Book Title: Jivan Shreyaskar Pathmala
Author(s): Kesharben Amrutlal Zaveri
Publisher: Kesharben Amrutlal Zaveri

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Page 14
________________ अज्झयण ४ दसवेआलियसुतं मेहुणं सेवन्ते वि अन्ने न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणे वायाए काए न करेमि न कारवेमि करन्तं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भन्ते ! पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पारणं वोसिरामि । चउत्थे भन्ते ! महव्वर उवडिओ मि, सव्वाअो मेहुणाश्रो वेरमणं ।।४।। अहावरे पंचमे भन्ते ! महब्वए परिग्गहारो वेरमयां । सव्वं भन्ते ! परिग्गहं पच्चक्खामि, से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेव सयं परिग्गहं परिगिरहेज्जा, नेवन्ने हिं परिग्गहं परिगिराहावेज्जा, परिग्गहं परिगिरहन्ते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कापणं न करेमि न कारवेमि करन्तं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्ल भन्ते पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसिगमि। पंचमे भन्ते ! महव्वए उवडिओ मि, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ॥५॥ ___ अहावरे छठे भन्ते ! वए राइभोयणाओवेरमणं । सव्वं भन्ते ! राइभोयां पच्चक्खामि से असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा नेव सयं राई भुजेज्जा, नेवन्नेहिं राई भुजावेज्जा राई भुजंते वि अन्ने न समणुजाणामि, जावज्जीवाए ति विहं तिविहेण मणेण वायाए कारण न करेमि न कारवेमि करन्तं पि अन्न न समणुजाणामि, तस्ल भन्ते ! पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्याणं वोसिरामि । छठे भन्ते ! वए उवट्टिो मि; सव्वाश्रो राइभोयगाओ वेरमणं ॥ इच्चेयाइं पंच महव्ययाई राइभोयणवेरमणछट्ठाई अत्त हियट्टयाए उपजित्तागो विहरामि ॥६॥

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