Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 16
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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॥ श्री महावीराय नमः॥ ॥श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१६
६२९४१. नवस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१७)=१७, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३५-३८). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-१८अ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-९, (पू.वि. बृहद्
शांतिस्तोत्र का पाठ "पसमनायशांति" तक व "सर्वमंगलमांगल्यं" से है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १८अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.
आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) ६२९४२. (+) विजयचंदकेवली चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-२(१ से २)=१९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५६-६१). विजयचंद्रकेवली चरित्र, मु. चंद्रप्रभ महत्तर, प्रा., पद्य, वि. ११२७, आदि: (-); अंति: चरियं सिरिविजयचंदस्स,
कथा-८, (पू.वि. गाथा ८३ अपूर्ण से है.) ६२९४३. (+#) कर्मग्रंथ २ से ६, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-४(१ से ४)=१४, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४५-५०). १. पे. नाम. कर्मस्तव कर्मग्रंथ, पृ. ५अ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: वंदियं नमहं तं वीरं, गाथा-३४,
(पू.वि. गाथा ९ से है.) २. पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि०
सोडे, गाथा-२४. ३. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रंथ, पृ. ७अ-१०आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहियो
देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ४. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ, पृ. १०आ-१४आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं धुवबंधोदय; अंति:
देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ५. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. १४आ-१६आ, संपूर्ण.
प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नउईउ, गाथा-९०. ६२९४४. (+#) योग विधि, संपूर्ण, वि. १७२५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. संजेतनगर, प्रले. पंन्या. हस्तिविजय (गुरु
पं. भीमविजय, तपगच्छ); गुपि.पं. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६४२५-२८).
योग विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: आवश्यकयोगे वग्धारितं; अंति: दिन एक पूर्णिमा दिने. ६२९४५. (+) विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक
लकीरें., जैदे., (२५४११, १९४५८-६४). १.पे. नाम. पंचमांग तपविधि, पृ. १अ-१६अ, संपूर्ण.
योग विधि-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हर्षसार गुरुचरणद्वय; अंति: कल्याणमस्तु सदा.
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