Book Title: Jinvijayji ka Vyaktitva aur Kartutva
Author(s): Ravishankar Bhatt
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ महात्मा गाँधी जैसों की परम्परा के सत्यान्वेषी, विनोबा की परम्परा के राष्ट्र संत, महाराणा प्रताप की परम्परा के वीर ब्रत धारी राजपुत्र, मीरां की परम्परा के श्रद्धालु भक्त मुनि जी हैं । जिनका यौवन कहाँ बीता, बचपन कहाँ व बुढ़ापा कहाँ बीत रहा है। इस धरती पर पुत्र, पत्नी, मान, मर्यादा, धन, सम्पदा आते जाते, नाशवान, अनित्य हैं। अवश्य नष्ट होंगे, लेकिन श्रेष्ठ व्यक्तियों के श्रेष्ठ कार्य नित्य निरंतर रहेंगे। जो आगामी पीढ़ियों के प्रेरणा स्रोत होंगे। जीवन के राजमार्ग पर आगे बढ़ने वालों के लिये चौराहे के प्रकाश स्तम्भ का काम देंगे। उनके पथ को आलोकित करते रहेंगे। मुनिजी वैसे आज प्रकाश स्तम्भ है। मुनि जी के सम्प्रदाय बन्धी जैन साधु वेश को या केवल व्यारव्यान दाता गुरु पद का परित्याग करते समय लिखे शब्द भी हम जैसे भाषाण व कोरे उपदेश देने वाले योजना बहादुरों के लिये कल्याण कारी हो सकते हैं बशर्ते हम उनको जाने माने जीवन में उतारें। जिसकी आज आवश्यकता है। "जिस वेश की चर्या का प्राचारण हमने मुग्ध भाव से बाल्य-काल में स्वीकृत किया था, उसके साथ हमारे मन का तादात्म्य नहीं होने से हमारे मन में अपने जीवन की प्रवृत्ति के विषय में एक प्रकार का प्रान्तरिक असंतोष बढ़ता जाता था। अंतर में वास्तविक विरागता न होने पर भी केवल बाह्य वेश की विरागता के कारण लोगों के द्वारा वन्दन पूजनादि का सम्मान प्राप्त करने में हमें एक प्रकार की आत्म वंचना १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16