदेशरत्नकोश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. प्रल्हादनपुर, प्र.वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ९x४२-४५). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: वच्छयले रमइ सच्छाए, गाथा-२५. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रत्न तेहन; अंति: स्वेच्छाइ रमइ. ७९९३०. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १४४३२). संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे संभव; अंति: सुखे हेलां ते तरे, गाथा-४. ७९९३१ मेघकुमारनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पेमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३७). For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि वीरजिणंद समोसर्या, अति जाया समजम दुषम अपार, गाथा - २१. ७९९३२. सगपण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११, १५X३२). औपदेशिक सज्झाय-सगपण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत सिध आचारज; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २१ अपूर्ण तक है.) ७९९३३. शारदा छंद व गुरुवंदन पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६११.५, १२X३७). १. पे. नाम. शारदा छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १२ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम गुरुवंदन पद, पू. १आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: चालौ हेली चालौ हेलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७९९३४. सीलबत्तीसउपमा बोल, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी: उपमा ३२, जैवे. (२६४१२, १८४३२). शीलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि पहिली उपमा ग्रह; अति सीलवरत मोने प्रधान ७९९३५. श्वासोश्वासविचार संग्रह व साधुगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २- १ (१) १, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी सासउसास, जैवे. (२६११, १६४३७). १. पे. नाम. सासउसास, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं.. श्वासोश्वास विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दस लाखनें असी हजार, (पू.वि. १०१ छमोछम, १५ क्रम पर्याप्ता, १५ अपर्याप्ता का वर्णन अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-साधुगुण, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: मोटा थेतो सुत्र सुजा; अंति: वरत्त कुसलने क्षेम, गाथा ६. ७९९३६. भरतवाहुबली चौढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ५-४ (१ से ४) = १, प्र. वि. हुंडी खंडित होने के कारण अवाच्य है.. वे. (२६११, १४X३७) भरतबाहुबली चौढालिया, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पाली मुगत गया सोभागी, ढाल-४, (पू. वि. अंत के पत्र हैं., डाल-३ की गाथा-८ अपूर्ण से है.) ७९९३७. वीतरागादि स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ५-४ (१ से ४) = १ कुल पे ४, प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख न होने से " पत्रक्रम अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२६X११, १७६४). १. पे नाम. वीतराग स्तोत्र, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी आदि (-); अंति फलमीप्सितम् प्रकाश- २०, (पू.वि. प्रकाश-१८ श्लोक -९ से है.) २. पे. नाम सर्वजिनसाधारण स्तवन, पू. ५अ-५आ, संपूर्ण. वीतराग स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतरागसर्वज्ञ; अंति: मम केवला स्यात्, ३. पे नाम प्राभातिक स्तव, पृ. ५आ, संपूर्ण, श्लोक-१३. सर्वज्ञ स्तव, सं., पद्य, आदि: प्रातरेव समुत्थाय; अंतिः मुपैति पदं स मुक्तेः, श्लोक-१३. ४. पे. नाम. चतुर्विंशति तीर्थकृतां स्तोत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य वि. २४वी आदि जिनर्षभ प्रीणितभव्य अंति: त्रैलोक्यलक्ष्मीधराः, श्लोक ८, (वि. अन्त्य वृत्तरहित भी स्तुतियाँ होती है का अंत में उल्लेख मिलता है.) , ७९९३८. (*) बालचंद बत्तीसी अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी बालचंदवत्रीसी, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२, १७३८). For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ अध्यात्मबत्तीसी, म. बालचंद मनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: सकल पाति हर विमलकेवल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७९९३९ (#) बालचंद बत्तीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १७४४३). अध्यात्मबत्तीसी, म. बालचंद मनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक है.) ७९९४० (+) धन्नाकाकंदी, नेमिराजिमती व काकंदी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. सा. जीउजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: धना, संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २१४३७). १. पे. नाम, धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन बाणी ह धना; अंति: गाया हो मन में गहगही. गाथा-२२. २.पे. नाम. नेमराजीमति सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणजोरी वात सहेली; अंति: (१)जाय मुगतीपुरी सहेली, (२)जादु बीन खरी दोयली, गाथा-१८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. पुहिं., पद्य, आदि: कातग म कौतग करीय घरघ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७९९४१. दंडक बोल, अपूर्ण, वि. १८२८, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, ले.स्थल, मेडता, प्रले. सा. मयणा (गुरु सा. लाडांजी आर्या); गुपि. सा. लाडांजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १५००, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४४२). ३० दंडक बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: मोक्षइ मास ६ आंतरउ, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., देवताना भेद १९८ नारकीना भेद १४ का वर्णन अपूर्ण से लिखा है.) । ७९९४२. जंबूकुमार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:जंबु०., दे., (२६४११, १७४३८). जंबूकुमार रास, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ की गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-६ की गाथा-४ तक है.) ७९९४३. (+#) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४६). अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-रास*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से ४८ अपूर्ण तक है.) ७९९४४. अढारनातरानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. हुंडी: अढारोनातरा, जैदे., (२५.५४१२, १३४३६). १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पता पुता देवगत संसार, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अंतिम ढाल मात्र है.) ७९९४५ (4) वीसविहरमानजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: वीसीचैत्यवंदन, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४०). २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिनवरा विचरे; अंति: (-), (पू.वि. सुजातस्वामी चैत्यवंदन अपूर्ण तक लिखा है.) ७९९४६ (+) पार्श्वजिन निसाणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगुरु प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४४१). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: जिनहर्ष गायंदा हे, गाथा-२७. ७९९४७ (+) प्रकीर्णक, पद व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, पठ. श्रावि. केसरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: चतुःशरण, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४३८-४०). For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२० www.kobatirth.org १. पे नाम चतुः शरण प्रकीर्णक, पू. १अ ३अ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि सावज्जजोगविरई उक्कित; अंतिः कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा - ६३. २. पे नाम आदिजिन चैत्यवंदन, पू. ३अ ३आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि पढम जिनवर पडम जिनवर, अंति: मरुदेवी तणो मल्हार, गाथा - १. ३. पे. नाम नेमराजिमती पद, पू. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में एक कृति को आरंभ करके छोड़ दिया गया है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बेठी राजल मालीय करती; अंति: रूपविजय गुणगाय रे, गाथा-५. ७९९४८. मौनएकादशी गणणुं, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २६११.५, १२x२९). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को, आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत अति: श्री आरणनाथाय नमः ७९९४९. (+) साधु साध्वीनी कालधर्म विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : कालनीवी, संशोधित. दे. (२५x११.५, ११४३३). "" " साधुसाध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि: कोइ साधु काल करे तथा; अंति: (-), (पू.वि. मोटी शांति कहने के पश्चात् लोगस्स कहने की विधि अपूर्ण तक है.) ७९९५० (+) जिनबिंबस्थापना स्तवन व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे २ प्रले. मु. अबीरचंद जती; अन्य. श्राव, मुन्नी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे. (२६४१२.५, १३४३३-३५). १. पे. नाम जिनबिंवस्थापन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमामंडन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिक उद्धार ज; अंति: वाचक जसनी वाणी हो, गाथा १०. २. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि आदौ मज्जन चारुचीर; अंति: लक्ष लोभेण मारितः, (वि. श्लोक - २८.) ७९९५१. श्रावकनां त्रणमनोरथ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., ( २४.५X११.५, १२X३७). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि तीन मनोरथ करतो थको अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तीसरे मनोरथ में- संथारा सहित पिंडत मरण, पांच अभिचार आदि का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७९९५२ (४) पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, ले. स्थल गैरीतानयर, प्र. बि. हुंडी: पंचमीरोहणीसज्झाय, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२.५, १०X३३). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवासुपूज्य जिनेश; अंति संघ सबल सुखदाय रे, ढाल -५, गाथा १६. ७९९५३ (+) जंबुस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३- १(१ ) -२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४१२, १२X४५). , " जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., पद्य वि. १७१४, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. डाल- १ गाथा १ अपूर्ण से ढाल २ दोहा ४ अपूर्ण तक है.) ७९९५४ (+) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १५९२, माघ कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३-१२ (१ से १२) = १, प्रले. मु. अमरचंद्र, पठ. मु. दशरथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४५००, जैदे., (२६X११, १४X५५). 7 योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति ध्यानोद्यतो भवेत्, प्रकाश- १२, श्लोक-१००० (पू.वि. प्रकाश १२, श्लोक ६ अपूर्ण से है.) ७९९५५. (*) पार्श्वजिन राजगीता शंखेश्वर, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x११.५, १३x४०). पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी कल्प; अतिः पास जिनवरतणी For Private and Personal Use Only राजगीता, गाथा - ३६. ७९९५६. पुंडरीकस्वामी, शत्रुंजय स्तवन व आध्यात्मिक हरियाली, संपूर्ण, वि. १८८७ श्रावण २, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x११, १२४३५). Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३२१ १.पे. नाम. पंडरीकस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पुंडरिकगणधर स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन पुंडरीक गणधरु; अंति: ज्ञानविशाल मनोहारी, गाथा-५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर सेवना; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक हरियाली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयर रे मेतो अभीनव; अंति: लक्ष्मीसूरि उच्चरे ए, गाथा-११. ७९९५७. पंचेंद्रिय प्रश्नोत्तरी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १६४३५). प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रश्नोत्तर संख्या-२७ अपूर्ण तक है.) ७९९५८. (#) पद, स्तोत्र व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३०). १.पे. नाम. पद्मावती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तवन, मु. सुजस, रा., पद्य, आदि: जै जगदीसरी संघ सकलनी; अंति: अमर सुजस जग जेम वरो, गाथा-७. २. पे. नाम. चिंतामणियक्ष स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. चिंतामणि यक्ष पद, वा. अमरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जक्षराज चिंतामणि; अंति: हत हीयै वहु आणी री, गाथा-४. ३. पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: देवी चक्केसरी संघसकल; अंति: अमरेस अरज ए उर धरिजै, गाथा-७. ४. पे. नाम. भैरवजी स्तोत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ भैरूजी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: भैरुजी गढ मंडोवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७९९५९ (+#) सचित्तअचित्त व असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३४). १.पे. नाम. सचित्तअचित्तनी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी गुर; अंति: नयविमल कहे सज्झाय, गाथा-२३. २. पे. नाम, असज्झाय सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. हीर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रावण काति मगसिर; अंति: नाम कहे इण परे रे, गाथा-१५. ७९९६० (+) ५ वादी, ३६३ भेद पाखंडी व दिगंबरमत चर्चा बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पांचवादी चरचा दिगांबरमतकीच०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., ., (२५.५४१२, २५४५३). १. पे. नाम. पांच वादी चर्चा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५वादी चर्चा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (१)पंचांधागजमीक्षणार्थ, (२)पांच आंधे एक नगर में; अंति: (१)मतं एगंत होइ मिच्छतं, (२)चढवानो उद्यम कीधो. २. पे. नाम, ३६३ मत चर्चा, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ३६३ पाखंडी मत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: क्रियावादी१ अक्रिया; अंति: विणेयाणं चवतीसं. ३. पे. नाम. दिगंबरमत उत्पत्ति चर्चा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दिगंबरचर्चा बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर के निर्वा; अंति: दोनो नवीन कहलाते है. ७९९६१ (+#) देवराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ४०x१९). देवराजवच्छराज चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: आदि सांत अरु०वच्छराज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३६ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९९६२. (+) पंचकल्याणक चोवीशजिन वर्तमान जिननाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. सुरेंद्रविजय गणि; पठ. श्रावि. झवेरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १६४३२). २४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कार्तिक वदि ५; अंति: नमीनाथ परमेष्टी नमः. ७९९६३. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, ११४२८-४०). बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सर्वस्तोकागर्भज मनुष; अंति: (-), (पू.वि. मात्र-८८ बोल है.) ७९९६४. औपदेशिक, सातव्यसन सज्झाय व दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. कालंद्री, प्रले. ग. नगजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १३४२८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, क. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण बुंढापो आवीयो; अंति: जितसागर० कहे कवि मान, गाथा-१६. २.पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: परऊपगारी साधु सगुरू; अंति: सीस रंगे जेरंगे कहे, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिकदहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में एक कृति को आरंभ करके छोड़ दिया गया है. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: निरफल श्रोतामुढपे; अंति: नेमै देयो विहाय, गाथा-५. ७९९६५ (+) सर्वबंध बोल, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ४८x२४-४२). भगवतीसूत्र-सर्वबंधदेश बोल, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: समुच्चय औदारिक सरीर; अंति: अने पृथपूर्व कोडनो, (संपूर्ण, वि. सारिणीयुक्त) ७९९६६. चंद्रप्रभ व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ९-११४४२). १. पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुखचंद; अंति: तरु आनंदघन प्रभु पाय, गाथा-७. २. पे. नाम, संभवनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: मानुष लोक सुदेस; अंति: भले दीन पूजीयै, गाथा-५. ७९९६७.(+) जीवोपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२, २२४४७). औपदेशिक सज्झाय-जीवोपदेश, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा तु तो भोला रे; अंति: रीजिन भाख्यो एम जीवा, गाथा-३५. ७९९६८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, १८४४०). औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., पद्य, आदि: मुरख कुंभावे नहि रे; अंति: आगे इच्छा थारी रे, गाथा-१७. ७९९६९. अजितजिन स्तवन व ब्रह्मचर्याध्ययन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३०). १. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा अजित जिनेसर; अंतिः शीवसुख पामीयो रे लो. २.पे. नाम. ब्रह्मचर्याध्ययन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१६ बंभचेरसमाहिठाणं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचर्यना दश; अंति: उदयविज० गुरु धन्य रे, गाथा-६. ७९९७०. कर्मप्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२.५, १५४३५). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठकर्मनू स्वरूप जाण; अंति: (-), (पू.वि. १५८ कर्मप्रकृति के भेद में से ज्ञानावरणी के भेदों का वर्णन अपूर्ण तक है.) . . . For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ७९९७१. चंदनमलयागिरि रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. ३-२ (१ से २) १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे., (२६X११.५, १८x४७). चंदनमलयागिरि रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ९४ अपूर्ण से १३७ तक है) ७९९७२. समवसरण विचार, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२६.५x१२, १७४२५). भगवतीसूत्र-शतक३०-समवसरण विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाय लेश पखी दिट्ठी, अंति: (-), (पू.वि. ६ठे बोल में से समोसरण ३ लाभे क्रीयावादीवरजीन समदृष्टि १ चार ज्ञान आदि का वर्णन अपूर्ण तक है., वि. सारिणीयुक्त) ७९९७३ वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैये. (२५x११.५, ११-१४४३४-३८). " २० स्थानकतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं २००० अतिः स्थानक विधि इम साचवइ. ७९९७४ आनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५x११, १३x४२). अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहिं., पद्य, आदि मगध देश को राज राजे अंति: सहविमल० गरभावास के, गाथा - २१. ७९९७५. मुहपत्ती सज्झाय व आध्यात्मिक हरियाली, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैवे. (२५.५x११.५, १३X३९). १. पे नाम. मुहपत्ति सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मांडवमंडण युगदीनंद, अंतिः तिविजय कहि धरो विचार, गाथा- १३. २. पे. नाम. आध्यात्मिक हरियाली, पृ. १आ. संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि एक अनोपम सुंदरी रे अति अरथ विचारी कहो एह गाथा ५. ७९९७६. (*) नवकार स्तोत्र व कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. केशवजी पठ. मु. सीभाई ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११.५, ९४२३). " १. पे. नाम. नवकार स्तोत्र, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि उकोसो सज्झाउ चउदस अति: परमपदं तपि पार्वति गाथा ७. ३२३ २. पे. नाम. नवकार कथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नवकार इक्क अक्खर पाव; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ तक लिखा है.) ७९९७७ (+) कच्छप्रमुख ८ विजयगंगासिंधुविषयक यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. 'पंक्ति-अक्षर अनियमित है। कागज को मजबूत रखने के लिये कपड़े का स्तर देकर चिपकाया गया है., संशोधित., जैदे., (२५X११.५, ७X३८). जैनयंत्र संग्रह *, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७९९७८. (+) ज्ञानपंचमी, सीमंधर व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैवे., (२५.५x११. १६४५७). १. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, पू. १अ संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समबसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि पांचम तप तुम करो रे, अंति: पामो पंचम भेद रे, गाथा-५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि पुक्खलवई विजये जयो; अंतिः यशोविजय० भयभंजन भगवंत, गाथा-७. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन- त्रिगडा अधिकारमय, ग. पद्मसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७०९, आदि सिद्धारथ कुल चंदलो; अंति: रे सफल फली मुझ आस रे, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only ७९९७९. गौतमपृच्छा सज्झाय व २५ मिध्यात्व नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२६४११.५. १७५४६). १. पे नाम गौतमपृच्छा सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामी पृच्छा; अंति: वीर पहोता निरवांण, गाथा-३३. २. पे. नाम. २५ मिथ्यात्व नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जीवे अजीव संज्ञा १; अंति: आसातना ते मि०२५. ७९९८० (4) बाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १०x२८). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल चारत लियो जी; अंति: विमलकीरति सुख थाय, गाथा-११. ७९९८१. साधुपद व जीवशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२५४१०, १३४४०). १.पे. नाम. साधुपद सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचोइ इंद्रीजि अहो; अंति: इम भणइ विजयदेवसुरोजी, गाथा-१२. २.पे. नाम, जीवशिखामण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. जीवशिक्षा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सोबत थोडि रे जीव; अंति: जाणो परल पारोजी, गाथा-७. ७९९८२ (+) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र स्तवन व गुरुगण पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४३२). १. पे. नाम, त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरणकमल मनधार; अंति: नमै मुनि वसतौ मुदा, ढाल-५, गाथा-१८. २. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुगुण स्तुति, बं., पद्य, आदि: अहो श्रीगुरुदेवजी ए; अंति: ते सेवक बोले एही. ७९९८३ (+) त्रेवीस पद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अंत में एक नई कृति आरंभ करके छोड़ दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १५४४१). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररतन१ छत्ररतन२; अंति: विना आठ निधी न पामे. ७९९८४. (+) जंबुस्वामी गंहुली व गुरुगुण गंहुली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३-१४४२६-२८). १. पे. नाम. गुरुगुण गुंहली, पृ. १अ, संपूर्ण. __ गुरुगुण गहुंली, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनिद्रा परीहरो रे; अंति: मणीउदोत०मंगलमालो लाल, गाथा-७. २. पे. नाम, गुणसागरसूरि गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोल वरसें संयम लीयो; अंति: आपो आप पीछांण, गाथा-७. ७९९८५ () गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, ८४३०-३२). क्षमाविजय गुरुगुणगहुँली, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सैयर मोरी चंपानगरी; अंति: नित नित आणंद थावे रे, गाथा-१०. ७९९८६. एकादशी, अष्टमीतिथि चैत्यवंदन व सिद्धचक्र आराधना विधि, अपूर्ण, वि. १८७१, आश्विन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४३०). १. पे. नाम. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीरजी बह; अंति: शासने सफल करो अवतार, गाथा-९. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: महा सुदी आठमने दिने; अंति: पद्मनी सेवाथी शिववास, गाथा-७. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र आराधना विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३२५ प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: (-), (प.वि. "नमो चरितस्स ८ लो० २७ ॐह्रीं नमो उस ९ लो० १२" पाठांश तक है.) ७९९८७. (+) गोडीपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४३). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति दे तुं सुमतिमत; अंति: एह धवल धिंग गोडी घणी, गाथा-९. ७९९८८. मनुष्यना ३०३ भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १३४३६). ३०३ मनुष्य के भेद, मा.गु., गद्य, आदि: १५ कर्मभूमिना मनुष्य; अंति: मनुष्य ना हुवै छै. ७९९८९ (+) चोविसजिन आंतरा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १८४३३). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वनाथथी अढाई सय; अंति: अजित निर्वाण. ७९९९०. भाविनीकर्मरक्षित चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५४१०.५, १५४४५). भाविनीकर्मरक्षित चौपाई, मु. नित्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-५ का दोहा-३ अपूर्ण तक है.) ७९९९१. आदि, नेम व महावीरजिन पूर्वभव वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, २२४५०). १.पे. नाम. नेमजिन ९भव वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन ९ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्री नेमनाथ नेहरी, (२)पहिले भवें धननृप; अंति: प्रकास्यो प्रभूई. २. पे. नाम. आदिजिन तेरह भव वर्णन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ आदिजिन १३ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम महाविदेह; अंति: पुत्र आदिश्वर थया. ३. पे. नाम. महावीर २७ भव वर्णन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम महाविदेहे; अंति: (-), (पू.वि. १९वें भव अपूर्ण तक है.) ७९९९२. सिद्धचक्रजी- स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १०x४०). सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमुं दिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७९९९३. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७). पार्श्वजिन स्तवन-जन्मकल्याणक, हिस्सा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रमति गमति हमुने सहेल; अंति: शुभवीर __ वचन सारी रे, गाथा-९. ७९९९४. (#) सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३३). सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा ह; अंति: होज्यो मज चित्त हो, गाथा-९. ७९९९५. रहनेमिराजिमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, ११४३७). रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहनेमी अंबर वीउ; अंति: (-), गाथा-४०, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) ७९९९६ (+) पौषधविधि, मुंहपत्ति के ५० बोल व प्रतिक्रमणसूत्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६४३७). १. पे. नाम. श्रावकनै पोसह लेवानी विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: वांदी पडिकमणौ करीइ. २. पे. नाम. मुँहपत्ती ५० पडिलेहण विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. मुहपत्ति ५० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्रार्थतत्त्वदृष्ट; अंति: त्रसजीवनी रक्षा करू. ३. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमण विधि, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: कुसुमण दुसुमण लोगस; अंति: पछै देवसी पडिकमणौ, (वि. सर्वविधि सार रूप में संकलित है.) ७९९९७. ६२ मार्गणा द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४१०.५, १८४६०). For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ१ इंदिअ२ काए३ जोए४; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संज्ञीजीव सर्वस्तोक१ असंज्ञीजीव अनंतगुणा का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७९९९८. जंबुकुमार चोढालीयो, आर्यदेश नाम व भाविचोवीसी नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १९४४८). १.पे. नाम. जंबुकुमार चोढालीयो, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी चौढालीयो, मु. दर्गदास, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: पुरसादाणी परमप्रभु; अंति: आणंद होय अपारी जी, ढाल-५. २. पे. नाम, आर्यदेश नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. । ___मा.गु., गद्य, आदि: १ मगधदेश राजग्रहीनगर; अंति: केकैदेश सेतंबिकानगरी. ३. पे. नाम. भाविचोवीसी नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. २४ जिननाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रेणिकनोजीव; अंति: भद्रककृत तीर्थंकर. ७९९९९ (+) मृगापुत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९५, फाल्गुन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. रिणी, प्र.वि. हुंडी: मृगापुत्रचौ, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १७४६३). मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: परतिख प्रणमुं वीर; अंति: चरित्र जिनहरषै कियो, ___ ढाल-१०, गाथा-१२७. ८००००. क्षमाछत्रीसी व जीवहितशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: खिमाछ., जैदे., (२५४१२, ११४३५). १. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. जीवहित सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, म.क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासै चिंतवै हिवै; अंति: तोउने मुगति मझार कै, गाथा-१०. ८०००१ (+) केशीगौतम स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. लाधा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १३४३६-३९). केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोइ गणधर प्रणमीइं; अंति: रूपविजय गुण गाय रे, गाथा-१६. ८०००२. सीलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: विजयासेठनी स., जैदे., (२५.५४११, १६x४७-५०). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रे रे समुद; अंति: कुसल नितु नितु जयवरे, ढाल-४, गाथा-२८. ८०००३. ऋषभजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ८४४५). आदिजिन पद, म. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आज भले दिन रसीया हो; अंति: जोडी हरष शशि पांण, गाथा-५. ८०००४. (#) सीमंधरस्वामी स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६०, चैत्र कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३३). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, म. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरजी सुणज्यो; अंति: लालचंद० ए अरदास रे, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सोजत, म. केसर, पुहिं., पद्य, वि. १८४२, आदि: पासजिणेसर साहिबा; अंति: फलीय मनोरथ मालजी, गाथा-८. ८०००५. नेमनाथ बारमासा व स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६१, चैत्र शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कालावड, जैदे., (२६४१२, १५४३२-३५). For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३२७ १. पे. नाम. नेमराजुल बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: आसाढ ससवाडे जोनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, म.प्रेममनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन नेम मनावीया; अंति: प्रेममुनि सुख पाय, गाथा-७. ८०००६. शेव्रुजानी विनती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १३४३२-३५). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेजूंजा; अंति: जिनहर्ष० पापीने तार, गाथा-२०. ८०००७. रावणमंदोदरी संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १०x४३-४६). रावणमंदोदरी संवाद, श्राव. छज्ज, पुहिं., पद्य, आदि: पीया कहना मेरा मान; अंति: छज्जुनै अर्ज गुजारी, गाथा-४. ८०००८. दोहोरा कवित्त, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्रावि. मूली, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १६x२३-२६). औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: विनदरिसण उकलात हुं; अंति: भली मीठी एहि ज रिति, गाथा-१४, (वि. १२ योधा बराबर एक गोधा आदि उपमायुक्त वीरजिन बलदर्शक कवित्त भी है.) ८०००९ (4) गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १९४३३). गुरुगुण गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: या गरु जीव गरुया गणा; अंति: मत कोई करजो रीसो जी, गाथा-२५. ८००१०. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२६४११.५, १७४२९). नेमिजिन स्तवन, म. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु समदविजय सुत; अंति: (-), ,पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ तक लिखा है.) ८००११ (-#) मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ९४३२). मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुरुदेजी माताजी इम; अंति: उवजाण रुपवीजय गुणगाय, गाथा-७. ८००१२. प्रत्येकबुध चउढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १८४४२-४५). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली हुँ; अंति: हो पाटण प्रसिद्ध, ढाल-५. ८००१३. नेमिजिन छंद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, जैदे., (२६४११.५, १४४३४). नेमिजिन छंद, मा.गु., पद्य, आदि: गोल गलो नि साकर भेली; अंति: परणेवानो ए मोटो०, गाथा-२०, संपूर्ण. ८००१४. सज्झाय व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. कर्मसी ऋषि; पठ. मु. त्रिकमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६-१९४४५). १.पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो नेम नमि करी; अंति: वली करु प्रणाम रे, गाथा-१६. २.पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राजिमती नेम भणी चाली; अंति: राजुल जंपइ इम, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने ८वीं गाथा लिखकर कृति सम्पूर्ण कर दी है.) ३.पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: नींदरडी वइरणि होइ; अंति: हो मुनि कनकनिधान, गाथा-८. ८००१५. भगतिवेलि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. धर्मसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: वेलि., जैदे., (२६४११.५, १६x४७-५०). For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक बावीसी, मु. भालण, मा.गु., पद्य, आदि: भगति करो भूधरनी; अंति: भालण जन जिवू गाए, गाथा-२२. ८००१६. (4) नवकार, करकंडुराजर्षि व कलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १२४३२-३६). १. पे. नाम. नवकार स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: गुणप्रभ० सीस रसाल, गाथा-१३. २. पे. नाम. करकंडुराजऋषि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. करकंडमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुं; अंति: समयसुंदर०पातक जाय रे, गाथा-५. ३. पे. नाम, कलावती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. कलावतीसती सज्झाय, मु. यादव ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: ऋषि यादव जयकारो रे, गाथा-२३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र अन्तिम गाथा लिखी है., वि. अन्त में बीसवीं गाथा का प्रारंभिक अंश लिखकर छोड़ दिया है.) ८००१७. रथजात्रानो वरघोडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, ११४३८-४२). जलयात्रा वरघोडा स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हवे सामग्री सवी सज; अंति: शुभवीर० धरमनी टेक, गाथा-१५. ८००१८. अक्षयनिधितप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १२४३२-३५). अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., प+ग., आदि: श्रावण वदि ४थकी; अंति: वीस खमासमण देवरावे. ८००१९. इरियावहीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १२-१५४३६-४०). १.पे. नाम. पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इरियावही क्षमापनाभेद, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १५ परमाधामी १० भुवन; अंति: मिच्छामी दुक्कडं देई. २. पे. नाम. अष्टभंगी यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ८००२०. विहरमानजिन स्तवन द्वय व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १२४२७-३०). १.पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ.१अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: महाविदेहावनिमंडलश्री; अंति: इह संतो ते अहं वंदे, श्लोक-७. २. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. २० विहरमानजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: सीमंधरो१ जुगंधर२; अंति: इह संतो ते अहं वंदे, गाथा-४. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः यस्यांबुकणमादाय; अंति: गर्जन मेघ न लज्जसे, श्लोक-१. ८००२१. शालिभद्र सज्झाय व मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४३६-४०). १. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण... शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक वच्छ घरि आवइ; अंति: कीजइ ए मात सुभद्रा, गाथा-९. २. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: एकदिवस श्रीउलगिरिवरि; अंति: यण मुनि अग्यारसि जाण, गाथा-९. ८००२२. (+#) शनिश्चर छंद व धर्मनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४५). १.पे. नाम. पनौती शनिश्वर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. वेलजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जगि जयउ; अंति: वली वली एमि वखाणीयई, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३२९ २. पे. नाम. धर्मनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. मु. जेठा ऋषि; अन्य. मु. नानजी ऋषि; मु. वेलजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-धर्ममहिमा, मा.ग., पद्य, आदि: समरिसि निज मनि सारद; अंति: साधु सवै तेणी परिभणइ, गाथा-१०. ८००२३. (+) चोत्रीस अतीशय स्तवन, संपूर्ण, वि. १७०१, फाल्गुन कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कालावाड, पठ. श्रावि. पोहती बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: स्तवन., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४२६). ३४ अतिशय स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल श्रीअरीहंत चलणे; अंति: मुगति पामि ते सही, गाथा-१९. ८००२४. (+#) औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक के द्वारा एक औपदेशिक दोहे का अन्तिम पद लिख दिया गया है., पदच्छेद सुचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ३७४२८). १.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-गुंजा, मु. उदयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: इक इक दिनि रे गुंजा; अंति: उदयसागर० गुंजा तणी, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कालीमानामाह्या माही; अंति: कालोयं पंचमारकाः, श्लोक-१. ३. पे. नाम, यशकीर्ति गुणवर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. क. भाण कवि, मा.गु., पद्य, आदि: गुण प्रबल बहु जाणीवा; अंति: भाण० जसकीरति वंदीइं, गाथा-१. ४. पे. नाम. वीशा यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह, मा.ग., को., आदिः (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण... सं., पद्य, आदि: यं शैवाः समपासते; अंति: त्रैलोक्यनाथो हरिः, श्लोक-१. ८००२५. अरहन्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४४२-४५). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन्य धन्य जननी बे; अंति: लब्ध० गुण आगम सुणी, गाथा-१८. ८००२६ (+) प्रतिक्रमण सज्झाय व वासुपूज्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३७-४०). १. पे. नाम, प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गोयम पूछे श्रीमहावीर; अंति: भविजन भवजल पार रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. वासुपूज्य स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वासपूज्यजिन स्तवन, म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो; अंति: जंपें इम जिनराजो रे, गाथा-५. ८००२७. शीलव्रत सज्झाय व सीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १८x२२-४८). १. पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. शीयलव्रत सज्झाय, ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: सीयल सीयल सीरोमणी; अंति: राखो सीयल सुरंग, गाथा-७. २. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: वारी रे जिणेसरराय; अंति: वारी रे जिनेसर राय, गाथा-९. ८००२८. औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १६-२७४१६-२०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतन प्राणीया; अंति: केसव०वात तणो एह मर्म, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: काया हंस विना नदी जल: अंति: जीवलोके सर्गा भवंती. श्लोक-३. ३. पे. नाम. दिल्ली वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: पृथ्वीनाथसुता भुजि; अंति: सोयं महाभिग्रहा, श्लोक-१. ८००२९ (#) सज्झाय, गीत व भास संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४३७). १.पे. नाम. केशवगुरु भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन मुखि सरसति; अंति: प्रेममुनि गुण गाय, गाथा-६. २.पे. नाम. केशवगुरु भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे गुरु तुम्ह दरसन; अंति: प्रेम० पावन हुं थाउं, गाथा-४. ३. पे. नाम, उदायननृपविनती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, म. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर वेगे आवणारे; अंति: प्रेम० गुण गावणारे, गाथा-६. ४. पे. नाम. उदायननृपमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उदाईनृप सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सिंधु सुवीर सुदेसमइ; अंति: प्रेममुनि सुखदाय, गाथा-८. ८००३०. शीतलजिन स्तवन व सीताजीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. लाधाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: स्तवनं., जैदे., (२६४११.५, १३४३६). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सहजसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: शीतल जिनवर सेवीये; अंति: सहजसागर० गुणगाय, गाथा-१२. २. पे. नाम, सीतासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: नित होजो परिणाम, गाथा-७. ८००३१ (#) जैन गाथा व जीवप्रतिबोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १७४३६). १.पे. नाम. जैन प्राकृत गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह जैन*, प्रा., पद्य, आदि: दुन्निसयकोडाकोडि; अंति: पढमजिणाओ दुस्सद्धा, गाथा-१. २. पे. नाम. आत्मशिक्षाना दुहा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक दुहा, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रे अभिमानी जीवडा इम; अंति: पासचंद०मनि धर्म सनेह, गाथा-२३. ८००३२. पार्श्वनाथ स्तवन व ४२ गोचरी दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४३८-४२). १.पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वजिन सौख्य; अंति: ईप्सिताया प्रसिद्धा, श्लोक-१२. २.पे. नाम. ४२ गोचरी दोष, पृ.१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १ देसिअ २; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-६.. ८००३३. (#) धन्नाअणगार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३०-३५). धन्नाकाकंदी सज्झाय, श्राव. संघो, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती सामिन वीनवू; अंति: पाम्यु अणुत्तर विमान, गाथा-१४, (वि. कुछ गाथाओं में व्यतिक्रम है.) ८००३४. क्षमाछत्रीसी, अपूर्ण, वि. १७३२, श्रावण कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. रायचंद (गुरु मु. गेहाजी ऋषि, गुर्जरगच्छ); गुपि. मु. गेहाजी ऋषि (गुरु मु. ज्ञानसागर *), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३३-३६). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ८००३६. (4) पंचमहाव्रत व रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १०४३५-३८). १. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे; अंति: भणे ते सुख लहैं, ढाल-५. २. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन त्याग सज्झाय, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरमन सार ते; अंति: कांति० धन अवतार रे, गाथा-६. ८००३७. (#) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, चैत्र शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. धोराजी, प्रले. मु. तेजसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १५४३२-३६). पार्श्वजिन स्तवन, मु. कहान ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: श्रीपरमगुरु पाय प्रण; अंति: हो जिम अधिक उत्साह, ढाल-५. ८००३८. सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-६(१ से ४,६ से ७)=३, कुल पे. ५, जैदे., (२५४१२, १२४३०). १.पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८८२, चैत्र कृष्ण, ९, रविवार, ले.स्थल. भाउगड, प्रले. पं. ऋषभसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रविचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: शिस कहै रविचंद ए, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमनाथजी की बारमासी, पृ. ५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन बारमासा, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सखी हे साभल हे तु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. ८अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु.जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: मलजी ग्यान की वैनां, गाथा-५, (पू.वि. अन्तिम गाथा अपूर्ण मात्र ४. पे. नाम. सीताजीरी सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: झलझलती मलती घणी रे; अंति: प्रणमीज्ये पाय रे, गाथा-१०. ५. पे. नाम. भुलो मनभमराकी सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांई; अंति: सांभल लीज्यो रे साथ, गाथा-८. ८००३९ (#) आदिजिन विनतीस्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५,१०४३२). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जइ पढम जिणेसर अति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३९ तक है.) ८००४० (+) चरचाना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: चरचाना प्रश्न., संशोधित., दे., (२५४१२, १८४६२). बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय अधर्मा; अंति: उद्देस सातमे छे. ८००४१ (+#) १७० जिनस्थानक यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २७७५५). १७० जिनस्थानक यंत्र, सं., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थानक-७१ तक है.) ८००४२. (#) सीलाधिकार व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४९, पौष कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ८-५(१ से ५)=३, कुल पे. ३, ले.स्थल. कांटारिया, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम अवाच्य है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३३). १. पे. नाम. सीलाधिकार, पृ. ६अ-८अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कान्हडकठियारा रास- शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि (-); अति मानसागर० दिन वधते रंग, ढाल-९, (पू.वि. ढाल - ६, गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे नाम चउदविद्या लोक, पृ. ८आ, संपूर्ण. १४ विद्या नाम, सं., पद्य, आदि ब्रमशिन रसायनं अंतिः कुर्वंतु नो मंगलम् श्लोक-१. ३. पे. नाम. चउदरतन श्लोक, पृ. ८आ, संपूर्ण. १४ रत्ननाम श्लोक सं., पद्य, आदि लिक्ष्मी कोस्थभ, अंतिः कुर्वंतु नो मंगलम् श्लोक-१. 2 ८००४३ (+) दंतजिह्वानासिकानयणकर्ण संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. सीणोर, प्रले. पं. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: दंतजि० संवाद., संशोधित., जैदे., (२५X१२, १४X३५-३८). जिभावंत संवाद, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि वीर जिणेसर पाए नमुं अंति नारायण० पामो भवपार, गाथा-५८. ८००४४. (+) निरागार-आगार पच्चक्खाण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : आवश्यक., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६x११.५, १२X३६). निरागार-आगार पच्चक्खाण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हवि छठउ अध्ययन; अंति: ए आगार जाणवा राखे तो. ८००४५. राइपडिकमणा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६x११, ९x२९). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिस्सह, अंति: (-), (पू.वि. नमोत्थुणं पाठ तक है.) ८००४६. (+) अर्बुदाचलतीर्थ स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, ले. स्थल. पाली, प्रले. पंडित, गौडीदत्त पठ. श्राव. फत्तू. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी स्तवनपत्र, संशोधित, जैदे. (२५.५४१२, १४४३३). १. पे नाम. अर्बुदाचलतीर्थं स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. गाथा - २१. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रीडा भाई आबूडानी; अंति: आवै रूपचंद बोलै रे, २. पे नाम. पार्श्वलघु स्तवन, पू. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसीमंडन, मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय हो तिहुअण राया; अंति: रूप गुनी गुन गायाजी, गाथा-७. ३. पे नाम. शेत्रुंजय स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारौ सोरठ देस दिखावा; अंति: ज्ञानविमल० सिर धरीया, गाथा-७. ४. पे. नाम. आत्मप्रबोध सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. उपा. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि जीवडा हे कुण इतली; अति रूपचंद० पामौ भवपार, गाथा-२१. ८००४७ (क) २४ तीर्थंकर नामादि विवरण कोष्ठक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११, २६x१५-२२). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: श्रीऋषभदेवजी १; अंति: (-), (पू.वि. १८वें जिन तक का वर्णन है.) ८००४८. गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८२० वैशाख शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १५-१२ (१ से १२) ३, प्र. मु. श्यामल ऋषि (गुरु मु. रुघनाथ ऋषि); गुपि मु. रुघनाथ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी गुणावली., जैदे. (२६५११, १७x४५-४८). गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि (-); अति: (-). (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २२ का दोहा - १ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने ढाल २८ की गाथा-९ तक लिखकर कृति समाप्त कर दी है.) For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३३३ ८००४९ (मैं) महावीरजिन पारणा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, , जैदे., (२६X१०.५, ९x२५-२८). महावीर जिन स्तवन- पारणागभिंत, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण अति: (-), (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण तक है.) ८००५० (+) आत्मानुशिक्षा गीत, संपूर्ण वि. १८६५, वैशाख शुक्ल, ७, मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x११, १५X४०). औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि भजि भजि भजि भगवंत अति ज्युं पामुं संसार, गाथा-२६. ८००५१. अबोलानु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X१२, १०X३२). साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु, पद्य, आदि जीव जीवन आधार अबोला, अंति: अनंत गुण गुणवंता, गाथा - ११. ८००५२. पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १२-११ (१ से ११) -१, कुल पे ४ जैदे. (२६१२, १२३२-३६). 3 , १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे इतनो चाहिये; अंति: विन और न ध्यावुं, गाथा-३. २. पे नाम साधारणजिन पद, पू. १२अ, संपूर्ण, मु. मालदास, पुहि., पद्य, आदि भले मुख देख्यी अंति भव भव हुं तुम्ह चेरी, गाधा-३ " ३. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पू. १२अ संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कुशल गुरु देखतां; अंति: शरण मोहि दीज्यै, गाथा-३. ४. पे. नाम जिनकुशलसूरी गीत. पू. १२आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, रा., पद्य, आदि हुं तो मोही रह्यो जी; अति जी रंग घणे राजिंद, गाथा-४. ८००५३. भावपुजा व चैत्यमति प्रश्नावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५x११.५, १३X३५). १. पे. नाम. भावपुजा, पृ. १अ, संपूर्ण. भावपूजा स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि श्रीश्रुतदेवी प्रणमी अंति: मेघमुनि० अहेनि सेव रे, गाधा-८. २. पे. नाम. चैत्यमति प्रश्नावली, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ३५ प्रश्न- चैत्यमति हेतु, मा.गु., गद्य, आदि: चैतमतिने पुछवानो; अंति: सरीरी क अचरम सरि.. ८००५४. मोक्षतत्त्वना भेदो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८)=१, ले. स्थल. धरोल, प्रले. पं. प्रभुकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल. ३१५, जैदे. (२५.५४११.५, १३४४५-४८). नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: गणतां संपत्ति कोडि, डाल-९, गाथा २०४, (पू.वि. डाल- ९, गाथा - १४ अपूर्ण से है.) ८००५५. अजितजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८९९ श्रावण शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६४११, १२४३६). 3 अजितजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरथमा अजोध; अंति: हुं प्रणमु क्रिपानाथ, गाथा - १९. ८००५६. (+) निसाल गरणुं, संपूर्ण, वि. १८९९, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५४११, ११४३२-३६). " महावीर जिन स्तवन- निसालगरणुं, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभोवनजीन आणंदसु अति सामिने पाय नमि रे, गाथा २०. ८००५७. स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ४ वे. (२५x११.५, १५X३६-३९). १. पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि नीलकमल दल सावरो रे, अति तुह वस्यो रे लाल, गाथा-७. २. पे नाम. चेतनराज सज्झाय, पू. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाब स्वार्थ परिहार, मु. नग, पुहि., पद्य, आदि धोरे दिन का जीवन अंतिः स्वारथ को संसार, गाथा- ७. For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. एकादशी सज्झाय, पू. २आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि : आज एकादसी रे नणदल; अंति: उदयरतन० लीला लहेसे, गाथा- ७. ४. पे. नाम. सुई से मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण, मंत्र संग्रह, मा.गु, गद्य, आदि ओम नमो आवेशगुरु; अंति: जीघराव सुई मंत्र री. ८००५८. अष्टमीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५. ५X१२, १०X३२-३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टमीतिथि स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७१८ आदि जय हंसासणि सारदा, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२, गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) " ८००५९ (#) चौदस्वप्न स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११, ११५२८-३२). १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पहलीने वले प्रणमु हो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-७ अपूर्ण तक है. वि. गाथांक २ तक का उल्लेख ही मिलता है. परिमाण अनुमानित है.) ८००६०. आदिजिन, ऋषभजिन स्तवन व महावीरस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. गोपालजी खत्री; पठ. सा. मीठीबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१२, १६x४५). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-त्रिलोकीपातसाह ऋद्धिवर्णन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: भरथजी क सुणो मावडी अंति संघने कोड कल्याण रे, गाथा १६. २. पे नाम, ऋषभदेव स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. - आदिजिन स्तवन, मु. जेठा, मा.गु., पद्य, आदि रीषभ जीणेसर समोसर्वा: अंति: दास जेठो गुण गाय हो, गाथा १२. ३. पे. नाम, महावीरस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनवर अवतर्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ७ अपूर्ण तक है.) ८००६१. ऋषभदेवस्वामीनु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. आंबामाडण खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, देवे. (२६११.५, ७X३५). आदिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आज आनंद वधामणां; अंतिः सेवना करी सुजश उपायो, गाथा-५. ८००६२. त्रेवीसपदवी सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५X११, १४X३८). १. पे. नाम. त्रेवीस पदवी, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. २३ पदवी सज्झाय, मु. कान्ह शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि सांतिकरण जिनवर नमुं अंतिः भणज्यो चतुर सुजाण, गाथा - २१. २. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वडपणनि विचारी जोयो; अति परि बडो रे वडपण, गाथा ५. ८००६३. (+४) सर्वार्थसिद्ध व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १६८३, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, दीव, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६११, १३४३३-३६). १. पे. नाम. सर्वार्थविमानमुक्त फलसंग्रह स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु., पद्य, आदि सरवारथ सिद्ध चंडुङ्ग अति धनहर्ष० परि वाणी रे, गाथा ११. २. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, सु. धनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि उग्रसेन कीधू आजंप, अंति: धनहर्ष० संयम लीनो रे, गाधा-६८००६४ औपदेशिक सज्झाय व वत्रीस अनंतकाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैदे. (२५x११.५. १३X३२-३५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३३५ औपदेशिक सज्झाय-कपट परिहार, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पुरुष एक जगि ऊपनु; अंति: वाधसि सीख कहि जिनचंद, गाथा-१३. २. पे. नाम. ३२ अनंतकाय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सूरण १ नीली हलद्र २; अंति: आलू ३१ पिंडालू ३२. ८००६५. हरियालीनी सज्झाय व शांतिनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३६). १. पे. नाम. हरियालीनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण... नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहजो चतुरनर ते कुण; अंति: कहे बुद्धि सारी रे, गाथा-५. २.पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति सुहंकर साहिबो; अंति: तो कवि वीर ते जाणे, गाथा-४. ८००६६ (+#) १४ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४४३). १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देवतीथंकर केरिय माता; अंति: लावण सामय भणयई, __ढाल-४, गाथा-२०. ८००६७. (4) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३२). नवपद पूजा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ज्ञानपद पूजा अपूर्ण से अन्तिम दोहा अपूर्ण तक है.) ८००६८. मनगुणतीसी व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १८४३३-३६). १. पे. नाम. मनगुणतीसी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. गणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा म मेले रे ए; अंति: पाप प्रणासे रे दर, गाथा-२९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रा., पद्य, आदि: खबर कर देणौ दीजै रो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८००६९. जंबुकुमार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, आश्विन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, प्रले. मु. कानजी ऋषि (गुरु मु. भाणजी ऋषि); गुपि. मु. भाणजी ऋषि (गुरु मु. जयचंद्र ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ११४४३). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: नित नित कोडि कल्याण, ढाल-३५, गाथा-६०८, (पू.वि. ढाल-३५, गाथा-२ अपूर्ण से है.) ८००७०. पार्श्वजिन, महावीरजिन व बाहुजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १२४२५-२८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम- श्रीअरनाथनूं तवन लिखा है. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर; अंति: मुजने भवसागरथी तारो, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. दुर्गदास, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वारु वायक; अंति: दुरगदास० सीवपुर सीर, गाथा-६. ३. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साहिब बाहु जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक ८००७१. प्रवचन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३३, पौष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, १३४३२-३५). औपदेशिक सज्झाय-प्रवचन प्रभावना, म. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचननी परभावना; अंति: हां रे प्रणमे जिनदास, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८००७२. नेमराजिमती व ज्ञानपंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. कोटानगर, प्रले. मु. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १२४३४). १. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नेमि बी मुगत पधारे, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ज्ञानपंचमीरो स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ८००७३. सात भय, आठ मदादि बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १४४४८-५२). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सत्तहिभयठाणाहि इहलोक; अंति: सम्यक्त्व परीषह, संपूर्ण. ८००७४. (#) शीयलवंतीसतीने शीखामण, संपूर्ण, वि. १९२०, वैशाख कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नौतनपुर, प्रले. मु. खोडाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १२४४२). औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, म. खोडीदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: निसुणो सकल सोभागणि; अंति: जोडी __ ऋषि खोडीदासे, गाथा-१७. ८००७५. ज्ञानपंचमी स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, १०४३२-३५). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं ___ हैं., ढाल-४, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८००७६. जैनविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५६, वैशाख कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, ले.स्थल. पाटणनगर, प्र.वि. *श्रीपंचासरा प्रसादात्., जैदे., (२५४११.५, १५४५०). जैनविधि संग्रह*, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: मिच्छामीदक्कड दीइ, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अतिथिसंविभागव्रत अपूर्ण से है.) ८००७७. (#) गुरुगुण सज्झाय व कका बत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४०-४४). १. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, पुहिं., पद्य, आदि: करता विन्नवि गुण कहु; अंति: कहि केवल धरमति कोय, गाथा-८. २. पे. नाम. ककाबत्रीसी, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कक्काबत्रीसी, मा.ग., पद्य, आदि: कका कहि ज्ञान पढीजै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ८००७८. दादाजी गीत व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३०-३४). १. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुसलसूरीसरू; अंति: नितप्रतिवंदना जाणोजी, गाथा-८. २. पे. नाम. दादाजी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दादोजी म्हारै परतिख; अंति: रूपचंद० दादा जस लीयौ, गाथा-७. ८००७९. कुमारपाल परिग्रह परिमाण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२,१५४३७-४०). कुमारपालराजा परिग्रह परिमाण, मा.गु., गद्य, आदि: ७२ राजा आपणी आणमना; अंति: ५०० ग्राम दीधां. ८००८० (#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४०-४५). १.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तिअहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३३७ २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशचंजयमंडण; अंति: नंदसूरि पाय सेवता, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरप्रभु स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ४. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जन मन वंछिअसारै, गाथा-४. ५. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदु पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८००८१. पद्मावती आलोयणा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, ११४२८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-३४ तक है.) ८००८२. पार्श्वजिनस्तवन द्वय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, ११४३२-३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रत्यापूरण प्रगटो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम, शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-साधुसंगति, मु. रुपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल भोला प्राणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८००८३. चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. उदयविजय (गुरु पं. सकलविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: चित्रसंभूतसझाय, जैदे., (२५.५४११, १२४३७). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय; अंति: ते सिवपद वरसी हो, गाथा-२०. ८००८४. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, ९४३३). सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा; अंति: ज्ञानविमल० हवे थाय, गाथा-७. ८००८५. चारमंगल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १२४४०). समर्छिम मनुष्योत्पत्ति १४ स्थान सज्झाय, म. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सहिरु मंगल गाईए; अंति: पद्मविजय०ठामो ठाम रे, गाथा-९. ८००८६. (+) जीरणसेठ व धन्नाअणगार सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ११४३०). १.पे. नाम, जीरणसेठनी सज्झाय, प. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: तेहने नमे मुनि माल, गाथा-२९. २. पे. नाम, धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वैरागीयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८००८७. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२६४१२, १०४३६). For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-४३. ८००८८. (#) मौनएकादशी स्तवन व अरणकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १६x४४). १.पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लह्यो मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५. २. पे. नाम. अरणकमुनि सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अरणिकमनि सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८००८९ (+#) नेमनाथ व शंखेश्वरपार्श्व भ्रमरगीता, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. पत्तननगर (पाटण), प्रले. मु. मेघमुनि (तपागच्छ); पठ. मु. ऋद्धिविजय (गुरु ग. सत्यविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. सत्यविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४५-४८). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्व गीता, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी कल्प; अंति: जिणवर तणी राजगीता, गाथा-३६. २. पे. नाम. नेमनाथभरमर गीता, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समुद्रविजय कुलचंदलो; अंति: प्रभु तणा सानुकुल, गाथा-२७. ८००९० पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९४६, फाल्गुन शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मांडलग्राम, प्रले. __ सांकलेश्वर महेश्वर व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: जीवरा०, दे., (२५४१२.५, १२४३०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर०छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३३. ८००९१ (4) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे.७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३७). १. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पं. आनंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिनेसर; अंति: आनंदजय भरि गाया, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, पं. आनंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनमरत पास विराजै; अंति: खासौ जोभव रहत निरासौ, गाथा-५. ३.पे. नाम. पार्श्वपदजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. __पार्श्वजिन स्तवन, पं. आनंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऐ तो श्रीजिनपास; अंति: श्रीपारस जिनतार, गाथा-९. ४. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. आनंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अधिपति मारो नेम; अंति: पद विस्तारा रे, गाथा-५. ५.पे. नाम. पार्श्वनाथ पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, पं. आनंदविजय, मा.ग., पद्य, आदि: पास जिनंद सदा; अंति: आनंदविजै रस छाजै, गाथा-४. ६. पे. नाम. संभवजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.. पं. आनंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडलीजै रे संभव; अंति: आनंद० दिन ताहरै नाम, गाथा-५. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथ पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ पार्श्वजिन स्तवन, पं. आनंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज आनंद दे हो सोभागी; अंति: आनंद० गुहि रसनूर, गाथा-१३. ८००९२. (2) कुबेरदत्तकुबेरदत्तानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पेथापुर, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, ११४२९). कुबेरदत्तकुबेरदत्ता सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलाने समरुं रे पास; अंति: ऋद्धिविजय०नवनिधि होय, ढाल-३, गाथा-३०. ८००९३. रामतिआलाचेला प्रबंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५४११.५, १३४३५-४०). फूलडा सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, आदि: बाई हे मै कोतिग दीठो; अंति: शिष्य इम भणइ हे, गाथा-२२. फूलडा सज्झाय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर मुगति; अंति: सुखइ सुखीउ थयउ कहइ. ८००९४. (+) परमात्मा स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२-३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण तक है.) ८००९५ (+) स्तवन, पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, २०४५२-५७). १. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. म. संदरजी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदिः यादव वंशी नेम जिनेसर; अंति: संदर०दोउ चरणां दावै, गाथा-१६. २.पे. नाम. नमस्कारपंचपद बारमासा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: नमस्कार पंचपदकुं; अंति: काल की समझो सब नरनार, गाथा-१४. ३. पे. नाम. पांडव पांच महाबल, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पांडव संयमव्रत सज्झाय, मु. कुशलमुनि, पुहिं., पद्य, आदि: पांडव पांच महाबलवंता; अंति: कुशल सदा सुखकारी, गाथा-१०. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-गुरुभक्ति, मु. परमानंदजी, पुहि., पद्य, आदि: आज चेतन घरे आवे हे; अंति: परमानंद गुण गावे, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मेरा नेमजी एकगल आखण; अंति: वात न रही कोइ छांनी, गाथा-६. ६.पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: रानी राजुल कर जोडी; अंति: वीनतडी श्रीकार, गाथा-१५. ७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पाय पडं वीनती करूं; अंति: कहे जीनहर्ष विचार, गाथा-५. ८. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.., पद्य, आदि: समुदविजैजीरो लाडिलो; अंति: होजो वारंवार, गाथा-१२. ९. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: सुस्ती मेरी अंखीया; अंति: आवागमण दुरी करीयां, गाथा-१२. १०. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, प्र. ३अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अजी तुम भज लो; अंति: हुं रहुं चरण मझार, गाथा-४. ११. पे. नाम, नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वेरागे संयम लीयोजी; अंति: वरत्या जयजयकार, गाथा-१३. १२. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहिं., पद्य, आदि: उगतडां प्रभातजी पास; अंति: नहीं पेरांलाय खमाइये, गाथा-४. १३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: क्युं गाफल हरिनाम; अंति: वरत्या हक मर जाणा, गाथा-१०. ८००९६. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८७९, कार्तिक कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पृथ्वीराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: पडिकमणौ., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४५-४८). साधप्रतिक्रमणसूत्र-तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: इच्छामि णं भंते; अंति: मिच्छामि दक्कडम्. ८००९७. (2) आध्यात्मिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४४२-४५). आध्यात्मिक सवैया संग्रह, मु. हीरालाल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: श्रीमहावीरजी के अहो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सवैया-२८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८००९८. साधुवंदना व देवताआयुष्य विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. श्राव. देवकरणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १९४४०-४५). १.पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: पै सम उठीया भावसे; अंति: ते पावै सुख खेमो ए, गाथा-८४, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) २. पे. नाम. देवता आयुष्य विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. देवादिगति आयष्यबंध विचार बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सौ वरसना केतला; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक __ द्वारा अपूर्ण., अन्त के कुछ भाग नहीं लिखे हैं.) ८००९९ (+) लब्धि के २१ द्वार २२२ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ३, प्र.वि. हंडी: लद्धिपत्र, संशोधित., जैदे., (२४.५४११, २७-३०४३७-६२). २२२ बोल-लब्धि २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव१ गइ२ इंदिय ३काय; अंति: अनंतगुणा० पूर्ण थयौ, (वि. सारिणीयुक्त) ८०१००. माणसभवउत्पत्ति भास, मृगावतीचंदनबाला गीत व जंबूस्वामी भास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, ९४२७). १. पे. नाम, माणसभवउत्पत्ति भास, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक भास-मानवभव उत्पत्ति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चेति न चेति न प्राणी; अंति:न्नसूरि०लीजइ भवलाहार, गाथा-३०. २. पे. नाम. मृगावती चंदनबाला गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मृगावतीसती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंद सूरज वीर वांदण; अंति: समयसुदर० जाइ पाप, गाथा-४. ३. पे. नाम, जंबुस्वामी भास, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी भास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जाउं बलिहारी जंबू; अंति: नाम जपुं नीसदिस, गाथा-४. ८०१०१ (4) शालिभद्रमुनि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-११(१,३ से ११,१३)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२६४११, १६x४३-४७). शालिभद्रमुनि चौपाई, म. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पूर्ववृत्तान्त ढाल-१, गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-३, गाथा-१० अपूर्ण तक, धन्नावृत्तान्त नरभव अस्थिर प्रसंग से जीव धैर्यहीन प्रसंग व संयम ग्रहण विषयक पति-पत्नी संवाद अपूर्ण तक है.) ८०१०२. पद व लावणी संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. १३, प्र.वि. लावणीपद क्रम-४ से १८ है., दे., (२६४१२,२०४६०). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३४१ मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनदास०अनुभव पद भायो, गाथा-४, (पू.वि. पद-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. राजिमतीसती विलाप लावणी, पृ. २अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: दगा दे गया पति; अंति: करे जिनदास सेव तारी, गाथा-४. ३. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, रा., पद्य, वि. १७वी, आदि: मन सुण रे थारी सफल; अंति: जिनदास० मन नही मावं, गाथा-५. ४. पे. नाम, गौतमगणधर लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: अब सदा नमु सरसति तेर; अंति: अरदास रखो मेरी पतकुं, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तु उलजो जंजाल जगत मे; अंति: कीयो नही पुन एक रती, गाथा-४. ६. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: आप समज का घर नही; अंति: माल मुलकको ठग खावे, गाथा-४. ७. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सजन विना गुना तजी हम; अंति: जीनदास० प्रभु हमकुं, गाथा-४. ८. पे. नाम. कुगुरुपरिहार पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: आयो अब सम्यक्त्व के; अंति: मन ब्रह्मा हर में, गाथा-४. ९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: मे नित नमाउं सीस साध; अंति: जिन० चाहूं दरसण कू, पद-४. १०.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: गेंला काय गुमान करे; अंति: परभवसु रति न डरे रे, गाथा-४. ११. पे. नाम. आध्यात्मिक लावणी, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: प्राणी क्यो विषयनसुं; अंति: जिनदास० माग्यो रे, गाथा-४. १२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तेने केसी फकीरी करी; अंति: आत्मा रती न डरी रे, गाथा-४. १३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-फकीरी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तेने एसी फकीरी करी; अंति: जिनदास० रती न सरी रे, गाथा-४. ८०१०३. (+) चंदनबालासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:चंदनबा., संशोधित., जैदे., (२६४१२, १६x४४). चंदनबालासती सज्झाय, मु. दुर्गदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं मंडल नीलतन म; अंति: दुर्गदास नाम सुखकंदा, ढाल-१३. ८०१०४. (+) गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. १०, प्र.वि. गीतक्रम ७ से १६ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २४४५३). १. पे. नाम. जंबूस्वामी गीत, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नित नित करुय प्रणाम, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, मृगावतीसती गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण.. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंद सूरज वीर वांदण; अंति: समयसु० लीयं जायइ पाप, गाथा-४. ३. पे. नाम. स्थुलिभद्र गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आवत कही मुनि भेखि दे; अंति: स्थूलिभद्र ऋषिराय के, गाथा-३. ४. पे. नाम. अरहन्नकमुनि गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४२ www.kobatirth.org कैलास [श्रुतसागर ग्रंथ सूची अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विहरणि वेला रिषि; अंति: समयसुं० ध्यानइ तेहनउ, गाथा-७. ५. पे. नाम. सुकोशलसाधु गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. सुकोशलमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि साकेत नगर सुखकंद रे, अंतिः समयसु० प्रणमझ पाय रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ६. ६. पे. नाम नमिराज गीत, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथीला नगरीनो; अंति: समयसुं० पामीजइ भवपार, गाथा- ७. ७. पे नाम. चिलातीपुत्र गीत, पू. ३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः पुत्री सेठ धन्ना तणी, अंति: समयसुंदर गुण गावइ रे, गाथा- ६. ८. पे. नाम. खंदकसूरिशिष्य गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, आदि: खंदकसूरि समोसर्या रे अंति समयसुंदर० त्रिकाल रे, गाथा-५. ९. पे नाम. चेलणासती गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थका अति समयसुंदर० भवतणो पार, गाथा-५. १०. पे. नाम. स्थलिभद्रमुनि गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रियउडा मानु बोल हम; अंति: कहइ प्रणमुं पाया रे, गाथा - ६. ८०१०५. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६X११.५, १६x४६). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. पद-२ तक है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार; अंति: (-), (पू.वि. पद-२ बालावबोध अपूर्ण ८०१०६. आदिनाथ जन्माभिषेक कलश सविधि व आरती मंगलदीपक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३, कुल पे. ३, जैवे.. (२५.५x११, १२४३५). १. पे नाम आदिनाथजन्माभिषेक कलश, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, अप., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार, अति: तुम्ह दीयो वरमुत्ति, गाथा-२२ (वि. विधि सहित.) २. पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: उतारो आरती दुख; अंति: जडी आरती वीतरागो, गाथा-१. ३. पे. नाम. मंगलदीपक आरती, पू. ३आ, संपूर्ण, मंगल दीवो, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, आदि दीवो रे दीवो मंगलिक; अंति: जैपाल ०राजा कुमारपालै, गाथा - १. ८०१०७. महावीरस्वामी २७ भव वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी आचारांगना, जैदे. (२५.५X११.५, १६x४०). महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: हवे महावीरसामीनो जीव; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., २७वां भव वर्णन आंशिक अपूर्ण तक है.) , " ८०१०८. कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२६४१०.५, १६५५०). कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (१) अतित्थ भरहवासे कमला, (२) इणै भरतक्षेत्र; अंति: (-), (पू.वि. "राजा अपशकुन गिण्या नही, अर्धी दोषो न पश्यति" पाठ तक है.) ८०१०९. पुण्यप्रकाशनुं स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१)=३, जैदे., (२५X११, ११-१४X३७-४२). For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org " पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि (-); अति विनय० पुण्यप्रकाश ए. दाल-८, गाथा-१०२, (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१४ अपूर्ण से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ८०११०. मौनएकादशी देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२६११.५, १५x५२-५५). मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सचल संपत्ति सचल संपत, अंति: (-), (पू.वि. नमिजिन स्तुति"नमिनाथ निरंजन देवतणा" गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८०१११. (+४) गजसुखमालादि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) १, कुल पे. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X१२, २८५३). १. पे. नाम, गजसुकुमाल स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराजतणी अति श्री नेमललिपुर देखने, गाथा-४६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दयाधर्म, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: तुं तो लख चोरासी; अंति: डर रे मानु डर रे, गाथा - १३. ३. पे. नाम. वणजारा सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. पदेशिक सज्झाय वणजारा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि वणजारो रे देखि चिया अति धरम न मुके प्राणिया, गाथा २२. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मु. करण, मा.गु., पद्य, आदि: पृथवीकाय न छेदिये; अंति: भाख्या श्रीवर्द्धमान, गाथा - २५. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक दोहासंग्रह*, पुहिं., पद्य, आदि: आछा निका भोजन चाहिये; अंति: बाइ ये रूपवंति राणी, दोहा-२, संपूर्ण. ८०११२. पगामसज्झायसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५X११.५, ३X२७). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), ( पू. वि. "सोयणवत्तियाए" से "पच्छेकम्मया" पाठ तक है.) पगामसज्झायसूत्र- टवार्थ, मा.गु. गद्य, आदि (-); अति: (-). ८०११३. चोविसजिन सप्तनबोल स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-२२ (१ से २२ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे. (२५.५x११, १६x४४) २४ जिन मातापितादि ७ बोल स्तवन, मु. दीप, मा.गु., पद्य वि. १७१९, आदि: श्रीजिनवाणी सरस्वती; अति दीपो० कुलथपुर चोमास ए, गाथा- ३१, संपूर्ण. ३४३ " ८०११४. अनुयोगद्वारसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४६-४४ (१ से ४४ ) -२, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी अनुयोगद्दा जैदे. (२६.५४१०.५, १३४४८-५२). , " अनुयोगद्वारसूत्र आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा. पण, आदि (-); अति (-) (पू.वि. प्रकरण ११ सूत्र ५८६ अपूर्ण से प्रकरण १२ सूत्र- ६१४ अपूर्ण तक है.) ८०११५. नवकार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६१२, १२३४). नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीयण समरो; अंति: सुंदर ससीय " रसाल, गाथा ११. ८०११६. (+*) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, १६x४३). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वक्षस्कार- १ सूत्र - गाथा १३वां अपूर्ण है.) ८०११७. जीवडला व नगरथगुरु स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २- १ ( २ ) = १, कुल पे. २, ले. स्थल. जेपुर, प्रले सा मानी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी जीवडला. जैवे. (२५x११.५, १७४४१). " For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम, जीवडला सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. उपदेशपच्चीसी, म. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७८, आदिः (-); अंति: रतनचंद० दियो उपदेश, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गिना है.) २. पे. नाम. नगरथगुरु स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. नगरथशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नगरथगुर कीया नीस्तार; अंति: गुररा पाव सदाइ पूजो, गाथा-११. ८०११८. (+#) मेघरथराजा सज्झाय व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १९४४६). १.पे. नाम. मेघरथराजा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, मा.गु., पद्य, आदि: दया बरोबर धर्म नहीं; अंति: संत सुखी अणगारो जी, गाथा-३१. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दर्गदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: आदेसर अलवेसर हो जिणे; अंति: दुरगदास०आवागमन मिटाय, गाथा-९. ८०११९. थुलिभद्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १२४२८-३०). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांति, मा.गु., पद्य, आदि: बोल गयो मुख बोल; अंति: पभणे शांतिमया थकी जी, गाथा-१४. ८०१२० (#) गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १०४३०). गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वीसुत प्रातः; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. ८०१२१. नेमिजिन व १६ सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३६). १. पे. नाम, नेमिजिन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: हो जी माता शिवादेवी; अंति: कहीयो कु नही मान, गाथा-१५. २. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीतल जिनवर करूं; अंति: कुलकी सोभा शील, गाथा-८. ८०१२२ (4) महावीरजिन व स्थुलिभद्रमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, पठ. मु. सत्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३६). १. पे. नाम. महावीर स्वाध्याय, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ महावीरजिन सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनवर सकलमुनि आधार ए, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने २ गाथा को १ गाथा गिना है.) २. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. द्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: थुलिभद्र मुनिसर आवो; अंति: सिधविजय० लगै धुतारी, गाथा-१७. ८०१२३. (+) मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४४३). मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवपुर सुहामणो; अंति: होज्यो त्रिकाल हो, गाथा-१७. ८०१२४.(-) पार्श्वजिन, युगमंधरजिन स्तवन व मरुदेवामाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, १९४३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुद्धे मन आणि आसता; अंति: म्हारी चिंता चुर, गाथा-८. २. पे. नाम, युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४४, आदि: जुगगुरु जुगमिंदर; अंति: प्रीत कीदी भेली मे, गाथा-१०. ३. पे. नाम, मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३४५ मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगरी विनीता भलीय; अंति: पामे लील विलासो जी, गाथा-१३. ८०१२५. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०९-२०७(१ से २०७)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३६-३९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-२ वर्ग-१ अध्ययन-१ अपूर्ण से वर्ग-५, अध्ययन-१ अपूर्ण तक है.) ८०१२६. विचार व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११.५, १८४४३). १.पे. नाम. चातुर्मास योग्य १३ स्थान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. १३ बोल-चातुर्मास योग्य स्थानविषये, पुहि., गद्य, आदि: किचड गारा थोडा होवे; अंति: बोल हुइ जठ करणो. २. पे. नाम. साधुविहार वर्ण्य क्षेत्र बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. साधु विहार वर्ण्य क्षेत्र बोल, रा., गद्य, आदि: साधनै पूर्वकानी चंपा; अंति: देस आगै जाणो नही. ३. पे. नाम. वरसीदान मान, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एक कोडिने आठ लाख दिन; अंति: दान देइनइ दिख्या लेइ. ८०१२७. (-) साधुआचार व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२, २०४४९). १.पे. नाम. साधुआचार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधु आचार सज्झाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर उपदिस्यो; अंति: कुशालचंद करजो विखवाद, गाथा-३६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-परनारी परिहार, मु. देव, मा.गु., पद्य, आदि: सुण मारी चतुर सुजाणे; अंति: देव० नरक मलसी उंडो, गाथा-९. ८०१२८. जंबूद्वीपभरतक्षेत्र अतीत, वर्तमान व अनागत चोवीसीजिननाम स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, ११४३३). १.पे. नाम. जंबूद्वीपभरते अतीतचोवीसी जिननाम स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिननाम स्तवन-जंबुद्वीपे भरतक्षेत्र-अतीत, म. ज्ञानसागर, मा.ग., पद्य, आदि: सहज विलासि प्रभु गाई; अंति: कला सादि अनंत कहत, गाथा-८. २. पे. नाम. जंबूभरति वर्तमानचोवीसीजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वर्तमानचौवीसी जिननाम स्तवन-जंबुद्वीपभरतक्षेत्र, म. ज्ञानसागर, मा.ग., पद्य, आदि: जंबूद्वीपने दक्षिण; अंति: होवे ज्ञान उद्योत रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. अनागतचौवीसी जिननाम स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिननाम स्तवन-जंबूद्वीप भरतक्षेत्र-अनागत, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपद्मनाभि पहिला; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ के प्रारंभिक अंश तक है.) ८०१२९. (+) स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४२६). १.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो वालिमने वाली; अंति: पालव झाले पालो हे, गाथा-४. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कसल कवि, रा., पद्य, आदि: अरज करुंजी कर जोडनैज; अंति: निजर जोइज्यो साहिबा, गाथा-६. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरिगुरु पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राजसिंह, रा., पद्य, आदि: दादो जैनरो दीवाण हे; अंति: दिलवंछत महादान हे, गाथा-५. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रा., पद्य, आदि: हुं तो मोही रह्यो जी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०१३०. धर्मोपदेश व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १५४५०). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: देवपूजा गुरूपास्तिः ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्रावक कर्तव्यगत दान वर्णन अपूर्ण तक है.) ८०१३१. (+) पार्श्वजिन स्तवन, स्थूलिभद्र स्वाध्याय व स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६४४१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. उदयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवरजी हो अरज सुणो; अंति: लब्धि करे अरदास, गाथा-७. २. पे. नाम. थुलभद्र स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न किजीये; अंति: समयसुंदर सुखकार, गाथा-५. ३. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मनमधुकर मोही रह्यउ; अंति: (-), (पू.वि. अभिनंदनजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण तक हैं.) ८०१३४. अजितशांति स्तवन व अरिहंतादिक मंगल, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-४(१ से ४)=३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३७). १. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ५अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अरिहंतादिक मंगल, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: शासनदेवी समरी करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ८०१३५. पंचमीलघु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, ७४३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमी तप तुम्हे करो; अंति: पांचमो भेद रे, गाथा-५. ८०१३६. (+) नवस्मरण-१ से ४ स्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १०x२८). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८०१३७. गोडीपार्श्वजिन वृद्धस्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ., (२५.५४१२, १४४३३). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपर गोडीजी इतिहास वर्णन, म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२, गाथा-८ तक लिखा है.) ८०१३८. पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११, १२४४१). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद-त्रितालबद्ध, पुहिं., पद्य, आदि: देवी देवन समूह मेरु; अंति: चंद चरनपूजना कराई, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-अंतरीक्ष, पुहिं., पद्य, आदि: चिहुं ओर वजन लगे इंद; अंति: विगत भव विकारे, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: इस वि० जिन जिन मुख; अंति: नवल कहै जगमै जस लैना, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. म.खुशालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देखो आदिस्वर स्वामि; अंति: रतनचिंतामणी पाया हो, गाथा-४. ५. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. चंदखुसाल, पुहिं., पद्य, आदि: देखो जी आदीश्वर; अंति: चंदखुस्यालजु गाया है, गाथा-५. ८०१३९. शीतलजिन स्तवन व वरकन्या मांगलिकयोग श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४१६). For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. . जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहजानंदी थयो; अंति: जिनविजय आनंदसुं भावे, गाथा-५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. वरकन्या मांगलिकयोग श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (वि. द्वादशभाव चक्र सहित ) ८०१४०. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५५११.५, १३४३३). १. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पू. १अ १ आ. संपूर्ण , मु. राज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अमर तणी वाणी सुणी; अंति: यो रे ए मुनिवरनो आज, गाथा-१५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: श्रीजिनचंद्र० मन आस, गाथा - ९. " ८०१४१. लोगस्ससूत्र का वालाववोध, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे. (२४.५x११, १५X३४). लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: लोगस्स० चऊद राजलोक; अंति: (-), (पू.वि. उसभ शब्द का बालावध अपूर्ण तक है.) २. पे नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. मु. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, आदि अजित जिनेसर सेबीये; अंति: नेम० लहीई गुण खांणी, गाथा-४. ८०१४२. महावीरजिनादि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३- २ (१ से २ ) = १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५x१२, १४X३३). १. पे नाम वीरजिन स्तुति, पू. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. महावीरजिन स्तुति, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः बुध सेवकने जयकार, गाथा-४, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) ३४७ ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण, प्रले. मु. रूपचंद, पठ. मु. मोती, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीआदीश्वर जिनवर, अंति: सही सेवे मंगलमालिका, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. मा.गु., पद्य, आदि सुर असुर वंदित पाय अंति (-), (पू.वि. अंतिम गाथा ४ अपूर्ण से नहीं हैं.) ८०१४३. समता सज्झाव व १८ हजार शीलांगरथ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. उजमश्रीजी, अन्य. सा. अमृतश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२५x१२, १०x३१) 1 १. पे. नाम. समता सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-समता, मु. चिदानंद, मा.गु, पद्य, आदि हो प्रीतमजी प्रीत की अति दानंदजी निज धेरै आवे, 3 गाथा-७. २. पे. नाम. १८ हजार शीलांगरथ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्रा., पद्य, आदि: जे नो करेंति मणसा; अंति: (-), (पू.वि. मात्र गाथा - १ है., वि. रथचक्र सहित.) ८०१४४. (W) चतुर्थव्रतग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५५११, १२४५०). ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि, अंति: धर्मोपदेश गुरु दई. ८०१४५. (१०) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५x१०.५, १३X३६). For Private and Personal Use Only नंदीसूत्र- स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा २७ तक लिखा है. वि. प्रतिलेखक ने गाथा २७ तक ही लिखकर "इति श्रेयः " लिख दिया है.) Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०१४६. (+) आलोयण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. वीरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४३१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ८०१४७. होलि कथा, संपूर्ण, वि. १९०४, आषाढ़ कृष्ण, २, जीर्ण, पृ.२, प्रले. पं. पुनमचंद; पठ. श्राव. ताराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:होलिकथा., दे., (२५.५४११.५, ११४३७). होलिकापर्व कथा, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्रमाहै वसंत; अंति: (अपठनीय). ८०१४८. छमासी तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४१२.५, १०x२१). महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.ग., पद्य, आदि: सरसति सामणि द्यो मति; अंति: आपो स्वामी सख घणा, गाथा-१०. ८०१४९ (+) भरतबाहुबलि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:भरतबाहुबल., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४३७). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्ति श्रीवरवा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८०१५० (+#) महावीरजिन व पंचमीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, ११४३०). १. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ८०१५१. पांचसे त्रेसठभेदनी चरचा, अपूर्ण, वि. १९४२, पौष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. राजकोट, प्रले. लाधाजी रणछोड खत्री; अन्य. मु. सामलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १६४१५-२१). ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: देसमा ८ पुरवत् एवं८, (पू.वि. मनुष्यभेद विचार अपूर्ण से है.) ८०१५२. (#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८६२, फाल्गुन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४४०). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० ईम भणै ए, गाथा-६१. ८०१५३. शत्रुजयउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१२, १४४३४). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६८ अपूर्ण तक है.) । ८०१५४. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ७, अन्य. सा. दीवालीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. दीवालीबाईसांमीना छे., जैदे., (२६४११, १०४३७). १. पे. नाम. जिनभक्ति स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, म. धर्मसंघ, मा.गु., पद्य, आदि: चलो सखी जिनवंदन जईइ; अंति: दर्शन० चित्त उमहीइ, गाथा-५. २. पे. नाम, अजरामरपदप्राप्ति पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-अजरामरपदप्राप्ति, मु. धर्मसंघ, पुहिं., पद्य, आदि: चलो रे जीउ अमरनपुरी; अंति: धर्म० अजरामर पद लहीइ, गाथा-७. ३. पे. नाम. साधु पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-साधु, पुहिं., पद्य, आदि: बावा हुआ ल्यो साधू; अंति: ग्यान जोतिहि जनकी, गाथा-३. ४. पे. नाम. आत्मशिक्षा पद, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ औपदेशिक पद-आत्मशिक्षा, मु. धर्मसंघ, पुहिं., पद्य, आदि: कोएसु प्रीति म बांधे; अंति: धर्म०सांभलि मनमोहनजी, गाथा-६. ५. पे. नाम. अष्टविधान सुभाषित, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-अष्टविधान, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि कुलवंती कामिनी; अंति: आपि सही निरवाण, गाथा-६. ६. पे. नाम. सूत्र अमीरस पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८६५, आषाढ़ कृष्ण, ११, मंगलवार, प्रले. दलवराम भट, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक पद-सूत्र अमिरस, पुहि., पद्य, आदि: बावानि सूत्र भणी काह; अंति: उनको जनम नगीनो, गाथा-६. ७. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. संबद्ध, म. धर्मसिंह मनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशं; अंति: मुगत नीधान लाल रे, गाथा-६. ८०१५५ (+) साधुवंदना व शांतिजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४४६). १.पे. नाम. साधु वंदना, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १७७१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, बुधवार, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. भागचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिण पमुह चउवीस; अंति: मनि आणदि संथुया, गाथा-८८. २.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय नमु शिरनामी; अंति: वंछित फल निश्चइ पावइ, गाथा-२१. ८०१५६. जंबूस्वामीनी गहुंली व ज्ञानपंचमी- चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. प्रह्लादनपुर, जैदे., (२६४११.५, १२४३७). १.पे. नाम. जंबूस्वामी गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोल वरसें संयम लिओ; अंति: सुणि पामें शिवराज, गाथा-७. २. पे. नाम. पंचमी नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीगडे बेठा वीरजिन; अंति: रंगविजय लहो सार, गाथा-३. ८०१५७. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१०.५, १२४३५). सीमंधरजिन स्तवन, म. सिद्धिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरसाहिब मेरी; अंति: सीमंधर साचो हो, गाथा-१६. ८०१५८. द्रौपदीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, प्रले. उजमलाल नरभेराम भोजक, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६४१२, ११४३१). द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः साधुजीने तुंबडु; अंति: जस० मुगति मोझार रे, गाथा-१०. ८०१५९ महावीरजिन गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३५). १. पे. नाम. वीर गहुंली, पृ.१अ, संपूर्ण. महावीरजिन गहंली, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखि वंदनने जइये; अंति: इम कह्यो दीप कबीराज, गाथा-७. २. पे. नाम. महावीरजिन गोहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन भास, मु. वसंतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सखी राजगृही उद्यानमे; अंति: वसंतसागर कहे करजोड, गाथा-६. ३. पे. नाम. महावीरजिन गहली, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: बेहनी अपापानयरी; अंति: विसुद्धजय भणे रे लो, गाथा-५. ८०१६० (#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १५४४६). For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो; अंति: (-), (प.वि. सुमतिजिन स्तवन तक है.) ८०१६१ (+) पुण्य कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६४३९). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपुन्न इदियतं सुमाण; अंति: भंति न थोवपुन्नेहिं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पूरुं पंचेंद्रिय पणउ; अंति: साश्वतां सुख मोक्षफल. ८०१६२. (+) आगमिक विचार संग्रह व उत्तराध्ययन ३६ अध्ययन नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४४०). १.पे. नाम. आगमिक विचार संग्रह, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ___प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: इहो भाषइ नहीं, (पू.वि. धर्मार्थे आरंभ विचार अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र ३६ अध्ययन नाम, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: पहिलुं अध्ययन विनय; अंति: जीवाजीवविभक्ति३६. ८०१६३. (+#) रहनेमीराजुल संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अमदावाद, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १८४५३). रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहनेमी अंबर विण; अंति: नित्य वंदन करे जो, गाथा-४०. ८०१६४. (+#) शेव॒जय स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४६०). १.पे. नाम. शे@जय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कर जोडी कहें कामिनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा-१६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... पार्श्वजिन स्तवन-पाटणमंडण, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमनमोहन स्वामी; अंति: जिन० साहिब अरज सुणो, गाथा-७. ८०१६५ (#) चित्रसंभूति सज्झाय व पार्श्वजिन होरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १३४४४). १. पे. नाम. चित्रसंभूति स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय; अंति: भणइ० लहिस्यइं हो के, गाथा-१९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार च; अंति: सीस भाव भणे उलास, गाथा-९. ८०१६६. (4) जीवदया फलवानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३८). दयापच्चीसी, म. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तिर्थंकर करू; अंति: विवेकचंद० एह विचार, गाथा-२५. ८०१६७. भक्तामर स्तोत्र का भाषानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१०.५, १४४४२). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, म. देवविजय, पुहि., पद्य, वि. १७३०, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. भक्तामर गाथा-१२ के पद्य-१ अपूर्ण से २३ के पद्य-२ तक है.) ८०१६८. (+) धर्मोपदेश, साधुगुणकीर्तन सज्झाय व नेमराजुल गीत, संपूर्ण, वि. १७०९, कार्तिक कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८४५४). १.पे. नाम. धर्मोपदेश सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवचेतन, ग. गुणविजय, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरा परमातम पीउ; अंति: गुणविजय० संघ जगीसो, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः परव पजुसण पुन्यै; अंति: संतोषी गुण गाय जी, गाथा-४. २. पे नाम बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. साधुगुणकीर्त्तन स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. साधुगुणकीर्त्तन सज्झाय, मु. योगेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामिनी प्रणम; अंति: योगेंद्र०सकल त्रिकाल, गाथा - १८. ३. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पू. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि ओ आवड़ सखि ओ आवइ मेरो अंति: नेमजिन संघगुण गावइ, गाधा-४, (वि. गाथांक उल्लिखित न होने से गिनकर लिखी गयी है.) गाथा - ९. ८०१६९. (#) गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२, ११x२८). गौतमस्वामी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: जीणवर श्रीव्रधमान; अंति: मेघराज मुनि सुजस कहे, ८०१७०. पर्युषणपर्व, बीजतिथि व पंचमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ३, जैदे. (२६४११.५, १३४३४). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. " ३५९ . लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. . ३. पे नाम. पंचमी ई. पू. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ८०१७१. (+) आगमिक पाठ संग्रह व शकुन विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६११, १०५५६). "" १. पे. नाम आगमोक्त विविध विषयक साक्षिपाठ संग्रह, पू. १अ संपूर्ण आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग., आदि: परिहरिअव्वो अकल्लाण; अंति: सो०अन्नो अगीअ०हवइ. २. पे. नाम. शकुनविचार संग्रह- दुर्गा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. शकुनविचार संग्रह, मा.गु, गद्य, आदि: पूर्वदसि जुनी बात अति (-), प्रतिपूर्ण ८०१७२. () रुक्मणीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ श्रावि, सुरज बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२, ८X३८). रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्म, आदि विचरता गामो गाम; अंति: जाइ राजविजे रंगे भणे, गाथा- १४. ८०१७३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैवे. (२५x११.५, १४४५८). १. पे. नाम, फलोधि पारसनाथजीरो तवन, पृ. १अ संपूर्ण " 3 पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धि, मु. उत्तम, मा.गु, पद्य, आदि मनवंछत फलदायक स्वामी, अंति जय उत्तम जिन गुण गावे, गाथा - ९. २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि गौरवा रे गुण तुमतणा, अंति: जस० जीवन आधारो रे, गाथा ५. For Private and Personal Use Only ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि आज भलो दिन उगो हो, अंतिः राम सफल अरदास गाथा ५. ४. पे. नाम. केवलज्ञान कल्याणक स्तवन, पृ. १आ, , संपूर्ण. अतिशय स्तवन- केवली अवस्था, मु. हीरधर्म, पुहिं, पद्म, आदि जिनवर की महिमा कहीय; अति हीर० रह्यो है लुभाय, गाथा-५. ८०१७४ (+) स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, १३X५४). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: कीरति० सकल वधाव रे, स्तवन- २०, (पू.वि. स्तवन-१७, गाथा-३ अपूर्ण से है.) Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०१७५. आदिजिन स्तवन, औपदेशिक पद व पार्श्वजिन पद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११.५, १०x४०). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो बधाइ राजा नाभि; अंति: निरंजन आदिसर दयाल रे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहा रे अग्यानी जीव; अंति: जिनराज० सहज मिटावै, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जौडी थारी कोण जडैगो; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ८०१७६. आध्यात्मिक हरियाली सह टबार्थ व पार्श्वनाथ मंत्र, संपूर्ण, वि. १८४४, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, ६४३०). १.पे. नाम. आध्यात्मिक हरियाली सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसैं कांबलि भिंजै; अंति: कवि देपाल वखाणइ, गाथा-१२, संपूर्ण. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वरसइ केहता श्रवइ काय; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ मंत्र, प. १आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ पार्श्वनाथाय ॐ हीं; अंति: बभूवः स्वाहा, मंत्र-१. ८०१७७. सीद्धगीरी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १५४३४). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आया रे विमलाचल; अंति: पद्मविजय सुप्रमाण, गाथा-७. ८०१७८. सीधाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १०४३५). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: आवो भवीक सेत्रजागीर; अंति: ज्ञानविमल साधे रे, गाथा-७. ८०१७९. गजसुकुमालमुनी सज्झाय व पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. जेठालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, १०४३२). १. पे. नाम. गजसुकमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. __ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. न्याय, मा.गु., पद्य, आदि: एक द्वारकानगरी राजे; अंति: के न्याय मुनि ले छे, गाथा-८. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ८०१८०. स्थापनाचार्य विचार गाथा व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १८४६२). १. पे. नाम. इग्यारह बोलनो भेद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सम्यग्दृष्टि, देशविरति व सर्वविरति ११ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: विधवाद१ चरितानुवाद२; अंति: मिश्रपक्षी कहीय. २. पे. नाम. विचारवल्लभायां स्थापनाचार्य विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चउरंगुलप्पमाणं ठवणा; अंति: दट्ठणं दंसिया केवि, गाथा-४. ८०१८१. प्रत्याख्यान भांगा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४१). प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अन्नत्थणाभोगेणं; अंति: रोटी लेनां भंज नही, (वि. पत्रांक-१आ में यंत्र दिया गया है.) ८०१८२. (+) प्रतिक्रमणविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १३४४३). For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३५३ प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामायिक लेणा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पाखीसूत्र कहे" तक लिखा है., वि. राइ व पक्खीप्रतिक्रमण विधि.) ८०१८३. (+#) पंचतीर्थ- स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३३). ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिए आदिए आदिजिनेसरु; अंति: मुनि लावण्यसमय भणे ए, गाथा-११. ८०१८४. (#) जैन सामान्यकृति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ३०x१६). जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जय नंद जय जिनंद नसही; अंति: (-), (वि. पूजादि दोहा व शाश्वताजिन विचारादि.) ८०१८५, (2) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४२७-३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतिमौलिमणि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) ८०१८६ (+) अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १३४४१). अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषेणसरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. गाथा-३ अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक है.) ८०१८७. सिद्धपदनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १२४३५). गौतमस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतमस्वामी पूछा; अंति: नय कहे सुख अथाग हो, गाथा-१६. ८०१८८. (+) चिंतामणि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ७४३०). पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: माहरी चिंता चूर, गाथा-६. ८०१८९ (+) मनकमुनि सज्झाय, सीमंधरजिन स्तवन व औपदेशिक दूहो, संपूर्ण, वि. १९वी, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४३६). १.पे. नाम. मनकमनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी संयम सुधो; अंति: गायो सकल जगीशे रे, गाथा-७. २. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुष्कलवइ विजये जयो; अंति: भय भंजन भगवंत, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक दूहो, पृ. १आ, संपूर्ण. काव्य/दहा/कवित्त/पद्य संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: सीप समुद्रा निपजि; अंति: पाईइ नाले खाले नाह, गाथा-१. ८०१९० (+#) विविध बोल विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, २१४४४). १. पे. नाम, समकितसतसट्टि बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: च्यार सद्दहणा; अंति: पालीने मोक्षे जाइ. २. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धनो विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. २५३ मण मोतीमान बोल-सर्वार्थसिद्ध विमान, मा.गु., गद्य, आदि: ६४ मणनो १ वलय पहिले; अंति: मिलीने २५३ वली एतद्. ३. पे. नाम. सप्तषष्टिभेद सम्यक्त्व गाथाद्वय, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. भूधर, प्र.ले.पु. सामान्य. सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद गाथा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: चउसद्दहण तिलिंग; अंति: विसुद्धिं च समत्तं, गाथा-२. ४. पे. नाम, मनुष्यने १२ संपदा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ संपदा-मनुष्यकी, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यपणओ१ आर्य; अंति: मनुष्यने१२ संपदा कही. For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५४ www.kobatirth.org ५. पे. नाम. १२ कुल भिक्षा, पू. १आ, संपूर्ण. १२ कुल गोचरी, मा.गु.. गद्य, आदि सेजाई पुण कुलाई अंति: पिंडेषणाध्ययने, ६. पे. नाम. १२ चक्री नामाभिधान, पृ. १आ, संपूर्ण. , १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भरतचक्री१ सागरचक्री २; अंति: ब्रह्मदत्तचक्री १२. ८०१९१.(+) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १९-१० (१ से १०) १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. संशोधित Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैदे. (२५.५४११, १३४४१-४५). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा-७ अपूर्ण से ९ अपूर्ण तक है.) ८०१९२. कायाउपर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६११, १०x३१). औपदेशिक सज्झाय-कायाउपरी, मा.गु., पद्य, आदि: सुण रे चंचल जीवडा; अंति: जाये जाये मुगत मझार, गाथा-८. ८०१९३. अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. सिवपुरि, प्रले. पं. गोतम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., .वे. (२६११.५. ११×३९). अजितजिन स्तवन, मु. विजयानंदन, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंद दयाल सुणो; अंति: विजयानंदन० जिन जगपती, गाथा - ९. "" " ८०१९४. औपदेशिक दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. कुल ग्रं. ८ दूहा वे. (२५.५४१२, १२४३५). औपदेशिक दासंग्रह - विविधविषयोपरि, पुहि., मा.गु. रा., पद्य, आदि लाख तज्यो ठामै लिख्य अंति: निचे होत विनास, (वि. छूटक दूहा संग्रह . ) . , ८०१९५ (क) आरा नाम, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५x१२, १४४३१). ६ आरा मान, मा.गु., गद्य, आदि: इणइज जंबूद्वीपमांहि; अंति: ४२ सहस्रवर्ष थाइ. मा.गु., पद्य, आदि: अरसइ फरसइ वरसइ; अंति: नेमराजल रहे लइ लाई, गाथा - १२. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सावन की घनघोर घटा उह; अंति: विना किउं जी जीयगो, दोहा - १. ३. पे. नाम. विजयसेनसूरि सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति हाशिये में लिखी गई है. ८०१९६. (+) भाव प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. सायला, प्रले. मु. त्रिभोवनतिलक; अन्य. सा. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी स्तुति, संशोधित, जैवे. (२४.५४११, १४४३५). भाव प्रतिक्रमण, मा.गु., गद्य, आदि: बार गुण श्रीअरिहंतना; अंति: मिथ्यात निःफल होजो. ८०१९७ (+) छंद, दुहा व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, १५X४७). १. पे. नाम, नेमिजिन वारमासा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पं. सहजसागर पंडित, पुहिं., पद्य, आदि: करत ज्युं फाल वनिबाल; अंति: विना को निवाजइ, दोहा-२. ४. पे. नाम. हीरविजयसूरि सवैया, पृ. २अ संपूर्ण, पे. वि. यह कृति हाशिये में लिखी गई है. יי मु. सत्यसागर, पुहिं., पद्य, वि. १६४१, आदि: सकल सोरठ की बंद; अंति: विजयसूरि जिहां पतिआं, दोहा-५. ५. पे. नाम हीरविजयसूरि छंद, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. मु. शिवचंद, पुर्हि, पद्य, आदि एक योगी जंगम मठवासी अंति: लहक्कति चूनडीया, गाथा- ४३. ८०१९८. रोहीणीतप महीमा, संपूर्ण, वि. १९०८, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. लखमीचंद्र ऋषि; लिख. श्रावि. चांदबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६५११, ९३१). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेव सामनी ए मुझ; अंति: हिव सकल मन आ फली, ढाल ४, गाथा - २६. For Private and Personal Use Only ८०१९९. (*) नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १८२२ १०, श्रेष्ठ, पू. ४, ले. स्थल. राधनपुर, प्रले. ग. पुन्यविजय (गुरु ग. भक्तिविजय); गुपि. ग. भक्तिविजय (गुरु ग. नयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ११-१३X३६-४०). Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३५५ का नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सरसति सामिणि पाए; अंति: थुण्यो नेमि जिनेसरू, ढाल-४, गाथा-७२. ८०२००. ८ करम एकसोअडतालीस प्रकृति, संपूर्ण, वि. १८५३, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. रामपुरा, प्रले. सा. दया (गुरु सा. सीता); गुपि. सा. सीता (गुरु सा. गुमानाजी); सा. गुमानाजी (गुरु सा. चनणा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने अंक में संवत् १८५३ मास, पक्ष, तिथि लिखने के बाद शब्द में "समत अठारा वरस पीच्यावनो" लिखा है., जैदे., (२५४१२, १६४३२). १४ गुणस्थानके ८ कर्म की १४८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम गुणठाणइ अठकरम; अंति: धरमनइ विषइ उदम करवो. ८०२०१ (+) शीयलनी नववाडनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.७७ ग्रंथाग्रंथ, जैदे., (२५.५४१३, ११४२८-३२). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: नववाड राखो निरमली, ढाल-१०, गाथा-४३. ८०२०२ (4) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हंडी: भक्ताम, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४२७-३२). _भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से श्लोक-२८ अपूर्ण तक है.) ८०२०३ (+#) सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १६x४४). १. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: हर्षकीर्ति० घर अवतरै, ढाल-४, गाथा-३०. २.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: समुदविजय सुत लाडलो; अंति: चोथमल० परम संतोष, गाथा-११. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: छांने छांने कुर; अंति: राखे छोडी हो वाल्हा, गाथा-९. ४. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मु. जवानमल, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरनी सेवा करसां; अंति: जवानमल० धरसां हो लाल, गाथा-७. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अरि मेरा दुख मत कर; अंति: मुगतवधु परणी मे, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- दानशीलतप, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक पद, मु. रत्नसागर, पुहि., पद्य, आदि: असुभ करम मल झाड के; अंति: चत्र रतनसागर कह सुर, गाथा-८. ८०२०४. साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५.५४१२, ९४३३-३६). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ८०२०५ (#) सुदर्शनशेठ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३१, कार्तिक कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. श्राव. सवाईमल कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: दरसणसे०, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १८४४७-५०). सदर्शनशेठ सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भीलरा ना गुण घणा सां; अंति: जाय वीराज्या मोख हो, ढाल-११, गाथा-१०५. ८०२०७. परभंजना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. जेशंकर मुलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४३२). प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यनी ऊपरे; अंति: देवचंद्र०लील सदाई रे, ढाल-३, गाथा-४९. For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०२०८.(+#) बार भावना व राचाबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३-२१४४६-५०). १.पे. नाम. १२ भावना सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: जयसोम० सुख थायइ, ढाल-१२, गाथा-७२. २. पे. नाम, राचाबत्तीसी, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जाग रे सोवे; अंति: रुडां कहै छे राचो, गाथा-३२. ८०२०९ (+#) संसारसगपणनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २२४५३). औपदेशिक सज्झाय-संसारसगपण, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध आचार्य; अंति: दहे होवे सिद्ध सासता, गाथा-५१. ८०२१० (+) महावीरजिनादि अंजनशलाका प्रशस्ति-राजद्रंगपर, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२३.५४१२, ९४२६). महावीरजिनादि अंजनशलाका प्रशस्ति-राजद्रंगपुर, मु. विनयसागर, सं., पद्य, वि. १९०५, आदि: श्रीवर्धमान __ जिनराज; अंति: तावत् नंदतु भूतले, श्लोक-२७. ८०२११ (+) पंचनयगर्भित वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४४२-४५). ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: (-), ढाल-६, गाथा-५८, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२, गाथा-१९ अपूर्ण तक लिखा है.) ८०२१२. (-) मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११.५, २१४४२-४६). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुगरीनगर सुहावणो; अंति: छ कायना रखपाल हो, गाथा-२६. ८०२१३. (+) नेमिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०३-१०२(१ से १०२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १२४४२). नेमिजिन चरित्र *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गोपीयों के द्वारा नेमिकुमार को विवाह हेतु समझाने का प्रसंग अपूर्ण मात्र है.) ८०२१४. (-2) केसर आर्या गरु भास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव. हरख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ९४२८-३२). केसरआर्या गुरु भास, सा. सहिजा आर्या; श्रावि. कपूरदे, मा.गु., पद्य, आदि: सरत सामेण पाय प्रणमी; अंति: __कपूरदे०अधिक उछाहो जी, गाथा-११. ८०२१५. चोवीसदंडक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १४४३५-३८). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पासनाह प्रहि; अंति: पासचंद० परमारथ लहे, गाथा-२३. ८०२१६. (4) आगमोक्त विविध विषयक साक्षिपाठ संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४३३-३६). आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग., आदि: चत्तारि समणोवासगा पं; अंति: एए० अभव्वा० मारओसत्ता. ८०२१७. (+#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १६४३३-३६). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: कहइ पापथी छुटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. ८०२१८. पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३७). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदिः श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ८०२१९ (+३) नवतत्त्व परिकरण, अपूर्ण, वि. १६९०, आश्विन शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. २- १ (१) १, प्र. मु. वीकाजी; पठ. श्रावि. संतोषी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x११, १५५४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा ६०, ( पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं... गाथा-१८ अपूर्ण से है.) ८०२२०. (*) छ कायजीवनी सज्झाय व एकादशीव्रत गीत संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, ३३४१५-१८). , . १. पे नाम छकाय जीवनी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण ६ काय जीव सज्झाय, मु. भैरवजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणवर इम भाखीठे अति भैरवजी० मंगल जय जयकार, गाथा-७. २. पे. नाम. एकादशीव्रत गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि मेरुशिखरि सोनानु अंतिः जे व्रत करइ एकादसी, गाथा ११ (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ८०२२१ (+) विविधविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १३५-१३४(१ से १३४) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, जैदे., (२६X११, १६X५३). विविध विचार संग्रह, प्रा., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चमरेन्द्रादि की अग्रमहिषी आदि का विचार अपूर्ण मात्र है., वि. भगवतीसूत्र का संदर्भ दिया गया है. विशेष निश्चित किसी ग्रंथ के लिए संशोधन अपेक्षित.) ८०२२२. (+) औपदेशिक व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५X१२, १३X३५-४० ). व्याख्यान संग्रह, प्रा., मा.गु., रा. सं., प+ग, आदि सुकुलजन्मविभूतिरनेक, अंतिः श्रेय कल्याण. ८०२२३. (#) पंचमीतप स्तवन- ढाल ६, संपूर्ण, वि. १९४३ श्रावण शुक्ल, ६, मध्यम, पू. १, ले.स्थल. कलाणा, प्रले. मु. गुलाबविजय, पठ. श्रावि दलछीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. सांमलाजी प्रशादे मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६x१२.५, १२x२८-३२) " ** . ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि (-) अंतिः सकल भवि मंगल करै, प्रतिपूर्ण, ८०२२४. उपदेशमाला यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. सारणीयुक्त, दे., (२६X१२, १५X३६-७५). उपदेशमाला उत्कृष्ट मध्यम गाथा व अक्षरसंख्या यंत्र, मा.गु., को. आदिः ॐ सच्चं भासह अरहा; अंति: सच्चैण भवओ स्वाहा, (वि. सारिणीयुक्त.) ८०२२५. उपदेशमाला प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७३५, चैत्र शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ३९ ३८ (१ से ३८) १ प्रले. पं. समयमाणिक्य (गुरु ग. मतिरत्न, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. ग. मतिरत्न; गुभा. ग. नेमहर्ष (गुरु ग. समयमूर्त्ति, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. ग. समयमूर्ति (गुरु आ. सागरचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ ); आ. सागरचंद्रसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि बृहत्खरतरगच्छ); गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (गुरु आ जिनसिंहसूरि बृहत्खरतरगच्छ); पठ. सा. कीर्तिमाला (गुरु सा. कनकमाला); गुपि. सा. कनकमाला, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले. श्लो. (१२८१) आचंद्रार्कस्थिरी भूयात्, जैदे. (२५५११, ५x४५). " उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका है.) ८०२२६. देवगुरुधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७५८, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. खीमजी ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी देवगुरुधर्मसज्झाय विक्रम- १७५८ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है. जैवे. (२६११.