Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 16
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण, वि. १७७२, फाल्गुन शुक्ल, १, सोमवार, ले.स्थल. फलवर्धिका, प्रले. पं. रूपचंद (गुरु पं. दयासिंह, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.पं. दयासिंह (गुरु मु. सुखवर्धन, बृहत्खरतरगच्छ); मु. सुखवर्धन (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. मु. जिनहर्ष (गुरु मु. शातिहर्ष, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.मु.शातिहर्ष (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१०१०) यादृशं पुस्तकं दृष्टं. दीक्षा विधि-विधिमार्गप्रपानुसारी, प्रा.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्र; अंति: वास ९ उस्सगो १०. ३. पे. नाम. तपग्रहणविधि संग्रह, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: एउण पडलेहण थया; अंति: गाथा कही साधु जीमै. ६२९४६. (+#) प्रकीर्णक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४३४-३७). १.पे. नाम. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम "मरणसमाहिपइण्णय" लिखा ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणं, गाथा-६७. २. पे. नाम. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, पृ. ४आ-१२आ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महासयं महाणुभा; अंति: सासय सुखं लहइ सुक्खं, गाथा-१७२. ३.पे. नाम. संस्तारक प्रकीर्णक, पृ. १२आ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०३ अपूर्ण तक है.) ६२९४७. (+#) स्तोत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४०-४५). १.पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: सिद्धी भणइ सिसो, गाथा-१४. २.पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: परमपयत्थं फुडं पास, गाथा-२३. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ-५अ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव० आणदिअ, गाथा-३०. ४. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ७आ-१०आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ६. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) ६२९४८. आनंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १२४२६-३५). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३६ तक है.) ६२९४९. (+) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ११४३७-४५). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. ६२९५०. (#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पठ.मु. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, ७४२२). For Private and Personal Use Only

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