Book Title: Jivan Shreyaskar Pathmala
Author(s): Kesharben Amrutlal Zaveri
Publisher: Kesharben Amrutlal Zaveri

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Page 9
________________ दसवेलियसुत्तं 'समाइ पेहाइ परिव्वयन्तो सिया मणो निस्सरई बहिद्धा । "न सा महं नो वि श्रहं पि तीसे" इश्चैव ताश्रो विएज रागं ॥ ४ ॥ आयावयाही, चय सोगमल्लं. कामे कमाही कमियं खु दुक्खं । छिन्दाहि दोर्स, विणएज रागं, एवं सुही होहिसि संपराए ॥ ५ । पक्खन्दे जलियं जोइं धूमकेउं दुरासयं । नेच्छति वतयं भोक्तुं कुले जाया अगंधणे ॥ ६ ॥ धिरत्थु astraमी जो तं जीवियकारणा । वतं इच्छसि वेडं ! सेयं ते मरणं भवे ॥ ७ ॥ अहं च भोगरायस्स तं च सि अन्धगवहिणो । मा कुले गन्धरणा होमो, संजम निहु चर ॥ ८॥ जइ तं काहिसि भावं जा जा दिच्छसि नारियो । वायाविद्धुव्व हडो अट्ठियप्पा भविस्यसि ॥६॥ तीसे सेा वयां सेोच्चा संजयाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइओ ॥ १० ॥ एवं करेंति संबुद्धा पण्डिया पवियक्खणा । वियिट्टन्ति भोगेसु जहा से पुरिसुत्तमो ॥११॥ त्ति बेमि ॥ || बीयं सामरपुव्वयज्झयणं समत्तं ॥ १. समाए पेढाए । २. जसोकामी । अज्झयण २

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