Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 16
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " श्लोक संग्रह पुहिं. प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदिः इदमपि प्रतिक्ष्य समी; अंतिः कर० लुलोठ राजहंस, (वि. प्रासंगिक विविध श्लोकों का संग्रह.) ६२९६८. योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४०-४३). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि, अंति: (-), ( पू. वि. प्रकाश- ३, श्लोक ५४ अपूर्ण तक है.) ६२९६९. (+) शोभन स्तुति, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-१ (५) ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६X११, १३x४८). स्तुतिचतुर्विंशतिका. मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदि: भव्याभोजविबोधनैक, अंतिः हारताराबलक्षेमवा, स्तुति- २४, श्लोक- ९६ (पू.वि. श्लोक ७५ अपूर्ण से ९० अपूर्ण तक नहीं हैं.) " ६२९७०. (+) थंभणपार्श्वनाथ स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. मतिसोम (गुरु मु. तिलककीर्ति); गुपि. मु. तिलककीर्ति (गुरु ग. पुण्यमंदिर); ग. पुण्यमंदिर, पठ श्रावि रायकुमरी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, ६x४१). " जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख अंतिः अभयदेव० आदिअ गाथा ३०. जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: हे श्रीपार्श्व जयवंत; अंति: माहे श्लाघा सहित. ६२९७१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३-७(१ से ७) ०६, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५X१०.५, ११४३९-४३). "" उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ गाधा- २६ अपूर्ण से अध्ययन-१० गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ६२९७२. (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान + कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७३-६६ (१ से ६४,६६,७०)=७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२५४११, ६४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीर का लेखशाला प्रवेशादि प्रसंग देव व ग्रहण प्रसंग तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र - टवार्थ ". मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). " ६२९७३ (१) जिनराजपूजाव्याख्यानिका संक्षेप, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६१०, १२४४८). ८ प्रकारी पूजाकथा संग्रह, प्रा. सं., प+ग, आदि (१)वरगंधधूयचोक्खक्खएडिं, (२) वैताढ्याद्री दक्षिण अंति: (-), (पू.वि. फलपूजा कथानक अपूर्ण तक है.) ६२९७४. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१८ (१ से १७,१९ * )= ६, जैदे., (२५.५X१०, ९३५-४०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. बीच के पत्र हैं. गाथा २६४ अपूर्ण से गाथा ३६२ अपूर्ण तक है.) ६२९७५. (+#). कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५ - २७ (१ से २७) = ८, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५४१०.५, ९४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. त्रिशलारानी १४ स्वप्नदर्शन प्रसंग से महावीरजिन जन्मोत्तर प्रसंग अपूर्ण तक है.) " ६२९७६. (+) सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १७८८, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. जेसलमहादुर्ग, प्रले. पं. जैतसी (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि) गुपि आ. जिनचंद्रसूरि प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४११, १३x४०). वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: विनिर्मिता कनककुशलेन, श्लोक-१४९. For Private and Personal Use Only

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