Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 19
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९
४२५
१. पे. नाम. गजसुकुमालजीरी स्वाध्या, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.
गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराजतणी; अंति: सहीने पोहता सिवपुरी, गाथा-४२. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक दहासंग्रह-विविधविषयोपरि*, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: हित करता होवै नही; अंति: बोल्यासु लख
लीजै, गाथा-२. ८०८९४. रोहिणीतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४४१२, १४४२७-३०).
रोहिणीतप सज्झाय, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: सरसती पाय नमी करी; अंति: सास्वता सुख
पावते, गाथा-४५. ८०८९५ (+#) साधुपाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जोधपुर, लिख. मु. मूलचंद; प्रले. छबीलराज
व्यास, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १६४३६-४०).
साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ८०८९६. (#) सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-५१(१ से ४९,५१ से ५२)=३, कुल पे. १५, प्र.वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४४०-४३). १. पे. नाम. षटकसाल सझाय, पृ. ५०अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-जयणा विषये, खीम, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सावयकुल अवतार लहीने; अंति: पंचमगत
फल लेसी रे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ.५०अ, संपूर्ण.
जीवशिक्षा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सोबति थोडी रे नींबु; अंति: पिछताया कां होयो जी, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५०अ-५०आ, संपूर्ण.
जीवदया सज्झाय, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव दया पालीयै; अंति: कवियण जावोजी मोख, गाथा-१०. ४. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ५०आ, संपूर्ण.
मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: चूनडली रंगै राचेली; अंति: उदय० तुम्ह पायै सेव, गाथा-८. ५. पे. नाम. खेमकरणजीकाना द्वादसमास, पृ. ५३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
खेमकरणगुरु बारमासा, क. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: खेमकरण गुरु गाइयै, (पू.वि. प्रारंभ का भाग नहीं होने
से परिमाण का पता नहीं चलने के कारण अंक नहीं दिया है "मानव लहै साख फलै वैशाष" पाठ से है.) ६. पे. नाम, सुपार्श्वजिन पद, पृ. ५३अ, संपूर्ण.
मु. द्यानत, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजी प्रभु सुपास; अंति: द्यानतकुं सुखकार, गाथा-४. ७. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन प्राणी चेतीये; अंति: द्यानित कहत अपार, गाथा-८. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ.५३आ, संपूर्ण.
मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: घटमै परमातम ध्याइयै; अंति: द्यानत लहीयै भौ अंत, गाथा-५. ९. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ.५४अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: मेरी वार क्युं ढील; अंति: वैराग दसा हमरीजी, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५४अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-सम्यक्त्व, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: धृग धृग जीवन सम्यक्त; अंति: द्यानत गह मनवचन मना,
गाथा-४. ११. पे. नाम. ज्ञान पद, पृ. ५४अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक ज्ञान पद, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान सरोवर सोइ हो; अंति: द्यानत० विरला ग्याता, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५४अ-५४आ, संपूर्ण.
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