५, १६-२०x३७). ३ तत्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि परम पुरुष परमेश्वर अति: मुनि भणइ धर्म सज्झाय, गाथा-२८. ८०२२७. (+) श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जै.. (२५.५X११, १५X४८). " ३५७ लोक संग्रह पुडि प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: त्रैकाल्यं द्रव्वषट् अति (-), (पू.वि. "पुण्यनंदि कृतानि" श्लोक अपूर्ण , तक है. वि. विविध गति आगत जीव लक्षण, ६ लेश्या लोकादि संग्रह.) For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०२२८ (+#) कर्मग्रंथ-१, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६४५०-५३). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण तक है.) ८०२२९ (+#) औपदेशिक कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २२४५०). औपदेशिक कथा संग्रह, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दुराचारी नारी कथा श्लोक-५ अपूर्ण से शक्रप्रशंसित ईर्यासमितिपालक साधु कथा श्लोक-४ अपूर्ण तक है., वि. कषाय-समिति-गुप्ति आदि विषयक उपदेश सह कथाओं का संग्रह है. निश्चित कोई ग्रंथ के लिए संशोधन अपेक्षित.) ८०२३० (+) परदेशीराजा चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १६४२७-३२). प्रदेशीराजा चौपाई, म. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: तिण कालनै तिण समै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८०२३१. अनाथीमुनि सज्झाय व नेमिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: अनाथी, जैदे., (२६४१२, १८४४२-४५). १.पे. नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेतक रेवाडी चढ्यो; अंति: समयसुंदर० कर जोडि, गाथा-१३. २. पे. नाम. नेमिजिन विवाहलो, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: नगर सोरीपुर शोभतो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ८०२३२. २४ दंडकजीव अल्पबहत्व, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४१२, २३४६०-६३). २४ दंडक जीव अल्पबहत्व, मा.गु., गद्य, आदि: एक तो उधोलोक१ तिरछो; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-११ अपूर्ण तक है.) ८०२३३. गुणसारऋषिराज स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, जैदे., (२६४११, १६x४५-४८). गुणसारऋषिराज स्वाध्याय, मु. कमलविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीलतावन; अंति: कवि कमलविजय जयकार, गाथा-२७. ८०२३४. (#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३८-४२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-३, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) । ८०२३६. वीरजिन पंचकल्याणक चैत्यवंदन, सात भय व सात भावभय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १३४२२-२५). १.पे. नाम. वीरजिन पंचकल्याणक चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन-पंचकल्याणक, श्राव. लाधो साह, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासण उद्योतकार; अंति: लाधो० महोदयपद लह तेह, गाथा-१५. २.पे. नाम. सात भय, पृ. १आ, संपूर्ण. ७भय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इहलोक भय १ परलोक भय; अंति: मरणभय ७ द्रव्यभय. ३. पे. नाम. सात भावभय, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ भाव भय, मा.गु., गद्य, आदि: काम १ क्रोध २ मद ३; अंति: द्वेष ६ मिथ्यात्व ७. ८०२३७. (#) शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८३, चैत्र कृष्ण, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सरूगाला, प्रले. पं. रंगसागर; पठ. ग. सौभाग्यविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४६). For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३५९ शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: नर मनवंछित फल पावै, गाथा-२१. ८०२३९ (4) पार्श्वजिन स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०x४५-४८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: एकल मल छे आधार रे; अंति: ति महिर करइ जगदीश रे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. नयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मो मनमंदिर आइ; अंति: रविससि ज्योति तिसीरी, गाथा-३. ८०२४० (4) नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. इसी कृति को पत्र के २ गाथा लिखकर छोड़ दी गयी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४४५-४८). नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल वीठी वागमइ; अंति: तुं पामइ सुरतरु छउडा, गाथा-१५. ८०२४१ (+) भगवतीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी: भगवतीसू. हुंडी खंडित है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, १२४४५-४८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. तुंगीयानगरी अधिकार अपूर्ण मात्र है.) भगवतीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८०२४२. आत्मचेतन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, ७४२५-३०). औपदेशिक सज्झाय-आत्मचेतना, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अवसर खोयो रे दिवाना; अंति: घट घट मे जोयो रे, गाथा-५. ८०२४३. पत्रलेखन पद्धति-श्रावकों की तरफ से गच्छाधिपती को पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, दे., (२५४११, २७४८-३५). पत्रलेखन पद्धति-श्रावकों की तरफ से गच्छाधिपति को पत्र, पुहिं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसकलश्रेय; अंति: गच्छाधिपती०श्री श्री. ८०२४४. जीवदया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १४४४०). जीवदया सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर करूं; अंति: बेकर जोडी मुनीवर कहे, गाथा-२६. ८०२४५. दसश्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १५४४५-४९). १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी प्रणमी दसे; अंति: कह्या मुनीसर सार रे, गाथा-१४. ८०२४६. (+) शीलरी कला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, १५४३८-४२). औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, मा.गु., पद्य, आदि: शीलना छे जी अनेक; अंति: लो शील तजो नारी दुर, गाथा-१६. ८०२४७. पार्श्वजिन स्तव- चौवीसदंडकगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२, १३४३२-३७). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ८०२४८. सीमंधरस्वामी स्तवन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. मु. वीरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १२४२५-२८). १.पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: लाभै० पुरी आसा ___ मनतणी, गाथा-१८. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८०२४९. षडावश्यकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-६(१ से ६)=३, जैदे., (२५४११, १३४२८). For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यक सूत्र- षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति करी मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. पगामसज्झाय अपूर्ण से सागरचंदो सूत्र तक है.) 1 ८०२५० (+) वसुधारा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी वसुधारा, टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. " जैवे. (२५x११.५, १५X३५-३९) वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: (-), (पू.वि. "प्रयछितुप्रतिद्धिनु संर्वम्रपदानिह तथ" पाठांश तक है.) ८०२५१ (+#) महावीर स्तवन व दसपच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५४१२, ११४२५-२८) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, ग. लब्धिवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि वरधमान जिनवर तणाजी; अंतिः विध बिल्लभ इम कही. गाथा १५. יי २. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद्र तपविधि भणें, ढाल-३, गाथा-३३. ८०२५२ (७) ऋषभदेव विवाहलो व ऋतुवंती दोष, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ४, कुल पे. २, ले. स्थल, जंबुसर, प्र. वि. हुंडी: ऋषभविवाहलो. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११.५, १६४३६). " १. पे नाम ऋषभदेव विवाहलो. पू. १अ-४अ संपूर्ण. आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि आदि धर्म जिणि उपर्यो; अंति: कहेत कविता ऋषभदासो, गाथा- ६९. २. पे नाम रीतुवती दोष गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. ऋतुवंती दोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि जा पुप्फपवीह ज्ञाने; अंतिः सिद्धंत विराहगो सोय, गाधा-६. ८०२५३. अठावीसलब्धिनिधान स्तवन व सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १२x२८-३२). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-अठावीसलब्धि, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिनेसर; अंति: धरमवरधन० प्रकाश ए, ढाल -३, गाथा - २५. २. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी स्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाय; अंति: भगत भाव प्रशंसीयो, ढाल - ३, गाथा - २०. ८०२५४. जंबुस्वामी चौडालीयो, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. जै.. (२६४११.५, १५४३२). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीगुरु पदपंकज नमी अंति: (-), (पू. वि. दाल-३, गाथा-३ तक है.) " ८०२५६. गजसुकमाल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., ( २६x१०.५, ९X२७-३०). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, रा., पद्य, वि. १८६८, आदि गजसुखमाल देवकीना; अंति (-), (पू. वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ८०२५७ (+) कर्मविपाक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११.५, १४X३६-४०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी आदि सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१- बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयोमार्गस्य वक्ता; अंति: (-). ८०२५९ (#) २४ जिन आंतरा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, गु., (२५x११, १२X४७). For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३६१ २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथ आंतरइ; अंति: कल्प पुस्तकारूढ हुओ. ८०२६० (#) जंबुकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५-२५.५४११, १३४४५-४८). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सीणकर नर राझीय; अंति: पहुता छै देवद्वार, गाथा-१५. ८०२६१. (+) शालिभद्र चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १९४६१). शालिभद्र चरित्र, पंडित. धर्मकमार, सं., पद्य, वि. १३३४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-३, श्लोक-५५ अपूर्ण से प्रस्ताव-४, श्लोक-३१ अपूर्ण तक है.) ८०२६२. (#) २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै., (२५४१२, १२४२५). २४ जिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, आदि: भाव वंदु श्रीआदजीणंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८०२६३ (+#) चित्रसंभूति चौढालियो, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी: संजती., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १६४२७-३०). चित्रसंभूति चौढालियो, म. जयसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: प्रणम् सरसति सामणी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८०२६४. (+) युगप्रधान विवरण व गणधर विवरण कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २५४३५). १.पे. नाम. युगप्रधान विवरण कोष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-), (वि. २३ उदय सर्वाचार्य संख्या, उदय आद्यंताचार्य नाम व प्रथम दो उदय के आचार्यों के आयुष्यादि.) २. पे. नाम. गणधर विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८०२६५. तेजसारकुमार रास-जिनेश्वरपूजादीपकभावविशुद्ध विषये, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-२५(१ से २५)=१, जैदे., (२५४११, ७४४०-४४). तेजसारकुमार रास-जिनेश्वरपूजा दीपकभावविशुद्ध विषये, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२८ गाथा-१६ अपूर्ण से है व ढाल-२९ का दोहा-६ तक लिखा है.) ८०२६६. (#) मौनएकादशी चैत्यवंदन, घडपन सज्झाय व अखात्रीज वायरा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४१२, १९४४६). १.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक जग जयो; अंति: शिवलक्ष्मी सुख लीजे, गाथा-१६. २.पे. नाम. घडपण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. जामपुर. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: घडपण तुझ केणे तेडिओ; अंति: एम रुपविजय गुण गाय, गाथा-८. ३. पे. नाम, अखात्रीज वायरा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. अखात्रीज वायु विचार, मा.गु., गद्य, आदि: वैसाख शुदि त्रिजने; अंति: नमः सायुधाय सवाहनाय. ८०२६७. (#) भक्तामर स्तोत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X११, १२४५०-५५). भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., श्लोक-४ अपूर्ण से ५ तक की टीका है.) For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०२६८. (#) प्रतिक्रमणसूत्र व सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-५(१ से ५)=३, कुल पे. २, पठ. श्राव. जगरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८). १. पे. नाम, पडिकमण सूत्र, पृ. ६अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. "ते संखवेउसियं जे सं सुअसारे भत्ति" पाठ से है.) २. पे. नाम. सकलार्हत्स्तोत्र, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरभद्रं दिस, श्लोक-३५. ८०२६९ भगवंतना बेटा व पुरुषनी बहोत्तर कलाना नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १८४३५-३८). १. पे. नाम, भगवंतना बेटाना नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिनपुत्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि: शंखो १ विश्वकर्मा २; अंति: राज्य वेंहची दीधी. २.पे. नाम, पुरुषनी बहोत्तर कलाना नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ७२ कला नाम-पुरुष, मा.गु., गद्य, आदि: लिखित १ गणित २ गीत ३; अंति: इत्याद्यनेक परुषकला. ८०२७० (#) पौषधोपवास उपधान प्रायश्चित, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६४४०-४४). श्रावक आलोयणा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: ति१ व्वार२ पनर३ वारस; अंति: पडिलेहणाइसु आचामाम्ल, संपूर्ण. ८०२७१ (+#) विहरमान २० जिन परिवारादि कोष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १९४४०-४४). २० विहरमानजिन परिवारादि कोष्टक, मा.ग., को., आदि: (-); अंति: (-). ८०२७२ (+) विवेकमंजरी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १४४४०-४४). विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि , प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९९ अपूर्ण से १३० ___ अपूर्ण तक है.) ८०२७३. (#) सपार्श्व, चंद्रप्रभ व सविधिजिन गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३३). १. पे. नाम. सुपास गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन गीत, ग. कुंअरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आज सुपासजिन मिलीओ; अंति: देस्यइ शिवपद राज, गाथा-६. २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ग. कुंअरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मन मधुकर तुम्ह; अंति: लेख लिखी मोकलुं रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. सुविधिजिन गीत, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. कुंअरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सान करी समझावीइं रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८०२७४. (#) नेमनाथ बारमासी व शिवपच्चीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: शिवपच्चीसी., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, २०४४५-४८). १.पे. नाम. नेमनाथ बारमासी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. तिमिरीनगर. नेमराजिमती बारमासा, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: दिल शुद्ध प्रणमुं; अंति: सुख हुवै श्रीकार, गाथा-१४. २. पे. नाम. शिवपच्चीसी, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: मोह महातम नासिनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ८०२७५ (-) जंबुस्वामी सज्झाय व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १२४४०-४५). For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org १. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. - मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि राजगरी नगरी भली रखवत अति मतोपरण आवइ नारी जी, गाथा १३. २. पे. नाम औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रंगरुली परवारम करता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-११ अपूर्ण तक लिखा है.) ८०२७६. (१) पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण वि. १७९९ माघ कृष्ण, ७, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १७४४५-४८), ८०२७८. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रावकपाक्षिक अतिचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि विशेषतः श्रावक तणे; अंति अतीचार माहि अनेरोजि. ८०२७७, (४) नेमराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१२, १२४३४) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः उग्रसेन भोज पठाईया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) पुण्यकुलक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५x११.५, ५X३७). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपून्न इंदियत्तं; अंति: लब्धंति सासयं सुखम्, गाथा - १०, ( वि. प्रतिलेखक ने प्रारंभिक पाठ छोड़ दिया है.) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि इंदि० पांच इंद्रि, अंतिः सास्वता सुख पामई. ८०२७९ (+) महावीरजिन स्तोत्र व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२५.५x११.५ १०४३५). १. पे. नाम महावीरजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, महावीरजिन स्तोत्र-व्यंजनवर्णगूढार्थगर्भित, मु. रूप, सं., पद्य, आदि: विबुधरंजकवीरककारको; अंति: रुपकेण प्रसिद्धा, श्लोक- ७. ३६३ २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: सजन प्रीत जसि कीजीइ; अंति: रिसुं बिठा आलस आणी, गाथा- ९. ८०२८० (+) विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ ( २ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १८x४९ ). जैनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अति: (-) (पू.वि. करेमि भंते सूत्र अपूर्ण से उत्तरासण की विधि तक है.) जैदे., " ८०२८१ (१) महावीरजी की रसोइ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ., (२६X१२, ११X३५). भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रसलाराणी कहो मेरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ८०२८२. ब्रह्मदत्त रास ढाल -४, दोहा-१ से ढाल -५ गाथा - १७ तक, संपूर्ण, वि. १९३०, आश्विन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, दत्त. पुरुषोत्तम खत्री; गृही. श्रावि. मानुबाई; अन्य. हीरजी आणंदजी खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : ब्रह्मदत्त ढाल. प्रत के अन्त में प्रतिलेखक के द्वारा 'आ पानु हीरजी आणंदजी खत्रीनुं छे. ऐसा लिखा गया है. दे. (२६४१२, १४४३८-४२). चित्रसंभूति रास, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति (-), प्रतिपूर्ण, ८०२८३. (*) राईप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५५११.५, For Private and Personal Use Only १४X३०-३५ ). राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम इरियाविहि; अंति: बहुवेल करसुं. ८०२८४. बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे. (२६४११.५, १५४५८). Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१३ अपूर्ण से २५४ अपूर्ण तक है., वि. गाथा क्रमांक में व्यतिक्रम है.) ८०२८५ (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७०८ कृष्ण, १२, रविवार, मध्यम, पृ. ५-२(१,४)=३, ले.स्थल. अमदावादनगर, प्रले. मु. त्रिलोकसी (गुरु मु. आणंदजी ऋषि); गुपि. मु. आणंदजी ऋषि (गुरु आ. शिवजी); आ. शिवजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७४५) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेत्, (१२६८) भग्न प्रिष्टि कटी गृवा, जैदे., (२४४११.५, १२४२७-३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४८, (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक व ३० अपूर्ण से ४१ अपूर्ण तक नहीं है.) ८०२८६. (+) विविध विचार व सुपार्श्वजिन फणा विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १९४६२). १. पे. नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: बेइंदियाइसुपि नेयं, (पू.वि. प्राणातिपातविरमण विचार अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, सुपार्श्वजिन फणा विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: श्रीसुपार्श्व फणापंच; अंति: सुपास सीसाई. ८०२८९. चैत्यपरिपाटी पुराणोत्तमपुरुष स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १३४४०-४५). शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्यं श्रीभुवनाधि; अंति: श्रीधर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. ८०२९०. साधारणजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ९x४५). साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: निपीय वाक्यं वदनेंदु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ८०२९१ (+#) नंदीषणमुनि सज्झाय, जैन लग्नविधि व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १६x४१). १.पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पं. रंगविजयजी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगही नगरीनो वासी; अंति: नहीं कोई तोले हों, ढाल-३, गाथा-१४. २.पे. नाम, जैन लग्नविधि, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनविवाह विधि, सं., प+ग., आदि: असाढ सुद ११थी मांडी; अंति: भास्करं बलं श्लोक. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: वर्षास्यधानां तृणशीत; अंति: सूप्ते हरि सस्यते, श्लोक-४. ८०२९२. वीर स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४१२.५, ९४३९). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: आगमेस्संतिई तिबेमो, गाथा-२९, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ८०२९३. ऋषभदेव, अनंतनाथ व अभिनंदनजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १२४३५). १. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: शुभ्रामरी भासिता, श्लोक-४. २. पे. नाम. अनंतनाथ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___अनंतजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: सकलधौतसहासन मेरवस्तव; अंति: मुच्चतुरं गमनायकम्, श्लोक-४. ३.पे. नाम. अभिनंदन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: त्वमशुभान्यभिनंदननंद; अंति: सुरभियाततनुंतमहारिणा, श्लोक-४. ८०२९४. औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, ११४२८-३२). For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, रा., पद्य, वि. १७वी, आदि: मन सूणो रे तोरी सफल; अंति: खाण मान नहि मावं, गाथा-५. ८०२९५ (-१) दयापालन व शीलपालन सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, २२४५२-५५). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. चौथमल, पुहि., पद्य, आदि: दया धरम के परभावे भव; अंति: चोथमल० जोत मिलावोगे. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-शीलपालने, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. चोथमल, पुहिं., पद्य, आदि: सिलरतन्न का करो; अंति: चोथमल०मनचत कारज थावे. ८०२९६. रोहिणीतपमहिमा तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.४, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद्र ऋषि; लिख. श्रावि. चांदबाई, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ९४३२). रोहिणीतप स्तवन, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामणीए मुज; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. ८०२९७. छुटकबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, प्र.वि. हुंडी: छुटकबोल., दे., (२५.५४११.५, ११४३७-४०). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आठ बोले जीवने मोक्ष; अंति: ए सात खाड भराय नहीं, (पू.वि. बीच के कुठ पाठांश नहीं हैं.) ८०२९८. (#) गौतमस्वामि रास, शत्रुजयतीर्थ रास व गौडीजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३५, माघ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. रतिसुंदर; पठ. मु. खुस्याल (कवलागच्छ); मु. लच्छि (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १९४५३-५६). १.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: नितनित मंगल उदय करो, गाथा-५५, (वि. अंतिम कुछ गाथाओं में प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं दी है.) २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२. ३. पे. नाम. गौडीजी स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वसता, रा., पद्य, आदि: जोर बन्यो जोर बन्यो; अंति: वसता० जोर बन्यो राज, गाथा-१५. ८०२९९ (#) गौतमस्वामि रास व नवकार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३६-३९). १.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विनयभद्र० इम भणे ए, गाथा-७८. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० तक है.) ८०३००. (+) आत्मनिंदा भावना, संपूर्ण, वि. १९२७, चैत्र शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. धीरसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: आतमनि., संशोधित., दे., (२५४११.५, १२४२५-२८). __ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगुण प्रवीन. ८०३०१. जिनपूजा गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३२). जिनपूजा गीत, मु. अमरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चकेसरिने नही को तोल; अंतिः सवपद नाम सखाइ रे, गाथा-१७. ८०३०२ (+) बासठमार्गणा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १२४३८). For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.ग., गद्य, आदि: गइ ४ इंदिय ५ काए ६; अंति: दोय से दोय भेद २०२, (वि. यंत्र सहित) ८०३०३. (+) शांतिनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३५). शांतिजिन स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६४२, आदि: सोलमो जिनवर सेवीये; अंति: सन्न सोलमो जिनवर सदा, ढाल-८, गाथा-४६. ८०३०४. (+) १४ बोल व आगमिकपाठ संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, कल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४४४). १. पे. नाम. १४ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ बोल-संयत असंयतादि की जघन्योत्कृष्ट देवगति, मा.गु., गद्य, आदि: १ असंजमी मिथ्यात्वी; अंति: जीव भवनपती ९ ग्रैवेक. २.पे. नाम. आगमिकपाठ संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: से भयवं तहारूवं समणं; अंति: पिण वंदनीक छै, (वि. जिनप्रतिमापूजा साक्षीपाठ.) ८०३०५ () पार्श्वनाथ स्तवन-स्तंभनक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४९). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहयण वरकप्प; अंति: अभय० विन्नवइ आणंदिय, गाथा-३०. ८०३०६. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११, १२४३३). अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा-३२. ८०३०७. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१३, पौष कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. रामलालजी; पठ. सा. जासुजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १७४४६-५२). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कटवचन त्याग, रा., पद्य, आदि: कडवा बोल्यां अनरथ; अंति: मोसो कोइ मत प्रकासो, गाथा-२५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म.रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: प्यारो मोहन गारोराज; अंति: मुक्ति ले जावै, गाथा-१२. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. रामचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: नो मासातो गरभवास में; अंति: भु अब मोहि पार उतारो, गाथा-१०. ४. पे. नाम. गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, प. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: तिजि सुमति छै एषणा; अंति: श्वतो वरते सदाइ समाध, ढाल-२, गाथा-३१. ८०३०८.(+) मणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. १८८८, चैत्र शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. पं. उत्तमविजय; पठ. म्. हेमविमल,प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३८-४०). माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनी पाय पण; अंति: वीर आपो मुझ सुखसंपदा, गाथा-४०. ८०३०९ (#) पाँच सौ तिरसठ जीव विचार व प्रवचनमाता थोकडा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, २५४६८). १.पे. नाम, पाँच सौ तिरसठ जीवभेद विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५६३ जीवभेद विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: २३१ प्रज्याप्ता ९९; अंति: बादर वाउना एवं १२. २. पे. नाम. पाँच सुमति तीन गुप्ति थोकड़ा, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३६७ उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २४ गत प्रवचनमाता का थोकडा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इर्यारा ४ भेद आलोचणा; अंति: हीज भवे मोक्ष पधारता. ८०३१०. (4) सप्तनय विचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६६, आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कृष्णगढनगर, प्रले.ऋ. खुस्यालचंद; पठ. पं. दोलतराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४४९). अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरूप, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., गद्य, आदि: से किं तं नए सत्तमूल; अंति: तदुभय एवंभूओ विसेसेइ. अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरूप का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सात नय विषै नैगम; अंति: इति पंचमांग वचनात्. ८०३११ (+#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पोर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, २०४३८). गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सरस वचन दाय सरसति; अंति: गौतमरिषी आपो सुखवास, गाथा-६६. ८०३१२ () झांझरियाऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महियलमांहि मुनिवर; अंति: लब्धिविजय कहि मनखंति, गाथा-३८. ८०३१३. पकवान कालमान, सचितअचित व अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११,११४४७). १.पे. नाम. पकवान कालमान, पृ. १अ, संपूर्ण. पकवान आदि कालमान विचार संग्रह, मा.गु., प+ग., आदि: वरसीमते पनरै दिन; अंति: ट्रैश कालै वावरै, गाथा-१. २.पे. नाम. सचित्तअचित्तनी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: नयविमल कहे सज्झाय, गाथा-२३. ३. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: एक दिन अरणक नाम; अंति: करजोडी कवियण भणे जी, गाथा-२४. ८०३१४ (+) शारदा छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. द्राफा, प्रले. मोहनजी बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२,१३४३८). सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकलसिद्धिदातारं; अंति: होई सयासंघ कल्याणं, गाथा-४४. ८०३१५. आत्मानो आत्मा अठकत्वनो थोकड़ो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. पार्वती पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १५४४३). विचार संग्रह-भगवतीसत्रे-शतक-१२ उद्देश-१०, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीगोतमस्वामी हाथ; अंति: तांइ भांगा २३ जाणवा, (वि. सरिणीयुक्त) ८०३१६. ककाबत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. दुसरी कृति के प्रारंभिक पद का प्रथम चरण "प्रथम प्रणाम मंगल जिणवर चरण" के बाद का पाठ नहीं है., जैदे., (२५४११, १३४४६). ___कक्काबत्रीसी, पुहिं., पद्य, आदि: कका कर कुछ काज धर्म; अंति: अनंत जन्मो रह्या, गाथा-३३, संपूर्ण. ८०३१७. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १२४३०). आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर रीषभ; अंति: होजो तुम पाय सेवा, गाथा-१४. ८०३१८ (2) नंदिषेणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. विवेकविजय; पठ. मु. प्रेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४७). For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगही नगरीनो वासी; अंति: मेरुविजय०कोइ तोले हो, ढाल-३, गाथा-१४. ८०३१९ स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११, १६x४४). स्तवनचौबीसी, मु. मुक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुना चरणनी सेवा; अंति: (-), (पू.वि. अभिनंदनजिन स्तवन, गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८०३२० (+) गोडीपार्श्वजिन वृद्धस्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १७४४०-४३). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ तक है.) ८०३२१. पंचतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खेटक, जैदे., (२५४११,८-१४४४०). ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिइ आदजिणेसरु ए; अंति: भणतां सूखे आवे वासना, गाथा-७. ८०३२२. रथनेमिराजिमती व भूदेवनागिला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १६x४५). १.पे. नाम, रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. हीरमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: संयम लेवा संचरी राणी; अंति: जिण जोडी सज्झाय, गाथा-१०. २. पे. नाम. नागीलाभवदेव सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदेव भाई घेर आवीया; अंति: प्रणमै पाय रे, गाथा-१६. ८०३२३. कार्तिकशेठ कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५.५४११, ९४३३). कार्तिकसेठ कथा, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथवीभूषणनगर प्रजा; अंति: इंद्रने पगे लागो, संपूर्ण. ८०३२४. कल्पसूत्र व २४ तीर्थंकरनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, ४२४१८). १.पे. नाम. २४ तीर्थंकर माता-पितादि नाम विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.ग., को., आदि: आदिनाथजी१ नाभी१; अंति: नंदावृत वामा धनुष १५. २. पे. नाम. कल्पसूत्र का व्याख्यान, पृ. १आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पवार्तिक व्याख्यान+कथा, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: पुरिम चरिमाण कप्पो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने मात्र कृति को प्रारंभ करके छोड़ दिया है.) । ८०३२५ (+) उपधानतप विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३६). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: उपधान ६ ना नाम; अंति: पोसह ४ नुकार ८०००, (वि. वाचना संख्या, दिनमान आदि का कोष्ठक, वाचना विचार व आलोयणा तपोदान दिया गया है.) ८०३२६ (+) उपधान आलोयण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४०). उपधान आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: मूलगी आलोयण नथी; अंति: मोकलै परठवू एकासमुं. ८०३२७. ईरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. कुंअरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १२४३२). इरियावही सज्झाय, म. पद्म, मा.ग., पद्य, आदि: सरसती सदगुरुना पाय; अंति: पसाइ पदम कहे सजाय रे, गाथा-१६. ८०३२८. (+#) विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १८४४५). विविध विचार संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदि: एकविह१ दुविह२ तिविहं; अंति: (अपठनीय). ८०३२९ (+) रामसीता रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १९४५२). For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३६९ रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-५ ढाल-४ गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-३ अपूर्ण तक है) ८०३३०. शत्रुजय भास, आदिजिन व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १३४२९). १.पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ भास, पृ.१अ, संपूर्ण. पंडित. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि पाए नमी; अंति: तीरथ अवर नही तोलइ, गाथा-६. २. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. दीप्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जसगुण छइ कोडाकोडीजी; अंति: दीप्तिविजय गुण गायजी, गाथा-९. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति नाम हृदय धरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८०३३१ (+#) २४ जिन स्तोत्र, वैराग्यस ज्झाय व बृहस्पति स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४६७). १. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र- गाथा १ से ५, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, ग. संघविजय, सं., पद्य, आदि: वृषभलांछन लांछित; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, म. विद्याचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाय लाग; अंति: लाई अरिहंत सेवा कोडि, गाथा-१३. ३. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: बृहस्पतिः सुराचार्यो; अंति: सुप्रीतिस्तस्य जायते, श्लोक-५. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: बाला या नव संगमे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कलादान श्लोक अपूर्ण तक लिखा है.) ८०३३२. (+-) कामदेवश्रावक चौढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२५४११, १५४४५). कामदेवश्रावक चौढालिया, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: वेहरमान वीसे नमूं जग; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ८०३३३. (+) अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३०). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछत फल लीना जी, गाथा-८. ८०३३५. पार्श्वजिन स्तोत्र, गाथा संग्रह व वर्षिदान विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. ३,प्र.वि. हंडी: सिझाय., जैदे., (२५.५४१०.५, ८-१०४३०-३६). १.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकोडिजणणी दुरंत; अंति: हुंति मे जीवे, गाथा-२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: वासरा पुण्यभासरा, श्लोक-५. ३. पे. नाम, वरसीदान सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. वर्षिदान सज्झाय, प्रा., पद्य, आदि: सारस्सयमाइच्चा वण्ही; अंति: एयं संवच्छरे दिण्णं, गाथा-७. ८०३३६. (#) औपदेशिक मजलस, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १४-१५४३६-४१). औपदेशिक मजलस, पहिं., पद्य, आदि: अहो० कहो मजलस कौण; अंति: धागिरचंद धाबैत कहणा. For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०३३७. तस्करपच्चीशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५१, चैत्र शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. पुरूषोत्तम ऋषि (गुरु मु. हाथीजी ऋषि); गुपि. मु. हाथीजी ऋषि; पठ. मु. हरखचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: तसकर२५, दे., (२४.५४११.५, १२४३१). तस्करपच्चीशी सज्झाय, म. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: चोरी चित्तना धरो नर; अंति: खोडी० पुरफते चोमासु, गाथा-२५. ८०३३८ (#) नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २, प्रले. पं. राजपाल ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४११,१७४३२). नेमिजिन स्तवन, म. पावन शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सकल सिद्ध प्रणमेव; अंति: पाठक जनने सुखकरु, ढाल-६, गाथा-४२. ८०३३९. दशश्रावक सज्झाय व नौ रस नाम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, पठ. श्राव. लाडकीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: दसश्रावक, जैदे., (२६४११.५, ११४४०). १. पे. नाम. दस श्रावक सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: जिन चउवीसइ करी; अंति: गछ पभणइ नन्नसूरि, गाथा-३२. २. पे. नाम. नौ रस नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. ९रस नाम, मा.गु., गद्य, आदि: वीररस १ सिंगाररस २; अंति: भोगरस ८ उपसांतरस ९. ८०३४० (#) एकादशीतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्रावि. जमना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४११, ११४२७). मौनएकादशीपर्व सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: द्वारका नगरीये एकदा; अंति: एक व्रत तप आदरो जी, गाथा-२२. ८०३४१. धर्मबावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १५४४३). अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदि: ॐकार उदार अगम अपार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ८०३४२. पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५३, वैशाख शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४३७). १.पे. नाम, क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करीयै भोला; अंति: रे पोहचै सयल जगीस, ढाल-४, गाथा-३२. २.पे. नाम. नेमिराजिमती पद, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: वालिम मोरा न समजावो; अंति: ग्यान० गुण गावो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: पुदगलाद बे क्या; अंति: जबलग घटमै सासा, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हो ऋषभजिन मानु प्यार; अंति: वेणती आवागमन निवारा, गाथा-४. ८०३४३. (+) कल्पसूत्र सामाचारी का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: कल्प सामाचारी अर्थ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५,१४४३३). ___ कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्री कालिकाचार्य हुउ, प्रतिपूर्ण. ८०३४४. शिखामणछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. रामजी भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सिखामण, दे., (२४.५४११.५, १२४३४). उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सजना नरनार; अंति: मोहन वेलि वाणि, गाथा-३६. For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३७१ ८०३४५. अष्टमीतिथि व वासपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: आष्ट०, दे., (२५.५४११.५, १०४३४). १.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुं सदा; अंति: लावण्य० कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासवपुजीत वासुपुज्य; अंति: अनुभव सुख थाय, गाथा-६. ८०३४६. गौतमस्वामि रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. कीर्तिराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १९४७०). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: सुखसंपति घरि नवनिधए, गाथा-९०. ८०३४७. (#) गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३५). पार्श्वजिन स्तवन-बृहत् गोडीजी दशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर जगतिलौ ए; अंति: समयरंगगणि इम बोलै, ढाल-५, गाथा-२३. ८०३४८. (4) ऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११, ८x२१). आदिजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर पुजवा; अंति: उछले हर्ष तुरंग हो, गाथा-९. ८०३४९. षडावश्यक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८९, वैशाख कृष्ण, ४ अधिकतिथि, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२८x११.५, १२४४१). ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिन विनवी; अंति: विनयविजय०शिवसंपद लहे, ढाल-६, गाथा-४४. ८०३५० (+) उपधानविधि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्रावि. विजलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ११४२८). उपधानविधि सज्झाय, मु. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात लही सुपसाया; अंति: वाचक भोज गुण गाया रे, गाथा-१८. ८०३५१. २४ तिर्थंकर कल्याणक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, ५२४१८). २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सुविधिनाथ अहँत; अंति: वदि ३० मोक्ष महावीर, (वि. साथ में कल्याणक की सामान्य विधि दी गई है.) ८०३५२. (+) महावीरजिन, आदिजिन भववर्णन संक्षेप व प्राकृतगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३६). १. पे. नाम. महावीरजिन २७ भव संक्षेप, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरनो जीव; अंति: हुवा २७ ए सतावीस भव. २. पे. नाम. जैनप्राकृत गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह जैन*, प्रा., पद्य, आदि: इकस्सभए पंचाणणस्स; अंति: गयणमि गाहा न दीसंति, गाथा-१. ३. पे. नाम. आदिजिन १३ भव संक्षेप, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन १३ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलि भवि धनउ सारथ; अंति: मरूदेवानी० आदिनाथ१३. ८०३५३. (+) १४ बोल-संयत असंयतादि की जघन्योत्कृष्ट देवगति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: बोलचउद., संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३२). १४ बोल-संयत असंयतादि की जघन्योत्कृष्ट देवगति, मा.गु., गद्य, आदि: असंजती भविहव देवा; अंति: नुमु ग्रीविक. ८०३५४. पांचपांडव विनती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १३४३१). ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलु; अंति: आवागमन निवार रे, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०३५५. पांडव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४३९). ५पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तनागपुर वर भलो; अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा-२०. ८०३५६. दानशीलतपभावना सज्झाय व पुन्यफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, २१४४२). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मुनिसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: अजितजिन आणंदस्यु; अंति: मुनि० मनोरथ पूरणा, गाथा-२१. २. पे. नाम, पुन्यनी सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घरि घोडा हाथीया; अंति: पुन्य तणा परिमाण रे, गाथा-१२. ८०३५७. रात्रीभोजनरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १७४३४). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, म. जैमल ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: रातरी भोजनको दोषण घण; अंति: ए सांभलजो नर अतीचार, गाथा-१९. ८०३५८. तीर्थंकर के ३४ अतिशय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१०.५, २५४१८). ३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: नखकेस रोमराई वधे नहि; अंति: रोग होय ते उपसमई. ८०३५९ (4) उंदर रासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखकनाम वाला भाग खंडित है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४९). उंदर रास, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: विनय करीने विनQ; अंति: सुजस० रचीओ रासो रंग, गाथा-४४. ८०३६० (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ४४३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक पाठ है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिन केवलीभगवंत; अंति: (-). ८०३६१ (+) नवकारवाली सज्झाय व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ११४३६). १.पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. कचरा अजमेरा, प्र.ले.पु. सामान्य. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. दुर्गादास, रा., पद्य, वि. १८३१, आदि: प्रथम श्रीअरिहंत; अंति: जाप जपो नोकारवाली, गाथा-१५. २. पे. नाम, औपदेशिक दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दान बडो मानव अनंतसार; अंति: (-), (वि. पत्र खंडित होने के कारण अंतिमवाक्य अवाच्य है.) ८०३६२. सातविसनरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५). ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: परउपगारी साध सुगुरु; अंति: गुरु सीस जयरंग कहे, गाथा-९. ८०३६३. चंद्रप्रभजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४२७). १. पे. नाम, चंदाप्रभुजीरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८६८, आदि: चंद्रापुरी नगरी; अंति: रतन० जोधाणो चावो हो, गाथा-१०. २.पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८५०, आदि: चंदापुरी नगरी माहासे; अंति: रतन० थांरा करम जाये, गाथा-१०. ८०३६४. सोलसतीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६२, कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. मयाचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १४४४४). For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३७३ १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदे जिनवर; अंति: उदयरतन० सुखसंपदा ए, गाथा-१६. ८०३६५ () गजसुकमाल सज्झाय, नेमराजुल व चित्तसंभूति गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६४३६). १.पे. नाम. गजसूकमालनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गजसकमालमुनि सज्झाय, मु. नथमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर आवतां मैं; अंति: एतो आवावगमण निवार, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७६५, वैशाख अधिकमास कृष्ण, १०, रविवार, ले.स्थल. दीवबंदर, प्रले. मु. राजपाल; पठ. मु. नेणसी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य. नेमराजिमती गीत, मु. मेरूविजयजी म., मा.गु., पद्य, आदि: हुतो बेठीती सखीयां; अंति: मेरुविजे० जिन तेहवो, गाथा-९. ३. पे. नाम. चित्तसंभुति गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मदत्त रे कंपिल; अंति: ब्रह्मो० करे प्रणाम, गाथा-१२. ८०३६६. सागरचंद्रकुमारनो दृष्टांत व दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १६४३०). १. पे. नाम, सागरचंद्रकुमारनो दृष्टांत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सागरचंद्रकुमार द्रष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: द्वारापुरी नगरी तहार; अंति: वांछित सुख पामइ सही. २. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १आ, संपूर्ण. __मा.गु., पद्य, आदि: हेज हरियाली जाणीए; अंति: सूरो लतो थाय, दोहा-१. ८०३६७. बुद्धि रास व उपसम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७०५, माघ शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. लध्वाख्यग्राम, प्रले. मु. यशोराज (गुरु मु. सिद्धराज, लुंककवर हरिपक्षगच्छ); गुपि.मु. सिद्धराज (लुककवर हरिपक्षगच्छ); अन्य. मु. खीमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, २२४६३). १.पे. नाम, बुद्धि चरित्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बद्धि रास, आ. शालिभद्रसरि, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमीय देवी अंबाई: अंति: ते घरे टले कलेस तो. गाथा-६२. २. पे. नाम. उपसम स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-उपशम, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भवभंजण रंजण जगदेव; अंति: गरभवास तेह नवि लहइ, गाथा-१२. ८०३६८ (+) शांतिस्नात्र गाथाचतुष्क, अष्टमी व एकादशीतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १२४४०). १. पे. नाम. शांतिस्नात्र गाथाचतुष्क, पृ. १अ, संपूर्ण. शांति स्नात्र पूजाविधि-शांतिस्नात्र गाथाचतुष्क, हिस्सा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: ॐ वरकणय संखविद्दम; अंति: उवसमंतु मम स्वाहा, गाथा-४, (वि. १०८ अभिषेक की संक्षिप्त विधि सहित.) २.पे. नाम, अष्टमी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति चरणे नमी आपो; अंति: वाचक देव सजगीस, गाथा-७. ३. पे. नाम. इकादसी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज मारे एकादशी रे; अंति: उदयरतन० लीला लहस्यइ, गाथा-७. ८०३६९. पंचमी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, १७७५२). पंचमीतिथि नमस्कार, मु. जीवविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर पंचबाण; अंतिः सदा जीतविमल सुख थाय, गाथा-९, (वि. ३ गाथा को १ गाथा गिनकर ९ गाथा का परिमाण दिया है.) For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०३७० (+) आलोचना विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११,१६x४३). आलोचणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: पणन्नविय० पच्छित्तं, (पू.वि. क्रमांक ७३ से है.) ८०३७१ (+) पुद्गलपरावर्तन थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १५४४६). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१२ उद्देश-४ गत पद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तेना चार प्रकार कहे; अंति: १२मे उदेसे चोथे छे. ८०३७२. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. इल्लोलनगर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय; पठ. श्रावि. झवेरबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीकुंथुनाथजी श्रीऋषभदेवजी प्रशादेन., दे., (२५.५४१०,१२४३१). सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.ग., पद्य, आदि: जी हो प्रणम दिन; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४, गाथा-२५. ८०३७३. (+) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१८(१ से १८)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३७). महावीरजिन स्तवन-सम्यक्त्वविचारगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: आरजदेसमां आरजदेस मगध; अंति: (-), (पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा १५ तक है.) ८०३७४ (+) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७-५(१ से ५)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४११, १२४४४). विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वाणी के ३५ गुण अपूर्ण से जल का प्रकार अपूर्ण तक है., वि. ३५ वाणीगुण, मरणप्रकार, आयुबंध, थंडिलमांडला व जलप्रकारादि विचार.) ८०३७५. आद्रकुमारमुनि धवलधमालि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४६). आर्द्रकुमारमुनि सज्झाय, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: सकल जैन गुरु प्रणमुं; अंति: कनक० भणतां सब सुखकार, ढाल-५, गाथा-४९. ८०३७६. जयंतीश्राविका प्रश्नोत्तर-भगवतीसूत्रे, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४८). भगवतीसूत्र-प्रश्नोत्तर, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल अनइ ते समाने; अंति: जीवडा हीया रे भला. ८०३७७. (+) पद्मावती आराधना, औपदेशिक सज्झाय व सीतासती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०, १७X४५). १.पे. नाम. पदमावती जीवरास सिखामण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: मुज मिच्छामिदुक्कडं, ढाल-३, गाथा-५०. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गणधर गौतम पाइज्यौ; अंति: लीना त्रिजंच माहै, गाथा-१३. ३. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसत वीनवू; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८०३७८. परनारी परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४११.५, ११४३०). औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., पद्य, आदि: मुरख मन भावे नही; अंति: रमसु सेहलीया साथे रे, गाथा-२६. ८०३७९ (#) २४ तीर्थंकर आंतरा, अपूर्ण, वि. १७१३, कार्तिक, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. मु. पेथा ऋषि (गुरु मु. वर्द्धमान ऋषि); गुपि. मु. वर्द्धमान ऋषि (गुरु आ. शिवजी); आ. शिवजी; पठ. आ. मेघा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १४४३१). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: स्वामी सर्वांगतपहुता, (पू.वि. ११वें श्रीशीतलजिन से For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३७५ ८०३८० विक्रमादित्य चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१४(१ से १४)=२, जैदे., (२६४११, १५४३६). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१९, गाथा-२ अपूर्ण से है व ढाल-२१ के दहा-४ तक लिखा है.) ८०३८१. खंडाजोयण बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५-३(१ से ३)=२, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४८). लघसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: च्यारसै पांचास हजार, (पृ.वि. "रमुह मुतावली हार" पाठ से है.) ८०३८२ (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४१-१४०(१ से १४०)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६४३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरस्वामी परिवार प्रसंग गाथा ३९ से ४६ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८०३८३. गुणकरंडगुणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, १५४४१). गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: संपति सुखदायक सरस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-४, गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८०३८४ (+) जिनपालजिनरक्षित चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १८९९, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. मु. बुधमल्ल (परंपरा आ. सबलदासजी); गुपि. आ. सबलदासजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १८४३४). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत जिण आगे हुआ; अंति: माहाविदेह० जासी मोखो, ढाल-४, गाथा-६८. ८०३८५. अंजनासुंदरी रास-बृहद्, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-७(१ से ७)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: अंजना., जैदे., (२४.५४११, १५४३९). अंजनासुंदरी रास-बृहद्, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८३ अपूर्ण से १०६ अपूर्ण तक है.) ८०३८६. (+#) साधु अतीचार, तप विचार व जीवदेह विचार, अपूर्ण, वि. १८४३, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, ले.स्थल. सुरत, प्रले. ग. फतेसागर; पठ. मु. धनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री संखेसरजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १४४३२-३५). १. पे. नाम. श्रमण अतिचार, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: जे कोइ अतिचार प०, (पू.वि. दर्शनाचार स्थूल अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण.. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चउत्थेणं एक उपवास; अंति: तप लेखे पोहचावज्यो. ३.पे. नाम. विविध जीवो के देहमान विचार *, प. ३आ, संपूर्ण. विविध जीव के देहमान विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्विदिक४ एकंद्री; अंति: देव सर्वनो जाणनोजी. ८०३८७. बोल संग्रह-विवधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. श्रावि. दुधीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१०.५, १३४२४-३२). बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले समुद्रमा; अंति: पामे पण व्रत न पामे. ८०३८८. औपदेशिक पद, बोल व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. वालजी वेलजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०.५, ११४२७). १. पे. नाम. औपदेशिक प्रभाति, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: हारे क्या अज्ञानी; अंति: परे वाकासेहे जान आवे, गाथा-३. २.पे. नाम, शांतिनाथ प्रभुजीनु प्रभातियु, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: आंगणे कल्प फल्योरी; अंति: हू रह्यो हेजे हलीओ ए, गाथा-५. ३. पे. नाम. भुवनपति वर्णव, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. १० भुवनपतीदेव नाम भवनादि बोल, मा.गु., गद्य, आदि: असुरकुमार नागकुमार; अंति: वेलंबन घोषनामे. ८०३८९. सवासौ सीख, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १२४३६). औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसदगुरु उपदेश; अंति: श्रीधर्मसी उवज्झाय, गाथा-३६. ८०३९० (+#) सीताराम चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१७(१ से १७)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १९४२५). रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-५, ढाल-१, गाथा-३२ अपूर्ण से ढाल-४, गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८०३९१. सत्तरभेदी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१,३)=२, ले.स्थल. खंभाइत, जैदे., (२५४११,११४४०). १७ भेदी पूजा, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तस घर होइ आणंदा रे, पूजा-१७, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., १४वीं पूजा की अंतिम गाथा अपूर्ण से हैं.) । ८०३९२. (+) पुण्यप्रकाशनुं स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४४२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धदाई सदा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३, गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८०३९३. (+) सज्झाय, गीत व बारमासा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १५४३५). १. पे. नाम. बाहुबली सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. भरतबाहबली सज्झाय, म. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विमलकीरति गुणगाय, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. राजीमती सिज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: तरसत अंखीया हुइधुं; अंति: साची सती राजीमतीया, गाथा-७. ३. पे. नाम. राजीमति गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनवेली प्रेम गहेली; अंति: गुण मन रंगै गाया, गाथा-१०. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.. म. भवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर विहारी रे आतम; अंति: बलिहारी नाम तिहारइ, गाथा-८. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन बारमासो, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सांवण पावस ऊल्हयौँ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ तक है.) ८०३९४. (#) पाक्षिक अतिचार व गुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३५). १.पे. नाम. पाक्षिक अतिचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चारित्राचार तक लिखा है.) २. पे. नाम. विजयप्रभगुरु सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. विजयप्रभसूरिगुरुगुण सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मास वसंत मनोहर सुंदर; अंति: यनो रामविजय गुण गाय, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३७७ ८०३९५. आद्रकुमार प्रबंध, संपूर्ण, वि. १६४६, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. मु. विनयशेखर (गुरु ग. सामीदास ऋषि); गुपि. ग. सामीदास ऋषि; पठ.सा. हंसाई (गुरु सा. चंपाई); गुपि.सा. चंपाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४७). आर्द्रकुमार विवाहलो, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: माई ए नयर हसीह दूयार; अंति: अखईय होइ जे वच्छ तुय, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक ३० तक लिखा है.) ८०३९६. रोहिणीतपोगर्भित वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.२, जैदे., (२५.५४११.५, ११४४०). वासुपूज्यजिन स्तवन-रोहिणीतपगर्भित, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: अंग सुचंग शोभभरु; अंति: क्षेमकुसल ते वरइ, गाथा-१०. ८०३९७. साश्वताअसाश्वताजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५,१२४३३). शाश्वताशाश्वतजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.ग., पद्य, आदि: कोडि सातने लाख बोतेर; अंति: पद्म० आतमत्व रमीजे, गाथा-१३. ८०३९८. (+#) देवसुगुरुधर्मपरिक्षानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, ९४३५). ३ तत्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरष परमेसर देव; अंति: मुनि भणइ धर्म सज्झाय, गाथा-२६. ८०३९९. शांतिजिन व धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि. मु. नानजी ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, लुंकागच्छ); मु. धर्मसिंह (गुरु मु. सिद्धराज ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १५४४५). १. पे. नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. मल्लवशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पासजिण शिवसुख; अंति: सोलसमा श्रीजिनवरा, गाथा-३८. २. पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: पनरमा जिण तणा गुण; अंति: जीव रखि जेणथी लहुँ, गाथा-२२. ८०४०० (4) वीसविहरमाननं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. सा. रुपाइ; सा. लीला आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १३४३५). २० विहरमानजिन स्तवन, मु. श्रीपाल, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: श्रीश्रीय गुणधर गुण; अंति: नेह निश्चय पामसी, ढाल-३, गाथा-३१. ८०४०१ सिद्धगीरीराज चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, जैदे., (२६४१२.५, १२४३०-३३). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: मनना मनोरथ सवि फल्या; अंति: ए घर घर मंगलमाल, गाथा-८. ८०४०२ (+#) नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १८६८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मलसीसर, प्रले. पंडित. भगवानदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:नवकार छंद., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (२५) भग्नपृष्ठकटिग्रीवा, जैदे., (२६४१२.५, १६४३६). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: वीवधरीद्ध वांछित लहै, गाथा-१३. ८०४०३. उपदेश तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. डोसाजी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १३४३२-३६). साधारणजिन स्तवन-औपदेशिक, मु. गुमानसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सरणोजी मोटो श्रीजुग; अंति: गमाणसंग० मुगतिनो वास, गाथा-११. ८०४०४. (+) जन्म सुतक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१३, १३४३२-३६). सूतक विचार-जन्म, मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्मे त्यारे; अंति: पछी दिन १ लगे सुतक. For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०४०५ (-) १८ पापस्थानक सज्झाय व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, ., (२५.५४११.५, १८x२८-३२). १. पे. नाम. १८ पापस्थानक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जेठमल, मा.गु., पद्य, वि. १९१९, आदि: श्रीगुरुपद कज बंदतां; अंति: कांइ रहो सीधन ज दास, गाथा-२१. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन है रूप तेरा तू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८०४०६. (+) आदिजिन स्तवन व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४३९-४५). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, पं. उमेद, रा., पद्य, आदि: कर्मासू लोगो जगडो; अंति: अशी लगी मने उमेदजो, गाथा-६. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: पून्य जोगे मे पामीयो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-१ ही लिखा है.) ८०४०७. प्रात:मंगल पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १३४३२). प्रात:मंगल पद, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी ते निजगुरु; अंति: कहे पद्म एहवा तो होइ, गाथा-१७. ८०४०८. (+) चैत्रीपुनम स्तवन व प्रास्ताविक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसुदाबाद अजीमगंज, प्रले. मु. अबीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२.५, १४४४७-५०). १. पे. नाम. चैत्रीपूनम तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय प्रणमी रे जिणवरनै; अंति: परइ साधुकीरति इम कहइ, ____ ढाल-३, गाथा-१७. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: चरण धरत चिंता करत; अंति: भया संगत कै फल शूर, गाथा-२. ८०४०९. जैनधर्मोपदेश सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., अ., (२५४१२.५, ११४३०-३३). औपदेशिक सज्झाय-जैनधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से २८ तक है.) ८०४१०. जशाबावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१२.५, १४४३०). अक्षरबावनी, मु. जसराज, पुहिं., पद्य, आदि: ॐ अक्षर सार है ऐसा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण तक है.) ८०४११. देवसीप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, ४४३२). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. पंचिंदियसूत्र-पंचमहावयजुत्तो पाठ तक है.) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने काजे नम; अंति: (-). ८०४१२. सुबाहुकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२.५, १०४४५). सुबाहकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: हवे सुबाहुकुमार एम; अंति: सुखविपाकमां अधिकार, गाथा-१६. ८०४१३. जलयात्रादि योग्योपकरण सूचि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४१२, २३४१५). जलयात्रादि विधि उपकरण सूचि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूचिक्रम-६९ तक है.) ८०४१४. मौनएकादशी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, दे., (२६४१२.५, ११४३२-३६). For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि गौतम बोले ग्रंथ; अति संघने विघन निवारी, गाथा-४. ८०४१५. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाव, संपूर्ण वि. १८९० श्रावण कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. कुंवरजी सुंदरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जै.. (२६१२.५, १२x२६). प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं तुमारा पाय; अंति: ऋद्धि० होज्यो परतक्ष, गाथा-६. ८०४१६. सिद्धनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५X१२.५, १२४३५-३८). सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम प्रीछ्या; अंति: सुख अथाग हो गौतम, गाथा- १६. ८०४१७. गुणस्थानक कोष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६.५x११.५, २०X५८-६२). १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: मिथ्यात्व सास्वादन; अंति: अबंधपणउ छइ गुणठाणई. ८०४१८. (*) चिहंगति वेली, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-३ (१ से ३) २, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६११.५, १३४३९-४४). ४ गति वेलि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: (-); अंति: हुं वांछु गुणठाण, गाथा-१३३, (पू.वि. गाथा- ८६ अपूर्ण से है.) ८०४१९ (+) धमाल, होरी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे १० प्रले. पं. आनंदविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), , प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२५X१२, २०x४५-५०). १. पे नाम. धमाल जिनगुण, पृ. १अ संपूर्ण. 1 साधारणजिन धमाल, पं. आनंदविजय, पुहिं, पद्य, वि. १९वी आदि प्राणी ऐसे जिनंद से अंति आनंदविजय० की डोरे, गाथा-४. २. पे नाम. साधारणजिन होरी, पृ. १अ संपूर्ण. पं. आनंदविजय, पुहिं., पद्म, वि. १९वी आदि जिन संग खेलो प्रभुः अति आनंदविजय० खेल मचौरी, गाथा-२. " ३. पे. नाम. साधारणजिन धमाल, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. आनंदविजय, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: मोरे ऐसे जिनंद सै; अंति: आनंदविजय भर झोरी रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. साधारणजिनपूजा पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. आनंदविजय, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीजिनराज संभारो रे; अंति: आनंदवि०सरण तुमारौ रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. साधारणजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. आनंदविजय, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: प्राणी श्रीजिनराज की; अंति: आनंदवि० भरि भरि झोरी, गाथा-४. ६. पे नाम. साधारणजिन धमाल. पू. १अ संपूर्ण. पं. आनंदविजय, पु.ि, पद्य, वि. १९वी आदि होरीया जिनरंग खेलो; अंतिः जिनजीसुं रमीये केला, गाथा-६. " ७. पे नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पं. आनंदविजय, रा. पद्म, वि. १९वी आदि ए जिनराज सुहावै म्हा; अति आनंद० जय जिन गावै, गाथा ३. " 3 ८. पे. नाम. नेम धमाल, पू. १आ, संपूर्ण ३७९ नेमिजिन धमाल, पं. आनंदविजय, रा. पद्य वि. १९वी आदि म्हांनु खेलन दोनी अति आनंद० आठ कर्मनै तोरी, . गाथा-८. ९. पे नाम, वैराग्य पद, पू. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- वैराग्य, पं. आनंदविजय, पुर्हि, पद्य, वि. १९वी आदि जग में कोई नही मित: अंति: आनंद० इनमें कुरा नाही, गाथा-७. १०. पे. नाम. ऋषभ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, पं. आनंदविजय, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: चेतन ध्यान जिनंद को अंति: आनंद० की निसानी रे, गाथा ५. ८०४२०. रोटी व नवपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५X१२, ९-१२४३२-३५). १. पे. नाम. रोटीनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. तपपद सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सर्व देवदेव में; अंति: पास धीर मुनि गाजे, गाथा- १०. २. पे. नाम. नवपदनी सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण, पे.वि. पेंसिल से गुजराती लिपि में बाद का लिखा हुआ है. For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो कहै; अंति: जपे हो बहु सुख पाया, गाथा-५. ८०४२१. कर्मग्रंथ के बोल, अपूर्ण, वि. १८२७, आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ४,६)=२, पठ. खुस्यालचंद खंडेलवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १३४२७-३२). कर्मग्रंथ के बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जरा कीधा ते प्रतापे, (पू.वि. बोल-८२ अपूर्ण से ९७ व ११४ बोल से ८०४२२. (#) जीव रास व आदेशर विनती, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी:आदेशरनी विनती., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२,१६४३०-३५). १.पे. नाम, जीव रास, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: समयसुंदर छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आदिजिन विनती, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढमजिणेसर अति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण तक है.) ८०४२३. दानसीलतपभाव चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१२, २२४४०-४८). दानशीलतपभावना चौपाई, मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवननायक वीरना; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३, गाथा-३ तक लिखा है.) ८०४२४. (-) कुगुरुबत्तीसी, औपदेशिक सज्झाय व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:कुगुरु की सझाय., अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१३, १६४३०-३५). १. पे. नाम. कुगुरु सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कुगुरुबत्रीसी, मु. भीम, रा., पद्य, आदि: भांति भांति की टोपी; अंति: कहे भीमसेव उतर पारा, गाथा-३२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, रा., पद्य, आदि: जंबु तो दीप जठो भरत; अंति: प्रभु सीवरण का भेला, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु तुम छो जी कायर; अंति: जीणदास० करुणा ल्योजी, गाथा-४. ८०४२५ (#) लघुसंग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१०.५-१२.०,११४३२). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं जिणसव्वन्नु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ८०४२६ (+) सोमिलब्राह्मण प्रश्नोत्तर सज्झाय व ४ पाला विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १५४३१-३५). १. पे. नाम. सोमिलब्राह्मण प्रश्नोत्तर सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. भगवतीस्त्र-हिस्सा शतक-१८ का सोमिलब्राह्मण महावीरजिन प्रश्नोत्तर सज्झाय, संबद्ध, म. सगण, मा.गु., पद्य, वि. १९२३, आदि: पंचम अंग प्रधान अरथ; अंति: सुगुण० देवो शासनधणी, गाथा-१५. २. पे. नाम. ४ पाला स्वरूप विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र-बोल संग्रह-४ प्याला विचार, संबद्ध, पुहि., गद्य, आदि: प्रथम अनवस्थित पालो; अंति: करी चोथो पालो भरीजै, (वि. सचित्र.) ८०४२७. ढुंढकपचवीसी व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. विरमगाम, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्रावि. समरथ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १२४३२). १.पे. नाम. ढुंढकपच्चीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ढुंढक पच्चीसी-स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी प्रणमी; अंति: पयंप हितकार अधिकार, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जाय छे जाय छे रे; अंति: बांहे साख छे रे, गाथा-१२. ८०४२८. (4) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १६x४०-४४). १.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२४. २. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज मारे एकादशी रे; अंति: उदयरतन० लाहो लहस्यै, गाथा-६. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर साहीबा; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. ४. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-ममोइमंडन, मु. नायकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसर राया हो मन; अंति: आगे कहि नायक कर जोड, गाथा-१०. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिणेसर; अंति: पारस जैसी छाया सुरतर, गाथा-७. त्र की सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:भगवतीसूत्रनी सज्झाय., पदच्छेद सूचक लकीरें.. दे., (२५.५४१२.५, १८x२५-३०). भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आवो आवो रे सयण भगवती; अंति: हुंसे करी सहुं पभणे, गाथा-२५. ८०४३०. क्षमाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल, वीरमगाम, अन्य. श्रावि. समरथ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, १२४३५). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६. ८०४३१ (#) तेवीसपदवी विचार, संपूर्ण, वि. १९३३, माघ कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्रावि. जमनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पदवी २३., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १६४२६). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात एकेंद्रीरत्नना; अंति: देवलोक सुधी जाय. ८०४३२. सीझणा द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १+१(१)=२, अन्य. मु. रामचंद ऋषि; मु. जैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. एक ही विषय के पत्रांक-१वाले २ पत्र है., दे., (२५४१२.५, १५४३२-३६). सिझणा द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: समुद्रमां एक समे सीझ; अंति: आठमे समे सीझे तो ३२. ८०४३३. दोधकबावनी, पद व कवित्तादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र अधिकमास शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ४, ले.स्थल. वेरावलबंदर, प्रले. मु. रतनजी ऋषि; मु. भीमजी ऋषि; पठ. मु. आशानंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १७४२९-३२). १.पे. नाम. दोधकबावनी, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दोधक बावनी, म. जसराज, पुहिं., पद्य, वि. १७३०, आदिः (-); अंति: मूर नक्षत करी गाढ, दोहा-५३, (पू.वि. दोहा-२३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. हीर, पुहिं., पद्य, आदि: महावीर भज० दान दिया; अंति: हीर मुनीसर बोलत बानी, गाथा-१. ३. पे. नाम, औपदेशिक कवित्त, पृ. ३आ, संपूर्ण.. औपदेशिक कवित्त-कर्मप्रभाव, म. केसवदास, पुहिं., पद्य, आदि: श्रेणिकराय करी वीर; अंति: केसव० टरै नहीं टारी, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८२ www.kobatirth.org ४. पे नाम औपदेशिक सवैया संग्रह. पू. ३आ, संपूर्ण. पु,ि पद्य, आदि रूप चड्यो अरु तेज; अति दीजीइ तो कछु पाउं, पद-२. ८०४३४. (*) सातसमुदघातनो धोकडो, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्रले. शिवलाल नरसिंह वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५x१२ १५४४५-४८). "" कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७ समुद्धात थोकड़ा, मा.गु., गद्य, आदि सात समुद्धातना नाम अंतिः समुद्धात करे नहीं. ८०४३५ (४) पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५, १२X३०-३५), २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि चक्र‍ छत्र२ दंड३ अति पदवी ८ आठ पदवी पामै २. पे. नाम. नवनिधान स्वरूप विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. हर्षशील, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भगवंत भावि प्रसंसीयौ, ढाल -२, गाथा - २०. ८०४३६. (+) २३ पदवी आदि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे १० प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५.५४१२, २१x६०-६५). १. पे. नाम. २३ पदवी विचार संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९ निधान स्वरूप विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नेसप्पे१ पंडूअए२; अंति: अधिष्ठायक एहवा निधन.. ३. पे. नाम. चउद रत्नस्वरूप विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. १४ रत्न विचार- चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररतन १ खडगरतन २; अंति: वीस रत्न हुवै ४२०. ४. पे नाम. ९ निधानादि विचार गाथा, पृ. २अ संपूर्ण. प्रा. पद्य, आदि नवजोयण विच्छिन्ना: अंति: पंचाशत्यतिकोटय, गाथा-२. ५. पे. नाम ७ रत्न विचार, पृ. २अ संपूर्ण, ७ रत्न विचार-वासुदेव, मा.गु., गद्य, आदि: चक्र धनुष खड्ग मणि; अंति: जोजन जेनी धुनी हुवइ. ६. पे. नाम. १०विध स्थापनासूत्र सह बालावबोध, पृ. २अ, संपूर्ण. " अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा स्थापनावश्यकसूत्राधिकार, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा. गद्य, आदि: कडुकमे १ पोत्थकमे २ अंति: अक्षे ९ वराडे १०. अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा स्थापनावश्यकसूत्राधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि दस प्रकारे स्थापना अति तो आवश्यक सूझे. ७. पे नाम. द्वादशांगी विचार संग्रह, पू. २अ-२आ, संपूर्ण, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि भगवंते ४५ सूत्र का अंतिः सूत्र मध्ये को छै. ८. पे. नाम. प्रत्याख्यानफल कुलक, पृ. २आ, संपूर्ण. पच्चक्खाणफल कुलक, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण सुगुरु चलणं, अतिः सया पच्चक्खाणाई, गाधा- ७. ९. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि प्रतिमा पहली १ मास; अति निश्चय कोई नहीं. १०. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा सह बालावबोध, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दंसण वय सामाई पोसह; अंति: वज्जए समण भूएय, गाथा-१, संपूर्ण. आवक ११ प्रतिमा गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि पहिली दर्शन प्रतिमा अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिमा- ७ का बालावबोध अपूर्ण तक है.) ८०४३७. १८ मार्गणा अल्पबहुत्व बोल यंत्र, संपूर्ण, वि. १८७३, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल जपुर, प्रले. जयदेवा; लिख. श्राव. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६x१२.५, १२X३२-३५). ९८ बोल यंत्र अल्पबहुत्व, मा.गु., को, आदि: गर्भज मनुष्य सर्वधी; अंति: सर्वजीवम विसेसाहिया. For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३८३ ८०४३८. (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५-५४(१ से ५४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:भगवतीसू., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४२७-३०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश है.) ८०४३९ (+) सनत्कुमारचक्रवर्ति व अगडदत्त ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., अ., (२५४१२, २३४५०-५३). १.पे. नाम. सनत्कुमार चक्रवर्ति चौढालीयो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: तिण कालेने तिण समै; अंति: पोहुता मुक्त मझारी, ढाल-४. २. पे. नाम. अगरदत्तरी ढाल, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अगडदत्त ढाल, मु. नंदराम, मा.गु., पद्य, वि. १९७८, आदि: अरिहंत सिधने सूरजी; अंति: धीर्यमलजी सुपसाय, ढाल-५, गाथा-५२. ८०४४० (+) करकंडुजीरो चउढालियो, संपूर्ण, वि. १९४६, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. डेह, प्रले. सा. चनणा (गुरु सा. हसतु); गुपि. सा. हसतु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रतबोध., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १२४३६-४०). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अत भलीउ वार; अंति: समयसुंदर० रूडा साधजी, ढाल-५. ८०४४१ (+) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. २, कल पे. ६,प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित.. जैदे., (२५४११.५, १७४४८-५२). १. पे. नाम, सगरचक्रवर्ति सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सगरचक्रवर्ती सज्झाय, मु. इंद्रशिष्य ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सगरसूत सेन्यासजी रे; अंति: इंद्रजीशि०दिन प्रणाम, गाथा-११. २. पे. नाम. २४जिन अंतरा स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १७४९, कार्तिक शुक्ल, २, रविवार, ले.स्थल. सिरोही, प्रले. मु. जगाजी ऋषि (गुरु मु. डाहाजी ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि. मु. डाहाजी ऋषि (गुरु मु. तेजसिंह, लुंकागच्छ); मु. तेजसिंह (गुरु मु. केशवजी ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिन अंतरा स्तवन, म. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: आदि अनादि अधुना अछे; अंति: तेजसिंघ०शुभ उल्हास ए, ढाल-१०, गाथा-४५. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदित्य जोयने रे जीवड; अंति: भणि वंदं श्रीमहावीर, गाथा-८. ४. पे. नाम. सुमतिजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. भीमजीशिष्य ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिप्रभुजी हो जिण; अंति: भीमजी० सुमति जिणेसरु, गाथा-५. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सोभागी हो साहि; अंति: माहरै तूंहिज रे देव, गाथा-५. ६. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी सवणे सुणी; अंति: विवाहतणो परिहार, गाथा-४. ८०४४३. (#) उपदेशरत्नकोश सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.५-१(३)=४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ९४३०-३५). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: विउलं उवएसमालमिणं, ___ गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक नहीं है.) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: उपदेशरत्नकोश भंडार; अंति: उपदेशरत्नमाला. For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०४४४. (+) देवाप्रभो स्तव की टीका सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४५५-५८). साधारणजिन स्तव-टीका, म. जिनविजय, सं., गद्य, वि. १७१०, आदि: (१)पार्श्वनाथं नम, (२)हे प्रभो सत्वं मया; __अंति: (-), (पू.वि. काव्य-४ की टीका अपूर्ण तक है.) साधारणजिन स्तव-टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मया कहता मई संस्तय; अंति: (-), (पू.वि. काव्य-४ की टीका अपूर्ण तक है.) ८०४४५ (#) आदिजिन पद, बाई सज्झाय व श्रावककर्तव्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७०, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. वडोद, प्रले. मु. सोभागचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४३५-३८). १.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: इखागवंसना उपना सामी; अंति: काई सफल थाय अवतार, गाथा-१३. २. पे. नाम, बाई सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८५३, आदि: बेठे साधसाधवीया रे; अंति: मोतीचंद० हर्षहलासणी, गाथा-३१. ३. पे. नाम. श्रावककर्तव्य सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्राविका सज्झाय-औपदेशिक, मु. मोतीचंद, रा., पद्य, आदि: समझणी बाईरा थे गुण; अंति: या श्रावकरी रीतो जी, गाथा-१२. ८०४४६. (+) पार्श्वनाथजीरौ छंद अष्टभयनिवारण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. नेमिविजय; पठ. मु. कस्तूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १४४३७-४०). पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धर्मसिह ध्यानह धरण, गाथा-२९. ८०४४७. महावीरजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०९, आषाढ़ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. महमविनय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११,१०४२५-२८). महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी बीनती; अंति: समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-१९. ८०४४८. (+) ६२ मार्गणा के ११९ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. सा. चनणा (गुरु सा. वदुजी महासती); गुपि. सा. वदुजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बासठ्यो ११९बोल., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १४४२७-३०). ६२ मार्गणा ११९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: वेदना समुद्धात कषाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ११४ बोल तक लिखा है.) ८०४४९ (#) दशार्णभद्र राजर्षि व जंबूस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय पत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३३). १. पे. नाम. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: भणे लालविजय निशदिश, गाथा-९. २. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजिओ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८०४५०. ज्ञानपंचमी व रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १२४३५-३८). १. पे. नाम. वृधज्ञानपंचमी वृधे स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण... ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. २. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३८५ ८०४५२. स्तवन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, ११४३०-३३). १.पे. नाम. गौतमस्वामी प्रभाती, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी प्रभाति, म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: वालाजी रे मे नव जाणु; अंति: रूपचंद कहे० गुण गायो, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणथी तरुणीने परहरा; अंति: रूपचंद० छे गढ गिरनार, गाथा-७. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ममतात्याग, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर सनेही चेतन चेती; अंति: उदयरतन० ले श्रीभगवंत, गाथा-८. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव, श्राव. रेणीदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणी म करीस मारु; अंति: गया जनमारो हारी रे, गाथा-५. ८०४५३. (-) परमेष्ठी वंदना, धन्नाजी सज्झाय व राजगृही सज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५-२(१ से २)=३, कुल पे. ७, प्र.वि. हुंडीः बनणा. हुंडीः तवन., अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२, २२४५२-५६). १.पे. नाम. औपदेशिक व्याख्यान, पृ. ३अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ____ मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सोनो सुगन होए प्रणमी, (पू.वि. सामायक महिमा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पांच पदा की वंदणा, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि वंदना, रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: माहारो नीमसकार होजा. ३. पे. नाम. धनाजी को तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, म. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३२, आदि: जी काकंदी नगरी बलीस; अंति: हीरालालकर अणुसार जी, गाथा-१५. ४. पे. नाम. राजगृही नगरी सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. राजगृह नगरी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: राजगरी नगरी अतसुंदर; अंति: रायचंद० मीठा जी जाणो, गाथा-१२. ५. पे. नाम. तप को तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. तपपद सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८५३, आदि: तप वडो रे संसार में; अंति: रायचंद० मास आसोजा जी, गाथा-१२. ६. पे. नाम. गउ को तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. गाय की अरजी अंगरेज को, पुहि., पद्य, आदि: सुणो सुणो अंगरेज; अंति: दूद पीलाती सुख करती, गाथा-१०. ७. पे. नाम. सबलोक, पृ. ५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: खाटो मीठा चरको जीभ्य; अंति: (अपठनीय), संपूर्ण. ८०४५४. (+) पार्श्वजिन नीसाणी-घग्घर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी-नसानी., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १०४३५-३८). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण तक है.) ८०४५६. (2) विवाहपडल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०४२६-३२). विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वांदी करी; अंति: (-), (पू.वि. एकार्गल तक ८०४५८.(+#) नेमराजुल बारमासादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी: बारैमासौ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४२-४५). For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. नेमराजुल बारैमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, म. अमरविशाल, मा.ग., पद्य, आदि: जादव मुझनै सांभरै; अंति: वीनवै अमर विसाल, गाथा-१९. २. पे. नाम. नेमनाथजी बारैमासो, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, म. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: विनवे उग्रसेन की; अंति: लालविनोदीनै गाए, गाथा-२६. ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. __ पुहिं., पद्य, आदि: लद्धण पट्टण पाहरू; अंति: जानके सोहै करितन नैन, दोहा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अनेन वामदेवेन; अंति: खड़गेन निहतं चिर, श्लोक-१. ८०४६१ (+) नवतत्त्वविचार गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १०४३५-३८). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: यद॒तो भवे सिद्धि, गाथा-३२. ८०४६३ (+#) नेमिजिन चोक व हीरविजय बक्शीस पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४२७-३५). १. पे. नाम. नेमगोपी संवाद, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चोक-३, गाथा-१ अपूर्ण से चोक-५, गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. हीरविजय बगसीसराशि पद, पृ. २आ, संपूर्ण. हीरविजय बक्शीसराशि पद, मा.गु., पद्य, आदि: एक कोड लाख नेउ सालीस; अंति: बगस्यीस बही, गाथा-२, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नही लिखा है.) ८०४६४. (+) कुमारपाल प्रबंध, अपूर्ण, वि. १७२०, श्रावण शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ९५-९३(१ से ९३)=२, प्रले. पंडित. सामीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में साधारण श्लोक जैसा लिखा कुछ गया है., संशोधित. कुल ग्रं.४१००, जैदे., (२५४१०.५, १८४४२-४५). कुमारपाल प्रबंध, उपा. जिनमंडन, सं., प+ग., वि. १४९२, आदि: (-); अंति: प्रमित वत्सरे रुचिरः, (पू.वि. अंत का ___ कुछेक भाग पाठ- "न केवलमभूस्त्वं" गाथा-३ अपूर्ण से है.) ८०४७१ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, प. ३१-३०(१ से ३०)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक न होने से अनुमानित दिया है., पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४११.५, ११४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से ६३ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८०४७४ (#) साधुपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १०-१३४३०). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: (-), (पू.वि. "झाणभिक्खूअभत्तट्टे" पाठ तक है.) ८०४७७. सुक्तमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१२, १५४३२-३५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अर्थवर्ग, गाथा-२२ अपूर्ण से कामवर्ग, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ८०४८०. सरस्वती छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १५-१८४४५-५०). सरस्वतीमाता छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवती जग; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३८७ ८०४८२. (#) रामयशोरसायन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०८-१०७(१ से १०७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:रामचरि., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १३४३३-३६). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५३, गाथा-३८ से ढाल-५४, गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८०४८४. (+) औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३३). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ.१अ, संपूर्ण. __ उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम प्रभु सब जन शब्द; अंति: सेवक जन गुण गावे, गाथा-६. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: अजब गति चिदानंद घन; अंति: जस० उनके समरन की, गाथा-५. ८०४८६.(-) औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, १६४३६-३९). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तीया लाख चारसी वामया; अंति: चारसी म घर मनुडउरे, गाथा-१. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. लाभचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे जूठे होर कू वड; अंति: लाभचंद० कोइ तार नही, गाथा-१०. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मोक्ष पागधरन हरंत; अंति: (-), गाथा-१. ८०४८८.(-) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२, २०४१८-२२). नेमिजिन स्तवन, मु. समुद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुम नाम उपर वारी; अंति: लाला सेवा के नंद, गाथा-९. ८०४९१. (+) औपदेशिक पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. १५, प्र.वि. हुंडी: छुटकर पद., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २०४६०-६३). १.पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. २अ, संपूर्ण. सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: मन की मन में रहेगी; अंति: सूर० पीर न जाय सही, पद-४. २. पे. नाम, कृष्णभक्ति पद, पृ. २अ, संपूर्ण. वखतावर, रा., पद्य, आदि: थारा नैणां में धुम; अंति: सोभा इधिक बनी हो, पद-२. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल रे सांवलीया; अंति: किम विरचे वरदाइ रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मीराबाई, रा., पद्य, आदि: हांजी मोरा जनम मरणरा; अंति: मीरा०जोय अंखीया राती, पद-४. ५.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी काया में गुलजार; अंति: आवागमन निवार, गाथा-४. ६.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. श्राव. जिनबगस, पुहि., पद्य, आदि: तुक दिल की चसम खोल; अंति: जिनबगस० सीध भो थगो, गाथा-७. ७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. चंदविजय, पुहि., पद्य, आदि: राजुल पुकारे नेम पिय; अंति: नेमनाथ बीजे गे कही, गाथा-४. ८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: पुदगल दा क्या विसवास; अंति: नवल० लग घट मै सासा, गाथा-४. ९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. बुध, पुहि., पद्य, आदि: मे तोसु प्रीत कीधी; अंति: बुध० प्रभुकु भजंदा, पद-३. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८८ www.kobatirth.org कबीर, पुहिं., पद्म, आदि: मींदरीया में दीपक अंतिः प्रभु बिना अंभज मारो, पद-४. ११. पे. नाम गुरु स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. शंभुनाथ, रा., पद्य, आदि: मीठी मानु लागे हो; अंति: रमजा सतगुर सागै हो, पद-४. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं, पद्य, आदि: गुन का भेद न्यारा अति: कबीर० देखो सोच विचारी, पद-६. १३. पे. नाम, सीताहरण पद, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं, पद्य, आदि रथसु निरखत जात जटाई; अंति कहीयी कथा समुझाई, पद-४. " १४. पे नाम औपदेशिक पद. पू. २आ, संपूर्ण, औपदेशिक पद-मोहमाया, पुहिं., पद्य, आदि: दुख के फंद पडोगे कोइ; अंति: मोहकर्म ल्यो जीत, गाथा-४. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: मुसाफर चोकस रहो रे; अंति: किस विध उतरेला पार, पद-३. ८०४९२. सरस्वती छंद व जिनकुशलसूरि गीत, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२५.५x११, १४४४०-४५). १. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. सोमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ससीकर समुज्वल मराल; अंति: सहज० सोय पूजो सरसती, ढाल-३, गाथा - १४. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. धर्मसीह, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेम मन धारि नित; अंति: (-), (पू. वि. गाथा-४ तक है.) ', ८०४९३. (#) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २५-२४ (१ से २४) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११.५, १४४३३-३६). " चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल -२१ गाथा- १६ अपूर्ण से ढाल- २२ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८०४९४ (+) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२, १४X३२-३५). सरस्वतीदेवी छंद, मु. खुशालकपूर, मा.गु., पद्य, आदि सरस वचन आपें सदा तु अंति: वेणा पुस्तकधारिणी, गाथा - १५. " ८०४९५. जंबुकुंवर सज्झाय ढाल १, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२५X१२, १६३०-३५ ). जंबूकुंवर सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देघरदार मानुड रहे, (प्रतिपूर्ण, वि. अंतिम पत्र सं. १ अ पर लिखा है. ) ८०४९७. नलदमयंति चरित्र, अपूर्ण, वि. १७६४, श्रावण कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५ ) = १२, ले. स्थल. देवसूरी, प्रले. मु. धर्मराज (अंचलगच्छ); पठ. मु. लखमण (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x११, ९x४२). नलदमयंती चरित्र, वा. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य वि. १७५८ आदि (-); अंति दिन प्रति होइ उछाह (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) ८०४९८. सूर्यजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १७३२, मार्गशीर्ष, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. गीररी, प्रले. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२६११, १७४७-५०). सूर्य छंद, आ. भाणसूर, मा.गु., पद्य, आदि मन दल कमल खोज नमत; अंतिः समंधर सामल धीरसध, गाधा-३२. ८०५००. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२२, फाल्गुन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १३X३७). For Private and Personal Use Only सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्म, आदि परम मुणि झाणवण गहण; अतिः सेवक सकलचंद कृपा करो, ढाल-४, गाथा - ३२. Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३८९ ८०५०२. (#) शुकनावली, संपूर्ण, वि. १७५०, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मनसी ऋषि; पठ.सा. प्रेमबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १९४५८-६२). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐनमो भगवति कुष्मांड; अंति: जय छे कल्याण होस्ये. ८०५०४. (+) विद्वद्गोष्ठी व विविध सवैया श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक न होने पर अनुमान से दिये हैं., संशोधित., जैदे., (२५४१२, २१४४०-४४). १.पे. नाम. विद्वगोष्ठी, पृ. १अ, संपूर्ण. पंडित. सधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीभोजराज सभायां; अंति: नैव च किदृशाः स्युः, श्लोक-१२, (वि. अंतिमवाक्य खंडित है.) २. पे. नाम. विविध दोहा गाथा श्लोक सवैया कवित्त हरियाली गूढा आदि संग्रह, पृ. १अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गुणी गुणज्ञेषु गुणी; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पाठांश नहीं है.) ८०५०५ (+#) निशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३६-४०). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थकम्म; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१४ अपूर्ण तक है.) ८०५०६. (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ९४२७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., जागरिताभेद प्रश्नोत्तर से ८०५०७. बासठ मार्गणाद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, ३४४१८). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ१ इंदिअ२ काए३ जोए४; अंति: (-), (पू.वि. मार्गणा ६० असंज्ञी अपूर्ण तक हैं.) ८०५०९ प्रश्नावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, २५४५८). प्रश्नावली, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि: समवसरणं भूमितो भवति; अंति: (-), (पू.वि. प्रश्नोत्तर ५१ अपूर्ण तक है.) ८०५१६. नवग्रह व रविग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १३४३०-३५). १.पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र-लघ, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिश्रुतं, श्लोक-११. २.पे. नाम. रविग्रह स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ सूर्य महातेजं; अंति: तत्पून्यं रविवासरे, श्लोक-१०. ८०५१७. () सरस्वती अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १२४३६-४०). सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुध विमल करणी विबुध; अंति: सेवी नीत नवेवी जगपती, गाथा-१०. ८०५१८. (+) संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४४२-४५). संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उन्माद-३ गाथा-२१ अपूर्ण से उन्माद-४ प्रारंभिक कुछेक पाठ तक है.) ८०५२०. स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, जैदे., (२५४११, १३-२४४३६-४०). १. पे. नाम. गणपति स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. नाथुराम, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करै विघ्न हरै; अंति: नाथुराम० न उतरै पार, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. भक्तामरचंद्रकिर्ती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र, म. चंद्रकीर्ति, सं., पद्य, आदि: नमो ज्योतिमूर्ति; अंति: चंद्रकीर्तिं पुनातु, श्लोक-६. ३. पे. नाम. सूर्याष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण.. क. सिंह, सं., पद्य, आदि: रक्तवर्ण महातेजो; अंति: भवेज्जन्मानि जंतवः, श्लोक-११. ४. पे. नाम. मंगल स्तोत्र-ऋणमोचक, पृ. १आ, संपूर्ण. मंगलग्रह स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: मंगलो भूमिपुत्रश्च; अंति: कथ्यते च महेश्वरः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. वृहस्पति स्तोत्र, पृ.१आ, संपूर्ण. बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: बृहस्पतिः सुराचार्यो; अंति: शुभग्रह नमोस्तु ते, श्लोक-५. ६. पे. नाम, नवग्रह स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकाशं; अंति: ब्रूयान्न संशय, श्लोक-१२. ७. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: पीड़ा न भवंति कदाचन, श्लोक-१०. ८. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८०५२१. औपदेशिक गाथा व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ८४३७-४०). १. पे. नाम, जैन औपदेशिक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भत्ती जिणेदेसु रूई; अंति: साहपूया सिवलोयमग्गे, गाथा-१. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कालप्रभावगर्भित, मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: कीवी अटकलि चंदकवि; अंति: पूजजी गछ हुवो गछंत, गाथा-८. ८०५२२. (#) शनीश्वर छंद व सभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५-१८४४२-४५). १. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति; अंति: हेम० अलगी टाले आपदा, गाथा-१६. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. सभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: उमयासहितोरुद्रः शंकर; अंति: कां द्विकरेण भुक्त, श्लोक-१०. ८०५२३. (4) जिनकुशलसूरि अष्टक द्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३६-४०). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनकशलसरि गर्वष्टक, सं., पद्य, आदि: पद्मा कल्याणविद्या; अंति: भक्ता च भोक्ता च, श्लोक-९. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टक, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिनकुशलसूरि गुर्वष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, सं., पद्य, आदि: नतनरेश्वरमौलिमणिप्रभ; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) ८०५२४. (+) इलाचीकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४२६-२९). इलाचीकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपर्ण.. गाथा-३ अपूर्ण से है व तत्पश्चात रही ढाल की गाथा-३ तक लिखा है.) ८०५२५. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी: कल्याणमंदिर, जैदे., (२५.५४११, ११४२७-३०). For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३९१ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३२ अपूर्ण तक है.) ८०५२६. मौनएकादशी गणनु व दीपमालिकागुण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३४४८-५२). १. पे. नाम. मौनएकादशी गण, पृ. २आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: श्रीमहायशसर्वज्ञाय; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. २. पे. नाम. दीपमालिकागुणन विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्वगुणन विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं महावी; अंति: स्वामी सर्वज्ञाय नमः. ८०५२७. एषणा दोष विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३६). ४७ एषणादोष विचार, सं., गद्य, आदि: गौरिव एषणा गवैषणा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दोष-१३ अपूर्ण तक है.) ८०५२८. (+) त्रिभुवनस्वामी विद्या सह विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४२). त्रिभुवनस्वामिनी विद्या, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., पद्य, आदि: गोयमगणहर मुहकुहर; अंति: पूअंविद्यापउंजमाणस्स, गाथा-९, संपूर्ण. त्रिभूवनस्वामिनी विद्या-विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: त्रैलोक्यविभुतपादं; अंति: स्वामिनी विद्या, संपूर्ण. ८०५३२. (#) स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३६-४०). १.पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: पुव्वपन्ना बिनासंति, गाथा-३९, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, अजितशांति स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.. अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उल्लासिक्कमनक्ख; अंति: जिणवल्लह विथुणंतह, गाथा-१७. ३. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: सयल भुवणच्चि अचलाणो, गाथा-२१. ४. पे. नाम. गणधरदेव स्तुति, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनदत्तसरि, प्रा., पद्य, आदि: तं जयउ जए तित्थं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८०५३४. (#) सातनरकादि भांगा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ४२४९). भंगप्रस्तार, गांगेय, मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ८०५३७. (+) उपदेशमाला शकनआंक गाथायंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, ९४३०-३३). उपदेशमाला-उत्कृष्ट-मध्यम गाथा व अक्षरसंख्या यंत्र, मा.गु., को., आदि: ॐसच्चं भासइ अरहा; अंति: (-), संपूर्ण. ८०५३८. भवनपति व्यंतरज्योतिष्कादि का कोष्ठक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, ९-१२x२०-२५). जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश है.) ८०५३९. वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ७४२७-३०). पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०५४०. (4) वर्द्धमानसूरि व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४४३). १. पे. नाम. वर्द्धमानसूरि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. वर्द्धमानसूरिगुरुगण स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति धुरि समरी करी; अंति: नामथी पामीजै परमाणंद, गाथा-९. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: प्रणमुं पास जिणंद कि; अंति: ठाकुरसी विनती हो, गाथा-९. ८०५४१. चंद्रलेखा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१०(१ से १०)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, १५४३६). चंद्रलेखा रास, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२०, गाथा-८४ अपूर्ण से ढाल-२२, गाथा-४२ अपूर्ण तक है.) ८०५४३. सरस्वती अष्टक, संपूर्ण, वि. १९४८, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सुज्ञानगढ, प्रले. आ. जिनरामचंद्रसूरी; पठ. पंडित. उम्लकर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ९४२७-३०). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ८०५४४. (4) रुखमिणी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३६-४०). रुक्मिणी रास, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिवसे रुखमिणि; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८०५४९ (#) गौतमकलक सह टबार्थादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ८४४०-४५). १. पे. नाम. गौतम कुलक, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहंतु, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य अर्थ; अंति: सेवी पछइ सुख लहइ. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. क. गद्द, रा., पद्य, आदि: मुंछरी सीसहि लाल भई; अंति: गद० होई तो घर वसै, गाथा-२. ३. पे. नाम. दानशीलतपभाव पद, पृ. २आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना पद, पुहिं., पद्य, आदि: दानसील तप भाव च्यार; अंति: नीकी भांति राखी है, गाथा-१. ४. पे. नाम. अढार नातरा, पृ. २आ, संपूर्ण. १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: देवर भतीजो भ्रात; अंति: सुता अढारह नाते हैं. ५. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८०५५७. (+) एकाक्षरीनाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. बुद्धा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, १२४२७-३०). एकाक्षरनाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: विश्वाभिधानकोशानि; अंति: काक्षराणामियं मया, श्लोक-२०. ८०५६२. () सास्वतजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १२४२८-३२). शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिक्यविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदिः (-); अंति: माणिकविमल संपति घणी, ढाल-७, गाथा-८५, (पू.वि. ढाल-६, गाथा-७५ अपूर्ण से है.) ८०५६४. विजयपताकायंत्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १७X१८-५०). विजययंत्र कल्प, प्रा.,सं., पद्य, आदि: पुव्वं चिय नेरइए; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., श्लोक-३७ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने एक श्लोक को दो गिना है. यंत्र सहित.) For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३९३ ८०५६७. नंदीषेणमुनि व सीता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १६४३२-३६). १. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: नही कोई तोले हों, ढाल-३, गाथा-१२, (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ नहीं लिखा गया है.) २.पे. नाम. सीतासतीशील सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. ८०५६९ (4) पंचमहाव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४२-४५). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवै रे; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ५ गाथा २ अपूर्ण तक हैं.) ८०५७० (#) आठयोगदृष्टिगण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ९४२५). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६, गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-८, गाथा-३ अपूर्ण तक है.)। ८०५७१ (#) प्रत्याख्यानसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३२-३५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (पू.वि. आंबिल पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) ८०५७२. सोमल नामक ब्राह्मण के छात्र परिवार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४१२, १२४३२-३५). सोमलब्राह्मण छात्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अपापा महानगरीयइ सोमल; अंति: ए परमेश्वर जिनदेव, संपूर्ण.. ८०५७३ (+) अनंतजिन स्तवन व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १२-१५४२५-२८). १.पे. नाम, अनंतजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धारि तरवारनी सोहली; अंति: आनंदघन राज पावई, गाथा-७. २.पे. नाम. १० बोल रूपीअरूपी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जनमरूपीणी रूई मरणरूप; अंति: रूई असंजमरूपणी तणखा. ३. पे. नाम. १० बोल संक्लेश, पृ. १आ, संपूर्ण. १० बोल-संक्लेश, मा.गु., गद्य, आदि: वचनसंक्लेश काय; अंति: भातसंक्लेश मनसंक्लेश. ४. पे. नाम. ४ बोल हास्य, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ बोल-हास्य, मा.गु., गद्य, आदि: मुनीसर हसे मरकले; अंति: खडखड हसे निलज्ज. ८०५७४. चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. जयतसी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५-३८). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहें ब्रह्मराय; अंति: ते शिवपुर लहसी हो, गाथा-२०. ८०५७५. (#) चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, १०४२०-२३). १. पे. नाम, पंचमी नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: बारपर्षदा आगले; अंति: नमी थाओ शिवभुक्त, गाथा-५. २. पे. नाम. शांति नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अटल अभंग अबीह प्रभु; अंति: ने नमतां होइ भवशांति, गाथा-३. ३. पे. नाम. ऋषभदेव नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अशरीरी अजर अमर तुं; अंति: कहे दीजीइं अविचल ठाय, गाथा-३. ८०५७६ (#) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १२४३२-३६). १. पे. नाम. मन शिखामण सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अणसमजु जीव सी सीखामण; अंति: नामे पाप गया नासी रे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवशिक्षा, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन इंम जीवने समझाय; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-९. ८०५७७. (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, ११४२५-२८). पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु; अंति: अविचल पद नीरधार, गाथा-७. ८०५७८. (+#) संसारदावानल स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पठ. ग. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ३४४२-४५). संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. संसारदावानल स्तुति-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: अहं वीरं नमामीति; अंति: इति पंचाशकवृत्तौ. ८०५७९ शत्रंजयतीर्थ पद, गरुगण गंहली व मिथ्यात्व परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.ले.श्लो. (९१४) अक्षराणि स शीर्षाणी, जैदे., (२५४११.५, १५४३६-४२). १.पे. नाम. शत्रुजय पद, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ पद, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सफल दिवस आज माहरो; अंति: कांतिविजय जयकार रे, गाथा-४. २. पे. नाम, गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चालोने सहीयर उपासरेइ; अंति: तणी पामो नवरंगी सेन, गाथा-५. ३. पे. नाम. मिथ्यात्व परिहार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु पद पंकज नमी; अंति: नित नित लहस्यइ तेह, गाथा-११. ८०५८० (+#) सिद्धचक्र स्तवन व विहरमान स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३०-३५). १.पे. नाम, सिद्धचक्र स्तवन, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर सेवा; अंति: पद्मविजय० भजीइजी रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. वीहरमान स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमान जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: द्वीपेत्र सीमंधर; अंति: कर्मणामष्टकं च, श्लोक-४. ८०५८२ (+) अभिधानचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. इस पत्र के साथ एक और पत्र चिपका हुआ है, जिसके पाठ पूरी तरह ढंके हुए हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११,१३४२५-२८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कांड-१, श्लोक-१३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ३९५ ८०५८४. (+#) त्रैलोक्य प्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x११, १५४७-५०% त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वाभिधं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४० अपूर्ण तक है.) प्राकृत व्याकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५x१२. १३४४०-४४). , प्राकृत व्याकरण हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. १२वी आदि अथ प्राकृतम् बहुल अंति 1 7 (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सूत्र- १३ अपूर्ण तक है.) प्राकृत व्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अथ शब्द आनंतर्यार्थो; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८०५८८. १८ नातरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २- १ ( १ ) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जैदे. (२४.५x११, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२X४०-४५). १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश हैं., वि. ढाल संख्या स्पष्ट नहीं है.) ८०५९३. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८६९ पौष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पंडित. तिलोकचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६१२, १२X३२-३६). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमण, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. वंदित्सूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि वंदित्तु सव्वसिद्धे; अतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा- ५०, २. पे नाम. तिजयपत्त, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि तिजयपहुत्तपवासय अद्य अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ८०५९४ (१) लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२६५११.५, १५x४२-४५). "" श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: शकलकुशलवल्लि; अंति: हा हा देव न सहीयं, (वि. अंत में पार्श्वरेखा बहार देशी दोहा भी लिखा गया है.) ८०५९६. (+) जिनशतक सह पंजिका टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८-१४ (१ से ७,१०,१२ से १७) = ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२७११, २०५६०-६३). " जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं. पद्य वि. १००१-१०२५, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्रथम परिच्छेद "" יי गाथा-१० से तृतीय परिच्छेद गाथा- ५ तक है.) जिनशतक-पंजिका टीका, मु. शांबमुनि, सं., गद्य, वि. १०२५, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ८०६०० (+) स्तोत्र, स्तवन व दोहा, संपूर्ण, वि. १८८०, आश्विन शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, ले. स्थल. अणंदपुर, प्र. मु. हूकमचंद ऋषि (गुरु मु. चैनराम ऋषि); गुपि. मु. चैनराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४१२.५, १२X३०-३३). १. पे नाम. शिवमहिम्न स्तोत्र, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. पुष्पदंतगंधर्व, सं., पद्य, आदि: महिम्नः पारं ते परमव अंति: भवित भूतपतिर्महेशः, श्लोक - ४०. २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि वरसं वरसं वरसं वरसं अंतिः शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक- ७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-करहेटक, सं., पद्य, आदि: करुणारस सागर वाचमिमा; अंति: परमेश्वरमाधिरिते, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only ४. पे नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं., मा.गु., रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ८०६०७ (+) आर्यवसुधारा, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जै.. (२६X११, १७X५१). Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: पद्यते सिद्धिदा भवतु. ८०६१३. आर्यवसुधारा धारणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५१). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ८०६२३. (+) भक्तामर स्तोत्र की गुणाकरीय टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-४६(१ से ४६)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३५). भक्तामर स्तोत्र-गणाकरीय टीका, आ. गणाकरसरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४४ की टीका अपूर्ण से टीका की प्रशस्ति अपूर्ण तक है., वि. प्रारंभ में मूल व कथा होने की संभावना है.) ८०६२९ (+#) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४४६). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: रुजादर्भक्षदावानलाः, श्लोक-३४. ८०६३८. (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, २०४६०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ८०६५२. (4) सारस्वत व्याकरण टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४२८). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याणपद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र मंगलाचरण श्लोक की टीका अपूर्ण.) ८०६५५. १२ उपमा, अपूर्ण, वि. १७८९, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२६४११, १२४४२). साधु १२ उपमा विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जाणस्यइ हो गौतम, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., उपमा-१ अपूर्ण से है.) ८०६५६. (4) तारातंबोलनगर वर्णन व प्रतिमापूजामतपुष्टि पद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४२६). १.पे. नाम. तारातंबोलनगरी वर्णन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (१)कोस ५६५० जीमा कीधा, (२)आवी तस का उतारा कीधा, (पू.वि. "ऊपर काम रूपा का है" पाठांश से है.) २. पे. नाम. जिनप्रतिमापूजामतपष्टि पद, पृ. २अ, संपूर्ण. जिनप्रतिमापूजासिद्धि पद, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमासू; अंति: सुणतां आवे हासा. ८०६६६. सीतासती चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी: सीताचरित्र. हुंडी खंडित है., जैदे., (२५.५४१०.५, १७X४३-५०). शीलोपदेशमाला-शीलतरंगिणी वृत्ति-हिस्सा सीतासती चरित्र, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९१ अपूर्ण से १३८ अपूर्ण तक है.) ८०६६७. (#) आठ कर्मनी ढाल व मृगांकलेखा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, २०४४३). १.पे. नाम. ८ कर्म ढाल, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रायचद० जिनवचन प्रमाण, ढाल-३, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-३ से है.) २.पे. नाम. मृगांकलेखा चौपाई, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: आदेसर आद दे चोवीसमा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने ढाल-२, गाथा-७ तक लिखकर कृति समाप्त कर दी है.) ८०६६९ (+) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३८). For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अज्ञात जैन देशी पद्य कृति, मा.गु., पद्य, आदि (-) अति (-), (पू.वि. गाथा ५९ अपूर्ण से ८६ अपूर्ण तक है.. वि. जीवन पर्यन्त ज्ञाताज्ञात किये हुए पापों का क्षमापनापरक काव्य है.) ८०६७०. भाविनी कर्मरेखा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७X११.५, १५x२९). भाविनीकर्मरेखा चौपाई, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. गाधा-७६ अपूर्ण से १०७ अपूर्ण तक है.) ८०६७१. अज्ञात जैन देशी पद्य कृति- औपदेशिक, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३१-३० (१ से ३०) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६X११, ८X३०). अज्ञात जैन देशी पद्य कृति- औपदेशिक मा.गु., पद्य, आदि (-) अति (-) (पू. वि. गाथा-२१ अपूर्ण से ३६ अपूर्ण तक है.) ८०६७२. (+४) कुबेरदत्ता सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१०.५, ९×२९). कुबेरदत्ता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. डाल- २, गाथा- ११ अपूर्ण से डाल- ३, गावा- १० अपूर्ण तक है.) ८०६७४. छेदशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : प्रा०श्चि०., दे., (२५.५X१०, १८X५९). छेदशास्त्र, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण य पंचगुरुं अंति (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. गाथा १० तक है.) छेदशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रायश्चितं विशुद्धि, अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. सं., प+ग, आदि शास्त्रोपस्कृतशब्द अंति: भोगिनी १९ सुखदायनी २०. २. पे नाम. विविध विचार संग्रह, पू. ५२-५आ, संपूर्ण. प्रा. सं., प+ग, आदि स्थले नरादयो वे च अंति: (अपठनीय). ८०६७५. (+#) स्त्रीलक्षण आदि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४ (१ से ४) = २, कुल पे. ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४.५x११, २०x३६). १. पे. नाम. स्त्रीलक्षण विचार संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण. ३९७ ३. पे. नाम. गुणस्थानक्रमारोह अवरोह विचार सह बालावबोध, पृ. ६अ, संपूर्ण, पे. वि. कोष्ठक सहित. गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा. मा. गु. गद्य, आदि चदुरिक्कदुष्पणपंचय; अति तिय तिय दोणि गच्छति, " " गाथा - १. गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा- चालावयोध, मा.गु., गद्य, आदि: चदु कहतां च्यारि; अतिः चवदमाथी मोक्ष जावे. ४. पे. नाम २० विहरमानजिन विचार, पू. ६आ, संपूर्ण २० विहारमानजिन विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: हिवे वीस विहरमान, अंति : (१) जम्मपईवीस दशगे वा, (२) वारै १३५१० एतला होइ. ५. पे. नाम. २० विहरमानजिन विवरण दोहा, पृ. ६आ, संपूर्ण मु. आनंद कवि, मा.