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राष्ट्र संत विनोबा की पद यात्रा के समय आश्रम की ५५ बीघा जमीन विनोबा जी को समर्पण कर दी । जिस श्राश्रम में करीब डेढ़ दो दर्जन मकान बने हैं यह साधना आश्रम विनोबा को शांति सेना का केन्द्र बनाने हेतु दे दिया जिसकी लागत कई लाख रुपये आँकी जा सकती है लेकिन भाव वही रहा जो भारतीय विद्या भवन को कई लाख की लागत का अमूल्य पुस्तकालय भेंट करते समय था ।
जन सेवा की दृष्टि से जब ग्राश्रम की स्थापना हुई उस समय नूतन निर्मित राजस्थान सरकार ने राजस्थान की साहित्यिक, सांस्कृतिक समृद्धि की सुरक्षा, सुव्यवस्था और प्रकाश में लाने हेतु मुनि जी को सादर आमन्त्रित किया । जिसके परिणाम स्वरूप राजस्थान सरकार ने इन्हीं के मार्ग दर्शन एवँ निदेशन में "राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान" नाम की एक महत्ती संस्था की स्थापना की ।
मुनि जी ने अपने सतत परिश्रम एवँ संशोधन कार्य की विशिष्ठ क्षमता के प्रभाव से इस प्रतिष्ठान में राजस्थान की ही नहीं अपितु समस्त भारतीय साहित्य की प्राचीन ग्रंथ समृद्धि को संगठित करने का अद्भुत प्रयास किया । जिसके परिणाम स्वरूप प्राय: एक लाख के लगभग प्राचीन अलभ्य हस्त लिखित ग्रंथ सुरक्षित हुये । ऐसा अमूल्य ग्रंथ संग्रह भारत के अन्य किसी भी राज्य में विद्यमान नहीं है । इस प्रतिष्ठान द्वारा प्राचीन ग्रंथों के प्रकाशन का महान कार्य भी प्रारंभ किया गया। मुनि जी के अधिकार काल तक इस संस्थान द्वारा ५० ग्रंथ प्रकाश में आये ।
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