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प्रतीत होती थी। इस गुरु पद भार से मुक्त होकर किसी सेवक पद का अनुशरण करने का हम मनोरथ कर रहे थे और अपनी मनोवृत्ति के अनुकूल सेवा का उपयुक्त अवसर खोज रहे थे। मित्रों की प्रेरणा और महात्मा जी की आज्ञा से प्रेरित होकर हम पूना से अहमदाबाद पहुंचे और यहाँ अपनी मनोवृत्ति के अनुरूप कार्य क्षेत्र पाकर एक सेवक के रूप में गुजरात विद्यापीठ की सेवा में सम्मिलित हुये।”
ये राष्ट्रीय सन्यासी, लोकमान्य तिलक, माहात्मा गाँधी, रवीन्द्र नाथ टैगोर, विनोबाभावे आदि कई युग मनीषियों के निकट सम्पर्क में आये । उनके उच्च आदर्शों से अभिभूत हुये और उनको जीवन में उत्तारा । मुनि जी क्रान्त दर्शी, अराजकता वादि केवल आदर्श विचारक ही नहीं अपितु कठिन शरीर श्रम के हामी, समाज के नव संस्कारों के अधिष्ठाता हैं । सत्य के खोजी कितने ही शोधार्थियों के मार्ग दर्शक, शिक्षा शास्त्री एवं गुरु हैं ।
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