गु., पद्य, आदि विवरोए गाथातणी कवि अति आनंद० सीस कहै करजोडी, गाथा २०. ६. पे नाम पार्श्वजिन गणधरनाम, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गणधर श्लोक, प्रा., पद्य, आदि: सुभेय अज्जघोसेय; अंति: चेव वीरभद्दे जसेवि य, गाथा- १. ७. पे नाम. सुभाषित लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ८०६७६. सरस्वतीदेवी स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२५.५४१२, १४४२८). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी आदि कलमरालविहंगमवाहना, अति रंजयति स्फुटम्, लोक-१३. For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०६७७. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, ६४३०). पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: स्फुरदेवनागेंद्र; अंति: चिंतामणिः पार्श्वः, श्लोक-७. ८०६८०. बृहत्संग्रहणी का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११,' बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: नत्वा श्रीवीरजिनं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक का बालावबोध है.) ८०६८१ (+#) पापबुद्धिधर्मबुद्धि चोपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-२(२,४)=४, प्र.वि. हुंडी: पापबुद्धिधर्मबुद्धिचउपई., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १९४५१-५५). पापबुद्धि धर्मबुद्धि चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज अपूरव वचन रस; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-२, ____ ढाल-६, गाथा-२४९ अपूर्ण तक है व बीच-बीच का पाठांश नहीं है.) ८०६८५. कोष्ठक व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १२-१८४३४-६४). १. पे. नाम. पूजासामग्री कोष्ठक, पृ. ८अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम, कालासवैशिकपुत्र सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. वैशिकपत्र सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.ग., पद्य, आदि: पारसनाथ संतानीओ काला; अंति: नित मुनि मान रे, गाथा-१५. ३.पे. नाम. शय्यादाने जयंती सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. __ उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन्य धन्य ते जग जीवड; अंति: मान कहे सुविचार रे, गाथा-९. ८०६८६ (+#) कुमारपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६x४५). कुमारपाल रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से ५२ अपूर्ण तक है.) ८०६८७. कुसुमश्री रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३३). कुसुमश्री रास, मु. गंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: पुरीसादाणी पासजी; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८०६९१. अष्टमीतिथी स्तवन, अपूर्ण, वि. १८४०, आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. उदयचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: आठिमनो तवन., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३५). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: कांति सुख पांमे घj, ढाल-२, गाथा-२४, (पू.वि. ढाल-१, गाथा-७ से है., वि. दोनों ढालों के अलग-अलग गाथा-परिमाण हैं.) ८०६९३. (-) पांडव रास, अनाथीमुनि व मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ७४२९). १. पे. नाम. पांडव रास-ढाल ५५वी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक सुख; अंति: इम बोले मुनि राम के, गाथा-२९. ३. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवी माता कहे; अंति: भवजल पार उतारो रे, गाथा-१६. ८०६९६. आनंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४११.५, १३४३५). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमान जिनवर चरण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-११ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ८०६९९ १४ स्वप्न स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्रले. मु. माणिक्य मुनि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है. अतः पत्रांक अनुमानित दिया गया है., दे., (२५.५४१२.५, १०४३३). १.पे. नाम. १४ स्वप्न स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम ऐरावण दिठो; अंति: घरगुं दान लेई घर आवै, गाथा-७, (वि. गाथा सं. ७ से १३ लिखा है.) २. पे. नाम.१३ काठिया नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आलस्य १ मोह २ बन्ना; अंति: कऊहला १२ रमणा १३. ३. पे. नाम. १३ काठीया गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. १३ काठिया गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो आलस१ बीजो मोह; अंति: कामरसनो तेरमो१३, गाथा-१. ४. पे. नाम. संयम के १७ भेद सह बालावबोध, पृ. २आ, संपूर्ण. संयम के १७ भेद, प्रा., पद्य, आदि: पंचाश्रवाद्विरमणं; अंति: चेति संयमद्वादशभेदः, गाथा-१. संयम के १७ भेद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पांच आश्रवथी विरमइ; अंति: संजमना भेद जाणवा. ८०७०१. चंद्रगुप्तराजा सोलस्वप्न सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२४.५४११,१५४५३). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामें नगर; अंति: दीनो छकायाने दानो रे, गाथा-३६. ८०७०२ (+) सर्वार्थसिद्धविमाननी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१०.५, १०x२६). सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वार्थसिद्धे चंद्र; अंति: धनहर्ष० परि वाणी रे, गाथा-११. ८०७०३. तीर्थंकर आंतरा व द्वादशप्रतिज्ञा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४६). १. पे. नाम, आंतरा अधिकार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: २४मां श्रीमहावीर; अंति: वर्द्धमानस्वामी हवा. २. पे. नाम. द्वादशप्रतिमा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ साधुप्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भद्दपडिम क० जिहां; अंति: अंगुठाभर काउसग करे. ८०७०४. (+) सिद्धांत जिनगणधरप्रणीत वचनिका, षोडशमहारोगादि गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:चरचापत्रम्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, ४०४६०). १. पे. नाम, सिद्धांत जिनगणधरप्रणीत वचनिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमापूजासिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीउवाईसूत्रमांहि; अंति: भव्यजीवने संशय मिटे, (वि. साक्षिपाठस्थल संकेत-११५.) २. पे. नाम. शरीरस्थ १६ महारोग गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: कासे सासे जुरे दाहे; अंति: रोगा आगमंमि वियाहिया, गाथा-२. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: माल्यम्लानि१ कल्प; अंति: क्षणकमेव धनुःशरयोरिव, गाथा-६, (वि. अम्लान माला, कल्पवृक्ष प्रकंप, गर्भकालीन स्थिति आदि विविध विषयक गाथा श्लोक हैं.) ८०७०५ () खंधकमहामनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. मूलीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३४). खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक महामुनि; अंति: सेवक सुखीयो कीजेजी, ढाल-२, गाथा-२०. ८०७०६. (4) सामायिकनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. पीतांबर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५,११४३३). For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रावक व्रतधारी गुण अति गणी कान्हजी इम भासे, गाथा - १६. ८०७०७. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०.५, ११X३४). महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि मत द्यो; अंति: टालो साम्मी दुख घणा, गाथा - १५. ८०७०८, (*#) मंगलाचरण- व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, सुरत, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११.५, १५×५२). व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत वीतरागनी वांणी; अंति: वाचना प्रारंभ्यते. ८०७०९. वीसविहरमाण स्तवन व उपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे २, जैदे. (२४४११, १३३८). १. पे. नाम बीसविहरमाण स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमानजिन विचरे एह; अंति: दीज्यो शिव पद सामीया, गाथा- १६. २. पे. नाम उपदेश सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभता, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पंचेंद्री पणुं दोहिल; अंति: न्यान०हृदमां लीची रे, गाथा १०. ८०७१०. नेमिजिन विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४.५४११, १५४३५). नेमिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: नगर सोरीपुर शोभतो; अंति: सती पहुती मोख रे, गाथा-२६. ८०७११. (#) पर्वतिथिनिर्णय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X११.५, १२X३८). पर्वतिधिनिर्णय पूर्वाचार्यप्रणित सामाचारी गाधा संग्रह, मु. देववाचक, प्रा. सं., प+ग, आदि (१)अथ श्री आणंदविमलसूरि, (२) जइ पव्वतिहीखओ तह काय; अति ८०७१२. सीमंधरजिन स्तवन, अंबाजीदेवी स्तोत्र व तिजयपहुत्त भंडारी गाथा संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५X१०.५ १२४३२). १. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन- १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सामि सीमंधर बीनती अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. बालत्रिपुरासुंदरीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मा.गु.से., पद्य, आदि आई आनंदवल्ली अमृतकर, अति: सर्वदेवी नमस्ते, गाथा-५. ३. पे नाम. जयतिहुअण स्तोत्र मध्ये भंडारीगाथा २, पृ. १आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: परमेसर सिरिपासनाह, अंति: सिद्धि मह वंछियपूरण, गाथा-२. ८०७१३. (#) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि व मुहपत्तिना बावन बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४.५११.५, १०३२). " १. पे नाम. पाखीचीमासीसंवत्सरी प्रतिक्रमणा विधि, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि (-); अंति संसारवावा कहीजे, (पू.वि. पक्खीतप अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मुहपत्तिना बावन बोल, पृ. २आ, संपूर्ण. मुहपत्ति ५० बोल, मा.गु, गद्य, आदि सूत्रअर्थ तत्व समकित अंतिः वीराधना प्रहरू ८०७१४ (#) श्राविकागुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४X११.५, १३X३४). श्राविकागुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरब सुलक्षण रूप रसाल; अंति: ते सरज्या कैलासधणी, गाथा- ६. For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४०१ ८०७१५. विनयनयरी, संपूर्ण, वि. १८३९, माघ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. दयाचंद (गुरु मु. मतिसागर); प्रले. मु. मतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४४१). आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: विनयनयरी विनयनयरी; अंति: उपाडेन जय जयो करो, (वि. गाथांक अष्पष्ट है.) ८०७१६. युगमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. केसर; पठ. श्रावि. हरखाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ७४२७). युगमंधरजिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: सामी युगमंधर सुण; अंति: विनय० तुम मुख चंद रे, गाथा-५. ८०७१७. (#) सीद्धाचलना २१ नाम व सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ११४३३). १.पे. नाम. सीद्धाचलजीरा एकवीस नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ २१ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीविमलगीरि नमः१; अंति: कादंवाख्य० नमः२१. २. पे. नाम, सीतासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: जिन० __ सीता तणो रे लाल, गाथा-९. ८०७१८. (+) धना सज्झाय, निर्मोही राजा सज्झाय व साधारणजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १७४४५). १. पे. नाम. धनेकी सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. धन्नाकाकंदी सज्झाय, म. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: निस्तार रे महामुनि, गाथा-७, (पू.वि. अंतिम गाथा का अंश मात्र है.) २. पे. नाम. निर्मोहीराजा सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पं. भूधरदासजी, मा.गु., पद्य, आदि: सकल इंद्र प्रसंसई; अंति: सुण लइ गावे भूधरदास, गाथा-२९. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-श्रावकाचार, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान नीर निरमल आनी; अंति: मुक्त तणा सुख होईजी, गाथा-६. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: वंदौ श्रीजिणराज मनवच; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८०७१९ (+) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १०४३०). शांतिजिन स्तवन-रतनपरी, मा.ग., पद्य, आदि: रतनपुरी सणगार रे; अंति: सर्व जीव आण करे, गाथा-२३. ८०७२०. बज्रधरजिन स्तवन व सुपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १२४२९). १. पे. नाम. वज्रधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. देवचंद्र, मा.ग., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: देवचंद्र० मुझ आपज्यो, गाथा-७. २. पे. नाम, सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुपास जिनराज; अंति: वाचक जस थुण्यो जी, गाथा-५. ८०७२१ (#) पार्श्वजिन स्तोत्र, अरिहंतना बारगुण विवरण व शांतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८१७, आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. सरदार, प्रले. मु. जीतकुशल ऋषि; पठ. मु. संघजी ऋषि; मु. राजसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: प्रणमाम्य सदा प्रभु; अंति: पार्श्वजिनं सिवं, श्लोक-७. २. पे. नाम. अरिहंतना बारगुण विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ गण अरिहंत, मा.गु., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष केहेता; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र अशोकवृक्ष का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. ८०७२२. (+#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जेठा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अबरखयुक्त पाठ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४४१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवि राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ८०७२३. (+) रात्रीभोजननी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७५९, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. दीवबंदर, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि); अन्य. मु. खीमजी ऋषि; मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३२). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.ग., पद्य, आदि: अवनीतलि वारु वसइजी; अंति: पामो अमर विमाण रे, गाथा-२०. ८०७२४ विजीयाशेठनो चोढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १८४४३). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: सदा तस घर अवतरे, ढाल-३, गाथा-२४. ८०७२५. सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कसावखेड, जैदे., (२५४१२, १२४२७). १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहि., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांतिक; अंति: प्रसाद सदा पदमावती, गाथा-७. ८०७२६ (+) रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४३८). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-९ अपूर्ण से ढाल-३, गाथा-१५ अपूर्ण तक है., वि. ढालों में गाथाक्रम स्वतंत्र नहीं बल्कि क्रमशः है.) ८०७२७. औपदेशिक बारमासा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १८४३८). औपदेशिक बारमासा, पुहिं., पद्य, आदि: चेत चित मेरे मन आइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) ८०७२८. (+-#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ११४२६). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दुवारकानगरी अत्तभली; अंति: भावसागर० मुनिवर एहवा, गाथा-१२. ८०७२९. (-) चित्तसंभुति चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१०.४, १६x४५). चित्तसंभुति चौढालियो, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: प्रणमु सुरसति सामीनै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८०७३०. दादाजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ८x२७). जिनकुशलसूरि गीत, रा., पद्य, आदि: हुं तो मोह रहीजी; अंति: उलगेजी रंग घणै राजंद, गाथा-४. ८०७३१ (+) पांडव रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-४७(१ से ४७)=१, प.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है..प्र.वि. संशोधित.. दे., (२६४१३, १७४४१). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र ढाल ७४ वी है.) ८०७३२. (-) नेमराजिमती व विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२, २०४३७). १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: म्हे धावाला प्रभू; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४०३ मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतरागदेव नमु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ८०७३३ (+) भवानीमाता निसाणी व सरसतीमाताजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८०६, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. विजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११, १७४५८). १. पे. नाम, भवानीमाता निसाणि, पृ. १अ, संपूर्ण. भवानीदेवी घघर निसाणी, मा.गु., पद्य, आदि: खेजडले थान भवानी हां; अंति: मान० पाठ वचंदा है, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. सरसतीमाताजीरो छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धुरा उच्चरणं; अंति: करण वदे हेम इम वीनती, गाथा-१६. ८०७३४. व्याख्यान पीठीका, सवैया व छंदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४४१२, १८४४२). १.पे. नाम. व्याख्यान पीठीका, पृ. १अ, संपूर्ण. व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (१)णमो अरिहंताणं, (२)इहा कुण जे श्रीश्रमण; अंति: तिरने पारगत पामे. २. पे. नाम. जिनवाणी सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन सवैया-वाणीविशेषण, पुहि., पद्य, आदि: वीर हिमाचल से निकसी; अंतिः श्रुतज्ञान भंडारी, गाथा-६. ३.पे. नाम. औपदेशिक छंद, प. १आ, संपूर्ण. __ पुहिं., पद्य, आदि: कैसे करी केतकी कनेर; अंति: आप मुख बर बानी है. ८०७३५ (+) २४ दंडक २६ द्वार विचार कोष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, २१४५१). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर १ अवगाहना २; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-१६ तक है.) ८०७३६. पार्श्वजिन छंद व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२४४१०.५, १३४४०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीर जिणेसर केरो शिष; अंति: गौतम तटै संपति कोड, गाथा-९. ३. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ.१आ-२आ, संपूर्ण. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: उदयरत्न० सुख संपदा ए, गाथा-१७. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, म. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो वीरने चित्तमां; अंति: विवेके० दर्श तेरो, गाथा-१५. ५. पे. नाम. नवकारनो छंद, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८०७३७. ककाबत्रीसी, अक्षरबत्रीसी व शनैश्चर छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१२, १०-१४४२६-२८). १. पे. नाम. ककाबत्रीसी, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कक्काबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सीस जीनवरधन एम भणे, गाथा-३३. २. पे. नाम. अक्षरबत्रीसी, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. मु. तेजसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: कका करजे काम धर्म; अंति: तणो तेजसंघ गणधार, गाथा-३२. ३. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: जयं कुरु कुरु स्वाहा, श्लोक-११. For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०७३९. नेमीराजारी ढाल, संपूर्ण, वि. १९११, पौष शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. पुनमचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी नमीराजारी ढाल., ., (२४.५४१२, १५४३८). नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सासणनायक सीमरतां; अंति: आसकरणजी० तिथरो नाम, ढाल-७. ८०७४० (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, ९४२९-३१). साधवंदना, ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: वीर जिणेसर प्रणम; अंति: भक्तिवि० पभणे निसदिस. गाथा-२९. ८०७४१. महावीरस्वामीना सत्यावीशभव वर्णन, संपूर्ण, वि. १८९७, माघ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. ऋ. अभेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ११४१५-१८). महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, आदि: पहेले भवे जंबुद्विप; अंति: पालिने मोक्ष पोहता२७. ८०७४२. (+#) अंतरिक्षजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १०४२९). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: ध्याने माहरौ मन रहै, गाथा-५२. ८०७४३. सज्झाय, भास व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, कुल पे. ५, जैदे., (२३.५४११.५, १०४३३). १. पे. नाम. जीव ऊपरे सझाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, म. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जीव आवागमन नीवारो, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. तमाकुरी सझाय, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण, ले.स्थल. बालाग्राम. औपदेशिक सज्झाय-तमाक परिहार, ग. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवं; अंति: उत्तम कहइ आणंद, गाथा-२३. ३. पे. नाम. सहगुरु स्वाध्याय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. विजयलक्ष्मीसूरि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सयल सूरीश अवतंश तुं; अंति: मान गछेशरी सुयश गावे, गाथा-५. ४. पे. नाम. विजयलक्ष्मीसूरिजी भास, पृ. ६अ, संपूर्ण. लक्ष्मीविजयसूरि भास, मा.गु., पद्य, आदि: घडीय न वीसरे मुं घट; अंति: वचन रंग रटडे बेली, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु; अंति: रंग० अविचल पद निरधार, गाथा-७. ८०७४४. प्रतिमासंबंधि बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४१२, १५४४८). प्रतिमासंबंधि बोल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावकनां बार व्रत; अंति: तेरमौ कह्यौ ते स्यु. ८०७४५. अढारनातरा सज्झाय, महावीरजिन स्तवन व अरिहत स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२४४११.५, १०४३३). १. पे. नाम, अढारेनातरारी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मिथुलापुरी रे कुबेरस; अंति: नयविमल इम उपदिसै, गाथा-५. २. पे. नाम, भंडवे महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन, आ. पद्मसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १९९९, आदि जय जय वीर जिणेसरू; अंतिः पद्म० जीवाणे चउमास, गाथा- ७. ३. पे नाम. अरिहंत स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण अरिहंतपद स्तवन, आ. जिनपद्यसूरि, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत पद आराधीये, अंतिः पद्म० जग सिरताज, गाथा ५. ८०७४६. कल्पसूत्र कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३, जैदे (२४.५x११.५, १३४३३). कल्पसूत्र- कथा, मा.गु., गद्य, आदि (१) पृथ्वीयं भूषणे पूर्व, (२) प्रथ्वीभुषण नगरी, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., २७ भव से लिखना बाकी) ८०७४७ (#) भावना वेली व अढारनातरानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९८१४, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४-१ (१) =३, कुल पे. २, ले. स्थल, चेलाक्स, प्र. ग. प्रमाणहंस (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X११, १५-१७x४३-६३). १. पे. नाम भावना वेलि, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: (-); अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२८, (पू. वि. ढाल - ४, गाथा - १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अढार नातरारी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि प्रभवो कहे जंबू प्रत; अंति नयविमल इम उपदिसे, गाथा - ९. ८०७४८ (१) पार्श्वनाथजीरी नीसाणी, संपूर्ण, वि. १७६२ वैशाख कृष्ण १४, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. सामाजी ऋषि पठ क्र. सांवलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पुज्यश्री अमरसीजी प्रसादालिखितं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४१०.५, १०X३५). पार्श्वजिन निसाणी घरघर, मु. जिनहर्ष, पुहिं, पद्य, आदि सुखसंपत्तिदायक सुरनर अति गुण जीनहर्ष कहंदा है, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ८०७४९ (+) साधु वंदना, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष " पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११, १७x४३). ४०५ साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अनंत चोवीसी ऋषभ; अंति: जैमल ही तिरणरो दाव (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) " ८०७५० (+) पांचज्ञान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. ऋषभविजय, पठ. श्रावि. धोलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५x११.५, ११×३२). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमो पंचमी दिवसे ज; अंति: लक्ष्मीसूरि० गेहरे, ढाल-५. ८०७५१ (७) सुभद्रासती सज्झाब, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२५.५४१२, १३४२५)सुभद्रासती सज्झाय सीयल, मु. संधो, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोधे रे इरजा अंति: (१) हीयडे हरख न माय, (२) जीम लहीये भवपार, गाथा - २२. ८०७५२. झांझरियामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., ( २४x११.५, ९X२७). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी, अंति (-), डाल-४, गाथा-४३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल -२ तक लिखा है.) ८०७५३. चउसरण गीत, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२४४११, ८-१०४३७). For Private and Personal Use Only ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुजने च्यार सरणा; अंति: (-), अध्याय- ४, गाथा-१२, (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चतुर्थ शरणा की अंतिम गाथा नहीं लिखा है.) ८०७५४. सरस्वती स्तोत्र व गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, जैदे. (२४४११, १२४३५). " १. पे नाम. सरस्वती स्तोत्र, प्र. १अ संपूर्ण, सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु शारदादेवी अंति: पुज्यनीया सरस्वती, श्लोक १०. Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम, गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीर जिणेसर केरो शिष्; अंति: गौतम तूलै संपति कोडि, गाथा-९. ८०७५५ (+) दंडध्वजशिखररोपण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४२८). जिनमंदिर ध्वजारोहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीतपागच्छसमाचारी; अंति: (-), (पू.वि. पंचरत्न की पोटली का चुर्ण जल में डालने की विधि अपूर्ण तक है) ८०७५६. (+) शीखामण सज्झाय व गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १९२३, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मेसाणा, प्र.वि. श्री मनरंगाजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१०.५, १४४४०). १.पे. नाम. शीखामण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आचार, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता चरण नमीने; अंति: री धर्मे शीवसुख पामे, गाथा-१२. २.पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: तठां संपति कोडि, गाथा-९. ८०७५७. अवंतिसुकुमाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४७). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: एकदा समै आर्यसुहस्ति; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "ऊपर सुवै छै डाभरो संथारो आगै छै" पाठांश तक है.) ८०७५८. गुरुगुण गीत, औपदेशिक सज्झाय व सुधर्मागणधर गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, २१४४५). १. पे. नाम, गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: पुन्य जोगे ग्यांनी; अंति: य जैमलजीरी मै माझाजी, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: प्यारो मोहनगारो राज; अंति: निश्चल पद निरवांणि, गाथा-१३. ३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: भरतक्षेत्रमे भलो; अंति: हुवो हर्ष उल्लासोजी, गाथा-१२. ८०७५९ (+) प्रत्येकबुद्ध सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १५४३९). १.पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुं; अंति: समयसुंदर०पातक जाय रे, गाथा-५. २. पे. नाम. प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. दूमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी कपीलानो धणी रे; अंति: नितनित प्रणम् पाय, गाथा-७. ३. पे. नाम. नमीराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर सुदरसण राय हो जी; अंति: समयसुंदर कहै साधुने, गाथा-६. ४. पे. नाम. नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कुंडवर धनपुर राजीया; अंति: चउथो परत्येकबुद्ध हे, गाथा-६. ५. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिसथी च्यारे; अंति: समयसुंदर कहे०परसिद्ध, गाथा-५. ८०७६० (+) पंचांगली स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १८४४५). For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४०७ पंचांगुलीदेवी स्तोत्र, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर पाय; अंति: (१)हर्ष पयंपे वारंवार, (२)हर्ष पयंपइ वार वार, गाथा-३६. ८०७६१. दीवालीपर्व स्तुति व १४स्वप्न १४रत्नादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२५४१२, ३६x२२). १.पे. नाम. १४ स्वप्न विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: गज वृषभ मुखमांहे; अंति: विप्र आहोत करता देखे. २. पे. नाम. उत्कृष्ट जिन विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. एक समये उत्कृष्ट ३० जिन जन्मोत्सवे १५० इंद्र रूप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एक प्रस्तावै एक समय; अंति: थइ उत्कृष्टा रूप १५०. ३. पे. नाम. तीन पर्वत विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ३ पर्वत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण पर्वत वलयाकारि; अंति: ऊँच पणे मान कह्यौ छे. ४. पे. नाम. चक्रवर्ती के चौदह रत्न विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ रत्न विचार-चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, आदि: चक्रवर्तीनो चक्र; अंति: तो रोग क्लेश जाए. ५. पे. नाम. दीवालीदिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-दीपावलीपर्व, मु. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर साहिब; अंति: सिद्धायिका सुखकारीजी, गाथा-४. ८०७६३. स्नात्रपूजा सामग्री, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, ११४३६). स्नात्रपूजा सामग्री, मा.गु., गद्य, आदि: केसर सुखड अंगलुछणा; अंति: बाकला घीइ ए निवेद. ८०७६४. जीवकाया सज्झाय व गजसुकुमाल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३७). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु भाखे देसना; अंति: इम कुसल कहै समझाय, गाथा-९. २. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. खेमकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: द्वारापुरी नगरी के; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८०७६५. भक्तामर स्तोत्र का भाषानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १४४४०). __ भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. देवविजय, पुहिं., पद्य, वि. १७३०, आदि: भक्त अमरगण प्रणत; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ अपूर्ण तक है., वि. मूलकृति का मात्र प्रतीकपाठ दिया गया है.) ८०७६६. नवकार छंद व औपदेशिक दोहे, संपूर्ण, वि. १८२२, आषाढ़ शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. राजेंद्रसागर; पठ.पं. जीवणविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२४.५४११.५, १५४५२). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: कुशल०रिद्ध वंछित लहै, गाथा-१७. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहे- कगरु, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहासंग्रह, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), दोहा-२. ८०७६८. (4) माणिभद्रजी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३८). माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति नित सेवित सुभख; अंति: राजरत्न० जय जयकरण, गाथा-२१. ८०७६९. महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९००, चैत्र शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, ११४३०). दीपावलीपर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ ताता जगत; अंति: जिनचंद० एहवी वाणी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०७७० (#) नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६५, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पूज्यमहार्षि श्री उदेसिघजी प्रसादात्. विद्वान नाम खंडित., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १५४४४). नेमिजिन स्तवन, म. उदयसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीनेमीसर नित नमु; अंति: उदयसिंघ० प्रमाण ए, ढाल-४, गाथा-२८. ८०७७१. छंद, चैत्यवंदन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२४.५४१२, १५४५८). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीयण समरो; अंति: सूरवर सीस रसाल, गाथा-६. २. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिनविहरमान श्री; अंति: संपदा करण परमकल्याण, गाथा-२. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: राम कहौ रहिमान कहौ; अंति: न चेतनमें नही कर्मरी, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: खलकइ करे नका सुपना; अंति: समझ भूधर भली हे रे, गाथा-५. ८०७७२. पच्चक्खाण के ४९ भांगा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२५४११, १४४४१). प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मन्यं करी करं नही; अंति: नही अनुमोदु नही. ८०७७३. उपधानतप विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२५४११,१५४५०). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ईर्यापथिकी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "आरोविअं ___ इच्छामोणुसट्ठि गुरुभणइ आरोविअं २ खमास" पाठांश तक है., वि. यंत्र सहित) ८०७७४. (+) शुद्ध सम्यक्त्व गुण काव्य, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११,१३४५२). __ अज्ञात जैन काव्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से गाथा-४६ अपूर्ण तक है.) ८०७७५ (+) आलोयण छत्रीसी व अभिनंदनजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १८४४५-४८). १.पे. नाम. आलोयणा छत्रीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोय तूं आपणा; अंति: कहे करी आलोयण उच्छाह, गाथा-३६. २. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सारद चंद समोवडे हो; अंति: आण्णी रिदेय विवेक, गाथा-५. ८०७७६ (#) स्नात्र पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३०). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नैवेद्यपूजा अपूर्ण से पूजाफलश्रुति दोहा अपूर्ण तक है.) ८०७७७. (+#) स्तवन व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १७४४२-४५). १. पे. नाम. चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. __ चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. ७अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिर्मतः, श्लोक-११. ३. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि जपाकुसुमसंकाशं अंतिः विधानं भाषितं बुधैः श्लोक-१५. ४. पे नाम बृहस्पति स्तोत्र, पू. ७आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि: बृहस्पतिः सुराचार्यो; अंति: तं नमामि बृहस्पते, श्लोक - ६. ५. पे नाम शनिश्चर स्तोत्र, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्म, आदिः यत्पुरा राज्यभ्रष्टा अंति (-) (पू. वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८०७७८. (+) पुद्गलपरावर्त विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैये. (२५४११.५, " १५X४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सातवर्गणाइ उदारिकइ; अंति: सूक्ष्म थाइ. ८०७७९. अतित, अनागत, वर्तमान चोवीसी व विहरमानजिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१२, १३x२२). २० विहरमानजिन, अतीत, अनागत व वर्तमान तीर्थंकरादि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८०७८०. (+) नेमिजिन छ ढालियो व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक नहीं है., संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, १५X४०-४३). १. पे. नाम. नेमिजिन छ ढालियो, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमिजिन छढालीयो, मु. शिवजी गणि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सारदा; अंति: संघने द्यो संपदा, ढाल - ६. २. पे नाम. दुहा संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण दुहा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ८०७८१. (+) पद व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १(१) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १२x३९). १. पे नाम. दादाजिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति अमरसिंधु० दीये आणंद, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा - १० अपूर्ण से है . ) २. पे नाम वीरजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पावापुर महावीर जिणेस अति जिनचरणै चित लावा, गाथा-५. ३. पे नाम. शांतिजिन स्तवन. पू. २अ २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि आंगण कल्प फल्यो री अतिः समवसुंदर सोहलो रे, गाथा ५. " ४०९ ० ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू प्रणमुं रे पास, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only ८०७८२. (+) गच्छपति वधावो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : वधावोपत्र, संशोधित., जैदे., ( २४.५x१०.५, १२X३५). जिनहर्षसूरिगच्छपति बधावा, मु. चंदजी, मा.गु., पद्य, आदि सुधै मन नमै सारदा अति स दीये इम चंद हो राज, गाथा - १५. ८०७८३. पार्श्वजिन स्तवन व रहनेमि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक नहीं है. दे. (२५.५४१२, १२X४६). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीनो सुहावे जिणजी, अंतिः दीपविजय० बंदु बिजयहीर, गाथा- ८. २. पे. नाम. रहनेमि राजीमतीनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि काउसग्ग व्रत रहनेमि, अंति: देव० सुख लेहस्यो रे, गाथा - ११. Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०७८४. (2) अज्ञात जैन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १८४४२). अज्ञात जैन रास, मु. रत्नवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ की गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-७ तक ८०७८५. (#) २४ जिन नामादि वर्णानुक्रम भांगा व सुभाषित श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४६१). १. पे. नाम. विश्वासघातफल श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक, सं., पद्य, आदि: विश्वासं प्रतिबंधानं; अंति: यावच्चंद्रदिवाकरः, श्लोक-१. २.पे. नाम. २४ जिन नामादि वर्णानक्रम भांगा, प. १आ, अपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंत के पाठांश नहीं है.) ८०७८६. (+) सामान्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ९४२५). साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आय वसो जिनराज मेरे; अंति: विनति करता पाप पलाय, गाथा-९. ८०७८७. पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८६०, पौष कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. भीनमाल, पठ. मु. केसरीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री माहावीरजिन प्रसादात्, जैदे., (२४४११, ९४३४). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, म. उदयरत्न, मा.ग., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ८०७८८.(+) संध्या सामायिक विधि-खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९०४, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, १५४३६). संध्या सामायिक विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां धर्मशाला; अंति: इत्यादि गाथा ५ कहे. ८०७८९. अष्टप्रकारीजिन पूजाविधि स्तवन व क्षमाछत्रीशी, अपूर्ण, वि. १८वी, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २६-२५(१ से २५)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. शमीनगर, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४५). १.पे. नाम. अष्टप्रकारीजिनपूजाविधि स्तवन, पृ. २६अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. वीरचंद, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सुणतां चित्त प्रसन्न, ढाल-७, गाथा-९१, (पू.वि. गाथा-८१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. २६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. _उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ८०७९० (4) कवित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १९४५४). प्रास्ताविक कवित संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दोहा-१० अपूर्ण से २६ तक है., वि. विभिन्न विद्वानों के दोहे संकलित हैं.) ८०७९१ (+) चेलणा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(३)=४, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १५४४२). चेलणासती चौपाई, म. दयाचंद ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: चोवीसमा महावीरजी; अंति: (-), (प.वि. ढाल-४ गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-७ अपूर्ण तक एवं ढाल-१३ के पश्चात् कलश आदि नहीं है.) ८०७९२ (+) साधुआचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१२, ४४३०). साधु आचार स्तवन, मु. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: चेलुजी स्वामी घर छोड; अंति: सांभलजो नरनार जी, गाथा-५३. ८०७९३. (+) अनाथीजी की सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: अनाथी.शी पत्रांक ५ का नीचे का भाग फटा हुआ है., संशोधित., दे., (२४४१२, १२४३२). For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४११ अनाथीमुनि सज्झाय, मु. खेमकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: अरिहंत सिद्धने; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-६८ अपूर्ण तक है.) ८०७९४. (+) दानशीलतपभावना चौढालीयो व नववाडी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी: दानसील, संशोधित., जैदे., (२५४१२, १९४३७). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समय० सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. २. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: श्रीनेमीसर चरणयुग; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-५ अपूर्ण तक) ८०७९५ (#) पार्श्वजिन स्तुति व जिनकुशलसूरि स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०, ९४३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पलबंध, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंति: वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरु माता सरसती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८०७९६ (+) साधुपाक्षिक अतिचार, सकलार्हत् स्तोत्र व पाक्षिक खामणा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १२४३०). १.पे. नाम. साधुपाक्षिकादि अतिचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.प., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: (१)विषइओ जि को अ०, (२)जिको अतिचार पक्ष०. २.पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. ३आ-५अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-३३, (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम, पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. ८०७९७. (+) मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी: एकादसीपत्र, संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरि समोसर्य; अंति: लहि मंगल अतिघणो, ढाल-३, गाथा-२५. ८०७९८ (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८१, आषाढ़ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ऋ. मनरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२,१३४४०). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: हंसराज० मुझ ए गुरु, ढाल-१०, गाथा-६८. ८०७९९ पद्मावती आराधना व हितोपदेशबहुत्तरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. २, ले.स्थल. जेहेनगर, प्रले. सा. रूपा (गुरु सा. डाहीजी); गुपि. सा. डाहीजी; पठ. सा. चनणाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: उतपत, जैदे., (२४.५४११, १५४२७). १. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: कहै पापथी छुटै ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जो जो आपणी मन; अंति: इम कहै श्रीसार ए, गाथा-७२. ८०८०० (-) दानशीलतपभावना चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९१४, माघ शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. हमनगर, प्रले. सा. केसरबाई महासती (गुरु सा. प्रेमकुवरबाई महासती); गुपि. सा. प्रेमकुवरबाई महासती; पठ. सा. कस्तूरबाई शिष्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४११, १३-१५४३६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय नमी; अंति: समयसुंदर० सुजगीसो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ८०८०१ (#) शामलाजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रत सं. १आ पर प्रतिलेखक ने २४ दंडक २९ बोल प्रारंभ करके छोड़ दिया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, ११४३०-३५). पार्श्वजिन स्तवन-शामला, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सामल पार्श्वजिनेश्वर; अंति: कहे मोहन पूरो आश, गाथा-८. ८०८०२. मुहपत्तिना ५० बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११, १०x२२-२५). मुहपत्तिपडिलेहन बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व; अंति: प्रथमना बोल २५ कहेवा. ८०८०३. कायानी सज्झाय व साधुनो आचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, दे., (२४४११, १७-२१४२४-३६). १.पे. नाम. कायानी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. गजा ऋषि (गुरु म. गोरधन ऋषि); गुपि.म. गोरधन ऋषि (गुरु मु. जेमल ऋषि); मु. जेमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-काया, म. रूपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: काया हो कामण जीवजी; अंति: रुपचंद सोहोसो ग्यानी, गाथा-१४. २. पे. नाम. साधुनो आचार, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. जीओ, प्र.ले.पु. सामान्य. साधु आचार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: साधुनो आचार कहै छै; अंति: तिणरो जाबतो घणो करणो. ८०८०४. पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ११, दे., (२६४१२, २४४६६). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-काया विषे, म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: इस तन का कोई गरव; अंति: जिनदास०सबही गमाया रे, गाथा-१२. २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: परभव में मेरो कोई; अंति: जिनदास गम खाई है, गाथा-८. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: परभव में मेरो समरथ; अंति: एही मति मुज भाई है, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: झंझूटी प्रभाती मिलत; अंति: जिनचरणै मन पाया रे, गाथा-३. ५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: गुरु निगरंथ युं जोया; अंति: परमातम पद पाया रे, गाथा-३. ६.पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सीवरमणी के वासा रे; अंति: समकत की मत खासी रे, गाथा-३. ७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुनरी सईया स्याम; अंति: जिनदास०आयो में ओलैरी, गाथा-४. ८. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, रा., पद्य, आदि: म्हारै मन साजै अलीजा; अंति: बोलै जिनदास यु वैण, गाथा-४. ९. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ जिनदास, रा., पद्य, आदि म्हारा वालेसर सेती, अंति: परणमे परगट पाय, गाथा ३. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. औपदेशिक पद- काया अनित्यता, मु. जिनदास, रा., पद्य, आदि अरी काया काची थारी अति भइ छै जगत मा जीत, गाथा-२. ११. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण मु. जिनदास, पु.ि, पद्य, आदि प्रभुजी ऐसो समरथ अंति: जिणदास कोण वीचारो, गाथा- ७. ८०८०५. अगियारसनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रत्नचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., www.kobatirth.org १९३०-३३). मी एकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: समवसरण बेठा भगवंत अंतिः समयसुंदर कहो द्याहडी, गाथा- १३. יי ८०८०६. तृतीयातिथि स्तुति व नवतत्त्व स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, दे. (२४.५x१२.५, १०x४२-४८). १. पे. नाम. तृतीयातिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निसहि त्रण प्रदक्षणा अति खिमा० सुर संभारोजी, गाथा-४. २. पे नाम. नवतत्त्व स्तुति, पृ. १अ आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भुजनगरमंडन नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा रे जीवा पुनं रे; अंतिः मानवि० चित धरन्यो जी, गाथा-४. ८०८०७. (*) तपग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२४.५x१२, १२४३५-३८). १. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैदे., (२५x११.५, तपग्रहण विधि, प्रा.मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभवनदेवता निमित्त अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., व्रतग्रहणदंडक तक लिखा है. वि. प्रायः संपूर्ण लगता है.) ८०८०८. (४) मेघकुमारमुनि व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२४४११.५ १५२७-३०). " मु. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, , संपूर्ण. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि चारित लेई चीतवै रे अति त्रिविध शिर नाम रे, गाथा- १४. औपदेशिक सज्झाय- परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि इक काया अरु कामिनी; अंति: संसार जीव परदेसी रे, गाथा-५. ८०८०९. ऋषभजिन लावणी व कृष्ण स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२४.५x११, ८x१५-३१). १. पे. नाम. ऋषभजिन लावणी, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ४१३ आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु. मूलचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १८६३, आदि: सुनीओ बातां राव सदा; अंति: ऋषभनाथ का है चेला, गाथा ९. २. पे. नाम. कृष्ण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कस्तूरीतिलकं लिलाट; अंति: विजयते गोपाल चूडामणी, श्लोक-१. ८०८१०. जिनदासनी लावणी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैये., For Private and Personal Use Only (२४११, ८x२७-३० ). औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुकृत की वात तेरै; अंति: से जोर तेरो नहीं रे, गाथा-५, संपूर्ण. ८०८११. गौतमस्वामी गहुली, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है, प्रले. सा. राजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४११.५, १७३२-३६). गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गोतमसामी तणा; अंति: धन धन गो साम, गाथा- १५, संपूर्ण. Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०८१२. महावीरजिन व सुविधिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, ११४३०-३३). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने शांतिजिन स्तवन नाम लिखा है. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नही मानु रे अवरनी; अंति: रे प्रभू नहिं मानु, गाथा-७. २. पे. नाम. सविधिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मे किनो नहि जिन विना; अंति: तामे दीजे भगत पराग, गाथा-५. ८०८१३. (+#) व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३६-३९). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: जिनेंद्रपूजा गुरु; अंति: मंगलमाल प्रवर्ते. ८०८१४. प्रतिक्रमण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११)=१, जैदे., (२५४११.५, ९४२५-२८). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणो भावसुं; अंति: धर्मसिंह० लाल रे, गाथा-७, संपूर्ण. ८०८१५ (+) औपदेशिक गाथा, २२ परीसह आनुपूर्वी गाथा व मिच्छामिदक्कड भांगा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ९-१४४१०-३६). १.पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अजिनपडलगूढं पंजरं; अंति: न लद्धो जिणबोहिलाभम्, गाथा-२. २. पे. नाम. २२ परीसह आनुपूर्वी गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. २२ परिषह उदयहेतुभूत कर्म विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचेव अणुपुव्वी चिरि; अंति: वावीसपरीसह वेयणिज्जं, गाथा-४. ३. पे. नाम. मिच्छामिदक्कडंना भांगा, पृ. १आ, संपूर्ण. मिच्छामिदक्कडं भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: १४ भेद नरकना सातनरकम; अंति: न गुणा कीजै १८२४१२०. ८०८१६. आदीश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, ११४३०). आदिजिन स्तवन-ओसीयातीर्थ, म.ज्ञानसंदर, रा., पद्य, वि. १९७२, आदि: मासुं मुंढे बोल बोल; अंति: की प्रणम पाया रे, गाथा-११. ८०८१७. (+) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७६, चैत्र कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. रामगढ, प्रले. पं. प्रमोदकुशल; पठ. श्राव. अमेदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १३-१६४३६-४०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तति, पृ. ५अ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुशलने आपो मंगलमाल, गाथा-४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा का अंतिम पद २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अति अलवेसर; अंति: बुधविजय जयकारी जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. चारनिखेपानी स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तुति, क. ऋषभदास, मा.ग., पद्य, आदि: च्यारि निखेपा; अंति: तजीने पूजो जिनवर पाय, गाथा-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारे श्रीवीर जिणंद; अंति: जसविजय शुभकारी, गाथा-४. ८०८१८. (#) रहनेमराजीमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७७, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, ४४४२२-२५). नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चोमासा में राजूल; अंति: नेम सुंदर शिरनामि, गाथा-४३. For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ८०८१९. समेतशिखरजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X११.५, १३x२५-२८). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. जिनसौभाग्यसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९५, आदि: सिखर समेत जुहारो; अंति: सौभाग्यसूरि० गाये रे, गाथा १७. ८०८२० (+) नवपद आरती संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, पठ. श्राव. विलास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे., " " (२५X१२.५, १०X२६-२९). नवपद पूजाकी आरती, उपा. यशोविजयजी गणि मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जग जन वंछित अंतिः परिपूजक शिवकमला पावै, गाथा- ७. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८०८२१. (+४) चउदह सुपनारा सवझ्या संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. मु. कर्मचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x१०.५, १६४४२-४५). सुपनांतर सवैया, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धारथकुलतिलो; अंति: सुपनांतर गातां, गाथा-१५. ८०८२२. नेमिजिन व मल्लिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५x१२, १५X३२-३५). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: नेमि जिणंदा हो महिर, अंति: भावसुं रामचंद सुजगीस, गाथा-११. २. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ४१५ मा.गु., पद्य, आदि: कुंभ समुद्भव संपदा; अंति: जय जय विश्वपते, गाथा-५. ८०८२३. (४) देवविहार सज्झाय व विनयविजयगुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही २. पे. नाम विनयविजयगुरु सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बंदो वाचक श्रीविनय अति रूपविजय० जिम रविचंद, गाथा-५. ८०८२४. ४२ गोचरी दोष सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६४१२ २४४१५-१८). फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, २५X१३). १. पे. नाम. देवविहार धूम सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. विजयदेवसूरि गुरुमंदिर गीत, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि हा मेरे लाल आज उलट अंति रूपविजय गुण गाय, गाथा-७. ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १ देसिअ २; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोष-३७ तक लिखा है.) ४२ गोचरी दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: साधुने काजे मुल थीकि; अंति: (-), पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. " ८०८२५ (४) चोवीसजिनवरनो परिवार संख्यानी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, ले. स्थल, पालनपुर, पठ. श्रावि. पानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२४.५४११, ९४३०-३४) "" - २४ जिन परिवार सज्झाय, मु. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: समरु रे चडवीस जिन अंतिः दीप नमे करजोडी रे, गाथा १४. ८०८२६. (#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रक्रम का उल्लेख नही है. पत्र के दोनो तरफ प्रारंभिक गाथाएँ नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X११.५, ६- ९२९-४२). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३७ अपूर्ण से है व कलशगाथा ३९ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. . " " पु,ि पद्य, आदि (-); अति: (१) भवसागर पार उतारे रे (२) जावसी करणी कर संतोष गाथा-१० (पू.वि. गाथा-४ से है.) ८०८२७. छ आराप्रमाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. प्रत के चारों तरफ लिखा है. जैवे. (२४४११, ११४३५-३८)६ आरा मान, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो आरो च्यार कोडा; अंति: पूर्व संख्या जोड़. ८०८२८. राजिमती इकवीसा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५.५x११, १३x२९). Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची राजिमतीसतीइकवीसा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: सासननायक समरीए; अंति: (अपठनीय), गाथा-२१. ८०८२९ (#) औपदेशिक सज्झाय व सखदेवलोक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. नदराय, प्रले. सा. मानी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सेणकर०. हुंडी खंडित है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, २१४४२-४५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ नगरथगुरु स्तवन, मु. नगरथशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नगरथगुर कीया नीस्तार; अंति: गुररा पाव सदाइ पूजो, गाथा-११. २. पे. नाम. सुखदेवलोक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. देवलोकसुख सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, आदि: देवलोकारा साताकारी; अंति: दुक्कडं मारो जी, गाथा-११. ८०८३०. चोवीस दंडक द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४११, १६-१९४२५-४८). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)शरीर अवगाहणा संघयण, (२)समझवाने हेतइ मन एक; अंति: (-), (पू.वि. भवनपति द्वार विवरण अपूर्ण तक है.) ८०८३१. भीलीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४२७-३०). भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने विनवं; अंति: पूरी वन छे अति रुडी, गाथा-१७. ८०८३३. (4) गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,१५४३३-३६). १.पे. नाम. धर्मजिन गीत, पृ. १३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. धर्मजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करतां चढती दोलत पाई, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मल्लिजिन गीत, पृ. १३अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: दास अरदास शी परि करु; अंति: जी सकळ तुं अकळ सरूप, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १३अ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि रे सामलीया; अंति: किम विरंचि वरदाई रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन गीत, प. १३आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम महावीरजिन गीत लिखा है. सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुखलवइ वीजइं जयो रे; अंति: वाचक जस०भयभंजण भगवंत, गाथा-७. ८०८३४. (4) नलदमयंती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी: दवदंत., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४४२-४५). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-२१ अपूर्ण से ढाल-४, गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८०८३५ (#) सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ९-१८४३०-४९). १.पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सोमसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी; अंतिः सोमसुंदर० करवो पचखाण, गाथा-८. २. पे. नाम.५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उदय धरो; अंति: सीस हेमविजय पभणंत रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४१७ मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रात दिवस काया मूढ; अंति: वीर वचन सुणो नरनारी, गाथा-६. ८०८३६. (#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४२९-३२). १. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धगिरि ध्याओ; अंति: ज्ञानविमल० गुण गाई, गाथा-५. २. पे. नाम. सिद्धाचलनुं स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: फुलनां चोसर प्रभूजी; अंति: उदयरतन० कल्याणो रे, गाथा-७. ८०८३७. ऋषभजिन स्तवन व दादाजी गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. डभाल ग्राम, पठ. पं. विद्यारंग, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १३४३२-३५). १.पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सुणि सुणि शेजा; अंति: श्रीजिनभक्तिसुरंदा, गाथा-१०. २.पे. नाम. दादाजी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनकशलसूरि गीत, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कीजै बे करजोडने दादा; अंति: महिर निजर अवधार हो, गाथा-९. ८०८३८. (+) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १६x४२-४५). महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-१९. ८०८४० (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १०x१८-२२). महावीरजिन स्तवन, मु. दयासागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सासणनायक वीरजीणंद; अंति: गर करजोड करीजे वंदणा, गाथा-५. ८०८४१ (#) मृगापुत्र संबंध, संपूर्ण, वि. १९६३, फाल्गुन शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले.पं. चुनीलाल (गुरु मु. अमरचंदजी, खरतरगच्छ); गुपि. मु. अमरचंदजी (गुरु पं. हर्षचंदजी, खरतरगच्छ); पं. हर्षचंदजी (गुरु पं. लालचंदजी, खरतरगच्छ); पं. लालचंदजी (गुरु पं. चतुर्भुजजी, खरतरगच्छ); पं. चतुर्भुजजी (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२, १८४४५-४८). मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: परतिख प्रणमुं वीर; अंति: चरित्र जिनहरषै कीयो, ढाल-१०, गाथा-१२८. ८०८४२. (#) १८ भार वनस्पति व गर्भादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-२१(१ से २,४ से २२)=२, कुल पे.६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १५-१८४३२-४२). १.पे. नाम. अढार भार वनस्पतिमान दोहा सह बालावबोध, पृ. ३अ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पतिमान दोहा, रा., पद्य, आदि: कोडि तीन लख वसु ससि; अंति: सुरभीसु वसत सार, दोहा-२. १८ भार वनस्पतिमान दोहा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ७६८६०१७८०० इतरी जाति; अंति: बोझ मण ३६० हुवै सही. २.पे. नाम. सर्वार्थसिद्धि मोतीयांरी विगति अनुयोगद्वारै, पृ. ३अ, संपूर्ण. २५३ मण मोतीमान बोल-सर्वार्थसिद्ध विमान, मा.ग., गद्य, आदि: ६४ मणरो मोती १ बीचि; अंति: मोती सर्वार्थसिद्धौ. ३. पे. नाम. चंद्रसूर्यसंख्या विचार-विविध द्विपसमुद्रे, पृ. ३अ, संपूर्ण. चंद्रसूर्यसंख्या विचार-विविध द्वीपसमुद्रे, मा.गु., गद्य, आदि: १ जंबूद्वीपे २ चंद्र; अंति: चं० ३०८७९४४ सूर्य०. ४. पे. नाम. १४ राजलोक प्रमाण, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १॥ राज सौधर्मः २ राज; अंति: धरतीरो मध्य जाणिवौ. ५. पे. नाम. कितराहेक बोल विचार, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पहिली संसार अथवा; अंति: (-). ६. पे. नाम. गर्भ विचार, पृ. २३अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., पे.वि. पूर्णता संशोधनीय. ___ मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रीभगवतीसूत्र शतक-१ उद्देशक-७ संदर्भ है.) ८०८४३. चित्तोडगढ व अढार नातरानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८४९, पौष शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. २, ले.स्थल. जुनेरनगर, प्रले. मु. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५,१६४३२-३६). १.पे. नाम. चित्तोडगढनी सज्झाय, पृ.१अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहि., पद्य, वि. १७४८, आदि: पार्श्वनाथ चरण चित; अंति: चित्तौर की खूब गाई, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से ५४ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम, अढारनातरानी सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमुंरे पास; अंति: गुण गाय रे मन रंगीला, ढाल-३, गाथा-३२. ८०८४५. (#) साधुपाक्षिक अतिचार व पार्श्वजिन लावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-१४(१ से १४)=४, कुल पे. २, प्रले.मु. दौलतरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ११४२७-३०). १. पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. १५अ-१८अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: अनेरो जे कोई अतिचार. २. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. १८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी, म. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: तेवीसमा जिनराय भजो; अंति: महाराज दोलत दिलवाइ, गाथा-४. ८०८४६. (4) चैत्यवंदन स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७१, आश्विन कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. ३१-२७(१ से २६,२८)=४, कुल पे. ७, ले.स्थल. डभोइनगर, प्रले. पं. रूपसागर (गुरु पंन्या. उमेदसागर); पठ. श्राव. मोतीचंद; गुपि. पंन्या. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: चैत्यवंदन., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १७४३२-३५). १.पे. नाम. शांतिदेव स्तुति, पृ. २७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. कुशलसागर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: संपदः प्राप्नुवंति, श्लोक-१३, (पू.वि. अंतिम श्लोक अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. तीर्थमाला स्तोत्र, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: चित्तमानंदकारी, श्लोक-१०. ३.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम, सर्वजिन स्तोत्र, पृ. २९अ-२९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५, (पू.वि. श्लोक-११ अपूर्ण से है.) ५.पे. नाम. शत्रंजयमंडन ऋषभजिन स्तति, प. २९आ-३१अ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन, प्रा.,सं., पद्य, आदि: श्रीशैजुंजय मुख्य; अंति: तिक्षशिलापुर्वरजयति, श्लोक-४५. ६. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगन्नाथ विमला; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ७.पे. नाम. पार्श्वजिनेश्वर स्तुति, पृ. ३१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, म. शिवसंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं भवदं; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक-७. ८०८४७. शीलविषये नववाडिस्वरूप स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, ., (२४४११, ९४२६-२९). For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१९ ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: उदयरतन० तेहने भामणेजी, ढाल - १०, गाथा ४३, (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., ढाल ९, गाथा-४ अपूर्ण से है) ८०८४८. सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. ४, कुल पे. ३, दे. (२४.५४११.५, ९४२८-३२). १. पे. नाम. छाती, पृ. १आ- २अ संपूर्ण. प्रास्ताविक कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: घेर तो राणा राजीया अति जाओ तो अमने पूछजो, गाथा-१५. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जीवधर्म म मुकीस वनीओ; अंतिः ए त्रण काले वंदे रे, गाथा-८. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ३अ ४अ संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय-वाणोतरशेठ, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेठ भणे सांभलने; अंति: सामी धर्मकरे अहीतरे, गाथा - ११. ८०८४९. (+) भेरी नवडाल, संपूर्ण, वि. १९११, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, नागोर, प्रले. मु. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., ( २४१२, १८x४०-४५). भेरी संबध, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: सासण नायक सीवरीये; अंति: उपजै प्रेम अणंद, ढाल-९. ८०८५० (४) संवाद शतक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४, प्रले. पं. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १४५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३३६-४०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेशर पाय नमी अति समृद्धि सुप्रसादो रे, डाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ८०८५१ (+) खंडाजोयण द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-२० (१ से २०) = १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., ( २४.५X११, १७X४७-५०). लघुसंग्रहणी १० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडार जोयण २ वासा३; अंति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., द्वार-६ अपूर्ण तक है.) ८०८५२, (४) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे ४, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैवे. (२४.५x११, ११४३५-३८). १. पे. नाम. नेम स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण, नेमराजिमती स्तवन, आ. लब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: जंबुद्विपल दीपतो; अंति: लब्धिचंद्रसूरिराय, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम संभवजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि संभवजिननी सेवा प्यार अंति उदय० कीरत देज्यो हो, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है. ) ३. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वीर, मा.गु, पद्य, आदि: तुही जगतपत जीवका अति विर० मोही पार उतारो. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि तुठो झुक जाये भमरजीर, अंति: (-), (पू.वि. "तुठा संकट टलेजी" पाठ तक है. वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) " ८०८५३. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २४.५X११, १५X३६-३९). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य वि. १७वी आदि मनमधुकर मोही रह्यो अति (-) (पू.वि. स्तवन-५, गाथा २ अपूर्ण तक है.) ८०८५४. प्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १८४५, श्रावण शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १२-११ (१ से ११) = १, ले. स्थल. मोजगढ, प्रा. पं. आनंद, मु. बोलत (गुरु मु. वीरभाण, खरतरगच्छ); गुपि. मु. वीरभाण (गुरु वा. उदयभाण, खरतरगच्छ); वा. उदयभाण (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २५X११, १३x४०-४४). For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: जैन जयति शासनं, (पू.वि. कुसुमिणदुसुमिण काउसग्ग विधि अपूर्ण से है.) ८०८५५ (4) चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२४४५-४८). १. पे. नाम. चोविसजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: पैहलि प्रणमु प्रथमना; अंति: स्यु ते तरसी संसारी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. विविधतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. भगोती, प्र.ले.पु. सामान्य. विविध तीर्थ चैत्यवंदन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजेजे सहरसाम; अंति: लहै पामयु सुख अनंत, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. शाश्वताअशाश्वताजिन नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. शाश्वताशाश्वताजिन नमस्कार, पुहि., गद्य, आदि: अढाईदीप कै विषै जै; अंति: त्रकाल वंदणा होजो. ४. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं.,प्रा., पद्य, आदि: सूवर्ण वर्ण जिनराज; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-२ तक है.) ८०८५६ (+#) साधुपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १३४२५-२८). साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: समकितधारी सुधमती रे; अंति: सीमर्या पामै सिध, गाथा-१६. ८०८५७. (#) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. प्रेमसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३०-३६). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., पद्य, आदि: एहवो श्रीशांतिनाथ; अंति: सर्वसंपत्ति हेतु. ८०८५८. जीवकाया सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, जैदे., (२५४११.५, १४४२६-२९). आध्यात्मिक सज्झाय-जीवकाया, मु. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: तू मेरा पीवु साजना; अंति: दीप० बीनवैरे लाल, गाथा-१०, संपूर्ण. ८०८५९ पुरुषस्त्रीनी हरियाली-समस्या पद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४.५४१२, १०४३५-३८). प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: दो नारी अति सांमली; अंति: (-), (पू.वि. समस्या-९ अपूर्ण तक है.) ८०८६०. (+) सूतकविचार, मोक्षमार्गाध्ययन व ५ इंद्रिय विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १५-१८४३५-५६). १. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्म्यां १०; अंति: आभडे तो पहर १२ सूतक. २. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र-श्रुतस्कंध १ अध्ययन ११ गाथा १ से ३ व २५ से ३१ मोक्षमार्गाध्ययन, पृ. १अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३.पे. नाम.५ इंद्रिय विवरण, प. १आ, संपूर्ण, पे.वि. सन्निपात परिभाषा व बहिरंग परिभाषा सहित हासियां में व्याकरणजन्य व्यत्पत्ति समास आदि प्रयोग दिया गया है. पुहिं., गद्य, आदिः श्रोत्र१ नेत्र२ नासि; अंति: योग भावइंद्री कहियै, (वि. चतुर्भंगिका सहित.) ८०८६१. नवकारमंत्रमहिमागर्भित चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १६४३५-३८). For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४२१ नमस्कार महामंत्रमहिमागर्भित चौपाई, म. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-८ अपूर्ण से है व मात्र कलश-प्रशस्ति भाग नही है.) ८०८६२. सिद्धचक्र स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४११.५, ११४२६-२९). सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: सरस्वतीने चरणे नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८०८६३. ७ व्यसन त्याग सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१२, १६४३५-४२). १. पे. नाम. सातव्यसनत्याग सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ७ व्यसन त्याग सज्झाय, मु. दास, पुहिं., पद्य, आदि: सात विसण कै त्यागो; अंति: लीया सातो को मार, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: हमरा रे सीव कंत अनंत; अंति: धनी० जनम तुम्हारा रे, गाथा-६. ३. पे. नाम, औपदेशिक दहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहासंग्रह-विविधविषयोपरि*, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: इंद्रया की मत मारी; अंति: लुटे पर को माला, गाथा-५. ८०८६४. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४४१२, १३४३६). १.पे. नाम. एकादसी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजिण उपदिसी मौनएका; अंति: करा संतुठे सुरवरा, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिणेसर पुजा; अंति: सुख संपति हितकार, गाथा-४. ३. पे. नाम. पजुसण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुन्ये; अंति: सांतिकुसल० गाया जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ८०८६५ (4) मृगापुत्रसाधु सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल, केकिद, प्रले. पंन्या. खुशालचंद; पठ. कानु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४३२-३५). मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: नयर सुग्रीव सोहामणो; अंति: त्रिकरण सुध परणाम हो, गाथा-१२. ८०८६६. (4) महावीरतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४२५-२८). महावीरजिन सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: एक वरसीजी ऋषभ करी; अंति: जिनवर सकलमुनि आधार ए, गाथा-७. ८०८६७. शीयल नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४११, १२४३२). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८०८६८. चार मंगल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४११, १६४३२-३५). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिण नमु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ८०८६९ (4) नववाडि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८५२, आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्रले. पं. दानविजय गणि; पठ. श्रावि. माणेकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४३२). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०, (पू.वि. ढाल-८ से है.) ८०८७०. रात्रिभोजन व इलाचीपुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम, रात्रिभोजननी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य संयोगे नरभव; अंति: वसता० अधिकारी रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम ईलापुर जाणीये धन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८०८७१ (+) रिखभनाथजी, शांतिजिन व चंद्रप्रभजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १६४३५-३८). १.पे. नाम, रिषबनाथजीरा स्तवन, प. ७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, म. चतर्भज, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: आवागमण नीवारो रे, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: मोहण पंडित रूपनो, गाथा-७. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ.७आ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभुजिन आग; अंति: कइ जिनविजय छेहरे, गाथा-५. ८०८७२. मृगापुत्र स्वाध्याय व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १०४३०-३३). १.पे. नाम. मृगापुत्र स्वाध्याय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मृगापुत्र सज्झाय, मु. प्रेम ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पेम० परक कल्याण हो, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणै घर बेठा लील करो; अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. ८०८७३. पूज्यजीने ओपमा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४११.५, १४४५२-५५). पत्रलेखन पद्धति-साधु उपमा, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: स्वस्ति श्रीआदिजिनं; अंति: (-), (पू.वि. "सूत्र वखाणे भग.." तक है.) ८०८७४. (+) प्रत्येकबुद्ध सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १७४४०-४४). १. पे. नाम. करकंडु प्रत्येकबुध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हु; अंति: प्रणम्या पातक जाय रे, गाथा-५. २. पे. नाम. दूमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरीचंपा नाम एहना; अंति: नितनित प्रणमुं पाय, गाथा-७. ३. पे. नाम. नमिराजा गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी सुदरसण राय जी; अंति: समयसुंदर कहै साधुनै, गाथा-६. ४. पे. नाम. नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: परबत ऊपर पुंडरवरधन; अंति: प्रत्येकबुद्ध हो, गाथा-६. ५. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिसथी च्यारे; अंति: समय० जाइ जनमना पाप, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४२३ ८०८७५. (4) पंचमहाव्रत सज्झाय, ज्योतिषश्लोक व औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१२८५) लेखणी खटीका रामा, जैदे., (२५४११, २५-३०x१९-२५). १. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो; अंति: श्रीविजयदेवसूरि कि, गाथा-१६. २.पे. नाम. सभाचौर व वर्षाज्ञान ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नामांका दसगुणं कृत्व; अंति: वर्षा भृशं भवत्, श्लोक-४, (वि. वर्षायोगबोधक चक्र सहित.) ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: करम अचेतन किम हुइ कर; अंति: समयसुंदर०ते साचुं रे, गाथा-३. ४. पे. नाम, गुरुवंदना विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुवंदन विधि, मा.गु., पद्य, आदि: इरियावहिआ गम्मणो मुह; अंति: वंदणा गछपति पाय करंत, गाथा-३. ८०८७६. (-) इलाचीपुत्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११.५, १७४३६-४०). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुत्र जाणीए; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-२३. ८०८७८. सुभद्रासती ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, २०४३०-३६). सुभद्रासती ढाल, रा., पद्य, आदि: सुभद्राजी दीठा आवता; अंति: रीध ही भासीय कामणी, गाथा-२५. ८०८७९. (#) औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २२४३३-३६). औपदेशिक सवैया संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हीराकेसीकनीलरकनी; अंति: पटुताकोनताकारयेत्तत्, सवैया-२७, (वि. अलग-अलग श्लोक व गाथांक हैं.) ८०८८१. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ११४५७-६०). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सिद्ध पद तक लिखा है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: अरि कहियै वैरी तेहने; अंति: र्ग, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., आचार्य पद तक लिखा है.) ८०८८२. (-) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, नेमराजिमती सज्झाय व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११, १०४२८). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शेजानो वासी; अंति: जिणैसर छाजे मोहरा, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पिउजी रे पीउजी नाम; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.ग.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ८०८८३. बावन्न अक्षर स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७९५, माघ शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले.पं. अमृतविजय गणि (गुरु पं. भाणविजय गणि); गुपि.पं. भाणविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १७X४०-४४). ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: जीवो रिष इम वीनवे, गाथा-३२. ८०८८४. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, २०४४२-४५). औपदेशिक सज्झाय-जीव, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भव जीव आदिजिणेसर; अंति: करणी किजो जीव निरमली, गाथा-२७. For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०८८५. पासाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३३-३६). पासाकेवली, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: महावीर को ध्याइए; अंति: (-), (पू.वि. "खुसाली होयगी द्रव्य पावेगा" पाठ तक ८०८८६ (+#) स्तवन, चौढालियो व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्रले. पं. रतिसुंदर (गुरु ग. उदयसुंदर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १७४३७-४०). १. पे. नाम. खंधकरिषि चौढालियो, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. खंधकमुनि चौढालिया, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमुं वीर सासणधणी जी; अंति: करणी करज्यो सहु कोय, ढाल-४. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: तुं त्रिभुवनरो नाहलो; अंति: लाल सुमतिहंस करजोडि, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: हारे प्रभु पास; अंति: बहीयां पकड निसतारोजी, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पहिं.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: कवि करोति काव्यानि; अंतिः पतिः जानाति नो पिता, श्लोक-१. ८०८८७. (+) नववाडी सज्झाय व दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७४२, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. पत्तन, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १७४५०). १. पे. नाम. नववाडि स्वाध्याय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीश्वर चरणयुग; अंति: हो जुगति नववाडी, ढाल-११, गाथा-९७. २.पे. नाम, औपदेशिक दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहासंग्रह-विविधविषयोपरि*, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: लापर ठाकुर कातीर ठार; अंति: न धरे हरस विसाउ, गाथा-४. ८०८८८. (#) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३२-३५). स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: ते संसार सारो रे, स्तवन-२४, (पू.वि. स्तवन-१३, गाथा-२ अपूर्ण से है.) ८०८८९ (+#) मौनएकादशी गणj, संपूर्ण, वि. १७१७, फाल्गुन, १५, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ३, प्रले. मु. गुणसागर; पठ. सा. दमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १२४३६). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ८०८९०. द्रव्यानुयोग विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी-द्रव्यानुयोग., दे., (२४.५४१२, ३५-३८४४७-५०). द्रव्यानुयोग विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आ आत्मा अनादीनो; अंति: ते सर्व द्रव्यमां छे. ८०८९१ गतिआगतिबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४.५४१२.५, १२-१६४३६-४०). २४ दंडक ५६३ भेद विवरण-गतागति, मा.गु., गद्य, आदि: पेहली नरकनी आगती; अंति: कृत नपुंस्क भेला छे. ८०८९२ (#) वीरजिन पारj, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १०४२५-२८). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: तेहने नमे मुनी माल, गाथा-३१. ८०८९३. गजसुकुमाल सज्झाय व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. पवन्नाशनपुर, दे., (२४४११.५, १२४२५-३०). For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४२५ १. पे. नाम. गजसुकुमालजीरी स्वाध्या, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराजतणी; अंति: सहीने पोहता सिवपुरी, गाथा-४२. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक दहासंग्रह-विविधविषयोपरि*, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: हित करता होवै नही; अंति: बोल्यासु लख लीजै, गाथा-२. ८०८९४. रोहिणीतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४४१२, १४४२७-३०). रोहिणीतप सज्झाय, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: सरसती पाय नमी करी; अंति: सास्वता सुख पावते, गाथा-४५. ८०८९५ (+#) साधुपाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जोधपुर, लिख. मु. मूलचंद; प्रले. छबीलराज व्यास, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १६४३६-४०). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ८०८९६. (#) सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-५१(१ से ४९,५१ से ५२)=३, कुल पे. १५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४४०-४३). १. पे. नाम. षटकसाल सझाय, पृ. ५०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जयणा विषये, खीम, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सावयकुल अवतार लहीने; अंति: पंचमगत फल लेसी रे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ.५०अ, संपूर्ण. जीवशिक्षा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सोबति थोडी रे नींबु; अंति: पिछताया कां होयो जी, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५०अ-५०आ, संपूर्ण. जीवदया सज्झाय, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव दया पालीयै; अंति: कवियण जावोजी मोख, गाथा-१०. ४. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ५०आ, संपूर्ण. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: चूनडली रंगै राचेली; अंति: उदय० तुम्ह पायै सेव, गाथा-८. ५. पे. नाम. खेमकरणजीकाना द्वादसमास, पृ. ५३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. खेमकरणगुरु बारमासा, क. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: खेमकरण गुरु गाइयै, (पू.वि. प्रारंभ का भाग नहीं होने से परिमाण का पता नहीं चलने के कारण अंक नहीं दिया है "मानव लहै साख फलै वैशाष" पाठ से है.) ६. पे. नाम, सुपार्श्वजिन पद, पृ. ५३अ, संपूर्ण. मु. द्यानत, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजी प्रभु सुपास; अंति: द्यानतकुं सुखकार, गाथा-४. ७. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन प्राणी चेतीये; अंति: द्यानित कहत अपार, गाथा-८. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ.५३आ, संपूर्ण. मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: घटमै परमातम ध्याइयै; अंति: द्यानत लहीयै भौ अंत, गाथा-५. ९. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ.५४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: मेरी वार क्युं ढील; अंति: वैराग दसा हमरीजी, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सम्यक्त्व, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: धृग धृग जीवन सम्यक्त; अंति: द्यानत गह मनवचन मना, गाथा-४. ११. पे. नाम. ज्ञान पद, पृ. ५४अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक ज्ञान पद, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान सरोवर सोइ हो; अंति: द्यानत० विरला ग्याता, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५४अ-५४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, म. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: भौर भयै भजि श्रीजिन; अंति: द्यानत० मुकति पद वास, गाथा-४. १३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५४आ, संपूर्ण. म. द्यानत, पुहि., पद्य, आदि: भाई काया तेरी दुख की; अंति: सुमरन धीर बहा है, गाथा-४. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: कहिवे को मनसूरमां; अंति: करे द्यानत सो सुखीया, गाथा-४. १५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५४आ, संपूर्ण. मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन नाम आधार भवि; अंति: द्यानत० मुकति दातार, गाथा-४. ८०८९७. (+) नेमजी की सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जेहनगर, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १५x-१). नेमराजिमती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: म्हे ध्यावाला हो; अंति: वरत्या जै जै कार, गाथा-२४. ८०८९८. सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-६(१ से ६)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१०.५, १४४४२-४५). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२, ढाल-८, गाथा-९ अपूर्ण से खंड-३, ढाल-३, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८०८९९ (4) लंकानगरी लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४२५-२८). लंकानगरी लावणी, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो श्रीराम लंकापुर; अंति: सुग्रीव किधी परिषा, गाथा-३९. ८०९००. ब्राह्मण गीत व पार्श्वनाथ विनती, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११.५, ११४२३-३०). १.पे. नाम, ब्राह्मण गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ ब्राह्मण वर्णन गीत, नानो, मा.गु., पद्य, आदि: हुं ते ब्राह्मणने; अंति: नानो० छत्रीसइ पुरा, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ वीनती, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि वटप्रदमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगगुरु देवाधिदेव; अंति: गुणसागरन पडु संसारि, गाथा-१४. ८०९०१ (4) सिद्धचक्र स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२५४१२,११४२८). सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: सरस्वतीने चरणे नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८०९०३. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११, ९-१६x४५). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: तुं कृपा कुंभ शंभो; अंति: सकल मुनिवर ग्यांन, गाथा-२१. ८०९०४. (2) अमरसेनवयरसेन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १५४४५). अमरसेन वयरसेन चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८०९०५. आध्यात्मिक पद, दीपावली भास व ज्ञानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१२, १५४४१). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. द्यानत, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन मानो रे साढबतीय; अंति: द्यानत० गति गतीया रे, गाथा-६. २.पे. नाम. दीपावली भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व गीत, पुहिं., पद्य, आदि: जी हां श्रीवीर; अंति: तपगच्छ हयो रे आनंद, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ 1 www.kobatirth.org ३. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास पुहिं, पद्य, वि. १७वी आदि सुरनर तिर्यग जग जोनि अति (-), (अपूर्ण, " पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १९ तक लिखा है.) 1 ८०९०६. (*) ढंढणऋषि सज्झाय, सुभाषित श्लोक व आदिजिन स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १३-१२ (१ से १२ ) =१, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, ११x२४). १. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति कहै जिनहरष सुजाण रे, गाधा-९ (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण से है. ) २. पे नाम. सुभाषितानि पू. १३अ, संपूर्ण, सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ३. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पू. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं, पद्म, आदि प्रथम जिणेसर प्रणमीय अंति (-) (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८०९०७. द्वारामती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२५.५४११.५, १४४३१) " द्वारिकानगरी सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि द्वारामतीनो देखिउ अति (-) (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ८०९०८ (२) अवंतिसुकुमाल चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. हुंडी अवंतीसुकमा, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२४.५X११.५, १४X३४). ८०९०९. (+#) नरक चौढालिया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. लक्ष्मण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७११.५, ९४३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: (-), (पू.वि. अंत के नहीं हैं., ढाल ३, गाथा- २ अपूर्ण तक है.) , नरक चौडालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि आदिजिणंद जुहारीयइ मन: अंति: गुणसागर० समरण पाईये, ढाल-४, गाथा - ३१. ८०९१० (+) अतीतजिनचीवीशी नाम व पंचकल्याणक संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२४१०.५, १९x४६). १. पे. नाम. अतीतचीवीशीजिन नाम पु. १अ संपूर्ण. " ,प्र.वि. हुं: दु०चौ०, अतीतचीवीशीजिन नाम - जंबुद्वीपे ऐरावत क्षेत्रे, मा.गु, गद्य, आदि १. श्रीपंचरूपनाथ; अंति: २४ श्रीफलेशनाथ. २. पे. नाम. अतीतजिनचौवीशी पंचकल्याणक, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. 3 ४२७ " अतीतजिनचीवीशी पंचकल्याणक तिथि-जंबुद्वीपे ऐरावत क्षेत्रे, मा.गु.. गद्य, आदि आसो वदि ५ श्रीकल्प; अति १५ श्रीउजयंत च्यवन (वि. सारिणीयुक्त) ८०९११. १० पच्चक्खाण तप गणणु विधिसहित संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२४.५४१२, ११५३०). " १० प्रत्याख्यान तप गणणु विधिसहित, मा.गु., सं., गद्य, आदि: पेले दिने उपवास; अंति: २५१थाये ते देरे देवी. ८०९१२ (+) १४ गुणस्थानक विचार, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है. संशोधित. दे. (२४.५X११, " ', ३४X३५). १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणस्थाने अति (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. थायोग-९ भांगा १७ अपूर्ण तक लिखा है.) ८०९१३. दस अछेरा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. प्रेमबाई (गुरु सा. मोतीबाई आर्या); गुपि. सा. मोतीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४.५x११, १२४३२). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., आदि: पेले बोले जग; अंति: गीया ते अछेरुं छे. For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०९१४. (+) नेमिजिन रागमाला स्तवन व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९७, माघ कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. आसकरण ऋषि; पठ. मु. जगनाथ ऋषि (गुरु मु. आसकरण ऋषि, स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: रागमाला स्तवन, संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १७४५१). १. पे. नाम. नेमिजिन रागमाला स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सहज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुनाम निरूपम; अंति: जाणी गायज्यो उलट धरी, गाथा-२१. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि: आज अरदास निजदास जाणी; अंति: कविराज० रमणी सहेली, गाथा-६. ८०९१५. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. केशवजी; पठ.मु. धर्मदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२६४१२, ११४३७). औपदेशिक सज्झाय, ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतन प्राणीया; अंति: केशव० वात तणो ए मर्म, गाथा-९. ८०९१६. (+) स्थलीभद्रकोशा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४११.५, १४-१७४३२-३५). स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, मु. किसन, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर करण चोमास सुगुर; अंति: वाणी थुणे सुविसेषने, ___ गाथा-२८. ८०९१७. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८९८, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. रायकवरी शिष्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:साधा वंदन., जैदे., (२६४११.५, १८४४४). साधुवंदना, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान करी पांचसे; अंति: स्वामीजी मझनो तारजो, गाथा-२८. ८०९१८. ज्ञानादितप विधिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४९.५, १६४५७). तपविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान तप ज्ञानपूजा; अंति: (-), (पू.वि. नवकार तप की विधि तक है.) ८०९१९. घंटाकर्ण महावीरदेव साधनाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रूपचंद यति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: घंटा०, जैदे., (२५४१२.५, १५४५९). घंटाकर्णमहावीरदेव साधनाविधि, मा.ग., गद्य, आदि: दिवालीरात्रि तथा; अंति: मांहे दीजै वश होइ. ८०९२० (#) चोविसजिन आंतरा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी: आंत्रा, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३२). कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: अढार कोडाकोडी सागरनै; अंति: (-), (पू.वि. संभवजिन व अभिनंदनजिन के अंतर अपूर्ण तक है.) ८०९२१. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४११, १३४४१). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूरि मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३३. ८०९२२. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११.५, १६x४९). १. पे. नाम. आंखकानसंवाद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. सहजसंदर, मा.गु., पद्य, आदि: परम पनुता परखीइं; अंति: दर भणे वात सोहामणी. गाथा-५. २. पे. नाम, आत्महितशिक्षा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु साथे प्रीत; अंति: उदयरतन इम बोले रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. साधुपद सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचे इंद्री रे अहनिस; अंति: इम भणइ विजयदेवसुरोजी, गाथा-१२. ४. पे. नाम. सम्यक्त्व सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि रे जीवडा; अंति: मुझ समकित विस्तारि, गाथा-१२. ५. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ग. विजयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत सुधा पाल, अंति: तस पाय वंदन कीजे सो, गाथा-८. ८०९२३. प्रश्नोत्तरमाला व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे. (२६.५४१२, १४४४७). १. पे. नाम. प्रश्नोत्तरमाला, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नोत्तररत्नमाला. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०६ आदि परम जोत परमातमा परमा अति वाणी कही भवसायर तरी, गाथा - ६२. ढुंढक गीत, मा.गु., पद्य, आदि पीपल गांमनी बामणी; अंतिः राजा जगमे लोक हसाया, गाथा ९. २. पे. नाम. चौरासीगच्छ स्थापना विवरण, पृ. १आ - २आ, संपूर्ण. २. पे नाम औपदेशिकदुहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि काकमांसं तथा पक्वं अंतिः तिण कारण नहि छिंटता, गाधा-२ ८०९२४. (#) ढुंढीया गीत व गच्छ नीकल्या संवत्, संपूर्ण, वि. १९२७, माघ शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. लचीपुरा, प्रले. पं. पृथ्वीराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी गच्छनीकल्या, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४.५X१२, १२x२६). १. पे नाम. इंडीया गीत, पृ. १अ संपूर्ण. " ४२९ ८४ गच्छस्थापना विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: संवत् १२०४ खरतरगछ; अंति: सूरिना कषाय थकी हुवा. ८०९२५ (+) माणिभद्र छंद व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. मोहनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री चिंतामणजी प्रसादात्, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैये., (२५४११, १७४४९). १. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद. पू. १अ २आ, संपूर्ण मु. मोहनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं ईश्वरी धरि; अंति : माणिभद्र असरण सरण, गाथा-६१. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पू. २आ, संपूर्ण, आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. मोहनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राणकपुर रमणिक राजे; अंति: स मोहन अि सुख पाया, गाथा - १५. ८०९२६. औपदेशिक बोल व पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २, जैदे. (२४.५x१२.५, १०x३२). १. पे. नाम. औपदेशिक बोल संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेसर गावं रंग; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीवदयाने विशे रमवु; अंति: पोतानी मेले वरे. २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि पास संखेसरा सार कर, अंति उदयरत्न० माहाराज भेजो, गाथा ५. ८०९२७. धर्मजिन स्तवन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे. (२५४११.५, १०x३१). १. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि म्हेतो निजरा रेहस्या; अंति उदयरतन० जय श्रीमहावीर गाथा- ७. ८०९२८. (+) साधु अतिचार, संवत्सरीतप विचार व प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण वि. १८४५, मध्यम, पू. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले. पं. चतुरसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५x११.५, १७४४८). १. पे. नाम. साधुपाक्षिकादि अतिचार, पृ. १अ २अ, संपूर्ण साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. पक्खीचौमासीसंवत्सरीतप विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: चउत्थेणं एक उपवास; अंति : तप करी पोहचाडवो. ३. पे नाम पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि पू. २आ, संपूर्ण " For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाक्खी खामणा विधि अपर्ण तक लिखा है.) ८०९२९. रात्रिभोजन विरमणव्रत स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८४५, भाद्रपद शुक्ल, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११, १४४३६). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि *, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपद प्रणमी आण; अंति: सुजस सोभाग लहीजे रे, ढाल-४, गाथा-३५. ८०९३० (4) लब्धि विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४१२, १७४३१). लब्धिद्वारे २१ द्वार विचार, पुहिं.,प्रा., गद्य, आदि: जीवोदंडोगईया; अंति: नांण ३ अनांणकीभझणा. ८०९३१. क्षमाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: क्षमाछत्री, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३१). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८०९३२. रूपकमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, ११४४०). रूपकमाला-शीलविषये, म. पुण्यनंदि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर आदिसउ; अंति: पभणइ श्रीपुण्यनंदि, गाथा-३२. ८०९३३. (+#) चौदस्वप्न कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४२९). १४ स्वप्न कवित, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: सूंढ सरल दीपत्त दंतु; अंति: नंद० ए सुपनांतर गाता, गाथा-१५. ८०९३४. शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. लालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सुणिरकंता रे., जैदे., (२५४११, १३४२८). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंता रे सिख; अंति: कुमुचंद कहे समजि लीऊ, गाथा-२०. ८०९३५ (+) सरस्वतीदेवी, पार्श्वजिन स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४४०). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वाग्वादिनी नमस्तुभ्य; अंति: निर्मलबुद्धि मंदरम्, श्लोक-७. २.पे. नाम, राजा वशीकरण मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ जल कंपै जलहर कंपै; अंति: सर्वराजादि वश्यं. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: लब्धरुचि०मुदं प्रमोद, गाथा-३३. ८०९३६. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ९४३१). आदिजिन स्तवन, मा.ग., पद्य, आदि: सरसति माता दीयो मुझ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० अपूर्ण तक लिखा है.) ८०९३७. कानडकठियारा प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हुंडी: कानडकठियारी, जैदे., (२५४१२, १७X४१). कान्हडकठियारा प्रबंध, म. जेतसी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: अरिहंत सिद्ध समरु; अंति: उपना चवन जासी मोखरा, ढाल-८. ८०९३८. (+#) पार्श्वजिन छंद व पंचतीर्थी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२०, चैत्र शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. श्राव. वनेचंद केसरीमल्ल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४६१) पोथी एक अरु पदमणी, दे., (२४४११, ११४३०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४३१ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: संखेसरो आप तुठा, गाथा-७. २. पे. नाम. ५ तीर्थजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि ए आदि ए आदिजिने; अंति: आपै टालै दोहग आपदा, गाथा-११. ८०९३९ (+) चंदनबाला चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, ३०४६०-६५). चंदनबालासती चौपाई, मु. ब्रह्म, पुहि., पद्य, आदि: मोह पिसाच वसकरणकुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२८ अपूर्ण तक ८०९४० (+) जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, ३८x१२-१९). जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. क्षेत्रगत लोकमान अपूर्ण से पुष्करद्वीप परिधिमान अपूर्ण तक है.) ८०९४१ (+) तामलीतापस चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. दादरी, प्रले. मु. रामला प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४४१२.५, २०४४८). तामलीतापस चौपाई, म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: चोविसमा जिनवर नम; अंति: पुरो थयो सुखकारो रे, ढाल-९. ८०९४२. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३२). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: आनंदघन पद रेह, गाथा-६. २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालुरे बीजा; अंति: आनंदघन मन अंब, गाथा-६. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुवा रे गुण तुम्ह; अंति: जीवजीवन आधारो रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही रह्यो; अंति: सेवइ बेकर जोड रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार करतार संसार सागर; अंति: ते तरइ जे रहइ पासइ, गाथा-४. ६. पे. नाम. विमलजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घर आंगणि सुरतरु; अंति: जिनराज देव प्रमाण, गाथा-५. ८०९४३. (+) विजयसेठविजयासेठानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२, २०४४२). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: प्रथम नमु श्रीअरिहंत; अंति: रामपुर ___गुण गाया, गाथा-२५. ८०९४४. (+) औपदेशिक सज्झाय, पुण्यपच्चीसी व नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. जेहेनगर, प्रले. सा. डाहीजी-शिष्या (गुरु सा. डाहीबाई आर्या); अन्य. सा. सत्याजी (गुरु सा. स्याणाजी), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, १३४४०-४६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हिंसा परिहार, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सर्व संसार अथिर जिन; अंति: नेसर रहसी भवभव नाकरे, गाथा-७. २. पे. नाम. पुण्यपच्चीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुण्य पच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पोते पुन्य हुवे जेहन; अंति: पुन्य सताइस इणपर कही, गाथा-२९. ३. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., पद्य, आदि: बाइस सुभटवाने जीतवा; अंति: सीवरतन० नेम न जाणी, गाथा-५. ८०९४५. ८२ कर्मप्रकृति नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी: बयासी, दे., (२३.५४१२, १३४३३). ८२ प्रकार कर्मभेद, मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञानावर्ण १; अंति: वामन कुब्जक हुंडक. ८०९४६. (+) वीरजिन २७ भव संक्षेपवर्णन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्रले. मु. भवानीदास (गुरु ग. धर्मचंद्र); गुपि. ग. धर्मचंद्र (गुरु ग. दयाकीर्ति वाचक); ग. दयाकीर्ति वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१०१०) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२४४१०.५, १३४३८). महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: आउ पाली मोक्ष पहुता, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., भव-१६ अपूर्ण से ८०९४७. स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे.७, जैदे., (२४.५४११, १८४४१). १.पे. नाम, गौडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुजस तुम्हारो हो; अंति: द आपो हो रामविजय तणी, गाथा-५. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुजस तुम्हारो; अंति: दीजीये पूरो रामजगीस, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सह मिलि आवो हे सहीय; अंति: रामश्रीविजें सुपसाया, गाथा-१०. ४. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संखेसरपुर सोभताजी; अंति: शिशु राम जपे सुविलास, गाथा-७. ५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमं नाभिनृपति; अंति: सेवक विनवे इणपरि राम, गाथा-९. ६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. म. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८०१, आदि: साहिबा सेव॒जो; अंति: राम सफल सुजगीस, गाथा-१२. ७.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी जी पास; अंति: राम समापो जयसिरि, गाथा-७. ८०९४८. कृष्णजी की ऋद्धि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३.५४११.५, १७४३०). द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमा श्रीनेमिजिण; अंति: मीछामदुकडं मोय ए, गाथा-३२. ८०९४९ (+) रतनचंद चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९००, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बडलु, प्रले. मु. हिमतराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री रतनचंदजी प्रसादात्. हुंडी: पूजरागुण, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४४१२.५, १९४४२). रतनचंद चौढालियो, मु. शंभूनाथ, मा.गु., पद्य, वि. १९००, आदि: सासणनायक समरीये महाव; अंति: वारे भरभर कंचन थालो, ढाल-४. ८०९५०. १४ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि.२०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४११.५, १५४४८). १४ स्वप्न सज्झाय, ग. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: तारक सकलाधार प्रभु; अंति: हीरधरम०पुरुष जग गायौ, गाथा-४२. ८०९५१. (+#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १७४५१). १.पे. नाम. नेमिजिन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४३३ श्राव. जेठमल, मा.गु., पद्य, आदि: सूरवीर सिर मुकट समान; अंति: उत्तम जिण फल कीधो एम, गाथा-१७. २. पे. नाम. सनत्कुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति परसंसा करइ; अंति: कारणै थयो सिव अवतारी, गाथा-१४. ३. पे. नाम, जीवसंख्या अल्पबहुत्व विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. __प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सुहम सुहमा परमाणु; अंति: पुग्गलायति. ४. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-१. ८०९५२. जिनलाभसूरि देसना, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अजीमगंज, जैदे., (२५४११, १०४३१). जिनलाभसूरि देशना, मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: पूज्य श्रीजिनलाभ; अंति: इम वसतो ये आसीस, गाथा-१५. ८०९५४. शियलनी नववाड, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५४१२, १५४२८-३३). ९वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ की गाथा-२ अपूर्ण से है और ढाल-६ तक लिखा है.) ८०९५५. महावीरजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, ९४२३). महावीरजिन स्तवन-जालोरगढ, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण पूजा करज्यो रे; अंति: मुगती तणा फल होय, गाथा-१०. ८०९५६. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४१५). विचार संग्रह , प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: जीवास्तिकाय द्रव्य; अंति: गुण थकी अवगीह गुणे. ८०९५७. (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १३४४५). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-वरदत्त गुणमंजरी कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: (-); अंति: वसे सकल भवि मंगल करो, प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. महावीरजिन पारणा स्तवन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ८०९५८. (#) नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३०). नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कपुर होवै अति उजलो; अंति: जेहने जेहसू राम, गाथा-८. ८०९५९ (4) शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, ९४२२). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदिः श्रीसंखेसर पासजी रे; अंतिः साधु क्षमाकल्याण, गाथा-७. ८०९६० (+) बलभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी अवाच्य है., संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १३४३६). बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका हंति नीसर; अंति: ते पामे मोक्ष दुआरी, गाथा-२३. ८०९६१ (#) नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. पत्रांकवाला भाग खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १२४२७). For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती सज्झाय, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउजी रे पीउजी नाम; अंति: पाय भट्य आस्या फली, गाथा-७. ८०९६२. छींकअतिचार विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११.५, ९४२८). छींक विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अतिचार कह्या पहिला; अंति: पूजा भणावीए. ८०९६३. (+#) नेमिजिन सवैया, चुंदडी सज्झाय व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४६३). १.पे. नाम. नेमिजिन सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: उंचे उंचे गढ़ के रे; अंति: नेमि मन भाय उहइ, गाथा-९. २. पे. नाम. चुंदडी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___औपदेशिक सज्झाय-चुंदडी, मु. हेमराज, पुहि., पद्य, आदि: कहा रंगाई चूनडी बहु; अंति: नागोरी गच्छ गाई, गाथा-९. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम देव कोमल तननी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा ८०९६४ (+) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन-केवलज्ञान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, ८x२६). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपंचमी तणो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८०९६५. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, १३४३५). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: बुद्धे फलं तत्त्व; अंति: वृक्षस्य फलान्यमूनि, श्लोक-२.. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत अशरण; अंतिः श्रेयकल्याण संपजै. ८०९६६. नेमिजिन व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १३४३३). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जगपति नेम जिणंद प्रभ; अंति: आतम गुण मुझ दीजीये, गाथा-११. २. पे. नाम, वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेश चंपापुरी नगरे; अंति: देखण प्रभु पाया, गाथा-५. ८०९६७. सिद्धचक्र व आदिनाथ नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सिद्धचक्र नमस्कार., जैदे., (२३.५४११, १०४७-२७). १.पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: तणो सिस कहे कर जोड, गाथा-१५. २. पे. नाम. आदिनाथ नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगनाथ विमलाचल; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ८०९६८. क्रोधपरिहार सज्झाय व मनुष्यभव स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १९x४३). १. पे. नाम, क्रोधपरिहार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: आगम अरथ विचारो रे; अंति: ब्रह्म सफल अवतार रे, गाथा-१५. २. पे. नाम, मनुष्यभव स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव, मा.गु., पद्य, आदि: मिथ्यामति भस्यो बह; अंति: दया धर्म करो अति घणो, गाथा-१५. ८०९६९. वज्रधरजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, १२४२२). वज्रधरजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: एक सबल मननो धोखो; अंति: जिनराज०सरसवनो फेर रे, गाथा-५. ८०९७०. समेतशिखरतीर्थ स्तवन द्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२.५, १०४२६). १. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामचंद वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण पायो जिनजी को; अंति: रामचंद० करम अटारी, गाथा-५. . For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४३५ २. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रामचंद, मा.ग., पद्य, आदि: साहिबा समेतशिखर गिर; अंति: आवागमन निवार हो, गाथा-५. ८०९७१. अठाणुबोलनो एकसठियो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-४०(१ से ४०)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: ९८ बोलनो एकस०, दे., (२४.५४११.५, १३४४७). ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., आदि: पेले बोले सर्वथी; अंति: मलीने ९८ बोल थया, संपूर्ण. ८०९७२ (+#) प्रभातप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १८४८, वैशाख कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १३४३४). प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: हिवै खमासमण देई; अंति: चैत्यवंदण करै. ८०९७४. नववाड सज्झाय, पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १४४३४). १. पे. नाम. नववाडनी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ९वाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: गोइम गणहर प्रणमी पाय; अंति: सीलवंतनै जाउं भामणै, गाथा-२४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. __मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजीरी कई अजब; अंति: णो जनम सफल करलीनो रे, गाथा-१०. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहि., पद्य, आदि: तुं मेरा पियु साजना; अंति: सुख कोड मेरे जीव रे, गाथा-९. ८०९७५. ज्ञानपंचावनी, संपूर्ण, वि. १८४१, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. ग्रामपुर, प्रले. मु. नागजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १५४३५). ज्ञान पंचावनी, मु. भवानीदास, पुहिं., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध आचारज; अंति: पंडित करो विचार, गाथा-५५. ८०९७६. असज्झायवर्जन धर्मकरणी स्वाध्याय व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १३४३५). १.पे. नाम, असज्झाय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पवियण देवी समरी मात; अंति: शिवलच्छी ते वरे, गाथा-१६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: उत्तमसागरसीस० जाणियो, गाथा-१०. ८०९७७. (+) त्रिभुवनप्रासादजिनबिंबसंख्या, चैत्यपरिपाटी व ६ द्रव्य ७ नय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४१२, १८४३६). १.पे. नाम. त्रिभुवनप्रासादजिनबिंबसंख्या चैत्यपरिपाटी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउं त्रिकाल अतीत; अंति: समुद्र हेलां निस्तरु. २. पे. नाम. ६ द्रव्य ७ नय विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकायरा गुण ४; अंति: अक्रीय वर्तनालक्षण. ८०९७८. (-#) स्तवन, यंत्र व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. *पत्र १४२, अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२.५, २८x१९). १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नम आदि अरिहं; अंति: मनवंछित पाईयै, गाथा-५. २. पे. नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुविधिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी अरज सुणीजे; अंति: सुवधीकुशल गुण गाय रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. जैनयंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. ज्योतिष, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिष संग्रह-, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मंछकृतार्धः कृतकपहीन; अंति: कोठं कह्या छः गणाति. ८०९७९ (+) शाश्वताचैत्य नमस्कार स्तवन व जिनप्रतिमासंख्या विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, कल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११.५, १२४३४). १.पे. नाम. शाश्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शाश्वताचैत्य नमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभानन वधमांन; अंतिः सदा मुझ परिणाम ए, ढाल-५, गाथा-१८. २. पे. नाम. जिनप्रतिमासंख्या विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमासंख्या विचार-शाश्वत, मा.गु., गद्य, आदि: ७७२००००० वैमानिपती; अंति: प्रतिमा सर्वसंख्या. ८०९८१ (+#) श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३२). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी छै दुखहरणी एह, गाथा-२३. ८०९८२. सुभद्रासती सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१,३ से ४)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी: तवन., दे., (२४.५४१०.५, १६४३४). १.पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., प्रले. श्राव. ऋषभदास, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. नराणकुसलजी के प्रत से उतारे जाने का उल्लेख है. मु. भानु, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भानो बोलि०मुझनें छोड, गाथा-४५, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पूर आस्या मन तणी, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मा.गु., पद्य, आदि: आज प्रभु खूब बनी है; अंति: भेट्या मोहन पासकुमार, गाथा-१८. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्यौ गोडीजी; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक-२ गाथाएँ हैं.) ८०९८३. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, छन्न जिननाम व पक्खरवरदीव चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९२२, पौष शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ९-७(१ से २,४ से ८)=२, कुल पे. ३, प्रले. शंकर केवल भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १५४४०). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. करेमि काउ० वंदणवत्तिआए पाठ से अतिचार पाठ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. छन्नजिन नाम, पृ. ९अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ९६ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: वारिषेण३ वर्द्धमान४, (पू.वि. चित्रगुप्त जिननाम से है.) ३. पे. नाम. पुक्खरवरदीव चैत्यवंदन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. पुक्खवरदीवड्ढसूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: पुक्खरवरदीवड्ढे धायइ; अंति: (१)जयओ धम्मुत्तरं वड्ढओ, (२)सुअस्स० वंदणवत्तियाए, गाथा-४. ८०९८४. अजितशांति स्तवन, पद व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३८). १.पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुखसा; अंति: श्रीमेरुनंदन उवझाय ए, गाथा-३२. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. वीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: देखो भाई अजब ज्योति, अंति: पूरो मेरे मन की, गाथा-३. ३. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. २आ, संपूर्ण. ४३७ मीराबाई, पुहिं., पद्य, आदि: माई मेरो मोहने मन; अंति: मीरा० जान वर वस्यो, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. " " मा.गु., पद्य, आदि: सकल करम खल दलन कमठ; अति (-) (पू.वि. गाथा का अन्तिम पद नहीं है.) ८०९८५. जीवभेद विचार कोष्ठक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२४.५x११, १४४२९)जीवभेदविचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवरा २ भेद एक मुक्त; अंति: (-), (पू.वि. द्विइंद्रीय जीव भेद अपूर्ण तक है.) ८०९८६. आनंदघनचोवीसी, अष्टमी स्तवन व साधारणजिन पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-८ (१ से ८) = २, कुल पे. ३, जैदे. (२३४१०, १४-२५X३६-५५). " १. पे नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. ९अ-१०अ अपूर्ण, पू.बि. अंत के पत्र हैं. मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मुनिसुव्रतजिन स्तुति से है व नेमजिन स्तुति तक लिखा है) २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि हां रे मारे ठाम धर्म अति ऋद्धि वृद्धि सुख धो, ढाल - २, गाथा - २४. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १०आ, संपूर्ण. " मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि राखो मोहि राखो नाथ, अति चंद कुं प्रतिपालो रे, गाथा-४. ८०९८७. रोहिणीतप स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. जै. (२४४१२, १२४३२). " रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि सासणदेवत सामणी ए मुझ, अंति (-), (पू.वि. डाल- ४, गाथा २८ अपूर्ण तक है.) ८०९८८. (#) खरतरगच्छ पट्टावली, संपूर्ण वि. १८१६ भाद्रपद कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, भीलाडा, प्रले. मु. लाभनिधान पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४११, ३७४१९). पट्टावली, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति श्रीजिनभक्तिसूरि६६. ८०९८९. पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-३ (१ से ३) -२, पू.वि. बीच के पत्र हैं. दे. (२४.५४१०.५, ८X२८-३०). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. डाल- २ गाथा १२ अपूर्ण से ढाल ४ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) - ८०९९० (+) राचावत्तीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैये. (२४.५४११.५, १२४३५). राधाबत्तीसी, आव राचो, मा.गु., पद्य, आदि जीवडा जाग रे सोवे, अति रुडो कहै छे राचो, गाथा ३२. ८०९९१. अल्पबहुत्त्व ९८ बोल कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२, जैदे., ( २४१०.५, २६-३०X२२). ९८ बोल यंत्र- अल्पबहुत्व, मा.गु., को, आदि मनुष्य पुरुष सब्वे; अंतिः सव्वजीवा विसेसहीया. ८०९९३. (*) चौदनियम विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२४.५x१०.५, ९४३६). १४ नियम नाम-श्रावक, मा.गु., गद्य, आदि: सचितद्रव्य १ अचित; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., नियम-१० अपूर्ण तक है.) ८०९९४. (#) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-५ (१ से ५) = २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१०.५, १२X३२). For Private and Personal Use Only बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: उक्कोस विउव्वणा कालो, (पू.वि. भगवतीसूत्र के बोल से है.) ८०९९५. मुनिमालिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, प्र. वि. गाथांक अव्यस्थित है., जैदे., ( २४.५X१२, १७X३५). मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि (-); अंतिः फलै सदा सदा कल्याण, ढाल -३, गाथा- ३६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल २, गाथा ११ अपूर्ण से है.) Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०९९६. महावीरजीरो चोढालियो व दशार्णभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४१०.