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जीवसमास
| उल्लेख है
अप्रमत्तसंयत, अपूर्व | अप्रमत्तसंयत, अपूर्व-उल्लेख है। करण (निवृत्तिबादर) | करण (निवृत्तिबादर) अनिवृत्तिकरण (अ- | अनिवृत्तिकरण (अनिवृत्तिबादर) जैसे | निदृत्तिबादर) जैसे नामों का अभाव। नामों का अभाव है।
उपशम और क्षय का | उपशम और क्षपक | अलग-अलग श्रेणी- | अलग-अलग श्रेणी विचार है, किन्तु ८वेंका विचार है, किन्तु विचार उपस्थित विचार उपस्थित। गुणस्थान से उपशम | ८वें गुणस्थान से उपऔर क्षायिक श्रेणी से | शम श्रेणी और क्षपक अलग-अलग आरो. श्रेणी से अलग अलग हण होता है। ऐसा आरोहण होता हैं। विचार नहीं है। ऐसा विचार नहीं है।
पतन की अवस्था का | पतन की अवस्था का पतन आदि का मूल इन व्याख्या ग्रन्थों में कोई चित्रण नहीं है। कोई चित्रण नहीं है। पाठ में चित्रण नहीं | पतन आदि का
चित्रण हैं।
जीवस्थान, मार्गणा- जीवस्थान मार्गणा- समवायांग मूलपाठ सहसम्बन्ध की चर्चा स्थान और गुणस्थान | स्थान और गुणस्थान में जीवस्थान और है। के सह-सम्बन्ध की | के सह-सम्बन्धों की गुणस्थान दोनों को चर्चा का अभाव है। | कोई चर्चा नहीं है। | जीवस्थान ही कहा
गया है। इसमें इनके सह-सम्बन्ध की कोई चर्चा नहीं है, किन्तु जीवसमास एवं षट्खण्डागम मूल में इनके सह-सम्बन्धों
की चर्चा है।
सारिणी संख्या : २ तत्त्वार्थसूत्र कसायपाहड | समवायाग तस्वार्थ की टीकाएँ (तीसरी-चौथी शती) [ (४थी शती उत्तरार्थ) पदसण्डागम (लगभग छठी शती)
| (लगभग ५वी शती) मिथ्यात्व | मिच्छादिट्टि
मिच्छादिट्टि
मिथ्यादृष्टि (इस सन्दर्भ में इसे (मिथ्यादृष्टि)
(मिथ्यादृष्टि) परिगणित नहीं किया
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