Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 19
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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४३६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिष संग्रह-, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मंछकृतार्धः कृतकपहीन; अंति: कोठं कह्या छः गणाति. ८०९७९ (+) शाश्वताचैत्य नमस्कार स्तवन व जिनप्रतिमासंख्या विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, कल पे. २, प्र.वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११.५, १२४३४). १.पे. नाम. शाश्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शाश्वताचैत्य नमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभानन वधमांन; अंतिः सदा मुझ परिणाम
ए, ढाल-५, गाथा-१८. २. पे. नाम. जिनप्रतिमासंख्या विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
जिनप्रतिमासंख्या विचार-शाश्वत, मा.गु., गद्य, आदि: ७७२००००० वैमानिपती; अंति: प्रतिमा सर्वसंख्या. ८०९८१ (+#) श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३२). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी छै दुखहरणी एह,
गाथा-२३. ८०९८२. सुभद्रासती सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१,३ से ४)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी: तवन., दे.,
(२४.५४१०.५, १६४३४). १.पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., प्रले. श्राव. ऋषभदास, प्र.ले.पु. सामान्य,
पे.वि. नराणकुसलजी के प्रत से उतारे जाने का उल्लेख है.
मु. भानु, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भानो बोलि०मुझनें छोड, गाथा-४५, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पूर आस्या मन तणी, गाथा-१८,
(पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मा.गु., पद्य, आदि: आज प्रभु खूब बनी है; अंति: भेट्या मोहन पासकुमार, गाथा-१८. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्यौ गोडीजी; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक-२ गाथाएँ हैं.) ८०९८३. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, छन्न जिननाम व पक्खरवरदीव चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९२२, पौष शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम,
पृ. ९-७(१ से २,४ से ८)=२, कुल पे. ३, प्रले. शंकर केवल भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १५४४०). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. करेमि काउ०
वंदणवत्तिआए पाठ से अतिचार पाठ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. छन्नजिन नाम, पृ. ९अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं.
९६ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: वारिषेण३ वर्द्धमान४, (पू.वि. चित्रगुप्त जिननाम से है.) ३. पे. नाम. पुक्खरवरदीव चैत्यवंदन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. पुक्खवरदीवड्ढसूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: पुक्खरवरदीवड्ढे धायइ; अंति: (१)जयओ धम्मुत्तरं वड्ढओ,
(२)सुअस्स० वंदणवत्तियाए, गाथा-४. ८०९८४. अजितशांति स्तवन, पद व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे.,
(२४.५४१०.५, १२४३८). १.पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुखसा;
अंति: श्रीमेरुनंदन उवझाय ए, गाथा-३२. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.
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