५, १२४४०). १. पे. नाम. महावीरजिन चौढालियो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन चौढालिया, म. उदेसींघ, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: महावीर प्रणमं सदा; अंति: उदैसिंघल्लीला विलास ए, ढाल-४, गाथा-३४. २. पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: सारद समरूं मनरली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८०९९७. जोगी रासो व सोलस्वप्न सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १६x४५). १.पे. नाम. जोगी रास, प. १अ-२अ, संपूर्ण. श्राव. जिनदास पंडित, मा.ग., पद्य, वि. १७६७, आदि: आदिपुरुषजो आदिजगोतम; अंति: करि सिद्धा समरण कीजइ, गाथा-४२. २. पे. नाम. १६ स्वप्न सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवउं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक ८०९९८. (+#) नवकारनो रास व धर्मनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १६x४५). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र रास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. रतनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउजी लीजइ; अंति: जगमांहि नही कोई आधार, गाथा-२१. २. पे. नाम, धर्ममहिमा सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-धर्ममहिमा, मा.ग., पद्य, आदि: समरि निज मनि सारद; अंति: ध सह ते इणि परि भणइ, गाथा-१०. ८०९९९ (#) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३०). ___ साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम अंश नहीं लिखा है.) ८१०००. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५,प्र.वि. हंडी: सीझाय., दे., (२४४११.५, १५४३२). १. पे. नाम. सीख सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. मनोहर, मा.गु., पद्य, आदि: लख चौरासी जोन मै रे: अंति: लाल मनोहर कहे वीचारे. गाथा-११. २. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो वासी; अंति: साधुने कोइ न तोले हो, ढाल-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चंचल जोवन जात है; अंति: मुरख मित्त न कीजीये, दोहा-२. ४. पे. नाम. सुदर्शनशेठ सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: शीलरतन जतने धरो रे; अंति: सीस क्षमाकल्याण रे, गाथा-११. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक ढाल, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रा., पद्य, आदि: थे दिली म्हे आगरे; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ८१००१. (+#) अंतरिक्षपार्श्वनाथजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १६४३५-३८). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: देज्यो प्रभुजी सदा, गाथा-५५. For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४३९ ८१००२. दादाजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, ६४१९). जीवनदाससूरि स्तवन, मु. टीकम, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: सदगुरु सेवो नित प्रत; अंति: मुनि टीकम हर्षसु हे, गाथा-१०. ८१००३. महावीर पारणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १२x२५-२८). महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: जी ते नमे मुनि माल, गाथा-३१. ८१००४. (#) सज्झाय, स्तवन व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, २५-२८४५७-६०). १. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी न जइए रे परघर; अंति: एकलो पर घर गमण निवार, गाथा-१०. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: जोवन जिव या पामणा; अंति: कबिर० भज उतरो पारा, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. __ पुहिं., पद्य, आदि: मुखडा क्या जोया दरपन; अंति: मुक्तिपुरिजावो छिनमे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म.रुप, पहिं., पद्य, आदि: इस काया का कौन भरोसा; अंति: रुप कहे तज त्रसना रे. गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: श्रीअरिहंतसीद्ध साधु; अंति: देया नर्क निसानि, गाथा-१३. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-परनारी परिहार, मु. शियलविजय, पुहिं., पद्य, आदि: परनारि छे कालि नागणी; अंति: सियलविजय सत प्राणी, गाथा-६. ७. पे. नाम, समवसरण स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज गइ थी समवसरण में; अंति: जितना डंका वाजे रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. पुहि., पद्य, आदि: परदेसीनो कइ पतियारो; अंति: ए जुगमे तं तमारो, गाथा-६. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-उदेपुरशहर वर्णन, पुहि., पद्य, आदि: गड किलाने मुलक वणाया; अंति: राणाजि को परधान वाजे, गाथा-७. १०.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: एक वेल तुंबडी आई; अंति: तार मुरारि भया का, गाथा-४. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: जुगमे जिवन थोरो मत; अंति: जिन भज्या उतरो पार, गाथा-५. १२. पे. नाम. सविधिजिन स्तवन, प.१आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: (१)वाजत नगारे कि ठोर, (२)वांकोइ मारग वांकोइ; अंति: रूपचंद०देव न सेवु ओर, गाथा-५. १३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, म. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: नवघाटि मे भटकत पायो: अंति: चोथमल जगमे लाज, गाथा-१३. १४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रूप, पुहि., पद्य, आदि: एसो जनम नही वारंवार; अंति: रूप० धारो सब संसार, गाथा-९. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिन नामक समर लेवे; अंति: नही संग जे माया रे, गाथा-५. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर नर मनकु समजाणा; अंति: भावना संग लेके जाना, गाथा-६. १७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: विरथा या बस जनम गयो; अंति: रतनचंद० जनम गयो री, गाथा-४. १८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. कवियण, पुहिं., पद्य, आदि: वणज क्या किया अजाण; अंति: कवियण आयो तिहारी, गाथा-५. १९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण... मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: यो जुग जालस्यु मनकि; अंति: रतनचंद०भरम मिटाणा रे, गाथा-८. २०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-तृष्णा परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: त्रसना तरुणि तुं तजो; अंति: तज त्रसना विरंग, गाथा-४. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: मोहि आश क्यूं दैरे; अंति: सीवसुख पूर भरत में, गाथा-८. २२. पे. नाम. एकादशीव्रत सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: अन्नपाण तंबोलं चउदंत; अंति: ते व्रत कहिए एकादसी, गाथा-११. ८१००५. अष्टमी स्तवन व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. सा. जडावसरीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ११४२५-२८). १. पे. नाम, अष्टमी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीराजगृही शुभ ठाम; अंति: तस न्यायमुनि जय थाया, ढाल-२, गाथा-११. २.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ.१आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भुजनगरमंडन नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिवा अजिवा पून्यने; अंति: मानवि० चित धरज्यो जी, गाथा-४. ८१००६. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४११, १५४४०-४५). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: अनेरो जे कोई अतिचार. ८१००७. श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४११.५, १६४३०-३३). श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: श्रीज्ञाननइ वीषइ जे; अंति: प्रत्यइ जाणु हुइ. ८१००८. (+) अढारनातराचौढालीयो व मोहनीयकर्म निवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १८४४५-४८). १. पे. नाम, अढारनातराचौढालीयो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १८ नातरा चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: लख चोरासी भटकता; अंति: लोहट कीयो वखाण रे, ढाल-४. २. पे. नाम, मोहनीयकर्म निवारण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मोहणी कर्मसुं जीतवो; अंति: वेगे तरो संसार जी, गाथा-१५. ८१००९ कमलप्रभासती चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४११.५, १९४४५-४८). कमलप्रभासती चौढालीया, म. अगरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणंद दीणंद सम; अंति: अगरचंद० ढाल वखाणी हो, ढाल-४. For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ८१०१० (+) सुक्तमाला व सुकन विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७८४, माघ कृष्ण, ३०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-९(१ से ९)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. इदलपुर, प्रले. मु. कांतिविजय; पठ. मु. भागलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १३४३७-४०). १.पे. नाम. सूक्तमाला, पृ. १०अ-११आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. म. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः (-); अंति: मनोविनोदाय बालानां, वर्ग-४, (प.वि. कर्म विषये गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, सकन विचार संग्रह, पृ.११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: कन्यागोपूर्णकुंभं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ तक है.) ८१०११ (4) उत्पत्ति उपदेशसत्तरी व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. “हुंडी: जीवविचार., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १६४७०-७३). १.पे. नाम. उत्पति उपदेश सत्तरी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. नवहर, प्रले. मनोहरदास, प्र.ले.प. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोइ तू आपणी मन; अंति: इम कहै श्रीसार ए, ___ गाथा-६९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन एकाक्षरमय, उपा. जयसोम, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जनवनवनधर धरणधर; अंति: सुयशो माणिक्य हीराकर, श्लोक-५. ८१०१२. सज्झाय व पालणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे.८, दे., (२४४११.५, १५४४८). १. पे. नाम, भरतमहाराजा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि: मुगतपद पाया हो; अंति: हीरालाल० मन की आस, गाथा-११. २. पे. नाम. संयमअनुमति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: माता अनुमत दे उचार; अंति: हीरालाल० भोग परवार, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: कवरा साधतणो आचार; अंति: हीरालाल० हीरदे मुजार, गाथा-५. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-कषाय परिहार, म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: तज दे क्रोधमान; अंति: हीरालाल० सदा जएकार, गाथा-८. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-युवावस्था, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: तरंगनी नीर जु जोवे; अंति: प्रभु पद के सरणीयो, गाथा-६. ६. पे. नाम. कृष्ण गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: जल जमना तट जावे रे; अंति: को जल जगत में पसरीयो, गाथा-११. ७. पे. नाम. आदिजिन पालना, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: मा मुरादेवी गावे रे; अंति: कीम जाये करीयो, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९४४, आदि: मारी दयामाता थाने; अंति: हीरालाल० उपगार हो, गाथा-१३. ८१०१३. (4) पांचपडिकमणा विधि, संपूर्ण, वि. १९३६, माघ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, पठ. श्रावि. समरथ, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, १२४२८-३२). For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: गुरुने वंदना कीजै; अंति: बैस तवनादि कहीजै. ८१०१४. परिहारविशद्धि विचार, संपर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, जैदे., (२४४१२, २०४३६-३९). २० द्वार-परिहार विशुद्धि, मा.गु., गद्य, आदि: क्षेत्रद्वार१ काल; अंति: उपसर्गादिक संभवै. ८१०१५ (4) जिनदत्तसूरि गीत व भीमराज यशोगाथा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०x२८-३२). १.पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में "राठोड श्री आसथानजीनै कनवजसुं श्रीजिनदत्तसूरिजी ल्याया। गुरु खरतर प्रोहित शिवड रोहडीयो वारट्ठ। घररो मंगत देधडो ए राठोडा कुलवट्ट"।१। का ऐतिहासिक उल्लेख है. मा.गु., पद्य, आदि: संवत् इग्यार गुणोत्त; अंति: (१)पुहपावतिपुर द्वार, (२)नित गुरुदरसण इछा करै, गाथा-१३. २.पे. नाम. भीमराज यशोगाथा चौपाई, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्माणी वरदायणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८१०१६ (#) स्तवन, सज्झाय व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अंत मे काल भैरव चित्र अंकित है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी जगतजनेता; अंति: रूप०सेवक करी जाणो हो, गाथा-५. २. पे. नाम. मधुबिंयानी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मात सरसति रे दीओ मुझ; अंति: परमसुख इम मांगीइ, गाथा-५. ३. पे. नाम. पद्मप्रभु गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पदमप्रभुना प्रेमसु; अंति: वीर० नामे कोड कल्याण, गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, म. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो वीरने चित्तमां; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) ८१०१७. चंदनबालानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. सोभी (गुरु सा. कसनी); गुपि. सा. कसनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३, जैदे., (२४.५४११, १५४३५-३८). चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबीनगरी पधारीया; अंति: पाइ लागा हो जिणवर, गाथा-४६. ८१०१८. पंचकल्याणक टीप व उज्जवणानी विधि, संपूर्ण, वि. १८११, माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. द्राफा, जैदे., (२४४१२, ३७४१५-१८). १. पे. नाम, पंचकल्याणक टीप, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सुविधिनाथसर्वज्ञाय; अंति: महावीर पारंगतायनमः. २. पे. नाम. पंचकल्याणक उज्जवणानी विधि, पृ. २आ, संपूर्ण... २४ जिन पंचकल्याणक उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: चवन दिने लाहणु; अंति: तरफना उपवास ५ करवा. ८१०१९. चंदनमलयगिरी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११, १७४५५-५८). चंदनमलयागिरि रास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७०४, आदि: जिनवर चउवीसे नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८३ अपूर्ण तक है.) ८१०२० समकितना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. दीवबंदर, प्रले. श्राव. हरखचंद हरीचंद साह; पठ. श्रावि. फुलकोरबाई; प्रे. सा. देवकोरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी-समकीतना बोल., दे., (२४.५४११.५, १९४४२-४५). सम्यक्त्व के ९ नाम विचार-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्यसमकीत१ भावसमकी; अंति: कारण ते मोक्षनो उपाय. For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४४३ ८१०२१. शिखामण सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, पठ.सा. मोतीबाई आर्या (गुरु सा. कडवीबाई आर्या); गुपि. सा. कडवीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ११४३०-३५). १.पे. नाम. पुरुषनी सीखामणनी सझाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुमदचंद कहे समजलो, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, असत्रीनी सीखामणनी सझाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम सिखामणि; अंति: उदअमां जस वीसतरे, गाथा-१०. ८१०२३ (+#) रमलफाल शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. रत्नविनय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५-१८४३२-३५). रमल शुकनावली, पुहिं., गद्य, आदि: अरे यार बहुत दिन चिं; अंति: धीरा सब वात भली हुवी, (वि. यंत्र सहित.) ८१०२४. (+-#) चोवीसजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६८-६६(१ से ६६)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ९४२८-३२). १.पे. नाम. चोवीसी, पृ. ६७अ-६८आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, म. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: सिमरू श्रीआदिजिणंद; अंति: प्रभु मोहि दरसन दीजो, गाथा-२५. २. पे. नाम. सप्तव्यसन श्लोक संग्रह, पृ. ६८आ, संपूर्ण. ७ व्यसन निवारणश्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: जुवं च मासं च सुरा; अंति: मांसआरी कुतो दया, श्लोक-२. ८१०२५ (4) वयरस्वामी गुणगर्भित फुलडा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. वीरचंद्र (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११.५, ३४३०-३६). वज्रस्वामी गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी रे में कौतक दीठु; अंति: शुभवीरने वाल्हडा रे, गाथा-८. वज्रस्वामी गहुंली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवयरस्वामी ६ मास; अंति: वीरविजय०वल्लभ वचन छे. ८१०२६. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १६४४२-४५). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: पहिलाथूल प्राणातिपात; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (वि. संक्षिप्त अतिचार से वंदित्ता तक के सूत्र हैं.) ८१०२७. (#) गोडीपार्श्वजिन स्तवन, बारमासो व दहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हंडी-गोडीपार्श्व., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४४४). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ वृद्धिस्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: जिण नाम अभिराम मंते, ढाल-५, गाथा-५५. २.पे. नाम. बारमासो, पृ. २आ, संपूर्ण. शृंगार गीत, मा.गु., पद्य, आदि: गोली गीरज में गाजीयो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-३ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक दहो, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहासंग्रह-विविधविषयोपरि , पुहि.,मा.ग.,रा., पद्य, आदि: आभामंडण बिजली; अंति: मुखमंडण तंबोल, गाथा-१. ८१०२८. विविधबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १५४३०-३३). बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. बारहमास, उर्ध्वलोक, अधोलोक, मनुष्य, देव, लिंग, कोडाकोडी आदि समयमानादि.) ८१०२९ (+#) नंदबहुत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४५-४८). For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंद बहुत्तरी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि सबै नयर सिरि सेहरो, अंति: बील्हावास मझार, गाथा- ७३. ८१०३०. ओसवाल उत्पत्ति कवित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५X११, १२x२७-३०). www.kobatirth.org " ओसवालज्ञाति उत्पत्ति कवित, रा., पद्य, आदि: पहुपराव पमार श्रीकरै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १२ तक लिखा है.) ८१०३१. (*) चतुषष्टीसुरेंद्राचिंत चतुर्विंशतितीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४x११.५, १२x२७-३०). २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः तास सीस पभणे आनंद, गाथा २९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८१०३२. (*) पार्श्वजिन स्तवन, लोकसंग्रह व चतुर्निकायदेव नाम, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२४X११.५, १२x२५-२८). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: सर्वदेवसेवितपदपद्मं; अंतिः मुक्तालतावाङ्गुनैः, श्लोक-७. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.सं., पद्य, आदि देहे निर्ममता गुरी; अंतिः संघातुमायुर्जर्ज श्लोक-३ ३. पे. नाम. चतुर्निकायदेव नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: दश प्रकार भवनपति: अंति: कलपोतपन१ कल्पातन २. " ८१०३३. (+*) बासठमार्गणा बोल, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११, ४४X७-३०). ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ५४ द्वार तक है.) ८१०३४.(+#) अठावीसलब्धि स्तवन व धन्ना गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी - अट्ठावीस लब्धि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११, १२X३५-३८). १. पे. नाम. अठावीसलब्धि स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, वि. १७९०, माघ शुक्ल, २. आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि प्रणमुं प्रथम जिणेसर, अंति प्रगट ग्यान प्रकाश, ढाल -३, गाथा-२६. २. पे नाम. धना गीत, प्र. २आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि धन धन्नउ रिषि बंदीयइ अति विद्या० निस्तार रे, गाथा- ७. ८१०३५. सीतासती सज्झाव, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) - २, पू.वि. बीच के पत्र हैं. जैये. (२५x११.५, १०x३२). सीतासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से ४६ अपूर्ण तक है.) ८१०३६. (*) वासटमार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४११. २२X३१-५० ). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को, आदि जीव१ गइ२ इंदि३ काय४ अति: सबथोवा संखेजगुणा. ८१०३७, (*) नवतत्त्व का २७६ भेद व २५ क्रिया विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, २२X४०-४६). १. .पे. नाम. नवतत्वना २७६ भेद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. २७६ भेद विचार, मा.गु. गद्य, आदि जीवतत्त्व १४ भेद; अति भाग भाव अल्पबहुत्व. २. पे. नाम. २५ क्रिया विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. २५ क्रिया भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: शरीरे पाप लागे ते; अंतिः प्रमत्तसाधुने हुवे २५. ८१०३८. (#) आर्यवसुधाराधारिणी माहागुप्तमंत्र, अपूर्ण, वि. १८८७, आश्विन शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. १० - ८ (१ से ८)=२, ले. स्थल. महेसाणानगर, पठ. मु. कुशलविजय (तपागच्छ); राज्ये आ. विजयदेवेंद्रसूरि ( तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. 'हुंडी: वसुधारा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (४६२) मंगलं लेखकस्यापि, जैदे., ( २४.५X११.५, ११x२७-३०). For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति, (पू.वि. "पसंक्रंत उपसंक्रम्य" पाठ से है.) ८१०३९. रविवारव्रत चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३-१ (२) २, जैदे. (२४.५४१२, १६x४२-४५). गाथा - १५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रविवारव्रत चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल - १ गाथा-२२ से है व ढाल-३ गाथा-१९ अपूर्ण तक लिखा है.) ८१०४०. सिद्धाचलजी स्तवन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., ( २४.५X१२, १०X३२-३५). १. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण. , शत्रुंजयतीर्थं स्तवन- ९९ यात्रागर्भित. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण अति: सिद्धाचल गुण गाईये, आदिजिन स्तवन- केसरियाजी, मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतने समरी करी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ८१०४२. (*) सिचीयायमाता छंदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) -१, कुल पे. ५. प्र. वि. टिप्पण बुक्त' विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११.५, २०X३५-३८). १. पे. नाम. सिचीयाय स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण. सच्चियायदेवि छंद, हेम, मा.गु., पद्य, आदि: सानिधि साचल मात तणी; अंति: हेम कहे सिचियाय तणा, गाथा ५. २. पे नाम. ओशियामाता स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि देवी सेवी कोड कल्याण, अंति: करजोडी सेवक हेम कहे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिचियायमाता स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सिचियाय माय पग सेवता; अंति: दे विद्या परमेश्वरी. ४. पे. नाम जगदंबामाता कवित्त, पृ. २आ, संपूर्ण, गीत - १. अंबिकामाता कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: कि तूं समुद्र संचरी; अंति: कहो मात कारण कवण, ५. पे. नाम, बालासुंदरी आरति, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: तै करनी आरती, अंति: अमर सिरतो बालासुंदरी, पद-२. ८१०४४ (#) पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., " (२५x१२, १२x९-२४). पट्टावली", प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि श्रीमहावीरस्वामि पट् अंति (-), (पू. वि. पाट ४३ श्रीजगचंद्रसूरी तक है.) ८१०४६. लीलोतरी नाम, संपूर्ण, वि. १८५५, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४४११.५, २२-२५४८-१२). लीलोतरी नाम, मा.गु., गद्य, आदि: कोलांनी जाती तुरीया; अति: पपईयु लीबडोलीलो. (वि. अंत में १४ नियम की सामान्य टीप लिखी है.) ४४५ ८१०४८. चौवीसजिन स्तवन व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५x१२, १४X३६). १. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक- ८. २. पे नाम. विविधमंत्र संग्रह, पू. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १९०४ आश्विन शुक्ल, १४. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदिः ॐ काली कलरही चंडका; अंतिः श्रीसूर्याय नमः . ८१०४९ (#) सहस्त्रकुट स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x१२, १२x२७-३०). For Private and Personal Use Only सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि सहसकूट जिन प्रतिमा; अंति राजधी देवचंदनी प्रीत, गाथा - १५. Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१०५१ (+) आत्म गीता, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४४७-५०). अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमिए विश्वहित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक ८१०५२. माणिभद्र छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. 'हुंडी: मानभ., जैदे., (२४४११, १४४२८-३२). माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक है.) ८१०५३. (#) चेलणा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१७(१ से १७)=२,प्र.वि. 'हंडी: चेलणा०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १८४४८). चेलणासती सज्झाय, मु. भूपत, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-७ की गाथा-६ अपूर्ण से है व ढाल-११ की गाथा-८ तक है.) ८१०५४. (#) नक्षत्र तारादि नामावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ३५४११-२०). बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१०५५. सधर्मदेवलोक सज्झाय व वैरागनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १३४३३-३६). १.पे. नाम. सुधर्मादेवलोकनी सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारंभ में मरुदेवीमाता सज्झाय की पूर्णता का मात्र संकेत मिलता सुधर्मदेवलोक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुधर्मादेवलोकनारे; अंति: ए छे अमारी बलाये रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. वैरागनी सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय, म. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन समझो रे मन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक ८१०५६. (#) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. हुंडी: अवंतीसुकमाल, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १६४३२-३५). अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदन आवी सघळी नार रे, गाथा-९, (पू.वि. ढाल-८, गाथा-३ अपूर्ण से है.) ८१०५७. (4) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २२-२६४५-१६). बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८१०५८. आषाढमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८८५, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२४.५४११.५, ९४२२-२६). आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: (-); अंति: मान० अषाढ मुनिसरू, ढाल-७, (पू.वि. ढाल-७, गाथा-१० अपूर्ण से है.) ८१०५९ पंचतीर्थ स्तवन व चेलणासती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १०४३२-३६). १. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लावण्यसमै इम भणै ए, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है) २. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४४७ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: समय० भवतणो पार रे, गाथा-७. ८१०६०. कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. “हुंडी: कवना., जैदे., (२४४११, १२४२२-२५). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-५ तक है.) ८१०६१. (+) शांतिजिन स्तवन व दसपच्चक्खाणफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५९, फाल्गुन कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १२४३५-३८). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदिः श्रीशांतिजिणेसर शांत; अंति: सिद्ध श्रीसंघ धरै, गाथा-१३. २. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दशविध प्रह उठी पचखाण; अंति: पामे निहचै निरवाण, गाथा-८. ८१०६२. (+) सिद्धाचलजीनुं स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ९x१८-२२). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: विमलासल वीमल प्रांणी; अंति: गीर सासो सनेही, गाथा-७, संपूर्ण. ८१०६४. औपदेशिक सज्झाय व नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १६४३२-३५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: राजा चंचल होय भोम; अंति: जब जम नहीं आवे नेड, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: सुधै मन नेमीसर समरौ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा ८१०६५ (#) शेव्रुजय स्तवन, अपूर्ण, वि. १८८५, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. रायचंद ऋषि (गुरु मु. जेमल ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पलवियापार्श्वनाथ प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १३४३२-३५). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: खिमाविजय० धरे ध्यान, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-२ से है.) ८१०६६ (#) बलभद्र व संसार अनित्यता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३२-३६). १.पे. नाम. बलभद्रनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकलमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: बलदेव महामुनी तप तपे; अंति: भवि सुख देय रे, गाथा-८. २.पे. नाम, अथिरसंसारनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-संसार अनित्यता, क. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अथीर संसार रे जीवडा; अंति: कहि अथिरता बहु पेख, गाथा-७. ८१०६७. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ६, प्रले. मु. चोथमल शिष्य (गुरु मु. चोथमल), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४०-४४). १. पे. नाम. बावीस परिषह नाम, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: दंसण परिसह २२, (पू.वि. परिषह २ से है.) २. पे. नाम. ८ प्रवचनमाता नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ इरज्यासम २ भाषासम; अंति: वचनगुप्त ८ कायगुप्त. ३. पे. नाम, दस यती धर्म नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १० यतिधर्म भेद, मा.गु., गद्य, आदि: १ खंती २ मुत्ती; अंति: तवे ९ चिया १० बंभचेर. ४. पे. नाम. बारह भावना नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण. १२ भावना नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अनित्य भावना १ असरण; अंति: १२ धर्म ऋषभ ९८ पुत्र. ५.पे. नाम, पाँच चारित्र नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण. ५ चारित्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सामायक१ छेदोपस्थापनि; अंति: ५ चारित्र पांच कहिइ. ६. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८१०६८ (4) वीरजिन वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर मिट गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४२-४५). ___महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति: समयसुंदर० तिलो, गाथा-१९, (वि. आदि अंतिमवाक्य अस्पष्ट है.) ८१०६९. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. भावश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५-२५.०x१२, १०४३३-३६). महावीरजिन स्तवन-विजयसेठविजयासेठाणी विनतीगर्भित, म. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: एकवार कछ देस आवीये; अंति: जीत नीसान बजावीये, गाथा-११. ८१०७० (4) अंतरिक्षपार्श्वजिन छंद, धन्नाशालिभद्र व ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३२-३६). १. पे. नाम. अंतरिक्ष पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन दियो सरसति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) २. पे. नाम, धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धनो सालिभद्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषिने वंदना हुँ; अंति: जिनहर्ष सुजांण रे, गाथा-९. ८१०७१ (4) मौनएकादशी गणन, संपूर्ण, वि. १८६६, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भावनगर बंदर, प्रले. पं. कस्तुरविजय (खरतरगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४४५-४८). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ८१०७२. ऋषभजिन स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १४४३२-३६). १.पे. नाम, ऋषभजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात उठि समरियै; अंति: कल्याण चरणु की सेवा, गाथा-५. २.पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मया करी दिल; अंति: करो प्रभु हेत धरी, गाथा-५. ८१०७३ (#) भक्तामर स्तोत्र व नवकारमंत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४२). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २.पे. नाम. नवकार स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४४९ ८१०७४. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, ले.स्थल. पाटणनगर, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३६-४०). १. पे. नाम. जिनगुण पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए जिनके पइया लाग रे; अंति: आनंदघन पाए लाग रे, गाथा-४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. __पार्श्वजिन पद-अवंतीमंडन, पुहि., पद्य, आदि: पंथीडा पंथ चलेगो; अंति: अब तेरो ही आधार, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: अटके नैयना प्रभु चरण; अंति: नवल० क्यूं न हटकै, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदराम, पुहिं., पद्य, आदि: छोटी सी जान जरा सा; अंति: भवदुख बंदा हरना वे, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: देखन दे एसे नेम; अंति: अमृत नजर० सुखदानी, गाथा-३. ६. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारथीडा रथ वालि जोय; अंति: वंदित चरण त्रिकाल, गाथा-९. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण... मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधु क्या सोहे तन; अंति: आनंदघन० निरंजन गावै, गाथा-५. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. राजाराम, पुहि., पद्य, आदि: चेतन तूं क्या फिरै; अंति: राजाराम० अरज है मोरी, पद-५. ८१०७५. स्तवन, पद व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४४१२, १२४३२-३६). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणथी रथ फेर चल्यो; अंति: रीत पाली भली भातलडी, गाथा-६. २. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मीराबाई, मा.ग., पद्य, आदि: आवो रे घनस्याम मेरे; अंति: मीरा० सेवेलाभ वधारे, गाथा-५. ३. पे. नाम. कृष्णगोपी भ्रमरगीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नंदलाला रे जोइरे; अंति: गावे छे दीन दीवांण, गाथा-९. ४. पे. नाम. कृष्णभक्ति फगुंया, पृ. १आ, संपूर्ण. __ कृष्ण होली पद, मीराबाई, मा.गु., पद्य, आदि: सहीया वै दिन फेर आवै; अंति: मीरा० चरणकमल चितलाय, गाथा-३. ८१०७६. (#) गोपीचंदरीराखी गीत, संपूर्ण, वि. १९७१, भाद्रपद शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, प्रले. प्रनी. पानाजी (परंपरा सा. कुंवर आर्या); गुपि. सा. कुंवर आर्या (गुरु सा. भाणबाई आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १८४३६-३९). गोपीचंद की राखी, मु. जडावचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९६६, आदि: समगत साची बैन भांणजी; अंति: करता मंगलमाल रे, गाथा-९. ८१०७८. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६५, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४२८-३२). शांतिजिन स्तवन, म. तेजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणंद दयाल मयाल; अंति: तेजविजय कहे मारा राज, गाथा-११. ८१०७९ गणस्थानस्थिति व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १५-१८४५८-६२). १.पे. नाम. गुणस्थान स्थिति, पृ. २अ, संपूर्ण. विचारसार, प्रा., पद्य, आदि: अह चउदससु गुणेसु; अंति: सिव पासाए सयावसह, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम, बोलविचार संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१०८० (4) वीरजिन स्तवन व दयाधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १५४४२-४५). १.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. दर्गादास, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: जोग लेईने बीर जिणेस; अंति: जपै तुम नाम सुखकंदा, गाथा-१६. २. पे. नाम. दयाधर्म सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, म. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: नवघाटी मे भटकतारे; अंति: चोथमलसीस हरी लाज, गाथा-१५. ८१०८१ प्रश्न सज्झाय, व औपदेशिक सज्झाय द्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: दयाधर्म०., जैदे., (२४.५४११.५, १७४३५-३८). १.पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: भोव भोमाजी भवटा कदा; अंति: ढाल जौडी पर उपगार, गाथा-१६. २. पे. नाम. वारा परसण, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ प्रश्न सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: दुरलभ नरभव भमीउ; अंति: अचरम सरीरी पूछूसू, गाथा-६. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कर परमीसरकी यारचा; अंति: चाल सारु वछेरीया, गाथा-६. ८१०८२. (-) औपदेशिक सज्झाय व चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४१२, १६४३२-३६). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. नंदलाल, रा., पद्य, आदि: मतो हो मछराला हो राज; अंति: दर्सण करन जु आया, गाथा-१०. २. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सती धना के ग्रह वसीआ; अंति: घर चंदनबाला रह रखनी, गाथा-१३. ८१०८३. (+#) औपदेशिक पद व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १२४३६-५२). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: भज अरिहंत भज अरिहंत; अंति: बोले उजे छीपमा खाया, गाथा-२. २. पे. नाम, पांचमा आराना बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३० बोल-दषमकाल, मा.गु., गद्य, आदि: नगरगाराम सरीखा होसी; अंति: राजा अलप होसी. ३. पे. नाम, बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१०८४. मुनिसुव्रतजिन स्तवन व चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२, १५४२२-२६). १. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमुनिसुव्रत सायबा; अंति: नैचंद्र सीस निवायकै, गाथा-७. २. पे. नाम, चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ८१०८५. (#) इलाचीपुत्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १५X३२-३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती होरी, पुहिं., पद्य, आदि: गोपी को प्यार चगीये अति कीस सग खेला मे होरी, गाथा-१०. " " २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि निंदिया बेरण हो० भजन अंतिः नीद बेरण होय रे, गाथा- १०. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे एलापूत्र जाणीइं; अंति: लबधविजय गुण गाय, गाथा - २२. ८१०८६. (*) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५x११.५, १३x२९). अज्ञात जैन देशी पद्य कृति *, मा.गु., पद्य, आदि: सोवार दीन चाडी प्रणी; अंति: (-), (वि. पाठ अशुद्ध होने से पूर्णता अस्पष्ट है.) ८१०८७ ( जंबुजी की कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., (२५.५४१२, १४४३३-३६). जंबूस्वामी कथा, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभू यो कहा अहो; अंति: अवइ तिम मरण पावइ, गाथा- १६. ८१०८८. (#) नेमिजिन पद व औपदेशिक सज्झाय द्वय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही गयी है, दे., (२४.५x१२.५, १५X३२-३६). १. .पे. नाम नेमिजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण , ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाव, पृ. आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि आउखा तुटो नै सांधो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ६ तक है.) " ८१०८९. (A) नेमिजिन रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे (२४४११.५, १५X३०-३३). नेमिजिन रास, मा.गु., पद्य, आदि सरसती सामणी विनउ अति या ज्यारा जे जे कार, गाथा-१८ (वि. प्रतिलेखक ने गाथा-१८ लिखे बिना ही १९वीं गाथा लिखकर कृति पूर्ण कर दी है.) 3 ८१०९० (+) नेमराजिमती बारमासा, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२४४१२, १५X३५-३८). नेमराजिमती बारमासा, हदीना, मा.गु., पद्य, आदि: चडद चेत महीने नेम; अंति: दीना चरणी सीस निवाया, गाथा-१२, (वि. आदिवाक्य आंशिक रूप से खंडित है.) ८१०९१ (#) नेमिजिनादि भववर्णन चौदहस्वप्न विचार व नेमिजिन ज्ञानवर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४११, १३४३२-३६). १. पे. नाम. नेमजिन नवभव वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मिजिन ९ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम भवे अचलपुरे, अंतिः कन्या अवतरी महासती. २. पे नाम. पार्श्वनाथ दशभव वर्णन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण ४५१ पार्श्वजिन १० भव संक्षिप्तवर्णन *, सं., गद्य, आदि: प्रथम पोतनपुरें; अंति: एक तापसने पुठे थयो. ३. पे. नाम. ऋषभदेव १३ भव वर्णन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन १३ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि पहिलि भवि धनउ सारथ; अंतिः कुखे आवी अवतार लीधो. ४. पे नाम. चौदह स्वप्न विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only १४ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, आदि च्यार दंतुशले सहित; अंति: करणहार थास्यै, ५. पे. नाम. नेमिजिन जांन वर्णन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. नेमिजिन जान वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: सोल सहस मुगटबध; अति: एहवी जांननी शोभा छे. ८१०९२. (*) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२६, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, डीसा, प्रले. मु. राजचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५४११.५ १२४२८-३२) रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि हां रे मारे वासुपूज; अंति दिपविजय० तप गाइया, ढाल ६, गाथा - ३१. Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१०९३. (+) नमीराजारी ढाल, संपूर्ण, वि. १९७४, आश्विन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२४४१२.५, १८४३७-४०). नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सासणनायक सीमरता; अंति: तेरस तीथरो नाम ए, ढाल-७. ८१०९४. (+2) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, व्याख्यान श्लोक संग्रह व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ५-१२४३७-४०). १.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: श्रिष्टे संगः श्रुते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ तक लिखा है.) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए छ वस्तु सुकृत कही; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २.पे. नाम. व्याख्यान श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरू; अंति: धर्म एकोपि निश्चलं, गाथा-२४. व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिनकेवली तिणांरा इंद; अंति: धर्म साथै चालसी, (वि. बालावबोध टबार्थ की शैली में लिखा हुआ है.) ३. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण.. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धरती नवीन वेरीया; अंति: नाटक नाची जाय, (वि. गाथा-१.) ८१०९५. स्नात्रपूजा व फूलपूजा दोहा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)-४, कुल पे. २, प्रले. मु. शिवचंद (पायचंदगच्छ); लिख. श्राव. लखमण शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १३४२७-३०). १.पे. नाम, शांतिनाथ कलश, पृ. ३अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: कहे सूत्र मोझार, ढाल-८, गाथा-६०, (पू.वि. ढाल-५ से है.) २. पे. नाम. फूलपूजा दोहा, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मोगर लाल गुलाल मालती; अंति: सब उपद्रव धूजइ, गाथा-४. ८१०९६. आणंद श्रावकसंधि- ढाल-११ गाथा-८०- ढाल-१५, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका खंडित है. पत्रांकरहित इस अपूर्ण प्रत पर किसीने बाद में पत्रक्रम-१ से गिना है., जैदे., (२५४११.५, १८४३२). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: (-); अंति: पभणै मुनि श्रीसार, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-११ की गाथा-७ से है व ढाल-१४ की गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ८१०९७. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७४७, मध्यम, पृ. ४, पठ. मु. सुमतिविजय (गुरु ग. हस्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४२८-३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ८१०९८.(-) देवसिराई प्रतिक्रमणविधि व पौषध के १८ दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३५-३८). १. पे. नाम. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र विधिसहित, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम रात्रि पडिलेह; अंति: ३ उपवासरी पैठ पूरजौ. २. पे. नाम, पोसाना १८ दृषण, पृ. ४आ, संपूर्ण. १८ पौषध दोष, मा.ग., गद्य, आदि: छकायनो प्रारंभ करी; अंति: पुज्या विना न परवधै. ८१०९९ नंदमणियार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८-३४(१ से ३४)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४११.५, १०४२५-२८). For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४५३ नंदमणियार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक अंश अपूर्ण से गाथा - ५७ अपूर्ण तक है. ) ८११००. गुरु सज्झाय, चेलणाराणी छ ढाल व १८ पापस्थानक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३१-२७ (१ से २७)=४, कुल पे. ३, जैवे. (२५x११, १५X३०-३३). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम, गुरु सज्झाय, पृ. २८अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गुरुगुण पच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: रायचंद० आवे जावे, गाथा - २५, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चेलणाराणी छ ढाल सज्झाय, पृ. २८अ - ३१आ, संपूर्ण. चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर ते नर अटकले; अंति: भाखे भवियणने हेतकारी, ढाल ६, गाथा- ३७. ३. पे नाम. १८ पापस्थानक सज्झाय, पृ. ३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि पापस्थान अढारे पुरो; अंति (-), (पू. वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८११०१. (*) ज्ञानपंचमी स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x१२, ७२१). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि पंचमीतप तुमे करो रे; अति ज्ञानना पंचम भेद रे, ', "" गाथा - ५. "" ८११०२. धार्मिक औपदेशिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. २, दे. (२४.५x११, ८-१०४४१). औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि भगवंत बीतरागनी वाणी, अंति: धर्मना अधिकारनो विषे. ८११०३. आलोयणाछत्तीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैये. (२४४१२, १६४३२). " " पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी आदि हिव राणी पदमावती; अंति मुज दुक्कडं, ढाल-३, गाथा-३५. ८११०४. (#) पंचमहाव्रत व सुंदरीतप सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४x११, १३x४३). ९. पे नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पू. १अ २आ, संपूर्ण . ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि सकल मनोरथ पूरवै रे; अतिः कांतिविजय० अवतारो रे, ढाल ६, गाथा ३८. मिच्छामि २. पे नाम. सुंदरीत सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सुंदरीसतीतप सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि सरसती सामिनि करो, अंति (-), (पू.बि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ८११०५ (+) शांतिजिन पंचकल्याणक पूजा, शांतिजिन व नेमिजिन बोली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जीवे. (२५४११.५, १३४३४) " १. पे. नाम. शांतिजिन पंचकल्याणक पूजा, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तव-जन्माभिषेक, मा.गु., पद्य, आदि जयओ सयल सुरासुर नमिय; अंतिः विजय श्रीसंति करो, गाथा १८. २. पे नाम शांतिनाथजी री बोली. पू. १आ-२अ संपूर्ण शांतिजिन बोलिका, आ. जिनेश्वरसूरि अप, पद्य, आदि ता उत्तर दक्षिण पुरब, अंति: जिणेसरसू० पणासे दुरि, गाथा ४. ३. पे नाम नेमिनाथजी री बोली, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. , י नेमिजिन बोली- गिरनारतीर्थमंडन, अप., पद्य, आदि: ता धन धन सोरठ देस; अंति: जाम गयण ससिभाण, गाथा- ७. ८११०६. पोषदशमीव्रत स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे (२५४११.५, १५X४५). For Private and Personal Use Only , पोषदशमी स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रभु परमेश्वर पासना अति दीपविजय कविराज रे, ढाल ४. ८११०७. वर्धमानस्वामीनुं हालडके व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१३, फाल्गुन कृष्ण श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. गुलाब ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५X११.५, १२X३०). 3 १. पे. नाम. महावीरजिन हालडरुं, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. महावीरजिन पारणुं, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि माता त्रसलाई पुत्रर अंति कहे थास्ये लीला लेरे, गाथा-१९. Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: जब लग काले केस ते; अंति: तो तन हलको होय, गाथा-८. ८११०८ (+) महावीरवृद्ध स्तवन व औपदेशिक कवित, संपूर्ण, वि. १८९२, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. भिलपुर, प्रले. पं. गुलाबसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १३४३२). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: इक मन वंदो श्रीवीर; अंति: नवै देह मनवंछित भणी, गाथा-२८. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पुरुष एक जुग प्रगट; अंति: अरथ काम इण वंध रे, गाथा-१. ८१११० (+) देवसिकप्रतिक्रमण विधि व पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १८१६, भाद्रपद शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ११४३०). १. पे. नाम. देवसिकप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उपासिरा विषै अथवा; अंति: लोगस्सु जायगरेनो. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. ८११११. (+#) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७X४८). साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोवीसी ऋषभ; अंति: जैमल एही तिरणरो दाव, गाथा-५४. ८१११२. (+) प्रास्ताविक दोहा संग्रह व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१२.५, १४४४५). १.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: रात्रिर्गमिष्यति; अंति: दुखी जैन से वडा, गाथा-३६. २. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: तीणकाले ने तीणसमयजी; अंति: संजम मे चित्त लाय, गाथा-१२. ८१११३. अढार चोकडी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. श्रावि. भुरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. 'हुंडी: १८ चोकडी., दे., (२५४११, १४४४०). १८ चोकडी बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले जीवदया; अंति: जीव जाय मोक्षमां. ८१११४. (+) जैन धर्मप्रभावकपुरुष विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १५४४३). जैनधर्म प्रभावकपरुष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य श्रीऋषभदेवजी; अंति: (-), (पू.वि. नवमी पीउसेण किन्हा मुक्तावलीतप करके विचरण करने प्रसंग तक है.) ८१११५. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४११.५, १२४३२). स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्री आदेसुरस्वामी हो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सुमतिजिन स्तवन, गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८१११६. पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, जैदे., (२४.५४११.५, १७X४५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: बामाराणी एक जायो नंद; अंति: रायचंद जेमलजी उपगारो, गाथा-१४. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४५५ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न कीजेरे जिवडा; अंतिः प्रीतविजय कहे नित रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास जिनराज मन; अंति: आज जिनराज आप तुठा, गाथा-७. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकीतनुं बीज जाणजो; अंति: उदयरतन० मारग सुधरे, गाथा-६. ५. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: भावसागर० सयल जगीस, गाथा-७. ६. पे. नाम. रात्रिभोजनपरिहार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरू चरणे रे भाव; अंति: साभलजो निसदीस रे, ढाल-२, गाथा-१४. ७. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझरे माता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८१११७. (+#) अठारहै नातरा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११, १६x२६). १८ नातरा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मानव भव पायो जी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ८१११८. (#) सिद्धशिला व समकित ६७भेदादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८७, माघ कृष्ण, ९, मध्यम, प. २, ले.स्थल. ईल्लोल, प्रले. ग. लावण्यसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १४४३६). विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वार्थसिद्धविमानथी; अंति: इणि पासे समकित छे. ८१११९ (+) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिकाटीका मंगलश्लोक व पूजनसामग्री सूची, संपूर्ण, वि. १९३५, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१२, १३४३५-४०). १. पे. नाम. कल्पसूत्र की कल्पद्रमकलिकाटीका का मंगलश्लोक सह बालावबोध, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र श्लोक-१ लिखा है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका का बालावबोध, रा., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य जिन; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. जिनपूजन सामग्री सूचि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. विविध जिन पूजा-पूजन सामग्री*, पुहि.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वासकुंपा नग २ वंदर; अंति: मरी धजपूजारी जाणनि. ८११२०. (+#) स्तवन, सज्झाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४११, १४४३८). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चोथमल० नगर सुहावणो, (पू.वि. अंत के पाठांश है., वि. गाथाक्रम का उल्लेख नही है.) २. पे. नाम, नारीसंगपरिहार सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नारीसंगपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: नारी का रूप न जोइए; अंति: कहे जी दसमा काल मह, गाथा-९. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: अरे कोउ काल न जीता; अंति: नवल नमोस्तु कीता, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक वैराग्य पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अरे हम मदमाते वयराग; अंति: हरषचंदजी०प्रमानंद के, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रभुदास, पुहिं., पद्य, आदि: ओसर बार बार नही आवे; अंति: मारा समर समर सुख पाउ, गाथा-४. ६.पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: अपने प्रभुजी से मिल; अंति: भावो ताते सीवगत लहिए, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. म. मोजी, पुहिं., पद्य, आदि: कुमत भइ चेतन तोरी रे; अंति: मोज कहे कर जोडी रे, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तेरे घटमें हे फुलवार; अंति: अब चल देख बाहर, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव आर्त क्या करे; अंति: ध्याण चित लावे रे, गाथा-१२. १०. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: पूर्व पुखलावती बीजै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८११२१ (4) साधारणजिन स्तवन व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १६x४०-४८). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भूधरदास, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि हो अरिहंत देव; अंति: एह प्रभु ढील न कीजै, गाथा-१२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी-मकशी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-मकशीतीर्थ, म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: करमदल मलकुं क्षय; अंति: जिनदास० मत कोई शंका, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: मति जावो गिरनार नेम; अंति: जिनदास उठि दर्शणकुं, गाथा-४. ४. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चलि चेतन अब उठकर; अंति: एक जिनदरसन चहीये रे, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुग्यानीडा रे मारग; अंति: मुक्तिवधू वर होय, गाथा-४. ६. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुण बहिनी पिउडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा-७. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. ऋ. दर्गदास, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलदायक श्रीजिनराय; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभ की २ गाथाएँ लिखी हैं.) ८.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मन मेला नर मेला किम; अंति: पंथक सिरखा चेला रे, गाथा-६. ८११२२. कमलावती चौढालीयो व नेमिजिन ब्याहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १७-१९४३२). १.पे. नाम. कमलावती चौढालिया, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., प्रले. सा. लीछमाजी (गुरु सा. जतुजी); गुपि. सा. जतुजी (गुरु सा. रतुजी); सा. रतुजी (गुरु सा. बुदजी), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. “हुंडी: भगुपीरो. For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ कमलावतीसती चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गावताजी होवे जयजयकार, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१० अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नेमिजिन ब्याहलो, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी: राजला. नेमिजिन विवाहलो, मु. गुमानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: छपनकोड जादव मिल आया; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा २१ अपूर्ण तक है.) ८११२३. (+#) तपसी की सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. 'हुंडी: तपसीजी की सझाय., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, १४४३३). तपसी सज्झाय, मु. राजवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सुस्ती माता समरीए ग्; अंतिः सदा ही रहे शांति, गाथा-२८. ८११२४. भरतजीरी रिद्धि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. सा. चनणा आर्या (गुरु सा. नंद आर्या महासती); गुपि. सा. नंदु आर्या महासती; पठ.सा. केसरजी,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. "हुंडी: भरतजीरी रीध., दे., (२४४१२, १९४३२). आदिजिन स्तवन-भरतचक्रवर्ती, मु. आशकरण, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: प्रथम समरूं श्रीरीषभ; अंति: वंदना भरतने होय ए, गाथा-२६. ८११२५. (+) मृगावती ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मीरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १७४४७). मृगावतीसती चौढालिया, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: अरिहंत देवज आदरो; अंति: लाहो लारे लीजो जी, ढाल-४. ८११२६. (+) नवतत्त्व १३ द्वार व १० प्राणदंडक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: नवतत्त्व तेरे द्वार., संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, २१४६३). १. पे. नाम, नवतत्त्व १३ द्वार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम १ दृष्टं २ कोण ३; अंति: सुका तलावरूप मोख. २.पे. नाम. १० प्राणदंडक विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: एक प्राण में दंडक; अंति: प्राणमा १६ दंडक छइ, (वि. प्रतिलेखक ने दंडक की संख्या के लिए जगह खाली छोड़ी है.) ८११२७. साधुजी के बेतालीस एवं छन्नु दोष, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. "हुंडी:बेतालीसछन्नु दो०., जैदे., (२४.५४१०.५, ११४४२). साध आहारदोष बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ साध साधवी ने अर्थे; अंति: (-), (पृ.वि. बोल-४५ तक है.) ८११२८. (+#) कर्मछत्तीसी, संपूर्ण, वि. १८६५, ज्येष्ठ कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १२४३८). कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करमथकी छूटे नही; अंति: धरमतणे परिमाण जी, गाथा-३६, (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम दो गाथाएँ दोनों पत्रों के हाशिये में लिखी है.) ८११२९. ज्ञानपंचमी चैत्यवंदन नवपदजी स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२४४११.५, १३४३०). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी चैत्यवंदन, प. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपंचमी तणो; अंति: केवल लक्ष्मी निधान, पूजा-५, गाथा-९. २. पे. नाम, नवपदजी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो; अंति: दानविजय जयकार रे, गाथा-२३. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र महामंत्र; अंति: भणी वंद बे करजोड, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. जिनस्मरण फल, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिन समरंता सहस फल; अंति: फल प्रभु दीठा नयणेय, गाथा-१. ८११३० (4) चेलणाराणी छढालीयु, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, प्रले. आंबाराम पटेल; पठ. श्रावि. साकरबाई; अन्य. सा. कसलीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में किसीने बाद में लिखा है-'कसलीबाई सामीना छे.' हंडी कटे होने के कारण प्रतनाम अवाच्य है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १६x४०). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर ते नर अटकले; अंति: राय० भविएण ने हेतकार, ढाल-६, गाथा-३७. ८११३१. (+) सीमंधरस्वामी वीनती, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ११४३१). सीमंधरजिन विनती स्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: स्वस्ति श्रीपुष्कला; अंति: (-), (पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८११३२. पाखंडी ३६३ भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, जैदे., (४८x१०.५, ५७X१८). ३६३ पाखंडीभेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: क्रियावादी१ अक्रिया; अंति: प्रथम अंग थखी जाणवो. ८११३३. (+) पंचकल्याणकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, ११-१३४४२). पंचकल्याणक स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नमिय पायकमल सुभ भाव; अंति: भवियां एह आरोहो मुदा, गाथा-२१. ८११३४. (#) कलियुगप्रभाव सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, ११४३१). कलियुगप्रभाव सवैया, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अमृत० चरित्र कर्त है, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रारंभिक पाठांश नहीं है., वि. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है.) ८११३५ (#) एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११, ६x२०). एकादशीतिथि स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ललना एकादशी तप कीजीय; अंति: मानविजय कहे एम, गाथा-७. ८११३६. (#) पोसिणापार्श्वनाथ स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १४४४८). १. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: दाता पंचदशोरत्न; अंति: अति सर्वत्र वर्जयेत्, श्लोक-१. २. पे. नाम. पोसिणापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पोशीना, म. कल्याणविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती समरी कविजन; अंति: सेवे ते नवनिद्धि लहे, गाथा-१४. ३. पे. नाम. सवैयादहाकाव्य संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८६७, फाल्गुन कृष्ण, १२... प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: दलमंडण गजराज हे बाजत; अंति: टाकरमारी मेल परा, गाथा-१३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण, वि. १८६७, पौष कृष्ण, २. सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा जिन; अंति: पार्श्वजिनं शिवं, श्लोक-७. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमु सारदा सार; अंति: सौख्यप्रदः सर्वदा, गाथा-१४. ६. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं... आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुध विमल करणी विबुध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ८११३७. भुवनेश्वरी छंद, संपूर्ण, वि. १८०४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. नित्यविजय; पठ. पं. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल अस्पष्ट है. चंदनपूजा के निशान के कारण आदिवाक्य अवाच्य है., जैदे., (२५४११, १७४४०). भुवनेश्वरी छंद, मु. गुणानंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमी पार्श्व जिनंद; अंति: कहइ जयजयजय जगदीश्वरी, गाथा-३६. ८११३८, (+) निरमोही पंचढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. * हुंडी: निरमोही., संशोधित., दे., (२५४११.५, १६४३७). निर्मोहीराजा पंचढालीयो, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: निरमोही गुण वरणवू; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ की गाथा ५ तक है.) ८११३९. मानछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४११, १२४३०). मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे रे मानवी; अंति: इम भाख्यो अरिहंत, गाथा-३७. ८११४० (#) समेतशिखर स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, कल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२४४२). १.पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. वीरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: समेतशिखर गिरी वंदिये; अंति: वीरचंद० प्रणमे पायक, गाथा-७. २.पे. नाम, जिनचंदवाणी पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. वीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे उठी कलेजा पीर; अंति: सरिखी वीर कहै मनमानी, पद-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ.१आ, संपूर्ण. ___ मु. वीरचंद, पुहि., पद्य, आदि: तेरी छिब नहीं आवै; अंति: वीरचंद०लीला सुख पावै, पद-६. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वीरचंद, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजी मोनुं प्यारा; अंति: वीर चरणचित लावैरे, पद-६. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. वीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: दुख भागा मेरा दुख; अंति: वीरचंद तोरा गुण गाता, गाथा-११. ८११४१. पार्श्वजिन स्तवन, पद, कवित्त व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४११, १२४२६). १. पे. नाम. संतामण पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुध मन आणि आसता देव; अंति: __ समयसुंदर सुख भरपुर, गाथा-७. २. पे, नाम, औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-दंभ, पुहिं., पद्य, आदि: निपट कपट की बात; अंति: दध अरु पानी को पानी, गाथा-१. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: विछड फिर मिलिया नही; अंति: च्यारे ही फलीयांह, दोहा-२. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. __क. मान, मा.गु., पद्य, आदि: गाडा में नाव अर नाव; अंति: मान वदे केतीयक बात, गाथा-७. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ८११४३. (+#) राजप्रश्नीयसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:सूरियाभा. प्रतिलेखक ने अंत में "तेह भाव आगला पानामै कह्या छै" का उल्लेख किया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, २५४५६). राजप्रश्नीयसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिण समए तिण ओसरे; अंति: (-), (पू.वि. "सूर्याभनामा विमान किहाँ छै" प्रश्न तक है.) For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८११४६. सीता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७७१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. फुरमानवाडी, प्रले. मु. खेतसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४३३). सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो प्रीया छोडी; अंति: हो धरम हीये धरी जी, गाथा-११. ८११५१ (+) कल्पसूत्र की कल्पद्रमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१,प्र.वि. प्रत के अन्त में अन्य प्रतिलेखक द्वारा "मल्लधार पूर्णिमागच्छीय क्षमासागरसूरीश्वर शिष्येन श्रीजयचंद्र मुनिना प्रणीताचेयं." लिखा है. किसी अन्य की कृति की प्रशस्ति का भाग है., संशोधित., दे., (२४.५४११, १०४३६). कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम्, (पू.वि. प्रशस्ति मात्र है.) ८११५२. सिंहासनबत्रीसी कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११, १४४३७). सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकल मंगल धर्मधुरि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८११५३. अमरकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. रतनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३२). अमरकुमार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सीझे वंछित काजो रे, गाथा-५२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-३१ अपूर्ण से है.) ८११५४. चंदकेवली रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११,१६x४०). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तिम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८११५५. नेमराजल संवाद व औपदेशिक कवित्त, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: नेमराजुलसंवाद, जैदे., (२४४११, १६४३०). १.पे. नाम. नेमराजुल संवाद, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती संवाद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नेमराजुल काहौ, गाथा-३५, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: हाड मांस अरु चामै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८११५६. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, ११४३२). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन मान ले साढीया; अंति: वेगले होगे सीव गतिया, गाथा-११. ८११५७. (-2) औपदेशिक वैराग्य पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १५४३६). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: जिस वकत जीवसे लगी; अंति: विन भजन जीव पछताया, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हाथु तुम सामज जोह मन; अंति: एक पाल में करत्ये रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कर दया धर्म को पाय; अंति: गमन को तोडी दीया लख०, गाथा-५. ८११५८ (+#) कमलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १७X४७). कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: महलाम वठी जी राणी; अंति: मिच्छामिदुक्कडं मोय, गाथा-२९. ८११५९. शीलमहिमा सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२, १४४३६). For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४६१ १.पे. नाम, शीलमहिमा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मु. अमरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुण य नमीने जपु; अंति: अमर०मुनि गुण गाया रे, गाथा-१४. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: महावीरप्रभु थारी; अंति: लाछ लाछमण सुखदानी जी, गाथा-७. ८११६० (+) २३ पदवी विचार व चिंतामणि पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, १६४४१). १.पे. नाम. २३ पदवी विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आदिनाथ महावीरस्वामी; अंतिः समद्रष्टी २ लाया. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिंता वेग हरो; अंति: चिंता चुर हमारी, गाथा-४. ८११६१ (4) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १५४२९). १. पे. नाम, नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: व्याह न करन प्रभुजी; अंति: धन उनको सुविचार संजम, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राम ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: कही मुसकल कठन फकीरी; अंति: राम० जा मुकत गारवीरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मोह परिहार, पुहि., पद्य, आदि: चलो जिसने पार लघानी; अंति: कपटाइ दास अजी गुजारी, गाथा-५. ८११६२. वज्रस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४१२, १६४३५). वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-६ तक है.) ८११६३. बासठमार्गणा बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१२, २६४९-१८). ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकी १४, तिर्यंच ४८; अंति: ४८,३०३, १९८, ५६३, (वि. सारिणीयुक्त) ८११६४. जंबूस्वामी व सुधर्मास्वामी गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३४). १. पे. नाम. जंबुस्वामी गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. जंबस्वामी गहंली, म. मनमोहन, मा.गु., पद्य, आदि: गाम नगर पुर विचरतां; अंति: महाराज कारज सीधा छे, गाथा-७. २. पे. नाम. सुधर्मस्वामी गुंहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहंली, मु. मनमोहन, मा.गु., पद्य, आदि: वीर पटोधर वंदीयै रे; अंति: दीये सदा उपदेश रे, गाथा-७. ८११६५. शांतिनाथ व आदिनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, ६४१८). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रतनचंद० सहु भर पामी, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. ५अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. आदिजिन स्तवन, म. माणकचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८७८, आदि: श्रीआदनाथ सीष्ट को; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८११६६. गुणावली रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, १४४३६). गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८११६८ (+#) सामायिक बत्तीस दोष सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सांडेरा, प्रले. मु. वर्धमान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३०). सामायिक ३२ दोष सज्झाय, म. ऋषभदास, मा.ग., पद्य, आदि: सामायक व्रत शुद्ध; अंति: सामायक सुज्ञान रे, गाथा-१४. ८११६९. सोल सती नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४२४, १६x६). १६ सती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ सुलसा २ चंदनबाला; अंति: द्रोपदी १६ पद्मावती. ८११७० (+#) बारहव्रतनी टीप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, २०४३९). १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्वमूल पहिलो; अंति: विगइं १ दिन एक आखडी. ८११७१. दस प्रत्याख्यान नाम व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, ११४२८). १.पे. नाम. दस प्रत्याख्यान नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ उपवास २ एकासनु; अंति: अमल १० ढाक उघाढा. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबाजी; अंति: लहीइ कोडि कल्याण, गाथा-७. ८११७२. वस्तुपालतेजपाल व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४११, २५४२१). १.पे. नाम. वस्तुपाल तेजपाल कवित्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. वस्तुपालतेजपाल सुकृत कवित्त, दत्त, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसहस प्रासाद जैन; अंति: आसधर सुत दत्त वदीयो, गाथा-२. २.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम टाल गणदोष; अंति: करि प्रणाम बांधो. ८११७३ (+) पद्मप्रभ व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२, १०४२२). १. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपद्मप्रभू राजियो; अंति: बिहू नैण हुआ धन्य धन, गाथा-६. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी प्रगट प्रभावी; अंति: मानविजय० तुज पाया रे, गाथा-५. ८११७४. (#) शत्रंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १२४३२). शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: जिनहरष० गुण गाई, गाथा-१५. ८११७५. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अंत में पत्र के हासिये में प्रतिक्रमण के समय पालन करने वाली कुछ सावधानियों के बारे में लिखा है. जो अपूर्ण एवं अस्पष्ट है., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३३). १. पे. नाम. औपदेशिक पद-अभिमान परिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीर, पुहि., पद्य, आदि: दिन वीसार्यो रे; अंति: कबीर० उतरैगो पार, दोहा-४. २. पे. नाम, औपदेशिक पद-माया परिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. सूरदास, पुहि., पद्य, आदि: यो जुग जाए रे च्यार; अंति: सूर० हरिहरसुं लटको, गाथा-५. ३.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, आदि: जीउ लागी रह्यो पर; अंति: जिउ वेधक रस धाउ मे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चेतन, पुहि., पद्य, आदि: कौन करे जंजाल जग मै; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४६३ ५.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. द्विजनाथ ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: संपत सुदगत के दाता; अंति: पारसजी संपत दाता हो, गाथा-८. ८११७६. (+#) मेघकुमार सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४२७-३४). १.पे. नाम. देवातिशय एकादशस्थानगाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. देवातिशय एकादशस्थान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: केसणहमंसुलोमा चम्म; अंति: देवाण सरीर संठाणे, गाथा-१. देवातिशय एकादशस्थान गाथा-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: केस नख मास रोम त्वचा; अंति: सरीरमां एती वस्त नही. २. पे. नाम. देवशरीरप्रमाणादि गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. देवशरीरप्रमाणादि गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पणवीसं असुराणं सेस; अंति: देवीणं एत्थि सेगमणं, गाथा-३. देवशरीरप्रमाणादि गाथा-टबार्थ, प्रा., गद्य, आदि: २५ धनुष असुरकुमारो; अंति: को गमनागमन छे. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक-ज्ञानप्रवेश दशलक्षण, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक, सं., पद्य, आदि: अक्रोधवैराग्य; अंति: प्रवेशे दशलक्षणानि, श्लोक-१. ४. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: प्रीतविजय०भव तणो पास, गाथा-५. ५. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, म. चतर्भज, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: श्रीरिषभजिणंद जुहारी; अंति: वार भलो गुरुवारो जी, गाथा-७. ८११७७. (+) आदिजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,ले.स्थल. खोडग्राम (सीरोह, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ४४३४). आदिजिन स्तवन-श–जयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिजिनं वंदे गुणसदनं; __ अंति: मुखानि सततं सुखानि, श्लोक-६. आदिजिन स्तवन-शत्रंजयतीर्थमंडन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहं आदिजिनं वंदे हं; अंति: लोकने सुखने विस्तारो. ८११७८. कामदेवश्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०, १२४२९). कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्र प्रसंसी; अंति: प्रकास सावक सीवीरना, गाथा-१७. ८११७९ (4) अढारसगपण व सातव्यसन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४३९). १. पे. नाम. अढारसगपण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १८ नातरा सज्झाय, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रंगि साधु वयण सुणेवए, गाथा-३९, (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सातव्यसन सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही हो सांभल; अंति: आणंदजी कहे करजोडि रे, गाथा-११. ८११८०. सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, ११४३८). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: उदयरत्न० सुखसंपदा ए,गाथा-१७. ८११८१ (+#) विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४५८-६०). विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पाणीयं भिकोड खडखायते, (पू.वि. मनमंकड दोहा अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८११८२. (+) तेरढालिया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१५(१ से १५)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: तेरढाल., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, ८x२७). साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१०, गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-११, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८११८३. (+) पुंडरीकगिरि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १६४३५). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय पणमी रे जिनवरनइ; अंति: परइ साधुकीरति इम कहइ, ढाल-३, गाथा-१३. ८११८४.(-) साधुगुण सज्झाय व तेरकाठिया नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४११.५, १३४३०). १.पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: ग्रीस्म तापनं द्वह; अंति: जुग जाचा सब सारि, गाथा-११. २. पे. नाम. १३ काठिया नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जुवा, आलस, शोक, भय; अंति: निद्रा, मद, मोह. ८११८५ (+) स्तवन व होरी संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४४४). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सुण सुण सेजगिर; अंति: श्रीजिनभक्तिसुरंदा, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, प. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी-चिंतामणी, मु. जिनलाभ, पुहि., पद्य, आदि: ऐसे खेलीय होरी जिनम; अंति: जिनलाभ०खेलत भवजल पार, गाथा-४. ३. पे. नाम, नेमिजिन धमाल, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: नित नित प्रणमीजै; अंति: गति नगर को सार्थवाह, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन होरी, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: होरी खेलियै नर बहुर; अंति: वारी भवभव पातिक जाय, गाथा-४. ८११८६ (+-) गौतमस्वामी मंत्र जाप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२४४११.५, १०४३३). गौतमस्वामी मंत्र-यंत्र जापविधि सहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ भगवो गोयमसामिस्स; अंति: वरस १ लाभ होवे सही, (वि. यंत्र सहित) ८११८७. चतुर्विंशति बहिर्लिपिका स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १८४४२). २४ जिन बहिर्लिपिका स्तवन-प्रहेलिकाबद्ध, मु. सकलकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७०५, आदि: श्रीपरमेसर पाय नमी; अंति: कुसल सकल सरीर ए, गाथा-२०. ८११८८. जीववैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जयपुर, जैदे., (२५४११, १२४१३-३६). औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीजिणवर इम उपदिसै; अंति: इम भणै रूपचंद रे, गाथा-२१. ८११८९ औपदेशिक कवित्त व मनभमरानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., जैदे., (२४४११, १४४४०). १.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: कामनी मन वलखी फरै, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, मनभमरा सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भल मन भमरा रे कांइ; अंति: लेसो साहिब हाथ, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ८११९० (१) आषाढभूति चोढालियो व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ४-३ (१ से ३) १, कुल पे. २. ले. स्थल. अंजार, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५१२.५, १६३२). १. पे नाम. आषाढभूति घोढालिओ, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. , संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि चौडालियो, मु. माल, मा.गु., पद्म, वि. १८३०, आदि (-); अंति: मालमुनी हितकार, डाल-४, (पू.वि. डाल-४, गाधा ३ से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४आ, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि दोय करजोडीने वीनवु; अंति: दुधमाहे साकर भेलो रे, गाथा-४. ८११९१. (*) रथनेमिराजिमती पंचडालियो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी रहनेमी, संशोधित. दे., (२५X१२.५, १५X३९). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंतसिद्धने उवज्झा; अंति: रायचंदजी कीनी जोड हो, ढाल ५. ८११९२. (+) रोहानी ढाल, संपूर्ण, वि. १८८७, कार्तिक शुक्ल, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. सा. केसर (गुरु सा. ऊदाजी, पार्श्वसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : रोहानो, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., जैदे., (२५X१३, १४४२). रोहणकुमार सप्तढालियो, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि श्रीआदिनाथ प्रणमु अंति: सबलदास ० सेवकाल में, ढाल - ७, गाथा - ९१. • ८११९३. जीवना १४ भेद व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., ( २४४१०.५, ११४३०-३२). १. पे नाम. जीवना १४ भेद, पृ. १आ-४अ संपूर्ण. ४६५ १४ भेद- जीव के, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना १४ भेद तेमा; अंति: दावानल अगनी समान छे. २. पे. नाम. बोल संग्रह, पू. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४४ बोल-छकाय अवगाहना, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले सुषम नीगोद; अंति: (-), (पू.वि. २३वां बोल अपूर्ण तक है.) ८११९४.(+) आदिजिनविनती स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., जैवे. (२४४११.५. ७X२९). " आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि पहिलो पणमिव देव अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा २२. - आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित टवार्थ, मा.गु. गद्य, आदि मांगलिक्व भणि प्रथम; विजयतिलकनी पाय. ८११९५ (१) लघुसंग्रहणी बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२४४११.५, १०×१०-३५). लघुसंग्रहणी यंत्र, पं. सुमतिवर्द्धन, रा. को.. आदि १ खंड द्वार जंबू अति योजन पृथ्वी में छे " ८११९६. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में प्रतिलेखक "गणि कांतिविजय लिखतं" के ऊपर "कल्याणमस्तु श्रीरस्तु" लिख दिया गया है., संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. जैवे. (२४.५x१०.५. १३५०). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिण पमुह चउवीस; अंति: पासचंदे० आणंदे संथुआ, ढाल-७, गाथा-८७. ८१९९७, (+) वीरजिन स्तवन चौडालियो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : महावीर, संशोधित, जैदे., (२५x१०.५, ११४३०). For Private and Personal Use Only महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुल उपना; अंति: कीयो दिवाली रात ए, ढाल ४, गाथा - ६३. ८११९८. चार ध्यानभेद विचार, संपूर्ण, वि. १८९०, चैत्र कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. प्रतिलेखन स्थल अस्पष्ट है., जैदे., (२३.५X११, २४X५५). औपपातिकसूत्र- हिस्सा सूत्र- २०गत ध्यानसूत्र, प्रा., पद्य, आदि से किं तं झाणे झाणे; अंति: ज्झाणे सेत्तं झाणे. Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपपातिकसूत्र-हिस्सा सूत्र-२०गत ध्यानसूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ध्यानना च्यार भेद; अंति: एहवी भावना भावइ तो. ८११९९ (+) अजितशांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११.५, ८x२०-३०). अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: श्रीमेरुनंदन उवझाय ए, गाथा-३२. ८१२०० (+) अंतसमाधि विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-४(१,३ से ४,६)-४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, १४४२८). ____ अंतसमाधि विचार, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठांश "पर्याय का चरित्र सो आंख्या देखता रही" से "बिषै घणो ही ठगार्यो ताही करि भव भव" तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ८१२०१ (+#) मणीभद्र छंद, संपूर्ण, वि. १८४५, भाद्रपद शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मोसमाबाद, प्रले. मु. चांपसी ऋषि (गुरु मु. सुंदरजी ऋषि); गुपि. मु. सुंदरजी ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह ऋषि); गुभा.पं. राजसी ऋषि (गुरु पं. धर्मसी ऋषि); मु. संघजी ऋषि (परंपरा मु. धर्मसिंह ऋषि); गुपि.म. धर्मसिंह ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १३४३६-४०). माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाय; अंति: वीर आपो मुज सुखसंपदा, गाथा-४०. ८१२०२. केसरीयानाथजी लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: रिष लावणी, दे., (२४४१२, १६४३६-४०). आदिजिन छंद-धुलेवा मंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आदि करन आदि जगत आदि; अंति: दीपविजय० सब कीरत कहे, गाथा-६३. ८१२०३. (+#) रोहणीतप विषयै गर्भित स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. विवेक कवि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १३४२५-२८). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज; अंति: रोहिणीतपगुण गाईया, ढाल-६, गाथा-३१. ८१२०४ (+) सिवपुर सज्झाय, औपदेशिक सज्झाय व सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: फुटकरत, संशोधित., दे., (२५४१०.५, १२४२८-३२). १.पे. नाम. सिवपूर सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामी पुछा करै; अंति: पामो सुख अथाग हो, गाथा-१६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: प्यारो मोहनगारो राज; अंति: निश्चल पद निरवांणि, गाथा-१२. ३. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन क्षेत्रविदेह; अंति: किरपा आपरी रे लाल, गाथा-७. ८१२०५ (+) कंसकृष्णविवरण लावणी, संपूर्ण, वि. १९७५, कार्तिक कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. हुंडी: गाफल, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२४४१२.५, १५४३८-४२). कंसकृष्ण विवरण लावणी, म. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गाफल मत रहे रे मेरी; अंति: विनयचंद० मनही आणंदे, ढाल-२७, गाथा-४३. ८१२०६. बीजेकवरजीरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४५, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल, बीकानेर, प्र.वि. हुंडी: बीजेक०, दे., (२४.५४१२, १४४३५-३८). विजयकवरजीरी सज्झाय, मु. डामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: आदिनाथ आदेसरो सकल; अंति: जो पालो वीर मझार, ढाल-४. For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४६७ ८१२०७. (+) कनकध्वजराजानी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४११.५, १६४३२-३६). कनकध्वजराजा रास, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९२३, आदि: अजोध्या नगरी तणो सरे; अंति: मुनी हु वाछे ___मोटका, गाथा-६४. ८१२०८. (#) चेलणा चरित्र, संपूर्ण, वि.२०वी, मध्यम, पृ. ३, पठ.सा. इमृताजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: चेलणाच०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, २१४४५-४८). चेलणासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: तापस कहे सुण श्रेणिक; अंति: मरे ओषधनो स्यौ जोर, ढाल-९. ८१२०९ चौतीस वस्तुमर्यादा आदि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी: चौतीस., दे., (२४४१२, १६-१९४२७-३०). १. पे. नाम. ३४ वस्तुमर्यादा बोल, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ३४ वस्त मर्यादा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गतिने बंध करे, (पू.वि. ११वीं वस्तु अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ३४ जिनातिशय विचार, प. ३आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रोम नख केस असोभनीक; अंति: नवो रोग उपजे नहीं. ३. पे. नाम, ३४ असज्झाय काल, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ३४ असज्झाय काल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उकावाए१ गजीए२ बीजीए३; अंति: अर्द्धरात्री३४. ४. पे. नाम, ३४ असज्झाय सवैया, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. म. लालचंद ऋषि, मा.गु., प+ग., आदि: १ तारो ट्रे १ पोहर; अंति: विघन नहीं व्यापे कोय. ८१२१० मेतार्यमुनि कथा व समभाव विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: जंबूचरित्रपत्र., जैदे., (२५४११.५, १५४४५-४८). १. पे. नाम. मेतार्यमुनि कथा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: साकेतनपुर पाटण ने; अंति: वीजे पणि खिमा करवी. २. पे. नाम. समभाव विचार सह टबार्थ, पृ. ३अ, संपूर्ण. समभाव विचार, प्रा., गद्य, आदि: जो चंदणेण बाहू; अंति: तत्थ समं भावा. समभाव विचार-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: जे कोईक भगति बाव; अंति: मित्र सरखा जाणवा. ८१२११ (+) नवतत्त्व रूपीअरूपी एवं मिश्र बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३२-३६). नवतत्त्व प्रकरण-रूपीअरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्त्व मांहि रूपी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ५१वें बोल तक लिखा है.) ८१२१२. सारसिखामण रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी: सारसीषामणपत्र, जैदे., (२५४१०.५, १८४४२-४५). सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५४८, आदि: जीराउलि पासनाहप्रभु; अंति: ते सही शिवसुख लहे, गाथा-११२. ८१२१३. (+) नवकार महिमा, कलुकाल सज्झाय व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १५-१८४४०-४५). १.पे. नाम. पंचपरमेष्ठि नोकार महिमा, पृ.१आ-३अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र महिमा पद, पुहि., पद्य, आदि: गुरदेव के चरणारवंदु; अंति: में यो सर्णागतं, गाथा-६०. २. पे. नाम. कलुकालकी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कलिकाल, पुहिं., पद्य, आदि: नित उठी गामें जावै; अंति: दुख जन्म जंजाल, गाथा-९. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाभिकुलगुरु कुल नभ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ८१२१४. (+#) काया सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२४३२-३५). For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोयो प्राणी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र ___नहीं हैं., गाथा-७० अपूर्ण तक है.) ८१२१५. सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६७, चैत्र कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्रले. वंशराम आंबाभाई खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: गजसु०, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५४११, १५४४०-४४). १.पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: कहे माता कुमार ने; अंति: भवनो पार रे सोभागी, गाथा-३३. २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. दलपतराम डाह्याभाई, मा.गु., पद्य, आदि: जाय छे जगत चाल्यु; अंति: दलपतरामे रे, गाथा-१२. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. दलपतराम डाह्याभाई, मा.गु., पद्य, आदि: चेतो तो चेतावू; अंति: दलपते दीधुं कथी रे, गाथा-१२. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नश्वर काया, दलपतराम डाह्याभाई, मा.गु., पद्य, आदि: तेने तुंगणे छे तारु; अंति: दलपत० शु उचारु रे, गाथा-१२. ५.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्य, क. पीतांबरदास, पुहिं., पद्य, आदि: अब तो मनवा मेरा मेलि; अंति: संतन को ध्यान ध्यान, गाथा-४. ८१२१६. (+) चौदसतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२.५, १५४२९). चतुर्दशीतिथितप स्तवन, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: चौदश तप कर भावसुं; अंति: उतारे पार लाल रे, गाथा-११. ८१२१८. ज्ञानपद पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्रांक नहीं है., दे., (२५.५४११.५, १०x२२-२६). ज्ञानपद पूजा, मा.गु., प+ग., आदि: ज्ञान स्वभाव जे जीवन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८१२१९ (#) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि.१६४४, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १८-२२४५५-५८). बोल संग्रह, मा.ग., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीय ३०; अंति: सप्तम नरके १२. ८१२२० (#) ज्ञानपंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ९४२२-२६). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, गच्छा. विशालसोमसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि जिणेसर प्रणमी; अंति: सोभाग घणउ विस्तरिउ, गाथा-७. ८१२२१. चौमासीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, ३६-४०-८-२२). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम वंदित्तुसूत्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खामणासूत्र अपूर्ण तक लिखा है.) ८१२२२. पार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५४११.५, ६x४५-४८). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: इम गावे धरमसी सुजगीस, ढाल-४, गाथा-३४, (पू.वि. ढाल-४, गाथा-३१ अपूर्ण से है.) ८१२२३ (#) मेवाड छंद व व्यापार मुर्हत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२४४२-४५). १. पे. नाम. मेवाड छंद, पृ. ५अ, संपूर्ण. मेवाडदेशवर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., पद्य, वि. १८१४, आदि: मन धरी माता भारती; अंति: सो रहेज्यो चिर नंद, गाथा-१२. २. पे. नाम, व्यापार मुर्हत, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४६९ महत संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१२२४. (#) औपदेशिक सज्झाय व ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, ११४४२-४८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, क. सभट कवि, रा., पद्य, आदि: घरथी निसरता थका; अंति: भटी हुइ थोड़ी सी राम, गाथा-१८. २. पे. नाम. ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.ग., गद्य, आदि: ब्रह्मदत्त चक्रवर्त; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ११ लाख ४६ हजार ९ सौ २५ पल्योपम दुख भोगने क वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ८१२२५ (+#) नवतत्त्व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १८४३६-३९). नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आत्मा द्रव्य आत्मा १; अंति: ग्यान दरसण चारित्र, संपूर्ण. ८१२२६. बोल विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११.५, १५४३७-४०). १.पे. नाम. भावसंग्राम के १७ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. १७ बोल-भावसंग्राम, मा.गु., गद्य, आदि: १जीवरूपीयो राजा; अंति: एटले मुगते जाए. २.पे. नाम. १० नक्षत्रज्ञान बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ मृगसिर नक्षत्र; अंति: कह्या छे. ३. पे. नाम. समकित के ९ भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व के ९ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य सम्यक्त१ भाव; अंति: ९ दीपकसमकीत्व. ८१२२७. मृगापत्र चौढालिया व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७०१, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १४४३२-३६). १. पे. नाम. मृगापुत्र चौढालिया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुगृहीपुर राय बलभद्र; अंति: ब्रह्मउ तस गुण गावइ, ढाल-४, गाथा-१६. २.पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ लघस्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पा. कमललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणि पासजी; अंति: कमललाभ० लाल जसोइ, गाथा-५. ८१२२८. (#) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३२-३६). १. पे. नाम. वरकाणापार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय श्रीजिनराय; अंति: शिवचंद० सार्या रे, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आस फली रे जिनराज निज; अंति: भाजै भवनो खेलो रे, गाथा-७. ३. पे. नाम, लोद्रपुरा पार्श्वनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत-लोद्रवपुर, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: आज आस फली चिंतामणि; अंति: ___ जिनचंद्र० फलीया, गाथा-११. ८१२२९. वंदितुसूत्र व श्रृंगाररस कुंडलिया, अपूर्ण, वि. १८६६, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्रले.पं. रुपसागर; पठ.पं. उमेद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक के द्वारा "उतावले लख्यु छे" ऐसा लिखा है., जैदे., (२४.५४११.५, १४-३०४२२-४०). १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है., वि. सूत्रारंभ संकेतमात्र है.) For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. शृंगाररस कुंडलिया, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मार पडी हे तलहटी; अंति: संदरी सोल बरस की, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलिया, पृ. २आ, संपूर्ण. क. गिरधर, पहिं., पद्य, आदि: पानी बाधे नाव में; अंति: गिरधर० पर रखीइं पानी, दोहा-१, (वि. दोहा क्रमांक क्रमशः है.) ४. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलिया, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदशिक कुंडलिया, क. दिन, पुहिं., पद्य, आदि: धुरे नगारा कुंच का; अंति: कुंच का धरे नगारा, दोहा-१. ८१२३० (4) थोकडा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १५४३२-३५). भगवतीसूत्र-थोकडा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: गौतमस्वामी हाथजोडी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "गोएमा जोगी जोगी सारे मोख जासी" पाठांश तक लिखा है.) ८१२३१. ज्ञानप्रकाश, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी: ग्यान प्र., दे., (२५४१२, १६४३२-३६). ज्ञानप्रकाश, क. नंदलाल, पुहि., पद्य, वि. १९०६, आदिः (१)वद्धमाण नमो किच्चा, (२)मिथ्यादिष्टी जीव की; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्कंद-१, कांड-१ व गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ८१२३२ (4) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी: महाव, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४३७-४०). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुल उपना; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८१२३३. दानशीलतपभावना कुलक व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. समाना नगर, जैदे., (२५४११.५, १४४३६-४०). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दानशीलतपभावना कुलक, म. अशोकमनि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: हियं सूरि खमंतु मेणं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१२३४. नेमिनाथ स्तवन व साधु वंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १६४३६-४०). १. पे. नाम. नेमनाथजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जी प्रभु नेमजी नंद; अंति: नीसतरे जी जिनराज. २. पे. नाम. साधुवंदना लघु, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोविसी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ८१२३५ (+) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी: चंदचरि, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३५-४०). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८१२३६. मृगावती कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३२-१३१(१ से १३१)=१, जैदे., (२४.५४१२, १२४२७-३२). मगावतीसती कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गुरु पर क्रोध न करने की शिक्षा का वर्णन अपूर्ण से मृगावती के केवलज्ञान प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ८१२३७. पद्मावती आराधना व औपदेशिक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १४४१८-२२). १. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३४. २.पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७१ नामा हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८१२३८ (+) औपदेशिक सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४४२-४५). औपदेशिक सवैया संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), सवैया-२५, (संपूर्ण, वि. जैन-जैनेतर विभिन्न विद्वानों की छुटक कृतियाँ संकलित हैं.) ८१२३९ विजयजिनेंद्रसरि गंहली, औपदेशिक पद व गुरुगण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, १४४३६-४०). १. पे. नाम. विजयजिनेंद्रसूरि गंहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनेंद्रसूरि गहुँली, मु. जिनेंद्रसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: गामनगर पुर विचरता; अंति: कहे चंद० गुरुगुण खाण, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-गुरुमहिमा, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु मरे वरख वचन; अंति: सुख सहजसु भाव फली, गाथा-४. ३. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मोहनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर बेठा पाटीये; अंति: वांद अणगार वाला जी, गाथा-७. ८१२४० (#) सज्झाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १३४३५-३८). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-आत्मशिक्षा, मु. चैनराम, पुहिं., पद्य, आदि: क्यूं जिन नाम; अंति: जिसे भार्यो रे मन, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-गुरुगुण महिमा, मु. चैनराम, पुहिं., पद्य, आदि: वरखत वचन झरी हो; अंति: सुख सहज सुभाव फली हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजी जो तुम तारक; अंति: बाहि गहे की निवईये, गाथा-४. ४. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तवन, म. हरख, रा., पद्य, आदि: काई हठ मांड्यौ; अंति: थांनै मुगतनौ वास, गाथा-५. ५. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-जीवोत्पत्ति, मा.गु., पद्य, आदि: ता प्रभु कु विसार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८१२४१. (4) पार्श्व व संभवजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १२४२०-२४). १. पे. नाम. गोडीजीपार्श्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीपुरमंडण; अंति: क्षमाकल्याण सवाई हो, गाथा-७. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. उदयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दया रे श्रीसंभव जिनन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) ८१२४२. गौतमपृच्छा दृष्टांत कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३-५२(१ से ५२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४४११,१२४३२-३६). गौतमपृच्छा-कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पृच्छा-३२ व ३३ की कथा अपूर्ण है.) ८१२४३. आलोयणा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १०x४०-४३). आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: देववंदन अकरणे एकासणा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'अणागल पाणी' तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८१२४४. अनंतवीर्य, सरप्रभ व विशालजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १२४३२-३६). १. पे. नाम. अनंतवीर्यजिन स्तवन, पृ.५अ, संपूर्ण. मु. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: केवल दरिसण ज्ञान मे; अंति: अनंतविरज० ताहरी जी, गाथा-५. २. पे. नाम. सुरप्रभजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. म. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: मुज मन प्यारी हो; अंति: साहा जी लाधो गुण गाय, गाथा-५. ३. पे. नाम, विशालजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. श्राव. लाधो साह, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू ताहरी सहज परिण; अंति: जिम पामीये भवपार रे, गाथा-५. ८१२४५. दिनमान घडी व नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३२-३६). १. पे. नाम, दिनमान घडी, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. सारिणीयुक्त) २.पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.ग., पद्य, वि. १८४१, आदि: श्रीनेमिसर चरणजुग; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८१२४६. (#) नवकारमंत्र सवैया संग्रह व पच्चक्खाण गाथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: सतु., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, २०४३७). १.पे. नाम. नवकारमंत्र सवैया, प. २अ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सवैया, श्राव. विनोदीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: जप्या से सिवपुर जाईए, सवैया-५. २. पे. नाम. नवकारमंत्र सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सवैया, मु. लालचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: नमो अरिहंत नमो सीध; अंति: लालचंद० गुण गाऊंगा, सवैया-५. ३. पे. नाम, पच्चक्खाण गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण पारणक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पालियं१ फासीयं२; अंति: मिच्छामी दक्कडं११, गाथा-१. ८१२४७. सुमतिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १४४३२-३५). सुमतिजिन पद, पुहिं., पद्य, वि. १७४३, आदि: प्रथम ही सुमती जीणेस; अंति: लाल विनोदी गारी छे, गाथा-१९. ८१२४८. स्तवनचौवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: चौवीसीप, जैदे., (२६.५४१२, १२४४३). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुविधिजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण से नेमिजिन स्तवन गाथा-३ अपर्ण तक है.) ८१२४९. प्रायश्चित विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४११, १५४२८-३२). आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान आशातनाइ जघन्य; अंति: (-), (पू.वि. पाठांश "कामणवसीकरावै ३५ जंत्रकरावै ३१ सरदहतला" तक है.) ८१२५०. साधुपद व धन्नाअणगार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२, १५४४५). १.पे. नाम. समगत सोली, पृ. २अ, संपूर्ण. साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: समताधारी सुधमतीजी; अंति: सेव्या पावै सिध, गाथा-१६. २. पे. नाम. धन्नाऋषि सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. तिलोकसी-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: अमीय समाणी मोरा नंदन; अंति: या हे मनमांहे __ गहगही, गाथा-२१, संपूर्ण.. ८१२५१. मल्लिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५७, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. म. लाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी: मल्लीनाथ., दे., (२४.५४१२.५, १२४३६-४०). For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४७३ मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन शुद्ध; अंति: धरमराग मन मे धरी, ढाल-५, गाथा-४१. ८१२५२. तीर्थंकरवरसीदान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. श्राव. परसोत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२.५, १२४२६). जिनवरसीदान स्तवन, मु. लब्धिअमर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवरदाइने चरण; अंति: लब्धी० वंछित पाया रे, गाथा-२८. ८१२५३. पार्श्वनाथजीरो सिलोको, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२४.५४१२, १४४४२-४५). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल; अंति: चवदे राज रो अंतरजामी, गाथा-५७. ८१२५४. अइमुत्तामुनि चोढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, जैदे., (२५४११.५, १६४३८-४२). अइमत्तामुनि चौढालियो, मु. रत्नचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गणहर गोयम सामंते; अंति: तो छिनमें एकड मंगाउं, ढाल-४, (प.वि. ढाल-४ की गाथा-२ अपूर्ण से दहा-६ अपूर्ण तक नहीं है.) ८१२५५. (#) भावपूजा स्तवन व जंबुस्वामीनुं चोढालियुं, संपूर्ण, वि. १८९७, फाल्गुन शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. नेकनाम, पठ. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल के विषय में प्रतिलेखक ने 'सोरठदेशे नेकनाम ग्रामे' लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १५४३२-३६). १.पे. नाम. भावपूजा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत गुरुदेव प्रणमी; अंति: भवोभव वांछु रे सेव, गाथा-७. २. पे. नाम. जंबूस्वामीनुं चौढालीयु, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीगुरु पदपंकज नमी; अंति: गंगमुनि० ते सुख लहे, ढाल-४, गाथा-४७.। ८१२५६. (#) सौभाग्यपंचमी स्तवन व अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, कल पे. २, प्र.वि. पत्रांक-१४३=१ प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है, अतः पत्रांक अनुमानित दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४४२-४५). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे गुणि, ढाल-६, गाथा-४९. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे __ घणु, ढाल-२, गाथा-२४. ८१२५८. (+) गणधरवाद वर्णन, संपूर्ण, वि. १८२८, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सोपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, २०४५२-५५). गणधरवाद, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेव केवल; अंति: थाकता देवलोकै गया. ८१२५९ मेघकुमार चौढालीयो व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८-४२). १. पे. नाम. मेघकुमार चौढालियो, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मेघकुमार चौढालिया, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरना रे चरण; अंति: रे चको आणा माग रे, ढाल-४. २.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: समजबीयै नवसोलमै; अंति: बैद च्यार पच वांण, गाथा-२. ८१२६१. (4) चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. पालीतणा, प्रले. मु. गणेशविजय; पठ. मु. मुनरूप; ग. हितविमल; लिख.पं. धीरविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: चैत्यवंदन., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, ९४२२-२५). १.पे. नाम. ज्ञानबहमान नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सकल वस्तु प्रतिभासभा; अंति: भविकजन पामो परमानंद, गाथा-६. २.पे. नाम, मौनएकादशी नमस्कार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व चैत्यवंदन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: तिहुअण जिण आणंदकंद; अंति: देवचंद० मनवंछित सीझे, गाथा-५. ३. पे. नाम, पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: जय जिणवर जय जगह नाह; अंति: देवचंद० सनाह जगभाण, गाथा-४. ४. पे. नाम. विहरमानजिन नमस्कार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जन आणंद; अंति: देवचंद्र० रस गहिये, गाथा-४. ८१२६२ (+) नवपदक्षमाश्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १३४३५-३८). नवपद खमासण विचार, पुहि.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पदै; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., छठे पद की विधि अपूर्ण तक है.) ८१२६३. महापद्मचक्रवर्ति को चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४१२, १७X४२-४५). महापद्मचक्रवर्ती चौढालिया, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १९०८, आदि: प्रणमुंआद जुगाद; अंति: लाभ होसी सहु भणी, ढाल-४. ८१२६४. () विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १३४२०). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. स्तवन-१० गाथा-२ अपूर्ण से स्तवन-११ तक है.) ८१२६५ (+#) वृद्धिशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. हेतवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३, ११४२७-३०). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ३ उत्सर्पिणी आदि काल प्रकार विचार, सं., गद्य, मपू., (कालस्त्रिविधः), ७८८७९-२(+) ४ ध्यानवर्णन श्लोक संग्रह, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (राज्योपभोगशयनासनवाहन), ७८०६२-२(+#) ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), ७७७३७-२(+) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), ७८४९६-१(+#), ७८५१९-१(+) (२) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भवभयहरण तरणतारण), ७८४९६-१(+#), ७८५१९-१(+) ५ वादी चर्चा, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, श्वे., वै., (पंचांधागजमीक्षणार्थ),७९९६०-१(+) ५ समवाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (काल सभाव नियति पुव्व), ७८९७४-३(+#) ५ स्थावर वर्णविचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथवीकायनो वर्ण नीलौ), ७८६९४-१(+) ६ संघयण नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (वज्रऋषभनाराच१ ऋषभ), ७७७०७-१(+) ६ संस्थान नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (समचौरस १ न्यग्रोध २), ७७७०७-२(+) ७ नयनाम श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (नैगमः१ संग्रहश्चैव२),७९६०२-५ ७ निह्नव गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (बयर जमालि पभवा),७८७४५-२ (२)७निह्नव गाथा-दृष्टांतकथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम जमाली कुंडपुर),७८७४५-२ ७ व्यसन निवारणश्लोक संग्रह, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (जुवं च मासं च सुरा), ८१०२४-२(+#) ८ गुणदोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.,सं., गा. १५, पद्य, मूपू., (क्षुद्रो लोभ रति), ७८१३५(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, गा. ६६, वि. १७२४, पद्य, मूप., (गंगा मागध क्षीरनिधि), ७९३९६-१ ८ प्रकारीपूजा कथा संग्रह, प्रा., कथा. ८, ग्रं. १२००, पद्य, मप., (पणमह तं नाभिसुयं), ७८२७१(+$) ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (विमलकेवलभासनभास्कर),७९७५८-२(+) ९निधान स्वरूप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (निधान माहे जयवंता), ८०४३६-२(+) ९निधानादि विचार गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नवजोयण विच्छिन्ना), ८०४३६-४(+) १० आभरण नाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., इतर, (अंगुलिमुद्दा१ नूवर२), ७८१७४-६(+) १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., ग्रं.११३, प+ग., मपू., (उवसग्ग १ गब्भहरणं २), ७८५७६(+$), ७९८३५(+), ८०९१३, ७९०४८(६) १० नपुंसकभेद विचार, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (महिलासहावो सरवन्नभेउ), ७८३७७-५ १० प्रत्याख्यान तप गणणु विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीसमकीतपारंगताय नम), ८०९११ १० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (नवकार पोरसीए पुरमड्ढ), ७९०२८-३(+) १० श्रावक कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (वाणियगामपुरम्मि आणंद), ७९०५५-२ ११ उपदेश बोल, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (१ विधवादोपदेस २), ७८३०७-१, ७९०९९ ११ प्रतिमा तपोच्चार विधि, प्रा.,मा.ग., गद्य, मपू., (तिहां प्रथम शुद्ध),७८७८९ १२ पर्षदा स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (आग्नेयां गणभृद्विमान), ७९७४५-२ (२) १२ पर्षदा स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अग्निकूणे गणधर विमान), ७९७४५-२ १४ रत्ननाम श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (लक्ष्मी कौस्तुभ), ८००४२-३(2) १४ विद्या नाम, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (षडांगी६ वेद चत्वारि४), ८००४२-२(#) १५ प्रश्नोत्तर जैनसिद्धांतसंबद्ध-स्थानकवासीमत, मु. धर्मसी, प्रा.,मा.गु., गद्य, स्था., (केतलाक इम कहे छे जे), ७९२१२(5) १५ सिद्धभेद उदाहरण गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (जिणसिद्धा अरिहंता),७८०७१-२(+) १५ सिद्धभेद गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (गिहलिंग सिद्धभरहो), ७९६०२-१ १५ सिद्धभेद गाथा, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (जिण अजिण तिथ तिथा), ७८६४१-२(+#) परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ १७ भेदी पूजा, मु. जीतचंद, मा.गु.,सं., पूजा. १७, गा. २८, प+ग., मूपू., (जिनतनु निर सुगंधसुं), ७९७८८(+#) १८ नात्रा नाम, सं., गद्य, श्वे., (बालक: १. भ्रात एवक),७९१७६-२(क) १८ भार वनस्पति मान, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (३८ अडत्रीस कोडि ११),७८८९१-२ १८ हजार शीलांगरथ, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मप., (जे नो करंति मणसा), ७९४२४-३(+) १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., गा. १८, पद्य, मप., (जे नो करंति मणसा),८०१४३-२(६) (२) १८ हजार शीलांगरथ-बालावबोध, रा., गद्य, मपू., (एक पृथ्वीकायरा आरंभ),७९४२४-३(+) २० असमाधिस्थान गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दवदवचारि १ अपमज्जिय),७८७३५-१ २० विहरमानजिनलंछन गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (वसह १ गय २ हरिण), ७८८६२-२(2) २० विहरमान जिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, स्पू., (द्वीपेत्र सीमंधर), ८०५८०-२(+#) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (--), ७९६१८-१(+$) २० विहरमानजिन स्तवन, प्रा., गा. ४, पद्य, पू., (सीमंधरो जुगंधर बाहु), ८००२०-२ २० विहरमानजिन स्तुति, सं., श्लो. ७, पद्य, म्पू., (महाविदेहावनिमंडलश्री), ८००२०-१ २० विहारमानजिन विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (हिवे वीस विहरमान), ८०६७५-४(+#) २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ७९०७२ २० स्थानकतप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ७७८२०-५(+) २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (१ नमो अरिहंताणं २०००), ७९९७३ २१ बोल-सबल दोष, प्रा., गद्य, मपू., (हत्थकम्म करेमाणे सबल), ७८७३५-२, ७८८७५-३ २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ७८३९६(+), ७७८७९(६), ७८०५४ १(5) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (पांच उंबर वड१ पीपल२), ७८१०९(+$) २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचुंबर चउविगई हिम), ७८३७७-३,७८६३७-२ २२ परिषह उदयहेतुभूत कर्म विचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (पंचेव अणुपुव्वी चिरि), ८०८१५-२(+) २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, मपू., (खुहा पिवासा सीत उण्ह), ८१०६७-१(६) २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेव आषाढ वदि४), ७८८४३-१(+), ८०३५१, ८१०१८-१ २४ जिन चैत्यवंदन, सं.,प्रा., श्लो. २९, पद्य, मप., (स्वर्णवर्णं गजराजगाम), ८०८५५-४(#$) २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ८, वि. १४वी, पद्य, मूप., (जिनर्षभ प्रीणितभव्य), ७९९३७-४ २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ नमो जिनेंद्रस्य), ७८६५३(+) २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (सुरकिन्नरनागनरेंद्र), ७७९८३ २४ जिन स्तोत्र, ग. संघविजय, सं., श्लो. २९, पद्य, मप., (वृषभलांछन लांछित), ८०३३१-१(+#) २४ जिन स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, मप., (जिनाअतिताखरुबत्तीमान), ७७८८५-२ २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (आदौ नेमिजिनं नौमि),७९०३२-२(+#),७८४१३-१, ७९९२६-१, ८१०४८-१,७८१४५-२(2) २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, मु. नेतृसिंह कवि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (वंदे धर्मजिनं सदा), ७७८८६-४(+#) २४ दंडक द्वार गाथा, प्रा., पद्य, मपू., (नेरइया असुराई पुढवाई), ७८८८१-३(#$) २५ आवश्यक गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, पू., (दोवणयमहाजायं), ७७९३२(+) (२) २५ आवश्यक गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (बे वार नीचो नमिवो ते), ७७९३२(+$) २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, म्पू., (--), ७७८६४-१(+#$) (२) २८ लब्धिविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--),७७८६४-१(+#$) (२) २८ लब्धिविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७७८६४-१(+#$) ३२ अनंतकाय गाथा, पुहि.,प्रा., गा. ५, पद्य, मप., (सर्वकंदजाति सूरणकंद),७८३७७-२ For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ४७७ ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (सव्वाउ कंदजाई सूरण), ७८६३७-३ ३५ जिनवाणीगुण वर्णन, मा.गु.,सं., अंक. ३५, गद्य, मूपू., (संस्कारत्वं संस्कृत), ७९२७५-१(+) ३६ आचार्यगुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (पडिरूवाई चउदस१४ खंती), ७८९४६-५(+#S), ७९६१६-३ ४२ गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहाकम्मु १ देसिअ २), ८००३२-२, ८०८२४, ७९६३४(#) (२) ४२ गोचरी दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आधाकर्मी ते कहीई), ८०८२४, ७९६३४(#), ७८७२३(5) ४५ आगम कुलश्लोक संख्यामान गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पणयालिसं आगम समग्गा), ७९६०२-३ ४७ एषणादोष विचार, सं., गद्य, म्पू., (अत्र प्रथमायां), ८०५२७(६) ५२ जिनालय ओली गणj, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अजुवाले पखवाडे गणवू),७९७२३-४ ५३ क्रिया विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, दि., (गुणवयतवसमपडिमै दाणं), ७९०१०-२(2) ६२ बोल गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, स्पू., (गइ इंदिए काए जोए वेए), ७७५७५ (2) (२) ६२ बोल गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (देवगति मे जीव का भेद), ७७५७५ (#$) ७२ स्वप्न विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (इत्थि वा पुरिसो वा), ७९११३(+) १०८ स्नात्र विधि, मा.गु.,सं., गद्य, पू., (सोपारी १०८ खारिक), ७७५६५-१ १७० जिनस्थानक यंत्र, सं., को., श्वे., (--), ८००४१(+#S) ३६३ पाखंडीभेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (एकसौ असी क्रियावादीन), ७८९७४-४(+#),८११३२ अक्षौहिणीसेना प्रमाण, प्रा., गद्य, मूपू., (पत्तिः द्विपः १ रथः),७७५९१-२(+) अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जियसव्वभयं संत), ७७७०२-१(+$), ८०१८६(+#$), ८०५३२-१(#$), ७७७२१(६), ७७८८०(६), ७८४११(६), ७८४२२(६), ८०१३४-१($) (२) अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मपू., (मंगल कमलाकंद ए सुख), ८११९९(+), ८०३०६, ८०९८४-१ अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूप., (उल्लासिक्कमनक्ख), ८०५३२-२(#) अज्ञात जैन प्राकृत पद्य कृति, प्रा., पद्य, मूपू., (--), ७८२७४(+$) अज्ञात जैन संस्कृत पद्य कति, सं., प+ग., म्पू., (प्रणम्यवीरं जगदेकवीर), ७८३१६(+$) अढीद्वीप ३२ विजयजिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीजयदेवनाथाय),७९७७८ अनंतजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सकलधौतसहासन मेरवस्तव), ८०२९३-२ अनशन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (प्रथम नवकार तीन भणी), ७९९०१ अनत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मप., (तेणं कालेणं० नवमस्स), ७७५७४-१(+s) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, ग्रं. २०८५, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविहं), ८०११४($) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरूप, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., गद्य, मूपू., (सत्तमूलनया पणत्ता तं), ७८०६२-१(+#), ८०३१०(#) (३) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरूप का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (सात नय विषै नैगम), ८०३१०(2) (३) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरूप का टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (सप्तमूलनय जाणवी), ७८०६२-१(+#) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा स्थापनावश्यकसूत्राधिकार, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., गद्य, पू., (कट्ठकमे १ पोत्थकमे २), ८०४३६ (३) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा स्थापनावश्यकसूत्राधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (दस प्रकारे स्थापना), ८०४३६-६(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-प्यालामान विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअनुयोगद्वारसूत्र), ७९४०६($) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-बोल संग्रह-४ प्याला विचार, संबद्ध, पुहिं., गद्य, मूपू., (चार प्याला का नाम), ८०४२६-२(+) (२) साधु १२ उपमा विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८०६५५(६) । अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणिपत्यार्हतः),७७५९७(+$),७८२६५(+#s), ८०५८२(+$), ७९६६१-२(#$) For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-बीजक, सं., गद्य, मूपू., इतर, (नाममाला पीठिका जिनेश), ७९२४१(+#$), ७९६३२(+$) अभिनंदनजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (त्वमशुभान्यभिनंदननंद), ८०२९३-३ अर्हद्दासश्रेष्ठि चरित्र, सं., गद्य, मपू., (अस्मिन् जंबुद्वीपे),७८२०८(+5) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, श्लो. ११७, वि. १२वी-१३वी, पद्य, मूप., (अर्हन्नामापि कर्ण), ७७५८४($) अष्टप्राभृत, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., प्राभृ. ८, गा. ५०३, पद्य, दि., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), प्रतहीन. (२) अष्टप्राभृत-हिस्सा मोक्षप्राभूत, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., गा. १०६, पद्य, दि., (णाणमयं अप्पाणं), ७८४०९(5) (३) अष्टप्राभूत-हिस्सा मोक्षप्राभूत की छाया, सं., गद्य, दि., (--), ७८४०९(६) । अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), ७८६३३-२,७९८०८-३(2) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संप्रात संसारसमुद्र), ७८७०५-२ अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मप., (शांतीशं शांतिकर्ता), ७७६७४(६) अष्टोत्तरी स्नात्र विधि-आगतिक, सं., गद्य, पू., (इहापि सर्वोपि स्नात), ७७५६५-२ असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (महिया जाव पडंति), ७९२४४(+) असनपानखादिमस्वादिमपीढफलसेज्जासंथारादि आदेश सूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छकारी भगवन् फासुए), ७८३३५-३(+#) आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (कप्पइ निग्गंथाण वा), ७८४३६(+$), ८०३०४-२(+) आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग., मूपू., (जे भिक्खू वा भिखूणी), ८०१७१-१(+#), ८०२१६(१), ७७९७३-१(६) आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (नमो अरिहंताणं नमो), ८०१६२-१(+$), ७७५९०-१, ७७९४२ आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (तेणं कालेणं तेणं), ७८३७१(+s) आत्मनिंदाष्टक, आ. जिनप्रभसूरि *, सं., श्लो. १०, पद्य, भूपू., (श्रुत्वा श्रद्धाय), ७८१७१-१ आत्मानुशासन, ग. पार्श्वनाग, सं., श्लो. ७७, वि. १०४२, पद्य, दि., (सकलत्रिभुवनतिलक), ७८४२९-१(६) आत्मोपदेशमाला, प्रा., पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे अणंत), ७८४२९-३($) आदिजिन जन्माभिषेक कलश, अप., गा. १६, पद्य, मपू., (मुक्तालंकार विकार), ८०१०६-१ आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मा.