Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 19
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 488
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१९ ४७३ मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन शुद्ध; अंति: धरमराग मन मे धरी, ढाल-५, गाथा-४१. ८१२५२. तीर्थंकरवरसीदान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. श्राव. परसोत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२.५, १२४२६). जिनवरसीदान स्तवन, मु. लब्धिअमर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवरदाइने चरण; अंति: लब्धी० वंछित पाया रे, गाथा-२८. ८१२५३. पार्श्वनाथजीरो सिलोको, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२४.५४१२, १४४४२-४५). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल; अंति: चवदे राज रो अंतरजामी, गाथा-५७. ८१२५४. अइमुत्तामुनि चोढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, जैदे., (२५४११.५, १६४३८-४२). अइमत्तामुनि चौढालियो, मु. रत्नचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गणहर गोयम सामंते; अंति: तो छिनमें एकड मंगाउं, ढाल-४, (प.वि. ढाल-४ की गाथा-२ अपूर्ण से दहा-६ अपूर्ण तक नहीं है.) ८१२५५. (#) भावपूजा स्तवन व जंबुस्वामीनुं चोढालियुं, संपूर्ण, वि. १८९७, फाल्गुन शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. नेकनाम, पठ. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल के विषय में प्रतिलेखक ने 'सोरठदेशे नेकनाम ग्रामे' लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १५४३२-३६). १.पे. नाम. भावपूजा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत गुरुदेव प्रणमी; अंति: भवोभव वांछु रे सेव, गाथा-७. २. पे. नाम. जंबूस्वामीनुं चौढालीयु, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीगुरु पदपंकज नमी; अंति: गंगमुनि० ते सुख लहे, ढाल-४, गाथा-४७.। ८१२५६. (#) सौभाग्यपंचमी स्तवन व अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, कल पे. २, प्र.वि. पत्रांक-१४३=१ प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है, अतः पत्रांक अनुमानित दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४४२-४५). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे गुणि, ढाल-६, गाथा-४९. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे __ घणु, ढाल-२, गाथा-२४. ८१२५८. (+) गणधरवाद वर्णन, संपूर्ण, वि. १८२८, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सोपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, २०४५२-५५). गणधरवाद, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेव केवल; अंति: थाकता देवलोकै गया. ८१२५९ मेघकुमार चौढालीयो व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८-४२). १. पे. नाम. मेघकुमार चौढालियो, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मेघकुमार चौढालिया, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरना रे चरण; अंति: रे चको आणा माग रे, ढाल-४. २.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: समजबीयै नवसोलमै; अंति: बैद च्यार पच वांण, गाथा-२. ८१२६१. (4) चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. पालीतणा, प्रले. मु. गणेशविजय; पठ. मु. मुनरूप; ग. हितविमल; लिख.पं. धीरविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: चैत्यवंदन., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, ९४२२-२५). १.पे. नाम. ज्ञानबहमान नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only

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