Book Title: Jivsamas
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_4_001687.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ ४४ जीवसमास | उल्लेख है अप्रमत्तसंयत, अपूर्व | अप्रमत्तसंयत, अपूर्व-उल्लेख है। करण (निवृत्तिबादर) | करण (निवृत्तिबादर) अनिवृत्तिकरण (अ- | अनिवृत्तिकरण (अनिवृत्तिबादर) जैसे | निदृत्तिबादर) जैसे नामों का अभाव। नामों का अभाव है। उपशम और क्षय का | उपशम और क्षपक | अलग-अलग श्रेणी- | अलग-अलग श्रेणी विचार है, किन्तु ८वेंका विचार है, किन्तु विचार उपस्थित विचार उपस्थित। गुणस्थान से उपशम | ८वें गुणस्थान से उपऔर क्षायिक श्रेणी से | शम श्रेणी और क्षपक अलग-अलग आरो. श्रेणी से अलग अलग हण होता है। ऐसा आरोहण होता हैं। विचार नहीं है। ऐसा विचार नहीं है। पतन की अवस्था का | पतन की अवस्था का पतन आदि का मूल इन व्याख्या ग्रन्थों में कोई चित्रण नहीं है। कोई चित्रण नहीं है। पाठ में चित्रण नहीं | पतन आदि का चित्रण हैं। जीवस्थान, मार्गणा- जीवस्थान मार्गणा- समवायांग मूलपाठ सहसम्बन्ध की चर्चा स्थान और गुणस्थान | स्थान और गुणस्थान में जीवस्थान और है। के सह-सम्बन्ध की | के सह-सम्बन्धों की गुणस्थान दोनों को चर्चा का अभाव है। | कोई चर्चा नहीं है। | जीवस्थान ही कहा गया है। इसमें इनके सह-सम्बन्ध की कोई चर्चा नहीं है, किन्तु जीवसमास एवं षट्खण्डागम मूल में इनके सह-सम्बन्धों की चर्चा है। सारिणी संख्या : २ तत्त्वार्थसूत्र कसायपाहड | समवायाग तस्वार्थ की टीकाएँ (तीसरी-चौथी शती) [ (४थी शती उत्तरार्थ) पदसण्डागम (लगभग छठी शती) | (लगभग ५वी शती) मिथ्यात्व | मिच्छादिट्टि मिच्छादिट्टि मिथ्यादृष्टि (इस सन्दर्भ में इसे (मिथ्यादृष्टि) (मिथ्यादृष्टि) परिगणित नहीं किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30