गु., गा. १९, पद्य, मूप., (विणयनयरी विणयनयरी), ७९९१०-१(+$), ८०७१५ आदिजिन स्तवन, मु. विक्रम, मा.गु.,सं., गा. ४, वि. १७२१, पद्य, मपू., (प्रथम आदिजिनंद वंदत), ७९३९५-३ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ६, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (आदिजिनं वंदे गुणसदन), ८११७७(+) (२) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (अहं आदिजिनं वंदे हु), ८११७७(+) आदिजिन स्तुति, मु. दानविजय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (परम सुख विलासी शुद्ध), ७८३५४-९ आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), ८०२९३-१ आदिजिन स्तुति, मु. हर्षसागर, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (जयविभोवृषभोवृषभांकित),७७५६६-३ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमामि जिनेस मुनीस), ७९३९५-२ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरुषंद्राय), ७९४०७-३ आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरमुक्तियहार सुतार), ७८६३३-३, ८००८०-१(2) आदिजिन स्तोत्र, मु. चंद्रकीर्ति, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (नमो ज्योतिमूर्ति), ८०५२०-२ आयुष्यकालज्ञान गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., इतर, (पयभायणमि भरिए पिछइ), ७९१८१-१(#) (२) आयुष्यकालज्ञान गाथा-बालावबोध, मा.गु., पद्य, मूपू., इतर, (सूर्य मेषसंक्रांति), ७९१८१-१(#) आलोचणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (एगेंदियाणं जं कहवी), ७८५४९(+#) आलोचणा रथ, प्रा.,मा.गु., गा. १, प+ग., मूपू., (कय चउसरणो नाणी निअमि), ७९४२४-२(+) आलोचणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., पू., (प्रथम मुहूर्त), ८०३७०(+$) आलोचणा विधि संग्रह, सं., गद्य, मपू., (ज्ञानाशातनायां जघन्य), ७९२२८-२(5) For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ४७९ आलोचना विचार, सं., गद्य, मूपू., (--), ७८३३८(६) । आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मप., (णमो अरहताणं० सव्व), ८१०२६, ७९३८२($) (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मपू., (आभिणिबोहियनाणं), ७९२६९-१(६) (२) आलोचनासूत्र-देवसिप्रतिक्रमणगत, हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (इच्छाकारेण संदेसह),७८१९४,७८४९८(६) (२) पुक्खवरदीवड्ढसूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुक्खरवरदीवड्ढे धायइ), ८०९८३-३ (२) लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (लोगस्स उज्जोअगरे), प्रतहीन. (३) लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (चउद राजलोकमांहि), ८०१४१(६) (२) श्रमण अतिचार, हिस्सा, प्रा.,मा.ग., गद्य, मप., (विशेषतश्चारित्रारी), ८०३८६-१(+#$) (२) संथारापोरसीसूत्र-खरतरगच्छीय, हिस्सा, प्रा., गा. २४, पद्य, मपू., (निसीहि निसीहि निसीहि), ७८५१४-१(+) (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली पुष्कर), ७८५७७-२(१), ८०८५७(4) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्त भगवंत अशरण), ७८५७७-२(#$) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., पद्य, मपू., (एहवो श्रीशांतिनाथ), ८०८५७(2) (२) ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४४, पद्य, मप., (चोवीसइं जिन चीतवीं), ७८३४९, ८०३४९ (२) ६ आवश्यक स्तवन, संबद्ध, मु. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर नमुं), ७८८००-१ (२) १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ७८१८१(+) (३) १४ श्रावकनियम गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचित्त पृथिव्यादि), ७८१८१(+), ७९६८४-२ (२) अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (आजुणा चौपहुर दिवसमाह), ७८८८६-१ (२) आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूप., स्था., (नमो अरिहंताणं० तिखुत), प्रतहीन. (३) आवश्यकसूत्र-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., स्था., (अनुयोगद्वार मध्ये), ७८०९३(+#$) (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, म्पू., (नमो अरिहंताणं नमो), ८०२४९($) (२) इरियावही क्षमापनाभेद, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकीभेद १४ तिर्यंच), ८००१९-१ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १८, पद्य, पू., (इरियावही पडिक्कमशुं), ७७८२१-२ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सकल कुशलदायक अरिहंत), ७९५३७-१ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवीना चरण नमी), ७८५०० (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १९वी, पद्य, मपू., (गुरु सन्मुख रही विनय), ७८५८४, ७८८०० (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम), ७८३२९-१(+) (२) चउक्कसायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (चउक्कसायपडिमलुल्लूरण), ७८३३५-५(+#) (२) चौमासी प्रतिक्रमण विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,रा., प+ग., मप., (इच्छाकारेण चोमासी), ७८५९७-५(+) (२) छमासीतपचितवन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (रे जीव महावीर भगवंत),७८५१४-२(+),७८६७२(६) (२) देवसिप्रतिक्रमण विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,रा., प+ग., मपू., (प्रथम इरियावही पडकमी), ७८५९७-२(+) (२) देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (इच्छामि खमासमणो वंदि), ७८६५०(+) (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ७९३१९(६), ७९३४२(5), ८०४११(६) (३) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार हवओ रागद्वेष), ८०४११(६) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., पू., (नमो अरिहंताणं नमो), ८१०९८-१(-) (२) देवसीराइअ प्रतिक्रमण *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (पहिलै पडिकमणो करती), ७९४५८(+) (२) पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छामि० इरियावहि०), ७९८७५-१(#S) For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग. म्पू, णमो अरिहंताणं० जय), ७९१५०-१(#) (३) श्रावकअतिचार-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि दंसणम्मिअ), ७८४४२ ($) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु. सं., प+ग, म्पू, नमो अरिहंताणं), ७९३२९(+), ७९५९६ (+), ७८२११(#$) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का संक्षिप्त अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमिभंते सामायक), ७८२११(#$) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि, संबद्ध, प्रा., पद्य, म्पू, (कुसमणदुसमणं राइय सोल), ७९१२५१(+), ७९८२४-१(१ (४) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि-टबार्थ, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदेसह), ७९१२५ (१(+) (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), ७८१७०-३(+#) (२) पच्चक्खाण पारने का सूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, म्पू., ( नमुक्कारसी मुसी), ७७६११-१(+) (२) पच्चक्खाणसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (पाणहार दिवसचरिमं पच), प्रतहीन. (३) निरागार-आगार पच्चक्खाण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवि छठउ अध्ययन), ८००४४(+) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु. प+ग, मूपू (मुहपत्तिवंदन), ७७६३५.१(५), ७९१२५-२(*), "" ७९१११, ७९७२४(#), ८०७१३-१(#$), ८१०१३(#), ७९०९५ (5), ८१२२१ ($) (३) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम देवसी पडिकमणो), ७९१२५-२(+), ७९४३६ (३) छींक विचार, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., ( पाखी पडिकमणा करता), ८०९६२ (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहि., प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलो० इच्छाकार), ७९८२४-२(७) (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (देवसी अर्धनु वंदेतु), ७९४६२ (+) (२) पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध प्रा. रा. प+ग. म्पू, (इच्छाकारेण० पाक्षि), ७८५९७-४८) "" יי (२) पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि से, श्लो. ४, पद्य, मूपू (स्नातस्याप्रतिमस्य), ७८८९४-१ (+), ७९६४२-८ (+३), "" ८०१५०-१(०४) ८०५३९, ७८४६३-३(०) (२) पौषध लेवा विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिन उगां पछी प्रथम), ७७७६४-३(+$) (२) ) पौषध व राईप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमी लोगस), ७८७५१-१(+#) (२) पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि पडिकमिइं), ७९९९६-१(+#), ७८४६६-१, ७९४०३-१($) (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु. गद्य, मूपू (प्रथम इरियावही पडिक), ७८०१६-२ (०) ७८४१७(4) ७९०३७(5) " (२) पौषधविधि- अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (रात्रि पिछली घडी २) ७८१०३(४०), ७८१८५७) (२) पौषध विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा., रा., प+ग., मूपू., (इरियावही तस्सुत्तरी), ७८५९७-८ (+) (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग. म्पू, (खमासमण देइने इरिया), ७७६११-२(+), ७९२०१(+) " " (२) प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ७८०१६-३(+४), ८०९२८-३(+), ८०९७२(+), ७९४०३-२ ($) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., ( पाहिली रात्र शय्या), ७८७५१-२(५०), ८१११०-१(१), ७९८९४-२ (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलोइय पडिक्कं), ७९२८५ (+$), ८०१८२(+$), ८००४५ (६) (२) प्रतिक्रमण विधि-स्थानकवासी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., स्था., (--), ७८४३४-१(१६), ७८४४१(+४) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (कर पंडिकमणुं भावशुं). ८०१५४-७, ८०८१४ (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (गोयम पूछे श्रीमहावीर ), ८००२६१ (+) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, मूपू. ( नमो अरिहंताणं नमो), ७७९२४-३(४) For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ४८१ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ७७६६०(+5), ७७६९०(+$), ७९२१४(+), ८०२६८-१(#S), ७७८०९(६), ८०९८३-१(६) (२) प्रतिक्रमणहेतु विचार, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, मूप., (साधु अने श्रावक दोइ),७८२३० (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ७८६२५(+-5), ७७६७६, ७८४३३-१, ८०५७१(#$), ७७७०८($), ७८२१४(६), ७९१३९(६) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध *, पुहि.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अन्नत्थणाभोगेणं अन्न), ७८८९०-१(+) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे सूर्य उगव), ७९१३९(5) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मप., (दो चेव नमोक्कारे), ७८६८३-३(+#$).७९०२८-२(+) (४) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (अन्नत्थणाभोगेणं), ७८६८३-३(+#S) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-(प्रा.+सं.)यंत्र, प्रा.,सं., गद्य, मूप., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ७९०२८-१(+) (२) महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमोस्तु वर्द्धमानाय), ८००८०-५(#) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ७८०७१-१(+), ७८८०१-४(+), ७८६३७-१, ७९३९६-२, ७८६७०-३(१), ७९१५०-२(#) (२) मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (दिट्ठपडिलेह एगा नव), ७८६३७-४(६) (२) राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूप., (प्रथम इरियावही पडिक), ७८४६६-२, ७८९९४, ८०२८३(#) (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ७९१८४-२ (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ७७७०६(+$), ७८४०८(+#), ७७७६३, ७९९१२, ७७६५९(2) (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), ७७८९१-१(+#S), ७८३८२-१(+$), ८०५९३-१(+), ७७५८१-१, ७८३४३, ७७६३२(), ८१२२९-१(६) (३) वंदित्तुसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदितुं कहितां वादी), ७७५८१-१ (२) वरकनक स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वरकनक शंखविद्रुम), ७८३३५-२(+#) (२) विशाललोचनदल स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (विशाललोचनदलं), ७८२६७-२(+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (णमो अरिहंताणं णमो), ७८३४४(+) (३) पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), ७७९४५(+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं० पंचिं),७८४२८($) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइं नमस्कार),७८४२८($) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (श्वे.मू.पू.), संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), प्रतहीन. (३) श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूप., (सातलाख पृथ्वीकाय), ७९७३४-२ (३) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (नाणंमि दंसणंमि०), ७९०३९, ८०२७६(२), ८०३९४ १(#5), ७९८१२(5) (२) श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., मपू., (पण संलेहणा पनरस), ८१००७ (२) श्रुतदेवी स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कमलदल विपुलनयना कमल), ७८२०४-१ (२) संध्या सामायिक विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (तिहां धर्मशाला), ८०७८८(+) (२) संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., प+ग., मूपू., (इच्छाकारेण संदिस्सह०), ७८५९७-६(+) (२) संसारदावानल स्तति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (संसारदावानलदाहनीरं),७७८२८-४(+$),७९६४२ ७(+), ८०५७८(+#), ७८०४५-२(#), ७८४६३-१(#$), ७८०५५(६) (३) संसारदावानल स्तुति-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, भूपू., (अहं वीरं नमामीति), ८०५७८(+#), ७८०५५(६) (३) संसारदावानल स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसाररूपीउ दावानलनो), ७७८२८-४(+$) (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० करेमि), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) साधुपाक्षिकअतिचार-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७८९०४(#$) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., प+ग., भूपू., ते., (इच्छामि णं भंते), ८००९६ (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., म्पू., (नमो अरिहंताणं), ७७६५८(#$) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ८०७९६-३(+) (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), ७७६२४(+$), ७७६८२(+#$). ७८३६७(+$). ७८३८०(+$), ७८३९३(+$), ७७९५२, ७८४१०, ७७५६७(#), ७८००८(s), ७८३९१(६), ८०११२($) (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चार बोल तेम मंगलिक), ७८३९१(६) (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वांछउ निवर्तवउ वस्त), ८०११२(१) (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सयणासणन्नपाणे), ७८२६७-३(+#) (३) साधुदेवसिप्रतिक्रमणअतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (ठाणे कमणे चंकमणे), ७८००१ (३) साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ७७७३९(+), ७९२११(+#5), ७९२१७(+), ८०७९६-१(+), ८०८९५(+#), ८०९२८-१(+#), ७८८५१, ८०२०४, ८१००६, ८०४७४(#S), ८०९९९(#s), ७८२९३(६), ७९०४०(5), ७९४९१(६), ८०८४५-१(-2) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ७७८१८-१(+#S), ७९९९६ ३(+#), ७७७११(६) (३) चउक्कसाय, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (चउक्कसायपडिमलुल्लूरण), ७९७३४-३ (४) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, मप., (भवनत्रयस्वामी पार्श), ७७८३१-१(६) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (णमो अरिहंताणं), ८०८५४($) (२) सामायिक ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम १० मन संबंधी), ७८९४६-२(#) (२) सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (प्रथम खमासमण देई), ७९८७५-२(#), ७९१८४-३($) (२) सामायिक पारने की विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण तस्स), ७८८८५-४ (२) सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम वस्त्र उतारी), ७८०१६-१(+#), ७९१८४-१, ७९८९४-१ (२) सामायिक लेने की विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (इच्छामि खमासमणो), ७८८८५-३ (२) सामायिक विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,रा., प+ग., मप., (पंचिंदिय संवरणो नव), ७८५९७-७(+) (२) स्थापनाचार्यजी स्थापने की विधि-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, रा., गद्य, मूपू., (पहिला थापना सूर्य), ७८५९७-१(+) आहारादि मान विचार, सं., गद्य, मूपू., (इह विदेहेषु संपूर्णः), ७९१९०-१(+) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूप., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ७७६५४(+$), ७७६५५(+$), ७७६८६(+$), ७७७५९-१(#), ७७८६६-३(+६), ७७८६८(+$), ७८०१०(+$), ७९२२४(+$), ७९४४३-१(+), ८०४७१(+#$), ७७८१९, ७७५६०(5), ७७७०१(६), ७७९१६(७), ७८३०९(5), ७८४३१(६), ७९२६९-२(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टीका *, सं., गद्य, मूपू., (--), ७७७७०(+$), ८०४७१(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, मपू., (भिक्षो विनयं प्रादुष), ७७६५५(+$), ७९२२४(+$) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (भिक्षु महात्मानइ), ७७६५५(+$), ७९२२४(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे), ७७६५४(+$), ७८०१०(+६), ७७९१६($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., कथा. ४, गद्य, म्पू., (एक आचार्यनई एक चेलो),७७९१६($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २४, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (--), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २४ गत प्रवचनमाता का थोकडा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूप., (इरीयासुमति १ भाषा), ८०३०९-२(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन- ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू., (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न), ७७६७०(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, मप., (पहिलौ विनय अध्ययन), ८०१६२-२(+) For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ४८३ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१६ बंभचेरसमाहिठाणं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (ब्रह्मचर्यना दश),७९९६९-२ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त ___धरी), ७९३४३-१(+), ७७६३४(६), ७७९९४(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, ग. कृपासौभाग्य, मा.गु., सज्झा. ३६, वि. १७३८, पद्य, मपू., (सोहम कहे जंबू सूणो), ७९३४३-२(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, संबद्ध, मु. अर्जुन ऋषि, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (नमु उत्तराध्ययन मे), ७८५८८-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहला विनय अध्ययन), ७९६५६ उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ७७६८५(+$), ७९३१८($), ७९१३६(६), ८०२२५(६) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), ७९३१८(#$), ७९१३६(5) (२) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीउपदेशमाला), ७९३१८(#$) (२) उपदेशमाला-उत्कृष्ट-मध्यम गाथा व अक्षरसंख्या यंत्र, मा.गु., को., मपू., (ॐसच्चं भासइ अरहा), ७९०६१(+), ८०५३७(+), ८०२२४ उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मपू., (उवएसरयणकोसं नासिअ), ७८०६६(+#), ७८३५८(+), ७९९२९(+#), ७९१२६(#$), ८०४४३(#$) (२) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.ग., गद्य, मप., (श्रीमहावीर चउवीसम), ८०४४३(#$) (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (उपदेशरूप रतन तेहनो), ७८०६६(+#), ७८३५८(+),७९९२९(+#).७९१२६ (#$) (२) उपदेशरत्नमाला-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ७८९७४-१(+#$) उपदेशरत्नाकर, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा.,सं., अधि. ३ अंश १६, पद्य, मूपू., (जयसिरिवंछिअसुहए अणिट), ७७७२४(+$) (२) उपदेशरत्नाकर-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतराग परमपुरुषो), ७७७२४(+$), ७८७२५-१(#) उपदेशशतक, सं., पद्य, मूपू., (--), ७७८८८(5) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलं नवकारनू), ८०३२५(+), ८०७७३($) उपधानतप विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (प्रथमं नंदिः त्रिः), ७९२४६($) उपधानतपविधि यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., भूपू., (उपधाननाम१ सूत्रनाम२), ७९०६४ उपधान वाचना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (मुहपति पडिलेहवी), ७९६३०(+) उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नामं नयरी), ७७८१७($) उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मप., (उवसग्गहरं पासं पास),७७८५५-१(+),७९५२७-१(६) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मपू., (उवसग्गहरं पासं पासं०), ७९७२६, ७८११३-१(#$) ऋतुवंती दोष गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, म्पू., (जा पुप्फपवहं जाणी,),८०२५२-२(#) ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २०९, ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), ७७८११(#$), ७८६२६(s), ७९१३५(६) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मप., (वली श्रीऋषभदेव केहवा),७८६२६(5) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्ति घणी करी नम्या), ७९१३५($) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरत ऋषीश्वरनो संबंध), ७७८११(#$) ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६२, ग्रं. १५०, पद्य, मपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), ७८१७८(+) एकाक्षरनाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २१, पद्य, पू., इतर, (विश्वाभिधानकोशानि), ८०५५७(+) एकादशीव्रत सज्झाय, प्रा.,मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (अन्नपाण तंबोलं चउदंत), ८१००४-२२(#) औपदेशिक कथा संग्रह, सं., प+ग., म्पू., (--), ८०२२९(+#$) For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (अजो कृष्ण अवतार कंस), ७७६५०-३(+), ७८७३१-३(+), ८१०९४-३(+#), ७८२४२-३, ७८२६८-८, ७८२६९-२, ७८६५६-३,७८७०८-२,७९२७९-२, ८१२३७-२, ७८९९५-१०(१), ७९१२४-५(2), ८०५४९-५(2) औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (जं जं समयं जीवो), ८०८१५-१(+), ७८०५४-२, ७८४३३-२, ७८७३०(5) (२) औपदेशिकगाथा संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ७८७३०($) औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (पूआ जिणंदेसु), ७७६५७(+#$) (२) औपदेशिक गाथा संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (जीवने मोक्ष जातां), ७७६५७(+#$) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ९, पद्य, श्वे., (काम वली सवही पुरहे),८०२७९-२(+#), ८०३६१-२(+), ७८०१५ १,७८३६२, ७८५५६, ७९१५९, ८०००८, ८११०७-२, ७८८९८($) औपदेशिक-धार्मिक दृष्टांतश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (विशेषैर्वस्त्र भोज्य), ७९३२२-५(-5) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (क्रोध मान यथा लोभ), ८००२४-२(+#), ८०४५८-४(+#), ८११७६-३(+#), ८११३६-१(#) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विसदं), ८००२४-५(+#) औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ७७८७५(+), ८०८८६-४(+#), ८०९५१-४(2), ७८१९९-१,७८२५२-२,७८८२२-२,७९३३४-४,७९३९३-२ ।। औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां काले), ७८९०१-३(+), ८०२९१-३(+#), ७९७१४-२ औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली), ७८८१७-२(#), ७९३२२-१(-) (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सकल कहेतां समस्त), ७९३२२-१(-) औपदेशिक सवैया संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु.,सं., सवै. २५, पद्य, जै., वै.?, (पांडव पांचेही सूरहरि),७७७१३-३(+), ७८१५३(+), ७९२६४(+), ८१२३८(+#), ८०८७९(#) औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, मप., (तेणं कालेणं० चंपा०), ७८०६० (#S) (२) औपपातिकसूत्र-सिद्धस्तुति गाथा, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २२, पद्य, मप., (कहिं पडिहया सिद्धा),७७८२०-३(+) (२) औपपातिकसूत्र-हिस्सा सूत्र-२०गत ध्यानसूत्र, प्रा., पद्य, मूपू., (से किं तं झाणे झाणे), ८११९८ (३) औपपातिकसूत्र-हिस्सा सूत्र-२०गत ध्यानसूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध्यानना च्यार भेद), ८११९८ औषधमंत्रादि संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, श्वे., इतर, (खोरासाणी अजमो रटी),७८८५८-३(+) औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, इतर, (अनार दाणा टां.८०), ७८२५५-३(+),७९१५८-२(2) औषध संग्रह, मा.गु.,सं., गा. ६, पद्य, इतर, (अथ नाहि परीक्षा), ७९७४७-१(#$) । कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (पश्चिम विदेहे गंधिला), ७८१२४(+$), ७९१६६-२(+#), ८०१९१(+$) कथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानुं नाम), ७७६१३-२(+$), ७८७१०($) करणसित्तरीचरणसित्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (पिंड विसोही ४ समिई), ७८८८१-१(# कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., गा. १७९, पद्य, मपू., (कर्पूरप्रकरः शमामृत), प्रतहीन. (२) कर्पूरप्रकर-बालावबोध, उपा. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वश्रिये सोस्तु), ७८०६७(5) कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., गा. ११२, पद्य, जै., (नमिऊण सुयहराणं वोच्छ), प्रतहीन. (२) कर्मप्रकृति-भांगासंग्रह, रा., गद्य, मूपू., (पहिली २० रो उदै), ७९४१२(६) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., गा. ६१, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मप., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ८०२२८(+#$), ८०२५७(+$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रेयोमार्गस्य वक्ता), ८०२५७(+$) कर्मसारपुण्यसारसौभाग्यसार कथा-ज्ञानसाधारणदृष्टांते, सं., गद्य, मूपू., (भोगपुरे चतुर्विंशति), ७९२५४-२($) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ- २, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मप., (तह थुणिमो वीरजिणं), ७७६३१-१(६) For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मपू., (तेणं कालेणं० समणे), ७७६९१(+$), ७९१२१(+s), ८०३६०(+$), ८०३८२(+$),७७५९३(#$), ७८४२५ (#), ७९१३०(#$),७९३५२(#$), ७७५६८(),७७५८९(६), ७७६३६(5), ७७७१५(६), ७८२६९-१(६), ७८३९०(), ७९३६९(६) (२) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. ४१०९, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्य), ८१११९-१(+s), ८११५१(+$) (३) कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका का बालावबोध, रा., गद्य, मूपू., (वर्द्धमान जिनेसररा), ८१११९-१(+) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूप., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ७७६८८(#$) (२) कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ७७६९१(+$), ७८००५(+s), ७८११४(+s), ७८१२७(+#) (३) कल्पसूत्र-टीका की व्याख्या, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ७८१२७(+#) (३) कल्पसूत्र-टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७८००५(+$), ७८११४(+$) (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., ग्रं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, म्पू., (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), प्रतहीन. (३) कल्पसूत्र-कल्पसुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, मूप., (वेदपदानि च विज्ञान), प्रतहीन. (४) कल्पसूत्र-कल्पसुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (हिवे श्रीमहावीर), ७९८४५ (२) कल्पसूत्र-अवचूरि *, सं., गद्य, म्पू., (अत्राध्ययने त्रयं), ७७५९३(#$) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, मपू., (नमो अरिहंताणं),७८५०३(+$),७७९२२(#$), ७७७१५(६),७८५७०($) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरो),७७६९१(+$),८०३६०(+$),८०३८२(+$). ७७५६८(s),७७६३६(s), ७७७१५(६), ७८३९०(६) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), ७८००७($) (२) कल्पसूत्र-कल्पवार्तिक व्याख्यान+कथा, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरिम चरिमाण कम्पो), ८०३२४-२(5) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ७७६७२-२(+$), ७८०७२, ७९७२१, ७७७८८(#), ७९०९०६),७९५५८(5) (२) कल्पसूत्र-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए जंबूद्वीप भरतखंडनै), ८०७४६(5) (२) कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (बलदेव बलिदेव वासुदेव), ७९४६६(45), ७९६१५(+$) (२) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., प+ग., मप., (तेणं कालेणं तेणं समय), प्रतहीन. (३) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (हिवे वर्षाकाल आव्ये), ८०३४३(+) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (अर्हत भगवंत उत्पन्न), ७७९७५-१(+), ७८३४६-२(+#) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय),७८६०८-१ (२) कल्पसूत्र-प्रभाव गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (तवेण बंभचारेण कणयदाण),७७८१० (२) कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मपू., (५० कोडि लाख सागर), ७७८२४(+), ७८९०७(+), ७९९८९(+), ७८५१२, ७८८२२-१, ७९४८८-२, ७९८६३-१, ८०७०३-१, ७८६४०(#), ७८७९८(१), ७९६५५(१), ८०३७९(#$), ८०९२०(#s), ७८७३९(६) (२) श्रीदेवी कमलस्वरुप वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, स्पू., (हेमवंतपर्वत १०० जोजन), ७९६६३(#) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तराफाल्गुनी नक्षत), ७९८२९-१(+#$) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (पुरिमचरिमाणकप्पो), ७८३६४(+$) कल्याणक विधि, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (च्यवनपरमेष्टि नमः),७८८४३-२(+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मूप., (कल्याणमंदिरमुदार), ७७८६२(+$), ७८१०६(+$), ७९०४९-१(+$), ७९१२७(+$), ७९१६३-१(+#), ७७६१४(#), ७७५७०-१(६), ७७७०५(६), ८०५२५(६) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), ७७८६२(+$), ७८१०६ (+$) For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., दि., (परम ज्योति परमातमा), ७७७८४-१(+), ७८५९०(+), ८००९४(+), ७७७८३-२, ७८०३०-१, ७८१०५-१, ७८४०२, ७९३९८, ७९४८६ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. आनंद, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (आनंद वदत कृपाकर हु), ७९११०-१ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुह दंसणरहिओ काय), ७८४३५(+) (२) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (जिम ताहरे दर्शनइ),७८४३५(+) कार्यसिद्धियोग्य ५विषयनाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (सामग्गिअभावाओ विवहार), ७९३२२-३(-) (२) कार्यसिद्धियोग्य ५विषयनाम गाथा-टबार्थ, मा.ग., गद्य, श्वे., (सामग्रीना अभाव थकी), ७९३२२-३(-) कुमारपाल चरित्र, आ. जयसिंहसूरि, सं., स. १०, श्लो. ६३०७, वि. १४२२, पद्य, मूपू., (चिदानंदैककंदाय नमस्त), प्रतहीन. (२) कुमारपाल चरित्र-चयनित कथा संग्रह, सं., प+ग., मूपू., (चिदानंदैककंदाय नम), ७८३२९-३(+$) कुमारपाल प्रबंध, उपा. जिनमंडन, सं., वि. १४९२, प+ग., पू., (ॐ नमः श्रीमहावीरजिन), ८०४६४(+$) कुलध्वजकुमार कथा-परस्त्री त्यागविषये, सं., श्लो. १६८, पद्य, मपू., (जंबूद्वीपाभिधे), ७७६४२(+) कृतपुण्य कथा, सं., गद्य, मूपू., (आरोग्यं सौभाग्यं), ७९३६७ कृष्ण स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (कस्तूरीतिलकं लिलाट),८०८०९-२ केवली आहारादि प्रश्नोत्तर, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (केवली आहार करइ किं), ७८७६५-१(+) क्षमापना गाथा संग्रह, प्रा., गा. ८४, पद्य, मूपू., (संसारम्मि अणंते परभव), ७८७६७(+#), ७९००८-१(+#), ७८७६६ खरतरगच्छ पट्टावली, सं., गद्य, मपू., (श्रीगौतमस्वामी), ७९५२२ खरतरगच्छीय शुद्ध समाचारी, मा.ग.,सं., गद्य, मप., (धुंअरिपडै तांसीम),७९५८८(+) खामणा विचार, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (ततो वंदनकदानपुरस्सरं), ७७५९१-१(+) गगनधूलि कथा, सं., ग्रं. २५५, गद्य, श्वे., (उज्जयन्यां विक्रमादि), ७९१७४(#$) गणधरदेव स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (तं जयउ जए तित्थं), ७९१६२-२(#$), ८०५३२-४(#$) गणधरवाद, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अस्मिन् भरतक्षेत्रे), ७९४८८-१ गणधर होरा, प्रा., श्लो. ३१, पद्य, श्वे., (जीवाजीवाइ पएयत्थ),७९८५६-२(+) (२) गणधर होरा-संबंधगाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (दुइगेगएगदोदो दोदो), ७९८५६-३(+) गति आगति द्वार विचार-२४ दंडके, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (नारकीदंड २ गति), ७९७९० गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (कज्जल विज्जल गुंद), ७८९९०-२(#) गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ७७५९१-५(+$), ७७७८१-२(+), ७८६६२-२(+), ७९०३१-३(+#), ७९८८४-३(+#), ८०३३५-१ गाथा संग्रह जैन, प्रा., पद्य, श्वे., (उस्सासट्ठारमे भागे), ८०३५२-२(+), ८००३१-१(#) गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ८०५२१-१ गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा.,मा.गु., गा. १, गद्य, श्वे., (चउरिक्कद्पणपंचय), ८०६७५-३(+#), ७८८८०-१ (२) गणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (चउक्क० च्यारि पैडा), ८०६७५-३(+#), ७८८८०-१ गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोह), ७८३५७(+$) गुरुशिष्य पत्रलेखन विधि, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (स्वस्तिश्रीमद्वामेय),७८८०६-२ गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (अहो जिणेहिं असावज्जा), ७८२६७-४(+#) गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., कां. २ अधिकार ३१, गा. १७०५, पद्य, दि., (सिद्धं सुद्धं पणमिय), प्रतहीन. (२) गोम्मटसार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (अरिसिद्धाण वंदित्ता), ७८४४०($) गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा),७७८२८-१(+), ७८३१८(#$), ८०५४९-१(#) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ७७८२८-१(+), ८०५४९-१(#) गौतमपृच्छा, प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाह), ७८२७०(+$), ७८६३५(+#$), ७७९९५($) (२) गौतमपृच्छा -अवचूरि, सं., गद्य, मप., (इह हि पूर्वाचार्य), ७८२७०(+$) For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. मुनिसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, पू., (महावीरजी गोतमपृच्छा), ७९७१४-१(६) (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ७८६३५(+#$) (२) गौतमपृच्छा-कथा संग्रह , मा.गु., कथा. ३५, गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगरने विषे), ७८६३५(+#$), ८१२४२($) गौतमस्वामी मंत्र-यंत्र जापविधि सहित, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ॐ भगवो गोयमसामिस्स), ८११८६(+-) गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूतिं गणभृद), ७९४०१-४, ७९४२६-९ गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति),७९१७०-५ ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ८०७७७-२(+#), ८०५१६-१ घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ७८८०१-१(+), ७९५३६-२ चंद्रधवलभूप धर्मदत्तश्रेष्ठि कथा, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., श्लो. ९८, पद्य, मपू., (चतुर्थी कथा प्रोक्ता), ७८१६८(+$) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. १८५४, पद्य, मपू., (नमो अरि० जयति नवणलिण), प्रतहीन. (२) चंद्रप्रज्ञप्ति गाथा-नमिऊण मंत्र, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., इतर, (नमिउण असुर सुर गरुल), ७७५५८-१ (३) चंद्रप्रज्ञप्ति गाथा-नमिऊण मंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (-), ७७५५८-१ (३) चंद्रप्रज्ञप्ति गाथा-नमिऊण मंत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (ॐ न० नमसकार करीने ५१), ७७५५८-१ चंद्रप्रभजिन अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह),७९४००-३(+) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लो.५, पद्य, मप., (ॐ चंद्रप्रभः प्रभा),७९४००-४(+),८०७७७-१(2), ७९००७-२ चक्रवर्ती-वासुदेव-प्रतिवासुदेव-बलदेव गति विचार, सं., गद्य, मप., (भरतः सिद्धः१ सगरः), ७८८७९-१(+) चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (श्रीचक्रे चक्रभीमे),७७६७५-१(६) चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सावज्जजोग विरई), ७७५७७(+#$), ७७६०९(+#), ७७८२० २(+), ७८११५(+$), ७८१७०-१(+#), ७९९४७-१(+), ८१०९७(+#), ७९३४९-१(#), ८१०८४-२(5) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०),७८११५(+$) चतुर्दशीतप पारने की विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम इरिया वही पछै), ७७७३६-४(+) चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूप., (एवय समणधम्म १० संजम), ७९३८४-१ (२) चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (पहिलं बोल वय पंचमहा), ७९३८४-१ चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. ४०१, गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं स्फुरद), ७७९८८-१(5) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मपू., (प्रणम्य परमानंद), ७७५८१-२($) चिंतामणि कल्पे जाप विचार, प्रा.,सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (अंगुष्टजापो मोक्षाय), ७९१९०-२(+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., श्लो. १२३१, वि. १५२४, पद्य, मप., (नत्वा जिनपतिमाद्यं), ७७५८६($) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (उस्सप्पिणीहि पढम), ७७७३६-५(+$), ७८२३९ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मपू., (प्रथम गोबररी गुंहली), ७९५६१ छायापुरुषलक्षण श्लोक, सं., पद्य, मूपू., (अथातः संप्रवक्ष्यामि), ७९१८१-२(#$) छेदशास्त्र, प्रा., गा. ९४, पद्य, मूपू., (णमिऊण य पंचगुरुं), ८०६७४(६) । (२) छेदशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, जै.?, (प्रायश्चितं विशुद्धि), ८०६७४($) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूप., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ८०११६(+#$) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा पांचवांवक्षस्कार-जिनजन्माभिषेकअधिकार, प्रा., गद्य, श्वे., (जया णं एक्कमेक्के), प्रतहीन. (३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा पांचवांवक्षस्कार-जिनजन्माभिषेकअधिकार-संबंध तीर्थंकरजन्माभिषेक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (अधोलोकनी आठ दिसी),७९७४९ (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-खंडा जोयण बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (खंडा १ जोयण २ वासा ३), ७७७३८ जंबूस्वामी चरित्र, सं., पद्य, मूपू., (--), ७८१४१(+#$) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जय तिहुयण वरकप्प), ७९६५२(#$), ८०३०५(#) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (परमेसर सिरिपासनाह), ८०७१२-३ For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ जिनकुशलसूरि गुर्वष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नतनरेश्वरमौलिमणिप्रभ), ८०५२३-२(#s) जिनकुशलसूरि गुर्वष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (पद्मा कल्याणविद्या), ८०५२३-१(2) जिनकुशलसूरि मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं क्ली), ७९६८१-२ जिनदर्शनपूजा फल, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यास्याम्यापतनं), ७९४५९-२ जिनदर्शन प्रार्थनास्तति संग्रह, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (अद्य प्रक्षालित), ७८३७३(2) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ७८८०१-२(+) जिनप्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (मूल गुंभारेकुं आछीतर), ७८८५३-१(+), ७७७७२(5) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, स्पू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), ७९०१५(#) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ७९२२६-२ जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (प्रणम्य स्वस्ति), ७७८०२-१(#$) जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूप., (पहिलु मुहर्त भलु), ७९२२६-१ जिनमंदिर ध्वजारोहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम भुमी), ८०७५५(+$), ७७९५३ जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनं भक्तितो), प्रतहीन. (२) जिनरक्षा स्तोत्र-भाषा, मु. चेतन, पुहि., गा. २१, पद्य, मूपू., (गुरुचरण सदा नमो हाथ), ७८४९०-१(#) जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., परि. ४, श्लो. १००, वि. १००१-१०२५, पद्य, मूप., (श्रीमद्भिः स्वैर्महो), ८०५९६(+$) (२) जिनशतक-पंजिका टीका, मु. शांबमुनि, सं., ग्रं. १५५०, वि. १०२५, गद्य, मप., (निष्क्रांतौ कृत पंचम), ८०५९६(+$) जिनस्वरूप स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु.,सं., गा. ३२, पद्य, मूपू., (चिदानंदरूपं सुरूपं), ७९६५४(#S), ७९६७८($) जीवउत्पत्ति के १४ स्थान, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (वली नीत ने विषे उपजे), ७८४३९-३ जीवपर्याप्ति विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (जीव गइंदियकाए जोगे), ७८७५०(#) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ७७७५१-२(+$), ७८७४८(+), ७९०४९-२(+), ७९१०६-२(+), ७७५८७६), ७७७७१-२(६), ७८१२६(६), ७८३०५-२($) (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मपू., (स्वर्ग मृत्यु पाताल), ७७५८७($) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विषै), ७८१२६($) जीवसंख्या अल्पबहुत्व विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सुहमो य होइ कालो), ८०९५१-३(+#) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मप., (णमो उसभादियाणं चउवीस), प्रतहीन. (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. २००००, गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), ७८८५९() जैनधर्म महिमा श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (जैनो धर्मः प्रकट), ७९२२६-४ जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर-विविधग्रंथोक्त, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, श्वे., (द्वादशव्रतधारक केवल), ७८८०७-१ जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (श्रीनवकार मंत्र में), ७९६४४($) जैन मंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मपू., इतर, (ॐ ह्रीं श्रीं अर्हत), ७७८३५(+#$) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं),७८११३-२(2) जैनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (उतरासण नांखी चावलदान), ८०२८०(+#$), ८००७६($) जैनविवाह विधि, सं., प+ग., मूपू., (स्वस्ति श्रीकरं नत्व), ८०२९१-२(+#) जैन श्लोक, सं., पद्य, मूप., (बाह्यः परिग्रहविधि), ७७८३७-३ जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (त्रीणि स्थानानि), ८०१८४(2) जैन सुभाषित, सं., पद्य, मपू., (चंपांगे च पुलिंग), ७७८२६($) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चंपाए), ८०१२५(+$) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा अष्टम अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य.८, प+ग., मूपू., (--), प्रतहीन. (३) मल्लिजिन स्तवन, संबद्ध, मा.गु., ढा. ५, गा. ६३, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतसागर जिनवर), ७८०४९(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीज्ञाताजी के), ७८८८४(६) For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ४८९ ज्ञान आदर पालन अष्टभंगी, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (न जाणइ न आदरइ न पालइ),७७५९०-३ ज्ञानपंचमी नमस्कार, सं., गद्य, मप., (स्पर्शनेंद्री व्यंजन),७८२३४-३,७७८३०-२($) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम पवित्र), ७८२८८(+), ७९३७२(+), ७८२३४-१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतक सुप्रपंच),७९८०८-२(#),७९४०७-४($) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), ७९७८२-२(#), ८०१५०-२(#), ८०१७९-२, ७८०४५-१(#$), ७९१३२-१(६) ज्ञानपहिरावणी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (नमंत सामंतमही विनाह),७८६०८-२ ज्योतिष, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., जै., वै., इतर, (आदित्यं १सोम मंगल), ७९२८९-३(+), ८१२४५-१, ८०८८२-३(-), ८०९७८-४(#) ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (ज्येष्ठार्क पश्चिमो), ७७५९१-४(+) ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, पू., इतर, (अच्चिबुहविहप्पिसणि), ८०८७५-२(#) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २५, पद्य, वै., इतर, (इष्टस्यावधिसंस्थितौ), ७७७१३-२(+), ७८४१५-२, ८०१३९-२ ज्योतिष संग्रह-, सं., पद्य, इतर, (इष्ठेदं र्भप्रवेशे), ७७८८६-२(+#) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मप., इतर, (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), ७८०१८(5) ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, मप., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ७९४००-१(+) ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (रात्रौसप्ते सत्रीत), ७९४००-२(+) तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (तत्त्वानि७ व्रत१२), ७८८८१-२(2) (२) तत्त्व विचार श्लोकसंग्रह-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव १ अजीव २ पुण ३), ७८८८१-२(#) तपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रथम ठवणीमांडि ईरीय), ७९१६९ तपग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ८०८०७(+$) तपविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (नांदल मांडीजे),८०९१८(६) तपस्या विधिसंग्रह, प्रा.,मा.गु., गा. ४, प+ग., म्पू., (नउकार १ पोरसीए २), ७९२२८-१(६) तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ), ७७७७४-२(+), ८०५९३-२(+), ७७८८१-२(६) (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (कृत्वा चतुर्णा), ७७८३१-२ तिथि फल संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., इतर, (द्वितीया पुल मात्र), ७९१६०-२ तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या देवलोके), ७७५८८-१(+$), ७७६८०, ७७८३९, ७७८९०-१(#$), ७९२८६-१(), ८०८४६-२(#) तेरापंथी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा.,मा.गु., प+ग., मप., (छ लेस्या हंति वीर), ७८८१३() त्रिभुवनस्वामिनी विद्या, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (गोयमगणहर मुहकुहर), ८०५२८(+) (२) त्रिभुवनस्वामिनी विद्या-(मा.गु.+सं.)विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (त्रैलोक्यविभुतपाद), ८०५२८(+) त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मप., (सकलाहत्प्रतिष्ठान), प्रतहीन. (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मप., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ७७८१८-२(+#$), ७७८९१-२(+#S), ८०७९६-२(+६), ७८४२४, ७८२६२(#$), ८०२६८-२(#), ७७७६७(5) त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., श्लो. १२५०, पद्य, मपू., इतर, (श्रीमत्पार्धाभिधं), ८०५८४(+#$) थानिकबोली पारवा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (प्रथम इरियावही तस्स), ७९८२७ दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४४, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउं चउवीस जिणे), ७७७०७-४(+$), ७८२१६-१(+$) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै),७७७०७-४(+$) दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. २वी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ७७६१७(+$), ७७६२३(+६), ७७६७१(+$),७७७६५(+$), ७७८७१(+$), ७८०५१(+$), ७८०५३(+$), ७८२६७-१(+#$), ७८३०८(+#$), ७८३१०(+s), ७८९१२(+$), ७७७५२(#s), ७७९३६-१(2), ७७६८७(s), ७७८४०(६), ७९२०३($) For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९० (२) दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु, गद्य, म्पू., (धर्म सर्वोत्तम मांगल), ७७५५६/९) (२) दशवैकालिकसूत्र-वार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (ध० जीवन दुर्गति), ७७६१७(+5), ७७६२३(+३), ७७६७१(+३), ७८५६७४) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठे), ७७५७२(+), ७७८२०-४(+) " , (३) दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु. ( धर्म मंगलीक उत्कृष्ट), ७७५७२(+) (२) दशवेकालिकसूत्र-हिस्सा धम्मोमंगल प्रथम गाथा, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. वी. रवी, पद्य, मृपू. (धम्मोमंगलमुक्किई), प्रतहीन. (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा धम्मोमंगल प्रथम गाथा की टीका, सं., गद्य, भूपू (यस्य पुरुषस्य धर्मे), ७८१७४-२ (*) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., अ. १०, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (मंगलिक महिमा निलो रे), ७८४७३ १ (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो), ७८५८७१(+), ७९०००(#) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, गा. १०८, पद्य, म्पू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), ७८४२३($), ७९५९९ ($) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (देवाहिदेवं नमिऊण), ७९४३२-३ ($), ८१२३३-१($) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्था., (देवाधिदेवनइं नमस्कार), ७९४३२-३($) दिगंबरचर्चा बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, दि., (विग्गह गतिमावन्ना), ७९९६०-३(+) दिल्ली वर्णन, सं. लो. १, पद्य, वै. इतर (पृथ्वीनाथसुता भुजि), ८००२८-३ " दीक्षा उच्चार विधि, प्रा. मा.गु. प+ग, भूपू (प्रथम नवकार भणी पछै), ७८८२४(+३) दीक्षायोग्य अयोग्य विचार, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, मूपू., (अट्ठारसपुरिसेसुं बीस), ७८३७७-७ दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु. प+ग, मूपू (दीक्षा लेता एतला), ७८०८७) दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मृपू., (पुच्छा वासे चिह्न वेसे), ७९२२६-३ दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु. गद्य, मूपू., (योग्य पुरुष स्त्री), ७८२५१-१ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मृपू. (संध्यायां चारित्रो) ७८८५३-२ (९) ७८००९ दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), प्रतहीन. (२) दीपावली पर्व कल्प वालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीसुखदातार), ७९२२९(5) दीपावलीपर्वगुणन विधि, मा.गु. सं., गद्य, श्वे., (ॐ ह्रीँ श्रीँ महावी), ८०५२६-२ दीपावलीपर्व व्याख्यान, प्रा. सं., गद्य, म्पू, (जाते वीरजिनस्य निवृत), ७८४४४-४(३) " י दीपावलीपर्व स्तुति, सं. लो. १, पद्य, भूपू (पापायां पुरि चारु), ७८४४४-१ " दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (दुरिअरयसमीर मोहपंको), ७९१०६-१(+४) दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गा. २५, पद्य, वै., इतर (अनमिलनी बहुतई मिलई), ८०७८०-२(+), ७७५७०२, ७९३३७-२, ८०९२३-२ दुहा संग्रह जैन, प्रा.,मा.गु., सं., गा. २५, पद्य, श्वे., (चिहु नारी नर नीपजइ), ७९८२०-२ (+), ७७६१८-२ देववंदन विधि, प्रा., मा.गु. गद्य, म्पू, नमोत्थुर्ण कहीने भगवन), ७८४६६-३ (६) देववंदन विधिसहित खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., मा.गु., प+ग., म्पू (श्रीमंधरस्वाम), ७८५४७) देवशरीरप्रमाणादि गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पणवीसं असुराणं सेस), ८११७६-२(+#) (२) देवशरीरप्रमाणादि गाधा-टवार्थ, प्रा., गद्य, मूपू. (२५ धनुष असुरकुमारो), ८११७६-२(*) देवातिशय एकादशस्थान गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., ( केसणहमंसुलोमा चम्म), ८११७६-१(+) "" (२) देवातिशय एकादशस्थान गाथा-टवार्थ, पुहिं, गद्य, मूपू (केस नख मास रोम त्वचा), ८११९७६-१ (**) द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), ७८१९२ (+$) (२) द्रव्य संग्रह-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदासजी भैया, पुहिं. गा. ७०, वि. १७३१, पद्य, दि., (--), ७८१९२ (+४) द्रौपदीकृत जिनप्रतिमा पूजन संसारार्थ या धर्मार्थ विषयक प्रश्नोत्तर, प्रा.मा.गु. गद्य, म्पू., (केई कुमती कठै छै), ७९६०७ (क) " For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ४९१ द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., द्वात. २१, श्लो. ६६३, पद्य, मपू., (स्वयंभुवं भूतसहस्रने), ७७७०९(+) (२) महावीरद्वात्रिंशिका, हिस्सा, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३३, वि. १वी, पद्य, मूपू., (सदा योगसात्म्यात्), ७९२०४-१(+), ७८६९५-२(#) द्वादशांगी विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवंते ४५ सूत्र कह्य), ८०४३६-७(+) धनपालकवि कथा, सं., गद्य, मप., (पुरा समृद्धिविशालाया),७९१६६-१(+#) धनसाधु तपवर्णन गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (वद्धमानजिनसीसो भद्दा), ७९८८४-१(+#) धर्मजिन अष्टक, मु. धर्मसागर, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (यस्योज्वलं याति यशोख),७९०६७-१(#) धर्मध्यान लक्षण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (धम्मेज्झाणे चउविहे), ७९३८०-१(+#s), ७७९९९(#),७९५०४(#$) धर्मलाभ श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (लक्ष्मीर्वेश्मनि), ७८१७४-१(+) (२) धर्मलाभ श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (तु भणइ ए श्रीधर्मलाभ),७८१७४-१(+) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मप., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ७८१६१-२(+s), ७८२२८(+#$) (२) नंदीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मपू., (अथ नंदि इति कः), ७८२२८(+#$) (२) नंदि स्तव, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ७८१६१-१(+$) (२) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, मपू., (जयइ जगजीवजोणी वियाणओ), ७९०५३(+), ७९०६६(+),८०१४५(+#$), ७८२५४,७७८१५-१(६) नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), ७७५७८-२(+#S), ७७८६५-२, ७७६१२(#$), ७७९३६-२(#), ७८२९८(2), ८०१०५(s), ८०८८१(६) (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ७७५७८-२(+#s), ७७६१२(#S), ७८२९८(2), ७७७९४(६), ८०१०५(६), ८०८८१(६) (२) नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., कथा.५, गद्य, मप., (नवकार इक्क अक्खर पाव),७७७८०(+$),७९९७६ २(+$) (२) नमस्कार महामंत्र महिमा गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, मप., (नमुकार इक्क अक्खर), ७८७२४-२(+) (२) नमस्कार महामंत्र स्तव, संबद्ध, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. ३३, पद्य, मपू., (परमिट्ठि नमुक्कार), ७७७६८(+$) (३) नमस्कार महामंत्र स्तव-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., वि. १४९७, गद्य, स्पू., (जिनं विश्वत्रयी), ७७७६८(+$) (२) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, संबद्ध, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (उकोसो सज्झाउ चउदस),७९९७६-१(+) नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मपू., (नमिऊण पणय सुरगण), ७७७७४-३(+$), ७७८०६(+$), ७८३२६-१(+), ७९१६२-१(#$), ८०५३२-३(#) (२) नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी चरण कमल), ७७८०६(+$) नमुत्थुणं कल्प, प्रा.,मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐ नमुत्थुणं अरिहंता), ७८४६०-१(+) नयकर्णिका, उपा. विनयविजय, सं., श्लो. २३, वि. १७उ, पद्य, मपू., (वर्द्धमानं स्तुमः), ७७९९७(+) (२) नयकर्णिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीवर्द्धमानमानम्य),७७९९७(+) नवग्रहपूजा विधि, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सवननो पाटलो शुद्ध जल), ७७८०२-२(2) नवग्रहशांति विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीसूर्यस्य पद्य),७८२३५-२ नवग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (जपाकुसुमसंकाशं), ८०७७७-३(+#), ८०५२०-६ नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., गा. १०७, पद्य, मपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), प्रतहीन. (२) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मप., (परिणामि जीव मुत्ता),७९८१४-१(+#),७९७२३ (३) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (तत्त्वार्थप्रकीर्णके), ७९८१४-१(+#) (३) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा का विवरण, मा.गु., गद्य, मप., (षटद्रव्य मध्ये जीव१),७९८४७(+#$) For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९२ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., गा. ६०, पद्य, म्पू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ७७५७८-१(+), ७७६०७ (+३), ७७६६३ (+३), ७७७५१-१(०४), ७७८३२ (-१), ७८२५७ (+#5), ७८६४१-१(+), ७९०४९-३ (+), ७९१०६-३(+), ७९३१२(+), ८०२१९(+४४), ८०४६१(+), ७७७७१-१ (S), ७७८१५-२ ($) (२) नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा जिनगिरं कुर्वे), ७८१०८(४) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (सम्यक् दृष्टि जीवनइ), ७७६०७(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, म्पू., ( जीव कहतां च्यार), ७७६६३+४७), ७७८३२ (५७) (२) नवतत्त्व प्रकरण-२५ क्रिया गाथा, हिस्सा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (काइअ १ अहिगरणीया २), ७७७२२-२ (३) नवतत्त्व प्रकरण-२५ क्रिया गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कायाई करी कर्म), ७७७२२-२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-क्षेपक गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सबंधवार उज्जोय), ७९८१४-२ (०) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ८१२२५(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-रूपी अरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मृपू., (नवतत्त्व मांहि रुपि), ८१२११(+३) (२) नवतत्त्व प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., को., मूपू., (नवतत्त्व नामस्वरूप), ७९३२८(+$) नवतत्त्व प्रकरण-धर्मसूरीय आ. धर्मसूरि, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (--), ७९३३४-३ नवपद खमासण विचार, पुहिं. सं., गद्य, मूपू., ( तिहां प्रथम पदे), ८१२६२ (७) " " नवपद गुण, सं., गद्य, भूपू (अरिहंत के १२ गुण), ७७६४४(*) नवपद चैत्यवंदन, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू. (राजगृहे पुरे रम्ये), ७८४१५-३ नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु. सं., पूजा. ९, पद्य, मूपू (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), ७८९८७ (+#३) नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., स्मर. ९, प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं० हवइ), ७७५६९ (+०३), ७८२१८ (+#७), ७८३३९(+३), ८०१३६) ७८२१९ (६) नष्ट जन्मकाल विचार, सं., गद्य, वै., इतर, (--), ७८६८१-१(+#) नास्तिक आस्तिक धर्मप्रमेयसिद्धि खंडनमंडन विचार, सं., गद्य, भूपू (नास्तिकैर्यदुच्यते), ७९५०६ "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י' निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मूपू., (जे भिखु हत्थकम्मं), ८०५०५(+#$) नेमिजिन चरित्र *, सं., गद्य, मूपू., (मथुरायां हरिवंशे बहु), ८०२१३ (+$) मिजिन बोली- गिरनारतीर्थमंडन, अप. गा. ७, पद्य, मूपू (ता धन धन सोरठ देस), ८११०५ ३(+) नेमिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू., (प्रधानभावभावकं), ७७९२४-२(#) नेमिराजिमती विवाह वर्णन, अप., सं., गद्य, म्पू, (--), ७९९२७/३) पंचकल्याणक आराधना विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू. (१. चवन कल्याणके प्रम), ७८८६३ पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन गाथा, प्रा. सं., गा. १, पद्य, भूपू (बारसगुण अरिहंता), ७८५१९-२ (+) पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (अर्हतो भगवंत इंद्र), ७९६०३ (२) पंचपरमेष्ठि स्तुति- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हतभगवंत अशरणशरण), ७९६०३ पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, मृपू. (चउत्थेणं एक उपवास), ८०३८६-२ (+), ८०९२८-२ (३) पच्चक्खाण पारणक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., ( फासियं पालियं चेव), ७८८९०-२(+), ८१२४६-३(#) पच्चक्खाणफल कुलक, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नमिऊण सुगुरु चलणं), ८०४३६-८(+) पट्टावली*, प्रा.मा.गु., सं., गद्य, भूपू (श्रीमहावीर), ७७७६४-२ (*), ८०९८८(४), ८९०४४(३) पट्टावली उपकेशगच्छीय, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ २३मा० ), ७८४५११) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (गुब्बरग्रामवासी वसु), ७७६७२-१(+$), ७९३०४(#$) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १४, पद्य, म्पू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ७७७६४-१(०), ७८३४६-१(+०), ७८८८५-१ पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (सिरिमंतो सुहहेउ), ७७५६६-१, ७८२७२($) (२) पट्टावली तपागच्छीय स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा धर्मसागरगणि, सं., गद्य, मूपू (सिरिमंतोत्ति यत्तदो), ७८२७२(३) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य त्रिविधं), ७९५५३(+$) For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ " पत्रलेखन पद्धति-साधु उपमा, मा.गु. सं., प+ग, मूपू (स्वस्ति श्री आदिजिन), ८०८७३(३) पदव्यवस्था, आ. जिनदत्तसूरि, सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., (श्री युगप्रधानाचार्य), ७८९०६-२ पद्मानंद महाकाव्य, आ. अमरचंद्रसूरि सं., स. २१, ग्रं. ११५, पद्य, मूपू. (अर्ह नीमि), ७८०३२ (०) पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, म्पू, (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ७९२३७-१(+), ७८३१३, ७८११६-२ (७) (२) पद्मावतीदेवी अष्टक - निमित्तसाधन विचार, संबद्ध, सं., गद्य, म्पू. (प्रथम काव्येन सकल), ७९२३७-२(+) पद्मावतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, म्पू. ॐ औं क्रों हीं ए), ७७५५८-३ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ८०६२९ (+#), ८०२१८($) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्रो. ११, पद्य, पू. श्रीपार्श्वनाथजिन), ७८११६-१(७) पद्मावती स्तोत्र, सं. लो. ४५, पद्य, मूपू (श्रीमद्गीर्वाण चक्र), ७७९७९(+5) " परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, वि. १८वी, पद्य, भूपू (परमानंदसंपन्नं), ७९२३६-२(+) पर्यंताराधना-गाथा ४०, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू (नमिउण भणइ एवं भयवं), ७७७३७-१(*) (२) पर्यताराधना गाथा ४० - बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू. (पहिली पहिकमि इरियावह), ७७७३७-१(+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. २४५, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), ७८११० (+$), ७८१२९(#$), ७९१८०-१ (AS), ७८०९९(४), ७८३३४(३) (२) पर्यंताराधना-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करिने), ७८११० (+$), ७८१२९(#S), ७९१८०-१ (#S), ७८०९९(S) पर्युषणपर्व स्तुति, मु, चतुर, सं., लो, ४, पद्य, भूपू (भो भो भव्यजनाः सदा), ७७८०५(४) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा पार्श्व), ७७७५३ ($) (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ), ७७७५३ ($) पर्वतिथिनिर्णय पूर्वाचार्यप्रणित सामाचारी गाथा संग्रह. मु. देववाचक, प्रा. सं., प+ग, मूपु (आसाढकत्तियफग्गुणमासे), ८०७११(२) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथा, सं., गद्य थे. (प्रथ्वीभूषणपुरे पाप), ७७५७१ (६) " पार्श्वजिन १० गणधर गणनुं, सं., गद्य, म्पू., ( श्रीशुभगणधराय नमः), ७७७८७-३ (+), ७९५१०-४(+), ७९७२३-२ पार्श्वजिन १० भव संक्षिप्तवर्णन सं., गद्य थे. (पासे नामंति भ्रातराव), ८१०९१-२(#) " , पार्श्वजिन गणधर श्लोक, प्रा., गा. १, पद्य, खे, (सुभेय अज्जघोसेय), ८०६७५-६ (0) पार्श्वजिन चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (--), ७८१६३ (#$) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., श्लो. ७, पद्य, म्पू., (वरसं वर वर वरसं), ७८३२९-२(+), ७९२०४-२(+), ८०६००-२(*), ७८७६४-२, ८०८४६-७) पार्श्वजिन मंत्र, सं., मंत्र. १, गद्य, मूपू., (ॐ पार्श्वनाथाय ॐ हीं), ८०१७६-२ पार्श्वजिन मंत्र-स्वप्नफलकथन, मा.गु. सं., गा. ५, पद्य, मूपू., (ॐज्जतुं ॐज्जतुं), ७९८३९-२ पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वः पातु वो), ७९९२६-२($) पार्श्वजिन महिमागर्भित स्तोत्र, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमो तुह दसणेण सामि), ७८६७१-२($) पार्श्वजिन स्तव चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., श्लो. ७, पद्य, म्पू. (स्फुरदेवनागेंद्र, ८०६७७ पार्श्वजिन स्तव- चिंतामणि, सं., श्लो. ६, पद्य, श्वे., (सघनघनांजन मेचक), ७७६६५ (+) पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वजिन सौख्य), ८००३२-१ " पार्श्वजिन स्तवन एकाक्षरमव, उपा. जयसोम, सं., श्लो. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपु., (जनवनवनधर धरणधर ), ८१०११-२ (#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जय जय गोडीजी महाराज), ७७९३५-१(#) पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मु. सोमजय, अप., गा. ४४. वि. १६वी, पद्य, मूपू (जीराउलि राउलि कयनिवा), ७८१४५-१ (AS), ७९१७७ (#$) ४९३ For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेर मंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा., मा.गु., डा. ३, गा. १९. वि. १६६५, पद्य, मूपू.. (नमिअ सिरिपासजिण सुजण), ७७९२८ ($) Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगणस्थानकविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (--), ७७९२८($) पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूप., (सर्वदेवसेवितपदपा), ८१०३२-१(#) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, मपू., (श्रीसेढीतटिनीतटे), ८१११०-२(+) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., गा. ३७, वि. १४वी, पद्य, मपू., (जसु सासणदेवि वएसकया), ७८४२६(#S) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, मूपू., (जं संथवणं विहिय तस्स), ७८४२६ (#S) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), ७८४६८-४(#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, प., (जयति जगति भास्वात्), ७८३८८-२ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यो योगैर्योग योगैर्य), ७८९२८-४(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (विश्वस्वामी जीयात्), ७८२६७-५(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनो जयतिकल्प), ७९११५-१ पार्श्वजिन स्तुति-करहेटक, सं., श्लो. १, पद्य, मूप., (करुणारस सागर वाचमिमा), ८०६००-३(+) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (हें दें कि धप), ७९६८३-३ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (श्रीसर्वज्ञं ज्योति), ८०७९५-१(#) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ७९७३७-२(#, ७९८०८-४(#) पार्श्वजिन स्तुति-प्रार्थना संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), ७९०२०-२(+) पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. कल्याणविजय-शिष्य, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वरतीर्थेश), ७७९०६-५(+) पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), ७८६३२ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं धरणो), ७९११५-२ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (अभिनवमंगलमालाकरणं), ८०३३५-२ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (केवललोकितलोकालोक), ७७६१८-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मपू., (प्रणमामि सदा प्रभु), ७८१८७-२,७७९२४-१(#), ८०७२१-१(२), ८११३६-४(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (नमु सारदा सार), ८११३६-५(2) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ७८३०१-२(+$), ८०८४६ ३(#s) पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (लक्ष्मीर्महस्तुल्य), ७९३३४-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-वाराणसी, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (चित्तबहुलाइ चविङ), ७९५२३-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), ७८५९४(+), ७९२७२ १(+$), ८०९३५-३(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूप., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय),७९१६३-२(+#) पार्श्वधरणेद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., (नमो भगवते श्री), ७८०१४-१(2) पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., इतर, (महादेवं नमस्कृत्य), ७७५७९(5) (२) पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (१११ उत्तम थानक लाभ), ७७८५१(+), ७९४३७(+), ७९८४८, ८०५०२(१),७७८५८-१(5) पासाकेवली, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., इतर, (महावीर को ध्याइए), ८०८८५(६) पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मपू., (देविंदविंदवंदिय पयार), ७८१३९(5) (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-४२ आहारदोष सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., गा. ५८, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सरसति सामिण प्रणमी), ७८४७४-१(#) पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (संपुन्न इंदिअत्त), ८०१६१(+), ८०२७८(+), ७८३७७-१, ७९४३२-१ (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरु पंचिन्द्रियपणो), ८०१६१(+), ७९४३२-१ (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संपूर्ण पांच इंद्रिय), ८०२७८(+) For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ४९५ पुरुषस्त्रीनपुंसकभेद श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, म्पू., (मेहनं १ खरता २),७८३७७-६ प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मप्., (नमो अरिहंताणं० ववगय), प्रतहीन. (२) प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा, हिस्सा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जणवय सम्मय ठवणा नामे), ७७७२२-१ (३) प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (कइ विहाणं भासा), ७७७२२-१ (२) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा जोणिभेद पद, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, मूपू., (कुमुणया १ संखावति २), ७९२९८-१ (३) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा जोणिभेद पद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रिणभैद जोनिना), ७९२९८-१ (२) आर्य-अनार्यादि विचार-प्रज्ञापनासूत्रे, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पन्नवणा पद १ पन्नवणा), ७८८७४(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-अल्पबहुत्व ९८ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वथी थोडा गर्भज), ७८७८४-१, ७९०४५-२(#) (२) प्रज्ञापनासूत्र-पद १० चरम पद के बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (एक वचन भांगा३१चरम २), ७९७५३ (२) प्रज्ञापनासूत्र-प्रश्नोत्तर, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (बीजा पदना प्रश्न तथा),७९३५०-६ (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुक्षलोक मध्ये), ७७७८९(+$) प्रज्ञाप्रकाशत्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ७७९७१(+$) (२) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रज्ञा क० बुद्धि), ७७९७१(+$) प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (मनई न करं वचने न), ७९०८६(+#), ७७५९०-२, ८०१८१, ८०७७२ प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४८, पद्य, मूपू., (दस पच्चक्खाण चउविहि), ७८२२०(#$) (२) प्रत्याख्यान भाष्य-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (दस प्रकारे पच्चखाण), ७८२२०(#$) प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (श्रीमहावीरदेव थकी), ७८७६५-२(+), ७९५९२(+) प्रश्नबोल संग्रह, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा.,मा.गु., प्रश्न. ७४, गद्य, मूपू., (मूलसूत्रना बीजा तु), ७८९६१(#$) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), प्रतहीन. (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७७९०४-३($) प्रश्नावली, ग. विजयविमल, सं., प्रश्न. १०१, गद्य, मूपू., (समवसरणं भूमितो भवति), ८०५०९(5) प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ७९९५७($) प्राकृत छंदकोश, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., इतर, (गामाणामाजाई वयस), ७८२४१(+#), ७८२६६($) प्राकृत संस्कृत शब्दकोषादि साधारण कृति, प्रा.,सं., प+ग., श्वे., इतर, (--), ७८११८(+#$) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ७७६१३-१(+), ७७८६६-२(+), ७८३८२-२(+), ७८३८९(+$), ८०७०४-३(+) (२) प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच महाव्रत अने), ७८३८९(+$) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर, (देयं भोजधनं धनं), ७७८५५-२(+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै., इतर?, (दाता दरीद्री कृपणो), ८०३३१-४(+#$) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ६१, पद्य, मूपू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर),७९३६८-२(+), ८१२५९-२ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २४, पद्य, श्वे., इतर, (श्रिष्टे संगः श्रुते), ८१०९४-१(+#$) (२) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (ए छ वस्तु सुकृत कही), ८१०९४-१(+#$) फलसार कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., श्लो. ४६, पद्य, मप., (--),७८२७५(+$) । (२) फलसार कथा-टबार्थ, पंडित. ऋद्धिविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (--), ७८२७५ (+$) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मपू., (बंधविहाणविमुक्कं), ७७६३१-२ बालत्रिपुरासुंदरीदेवी स्तोत्र, मा.गु.,सं., गा. ६, पद्य, वै., (नित्यानंदकरी आई आणंद), ८०७१२-२ बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ७८६३३-४, ७८४८७-२(4), ८००८०-३(#) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), प्रतहीन. (२) साध्वीउपकरण विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, पू., (साधवीना उपगरण कहइ छइ), ७८११७(+) For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ७७६०५-२(#$), ७७७२०(+#$), ८१२६५(+#), ७८४३७(#), ७९३११(#), ७७८२३(६), ७८१३४(६) । (२) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भो भो भव्य जीवो), ७७६०५-२(+#$), ७८४३७(#) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूप., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ७७५५९(+$), ७७८०१-१(+#s), ७८१२५(+$), ७८२५६(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.ग., ग्रं. १७५७, वि. १४९७, गद्य, मप., (नत्वा श्रीवीरजिन), ८०६८०(5) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार करीने अरिहंत), ७७८०१-१(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता), ७८२५६(+$) बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ३५३, वि. ७पू, पद्य, मूपू., (निट्ठवियअट्ठकम्म), ८०२८४($) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा),८०३३१-३(+#),८०७७७-४(+#),७९२१६-३, ८०५२०-५ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय), ७८५९२-२(+), ७८८५८-५(+), ७९१५५(+६), ८००४०(+), ७८४४५, ८१०२८, ७८१३१(#s), ८०९९४(#S), ८१०५७(१), ७९६७६(s), ७९९६३(s), ८०२९७(६), ७८६१४(-) बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछै), ७८९०५(+), ७८९४५(+), ७८९४६-८(+#), ७९१६८(+), ७९५४४(+), ७८४०१,७८९४१,७९१९७, ७९४५२-२,८००७३, ८१०७९-२ बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (सर्वथी थोडा चरित), ७८५७५(६), ७८६७३($) ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम इरियावही), ८०१४४(#) ब्रह्मदत्त सुखदुखविचार गाथा, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (बंभदत्तेणराया सवउवरस), ७९८८४-२(2) ब्रह्मपिंड समाधिध्यान श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमज्योति), ७९५६५ (२) ब्रह्मपिंड समाधिध्यान श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे मनुष्यनी गतिमा), ७९५६५(5) भंगप्रस्तार, गांगेय, मा.ग.,सं., को., मप., (एक संयोगे ७ भांगा), ८०५३४(#) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), ७७५८५(+s), ७७९९२(+#$), ७८३०१-१(+), ७८४८२-१(+#$), ७९८५८(+s), ८०२८५(+$), ७९८४१-१, ७८४२१(#s), ८०१८५(#S), ८०२०२(#$), ८१०७३-१(१), ७७९७८($), ७८९७५-१(६), ७९१३८(#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, मूपू., (पूजाज्ञानवचोपायापगमा), ७७५८०(+$), ८०६२३(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (भव्यवाताब्जराजीविक), ८०२६७(#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (किल इति सत्ये), ७७५८५(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (भक्त जे सेवानइं विषइ), ७९८५८(+S) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिवंत जे देवता), ७८४२१(#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. देवविजय, पुहिं., स्त. ४४, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (भक्त अमरगण प्रणत), ८०१६७(६), ८०७६५(६) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा *, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीमालवदेशमाहि), ७९८५८(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., दि., (गंभीरताररविपुरि), ७८१०५-२ (२) भक्तामर स्तोत्र-गीत, संबद्ध, आ. पुण्यरत्नसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मनसवरं चकेसरी), ७९५४८-५(+) (२) भक्तामर स्तोत्र चतुर्थपादपूर्तिरूप-प्राणप्रियभक्तामर स्तोत्र, संबद्ध, मु. रत्नसिंह, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., (प्राणप्रियं नृपसुता), ७८३९४(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ॐ नमो वृषभनाथाय), ७८३२०(5) भक्तामर स्तोत्र ४८ गाथा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४८, पद्य, दि., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), प्रतहीन. (२) भक्तामर स्तोत्र-(पु.हि.)पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., गा. ४८, पद्य, पू., दि., (आदिपुरूष आदिसजिन आदि), ७७७८४-२(+),७८२९२(+),७७७८३-१ For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ भक्तिचतभंगी विचार, प्रा.,सं., प+ग., श्वे., (निद्दा विगहा परिवज्ज),७९८१४-३(+#) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., (नमो अरहंताणं० सव्व), ७७५७४-३(+), ७७५९४(+#s), ७८२६१(+#s), ७८३६९(+5), ७९१३३(+#$), ७९१८३(+६), ७९३७६(+#$), ८०२४१(+5), ८०४३८(+s), ८०५०६(+$), ७८३३२(5), ७८३७४(5) (२) भगवतीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूप., (ब्राह्मी लिपिनइ), ७८२६१(+#$), ८०२४१(+$) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१२ उद्देश-४, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१२ उद्देश-४ गत पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार१ गुण२ डंड), ८०३७१(+) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१८, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१८ का सोमिलब्राह्मण महावीरजिन प्रश्नोत्तर सज्झाय, संबद्ध, मु. सुगुण, मा.गु., गा. १५, वि. १९२३, पद्य, मूपू., (पंचम अंग प्रधान अरथ), ८०४२६-१(+) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१९ उद्देश ८ से ९ निर्वृत्ति व करण अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (कइविहाणं भंते जीव), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१९ उद्देश ८ से ९ निर्वृत्ति व करण अधिकार का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मार्गणाद्वार१ नारकी७), ७९६६७(+) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१९ उद्देशक-३ सूत्र-७६२ से ७६४, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (एएसि णं भंते पुढवि), ७८६५९(+#) (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१९ उद्देशक-३ सूत्र-७६२ से ७६४ का संबद्ध महावीरजिन स्तवन, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ३९, पद्य, मूपू., (जय सकल नरासुरस्वामी), ७८६५९(+#5) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२६ बंधशतक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मप., (जीवाय १ लेस्स २ पखिय), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२६ बंधशतक का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (जीवाय लेस पखी दिठी), ७८८२०(६) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-७ उद्देश-२ पच्चक्खाण गाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (अणागयमइक्कंते), ७७७२२-३ (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-७ उद्देश-२ पच्चक्खाण गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनागत पचक्खाण ते जे), ७७७२२ (२) जयंतीप्रश्न गहंली, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (चितहर चोवीसमा जिनराय),७९७३३-३(+#) (२) पुद्गल भेद विचार-भगवतीशतक ८ उद्देशा१, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम पउगसा ते जीव), ७८५३४(+) (२) भगवतीसूत्र-नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूपू., (पण्णवय १ बेय २ रागे), ७७९५१(+), ७९८५०(+), ७९०६० (२) भगवतीसूत्र-सर्वबंधदेश बोल, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (उदारिक सरीर केणे),७९९६५(+) (२) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, मपू., (कहण्णं भंते जीवा गुर), ७८१६२(+$), ७७९७३-२ (३) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह-टीका, सं., गद्य, भूपू., (ये ससम्यक्त्वा नरके), ७८१६२(+$) (२) भगवतीसूत्र गहुंली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहियर सुणीये रे भगवत), ७९७३३-१(+#), ७९३१३(१), ७७६३८-२(-) (२) भगवतीसूत्र-थोकडा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (गौतमस्वामी हाथजोडी), ८१२३०(#$) (२) भगवतीसूत्र-प्रश्नोत्तर, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काले अने ते समाने), ८०३७६ (२) भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मासनी दिक्षा सुभ), ७७९२९, ७८५७२ (२) भगवतीसूत्र-भास, संबद्ध, केसरीचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (भगवती अंग सुणीजी रे), ७९७३३-२(+#) (२) भगवतीसूत्र शतक २४-संबद्ध दंडक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात नारिकीयानो दंडक), ७७९३३(+$) (२) भगवतीसूत्र-शतक३०-समवसरण विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूप., (जीवाय लेश पखी दिट्ठी), ७९९७२(६) (२) भगवतीसूत्र-श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र भगवती सतक ८मे), ७७८४४, ७८९४०-१ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (गोतम स्याम्म बुजा), ७९६६८-२ For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (हाथ जोडी गोयम कहै), ७९६६८-१ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (धन्य कुंवर त्रिसला), ७७६२९(+) (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आवो आवो रे सयण भगवती), ८०४२९(+) (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (वंदि प्रणमी प्रेम), ७९६५७-१(+#) (२) विचार संग्रह-भगवतीसूत्रे-शतक-१२ उद्देश-१०, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूप., (जेहनइ द्रव्य आत्मा), ८०३१५ (२) स्वप्न विचार-मोक्षसूचक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूप., (१पहिले सुपने घोडा), ७८७४४-१५(+) भरतक्षेत्र जिनवर्णन श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, मूपू., (अथ नाथोप्यभाषिष्ट), ७९२८९-१(+$) भवानीछंद आरार्तिक स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. २२, पद्य, वै., (अयि गिरिनंदिनि नंदित),७९२०४-३(+$) भविष्यदत्त चरित्र, मु. श्रीधर, सं., स. १५, पद्य, मूपू., (श्रीमंतं त्रिजगन्नाथ), ७७६८३(+$) भावना कुलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मप., (निसाविरामे परिभावयाम),७८२१६-३(+) भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., (आणंदभरिय नयणो आणंद), ७८२१६-२(+$) भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, वि. १४वी, प+ग., म्पू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ७७९५७($) (२) भाष्यत्रय-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदनीयान् परमेष्टिन), ७७९५७($) मंगलग्रह स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (मंगलो भूमिपुत्रश्च), ८०५२०-४ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (ॐह्रींश्री अर्हत), ७७६७५-२ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., इतर, (श्री ॐ नमः आदि सुदिन), ७७५५७-२(+), ८०९३५-२(+), ७७५५८-२, ८१०४८-२, ७९२७०-३(१) । मंत्र संग्रह , मा.ग.,सं., गद्य, जै., वै., बौ., इतर, (ॐ नमः काली नै),७७८८२-३(+#), ७९७४२-३ मंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो भगवओ बाहूबलि), ७९७४६-३(+#) मंत्र संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (संग्राम सागर करींद्र), ८०५२०-८ मंत्रीवस्तुपालसुकृतसूची, श्राव. वस्तुपाल महामात्य, सं., गद्य, मूपू., (अहं श्रीवस्तुपालेन), ७९०५५-१ भता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ११, पद्य, श्वे., (चुल्लग पासग धन्ने), ७८८४४(+) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (चूलग पासग धन्ने जूए), ७८७४५-१ (२) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम चूलक भोजन खीर), ७८७४५-१, ७८८१५(६) मरुकदृष्टांत कथा-रात्रिभोजन परिहारे, सं., श्लो. १०८, पद्य, मूपू., (अस्त्यत्र भरतक्षेत्र),७८३९२(+) महादंडक स्तोत्र, प्रा., गा. २०, पद्य, मपू., (भीमे भवम्मि भमिओ), ७९०३१-२(+#) महापराण, आ. जिनसेनाचार्य, सं., पर्व. ४७, वि. ९वी, पद्य, दि., (श्रीमते सकलज्ञानसाम्), प्रतहीन. (२) जयपताकायंत्र कल्प, संबद्ध, सं., श्लो. ४५, पद्य, दि., (पूर्वावायू यमश्चैव),७७६०६(5) महापुरुषों के नाम, सं., पद्य, मूप., (साधुः श्रीसारंगो महण), ७८१७४-७(+$) महालक्ष्मी स्तुति-मंत्रमय, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६, पद्य, मपू., (ॐ ह्रीं श्रीचंद्र), ७७८०८-३ महावीरजिन २७ भव विचार, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (प्रथम भवि पश्चिम माह), ७८३५५ (+$) महावीरजिनशासने प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरे मोक्षं), ७७६४८ महावीरजिन स्तव-कारकगर्भित, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (आनंदरूप निजशुद्धगुण), ७९२३६-१(+-),७७९६०-२ महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. २२, पद्य, मपू., (जइज्जा समणे भगवं), ७७७६६-१(+), ७७८२०-१(+) (२) महावीरजिन स्तव-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जइज्जा समणेनो अर्थ), ७७७६६-१(+) महावीरजिन स्तुति, मु. रविसागर, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमामिमुदात्रिशला), ७७५६६-४ महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ७९४४३-३(+), ७९६९७-२(5) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (वीरं देवं नित्यं), ७८२६७-६(+#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (श्रीवीरोदितवाचश्च), ७७५६६-२ For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू. (संप्राप्तसंसारसमुद्र), ७९३३१-१ महावीरजिन स्तोत्र, सं., पद्य, म्पू. (--), ७७८८३१४) महावीरजिन स्तोत्र-व्यंजनवर्णगूढार्थगर्भित, मु. रूप, सं., श्लो. ७, पद्य, स्था., (विबुधरंजकवीरककारको), ८०२७९-१(+#) महावीरजिनादि अंजनशलाका प्रशस्ति राजनंगपुर, मु. विनयसागर सं., श्लो. २७, वि. १९०५, पद्य, मूपू. (श्रीवर्धमान जिनराज), ८०२१० (+) मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू (कृतापराधेपिजने कृपा), ७८३८८-१(३) मांगल्योपदेश, सं. प+ग, मूपू. (दिने दिने मंजुल मंगल), ७८१७४-४(*) " मायाबीज स्तुति, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., ( ॐ नमः सवर्णपार्श्व), ७७९३७-२(+#) मुहूर्त संग्रह, मा.गु.से., पद्य, म्पू, इतर (श्वेतवस्त्र परिधान), ८१२२३-२(*) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), प्रतहीन.. (२) मौनएकादशीपर्व कथा- भावार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकदा द्वारकानगरीमां), ७७७३१-२ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), प्रतहीन. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) मौनएकादशीपर्व कथा - बालावबोध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरस्वामीनइ), ७८४४८ मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को. भूपू (जंबूद्वीपे भरते), ७८१४६(+), ८०८८९(१) ७९९४८, ८०५२६-१, ७९१०५(M), " "" , ८१०७१(०) , मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहाजस सर्वज्ञाय), ७९७०९(+), ७८८२६(#) मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गणणु, सं., को. म्पू., (जंबूद्वीपे भरते अतीत), ७८१८६ (+), ७८९१५(४) मौनएकादशीपर्व माहात्म्य, सं., पद्य, मूपू., (द्वारावत्यां), ७७९७२(+#$) (२) मौनएकादशीपर्व माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो भव्यप्राणी ए मौन), ७७९७२(+#$) मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (राजगृहिपुर्यां समव), ७७५६२-२(+$) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ७९६८३-२ "" (२) मौनएकादशीपर्व स्तुति व्याख्यान, सं., गद्य, म्पू. (अरस्यप्रवृज्यानमिजिन), ७७५६२-१(०) , यंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., को., जै., वै., इतर, (--), ७७७७६-२ योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपु. ( नमो दुर्वाररागादि), ७८४०६ (३), ७९९५४(+३) योगादि प्रायश्चित विधि, प्रा. सं., प+ग, भूपू (-), ७८१३८ (+०६) योगोहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., को. म्पू, (आवश्यकश्रुतस्कंधे), ७९०९१(+४), ७९२१५(३) रत्नकरंडकश्रावकाचार, आ. समंतभद्र, सं., परि. ७, श्लो. १५०, पद्य, दि., ( नमः श्री वर्द्धमानाय), ७८०६८(#$) रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा. ५५०, पद्य, भूपू (नमिऊण जिणवारिंदे उवया), ७८३७७-८ " (२) रत्नसंचय - हिस्सा निगोदविचार गाथा, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा. गा. ४, पद्य, मूपू (लोए असंखजोयण माणे), प्रतहीन. (३) रत्नसंचय - हिस्सा निगोदविचार गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपु., (असंख्यात प्रदेशी०), ७७९६१ १ रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं., श्लो. २५, वि. १४बी, पद्य, मूपु. ( श्रेयः श्रियां मंगल), ७८६९५-१ (MS), ८०८४६-४(NS) रविग्रह स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., ( ॐ सूर्य महातेजं), ८०५१६-२ राजप्रनीयसूत्र, प्रा. सू. १७५, प्र. २१००, गद्य म्पू. नमो अरिहंताणं० तेणं), प्रतहीन. " For Private and Personal Use Only (२) राजप्रश्नीयसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिण समए तिण ओसरे), ८११४३(+#$) (२) प्रदेशीराजा के प्रश्न-राजप्रश्नीयसूत्रे, संबद्ध, मा.गु., प्रश्न. ११, गद्य, मूपू., ( प्रथम हिवे ११ प्रश्न), ७९२९४ (+) लक्ष्मीपुंज कथा- देवद्रव्यानर्पणार्पणे, प्रा., गद्य, मूपू (इहेव भरहे लच्छीसार), ७९२५४-१ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, भूपू (वीरं जयसेहरपयपयय), , ७७६०८(+#$), ७७९१८($) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. खेम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं देव), ७७९१८(३) ४९९ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ लघुभावाध्याय, सं., पद्य, इतर (सूर्यो भोमस्तधाराहु), ७९६५१-१(+) " लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू (शांति शांतिनिशांत), ७७६०५-१(+), ७७६६१(+४), ७८३८४(१), ७७८३१(३(३) ७८१८० (३) (२) लघुशांति स्तव टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं. वि. १६४४, गद्य, मूपू (सर्व सर्वसिद्ध्यर्थ), ७७८३१-३(३) (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ शांति), ७७६०५-१(+#) www.kobatirth.org लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नुं), ७९३२७(+९), ८०४२५ (६), ७७६६४(७) , (२) लघुसंग्रहणी-टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (नमिय क० नमस्कार करी), ७९३२७(+३), ७७६६४६) (२) लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंडा जोयण वासा पव्वय), ८०८५१(+$) (२) लघु संग्रहणी खंडाजोयण बोल* संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), ८०३८१(३) (२) लघुसंग्रहणी-यंत्र, पं. सुमतिवर्द्धन, रा., को., मूपू., (१ खंड द्वार जंबू), ८११९५(+) लब्धिद्वारे २१ द्वार विचार, पुहिं., प्रा., गद्य, वे. (जीव गइ इंदिय काए सुह), ७९३४०, ८०९३०(४) , लेश्यालक्षण श्लोक, प्रा., सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (अतिरौद्र सदा क्रोधी), ७९७४५-१ (२) लेश्यालक्षण लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (घणा भूडा कर्म करह), ७९७४५-१ लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. ३२ वि १४वी, पद्य, मूपू (जिणदंसणं विणा जं), ७८४२९-२ 7 वंकचूल दृष्टांत, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (मंसाईणं नियमं धीमं), ७७६७३ ($) वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू (ॐ परमेष्ठि), ७८८०१-३(+), ७८३७७-४ זי वत्सराजकथा-दानोपरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ७७६८४($) वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु., सं., गद्य, भूपू (ज्ञानं सारं सर्व), ७८१४८(+), ७९३४८ वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपू । (श्रीमत्पार्श्वजिन), ७८२६४+६) " वर्णमाला, सं., गद्य, श्वे. (ॐ नमः सिद्धं अ आ इ ई), ७९५२९ " वर्षिदान सज्झाय, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारस्सयमाइच्चा वण्ही), ८०३३५-३ वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य), ८०२५० (+$), ८०६०७ (+), ८०६३८ (+), ८०६१३, ८१०३८(#$), ७८३०५ १) वस्तुपालतेजपालकृत धर्ममार्ग धनव्यय संख्या, अप., गद्य, मूपू., (१२५०००० बारलाख पचास), ७९०८३(+$) विक्रमकुमार कथा-जीवदयोपरि, सं., पद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), प्रतहीन. (२) विक्रमकुमार कथा - जीवदयोपरि अनुवाद, पुहिं., गद्य, मूपू., (जीवदया के पालने से), ७९६५०(*) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " . विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., ( आचारांगनें २ श्रुत), ८०३७४ (+$) विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., प+ग. म्पू, (समरवीर राजा महावीरनउ), ७७८०१-२(+४), ७९७६७ (*), ८०९५६, ८०८४२-५ (३), ७८०८४ (६) विचारसार, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू. (अह चउदससु गुणेस), ८१०७९-१ विचारसार प्रकरण, आ. प्रद्युम्नसूरि, प्रा. गा. ९००, पद्य, मूपू. (पणवजणपूरियासो भगय), प्रतहीन. י' (२) विचारसार प्रकरण-हिस्सा पूर्वमान गाथा, आ. प्रद्युम्नसूरि, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पुव्वस्सय परिमाणं ७०), ७८३४१-६ (३) विचारसार प्रकरण- हिस्सा पूर्वमान गाथा बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सितर कोडा कोड लाख), ७८३४१-६ विचारामृतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., कथा २० ग्रं. २८०० वि. १५०२, पद्य, मूपू (श्रीभूर्भुवः स्व), ७७९२३(5) विजययंत्र कल्प, प्रा.सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., इतर (पुव्वं चिय नेरइए), ८०५६४(३) विद्वगोष्ठी, पंडित सुधाभूषण गणि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू, इतर ( येषां न विद्या न तपो), ८०५०४-१(+) विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., ग्रं. ३५७४, वि. १३६३, पद्य, मूपू., (नमिय महावीरजिणं सम्म), ७८०४७ विनय कुलक, प्रा. गा. १३, पद्य, भूपू (विनयो जिणसासणे मूलं), ७७८२८-२(१), ७९४३२-२ For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५०१ (२) विनय कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (विनयते जिनशासननइ), ७७८२८-२(+), ७९४३२-२ विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मपू., (तेणं कालेणं तेणं), ७७६७९(+$) विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., इतर, (जंभाराति पुरोहिते), प्रतहीन. (२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., इतर, (वाणी पद वांदी करी), ८०४५६(#$) विविध जिन पूजा-पूजन सामग्री, पुहिं.,मा.गु.,सं., गद्य, मप., (वासकुंपा नग २ वंदर), ८१११९-२(+) विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (गुणी गुणज्ञेषु गुणी), ८०५०४-२(+$), ८११८१(+#5), ७८६४९ (२) विविध दोहा गाथा श्लोक सवैया कवित्त हरियाली गूढा आदि संग्रह-भाषा टीका, पुहिं., गद्य, मूपू., (यह चारो मोक्षद्वार), ७८६४९ विविध विचार संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (उस्सेइम संसेइम चाउलो), ७८१६९(+#), ७८२०७(+#$), ७८२७३(+$), ८०२२१(+$), ८०३२८(+#), ८०६७५-२(+#) विविध विचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (जईया होही पुच्छा), ७७८६४-२(+#), ७७६०१(#S) विविध विचार संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (तस जीवाणविधाउ तेह), ८०२८६-१(+$) विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि , प्रा., गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मूपू., (सिद्धिपुरसत्थवाह), ८०२७२(+$) वीतराग स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, म्पू., (श्रीवीतरागसर्वज्ञ), ७९९३७-२ वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मप., (यः परात्मा परं), ७९९३७-१(६) वैराग्य कुलक, प्रा., गा. १४, पद्य, मपू., (सिरीजिणनाहवीरं नमिउण),७८८६७-२ वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०४, पद्य, मूपू., (संसारंमि असारे नत्थि), ७७६६२(+$) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (सं० चार गतिरूप संसार), ७७६६२(+$) व्याकरणग्रंथ, सं., गद्य, इतर?, (--), ७९०५७-१(+) व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (नमो अरिहंताणं० अज्ञा),८०७३४-१,७९३७८(25) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १००, पद्य, मपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), ८१०९४-२(+#) (२) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (एहवो एक धर्मोपदेश), ८१०९४-२(+#) व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., मूपू., (देवपूजा दया दानं), ७८३१२(+$), ८०२२२(+), ८०८१३(+#), ७८१७३, __७८२८७, ७९५०९-३(#), ७८६३०६६), ८०१३०($) शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., मूपू., (ॐ नमोर्हते भगवते), ७८६२९(#$) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मप., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), ७८००४(६) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४३४०, गद्य, मूपू., (यो विश्वविश्वभविनां), ७८००४($) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ८०९६७-२, ८०८४६-६(#) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मपू., (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ), ७९१७१(#S) (२) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-अन्वय, सं., गद्य, मूपू., (अतिमुक्तक श्रीकेवलि), ७९१७१(#$) शत्रंजयतीर्थ स्तोत्र, सं., श्लो. १४, पद्य, मप., (नमन्निव भक्तिभरात्),७८१६४-१(2) शत्रुजयतीर्थोद्धार प्रशस्ति संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (संवत १५८७ वर्षे शाके), ७८८९३-१ शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टा), ८०७७७-५(+#5), ८०५२०-७, ८०७३७-३ शरीरस्थ १६ महारोग गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (कासे सासे जुरे दाहे), ८०७०४-२(+) शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. कुशलसागर, सं., श्लो. १३, पद्य, मप., (सकलदेवनरेश्वरवंदित), ८०८४६-१(#$) शांतिजिन बोलिका, आ. जिनेश्वरसूरि, अप., गा. ४, पद्य, मूपू., (ता उत्तर दक्षिण पुरब), ८११०५-२(+#) शांतिजिन स्तोत्र, पं. विचारसागर, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (--), ७९०६७-२(#$) शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (कल्याणकरं करुणानिलयं),७८४८२-३(+#) शांति स्नात्र पूजाविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), प्रतहीन. (२) शांति स्नात्र पूजाविधि-शांतिस्नात्र गाथाचतुष्क, हिस्सा, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ॐ तं संति संतिकर), ८०३६८-१(+) For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ शांतिस्नात्र विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (तिहां चंद्रबलयोगे गत), ७८६०६(+) शांतिस्नात्र विधि, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (प्रथम पाट उपर रात), ७७८३६(+$) शारदाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (ऐं ह्रीं श्रीं मंत्र),७९२७०-२(2) शालिभद्र चरित्र, पंडित. धर्मकुमार, सं., प्रक्र. ७, श्लो. ११७०, ग्रं. १२२४, वि. १३३४, पद्य, मूपू., (श्रीदानधर्मकल्प), ८०२६१(+$) शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मप., (नित्ये श्रीभवना),८०२८९ शिवमहिम्न स्तोत्र, पुष्पदंतगंधर्व, सं., श्लो. ४०, पद्य, वै., (महिम्नः पारं ते परमव),८०६००-१(+) शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (सोहग्ग महानिहिणो), प्रतहीन. (२) शील कुलक-व्याख्या कथा, सं., गद्य, मपू., (अथ धर्मस्य द्वितीयभे), ७८३६३($) शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (अहं भंते तुम्हाणं), ७९२८६-२(#) शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मपू., (आबालबंभयारि नेमि), प्रतहीन. (२) शीलोपदेशमाला-शीलतरंगिणी वृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, मूपू., (यस्योपदेशसमये दशनांश), प्रतहीन. (३) शीलोपदेशमाला-शीलतरंगिणी वृत्ति-हिस्सा सीतासती चरित्र, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. ३१६, गद्य, मूपू., (तिहुयणपहुणाविहु रावण), ८०६६६() । शुकराज कथा-शत्रुजयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयतीर्थेशः), ७८३१७(+$) शोभनराजकुमार कथा, मा.गु.,सं., गा. २०, पद्य, श्वे., (सिबलेई राजा नीसरइ), ७९८४२-२(#) श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमंडन, सं., अ. ३५, वि. १४९८, गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ७९२५३(+$) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४१, ग्रं. ३९०, पद्य, मूपू., (वीरं नमिऊण तिलोयभाणु), ७८३३१(६) (२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टीका *, सं., गद्य, मपू., (--), ७८११२(+$), ७८३७०(+$) श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., प्रका. ६, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं पणमिय), प्रतहीन. (२) श्राद्धविधि प्रकरण-टीका, सं., प+ग., मूपू., (--), ७८२५९(+६), ७८३८३(+$) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (दंसण वय सामाई पोसह), ८०४३६-१०(+) (२) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पढम उव० पहिली दसण), ८०४३६-१०(+$) श्रावक १२ व्रत सवैया, मु. रूपवल्लभ, पुहि.,सं., सवै. १, पद्य, मूपू., (अहिंसासु १ मृषावादो), ७७९३८-४(+) श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मप., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत),७७८७० (#$) श्रावक आलोयणा, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (तिव्वार पनरठारस इग),८०२७०(#) श्रावक आलोयणा प्रायश्चित विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथमं मुहूर्त), ७८३४८ श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (कलकोमलपत्रयुता श्याम), ७८१७४-३(+), ७८१७४-५(+), ७८७०२-२(+), ८०२२७(+६), ७८५१०-२, ७८७२६, ७९४०२-३, ७७६२१-२(#$), ७८४७४-४(#), ७८५४३-२(#) श्लोक संग्रह-, सं., श्लो. १००, पद्य, जै., वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), ८०५९४(+) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ४१, पद्य, मप., (नेत्रानंदकरी भवोदधि),७९०२४-३(+),७९११५-३ श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ८०९६५, ७९८०२(#$), ८१०३२-२(#), ७९१३७(5) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ७९८०२($) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकाग्रचित्ते जिन), ८०९६५ षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूप., (नमिय जिणं जियमग्गण), ७७६३१-३($) षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १६१, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो सुगुरू), प्रतहीन. (२) षष्ठिशतक प्रकरण-हिस्सा गाथा १, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो सुगुरु), ७८८१८-१(+) (३) षष्ठिशतक प्रकरण-हिस्सा गाथा १-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (अहँत भगवंत असरणसरण),७८८१८-१(+) संख्यावाचीशब्द श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, जै., वै., बौ., (चंद्र१ भूत५ ग्रहा९), ७७५९१-३(+) संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मपू., (संतिकरं संतिजिणं), ७७७७४-१(+), ७८०६५(+), ७८३२४(+$), ७७८८१-१(६) संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मपू., (निसीहि निसीहि निसीहि), ७८३३५-१(+#), ७८७२४-१(+), ७७८२१-१($) For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरुं), ७७६१०(+$), ७७९५६(+$), ७९३६६(+$), __ ७७६९३($) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ तिन), ७७६१०(+$) संयम के १७ भेद, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू., (पंचाश्रवाद्विरमणं), ८०६९९-४ (२) संयम के १७ भेद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच आश्रवथी विरमइ), ८०६९९-४ संवादसुंदर, ग. रत्नमंडन, सं., समवा. ९, प+ग., मपू., (नमोर्हते एकदा जगाद), ७७९५८(+$) (२) संवादसुंदर-टिप्पण, सं., गद्य, मपू., (लक्ष्मीविवेकेनमतिः), ७७९५८(+$) संसार रथ, प्रा., गा. २, प+ग., मूपू., (उड्ढदिसिं पुरिस जीवो), ७९४२४-१(+) सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ९१, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मप., (सिद्धपएहिं महत्थं), प्रतहीन. (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (बंधोदय सत्ता भांगा), ७८५९२-१(+) सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३६०, वि. १३८७, पद्य, मूपू., (सिरिरिसहाइ जिणिंदे), ७८२५५-१(+$) (२) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (ऋषभादिक जिनेंद्र), ७८२५५-१(+$) सभास्थितिलक्षण श्लोक, सं., श्लो. ११, पद्य, श्वे., (देवदानवमानुष्या सा), ७८३७९-२(#) समभाव विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (जो चंदणेण बाहु), ८१२१०-२ (२) समभाव विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (जे कोईक भगति बाव), ८१२१०-२ समवसरणविस्तार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (रिसहो बारस जोयण),७९०२७-३(#) (२) समवसरणविस्तार गाथा-बालावबोध, रा., गद्य, मपू., (ऋषभदेव भगवानरो बारे),७९०२७-३(#) समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०६, ई.५वी, पद्य, दि., (येनात्माबध्यतात्मैव),७९४९०(+$) (२) समाधिशतक-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मा.गु., गद्य, दि., (जिनान् प्रणम्याखिलकर), ७९४९०(+$) सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद गाथा, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चउसद्दहण तिलिंग), ८०१९०-३(+#) सम्यक्त्व के ९ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (द्रव्य समकित भाव), ७७७७६-४, ८१२२६-३ सम्यक्त्व पच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मपू., (जह सम्मत्तसरूवं), ७७६८१(+#$), ७८२७६(६) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोवांछितदातारं), ७७६८१(+#5), ७८२७६(१) सम्यक्त्वादि व्रत आरोपण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम नांदि मांडिइ),७९४६३-१ सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे., (सकलसिद्धिदातारं), ८०३१४(+) सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., वै., (नमस्ते शारदादेवी), ८०७५४-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मपू., (करमरालविहंगमवाहना), ८०५४३, ८०६७६, ७९२७० सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), ७८४१३-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (वाग्वादिनी नमस्तुभ्य), ८०९३५-१(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १५, पद्य, श्वे., (विपुलसौक्षमनंतधनागम), ७८५५४-१(६) सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., इतर, (--), प्रतहीन. (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं), प्रतहीन. (३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., वृ. ३, ग्रं. ७५००, वि. १६२३, गद्य, मूपू., वै., इतर, (नमोस्तु सर्वकल्याणपद), ८०६५२(#5) सर्वज्ञ स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (प्रातरेव समुत्थाय), ७९९३७-३ सागारी अनशन विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (प्रथम इरियावहि पडिकम), ७८६२४(+) साधारणजिन चैत्यवंदन, प्रा.,सं., श्लो. ४६, पद्य, मूपू., (श्रीशैजुंजय मुख्य), ८०८४६-५(२) साधारणजिन पूजा, सं., श्लो. ३८, पद्य, दि., (णमो अरिहंताणं णमो), ७७६१६(+$) साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (देवाः प्रभो यं),७९०६३(+#) (२) साधारणजिन स्तव-टीका, मु. जिनविजय, सं., वि. १७१०, गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथं नम), ८०४४४(+$) For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " ५०४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) साधारणजिन स्तव - टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मया कहता मई संस्तूय), ८०४४४ (+$) (२) साधारणजिन स्तव अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, मृपू. (देवाः प्रभोयमित्यादि), ७९०६३(+) साधारणजिन स्तुति, गु. सं. हिं., श्लो. १५, पद्य, मृपू., ( अद्याभवत्सफलता नयन), ७८६९५-३(७) साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, म्पू, (निपीय वाक्यं वदनेंदु), ८०२९०(३) साधु आचार वर्णन आगमिकटीकागत, प्रा. सं., प+ग, मूपू (अथ भक्तार्थिनस्ते तत), ७९५२५ साधुभावक सम्यक्त्व विचार, प्रा. सं., प+ग. म्पू, (भावविआणसामणुवत्तणाउ), ७९०७३-१(क) , साधुसाध्वी उपकरण, प्रा. गा. ७, पद्य, भूपू (पत्तं पत्ताबंधो पाय), प्रतहीन, , (२) साधुसाध्वी उपकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिन्निविहत्थी), ७८२५१-२ ($) सामाचारी खरतरगच्छीय, आ. जिनपतिसूरि, प्रा., गा. ६०, पद्य, म्पू., (आयरिय उवज्झाए इच्छाह), ७८९०६-१ सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., डा. २२, श्लो १००, वि. १३वी, पद्य, भूपू (सिंदूरप्रकरस्तपः), ७७५८२+०३) ७९०२०-१(१), ७९६१३-३०), ७७६३०(४) ७७८२९(३) (२) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनउ समूह तापरूप), ७९६१३-३(+) (२) सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (शारदाचरणयुग्ममतीतपाप), ७७६३०($) (२) सिंदूरप्रकर- चयनित गुरुगुण स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू (भक्ति तीर्थंकरे १), ७८२९७-२ (०) सिद्धचक्र आराधना विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (प्रथमवर्ष मास दिन), ७९९८६-३($) सिद्धचक्र पूजा, प्रा.,मा.गु., सं., गा. १०, पद्य, मूपू., (हांजी रतन जडत की), ७८५६५ सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. १३, पद्य, मूपू., (जं सहकेवलाओ अंत), ७७७१० (+३), ७८८९२-३(+३), ७९७९९ (२) सिद्धदंडिका स्तव अवचूरि, सं. गद्य म्पू, (आदित्ययशोनृपप्रभृतयो ), ७८८९२-३(+३) (२) सिद्धदंडिका स्तव-यंत्र, सं., को., मूपू., (अनुलोमसिद्धिदंडिका १), ७८८९२-२(+) सिद्धपद स्तवन, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (जगतभूषण विगत दूषण), ७९३८०-२ (+#), ७९३९५-१ सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, सू. ४६८५, ग्रं. २९८५, वि. १९९३, गद्य, म्पू, इतर (अर्ह सिद्धिः स्याद), प्रतहीन. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) प्राकृत व्याकरण, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पाद. ४, सू. १११९, वि. १२वी, गद्य, मूपू., इतर, (अथ प्राकृतम् बहुल), ८०५८५ (+8) " (३) प्राकृत व्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. ग्रं. २९८५, गद्य म्पू, इतर (अथ शब्द आनंतर्यार्थो), ८०५८५(+$) सिद्धांतनाम कुलक, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (--), ७८३७९-१(#$) सिद्धांतरलिका व्याकरण, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू. इतर ( श्रीमडुरुपदाम्भोज), प्रतहीन. " (२) सिद्धांतरलिका व्याकरण-अनिकारिका, संबद्ध, आ जिनचंद्रसूरि सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू. इतर ( अनिट् स्वरांतो भवति), " प्रतहीन. (३) सिद्धांतरत्निका व्याकरण-अनिट्कारिका की टीका, सं., गद्य, म्पू, इतर (वृङ् संभक्ती क्रेयाद), ७७५५१) सुकन विचार संग्रह, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., इतर (कन्यागोपूर्णकुंभं), ८१०१०-२ (+३) सुपार्श्वजिन फणा विचार, प्रा. सं., पग, मूपू. श्रीसुपार्श्व फणापंच), ८०२८६-२(+) सुभाषित श्लोक सं., श्लो. २, पद्य, श्वे. (दुरितवनघनालीशोककासार), ८००२०-३, ७७८२२-३(१), ८०७८५-१(#) י יי י सुभाषित श्लोक संग्रह पुहिं. प्रा., मा.गु. सं., गा. ४०, पद्य, वे. (दानं सुपात्रे विशुद), ८०६७५७(+), ७९४६७-१, ७८६९७(४) सुभाषित संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, इतर, (आदौ मज्जन चारुचीर), ७९९५० - २(+) सुभाषित संग्रह सं. लो. ८, पद्य, इतर * " , (नागो भाति मदेन), ७७७१८-२३२६) (इंदियत्तं माणुसत्तं), ७७८२८.५ (क्या सुभाषितावली, प्रा., गा. ३१, पद्य, भूपू For Private and Personal Use Only (२) सुभाषित श्लोक संग्रह - बालावबोध, मा.गु., गद्य, वे. (दान सुपात्रने विषै), ७८६९७ (३) . सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., श्लो. ४५, पद्य, जै., इतर, (विद्यालक्ष्मीसंपन्ना), ८०९०६-२(+), ७७८१६-२, ७९३२४-५, ८००२८-२, ८०५२२-२(#) ! Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ (२) सुभाषितावली - टवार्थ, मा.गु. गद्य, म्पू, (पांच इंद्री परवडा), ७७८२८-५ (३) सुविधिजिन स्तवन- नवलक्षपुरमंडण, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, सं., पद्य, मूपू., (निज गुरोश्वरणां), ७९९२५ (+) सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., वर्ग. ४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), ७८७४३(५), ८१०१० १ (+$), ७७९३६-३(#), ८०४७७ ($) सूतक विचार, प्रा., मा.गु, गद्य, भूपू. (१२ दिन देवपूजा न कर), ७९७७०-३(+) सूतक विचार, सं., लो. ६, पद्य, म्पू., (सूतकं वृद्धिहानिभ्या), ७९७७०-२(+०) " सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अ. २३, नं. २१०० प+ग, मूपु. ( बुज्झिज्ज तिउद्देज्ज), ७७५५७-१(+३), ८०८६०-(+), ७७५९५ ($), ७७७५८($) (२) सूत्रकृतांगसूत्र- वृहद्वृत्ति #. आ. शीलांकाचार्य, सं. ग्रं. १२८५०, वि. १०वी गद्य, मृपू., (स्वपरसमयार्थसूचकमनंत), ७७९८५ (७) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा मोक्षमार्ग अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३८, प+ग., मूपू., (कएरेमग्गे अक्खाते), ७७६६९ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ७७८६६१(+), ७९४४३-२(+), ७९६९७-१, ७७८६९ (#$), ८०२९२($) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका- अवचूरि, सं., गद्य, मूपु. ( धनपालपंडितबांधवेन०), ७७५९२ (००४) स्त्रीलक्षण विचार संग्रह, सं., प+ग., श्वे., इतर, (शास्त्रोपस्कृतशब्द), ८०६७५-१(+#) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (पु० पुछता हवा कोण), ७७८६९ (६) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गा. २९, प+ग, मृपू. (पुच्छिसुणं समणामाहणा), ७८०६४(२) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पु० पुछेता हुया कोण), ७८०६४ (#) सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. २२००, गद्य, मूपू., (नमो अरि० तेणं० मिथिल), प्रतही. (२) सूर्यप्रज्ञप्ति - बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू.. (पहिला पाहुडानइ विषइ), ७९३६३-१(+) सूर्याष्टक, क. सिंह, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (रक्तवर्णं महातेजो), ८०५२०-३ स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैकतरण), ७७५९२(+), ७७७७३(+5), ७८८३० (+$), ७८१११(#$), ७९०५४ (S) ५०५ (३) ४ मेघ विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., (चार प्रकारना मेघ) ७९७५२-२ (क) "" (२) स्थानांगसूत्र- चयनित सूत्र संग्रह, प्रा., गद्य, भूपू (सत्तहि ठाणेहिं), ७८३०३-१ (२) स्थानांगसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एगे अरिहंता एगे समए), ७८३०३-२ स्थापनाचार्यविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, वे (चअंगुलप्यमाणं ठवणा), ८०९८०-२ हैमविभ्रम, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., इतर, (कस्य धातोस्ति वादीना), ७७५५३(#$) ', (२) हैमविभ्रम-अवचूरि, ग. चारित्रसिंह, सं., वि. १६२५, गद्य, म्पू., इतर ( नत्वा जिनेंद्र), ७७५५३(४७) होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, म्पू. (ऋषभस्वामिनं वंदे), ७७६४९ स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. स्था. १०. सू. ७८३, प्र. ३७०० प+ग. म्पू. (सुर्य मे आउस तेणं), ७८७९५(३) ७८९६३(४) " (२) स्थानांगसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७८७९५ (+$), ७८९६३ (+$) (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीसुधर्मा कहि हे), ७८९६३+३) (२) स्थानांगसूत्र- हिस्सा स्थानक४ उद्देश४ मेघपद से परिनिंदिता पद, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (चत्तारि मेहा प० तं०), प्रतहीन. होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ७७९८८-२($) ह्रीँकार कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (मायाबीजबृहत्कल्पात्,), ७७९३७-३(+#$) ह्रींकाराम्नायकल्प विधि, सं., श्लो. २२, पद्य, वै. (ऐं ह्रींकारस्य किं), ७७९३७-१(+४) For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ३ अशाश्वता बोल-९८ बोल मध्ये, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक चौवीसमो बोल), ७८७३७-२(#) ३ तत्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (परम पुरुष परमेश्वर), ८०३९८(+#), ८०२२६ ३ पर्वत विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (त्रिण पर्वत वलयाकारि), ८०७६१-३ ४ गति वेलि, मा.गु., गा. १३५, वि. १६वी, पद्य, मप., (आदि देव अरिहंतजी आदि), ७७८४१(+), ८०४१८(+$) ४ जाति आसीविष, मा.गु., गद्य, मप., (वीछ जाति विषै१),७९७५२-३(#) ४ ध्यान विचार, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (प्रथम आरितध्यान जीका), ७८२२३(2) ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं.११२०, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ शशिकुलतिलो), ७९४५६($) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (करकंडू दोमुंहमुनि मन), ७९३४७-२(#) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (चिहुं दिसथी च्यारे), ८०७५९-५(+#), ८०८७४-५(+), ७९४८७-५ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., सज्झा. ४, गा. ७६, पद्य, मूपू., (देश कलिंगइ नगरी चंपा), ७९३४७-१(#) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूप., (नगर कंपिलानो धणी रे), ८०४४०(+), ८००१२ ४ बोलवाणी व्यवहार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सत्य भाषा १ असत्य), ७९४२९-५(+) ४ बोल-हास्य, मा.गु., गद्य, मप., (मुनीसर हसे मरकले), ८०५७३-४(+) ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, वि. १८वी, पद्य, स्पू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ७८८३३(+) ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहेलु ए मंगल जिनतणु), ७९४८९-१(+) ४ मंगल पद, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मप., (धरम उछव समै जैनपद), ७९४८९-४(+) ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी जे नमु), ८०८६८($) ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (पो उठीनें समरीजै हौ), ७९८०५-१ ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.ग., अ. ४, गा. १२, वि. १७वी, पद्य, मप., (मुजने चार शरणा होजो), ७९५५७-२(+),८०७५३ ४ शरणा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो शरणो अरिहंत),७८६६८(+), ७८७७९(+$), ७८२४९-२ ४ श्रावक प्रकार पद, मु. मोतीचंद, मा.गु., गा. ३६, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (वर्धमान शासनधणी गणधर), ७९१४२(+) ५ अनुत्तरविमान नाम, मा.गु., गद्य, भूपू., (विजय १ वैजयंत २ जयंत), ७८४२७-४ ५ इंद्रिय विवरण, पुहि., गद्य, मपू., (स्पर्शनेंद्रिय १), ८०८६०-३(+) ५ इंद्रियविषय पद, मु. जगराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (भोग दुखदाई तजो भवि), ७८१८९-२ ५ इंद्रिय विषय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जघन्यतो अंगुलनो), ७८९४०-२ ५ इंद्रिय संवाद ढाल, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६, गा. १३०, पद्य, स्था., (अरिहंत देव नमी करी), ७७८४८ ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (काम अंध गजराज अगाज), ७८३४०-२(+) ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. हेमविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रीजिनधर्म उदय धरो), ८०८३५-२(#) ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मप., (सिद्धारथसुत वंदिये),७७६४६(+), ८०२११(+$), ७९०९३, ७९१०२-१ ५ चारित्र नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सामायक१ छेदोपस्थापनि), ८१०६७-५ ५जिन स्तवन, उपा. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (पंच परमेसरा परम), ७८२२९-१(2) ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ८०१८३(+#), ८०९३८-२(+#), ८०३२१,७९८३२(2), ८१०५९-१(६) । ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, दि., (इहविधि मंगल आरती), ७९०८१-३ For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५०७ ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ७८८४६-२ (+#), ७७९१७, ८०३५४, ८०३५५, ७८३६१-२७) ५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (चक्रवर्त्तिरइ पचवीस), ७८३४१-८ ५ बोल, मा.गु., गद्य, मृपू., (पहिलो नारकिनो द्वार), ७९२८७-२ ५ बोल-धर्मप्राप्ति अयोग्यता, मा.गु., गद्य, श्वे., (पांचै बोलै धरम न), ७९४२९-४(+) ५ मंगल स्तवन, ग. शुभविजय, मा. गु, गा. ८, पद्य, मूपू., (पहिले ए मंगल मन धरो) ७९१९५ " ५ मंगल स्तवन, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे. (उस पहलो मंगल अरिहंत), ७९४७९ " ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., डा. ५. गा. ३१, पद्य, म्पू., (सकल मनोरथ पूर्वे रे), ७९०७६ (५६), ७९१७८ (MS), ८००३६-१(२), ८०५६९ (क), ८११०४-१(२) ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, म्पू, (सुरतरुनी परि दोहिलो), ७९९२८, ८०८७५-१(७) ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रथम उदविकभाव), ७८८१४-३(१) ५ मेघ प्रकार-प्रथम आरे, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आरे पांच), ७८७४४-६(+) ५ मेरुपर्वत गणना, मा.गु., गद्य, श्वे. (१. पूर्णगिरिनम ), ७९७२३-३ " ५ शरीरे सर्वबंध देशबंध विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (थित० अलपाबहुत उदारीक), ७८८८९ (+-$) ५ संख्यात्मक विषयनाम दोहा, मा.गु., दोहा १, पद्य, खे, (पंचे परमेष्ठि ज्ञान), ७९३२२-२(-) (२) ५ संख्यात्मक विषयनाम दोहा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (पंच परमेष्ठि अरिहंत), ७९३२२-२(-) ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ९, गा. ५४, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (श्रीस्याद्वाद शुद्धो), ७९०४१-१ (+), ७९४२७(#) ६ आरा मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीस कोडाकोडि सागरोपम), ८०८२७, ८०१९५(#) ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू (पृथ्वीकाय अपकाय), ७९००८-२ (+), ७९२७५-३(*), ७९३६३-२(*), ७८७८४-२ ($) ६ काय जीव सज्झाय, मु. भैरवजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (श्रीजिणवर इम भाखीउं), ८०२२०-१ (# ) ६ द्रव्य ७ नय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकायरा गुण ४), ८०९७७-२(+) ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मद्रव्य शुद्ध लोक), ७८९७४-५ (+#) ६ भाषा नाम, मा.गु., गद्य, वे., (संस्कृत १ प्राकृत), ७९६८७-३ ७ ज्ञानावरणी कर्म, मा.गु., गद्य, मूपू., ( शात्रसिद्धांत वेचे), ७८६६२-१(+) ७ नरक गोत्र, मा.गु., गद्य म्पू. (रत्नप्रभा १) ७८६९४-१०) ७ निह्नव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्षित्रीकुंडपुर नगर), ७८२७७(+#$) ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., ( इहलोक भय १ परलोक भय), ८०२३६-२, ७९१८०-३(#) ७ भाव भय, मा.गु., गद्य, मूपू., ( काम १ क्रोध २ मद ३), ८०२३६-३ ७ रत्न विचार- वासुदेव, मा.गु., गद्य, मूपू., (चक्र धनुष खड्ग मणि), ८०४३६ ५ ला ७ व्यसन त्याग सज्झाय, मु. दास, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (सात विसण कै त्यागो), ८०८६३-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, वे., (मनुष जमारो पायक करणी), ७९९१८(+) ७ व्यसन सज्झाय, ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे. (काया कामिनी जीवस्युं), ७८९०८(#) " ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( पर उपगारी साध सुगुरु), ७९९६४-२, ८०३६२ ७ व्यसन सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगण सनेही हो सांभले), ८११७९-२(#), ७७९२७-२($) (सात समुद्धातना नाम). ८०४३४ (+) ७ समुद्धात थोकड़ा, मा.गु., गद्य, थे. " ७ स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (दुषमकालनां सात थानक), ७८०४०-२ " ८ आत्मा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (दिव्य आत्मा १ कषाये), ७८७४४-२०(+) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ७८४०० (+), ७९४२९-७ (+), ७९६५९ (+), ७९७७६-५ (+), ७८९३६, ७७७३५ (७), ७८१४९(३) ७९१६७-२ (45), ७९०५२(३), ७९२४७ (३), ७९५७४ (5), ७९९७०(5) For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ८ कर्म ढाल, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (--),८०६६७-१(#$) ८ कर्म नामप्रकृतिस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पहिलो १ ज्ञानावरणी), ७८६९४-१२(+$) ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानावरणी कर्म आंख), ७८४९३(#$), ७९१६७-१(२) ८ कर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, पू., (ज्ञानावरणीनी स्थिति), ७८८१८-२(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. ३६, वि. १८१३, पद्य, मूपू., (श्रुतधर जस समरें सदा), ७९२३१($) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मपू., (अजर अमर निकलंक जे), ७८६०२(+), ७९२९३, ७७९६०-१() ८ प्रकारीपूजा दोहा, पुहिं., दोहा. १०, पद्य, मूपू., (जलधारा चंदन पुहुप), ७७७१७(#) ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ७८, गा. २०९४, वि. १७५५, पद्य, मप., (अजर अमर अविनाश जे),७८६१०(#$) ८ प्रवचनमाता नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ इरज्यासम २ भाषासम),८१०६७-२ ८ प्रवचनमाता विचार, मा.ग., गद्य, श्वे., (इर्यासमितिना ४ भेद),७९७५२-५(#) ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.ग., ढा. ८, वि. १८२१, पद्य, श्वे., (पांचसुमत तीनगुप्त आठ),७९४१०(#$) ८ बोल-उद्यमी जीव के, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिले बोल भणवारो), ७९४२९-२(+) ८ बोल-ज्ञानबाधाकारक, मा.गु., गद्य, मूपू., (१आलस करे तो ज्ञाननु), ७८७४४-१२(+) ८ बोल-श्रावकाचार, मा.गु., गद्य, मप., (पहिलै बोलै हिस्या), ७९४२९-३(+) ८ मोती उत्पत्ती स्थान, पुहिं., गद्य, मूपू., (आठ स्थानक में मोती), ७८७४४-१६(+), ७८९०६-३ ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ७९१५२(+#$), ७९५८४(+#S), ८०५७०(#s), ७९६४५-१(६) (२) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतं), ७९१५२(+#$) (२)८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (निरुपद्रव्य सुखनु), ७९१५२(+#$) ८ श्रावकाचार प्रश्नोत्तरी, पुहिं., गद्य, मूपू., (श्रावकजी खावे काई), ७८४७८-४ ९नियाणा विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (राजाने नियाणे बोधबीज), ७७८१२-२ ९ बोल- ब्रह्मचर्य विषये, मा.गु., गद्य, मपू., (नारी पुरुषने वैरी), ७८८०७-२ ९ रस नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ श्रृंगार २ वीर ३), ८०३३९-२ ९ वाड ढाल, मु. भूधर, मा.