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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: से भिकखुवा निख्णी; अंति: विमुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-२५,
ग्रं. २६४४. ६३०३५. (+#) बृहत्संग्रहणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १६६८, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५६,
ले.स्थल. वीरमपुर, पठ. मु. विद्याकीर्ति (गुरु मु. पुण्यतिलक, खरतरगच्छ); गुपि.मु. पुण्यतिलक (गुरु ग.खेमसोम, खरतरगच्छ); ग. खेमसोम (गुरु ग. प्रमोदमाणिक्य, खरतरगच्छ); ग. प्रमोदमाणिक्य (गुरु ग. दयातिलक, खरतरगच्छ); ग. दयातिलक (गुरु उपा. क्षेमराज, खरतरगच्छ); उपा. क्षेमराज (गुरु मु.सोमकीर्ति, खरतरगच्छ-खेमकीर्तिशाखा); राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. जिनकुशलसूरि प्रसादात्. अबरखयुक्त पत्र है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १६-१९४५९-६३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदोजा वीरजिण तित्थं,
गाथा-३४९.
बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभि; अंति: लोकानां सर्वसंख्यया, ग्रं. ३५००. ६३०३६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५, जैदे., (२३.५४१०.५, ५-१२४३२-३८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहताणं० पढम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., वर्तमान चौवीसी में घटित होनेवाली १० आश्चर्यजनक घटनाओं के वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *,मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ नमस्कार होइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,सं., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत समुत्पन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., वि. प्रारंभ में पीठिका दी हुई है.) ६३०३७. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७६-२३(१ से २३)=५३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१०.५, ५४३४-३७).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-८, गाथा-८ अपूर्ण से __ अध्ययन-१९, गाथा-८७ अपूर्ण तक है.)
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६३०३८. (+#) औपपातिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११-१३४३१-३६).
औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००. ६३०३९. (+) कल्पसूत्र, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०१-७२(१ से २४,३३,३७,३९ से ४७,५१ से ५२,५४ से ५६,५८,६० से
६४,६६,६८ से ७५,७७ से ९३)=२९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ७४२२-२७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. त्रिशला के द्वारा देखे गए चौदह स्वप्न
__ वर्णन से स्वप्न फल वर्णन तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ६३०४०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६२-८(१ से ६,५२,६१)=५४, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३५-४१).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-६, गाथा-१८ अपूर्ण से
___ अध्ययन-३६, गाथा-२६६ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ६३०४१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०२-६५(१ से ६१,६३ से ६६)=३७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-द्विपाठ., जैदे., (२६४१०.५, ६-१६x४०-४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
अध्ययन-७, गाथा-११ अपूर्ण से अध्ययन-१६, सूत्र-८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
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