Book Title: Jinvijayji ka Vyaktitva aur Kartutva
Author(s): Ravishankar Bhatt
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 11
________________ मुनि जी कड़ी धूप में पैदल चले, कठोर शिलाओं पर शयन किया । ठिठुरती अंधेरी रातों में कई घंटों ध्यान मग्न खड़े रहे, रात-रात भर शिर के बाल नोचते रहे, तपस्या की, भूखे रहें लेकिन कभी अपनी मानसिक परिस्थितियों से समझौता करने की बात नहीं सोची वरन् परिस्थितियों का खुल कर मुकाबला किया । कठिनाइयाँ घबरा गई, खुल कर बिखर गई और टूट गई लेकिन मुनि जी भुके नहीं । केवल अपने कठोर श्रम के बल पर बढ़ े, चढ़ और आगे बढ़े लेकिन रुके नहीं । कठिनाइयों का सामना करते हुए बढ़ े जा रहे हैं । इसी महान् आत्म बल ने इनको इतिहास, पुरातत्व, भारतीय संस्कृति अपठनीय शिलालेखों को सुपाठ्य बनाने की शक्ति दी है । इस मां सरस्वती के वरद पुत्र को "राजस्थान साहित्य अकादमी" ने श्रद्धानत हो अपने सर्वोच्च मनीषी पद पर प्रतिष्ठित कर अपने को धन्य माना है । इसी भारतीय स्कॉलर को "जर्मन आरियण्टल सोसायटी" ने अपना विशिष्ट सम्मानित सदस्य घोषित किया है । यह सम्मान एक को छोड़कर आज तक अन्य भारतीय को नहीं मिला है । इतना ऊँचा पद नोबल पुरस्कार से कम नहीं है । ऐसा विचक्षरण व्यक्ति किस कीचड़ से कमल खिल, बाहर से मजबूत इस्पात से ढ़ल आगे बढ़ा यह आगामी सभी पीढ़ियों के लिये अनुकरणीय रहेगा। जीवन यष्टी वार्द्धक्य के कारण झुकी है लेकिन टूटी नहीं है । ये लोकमान्य तिलक की परम्परा के उग्र राष्ट्रभक्त, कवीन्द्र रवीन्द्र नाथ की परम्परा के विशुद्ध शिक्षा सेवी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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