गु., पद्य, मूपू., (सारद माय पसाय करी), ७८१९७($) ९ वाड ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, श्वे., (वसति १ स्त्रीनी कथा), ७९३८४-५ ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ७८१९५(+६), ७९७०७(+#), ८०२०१(+), ७८७९२, ८०८६९(#$), ८०८४७($), ८०८६७(s), ८०९५४(६) ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., ढा. ९, गा. ५६, पद्य, मपू., (आदि आदि जिणेसर नमुं), ७८८४५-१ ९ वाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (पहेला प्रणमुं गोयम), ८०९७४-१, ७९२१८-१(-) ९ वाड सवैया-ब्रह्मचर्यविषयक, मु. रुघपति, पुहि., गा. १, पद्य, मूप., (एक ठामि स्त्रीपुरुष), ७७९३८-६(+) ९ सामायिक द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हेतु अन्वय व्यतिरेक), ७८५३५-४(+) ९ सोपक्रमी बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (अज्झवसाण१ निमित्ते२),७७८५०-३ १० अनंता द्रव्य प्रकार, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ पहिले बोले सिद्ध), ७८७४४-७(+) १० गणधर सज्झाय-पार्श्वजिन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रभाति ऊठीनै पहिलू), ७८९५६-२ १० दृष्टांत सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभता, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. १०, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (श्रीजिन वीर नमी), ७९६९१ १) १० नक्षत्रज्ञान बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ मृगसिर नक्षत्र), ८१२२६-२ १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (नवकारसी सागार पोरसी), ७७७८७-४(+), ८११७१-१ १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मु. सोमसुंदर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दसविध प्रह उठी), ८०८३५-१(#) For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (दसविह प्रह उठी), ७९०१६-५(+), ८१०६१-२(+), ७७८७८-३(#$) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमुं), ७८९०३(+), ७९२१३-१(+), ८०२५१-२(+#), ७९५५६-२ १० प्राणदंडक विचार, पुहि., गद्य, मप., (एक प्राण में दंडक), ८११२६-२(+) १० बोल-आलोयणा लेने वाले के, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ पहिले बोले जातीवंत), ७८७४४-२(+) १० बोल-दीक्षा लेने के कारण, मा.गु., गद्य, मपू., (आपण मेले दीक्षा ले), ७८७४४-१३(+) १० बोल-दोषोत्पत्ति के, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ विगेनो लोलपी होय),७८७४४-१(+) १० बोल-प्रास्ताविक, मा.गु., गद्य, मपू., (१ दो स्त्री वालाने), ७८७४४-१०(+) १० बोल रूपीअरूपी, मा.गु., गद्य, मप., (जनमरूपीणी रूई मरणरूप), ८०५७३-२(+) १० बोल-संक्लेश, मा.गु., गद्य, मूपू., (वचनसंक्लेश काय), ८०५७३-३(+) १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्यादवादमत श्रीजिनवर), ७८४०७ १० भुवनपतीदेव नाम भवनादि बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (असुरकुमार नागकुमार), ८०३८८-३ १० मनुष्यजन्म दुर्लभ बोल, मा.गु., अंक. १०, गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै मनुष्यभव), ७९४२९-१(+) १० यतिधर्म भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंती क० साधु क्षमा), ७९३८४-२, ८१०६७-३ १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ११, गा. १३६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (सुकृतलता वन सींचवा), ७७७८६(+$) १० वैयावच्च भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ आचार्य २ उपाध्याय), ७९३८४-४ १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ३२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (जिण चुवीसी करुं), ८०३३९-१ १० श्रावक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८२९, पद्य, श्वे., (आणंदने सेवानंदा रे), ७९४७८-१ १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रह उठि प्रणमु), ८०२४५ १० संज्ञा विचार-वनस्पति, मा.गु., गद्य, श्वे., (वनस्पतिनी दस संज्ञा), ७९७५२-१(2) १० सम्यक्त्वरुचि बोल, मा.गु., गद्य, म्पू., (निसर्गरुचि१),७७७७६-३ १० साधुलक्षण सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (पहिलो लक्षण साधनो जी), ७८६०९-१(-) १० स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (प्रथम आराधू), ७९६११-२(+) ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मपू., (आचारांग पहेलुं का), ७९३३४-१ ११ अंग सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. १२, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (पहिलो अंग सुहामणों), ७८२३४-२ ११ गणधर संशय सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (प्रभाते उठीने भविका), ७९०७५-३(#$) ११ गणधर सज्झाय-महावीर, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (रे जीव गणधर वांदीइं), ७८९५६-३ १२ कुल गोचरी, मा.गु., गद्य, श्वे., (उग्र कुलाणी वा कहता), ८०१९०-५(+#) १२ गुण अरिहंत, मा.गु., अंक. १२, गद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष प्राति), ७९६१६-१, ८०७२१-२(#$) १२ चक्रवर्ती आयुमान देहमान बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम भरत चक्रवर्ति), ७८३४१-१ १२ चक्रवर्ती नाम, मा.ग., गद्य, श्वे., (प्रथम भर्थजी१ सगर२),८०१९०-६(+#) १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव आयुष्य बोल यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (१ सोधर्मदेवलोके आउखू), ७८५०८-३(+), ७८६९४ १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो सौधर्मइ देवलोक), ७८४२७-३ १२ पर्षदा समवसरण विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (पूर्व दिसिने बारणे), ७९०२७-१(2) १२ प्रश्न सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (दुरलभ नरभव भमीउ), ८१०८१-२ १२ भावना नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनित भावना १ असरण), ८१०६७-४ १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२, गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (आदिसर जिणवर तणा पद), ८०२०८-१(+#), ७९३६०(2) For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ७९०५० (+), ८०७४७- १(०३) १२ मत नाम, मा.गु., गद्य, श्वे. (आमलीमत १ पासचमती २), ७९५१०-३(+) १२ राशि पद, मा.गु., गा. २, पद्य, इतर, (नगर गोरवै नारी आई), ७८९६८-३ १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम सम्यक्त्व देव), ८११७० (+#) १२ व्रत ढाल, मा.गु., डा. १०, गा. १६५, पद्य, मूपु. ( पांच अणुवरत प्रवडा), ७९५०५-१ १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेहेले प्राणातिपात), ७८७२५-२ (#) १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्राणातिपातव्रत मृषा), ७९४६३-२, ७९६८७-८ १२ व्रत सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, वि. १६८२, पद्य, मूपू. (श्रावकना व्रत सुणिज), ७७६४५-४(१) १२ संपदा - मनुष्यकी, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्यपणओ१ आर्य), ८०१९०-४(+#) १२ साधुप्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू (पहिलि प्रतिमा १ मास), ८०७०३-२ ', १३ काठिया गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (पहिलो आलस१ बीजो मोह), ८०६९९-३ १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलस १ मोह २ बने ३), ८०६९९-२, ७९१८०-२(#), ८११८४-२(-) १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७. वि. १८वी, पद्य, मूपू (आलस पेलो काठियो धर्म), ७८२६० १३ काठिया सज्झाय, मु. रायचंदजी ऋषि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (रतन चिंतामणि एहेवो), ७९१२३ १३ बोल-चातुर्मास योग्य स्थानविषये, पुहिं., गद्य, श्वे., ( किचड गारा थोडा होवे), ८०१२६-१ १३ बोल हानीवृद्धि के, मा.गु., गद्य, वे. (१ कलहो २ रामत ३ खाज), ७८७४४-३(१) १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व गुणठाणो १), ७८९२८ - ३ (+), ७९७७६-४(+), ७९६८७-१, ७९०३४-२(#) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, थे. (बंधप्रकृतयस्तासां ), ७८६९४-११ (+), ७९८१३, ७९७२३-५(३) (२) १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को. म्पू., (मिथ्यात्व सास्वादन), ७९६२३(+), ७९३९७, ८०४१७ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं जिनं), ८०९१२(+), ७७८१२-३, ७८१५७ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ७९८४० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, म्पू., ( पासजिनेसर पद नमी रे), ७८२०४-४ १४ गुणस्थानक सज्झाय, उपा, जयसोम, मा. गु, गा. ६४, वि. १७६८, पद्य, मूपू. (चंद्रकला निर्मल सुह), ७८४८९१४) १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मुक्तिविजय शिष्य, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (निजगुरु केरा प्रणमी), ७८१९९-३ ($) १४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, म्प (सम रवि जिणवरदेव गणहर), ७८२०६ १४ गुणस्थानकस्थिति काल, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्या० स्थिति अनंतो), ७९७७६-३(+) , १४ गुणस्थानके १२० प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपु., (मिध्यात्वगु० आहारक), ७८१९८(०४) १४ गुणस्थानके १५८ कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू. (ते मधे प्रथम वंद्व), ७८८१४-१ (१०) " , १४ गुणस्थानके २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुणस्थानक १४ तेहनां), ७९२९८-२($) १४ गुणस्थानके ८ कर्म की १४८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू.. (प्रथम गुणठाणइ अठकरम), ८०२०० १४ गुणस्थानके कर्मप्रकृति विचार, मा.गु, गद्य, भूपू (उधि बंध १२० प्रकृति), ७८१३२(३) , १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी ५ दर्शना), ७८८१४-२ (+#), ७७९६१-२, ७८८८०-२, ७८४६९(क) १४ नियम नाम श्रावक, मा.गु., गद्य, मृपू. (सचितद्रव्य १ अचित), ८०९९३ (+४), ७९६८४-३ " १४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचित ते कोने कहीई), ७९४४५-१ १४ बोल- संयत असंयतादि की जघन्योत्कृष्ट देवगति, मा.गु., गद्य, वे., (असंजमी मिध्यात्वी), ८०३०४-१(०) ८०३५३(*) १४ भेद-जीव के, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना १४ भेद तेमा), ८११९३-१ १४ रत्न विचार-चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, मूपू., (चक्र छत्र दंड ए तीन), ८०४३६-३ (+), ७९६८७-४, ८०७६१-४ १४ राजलोक परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सातमी प्रथवी तेहनी), ७८४९२-१(+) For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५११ १४ राजलोक प्रमाण, मा.गु., गद्य, मप., (कोई देवता सोधर्मदेव),७८८९१-३,८०८४२-४(#) १४ राजलोक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७९०५९(+$) १४ स्वप्न कवित, मु. नंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सूंढ सरल दीपत्त दंतु), ८०९३३(+#) १४ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वप्न पाठक कहइ छइ), ८०७६१-१, ८१०९१-४(#) १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मप., (श्रीदेव तीर्थंकर केर), ८००६६(+#),७८५३१(६) १४ स्वप्न सज्झाय, ग. हीरधर्म, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू., (तारक सकलाधार प्रभु), ८०९५० १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, स्पू., (पहलीने वले प्रणमु हो), ८००५९(#s) । १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम ऐरावण दिठो), ८०६९९-१ १५ कर्मभूमि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरत क्षेत्र ५ ऐरावत), ७९६८७-७ १५ तिथि सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. १५, वि. १८७३, पद्य, श्वे., (पडवे परतो तारो मे), ७८७३३ १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्तु. १६, गा. ६४, पद्य, मप., (एक मिथ्यात असंयम), ७८६९८(+#$) १५ पाट वधावो-स्थानकवासी गुरुपरंपरा गीत, रा., पद्य, श्वे., (कठोडैरा वाजा वाजीया), ७८६६९-४ १५ बोल वैराग्योत्पत्ती के, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ पहिले बोले साध), ७८७४४-४(+) १५ भेद पात्रविचार चौपाई, श्राव. किशोर, पुहि., गा. २४, पद्य, श्वे., (नमु देव अरिहंत को नम), ७९३५३-१(+) १५ योग नाम-मनवचनकाया, मा.गु., गद्य, मूपू., (सत्यमनोयोग १ असत्य), ७७७०७-३(+) १६ कोष्ठक निर्माण सवैया, मु. रुघपति, पुहि., सवै. १, पद्य, मप., (चिंतत आंक अरट्ठ एक), ७७९३८-७(+) १६ कोष्ठक यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (जिन चउविसइ पाय प्रणम), ७७८८६-३(+#) १६ संज्ञा नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (आहार१ भयर परिग्रह३), ७८६९४-२(+) १६ सती नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ब्राह्मी१ चंदन२ बालि), ८११६९ १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ७८७७८, ७९६१२, ८०३६४, ८०७३६-३, ८११८० १६ सती सज्झाय, मु. त्रिकम, मा.गु., गा. १६, वि. १७७०, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभ तणी धुया), ७७७०३-१, ७९७३९-२ १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (सील सुरंगी भांलि ओढी),७८८८२-१,८०७२५ १६ सती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (शीतल जिणवर करी),८०१२१-२ १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ७९९२१(+$) १६ सत्यवादी सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मचारी चूडामणी), ७७९३४-१ १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (पाडलीपुर नयरी चंद्र), ७७९२१(+#) १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (पाडलिपुर नामे नगर), ७८९३१(+), ७९३७१(+), ७८६४३-१(2) १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि एम नमुं), ८०९९७-२($) १७ बोल-जीवभेद मोक्ष प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, श्वे., (तीलमोही तिल रमरयो),७८२३७-२(+) १७ बोल-भावसंग्राम, मा.गु., गद्य, मप., (१ जीवरूपीयो राजा), ८१२२६-१ १७ भेदी पूजा, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., प+ग., मूपू., (ज्ञानज्योति प्रकाशकर), ७८५४१ १७ भेदी पूजा, मु. मेघराज, मा.गु., पूजा. १७, पद्य, मूपू., (सर्वज्ञं जिनमानम्य), ८०३९१(६) १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ७८१८७-१(5) १७ संयमभेद नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (पृथवीकाय असंयम १), ७९३८४-३ १८ चतष्क बोल -औपदेशिक व प्रास्ताविक, पुहि., गद्य, श्वे., (पहेली चोकडि चार बोले), ७८०३७(2) १८ चोकडी बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (अढार चोकडी लखी छे), ८१११३, ७९६३६(#S) १८ दोषरहित अरिहंत परमात्मा, पुहिं., अंक. १८, गद्य, मपू., (अरिहंत प्रभु १८ दोष),७९५४०(5) १८ नातरा कवित्त, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (देवर भतीजो भ्रात), ७९५६३-२ १८ नातरा चौढालीयो, मा.ग., ढा. ४, पद्य, मप., (लख चोरासी भटकतां), ८१००८-१(+) For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मथुरा नगरी मे कुबेर), ७९५६३-३, ८०५४९-४(#) १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मपू., (पहला ते प्रणमुं पास),७९७५६-१(+), ८०८४३-२, ७९००४(#S) १८ नातरा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., ढा. ४, गा. ७५, पद्य, मूपू., (मानव भव पायो जी), ८१११७(+#$) १८ नातरा सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मथुरापुरी रे कुबेर), ८०७४५-१, ८०७४७-२(#) १८ नातरा सज्झाय, पंन्या. देवविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २२, वि. १६१८, पद्य, मप., (श्रीवीरजिणेसर पाय पण), ७८२३३ १८ नातरा सज्झाय, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., गा. ३९, पद्य, श्वे., (--),८११७९-१(६) १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., ढा. ६, गा.७३, पद्य, मूपू., (उपना डावडा डावडी बंध),७७७४७(+) १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७९९४४(5) १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८०५८८(5) १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूप., (पहलो प्राणातिपात),७९७३४-१ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), ७९८९१-१(+#$) १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. जेठमल, मा.गु., गा. २१, वि. १९१९, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पाव बंदीय), ७८५८६-६(+), ८०४०५-१(2) १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पापस्थान अढारे पुरो), ८११००-३(5) १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, मपू., (१ बोले पोसानी रातने), ८१०९८-२(-) १८ भार वनस्पतिमान दोहा, रा., दोहा. २, पद्य, श्वे., (कोडि तीन लख वसु ससि), ८०८४२-१(#) (२) १८ भार वनस्पतिमान दोहा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (७६८६०१७८०० इतरी जाति), ८०८४२-१(#) २० द्वार-परिहार विशुद्धि, मा.गु., गद्य, मपू., (क्षेत्रद्वार१ काल), ८१०१४ २० बोल असमाधि, मा.गु., कडी. २०, गद्य, मूपू., (उतावलो चालें तो), ७८८७५-२ २० बोल वादनिवारण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८३३, पद्य, स्था., (किणसुं वाद विवाद न),७८६१३ २० विहरमानजिन, अतीत, अनागत व वर्तमान तीर्थंकरादि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीकेवलज्ञानी १), ८०७७९ २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (त्रिभुवन जन आणंद), ८१२६१-४(#) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, मपू., (सीमंधर जिनवरा विचरे), ७९९४५(#$) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, श्राव. लाधो साह, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अढीयद्वीपमा आज छे), ७८५१५-१ २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधर १ युगमंधर), ७९२८७-३ २०विहरमानजिन परिवारादि कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--),८०२७१(+#), ७९६२० २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहि., गद्य, मप., (श्रीमंधरस्वामि), ७९४२५ २० विहरमानजिन विवरण दोहा, मु. आणंद कवि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मपू., (विवरो ए गाथातणौ कवि), ८०६७५-५(+#) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, पुहि., पद्य, मपू., (सीमंधर सुंणो वीनती), ७८७०५-३(5) २० विहरमानजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीस जिनेसर जग जयवंता), ७८५२२-२(+), ७८९९५-९(२) २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (वंदु मन सुध विहरमाण), ७७८७३ २(+$) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. श्रीपाल, मा.गु., ढा. ३, गा. ३०, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (श्रीगणधर गुण स्तवं), ८०४००(#) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, मा.गु., ढा. ५, गा. ३१, वि. १८१४, पद्य, म्पू., (समरूं मन सुंधै सदा), ७७८७३-१(+) २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, म्पू., (दया करते रहीयौ), ७८१२२-२(६) २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम सुबाहु वखांण), ७८०८१(#$) २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. १६, पद्य, पू., (विहरमानजिन विचरे एह), ८०७०९-१ २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. १७, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (वीस विहरमान सादा), ७८५०५ २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीमंधर पहला सहीये), ७८०००-२($) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ २०विहरमानजिन स्तवनवीसी, म. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मपू., (--), ८०१७४(+$) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुखलवई विजये जयो रे), ७७८८२-१(+#$), ८१२६४(#s), ७८६८८(5), ७९३४५(६) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., स्त. २०, वि. १८०४, पद्य, मूपू., (--), ७७६०४(+$) २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय), ७८४८७-३(2), ८००८०-४(#) २० स्थानक चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मप., (अरीतसीथी पवयणासुरीथी), ७८०८३-४(#) २० स्थानकतप सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (श्रीजिनचरणे करी), ७८२३१-२ २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मप्., (वीशस्थानक तप सेवीयै), ७८६९६(+#) २० स्थानकपट्ट स्तवन, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८९९, पद्य, मूपू., (आज आणंद वधाई म्हारे), ७८५०४ २० स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (पहिले बोले),७९१६४-१(2) २१ औपदेशिक बोल, मा.ग., गद्य, श्वे., (पहले बोल धनवंतसं),७७५६३-२ २१ बोल-सबल दोष, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ७८४३९-१(६) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (देव गुरु केरुं लीजिं), ७९७२८ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (जिनशासन रे शुद्धि), ७७८३७-१ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सवैया, पुहिं., सवै. १, पद्य, मपू., (सूरण वजर कंद मूली), ७७९३८-१(+) २२ अभक्ष्य पद, मु. रुघपति, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (बावीस अभक्ष्य ओला), ७७९३८-२(+) २२ परिषह उदयहेतुभूत कर्म विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (चार कर्म ने उदै २२), ७९४४९(६) । २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८२२, पद्य, स्था., (श्रीआदेसर आद दै),७९८९६(+), ७९१५४-१(#) २३ पदवी गतीआगती विचार, मा.गु., गद्य, मप., (हवे कहि गतीनो आव्यो), ७८७४४-१८(+) २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ७८७४४-१७(+), ७९९८३(+), ८०४३६-१(+), ८११६०-१(+), ७९०८४, ८०४३१(#) २३ पदवी सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. ९, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (गणधर गौतमस्वामी जी), ७९७८५ (#) २३ पदवी सज्झाय, मु. कान्ह शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सांतिकरण जिनवर नमु), ८००६२-१ २४ जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, नाम देहायुमान विवरण, मा.गु., को., श्वे., (ऋषभ१ भरत धनुष ५००), ७८९४६-१(+#), ७८६२२(#) २४ जिन अंतरकाल स्तवन, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जिनचउवीस त्रिकाल ए), ७८९०१-१(+) २४ जिन अंतरा स्तवन, मु. तेजसिंह, मा.गु., ढा. १०, गा.४५, वि. १७३५, पद्य, श्वे., (आदि अनादि अधुना अछे), ८०४४१-२(+) २४ जिन अष्टक, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अविचल थानक पहुता), ७९८०७-१(+), ७९०८१-१ २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीआदिनाथ आंतरइ), ८०२५९(4) २४ जिन आश्रित चक्रवर्ती वासुदेव समय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभदेवनइ वारइ भरथ), ७७८५०-२, ७९४८०(5) २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.ग., गा. ९, पद्य, मप., (सरसती आपे सरस वचन),७९७५६-२(+) २४ जिन गर्भावास काल, मा.गु., को., मपू., (श्रीऋषभदेवस्वामिनो), ७९००६-१(#) २४ जिन गीत, मु. आनंद, मा.गु., स्त. २४, वि. १५८१, पद्य, मूपू., (आदि जिणंद मया करो), ७९०२२-१(६) २४ जिन चंद्रावला, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मपू., (निजगुरु चरणकमल नमी), ७९०८७($) २४ जिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पैहलि प्रणमु प्रथमना), ८०८५५-१(#) २४ जिन चैत्यवंदन-अतीत, मु. अमृत, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (अतीतचोवीसी वंदीए आतम), ७८९८९-१,७९६२८-१ २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूप., (पद्मनाभ पहेला जिणंद), ७८६११-१(+), ७८७८०-२(+) २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मप., (पद्मप्रभने वासपूज्य),७८९९०-१(2) For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २४ जिन चोढालियु, मु. खोडीदास, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १९१८, पद्य, स्था., (प्रभुजी आदि जिणेशर), ७८७७२(+), ७८७८७(+) २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., मूपू., (चवणविमान नयरि जिण), ८००४७(#$) २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुजे ऋषभ समोसर्य), ७८१८८-२(+), ७८७८०-१(+), ७८८०५, ७८८७८-२, ७८९४३-२, ७९२६०-१, ७९८८२-२(#) २४ जिन नाम, आयु, देहमान,चक्रि,वासुदेव समय-अनागत, मा.गु., को., पू., (--), ७९४०८ २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (ऋषभ१ अजित२ संभव३), ७८७९९(+), ७९२०५(+), ७९३१५, ७९८१०, ८०३२४-१ २४ जिननाम-अनागत, मा.गु., गद्य, मप., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ७८७४४-९(+), ७८३४१-३, ७९९९८-३ २४ जिन नाम व पूर्वभव नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ श्रेणिकजीव पद्मनाभ), ७८८७९-३(+) २४ जिननाम स्तवन, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वरतमान चोवीसनेजी मन), ७८१०७-४ २४ जिननाम स्तवन-जंबूद्वीप भरतक्षेत्र-अनागत, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीपद्मनाभि पहिला), ८०१२८-३($) २४ जिननाम स्तवन-जंबूद्वीपे भरतक्षेत्र-अतीत, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू., (सहज विलासि प्रभु गाई), ८०१२८-१ २४ जिन पंचकल्याणक उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (चवन दिने लाहणु),८१०१८-२ २४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कार्तिक वदि ५), ७९९६२(+), ७९०४५-४(#) २४ जिन पद, जादुराय, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (वंदु जिनदेव सदा चरन), ७९७५४-२(+) २४ जिन परिवार, मु. करमसी, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (चउवीस तीर्थंकरनो), ७८८८५-२ २४ जिन परिवार संख्या विचार, मा.गु.,रा., गद्य, मप., (पहिले बोले साधुजी), ७८८७६-१(+) २४ जिन परिवार सज्झाय, मु. दीप, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (समरु रे चउवीस जिन), ८०८२५(#) २४ जिन परिवार सज्झाय, मु. सुखलाल ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (राजाराणीरो कटुंबो), ७७७७७-२ २४ जिन बहिर्लिपिका स्तवन-प्रहेलिकाबद्ध, मु. सकलकुशल, मा.गु., गा. २०, वि. १७०५, पद्य, श्वे., (श्रीपरमेसर पाय नमी), ८११८७ २४ जिन मातापितादि ७ बोल स्तवन, मु. दीप, मा.गु., गा. ३१, वि. १७१९, पद्य, स्था., (श्रीजिनवाणी सरस्वती), ८०११३ २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु., अंक. २४, को., श्वे., (आदिनाथ सर्वार्थसिद्ध), ७९९१९(+#), ७८९५९ २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (रिषभदेव उतराषाढा धन), ७८१३६, ७८१४२ २४ जिन लेख, रा., गद्य, श्वे., (पहला वांदं श्रीऋषभ), ७८५९३(+) । २४ जिन वर्ण दुहा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूप., (दोय धोला दोय सावला), ७९३६४-२ २४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु., को., मपू., (ऋषभ१ अजित२ संभव३), ७७९६३(+), ७८८३४(+) २४ जिन सज्झाय, मु. हेत ऋषि, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीआदनाथ अजत संभव),७९४६९-१(६) २४ जिन स्तवन, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (--), ७८४०३($) २४ जिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, श्वे., (प्रणमु हौ रीषभ जीणंद), ७९७१२(#$) २४ जिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (आदिनाथ प्रभु अंतरजाम), ७९२९१-३ २४ जिन स्तवन, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (प्रभु राजाराणि के),७८४५३-१(2) २४ जिन स्तवन, सा. जसोजी आर्या, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सारदमात मया करो), ७८१२२-१ २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रह समे भाव धरी), ७७७३२-१(+$) २४ जिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (भाव वंदु आद जिणंदजी), ८०२६२(#$) २४ जिन स्तवन, मु. धर्म, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर गुणराशि), ७८३२७ २४ जिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (ऋषभअजीत जिनदेवा संभव), ७८१४४-४ २४ जिन स्तवन, मु. भारमल्ल, मा.गु., पद्य, म्पू., (आदिनाथ पहिला अरिहंत), ७९४६९-३ २४ जिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भवि वंदो आदजिनंदजी), ७८८१७-१(#) For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु, गा. २५, पद्य, वे., (समरू श्री आदि जिणंद), ८१०२४-१(१४) " २४ जिन स्तवन, मु. रुचिविमल, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (--), ७९२५१ (+$) २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि नमुं अरिहं), ८०९७८-१(#) २४ जिन स्तवन, पुहिं. गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीरिषभ अजित संभव), ७९२५७-२(*) २४जिन स्तवन- ४७ बोल गर्भित, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू (श्रीपरमातम परमगुरू), ७८८३६ (+३) २४ जिन स्तवन- अनागत, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू (सुप्रभात प्रणमीए), ७८९८९-३, ७९६२८-३ , "" १(M), ७९५६८-१(+), ७९७९५-२ (५४), ७९८५५-१(०), ८१०३१(७) २४ जिन स्तवन- वर्तमान, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (चिदानंद चितमां धरजो) ७८९८९-२, ७९६२८-२ २४जिन स्तवन- अनागत, मु, न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (--), ७८९५६-१($) २४ जिन स्तवन- आयुमानगर्भित, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (प्रणमीय चोवीसे जिन), ७८९०१-२ (*) २४ जिन स्तवन-पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू.. (श्रीनेमीश्वर संभव), ७८९६७-३ २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमुं), ७९०३१ २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी), ७८३०० २४ जिन स्तुति-अतीत अनागत वर्त्तमान, मु. गुणविनय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (केवलनाणि निर्वाण), ७८५२१-३(+) २४ दंडक २३ द्वार यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ७९७२२(#) २४ दंडक २३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकीमाहे शरीर ३), ७९४३८ २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर अवगाहणा संघयण), ७८९७४-७ (+#$), ८०७३५ (+$), ८०८३०($) २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), ७९०३४-१(#) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (दंडक लेश्या ठित्ति), ७८४८८ (६) २४ दंडक ५६३ भेद विवरण- गतागति, मा.गु., गद्य, म्पू. (सप्त नरके समुचे गति). ८०८९१ २४ दंडक जीव अल्पबहुत्व, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक तो उंधोलोक १ तिरछो), ८०२३२ ($) २४ दंडक बोल संग्रह *, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक २४ ना शरीर ५), ७८३५०, ७९९०७ २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (नरक७ भवणपती १० पृथ्वी), ७९६७१(+#) २५ क्रिया भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे. (क्रिया दोव प्रकारनी), ७८९९८, ८१०३७-२ (क) " २५ बोल-त्रस जीव, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलै बोलै सरीर), ७७५६३-१ २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, श्वे., (नरकगति १ तिर्यंचगति), ७८६०३(S) २५ भावना विवरण-५ महाव्रत, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोगुप्ति १ एषणासमित), ७९४५२-१ २५ मिथ्यात्व नाम, मा.गु., गद्य, वे., (जीवे अजीव संज्ञा १), ७९९७९-२ २७ सती सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (प्रह समै उठी मननै), ७८८४७ २७ साधु गुण, मा.गु., गद्य, श्वे. (पंचमहाव्रत पाले ५), ७९६१६-५ २८ मतिज्ञान भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रोतिंद्रिरै), ७९८०१(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० अकर्मभूमि क्षेत्र, मा.गु., गद्य, श्वे. (हेमवंत ५ उत्तरकरु ५), ७९६८७-६ " ३० बोल सूत्र मतखंडण, मा.गु., गद्य, मूपू., (तपागच्छीय श्रीविजय), ७९९०६($) ३० स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (हस्ती १ वृषभ २ सिंह), ७८२३५-१ ३१ गुण सिद्ध के, मा.गु., गद्य, श्वे., (लांबउ १ बादलउ २), ७९६८७-५ ३२ अनंतकाय विचार, मा.गु. गद्य, म्पू, (कचूर हलदनीला आदो वज), ८००६४-२ " ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (उकाबाई कहता तारो तूट), ७९६१६-६ ५१५ ३० दंडक बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७९९४१($) ३० वोल दुषमकाल, मा.गु., गद्य, थे.. नगर ते गामसरखा थशे), ७८७४४-५ (+), ७८९७४-२ (०२), ८१०८३-२ (०४), ७८६४६-४(१) ३० बोल- मोहनीय कर्मबंध स्थानक, मा.गु., गद्य, वे., (ए जे त्रस पाणी जीवनई), ७८४३९-२, ७८६४६-१(१६) " For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ३२ असज्झाय विचार सज्झाय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूप., (●हरि पडे तासीम), ७९७३६-१ ३२ आगम नाम, अध्ययन व गाथा संख्यादि विचार, मा.गु., गद्य, स्था., (आचारांग कालिक), ७८४३४-३(+#$), ७८९३०-३(+) ३२ उपमा शीलव्रत, मा.गु., गद्य, मूपू., (ग्रह नक्षत्र तारा), ७८०८५, ७८६४६-२(2),७९१६४-२(#$) ३२ जिननाम-द्वितीयमहाविदेह क्षेत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ श्रीविरचंद्र), ७९६२५-१ ३२ व्यंतरेंद्र नाम, मा.गु., गद्य, स्पू., (कालिंद्र १ महाकालिंद), ७८९४६-३(+#) ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलो बोल गुरु आगल), ७८९४६-४(+#) ३३ बोल थोकडा-जैन पदार्थज्ञान, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात्त भये इहलोक भय), ७७९९८(+), ७८९३२(5) ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसुमतिदायक कुमति), ७९६३५(+#), ७८७८८-३ ३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ८०३५८ ३४ अतिशय विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम अतिशय शरीरनी), ८१२०९-२, ७९७५२-७(#) ३४ अतिशय स्तवन, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (सकल श्रीअरीहंत चलणे), ८००२३(+) ३४ असज्झाय काल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (उकावाए१ गजीए२ बीजीए३), ८१२०९-३ ३४ असज्झाय सवैया, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., प+ग., श्वे., (१ तारो टूटे १ पोहर), ८१२०९-४ ३४ वस्तु मर्यादा बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ८१२०९-१(६) । ३५ प्रश्न-चैत्यमति हेतु, मा.गु., गद्य, स्था., (चैतमतिने पुछवानो), ८००५३-२ ३५ साधु उपकरण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पत्तं. कहतां पात्रा३), ७८९३०-२(+) ३६ प्रज्ञापना पद नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रज्ञापनापद १ स्थान),७८८९३-२ ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (सूर्यवंश १ सोमवंश २), ७८९४६-६(+#) ४१ बोल संग्रह-परमकल्याणकारी, मा.गु., गद्य, श्वे., (तपस्या करीने नियाj), ७८०४०-१,७८०३५-१(2) ४४ बोल-छकाय अवगाहना, मा.गु., गद्य, श्वे., (सूक्ष्म निगोदी अपर्य), ८११९३-२(5) ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचारांग१ सुयगडांग२), ७८८५८-२(+), ७९४६७-२, ७९६०२-२ ४५ आगम पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पूजा. ४५, वि. १८८५, पद्य, मूप., (भविक जीव हितकारिणी,), ७८७०३(+$) ४५ लाख योजन मनुष्यक्षेत्र संख्यामान, मा.गु., गद्य, मूप., (मेरपर्वतथी हरकाणी), ७८६९४-६(+) ४७ एषणा दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोलस उग्गमदोसा सोलस), ७९२२७ (२) ४७ एषणा दोष-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधु अर्थ साधु के), ७९२२७ ५० बोल-कर्मफलप्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, श्वे., (अहो भगवानजी सरीरम), ७८२३७-१(+) ५१ बोल-चतुर्गति आगत एक समय मोक्षगामी जीव, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिली रत्नप्रथविना), ७९०५८-१,७९०४५-१(#) ५२ बोल-तीर्थंकर, सिद्ध कुलादि १३ नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (१ तीर्थंकर २ सिद्ध), ७८५३५-२(+) ५२ बोल-पंचम आरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजा लोभी होसी), ७८६४६-३(#) ५६ दिक्कुमारी जन्मोत्सव स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर जिणंदनो), ७९००५-२ ६२ बोल-मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यार दिशामांहे केही), ७७८५०-१, ७८२१३(5) ६२ मार्गणा ११९ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (वेदना समुद्धात कषाय), ८०४४८(+$) ६२ मार्गणा ७८ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (१समरचइ जीवमाइ जीव १४), ७९६७५ ६२ मार्गणा ९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७९१५१(६) ६२ मार्गणा उदय यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (अथ नरक गत उदय यंत्रक), ७९८४३ ६२ मार्गणाद्वार १०६ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (दिसी गइ इंदी वेय काय), ७९७०२ ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (नमिउं अरिहंताई बोले), ७८९२२(+$), ८०३०२(+), ७७९१५, ७७७२७(5), ७९९९७($), ८०५०७(s) ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (देवगति मनुष्यगति), ७७९१९(+), ७७७९२, ७८४९१, ८१०३६(#) ६२ मार्गणा सवैया, मु. रुघपति, मा.गु., सवै. १, पद्य, मपू., (देवगति मनुष्यगति), ७७९३८-५(+) For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५१७ ६३ शलाकापुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ- ८४ लाख), ७९०५७-३(+$) ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरणकमल मनधार), ७९९८२-१(+) ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन सुद्ध मन सुद्ध), ८०१९०-१(+#), ७८४६७-१, ७७८३०-१(६) ७० अजीव भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय द्रव्य), ७८३०७-३ ७२ कला नाम-पुरुष, मा.गु., गद्य, मूपू., (लेखककला भणवोकला कवित), ८०२६९-२ ८२ प्रकार कर्मभेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञानावर्ण १), ८०९४५ ८४ आशातनापरिहार स्तवन-जिनभवन, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर प्रणमइ), ७८९०२-१(+) ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (जय जय जिण पास जगडा), ७९२१३-२(+) ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ओसवालगच्छ १ खरतरगच्छ), ७९५१०-२(+$) ८४ गच्छस्थापना विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (सं. ९६४ चौरासी गच्छ), ८०९२४-२(#) ८४ ज्ञाति नाम, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीमाली१ ओसवाल२ पोर),७९०५५-३ ८४ लाख जीवायोनि मूकबधिर का छप्पा, मु. सुरगंग, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (लक्षचोरासी जोनिमें), ७८०३५-२(#) ८४ लाख जीवायोनि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (बावन लाख साधारण एकिं), ७८४९५, ७८६७०-२(#) ८४ लाख पूर्वमान-मास पक्ष दिन घडी आवलिकादि विचार, पुहि., गद्य, मूपू., (५९२७०४० पूर्व ८४ लख),७८८७६-२(+) ८८ ग्रह नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (अंगारक वीकालक लोहिता), ७९००६-२(#) ९६ जिन नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (केवलज्ञानी सर्वज्ञाय), ८०९८३-२($) ९८ बोल-अल्पबहत्व, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम सर्वथकी थोडा), ७९२०६(+), ७७७३० ९८ बोल यंत्र-अल्पबहत्व, मा.गु., को., श्वे., (सरवथी थोडा गर्भज), ७८९२८-१(+$), ८०४३७, ८०९७१, ८०९९१ १७० कोष्ठक यंत्र निर्माण सवैया, मु. रुघपति, मा.गु., सवै. १, पद्य, मूपू., (सोलह कोठा साझि), ७७९३८-८(+) १७० जिन विजयतपविधि गणj, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीप प्रथम), ७९७६९ १७० जिन स्तुति, मु. आणंदरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (उजल वर्णा जिन पंचास), ७९६८९-२() १७० बृहद यंत्र निर्माण विधि, मा.गु., गा. २, पद्य, वै., (जंत्रां माहे त्रीस), ७७९३८-९(+) २२२ बोल-लब्धि २१ द्वार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पांच ज्ञानना भेद), ७८७४६(+), ८००९९(+) २५३ मण मोतीमान बोल-सर्वार्थसिद्ध विमान, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक मोती ६४ मननु), ८०१९०-२(+#), ८०८४२-२(2) ३०३ मनुष्य के भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (१५ कर्मभूमिना मनुष्य), ७९९८८ ।। ३६३ पाखंडी मत विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (सूयगडेणं असीयस्स), ७९९६०-२(+), ७८०९५ ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, पुहिं., गद्य, श्वे., (७ नारकी का प्रजाप्ता), ८१०३३(+#$) ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात नारकी पर्याप्ता), ७९१९८(+5), ८११६३ ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, पू., (उंचा लोक में ५६३), ७९१२०-१(+), ८०३०९-१(#) ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (नारकी सात नरकना), ८०१५१(६) ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, पुहिं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव का भेद बेइंद्री), ७८०७१-४(+) ५६३ भेद जीवराशि क्षमापना, मा.गु., गद्य, मप., (जीवना पांचसइंत्रिसठ),७८९४६-७(+#) अंजनासुंदरी रास, मा.गु., ढा. २२, गा. १६५, पद्य, मपू., (शील समो वड को नही),७८३१९(+#$),७८५६०(#$). ७७७८५($) अंजनासुंदरी रास-बृहद्, मा.गु., गा. ३१८, पद्य, मूपू., (पहिलै नइ कडवइ पय नमु), ८०३८५(६) अंतसमाधि विचार, पुहिं., गद्य, मूपू., (हे भव्य तुं सुण समाध), ८१२००(+$) अंबड चौपाई, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, पद्य, स्था., (आगइ अतित एहवा हूवा), ७८४०५-२(+) अंबिकादेवी छंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सगति रूप रूप कुंण), ७८१२०-१ अंबिकामाता कवित्त, मा.ग., गी. १, पद्य, मप., (कि तूं समुद्र संचरी),८१०४२-४(+#) अइमुत्ताऋषि सज्झाय, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., वि. १८७२, पद्य, श्वे., (श्रीवीर जिणंदनी), ७९६३९-१(६) अइमत्तामुनि चौढालियो, मु. रत्नचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, स्पू., (गणहर गोयम सामते), ८१२५४(६) For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. रत्नसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अयमत्तो मुनि वंदिइ), ७८४१८-२(2) अइमत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, स्पू., (वीरजिणंद वांदीने), ७७९६५-२(६) अक्षयतृतीया स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभ वरस रह्या उपवासी), ७९४६५(#) अक्षयनिधितप खमासमण दूहा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ३७, पद्य, मूपू., (सुखकर संखेश्वर नमी), ७९२२३-१ अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., दोहा. १, प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही कहेवी), ८००१८ अक्षरबत्तीसी, मु. महेश, मा.गु., गा. ३२, वि. १७२५, पद्य, श्वे., (कका कछु कारज करो), ७८९१८(+#) अक्षरबत्रीशी, मु. हिम्मतविजय, मा.गु., गा. ३५, वि. १७२५, पद्य, मपू., (कका ते किरिया करो), ७७६५३-१ अक्षरबत्रीसी, मु. तेजसिंघ ऋषि, मा.ग., गा. ३२, पद्य, स्था., (कका करजे काम धर्म), ८०७३७-२ अक्षरबावनी, मु. जसराज, पुहिं., पद्य, मूपू., (ॐ अक्षर सार है ऐसा), ८०४१०(६) अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., गा. ५७, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (ॐकार उदार अगम अपार), ८०३४१(६) अखात्रीज वायु विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (वैसाख शुदि त्रिजने), ८०२६६-३(#) अगडदत्त ढाल, मु. नंदराम, मा.गु., ढा. ५, गा. ५२, वि. १९७८, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिधने सूरजी), ८०४३९-२(+) अग्निभूति सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (अग्निभूति आराधीइ उलट),७९४८५-२(+) अजितजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मिली आवो रे मीली आवो), ७८५२२-१(+$), ७८९९५-८(2) अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पंथडो निहालुरे बीजा), ८०९४२-२(+) अजितजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजित जिणेसरदेव मोरा), ७७८३८-२(+), ७८२६८-६ अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (तार किरतार संसार), ८०९४२-५(+) अजितजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, पद्य, स्था., (जंबूदीपना भरत मे), ७८८६१-१, ८००५५ अजितजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (मन भज रे श्रीजिन भाव), ७९२२५-३(+) अजितजिन स्तवन, मु. विजयानंदन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अजित जिणंद दयाल सुणो), ८०१९३ अजितजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (तीणकाले ने तीणसमयजी), ८१११२-२(+) अजितजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, जै., (साहिबा अजित जिनेसर), ७९९६९-१ अजितजिन स्तुति, मु. नेमिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजित जिनेसर सेवीये), ८०१४२-२ अज्ञात जैन काव्य, मा.गु., पद्य, श्वे., (--),८०७७४(+$) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति, मा.गु., पद्य, म्पू., (सोवार दीन चाडी प्रणी), ८०६६९(+$), ८१०८६(-2) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-औपदेशिक, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८०६७१(६) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--),७९९४३(+#$) अज्ञात जैन देशी पद्य कृति-स्तवनात्मक, मा.ग., गा. ३१, पद्य, श्वे., (--), ७८९८६ (#$) अज्ञात जैन रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७९९१४(#) अज्ञात जैन रास, मु. रत्नवर्द्धन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८०७८४(#$) अज्ञात श्राविका के अभिग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (देव श्रीअरिहंत गुरु), ७८९६९ अढीद्वीप चंद्रसूर्यसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूदीप २ सूर्य), ७८६९४-७(+) अढीद्वीप रास, मु. धर्मचंद, मा.गु., गा. ६४, वि. १७५३, पद्य, मपू., (श्रीजिनवर महावीरना),७९०३५(+) अणुव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (हिव अणुव्रत पंचय), ७७९७७-२(+$) अतिशय स्तवन-केवली अवस्था, म्. हीरधर्म, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (जिनवरकी महिमा वरनी), ८०१७३-४ अतीतचौवीशीजिन नाम-जंबुद्वीपे ऐरावतक्षेत्रे, मा.गु., गद्य, मपू., (१. श्रीपंचरूपनाथ), ८०९१०-१(+) अतीतजिनचौवीशी पंचकल्याणक तिथि-जंबुद्वीपे ऐरावत क्षेत्रे, मा.गु., गद्य, मूपू., (आसो वदि ५ श्रीकल्प), ८०९१०-२(+) अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित), ७९८५६-१(+$), ८१०५१(+$),७९६४५-२(5) अध्यात्म फाग, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, दि., (अध्यातम बिन क्यों), ७८७७१-१(+) अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुध वचन सदगुरु कहें), ७८६५६-१ For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ७८४४९, ७९९३८(#$), ७९९३९(#s) अनंतजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनंत अनंत गुण आगरु),७९१५७-२ अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धार तलवारनी सोहली), ८०५७३-१(+) अनंतजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आवो रे अनंतजिन भेटवा), ७७७३२-५(+) अनंतजिन स्तवन, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. २८, पद्य, मूप., (सांभलुं जिम जिम स्वा), ७९९०८ अनंतवीर्यजिन स्तवन, मु. लाधो, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (केवल दरिसण ज्ञान मे), ८१२४४-१ अनाथीमुनि रास, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., ढा. ८, वि. १७३५, पद्य, पू., (वंदियै वीर जिणेसर), ७९०४४(+#) अनाथीमुनि सज्झाय, मु. खेमकीर्ति, मा.गु., गा. ६८, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत सिद्ध), ८०७९३(+$), ७९१४१ अनाथीमनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मपू., (मगधाधिप श्रेणिक),७९५३५,८०६९३-२(-) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ७९४११-१, ७९५४२-२, ७९८७३ १,८०२३१-१ अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहि., गा. १९, पद्य, मपू., (मगध देश को राज राजे), ७९९७४ अनित्य भावना, रा., गद्य, मप., (अनित्यानि शरीराणि), ७८०२९ अबयदी प्रश्न, पुहिं., गद्य, जै.?, (ए च्यारि अक्षर पाशे), ७७८५८-२(5) अभयाराणी सुदर्शनशेठ कथानक, मा.गु., गद्य, श्वे., (चंपानगरीइ दधिवाहन), ७९८४२-५() अभिनंदनजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मप., (अभिनंदन जिन दरिसण), ७९६६२-३(+) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (अभिनंदन अरिहंतजी रे), ७७८३८-१(+) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (सारद चंद समोवडे हो),८०७७५-२(+) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २६, वि. १८२६, पद्य, स्था., (वनीता नगरी अतिभारी),७८७३२-१ अमरकुमार लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, स्था., (देखो जगत की रीत), ७८९४९-२(+) अमरकुमार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूप., (पुरव कृत करमां तणो), ७७७२६, ८११५३(६) अमरसेन वयरसेन चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ७, गा. ९९, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवदन कमल विलास), ७९८९८, ८०९०४(#S) अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (विहरणि वेला रिषि), ८०१०४-४(+) अरणिकमुनि चौढालियो, उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु., ढा. ४, गा. ६३, पद्य, मपू., (वर्द्धमान चउवीसमउ), ७८५४५-१(+) अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., ढा.८, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीनवू), ७९५८९(#$) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (इक दिन अरणक नाम उठया), ८०३१३-३ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ८०३३३(+), ७९२४३-२(2) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (धन धन जननी रे लाल), ८००२५ अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ८००८८-२(+#$), ७८९९१-१ अरणिकमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अरणक ऋषि मुनि राजिउं), ७९०१६-२(+) अरिहंतपद स्तवन, आ. जिनपद्मसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (अरिहंत पद आराधीये), ८०७४५-३ अरिहंतादिक मंगल, मा.गु., पद्य, मपू., (शासनदेवी समरी करी), ८०१३४-२(६) अर्जुनमालीमुनि चौढालिया, रा., ढा. ६, पद्य, श्वे., (सोदागर मीलीया पछ नयी), ७९९२३-१(+) अर्द्धपुद्गलपरावर्त्तनविचार सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (श्रीजिन उपदेशे सुलल), ७९५७१-५(#S) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (आबु गीरवर चैत्य), ७९१८८(+) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (आबुगिरंद सुहामणौ), ७८७८८-१(६) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (जात्रीडा भाई आबूजीनी), ८००४६-१(+), ७८६०७ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (आदिजिणेसर पूजतां), ७९४२३ अल्पबहत्व विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सरव थोडा अवधदसणी ते), ७९३५०-२ For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अवंतिसुकुमाल चौपाई, मु. रिषभदास ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ५७, वि. १८६४, पद्य, श्वे., (वीरजिणंदर वांदीय), ७८०२२-१(+$) अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ७९४९९(१), ८०९०८(#), ८०७५७(६), ७८५५५-१(-$) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (वंदन आवी गोरडी प्रात), ८१०५६(#$) अवधिज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जे आगूलनो असंख्यातमो), ७८७४४-८(+) अविनीत शिष्य लक्षण, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनुपकारी गुरुना), ७८५३५-३(+) अषाढाभूतिनी सज्झाय, मा.गु., ढा. ७, गा. ५०, पद्य, मूपू., (आरज अनारज सदा वचरे), ७८२४२-१ अष्टप्रकारीजिनपूजाविधि स्तवन, मु. वीरचंद, मा.गु., ढा. ७, गा. ९१, पद्य, मपू., (--), ८०७८९-१(६) अष्टप्रकारीपूजा गीत, मु. भाणजी, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जे जिन भगति करइ), ७९५२३-१ अष्टमंगल नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आरीसो १ भद्रासण २),७९६८७-२ अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चैत्र वदी आठम दिने), ७८३६६-२ अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (महा सुदी आठमने दिने), ७९९१७-१(+#), ७९९८६-२ अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आठिम तप आराधिइं भाव), ७८६८६ १(+#$) अष्टमीतिथिपर्व नमस्कार, मु. जीतविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभु चंद्रवरण), ७८०८३-५(#) अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (श्रीसरसतिने चरणे), ८०३६८-२(+), ७९८७४-२ अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ७९२१०, ८०९८६-२, ७८४५८(#), ७८६७०-४(२), ८०४२८-१(#), ८१२५६-२(#), ७७९०१(६), ७८५८५(६), ८०६९१(६) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, वि. १७१८, पद्य, मप., (जय हंसासणी शारदा), ८००५८($) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीराजगृही शुभ ठाम), ८१००५-१ अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (पंच तिरथ प्रणमुं सदा), ८०३४५-१, ७९६२६() अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमु), ७८४८७-४(#), ७९८०८-५(2) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मप., (मंगल आठ करी जिन आगल), ७९६५७-२(+#), ७८०४५-३(#),७८५२६-२(#) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमीदिन चंद्रप्रभु), ७९६६४ अष्टापदतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (प्रथम जिणंदनो धाम), ७९९११-४ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मप., (तिरथ अष्टापद नित), ७९४४१-२(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूप., (अष्टापदगिरि जात्रा), ७७७३२-१५(+), ७९०८५-३(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६६, पद्य, मूपू., (वागवादिनी वागेसरी), ७८६९१(#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ७८२१७-४(+) असंख्यात अनंत विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (यथोक्त भेद स्पष्ट),७९३५०-१ असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (वंदिइ वीर जिणेसर राय), ७७८५९(+), ७९६१७-१ असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, पुहि., गा. १५, पद्य, मपू., (श्रावण काती मिगसिर),७९९५९-२(+#),७८२२२-१,७८९६५-१ असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पवयण समरी सासणमाता), ८०९७६-१, ७९८०९(#) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), ७९८२०-१(+) आंखकानसंवाद स्तवन, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (परम पनुता परखीइं),८०९२२-१ आगमगुण स्तुति, मु. पुण्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मंगलकेली निकेतन), ७८२१५ आगम पठन अधिकारी, मा.गु., गद्य, श्वे., (३ वरस दीखत कुं), ७८९३०-४(+) For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५२१ आगमपूजा स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आगमनी आशातना नवि), ७९७११-२(#) आगम यथाक्रमबीजक संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रभु प्रणम्य प्रथम),७८८७५-४($) आत्मतत्त्व विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (असंख्यात प्रदेशी), ७९१६०-१ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, मप., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), ७८१९१(+), ७९७६३(+), ८०३००(+) आत्मप्रबोध सज्झाय, उपा. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जीवडा हूं कुण इतलौ), ८००४६-४(+) आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रभु पाय लागी करूं), ७८७०८-१ आदिजिन १३ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदेसरना १३ भव), ८०३५२-३(+), ७९९९१-२, ८१०९१-३(#) आदिजिन आरती, मु. जयकीर्ति, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (जै जै आरती ऋषभ), ७७८०८-२ आदिजिन आरती, मूलचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (जय जय आरती आदिजिणंदा), ७९१२२-१(६) आदिजिन गीत, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सरसती नमी करजोडीजी ऋ), ८०३३०-२ आदिजिन गीत, रा., गा. ९, पद्य, मप., (आदिनाथ अनंतबली घर घर),७८५५१-२(+-) आदिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (अशरीरी अजर अमर तुं), ८०५७५-३(#) आदिजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, म्पू., (ऋषभदेवमोरी मं.),७७८७४-३(#$) आदिजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पढम जिनवर पढम जिनवर),७९९४७-२(+) आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धत, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मप., (अरिहंत नमो भगवंत), ७८७८१(+), ७८१६४-२(4) आदिजिन चौढालिया, ग. मेघराज, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, पद्य, मपू., (--), ७९००२(5) आदिजिन चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, पद्य, म्पू., (ऋषभ जीणेसर गावतां), ७८७७५(३) आदिजिन छंद, म. धर्मवर्धन, मा.ग., गा. २२, वि. १७६०, पद्य, मपू., (सत्यगुरू कहि सुगुररा),७९०७३-२(2) आदिजिन छंद-धलेवा, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहि., गा. ४४, वि. १८६३, पद्य, मप., (सदाशिव राव आव्यो), ७८२२१-२(+#) आदिजिन छंद-धुलेवा मंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. ६३, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (आदि करण आदि जग आदि), ७८९९६ २,८१२०२ आदिजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हो ऋषभजिन मानु प्यार), ८०३४२-४ आदिजिन पद, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (आदि जिणंद मया करो), ७९८३७-३(#) आदिजिन पद, पं. आनंदविजय, पुहि., गा.५, वि. १९वी, पद्य, मपू., (चेतन ध्यान जिनंद को),८०४१९-१०(+) आदिजिन पद, मु. खुशालचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, पू., (देखो आदिस्वर स्वामि), ८०१३८-४ आदिजिन पद, मु. चंदखुसाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (देखो जी आदीश्वर), ८०१३८-५ आदिजिन पद, मु. जयत, मा.गु., गा. ३, पद्य, पू., (ऋषभदेव ऋषभदेव ऋषभदेव), ७८९४७-३(#) आदिजिन पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (आज सकल मंगल मिलै आज), ७९८२२-२ आदिजिन पद, मु. बुध, पुहि., पद. ३, पद्य, मूपू., (मे तोसु प्रीत कीधी), ८०४९१-९(+) आदिजिन पद, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (सेजेथी ऋषभदेव), ७९३०६-३(2) आदिजिन पद, मु. राजरतन, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (दीनानाथ आदनाथ दीन कै),७९६१४-१६(+) आदिजिन पद, मु. राजसिंह, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (भज मन नाभिनंदन देव), ७८४५९-९(+#) आदिजिन पद, मु. हर्ष, मा.गु., गा.५, पद्य, म्पू., (आज भले दिन रसीया हो), ८०००३ आदिजिन पद, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (इखागवंसना उपना सामी),८०४४५-१(#) आदिजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (मारुजी नीद नयणां बिच), ७७७८२-८(६) आदिजिन पद-केसरियाजी, पं. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (गजरो चढाउं रे सहेरो), ७८९४७-२(#) आदिजिन पद-केसरियाजी, पंडित. हरसुख, रा., गा.७, पद्य, श्वे., (केसरीया आदीसर नाथ), ७९६१४-२८(+) आदिजिन पद-केसरियाजी, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (धुलवनगर सोहामणो साहब), ७९४०२-२ आदिजिन पालना, मु. हीरालाल, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (मा मोरादेवी गावे रे), ८१०१२-७ For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिनपुत्र नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरत बाहुबलि संख), ८०२६९-१ " आदिजिन प्रभाती, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभाते पंखीडा बोले), ७८६५४-२ (#) आदिजिन फाग, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भले हो ज्ञानी घेलीया), ७८०१२-३ आदिजिन भास-शत्रुजयतीर्थमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (संघपति भरतनरेसरू), ७९४८९-२(+) आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु. मूलचंद्र, पुहिं. गा. ९. वि. १८६३, पद्य, मूपू (सुणीये बातो रांव), ८०८०९.१, ७९८१८-४(४) आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु. लालदास, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुणीये रे वाता सदा), ७८९९६-१ आदिजिन लावणी-धुलेवामंडन, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू. (आदिकरण आदि जगत आदि), ७९२८२-१(*) आदिजिनविनति स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ३४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रेय श्रीरतिगेह छो), ७९५५१ आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सुण जिनवर शेत्रुंजा), ७९४१३, ८०००६ आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिणेसर), ७८७४१, ८००३९(०३), ८०४२२-३ (०६) आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७४, पद्य, म्पू, (आदिश्वरप्रभुने विनंत), ७८७२२, ७९११०-२, ७९००५-१ ($) आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मूपू., (आदि धर्म जिणि उधर्यो), ८०२५२-१(#) आदिजिन विवाहलो, मा.गु., ढा. ५, गा. २७, पद्य, मूपू., (शासन देवीअ पाय), ७८३२२(#$) आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), ८०९४२-१ (+), ७९२८३($) आदिजिन स्तवन, पं. आनंदविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीरिषभ जिनेसर), ८००९१-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( प्रथम तिर्थंकर रीषभ), ८०३१७ ७ (प्रात उठि समरिये), ८१०७२-१ आदिजिन स्तवन, मु. कल्याणचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, पद्य, मूपू (प्रथम जिनवर पाय नमी), ७९०८८- १(क) आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु., गा. १८, पद्य, स्था., (श्रीऋषभजिणेसर जगत), ७९२५७-१(+), ७९४१५ आदिजिन स्तवन, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जयो जगनायक गुरु रे), ७९९१५-३ आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू (प्रभु मया करी दिल), ८१०७२-२ आदिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. आदिजिन स्तवन, मु, गुणसागर, मा.गु., गा. ३४, पद्य, म्पू. (श्री आदि जिनंद बंदीय), ७९०३२-१ (*) आदिजिन स्तवन, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (बिसर मत नाम जिनंदाजी), ७८०९१-९(#) आदिजिन स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. १२, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (सुगुण सहेजा सांभलो), ७९२६१-१(+) आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू. (मन मधुकर मोही राउ), ८०९४२-४(+) आदिजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेश्वर पूजवा ), ८०३४८(#) आदिजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (प्रथम नरेस प्रधान), ७८९५२-३ आदिजिन स्तवन, मु. जेठा, मा.गु., गा. १६, पद्य, मृपू., (रीषभ जीणेसर समोसर्या), ७९४४७-२ (५), ८००६०-२ , "" आदिजिन स्तवन, मु, ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. २ गा. २६, वि. १८वी, पद्य, वे. (श्रीनाभिकुलगुर), ८१२१३-३ (+), ७८०५८, ७८८१६ आदिजिन स्तवन, मु. दुर्गदास ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८५०, पद्य, खे, (आदेसर अलवेसर हो जिणे), ८०११८-२०क आदिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज आनंद वधामणां), ८००६१ आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी), ७९६६२-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (त्रिभुवननायक ऋषभजिन), ७९२३९-१ आदिजिन स्तवन, मु. नरसींग ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८७०, पद्य, मूपू., (प्रभुजी ऋषभ जिनेसर), ७९५७८-५, ७९८८९ आदिजिन स्तवन, ग. पुंजराज, मा.गु., गा. १८, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (जगगुरु चरण नमी करी), ७९२४२-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. भाव, मा.गु., पद्य, मूपू., (आज ऊछव छरे ईदको जोय), ७९८०५-२ आदिजिन स्तवन, मु. माणकचंद, पुहि., गा. १०. वि. १८७८, पद्य, मूपू (श्रीआदनाथ सीष्ट को), ८११६५-२ (३) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ७९४६१-२ For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (राज मरुदेवी केरा), ७९८६५(+) आदिजिन स्तवन, ग. मोहनसुंदर, पुहिं.,मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (ऋषभजिणंद प्रभु भेटए), ७९३२४-३ आदिजिन स्तवन, मु. राज, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वालम सुणी जे म्हारी), ७८८६०-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आज भले दिन उगो हो),८०१७३-३ आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं नाभिनृपति), ८०९४७-५ आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुजस तुम्हारो), ८०९४७-२ आदिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (मारो मनडो ऋषभजीसु), ७८४७८-३ आदिजिन स्तवन, गच्छा. रूपसिंघजी, मा.गु., वि. १६८१, पद्य, भूपू., (प्रथम प्रभु श्रीऋषभज), ७९९०२(#) आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन), ७८४७५-२ आदिजिन स्तवन, मु. सुबोधविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (अरज सुणी जइ हो जीनजी), ७८०२१-२ आदिजिन स्तवन, मु. सेवक, रा., गा. ७, वि. १८२२, पद्य, मपू., (मुरत थारी मोहन), ७९३३६-१ आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (आदिसर अरिहंतजी प्रभू), ७८६७९-२(#$) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (जिन रिषभ भजीयो सदा), ७८८३५-३(#) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारो लागे० ऋषभ), ७८४५९-६(+#) आदिजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, मपू., (प्रथम जिणेसर प्रणमीय), ८०९०६-३(+$) आदिजिन स्तवन, मा.ग., पद्य, मप., (भले दीठो दरसण आज),७९६०४($) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (श्रीआदिश्वर अजर), ७८४७६-१ आदिजिन स्तवन, मा.ग., पद्य, श्वे., (सरसति माता दीयो मुझ), ८०९३६(६) आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., ढा. २, गा. २६, पद्य, म्पू., (आदीसर हो सोवनकाय), ७८६८९-१(६) आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, पू., (प्रणमुं प्रथम जिनेसर), ८१०३४-१(+#), ८०२५३-१ आदिजिन स्तवन-अध्यात्म समय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ७७६०३-१ आदिजिन स्तवन-ओसीयातीर्थ, मु. ज्ञानसुंदर, रा., गा. ११, वि. १९७२, पद्य, मूपू., (मासु मुढे बोल बोल), ८०८१६ आदिजिन स्तवन-करसंवाद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ६९, वि. १५७५, पद्य, मूपू., (पहिलूं प्रणमुं सारदा), ७९७५५ आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. ऋषभदास, रा., गा. ५, पद्य, मपू., (मरुंदेवीना नंद थारा), ७९८२९-२(+#) आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसति माताने नमु), ७८६१२ आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. चतुर्भुज, मा.गु., गा. ११, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (श्रीरिषभजिणंद जुहारी), ८०८७१-१(+$), ८११७६-५(+#),७७६२५-२ आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सरसतने समरी करी), ८१०४०-२(5) आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, पं. उमेद, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (कर्मासू लोगो जगडो), ८०४०६-१(+) आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मु. रत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सखि रे जागती जोत), ७९८३१-१(2) आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ८०१७५-१ आदिजिन स्तवन-त्रिलोकीपातसाह ऋद्धिवर्णन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गा. १६, वि. १८८०, पद्य, पू., (भरतजी कहे सुणो ___ मावडी), ८००६०-१ आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (पहिलु पणमिअ देव), ८११९४(+) (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (मांगलिक्य भणि प्रथम), ८११९४(+) आदिजिन स्तवन-बृहत्शजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (प्रणमवि सयल जिणंद),७७७४०,७७९२७-१, ७८६९२(१), ७८४०४-१(s), ७८९४३-१(६) For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन-भरतचक्रवर्ती, मु. आशकरण, मा.गु., गा. २७, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (प्रथम जिनेसर ऋषभजिण), ८११२४ आदिजिन स्तवन-ममोइमंडन, मु. नायकविजय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (आदिजिणेसर राया हो मन), ८०४२८-४(2) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. मोहनसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (राणकपुर रमणिक राजे), ८०९२५-२(+) आदिजिन स्तवन-राणकपुर वृद्ध, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. १६, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनधर्म तणौ), ७९४७५-२ आदिजिन स्तवन-रामपुरमंडन, मु. केसराज, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (अदभुत रूप अनुप खरो), ७९०८१-२ आदिजिन स्तवन वृद्ध, मु. दयातिलक, मा.गु., गा. १६, वि. १९५९, पद्य, मूपू., (श्रीविक्रमपुर नयर), ७७९४४(#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. कांति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (धुनी ध्रहकती ध्रहकती), ७८६१६-१(+) आदिजिन स्तवन-श@जयतीर्थमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, वि. १८५४, पद्य, मूपू., (जिनजी आदिपुरुष),७९४५९-१ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (विमलाचल गढमंडणो), ७८४५९-१(#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (श्रीविमलाचल तीरथ), ७७७७९(+) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ७८६३४-२(#) आदिजिन स्तुति, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (प्रथम देव कोमल तननी), ८०९६३-३(+#$) । आदिजिन स्तुति-पीलुचामंडन, मु. नेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परम पुरुष सोहे जे), ७८७०५-१ आदिजिन स्तुति-भुजनगरमंडन नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्यने पाव), ८०८०६-२, ८१००५-२ आदिजिन स्तुति-वीरवाडामंडन, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरवाडामंडण आदिजिण), ७९३६४-४ आदिजिन होरी, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (होरी खेलियै नर बहुर), ८११८५-४(+) आदिजिन होरी, पुहिं., पद्य, मप., (नाभीनंदन दरबार रे), ७९२२५-५(+$) आध्यात्मिक गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (मेरउ साहिब सुगुण), ७७७३२-१३(+) आध्यात्मिक जकडी, मु. जिनराज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कबहुं न करिहुं री), ७७६३७-३ आध्यात्मिक ज्ञान पद, मु. द्यानत, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (ग्यान सरोवर सोइ हो), ८०८९६-११(#) आध्यात्मिक दहा, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (झरिनै पंजर थया मुख), ७९३२०-१(#) आध्यात्मिक दोहा संग्रह, दाददयाल महात्मा, पुहिं., दोहा. १३, पद्य, वै., (जब लगु अग्यान चेतना),७९१०७-४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (अनुभव हम तो रावरी), ७९८३७-५(2) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू अनुभव कलिका), ७९५५०-६ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू क्या मागुंगुनह), ७७७८२-२, ७९५५०-४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू नट नागर की बाजी), ७९५५०-५ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू नाम हमारा राखे),७९५५०-७ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (अवधू राम राम जग गावे), ७९५५०-३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आतम अनुभव फूल की), ७७७०२-२(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (आस्या औरन की कहा), ७९५५०-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (औधूं क्या सौवे तन मढ), ८१०७४-७ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कोउ राम कहो रहमान), ८०७७१-३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मपू., (क्यारे मने मलशे मारो), ७९७३१-५(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, प., (क्यारे मने मलस्ये),७९७३१-४(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद. २, पद्य, मपू., (घणा दिन पाडै छै काना), ७९६१४-४(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा., गा. ५, पद्य, मप., (निसदीन जोउं थारी),७९६१०-४(+-$) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रे घरियारी बाउ रे मत), ७९८३७-४(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साधो भाई सुमता रंग), ७९५५०-८ आध्यात्मिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (एक वेल तुंबडी आई),८१००४-१०(#) For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५२५ आध्यात्मिक पद, कबीर, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (तुम सुणो मेरे बाबु), ७७७६१-४ आध्यात्मिक पद, कबीर, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (तेरी काया में गुलजार), ८०४९१-५(+), ७७७४८-३ आध्यात्मिक पद, कबीर, रा., पद. ४, पद्य, वै., (थारी काया मै गुलजार),७९६१४-९(+) आध्यात्मिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (पीयाजी मोने एकलडी मत), ७७७४८-४ आध्यात्मिक पद, मु. चतुरकुशल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कोई दीन काल फोरेगो), ७८०९१-२३(2) आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (गुरु निगरंथ युं जोया), ८०८०४-५ आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा.८, पद्य, मपू., (परभव में मेरो कोई), ८०८०४-२ आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा.८, पद्य, मप., (परभव में मेरो समरथ), ८०८०४-३ आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहि., पद. ४, पद्य, मपू., (मे नित नमाउं सीस साध), ८०१०२-९ आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सीवरमणी के वासा रे), ८०८०४-६ आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानानंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (अनुभव योग रमावो), ७८५३८-१(६) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानानंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूप., (मेरे तो मुनि वीतराग), ७८५३८-२ आध्यात्मिक पद, दलपतराम डाह्याभाई, मा.गु., गा. ११, पद्य, वै., (चेत तो चेतावू तुं), ८१२१५-३ आध्यात्मिक पद, दलपतराम डाह्याभाई, मा.गु., गा. १२, पद्य, वै., (जाय छे जगत चाल्यु),८१२१५-२ आध्यात्मिक पद, मु. द्यानत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चेतन मानो रे साढबतीय), ८०९०५-१ आध्यात्मिक पद, ब्रह्मानंद मुनि, पुहिं., पद. २, पद्य, वै., (राम नाम की कोरे सोइ), ७९१०७-१ आध्यात्मिक पद, मीठा, पुहिं., पद. ५, पद्य, वै., (क्यूं जावो महाराज वन),७९६१४-३(+) आध्यात्मिक पद, मीराबाई, पुहि., पद. ६, पद्य, वै., (लगन को नाम न लीजिये), ७९६१४-३७(+) आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (अजब गति चिदानंद घन), ८०४८४-२(+) आध्यात्मिक पद, मु. राजाराम, पुहिं., पद. ५, पद्य, श्वे., (चेतन तूं क्या फिरै), ८१०७४-८ आध्यात्मिक पद, क. सूरदास, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (जीवन जैसे प्रति भजन), ७९६१४-५(+) आध्यात्मिक पद, सूरदास, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (हमारे निरधने धन राम), ७८१२०-२ आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (अपने प्रभुजी से मिल), ८११२०-६(+#) आध्यात्मिक पद, पहिं., पद. ३, पद्य, वै., (कैसे सोउ नीद सांइ),७९६१४-८(+) आध्यात्मिक पद, पुहि., पद. ४, पद्य, श्वे., (कोटक वेर कही रैमनो),७९६१४-१९(+) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जालम जोगीडा से लागी), ७८६११-३(+) आध्यात्मिक पद, पुहि., पद. ३, पद्य, वै., (ले गागर सागर पै निकस), ७९६१४-१७(+) आध्यात्मिक पद-अष्टविधान, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (सुणि कुलवंती कामिनी), ८०१५४-५ आध्यात्मिक पद-फकीरी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (तेने एसी फकीरी करी), ८०१०२-१३ आध्यात्मिक बारहमासा राखडी, पुहि., गा. १८, पद्य, श्वे., (पहलीजी लीजे अरिहंत), ७९४८१ आध्यात्मिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्राणी क्यो विषयनसुं), ८०१०२-११ आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया मे वासमे रे), ७८८५०-२(+#) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा.११, पद्य, मप., (धरिय उमाहो रस भरी),७८४७४-२(2) आध्यात्मिक सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., गा. २३, पद्य, मपू., (अरिहंत राजा मोहराय),७९०७० आध्यात्मिक सज्झाय, आ. विनयप्रभसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सासरीये इम जइये रे), ७९८८१-२ आध्यात्मिक सज्झाय-गर्भावास, मा.गु., गा. २६, वि. १८७८, पद्य, मपू., (वार वार सतगुरु समजाव), ७९४२१-२(+#) आध्यात्मिक सज्झाय-जीवकाया, मु. दीप, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (तू मेरा पीवु साजना), ८०८५८ आध्यात्मिक सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, पू., (चेतनजी तुम जागि), ७९४११-३ आध्यात्मिक सवैया संग्रह, म. हीरालाल ऋषि, पहिं., पद्य, श्वे., (श्रीमहावीरजी के अहो),८००९७(#$) आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वरसे कांबल भींजे), ७९०७७(+#), ८०१७६-१ For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२६ "" (२) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु., (कांबली कहता इंद्री), ७९०७७/**), ८०१७६-१(६) आध्यात्मिक हरियाली, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक अनोपम सुंदरी रे), ७९९७५-२ आध्यात्मिक हरियाली, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (सहीयर रे मेतो अभीनव), ७९९५६-३ आध्यात्मिक होरी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (फागुन में फाग रमो), ७८०९१-७(#) आध्यात्मिक होरी, मु. धनमुनि पुर्हि गा. ७, पद्य, श्वे. (होरीया मन रंग रमाउं), ७९५००-४ आध्यात्मिक होरी, मु. भूपविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, मृपू., (आई वसंत महासुखकारी), ७८७०१-१ आध्यात्मिक होरी, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ११, पद्य, स्था., (असी खेलो रे जीव सदा), ७८९४९-३(+) आध्यात्मिक होरीपद, घन सखी, पुडिं, पद, ३, पद्य, वै., (जोरी से खेले होरी रे), ७९६१४-१२(+) " " देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मूपू., ( वर्द्धमानजिनवर चरण), ७८९१३(६), ७९४९४ (६), ७९८७७($), ८०६९६ ($), ८१०९६ ($) आनुपूर्वि नवकारजाप फल, मा.गु., प+ग., स्था. ?, ( आणपुरवि गुणजो जोई), ७८४३४-२(१) आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (समरी श्रुतदेवी सारदा), ७८५०९ आर्द्रकुमारमुनि सज्झाय, वा. कनकसोम, मा.गु., डा. ५, गा. ४९, वि. १६४४, पद्य, म्पू, (सकल जैन गुरु प्रणमुं), ८०३७५, ७९१४३-२ (३) आर्द्रकुमारमुनि सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., डा. १९ गा. ९८, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (--), ७८७६३(+६) आर्द्रकुमार विवाहलो, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., वि. १६वी, पद्य, मूपू.. (माई एनवर हसीह दूयार ), ८०३९५ आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ मगधदेश राजग्रहीनगर), ७९९९८-२ आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (पाप आलोय आपणां सिद), ७९४४०-१(+#), ८०७७५-१(+), ७९५८७ आलोयणाप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञान आसातनाई जघन्य), ७८९२३ आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ सूत्रार्थ पोरसी ९) ८१२४३ (६) आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे. (अतीत काल अठार पाप), ७८३४२, ८१२४९ (६) 19 आलोयणाविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ वरस नानि आलोयण), ७८५०७ (+S), ७९५३४ आलोयणा स्तवन-वृद्ध, मु. धमसीह, मा.गु., गा. ३०, वि. १८५४, पद्य, मूपू., ( एह धन सासन वीर जिनवर), ७९२२० (+) आशातना परिहार कुलक, मु. पार्श्वचंद्र *, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७८१४३ (+#$) आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ६७ वि. १६३८, पद्य, म्पू, (श्रीजिनवदन निवासिनी), ७८२९७-१(*), ७९१४३ १ आषाढाभूतिमुनि चौडालियो, मु. माल, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३०, पद्य, स्था., (वाणी अमृत सारसी आपो), ८११९०-१(३) आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., डा. ७, वि. १७३७, पद्य, म्पू., (सासणनायक सुरवरूं), ८१०५८(३) आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ७७८४६(+), ७८४५६ (०३), ७८२४०-१, ७८५४२-१, ७८६०५, ७८७७६ आषाढाभूति रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (गणधर गौतम गुणनीलो), ७८८०८(+) आसकरणगुरुगुण गीत, मु. भीम, मा.गु., गा. ९, पद्य, धे. (श्रीगुरुगुणगणपूर सूर), ७९५८३-५(१ आहार पद, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चोला वरटी तेल साक), ७८०१५-३ इंद्र अग्रमहिसी संख्या यंत्र, मा.गु., पं., म्पू., (--), ७८५०८-२(१) इंद्र के आयुष्य में च्यवन होनेवाली इंद्राणियों की संख्या, मा.गु., गद्य, म्पू, (२८५७१४२८५७१४२८५ पहिल), ७८८७६-३(+) इक्षुकार कमलावती सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, मूपू., (पुर इखुकारइ नृपखुका), ७८९६२(६) इक्षुकारराजा ढाल, मा.गु., डा. ७, पद्य, खे., (देव हुंता पूर्व भवे), ७७८६१(७) इरियावही मिच्छामिदुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., डा. ४, गा. १५, पद्य, मूपू.. (पद पंकज रे प्रणमी), ७९४६१ (१(७) For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ इरियावही सज्झाय, मु, पद्म, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू.. (सरसती सदगुरुना पाय), ८०३२७ " इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदायक सदा), ७८१०४ ($), ७९४९३ (६) इलाचीकुमार सज्झाव, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. २९, पद्य, म्पू., ( धनदत्त शेठनो दीकरो ए), ८०८७६२ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू, (नाम इलापुत्र जाणीए), ७९२४०-३ (+), ७९७७५ (+), ७९२६० ३, ७९२४३-३(२), ७९२६६-१(२), ७९८१६-१(३), ७९४०४-३(३), ८०८७०-२(६), ८१०८५(का זי इलाचीकुमार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू (नाम इलापुत्र जाणीये), ७८९४२-३(७) इलाचीकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, भूपू (-), ८०५२४) इलाचीपुत्र चौढालीयो, मु. भूपति, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (प्रथम गणधर गुणनीलो), ७८८०२-५ (+), ७८९२७, ७९३५८(#), ७९२३२(s) " उंदर रास, मु. सुजस, मा.गु. गा. ४४, पद्य, मूपू., (विनय करीने विनर्बु), ८०३५९(क) उत्कालिक कालवेला विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (उत्कालिकसूत्र तिके), ७९७३६-२ उत्कृष्ट मनुष्य संख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( एकोनत्रिशत्यंकतः), ७९४२१-१(+#) उदाईनृप सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ८, पद्य, वे (सिंधु सुवीर सुदेसमइ), ८००२९-४(क) उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, म्पू., (सांभलज्यो सज्जन नर ), ८०३४४ יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा. गा. २७ वि. १८७८, पद्य, श्वे. (निठ निठ नर भवे लहो), ७९५७८-१, ८०११७-१(३) " " उपदेशयत्तीसी, मु. राज, पुहिं. गा. ३०, पद्य, भूपू (आतमराम सयाने तें), ७९२३०-१(*), ७९५९४(१), ७९६५८ (+#), ७७६५६-१, ७८०५६ ($) उपधान आलोयणा, मा.गु., गद्य, मृपू., (चलवडी अणपडिलेह्या), ८०३२६(+) उपधानविधि सज्झाय, मु. भोजसागर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू. (सारद मात लाही सुपसाया), ८०३५० (+) उपमा पद संग्रह, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., ( ईंद्र वडो जेम अमरमां), ७९७१६ उपाध्यायपद के २५ गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचारांग १ सुयगडांगाद), ७९६१६-४ ऊर्ध्वलोकजिनप्रासाद व जिनप्रतिमासंख्यासंक्षिप्त विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (सलीधर्म देवलोके जिन), ७९६२४ ऋषिवत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३२, पद्य, म्पू, (अष्टापद श्रीआदिजिणंद), ७८८०२-१(*) एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक मिथ्यात असंयम), ७९७४०-२ एकविसादि विविध यंत्रफल वर्णन, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (सरसइ सुगुरु नमियं), ७७८८६-१(+#) एक समय उत्कृष्ट मोक्षगामी जीव विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (पुरुषलिंगे १०८ मोक्ष), ७९६७९, ७९०४५-३(४) एक समये उत्कृष्ट ३० जिन जन्मोत्सवे १५० इंद्र रूप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक प्रस्तावै एक समय), ८०७६१-२ एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (शासननायक वीरजी प्रभु) ७९९८६ १, ७७९०४-२ (३) एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल), ८०३६८-३ (+), ८००५७-३, "" ८०४२८-२(#), ७९००७-१ ($) एकादशीतिथि स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (एकादसी तप किजीये), ८११३५(१) एकादशीव्रत गीत, मा.गु. गा. ११, पद्य, वै., (मेरुशिखरि सोनानु), ८०२२०-२(-) " ! " एकेंद्रीय भव विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (२ घडीना ६५५३६), ७८७१९-२(*) " "" एकेंद्रीय मोहनीयस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकेंद्रीनइ मोहनी), ७९३२५-१ ओसवालज्ञाति उत्पत्ति कवित. रा. गा. २, पद्य, भूपू (पहुपराव पमार श्रीकरे), ८१०३०(5) ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देवी सेवी कोड कल्याण), ८१०४२-२(+) औपदशिक कुंडलिया, क. दिन, पुहिं. दोहा १, पद्य, क्षे., (धुरे नगारा कुंच का), ८१२२९-४ औपदेशिक कवित्त, मु. लालचंद, मा.गु., गा. १, पद्य, खे, (चुल्हो ने हांडली धोय), ७९०६९-२ औपदेशिक कवित्त, पुहिं. गा. १, पद्य, वे (रावण राज करे त्रिहु), ८११०८-२(*) " " " For Private and Personal Use Only ५२७ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक कवित्त, पुहि., दोहा. ८, पद्य, इतर, (लद्धण पट्टण पाहरू), ८०४५८-३(#) औपदेशिक कवित्त, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (--), ८११८९-१($) औपदेशिक कवित्त-कर्मप्रभाव, मु. केसवदास, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (श्रेणिकराय करी वीर), ८०४३३-३ औपदेशिक कवित्त-दंभ, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., इतर, (निपट कपट की बात), ८११४१-२ औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, मूपू., इतर, (कीमत करन बाचजो सब), ७९५७३-६(+), ७९०६९-३, ८११७२-२, ८११५५-२($) औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., इतर, (ग्यान घटै नरमूढ की), ७९१८१-३(#) औपदेशिक काव्य, पुहि., दोहा. ५१, पद्य, मूपू., (बाघकुं बद्ध कै कौन), ७८१९६(5) औपदेशिक कुंडलिया, क. गिरधर, पुहिं., दोहा. १, पद्य, वै., इतर, (पानी बाधे नाव में), ८१२२९-३ औपदेशिक कुंडलिया-माया परिहार, मु. लाल, मा.गु., पद. २, पद्य, श्वे., (माया कोई संचो मती), ७९०६९-१ औपदेशिक गहुंली-जिनवाणी, मु. अनोप, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरस अमृतिथी रे मीठी), ७८८२१-२ औपदेशिक गहली-जिनवाणी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (सखी मोरी सरस अमृति), ७८८२१-१ औपदेशिक गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (देस मुलकने रे परगण), ७८०७५-२(2) औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कहेज्यो पंडित ए), ७९६२९-१ औपदेशिक गीत-जीवकाया, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (रे जीव जुगति लिङ),७७७३२-८(+),७९०८५-२(+) औपदेशिक गीत-जीवदया, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, पू., (दुलहे नरभव भमता दुलभ), ७८००२-२, ७८२०३ औपदेशिक गीत-वैराग्य, श्राव. दामोदर, मा.गु., गा. २४, पद्य, मपू., (मारग वहइ रे उतावलो), ७८९९३(+) औपदेशिक गीत-वैराग्य, ग. विजयभद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राति तीस काया मुढ), ७९०१३ औपदेशिक गुरुभक्ति पद, मु. सेवक, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (एते दिन मे भेद न जाण), ७८३८५-२(८) औपदेशिक गुरुभक्ति पद, मु. सेवक, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कंत विना नार माता), ७८३८५-३-) औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मप., (भगवति भारति चरण), ७८७०९(+#), ७९१८६(-2) औपदेशिक छंद, पुहिं., गा. ८, पद्य, मप., (अकलवान नर होय नही), ८०७३४-३ औपदेशिक दहा, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मप., (हे अभिमानी जीवडा), ८००३१-२(#) औपदेशिक दुहा, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (सहु न ऐसा कीजीये), ७९७७३-३ औपदेशिक दहा, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (सुख मे सजन बहुत है), ७९७७३-२ औपदेशिक दहा संग्रह, पुहि., दोहा. ८, पद्य, श्वे., (प्यावै था जब पीया), ७९१३१-२ औपदेशिक दहा संग्रह-पर्यषणपर्व पत्रिका, पुहि., गा. ३७, पद्य, मपू., (सजन सारे समुमन हो), ७९५७३-२(+) औपदेशिक दहासंग्रह-विविधविषयोपरि, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, जै., वै.?, (लाख तज्यो ठामै लिख्य), ८०८८७-२(+), ८०१९४, ८०८६३-३, ८०८९३-२, ८१०२७-३(१) औपदेशिक दोहा, कबीर, पुहिं., गा.८, पद्य, जै., इतर, (बनै बनै कोइ झपी), ७९९२३-३(+) औपदेशिक दोहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सजन फल जिम फूलजो वड), ८०२७५-२(-$) औपदेशिक दोहा, पुहि., दोहा. १, पद्य, वै., इतर, (सिद्ध कसिवै कुं काल), ८१०००-३ औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, श्वे., (कोन सुने कासु कहे), ७९५५२-३(+$) औपदेशिक दोहासंग्रह, पुहि., दोहा. ४६, पद्य, वै., इतर, (चोपड खेले चतुर नर),७९५५२-१(+),७९६१४-४०(+),७९८२९-५(+#), ८०१११-५(+#), ८०७६६-२,७९८७०-३(2) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., गा. ११, पद्य, जै., वै., (नगारा कूच का होया), ७८७३१-२(+) औपदेशिक दोहे, पुहिं., दोहा. २, पद्य, मपू., (खेती पाती वीणती), ७९६४६-२ औपदेशिक पच्चीसी-वैराग्य, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २६, वि. १८२१, पद्य, स्था., (सासणनायक श्रीवर्धमान), ७९७१०-४(+), ७८३८१-२ औपदेशिक पद, मु. आतमराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूप., (बीतगई सारी रेन), ७९६१४-३८(+) For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ए जिनके पइया लाग रे), ८१०७४-१ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (जग आशा जंजीर की गति), ७९५५०-१ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जुगमे जिवन थोरो मत), ८१००४-११(#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मायडी मुने निरपख), ७८४७७-२ औपदेशिक पद, मु. आनंदराम, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (छोटी सी जान जरा सा), ८१०७४-४ औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (उठ चलणा एकलि गार मैं), ७७७४८-५ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., पद. ६, पद्य, वै., इतर, (गुन का भेद न्यारा), ८०४९१-१२(+) औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., गा. ७, पद्य, वै., (जतन करे तेरा भाई काल), ७७७४८-९ औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (जोबन धन पाहुनो दिन), ८१००४-२(#) औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., पद. ७, पद्य, वै., (तुमारो बावो रे बावो), ७९६१४-३५(+) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., (मन मगन भया जब क्या), ७७७४८-६ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., इतर, (मींदरीया में दीपक), ८०४९१-१०(+) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., इतर, (मसाफर चोकस रहो रे), ८०४९१-१५(+) औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (रे पंडित पूछ पिया), ७७७४८-७ औपदेशिक पद, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद. ३, पद्य, मूपू., (सद्गुरुने पकरी बाह), ७७९३१-५(#), ७८९४७-५(4) औपदेशिक पद, गढदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (काहे कुं प्रीति करी), ७९८५१-१(+#) औपदेशिक पद, क. गद्द, रा., गा. २, पद्य, श्वे., (मुंछरी सीसहि लाल भई), ८०५४९-२(#) औपदेशिक पद, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (एसी बतीयां कुमती कहा), ७८०९१-८(#) औपदेशिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, मूपू., (चेतन है रूप तेरा तू), ८०४०५-२(#$) औपदेशिक पद, मु. चेतन, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (कोण करे जंजाल जगमें), ८११७५-४ औपदेशिक पद, मु. जसकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (एक थोडी थोडी थोडी), ७७५८८-२(+) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (गेंला काय गुमान करे), ८०१०२-१० औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (झंझूटी प्रभाती मिलत), ८०८०४-४ औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मपू., (तुम तजौ जगत का ख्याल), ७९१२४-१(#) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (तेने केसी फकीरी करी), ८०१०२-१२ औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (कहा रे अग्यानी जीव),८०१७५-२, ८०३८८-१, ७८०९१-१६(#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (भोर भयो भोर भयो भोर), ७८०९१-१०(#) औपदेशिक पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा.८, पद्य, मप., (चेतन प्राणी चेतीये), ८०८९६-७(#) औपदेशिक पद, मु. द्यानत, पुहि., गा. ४, पद्य, मूप., (भाई काया तेरी दुख की), ८०८९६-१३(#) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (कहिवे कुं मनसूरिमा), ८०८९६-१४(#) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (ब्रह्मग्यान नहीं), ७८१८९-५ औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुदगल का क्या विसवास), ८०४९१-८(+), ८०३४२-३ औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (लग जा हो जीव जिनचरणा), ७८०९१-२१(#) औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (वे कोई काल न जीत्या), ८११२०-३(+#) औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुणि सुणि जीवडा रे), ७९३३७-१ औपदेशिक पद, प्रभुदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (अवसर बार बार नही), ८११२०-५(+#) औपदेशिक पद, बनारसीदास, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (तु आतम गुण जान रे), ७७७८२-४ औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (उस मारग मत जाय रे नर), ७८२९६-२ औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (खलकइ करे नका सुपना), ८०७७१-४ औपदेशिक पद, मु. मोजी, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (तोरी रे भइया तोरी), ८११२०-७(+#) For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (यो जग जालस्य मनकि),८१००४-१९(#) औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (विस्था या बस जनम गयो), ८१००४-१७(#) औपदेशिक पद, मु. रत्नसागर, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (असुभ करम मल झाड के), ८०२०३-६(+#) औपदेशिक पद, क. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (तुम्ह हो सलूणे चस्मन), ७९१५६-२ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (तुही तुही आदि आवै), ७८८२७-३ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (हक मरना हक जानां), ७८०९१-२(#) औपदेशिक पद, मु. लाभचंद्र, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (तेरे जूठे होर कू वड), ८०४८६-२(-) औपदेशिक पद, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (मन मेला नर मेला किम), ८११२१-८(#) औपदेशिक पद, मु. विमलहर्ष, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (समर समाहि जीलि चंचल),७९०१६-१(+) औपदेशिक पद, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (करम अचेतन किम हुवै), ७९६२९-५, ८०८७५-३(2) औपदेशिक पद, क. सुंदर, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (पायोह मनुष देह ओसर), ७९१९२-२(#) औपदेशिक पद, पुहि., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (अंध कहा जाणे कामनी), ७८२९६-३ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (अरे भववासी जीव जड), ७७६५०-२(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (आज चेत चेत प्यारे), ८०४८६-३(-) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (चेतन मानवै असाडी),७९१७०-१ औपदेशिक पद, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (जंबु तो दीप जठो भरत), ८०४२४-२(८) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागि जागि रेन गइ भोर), ७८०९१-१८(#) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (जिन नाम कुं समरलै रे), ८१००४-१५(#) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तेरे घट में हे फलवा), ८११२०-८(+#) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (पापी कहा जोणे साध क), ८०४८६-१(-) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (भज अरिहंत भज अरिहंत), ८१०८३-१(+#) औपदेशिक पद, रा., पद. २, पद्य, वै., (मारो भर्म रवी लच्यो),७९६१४-७(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., (युं साधु संसार में), ७७८२८-३(+) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (रे जीव आर्त क्या करे), ८११२०-९(+#) औपदेशिक पद, पुहि., पद. २, पद्य, श्वे., (लगन को पैडो न्यारो), ७९६१४-३९(+) औपदेशिक पद, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (लगा इसकादा तीर बै), ७९६१४-६(+) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (वडपणनि विचारी जोयो), ८००६२-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुग्यानीडा रे मारग), ८११२१-५(#) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. २, पद्य, म्पू., (--), ७८१८९-१(६) औपदेशिक पद-अजरामरपदप्राप्ति, मु. धर्मसंघ, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (चलो रे जीउ अमरनपुरी), ८०१५४-२ औपदेशिक पद-अभिमान परिहार, कबीर, पुहि., दोहा. ४, पद्य, वै., इतर, (दिन वीसार्यो रे),८११७५-१ औपदेशिक पद-आत्मशिक्षा, मु. चैनराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (क्यूं जिन नाम), ८१२४०-१(#) औपदेशिक पद-आत्मशिक्षा, मु. धर्मसंघ, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (कोएसु प्रीति म बांधे), ८०१५४-४ औपदेशिक पद-आत्मा, गोपीलाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (पाये लागो सुधरमा), ७९७७१ औपदेशिक पद-उदर, मु. मान, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (केस दीया सिरि सोहन),७९७४२-२ औपदेशिक पद-उदेपुरशहर वर्णन, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (गड किलाने मुलक वणाया), ८१००४-९(2) औपदेशिक पद-कर्मगति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (हे मा बाकडी कर्मगति), ७८१८९-७ औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, मु. जिनदास, रा., गा. २, पद्य, श्वे., (अरी काया काची थारी), ८०८०४-१० औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, पुहि., पद. ४, पद्य, मप., (अव घर जा मोरे वीर), ७८७२७-२ औपदेशिक पद-काया विषे, मु. जिनदास, पुहिं., गा. १२, पद्य, मप., (इस तन का कोई गरव), ८०८०४-१ For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ औपदेशिक पद-काया विषे, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (काची काया जाण प्राणी), ७८१८९-६ औपदेशिक पद - कालप्रभावगर्भित, मु. चंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे. (कीवी अटकलि चंदकवि), ८०५२१-२ औपदेशिक पद-कुगुरु परिहार, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (ज्ञानी का गुरु चालणि), ७८८८२-४ औपदेशिक पद-गुंजा, मु. उदयसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( इक इक दिन रे गुंजा), ८००२४-१(००) औपदेशिक पद-गुरुगुण महिमा, मु. चैनराम, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (वरखत वचन झरी हो), ८१२४०-२(#) औपदेशिक पद-गुरुभक्ति, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (लही मानव अवतार गुरु), ७८९९५-७(#) औपदेशिक पद-गुरुभक्ति, मु. परमानंदजी, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू. (आज चेतन घरे आवे हे), ८००९५-४२*) औपदेशिक पद- गुरुमहिमा, मु. हर्षचंद, मा.गु, गा. ४, पद्य, म्पू., (सुगुरु मरे वरख वचन), ८१२३९-२ औपदेशिक पद चारित्रधन, मु. ज्ञानानंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपु. ( साहिब बास पहिचानिये ), ७८५३८-५ औपदेशिक पद-चेतन, मु. ज्येष्ट, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रीतम नहीं माने), ७८५८६-४(+) " יי औपदेशिक पद-चेतन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचप्रमेष्टी प्रणम), ७८५८६-७ (+) औपदेशिक पद - जिनवाणी, मु. पुनमचंद, रा. गा. ७. वि. १९६२, पद्य, श्वे. (धन जिनशासन जिनवाणी), ७८५७३ (+) . " औपदेशिक पद-ज्ञान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (थाके नयण चलण पणि), ७८३३६-३(+) औपदेशिक पद-तृष्णा परिहार, पुहिं. गा. ४, पद्य, श्वे. (त्रसना तरुणि तु तजो), ८१००४-२०१०) औपदेशिक पद-दान, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (धनवानों धन रक्षा), ७९५७३-५ (+) औपदेशिक पद-दानशीलतप, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुण जीया रे खोउ छो), ७८०९१-५(#) औपदेशिक पद-देवगुरुधर्मतत्त्व गर्भित, मु. रंगदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, चे., (अवसर आज छरे अवसर), ७८२०१-३ औपदेशिक पद- देशभक्ति, मु. मलुकचंद ऋषि, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, इतर (पाक तुमारा नाम है), ७८२६८-२ औपदेशिक पद-धैर्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सबते सबर कहि मोहेनि), ७८८८२-३ औपदेशिक पद-नारी महिमा, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे. (नारी सम जग को नही नर), ७८४७४-३ (#) औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (निंदरडी वेरण हुई), ८००१४-३ औपदेशिक पद-परनारी परिहार, कमाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, चे. वै., (मदमोह की शराब), ७८०९१-४(*) औपदेशिक पद- परवारी परिहार, मु. देव, मा.गु., गा. ९, पद्य, वे. (सुण मारी चतुर सुजाणे), ८०१२७-२ (-) औपदेशिक पद-परनारी परिहार, मु. शिवलविजय, पुष्टिं गा. ६, पद्य, मूपू ( परनारि छे कालि नागणी), ८१००४-६ (M) औपदेशिक पद-परमात्मभक्ति, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमातम पद भज रे मेरे), ७८७१३-३ औपदेशिक पद-पापकर्म परिहार, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (आरंभे मत पापकु गत), ७८०९१-६(#) औपदेशिक पद-पेट के लिये धर्मपरिवर्तन, पुहिं. गा. ५, पद्य, वे. (कुल जातियो तीन चाहि), ७९५७३-४(+) औपदेशिक पद- प्रबोध, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू, (जाग रे अब जाग रे), ७७७८२-६ , " " औपदेशिक पद-प्रमादपरिहार, मु. गुणविनय, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू., (ओ दिन तुझकु विसर्वड), ७८५२१-६ (*) औपदेशिक पद प्रायश्चित, मु. गुणविनय, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपु. ( अब पछताबड़ कीयह क्या), ७८५२१-५ (*) " , औपदेशिक पद-भोजन, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. (प्रथम जनेसर लागु पाय), ७७९८४(+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद-माया, मु. राम मुनि, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (माया के मजूर सोतो), ७९७८१-२ ५, पद्य, वै., इतर, (यो जुग जाए रे च्यार), ८११७५-२ औपदेशिक पद-माया परिहार, सूरदास, पुहिं., गा. औपदेशिक पद मोहमाया, पुहिं. गा. ४, पद्य, थे. (कोइ मत करजो प्रीत). ८०४९१-१४(१) औपदेशिक पद-युवावस्था, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे. (तरंगनी नीर जु जोवे), ८१०१२-५ " औपदेशिक पद- वैराग्य, मु. अमरचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (इस तन पिंजरे को छोड), ७८७३१-४(+) औपदेशिक पद-वैराग्य, पं. आनंदविजय, पुहिं. गा. ७. वि. १९वी, पद्य, म्पू, (जग में कोई नही मित), ८०४१९-९ (+) औपदेशिक पद-वैराग्य, आ. जिनराजसूरि पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू (मेरे मन मूह म कहि), ७८२२२-४ औपदेशिक पद-वैराग्य, पं. जिनहर्ष, पुर्हि, गा. ४, पद्य, भूपू., (जुग में जीवना थोरा), ७८०९१-११ (क) औपदेशिक पद- वैराग्य, क. पीतांबरदास, पुहिं. गा. ४, पद्य, वै., (अब तो मनवा मेरा मेलि), ८९२१५-५ For Private and Personal Use Only ५३१ Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३२ " " "" औपदेशिक पद- वैराग्य, सा. भोलीबाई, रा., पद. ४, पद्य, ओ., (तुं कांई भूलो रे चेत), ७९६१४-३६(+) औपदेशिक पद- वैराग्य, मु. लालचंद, पुहिं. पद २, पद्य, खे, (आउ घटी बल छीन भयो नर), ७९१०७-५ औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिस वक्त जीवसे लगी), ८११५७-१(#) औपदेशिक पद- शील, श्राव. मीठादास, रा. गा. ८, पद्य, वे पुन्यप्रगट्यो रे, ७७७८२-७ औपदेशिक पद- शीलव्रत, मु. नारायण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (सुंदर शील महाव्रत ), ७९०३३-२(+) औपदेशिक पद संग्रह, मीर वलीउद्दीन, पुहिं., दोहा. १५, पद्य, इतर, मु., (क्रोधी कपटी लालची), ७८८६१-२ औपदेशिक पद संयमित वाणी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वेग पधारो महलवी), ७८९९५-६(४) औपदेशिक पद सम्यक्त्व, मु. चानत, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू (धृग धृग जीवन सम्यक्त), ८०८९६-१०(*) औपदेशिक पद-साधु, पुहिं. गा. ३, पद्य, वे (बावा हुआ ल्यो साधू), ८०१५४-३ औपदेशिक पद-साधुसंगति, मु. माधव, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (लसन वसो चंदन निकट), ७८६५६-२ औपदेशिक पद-सूत्र अमिरस, पुहिं. गा. ६, पद्य, वे (बावानि सूत्र भणी काह), ८०१५४-६ औपदेशिक वारमासा, रुपचंद, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (हां रे भाई कारतके कर), ७९६९३-१ औपदेशिक बारमासा, पुहिं., पद्य, श्वे., (चेत चित मेरे मन आइ), ८०७२७($) " औपदेशिक बावीसी, मु. भालण, मा.गु. गा. २२, पद्य, . ? (भगति करो भूधरनी), ८००१५ औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, म्पू, (जीवदयाने विशे रमबु), ८०९२६-१ , औपदेशिक बोल- गर्भावास दुःख, मा.गु., गद्य, वे., (अरे जीव तूं कीहांथी), ७८०७६-१, ७९४३५, ७८०३६(m) (थोड बोले ते निपुण), ७८७३६-२ औपदेशिक बोल- संयमितवाणी, मा.गु., गद्य, मूपू औपदेशिक भजन, कबीर, पुहिं., गा. ८, पद्य, जै., वै., इतर?, (पंडिता पूछ पीयो जल), ७९८२९-३(+#) औपदेशिक भजन, प्रीतम, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., बी., इतर ( हरी भजन विना वषदरीया), ७९८२९-४(+) 3 www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक भास-मानवभव उत्पत्ति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (चेति न चेति न प्राणी), ८०१००-१, ७८५१८-२($) औपदेशिक मजलस, पुहिं., पद्य, मूपू., (अहो० कहो मजलस कौण), ८०३३६(#) औपदेशिक लावणी, पुहिं. गा. ११, पद्य, चे. (खबर नही आ जगमे पल), ७७७४८-१(३) . औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आप समझका घर नही जाणै), ८०१०२-६ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू. ( कब देखूं जिनवर देव), ७८३१४-१(३) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुमत कलेसण नार लगी), ७९१२४-४(#) औपदेशिक लावणी, मु. जिनवास पुहिं. गा. ४, वि. १७वी, पद्य, म्पू., (चल चेतन अब उठकर अपने), ७९८१८-२(१, ८११२१ मका , יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू. (तुं उलज्यो हे जंजाल), ८०१०२-५ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, रा. गा. ५. वि. १७वी, पद्य, म्पू, (मन सुण रे थारी सफल), ८०१०२-३, ८०२९४ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुकृत की बात तेरे), ८०८१० औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (सुरग आस मत करे कलेशी), ८०१०२-१(३) औपदेशिक लावणी, मु. हीर, मा.गु, गा. ६, पद्य, भूपू (शुभ ज्ञान रसिली रुडी), ७८८७५-१ औपदेशिक लावणी, पुहिं., गा. ११ + १, पद्य, मूपू., (करूं अरज एक तो पें), ७९२८२-३(+$) औपदेशिक लावणी-मकशीतीर्थ, मु. जिनदास, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (करमदल मलकुं क्षय), ८११२१-२ (०) " औपदेशिक लावणी- शीखामण, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ४, वि. १७वी, पद्य, म्पू, (एक जिनवरका निज नाम ), ७८३१४-२ औपदेशिक वैराग्य पद, मु, हर्षचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, भूपू. (अरे हम मदमाते क्वराग), ८११२०-४(+) औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, खे, णमो अरिहंताणं० णमो ), ८११०२, ८०४५३-१(३) औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु संघाते प्रीत), ८०९२२-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, पुहिं, गा. ७, पद्य, म्पू, (वामें वास में बें), ७९२७२-२ (*) औपदेशिक सज्झाय, मु. कमलकीर्ति, पुहिं, गा. ९, पद्य, मूपु. ( करुंजी कसीदो ग्यान), ७९०७८-२ " For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ " " औपदेशिक सज्झाय, मु. कवियण, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे. (वणज क्या किया अजाण), ८१००४-१८(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. कुसालचंद ऋषि, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (चेत चेत रे प्रांणीया), ७९५७८-२ औपदेशिक सज्झाय, ग. केशव, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चेतन चेत प्राणीया रे), ८०९१५ (+), ८००२८-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८५२, पद्य, स्था. (भोव भोमाजी भवटा कदा), ८१०८१-१ औपदेशिक सज्झाय, श्राव. जिनबगस, पुडिं, गा. ७, पद्य, श्वे. (तुक दिल की चसम खोल), ८०४९१-६ (+) औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन अब कछु चेतीए), ७८२६८-१($) औपदेशिक सज्झाय, ग. तेजसिंघ, मा.गु., गा. ७, वि. १७५०, पद्य, श्वे. (ते पंडीया रे भाई ते), ७७७२३-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. चानत, पुहिं. गा. ५, पद्य, म्पू, (घटमै परमातम ध्याइयै), ८०८९६-८ (क) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं. गा. ६, पद्य, श्वे. (हमरा रे सीव कंत अनंत), ८०८६३-२ औपदेशिक सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (करयो मती अहंकार तन), ७९३३९(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. नंदलाल, रा., गा. १०, पद्य, श्वे. (मतो हो मछराला हो राज), ८१०८२-१ (-) औपदेशिक सज्झाय, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू. (चेतन समजो राज मन), ८१०५५-२(३) औपदेशिक सज्झाय, क. बनारसीदास पुर्हि, पद्य, दि., (अगनी में जैसे अरविंद), ७८८१२-३(३) " औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (चतुर विहारी आतम माहर) ७७७८४ ३(+), ८०३९३-४(५) औपदेशिक सज्झाय, श्राव. भैया, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (--), ७९०९४-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. मनोहर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (लाख चोरासीजी नमे रे), ८१०००-१, ७८११९-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु. गा. १६, पद्य, मूपू., (मारे घर आवजो रे वाला), ७८०७८ . औपदेशिक सज्झाय क. मानसागर, मा.गु., ढा. २ गा. ११, पद्य, म्पू, (मानव भव पामीयो पाम्य), ७९४४२-२, ७९६८५-१ औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चतुर नर सामाइक नय), ७८२२२-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. रामचंद्र, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (नोमासा तें गरभावार ), ८०३०७-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८४०, पद्य, श्वे. (प्यारो मोहनगारो राज), ८०३०७-२(+), ८१२०४ २(+), ८०७५८-२ , औपदेशिक सज्झाय, मु. रुप, पुहिं., गा. ६, पद्य, म्पू. ( इस काया का कौन भरोसा), ८१००४-४(१) औपदेशिक सज्झाय, मु. रूप, पुहिं. गा. ९, पद्य, मूपू (एसो जनम नही वारंवार ), ८१००४-१४(४) औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऐसे ऐसे सेहर वसे कोइ), ७९७८१-३ औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जिणवर इम उपदिसै आगे), ८११८८ औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (अणसमजु जीव सी सीखामण), ८०५७६ -१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे. (जबरा होइ जगतमै डोले), ७९५१३-३ (+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु. गा. २७, पद्य, मूपू.. (भजि भजि भगवंत भविक), ८००५० (+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आदित्य जोइने जीवडा), ८०४४१-३ (+), ७९७८१-४ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू (सुधो धर्म मकिस विनव), ७७७१४-२ (०), ८०८४८-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू, (मंगल करण नमीजे चरण), ७९३७५-२(+), ७९८२३, ७८९८८ (३), ', , יי ७७९७४($), ७८४०४-३($) " औपदेशिक सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., ( रात दिवस कावा मूढ), ८०८३५-३(४) औपदेशिक सज्झाय, श्राव. शंभु, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मूपू., (जेह हुवा उतसपरांणी), ७८६०९-३(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु. गा. ३३, पद्य, वे (साचे मन जिन धर्म), ७८८९९-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुं धोजे मननु), ७९८९२-२(+#) औपदेशिक सज्झाय, सुंदरदास कवि, मा.गु., पद्य, मूपू., (साच वचन धन सीध बले), ७८९६८-४(४) औपदेशिक सज्झाय, मु. हर्षचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू (आरिज देस उदार नरभव), ७९५१३-२ (*) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (अरिहंतजीनो नाम मारे), ७९८७०-२(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ५३३ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (कबही तु नरह नरिंदा), ७७८३७-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (कर दया धर्म को पाय), ८११५७-३(२) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (कर परमीसरकी यारचा), ८१०८१-३ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा.१३, पद्य, श्वे., (कातग म कौतग करीय घरघ), ७९९४०-३(+) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १६, पद्य, श्वे., (खबर कर देणौ दीजै रो), ८००६८-२($) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (खाइजो पिजो वागरो जाण), ७९१८५-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (गणधर गौतम पाय नमीने), ८०३७७-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चेतन मान ले साढीया), ८११५६(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (निंदिया बेरण हो० भजन), ८१०८८-२(#) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (परदेसीनो कइ पतियारो), ८१००४-८(#) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (मुखडा क्या देखे दरपन), ८१००४-३(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (राजा चंचल होय भोम), ८१०६४-१ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीअरिहंत सीद्ध जाण), ८१००४-५(#) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. १७, पद्य, मूपू., (संता ऐसी दुनिया भोली), ७९६१४-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सतगुरु मानो जी सीख), ७८५२७-१(+#) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (हाथ तुम सामज जोह मन), ८११५७-२(2) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, म्पू., (--), ७८६१७-१($) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (--), ७८८२७-१(६) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (--), ८०८२६-२(#$) औपदेशिक सज्झाय-२४ जिन परिवार, मु. विद्याचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पय प्रणमी रे ऋषभादिक), ७९६००-२(2) औपदेशिक सज्झाय-अमलवर्जनविषये, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मप., (जिनवाणी मन धरी), ७८९४२-४(#), ७७६३९-२(5) औपदेशिक सज्झाय-आचार, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (सरसती माता चरण नमीने), ८०७५६-१(+) औपदेशिक सज्झाय-आत्मचेतना, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (अवसर खोयो रे दिवाना), ८०२४२ औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, पू., (मायाने वश खोटं बोले), ७८५५४-२ औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रबोध, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पिउडा रे पिउडा नरभव), ७७९०४-१ औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपदेश, मा.गु., पद्य, मूपू., (मनुषाभव पायोजी उचकुल), ७८५५३(+$) औपदेशिक सज्झाय-आध्यात्मिक व्यापार, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (नेम कहे सेठ सांभलो), ७८९८०(+) औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (आउखु तुट्याने सांधो), ७९६८५-३, ८१०८८-३(#$) औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (अणी आउखो तुटाने सादो), ७८७८२ औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (दमका नहि भरोसा रे), ७९८००-१(+-) औपदेशिक सज्झाय-आर्त्तध्यान निवारण, मु. ज्येष्ट, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चेतन तुं ध्यान आरत), ७८५८६-२(+) औपदेशिक सज्झाय-आलोयण, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (सूत्रपाठ सु अर्थ), ७८८९७ औपदेशिक सज्झाय-उपशम, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (भयभंजण रंजण जगदेव), ८०३६७-२ औपदेशिक सज्झाय-कटुवचन त्याग, रा., गा. २४, पद्य, मपू., (कडवा बोल्यां अनरथ), ८०३०७-१(+) औपदेशिक सज्झाय-कपट परिहार, मु. जिनचंद, मा.गु., गा.१३, पद्य, मपू., (पुरुष एक जगि ऊपनु), ८००६४-१ औपदेशिक सज्झाय-कर्म, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (कर्म अतिनिर्दयी जग), ७८१८९-३ औपदेशिक सज्झाय-कर्मफल स्वरुप, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनस्वामी शिवपु), ७९६८२-२(# औपदेशिक सज्झाय-कलिकाल, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (नित उठी गामें जावै), ८१२१३-२(+) औपदेशिक सज्झाय-कषाय परिहार, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (तज दे क्रोधमान), ८१०१२-४ For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५३५ औपदेशिक सज्झाय-कषाय परिहार, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सो ग्यानी रे श्रीजिन), ७९३७७, ७९७५१ औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, स्था., (काया हो कामण जीवजी), ८०८०३-१ औपदेशिक सज्झाय-कायाउपरी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुण रे चंचल जीवडा), ८०१९२ औपदेशिक सज्झाय-कायाविषे, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (भुलो मनभमरा काई भम्य), ७९८३३-२(+#), ७८४७८-१ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (कडवां फल छे क्रोधनां), ७९१२९-१ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हा रे लाला क्रोध न), ८१११६-२ औपदेशिक सज्झाय-खोटीकमाई परिहार, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १९७६, पद्य, स्था., (सुण वाणीय महाजन भाई), ७९६६९-२ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा.७२, पद्य, मपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ७७९२५(+#), ८१२१४(+#s), ७९६४६-१, ८०७९९-२, ७८११९-७(#$), ८१०११-१(#) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गरभावासमे चिंतवइ है), ८००००-२ औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मु. जवानमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सतगुरनी सेवा करसां), ८०२०३-४(+#) औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १६, पद्य, श्वे., (गुरु महावीर मल्या), ७८५६८-१(-) औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, क. हेम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सहजानंद नमी करी सुखद), ७९६५१-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (करता विन्नवि गुण कहु), ८००७७-१(#) औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मा.गु., पद्य, मूपू., (पापरूपणी खोड लागि रे), ७८९८१-२ औपदेशिक सज्झाय-गुरुवाणी, पंडित. बिट्ठल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (घरि आव सुज्ञानी जीव), ७९३००-२ औपदेशिक सज्झाय-गुरुशिष्य संवाद, पुहिं., गा. १६, पद्य, मपू., (गुरु देखयो रे चेला), ७९६८० औपदेशिक सज्झाय-घत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मप., (भवियण भाव घणो धरी),७९३३२(#), ७८७६०() औपदेशिक सज्झाय-चुंदडी, मु. हेमराज, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (कहा रंगाई चूनडी बहु), ८०९६३-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-चौपट, आ. रत्नसागरसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरे माहरा प्राणीया), ७८२४२-२ औपदेशिक सज्झाय-जयणा विषये, खीम, मा.गु., गा.७, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (श्रावककुल अवतार लहीन), ८०८९६-१(#) औपदेशिक सज्झाय-जिनधर्मपालन, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर धाइए), ७८३८५-१(-) औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, मु. अमरविजय, मा.ग., गा. १९, पद्य, मप., (जीभडली सुणि बापडली),७९७६१-४(s) औपदेशिक सज्झाय-जीव, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. २७, पद्य, श्वे., (भव जीव आदिजिणेसर), ८०८८४ औपदेशिक सज्झाय-जीवकाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हुं तो वारु छु), ७८०४१-२(2) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. कुशल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सदगुरु भाखे देसना), ८०७६४-१ औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहि., गा. ९, पद्य, मपू., (तुं मेरा पिय साजणा), ८०९७४-३ औपदेशिक सज्झाय-जीवचेतन, ग. गुणविजय, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (तुं मेरा परमातम पीउ), ८०१६८-१(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मु. करण, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (पृथवीकाय न छेदिये), ८०१११-४(+#) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मु. ज्येष्ट, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (चेतन ज्यो सुख चाहो), ७८५८६-५(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवशिक्षा, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू, (मन इम्म जीवने समझाय),८०५७६-२(2) औपदेशिक सज्झाय-जीवशीखामण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (उंडोजी अरथ विचारज्यो),७९७५९ औपदेशिक सज्झाय-जीवोत्पत्ति, मा.गु., पद्य, मूपू., (ता प्रभु कु विसार), ८१२४०-५(#$) औपदेशिक सज्झाय-जीवोपदेश, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ३५, पद्य, स्था., (जीवा तु तो भोला रे), ७९९६७(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवोपदेश, मु. ज्येष्ट, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (आयो एकलोइ कोइ जाशी), ७८५८६-९(+) औपदेशिक सज्झाय-जैनधर्म, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८०४०९(६) औपदेशिक सज्झाय-जैनाचार, मा.गु., ढा. २, गा. १८, पद्य, मूपू., (आदि अंत बेहू नही सकल), ७९२९० औपदेशिक सज्झाय-तमाक त्याग, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मप., (प्रीतम सेती वीनवे), ७८१३३-१(२), ७८९४२-५(#$) औपदेशिक सज्झाय-तमाकु परिहार, ग. उत्तमचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (प्रीतम सेती वीनवइ), ८०७४३-२ For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-दयाधर्म, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (तुं तो लख चोरासी),८०१११-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. चौथमल, पुहिं., पद्य, स्था., (दया धरम के परभावे भव),८०२९५-१(2) औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. हीरालाल, रा., गा. १३, वि. १९४४, पद्य, स्था., (मारी दयामाता थाने), ८१०१२-८ औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी), ७९७८७-१, ८०३५६-२,७९३१६-४(#$) औपदेशिक सज्झाय-धर्ममहिमा, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (समरी निज मनि सारद), ८००२२-२(+#), ८०९९८-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-धैर्य, गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., दोहा. ६, पद्य, वै., (रे मन धीरजता न धरे), ७८०९१-१९(2) औपदेशिक सज्झाय-नयनवशीकरण, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (हारे मारे सुंदर काया), ७८२०४-२ औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (नवघाटी मे भटकता रे), ८१००४-१३(#), ८१०८०-२(#) औपदेशिक सज्झाय-नश्वर काया, दलपतराम डाह्याभाई, मा.गु., गा. १२, पद्य, वै., (तेने तुंगणे छे तारु), ८१२१५-४ औपदेशिक सज्झाय- नश्वर काया, क. नरसिंह महेता, मा.गु., गा. १०, पद्य, वै., इतर, (पांच दसां म पूबौ), ७८०२२-३(+) औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., गा. १७, पद्य, श्वे., (मुरख के मन भावे नही), ७९९६८, ८०३७८ औपदेशिक सज्झाय-नारीगुण, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (सर्व सरीखा नर नही सर), ७९७८४(+$) औपदेशिक सज्झाय-नारीसंगपरिहार, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नारी का रूप न जोइए), ८११२०-२(#) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मपू., (निंदा म करजो कोईनी), ७९४०४-१ औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु.राजसमुद्र, पुहिं., गा.७, पद्य, मपू., (एक काया दजी कामनी),७७७८४-४(+), ७७६३७-२, ८०८०८-२(१) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंता रे सिख), ७८१८८-४(+$), ७८९७१, ८०९३४, ७७९४८(#), ८१०२१-१(६) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सीख सुणो रे पीया), ७८६२८-१ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (जीव वारु छु मोरा), ८०७४३-१(६) औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, क. सुभट कवि, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (घरथी निसरता थका), ८१२२४-१(2) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चउद भवनमांहि जो एक), ७८२०१-५ औपदेशिक सज्झाय-परोपकार, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (करि करि परि उपगार), ७९६४० औपदेशिक सज्झाय-प्रवचन प्रभावना, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (प्रवचननी परभावना), ८००७१ औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, क. मान, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (सुगण बुढापो आवीयो), ७९९६४-१ औपदेशिक सज्झाय-भव्योपदेश, मु. भगवानदास ऋषि, पुहिं., गा. ९, वि. १८८६, पद्य, श्वे., (तेज तुरंग पर चढे), ७९७९२-२(+) औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव, श्राव. रेणीदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्राणी म करीस मारु), ८०४५२-४ औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (मिथ्यामति भस्यो बहु), ८०९६८-२ औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभ, मु. ज्येष्ट, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चिहुं गतमांहि भ्रमता), ७८५८६-३(+) औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव दुर्लभता, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (पंचेंद्री पणुं दोहिल), ८०७०९-२ औपदेशिक सज्झाय-ममतात्याग, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (चतुर सनेही चेतन चेती), ८०४५२-३ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (रे जीव मान न कीजीए), ७९१२९-२ औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), ८१११६-४ औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.ग., गा.११, पद्य, जै., वै., अन्य, इतर, (भूलो ज्ञान भमरा कांई),७९१४०-२, ७९५६७-१, ८००३८-५, ८११८९-२ औपदेशिक सज्झाय-मिथ्याभिमान परिहार, पुहि., पद्य, मूप., (तेरे मन में मैल घणा), ७८९४७-९(#$) औपदेशिक सज्झाय-मोक्षगमन, मा.गु., पद्य, मपू., (मोख जावारो मोख), ७९६८५-४($) औपदेशिक सज्झाय-मोक्षनगर, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुगत नगर मारू सासरू), ७९८७०-१(#S) औपदेशिक सज्झाय-मोह परिहार, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (चलो जिसने पार लघानी), ८११६१-३(#) For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५३७ औपदेशिक सज्झाय-रागद्वेष परिहार, मु. ज्ञानानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सुणि चेतन तन ए), ७९३१६-३(2) औपदेशिक सज्झाय-रावणमंदोदरी संवाद, मु. सोभागमल मुनि, पुहिं., गा. १६, पद्य, स्था., (अणी लंकागढ मे आइरे), ७८४७८-२ औपदेशिक सज्झाय-लालच, मा.गु.,गा. १३, पद्य, मप., (लाचच विषीया रणै जी),७८११९-५(2) औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (तमे लक्षण जो जो लोभ), ७९८८१-१(६) औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (विनय म चूकिस धर्म), ७९७१३-३(+) औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, म्पू., (लोभ न करीये प्राणीया), ७९७४६-१(+#), ८१११६-५ औपदेशिक सज्झाय-वणजारा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, मूपू., (वणजारो रे देखि चिया), ८०१११-३(+#) औपदेशिक सज्झाय-वाडीफलदृष्टांत, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (वाडी राव करे कर जोडी), ७९७१८(+) औपदेशिक सज्झाय-वाणोतरशेठ, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, प., (सेठ भणे सांभल वाणोतर), ८०८४८-३ औपदेशिक सज्झाय-विषय परिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रे जीव विषय न राचीइं), ७९१५८-१(#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग, मु. चंपालाल, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (जगत से जाना जलद जरूर), ७९१२४-३(#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (परषदा आगे दिये मुनि), ७९६०६ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, ग. गुणविजय, मा.गु., गा. २६, पद्य, म्पू., (मात पिता धूअ मित्र), ७९६००-१(१) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ७८८७३(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (समरु शासनस्वामि कु), ७९१२८ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. माल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (सदहणा साची हिये ए), ७८२१२-३(+#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसी रे), ७८०१३, ७९५६७-३, ८११२१-६(#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राम ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूप., (कही मुसकल कठन फकीरी), ८११६१-२(#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. विद्याचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (सरसति सामनि पाय लागु), ८०३३१-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. सुमति, मा.ग., गा. ९, पद्य, मप., (सुमत कहे सुण), ७८५८६-८(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (असो रे अपुरव कोय), ७८२०१-२ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पुहिं., पद्य, मूपू., (का तन मजणा र गबरु), ७९५१३-६(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पुहिं., गा. १०, पद्य, वै., (क्युं गाफल हरिनाम), ८००९५-१३(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जाग रे जंजाली रे जीव), ७९३५९-२(८) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (ते क्या गरब करदा बै), ७८६२८-३ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (परलोके सुख पामवा), ७९५७३-१(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (यो संसार पुस को),७९९२३-२(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्यप्रद, मु. रत्नतिलक, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (काया रे वाडी कारमी), ७९३७४-४(#) औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, मु. धरमचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (ए तुझ सहज किहाथी), ७८३३६-१(+) औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, पुहिं., पद्य, मूपू., (ज्ञान गरीबी पुरधर्म), ७८६४७-५(#$) औपदेशिक सज्झाय-शीलगुण, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (शीलना छे जी अनेक), ८०२४६(+) औपदेशिक सज्झाय-शीलपालने, मु. चोथमल, पुहिं., पद्य, मपू., (सिलरतन्न का करो), ८०२९५-२(-2) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (निसुणो सकल सोहमण), ८००७४(2) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कही), ७८१८८ ५(+$), ८१०२१-२, ७८०२५(६), ७९८७८(६) औपदेशिक सज्झाय-शीलव्रत, मु. पद्मतिलक शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (न सुइ निकझन नइ धनवंत), ७८६१८(+$) औपदेशिक सज्झाय-शीलव्रत, मा.