Book Title: Jinvijayji ka Vyaktitva aur Kartutva
Author(s): Ravishankar Bhatt
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 5
________________ आश्रम में बैठे ज्ञानपीपासुत्रों को दिशा निर्देश कर रहे हैं। अनेक मुमुक्षु अपने ज्ञान को इस कुरसान से चमका रहे हैं । - ___ यह रूपाहेली गांव का बालक रणमल पंवार रानी राजकुमारी का सुकुमार पुत्र, मुनिदेवी हंस जी का शिष्य, खाखी बाबा शिवानन्द का शिष्य किशन भैरव और मुनि सुन्दर विजय जी का मुनिजिन विजय और ऐसी कितनी ही व्यक्तिवाचक संज्ञाओं को पार करता हुआ, नामों को बदलता हुआ, वेश परिवर्तन करता हुआ, ज्ञानप्राप्त करता, जीवन पथ पर आगे बढ़ता रहा। - मुनि जी आज अपने ही द्वारा लिखित, संम्पादित, प्रकाशित ग्रन्थों, पत्र, पत्रिकाओं, निबंध, लेखों, पी. एच. डी. के प्रबंधों को एक अपरिचित, तटस्थ की भांति अवलोकन कर विस्मित हैं । वार्धक्य से सुप्त स्मृतियां जहाँ झकझोर रही है वहां दूसरी ओर अपने बीते पायामों पर विचार कर अभिभूत हो रहे हैं, करुणा से प्राप्लावित हो रहे है । दोहरी परतंत्रता में जन्मा, मुसीबतों के धात प्रतिधातों में पनपा, बेसहारा, निर्जन, भूचालों में पला, इस अनाथ निराश्रित बालक को कौन जानता था कि यही बालक कितने अनाथों को सनाथ, कितने अनाभ्यासियों को अध्ययन शोल और कितने ही मुमुक्षुओं को अपने कृपा पूर्ण सानिध्य में लेकर, अपने पुरातत्व साहित्य ज्ञान के पारस स्पर्श से पंडित शोधार्थी, मेधावी बना देगा । मैंने पहली बार जब इनके दर्शन किये तब मुझे ऐसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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