Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 16
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२९५७. (+) चंपकश्रेष्टि कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. चंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४४९).
चंपकश्रेष्ठि कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: चंपानगरी सैगंधिकगाधि; अंति: मोक्षं यास्यति. ६२९५८. (+) श्रावकाराधना, संपूर्ण, वि. १७८३, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३४).
श्रावकाराधना, सं., प+ग., आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रपंपण; अंति: जैन जयति शासनं. ६२९५९. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६-४५(१ से ४२,४५ से ४६,५३)=११, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १०४३०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) ६२९६१. (+) कल्पसूत्रकल्पलताटीका-साधुसमाचारी, संपूर्ण, वि. १८२६, वैशाख कृष्ण, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४५०).
कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२९६२. (+) वास्तुसार प्रकरण व प्रतिष्टासार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. उपयोगी यंत्र सहित.,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४५८-६३). १. पे. नाम. वास्तुसार प्रकरण, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.
ठक्कुर फेरु, प्रा., पद्य, वि. १३७२, आदि: सयलसुरासुरविंद दसण; अंति: गिहपडिमालक्खणाईणं, प्रकरण-३, गाथा-२०५. २. पे. नाम. प्रतिष्टासार संग्रह, पृ. ६अ-११अ, संपूर्ण. प्रतिष्ठासार संग्रह, आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, सं., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धात्मसद्; अंति: धारय धारय स्वाहा, अध्याय-६,
(वि. भूमिपूजन विधि देकर पूरा कर दिया है.) ६२९६३. (+) पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकखामणा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्रले. मु. मानविजय (गुरु
आ. जिनराजसूरि); गुपि. आ. जिनराजसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३४४१). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण.
पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरि० तित्थंकरेय; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ती, ग्रं. ३६०. २.पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. १०आ, संपूर्ण.
हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: नित्थार पारगा होह, आलाप-४. ६२९६४. (+#) शांतिनाथचरित्रगत कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३०-११९(१ से १०८,११५ से १२५)=११, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७-२३४५३-५८). कथा संग्रह-शांतिजिन चरित्रोद्धत, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गुणधर्मकनकवती कथा
अपूर्ण से महीपालसूरपाल कथा अपूर्ण तक है.) ६२९६५. विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(२ से ४)=५, प्रले. मुथरामल, प्र.ले.पु. सामान्य,
दे., (२५.५४१०.५, १२-१५४३०-३७).
___ बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ६२९६७. (+#) सिंदूरप्रकर सह टीका व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५-८४५८). १.पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टीका, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२,
श्लोक-१०३, (वि. प्रक्षेपकाव्य श्लोक-२ सहित.) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: वृत्तिमिमामकार्षीत्. २.पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.
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