गु., पद्य, मूपू., (--),७८१६६(६) औपदेशिक सज्झाय-श्रावकगण, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १९७६, पद्य, स्था., (सम्यक्त्वरत्न जतन कर), ७९६६९-१ औपदेशिक सज्झाय-श्रावकाचार, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (ग्यान नीर निरमल आनी), ८०७१८-३(+) औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ९, पद्य, मपू., (ओरन से रंग न्यारा), ७९३६४-५ For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-संगति, मु. रंगसार, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आर्द्रकदेसइ रे), ७९४५५-३(#) औपदेशिक सज्झाय-संतसमागम, मु. ज्येष्ट, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुगुरु उपाशना अधिकार), ७८५८६-१(+) औपदेशिक सज्झाय-संतोष, पुहिं., पद्य, श्वे., (औरन को सुखिया लखके), ७८२३६($) औपदेशिक सज्झाय-संसार अनित्यता, क. नयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (अधिर संसार रे जीवडा), ८१०६६-२(७) औपदेशिक सज्झाय-संसारसगपण, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ५१, पच, स्था., (अरिहंत सिद्ध आचार्य), ८०२०१ (+) औपदेशिक सज्झाय-सगपण, मा.गु., पद्य, मूपु. ( श्रीअरिहंत सिध आचारज), ७९९३२(६) יי औपदेशिक सज्झाय-समता, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( हो प्रीतमजी प्रीत की), ८०१४३-१ औपदेशिक सज्झाय-समता, मा.गु. गा. १४, पद्य, मूपू. (देहकुट बधन कारिमु), ७९०१६-३(*) औपदेशिक सज्झाय-सम्यक्त्व गर्भित, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (नंदीसूत्र में चवदे), ७८०९६(#) औपदेशिक सज्झाय साधुगुण, मु. कुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मोटा घेतो सुत्र सुजा), ७९९३५-२ औपदेशिक सज्झाय साधुगुण, रा. गा. ११, पद्य, खे, (चोरासी लख जोनमे रे), ७८५१०-१ ', औपदेशिक सज्झाय-साधुसंगति, मु. रुपचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सांभल भोला प्राणी), ८००८२-३($) औपदेशिक सज्झाय- साध्वाचार, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मृपू, (वर्द्धमान सासण धणी), ७९६०९ (5) ', " औपदेशिक सज्झाय- साध्वी, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. २३, वि. १८३६, पद्य, खे, ( थे सुणजो हे आरजीयां), ७९२६८ (*) औपदेशिक सज्झाय-सूत्र अध्ययन प्रेरणा, मु. सुखलाल ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे. (सूत्र भणज्यो आग्या), ७९९०५-२(+) औपदेशिक सज्झाय-स्त्री कथला, श्राव. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (पुण्यकारण पाखीनें दि), ७९७८९(#$) औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ परिहार, मु. नग, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (थोरे दिन का जीवन), ८००५७-२ " औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. केशवदास, पुहिं., सवै १०, पद्य, श्वे. (जा घरि तेल फुलेल सही), ७९४१६-१ औपदेशिक सवैया संग्रह. मु. धर्मसी, पुहिं सर्व. १६, पद्य, थे. (कहे रिख वाण भली), ७८१३७ " औपदेशिक सवैया संग्रह, पुहिं. पद. ६, पद्य, मूपु (सूर छिपें घन वादलवें), ८०४३३-४ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , औपदेशिक सज्झाय-हमचडी, मु. वर्द्धमान पंडित, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसतीनें पाए नमी रे), ७८४५५ (+#) औपदेशिक सज्झाय- हिसा परिहार, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सर्व संसार अधिर जिन), ८०९४४ -१) औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गुण संपूर्ण एक अरिहं), ७८६३९-२ (#) औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ३६, वि. १८वी, पद्य, भूपू (श्रीसद्गुरु उपवेश), ८०३८९ औपदेशिक सवैया, हरिदास पुहिं. सर्व १, पद्य, वै.. इतर (कुलजुग के पुहरे भइया), ७९९८७-२ (४) "" औपदेशिक सवैया संग्रह-आध्यात्मिक, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., सवै. ३३, पद्य, दि., (अविनासी अविकार परम), ७९१०७-३ औपदेशिक सवैया संग्रह- जैनधर्म, पुहिं. सबै २४, पद्य, श्वे. (कहुं नग लाल कहुँ), ७९१०७-२ " औपदेशिक सुभाषित संग्रह, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (जीव सवे ते आतमा धरम), ७९०२४-१(+) औपदेशिक हरियाली, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (पंखी एक वन उपनो हो), ७९६२९-२ औपदेशिक हरियाली, मा.गु., दोहा. १, पद्य, वे., (हेज हरियाली जाणीए), ८०३६६-२ औपदेशिक होली पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (होरी खेलो रे भविक), ७९३०९-१(+$) औपदेसिक पद- बांसुरी, मोहन, मा.गु. गा. ६, पद्य, वै. (सुण वासडली वैराग), ७९२९७-१(+) " औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (लूगटा १ जाई फलटा २), ७७८८२-२(+#), ७८३४०-३(+), ७९३५३-२(+), ७८१७१-२, ७८८६१-३, ८०२४८-२, ८१२३३-२, ७७७२९-२) ७९९८०-४(७) " कंडरिकपुंडरिक रास, मु. नारायण, मा.गु., डा. २१, गा. १३५, वि. १६८३, पद्य, वे. (श्रीजिनवयण आराधिह), ७७९५० (४) कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., डा. २७, गा. ४३, पद्य, ., (गाफल मत रहे रे मेरी), ७७६५०-१(+), ८१२०५ (+), ७७७९६ कक्काबत्तीसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (कका रे काम करतां), ७७८६७ कक्कावत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, म्पू. (कका करमनी वात करी), ८०८८३, ८०७३७-१(३) कक्काबत्रीसी, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वे., (कका करणी अजब गती हे), ७९०४६-२(+०६) For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ "" कक्काबत्रीसी, पुहिं., गा. ३३, पद्य, श्वे. (कका कर कुछ काज धर्म), ८०३१६ कक्कावत्रीसी, मा.गु., पद्य, थे. (कका कहि ज्ञान पढ़ीजै), ८००७७-२ (६) " कनकध्वजराजा रास, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ६४, वि. १९२३, पद्य, मूपू., (अजोध्या नगरी तणो सरे), ८१२०७(+) कमलप्रभासती चौढालीया, मु. अगरचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (शांतिजिणंद दीणंद सम), ८१००९ कमलावतीसती चौडालिया, मा.गु., डा. ४, पद्य, श्वे. (--), ८११२२-१(३) "" " कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहि., गा. २९, पद्य, वे (महिला में बेठी राणी), ८११५८ (+), ७८३२३-२ कम्मपयडी स्तवन, उपा. तत्त्वप्रधान गणि, मा.गु., ढा. २, गा. २७, वि. १९४१, पद्य, मूपू., (सेना माता जितारि), ७८१५१(+) कयवन्ना चौढालियो-दानाधिकारे, मु. फतेचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८८१, पद्य, स्था., (पार्श्वनाथ प्रणमी), ७८८४९(+$) कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू. (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ८१०६०(8) कयवन्ना सज्झाय-दानविषये, मु. लालविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदि जिनवर ध्याउं), ७८२३८ करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपानगरी अतिभली हु), ८०७५९-१(०) ८०८७४-१(०), " ७९४८७-१, ८००१६-२(१) कर्णाटकीय दिगंबर जैनतीर्थयात्रा वृत्तांत पत्र, पुहिं., गद्य, दि., (श्रीअजितनाथजी की चोड), ७९४९६(#) कर्पूरविजयगणि निर्वाण रास, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., डा. ८. वि. १७७९, पद्य, मूषू., (प्रणमी प्रेमे पास), ७९३४४(४) कर्मग्रंथ के बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (कहो स्वामी काण्णो), ७८५७९(+$), ७८९५३ (+), ८०४२१ ($) कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), ७९४४०-२(+#), ८११२८(+#) कर्मपच्चीशी, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं. गा. २५. वि. १९३८, पद्य, क्षे., (करमकुं मन बांधे भाइ), ७९०४६-१(००) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देवदाणव तीर्थंकर), ७७७१४-१(+), ७८६०१, ७९२७७, ७९५४२-१ कर्मविपाकफल सज्झाय, पं. कुशलचंद, पुहिं., गा. ३५, पद्य, श्वे., (सुत्र गीनाण मे कह्यो), ७७७७७-१, ७९७४१ कर्मसूदनतप गणणुं, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक एक कर्मनो तप दिवस), ७८५७१ कर्महींडोलणा पद, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (दोइ थंभ रागने द्वेष), ७९०७४ " कलावतीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., डा. १६, वि. १८३०, पद्य, वे. (जुगमंद्र जिन जगतगुरु), ७९६४८ ) कलावतीसती रास, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ८४, पद्य, मूपु. ( भरतक्षेत्रइ रे नयरी), ७९५७५(३) कलावतीसती सज्झाब, मु. यादव ऋषि, मा.गु., गा. २३, पद्य, वे (सुमति जिणेसर पाय), ८००१६-३ (०३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नयरी कोसंबीनो राजा), ७९०२६ कलियुगप्रभाव सवैया, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८११३४(#$) कल्याणविजय गुरुगुण स्तुति, मु. कल्याणविजय शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू, (मनवंछित पूरण कल्पतरु), ७७९०६-४(+), ७८१७०-२(m) कवित संग्रह, पुहिं., मा.गु., रा., पद्य, वे. इतर (आसराज पोरवार त कर), ७९२२२-२ कवित्त संग्रह-शिवभक्ति, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (संकरदास गादीमरद), ७८५१५-२ कषायभेद विचार, मा.गु., गद्य, खे, (१ संजलनो क्रोध), ७९४२९-६(+) , कान्हडकठियारा प्रबंध, मु. जेतसी ऋषि, मा.गु., डा. ८, वि. १८७४, पद्य, स्था. (अरिहंत सिद्ध समरु) ८०९३७ कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., डा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपु. ( पारसनाथ प्रणमुं सवा), ८००४२-१ (MS), "" ७७७९७ ($) कामदेव श्रावक चौडालिया, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., डा. ४, वि. १८२७, पद्य, खे, ( बेहरमान वीसे नमुं जग ), ८०३३२(४) कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (एक दिन इंद्रे), ८११७८ कार्तिकसेठ कथा, मा.गु., पद्य, श्वे. (प्रथवी भुषण नगर तिहा), ८०३२३ " कार्तिकसेठ चौडालियो, मा.गु., ढा. ४, वि. १८४६, पद्य, मूपू (आदेसर आदि करी चोवीसु), ७८४७९ (४) " For Private and Personal Use Only कार्तिकसेठ पंचडालिया, मु. जेमल ऋषि, मा.गु, ढा. ५, गा. ९१, पद्य, थे. (अरिहंत सिध साधु सर्व), ७८०९०-१, ७९१०४ " "" ५३९ Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, पू., (तिहां पूर्वइ स्थविरा), ८०१०८(६) काव्य/दहा/कवित्त/पद्य संग्रह, मा.गु., गा. ५०, पद्य, इतर?, (मृग मरे रस कान नैण), ८०१८९-३(+) कंडली-ज्योतिष, मा.गु., कुं., इतर, (--),७९१२०-२(१) कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुंथुजिन मनडुं किमहि), ७९०८२-२(#) कुंथुजिन स्तवन, मु. मलुकचंद, रा., गा. २३, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (लख चोरासी भर दुख), ७८५२९(+) कुंथुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (साहेलां हे कुंथुजिन), ७८६२०-२ कुगुरुपरिहार पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आयो अब सम्यक्त्व के), ८०१०२-८ कुगुरुबत्रीसी, मु. भीम, रा., गा. ३१, पद्य, श्वे., (भांति भांति की टोपी), ८०४२४-१(-) कुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूप., (तनुं तनुं में उन), ७७६४५-६(+), ७७६२८-२ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (शुद्ध संवेगी कीरिया), ७७८१३ कुबेरदत्तकुबेरदत्ता सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३०, पद्य, मूपू., (पहेलाने समरुं रे पास), ८००९२(#) कुबेरदत्ता सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८०६७२(+#$) कुबेरदत्तासाध्वी छत्रीसी, मु. कुशलधीर पाठक, मा.गु., ढा. ७, गा. ३६, पद्य, मूपू., (नरभव पामी निरमलो),७८६६०-१ कुमारपालराजा परिग्रह परिमाण, मा.गु., गद्य, मपू., (७२ राजा आपणी आणमना), ८००७९ कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४९४९, ग्रं. ५८००, वि. १६७०, पद्य, मूपू., (सकल सिद्ध सुपरि नमुं), ७८७८६(+#S) कुमारपाल रास, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ८०६८६(+#$) कुव्यसन त्याग सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (छांडु रे छाडु), ७८११९-६(2) कुसुमश्री रास, मु. गंगविजय, मा.गु., ढा. ५४, गा. १२५६, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (पुरीसादाणी पासजी), ८०६८७(5) कृष्ण गीत, हीरालाल, पुहिं., गा.१६, पद्य, वै., (जल जमना तट जावे रे),८१०१२-६ कृष्णगोपी भ्रमरगीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, वै., (नंदलाला रे जोइ रे), ८१०७५-३ कृष्णभक्ति गीत, रा., कडी. ९, पद्य, वै., (ल्हसनी लटको बन मधी), ७८५५५-३(-) कृष्णभक्ति पद, किसनदास, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (कीसन दर्स से अटकी हे), ७९६१४-१४(+) कृष्णभक्ति पद, चंदसखी, पुहिं., पद. २, पद्य, वै., (श्रीव्रजराज बुलावे), ७९६१४-२४(+) कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (आवो रे घनस्याम मेरे), ८१०७५-२ कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., (कोई दिन याद करो रे), ७९६१४-२२(+),७९१७२-३(#$) कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, रा., पद. ३, पद्य, वै., (दुखन लागै नैन दर्श), ७९६१४-३३(+) कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (माई मेरो मोहने मन), ८०९८४-३ कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, रा., पद. ३, पद्य, वै., (हर भगता की संगत करता), ७९६१४-२९(+) कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, रा., पद. ४, पद्य, वै., (हांजी मोरा जनम मरणरा), ८०४९१-४(+) कृष्णभक्ति पद, वखतावर, रा., पद. २, पद्य, वै., (थारा नैणां में धुम), ८०४९१-२(+) कृष्णभक्ति पद, वखतावर, रा., पद. २, पद्य, वै., (बिहारीजी थारी तरो), ७९६१४-३०(+) कृष्णभक्ति पद, पंडित. सूरज, पुहि., गा. ६, पद्य, वै., (कुवरी वो दीन क्यो), ७८०९१-३(#) कृष्णभक्ति पद, सूरदास, पुहि., पद. ४, पद्य, वै., (मन की मन में रहेगी), ८०४९१-१(+) कृष्णभक्ति पद, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (अब तो श्याम सोचन दे), ७९६१४-१०(+) कृष्णभक्ति पद, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (पोथी तो खोल पांडै), ७९६१४-२०(+) कृष्णभक्ति पद, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (वालै मारे कामण कीधा), ७९६१४-३४(+) कृष्णलीला पद- बालवर्णन, पुहि., दोहा. ४, पद्य, वै., (जुनी मटनी मा भइ), ७८८३१-२(2) कृष्ण वसंत गीत, क. सुर, पुहि., कडी. ४, पद्य, वै., (सांमरा मत मारो),७८८६९-१(+#) कृष्णशुक्लपक्ष सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन रे मल्लिजिण), ७९३६१(2) For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ कृष्ण होली पद, घन सखी, पुहिं. पद. २, पद्य, वै. कृष्ण होली पद, मीराबाई, मा.गु. गा. ३, पद्य, वै., केशवगुरु भास, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. केशवगुरु भास, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे. केशीगणधर परदेशीराजा संवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (परदेसी राजा कहै छै), ७९३६५(#) יי एक समै घनश्याम के), ७९६१४-११(*) (सहीया वै दिन फेर आवै), ८१०७५-४ (मेरे गुरु तुम्ह वरसन), ८००२९-२(५) (सरस वचन मुखि सरसति). ८००२९-१(४) केशीगणधर सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. २२, पद्य, स्था. (पुरीसादाणी पासजीनेसर), ७८९५०-२ केशीगौतमगणधर संवाद, मु. जसकीर्ति, मा.गु., गा. १०५, पद्य, मूपू., (केसी पास संतानीया), ७९५४९ केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ए दोय गणधर प्रणमीये), ८०००१(+) केशीद्विपंचाशिका चोपाई, मु. पासचंद, मा.गु.. गा. ५२, पद्य, मूपू. (पणमउ सिरिजिण पास), ७८९००(*) केशीप्रदेशीराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ७९७११-१(#$) " केसर आर्या गुरु भास, सा. सहिजा आर्या श्रावि. कपूरदे, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे (सरसत सामण सहीयां), ८०२१४(-) क्रोधपरिहार सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे. (आगम अरथ विचारो रे), ८०९६८-१ क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, पंडित. भावसागर, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, पद्य, मूपू., (क्रोध न करीयै भोला), ८०३४२-१ क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ७८१५६ (+#), ७९७५४-१(+), ७८०३१, ७८१७९, ७९३७३, ८००००-१, ८०४३०, ७८०७४(#), ७९१९६-२(#), ७८३३३-१($), ८००३४($), ८०७८९-२ ($), ८०९३१ (३) क्षमाविजय गुरुगुणगहुंली, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सैयर मोरी चंपानगरी), ७९९८५(#) क्षेत्रपाल स्तुति, मु. अमर, पुर्हि, गा. ५, पद्य, भूपू (चरताला चामुंड के), ७९५१६-२ क्षेत्रोपपत्ति, मा.गु., गद्य, खे, (खेतानुवाणं सव्वत्थो), ७९४४८(*) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ५४१ " खंदकसूरिशिष्य गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (खंदकसूरि समोसर्या रे), ८०१०४-८(+) खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा. डा. ४, वि. १८११, पद्य, स्था. नमु वीर सासनधणीजी), ७९३८९(१), ७९५०८ खंधकमुनि चौढालिया, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., डा. ४, गा. ८८, वि. १९३९, पद्य, वे. (प्रणमु जग नायक सदा), ७९१४४(*) खंधकमुनि चौढालिया, रा. ढा. ४, वि. १८११, पद्य, थे. (नर्मू वीर शासनधणी जी). ८०८८६-१ (+), ७८९२५ " " खंधकमुनि चौढालिया, मा.गु., डा. ४, पद्य, खे, (पांचसै तिण अवसरे), ७८५८३-२(+४) खंधकमुनि चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ८, पद्य, स्था., (वध परिसो वर्णवु), ७८५८८-२ खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. २ गा. २०, पद्य, म्पू, नमो नमो खंधक महामुनि), ७९५४५-२, ८०७०५ (क) खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., डा. २ गा. १२, पद्य, मूपू.. (राय सेवक कहे साधुने), ७७७५७(*) " खरतरगच्छराज मजलस, पुहिं., पद्य, मूपू., (अहो आओ बेयार बेठो), ७९२०७ खेमकरणगुरु बारमासा, क. चंद, मा.गु., पद्य, थे., (--), ८०८९६-५ (३) गच्छमत चौपाई, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक घरम तीन प्रतिमाता), ७९५१३-४(+) गच्छोत्पत्ति वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू (दस कुंमतना नाम लख्या), ७७९९०(३) , " गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. खेमकुशल, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (द्वारापुरी नगरी के), ८०७६४-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु, गुणनिधि, मा.गु.. गा. १०, वि. १९२५, पद्य, मूपू (द्वारिकानगरि समोसर), ७८७१४ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, श्वे. (गजसुखमाल देवकीनंदन), ७८९२६-२(४) राजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. जेठमल, मा.गु. गा. १७, पद्य, मूपू., (बंदु गजसुकमाल महामुन), ७९९२४(१), ७९५१४(३) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, म्पू. (श्रीनेमिसर जिनवर, ७९७१७, ७९१७६-१(३) ७९४५४-१६) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी ऋद्धि), ७८४६५ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. नथमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, वे., (जिनवर आवंता मे सुण्य), ८०३६५-१ (# ) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ४६ वि. १५५८, पद्य, म्पू., (सोरठ देस खाणीह साहे), ७८२२४-२, ७९५६२(#) Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. न्याय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (एक द्वारकानगरी राजे), ८०१७९-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी अति भली), ८०७२८(+-#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. मोहन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कहे माता कुमार ने), ८१२१५-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), ७९५१३-१(+), ७८८१२-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), ७९८३०, ७९४७०(2) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, रा., गा. २१, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (गजसुकमाल देवकीनंदन), ८०२५६($) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (जिनवाणी सवणे सुणी), ८०४४१-६(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मप., (वाणी श्रीजिनराजतणी),८०१११-१(+#),८०८९३-१ गणधरगण गहली, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (गणधर हे के गणधर चारि), ७७८७६-१(६) गणधरपद गहुंली, ग. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (वीर पटोधर दिनमणी), ७७९८६-१ गणधरवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरदेव केवल), ७९५११(+$), ८१२५८(+) गणधरवाद स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (सो सुत त्रिसलादेवी), ७८०६३() गणधर विवरण, मा.गु., को., मपू., (गौतम अगनीभूति), ८०२६४-२(+) गणपति स्तुति, नाथुराम, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (मंगल करै विघ्न हरै),८०५२०-१ गति आगति विस्तार, मा.ग., गद्य, श्वे., (१५कर्मा भोमी ३० अकर),७८५५०(+$) गर्भ विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (--), ८०८४२-६(#S) । गर्भावासनी उत्पत्ति, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्त्रीनी नाभि हेठे), ७८२२७ गांगेयभंग संख्या आनयन विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (किणही पूछ्यो दोय), ७८००६(६) गाय की अरजी अंगरेज को, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (सुणो सुणो अंगरेज),८०४५३-६(-) गिरनारश@जयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), ८००४६-३(+) गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २८, गा. १६०३, वि. १७५७, पद्य, श्वे., (संपति सुखदायक सरस), ८००४८(६), ८०३८३(5) गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २६, गा. ४९३, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ८११६६) गुणकरंडगुणावली चौपाई-ज्ञानपंचमीतप पुण्यप्रभाव, मा.गु., पद्य, मपू., (कर जोडी सारद कहुं), ७९८८३-२(+#$) गुणठाणा चौपाई, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ७६, वि. १६३१, पद्य, मूपू., (पंचपरमिट्ठिमिट्ठ नमि), ७७७७८ गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., अ. ४, वि. १५७२, पद्य, मूपू., (शशिकरनिकर समुज्वल), ७८३९७(+5) गुणसारऋषिराज स्वाध्याय, मु. कमलविजय कवि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूप., (स्वस्ति श्रीलतावन), ८०२३३ गुणसुंदरगुणमंजरी रास-शीलविषये, मा.गु., पद्य, मूपू., (सासणनाएक समरीए पुरण), ७८६६४(६) गुमानचंद्रजी गुरुगुणवर्णन ढाल, मा.गु., पद्य, श्वे., (गुणवंत गुर नाण कीया), ७७७४८-१०($) गुरुगुण गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जीरे जिनवर वचन सुहंक), ७९३३३ गुरुगुण गहुँली, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुमे शुभ परिणामें), ७८०५९-२(+), ७८३०६-१ गुरुगुण गहुंली, जै.क. भूधर, पुहिं., गा. १३, पद्य, दि.?, (ते गुरु मेरे उर वसे),७८८६२-१(२) गुरुगुण गहुँली, मु. मणिउद्योत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (मोहनिद्रा परीहरो रे),७९९८४-१(+) गुरुगुण गहुंली, मु. महानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजगृही उद्यान के), ७८०५९-४(+) गुरुगुण गहुँली, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (चालोने सहीयर उपासरेइ), ८०५७९-२ गुरुगुण गहुंली, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (या गरु जीव गरुया गणा), ८०००९(#) गुरुगुण गहुँली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (--), ७९५३८(5) गुरुगुण गीत, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८४२, पद्य, स्था., (पुन्य जोगे ग्यांनी), ८०७५८-१ गुरुगुण पच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८४०, पद्य, स्था., (गुरु अमृत जेम लागे), ८११००-१(६) For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५४३ गुरुगुण पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आच्छी राह वताई हो), ७८१८९-४ गुरुगुण रास, मु. रत्नचंद, मा.गु., ढा. ३०, पद्य, श्वे., (--), ७७७४८-१२ गुरुगुण सज्झाय, मु. मोहनसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुनिवर बेठा पाटीये), ८१२३९-३ गुरुगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८४३, पद्य, मपू., (पुण्य जोगै नर भव), ७८६१५-१(2) गुरुगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (सामीजी साहेब सुणो), ७९५७८-४ गुरुगुण सज्झाय, मु. ललितसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जी हो सारद पय प्रणमी), ७८९८२-४(+#) गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (आचारीज जिनधरम वैरागि),७९०८८-३(#5) गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज आनंद मुज अतिघणौ), ७७९३१-१(#) गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज उछरंग रसरंग मंगल), ७९११२-१ गुरुगुण सज्झाय, पुहिं., पद्य, मूपू., (जब लगे होसी० चेत चित),७८७२७-३($) गुरुगुण सज्झाय-७ वार गर्भित, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (हा रे भबीणा जिणवर), ७८०२२-२(+) गुरुगुण स्तुति, बं., पद्य, श्वे., (अहो श्रीगुरुदेवजी ए), ७९९८२-२(+) गुरुवंदन पद, मा.गु., पद्य, मपू., (चालौ हेली चालौ हेलि),७९९३३-२(5) गुरुवंदन भास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (सखी आवोने गुरुवंदनने),७७९८७-१ गरुवंदन विधि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (इरियावहिआ गम्मणो मुह), ८०८७५-४(#) गुरुविहार गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (आज रहो मन मोहना तुम), ७८९७९, ७९४३० गुरु स्तुति, शंभुनाथ, रा., पद. ४, पद्य, वै., इतर, (मीठी मानु लागे हो), ८०४९१-११(+) गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (उद्गम दोष श्रावकथी), ७८९३५ गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ३१, पद्य, मपू., (तिजि सुमति छै एषणा), ८०३०७-४(+) गोपीचंद की राखी, मु. जडावचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १९६६, पद्य, मप., (समगत साची बैन भांणजी), ८१०७६(2) गौतमगणधर लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अब सदा नमु सरसति), ८०१०२-४ गौतमगणधर सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (गौतम गुणधर गुण गाय),७९४८५-१(+) गौतमगणधर सज्झाय, मा.गु., गा. १२, वि. १८१२, पद्य, मूपू., (आदि जनेसर जीन चोविस),७८६१७-२ गौतमगणधर स्तवन, मु. सुमति, मा.गु., गा. १९, वि. १९५५, पद्य, मूपू., (प्रह उठी गौतम गुरु), ७८८२९ गौतमपृच्छा चोपाई, मु. साधुहंस, मा.गु., गा. ६४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (प्रणमीअवीर मुगति), ७८८९६ गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२९, वि. १५४५, पद्य, भूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ७८८५४(+#), ७८२८३(#S) गौतमपच्छा सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामी पृच्छा), ७९९७९-१ गौतमस्वामी गहुंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (जी रे कामनी कहे सुण), ७७६३८-१(-) गौतमस्वामी गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रह उठी नित प्रणमीय), ७७९३१-४(#) गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, मप., (गौतम नाम जपो परभात), ७९८२२-३ गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १, वि. १८वी, पद्य, मपू., (नमो गणधर नमो गणधर), ७९४०१-२, ७९४२६ ७, ७८४४३-२(२) गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मपू., (मात पृथ्वी सुत प्रात), ७८२२९-३(#5), ८०१२०(#) गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ७९४१८(+#), ७९८३३-१(#), ८०७५६-२(+), ७९२१६-१, ७९५९५, ८०७३६-२,८०७५४-२, ७९०७५-१(#) गौतमस्वामी प्रभाति, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मप., (मे नवि जान्यो नाथजी), ८०४५२-१ गौतमस्वामी रास, मु. उदयवंत, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ७८०२६(#$), ७८५६३(#$) गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १४, वि. १८३४, पद्य, स्था., (गुण गाउ गौतम तणा), ७८५४२-२, ७९३९४, ८०८११ गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ७९६९४, ७९८४९, ८०१५२(2) For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ७९७०८-१(+#), ७८७००, ७८८०६-१, ८०३४६, ७८५४३-१(#), ७८९९७(#), ८०२९८-१(#), ८०२९९-१(2) गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., गा. ६६, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सरस वचन दायक सरसती), ७८८५०-१(+#), ८०३११(+#) गौतमस्वामी रास-बृहत्, मु. उदयवंत, मा.गु., ढा. ६, गा. ६३, पद्य, मपू., (वीरजिनेसर चरणकमल कमल), ७७६४७ गौतमस्वामी वैराग्य गीत, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (समोवसरण सिंघासणइ जी), ७९०१६-४(+) गौतमस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगौतमस्वामी पूछा), ८०१८७, ७९६३८-१(६) गौतमस्वामी सज्झाय, मु. धर्मजीत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (हे इंद्रभूति ताहारा), ७९८०६-१(+) गौतमस्वामी सज्झाय, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जिनवर श्रीवर्धमान),७९७०८-२(+#) गौतमस्वामी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (जिनवर श्रीवर्धमान),८०१६९() गौतमस्वामी स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, पू., (गोयमस्वामि गुण निलो), ७८२१२-२(+#) गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मप., (वीर मधुरी वाणी भाखे),७९४०१-५,७९४२६-१० गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (प्रभाते गोतम प्रणमी), ७८२१२-१(+#), ७९००३(+#), ७९१३२-२ गौतमस्वामी स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १०, वि. १८२७, पद्य, स्था., (जंबुदिप दिपा रे बिचम),७८०५७ गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (इंद्रभूति अनुपम गुण), ७९४०१-३, ७९४२६-८ गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम गुरु प्रभात), ७९२१६-२ ग्रंथसूची, मा.गु., गद्य, मपू., (१ रायपसेणी प १०६), ७९५२१(६) घंटाकर्णमहावीरदेव साधनाविधि, मा.गु., गद्य, पू., (दिवालीरात्रि तथा), ८०९१९ घडपण सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (घडपण तुझ केणे तेडिओ), ७९५६४-३, ८०२६६-२(#) घडियाली गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (चतुर सुणउ चित लाइ कइ), ७८०९१-१७(#) घेवर सज्झाय-अंतरायकर्म, मु. वनेचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (ठाकुर घरे जमाई), ७९५६७-४ चंदनबालासती चौपाई, मु. ब्रह्म, पुहि., गा. १६०, पद्य, मूपू., (मोह पिसाच वसकरणकुं), ८०९३९(+$), ७८७९०-१ चंदनबालासती चौपाई, मा.ग., ढा. १३, पद्य, श्वे., (प्रणमि मंडत नीलतन), ७९४९२(#) चंदनबालासती लावणी, मा.गु., गा. २२, पद्य, मप., (मोटी सति श्रीचंदनबाल), ७८९५०-१ । चंदनबालासती वेल, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मपू., (कौशंबी नयरी पधारीया), ७९७६४(+) चंदनबालासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू., (कोसंबीनगरी पधारिया), ७८०९८ चंदनबालासती सज्झाय, मु. दुर्गदास, मा.गु., ढा. १३, पद्य, भूपू., (प्रणमुं मंडल नीलतन म), ८०१०३(+) चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (धन धन दिहाडो आजुनो), ७८८४५-२ चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १२, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (चित चोखी चंदणबाला), ७८६१५-२(#) चंदनबालासती सज्झाय, श्राव. लाधाशाह, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (मनना मान्या),७९८७९-२(२) चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., गा. ५५, पद्य, मूपू., (कसुंबी नगरी पधारीया), ८१०१७ चंदनबालासती सज्झाय, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (धना के घर बसीया सती), ७७७५९-२(+#) चंदनबालासती सज्झाय, रा., ढा. २, गा. ५९, पद्य, श्वे., (श्रीसिद्धार्थ कुलतिल),७९२९६-१(+#) चंदनबालासती सज्झाय, पुहि., गा. १३, पद्य, मप., (सती धना के ग्रह वसीआ),८१०८२-२(-) चंदनमलयागिरि रास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १७०४, पद्य, मपू., (जिनवर चउवीसे नमी), ८१०१९(5) चंदनमलयागिरि रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७९९७१($) चंदराजापरमली चौपाई, मा.गु., ढा. ६, गा. १२६, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पय नमी), ७९६९६-१(+) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (श्रीचंद्रगुप्तेन), ७८७०२-१(+) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), ७९४९८(+), ७८४५७-२, ८०७०१,७९६६६-२(#),७९७९७(#) For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ चंद्रप्रभजिन गीत, ग. कुंअरसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुझ मन मधुकर तुम्ह), ८०२७३-२(#) चंद्रप्रभजिन पद, पं. आनंदविजय, रा., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, मपू., (ए जिनराज सुहावै म्हा), ८०४१९-७(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभु मुखचंद), ७९४६१-३, ७९९६६-१ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु चितथी), ७८२६८-४ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभुजिन आग), ८०८७१-३(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीचंदाप्रभु जिनवर), ७८८०२-४(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. नंदु ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जीवडा कीम जीवस्ये), ७९३६४-३ चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मंगल कलागुण नीलउ), ७८५८१ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (मनडै ते माहरै वसीओ), ७८२८५(4) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा.१०, वि. १८५०, पद्य, श्वे., (चंदापुरी नगरी माहासे), ८०३६३-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा. १०, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (चंद्रापुरी नगरी), ८०३६३-१ चंद्रबाहजिन गीत, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (जोवे तुम्हारा आई उणद), ७८९९५-१(#$) चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला . ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मपू., (प्रथम धराधव तीम), ८१२३५(+#$), ८०४९३(#s), ७८३५१(६), ८११५४($) चंद्रलेखा रास, मु. कमलविजय, मा.गु., ढा. २२, वि. १७२०, पद्य, मप., (सकल सिद्धिकारक सदा), ८०५४१(६) चंद्रसूर्यसंख्या विचार-विविध द्वीपसमुद्रे, मा.गु., गद्य, मप., (१ जंबूद्वीपे २ चंद्र), ८०८४२-३(१) चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जिनमुख सोहे सरस्वति), ७८६५५-२(#$) चक्रवर्ती-वासुदेव-रुद्र आयु देहमान व जिन अंतरकाल कोष्ठक, मा.गु., को., पू., (--), ७८८७९-४(+) चक्रेश्वरीदेवी स्तवन, मु. अमर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (देवी चक्केसरी संघसकल), ७९९५८-३(2) चक्रेश्वरीदेवी स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (कंचनसमदेह अमितगुणगेह), ७७८५५-४(+) चतुर्दशीतिथितप स्तवन, मु. चेतनविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १८७३, पद्य, पू., (चौदश तप कर भावसुं), ८१२१६(+) चतुर्निकायदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (दश प्रकार भवनपति), ८१०३२-३(#) चरणसित्तरी के ७० व करणसित्तरी के ७०बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (५ महाव्रत १० जतिधर्म), ७८०७६-२ चर्चा संग्रह-स्थानकवासीमतमंडन, पुहिं.,मा.गु., गद्य, स्था., (अगर कितनेक वादी चरचा), ७८९३०-५(+) चातुर्मासिक व्याख्यान *, रा., गद्य, मूपू., (पंचापि परमेष्टिन), ७८२४७($) चिंतामणि यक्ष पद, वा. अमरसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जक्षराज चिंतामणि), ७९९५८-२(2) चित्तसंभति गीत, म्. ब्रह्म, मा.ग., गा. १२, पद्य, श्वे., (ब्रह्मदत्त रे कंपिल), ८०३६५-३(#) चित्तसंभुति चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ४८, वि. १७४२, पद्य, मपू., (प्रणमुं सरसति सामुणी), ८०७२९(-5) चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहिं., गा. ५७, वि. १७४८, पद्य, मूपू., इतर, (चरण चतुरभुज घाईऐ चित), ८०८४३-१(5) चित्रसंभूति चौढालियो, मु. जयसिंघ, मा.गु., ढा. ४, गा. ४८, वि. १७४६, पद्य, श्वे., (प्रणम् सरसति सामणी),७७९४३(#), ८०२६३(+#$), ७९५८० चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३९, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १७३१, पद्य, मप., (प्रथम नभु परमेसरु), ७८७०४(+s), ७९५४१(#$) चित्रसंभूति रास, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., ढा. २१ उल्लास ४, गा. ५५८, पद्य, श्वे., (प्रथम कुंवर क्षितीपत), ८०२८२ चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), ७९२६५-१(+-), ७९५०२-१, ७९८२६, ८००८३, ८०५७४, ७८११९-२(१), ८०१६५-१(#) चिलातीपुत्र गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (पुत्री सेठ धन्ना तणी), ८०१०४-७(+) चेतनबत्रीसी, मु. राज, मा.गु., गा. ३२, वि. १७३९, पद्य, मपू., (चेतन चेत रे अवसर मत), ७८४१६(#) चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते), ८११००-२, ८११३०(2) For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १३, पद्य, श्वे., (चोवीसमा महावीरजी), ८०७९१(+$) चेलणासती चौपाई, रा., ढा. ९, पद्य, श्वे., (मगधदेसना अधिपति),७८४५४(+s),७८३६०($) चेलणासती रास, मा.गु., ढा. ९, पद्य, मपू., (तापस कहे सुण श्रेणिक), ८१२०८(#) चेलणासती सज्झाय, मु. भूपत, मा.ग., पद्य, श्वे., (--), ८१०५३(क) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (वीरे वखाणी राणी), ८०१०४-९(+), ७९५४२-३, ७९७१९-१, ८१०५९-२, ७९०८२-१(#) चैत्यवंदनचौवीसी, ग. जिनविजय, मा.गु., चैत्यव. २४, गा. ७५, पद्य, मप., (प्रथम जिन युगादिदेव), ७९८९५(2) चैत्यवंदनचौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., चैत्यव. २४, गा. ६४, पद्य, मपू., (आदिदेव अलवेसरू विनीत), ७९२८४($) चैत्रीपूर्णिमातिथि स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चैत्रीतप तीरथ भावतो), ७८३५४-७ चैत्रीपूर्णिमातिथि स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मरुदेवी उर सरोवर), ७८३५४-६ चैत्रीपूर्णिमातिथि स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (विमलाचलभूषण ऋषभ), ७८३५४-२ चैत्रीपूर्णिमापर्व चैत्यवंदन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सगरादिक नरपति अनेक), ७९८२५-४ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदनविधि, मु. दानविजय, मा.गु., देवजो. ५, पद्य, मपू., (प्रथम चौमुख प्रतिमा), ७९७०६(+) चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सेजगिर नमीय), ७९८३८-२ चैत्रीपूर्णिमा पूजाविधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलउ आखा चंदनादिक),७९६२२(2) चैत्रीपूर्णिमा विधि, मा.गु., प+ग., मूपू., (श्रीआदिनाथ पुंडरीक), ७८७५५(+) चोघडीया चक्र, मा.गु., गद्य, इतर, (उद्वेगवेला चलवेला), ७८६८३-१(+#) जंबुकुंवर सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८०४९५ जंबूकुमार चरित्र, मु. राम, मा.गु., वि. १७१४, पद्य, मूपू., (--), ७८४३८(+$) जंबूकुमार चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर विहरता राज), ७८९११(+) जंबूकुमार रास, मु. राम, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ७९९४२(5) जंबकुमार सज्झाय, मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (राजगरी नगरीरो वासी),७९४८२ जंबूकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, मपू., (राजगरी नगरी को), ७८८३२(+$) जंबूद्वीप के १९० खांडुआ विचार-भगवतीसूत्रे, मा.गु., गद्य, श्वे., (एकलाख योजन जंबुधिप), ७९८६३-२ जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूदीपमइ १८४ माडला), ७८३०२(+), ८०९४०(+$) जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप एक लक्ष), ७८३४१-७ जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीप लांबो पहुल), ७९३५६(#$) जंबूद्वीपादि परिधि परिमाण, मा.गु., को., म्पू., (--), ७७८४९(+) जंबूद्वीपाधिष्ठायकदेव विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (जंबूदीपनो अधिष्टायक), ७८६९४-८(+) जंबूस्वामी कथा, पुहिं., गा. १६, पद्य, म्पू., (प्रभू यो कहा अहो),८१०८७(-) जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोल वरसें संयम लिओ), ७९९८४-२(+), ७८५३७, ८०१५६-१ जंबूस्वामी गहुंली, मु. मनमोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गाम नगर पुर विचरतां), ८११६४-१ जंबूस्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (नगर राजगृहमांहि वसे), ८०१०४-१(+$) जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., ढा. ५८, गा. १५००, ग्रं. १५११, वि. १७१४, पद्य, मूप., (शारद पाय प्रणमुं), ७९९५३(+$) जंबूस्वामी चरित्र-संक्षिप्त, मा.गु., कथा. १९, गद्य, मपू., (श्रीजंबूस्वामि प्रथम), ७९३००-१ जंबूस्वामी चौढालीयो, मु. दुर्गदास, मा.गु., ढा. ५, वि. १७९३, पद्य, पू., (पुरसादाणी परमप्रभु), ७९९९८-१ जंबूस्वामी भास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जाउं बलिहारी जंबू), ८०१००-३ जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ३५, गा. ६०८, ग्रं. १०३५, वि. १७३८, पद्य, मपू., (प्रणमी पासजिणंदना), ८००६९) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, वि. १७६५, पद्य, श्वे., (श्रीगुरु पदपंकज नमी), ८१२५५-२(4), ८०२५४($) For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (सरसत सामीने विनवं), ७८७२१ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (राजग्रही नगरीनो वासी), ७८६१९-१(+) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा.१८, पद्य, मप., (श्री सोहमस्वामि पधार),७९२७४-१(#) जंबूस्वामी सज्झाय, पं. शीलविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (राजगृह नगरी वसै ऋषभ), ७९८५५-२(+) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे), ८०२७५-१(-) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. हर्षमुनि, मा.गु., गा. ११, पद्य, स्पू., (आवे ते रमणी आवे अति), ७९२४३-१(#) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजिओ), ८०४४९-२(#$), ८०२६०(2) जगसृष्टिकार परमेश्वरपृच्छा पद, मु. समयसुंदर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (पूर्वी पंडित कहउ का ह), ७९६२९-४ जयचंदसूरिगुरुगुण भास, मु.रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गुरुमारा दिए उपेदशना), ७८०५९-१(+) जलयात्रादि विधि उपकरण सूचि, मा.गु., गद्य, मपू., (कडछी४ बाजोठ खीला), ८०४१३($) जलयात्रा वरघोडा स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (हवे सामग्री सवी सज), ८००१७ जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ८, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा गुरुपदांभोज), ७८१०१(+$), ७८५४८-१(+) जिनकुशलसूरि आरती, मु. लाभवर्द्धन, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (जय जय सद्गुरु आरती), ७८५४८-२(+) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (सदगुरु श्रीजिनकुशल),७९२७८-३(+) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुसलसूरीसरू), ८००७८-१ जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कीजै बे करजोडने दादा), ८०८३७-२ जिनकुशलसूरि गीत, मु. धर्मसीह, मा.गु., पद्य, स्पू., (प्रेम मन धारि नित), ८०४९२-२(5) जिनकुशलसूरि गीत, मु. राज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरधारां आधार कुसल), ७८४५९-८(+) जिनकुशलसूरि गीत, मु. राजेंद्रविजय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (देरावर थारो देवरे), ७८४५९-७(+#), ७९४०२-४($) जिनकुशलसूरि गीत, उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वयण मुझ), ७८५४५-२(+) जिनकुशलसूरि गीत, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (हुं तो मोह रहीजी), ८०७३० जिनकुशलसूरि गुरुगुण सज्झाय, मु. गुणविनय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चलउ सखि गुरुअ मुगट), ७८५२१-४(+) जिनकुशलसूरिगुरु पद, मु. राजसिंह, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (दादो जैनरो दीवाण हे), ८०१२९-३(+) जिनकुशलसूरि छंद, मु. भावराज, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसूरि सुख), ७८६७४ जिनकुशलसूरि छंद, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वदन कमल वाणी विमल), ७७७४६(#) जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु देखतां), ८००५२-३ जिनकुशलसूरि पद, रा., गा. ४, पद्य, मपू., (हुं तो मोही रह्यो जी), ८०१२९-४(+$), ८००५२-४ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. अमृतशील, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुसलसूरिस्वर), ७९२७९-१ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (--), ८०७८१-१(+$) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. कुसल कवि, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (हांजी काइ अरज करूं), ८०१२९-२(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दादौ परतिख देवता), ७७६३५-४(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, उपा. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसूरेसरूरे), ७९२१३-३(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरे लाला श्रीजिनकुशल), ७८५४८-३(+), ७९४७२-१ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (दादौजी म्हारै परतिख), ८००७८-२ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (समरु माता सरसती), ७८५२४(+$), ८०७९५-२(#$) जिनकुसलसूरि गीत, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अम्ह घरि कुसल वधावणा), ७९८१७-१(+#) जिनचंदवाणी पद, मु. वीरचंद, पुहिं., पद. ३, पद्य, मूपू., (मेरे उठी कलेजा पीर), ८११४०-२(#) जिनचंद्रसूरि गीत, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आला जिणचंदसूरि दिखाउ), ७९८१७-२(+#) जिनदत्तसूरि गीत, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (संवत् इग्यार गुणोत्त), ८१०१५-१(2) For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ७९४५५-४(#) जिनदत्तसूरि गुरुगुण महिमा सवैया, मु. दानविनय, पुहिं., सवै. २, पद्य, मूपू., (वलगंग तरंग जिसी जग), जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मृपू.. (दादा चिरंजीवो सेवक), ७९८०४-२(**६) जिनदत्तसूरि सवैया, मु. धर्मसी, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (बावन वीर कीए अपने वस), ७८४६०-२(+) जिननाम चितवनी कुतूहल, ग. रत्नविमल, मा.गु., गद्य, म्पू., (चक्रेश्वरी चंद्रानन), ७९४६४ जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ८०३८४ (+) जिन पालित जिनरक्षित सज्झाय, ग. कल्याणतिलक, मा.गु. गा. २२, पद्य, मूपु (सहगुरु चरणकमल मनि), ७९६१७-२ जिनपूजा अष्टक, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (जलधारा चंदन पुरुप), ७९७४८-२(५) जिनपूजा गीत, मु. अमरसागर, मा.गु., गा. १७, पद्य, भूपू (चकेसरिने नहीं को तोल), ८०३०१ जिनप्रतिमापूजासिद्धि पद, पुहि., पद्य, म्पू, (श्रीजिनप्रतिमासं), ८०६५६-२(१) जिनप्रतिमापूजासिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू. (पुष्पादि किसी रीतिइ), ८०७०४-१(१) जिनप्रतिमापूजासिद्धि स्तवन, ग. कीर्त्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिन चउवीसह करूं), ७९२८१-२(+) " जिनप्रतिमामंडन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू (भरतादिके उद्धारज), ७९९५०-१(+), ७८७२०-१(७) जिनप्रतिमासंख्या विचार- शाश्वत, मा.गु., गद्य, मूपू., (७७२००००० वैमानिपती), ८०९७९-२ (+) जिनप्रतिमा स्तवन- सहस्रकूट, पं. रामविजय पाठक, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल हो तीरथराइ), ७९८२८*) जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदन), ७८६२७-१(#), ७८६७१-१(३) ,י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनभक्तिसूरि गुरुगुण गीत, मु. कुसलविनय, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू., (अब मारा साहिबाजी), ७९०२५ जिनलाभसूरिगच्छपति भास, मु. राज, रा. गा. १३, पद्य, मूपू., (वारी जाउ पूज म्हांरी), ७८८२३(+) जिनलाभसूरि देशना, मु. वसतो, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू. (पूज्य श्रीजिनलाभ), ८०९५२ जिनवंदना पच्चीसी, मा.गु., पद्य, मूपू., (वंदु श्रीजिनराजगरी), ७९४६९-२($) जिनवरसीदान स्तवन, मु. लब्धिअमर, मा.गु., गा. २८, पद्य, म्पू., (श्रीवरदाईना चरण नमी) ८१२५२ जिनवाणी गहुंली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १४, पद्य, म्पू. (साहेली हो आवी हुँ), ७९३१४ जिनसिंहरि गुरुगुण पद, मु. गुणविनय, पुहिं. गा. २, पद्य, मूपू. (अकबर साहिदार पावत), ७८५२१-१(+) जिनसिंहरि गुरुगुण पद, पुहिं. गा. २, पद्य, मूपू. (इक दरबार मान अकबर कउ), ७८५२१-२(+) " जिनस्मरण फल, मा.गु., गा. १, पद्य, खे, (जिन समरातां सहस फल), ८११२९-४ " , जिनहर्षसूरि खरतरगच्छनायक विनतीपत्र, रा. गद्य, मूपू. (स्वस्ति श्रीपार्थ) ७९५६३-१ जिनहर्षसूरिगच्छति बधावा. मु. चंदजी, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू, (सुधै मन नमै सारदा), ८०७८२ (+) जिनेंद्रसूरि गहली. मु. जिनेंद्रसूरि शिष्य, मा.गु. गा. ५. वि. १८५३, पद्य, भूपू (गामनगर पुर विचरतां), ८१२३९-१ जिनोपदिष्ट विशिष्टविचार स्तवन, मु. नवरंग, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू. (जिण चोवीस नमी मन), ७७६४५-१(*) जिभावंत संवाद, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., गा. ५८, पद्य, श्वे. (वीर जिणेसर पाए नमुं), ८००४३(+) जीव अजीवभेद विचार- १४ राजलोके, मा.गु., गद्य, मूपू. (चउदराज जिवलोकमाहि११), ७८३०७-४(३) जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु. गा. १० पच, भूपू (गुरुचरणकमल प्रणमीने), ७९५५६-१ जीवऋषि छंद, मु. संकर, मा.गु., ढा. २, गा. ३३, पद्य, श्वे., (सरसति सुमति सदा द्यु), ७७७२८(+) जीवणदासजी गीत अहिपुरगच्छपति, मु. खेम, मा.गु., गा. १४, वि. १७७१, पद्य, वे (श्रीजिनवाणी हे सखी), ७९५८३-२(+) जीवणदासजी गीत अहिपुरगच्छपति, मु. ठाकुरसी ऋषि, मा.गु., गा. ७, वि. १७७३, पद्य, ओ., (सवगुरु पाया हो नमुं), ७९५८३-३(+) जीवणदासजी गीत अहिपुरगच्छपति, मु. ठाकुरसी ऋषि, मा.गु. गा. ११, वि. १७७३, पद्य, वे (सरसति सानिध होय अब), " "" " "" ७९५८३-४ (+) י जीवणदासजी गीत-अहिपुरगच्छपति, मु. सिव, मा.गु., गा. ९, वि. १७७३, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरणे हो चित), ७९५८३-१(+) जीवदया छंद, मु. भूधर, मा.गु. गा. ११, पद्य, वे. (श्रीजिनवाणी पाए नमी), ७७९२० " जीवदया सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रे जीवदया पालज्यो), ८०८९६-३(#) For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५४९ जीवदया सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (सयल जिणेसर करुं), ८०२४४ जीवदया सवैया, मु. कृपाराम, पुहिं., गा. २६, वि. १९३२, पद्य, श्वे., (चोथे आरे केरा वृसतीन), ७९४३१-१, ७८७९६(६) जीवनदाससूरि स्तवन, मु. टीकम, मा.गु., गा.१०, वि. १८५७, पद्य, श्वे., (सदगुरु सेवो नित प्रत), ८१००२ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवरा २ भेद एक मुक्त), ७८३०७-२, ८०९८५(६) जीवशिक्षा सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (सोबत थोडि रे जीव), ७९९८१-२, ८०८९६-२(#) जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मपू., (उतपति जोइनइ आपणी), ७८६८२(#$), ७९३९१-१(), ७९६८८(#$) जैनधर्म प्रभावकपुरुष विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (धन्य श्रीऋषभदेवजी), ८१११४(+$) जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., को., म्पू., (१ जीव समुंचइ ५ नियमा), ७९९७७(+), ८००२४-४(+#), ८००१९-२,८०७८५-२(#$), ८०५३८(5), ८०९७८-३(-2) जोगी रास, श्राव. जिनदास पंडित, मा.गु., गा. ४२, वि. १७६७, पद्य, दि., (आदिपुरुषजो आदिजगोतम), ८०९९७-१,७७८८५-१() ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (युगला धर्म निवारिओ), ७८३६६-१ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सकल वस्तु प्रतिभासभा), ८१२६१-१(4) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.ग., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मप., (बारपर्षदा आगले), ८०५७५-१(4) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा वीर), ७८८४६-१(+#), ८०१५६-२ ज्ञानपंचमीपर्वतप उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, मूप., (बिंब ५ पुस्तक ५ झलमल), ७७७३६-२(+) ज्ञानपंचमीपर्व तपग्रहण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नंदि मांडिय), ७७७३६-१(+$) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., पूजा. ५, गा. ९, पद्य, मपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), ८०९६४+), ८११२९-१ ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मप., (प्रणमुं श्रीगुरु पाय),७९२७८ १(+$), ७९२९९-२, ८०२५३-२,८०४५०-१, ७७९०८(#), ७९५९१(६) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अनंतसिद्धने करुं), ७७७८७-२(+) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सद्गुरुना प्रणमुं), ७९८७४-१ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मप., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ७९९५२(#), ८००७५ () ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, गच्छा. विशालसोमसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नेमि जिणेसर प्रणमी), ८१२२० (#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ७८४४६(+#), ७९२३८(+#), ७७९५५, ८१२५६-१(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, पू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ८०९५७-१(+), ८०२२३(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. नगविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (शिवसुखदायक गुनगनलायक), ७८२०९(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. भावसागर, मा.ग., ढा. ६, गा. ६२, पद्य, मपू., (सरसती चरणे अनुसरी),७९२२१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मपू., (प्रणमो पंचमी दिवसे), ८०७५०(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ७९२७८-२(+), ७९९७८-१(+), ८११०१(+), ७८२३४-४, ७८९६८-१, ७९८४१-२, ८००७२-२, ८०१३५, ७९०८२-३(#), ७९४१४-१(#), ७९४७४-३) ज्ञानपंचमीपर्व स्तति, मा.ग., पद्य, मप., (कार्तिक सुद दीन),७८६८६-७(+#$) ज्ञान पंचावनी, मु. भवानीदास, पुहि., गा. ५५, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्ध आचारज), ८०९७५ ज्ञान पच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पहि., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सरनर तिर्यग जग जोनि),७७७१३-१(+),७८२०५(+#), ७७८४५-२, ७८२५२-१, ७९७६८, ७७९६४(२), ८०९०५-३($) ज्ञानपच्चीसी, मु. सार, मा.गु., गा. २५, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (चिहुंगतमाहे चाकजुरे), ७९७१०-५(+) ज्ञानपद पूजा, मा.गु., प+ग., मूपू., (ज्ञान स्वभाव जे जीवन), ८१२१८($) ज्ञानप्रकाश, क. नंदलाल, पुहि., स्कं. २ कांड २०, वि. १९०६, पद्य, श्वे.?, (वद्धमाण नमो किच्चा), ८१२३१(६) For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ज्योतिषचक्र मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहांथिकुं प्रथम सात), ७८३४१-४ ज्योतिषचक्र विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (चदरमाना पदरा माडला), ७८६९४-५(+) ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, मप., (चंद्रमानौ आउखो),७८५१९-३(+$) ज्योतिषसारणी संग्रह, मा.गु., को., वै., इतर, (--), ७८२५५-२(+) ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., इतर, (ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल), ७७७१९ झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे शीश नमावी), ७८८३८(+), ७८४१९(#s), ७८४७१(२), ७८५६१-१(#s), ७९२४३-५(#$), ८०७५२($) झाझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (महियलि मांहि मुनिवरु), ७९३५५(+#), ८०३१२(2) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ७७८०७-१(+), ८०९०६-१(+$), ८१०७०-३(#) ढंढणऋषि सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि तइ साचउ), ७९७८७-२ ढालसागर, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., वि. १८५६, पद्य, स्था., (समरु ऋषभ जिनेसरु), ७९६४१(६) ढुंढक गीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पीपल गांमनी बामणी), ८०९२४-१(#) ढुंढक पच्चीसी-स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी प्रणमी), ८०४२७-१ ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा.७, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सरसती चरण नमी करी),७८८५२(#) ढुंढिया मान्य ३२ आगम सूत्रना नाम, मा.गु., गद्य, स्था., (अंग ११ उपांग १२ नंदि), ७८८३७ तपपद सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सर्व देवदेव में), ८०४२०-१, ७८०७५-३(#$) तपपद सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., गा. १४, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (तप वडो रे संसार में), ८०४५३-५(-) तपसी सज्झाय, मु. राजवल्लभ, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (सरसति माता समरीये), ८११२३(+#) तपावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरिमढ्ढ१ एकासणां२), ७९९२०(६) तस्करपच्चीशी सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २५, वि. १९१६, पद्य, स्था., (चोरी चित्तना धरो नर), ८०३३७ तामलीतापस चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (चोविसमा जिनवर नमु), ८०९४१(+) तारातंबोलनगरी वर्णन, मा.गु., गद्य, मप., इतर, (लाहोरथी गाऊ १५०),७८८५८-१(+),८०६५६-१(#$) तारादेवी सज्झाय-शील विषये, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वचन सुण्या वीरंमण), ७८५९१-२ तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (तित्थयरा गणहारी चक्क), ७७९२६ तीर्थंकर जन्ममहिमा बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिले बोले तीर्थंकर), ७८७४४-१४(+) तीर्थमाला स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४१, वि. १६५९, पद्य, मपू., (सरसती भगवती मात जे), ७७९४९ तीर्थमाला स्तवन, मा.ग., पद्य, मप., (--),७९५२०(5) तीर्थयात्रावर्णन स्तवन-विमलमंत्रीकारापित, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (श्रीपाटण में पांचासर), ७९१४८-५(2) तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निसिहि त्रण), ८०८०६-१ तेजसारकुमार रास-जिनेश्वरपूजा दीपकभावविशुद्ध विषये, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. ३९, गा. ९६०, वि. १७८७, पद्य, मूपू., (परम परमेश्वर प्रभू), ८०२६५(६) त्रिभवनप्रासादजिनबिंबसंख्या चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गद्य, मप., (पहिलङ त्रिकाल अतीत), ८०९७७-१(+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष सज्झाय, मु. हर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (श्रीआदिजिन वार इहूं), ७८५१८-१ दंडकपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३६, पद्य, स्था., (दंडक चोविसमां जीव), ७८०८२ दंडक यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--),७९०३०(+) दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु रे), ७९०२९(+), ७८६५४-१(4), ८०१६६(#) दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १७८६, पद्य, मप., (सारदमात मनरली समरु),७८९१४-१(+), ७९१९३-१(+६), ७९२२२-१, ७७६१५(६) दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा.१४, पद्य, मप., (सारद बुधदाइ सेवक),७९२४०-२(#),७९८११(+#$), ८०४४९-१(#) For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ दशार्णभद्र सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, वि. १९३३, पद्य, श्वे., (पधार्या वीरजिणंद भार), ७८९३४-२(+) दशार्णभद्र सज्झाय, मा.गु., वि. १७६८, पद्य, मप., (सारद समरूं मनरली),८०९९६-२($) दानशीलतपभावना चौढालियो, आ. जिनसिंहसूरि, मा.गु., ढा. ४, गा. ९९, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय नमी), ७७९०९ दानशीलतपभावना चौपाई, मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, म्पू., (त्रिभुवननायक वीरना), ८०४२३($) दानशीलतपभावना पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (दानसील तप भाव च्यार), ८०५४९-३(#) दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मप., (रे जीव जिन धरम कीजीय),७८६९९-२(2) दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ७८६६१(+#$), ७८८९९-१(+), ८०७९४-१(+),७७८४२,७९८४४,७८६९३(#), ७९१९६-१(२), ८०८५०(#), ७८७६८(5), ७८८४८-२(s), ८०८००(-) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८११२०-१(+#$) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (दान एक मन देह जीवडे), ७८८८२-२ दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., ढा. ५, गा. २१, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (अजितजिन आणंदस्यु), ८०३५६-१ दिनचर्यादि विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूतां सवारे उठवो), ७८०५२(+) । दिपावलीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (अमावस्या तो थई उजली),७७९३०-४ दीपावलीपर्व गीत, पुहि., गा. ११, पद्य, म्पू., (जी हां श्रीवीर), ८०९०५-२ दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दुःखहरणी दीपालिका रे), ७९४२६-११ दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूप., (श्रीसिद्धारथ नृपकुल), ७९४२६-३ दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ७९४२६-१, ७९६९० दीपावलीपर्व महात्म्य, मा.गु., गद्य, मप., (उज्जयणी नगरी तिहां), ७९०४२(+#) दीपावलीपर्व रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, श्वे., (भजन करो श्रीभगवंतरो), ७८१५२, ७९७८६-२ दीपावलीपर्व रास, मु. मनोवर, मा.गु., गा. ३९, पद्य, श्वे., (भजन करो भगवंतरो गणधर), ७९१२४-२(#) दीपावलीपर्व सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २२, पद्य, मप., (भजन करो भगवंत रो गण),७९५३०(2) दीपावलीपर्व स्तवन, श्राव. जीतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (दीवाली दिन अमर वखांण), ७८०३९(2) दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर मनोहरु), ७९४२६-६, ७८४४३-१(#), ७९४०१-१() दीपावलीपर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ ताता जग), ८०७६९, ७८८८३-४(#) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), ८०८६४-४(६) दमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (नगर कपीलानो धणी रे), ८०७५९-२(2), ८०८७४ २(+),७९४८७-२ देवकी चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, मूपू., (रिट्ठनेमी नाम हुवा), ७८७९४(६) देवकी सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. १०,गा. १०१, पद्य, मप., (रथनेमि नामे हवा),७९४५० देव च्यवन लक्षण, मा.गु., गद्य, मप., (देवतानो शेष ६ महीना), ७८७४४-११(+) देवता विषयसेवन विचार, मा.ग., गद्य, श्वे., (भवनपती व्यंतर जोतिषी),७९७५२-६(#) देवराजवच्छराज चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (आदि सांत अरु०वच्छराज), ७९९६१(+#$) देवलोक देहमान-आयुमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सौधर्मदेवलोक सात), ७९५०९-१(#) देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहलो सोधर्म देवलोकेइ), ७८३८६(#) देवलोकसख सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. २१, पद्य, मप., (देवलोकारा साताकारी),८०८२९-२(#) देववंदन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम प्रभू आगे), ७९८२४-३(#) For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ देववंदन विधि-उपकेशगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ७८५९७-३(+) देवसीराइय प्रतिक्रमणादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंच विहायारविसुद्धि),७७८१२-१ देवादिगति आयुष्यबंध विचार बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्प कषाइ १ विणवेग), ८००९८-२($) देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., गा. १२, पद्य, मपू., (जिनवर रूप देखी मन),७९५७१-४(#),७९८७४-३(5) दोधक बावनी, मु. जसराज, पुहिं., दोहा. ५३, वि. १७३०, पद्य, मप., (श्री पार्श्वनाथजी शत), ८०४३३-१(६) दोषावली, मा.ग., गद्य, श्वे., इतर, (--), ७८८६७-१($) दोहावली, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ६३, पद्य, श्वे., (लोचन प्यारे पलकको कर), ७८८०९(+) दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, इतर, (ओस ओस सबको कहें मरम), ७८४६८-१(#) दोहा संग्रह, मा.ग., गा. ५, पद्य, श्वे., (दसे बालो वीसे भोलो), ७८३८१-३($) दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, जै., इतर, (निरफल श्रोतामढपे),७९९६४-३ दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहि.,मा.गु., दोहा. १, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदजिनवर), ७८०७१-३(+), ७८४९६-२(+#), ७९०२२-२, ७९३०६-४(#) द्रव्यानुयोग विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (आ आत्मा अनादीनो), ८०८९० द्रौपदीसती चौपाई, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., ढा. १४, गा. २१८, पद्य, मपू., (सील वडो संसारमै मध्य), ७८४५३-२(#S) द्रौपदीसती रास, मु. सोभ, मा.गु., ढा. २७, पद्य, मूपू., (कृष्णनरेसर आद लेहे), ७९७०५-१(+) द्रौपदीसती सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (आव्या नारद मुनिवर), ७९८७१-३(#$) द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (साधुजीने तुंबडु), ८०१५८ द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (बावीसमा श्रीनेमिजिण), ८०९४८ द्वारिकानगरी सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ६०, पद्य, मूप., (द्वारामतीनो देखिउ), ८०९०७(5) द्वारिकानगरी सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., ढा. १, गा. २४, पद्य, मूपू., (दोनुं बंधवा रडे दुःख), ७९७६१-२ द्वारिकानगरी सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (दुवारामतीरो साहब आयो), ७९७०५-३(+$) धन्नाअणगार पद, मु. रतन, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (धना हुं वारी हो थारी),७७७४८-१३ धन्नाअणगार रास, मा.गु., ढा. ६, गा. १३१, पद्य, श्वे., (सासणेनाय समरीय पो उग), ७९३०३(+#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. झवेरलाल, मा.गु., गा. १५, वि. १९४२, पद्य, श्वे., (काकंदी नगरी हुतीस रे), ७८९३३ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (जिनवाणी रे धना अमीय), ७९९४०-१(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. तिलोकसी-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (अमीय समाणी मोरा नंदन),८१२५०-२ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवचने वयरागी हो), ८००८६-२(+$), ७७६३९-१, ७९८८२-३(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसति सामिनि वीन), ७८६४७-२(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (दोय करजोडीनई निति), ७८२२४-१ धन्नाकाकंदी चौढालिया, म्. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ७, गा. ७२, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (पुजजी पधारीया नगरी), ७८७४९(+) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), ७८६४७-१(#) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धन धन्नो ऋषि वंदीय), ८०७१८-१(+$), ८१०३४-२(+2), ७८९९१-२ धन्नाकाकंदी सज्झाय, श्राव. संघो, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सरसति सामिणी विनवू), ८००३३(#) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १६, वि. १९३२, पद्य, स्था., (कनक ने कामनी जुग में), ८०४५३-३) धन्ना काकंदी सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (काकंदी वासी सकजे), ७९७७३-१ धन्नाशालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७७९०३(६) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अजीया जोरावर कारमी), ७९३६४-६ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजिया मुनि० वेभारगिर), ७७६२८-१ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (राजग्री मै गोमद सेठौ), ७८६१९-२(+) For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (धन धन धन्ना सालिभद्र ), ८१०७०-२(#$) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (राजग्रहिपुर नगरी), ७७७९३ धन्नाशेठ सज्झाय-भावचारित्र गर्भित, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीशारदाए अणुसरीरे), ७९६१७-३($) अम्मल रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु. गा. २८२ वि. १५९१, पद्य, मूपू (सरसति मुझ मति दिओ), ७९०८९ (+$) , धर्मजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., ढा. ३, गा. १५, पद्य, मूपू., ( पनरमा जिण तणा गुण), ८०३९९-२ धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ८०९२७-१ धर्मजिन स्तवन, पंडित, खीमाविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू., ( इक सुणली नाथ अरज), ७८७१३-१ धर्मजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भवसायर हुंती जो हेळे), ८०८३३-१(#$) धर्मजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ५, पद्य, म्पू, (देखो माई अजब रूप है), ७७७३२-४(*) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धर्म जिनवर दरिसन), ७७७३२-१२(+) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७. वि. १८बी, पद्य, मूपु., (हां रे मारे धरमजिणंद), ७७६४० (+), ७९०४१-२(*), ७९७३१-३(+), ७९३६४-९, ७९८३७-२(१) ५५३ धर्मजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (एम करीये रे नेहडो एम), ७९३१७-१ धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १३८, वि. १७१६, पद्य, मूपू., (चिदानंद चित चिंतवुं), ७७८४५-१ धर्मपाप परिवार विचार, मा.गु., रा., गद्य, श्वे., (धर्मरो पिता ज्ञान), ७८७३६-१ धर्मरुचि अणगार लावणी, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, स्था. (चंपानगरी धर्मघोष), ७८९४९-१(+) "1 धर्मरुचि अणगार सज्झाच, मु. रतनचंद ऋषि, रा. गा. १५. वि. १८६५, पद्य, स्था., (चंपानगरनी रुप सुंदर), ७९७८३ धर्मास्तिकायलक्षण दोहरा, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, श्वे., (एक द्रव्य है लोकमित), ७९३५०-४ धोवणपाणी विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (१ उपवासमा पीठानो), ७८८९१-५ नंद बहुत्तरी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७३, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (सबै नगर सिरि सेहरो), ८१०२९(+) नंदमणिआर सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( पर वचन वचन सोहामणा), ७८७७०-२ नंदमणियार चरित्र, मु. जैमल ऋषि, मा.गु, डा. १२, गा. १२३, पद्य, स्था., (तिण काले नै तिण समे), ७८४०५-१ (क) नंदमणियार चौढालियो, रा., ढा. ४, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (ग्यातारा तेरमां अधेन), ७८५९८ (+) नंदमणियार सज्झाय, मा.गु, पद्य, मूपु (-), ८१०९९(३) " नंदराजवेरोचनप्रधान कथा, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ७, वि. १८७९, पद्य, श्वे., (जिन वीर जिनेश्वरू), ७८८०३ (+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मृपू. (साधुजी न जइए रे परघर ), ८१००४-१ (#) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., डा. ३, गा. १६, पद्य, म्पू, (राजगृही नयरीनो वासी), ७९६९१-२ (+), ८०२९१-१(+*), ७८३६१-१, ८१०००-२, ८०३१८(# ), ८०५६७-१ ($) नंदिषेणमुनि सज्झाव, मा.गु. गा. १३, पद्य, म्पू, (बेरागे संयम लीयोजी), ८००९५-११११) नक्षत्र प्रश्नफल विचार, मा.गु., गद्य, जे., इतर ? (-), ७८८५८-४(*) " नक्षत्र सज्झाय, पं. ऋषभदास, मा.गु., गा. १२, पद्य, भूपू (प्रणमी गणहर गोयम), ७९३४९.२(४) नगरथगुरु स्तवन, मु. नगरधशिष्य, मा.गु. गा. ११, पद्य, स्था., ( नगरधगुर कीया नौस्तार ), ८०११७-२, ८०८२९- १(क) नमस्कारपंचपद बारमासा, पुहिं., गा. १४, पद्य, मूपू., (नमस्कार पंचपदकुं), ८००९५-२ (+) नमस्कार महामंत्र गीत, मु. मानसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महा मुनि इम जपाइ), ७८६४७-३(#) नमस्कार महामंत्र चौढालिया, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (नवकारवाली मणियडा), ७९७६६(+#) नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु. गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू (वंछित० श्रीजिनशासन), ७८१५५ (+#), ७९११४(*), ८०४०२(+), ७७९०५, ८०७६६-१, ८०२९९-२(६) ७९६०५ (३), ७९६२१(३) ८०७३६-५(३), ७९८८६() For Private and Personal Use Only नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि- शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ७७९९१-१(+), ८०११५, ८०७७१-१, ७७८२२-१ (#$), ८००१६-१(#) नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. (भोर भयो ऊठो भवि), ७८२५८-१(१), ७८९५७(#) Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ७८३२५(+$), ७८४७०(+), ७८९१९(+), ७८९२०(+#), ७७९०७, ७८०२१-१ नमस्कार महामंत्र पद, मु. रंगविजय, मा.गु., पद. ६, पद्य, मूपू., (चवदे पुरबरो सार), ७७७५९-४(+#) नमस्कार महामंत्र पद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सास्वत नोकार मंत्र ह), ७९८३४(#) नमस्कार महामंत्रमहिमागर्भित चौपाई, मु. विनयविजय, मा.गु., अधि. १०, पद्य, मप., (--), ८०८६१(६) नमस्कार महामंत्र महिमा पद, पुहि., गा. ६०, पद्य, मूपू., (गुरदेव के चरणारवंदु), ८१२१३-१(+) नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पहिलो लीजि), ८०९९८-१(+#), ७८७७३($) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (श्रीनवकार महिमा घणो), ७९७६१-१(६) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. दुर्गादास, रा., गा. १४, वि. १८३१, पद्य, श्वे., (अरिहंत पहले पद जानी), ८०३६१-१(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ६, पद्य, दि., (मेरी वार क्युं ढील), ८०८९६-९(2) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार जपो मनरंग), ७७९९१-२(+), ७९१९४-१(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ८१०७३-२(#$) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (समर रे जीव नवकार नित), ७९३६४-१ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रविचंद, मा.ग., गा. २३, पद्य, मपू., (--), ८००३८-१(5) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कहेजो चतुर नर ए कोण), ७७८०७-३(+), ८००६५ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बार जपुं अरिहंतना), ७८३३३-२ नमस्कार महामंत्र सवैया, मु. लालचंद ऋषि, पुहिं., सवै.५, पद्य, श्वे., (नमो अरिहंत नमो सीध), ८१२४६-२(2) नमस्कार महामंत्र सवैया, श्राव. विनोदीलाल, पुहिं., सवै. ५, पद्य, श्वे., (णमो अरिहंताणं णमो), ८१२४६-१(#) नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (सासणनायक समरीये), ८१०९३(+),८०७३९,७९८४६ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (जी हो मिथीला नगरीनो), ८०१०४-६(+), ७९१४७-३ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (नयर सुंदरसण राय हो), ८०७५९-३(+#), ८०८७४-३(+), ७९४८७-३ नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., ढा. ४, गा. ३१, पद्य, मूपू., (आदिजिणंद जुहारीयइ मन), ७७८२७(+), ८०९०९(+#), ७९३२३ नरक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिली नरग एक लाख), ७९१७९ नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३५, पद्य, मपू., (वर्द्धमानजिन विनवू), ७९५७२(+$), ७९२१९ नलदमयंती चरित्र, वा. ज्ञानसागर, मा.गु., वि. १७५८, पद्य, मूपू., (--), ८०४९७(६) नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ ढाल ३९, गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मप., (सीमंधरस्वामी प्रमुख), ७९६९९(+$), ८०८३४(#$) नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जल भरी संपुट पत्रमां), ७८४६७-२,७९५१९(2) नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.ग., गद्य, श्वे., (जीव चेतन १ अजीव), ८११२६-१(+),७९५२८(#$) नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (जीवतत्त्व १४ भेद), ७८६९४-३(+), ७८६२१-१(#$), ७८६६३(#$), ८१०३७-१(#) नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, गा. २०४, पद्य, मूपू., (सकल जिनेसर प्रणमी), ८००५४(६) नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुन्नं पावा),७९७०३(+) नवपद गहली, मु. आत्माराम, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (सहियर चतुर चकोरडी),७९७७७-१ नवपद चैत्यवंदन, मु. चतुरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंतना), ७९४२२-२ नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूप., (नमोनंत संत प्रमोद), ७७७६९, ७९५०३ नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३०, पद्य, मप., (श्रीगोडी पासजी नीति),७९३८३($) नवपद पूजा, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रुतधर जस समरे सदा), ८००६७(#$) For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ नवपद पूजाकी आरती, उपा. यशोविजयजी गणि', मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (जय जय जग जन वंछित), ८०८२०(+) नवपद सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जगदंबा प्रणमी कहुं), ७७७८७-१(+) नवपद सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., ढा. १०, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (समरूं जिनशासन धणी), ७९६४९ नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (गुरु नमतां गुण उपजे),७९५००-३ नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (गोयम नाणी हो कहै), ७९१९४-२(+), ८०४२०-२, ७८७२०-२(#) नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (तीरथनायक जिनवरू रे), ७९१९४-३(+) नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलानो), ७८२२१-१(+#), ८११२९-२ नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (सहु नरनारी मली आवो), ७८८२७-४ नवपद स्तुति, मा.गु., पद्य, पू., (सिद्धचक्र महाराय सेव), ७९१९४-४(+$) नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ८०८८७-१(+) नववाड सज्झाय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८४१, पद्य, मूप., (श्रीनेमिसर चरणजुग), ८०७९४-२(+s), ८१२४५-२(६) नागश्री सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. २, गा. ४६, पद्य, मूप., (धर्मघोष आचार्यना), ७८९१६(+) नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया), ७८२२६-२(+), ८०३२२-२ नारकी १५ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (अधरमी ते १५ भेद अंबे),७८७१२(+) निर्मोहीराजा पंचढालीयो, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (निरमोही गुण वरण), ८११३८(+$) निर्मोहीराजा सज्झाय, पं. भूधरदासजी, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (सकल इंद्र प्रसंसई), ८०७१८-२(+) निर्वाण पद, कबीर, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (कागद आणि बिवनावंगी), ७८६४७-४(#) निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीय जिनवर रे देशना), ७७६३७-१ निह्नवपंथी चर्चाविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ राजा श्रेणिक कसाइ), ७९५६०-१(+) निह्नवमतखंडन झलणा, रा., पद. ५, पद्य, श्वे., (सूत्रसिद्धांतरा अरथ),७९५६०-४(+) निह्नवमतदूषण चर्चा, रा., गद्य, श्वे., (इण श्रद्धावाला कोइ), ७९५६०-५(+) निह्नवविचार पद, मु. खीमसी ऋषि, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (श्रावक केरा दानज), ७९५६०-२(+) नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.६, पद्य, मपू., (पुंडपुर वर्धन राजीयो), ८०७५९-४(+#), ८०८७४ ४(+), ७९४८७-४ नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मपू., (एक दिवस वसै नेमकुंवर), ७८९९२(+#$),७९२९७-२(+),८०४६३-१(+#$),७८२९५,७९०९७(#), ७८०४३(६) नेमराजिमती गीत, मु. आनंदराम, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (मिडंडेमहेमसायांनी),७९७३५-५ (+#) नेमराजिमती गीत, मु. उदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चूनडली रंग राचेली), ८०८९६-४(#) नेमराजिमती गीत, ग. पुंजराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सुर नर असुर सेवा करइ), ७९२४२-२(+) नेमराजिमती गीत, मु. माणक, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (नेमीसर साहिब जिनतणा), ७७९३५-२(#) नेमराजिमती गीत, मु. माणिक्यरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सारदने समरी करि गाउ), ७८४३२ नेमराजिमती गीत, मु. मेरूविजयजी म., मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (हुतो बेठीती सखीयां), ८०३६५-२(2) नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (आजू मे वारि नेमजी), ७८६११-२(+) नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तरसत अंखियाने हुंइ), ८०३९३-२(+) नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा.१०, पद्य, मप., (मोहनवेली प्रेम गहेली), ८०३९३-३(+) नेमराजिमती गीत, मु. सुंदरजी ऋषि, पुहि., गा. १६, पद्य, श्वे., (जाबंसी नेमजिणेसर), ८००९५-१(+) नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (ओ आवइ सखि ओ आवइ मेरो),८०१६८-३(+) नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (राजेमती इणि परि), ७७९७७-१(+) नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७८५५१-१(+-$) नेमराजिमती चरित्र, मु. फतेचंद, मा.गु., गा. ३७, वि. १८७२, पद्य, मूपू., (सदगुरुने चरणे नमी), ७९२४९(+) For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती चौढालीयो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ५, गा. ७९, पद्य, स्था., (श्रीजिनवाणी रे), ७८२४६ नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), ७७९४०(+) नेमराजिमती पद, मु. अमृत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (देखन दे मुझ नेम), ८१०७४-५,७८९४७-८(#) नेमराजिमती पद, मु. कवियण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नवभव केरी ताहरी नारी), ७७७५६-२ नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (यादव मन मेरो हर लीयो), ७८७१३-२, ७९४७२-३ नेमराजिमती पद, मु. चंदविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (राजुल पुकारे नेम पिय), ८०४९१-७(+) नेमराजिमती पद, मु. जसवंत, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (प्रभु लाइ मेरो इ), ७९८५१-३(+#) नेमराजिमती पद, मु. जसवंत, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (विचारी हो जादु देखो), ७९८५१-५(+#) नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, म्पू., (कब मीलसी म्हारो), ७८०९१-१४(#) नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (म्हारा वालेसर सेती), ८०८०४-९ नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, स्पू., (सुनरी सईया स्याम), ८०८०४-७ नेमराजिमती पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (पाय पहुं वीनती करुं), ८००९५-७(+) नेमराजिमती पद, श्राव. जीयालाल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जुनागढ विया मन को), ७८७३१-१(+) नेमराजिमती पद, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (वालिम मोरा न समजावो), ८०३४२-२ नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नव भव केरी प्रीत), ७८४२७-२, ७९४७८-२, ७८६९९-१(#) नेमराजिमती पद, मु. भाणचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुनि प्यारो लागे छे), ७८०९१-१५(#) नेमराजिमती पद, मु. भीम, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (समुद्रविजयसुत नेम), ७९२६१-३(+) नेमराजिमती पद, मु. भूधर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (देख्यौ री कहुं नेम), ७८२९६-१ नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (यादव जाओ फीरी स्या), ७८०९१-१२(#) नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सामरी सूरत मेरो दील),७८०९१-१३(#) नेमराजिमती पद, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (बेठी राजल मालीय करती), ७९९४७-३(+) नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (बावीस सुभटने जीपवा), ८०९४४-३(+) नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (अब के सावन प्रभु घर), ७९४७४-४(-$) नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (अरि मेरा दुख मत कर), ८०२०३-५(+#) नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (हुं तो वालिमने वाली), ८०१२९-१(+) नेमराजिमती बारमासा, मु. अमरविशाल, मा.गु., गा. १९, पद्य, म्पू., (यादव मुझनैं सांभरै),८०४५८-१(+#) नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सांवण मासे स्वाम), ७८८६०-१(+$), ७९३५७-३(#) नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (वेसाखे वन मोरिया),७९१५४-२(2) नेमराजिमती बारमासा, मु. तेजराम, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूप., (आदि जिनवर पद नमी), ७९७०१ नेमराजिमती बारमासा, मु. दान, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (--), ७८१२८-१(#$) नेमराजिमती बारमासा, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (दिल शुद्ध प्रणमु), ८०२७४-१(#) नेमराजिमती बारमासा, मु. लालविनोद, पुहिं., गा. २६, पद्य, मूपू., (विनवे उग्रसेन की), ८०४५८-२(+#) नेमराजिमती बारमासा, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (चढी सांवणें सामि), ७९५५५(2) नेमराजिमती बारमासा, हदीना, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (चडद चेत महीने नेम), ८१०९०(+) नेमराजिमती बारमासा, मु. हर्षकीर्ति, पुहि., गा. २६, पद्य, मपू., (हो सामी क्यं आये), ७९३५७-२(#) नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, श्वे., (आसाढ ससवाडे जोनी), ८०००५-१(६) नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (घनघोर घटा घन की उनई), ७८३२३-१ नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (नमो नमो नेम नमि करी), ८००१४-१ नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., गा. १८, पद्य, मप., (हो सांमी क्युं आव्यु), ७८९१४-२(+) नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., गा. २२, पद्य, मप., (--), ८००७२-१(5) For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (सारद पय पणमी करी), ७९२३५(+), ७९३८६(+#), ७९३७०(2), ७९३९० () नेमराजिमती रास, मा.गु., पद्य, मपू., (--),७९८६६() नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (मति जावो गिरनार नेम), ८११२१-३(#) नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सजन विना गुना तजी हम), ८०१०२-७ नेमराजिमती लावणी, पुहिं., पद. ५, पद्य, मपू., (हेरी हेरी माई मेरो), ७८३१४-३($) नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (स्वस्ति श्रीरेवंतगिर), ७८३४०-१(+) नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., गा. ३२, पद्य, मप., (हठ करी हरीय मनावीयै), ७७६३३ नेमराजिमती संवाद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३५, पद्य, म्पू., (--), ८११५५-१(६) नेमराजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहिं., सवै. ४, पद्य, श्वे., (व्याहनेकुं आया सिरसे), ७९८०७-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., गा.१५, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिसर नित नमु), ७८५७७-१(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. गुलाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (रथवाली जिणवार गिर), ७७८१६-१ नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (समुदविजय सुत लाडलो), ८०२०३-२(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (प्रभु मोरा तोरण आवी), ७९०६२-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नेमराजुल बे एक), ७८९७५-३ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पियुजी पियुजी रे), ८०९६१(#), ८०८८२-२(-१) नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गोखेरे बेठी राजुल), ७९०५१-१(2) नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (राजुल वीठी वागमइ), ८०२४०(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. श्रीदेव शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सीलै श्रीवरी राजल), ७७८२२-२(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. सांवतराम ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (दुवारामतिसु वरात), ७८५९१-१ नेमराजिमती सज्झाय, मु. सोम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कंत न कीजइ रुसणुं रे), ७९०२०-३(+) नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कपूर होवे अति उजलो), ८०९५८(2) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मप., (अब राय ऋषजी हो राज), ७८५२८(६) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मपू., (उग्रसेन भोज पठाईया), ८०२७७(#$) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (गोविंद मंदिरज रहिया), ७८०९४ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मपू., (चोमासा में राजूल), ८०८१८(२) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (छांने छांने कुर), ८०२०३-३(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (नवभव के तुम वालेहा), ७९८००-४(+-) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मपू., (नेम निरंजन ध्यावो), ७८५०२(+#) नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरा नेमजी एकगल आखण), ८००९५-५(+) नेमराजिमती सज्झाय, रा., गा. ३४, पद्य, मपू., (म्हे धावाला प्रभू), ८०८९७(+), ८०७३२-१(-$) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १५, वि. १८५१, पद्य, मूपू., (रानी राजुल कर जोडी), ८००९५-६(+) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा.१२, पद्य, मूपू., (समुदविजैजीरो लाडिलो), ८००९५-८(+) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सुणजोरी वात सहेली), ७९९४०-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., गा. १२, पद्य, मप., (सस्ती मेरी अंखीया), ८००९५-९(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (सारथीडा रथ वालि जोय), ८१०७४-६ नेमराजिमती स्तवन, मु. नगजी, मा.ग., गा. ९, पद्य, श्वे., (नार मनावो है नेमने), ७८४२७-१ नेमराजिमती स्तवन, पंडित. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (पोपटडा संदेसो कहेजे), ७९१४८-८(4) नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), ७९१४८-२(2) नेमराजिमती स्तवन, मु. लक्ष्मी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (सरसवचन वर वरसती कविज), ७८२८६-२(#) For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती स्तवन, आ. लब्धिसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १८५५, पद्य, मप., (जंबूद्वीप भल दीपतो),८०८५२-१(2) नेमराजिमती स्तवन, पुहिं., गा. ३६, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (समुद्रविजय के नंद), ७९५०७ नेमराजिमती होरी, मु. भूपविजय, पुहिं., गा.८, पद्य, म्पू., (सब मिलि खेलै होरी रे),७८७०१-२ नेमराजिमती होरी, मु. रूपविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (गिरनार पे खेलत होरी), ७९२२५-४(+) नेमराजिमती होरी, पुहि., गा. १०, पद्य, मपू., (गोपी को प्यार चगीये), ८१०८८-१(#) नेमिजिन ९ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, पू., (प्रथम भवे अचलपुरे), ८१०९१-१(#) नेमिजिन ९ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्री नेमनाथ नेहरी),७९९९१-१ नेमिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेम प्रभु माहरी), ७८९९५-३(#) नेमिजिन चरित्र, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ५२, वि. १८७४, पद्य, स्था., (नगरा सुरीपुर राजीयो), ७८६०४(+#), ७९१४९(+-#) नेमिजिन चोमासं स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (मोरा सम मा जावो रे),७७६३५-३(+),७८४७३-२ नेमिजिन छंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, पू., (गोल गलो नि साकर भेली), ८००१३ नेमिजिन छढालीयो, मु. शिवजी गणि-शिष्य, मा.गु., ढा. ६, पद्य, श्वे., (सकल सुरासुर सारदा), ८०७८०-१(+) नेमिजिन जान वर्णन, मा.ग., गद्य, मप्., (सोल सहस मुगटबध),८१०९१-५(#) नेमिजिन धमाल, पं. आनंदविजय, रा., गा.८, वि. १९वी, पद्य, मपू., (म्हांनु खेलन दोनी), ८०४१९-८(+) नेमिजिन धमाल, मु. सुमतिसागर, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (सात पाच सखियन की), ७८०१२-२ नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. ५, गा. ७२, वि. १६६७, पद्य, मप., (सरसति सामिनी पाय नमी), ८०१९९(+), ७९८७९-१(#s) नेमिजिन पद, पं. आनंदविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (अधिपति मारो नेम), ८००९१-४(#) नेमिजिन पद, मु. उत्तम, मा.गु., गा.५, पद्य, म्पू., (हरीयाले डुंगर जाइजो), ७९७४६-२(+#) नेमिजिन पद, मु. जिनदास, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (म्हारै मन साजै अलीजा), ८०८०४-८ नेमिजिन पद, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (भवि वंदौ जी सिवानंदा), ७९३०९-२(+) नेमिजिन पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (टुक रोहो रे जादव दो), ७९६१०-३(+-) नेमिजिन पद, मु. दोलत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (जिन दरसण की प्यासी),७८८२७-२ नेमिजिन पद, भगवतीदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (तूं बालाब्रह्मचारी क), ७९७३५-४(+#) नेमिजिन पद, मु. सुंदर, रा., गा.५, पद्य, मप., (जा दिन थे प्रभु ओतरे),७८८१९-३(+) नेमिजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (तुं बालब्रह्मचारी भल), ७८४५९-२(+#) नेमिजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सब जादव मिल जाण वणाए), ७९६१४-२५(+) नेमिजिन पद-गूढार्थगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (सखी कोउ मोहनलाल मनाव), ७९६२९-३ नेमिजिन बारमासा, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. १६, वि. १६८९, पद्य, मपू., (सखी री सांभलि हे तूं), ७९१४०-१, ८००३८-२($) नेमिजिन बारमासा, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (अरसइ फरसइ वरसइ), ८०१९७-१(+) नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा.१२, पद्य, मपू., (सरस श्रावण केरो सखडा), ७९३५७-४(#$) नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय कुलचंदलो), ८००८९-२(+#), ७८२८६-१(#) नेमिजिन रागमाला स्तवन, मु. सहज ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुनाम निरूपम), ८०९१४-१(+) नेमिजिन रास, मा.गु., गा. १८, पद्य, मप., (सरसती सामणी विनउ), ८१०८९(2) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मपू., (मोरी माइ मेरो नेम), ८००३८-३($) नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, मपू., (श्रीनेमि निरंजन बाल), ७९५५४ नेमिजिन वसंत गीत, मु. वीर, पुहिं., गा.८, पद्य, मूप., (सांमरा मत मारो), ७८८६९-२(+#) नेमिजिन विवाहलो, मु. गुमानचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (छपनकोड जादव मिल आया), ८११२२-२($) नेमिजिन विवाहलो, मा.गु., गा. २६, पद्य, मप., (नगर सोरीपर राजीओ), ८०७१०, ८०२३१-२(5) For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५५९ नेमिजिन विवाहवर्णन, मा.ग., प+ग., मप., (हवे श्रीनेमकमर अनइ), ७९८६९ नेमिजिन सज्झाय, श्राव. जेठमल, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (सूरवीर सिर मुकट समान), ८०९५१-१(+#) नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५७, पद्य, मूपू., (सिद्धि बुद्धि दाता),७९८९७(+#),७७९९६ नेमिजिन सवैया, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (उंचे उंचे गढ के रे),८०९६३-१(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. उदयसिंघ ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १७६५, पद्य, मपू., (श्रीनेमीसर नित नमुं), ८०७७०(#) नेमिजिन स्तवन, मु. कुसालचंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, स्था., (प्रभु समदविजय सुत), ८००१०(६) नेमिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (अवै साम सलूने खेलत), ७९३०९-३(+) नेमिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (जगपति नेम जिणंद प्रभ), ८०९६६-१ नेमिजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शिवादेवी सुत सुंदरू), ७७८३८-४(+) नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (समुद्रविजे सुत लाडलो), ७८१८८-१(+),७८०९०-२ नेमिजिन स्तवन, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, स्पू., (नेमीसर आदेसि आदेसि), ७८५१७-२ नेमिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८६७, पद्य, मपू., (सुअदेवी सानिद्ध करी), ७८७८८-२(६) नेमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (सांभल रे सांवलीया),८०४९१-३(+),८०८३३-३(2) नेमिजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नित नित प्रणमीजै), ८११८५-३(+) नेमिजिन स्तवन, मु. तीकम, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (मंगल कर रे नरवर नेमि), ७९०९४-२ नेमिजिन स्तवन, मु. देव, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल रंगे विनवें), ७७७१८-१ । नेमिजिन स्तवन, मु. धनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (उग्रसेन कीधू आजपइ), ८००६३-२(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. नित्यविजय, रा., गा. ५, पद्य, मप., (सूरति थाहरी हो), ७९४९७-२ नेमिजिन स्तवन, मु. परमानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (आज चालो रे सखी), ७८६६९-३ नेमिजिन स्तवन, मु. पावन शिष्य, मा.गु., ढा. ६, गा. ४२, वि. १६८२, पद्य, श्वे., (सकल सिद्ध प्रणमेव), ७९३७९, ८०३३८(#) नेमिजिन स्तवन, मु. प्रेममुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीजिन नेम मनावीया),८०००५-२ नेमिजिन स्तवन, मु. फतेह, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (हमसें नेह निवारी नेम),७९६१०-१(+-) नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (ओत्तरवालीओ नहि धनमाल), ७९३३०-३(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (ना करीये रे नेडो), ७९३१७-२ नेमिजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (नेमि जिणंदा हो महिर), ८०८२२-१ नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (घेर आवोने नेम वरणागी), ७९७३५-२(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (तोरणथी रथ फेर चल्यो), ८१०७५-१ नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (तोरणथी तरुणीने परहरा), ८०४५२-२ नेमिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (नेमजी कागल मोकले निश),७९८००-३(+-) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.ग., गा. १७, पद्य, मप., (सेवत श्रीरैवतगिरि), ७९५३९-२ नेमिजिन स्तवन, मु. ललितसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (राजुल नेमि प्रतइ इम), ७८९८२-३(#) नेमिजिन स्तवन, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनवे राणी राजिमति), ७८६२०-३ नेमिजिन स्तवन, मु. समुद्रविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (तुम नाम उपर वारी),८०४८८९-) नेमिजिन स्तवन, मु. हरख, रा., गा. ५, पद्य, मपू., (काई हठ मांड्यौ), ७८६२८-२, ८१२४०-४(#) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (जी प्रभु नेमजी नंद), ८१२३४-१ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (व्याह न करन प्रभुजी), ८११६१-१(2) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीसमुद्रविजय नरिंद), ७८९३७(६) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (समुद्रविजै सुत गुण), ७८९७०(#$) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (सुधै मन नेमीसर समरौ), ८१०६४-२(६) नेमिजिन स्तवन, रा., गा.१७, पद्य, मप., (हो जी माता शिवादेवी),७९०७८-१,८०१२१-१ For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५६० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन स्तवन- नवभव गर्भित, मु. नयशेखर, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपु. ( श्रीसहगुरुना पाय), ७८०३३-१ नेमिजिन स्तवन- सांमेला, मु. ज्ञानकुशल, पुहिं., गा. २९, पद्य, मूपू., (नेमजी राजीमती रमणी), ७८२१०(+) नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रावण सुदि दिन), ७८१५८(+), ७८८९४-२(+), ८०१७०-३ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय), ७८९७५-२, ७९८०८-१(३), ८००८०-६(२६), ८०१४२-४(१) नेमिराजिमती पद-केशरीया, मु. वल्लभकुशल, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जो थे चालो सिवपुरी), ७९३३६-२ पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. २५, पद्य, श्वे. (पणमवि पंच परम गुरु), ७८४३० (+5) पंचकल्याणक स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमिव पयकमल सुभ भावि), ८११३३ (+) पंचपरमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतना गुण बारा), ७९३२२-४) " पंचपरमेष्ठि आरती, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिली आरती अरिहंत), ७९७१०-२(+) पंचपरमेष्ठि वंदना, रा. गद्य, श्वे. (नमो अरिहंताणं नमो ), ८०४५३-२ (-) 13 , पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहे गौतम सुणो), ७८४१४, ७८७६२(s) पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहै गोयम सूणो), ७९७७०-१(+#), ७८९४२-२(#) पंचम आरे आयुमान, मा.गु., गद्य, म्पू, (मनुष्यनो १२० वरसनो आ), ७८७३६-३ पंचमहाव्रत सवैया, मु. रुघपति, मा.गु., सवै. १, पद्य, मूपू., (प्राणातिपात थकी), ७७९३८-३(+) पंचमीतिथि नमस्कार, मु. जीवविमल, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (नेमीसर पंचबाण गयगंजण), ८०३६९ पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरू चरण पसाउले), ७९२५२-२ पंचषष्ठि यंत्र विचार, मा.गु., प+ग., मूपू., इतर, (घर वर्ग पंच मंडप चोल), ७७८८६-५(+#) पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू (भगवति भारति पाए नमि), ७८६५७ पंचांगुलीदेवी स्तोत्र, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सामी सीमंधर पइ नमेवि), ८०७६० (+) पंचामृत कथा, पुहि., गद्य, श्वे. (एक नग्रसे एक साहुकार ), ७७८९९-२ " पकवान आदि कालमान विचार संग्रह, मा.गु., गा. १, प+ग, श्वे., (वासीसु पनर दिवसो), ८०३१३-१ पट्टावली अंचलगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिणइ कलिकाल तणइ योगइ), ७९०२३(#) पट्टावली खरतरगच्छीय, रा. गद्य, भूपू (सुधर्मास्वामि ५०), ७९३८७ पट्टावली-तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन संप्रति), ७७६४१ पट्टावली लोंकागच्छीय, रा. गद्य, वे. (श्रीमहावीरस्वामीने), ७९०५८-२ ,, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पट्टावली लोंकागच्छीय, मा.गु., गद्य, श्वे., (हिवै अनुक्रमै पाट), ७७९१०($) पत्रलेखन पद्धति-श्रावकों की तरफ से गच्छाधिपति को पत्र, पुहिं., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसकलश्रेय), ८०२४३ पद प्रमाण, मा.गु., गद्य, श्वे. (५१क्रोड ८ लाख ८४ हजार), ७८८९१-४ " पद्मप्रभजिन स्तवन, उपा. उदयरान, रा. गा. ५, वि. १७९८, पद्य, मूपू., (साहिबा धारी मूरतिरी), ७९८५२ - ३(क) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपद्मप्रभू राजियो), ८११७३-१(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु. ( कागलीयु करतार भणी), ७९१५६-१ " पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३६, पद्य, श्वे. (प्रह उठी प्रभाते), ७९७८६-१ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( पदमप्रभुना प्रेमसु), ८१०१६-३(#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (पद्मप्रभु जीण राजक), ७९९२३-४(+४) . पद्मप्रभजिन स्तवन-पदस्थध्यान गर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (पद्मप्रभना नामने), ७८६३६-३(१) पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ७८०३४(+), " ७९३६८-१(*), ७९५५७-१(+), ८०१४६ (*), ८०२१७ (+), ८०३७७-१(+), ८०७२२(१) ७८१९३, ७८३७६, ७९०९६ १. ७९४४२-१, ७९७२५, ८००८७, ८००९०, ८११०३, ८१२३७-१, ७८२३२(७) ७९८६०(१), ८०४२२-१(४७) ८००८१ (३), ८०७९९-१($) For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ पद्मावती आराधना बृहत् जीवराशिक्षमापना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ३, गा. ८२, पद्य, मृपू. (हिवे राणी पद्मावति), ७९१४५ (**७), ७८९९९, ७८७५८(३) पद्मावतीदेवी स्तवन, मु. सुजस, रा. गा. ७, पद्य, मूपू., (जे जगदीसरी संघ सकलनी), ७९९५८-१(७) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, मा.गु, गा. १३, पद्य, मूपू. (पणमवि सवि अरिहंत), ७८०१४-२ (६) परदेशीराजा लावणी, मु. तेजमल, पुहिं. गा. ७. वि. १८६७, पद्य, म्पू. (एक स्वारत की संसार), ७८२४५-२ " " परमार्थ हिंडोलना, क. केसवदास, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि. ?, (हरख हिंडोलना झूलत), ७८७७१-३(+$) परिगृहिता अपरिगृहितादेवी आयु बोल यंत्र, मा.गु. यं. म्पू, (--), ७८५०८-१) " पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ७८६८६-५ (+) पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू (प्रणमुं श्रीदेवाधि), ७८६८६-४(३) पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुंजय शृंगार), ७८६८६-३(+) पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु. गा. ३, पद्य, भूपू (सुपन विधि कहे सुत), ७८६८६-६ (+) पर्युषण पर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (श्रीशत्रुंजयमंडणो), ७९९१७-२(१०) पर्युषणपर्व व्याख्यान गहुंली, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामीने), ७८३४५(+$) पर्युषण पर्व व्याख्यान - जिनपूजादि आराधना, मा.गु., गद्य, भूपू (आज पर्युषणा पर्व), ७८६८४(३) , "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " पर्युषण पर्व स्तुति, आ.जिनलाभसूरि, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुं घ्यावं), ७८६३३-१, ७८५४०-१(MS), ७९८०८-६ (MS) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमां अषाड), ७८५०१-१ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अतिअलवेसर), ७९६१३-२ (+$), ८०८१७-२(+), ७८४६८ (३(१) पांडवसंदेश सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे. (इण अवसर आयो तुरत पही), ७९७०५-२(+) " पर्युषण पर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ७९०७११, ७९२५२-१, ७८४६८-२ (४) पर्युषण पर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परख पजुसण पुन्यें), ७९०७१-२, ८०१७०-१, ८०८६४-३ पर्व आराधना व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७८६८५ ($) पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु. ख. ९ डाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू. (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ८०७३१(३), ७९६८६($), ८०६९३-१) (२) पांडव रास-ढाल-३३ से ३४ अंतरढाल, संबद्ध, मु. माणकचंद, मा.गु., ढा. २, गा. ८९, पद्य, मूपू., (घोडो रे मेले मोकलो), ७९७९६ पांडव संयमव्रत सज्झाय, मु. कुशलमुनि पुडिं, गा. १०, पद्य, भूपू (पांडव पांच महाबलवंता), ८००९५-३(क) " पाक्षिकतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. २, गा. १४, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीप सोहामणो), ७८६७८ पापबुद्धि धर्मबुद्धि चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (आज अपूरव वचन रस), ८०६८१ (+$) पार्श्वजिन १० भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीप भरत क्षेत्र), ७८४८० ५६१ पार्श्वजिन ८ प्रकारी पूजा, आ. दीपरत्नसूरि; श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पूजा. ८, पद्य, मूपू., (क्षीर जलनिधि नीर), ७९२४८ पार्श्वजिन आरती, य. अगरचंद, पुर्हि, गा. ५, पद्य, म्पू, (आरती करत श्रीपासजिणं). ७९१२२-२ For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन आरती, मु. जयकीर्ति, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (जै जै पारस आरती कीजै), ७७८०८-१ " " पार्श्वजिन आरती, मु, मतिहंस, पुहि गा. १०, पद्य, मूपू. (पहिली आरती आससेण), ७९०५७-२(+) पार्श्वजिन आरती, आ. विमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भव भव आरति टालि हमार), ७८५६९-१ पार्श्वजिन कलश-मांगरोलमंडन, मु. महिमासागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसुराटदेस मध्ये), ७९९१०-२(+) (मेरे एही ज चाहीई), ८००५२-१ , पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू. पार्श्वजिन गीत- लोद्रवपुर, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (आज आस फली चिंतामणि), ८१२२८-३(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय जिणवर जय जगह नाह), ८१२६१-३(#) पार्श्वजिन छंद, मु. चानत, पुहिं. गा. १०, पद्य, मूपू (नरेंद्र फणींद्र), ७९५२७-२(5) Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन छंद, पुहिं., पद्य, मूप., (--), ७८६८७(६) पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सरसत मात मना करी), ७९७९५-१(+), ७८४०४-२($) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा.५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति),८०७४२(+#), ८१००१(+#),७७८५२(#), ८१०७०-१(#s) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (सरसति सुमति आप), ७७८१४, ७८४८४(2) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. प्रीतविमल, मा.गु., गा. ५५, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मावादनी), ७९२९५ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सरसति दे तुं सुमतिमत),७९९८७(+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, म्पू., (सुवचन आपो शारदा मया),७८४२०(+$),७९५९०(+),७९४३४ पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, मु. चेतन, मा.गु., ढा. २, गा. २६, वि. १८३७, पद्य, मप., (कल्पवेल चिंतामणि), ७८०८६ पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, मपू., (आपण घर बेठा लील करो), ७८८०२-२(+), ७९५४८-७(+), ८०८७२-२, ७९८६७(#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूप., (पास शंखेश्वरा सार), ८०९२६-२ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ८०९३८-१(#), ८००८२-२,८०७३६-१, ८०७८७, ८१११६-३,७७८७४-२(#) . पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपूरवर पासजिणंदो), ७८५०६(2) पार्श्वजिन जन्मोत्सव पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज हमारे घरि आणंदा), ७९७३१-२(+#) पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. २७, पद्य, मप., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ७९९४६(+), ८०४५४(+$), ७९२९१-१, ७७७२९-१(#), ८०७४८(2), ७७९८९-१(६), ७८०३३-२(६), ७९८१९(5) पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), प्रतहीन. (२) पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित-जन्मकल्याणक पूजा ढाल, हिस्सा, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (रमति गमती हसुनें), ७९६११-१(+), ७९९९३ पार्श्वजिन पद, मु. अमियपाल, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (सुरनरगण गंधरप जाकइ०), ७९८५१-४(+#) पार्श्वजिन पद, पं. आनंदविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (पास जिनंद सदा), ८००९१-५(2) पार्श्वजिन पद, मु. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (रूप भलौ जिनजी कौ), ७९८२२-१ पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नित नमीयै पारसनाथजी), ७८०९१-२०(#) पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (मेरे मन मानी साहिब), ७८१२१-२ पार्श्वजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (अजी तुम भज लो), ८००९५-१०(+) पार्श्वजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (जोडी थारी कौन जुडेलो), ८०१७५-३($) पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद ऋषि, मा.ग., पद. ३, पद्य, श्वे., (श्रीजिनराज सदाइ जाकै),७९१७०-२ पार्श्वजिन पद, मु. वीरचंद, पुहिं., पद. ६, पद्य, म्पू., (तेरी छिब नहीं आवै), ८११४०-३(4) पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेवीसमा जिनराज जोडी), ७९३७४-१(२), ७९३७४-५(2) पार्श्वजिन पद, मु. सुखसागर, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (तु मेरा मनमै प्रभु), ७८८०२-३(+) पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (उगतडां प्रभातजी पास), ८००९५-१२(+) पार्श्वजिन पद, मा.गु., पद्य, मपू., (कामणगारी हो पासजी तु), ७८१३३-२(#$) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (हारे प्रभु पास), ८०८८६-३(+#) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (हां हे श्रीपारस सेतो), ७८९४७-६(2) पार्श्वजिन पद-अंतरीक्ष, पुहिं., गा. ५, पद्य, पू., (चिहुं ओर वजन लगे इंद), ८०१३८-२ पार्श्वजिन पद-अमीझरा, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (श्रीगिरनारै पास नमिय), ७९२६१-२(+) पार्श्वजिन पद-अवंतीमंडन, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंथीडा पंथ चलेगो), ८१०७४-२ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. ज्ञानमहोदय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (औषध गोडी पासजी तुम), ७९१००-३ For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५६३ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनवचकाया वश करी रे), ७९४१७-४ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मपू., (सरस वचन दे सरसती एह), ८०४४६(+) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (गोडीराय कहो वडी देर), ७८६७५-२ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, श्वे., (पन्य जोगे मे पामीयो), ८०४०६-२(+$) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (भौर भयै भजि श्रीजिन), ८०८९६-१२(2) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (चिंता वेग हरो), ८११६०-२(+) पार्श्वजिन पद-पंचासरा पाटणमंडण, मा.गु., गा. २, पद्य, मपू., (जिनंदा तेरो दरिसन), ७९७३५-१(+#) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. वीरविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजब जोत मेरे प्रभु), ८०९८४-२ पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावण पावस उलह्यो), ८०३९३-५(+$) पार्श्वजिन लावणी, मु. आणंदविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ प्रगट),७९७३० पार्श्वजिन लावणी, मु. दोलत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (तेवीसमा जिनराय भजो), ८०८४५-२(-2) पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, श्वे., वै., (प्रणमुं परमातम अविचल), ७९५७९, ८१२५३ पार्श्वजिन सलोको, मु. हरख, मा.गु., गा.१३, पद्य, मप., (चरम जिणेसर प्रणमी),७८९५५-२(2) पार्श्वजिन सवैया, मु. केशवदास, पुहि., सवै. २, पद्य, भूपू., (प्रतपै प्रभ जास भले), ७९४१६-२($) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ध्रुवपद रामी हो), ७८८५६-२ पार्श्वजिन स्तवन, पं. आनंदविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आज आनंद दे हो सोभागी), ८००९१-७(२) पार्श्वजिन स्तवन, पं. आनंदविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (ऐ तो श्रीजिनपास), ८००९१-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २४, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभजिणेसर पाय), ७७९५९(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. २२, वि. १७३०, पद्य, मपू., (तारक देव त्रेवीसमो), ७७८०३-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कविराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज अरदास निजदास जाणी), ८०९१४-२(+), ७८७५७-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कहान ऋषि, मा.गु., ढा. ५, वि. १८४९, पद्य, मूपू., (श्रीपरमगुरु पाय प्रण), ८००३७(१) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (गुरु प्रणमी पाया गाउ), ७९०१४-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. कांतिसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (पास जीनंदासु लगी),७९८१८-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीसुगुरु चिंतामणि), ७८४८६-३, ७८८३५-१(#$), ७९२४३-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ५, वि. १८४७, पद्य, पू., (आज हमारै हरख वधाई), ७८५९१-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (पासजिणेसर पूरण आसा),७८६२७-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्राण पीयारा जी हो), ७७६४३-२, ७९७३८-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (अरिहंतजीरी अजबसूरति), ८०९७४-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (मन मोहनगारो साम सहि), ७७९८९-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (हेली जेसलनगरे रे),७९२७८-४(+) । पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (जय बोलो पास जिनेसर), ८०४२८-५(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुजी ऐसो समरथ), ८०८०४-११ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनरंग, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (मे मुख देख्यो पारस), ७८९६८-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (वयण अम्हारा लाल हीयड), ७८८३५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनराज नाम तेरा राखु), ७८९५२-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सुणीयो अरज हमारी मै), ७८४५९-३(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुगण सोभागी साहब),७९५१२-२(+$), ८०४४१-५(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सांभलि सहीर वातडी), ७९०८५-६(+$) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूप., (अंखीयां हरखण लागी), ७७७३२-६(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (जिन पास बडे धमचक्कु),७९८२२-५ For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पासजी प्यारा मनमोहना), ७७७३२-१६(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुखदाई आई वरदाई सरसत),७७७३२-१८(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सेवो पासजिनंदा सेवो), ७७७३२-७(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (वामानंद मुझ मनमे वस्), ७८१०७-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. द्विजनाथ ऋषि, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (संपत सुदगत के दाता), ८११७५-५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नयसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एकल मल छे आधार रे), ८०२३९-१(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. नेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वारु वारु रे म्हारा),७९२७२-३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. २३, वि. १६६५, पद्य, मपू., (विमल जस वास सिरि), ७७७९१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. माणिक, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (कागद केसें पढाऊ), ७७७८२-१(5) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (पासजी प्रगट प्रभावी), ८११७३-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (अंतरजामी जगतजनेता), ८१०१६-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम ही), ७७८०३-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. रत्नविजय, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनराज के चरन), ७८९४७-७(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (पर उपगारी जी पास), ८०९४७-७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सहु मिलि आवो हे सहीय), ८०९४७-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४१, पद्य, श्वे., (वामा राणीये एक जायो), ८१११६-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनवरजी हो अरज सुणो), ८०१३१-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, मूपू., (पासजिणेसर तुमने), ७९४७५-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. वीरचंद, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (दुख भागा मेरा दुख), ८११४०-५(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (अब हम है श्याम सरण), ७९३०९-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मप., (अहोनिशि सेवो रे),७७८९०-२(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (आज सुदिन भाइ मे जिन), ७८९०९ पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (चतुर नर मनकु समजाणा), ८१००४-१६(2) पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, मूपू., (तुठो झक जाये भमरजीर), ८०८५२-४(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (त्रेवीसमो जिनराज), ७९२७३-४($) पार्श्वजिन स्तवन, पुहि., गा. ८, पद्य, पू., (मोहि आश क्यूं दै रे), ८१००४-२१(2) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सेरीमाहे रमतो दीठो), ७८६३८-२(2) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, म्पू., (पूर मनोरथ पासजिणेसर), ७८८७१(+$), ७९३५४(+), ७९३९९(+), ८०२४७, ८०९२१, ८१२२२() पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पारसनाथ प्रह), ७८१९९-२, ८०२१५ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू., (प्रभु पासजी ताहरो), ७८७३४(#) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८५५, पद्य, मूपू., (अंतरिक्षप्रभु अंतर),७९०९२-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, ग. रंगकलश वाचक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (अंतरीक पासजी महिर),७८९५२-६(5) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, वा. विनयराज, मा.गु., ढा. ४, गा. २७, वि. १७७२, पद्य, मपू., (पर उपगारी परम गुरु), ७७८४३(+) पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (तपवर कीजे रे अक्षय), ७९२२३ पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), ७८०४८-१(#), ७९५१०-१(+), ८०३२०(+5), ७९४३३, ८१०२७-१(#), ८०१३७(5) पार्श्वजिन स्तवन-अहिमदपुरमंडन, मु. धर्मसुंदर, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि मागीइ ए), ७८४६१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीथलपति थलदेशे), ७९१०३(१) For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (लाखेणो सोहोवे जनजी), ७९८५२-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जगगुरु श्रीगोडीपुर), ७९८०४-१(+#), ७७९३९-१, ८१२४१-१(२) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (अमल कमल जिम धवल), ७९०५६, ८०१४०-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १७८८, पद्य, म्पू., (मूरति मोहनगारी मोने),७७७५४-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुजरो लेज्यो अर०गढ उ),७९०८५-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ज्ञानसागर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (अनीकी मुरत पाश की), ७९४१७-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (मिता चालो तो जिनजि), ७९४१७-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. २७, वि. १८१८, पद्य, मूपू., (--), ७८१०७-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. दयाधीर, मा.गु., गा. २२, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (गुणगावो गौडीतणा राचौ), ७८६४४-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुणज्यौ गोडीजी), ८०९८२-४($) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (लाखीणो सोहावें जिनजी), ८०७८३-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. परमानंद, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (मे तो तेरा बंदा), ७८६६९-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा., गा. ५, पद्य, मप., (मुजरो थे मानो हो), ७७६२१-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुजस तुम्हारो हो), ८०९४७-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जिनजी सुण हो तेवीसम), ७९४५५-२(2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपविजय, रा., गा.७, पद्य, मपू., (पुरसादाणी पासजी थे), ७८५२०-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वसता, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (जोर बन्यो जोर बन्यो), ८०२९८-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. सुमतिसुंदर, मा.गु., गा. २०, वि. १६९६, पद्य, मपू., (पुरुषादेय उदय करु), ७८६४४-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सुमतिहंस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (तुं त्रिभुवनरो नाहलो), ७८२१७-३(+), ८०८८६-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सूरविजय, मा.गु., गा. २६, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (सरसति देवीने नमी), ७८२५३,७९१४८-१(2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उ.,मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (गोरीपास गरीबनिवाज),७७६७७(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा. ७, वि. १८३९, पद्य, मप., (धन धन पारकर देश धन), ७७७५४-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. कुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीचिंतामणी पास पास), ७९१९३-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. ज्ञानमहोदय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चिंतामणी चिंता सब), ७९१००-२ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (नीलकमल दल सामली रे), ८००५७-१ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव), ७९५४८ ६(+),८०१८८(+),८११४१-१,८०१२४-१(-) । पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. सोभाचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहो श्रीचिंतामण पास), ७९८२२-४ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि वटप्रदमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (जय जय गुरु देवाधिदेव), ८०९००-२ पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (जिनप्रतिमा हो जिन), ७८५२०-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, मु. विवेकविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अलखनीरंज अज अवीनासी), ७८८५७-४(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरमंडण, मु. ललितसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमी गुरुपय अरविंद), ७८९८२-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरमंडन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (छांजि छांजि छांजी), ७९३३१-३ पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (परम पुरुष परमेसरु), ७९३३०-२(+#), ८०५७७(+), ८०७४३-५ पार्श्वजिन स्तवन-पहवीहारमंडण, मु. ललितसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (--), ७८९८२-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पाटणमंडण, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (श्रीमनमोहन स्वामी), ८०१६४-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पाटणमंडण, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (--), ७७९११(#$) पार्श्वजिन स्तवन-पुरूषादानीय, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमातमा), ७९२३०-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-पोशीना, मु. कल्याणविजय शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसति समरी कविजन), ८११३६-२(2) For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उठो रे मारा आतमराम), ७७६३५-२(+), ७९१२२-३ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वंछित फलदायक स्वामी), ८०१७३-१ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (देव सकल सिरसेहरौ लाल), ७८५२०-१(+), ७९१७०-४ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरि), ७९२९१-२, ८००८२-१($) पार्श्वजिन स्तवन-बृहत् गोडीजी दशमीतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, पद्य, मपू., (पास जिनेसर जगतिलोए), ७९५१२ १(+),७९२३९-२,८०३४७(#) पार्श्वजिन स्तवन-भटेवा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (भटेवा पासजी रे भेट), ७९०८५-१(+$) पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, वा. जय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वामासुत हो साहिब), ७७८२५-१ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जाय छे जाय छे जाय छे), ७९८००-२(+-),८०४२७-२ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा.५, वि. १७७८, पद्य, मपू., (श्रीभीडभंजन प्रभु), ७८२२९-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूप., (आज प्रभु खूब बनी है), ८०९८२-३ पार्श्वजिन स्तवन-मोढेरा, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (श्रीपास जिन जगदीसरू), ७८५३२ पार्श्वजिन स्तवन-रोगहर, मु. चेतन, पुहि., गा. १९, वि. १८५९, पद्य, मप., (ॐ ह्रीं अरिहंत सिद्ध), ७८४९०-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-लोढणमंडण, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीलोढण प्रभुपासजी), ७९१४८-७(#) पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज फली रे जिनराज निज), ८१२२८-२(2) पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर-चिंतामणी, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९११, पद्य, मप., (तीर्थपति त्रेवीसमा), ७९८३१-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-वडोदरामंडण, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जी रे सकल मनोरथ मुझ),७९०१४-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. रूपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (मन समरण करि जीनपासतण), ७९२२५-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (जयजय श्रीजिनराय),८१२२८-१(2) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काइ रे जीव तुं मन), ७९१७०-३ पार्श्वजिन स्तवन-वाराणसीमंडन, मु. रूप, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जय जय हो तिहुअण राया), ८००४६-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-वृद्ध, मु. चारित्रकीर्ति, मा.गु., गा. २१, वि. १७७७, पद्य, मपू., (धन धन कासीदेस कहीजै), ७७९७६ पार्श्वजिन स्तवन-वृद्ध चिंतामणि, मु. कुशलधीर पाठक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (तेवीसमो जिन ताहरो), ७८६६०-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल मंगल तणी कल्प), ७९९५५(+), ८००८९-१(+#), ७८०२७ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.७, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर पासजी रे), ८०९५९(2) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), ७९४७३-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ७९७७४, ८००७०-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पं. रंगविजय गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (श्रीशंखेश्वर साहिब), ७८८५७-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (संखेसरपुर सोभताजी), ८०९४७-४ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अश्वसेनकुल दिनमणी), ७९२७३-३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गगन छायो घनवादल रे), ७९२७३-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पुरिसादानी पासजी),७९२७३-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मा.