Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 19
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०७७० (#) नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६५, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पूज्यमहार्षि श्री उदेसिघजी प्रसादात्. विद्वान नाम खंडित., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १५४४४). नेमिजिन स्तवन, म. उदयसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीनेमीसर नित नमु; अंति: उदयसिंघ० प्रमाण ए,
ढाल-४, गाथा-२८. ८०७७१. छंद, चैत्यवंदन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२४.५४१२,
१५४५८). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीयण समरो; अंति: सूरवर सीस रसाल, गाथा-६. २. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.
उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिनविहरमान श्री; अंति: संपदा करण परमकल्याण, गाथा-२. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: राम कहौ रहिमान कहौ; अंति: न चेतनमें नही कर्मरी, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: खलकइ करे नका सुपना; अंति: समझ भूधर भली हे रे, गाथा-५. ८०७७२. पच्चक्खाण के ४९ भांगा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२५४११, १४४४१).
प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मन्यं करी करं नही; अंति: नही अनुमोदु नही. ८०७७३. उपधानतप विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२५४११,१५४५०).
उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ईर्यापथिकी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "आरोविअं
___ इच्छामोणुसट्ठि गुरुभणइ आरोविअं २ खमास" पाठांश तक है., वि. यंत्र सहित) ८०७७४. (+) शुद्ध सम्यक्त्व गुण काव्य, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११,१३४५२).
__ अज्ञात जैन काव्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से गाथा-४६ अपूर्ण तक है.) ८०७७५ (+) आलोयण छत्रीसी व अभिनंदनजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे.,
(२५४१०.५, १८४४५-४८). १.पे. नाम. आलोयणा छत्रीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोय तूं आपणा; अंति: कहे करी
आलोयण उच्छाह, गाथा-३६. २. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सारद चंद समोवडे हो; अंति: आण्णी रिदेय विवेक, गाथा-५. ८०७७६ (#) स्नात्र पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३०). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नैवेद्यपूजा अपूर्ण से
पूजाफलश्रुति दोहा अपूर्ण तक है.) ८०७७७. (+#) स्तवन व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १७४४२-४५). १. पे. नाम. चंद्रप्रभु स्तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. __ चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५, (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. ७अ, संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिर्मतः, श्लोक-११. ३. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.
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