गु., पद्य, मपू., (संखेसर सुखकारी प्रभु), ७८६७०-५(#$) पार्श्वजिन स्तवन-शामला, मु. ज्ञानविमल, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब पासजी), ७७७३२-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-शामला, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (सामल पार्श्वजिनेश्वर), ८०८०१(#) पार्श्वजिन स्तवन-शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३०, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (स्वामि सुहंकर श्रीसे), ७८६२३(#) पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मप., (श्रीजिनशासन सेहरो जग), ७९६६२ १+s), ७८९४२-१(#$), ७८९७६(#) पार्श्वजिन स्तवन-सोजत, मु. केसर, पुहि., गा. ७, वि. १८४२, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर साहिबाजी), ८०००४-२(#) For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुरे पास), ७८३९८(+), ७९४४१-१(+), ८०७८१-४(+$), ७७६४३-१,७८४७२(#) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (अश्वसेन नरेसर वामा),७९४०७-२, ७८४८७-५(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. ९, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पास जिणंद कि), ८०५४०-२(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. नयसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मो मनमंदिर आइ), ८०२३९-२(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपास जिणेसर पुजा), ७९६४२-१(+), ७७९३०-५, ८०८६४-२,७८४६३ ४(#s) पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सकल करम खल दलन कमठ), ८०९८४-४(६) पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, पं. आनंदविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोहनमूरत पास विराजै), ८००९१-२(#) पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, पं. माणिकविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (दोलतीयो दादो नयणे), ७९६४२-३(+) पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. लब्धिरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रीजिन गोडीपार्श्व), ७९६४२-४(+) पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय पास देवा करूं), ७९६४२-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सकल सदा फल चिंतामणि), ७९२८१-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पा. कमललाभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीचिंतामणि पासजी), ८१२२७-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-मंत्रमय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (पासह समरण जो करइ),७८३२६-२(+$) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसकल सार सुरतरु), ७८४१५-१ पार्श्वजिन होरी, मु. भावविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (रंग मच्यो जिनद्वार च), ८०१६५-२(#) पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ७९३७४-२(#) पार्श्वजिन होरी, मु. सिवचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरी लगी लगन प्रभु), ७९४७२-२ पार्श्वजिन होरी-चिंतामणी, मु. जिनलाभ, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (जिन मिंदिर जयकार ऐसे), ८११८५-२(+) पुंडरिकगणधर स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (एक दिन पुंडरीक गणधरु), ७९९५६-१ पुण्य छत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६९, पद्य, मप., (पुण्यतणां फल परतखि),७९४४०-३(+#), ७८०८९ पुण्य पच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २९, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (पोते पुन्य हुवे जेहन), ८०९४४-२(+) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), ७८१२३(+$), ८०३९२(+$), ७८५४६(#), ७९७१५(६), ८०१०९(s), ८०९८९(5) पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. ९, गा. २०५, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (नाभिराय नंदन नमु),७७९८२(६), ७९८८८(5) पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (द्रव्य क्षेत्र काल), ८०७७८(+), ७८५३६ पुद्गल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पुद्गलनो विचार), ७८०९२(-६) पुप्फचूलासाध्वी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८४७, पद्य, स्था., (संतनाथ जिन सोलमो),७७९५४(+) पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., ढा. १२, गा. ३७६, पद्य, पू., (वरदाई श्रुतदेवता), ७८१६५($) । पुरोहितपुत्र सज्झाय, उपा. सहजसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. ६४, वि. १६६९, पद्य, मपू., (सहज सलीणा हो साधजी), ७८३७५(+) पुलाकबकुशकुशीलादि पंचभेद साधु विवरण, पुहि., गद्य, श्वे., (--), ७८७६१(६) पूजाष्टक, श्राव. प्राणलाल सेन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्षीर नीरसु नीर), ७९५३३ पूजासामग्री कोष्ठक, मा.गु., को., मूपू., (--), ८०६८५-१ पूर्णिमातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (जिनपति संभव संजम), ७७९३०-३ पोषदशमी स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु परमेश्वर पासना), ८११०६ पौषधव्रतमहिमा सज्झाय, मु. रत्नचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (दृढ आत्मा जिणमें), ७७७४८-११(६) प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. आणंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (समकितवंत सदा), ७८६३९-१(2) प्रतिमासंबंधि बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावकनां बार व्रत), ८०७४४ For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १७, वि. १७उ, पद्य, मूप., (धुरि समरं सामिणी), ७९७५७(+) प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८७७, पद्य, स्था., (तिण कालनै तिण समै), ८०२३०(+$), ७८९८४(5) प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरि वैताढ्यने उपरे), ७८९२४, ८०२०७ प्रभातिजिन स्तवन, मु. जीन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (पूरव दिश जिन तणी रे), ७८२०१-१ प्रभातीजिन स्तवन, पुहि., गा. ८८, पद्य, श्वे., (सीध श्रीप्रभातमा), ७९५५२-२(+) प्रभावतीगुटीका कल्प, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (हलद्र १ नींबपत्र २), ७७६६६(5) प्रश्नोत्तररत्नमाला, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ६२, वि. १९०६, पद्य, मूपू., (परम ज्योति परमात्मा), ८०९२३-१ प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुमारा पाय), ७८५०१-२, ७९५०१-५, ८०४१५ प्रहेलिका दोहा, पुहिं., दोहा. १, पद्य, वै., इतर, (अहिफण कमल चक्र टणकार), ७७७०२-३(+) प्रहेलिका पद-श्रावक, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (जाजमरी नहि जंगत),७८६७५-१ प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (पवन को करें तोल गगन), ७८९०२-२(+), ७९३२४-४ प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., गा. ८, पद्य, जै., इतर?, (सरोवर पाय पखारति), ८०८५९($) प्रहेलिका सवैया-क्षत्रीयाणीपातशाह संवाद, पुहिं., पद्य, इतर, (अते खतराणी दीनदुति), ७७९३४-३ प्रात:मंगल पद, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रणमी ते निज गुरु), ८०४०७ प्रास्ताविक कवित संग्रह, पुहिं., पद. ११, पद्य, श्वे., इतर, (माता पिता जुवती सुत), ८०७९०(#$) प्रास्ताविक कवित्त, मा.ग., गा.१५, पद्य, वै., इतर, (घेर तो राणा राजीया),८०८४८-१ प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहिं., गा. २५, पद्य, इतर, (प्रीतिकाज छंडिजै), ८११४१-५ प्रास्ताविक कुंडलियानी बावनी, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ५७, वि. १७२४, पद्य, श्वे., (ॐ नमो कहि आदीथी), ७९५९८($) प्रास्ताविक ढाल, रा., पद्य, इतर, (थे दिली म्हे आगरे), ८१०००-५(६) प्रास्ताविक दोहा, पुहिं., दोहा. १, पद्य, इतर, (सावन की घनघोर घटा उह), ८०१९७-२(+) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ७, पद्य, वै., इतर, (एक गोरी दुजी सांमलि), ७७६५३-२ प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं.,मा.गु., गा. ७१, पद्य, श्वे., इतर, (पडिवन्नइ माछा भला), ७८३३५-४(+#), ८११३६-३(#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., गा. २५, पद्य, वै., इतर, (बुरी प्रीत भमर की),७९६१४-३१(+),७९८६४-२(+#), ८०४०८-२(+), ८०६००-४(+), ८१११२-१(+), ७८८६७-३, ८११४१-३, ८०४५३-७(-) प्रास्ताविक पद, क. मान, मा.गु., गा. ७, पद्य, वै., इतर, (गाडा में नाव अर नाव), ८११४१-४ प्रास्ताविक लावनी, कालुराम, पुहिं., गा.५, पद्य, वै., इतर, (नाचत कवरी के नंदन), ७९१८१-४(#) प्रास्ताविक सवैया, सुंदर, पुहिं., सवै. १, पद्य, वै., इतर, (सुखासन सवारी गज घूमत), ७९१५८-३(#) प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पुहिं.,मा.गु., गा. ३, पद्य, जै.?, (एक ही मातपिता तस),७९१५८-४(#$) प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूप., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), ७९३४६ फूलडा सज्झाय, पुहिं.,रा., गा. २२, पद्य, मपू., (बाई रे कोतिग दीठ), ७९३९३-१, ८००९३ (२) फूलडा सज्झाय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर मोक्ष), ८००९३ फूलपूजा दोहा, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मोगर लाल गुलाल मालती), ७९९१०-३(+), ८१०९५-२ बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र-८ कर्मविषये, मा.गु., को., मूपू., (--), ७७६०२६) बत्तीसजिन नाम-तृतीयमहाविदेह क्षेत्र, मा.गु., गद्य, मपू., (१ श्रीधर्मदत्तनाथ), ७९६२५-२ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तुंगीआगीर सीखर सोहे), ७८४१८-१(#) बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकलमुनि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बलदेव महामुनि तप तपइ), ८१०६६-१(4) बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (द्वारकानगरथी नीसर्या), ८०९६०(+) बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, श्वे., (श्रीपति नित जिन वंदी), ७९०९४-१ बाई सज्झाय, मु. मोतीचंद, रा., गा. ३२, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (बेठे साधसाधवीया रे),८०४४५-२(#) For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ बारसतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जे बारसने दिने ज्ञान), ७७९३०-१ बालासुंदरी आरति, मु. अमर, मा.गु., पद. २, पद्य, श्वे., वै., (तै करनी आरती), ८१०४२-५(+#) बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (परणे रे बाहू रंग), ७८०१२-१ बाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साहिब बाहु जिणेसर), ८००७०-३($) बाहुबली सज्झाय, मु. न्यानसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीराजी मानो वीनती), ७९७३२ बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहूबली वन काउसग), ७७६१९ बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (बीज कहे भव्य जीवने), ७८५६१-२(2) बीजतिथि स्तवन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १२, पद्य, मूपू., (हारे मोरे सयल सुंह), ७८१७७ बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, वि. १८७८, पद्य, मप., (सरस वचन रस वरसती), ७९४२२-१ बीजतिथि स्तुति, मु. आणंदरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंद्र विमानि कह्या), ७९६८९-१(#) बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बीज जिनधर्मनुं बीज), ७७९३०-२ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ७८१५९(+), ८०१७०-२ बीजतिथि स्तुति, मु. वीरसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (पूर्वदिसि उत्तरदिशि), ७८७८३(+) बीबी का गहना दोहा, पुहि., पद्य, इतर, मु., (कर मरदानी वेस भली), ७९०९८-२(#) बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., ढा. १२, वि. १८४५, पद्य, श्वे., (जंबुद्वीपनै भरतमै), ७९५४६(+) बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ७८३०४($) बुढ़ापा रास, रा., ढा. १५, गा. १२७, वि. १८४५, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्ध साधु), ७८५९५(+) बुढापा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुगुण बुढापो आइयो), ७८४०४-४($) बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मपू., (प्रणमुं देवी अंबाई), ७८१९०(+$), ७८२०२(+#$), ७८६५८(+#), ७९४९७ १,७९७००, ८०३६७-१, ७८६६६(#), ७७९१२(६) बेला तेला ग्रहण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम देहरे निसही कह), ७९२५५-१,७९२५५-२, ७९२५९-१, ७९२५९-२ बोधदायक कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, जै., वै.?, (जिम एक वाणीउ अनइ), ७९८४२-६(2) बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानावरणीय ३०), ७९०४७(+), ८१०८३-३(+#), ७९३८४-६, ८१०६७-६, ८१०५४(#), ८१२१९(2) बोल संग्रह-एकदव्यादि संख्याद्वारबद्ध पदार्थ बोल, मा.गु., गद्य, मप., (२ना बोल राग ने द्वेष),७८८९१-१,७८२४८(5) बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पेले बोले समुद्रमा), ८०३८७, ७८७३७-१(2) ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (कंपीलपूर नगरने विषे), ७९८४२-३(#) ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती विवरण, मा.गु., गद्य, मपू., (ब्रह्मदत्त चक्रवर्त), ८१२२४-२(45) ब्राह्मण वर्णन गीत, नानो, मा.गु., गा. ७, पद्य, जै., वै.?, (हुं ते ब्राह्मणने), ८०९००-१ भरत ऐरावत जीवभेद, मा.गु., को., मूपू., (तिर्यंचना ४८ मनुष्यन), ७९९२२($) भरतक्षेत्रादि परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (भरतक्षेत्र ५२६ योजन),७९७७६-२(+) भरतक्षेत्राधिष्ठायक भरतदेव विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरक्षेत्रनो अधिष्ठाय),७८६९४-४(+) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, वि. १९४५, पद्य, श्वे., (मुगतपद पाया हो), ७९४४५-४, ८१०१२-१ भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (आकार अलुकार सबही),७९८४६-२(2) भरतबाहुबली चौढालिया, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (--), ७९९३६($) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३८, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीवरवा), ८०१४९(+$) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (इम नवि कीजि हो सगुण), ७८९३८(#) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहुबल चारित लीयो), ८०३९३-१(+$), ७९९८०(#), ७९४७५-३(5) भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), ७९४०४-२ भरतबाहबली सज्झाय, रा., गा.८, पद्य, मप., (हव भरथ कह भाइ भणी थे), ७८५६८-२(-) For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ भरतबाहुबली सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ७९५१५(+#$) भरतबाहुबली सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६८, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमुं माता), ७८२८०(६) भर्तृहरीराजा पद, कालू, मा.गु., गा. २१, पद्य, वै., इतर, (मोती वैरागर छै घणा),७८११९-४(2) भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालागमन पंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रभु नीशाल बैठा), ७९५७०(+$) भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८७२, पद्य, स्था., (भवदेव जागी मोहनी तज), ७९५६७-५, ७९८५९ भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मप., (भवदेव भाई घरे आवीयो),७९८८७, ७९८१५(#) भवानीदेवी घघर निसाणी, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (खेजडले थान भवानी हां), ८०७३३-१(+) भावना सज्झाय, मु. कुशलसंयम, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पाय प्रणमी रे भगति), ७७९८१(+$) भावपूजा स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सरसत गुरुदेव प्रणमी), ८००५३-१, ८१२५५-१(#) भावपूजा स्तवन, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., (पंडित पूजा कहिए सोही), ७९३२४-२ भाव प्रतिक्रमण, मा.गु., गद्य, स्था.?, (बार गण श्रीअरिहंतना), ८०१९६(+) भाविनीकर्मरक्षित चौपाई, मु. नित्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ७९९९०(5) भाविनीकर्मरेखा चौपाई, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीश्रेयांस इग्यारम), ८०६७०($) भाषाभूषण अलंकार, जसवंतसिंघ भूपती, मा.गु., गा. २१२, पद्य, वै., (विघन हरन तुम्ह हो), ७९७१९-२($) भीमराज यशोगाथा चौपाई, मा.गु., पद्य, मपू., (ब्रह्माणी वरदायणी), ८१०१५-२(#5) भीमसेनचंद्रावती चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मपू., (एक मुनी आगल थयो तीणे), ७९८८० भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (सरस्वती स्वामीने), ७९१६५, ८०८३१ भुजंगजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामि भुजंगम ताहरो), ७८९९५-२(2) भुवनेश्वरी छंद, मु. गुणानंद-शिष्य, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे., (प्रणमी पार्श्व जिनंद), ८११३७ भेरी संबध, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (सासण नायक सीवरीये), ८०८४९(+) भैरुजी स्तुति, मु. अमर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (--),७९५१६-१(5) भैरूजी स्तुति, मा.गु., पद्य, मूपू., (भैरुजी गढ मंडोवर), ७९९५८-४(#$) भोगोपभोगपरिमाणव्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अव भोगोपभोगपरिमाण), ७८८८६-२ भोगोपभोग वस्तुनाम गाथा, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (एक बार जे भोगमां आवे), ७९२५२-३ भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (त्रिशला राणी कहै), ८०२८१(+-$) भोजराज डोकरी कथा, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (गोहुं का खेत की एकरी), ७९०९८-१(#) मंगल दीवो, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (दीवो रे दीवो मंगलिक), ७९९१०-५(+), ८०१०६-३ मंगल दीवो, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (दीवो रे दीवो मंगलिक), ७९९१०-६(+) मंगल स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रणमीय शासन देवता), ७९४८९-३(+) मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (लीली बलकी तुंबडी), ८००५७-४ मत्स्योदर रास, मु. जयराज, मा.गु., गा. १६१, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (देव अरिहंत देव), ७९११८(६) मदनरेखासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (मोरा प्रीतमजी तुं सु), ७८७७०-३(5) मधुबिंद सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सरसति मुझने रे मात), ७९३८८-२, ८१०१६-२(4), ८१११६ ७) मनकमुनि सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (साधुजी संयम सुधो), ८०१८९-१(+) मनगुणतीसी सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (जीवडा म मेले रे ए), ७८८९९-३(+), ८००६८-१ मनोरथ गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (धन धन ते दिन मुझ कदि),७९०७५-२(#) मयारामजी गीत, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (श्रीमयारामजी के),७९७७२(३) मरणोन्मुख जीव की भावी गति के लक्षण, मा.गु., गद्य, श्वे., (मार्णनी समुद्धात ते), ७८७४४-१९(+) For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५७१ मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (एक दिन मरुदेवी आइ), ७९८३६ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (दीख्यारा दिनथी न), ७९७९२-३(+) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, स्था., (नगरी वनीतां भली वीर), ७८६९९-३(#s), ८०१२४-३(-) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, स्पू., (मरुदेवी माताजी इम), ८००११(-2) मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (मरुदेवी माता कहे), ८०६९३-३(-) मल्लिजिन-नेमिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १६, वि. १८४२, पद्य, स्था., (मलीकुमरी ने नेमनाथो), ७९२६३(5) मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. ४१, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (नवपद समरी मन शुद्ध), ८१२५१ मल्लिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (दास अरदास शी परि करु), ८०८३३-२(#) मल्लिजिन स्तवन, मु. ज्येष्ट, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अनंत ज्ञान दरसण बली), ७८५८६-१०(+) मल्लिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (कुंभ समुद्भव संपदा), ८०८२२-२ महागिरिसूरि सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (श्रीथूलिभद्रसूरि पटो), ७९३४७-३(#) महादेव गीत, मा.गु., पद्य, वै., (हाथ चक्र तरसुल वीराज),७९८१८-५ (#$) महादेव छंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, वै., (शंकर वसे कैलासमां), ७८६८९-२(क) महापद्मचक्रवर्ती चौढालिया, मु. हर्ष, मा.ग., ढा. ४, वि. १९०८, पद्य, मप., (प्रणमुं आद जुगाद), ८१२६३ महाबलमुनि रास, मा.गु., पद्य, म्पू., (प्रथम नमु जिन जगत), ७९५९३(+$) महाभद्रजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (विहरमान अढारमा रे), ७७७८२-९(5) महावीरजिन १० श्रावक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आणंद कामदेव सुरादेव),७९२७५-२(+) महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (ढाल कोयल प्रवत), ७८६१९-३(+) महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, मप., (पहीले भवे जंबधीप),७९४४७-१(+),८०९४६(+$),८०७४१,७९९९१-३() महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मपू., (अथ हिवइ श्रीमहावीर), ८०३५२-१(+), ८०१०७ महावीरजिन गहंली, आ. दीपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (चालो सखि वंदनने जइये),८०१५९-१ महावीरजिन गहुंली, ग. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नव कनक कमल पगला धरता), ७७९८६-२ महावीरजिन गहुंली, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बहिनी अपापानयरी), ८०१५९-३ महावीरजिन गहंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (प्रभु मारो भोग करम), ७८९८५ महावीरजिन गहुँली, मा.गु., पद्य, मूपू., (सखी वीर जिणंद), ७७९८७-२(5) महावीरजिन गीत, मु. नारायण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (शरण तुह मारु), ७९०३३-३(+) महावीरजिन गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रमण भगवंत माहावीरद), ७९८६८ महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २, वि. १८वी, पद्य, मपू., (देव मलिया देव मलिया), ७९४२६-२ महावीरजिन चैत्यवंदन-पंचकल्याणक, श्राव. लाधो साह, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिनशासण उद्योतकार), ८०२३६-१ महावीरजिन चौढालिया, मु. उदेसींघ, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७६८, पद्य, मूपू., (महावीर प्रणमुं सदा), ८०९९६-१ महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (सिद्धार्थकुलमई जी), ७९५७७(+), ७९६९५-२(+), ८११९७(+), ७९५४७, ८१२३२(#S),७८१८३($) महावीरजिन जन्ममहोत्सव, मा.गु., गद्य, मप., (हिवइ भगवंत नइ चउसठि),७८०३८(+#) महावीरजिन जीवन प्रसंग, मा.गु., गद्य, मप., (परमेश्वर परमात्मा), ७८५३०(+$) महावीरजिन तपप्रमाण विचार, रा., गद्य, मप., (६मासी १ति केरा मास६),७९४५७($) महावीरजिन निर्वाण आरती, मु. उदय, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (जय जय जगदीश जिनेसर), ७८४४४-२ महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीमाता सरसती सेवक), ७७७४५-१(+), ७७८७८-१(#) For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७२ " www.kobatirth.org " महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, म्पू. ( अखियां मेरे जिनजी से), ७८८२७-५ महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पावापुर महावीर जिणेस), ८०७८१-२(+) महावीरजिन पद, पं. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ॐ नमः सिद्धाचलत भैरव), ७८९५२-१ महावीरजिन पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पावापुरश्री वीर), ७८९५२-५ महावीरजिन पद, मु. शिवचंद्र, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( इक दिन प्रभु वीर सम), ७९२०९-२ महावीरजिन पद, मु. हीर, पुहिं. गा. १, पद्य, म्पू., (महावीर भज० दान दिया), ८०४३३-२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (मदन मद विदारी चारु), ७९५०१-३ महावीरजिन पद, पुहिं., पद्य, मूपू., (वीर तेरे पद पंकज), ७७७५४-३(+) महावीरजिन पारणुं, मु. अमीविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला पुत्र), ७९००९, ८११०७-१ महावीरजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद नानडीया), ७९८७३-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन भास, मु. वसंतसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सखी राजग्रही उदानमां), ८०१५९-२ महावीरजिन लावणी, जडाव, पुहिं., गा. १०, वि. १९५३, पद्य, श्वे., (बीर सासण के स्वामी), ७७७५९-३(+#) महावीरजिन लावणी, मु. सुखराम, पु.ि गा. १२, पद्य, वे. (कुंडलपुरनगरी पिता), ७९४४५-३ " " महावीरजिन सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (एक वरसीजी ऋषभ करी), ७९३९१-२ (#), ८०१२२-१(#$), ८०८६६ (२) महावीरजिन सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (विरजिनवर अवतसां वरसे), ८००६०-३($) महावीर जिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु. गा. १५, पद्य, मूपू., (आधार ज हुंतो रे एक). ७८६८०, ७८०११(७) महावीरजिन सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (चौवीसमा महावीर), ७८९६७-२ महावीर जिन सवैया श्रामणवाडजीतीर्थ, मु. माणिक, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू (बंभणवाड तीरथ वडो), ७७७४५-२(१) महावीरजिन सवैया-वाणीविशेषण, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (वीर हिमाचल ते निकसी), ८०७३४-२ महावीरजिन स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुं मन मान्यो वीरजी), ७९३३१-२ महावीर जिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (वीरजीने चरणे लागु), ७८८५६-१ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरतन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रभुजी तमे तो कीहा), ७८३९५ महावीरजिन स्तवन, मु, उदयरत्न, मा.गु., गा. ५. वि. १७९०, पद्य, मूपू. (जगपति तारक श्रीजिनदे), ७८२६८-७, ७९७४४-२(४) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीजरां रहस्यांजी), ७८१४४-२, ७९२८७-१, ८०९२७-२ י (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंतनी), ७९२८७-१ ($) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा. गा. ८, पद्य, मूपू में तो नजीक रहस्याजी), ७९१८९(*) (सकलसुरासुर नरवृंद), ७९०८८-२ (#) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ राजानो नंदन), ७९४५५-१(#) महावीरजिन स्तवन, ग. कपूरविजय, मा.गु.. गा. ७, पद्य, मूपू (प्रभुजी त्रिसलासुत), ७८९४३-३ (६) महावीरजिन स्तवन, मु. कल्याणचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., महावीरजिन स्तवन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि रा. गा. ८, पद्य, म्पू. (आसणरा रे जोगी एहडा), ७९७२९-२ (+) महावीरजिन स्तवन, आ, जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, भूपू (सुरनरपति सेविं सदा), ७८९२८-२(+) महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजी सुणो एक विनति), ७८७०७ , महावीरजिन स्तवन, मु. दयासागर, मा.गु., गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू (सासणनायक वीरजिणंद), ८०८४० (+) महावीरजिन स्तवन, ग. दुर्गदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शासननायक वारु वायक), ८००७०-२ महावीरजिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मा.गु., गा. १६, वि. १८४९, पद्य, श्वे., (जोग लेइनै वीर जिणेसर), ७८७९०-२, ७९१९२-१(#), ८१०८०-१(क) महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, से. (श्रीसीद्धार्थकुल), ७८९६७-१ महावीरजिन स्तवन, आ. पद्मसूरि, मा.गु. गा. ७. वि. १९९९, पद्य, म्पू, (जय जय वीर जिणेसरू), ८०७४५-२ " महावीरजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (महावीर वेगे आवणा रे), ८००२९-३(#) For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ महावीरजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ सुत सेवीयै), ७९२८८ महावीरजिन स्तवन, मु. मानसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपु., (तुं जगनायक जगगुरु), ७८८३५-४०) महावीरजिन स्तवन, मु, मुक्तिविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मृपू. ( सहि मोरी सरसति नमुजी), ७९६०८(४) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरुआ रे गुण तुम), ८०९४२-३(+), ८०१७३-२ महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीरजिणंदने), ७८८५७-३(+), ७८३५९-२(५) महावीरजिन स्तवन, मु. रत्नहृदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिनवर मारा पावापुर), ७९६७० महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू., ( ना रे प्रभु नहीं), ८०८१२-१ महावीरजिन स्तवन, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (--), ७८९६० (+$) महावीरजिन स्तवन, मु. विद्याचंद्र, मा.गु., डा. २ गा. ३५, पद्य, मूपू., (धुरि समरी समरथ सरसती), ७८९२९(+) 1 महावीरजिन स्तवन, मु. बीर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू (वीरकुंवरनी वातडी), ७९७११-३(४) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. २१, पद्य, मृपू. (तु कृपा कुंभ शंभो, ८०९०३ ', महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू, (प्रभु सांभल अरज सेवक), ७८६६९-१ महावीरजिन स्तवन, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपू. (महावीरप्रभु धारी), ८११५९-२ महावीरजिन स्तवन, मा.गु.. गा. १३. वि. १९६४, पद्य, मृपू. (म्हारा प्रभुजी सुमेल), ७८८३१-१(०) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, म्पू, (बंदिय वीर जिनिंद), ७८३७२-२(६) महावीरजिन स्तवन, मा.गु.. गा. १५, पद्य, म्पू, (बंदु श्रीजिणराव मन), ७९४१९ " महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सदा जिन चोवीस मनि), ७८३७२-१(*) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७३ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे. (-), ७९६१३-१ (६) महावीरजिन स्तवन १४ गुणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू. (महावीर जिनरायना पय), ७९७८० (-२) महावीरजिन स्तवन- १४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु.. गा. २८, पद्य, मूपू., (एक मन बंधु श्रीवीर ), ८११०८-१(+), ७९३५७-१(M) महावीरजिन स्तवन-२४ दंडक २६ द्वारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९१, ग्रं. १६२, पद्य, मूपू., (सुखकर स्वामी वीरजिन), ७८६६७(+#$) (२) महावीरजिन स्तवन- २४ दंडक २६ द्वारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुखनउ करणहार ठाकुर), ७८६६७(+#$) महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमल कमलदल लोयणा), ७८७९३(+#S), ७८४८३(३), ७८७९७(5) महावीरजिन स्तवन- २७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., डा. ५. गा. ५२, वि. १९०१, पद्य, मूपू. (श्रीशुभविजय सुगुरू), ७८८३९(३) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति ओ मति), ८०७९८(+) महावीरजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू, (वीरजिण नाह बहु भावि), ७७६४५-२(५), ७७६२५-१ , महावीरजिन स्तवन- अतिचारगर्भित उपा. धर्मसी, मा.गु., डा. ४, गा. ३०, पद्य, मूपू., (ए धन सासन वीर जिनवर), ७७७४९(+), ७८१७५ (४) For Private and Personal Use Only महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७३, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे), ७९२५० महावीर जिन स्तवन- कुंडलपुर, मु. जतीदास पुहिं. गा. १०, पद्य, श्वे. (कुंडलपुर सुवावणो), ७७६२२(+) महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय नमी), ७९२३३ महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति सामण दो मति), ८०१४८, ८०७०७, ७९९१६(#) महावीरजिन स्तवन-जालोरगढ, मु. जयसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भवियण पूजा करज्यो रे), ८०९५५ Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती), ७७९६९(+), ७८८८७(+#),८०८३८(+#),७९७७९,८०४४७, ८१०६८(2),७८७१७($) । महावीरजिन स्तवन-तपगर्भित, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बारे वरसी वीरजी ए तप), ७९०१७ महावीरजिन स्तवन-दयाणा, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साहीबा उलग करु अरदास), ७९१४८-६(#) महावीरजिन स्तवन-दसमताधिकार स्वरूप, वा. मेघविजय, मा.गु., ढा. ९, पद्य, मपू., (जयदायक जिनराज ए), ७८४६२(#) महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारग देशक मोक्षनो रे), ७८४४४-३, ७९५०१-२ महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ४३, पद्य, मपू., (वलि जाउं श्रीमहावीर), ७९५४५-१ महावीरजिन स्तवन-निसालगरj, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जिण आणंदा), ८००५६(२), ७७८२२-४(#) महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु), ७८३५२(+) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ७९६९५-१(+), ८००८६-१(+), ८०९५७-२(+5),७८९२१,८१००३, ८००४९(#$), ८०८९२(2) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा),७८४८६-१(६) महावीरजिन स्तवन-राजनगरमंडण, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सुण सुगुण सनेही रे), ७९०१८-१ महावीरजिन स्तवन-विजयसेठविजयासेठाणी विनतीगर्भित, म. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. ११, वि. १८८८, पद्य, मप., (एकवार कछ देस आवीये), ८१०६९ महावीरजिन स्तवन-समवसरणगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (त्रिशलानंदन वंदीये), ७८३१५(+), ७८४८५(#) महावीरजिन स्तवन-सम्यक्त्वविचारगर्भित, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, स्पू., (आरजदेसमां आरजदेस मगध), ८०३७३(+$), ७९१४६-१ महावीरजिन स्तुति, मु. कुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (त्रिभुवनपति ध्यावो), ८०८१७-१(+$) महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मनमोहन कंचन), ७८५४०-४(#) महावीरजिन स्तुति, श्राव. मकन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (वाणि श्रीवीरजिणेसर), ७७७४२ (२) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (हवे इहां वीर स्वामी), ७७७४२(5) महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जय जय भवि हितकर वीर),७९४२६-५ महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मप., (मनोहर मुरति महावीर), ७९४२६-४, ७९५१७-२(#) महावीरजिन स्तुति, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जय जयकार साहिब शासन), ८०१४२-१(६) महावीरजिन स्तुति, मु. हीरविजयसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल सेवित रसुंदरू), ७९५३६-१ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे इहां कणे कोण जे), ७८१७६(+) महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गंधारे श्रीवीरजिणंद), ८०८१७-४(+), ७८०४५-५(#$) महावीरजिन स्तुति-दीपावलीपर्व, मु. नेमिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर साहिब), ८०७६१-५ महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, म. विवेक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (सेवो वीरने चित्तमां), ७८३६५, ८०७३६-४,८१०१६-४(#$) महावीरजिन हालरडु, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला झुलावे), ७९४५१, ७७७४१(१), ७७७७५(#), ७८०७५-१(#), ७८२२५(२) महासती सज्झाय, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (गीसती के घर साधने), ७९४३१-२($) महासेनमुनि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सहज सोभागी हो साधु), ७९७८२-१(+#) माणिभद्रवीर छंद, मु. मोहनसागर, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूपू., (प्रणमु ईश्वरी धरि), ८०९२५-१(+) माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, म्पू., (सरसति सामनि पाय), ८१२०१(+2), ७९७४७-२(#) माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मपू., (सरस्वती स्वामनी पाय), ८०३०८(+), ७८४७७-१ माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रीमाणिभद्र सदा), ७८८४०-२ For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५७५ माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), ८०७६८(२), ८१०५२($) मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., ढा.८, वि. १८७०, पद्य, मूपू., (सरी संत जणेसरु नमतां), ७८९४८(#) मानतंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १४, वि. १७२७, पद्य, मप., (प्रणमं माता सरसती), ७७९९३($) मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), ७८५५७(+$),७८७७४(+#), ७८७५६(#$), ७९६२७($) मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मप., (मान न कीजे रे मानवी), ८११३९ । मान परिहार सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.ग., गा. ४१, वि. १८७९, पद्य, मप., (मान न कीजे रे मानवी), ७९७९४(+) मार्गणा, गुणस्थानक व कर्मग्रंथादि यंत्र संग्रह, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (परिणामि १ जीव २ मुत), ७९१९९ मिच्छामिदक्कडं भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (१४ भेद नरकना सातनरकम), ८०८१५-३(+) मिथ्यात्व परिहार सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सद्गुरु पद पंकज नमी), ८०५७९-३ मुठी मध्ये ४ जीवभेद नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (सुख्यम १ बादर २), ७९६०२-४ मुनिगुण जयमाल, मु. जिणदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (सकल मुनीस्वरो नमि), ७८३५३(+) (२) मुनिगुण जयमाल-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अतीत अनागत वर्तमान), ७८३५३(+) मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., खं. ४ ढाल ६५, गा. १०२०, वि. १७२५, पद्य, पू., (शंखेसर सुखकरू नमतां), ७९२८०(#$) मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख जिन पय), ७८६४८(+), ८०९९५(5) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतशुं मोहनी), ७९२३०-२(+) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पं. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (श्रीमुनिसुव्रत सायबा), ८१०८४-१ मनिसव्रतजिन स्तवन, आ. विमलसरि, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (प्रभुजी आया रे सेर),७९७७७-२ मुहपत्ति ५० बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (सूत्र अर्थ तत्त्व), ७९९९६-२(+#), ८०७१३-२(2) मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, ग. लब्धिवल्लभ, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनवर तणा), ८०२५१-१(+#) मुहपत्तिपडिलेहन बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र अर्थ तत्त्व), ८०८०२ मुहपत्तिबोल सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर करि जुहार), ७९५३७-२ मुहपत्ति सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मांडवमंडण युगदीनंद), ७९९७५-१ मुहम्मदमुस्तफा पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मु., (आस रब का छेला सामरा), ७७७६१-२ मुहूर्त श्वासोश्वासमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन हजार सातसि), ७८७१९-३(+) मूर्तिपूजामतखंडन सज्झाय, श्राव. अचल ओसवाल, मा.गु., गद्य, स्था., (हिवै जीवनें), ७८८७७ मूर्तिपूजामतस्थापन सज्झाय, उपा. मतिकीर्ति, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूपू., (आणंद आणी अंगमइ आलस), ७८४५२(+) मृगांककुमार रास, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १९४, वि. १६४९, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीनवू),७९१९१(#$) मृगांकलेखा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६२, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (आदेसर जिन आददे चोवीस), ८०६६७-२(#S) मृगापुत्र चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, मूप., (सुगृहीपुर राय बलभद्र), ८१२२७-१ मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२८, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (परतक्षि प्रणमुं वीर), ७९९९९(+), ८०८४१(#) मृगापुत्र रास, मु. मनधर, पुहिं., गा. ३०, पद्य, मूपू., (शक्र इंद्र प्रसंसा),७९२६७(+) मृगापुत्र सज्झाय, मु. कानजी ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (पुर सुग्रीव सुहामणो), ७९३१६-१(2) मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुगरीपुर नगर सोहामणौ), ८०८६५(#) मृगापुत्र सज्झाय, मु. प्रेम ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (--), ८०८७२-१(६) मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, पू., (सुग्रीवनयर सुहामणो), ८०२१२(-) मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. ९१, पद्य, श्वे., (महावीर समरु सदा मुगत), ७८८५५(+#$) मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सुग्रीवनयर सोहामणु), ८०१२३(+) मृगावतीजेवंती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (कहे जेवती भोजाइ), ७९५७८-३ For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मृगावतीसती कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (साकेतपुर पाटणने विषे), ८१२३६(६) मृगावतीसती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (चंद सूरज वीर वांदण), ८०१०४-२(+), ८०१००-२ मृगावतीसती चौढालिया, मु. रायचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८१७, पद्य, श्वे., (अरिहंत देवज आदरो), ८११२५(+) मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, मपू., (देस मगधमाहे जाणीयइ), ७९२४०-१(+#), ७९०२१(#) मेघकमार चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., ढा.८, पद्य, मप., (रिषभादिक चोवीसने), ७८६६५, ७८०७७(#) मेघकुमार चौढालिया, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरनो रे चरण), ८१२५९-१ मेघकुमार रास, मा.गु., ढा. ८, गा. ७१, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ सिद्धि), ७९१५३(#) मेघकुमार सज्झाय, मु. देव, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (तेरे कारण मेहा जिनवर), ७७७५६-१, ७८८१२-१, ७९६३८-२ मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (वीरजिणंद समोसर्या), ७९९३१, ७७८८५-३(७), ७८५२३(७), ७९६६५() मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, मपू., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ७८३३०(+), ७९०१०-१(#) मेघकमार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (धारणी मनावे रे मेघकु),७९५६७-२ मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ८११७६-४(+#) मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चारित्र लइ चित्त), ८०८०८-१(#) मेघमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (उलटि अतमामसु परम), ७८५८० मेघरथराजा सज्झाय, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १९२९, पद्य, स्था., (सुधर्मी सभा समने), ७८९३४-१(+) मेघरथराजा सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १७९७, पद्य, श्वे., (दशमें भवे श्रीशांति),७८०४४(#) मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (दया बरोबर धर्म नहीं), ८०११८-१(+#), ७९८६१ मेतार्यमुनि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (मेतार्य नो पाछिलो भव), ८१२१०-१ मेरुतुंगसूरि स्तवन, मु. संघविजय, मा.गु., गा.१५, पद्य, मूपू., (सिरि गोयम गणहर पाय),७८७६४-१ मेरुपर्वत मान, मा.गु., गद्य, मपू., (धरतीनइ तलइ पहोलो), ७८३४१-२ मेवाडदेशवर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., गा. १२, वि. १८१४, पद्य, श्वे., इतर?, (मन धरी माता भारती), ८१२२३-१(2) मोक्षतत्त्वभेदबोल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (हवे मोक्षतत्त्वना ९), ७९७२० मोक्षमार्ग पयडी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. २४, पद्य, दि., (इक्क समैं रुचिवंतनों), ७७५८३ मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ५, गा. १०३, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सुंदर रुप सोहामणो), ७८९५५-१(#) मोहनीयकर्म निवारण सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (मोहणी कर्मसुं जीतवो), ८१००८-२(+) मौनएकादशीतप विधि, पुहि.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही तस्सु), ७७७३६-३(+) मौनएकादशीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), ७९४३९(+) मौनएकादशीपर्व चैत्यवंदन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (तिहुअण जिण आणंदकंद), ८१२६१-२(#) मौनएकादशीपर्व चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (सासननायक जग जयो), ८०२६६-१(#) मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (सयल संपत्ति सयल संपत), ८०११०(5) मौनएकादशीपर्व सज्झाय, पंन्या. देव वाचक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सद्गुरू पाय नमीयें), ७८२०४-३ मौनएकादशीपर्व सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा. २२, वि. १८३९, पद्य, मपू., (द्वारका नगरीये एकदा), ८०३४०(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसर्य), ८००८८-१(#), ८०७९७(+), ८०२३४(#s), ७८९४४(६) । मौनएकादशीपर्व स्तवन, आ. जिनउदयसूरि, पुहिं., गा. १३, वि. १८७५, पद्य, मपू., (अविचल व्रत एकादशी), ७९९१३ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी पूछे वीरने), ७८२५०(+#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, श्राव. नंदकुमार, पुहि., गा. २२, पद्य, श्वे., (--), ७७६२०(६) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.ग., ढा. ५, गा. ४२, वि. १७८१, पद्य, मप., (शांतिकरण श्रीशांतिजी),७७७५०(+), ७८८११(+),७८५५८(s) For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५७७ मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ७८१२१-१, ७९०८०, ८०८०५,७९२७४-२(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (एकदिवस श्रीउलगिरिवरि), ८००२१-२ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ७८१६०(+), ७९५६८-२(+#), ७९६४२-५(+), ७८०४५-४(#), ७८४६३-२(#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारामती कृष्ण), ७८१७२ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ), ७९६४२-६(+), ७९६१९, ७९७४०-१, ८०४१४ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमिजिन उपदेशी मौनएक),७८५२५, ८०८६४-१ यशकीर्ति गुणवर्णन, क. भाण कवि, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (गुण प्रबल बहु जाणीवा), ८००२४-३(+#) युगप्रधान विवरण कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ८०२६४-१(+) । युगबाहुजिन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (श्रीजुगबाहुस्वामी हो), ७९०३३-४(+) युगबाहुजिन स्तवन, मु. जिनदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (इण जंबुदीवइ जाणीय), ७९४०७-१ युगमंधरजिन भास, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मारग वहइ उतावलो श्री), ७९५३१(+) युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (युगमंधरने कहेजो), ७९३३०-१(+#) युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीयुगमिंधर भेटवा), ७८७५७-२ युगमंधरजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (चांदलिया तु कहीजे), ७९०६२-१ युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., वि. १८३४, पद्य, श्वे., (जंबुद्वीपे दीपतो रे), ७९६३७-१ युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा.१०, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (जगत गुरु जुगमंदर),८०१२४-२() युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८३०, पद्य, स्था., (मोटो क्षेत्र), ७८७३२-२ युगमंधरजिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामी युगमंधर सुण), ८०७१६ योगी रास, मा.गु., गा. ४२, पद्य, दि., (आदि पुरुष जो आदि ज), ७९०१९(2) योगोद्वहन विधि, मा.ग., गद्य, श्वे., (आवश्यक योगदिन ८ प्रथ), ७८९५८(+) रतनकुमर सज्झाय, मा.गु., ढा. १०, गा. ५३, पद्य, मपू., (रतनगुरु आगलीजी आगली),७७९६७($) रतनगुरुभक्ति पद, मु. शंभुनाथ, रा., पद. ४, पद्य, श्वे., (उवारी जी वारी जी थां), ७९६१४-१३(+) रतनगुरु सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे), ७७९४७-१(+#), ७८१५४-१(+) रतनचंदगुरुगुण पद, मु. दोलतराम, रा., गा.७, वि. १८८०, पद्य, श्वे., (रतनचंदमुनि दीपता जी), ७९६१४-२(+) रतनचंद चौढालियो, मु. शंभूनाथ, मा.गु., ढा. ४, वि. १९००, पद्य, श्वे., (सासणनायक समरीये महाव), ८०९४९(+) रतनबाई श्राविका सलोको, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसती माता समरु तमने), ७८९८३(+$) रत्नगुरु सज्झाय, मु. देवजी, मा.गु., ढा. १०, गा. ४५, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण मीठडा रे), ७९६९३-२ रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसोभा), ७९४०५(+$) रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३२, गा.७७४, वि. १७३२, पद्य, मप., (रीषभादिक जिनवर नमुं),७९५५९(#) रत्नप्रभापृथ्वी विचार, मा.गु.,रा., गद्य, श्वे., (एक लाख असी हजाररो), ७८०२८(+), ७८७८५(+) रत्नमनि वर्षावास निवेदन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (अबको चोमासो पूजजी),७८५२७-२(+#) रत्नसूरिगुरुगुण सज्झाय, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु भजीए हो जीय), ७९६१८-४(+) रत्नसेन रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (चरण कमल चीत लाय के), ७८०७०(+5) रत्नावती चौपाई, मु. सुखलाभ, मा.गु., ढा. ९, गा. १५८, पद्य, मूपू., (जुगादीस जिनवरतणा), ७८२९१ रथनेमि चोक, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (एक दिवस वसे रहेनेमी), ७८१३० For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी),७९४७१(+$), ८११९१(+), ७७७९० रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजिमती नेम भणी चाली), ८००१४-२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.ग., गा. १२, पद्य, मप., (काउसग व्रत रहनेम), ७८१४४-१,८०७८३-२, ७९५७१-२(2) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (म्हारा नेमि पिया), ७९६१८-३(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (काउसग्ग ध्याने मुनि), ७९२७६(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मपू., (रहनेमि अंबर विण), ८०१६३(+#), ७९९९५(६) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हीरमुनि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (संयम लेवा संचरी राणी), ८०३२२-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, रा., गा. ११, पद्य, पू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ७८७७०-१(६) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (नमं नम नेमजिणंदने), ७९५०२-२(5) रमल शुकनावली, पुहि., गद्य, श्वे., इतर, (अरे यार वहुत दिन), ८१०२३(+#) रविवारव्रत चौपाई, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ८१०३९(६) राचाबत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (जीवडा जाग रे सोवे), ८०२०८-२(+#), ८०९९०(+) राजगहतीर्थ वर्णन गीत, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (राजगरी नगरी अतिसुंदर), ७९५१३-५(+) राजगृहनगर वर्णन, मा.गु., गद्य, मपू., (नगर वर्णन जे एतले), ७९०२७-२(#) राजगृह नगरी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १२, पद्य, श्वे., (राजगरी नगरी अतसुंदर), ८०४५३-४(-) राजनगर तीर्थमाला, मु. रतनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ७०, वि. १९०४, पद्य, मपू., (वचन सुधारस वरसति), ७८५४४ राजिमतीसतीइकवीसा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (सासननायक सुमरिय), ८०८२८ राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि चतुर सुजाण), ७८५८७-२(+), ७८५१७-१ राजिमतीसती विलाप लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मपू., (दे गया दगा दिलदार), ८०१०२-२ रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.ग., ढा. २४, वि. १७२३, पद्य, मप., (सुबुधि लबधि नव निध), ७८७५२(+$) रात्रिभोजनत्याग विचार, मा.गु., गद्य, मप., (९६ भवतांई जीवहत्या), ७८३४१-५ रात्रिभोजन त्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.६, पद्य, मप., (सकल धरममा सारज कहिइ),७७६२७, ८००३६-२(#) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ग्यान भणो गुण खाणी), ८०८७०-१ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (अवनितलि वारू वसइजी), ७९६७२(+#), ८०७२३(+), ७८९२६-१, ७८०६१(६) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (रात्रिभोजनमांहे दोष), ८०३५७ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १४, पद्य, मूपू., (गुरु चरणे रे भाव), ८१११६-६ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि*, मा.गु., ढा. ४, गा. ३५, पद्य, मपू., (गुरुपद प्रणमी आणी), ८०९२९ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (सांझ पड्या भोजन करै), ७७७४८-८ राधाकृष्ण गीत, रा., कडी. ८, पद्य, वै., (महीधन बेचण चाली), ७८५५५-२(-) राधाकृष्ण पखवाडीयो, मा.गु., गा. १५, पद्य, वै., (सखी पडवाने आवे पेहली), ७७७८२-३ राधाकृष्ण पद, क. नरसिंह महेता, रा., पद.३, पद्य, वै., (रातडली क्या जाग्या),७९६१४-३२(+) राधाकृष्ण पद, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (ईण वंसी मे मेरो), ७८०९१-१(२) रामभक्ति पद, सुरदासजी, पुहि., पद. ३, पद्य, वै., (संतो द्यो रे गंडक रै), ७९६१४-२३(+) रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४ ढाल ६२, गा. ३१९१, ग्रं. ४३७५, वि. १६८३, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतस्वामीजी), ७९४४६, ८०४८२(#$), ७८९७७($) रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,खं. ९, गा. २४१२, ग्रं. ३७०४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ८०३२९(+#$), ८०३९०(+#$) रावण पद, मु. जवाहर ऋषि, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (रावण कुं समझावै रानी), ७८७२७-१ For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ रावणमंदोदरी संवाद, श्राव. छज्जु, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (पीया कहना मेरा मान), ८०००७ रावणमंदोदरी सज्झाय, मु. हीराचंद, रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (आ तो आइ मंदोदरी राणी), ७७९६६ रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ७८४१२, ७८८८८, ७८९७८, ८०१७२(१) रुक्मिणी रास, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (एक दिवसे रुखमिणि), ८०५४४(#$) रुघनाथजी भिखनजी मत चर्चा संग्रह, रा., गद्य, स्था., (संवत् १८१५ चेत सुद ९), ७९५६०-३(+) रूपकमाला-शीलविषये, मु. पुण्यनंदि, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (आदि जिणेसर आदिसउ),७८४९९(+), ८०९३२ रेटिया सज्झाय, श्रावि. रतनबाई, मा.गु., गा. २५, वि. १६३५, पद्य, मूपू., (बाई रे अमने रेंटीयो), ७८३५६(#) रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ विजय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मप., (सोवन सिहासन रेवति), ७९५६४-२ रेवतीश्राविका सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (सोवन संघासन रेवती), ७८७१५-१(-६) रोहणकुमार सप्तढालियो, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., ढा. ७, गा. ९१, वि. १८८०, पद्य, मप., (श्रीआदिनाथ प्रणमु), ८११९२(+) रोहिणीतप सज्झाय, मु. चेतनविजय, मा.गु., गा. ४५, वि. १८७३, पद्य, मूप., (सरसती पाय नमी करी), ८०८९४ रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणंद), ७९५३२ रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूप., (हां रे मारे वासुपूज), ८१०९२(+), ८१२०३(+#) रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ७९७९८(+), ८०७२६(+$), ७८८४८-१, ७९२९९-१,८०१९८, ८०२९६, ८०९८७, ७८१०२(2), ८०४५०-२(६) रोहिणीतप स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ७९६४२-१०(+) रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (जयकारी जिनवर वासपूज), ७९६४२-९(+$) रोहिणीतप स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्यजी जिन), ७९६४२-११(+) रोहिणीयाचोर कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (राज्यगृह नगरि), ७९८४२-४(#) लंकानगरी लावणी, मा.गु., गा. ३९, पद्य, श्वे., (सुणो श्रीराम लंकापुर), ८०८९९(#) लक्ष्मीविजयसूरि भास, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (घडीय न विसरे ला घडीय),८०७४३-४ ललितांगकुमार सज्झाय-शील विषये, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १३, वि. १९५९, पद्य, स्था., (सुंदर सहर मनोहरो कवर), ७८९३४ लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., ढा. २९, गा. ६१९, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (त्रेवीसमो त्रिभुवन), ७९१८७-१(#5) लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मपू., (परम पुरुष प्रभु पास), ७८५३३($) लीलोतरी नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (कोलांनी जाती तुरीया), ८१०४६ ।। लूण उतारण गाथा, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (लूण उतारो जिनवर अंगे), ७९९१०-७(+) लोकनालिकाविवरण दोहरा, पुहि., दोहा. ४६, पद्य, श्वे., (कर दो कटि पर कंचुकी), ७९३५०-५ वंकचूल कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवे जंबुद्वीपे तेह), ७८९५१-१(#) वज्रधरजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (एक सबल मननो धोखो), ८०९६९ वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (विहरमान भगवान सुणो), ८०७२०-१ वज्रस्वामी गहंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (सखी रे में कौतुंक), ८१०२५(#) (२) वज्रस्वामी गहुंली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वयरस्वामी ६ मासनै), ८१०२५(#) वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १५, गा. ८९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (अरध भरतमांहि शोभतो), ७९३०२(+#), ८११६२(5) वडीदीक्षा विधि, मा.ग., गद्य, मप., (प्रथम नाणमांडी शिष्य),७७७४४(2) वयरस्वामी सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सांभलजो तुमे अद्भूत), ७९१७३(+) वरसीदान मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक कोडिने आठ लाख दिन), ८०१२६-३ वर्णमाला *, मा.गु., गद्य, इतर, (ॐ नमः सिद्धं अ आ इ ई), ७८८०६-३($) For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- २ वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ), ७७७६६-२(+), ७८८८६-३ वर्तमानचीवीसी जिननाम स्तवन- जंबूद्वीप भरत क्षेत्र, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (जंबूद्रीपने दक्षिण), ८०१२८-२ वर्द्धमानसूरिगुरुगुण स्तुति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (सरसति धुरि समरी करी) ८०५४०-१४) वल्लभविजयजी के नाम आनंदविजयजी का पत्र, मु. आनंदविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपार्श्व), ७९३१० वस्तुपालतेजपाल सुकृत कवित्त, दत्त, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचसहस प्रासाद जैन), ८११७२-१ वस्तुपाल वैभव पद उपा. सिद्धिचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू. (हाथी सहस्र अदार), ७८०१५-२ वांदणादोष सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाणी आणी), ७८२२२-२ वासी आहारग्रहण योग्यायोग्य विचार, मा.गु., गद्य, वे., (श्रीवीतरागजीना मार्ग), ७८९७४-६ (+#) वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू, (वासव वंदित वासुपूज्य), ७९१५७-४ वासुपूज्यजिन पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (बासुपूज्य जिनवर साहि), ७९४७३-२(+) , वासुपूज्यजिन सवैया, मु. धर्मरंग, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू. (लाल केसु फुल लाल रति), ७८६१६-२ (*) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोहनजी हो गुण बोहला), ७८६३६- १ (*) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नायक मोह नचावीयो), ८००२६-२(+), ७९००१ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपु. ( वासव पूजित वासुपूज्य), ८०३४५-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, आ. भाग्यरत्नसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८५९, पद्य, मूपु. ( वासुपूज्य जिनराजजी), ७८६८३-२(क) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. लाभसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू (वासुपूज्य जिनराय), ७९०२४-२ (*) वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. सिवचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य वंदन करीये), ७९४६० वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. हीरधर्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु. ( अंगदेश चंपापुरी नगरे), ८०९६६-२ वासुपूज्यजिन स्तवनरोहिणीतपगभिंत, मु. क्षेमकुशल, मा.गु.. गा. १०, पद्य, मूपु. ( अंग सुचंग शोभभरु), ८०३९६ वासुपूज्यजिन स्तवन- सूर्यपुरमंडण, उपा. उदयरत्न, मा.गु., डा. ६, गा. ५९, पद्य, मूपू., (श्रीसांतीसार सोलमो), ७९१०९ वासुपूज्यजिन स्तुति-आंतरोलीमंडण, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिनराज), " ७९१३१-१ विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा अभयसोम, मा.गु., डा. १७ नं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू (वीणा पुस्तक धारणी), ७९८७६ (+३), ७९८८३-१(०४) विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., डा. २७ गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी प्रणमीई), ८०३८० (5) विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिं त्रीजे), ८१११८(+#), ७७७७६-५ विचार संग्रह, मा.गु..रा., गद्य, मूपु., (समजवा हेतु सूत्रमाहि), ७९२८९-४(+), ७९३२५-२ " विजयकवरजीरी सज्झाय, मु. डामचंद, मा.गु., डा. ४, वि. १८१०, पद्य, म्पू (आदिनाथ आदेसरो सकल), ८१२०६ " विजयदेवसूरि गुरुमंदिर गीत, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज उलट घरी आवीई रे), ८०८२३-१(७) विजयधर्मसूरि गुरुगुण सज्झाय, मा.गु. लो. ७, पद्य, मूपू (जयजयो श्रीविजयधर्म), ७९११२-२ विजयप्रभसूरिगुरुगुण सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मास वसंत मनोहर सुंदर), ८०३९४-२(#) विजयप्रभसूरिगुरुगुण सज्झाय, मु. विनितविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (गुरुगुण निधि गुरु), ७७९०६-२ (+) विजयप्रभसूरिगुरुगुण सज्झाय, मु. विनितविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समरुं सुंदरि श्रुत), ७७९०६-३(+) विजयप्रभसूरि सज्झाय, पं. मेरुविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चित्तधरी), ७७९०६-१(+) विजयलक्ष्मीसूरि सज्झाय, मु, मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (सयल सूरीश अवतंश तु), ८०७४३-३ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., डा. ४, गा. २८, पद्य, म्पू, (भरतक्षेत्रे रे), ७८५११, ८०००२ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (शुक्लपक्ष विजया व्रत), ७९०३६(#) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, स्था., (मनुष जमारो पायने जे), ७८३२८(+#), ७९७५० (+), ८०९४३(*), ७९५०१-४, ७९२६६-२(६) ८०७३२-२ (-१) For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५८१ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, म्पू., (प्रह उठी रे पंच), ८०२०३-१(+#), ७९३८८-१, ८०७२४, ७९६८२-१(#), ७८७८८-४(६) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (सुकलपख विजीया वरत), ७९६८५-२ विजयसेनसूरि सवैया, पं. सहजसागर पंडित, पुहिं., दोहा. २, पद्य, मूपू., (करत ज्यु फाल वनिबाल),८०१९७-३(+) विनयचट रास, मु. ऋषभसागर, मा.गु., उल्ला . ४ ढाल ५८, गा. १५३०, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ जिनवर),७८२७९($) विनयविजयगुरु सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंदो वाचक श्रीविनय), ८०८२३-२(2) विमलजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कंपीलपुरे विमलप्रभु), ७९१५७-१ विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (घर आंगण सुरतरु फल्यौ), ८०९४२-६(+) विमलजिन स्तवन, मु. नानजी ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अमल कमलसम गुण घणा रे), ७९०३३-१(+) विविध जिनप्रासाद निर्माणकर्ता-स्थल विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जैतारण भंडारीजी), ७९६८४-१ विविध जीव आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, स्पू., (१२० हाथीनो आयु १२०), ७७९४१-२(2) विविध जीव के देहमान विचार *, मा.गु., गद्य, मप., (पृथ्विदिक४ एकंद्री), ८०३८६-३(+#) विविध तीर्थ चैत्यवंदन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, मूप., (श्रीसेजेजे सहरसाम), ८०८५५-२(#) विशालजिन स्तवन, श्राव. लाधो साह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रभू ताहरी सहज परिण), ८१२४४-३ विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं., गा. ४२, वि. १७१५, पद्य, दि., (आत्मलीन अनंतगुण), ७९२९६-२(+#), ७८०००-१ विहरमानजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (पूर्व महाविदेह विराज), ७८५६८-३(-) विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, स्पू., (सामि सीमंधर विनती), ७९९००(2) वीरसेनजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मुझने हो दरसण नायन), ७८९९५-५(#) वैरसिंहकमार चौपई-जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., ढा. ३८, गा. ८७६, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सारद सामनी), ७७८४७($) वैशिकपुत्र सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पारसनाथ संतानीओ काला), ८०६८५-२ व्याख्यान पद्धति, मा.गु., गद्य, मूपू., (जय जय भगवान वीतराग),७८९७२ व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, मप., (अशरणशरण भवभयहरण), ८०७०८(+#), ७९१४७-१, ७९७४२-१, ७७९४१-१(#) शकुनविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., इतर, (वार उघाडतां गिलोई), ७८९१७-२(+#$), ८०१७१-३(+#) शवजयगिरनारतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (पंथी कहेने शनेशरू), ७९७३९-१ शत्रुजयतीर्थ २१ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सेजो १ श्रीपुंड), ८०७१७-१(#) शत्रुजयतीर्थ अधिकारविषये-संवेगी यति विवाद सज्झाय, श्राव. भीम भोजक, मा.गु., गा. २५, वि. १८५१, पद्य, मूपू., (सरसति माता सानिधै कह), ७९३४१ श@जयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), ७८६९०(5), ८०१५३(5) शत्रुजयतीर्थ गीत, मु. जयसोम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मोरौ मन मोह्यौ इण), ७९८८२-१(2) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय नाभिनरिंदनंद), ७९८५३-२ शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (ऋषभनी प्रतिमा मणीमयी),७९८२५-३ शवजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लच्छ ऋषि, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (जय जय ऋषभ जिणंद), ७९९११-३ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन-रायण पगला, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (एह गिरि उपर आदिदेव), ७९८२५-५ शत्रुजयतीर्थ दोहा संग्रह, मा.गु., पद. ६, पद्य, श्वे., (चोथो आरे जे थया सवी), ७९३०६-२(#) । शत्रुजयतीर्थ पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरों मन मुगतागीरीसु), ७८०९१-२४(#) शत्रुजयतीर्थ पद, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सफल दिवस आज माहरो),८०५७९-१ शवजयतीर्थ भास, पंडित. मानविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (सरसति सामिनि पाए नमी), ८०३३०-१ For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ७९०९२-१(#), ८०२९८-२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (फुलनां चोसर प्रभूजी), ८०८३६-२(#) श@जयतीर्थ स्तवन, पं. ऋद्धिसागर, मा.गु., गा. १०, वि. १८६७, पद्य, मूपू., (मरुदेव्यानंद लखमुखचं), ७७५८८-३(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामिनी), ८१०६५(#$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., गा. १०, पद्य, मपू., (सुण सुण शत्रुजयगिरि), ८११८५-१(+), ८०८३७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामनी), ८०१६४-१(+#), ७८१८२, ७७७१६(5) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मपू., (विमल गिरिवर शिखर), ७७७३२-११(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आवो भवि भविक), ८०१७८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माहरुं मन मोह्यं रे), ७९७३८-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (शेजानो वासी), ८०८८२-१(-) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरि ध्यायो), ८०८३६-१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (प्रणमो प्रेमे पुंडरी), ७८३५४-१३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भाव भगति भविजन धरी), ७८३५४-१५, ७९८२५-८($) श@जयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीशेजूंजय तीरथसा), ७८३५४-१२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीसिद्धाचल), ७८३५४-१४, ७९८२५-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुखकारी रे सिधाचल), ७८३५४-११ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (वीरजी आव्या रे), ८०१७७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मनना मनोरथ सवि फल्या), ८०४०१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेश्वर सेवना), ७९९५६-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विमलाचल नित वंदीये), ७८५६९-२ शत्रंजयतीर्थ स्तवन, मु. रामविजय, मा.ग., गा. १२, वि. १८०१, पद्य, मप., (साहिबा सेजो),८०९४७-६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मपू., (अमृत वचने रे प्यारी), ७९६३३($) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मप., (विमलाचल विमला पाणी), ८१०६२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. ३, गा. १३, पद्य, मूपू., (पय पणमी रे जिणवरना), ८०४०८-१(+), ८११८३(+), ७९४१४-२(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मारुं डुंगरिये मन), ७७८०४(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गद्य, मपू., (सिद्धाचल समरो सदा), ७८४७६-२ शत्रंजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (सेजा गढनो राजीओ), ७८४५९-४(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (--), ८०८२६-१(#$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलमंडण), ७८९५२-४, ८१०४०-१, ८११७४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवू जी), ७९४८३($) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय तीरथसार), ७७७२५-१, ७८४६३-६(#) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. कुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शत्रुजयमंडण मोहखंडण), ७८३५४-४ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (विमलाचल तीरथ सुंदरु), ७८३५४-१०,७९८२५-७ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शत्रुजय गिरिवर वासव), ७८३५४-३ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शत्रुजय महिमा प्रगट), ७८३५४-८, ७९८२५-१(६) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल सुख शुद्ध चिद्रू), ७९८२५-६ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिरिशत्रुजयगिरि), ७८३५४-१(६) For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५८३ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रीशत्रुजयमंडण), ८००८०-२(#) शत्रंजयतीर्थ स्तति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (आगे पुरव वार नीवाणु), ७९३६४-७ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विमलाचल सिहर शिरोमणी), ७८३५४-५ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुतां सुहणे में लखु), ७९३६४-८ शत्रुजयतीर्थोद्धार स्तवन-भरतमहाराजाकारित, मा.गु., पद्य, मूपू., (हवइ नरपति रे भरत भली), ७९८९१-२(+#$) शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू, (अहि नर असुर सुरपति), ७८२६३(+), ७९२५८-२(+#), ७७७०४, ८०५२२-१(#) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (छायानंदन जग जयो रवि), ८००२२-१(+#) शनिश्चर प्रभाती, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (थावर जाप जपो नीत),७९७३७-३(#) शनिश्चर स्तुति, क. हेम, मा.गु., पद्य, मूपू., (समरदेव शनिराय थायै), ७७९३९-२ शय्यादाने जयंती सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धन्य धन्य ते जग जीवड), ८०६८५-३ शांतिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (अटल अभंग अबीह प्रभु), ८०५७५-२(#) शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), ७९५४८-१(+), ८०१५५ २(+),८०२३७(#) शांतिजिन पद, वा. कीर्तिविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (लोचन हे अनीयाले हो), ७८०४८-२(+#) शांतिजिन पद, पंडित. भेरुंदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (संत जिणेसर साहब साचा), ७९५४८-३(+) शांतिजिन पद, मु. माल मुनि, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (शंतिनाथ शंतिकरण), ७८९४७-४(#) शांतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (विश्वसेन अचलाजू कै), ७९६१४-१५(+) शांतिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ६६, गा. १४२८, ग्रं. २२०५, वि. १७२०, पद्य, मपू., (सकलसुखसंपतिकरण गउडि), ७८७६९(s) शांतिजिन स्तव-जन्माभिषेक, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (जय सयल सुरासुर नमिय), ८११०५-१(+#), ७८२८१(#) शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुणो शांतिजिणंद), ७८४९७-१, ७९५७१-१(#$) शांतिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (शांतिजिणेसर सोलमा रे), ७७९४७-२(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. कृष्णविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोलमा सांति जीणंद), ७९१४६-२ शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., गा. १३, वि. १७४२, पद्य, मपू., (श्रीशांतिजिणेसर शांत), ७९५४८-४(+), ८१०६१-१(+) शांतिजिन स्तवन, वा. जयसौभाग्य, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सुधीया शांतिकरण श्री), ७७८२५-२ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (शांति जिनेश्वर साचो),७८०९१-२२(2) शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (शांति जिणेसर साहिब), ७७७३२-१४(+) शांतिजिन स्तवन, मु. तेजविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (शांतिजिणंद दयाल मयाल), ८१०७८(#) शांतिजिन स्तवन, मु. भावसागर, पुहिं., गा.१५, पद्य, पू., (सेवा शांतिजिणेसर की),७८४७५-१ शांतिजिन स्तवन, मु. मल्लवशिष्य, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (प्रणमी पासजिण शिवसुख), ८०३९९-१ शांतिजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सोलमा जिनराज), ७८४८२-२(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ७८८५७-२(+#), ८०४२८-३(2) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (सोलमा श्रीजिनराज उलग),७८४५९-५(+#), ८०८७१-२(+) शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (धन दिन वेला धन घडी), ७८६२०-१ शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हम मगन भए प्रभुध्यान),७८०८०-२ शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (तं धन तुं धन तं), ८११६५-१(६) शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रात उठ श्रीसंतिजिण), ७८७१५-२(-) शांतिजिन स्तवन, मु. रामकृष्ण ऋषि, पुहिं., गा. २३, वि. १८६४, पद्य, श्वे., (शांतीनाथ प्रभु संती),७९४४५-२ शांतिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (संत करता श्रीसंतजिन),७९५०५-२ For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शांतिजिन स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ८, गा. ४४+१, वि. १६४२, पद्य, मपू., (सोलमउ जिनवर सेवीयइजी), ८०३०३(+), ७८०४२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. सबलदास, मा.गु., गा. १०, वि. १८७५, पद्य, श्वे., (शांति जिणेसर समरिये), ७९६३९-२ शांतिजिन स्तवन, ग. समयसुंदर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (अंगन कलप फल्योरी हमा), ७९३७४-३(#) शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो), ८०७८१-३(+), ८०३८८-२ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर सोलमो रे), ७८५१६-३($) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ शरणागत), ७९५४८-२(+) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति नाम हृदय धरी), ८०३३०-३(5) शांतिजिन स्तवन-१४ गणस्थानकगर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ८५, पद्य, मप., (शांतिजिणेसर जग हित), ७८२९४(#$) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मपू., (शांतिजिणेसर अरचित जग), ७८१४७(#), ७९१०२-२(5) शांतिजिन स्तवन-रतनपरी, मा.गु., गा. २२, पद्य, मप., (रतनपुरी सणगार रे),८०७१९(+) शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, पुहि., गा. २२, पद्य, मूपू., (सारदमात नमु सिरनामि), ७८४८६-२ शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीइं), ८०७२१-३(2) शांतिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति सुहंकर साहिबो), ८००६५-२ शांतिजिन स्तति-फलवर्द्धि, मु. देवकुशल, रा., गा. ४, पद्य, मप., (फलवधीरो मंडण सांति),७९६४२-१२(+) शांतिजिन स्तोत्र, ऋ. दुर्गदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (मंगलदायक श्रीजिनराइ), ८११२१-७(#$) शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. १०, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो केवल रुप भगवान), ७८७७१-२(+) शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक समरियै), ७९५६९(+$), ७८१८४(#$), ८०१०१(#S) शालिभद्रमुनि शलोको, ग. कनकप्रिय, मा.गु., गा. १४७, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (सरसती सामण समरु सुखद), ७९२६०-२(5) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवालतणे भवे), ७८२१७-२(+), ७८२२६-३(+$) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणीक वच्छ घरि आवइ), ८००२१-१ शाश्वतजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सौधर्म देवलोके), ७९६०१(#) शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिक्यविमल, मा.गु., ढा. ७, गा. ८४, वि. १७१४, पद्य, मपू., (वीर जिणेसर पाय नमी), ७९८९३(+#), ८०५६२(#$), ७८०७३($) शाश्वतजिन स्तवन-देवलोकग्रैवेयकअनुत्तरविमानस्थ, मु. भोजविमलशिष्य, मा.गु., ढा. ३, गा. ३४, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुपयपंकज नमी), ७९६१८-२(+) शाश्वतजिन स्तुति, क. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चार निक्षेपा श्रीजिन), ८०८१७-३(+) शाश्वताअशाश्वताजिन चैत्यवंदन, मु. महोदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सीमंधर प्रमुख नमुं), ७७८७४-१(#) शाश्वताचैत्य नमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. २०, पद्य, मूपू., (रिषभानन वधमान चंद), ८०९७९-१(+) शाश्वताशाश्वतजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (कोडी सातने लाख बहोतर), ८०३९७ शाश्वताशाश्वताजिन नमस्कार, पुहिं., गद्य, मपू., (अढाईद्दीप कै विषै जै), ८०८५५-३(#) शिवपच्चीसी, मा.गु., पद्य, वै., (मोह महातम नासिनी), ८०२७४-२(#$) शिवपुरनगर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, स्था., (सुणो श्रीसीवपुर नगर), ७८५६६(+) शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (अहो सिधसिला सगला), ७८५८३-१(क) शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोतमस्वामी पुछा करी), ७९७४३(+), ८१२०४-१(+), ७८३८१-१ शीतलजिन स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (शीतल जिनवर आगलै हुँ), ७८५१६-२ शीतलजिन स्तवन, ग. जगजीवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (तुं सुगणाकर स्वामी), ७९०५१-३(#) शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (शीतलजिन सहजानंदी थयो), ८०१३९-१ For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ शीतलजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ६, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (शीतल जिनवर देव सुणो), ७९०५१-२(#) शीतलजिन स्तवन, मु. श्रीसार, पुहिं., गा. १८, पद्य, मूपू., (सीतल जिणवरराया तुम), ७७९६५-१ शीतलजिन स्तवन, मु. सहजसागर, मा.गु., गा. १२, वि. १७८१, पद्य, पू., (शीतल जिनवर सेवीयों), ८००३०-१ शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ७८५१६-१, ७९९१५-२, ७९१४८-३(#), ७९८५२-१(#) शीतलजिन स्तवन, सेवक, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तारो जगताधार शीतलजिन), ७७७६१-३ शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मपू., (मोरा साहेब हो), ७८००२-१, ७९०११-१(2) शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (त्रिभुवन जननायक दायक), ७८५४०-३(#) शीयलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., ढा. १०, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पंचपरमेष्ठि), ७९६४३ शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, वि. १६३७, पद्य, मपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ७८२९९(#$), ७८४५७-१(६) शीयलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, म्पू., (पहिली उपमा ग्रह), ७९९३४ शीयलव्रत रास, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मप., (शीलरतन जतने धरौ छंडी), ७९७६२(+) शीयलव्रत सज्झाय, मु. अमरचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सतगुण य नमीने जपु), ७७९३४-२, ८११५९-१ शीयलव्रत सज्झाय, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सील सील सिरोमणि), ७८२०१-६, ८००२७-१ शीयलव्रत सज्झाय, मु. ज्ञानकीर्ति, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (प्रह सम उठी मने भावि), ७९२०८(+), ७९२१८-२(-) शीयलव्रत सज्झाय, मु. तेजमल, पुहिं., गा. ६५, वि. १९६९, पद्य, मपू., (ऐसी कलावती रे ऐसी),७८२४५-३ शीयलव्रत सज्झाय, मु. दयाराम, मा.गु., गा. ११, वि. १८२६, पद्य, मपू., (सदगुरु ज्ञान दाता तण), ७९७६१-३ शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (चोथो व्रत छे मोटकीय), ७९२६५-२(+-) शीयलव्रत सज्झाय-चुंदडी, मु. करण, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सियल चुंदडी खरी पिया), ७८१८८-३(+$) शीलपच्चीसी, श्राव. नेतो, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (सुर नर किंनर नाग), ७९७१०-१(+) शुक कथानक-जिनपूजाविषये, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपना भरते), ७९६६१-१(2) शुकनावली, मा.गु.,हिं., गद्य, इतर, (ॐ नमो भगवती), ७९५४२-४(5) शुभस्त्री कथागीत, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (अंगदेस एलापुर गाम), ७९८४२-१(2) शृंगार गीत, मा.गु., गा. २, पद्य, इतर, (गोली गीरज में गाजीयो), ८१०२७-२(#S) शृंगाररस कुंडलिया, मा.गु., गा. ३, पद्य, जै., वै., इतर, (मार पडी हे तलहटी), ८१२२९-२ श्राद्धव्रतभंग यंत्र, मा.गु., यं., मूपू., (--),७९६६०(+) श्रावक ११ प्रतिमा विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (पहिली प्रतिमा मास १), ८०४३६-९(+), ७८६४६-५(#$) श्रावक १२ व्रत अतिचार सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, गा.७४, पद्य, श्वे., (--), ७९२०० श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., पद्य, मूपू., (पहलो मनोर्थ समणोपासक), ७८२४९-१ श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ७७७५५(+), ७९९५१($) श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ८०९८१(+#), ७८३३७, ७९६७३, ७८६३४-१(#) श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रावक धर्म करो), ७८११९-३(#) श्रावककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रावकनी करणी सांभलो), ७९०११-२(2) श्रावकाचार चौपाई, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. ८०, पद्य, मपू., (--), ७८६००(5) श्राविकागुण सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (सरव सुलक्षण रूप रसाल), ८०७१४(#) श्राविका सज्झाय-औपदेशिक, मु. मोतीचंद, रा., गा. १२, पद्य, श्वे., (समझणी बाईरा थे गुण), ८०४४५-३(#) श्रीपति कथा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गद्य, स्था., (सम्यग ज्ञान दर्शन), ७९७०४(+) श्रीपाल चरित्र, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., गा. १२२५, वि. १७४०, पद्य, मपू., (श्रीअरिहंत अनंतगुण), ७८०२०(६) For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मपू., (कल्पवेल कवियण तणी), ७८५६२(+#$), ७८८४२(+$), ७७७९८(5), ७८४९४($) श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४९, गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत अनंतगुण धरीये), ७९३२१(६) श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ४०, गा. ७५६, ग्रं. ११३१, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर जेहना), ७८२८२(+#$),७८२८४(#S) श्रीमती चौढालीयो, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ८६, पद्य, श्वे., (चोबीसु जिणवर नमुं सत), ७९०९८-३(#) श्रुतज्ञानगुण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (निर्दोषम् उक्त), ७८५३५-१(+) श्रुतज्ञान प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवइं श्रुतज्ञाना भेद), ७९५८५(+) श्रेयांसजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांस अग्यार), ७९१५७-३ श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदवर्धन, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (शहिर बडा संसारका), ७८१४४-५ श्वासोश्वास विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, म्पू., (सासउसास थाय एक मुहुर), ७९९३५-१(६) षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मप., (धर्मास्तिकाय १ अधर्म),७९३५०-३ संघयात्रा स्तवन-बीकानेर से शत्रुजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (कथन इसौ माता कहइ), ७८७५९($) संभवजिन पद, पं. आनंदविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (प्रीतडलीजै रे संभव), ८००९१-६(2) संभवजिन पद, मु. लाधो, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (संभवजिन सुदेव अरज),७९०६२-३ संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (प्रभु प्रणम् जी संभव), ७९९३०, ७९८१६-२(2), ७७८६५-१(६) संभवजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (संभव साहिब सेवीये), ७८९८९-४, ७९६२८-४ संभवजिन स्तवन, मु. उदयसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (दया रे श्रीसंभव जिनन), ८१२४१-२(#$) संभवजिन स्तवन, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (संभवजिननी सेवा प्यार), ८०८५२-२(#) संभवजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी संभव स्वामी), ७९१४८-४(#) संभवजिन स्तवन, उपा. हीरधर्म पाठक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मानुष लोक सुदेस),७९९६६-२ संयमअनुमति सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, स्था., (माता अनुमत दे अणीवार), ८१०१२-२ संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., अध्य. ४ उन्माद, गा.७४, वि. १७३१, पद्य, श्वे., (बुद्धिवचन वरदायनी), ८०५१८(+$) संयोगी भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (क१ ख२ ग३ घ४ च५ छ७ ज८), ७८९३९(+), ७८८०४ सगरचक्रवर्ती सज्झाय, मु. इंद्रशिष्य ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सगरसूत सेन्यासजी रे), ८०४४१-१(+) सगरचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सगर रायनी वारता कहुं), ७९८००-५(+-) सगुणा निगुणा सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मपू., (सोरठ आंबो मोरीयो सुड), ७९३७५-१(+) सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.ग., गा. २५, पद्य, मपू., (प्रवचन अमरी समरी), ७९९५९-१(+#), ८०३१३-२, ७८९६५-२(क) सच्चियायदेवि छंद, हेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सानिधि साचल मात तणी), ८१०४२-१(+#) सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (तिणकालने तिण समें), ८०४३९-१(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती रास, मु. सेवक, मा.गु., गा. ८५, वि. १६१७, पद्य, मूपू., (सुखकरि संतीसर नमुं), ७८३४७(5) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. आणंदविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (देव तणी रे वाणी सुणी), ७९७६०-२(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (कुरुदेशे गजपुर ठामे), ७९७४८-१(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (सुरपति प्रशंसा करे), ७८३८७(+), ८०९५१-२(+#) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. राज ऋषि, मा.गु., गा.१५, पद्य, श्वे., (अमर तणी वाणी सुणी), ८०१४०-१ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू., (सरसति सरस वचन रस), ७९७६०-१(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, मु. कुशलनिधान, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (सुखदायक सासणधणी तिभु), ७८५९६ सन्निपातिक भेद विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (द्विकसंयोगी भांगौ ११), ७८८१४-४(+#) For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ G/ G समवसरण रचना स्तवन, मु. अमरविबोध, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर चरण कमल), ७९२३४(+) समवसरण स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.ग., गा.७, पद्य, मप., (आज गईती हंसमवसरणमा),८१००४-७(#) समवसरण स्तुति, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (मिलि चौविह सुरवर), ७९६८३-१, ७८५४०-५(#$) समुद्रपालमुनि सज्झाय, मु. तेजमल, मा.गु., गा.११, वि. १९६८, पद्य, मूपू., (समुद्रपाल मुनि वंदीए),७८२४५-१ समुद्रपालमुनि सज्झाय, मु. ब्रह्म, पुहिं., गा. ८, पद्य, पू., (चंपापुरि पालित नामै), ७७८५५-३(+) समूर्छिम मनुष्योत्पत्ति १४ स्थान सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (चालो सहीयर मंगळ गाइए), ८००८५ सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लच्छ ऋषि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (वीस जिणंदनो धाम नाम),७९९११-२ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८४६, पद्य, मूप., (आज भलै मै भेट्या हो), ७९७२९-१(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. जिनसौभाग्यसूरि, मा.गु., गा. १७, वि. १८९५, पद्य, मूपू., (सिखर समेत जुहारो), ८०८१९ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रामचंद वाचक, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (दरसण पायो जिनजी को),८०९७०-१ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (साहिबा समेतशिखर गिर), ८०९७०-२ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन उग्यो), ७८४९७-२ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (जीउ कर रे जात्र शीखर), ७९२२५-२(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. वीरचंद, मा.गु., गा. ७, वि. १८८९, पद्य, मप., (समेतशिखर गिरी वंदिये), ८११४०-१(#) सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, पद्य, मपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), ७७७४३(+), ७८७११(+#s), ७७६५६-२(5) सम्यक्त्व ६ स्थानकबोल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (छ विह जयणाना धर्म), ७९५४३ सम्यक्त्व के ९नाम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य समकित भाव), प्रतहीन. (२) सम्यक्त्व के ९ नाम विचार-विवरण, मा.गु., गद्य, मपू., (द्रव्यसमकित कहता), ८१०२० सम्यक्त्व छप्पनी, मा.गु., गा. ५६, पद्य, मूपू., (इम समकित मन थिर करो), ७७७७६-१ सम्यक्त्व पद, मु. जिनभद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वनि वनि चंदन न नीपजे), ७८२०१-४ सम्यक्त्वबोध पद, पुहि., पद. ४, पद्य, श्वे., (अब मेरे समकित समण आए), ७९६१४-१८(+) सम्यक्त्वभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (औपशमिक अंतर्मुहुर्त), ७९३६२ सम्यक्त्व शीयल रास, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (पढम जिणेसर प्रणमी), ७७७८१-१(+) सम्यक्त्व सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (सुणि सुणि रे जीवडा),८०९२२-४ सम्यक्त्व सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (देव नीरंजन गुरनीर), ७७७४८-२ सम्यग्दृष्टि, देशविरति व सर्वविरति ११ बोल, मा.गु., गद्य, मप., (विधिवाद १ जे वितरागइ), ८०१८०-१ सरस्वतीदेवी छंद, मु. खुशालकपूर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरस वचन आपे सदा तुं), ८०४९४(+#) सरस्वतीदेवी छंद, मु. दयानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (मा भगवती विद्यानी), ७९८३९-१ सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा.१०, पद्य, मपू., (बुद्धि विमल करणी), ७९६८१-१, ८०५१७(#), ८११३६-६(#$) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.ग., गा. ३५, पद्य, मप., (सरस वचन समता मन),७९४२०(६),७९९३३-१(६) सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मपू., (शशिकर जिनकर समुज्ज्व), ८०४९२-१ सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐकार धुरा उच्चरणं), ८०७३३-२(+) सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मपू., (सरसति सरस वचन समता), ७९२५८-१(+#$) सरस्वतीमाता छंद, मा.गु., गा. ४३, पद्य, जै., वै., (सरसति भगवती जग), ८०४८०(5) सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.ग., गा. १६, पद्य, मप., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ७९५०१-१,७८५२६-१(#$) सर्वार्थसिद्धविमानादि परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सरवारथसिद्ध विमान), ७९७५२-४(#) सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सरवारथ सिद्ध चंद्रइ), ८००६३-१(+#), ८०७०२(+), ७९८१६-३(#$) सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सहसकूट जिन प्रतिमा), ७९२०९-१, ८१०४९(#) For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं.८००, वि. १६५९, पद्य, म्पू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ), ७९६९२(+$) सागरचंद्रकुमार द्रष्टांत, मा.गु., गद्य, श्वे., (द्वारापुरी नगरी तहार), ८०३६६-१ सागरचंद्र चौढालियो, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १८९८, पद्य, श्वे., (सागररायनी वारता कहुं),७९६५३(#$) सागरोपम पल्योपम पूर्वमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (तीखै सस्त्रै देवतानी), ७९८७२ साचलदेवी गीत, चूहड, रा., गा.५, पद्य, श्वे., वै., (सरसति गणपति वीनवुने),७८२१७-१(+) साढापच्चीस आर्यदेश विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (मगध देश राजगृही बे), ७८०३०-२ साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, मप., (मगधदेस राजग्रहीनगर), ७८४९२-२(+) साधारणजिन आरती, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (उतारो आरती दुख), ७९९१०-४(+), ८०१०६-२ साधारणजिन गीत, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनराज सुणौ मोहि वीन), ७९०८५-५(+) साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (तु निरंजन इष्ट हमेरा), ७९८७१-२(#) । साधारणजिन धमाल, पं. आनंदविजय, पुहि., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मप., (प्राणी ऐसै जिनंद सै), ८०४१९-१(+) साधारणजिन धमाल, पं. आनंदविजय, पुहिं., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मप., (मोरे ऐसे जिनंद सै),८०४१९-३(+) साधारणजिन धमाल, पं. आनंदविजय, पुहि., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मपू., (होरीया जिनरंग खेलो), ८०४१९-६(+) साधारणजिन नमस्कार, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सीमंधर प्रमुख सवे), ७७६०३-२ साधारणजिन पद, मु. अमर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दरसण पायो प्रभुजी), ७८६४३-२(#) साधारणजिन पद, मु. गुमान, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (फरसे जिनराज आज राजऋद), ७८९४७-१(#$) साधारणजिन पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (प्रभु तुम छो जी कायर), ८०४२४-३(-) साधारणजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (परतख पास अमीझरो), ७८९९५-४(2) साधारणजिन पद, मु. दौलत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सरण जिनराज तेरी हो), ७९८१८-१(#) साधारणजिन पद, मु. द्यानत, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिन नाम आधार भवि), ८०८९६-१५(२) साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (इस वि० जिन जिन मुख), ८०१३८-३ साधारणजिन पद, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (जिनराज हमारे दिल),७९४१७-२ साधारणजिन पद, मु. भानुचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (बहोत रोज से जस्ते), ७९७३५-३(#) साधारणजिन पद, मु. मालदास, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (भलै मुख देख्यौ), ८००५२-२ साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीउ लागी रह्यो पर), ८११७५-३ साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (परम प्रभु सब जन शब्द), ८०४८४-१(+) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (देव निरंजन भव भय), ७७७८२-५ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (राखो मोहि राखो नाथ), ८०९८६-३ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (लोक चहुद के पार), ७९६१०-२(+-) साधारणजिन पद, मु. वीरचंद, पुहि., पद. ६, पद्य, स्पू., (प्रभुजी मोनुं प्यारा), ८११४०-४(2) साधारणजिन पद, मु. सीवचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (जुहारै जुहारै जुहारे), ७९१७२-२(2) साधारणजिन पद, पंडित. हरसुख, रा., पद. ४, पद्य, श्वे., (थारा चरणांसु मारो),७९६१४-२७(+) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (इंद्र कलश भरि ढारै), ७८७४७-२(+) साधारणजिन पद, पुहिं., गा.१, पद्य, मप., (केई उदास रहै प्रभ), ७९४११-२ साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (क्यूँ दीननाथ मुझ पे), ७७७६१-१ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (गाय गाइ सब पाउं ताहि), ७९८५१-२(+#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा.१, पद्य, मूपू., (देखकर जिनकी दया),७९५७३-३(+) साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मगन भये माहाराज), ७८६८१-३(+#) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सन लीजे विनती हमारी), ७९४७४-१(-) For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ साधारणजिन पद-औपदेशिक, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूप., (तुम जिनंद जगतपति), ७९६१४-२६(+) साधारणजिन पद-त्रितालबद्ध, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (देवी देवन समूह मेरु), ८०१३८-१ साधारणजिनपूजा पद, पं. आनंदविजय, पुहिं., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (श्रीजिनराज संभारो रे), ८०४१९-४(+) साधारणजिन लावणी, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुं ही अरिहंत तुं ही), ७९२८२-२(+) साधारणजिन स्तवन, मु. क्षमासागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रभु मूरत थारी सारी), ७८८९५(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवरजी छो), ७७८३८-३(+) साधारणजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेहियो प्रभुज), ७७९४६-२ साधारणजिन स्तवन, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. १९, पद्य, स्था., (हढवाडो मेलाजी सो), ७८१५४-३(+) साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आय वसो जिनराज मेरे), ८०७८६(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब जिनराज कृपा होवे), ७७७३२-२(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (जिणंद गुण गाइए जिणंद), ७७७३२-१७(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मप., (निस्नेही शं नेहलो),७९०१८-२ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (भोर भयो भयो भयो जागी), ७७७३२-९(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सकल समता सुरलतानो), ७७७३२-१०(+) साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आबोलो स्याना ल्यो छो), ८००५१ साधारणजिन स्तवन, मु. धर्मसंघ, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चलो सखी जिनवंदन जईइ), ८०१५४-१ साधारणजिन स्तवन, मु. नवल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (अटके नेणुदीजे जिन), ८१०७४-३ साधारणजिन स्तवन, मु. भूधरदास, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (सुणि हो अरिहंत देव), ८११२१-१(#) साधारणजिन स्तवन, मु. सुविधिकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी अरज सुणीजे), ८०९७८-२(2) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (लागो चीत सुजाणसं वर), ७९२७५-४(+$) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (वंदौ श्रीजिणराज मनवच), ८०७१८-४(+$) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (होयगो कब छन० केवली), ७९३२४-१ साधारणजिन स्तवन-औपदेशिक, मु. गुमानसिंह ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सरणोजी मोटो श्रीजुग), ८०४०३ साधारणजिन स्तवन-त्रिगडाअधिकारमय, ग. पद्मसागर, मा.गु., गा. १९, वि. १७०९, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ कुल चंदलो), ७९९७८ ३(4) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ७८४६३-५(#$) साधारणजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मिल चौविह सुरवर), ७९८३८-१ साधारणजिन हिंडोला, मु. ज्ञान, पुहि., गा. ६, पद्य, मपू., (प्रभु भजो चितलाय), ७९४७४-२(-) साधारणजिन होरी, पं. आनंदविजय, पुहिं., गा. २, वि. १९वी, पद्य, मूप., (जिन संग खेलो प्रभु), ८०४१९-२(+) साधारणजिन होरी, पं. आनंदविजय, पुहिं., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मप., (प्राणी श्रीजिनराज की), ८०४१९-५(+) साधारणजिन होरी, मु. कवियण, पुहिं., दोहा. १५, पद्य, मूपू., (देव जिणंद साधगुरु), ७८८१९-१(+) साधारणजिन होरी, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (धर्मवसंत सुहावणो), ७८८१९-२(+) साधु आचार १०८ बोल, पुहि.,मा.गु., गद्य, श्वे., (जति थइनै आधाकर्मी), ७८९३०-१(+) साधु आचार पद, मु. शंभुनाथ, पुहिं., पद. ५, पद्य, श्वे., (जाजा द्यो रे सहीया),७९६१४-२१(+) साधु आचार विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (साधुनो आचार कहै छै), ८०८०३-२ साधु आचार सज्झाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे., (वीरजिणेसर उपदिस्यो), ७८७३८, ८०१२७-१(-) साधु आचार स्तवन, मु. मोतीचंद, रा., गा. ५३, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (चेलुजी स्वामी घर छोड), ८०७९२(+), ७९१०१ साधु आहारदोष बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ साध साधवी ने अर्थे), ८११२७($) साधुगुणकीर्तन सज्झाय, मु. योगेंद्र, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सरसति स्वामिनी प्रणम), ८०१६८-२(+) साधुगुण गहुंली, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (षट्व्रत सुधा पालता), ७८३०६-२ For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधुगुण सज्झाय, ग. कल्याणधीर, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मूपू., (संजम सूधो आदरइ जे),७९५६६(#) साधुगुण सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहि., गा. २३, पद्य, मूपू., (सुणो सुणो भवक मन),७८६०९-२) साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सकल देव जिणवर अरिहंत), ७९७१३-२(+) साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (पांचेइंद्रीरे अहनिस), ७९७१३-१(+$) साधुगुण सज्झाय, ग. विजयविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत सुधां), ८०९२२-५ साधुगुण सज्झाय, ग. हर्षविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ते बळीयो भाई ते बळीय), ७९५७१-३(4) साधुगुण सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (कवरा साधतणो आचार), ८१०१२-३ साधुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (ग्रीस्म तापनं दूह), ८११८४-१(-) साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (समकितधारी सुधमती जी), ८०८५६(+#), ८१२५०-१ साधुपद सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पंचोइ इंद्रीजि अहो), ७९९८१-१, ८०९२२-३ साधुवंदना, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ४१, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (पो सम उठ्या भावस्यु), ८००९८-१ साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. ८८, पद्य, मपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), ८०१५५-१(+), ८११९६(+), ७८२९६ ४,७८५१३(#) साधुवंदना, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गा. २९, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर प्रणमुं), ८०७४०(+) साधुवंदना, मु. शांतिकुसल पाठक, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (साधु गुणेस जै भलाजी), ७९८०३(2) साधुवंदना, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (ज्ञान करी पांचसे),८०९१७ साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, मप., (पंचभरत पंचएरव जाण), ८११८२(+$) साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमुं अनंत चोवीसी), ७८७५४(+), ८०७४९(+#), ८११११(+#), ७८१५०, ७८२८९(२), ७९६६६-१(१), ७९४९५(६) साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ५९, वि. १८०७, पद्य, श्वे., (नम अनंत चोविसी), ७८४५०(+), ८१२३४-२($).७७७३३( साधु विहार वर्ण्य क्षेत्र बोल, रा., गद्य, श्वे., (साधनै पूर्वकानी चंपा), ८०१२६-२ साधुसंगति सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रवचन वचन सोहामणां), ७९४५४-२ साधुसंयम सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सोहे ने सलोन हो), ७८३२३-३(६) साधुसाध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (कोइ साधु काल करे तथा), ७९९४९(+$) साधु सामाचारी, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे साधु आधाकरमी उपास), ७८९६४($) सामान्यजिन पद, मु. ज्ञानानंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (ब्रमरूप जोति रूप),७८५३८-३ सामान्यजिन पद, मु. ज्ञानानंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (ब्रह्मज्ञान कांति), ७८५३८-४ सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सामायक व्रत शुद्ध), ८११६८(+#) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., गा.८, वि. १७५८, पद्य, श्वे., (श्रावक व्रतधारी गुण), ७८२२६-१(+), ८०७०६(4) सामायिक ३२ दोष स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (जिनवरना प्रणमुं पाय), ७९१८५-१(+) सामायिक सज्झाय, मु. लालचंद, मा.ग., गा.१२, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (मन वचन काया सावज),७९७१०-३(+) सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., गा. २३७, वि. १५४८, पद्य, मूप., (श्रीपार्श्वनाथ सुमरन), ८१२१२ सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय, मा.गु., गा. १५४७, ग्रं. १६००, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सकल मंगल धर्म धुरि), ८११५२($) सिचियायमाता स्तुति, मा.गु., पद्य, मूपू., (सिचियाय माय पग सेवता), ८१०४२-३(+#) सिझणा द्वार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिली नरकनां नीकल्या), ८०४३२ सिद्ध के ८ गुण, मा.गु., पद्य, मपू., (समत्तनाण दंसण वीरिय), ७९६१६-२ सिद्धगति विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पूर्वप्रयोग१ गती),७८६२१-२($) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधतां), ७९०६५, ८०९६७-१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र महामंत्र), ८११२९-३ For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ ५९१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधतां), ७८६८६-२ (+#), ७९८५३-१, ७८०८३ १(७) सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्ति शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नवपदनो ध्यान धरीजे), ७८६७६(+) सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा सार सांभल), ८०९७६-२, ७८७२०-३(#) सिद्धचक्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (मारे हो हाथ में नोकर), ७८०७९-१(+) , सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद माय प्रणमी), ७९५००-१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू. (सिद्धचक्रनी करुं भव), ७९७४४- १(४) सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वखाण्यौ), ७८७२०-४(#$) सिद्धचक्र स्तवन, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र तुमे), ७८७१६-१($) सिद्धचक्र स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीजयति तीरथपति), ७७८६३(+$), ७९७५८-१(+) सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (सिद्धचक्र वर सेवा), ८०५८०-१(२४) सिद्धचक्र स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सुहामणो), ७९७८१-१ सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. २५, पद्य, मूपू (जी हो प्रणमुं दिन), ७७६२६ (+३), ७९५००-२, ८०३७२, ७९७९१०), ७९९९२ (४) . सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (सरस्वतीने चरणे नमी), ८०९०१(#$), ८०८६२($) सिद्धचक्र स्तवन, मु. शिवसागर, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर जिणेसर), ७९९०४(+#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. हेमविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्धन पाए), ७८५५२ सिद्धचक्र स्तुति, मु. अमृत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधो), ७८७१६-४ सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), ७८४६३-७(#$) सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंगदेश चंपापुरी वासी), ७८०७९-२(+) सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहिले पद जपीड़ अरिहंत), ७८७१६-२ सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक), ७८४८७-१(२) ७८५४०-२(२), ७९७३७-१(क), ', ७८६३३-५ ($) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (वीरजिणेसर अति अलवेसर), ७९५१७-१(म) सिद्धचक्र स्तुति, मु. नेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीआदीश्वर जिनवर ), ८०१४२-३ सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर अति अलवेस), ७८७१६-३ सिद्धचक्र स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर पुजीनीक), ७८०८२-३ (# ) सिद्धदंडिका स्तवन पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., डा. ५, गा. ३८, वि. १८१४, पद्य, मूपू. (श्रीरिसहेसर पाव नमी), ७८०९७(S) सिद्धदंडिका स्तवन मा.गु.. गा. १३, पद्य, मूपु. ( विपुल विमलमति विमल), ७८८९२-१(*) " सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम पृच्छा करे), ८०४१६ सिद्धशिला नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (ईसीतिवा १ ईसिपभाराति), ७९७७६-१(+) सिद्धांतसारविचार सज्झाय, आ. आणंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., डा. ३, गा. १५, पद्य, मूपू. (श्रीजगनाथि समुखि), ७९५३९- १(७) सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम जंबूद्वीपविचार), ७९३०१(+$) सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (छोडी हो पिउ छोडि), ८११४६ सीतासती चरित्र, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ७९५२६ ($) सीतासती चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ७८५७८ (5) सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुं नाम), ८००३०-२ सीतासती सज्झाय, मु. जयवंत शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि वीनवुं), ७८८७८-१ ', सीतासती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु. दा. ५, पद्य, म्पू., (माता सरसत वीनवुं), ८०३७७-३ (+5) सीतासती सज्झाय, मु. भोजसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू. (दशरथ नरवर राजीयो), ७९११६ For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीतासती सज्झाय, मु. मूलचंदजी शिष्य, मा.गु., पद्य, श्वे., (आदिजिन आदिदेव चोवीसे), ७७८००(+#S) सीतासती सज्झाय, मु. लक्ष्मीचंद, पुहिं., गा. १६, पद्य, मप., (मुनिसुवरतस्वामी),७७९६८-२(-5) सीतासती सज्झाय, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (सोयन बारिम मीरग चरछ),७७९६८-१(-) सीतासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८१०३५(5) सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मप., (जलजलती मिलती घणी रे), ७८८७२-१, ८००३८-४, ८०५६७-२,८०७१७-२(#) सीताहरण पद, गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., (रथसु निरखत जात जटाई),८०४९१-१३(+) सीमंधरजिन खमासमण दहा, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (अनंत चोवीशी जिन नम),७७६०३-३ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (वंदं जिणवर विहरमाण), ८०७७१-२, ७८८८३-१(#) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (पहिला प्रणमु), ७८०८३-२(4), ७८६७९-१(2) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. लच्छ ऋषि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (श्रीसीमंधरस्वामि), ७९९११-१ सीमंधरजिन चैत्वंदन, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (विहरमान जिन वीसमा), ७८०८३-६(#) सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, मल्लिदास, मा.गु., गा. ८७, पद्य, मूपू., (नमीय सीमंधर स्वामि), ७८३९९(#$) सीमंधरजिन विनती पत्र, क. नर, मा.गु., पत्र. २, गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीमहाविदेह),७९०४३, ७८५९९(६) सीमंधरजिन विनती स्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. १०५, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपुष्कला), ८११३१(+$) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., गा. ८, पद्य, स्था., (पुर्व पुखलावती बीजै), ८११२०-१०(+#$), ७९६३७-२, ७९१७२-१(4) सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हुँ), ७८२५८-२(+$), ७८५२२-३(+$), ७९७३१-१(+#), ७८०२४, ८०२४८-१, ७७८७८-२(4), ७९३३८(#), ८०९८२-२(5) सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (स्वामी सीमंधर विनती), ८०७१२-१(६) सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मपू., (मारी वीनतडी अवधारो), ७९५०९-२(2) सीमंधरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न*, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवशे), ७९८७१-१(4) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महाविदेह क्षेत्रनो), ७९१४७-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही साजन), ७७९४६-१ सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडुं हेजालवू), ७८८४०-१(s) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (पूर्वविदेह विजये), ७८८८३-२(2) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिबा), ८००८४ सीमंधरजिन स्तवन, मु. तिलोकचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (शिवपुर नगर सुहामणो), ७९२१८-३(-) सीमंधरजिन स्तवन, मु. नथमल, मा.गु., गा. १५, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (पुरव देसा हो प्रभुजी),७७७२३-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. भगवानदास ऋषि, पुहि., गा. १०, वि. १८९३, पद्य, श्वे., (मना तुम माहादेव जाणा), ७९७९२-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू., (ओलुडि महाविदेह), ७९१००-१ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूप., (धन्य ते मुनिवरा रे), ७९३३५ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुष्कलवइ विजये जयो), ७९९७८-२(+), ८०१८९-२(+), ७८६७०-१(#5), ८०८३३-४(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (धन धन क्षेत्रविदेह), ८१२०४-३(+) सीमंधरजिन स्तवन, पं. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८७३, पद्य, मपू., (मनडो उमाह्यो हो दरसण), ७८१५४-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (श्रीसीमंधर साहिबा ह),७८६८१-२(+#), ७९१८२,७९९९४(2) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८२४, पद्य, स्था., (महाविदेह मे विराजीया), ७७७०३-२, ७८००३(-) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), ८०००४-१(#) For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., डा. ७, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि सरसती भगवत), ७७७६२(६) सीमंधरजिन स्तवन, आ. विशालसोमसूरि, मा.गु. गा. २७, पद्य, म्पू., (सकलसुखकर श्रीसीमंधर), ७८९१० (+) सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, पद्य, मूपू., (परम मुणि झाणवण गहण), ७८०८०-१, ८०५००, ७९०१२ (३) सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु. गा. १६, पद्य, मूपू. (सीमंधर साहिबा मेरी ), ८०१५७ सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरस्वामीजी), ७८९८१-१, ७९८९०(#) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दोय करजोडीने वीनवु), ८११९०-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू (श्रीसीमंधर साहिबाजी), ८११७१-२ (सीमंधरस्वामी भविक), ७९०३३-५ (+5) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु, पद्य, मूपु सीमंधरजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., गा. १५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रीसेमीधर स्वामी), ७८५६४ सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणागर्भित, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७९८५७ (+5) सीमंधरजिन स्तुति, ग. कान्हजी, मा.गु. गा. ९, वि. १७७१, पद्य, मूपु., (वारी रे जिणेसरराय), ८००२७-२ सीमंधरजिन स्तुति, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मनसुध वंदो भावै भवि), ७८८८३-३(#) सीमंधरजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (श्रीसीमंधर साहेब मेर), ७७७२५-२ सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (श्रीसीमंधर मुझने), ७९३०६-१(M) सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी केवल ), ७८५५४-३ सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, भूपू (सीमंधरस्वामी केवला), ७८८९४-३(+) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "" सुंदरीसतीतप सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामिनी), ८११०४-२(#$) सुकोशलमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू. (साकेत नगर सुखकंद रे), ८०१०४-५ (+) सुकोशलमुनि सज्झाय, मु. सूरचंद, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (नयरी अयोध्या जयवती), ७९९०३, ७८६५५-१(#) सुजात चौपाई, मु. लाल ऋषि, मा.गु. डा. ४. वि. १८९७, पद्य, वे (आदिनाथ सुरतरु समो मन), ७८२९० *) सुदर्शनशेठ चौपाई, जे. क. जवाहरलाल दास, पुहिं., गा. १३४, पद्य, दि. (धन शेठ सुदर्शन शियल), ७८७९१ सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा. गा. १२१, पद्य, वे (बंदु श्रीजिन महावीर), ७७८७२ (+३), ७८०५० (३) ', 3 सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपु. ( शीलरतन जतने घरो रे), ८१०००-४, ७७९३१-२(क) सुदर्शनशेठ सज्झाय, मा.गु. डा. १९ गा. १०५, पद्य, मूपू (भीलरा ना गुण घणा सां), ८०२०५ (४) सुदर्शनशेठ सज्झाय-शीयलविषये, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (रीस चढी बोलै छै राणी), ७८७२९() सुदर्शन श्रेष्ठि कथा, मा.गु., गद्य, मूपू. (जे गृहस्थ को सील), ७८२४४(५) सुदर्शनसेठ सज्झाय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३१, पद्य, श्वे., (रीस चढी बोलै छै राणी), ७९२६२ सुधर्मदेवलोक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुधमदिवलोकना रे), ७९८६२, ८१०५५-१ सुधर्मास्वामीगणधर सज्झाय, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु.. गा. १५, पद्य, मूपू. (मुनिवरमां परधान), ७७८७६-२ सुधर्मास्वामीगणधर सज्झाय, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वीर मुखे सुणी त्रिपद), ७९८०६-२(+) सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. मनमोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीर पटोधर वंदीयै रे ), ८११६४-२ सुधर्मास्वामी गहुंली, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (ज्ञान दरसण गुण धरता), ७८३०६-३ " सुधर्मास्वामी गीत, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १३, वि. १८३९, पद्य, वे (भरतक्षेत्रमे भलो), ८०७५८-३ सुपांतर सवैया, मु. नंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे. (श्रीसिद्धारथकुलतिलो), ८०८२१(+) सुपार्श्वजिन गीत, ग. कुंअरसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज सुपासजिन मिलीओ), ८०२७३-१(#) सुपार्श्वजिन पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभुजी प्रभु सुपास), ८०८९६-६(#) सुपार्श्वजिन स्तवन, पन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपु. ( देह गेह सोहाविए मन), ७९२३०-४(*) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु, गा. ७, पद्य, म्पू. (नीरखी नीरखी तुंज), ७८६३६-४(१) सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. श्रीसुपास जिनराज), ८०७२०-२ For Private and Personal Use Only ५९३ Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. राजऋद्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुपास जिनराया हूं), ७९३०८(#) सुपार्श्वजिन स्तवन-मांडवगढ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (जिण सुपास नमु गढमंडव), ७७६४५-३(+) सुबाहुकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., गा. ८९, ग्रं. १४०, वि. १६०४, पद्य, मूपू., (पणमि पास जिणेसर केरा), ७८४४७(#) सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., गा. ४३, वि. १९६१, पद्य, श्वे., (सफल कर लीनो नरभव आप), ७८९३४-३(+) सुबाहकुमार सज्झाय, मु. प्रेम मुनि, मा.गु., गा. २१, वि. १७२८, पद्य, श्वे., (धर्म जिणेसर चित्त), ७९८८५(2) सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (हवे सुबाहुकुमार एम),७९२७१, ८०४१२ सुभद्रासती ढाल, रा., गा. २५, पद्य, श्वे., (सुभद्राजी दीठा आवता), ८०८७८ सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ४, वि. १७५९, पद्य, मप., (सरसति सामणि वीन), ७९०९६-२ सुभद्रासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (मुनिवर सोधइ ईरजा), ७८३३६-२(+) सुभद्रासती सज्झाय, मु. भानु, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं ते सारद), ८०९८२-१(६) सुभद्रासती सज्झाय, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मप., (वीर जिणेशर केरो सीस),७७९७०(+) सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मुनिवर सोधेरे इरजा), ७९७४६-४(+#) सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. संधो, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (मनीवर सोधे इरया जीव),८०७५१(#) सुमतिचंदकुमतिचंद कथा, रा., गद्य, मपू., (सुमतचंद आजकालतो धंधो),७७८९९-१ सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभुजी जो तुम तारक), ८१२४०-३(2) सुमतिजिन पद, पुहि., गा. १९, वि. १७४३, पद्य, दि., (प्रथम ही सुमती जीणेस), ८१२४७ सुमतिजिन स्तवन, मु. भीमजीशिष्य ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सुमतिप्रभुजी हो जिण), ८०४४१-४(+) सुमतिजिन स्तवन, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (व्हाला सुमति जिनेश्व), ७८१४४-३, ७८२६८-३ सुमतिजिन स्तवन, मु. रतनसागर, मा.गु., गा. १०, वि. १८१९, पद्य, मूप., (हां रे म्हाराज सुमति), ७८१०७-२ सुरप्रभजिन स्तवन, मु. लाधो, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (मुज मन प्यारी हो), ८१२४४-२ सुरप्रियमुनि सज्झाय, मु. धनविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, भूपू., (जिनवरनाम हदइ धरीजी), ७९४६८(+) सुरप्रियमनि सज्झाय, मा.गु., गा.७०, पद्य, श्वे., (सरसति देवसदा मनि धरू),७९१०८(+) सुरप्रियसाधु रास, मा.गु., गा. ७४, पद्य, मूपू., (--), ७७७९९(5) सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., खं. ४ ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मपू., (सासण जेहनउ सलहियइ), ८०८९८($) सुरसुंदरी चौपाई-दशमीव्रतगर्भित, मा.गु., पद्य, श्वे., (बे कर जोडी पणमो पास), ७९६९६-२(+$) सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. २१, गा. ५१७, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (आदि धरमने करवा ए भीम), ७९०६८(+$) सुविधिजिन गीत, ग. कुंअरसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (सान करी समझावीइं रे), ८०२७३-३(#$) सविधिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (ताहरी अजबशी योगनी),७८२६८-५,७८६३६-२(2) सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मप., (में कीनो नहीं तुम), ८०८१२-२ सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (वांकै गढ फोज चढी है), ८१००४-१२(#) सुविधिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुंही जगतपत जीवका), ८०८५२-३(#) सूक्ष्मछत्रीसी, मु. खेम, मा.गु., गा. ६२, वि. १८४१, पद्य, श्वे., (सुखम छत्तीसी सांभलो), ७९९०५-१(+#) सूतक विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म होणेंसे), ७८०२३(+) सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म्यां १०), ८०८६०-१(+) सूतक विचार-जन्म, मा.गु., गद्य, श्वे., (पुत्र जन्मे त्यारे), ८०४०४(+) सूर्यचंद्र अंतर विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मध्य मांडलाने विषइं), ७८७१९-१(+) सूर्य छंद, आ. भाणसूर, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (मन दल कमल खोज नमत), ८०४९८ सूर्याभदेव सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (ए आवै असवार घोडारी), ७८८२८(#$) सेवकराम गुरुगुण सज्झाय, मु. सेवकरामशिष्य, मा.गु., गा. २५, वि. १९३१, पद्य, श्वे., (पंचपरमेष्टी प्रणम्), ७९३५९-१(-) सोमलब्राह्मण छात्र नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (अपापा महानगरीयइ सोमल), ८०५७२ For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१९ सौभाग्यकरो यंत्र, रा., गद्य, मप., (चउवीस तीर्थंकरनी आण), ७८७०६ सौभाग्यपंचमीपर्व कथा, मा.ग., गद्य, मपू., (भरतक्षेत्रमा पद्मपुर),७७७३१-१ सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. हर्षशील, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मूप., (प्रणमुं श्रीगुरुपाय), ७८९१७-१(+#), ८०४३५(2) स्तवनचौबीसी, मु. मुक्तिविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रभुना चरणनी सेवा), ८०३१९($) स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ७८५३९(+#s), ७८५५९(+$), ७९३८१(#S), ७९५१८(६), ८०९८६-१(६) स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मरुदेवीनो नंद माहरो), ७९५६४-१,८०८८८(#$) स्तवनचौवीसी, मु. कवियण, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (साहिबा वालेसर अरिहंत), ७७८३४(+$) स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मपू., (आज अधिक भावे करी),७९४८४(६) स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.ग., स्त. २४, वि. १७वी, पद्य, मप., (मनमधुकर मोही रह्यो), ८०१३१-३(+$), ८०८५३(६) स्तवनचौवीसी, क. पद्मविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मपू., (ऋषभ जिनेश्वर ऋषभ), ७८९६६(5) स्तवनचौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., स्त. २४, गा. १२०, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (जग चिंतामणी जगगुरु), ७८३२१(#$) स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ), ७९८९२-१(+#), ७९६९८(#$), ७९९०९(5) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव सुखकारी जगत), ७८२३१-१ स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मप., (जगजीवन जगवालहो), ७८८४१(+$), ७९४५३(+), ७८६३८-१(#S), ७९३८५ (#s), ८०१६०(#$), ७७८३३($), ७८०४६(s), ८१२४८(६) स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, श्वे., (श्रीआदिश्वर सामी हो), ७९१३४($), ८१११५(5) स्त्रीपुरूषमध्य प्रथममृत्युविचार दोहा, पुहि., दोहा. २, पद्य, वै., इतर, (अख्यरबिंदु उकारि दण), ७९२८९-२(+) स्थुलिभद्र सज्झाय, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर जिनेसर), ७७९३१-३(#) स्थूलिभद्रकोशा संवाद सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरस्वतीने चरणे नमी), ७८३५९-१(#) स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, मु. किसन, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (चतुर करण चोमास सुगुर), ८०९१६(+) स्थूलिभद्र कोशा सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (मृगवयणी रे ससिवयणी), ७८८२५-२(+$) स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूप., (सुखसंपति दायक सदा), ७८०८८(+$), ७८७४२(+६), ७९४४४, ७८०४१-१(१), ७९८५४(#s), ७७९०२($), ७८७५३(5) स्थूलिभद्र बारमासा सज्झाय, मु. प्रीतविमल, मा.गु., गा. २०, पद्य, मपू., (सम्यग्दृष्टीजीवडो), ७९३२०-२(#) स्थूलिभद्रमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आवत मुनि के भेखि देख), ८०१०४-३(+) स्थूलिभद्रमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (प्रियुडा मानो बोल), ८०१०४-१०(+), ७९४०२-१ स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, मु. वरमल्ल, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (इण भरतखेत्र में सोहै), ७८९५१-२(#$) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हुं तो तुम गुणे), ७७८०७-२(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (कोस्या कामिनि कहे), ७८३११(२), ७९१६१(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लींबो, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (चतुर चोमासुं पडिक्कम), ७७६४५-५(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांति, मा.गु., गा. १४, पद्य, पू., (बोली गयो मुख बोल), ८०११९, ७८१२८-२(#$) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., थूलभद्र मुनीसर आवो), ७९०१६-६(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडली न किजीये), ८०१३१-२(+), ७८८७२-२, ७९३१६-२(2), ७९३२०-३(#s) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (थुलिभद्र मुनिसर आवो), ८०१२२-२(#) स्नात्र पूजा, आ. मंगलसूरि, मा.गु., गा. २१, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (मुक्तालंकारविकारसारस), ७८७४७-१(+) For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा.८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन),७९२९२(+#), ७९३५१(+#$), ८०७७६(#), ७८७१८(६), ८१०९५-१(६) स्नात्रपूजा सामग्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (केसर सुखड अंगलुछणा), ८०७६३ स्वप्नफल चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., गा. ४२, वि. १५६०, पद्य, मूपू., इतर, (पहिलो मन जोइ करि), ७८८२५-१(+) स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, इतर, (सांभलु १ भोगव्यु), ७८२४०-२ हंसराजवत्सराज चौपाई, मु. वर्द्धमान, मा.गु., खं. ४, वि. १७०५, पद्य, मपू., (--), ७९४०९(+$) हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१, वि. १८१०, पद्य, मप., (प्रथम धराधर जगधणी),७९८३७ १(#$) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मा.ग., पद्य, मप., (सरसती सामण विनवू),७८७७७(+$) हर्षचंद्रसूरिगुरुगुण गहुंली, मु. देवजी ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरु चरण पसाय), ७९८६४-१(+#) हर्षसूरिगुरुगुण भास, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीसारद मनमां आणी), ७८०५९-३(+) हितशिक्षा चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, मप., (णि मिरगावती हवइ), ७९३२६(#$) हीरविजय बक्शीसराशि पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मपू., (एक कोड लाख नेउ सालीस), ८०४६३-२(+#) हीरविजयसूरि छंद, मु. शिवचंद, पुहिं., गा. ४३, पद्य, मपू., (एक योगी जंगम मठवासी), ८०१९७-५(+) हीरविजयसूरि बारमासा, मु. सचवीर मुनि, मा.गु., कडी. ५८, वि. १६१६, पद्य, मपू., (सरसति भगवती गुणवती), ७९६००-३(#) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीजी वीन), ७९९१५-१ हीरविजयसूरि सवैया, मु. सत्यसागर, पुहि., दोहा. ५, वि. १६४१, पद्य, मपू., (सकल सोरठ की बंद), ८०१९७-४(+) होलिकापर्व कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रमाहै वसंत), ८०१४७ For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandit char TeanthirungRR3 SOTRUCRRANDRANI SearesiBaateio windicomdhansha 199HARATI P lean आराधना जानवरmovi गनपतविपmaunee परवरmarenefits मोनोपटOn साभारदिपावलिका अतिरिणशिलिaman विविधाविद्यमीनतमीगाळ enामनगरदिपार ma nfondon रेप मीoimananduteam गाशकापायी mppiesmastraamana amavsamaymadamaTV महावार कन्द्र को श्री कोबा. // मगहमीरम AAAPAKCalenitho अमतं तु विद्या करक Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagars E-mail : gyanmandir@kobatirth.org Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-81-88177-928 Set: 81-88177-00-1 For Private and Personal Use Only